Chudai Kahani गाँव का राजा
06-24-2017, 11:59 AM,
#31
RE: Chudai Kahani गाँव का राजा
गाँव का राजा पार्ट -7 लेकर हाजिर हूँ दोस्तो कहानी कैसी है ये तो आप ही बताएँगे
आठ बजने पर बिस्तर छोड़ा और भाग कर बाथरूम में गई कमोड पर जब बैठी और चूत से पेशाब की धारा निकलने लगी तो रात की बात फिर से याद आ गई और चेहरा शर्म और मज़े की लाली से भर गया. अपनी चुदी चूत को देखते हुए उनके चेहरे पर मुस्कान खेल गई कि कैसे रात में राजू के मुँह पर उन्होने अपनी चूत को रगड़ा था और कैसे लौडे को तडपा तडपा कर अपनी चूत की चटनी चटाई थी. नहा धो कर फ्रेश हो कर निकलते निकलते 9 बज गये, जल्दी से राजू को उठाने उसके कमरे में गई तो देखा लौंडा बेसूध होकर सो रहा है. थोड़ा सा पानी उसके चेहरे पर डाल दिया. राजू एक दम से हर्बाड़ा उठ ता हुआ बोला "पेस्सशाब….मत…..". आँखे खोली तो सामने मामी खड़ी थी. वो समझ गई कि राजू शायद रात की बातो को सपने में देख रहा था और पानी गिरने पर उसे लगा शायद मामी ने उसके मुँह मैं पिशाबफिर से कर दिया. राजू आँखे फाडे उर्मिला देवी को देख रहा था.


"अब उठ भी जाओ ….9 बज गये अभी रात के ख्वाबो में डूबे हो के"…..फिर उसके शॉर्ट्स के उपर से लंड पर एक थपकी मारती हुई बोली "चल जल्दी से फ्रेश हो जा"

उर्मिला देवी किचन में नाश्ता तैयार कर रही थी. बाथरूम से राजू अभी भी नही निकला था.


"आरे जल्दी कर…..नाश्ता तैय्यार है…….इतनी देर क्यों लगा रहा है बेटा…"

ये मामी भी अजीब है. अभी बेटा और रात में क्या मस्त छिनाल बनी हुई थी. पर जो भी हो बड़ा मज़ा आया था. नाश्ते के बाद एक बार चुदाई करूँगा तब कही जाउन्गा. ऐसा सोच कर राजू बाथरूम से बाहर आया तो देखा मामी डाइनिंग टेबल पर बैठ चुकी थी. राजू भी जल्दी से बैठ गया नाश्ता करने लगा. कुच्छ देर बाद उसे लगा जैसे उसके शॉर्ट्स पर ठीक लंड के उपर कुच्छ हरकत हुई. उसने मामी की ओर देखा, उर्मिला देवी हल्के हल्के मुस्कुरा रही थी. नीचे देखा तो मामी अपने पैरो के तलवे से उसके लंड को छेड रही थी. राजू भी हँस पड़ा और उसने मामी के कोमल पैर अपने हाथो से पकड़ कर उनके तलवे ठीक अपने लंड के उपर रख दोनो जाँघो के बीच जाकड लिया. दोनो मामी भानजे हँस पड़े. राजू ने जल्दी जल्दी ब्रेड के टुकड़ो को मुँह में ठुसा और हाथो से मामी के तलवे को सहलाते हुए धीरे धीरे उनकी साड़ी को घुटनो तक उपर कर दिया. राजू का लंड फनफना गया था. उर्मिला देवी लंड को तलवे से हल्के हल्के दबा रही. राजू ने अपने आप को कुर्सी पर अड्जस्ट कर अपने हाथो को लंबा कर साड़ी के अंदर और आगे की तरफ घुसा कर जाँघो को छुते हुए सहलाने की कोशिश की. उर्मिला देवी ने हस्ते हुए कहा "उईइ क्या कर रहा….कहा हाथ ले जा रहा है……"


"कोशिश कर रहा हू कम से कम उसको छु लू जिसको कल रात आपने बहुत तडपाया था छुने के लिए…."

"अच्छा बहुत बोल रहा है…..रात में तो मामी..मामी कर रहा था"

" कल रात में तो आप एकदम अलग तरह से बिहेव कर रही थी"

"शैतान तेरे कहने का क्या मतलब कल रात तेरी मामी नही थी तब"

"नही मामी तो आप मेरी सदा रहोगी तब भी अब भी मगर…."

"तो रात वाली मामी अच्छी थी या अभी वाली मामी…"

"मुझे तो दोनो अच्छी लगती है…पर अभी ज़रा रात वाली मामी की याद आ रही है" कहते हुए राजू कुर्सी सेनीचे खिसक गया और जब तक उर्मिला देवी "रुक क्या कर रहा है" कहते हुए रोक पाती वो डिनाइनिंग टेबल के नीचे घुस चुका था और उर्मिला देवी के तलवो और पिंदलियो कोचाटने लगा था. उर्मिला देवी के मुँह सिसकारी निकल गई वो भी सुबह से गरम हो चुकी थी.

"ओये……क्या कर रहा है….नाश्ता तो कर लेने दे….."

"पुच्च पुच्च….ओह तुम नाश्ता करो मामी……मुझे अपना नाश्ता कर लेने दो"

"उफ़फ्फ़……मुझे बाज़ार जाना है अभीईइ छोड़ दे…..बाद मीएइन्न……." उर्मिला देवी की आवाज़ उनके गले में ही रह गई. राजू अब तक साड़ी को जाँघो से उपर तक उठा कर उनके बीच घुस चुक्का था. मामी ने आज लाल रंग की पॅंटी पहन रखी थी. नहाने कारण उक्नकि स्किन चमकीली और मक्खन के जैसी गोरी लग रही थी और भीनी भीनी सुगंध आ रही थी. राजू गदराई गोरी जाँघो पर पप्पी लेता हुआ आगे बढ़ा और पॅंटी उपर एक जोरदार चुम्मि ली. उर्मिला देवी ने मुँह से "आउच….इसस्स क्या कर रहा है" निकला.


"ममीईइ…मुझे भी टुशण जाना है……पर अभी तो तुम्हारा फ्रूट जूस पी कर हीईइ…." कहते हुए राजू ने पूरी चूत को पॅंटी के उपर से अपने मुँह भर कर ज़ोर से चूसा.


"इसस्सस्स…….एक ही दिन में ही उस्ताद…बन गया हॅयियी….चूत का पानी फ्रूट जूस लगता हाईईईईईईईई……..उफफफ्फ़ पॅंटी मत उतर्ररर……" मगर राजू कहा मान ने वाला था. उसके दिल का डर तो कल रात में ही भाग गया था. जब वो उर्मिला देवी के बैठे रहने के कारण पॅंटी उतारने में असफल रहा तो उसने दोनो जाँघो को फैला कर चूत को ढकने वाली पट्टी के किनारे को पकड़ कर खींचा और चूत नंगी कर उस पर अपना मुँह लगा दिया.
Reply
06-24-2017, 11:59 AM,
#32
RE: Chudai Kahani गाँव का राजा
झांतो से आती भीनी-भीनी खुसबु को अपनी सांसोमैं भरता हुआ जीभ निकाल चूत के भग्नासे को भूखे भेड़िए की तरह काटने लगा. फिर तो उर्मिला देवी ने भी हथियार डाल दिए और सुबह-सुबह ब्रेकफास्ट में चूत चुसाइ का मज़ा लेने लगी. उनके मुँह से सिसकारियाँ फूटने लगी. कब उन्होने कुर्सी पर से अपनी गांद उठाई, कब पॅंटी निकाली और कब उनकी जंघे फैल गई इसका उन्हे पता भी ना चला. उन्हे तो बस इतना पता था उनकी फैली हुई चूत के मोटे मोटे होंठो के बीच राजू की जीभ घुस कर उनके चूत की चुदाई कर रही थी और उनके दूनो हाथ उसके सिर के बालो में घूम रहे थे और उसके सिर को जितना हो सके अपनी चूत पर दबा रहे थे. थोरी देर की चुसाइ चटाई में ही उर्मिला देवी पस्त होकर झार गई और आँख मुन्दे वही कुर्सी पर बैठी रही. राजू भी चूत के पानी को पी अपने होंठो पर जीभ फेरता जब डाइनिंग टेबल के नीचे से बाहर निकला तब उर्मिला देवी उसको देख मुस्कुरा दी और खुद ही अपना हाथ बढ़ा उसके शॉर्ट्स को सरका कर घुटनो तक कर दिया.

"सुबह सुबह तूने….ये क्या कर दिया …" कहते हुए उसके लंड पर मूठ लगाने लगी.

"ओह मामी मूठ मत लगाओ ना….चलो बेडरूम में डालूँगा."

"नही कपड़े खराब हो जाएँगे…चूस कर निकाल….." और गप से लंड के सुपरे को अपने गुलाबी होंठो के बीच दबोच लिया. होंठो को आगे पिछे करते हुए लंड को चूसने लगी. राजू मामी के सिर को अपने हाथो से पकड़ हल्के हल्के कमर को आगे पिछे करने लगा. तभी उसके दिमाग़ में आया की क्यों ना पिछे से लंड डाला जाए कपड़े भी खराब नही होंगे.

"मामी पिछे से डालु….कपड़े खराब नही होंगे.."

लंड पर से अपने होंठो को हटा उसके लंड को मुठियाते हुए बोली "नही बहुत टाइम लग जाएगा…रात में पिछे से डालना" राजू ने उर्मिला देवी के कंधो को पकड़ कर उठाते हुए कहा "प्लीज़ मामी……उठो ना चलो उठो….."

"अर्रे नही बाबा…….मुझे मार्केट भी जाना है…..ऐसे ही देर हो गई है…."

"ज़यादा देर नही लगेगी बस दो मिनिट…."

"अर्रे नही तू छोड़ दे मेरा काम तो वैसे भी हो….."

"क्या मामी……..थोड़ा तो रहम करो…..हर समय क्यों तड़पाती हो…"

"तू मानेगा नही….."

"ना, बस दो मिनिट दे दो……."

"ठीक है दो मिनिट में नही निकला तो खुद अपने हाथ से करना…..मैं ना रुकने वाली"

उर्मिला देवी उठ कर डाइनिंग टेबल के सहारे अपने चूतरो को उभार कर घोड़ी बन गई. राजू पिछे आया और जल्दी से उसने मामी की सारी को उठा कर कमर पर कर दिया. पॅंटी तो पहले ही खुल चुकी थी. उर्मिला देवी की मक्खन मलाई सी चमचमाती गोरी गांद राजू की आँखो के सामने आ गई. उसके होश फाख्ता हो गये. ऐसे खूबसूरत चूतर तो सायद उन अँग्रेजानो की भी नही थे जिनको उसने अँग्रेज़ी फ़िल्मो में देखा था. उर्मिला देवी अपने चूतरो को हिलाते हुए बोली "क्या कर रहा है जल्दी कर देर हो रही है….". चूतर हिलने पर थल थाला गये. एक दम गुदाज और मांसल चूतर और उनके बीच खाई. राजू का लंड फुफ्कार उठा.

"मामी…..आपने रात में अपना ये तो दिखाया ही नही……अफ कितना सुंदर है मामी….

"जो भी देखना है रात में देखना पहली रात में क्या तुझ से गांद भी………तुझे जो करना है जल्दी कार्ररर……


ओह सीईई मामी मैं हमेशा सोचता था आप का पिच्छवाड़ा कैसा होगा. जब आप चलती थी और आपके दोनो चूतर जब हिलते थे तो दिल करता था कि उनमे अपने मुँह को घुसा कर रगड़ दू……..उफफफफ्फ़"

"ओह हूऊऊऊ……..जल्दी कर ना"….कह कर चूतरो को फिर से हिलाया.

"चूतर पर एक चुम्मा ले लू….."


"ओह हो एक दम कमीना है तू…….जो भी करना है जल्दी कर नही तो मैं जा रही हू…"

राजू तेज़ी के साथ नीचे झुका और पुच पुच करते हुए चूतरो को चूमने लगा. दोनो मांसल चूतरो को अपनी मुट्ठी में ले कर मसल्ते हुए चूमते हुए चाटने लगा. उर्मिला देवी का बदन भी सिहर उठा. बिना कुच्छ बोले उन्होने अपनी टाँगे और फैला दी. राजू ने दोनो चूतरो को फैला दिया और उसके बीच की खाई में भूरे रंग की मामी की गोल सिकुड़ी हुई गांद का छेद नज़र आ गया. दोनो चूतरो के बीच की खाई में जैसे ही राजू ने हल्के से अपनी जीभ चलाई. उर्मिला देवी के पैर कांप उठे. उसने कभी सोचा भी नही था की उसका ये भांजा इतनी जल्दी तरक्की करेगा. राजू ने देखा की चूतरो के बीच जीभ फ़िराने से गांद का छेद अपने आप हल्के हल्के फैलने और सिकुड़ने लगा और मामी के पैर हल्के-हल्के थर-थारा रहे थे.

"ओह मामी आपकी गांद कितनी…….उफफफफफफ्फ़ कैसी खुसबु है…प्यूच"


(¨`·.·´¨) Always
Reply
06-24-2017, 11:59 AM,
#33
RE: Chudai Kahani गाँव का राजा
इस बार उसने जीभ को पूरी खाई में उपर से नीचे तक चलाया और गांद के सिकुदे हुए छेद के पास ला कर जीभ को रोक दिया और कुरेदने लगा. उर्मिला देवी के पूरे बदन में सनसनी दौड़ गई. उसने कभी सपने में भी नही सोचा था की घर में बैठे बिठाए उसकी गांद चाटने वाला मिल जाएगा. मारे उत्तेजना के उसके मुँह से आवाज़ नही निकल रही थी. गु गु की आवाज़ करते हुए अपने एक हाथ को पिछे ले जा कर अपना चूतरो को खींच कर फैलाया. राजू समझ गया था कि मामी को मज़ा आ रहा है और अब समय की कोई चिंता नही. उसने गांद के छेद के ठीक पास में दोनो तरफ अपने दोनो अंगूठे लगाए और छेद को चौड़ा कर जीभ नुकीली कर पेल दी. गांद की छेद में जीभ चलाते हुए चूतरो पर हल्के हल्के दाँत भी गढ़ा देता था. गांद की गुदगुदी ने मामी को एकद्ूम बेहाल कर दिया था. उनके मुँह से सिसकारियाँ निकलने लगी "ओह राजू क्या कर रहा है…..बेटा…..उफफफफफफफ्फ़……मुझे तो लगता था तुझे कुच्छ भी नही…..पगले सस्स्स्स्सीईए उफफफफफफ्फ़ गान्ड चाटता रह हाईईईईईईई…….मेरी तो समझ में नहियीईई………". समझ में तो राजू की भी कुच्छ नही आ रहा था मगर गांद पर चुम्मिया काट ते हुए बोला

"पुच्च पुच्च…मामी सीईए….मेरा दिल तो आपके हर अंग को चूमने और चाटने को करता है…..आप इतनी खूबसूरत हो…मुझे नही पता गांद चाटी जाती है या नहीइ…हो सकता है नही चाती जाती होगी मगर…..मैं नही रुक सकता…..मैं तो इसको चुमूंगा और चाट कर खा जाउन्गा जैसे आपकी चूत….."

"सीईई…..एक दिन में ही तू कहा से कहा पहुच गया…..उफफफ्फ़ तुझे अपनी मामी की गांद इतनी पसंद है तो चाट….चूम……उफफफफफ्फ़ सीईई राजू बेटा……बात मत कर…मैं सब समझती हू…….तू जो भी करना चाहता है करता रह…..कुत्तीई…गांद में ऐसे ही जीभ पेल कर चातत्तटटटटटतत्त."

राजू समझ गया कि रात वाली छिनाल मामी फिर से वापस आ गई है. वो एक पल को रुक गया अपनी जीभ को आराम देने के लिए मगर उर्मिला देवी को देरी बर्दाश्त नही हुई. पीछे पलट कर राजू के सिर को दबाती हुई बोली "अफ रुक मत…….जल्दी जल्दी चाट.." मगर राजू भी उसको तड़पाना चाहता था. उर्मिला देवी पिछे घूमी और राजू को उसके टी-शर्ट के कॉलर से पकड़ कर खींचती हुई डाइनिंग टेबल पर पटक दिया. उसके नथुने फूल रहे थे, चेहरा लाल हो गया था. राजू को गर्दन के पास से पकड़ उसके होंठो को अपने होंठो से सटा खूब ज़ोर से चुम्मा लिया. इतनी ज़ोर से जैसे उसके होंठो को काट खाना चाहती हो और फिर उसकी गाल पर दाँत गढ़ा कर काट लिया. राजू ने भी मामी के गालो को अपने दांतो से काट लिया. "अफ कामीने निशान पर जाएगा…..रुकता क्यों है….जल्दी कर नही तो बहुत गाली सुनेगा….और रात के जैसा चोद दूँगी" राजू उठ कर बैठता हुआ बोला "जितनी गालियाँ देनी है दे दो…." और चूतर पर कस कर दाँत गढ़ा कर काट लिया.


"उफफफफ्फ़….हरामी गाली सुन ने में मज़ा आता है तुझे…….."

राजू कुच्छ नही बोला, गांद की चुम्मियाँ लेता रहा "…आ ह पुछ पुच्छ." उर्मिला देवी समझ गई की इस कम उमर में ही छोकरा रसिया बन गया है.

चूत के भज्नाशे को अपनी उंगली रगड़ कर दो उंगलियों को कच से चूत में पेल दिया चूत एक दम पासीज कर पानी छोड़ रही थी. चूत के पानी को उंगलियों में ले कर पिछे मुड़ कर राजू के मुँह के पास ले गई जो की गांद चाटने में मसगूल था और अपनी गांद और उसके मुँह के बीच उंगली घुसा कर पानी को रगड़ दिया. कुच्छ पानी गांद पर लगा कुच्छ राजू के मुँह पर.

"देख कितना पानी छ्चोड़ रही है चूत अब जल्दी कार्रर्र्र्ररर …."

पानी छोड़ती चूत का इलाज़ राजू ने अपना मुँह चूत पर लगा कर किया. चूत में जीभ पेल कर चारो तरफ घूमाते हुए चाटने लगा.

"ये क्या कर रहा है सुअर्रर…….खाली चाट ता ही रहेगा क्या… मदर्चोद.उफ़फ्फ़ चाट गांद चूत सब चाट लीईए……..भोसड़ी के……..लंड तो तेरा सुख गया है नाआअ…..हरामी….गांद खा के पेट भर और चूत का पानी पीईए ……..ऐसे ही फिर से झार गई तो हाथ में लंड ले के घुम्नाआ……"

अब राजू से भी नही रहा जा रहा था जल्दी से उठ कर लंड को चूत के पनियाए छेद पर लगा ढ़ाचक से घुसेड दिया. उर्मिला देवी का बॅलेन्स बिगड़ गया और टेबल पर ही गिर पड़ी, चिल्लाते हुए बोली "हराम्जादे बोल नही सकता था क्या……..तेरी मा की चूत में घोड़े का लंड……गांदमरे…..आराम सीईई"

पर राजू ने संभालने का मौका नही दिया. ढ़ाचा ढ़च लंड पेलता रहा. पानी से सारॉबार चूत ने कोई रुकावट नही पैदा की. दोनो चूतरो के मोटे मोटे माँस को पकड़े हुए गाप-गप लंड डाल कर उर्मिला देवी को अपने धक्को की रफ़्तार से पूरा हिला दिया था उसने. उर्मिला देवी मज़े से सिसकारिया लेते हुए चूत में गांद उचका उचका कर लंड लील रही थी. फ़च फच की आवाज़ एक बार फिर गूँज उठी थी. जाँघ से जाँघ और चूतर टकराने से पटक-पटक की आवाज़ भी निकल रही. दोनो के पैर उत्तेजना के मारे कांप रहे थे.

"पेलता रह….और ज़ोर से माआआअरर…बेटा मार…..फाड़ दे चूत….मामी को बहुत मज़ा दे रहा हाईईईई……..ओह चोद……देख री मेरी ननद तूने कैसा लाल पैदा किया है……तेरे भाई का काम कर रहा है…आईईईईईईईई..फ़ाआआआद दियाआआआअ सल्ल्ल्ल्ल्ल्ल्ल्ल्लीई ने"

"ओह मामी आअज्जजज्ज आपकी चूत….सीईईईईईईईई…मन कर रहा इसी में लंड डाले….ओह…..सीईईई मेरे मामा की लुगाई…….सीईइ बस ऐसे ही हमेशा मेरा लंड लेती….."

"हाई चोद…..बहुत मज़ा……सेईईईईईई गांड्चतु….. तू ने तो मेरी जवानी पर जादू कर दिया..."

"हाई मामी ऐसे ही गांद हिला-हिला के लॉडा लो……..सीईईईईई, जादू तो तुमने किया हाईईईई....अहसान किया है…..इतनी हसीन चूत मेरे लंड के हवाले करके…..पक पाक….लो मामी…ऐसे ही गांद नचा-नचा के मेरा लंड अपनी चूत में दबोचो…….सीईईईईईई"

"....रंडी की औलाद ....अपनी मा को चोद रहा है कि मामी को....ज़ोर लगा के चोद ना भोसड़ी के……..देख..देख तेरा लंड गया तेरी मा की चूत में... डाल साला…पेल साले ....पेल अपनी मा की चूत में.....रंडी बना दे मुझे....चोद अपनी मामी की चूत....रंडी की औलाद..... साला .....मादर्चोद".... .फ़च.... फ़च....फ़च... और एक झटके के साथ उर्मिला देवी का बदन अकड़ गया.."ओह ओह सीईए गई मैं गई करती हुई डाइनिंग टेबल पर सिर रख दिया.

झरती हुई चूत ने जैसे ही राजू के लंड को दबोचा उसके लंड ने भी पिचकारी छोड़ दी फॅक फॅक करता हुआ लंड का पानी चूत के पसीने से मिल गया. दोनो पसीने से तर बतर हो चुके थे. राजू उर्मिला देवी की पीठ पर निढाल हो कर पड़ गया था. दोनो गहरी गहरी साँसे ले रहे थे. जबरदस्त चुदाई के कारण दोनो के पैर काप रहे थे. एक दूसरे का भार संभालने में असमर्थ. धीरे से राजू मामी की पीठ पर से उतर गया और उर्मिला देवी ने अपनी साड़ी नीचे की और साड़ी के पल्लू से पसीना पोछती हुई सीधी खड़ी हो गई. वो अभी भी हाँफ रही थी. राजू पास में परे टवल से लंड पोछ रहा था. राजू के गालो को चुटकी में भर मसलते हुए बोली


"कामीने…..अब संतुष्टि मिल गई…..पूरा टाइम खराब कर दिया और कपड़े भी…"

"पर मामी मज़ा भी तो आया…सुबह सुबह कभी मामा के साथ ऐसे मज़ा लिया…" मामी को बाँहो में भर लिपट ते हुए राजू बोला. उर्मिला देवी ने उसको परे धकेला "चल हट ज़यादा लाड़ मत दिखा तेरे मामा अच्छे आदमी है. मैं पहले आराम करूँगी फिर मार्केट जाउन्गी और खबरदार जो मेरे कमरे में आया तो, तुझे टुशण जाना होगा तो चले जाना.."
Reply
06-24-2017, 12:00 PM,
#34
RE: Chudai Kahani गाँव का राजा
गाँव का राजा पार्ट -8 लेकर हाजिर हूँ दोस्तो कहानी कैसी है ये तो आप ही बताएँगे

"ओके मामी…..पहले थोडा आराम करूँगा ज़रा" बोलता हुआ राजू अपने कमरे में और उर्मिला देवी बाथरूम में घुस गई. थोडी देर खाट पाट की आवाज़ आने के बाद फिर शांति छा गई.राजू यू ही बेड पर पड़ा सोचता रहा कि सच में मामी कितनी मस्त औरत है और कितनी मस्ती से मज़ा देती है. उनको जैसे सब कुच्छ पता है कि किस बात से मज़ा आएगा और कैसे आएगा. रात में कितना गंदा बोल रही थी….मुँह में मूत दूँगी….ये सोच कर ही लंड खड़ा हो जाता है मगर ऐसा कुच्छ नही हुआ चुदवाने के बाद भी वो पेशाब करने कहाँ गई, हो सकता है बाद में गई हो मगर चुदवाते से समय ऐसे बोल रही थी जैसे……शायद ये सब मेरे और अपने मज़े को बढ़ाने के लिए किया होगा. सोचते सोचते थोड़ी देर में राजू को झपकी आ गई. एक घंटे बाद जब उठा तो मामी जा चुकी थी वो भी तैय्यार हो कर टुशन पढ़ने चला गया. दिन इसी तरह गुजर गया. शाम में घर आने पर दोनो एक दूसरे को देख इतने खुश लग रहे थे जैसे कितने दीनो बाद मिले हो. फिर तो खाना पीना हुआ और उस दिन रात में दो बार ऐसी भयंकर चुदाई हुई कि दोनो के कस बल ढीले पद गये. दोनो जब भी झरने को होते चुदाई बंद कर देते. रुक जाते और फिर दुबारा दुगुने जोश से जुट जाते. राजू भी खुल गया. खूब गंदी गंदी बाते की. मामी को रंडी…..चूत्मरनि…….बेहन की लॉडी कहता और वो खूब खुस हो कर उसे गांडमरा…हरामी…….रंडी की औलाद कहती. उर्मिला देवी के शरीर का हर एक भाग थूक से भीग जाता और चूतरों चुचियों और जाँघो पर तो राजू ने दाँत के निशान पड़ जाते. उसी तरह से राजू के कमसिन गाल, पीठ और छाती पर भी उर्मिला देवी के दांतो और नाख़ून का निशान बनते थे.

घर में तो कोई था नही खुल्लम खुल्ला जहा मर्ज़ी वही चुदाई शुरू कर देते थे दोनो. मामी को गोद में बैठा कर टीवी देखता था. किचन में उर्मिला देवी बिना शलवार के केवल लंबा वाला समीज़ पहन कर खाना बनाती और राजू से समीज़ उठा कर दोनो जाँघो के बीच बैठा चूत चत्वाती. चूत में केला डाल कर उसको धीरे धीरे करके खिलाती. अपनी बेटी की फ्रॉक पहन कर डाइनिंग टेबल के उपर एक पैर घुटनो के पास से मोड़ कर बैठ जाती और राजू को सामने बिठा कर अपनी नंगी चूत दिखाती और दोनो नाश्ता करते. राजू कभी उंगली तो कभी चम्मच घुसा देता मगर उनको तो इस सब में मज़ा आता था. राजू का लंड खड़ा कर उस पर अपना दुपट्टा कस कर बाँध देती थी. उसको लगता जैसे लंड फट जाएगा मगर गांद चटवाती रहती थी और चोदने नही देती. दोनो जब चुदाई करते करते थक जाते तो एक ही बेड पर नंग धड़ंग सो जाते.

शायद चौथे दिन सुबह के समय राजू अभी उठा नही था. तभी उसे मामी की आवाज़ सुनाई दी "राजू बेटा…..राजू…".

राजू उठा देखा तो आवाज़ बाथरूम से आ रही थी. बाथरूम का दरवाजा खुला था, अंदर घुस गया. देखा मामी कमोड पर बैठी हुई थी. उस समय उर्मिला देवी ने मॅक्सी जैसा गाउन डाल रख था. मॅक्सी को कमर से उपर उठा कर कमोड पर बैठी हुई थी. सामने चूत की झांते और जंघे दिख रही थी. राजू मामी को ऐसे देख कर मुस्कुरा दिया और हस्ते हुए बोला "क्या मामी क्यों बुलाया"

"इधर तो आ पास में….." उर्मिला देवी ने इशारे से बुलाया.

"क्या काम है……..पॉटी करते हुए" राजू कमोड के पास गया और फ्लश चला कर झुक कर खड़ा हो गया. उसका लंड इतने में खड़ा हो चुका था.

उर्मिला देवी ने मुस्कुराते हुए अपने निचले होंठो को दांतो से दबाया और बोली "एक काम करेगा".

"हा बोलो क्या करना है……"

"ज़रा मेरी गांद धो दे ना…." कह कर उर्मिला देवी मुस्कुराने लगी. खुद उसका चेहरा इस समय शर्म से लाल हो चुका था मगर इतना मज़ा आ रहा था कि चूत के होंठ फड़कने लगे थे.

राजू का लंड इतना सुनते ही लहरा गया. उसने तो सोचा भी नही था की मामी ऐसा करने को बोल सकती है. कुच्छ पल तो यू ही खड़ा फिर धीरे से हस्ते हुए बोला "क्या मामी कैईसीई बाते कर रही हो". इस पर उर्मिला देवी तमक कर बोली "तुझे कोई प्राब्लम है क्या..?"

"नही, पर आपके हाथ में कोई प्राब्लम है क्या…?"

"ना, मेरे हाथ को कुच्छ नही हुआ बस अपनी गांद नही धोना चाहती…?. राजू समझ गया कि मामी का ये नया नाटक है सुबह सुबह चुदना चाहती होगी. यही बाथरूम में साली को पटक कर गांद मारूँगा सारा गांद धुल्वाना भूल जाएगी. उर्मिला देवी अभी भी कमोड पर बैठी हुई थी. अपना हाथ टाय्लेट पेपर की तरफ बढ़ाती हुई बोली "ठीक है रहने दे…

…गांद चाटेगा मगर धोएगा नही……आना अब छुना भी नही………"

"अर्रे मामी रूको…मैं सोच रहा था सुबह सुबह……लाओ मैं धो देता हू" और टाय्लेट पेपर लेकर नीचे झुक कर चूतर को अपने हाथो से पकड़ थोड़ा सा फैलाया जब गांद का छेद ठीक से दिख गया तो उसको पोछ कर अच्छी तरह से सॉफ किया फिर पानी लेकर गांद धोने लगा (इंडियन्स को अभी भी टाय्लेट पेपर से पूरी संतुष्टि नही मिलती). गांद के सिकुदे हुए छेद को खूब मज़े लेकर बीच वाली अंगुली से रगर-रगर कर धोते हुए बोला "मामी ऐसे गांद धुल्वा कर लंड खड़ा करोगी तो……". उर्मिला देवी कमोड पर से हस्ते हुए उठते हुए बोली "तो क्या……मज़ा नही आया….". बेसिन पर अपने हाथ धोता हुआ राजू बोला "मज़ा तो अब आएगाआ…". और मामी को कमर से पकड़ कर मुँह की तरफ से दीवार से सटा एक झटके से उसकी मॅक्सी उपर कर दी और अपनी शॉर्ट नीचे सरका फनफनता हुआ लंड निकाल कर गीली गांद पर लगा एक झटका मारा. उर्मिला देवी "आ उईईई क्या कर रहा है कंजरे…..छोड़" बोलती रही मगर राजू ने बेरहमी से तीन चार धक्को में पूरा लंड पेल दिया और हाथ आगे ले जा कर चूत के भग्नाशे को चुटकी में पकड़ मसल्ते हुए कचा कच धक्के लगाना शुरू कर दिया. पूरा बाथरूम मस्ती भरे सिसकारियों में डूब गया दोनो थोड़ी देर में ही झार गये. जब गांद से लंड निकल गया तो उर्मिला देवी ने पलट कर राजू को बाहों में भर लिया.
Reply
06-24-2017, 12:00 PM,
#35
RE: Chudai Kahani गाँव का राजा
कुच्छ दीनो में राजू एक्सपर्ट चोदु बन गया था. जब मामा और ममेरी बहन घर आ गये तो दोनो दिन में मौका खोज लेते और छुट्टी वाले दिन कार लेकर सहर से थोरी दूरी पर बने फार्म हाउस पर काम करवाने के बहाने निकल जाते. जब भी जाते काजल को भी बोलते चलो मगर वो तो सहर की पार्केटी लड़की थी मना कर देती. फिर दोनो फार्म हाउस में मस्ती करते. इसी तरह से राजू के दिन सुख से कट ते गये. और भी बहुत सारी घटनाए हुई बीच में मगर उन सबको बाद में बताउन्गा. तो ये थी मुन्ना बाबू के ट्रैनिंग की कहानी. मुन्ना को उसकी मामी ने पूरा बिगाड़ दिया.

खैर हमे क्या हम वापस गाओं लौट ते है. देखते है वाहा क्या गुल खिल रहे है. तो दोस्तो कैसी लगी मामी भानजे की मस्ती 

अपनी मा और आया को देखने के दो तीन दिन बाद तक मुन्ना बाबू को कोई होश नही था. इधर उधर पगलाए घूमते रहते थे. हर समय दिमाग़ में वही चलता रहता. घर में भी वो शीला देवी से नज़रे चुराने लगे थे. जब शीला देवी इधर उधर देख रही होती तो उसको निहारते. हालाँकि कई बार दिमाग़ में आता कि अपनी मा को देखना बड़ी कंज़रफी की बात है मगर जिसकी ट्रैनिंग ही मामी से हुई उस लड़के के दिमाग़ में ज़यादा देर ये बात टिकने वाली नही थी. मन बार-बार शीला देवी के नशीले बदन को देखने के लिए ललचाता. उसको इस बात पर ताज्जुब होता कि इतने दीनो में उसकी नज़र शीला देवी पर कैसे नही पड़ी. तीन चार दिन बाद कुच्छ नॉर्मल होने पर मुन्ना ने सोचा कि हर औरत उसकी मामी जैसी तो हो नही सकती. फिर ये उसकी मा है और वो भी ऐसी कि ज़रा सा उन्च नीच होने पर चमड़ी उधेड़ के रख दे. इसलिए ज़यादा हाथ पैर चलाने की जगह अपने लंड के लिए गाओं में जुगाड़ खोजना ज़यादा ज़रूरी है. किस्मत में होगा तो मिल जाएगा.

मुन्ना ने गाओं की भौजी लाजवंती को तो चोद ही दिया था और उसकी ननद बसंती के मुममे दबाए थे मगर चोद नही पाया था. सीलबंद माल थी. आजतक किसी अनचुदी को नही चोदा था इसलिए मन में आरजू पैदा हो गई कि बसंती की लेते. बसंती, मुन्ना बाबू को देखते ही बिदक कर भाग जाती थी. हाथ ही नही आ रही थी. उसकी शादी हो चुकी थी मगर गौना नही हुआ था. मुन्ना बाबू के शैतानी दिमाग़ ने बताया कि बसंती की चूत का रास्ता लाजवंती के भोसड़े से होकर गुज़रता है. तो फिर उन्होने लाजवंती को पटाने की ठानी. एक दिन सुबह में जब लाजवंती लोटा हाथ में लिए लौट रही थी तभी उसको गन्ने के खेत के पास पकड़ा.

"क्या भौजी उस दिन के बाद से तो दिखना ही बंद हो गया तुम्हारा…" लाजवंती पहले तो थोड़ा चौंकी फिर जब देखा की आस पास कोई नही है तब मुस्कुराती हुई बोली "आप तो खुद ही गायब हो गये छ्होटे मलिक वादा कर के….."

"आरे नही रे, दो दिन से तो तुझे खोज रहा हू और हम चौधरी लोग जो वादा करते है निभाते भी है मुझे सब याद है"

"तो फिर लाओ मेरा इनाम……."

"ऐसे कैसे दे दे भौजी…इतनी हड़बड़ी भी ना दिखाओ…."

"अच्छा अभी मैं तेज़ी दिखा रही हू…..और उस दिन खेत में लेते समय तो बड़ी जल्दी में थे आप छ्होटे मलिक…आप सब मरद लोग एक जैसे ही हो"

मुन्ना ने लाजवंती का हाथ पकड़ कर खींचा और कोने में ले खूब कस के गाल काट लिया. लाजवंती चीखी तो उसका मुँह दबाते हुए बोला "क्या करती हो भौजी चीखो मत सब मिलेगा….तेरी पायल मैं ले आया हू और बसंती के लिए लहनगा भी". मुन्ना ने चारा फेंका. लाजवंती चौंक गई "हाई मलिक बसंती के लिए क्यों….."

"उसको बोला था कि लहनगा दिलवा दूँगा सो ले आया." कह कर लाजवंती को एक हाथ से कमर के पास से पकड़ उसकी एक चुचि को बाए हाथ से दबाया. लाजवंती थोड़ा कसमसाती हुई मुन्ना की हाथ की पकड़ को ढीला करती हुई बोली "उस से कब बोला था आपने"

"आरे जलती क्यों है….उसी दिन खेत में बोला था जब तेरी चूत मारी थी" और अपना हाथ चुचि पर से हटा कर चूत पर रखा और हल्के से दबाया.

"अच्छा अब समझी तभी आप उस दिन वाहा खड़ा कर के खड़े थे और मुझे देख कर वो भाग गई और आपने मेरे उपर हाथ साफ कर लिया".

"एक दम ठीक समझी रानी…" और उसकी चूत को मुठ्ठी में भर कस कर दबाया. लाजवंती चिहुन्क गई. मुन्ना का हाथ हटा ती बोली "छोड़ो मलिक वो तो एकद्ूम कच्ची कली है". अचानक सुबह सुबह उसके रोकने का मतलब लाजवंती को तुरंत समझ में आ गया.

"अर्रे कहा की कच्ची कली मेरे उमर की तो है…"

"हा पर अनचुदी है…एकद्ूम सीलबॅंड….दो महीने बाद उसका गौना है"

"धात तेरे की बस दो महीने की मेहमान है तो फिर तो जल्दी कर भौजी कैसे भी जल्दी से दिलवा दे……." कह कर उसके होंठो पर चुम्मा लिया.

"उउउ हह छोड़ो कोई देख लेगा…पायल तो दिया नही और अब मेरी कोरी ननद भी माँग रहे हो….बड़े चालू हो छ्होटे मलिक"

लाजवंती को पूरा अपनी तरफ घुमा कर चिपका लिया और खड़ा लंड साड़ी के उपर से चूत पर रगड़ते हुए उसकी गांद की दरार में उंगली चला मुन्ना बोला "आरे कहा ना दोनो चीज़ ले आया हू…दोनो ननद भौजाई एक दिन आ जाना फिर…"

"लगता है छ्होटे मलिक का दिल बसंती पर पूरा आ गया है"

"हा रे तेरे बसंती की जवानी है ही ऐसी…..बड़ी मस्त लगती है…"

"हा मलिक गाओं के सारे लौडे उसके दीवाने है…."

"गाओं के छोरे मा चुड़ाएँ…..तू बस मेरे बारे में सोच…." कह कर उसके होंठो पर चुम्मि ले फिर से चुचि को दबा दिया.

"सीए मलिक क्या बताए वो मुखिया का बेटा तो ऐसा दीवाना हो गया है कि….उस दिन तालाब के पास आकर पैर छुने लगा और सोने की चैन दिखा रहा था, कह रहा था कि भौजी एक बार बसंती की…..पर मैने तो भगा दिया साले को दोनो बाप बेटे कामीने है"

मुन्ना समझ गया की साली रंडी अपनी औकात पर आ गई है. पॅंट की जेब में हाथ डाल पायल निकली और लाजवंती के सामने लहरा कर बोला "ले बहुत पायल-पायल कर रही है ना तो पकड़ इसको….और बता बसंती को कब ले कर आ रही है….."

"हाई मलिक पायल लेकर आए थे….और देखो तब से मुझे तडपा रहे थे…" और पायल को हाथ में ले उलट पुलट कर देखने लगी. मुन्ना ने सोचा जब पेशगी दे ही दी है तो थोड़ा सा काम भी ले लिया जाए और उसका एक हाथ पकड़ खेत में थोड़ा और अंदर खींच लिया. लाजवंती अभी भी पायल में ही खोई हुई थी. मुन्ना ने उसके हाथ से पायल ले ली और बोला "ला पहना दू…" लाजवंती ने चारो तरफ देखा तो पाया की वो खेत के और अंदर आ गई है. किसी के देखने की संभावना नही तो चुप चाप अपनी साड़ी को एक हाथ से पकड़ घुटनो तक उठा एक पैर आगे बढ़ा दिया. मुन्ना ने बड़े प्यार से उसको एक-एक करके पायल पहनाई फिर उसको खींच कर घास पर गिरा दिया और उसकी साड़ी को उठाने लगा. लाजवंती ने कोई विरोध नही किया. दोनो पैरों के बीच आ जब मुन्ना लंड डालने वाला था तभी लाजवंती ने अपने हाथ से लंड पकड़ लिया और बोली "लाओ मैं डालती हू…" और लंड को अपनी चूत के होंठो पर रगड़ती हुई बोली "वैसे छ्होटे मलिक एक बात बोलू….."

"हा बोल…..छेद पर लगा दे टाइम नही है……."

"सोने का चैन बहुत महनगा आता है क्या….." मुन्ना समझ गया कि साली को पायल मिल गयी है बिना गोल्ड की चैन लिए इसकी आत्मा को शांति नही मिलेगी और मुझे बसंती. लंड को उसके हाथ से झटक कर चूत के मुहाने पर लगा कच से पेलता हुआ बोला "महनगा आए चाहे सस्ता तुझे क्या…आम खाने से मतलब रख गुठली मत गिन"

इतना सुनते ही जैसे लाजवंती एकदम गनगॅना गई दोनो बहो का हार मुन्ना के गले में डालती बोली "हाई मलिक…मैं कहा….मैं तो सोच रही थी कही आपका ज़्यादा खर्चा ना हो जाए…..सम्भहाल के मलिक ज़रा धीरे-धीरे आपका बड़ा मोटा है".

"मोटा है तभी तो तेरी जैसी छिनाल की चूत में भी टाइट जाता है…" ज़ोर ज़ोर से धकके लगाता हुआ मुन्ना बोला.

"हाई मालिक चोदो अब ठीक है…..मालिक अपने लंड के जैसा मोटा चैन लेना…..जैसे आपका मोटा लंड खा कर चूत को मज़ा आ जाता है वैसे ही चैन पहन कर……"

"ठीक है भौजी तू चिंता मत कर….सोने से लाद दूँगा….". फिर थोड़ी देर तक धुआँधार चुदाई चलती रही. मुन्ना ने अपना माल झाड़ा और लंड निकल कर उसकी साड़ी से पोछ कर पॅंट पहन लिया. लाजवंती उठ ती हुई बोली "मालिक जगह का उपाय करना होगा. बसंती अनचुड़ी है. पहली बार लेगी वो भी आपका हलब्बी लंड तो बीदकेगी और चिल्लाएगी. ऐसे खेत में जल्दी का काम नही है. आराम से लेनी होगी बसंती की"

मुन्ना कुच्छ सोचता हुआ बोला "ये मेरा जो आम का बगीचा है वो कैसा रहेगा" मुन्ना के बाबूजी ने दो कमरा और बाथरूम बना रखा था वाहा पर सब जानते थे.

"हाई मलिक वाहा पर कैसे…..वाहा तो बाबूजी.." मुन्ना बात समझ गया और बोला तू चिंता मत कर मैं देख लूँगा.

लाजवंती ने हा में सिर हिलाते हुए कहा "हा मलिक ठीक रहेगा…ज़्यादा दूर भी नही फिर रात में किसी बहाने से मैं बसंती को खिसका के लेती आउन्गि"

"चल फिर ठीक है, जैसे ही बसंती मान जाए मुझे बता देना" फिर दोनो अपने अपने रास्ते चल पड़े.
Reply
06-24-2017, 12:00 PM,
#36
RE: Chudai Kahani गाँव का राजा
व का राजा पार्ट -9 लेकर हाजिर हूँ दोस्तो कहानी कैसी है ये तो आप ही बताएँगे

आम के बगीचे में जो मकान या खलिहान जो भी कहे बना था वो वास्तव में चौधरी जब जवान था तब उसकी ऐषगाह थी. वाहा वो रंडिया ले जा कर नाचवाता और मौज मस्ती करता था. जब से दारू के नशे में डूबा तब से उसने वाहा जाना लगभग छोड़ ही दिया था. बाहर से देखने पर तो खलिहान जैसा गाओं में होता है वैसा ही दिखता था मगर अंदर चौधरी ने उसे बड़ा खूबसूरत और आलीशान बना रखा था. दो कमरे जो की काफ़ी बड़े और एक कमरे में बहुत बड़ा बेड था. सुख सुविधा के सारे समान वाहा थे. वाहा पर एक मॅनेजर जो की चौकीदार का काम भी करता था रहता था. ये मॅनेजर मुन्ना के लिए बहुत बड़ी प्राब्लम था. क्यों कि लाजवंती और बसंती दरअसल उसी की बहू और बेटी थी. लाजवंती उसके बेटे की पत्नी थी जो की शहर में रहता था. मुन्ना बाबू घर पहुच कर कुच्छ देर तक सोचते रहे कैसे अपने रास्ते के इस पत्थर को हटाया जाए. खोपड़ी तो शैतानी थी ही. तरक़ीब सूझ गई. उठ कर सीधा आम के बगीचे की ओर चल दिए. मे महीने का पहला हफ़्ता चल रहा था. बगीचे में एक जगह खाट डाल कर मॅनेजर बैठा हुआ दो लड़कियों की टोकरियो में अधपके और कच्चे आम गिन गिन कर रख रहा था. मुन्ना बाबू एक दम से उसके सामने जा कर खड़े हो गये. मॅनेजर हड़बड़ा गया और जल्दी से उठ कर खड़ा हुआ.

"क्या हो रहा है……ये अधपके आम क्यों बेच रहे हो…" मॅनेजर की तो घिघी बँध गई समझ में नही आ रहा था क्या बोले.

"ऐसे ही हर रोज दो टोकरी बेच देते हो क्या …." थोड़ा और धमकाया.

"छ्होटे मलिक….नही छ्होटे मलिक…….वो तो ये बेचारी ऐसे ही…..बड़ी ग़रीब बच्चियाँ है आचार बनाने के लिए माँग रही……" दोनो लड़कियाँ तब तक भाग चुकी थी.

"खूब आचार बना रहे हो…….चलो अभी मा से बोलता हू फिर पता चलेगा….".

मॅनेजर झुक कर पैर पकड़ने लगा. मुन्ना ने उसका हाथ झटक दिया और तेज़ी से घर आ गया. घर आ कर चौधरैयन को सारी बात नमक मिर्च लगा कर बता दी. चुधरैयन ने तुरंत मॅनेजर को बुलवा भेजा खूब झाड़ लगाई और बगीचे से उसकी ड्यूटी हटा दी और चौधरी को बोला कि दीनू को ब्गीचे में भेज दे रखवाली के लिए. अब जितने भी बगीचे थे सब जगह थोड़ी बहुत चोरी तो सारे मॅनेजर करते थे. चौधरी की इतनी ज़मीन ज़ायदाद थी कि उसका ठीक ठीक हिसाब किसी को नही पता था. आम के बगीचे में तो कोई झाँकने भी नही जाता जब फल पक जाते तभी चौधरैयन एक बार चक्कर लगाती थी. मॅनेजर की किस्मत फूटी थी मुन्ना बाबू के चक्कर में फस गया. फिर मुन्ना ने चौधरी से बगीचे वाले मकान की चाभी ले ली. दीनू को बोल दिया मत जाना, गया तो टांग तोड़ दूँगा…तू भी चोर है. दीनू डर के मारे गया ही नही और ना ही किसी से इसकी शिकायत की. जब सब सो जाते तो रात में चाभी ले मुन्ना बाबू खिसक जाते. दो रातो तक लाजवंती की जवानी का रस चूसा आख़िर पायल की कीमत वसूलनी थी. तीसरे दिन लाजवंती ने बता दिया की रात में ले कर आउन्गी. मुन्ना बाबू पूरी तैय्यारि से बगीचे वाले मकान पर पहुच गये. करीब आधे घंटे के बाद ही दरवाजे पर खाट खाट हुई.


मुन्ना ने दरवाजा खोला सामने लाजवंती खड़ी थी. मुन्ना ने धीरे से पोच्छा "भौजी बसंती". लाजवंती ने अंदर घुसते हुए आँखो से अपने पिछे इशारा किया. दरवाजे के पास बसंती सिर झुकाए खड़ी थी. मुन्ना के दिल को करार आ गया. बसंती को इशारे से अंदर बुलाया. बसंती धीरे-धीरे सर्माती सकुचाती अंदर आ गई. मुन्ना ने दरवाजा बंद कर दिया और अंदर वाले कमरे की ओर बढ़ चला. लाजवंती, बसंती का हाथ खींचती हुई पिछे-पिछे चल पड़ी. अंदर पहुच कर मुन्ना ने अंगड़ाई ली. उसने लूँगी पहन रखी थी. लाजवंती को हाथो से पकड़ अपनी ओर खींच लिया और उसके होंठो पर चुम्मा ले बोला "के बात है भौजी आज तो कयामत लग रही हो….."

"हाई छ्होटे मलिक आप तो ऐसे ही…..बसंती को ले आई…." बसंती बेड के पास चुप चाप खड़ी थी.

"हा वो तो देख ही रहा हू…."

"हा मलिक लाजवंती अपना किया वादा नही भूलती……लोग भूल जाते है……" मुन्ना ने पास में पड़े कुर्ते में हाथ डाल कर एक डिब्बा निकाला और लाजवंती के हाथो में थमा दिया. फिर उसकी कमर के पास से पकड़ अपने से चिपका उसके चूतरो को कस कर दबाता हुआ बोला "आते ही अपनी औकात पर आ गई……खोल के देख….." लाजवंती ने खोल के देखा तो उसकी आँखो में चमक आ गई.

"हाई मलिक मैं आपके बारे में कहा बोल रही थी…..मुझे क्या पता नही की चौधरी ख़ानदान के लोग… कितने पक्के होते है….हाई मार दिया …हड्डिया तर्तर गई…"

लाजवंती की गांद की दरार में साडी के उपर से उंगली चलाते हुए उसके गाल पर दाँत गाढ उसकी एक चुचि पकड़ी और कस कर चिपकाया. लाजवंती "आ मालिक आआआअ उईईईई" करने लगी. बसंती एक ओर खड़ी होकर उन दोनो को देख रही थी. मुन्ना ने लाजवंती को बिस्तर पर पटक दिया. बिस्तर इतना बड़ा था की चार आदमी एक साथ सो सके. दोनो एक दूसरे से गुत्थम गुथा हो कर बिस्तर पर लुढ़कने लगे. होंठो को चूस्ते हुए कभी गाल काट ता कभी गर्दन पर चुम्मि लेता. चुचि को पूरी ताक़त से मसल देता था. चूतर दबोच कर गांद में साड़ी के उपर से ऐसे उंगली कर रहा था जैसे पूरी साड़ी घुसा देगा. लाजवंती के मुँह से "आ हा आह….उईईईईईईईईई मालिक निकल रहा था.." तभी फुसफुसाते हुए बोली "मेरे पर ही सारा ज़ोर निकलोगे क्या…..बसंती तो….." मुन्ना भी फुसफुसाते हुए बोला "अरी खड़ी रहने दे तुझे एक बार चोद देता हू….फिर खुद गरम हो जाएगी…." मुन्ना की चालाकी समझ वो भी चुप हो गई. फिर मुन्ना ने जल्दी से लाजवंती को पूरा नंगा कर दिया. अपनी ननद के सामने पूरा नंगा होने पर शर्मा कर बोली "हाई मालिक कुच्छ तो छोड़ दो….." मुन्ना अपनी लूँगी खोलते हुए बोला "आज तो पूरा नंगा करके….साडी उठाने से काम नही चलेगा भौजी"
Reply
06-24-2017, 12:00 PM,
#37
RE: Chudai Kahani गाँव का राजा
मुन्ना का दस इंच लंबा लंड देख कर बसंती एकदम सिहर गई. मगर लाजवंती ने लपक कर अपने हाथो में थाम लिया और मसल्ने लगी. मुन्ना मसनद के सहारे बैठ ता हुआ बोला "रानी ज़रा चूसो…". लाजवंती बैठ कर सुपरे की चमड़ी हटा जीभ फिराती हुई बोली "मालिक बसंती ऐसे ही खड़ी रहेगी क्या…."


"आरे मैने कब कहा खड़ी रहने को…बैठ जाए…."

"ऐसी क्या बेरूख़ी मलिक……बेचारी को अपने पास बुला लो ना…." पूरे लंड को अपने मुँह में ले चूस्ते हुए बोली.

" बहुत अच्छा भौजी……अच्छे से चूसो…..मैं कहा बेरूख़ी दिखा रहा हू वो तो खुद ही दूर खड़ी है….."

"है मलिक जब से आई है आपने कुच्छ बोला नही है……बसंती आ जा…..अपने छ्होटे मालिक बहुत अच्छे है…..शहर से पढ़ लिख कर आए है…गाओं के गँवारो से तो लाख दर्जा अच्छे है……" बसंती थोडा सा हिचकी तो लंड छोड़ कर लाजवंती उठी और हाथ पकड़ बेड पर खींच लिया. मुन्ना ने एक और मसनद लगा उसको थप थपाते हुए इशारा किया. बसंती शरमाते हुए मुन्ना की बगल में बैठ गई. लाजवंती ने मुन्ना का लंड पकड़ हिलाते हुए दिखाया "देख कितना अच्छा है अपने छ्होटे मलिक का….एकदम घोड़े के जैसा है….ऐसा पूरे गाओं में किसी का नही…". और फिर से चूसने लगी. झुके पॅल्को के नीचे से बसंती ने मुन्ना का हलब्बी लंड देखा दिल में एक अजीब सी कसक उठी. हाथ उसे पकड़ने को ललचाए मगर शर्मो हया का दामन नही छोड़ पाई. मुन्ना ने बसंती की कमर में हाथ डाल अपनी तरफ खींचा "शरमाती क्यों है आराम से बैठ…….आज तो बड़ी सुंदर लग रही है…..खेत में तो तुझे अपना लंड दिखाया था ना….तो फिर क्यों शर्मा रही है." बसंती ने शर्मा कर गर्दन झुका ली. उस दिन के मुन्ना और आज के मुन्ना में उसे ज़मीन आसमान का अंतर नज़र आया. उस दिन मुन्ना उसके सामने गिडगीडा रहा था उसको लहंगे का तोहफा दे कर ललचाने की कोशिश कर रहा था और आज का मुन्ना अपने पूरे रुआब में था वो इसलिए क्योंकि आज वो खुद उसके दरवाजे तक चल कर आई थी.

"हाई मलिक…मैने आज तक कभी….."

"आरे तेरी तो शादी हो गई है दो महीने बाद गौना हो कर जाएगी तो फिर तेरा पति तो दिखाएगा ही…"


"धात मलिक……."

"तेरा लहनगा भी लाया हू…लेती जाना…..सुहागरात के दिन पहन ना…" कह कर अपने पास खींच उसकी एक चुचि को हल्के से पकड़ा. बसंती शर्मा कर और सिमट गई. मुन्ना ने ठोडी से पकड़ उसका चेहरा उपर उठा ते हुए कहा "एक चुम्मा दे….बड़ी नशीली लग रही है" और उसके होंठो से अपने होंठ सटा कर चूसने लगा. बसंती की आँखे मूंद गई. मुन्ना ने उसके होंठो को चूस्ते हुए उसकी चुचि को पकड़ लिया और खूब ज़ोर ज़ोर से दबाते हुए उसकी चोली में हाथ घुसा दिया. बसंती एक दम से छटपटा गई.

"उईईईईई मलिक सीई…" मुन्ना ने धीरे से उसकी चोली के बटन खोलने की कोशिश की तो बसंती ने शर्मा कर मुन्ना का हाथ हल्के से हटा दिया. लाजवंती लंड को पूरा मुँह में ले चूस रही थी. उसकी लटकती हुई चुचि को पकड़ दबाते हुए मुन्ना बोला "देखो भौजी कैसे शर्मा रही है….पहले तो चुप चाप वाहा खड़ी रही अब कुच्छ करने नही दे रही……" लाजवंती लंड पर से मुँह हटा बसंती की ओर खिसकी और उसके गालो को चुटकी में मसल बोली "हाई मलिक पहली बार है बेचारी का शर्मा रही है…लाओ मैं खोल देती हू…"

"मेरे हाथो में क्या बुराई है…"

"मलिक बुराई आपके हाथो में नही लंड में है….देख कर डर गई है" फिर धीरे से बसंती की चोली खोल अंगिया निकाल दी. बसंती और उसकी भौजी दोनो गेहूए (वीटिश) रंग की थी. मतलब बहुत गोरी तो नही थी मगर काली भी नही थी. बसंती की दोनो चुचियाँ छोटी मुट्ठी में आ जाने लायक थी. निपल गुलाबी और छ्होटे-छ्होटे. एक दम अनटच चुचि थी. कठोर और नुकीली. मुन्ना ने एक चुचि को हल्के से थाम लिया.

"हाई क्या चुचि है…मुँह में डाल कर पीने लायक…" और दूसरी चुचि पर अपना मुँह लगा जीभ निकाल कर निपल को छेड़ते हुए चारो तरफ घुमाने लगा. बसंती सिहर उठी. पहली बार जो था. सिसकते हुए मुँह से निकला " भाभी….." लाजवंती ने उसका हाथ पकड़ कर मुन्ना के लंड पर रख दिया और उसके होंठो को चूम बोली "पकड़ के तू भी मसल छ्होटे मलिक तो अपने खिलोने से खेल रहे है….ये हम लोगो का खिलोना है" मुन्ना दोनो चुचियों को बारी बारी से चूसने लगा. बड़ा मज़ा आ रहा था उसको. कुच्छ देर बाद उसने बसंती को अपनी गोद में खींच लिया और अपने लंड पर उसको बैठा लिया "आओ रानी तुझे झूला झूला दू…..शर्मा मत…शरमाएगी तो सारा मज़ा तेरी भाभी लूट लेगी" मुन्ना का खड़ा लंड उसकी गांद में चुभने लगा. ठीक गांद की दरार के बीच में लंड लगा कर दोनो चुचि मसल्ते हुए गाल और गर्दन को चूमने लगा. तभी लाजवंती ने मुन्ना का हाथ पकड़ अपनी ढीली चुचि पर रखते हुए कहा "हाई मलिक कोरा माल मिलते ही मुझे भूल गये"


"तुझे कैसे भूल जाउन्गा छिनाल…चल आ अपनी चुचि पीला मैं तब तक इसकी दबाता हू"

"हाई मलिक पीजिए……अपनी इस छिनाल भौजी की चुचि को….ओह हो सस्ससे…" मुन्ना तो जन्नत में था दोनो हाथ में दो अछूती चुचि लंड के उपर अनचुड़ी लौंडिया अपना गांद ले कर बैठी हुई थी और मुँह में खुद से चुचि थेल थेल कर पिलाती रंडी. दो चुचियों को मसल मसल कर और दो को चूस चूस कर लाल कर दिया. चुचि चुस्वा कर लाजवंती एकद्ूम गरम हो गई अपने हाथ से अपनी चूत को रगड़ने लगी. मुन्ना ने देखा तो मुस्कुरा दिया और बसंती को दिखाते हुए बोला "देख तेरी भौजी कैसे गरमा गई है… हाथी का भी लंड लील जाएगी." देख कर बसंती शर्मा कर "धात मलिक.....आपका तो खुद घोड़े जैसा…" इतनी देर में वो भी थोड़ा बहुत खुल चुकी थी.

"अच्छा है ना ?"

"धात मलिक….. आपका बहुत मोटा.."

"मोटे और लंब लंड से ही मज़ा आता है…..क्यों भौजी"

"हा छ्होटे मलिक आपका तो बड़ा मस्त लंड है…मेरे जैसी चुदी हुई में भी…..बसंती को भी चुस्वओ मालिक" एक हाथ से बसंती की चुचि को मसल्ते हुए दूसरे से बसंती का लहनगा उठा उसकी नंगी जाँघो पर हाथ फेरते हुए मुन्ना ने पुचछा "चुसेगी….अच्छा लगेगा…..तेरी भौजी तो इसकी दीवानी है..".

"धात मलिक…..भौजी को इसकी आदत है…"

"शरमाना छोड़…..देख मैं तेरी चुचि दबाता हू तो मज़ा आता है ना.."

"हाँ मलिक……अच्छा लगता है"

"और तेरी चुचि दबाने में मुझे भी मज़ा आता है…वैसे ही लंड चुसेगी तो…."

"हाई मलिक भौजी से चुस्वओ…"

"भौजी तो चुस्ती है….तू भी इसका स्वाद ले….शरमाएगी तो फिर….भौजी छोड़ो इसको तुम ही आ जाओ ये बहुत शर्मा रही है…"कह कर मुन्ना ने अपने हाथ बसंती के बदन पर से हटा लिए और उसको अपनी गोद से हल्के से नीचे उतार दिया. बसंती जो अब तक मज़े के लहर में डूबी हुई थी जब उसका मज़ा थोड़ा हल्का हुआ तो होश आया. तब तक लाजवंती फिर से अपने छ्होटे मालिक का लंड अपने मुँह में ले चुचि मीसवाति हुई मज़ा लूट रही थी. बसंती अपनी ललचाई आँखो से उसको देखने लगी. उसका मन कर रहा था की फिर से जा कर मुन्ना की गोद में बैठ जाए और कहे " मालिक चुचि दबाओ…..आप जो कहोगे मैं करूँगी…". पर चुप चाप वही बैठी रही. लाजवंती ने लंड को मुँह से निकाल हिलाते हुए उसको दिखाया और बोली "तेरी तो किस्मत ही फूटी है…वही बैठी रह और देख-देख कर ललचा…".

"धात भाभी मेरे से नही…."
Reply
06-24-2017, 12:00 PM,
#38
RE: Chudai Kahani गाँव का राजा
"मैं क्या कोई मा के पेट से सीख के आई थी…चल आ जा मैं सीखा देती हू…" बसंती का मन तो ललचा ही रहा था. धीरे से सरक कर पास गई. लाजवंती ने मोटा बलिश्त भर का लंड उसके हाथ में थमा दिया और उसके सिर को पकड़ नीचे झुकाती हुई बोली "ले आराम से जीभ निकाल कर सुपरा चाट…फिर सुपरे को मुँह भर कर चूसना….पूरा लंड तेरे मुँह में नही जाएगा अभी….". बसंती लंड का सुपरा मुँह में ले चूसने लगी. पहले धीरे-धीरे फिर ज़ोर ज़ोर से. भौजी को देख आख़िर इतना तो सीख ही लिया था. मुन्ना के पूरे बदन में आनंद की तरंगे उठ रही थी. शहर से आने के बहुत दीनो बाद ऐसा मज़ा उसे मिल रहा था. लाजवंती उसको अंडकोषो को पकड़ अपने मुँह में भर कर चुँला ते हुए चूस रही थी. कुच्छ देर तक लंड चुसवाने के बाद मुन्ना ने दोनो को हटा दिया और बोला


"भौजी ज़रा अपनी ननद के लल्मुनिया के दर्शन तो कर्वाओ…"

"हाई मलिक नज़राना लगेगा….एक दम कोरा माल है आज तक किसी ने नही…"

"तुझे तो दिया ही है…अपनी बसंती रानी को भी खुश कर दूँगा…मैं भी तो देखु कोरा माल कैसा…."

" मलिक देखोगे तो बिना चोदे निकाल दोगे…इधर आ बसंती अपनी ननद रानी को तो मैं गोद मैं बैठा कर…" कहते हुए बसंती को खीच कर अपनी गोद मैं बैठा लिया और उसके लहंगे को धीरे-धीरे कर उठाने लगी. शरम और मज़े के कारण बसंती की आँखे आधी बंद थी. मुन्ना उसकी दोनो टांगो के बीच बैठा हुआ उसके लहंगे को उठ ता हुआ देख रहा था. बसंती की गोरी-गोरी जंघे बड़ी कोमल और चिकनी थी. बसंती ने लहंगे के नीचे एक पॅंटी पहन रखी थी जैसा गाओं की कुँवारी लरकियाँ आम तौर पर पहनती है. लहनगा पूरा उपर उठा पॅंटी के उपर हाथ फेरती लाजवंती बोली "कछि फाड़ कर दिखाउ.."

" जैसे मर्ज़ी वैसे दिखा…..तू कछि फाड़ मैं फिर इसकी चूत फाड़ुँगा"

लाजवंती ने कछि के बीच में हाथ रखा और म्यानी की सिलाई जो थोड़ी उधरी हुई थी में अपने दोनो हाथो की उंगलियों को फसा छर्ररर से कछि फाड़ दी. बसंती की 16 साल की कच्ची चूत मुन्ना की भूखी आँखो के सामने आ गई. हल्के हल्के झांतो वाली एक दम कचोरी के जैसी फूली चूत देख कर मुन्ना के लंड को एक जोरदार झटका लगा. लाजवंती ने बसंती की दोनो टाँगे फैला दी और बसंती की चूत के उपर हाथ फेरती हुई पॅंटी को फाड़ पूरा दो भाग में बाँट दिया और उसकी चूत के गुलाबी होंठो पर उंगली चलाते हुए बोली " छ्होटे मालिक देखो हमारी ननद रानी की लल्मुनिया…" नंगी चूत पर उंगली चलाने से बसंती के पूरे बदन में सनसनी दौड़ गई. सिसकार कर उसने अपनी आँखे पूरी खोल दी. मुन्ना को अपनी चूत की तरफ भूखे भेड़िए की तरह से घूरते देख उसका पूरा बदन सिहर गया और शरम के मारे अपनी जाँघो को सिकोड़ने की कोशिश की मगर लाजवंती के हाथो ने ऐसा करने नही दिया. वो तो उल्टा बसंती की चूत के गुलाबी होंठो को अपनी उंगलियों से खोल कर मुन्ना को दिखा रही थी "हाई मलिक देख लो कितना खरा माल है…ऐसा माल पूरे गाओं में नही…वो तो बड़े चौधरी के बाबूजी पर इतने अहसान है कि मैं आपको मना नही कर पाई….नही तो ऐसा माल कहा मिलता है…"

"हा रानी सच कह रही है तू….मार डाला तेरी ननद ने तो…क्या ललगुडिया चूत है.."

"खाओगे मालिक…चख कर देखो"

"ला रानी खिला....कोरी चूत का स्वाद कैसा होता है…" लाजवंती ने दोनो जाँघो को फैला दिया. मुन्ना आगे सरक कर अपने चेहरे को उसकी चूत के पास ले गया और जीभ निकाल कर चूत पर लगा दिया. चूत तो उसने मामी की भी चूसी थी मगर वो चूड़ी चूत थी कच्ची कोरी चूत उपर जीभ फिराते ही उसे अहसास हो गया की अनचुड़ी चूत का स्वाद अनोखा होता है. लाजवंती ने चूत के होंठो को अपनी उंगली फसा कर खोल दिया. चूत के गुलाबी होंठो पर जीभ चलते ही बसंती का पूरा बदन अकड़ कर काँपने लगा.

"उूउउ…….भौजी….सीई मालिक….."

चूत के गुलाबी होंठो के बीच जीभ घुसाते ही मुन्ना को अनचुड़ी चूत के खारे पानी का स्वाद जब मिला तो उसका लंड अकड़ के उप डाउन होने लगा. मुन्ना ने चूत के दोनो छ्होटे छ्होटे होंठो को अपने मुँह में भर खूब ज़ोर ज़ोर से चूसा और फिर जीभ पेल कर घुमाने लगा. बसंती की अनचुड़ी चूत ने पानी छोड़ना शुरू कर दिया. जीभ को चूत के च्छेद में घुमते हुए उसके भज्नसे को अपने होंठो के बीच कस कर चुँलने लगा. लाजवंती उसकी चुचियों को मसल रही थी. बसंती के पूरे तन-बदन में आग लग गई. मुँह से सिसकारियाँ निकालने लगी. लाजवंती ने पुचछा

"बिटो मज़ा आ रहा है…


" मालिक…ऊऊ उउउस्स्स्स्सिईईईई भौजी बहुत…उफफफ्फ़…भौजी बचा लो मुझे कुच्छ हो जाएगा…उफफफफ्फ़ बहुत गुद-गुड़ी…सीई मालिक को बोलो जीभ हटा ले…हीईीई." लाजवंती समझ गई कि मज़े के कारण सब उल्टा पुल्टा बोल रही है. उसकी चुचियों से खेलती हुई बोली " मालिक…चाटो…अच्छे से…अनचुड़ी चूत है फिर नही मिलेगी…पूरी जीभ पेल कर घूमाओ..गरम हो जाएगी तब खुद…"

मुन्ना भी चाहता था कि बसंती को पूरा गरम कर दे फिर उसको भी आसानी होगी अपना लंड उसकी चूत में डालने में यही सोच उसने अपनी एक उंगली को मुँह में डाल थूक से भीगा कर कच से बसंती की चूत में पेल दिया और टीट के उपर अपनी जीभ लफ़र लफ़र करते हुए चलाने लगा. उंगली जाते ही बसंती सिसक उठी. पहली बार कोई चीज़ उसके चूत के अंदर गई थी. हल्का सा दर्द हुआ मगर फिर कच-कच चलती हुई उंगली ने चूत की दीवारों को ऐसा रगड़ा कि उसके अंदर आनंद की एक तेज लहर दौर गई. ऐसा लगा जैसे चूत से कुच्छ निकलेगा मगर तभी मुन्ना ने अपनी उंगली खीच ली और भज्नाशे पर एक ज़ोर दार चुम्मा दे उठ कर बैठ गया. मज़े का सिलसिला जैसे ही टूटा बसंती की आँखे खुल गई. मुन्ना की ओर असहाय भरी नज़रो देखा.

"मज़ा आया बसंती रानी……"

"हाँ मलिक…सीई" करके दोनो जाँघो को भीचती हुई बसंती सरमाई.

"अर्रे शरमाती क्यों है…मज़ा आ रहा है तो खुल के बता…और चाटू.."

"हाई मालिक….मैं नही जानती" कह कर अपने मुँह को दोनो हाथो से ढक कर लाजवंती की गोद में एक अंगड़ाई ली.

"तेरी चूत तो पानी फेंक रही है"

बसंती ने जाँघो को और कस कर भींचा और लाजवंती की छाती में मुँह छुपा लिया.

मुन्ना समझ गया की अब लंड खाने लायक तैय्यार हो गई है. दोनो जाँघो को फिर से खोल कर चूत के फांको को चुटकी में पकड़ कर मसलते हुए चूत के भज्नाशे को अंगूठे से कुरेदा और आगे झुक कर बसंती का एक चुम्मा लिया. लाजवंती दोनो चुचियों को दोनो हाथो में थाम कर दबा रही थी. मुन्ना ने फिर से अपनी दो उंगलियाँ उसकी चूत में पेल दी और तेज़ी से चलाने लगा. बसंती सिसकने लगी. "हाई मलिक निकल जाएगा…सीई म्‍म्म मालिक "

"क्या निकल जाएगा….पेशाब करेगी क्या….."

"हा मलिक….सीई पेशाब निकल….." मुन्ना ने सटाक से उंगली खींच ली..."ठीक है जा पेशाब कर के आ जा…मैं तब तक भौजी को चोद देता हू…"

लाजवंती ने बसंती को झट गोद से उतार दिया और बोली "हा मलिक……बहुत पानी छोड़ रही है…" उंगली के बाहर निकलते ही बसंती आसमान से धरती पर आ गई. पेशाब तो लगा नही था
Reply
06-24-2017, 12:00 PM,
#39
RE: Chudai Kahani गाँव का राजा
गाँव का राजा पार्ट -10 लेकर हाजिर हूँ दोस्तो कहानी कैसी है ये तो आप ही बताएँगे
चूत अपना पानी निकालना चाह रही थी ये बात उसकी समझ में तुरंत आ गई. मगर तब तक तो पाशा पलट चुक्का था. उसने देखा कि लाजवंती अपनी दोनो टांग फैला लेट गई थी और मुन्ना, लाजवंती की दोनो जाँघो के बीच लंड को चूत के छेद पर टिका दोनो चुचि दोनो हाथ में थाम पेलने ही वाला था. बसंती एक दम जल भुन कर कोयला हो गई. उसका जी कर रहा था कि लाजवंती को धकेल कर हटा दे और खुद मुन्ना के सामने लेट जाए और कहे की मालिक मेरी में डाल दो. तभी लाजवंती ने बसंती को अपने पास बुलाया " बसंती आ इधर आ कर देख कैसे छ्होटे मालिक मेरी में डालते है….तेरी भी ट्रैनिंग…."

बसंती मन मसोस कर सरक कर मन ही मन गाली देते हुए लाजवंती के पास गई तो उसने हाथ उठा उसकी चुचि को पकड़ लिया और बोली "देख कैसे मालिक अपना लंड मेरी चूत में डालते है ऐसे ही तेरी चूत में भी…"

मुन्ना ने अपना फनफनता हुआ लंड उसकी चूत से सटा ज़ोर का धक्का मारा एक ही झटके में कच से पूरा लंड उतार दिया. लाजवंती कराह उठी "हायययययययययययी मालिक एक ही बार में पूरा……सीईए"

"साली इतना नाटक क्यों चोदती है अभी भी तेरे को दर्द होता है….."

"हायययययी मालिक आपका बहुत बड़ा है…." फिर बसंती की ओर देखते हुए बोली "…तू चिंता मत कर तेरी में धीरे-धीरे खुद हाथ से पकड़ के दल्वाउन्गि… तू ज़रा मेरी चुचि चूस". मुन्ना अब ढ़ाचा-ढ़च धक्के मार रहा था. कमरे में लाजवंती की सिसकारियाँ और धच-धच फॅक-फॅक की आवाज़ गूँज रही थी.

"हिआआआय्य्य्य्य्य्य्य्य मालिक ज़ोर…. और ज़ोर से चोदो मलिक……ही सीईई"

"हा मेरी छिनाल भौजी तेरी तो आज फाड़ दूँगा….बहुत खुजली है ना तेरी चूत में…ले रंडी…खा मेरा लंड…सीई कितना पानी छोड़ती है……कंजरी"

"हायीईईईई मालिक आज तो आप कुच्छ ज़यादा ही जोश में….हा फाड़ दो मलिक "

"आह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह भौजी मज़ा आ गया….तूने ऐसी कचोरी जैसी चूत का दर्शन करवाया है कि बस…लंड लोहा हो गया है…ऐसा ही मज़ा आ रहा है ना भौजी…आज तो तेरी गांद भी मारूँगा….सीईए शियैयीयी"


बसंती देख रही थी की उसकी भाभी अपना गांद हवा में लहरा लहरा कर मुन्ना का लंड अपनी ढीली चूत में खा रही थी और मुन्ना भी गांद उठा-उठा कर उसकी चूत में दे रहा था. मन ही मन सोच रही थी की साला जोश में मेरी चूत को देख कर आया है मगर चोद भाभी को रहा है. पता नही चोदेगा कि नही.

करीब पंद्रह मिनिट की ढकां पेल चोदा चोदि के बाद लाजवंती ने पानी छोड़ दिया और बदन आकड़ा कर मुन्ना की छाती से लिपट गई. मुन्ना भी रुक गया वो अपना पानी आज बसंती की अनचुदी बुर में ही छोड़ना चाहता था. अपनी सांसो को स्थिर करने के बाद. मुन्ना ने उसकी चूत से लंड खींचा. पाक की आवाज़ के साथ लंड बाहर निकल गया. चूत के पानी में लिपटा हुआ लंड अभी भी तमतमाया हुआ था लाल सुपरे पर से चमड़ी खिसक कर नीचे आ गई थी. पास में पड़ी साड़ी से पोच्छने के बाद वही मसनद पर सिर रख कर लेट गया. उसकी साँसे अभी भी तेज चल रही थी. लाजवंती को तो होश ही नही था. आँखे मुन्दे टांग फैलाए बेहोश सी पड़ी थी. बसंती ने जब देखा की मुन्ना अपना खड़ा लंड ले कर ऐसे ही लेट गया तो उस से रहा नही गया. सरक कर उसके पास गई और उसकी जाँघो पर हल्के से हाथ रखा है. मुन्ना ने आँखे खोल कर उसकी तरफ देखा तो बसंती ने मुस्कुराते हुए कहा

"हाययययययययी मालिक मुझे बड़ा डर लग रहा हा आपका बहुत लंबा…"

मुन्ना समझ गया की साली को चुदास लगी हुई है. तभी खुद से उसके पास आ कर बाते बना रही है कि मोटा और लंबा है. मुन्ना ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया

"अर्रे लंबे और मोटे लंड से ही तो मज़ा आता है एक बार खा लेगी फिर जिंदगी भर याद रखेगी चल ज़रा सा चूस तो….खाली सुपरा मुँह भर कर…जैसे टॉफी खाते है ना वैसे……" कहते हुए बसंती का हाथ पकड़ के खींच कर अपने लंड पर रख दिया. बसंती ने शरमाते सकुचते अपने सिर को झुका दिया मुन्ना ने कहा "अरे शरमाना छोड़ रानी..." और उसके सिर को हाथो से पकड़ झुका कर लंड का सुपरा उसके होंठो पर रख दिया. बसंती ने भी अपने होंठ धीरे खोल कर लंड के लाल सुपरे को अपने मुँह में भर लिया. लाजवंती वही पास पड़ी ये सब देख रही थी. थोड़ी देर में जब उसको होश आया तो उठ कर बैठ गई और अपनी ननद के पास आ कर उसकी चूत अपने हाथ से टटोलती हुई बोली "बहुत हुआ रानी कितना चुसेगी…अब ज़रा मूसल से कुटाई करवा ले" और बसंती के मुँह को मुन्ना के लंड पर से हटा दिया और मुन्ना का लंड पकड़ के हिलाती हुई बोली "हाई मलिक….जल्दी करिए…बुर एकदम पनिया गई है".

"हा भौजी….क्यों बसंती डाल दू ना…"


"हि मालिक मैं नही जानती.."

"…चोदे ना..."

"हाय्य्य्य्य्य…मुझे नही…जो आपकी मर्ज़ी हो…"

"अर्रे क्या मालिक आप भी….चल आ बसंती यहा मेरी गोद में सिर रख कर लेट" इतना कहते हुए लाजवंती ने बसंती को खींच कर उसका सिर अपनी गोद में ले लिया और उसको लिटा दिया. बसंती ने अपनी आँखे बंद कर अपने दोनो पैर पसारे लेट गई थी. मुन्ना उसके पैरों को फैलाते हुए उनके बीच बैठ गया. फिर उसने बसंती के दोनो पैर के टख़नो को पकड़ कर उठाते हुए उसके पैरो को घुटने के पास से मोड़ दिया. बसंती मोम की गुड़िया बनी हुई ये सब करवा रही थी. तभी लाजवंती बोली "मालिक इसकी गांद के नीचे तकिया लगा दो…आराम से घुस जाएगा". मुन्ना ने लाजवंती की सलाह मान कर मसनद उठाया और हाथो से ठप थापा कर उसको पतला कर के बसंती के चूतरो के नीचे लगा दिया. बसंती ने भी आराम से गांद उठा कर तकिया लगवाया. दोनो जाँघो के बीच उसकी अनचुदी हल्की झांतो वाली बूर चमचमा रही थी. चूत के दोनो गुलाबी फाँक आपस में सटे हुए थे. मुन्ना ने अपना फंफनता हुआ लंड एक हाथ से पकड़ कर बुर् के फुलते पिचकते छेद पर लगा दिया और रगड़ने लगा. बसंती गणगना गई. गुदगुदी के कारण अपनी जाँघो को सिकोड़ने लगी. लाजवंती उसकी दोनो चुचियों को मसल्ते हुए उनके निपल को चुटकी में पकड़ मसल रही थी.
Reply
06-24-2017, 12:00 PM,
#40
RE: Chudai Kahani गाँव का राजा
"मालिक नारियल तेल लगा लो.." लाजवंती बोली

"चूत तो पानी फेंक रही है…इसी से काम चला लूँगा.."

"अर्रे नही मालिक आप नही जानते…आपका सुपरा बहुत मोटा है…नही घुसेगा…लगा लो"

मुन्ना उठ कर गया और टेबल से नारियल तेल का डिब्बा उठा लाया. फिर बसंती की जाँघो के बीच बैठ कर तेल हाथ में ले उसकी चूत उपर मल दिया. फांको को थोड़ा फैला कर उसके अंदर तेल टपका दिया.

"अपने सुपरे और लंड पर भी लगा लो मलिक" लाजवंती ने कहा. मुन्ना ने थोडा तेल अपने लंड पर भी लगा दिया.

"बहुत नाटक हो गया भौजी अब डाल देता हू.."

"हा मालिक डालो" कहते हुए लाजवंती ने बसंती की अनचुड़ी बुर के छेद की दोनो फांको को दोनो हाथो की उंगलियों से चौड़ा दिया. मुन्ना ने चौड़े हुए छेद पर सुपरे को रख कर हल्का सा धक्का दिया. कच से सुपरा कच्ची बुर को चीरता अंदर घुसा. बसंती तड़प कर मछली की तरह उछली पर तब तक लाजवंती ने अपना हाथ चूत पर से हटा उसके कंधो को मजबूती से पकड़ लिया था. मुन्ना ने भी उसकी जाँघो को मजबूती से पकड़ कर फैलाए रखा और अपनी कमर को एक और झटका दिया. लंड सुपरा सहित चार इंच अंदर धस गया. बसंती को लगा बुर में कोई गरम डंडा डाल रहा है मुँह से चीख निकल गई "आआआ मार..माररर्र्ररर गेयीयियीयियी". आह्ह्ह्ह्ह्ह भाभी बचाऊऊऊलाजवंती उसके उपर झुक कर उसके होंठो और गालो को चूमते हुए चूची दबाते हुए बोली "कुच्छ नही हुआ बित्तो कुच्छ नही…बस दो सेकेंड की बात है". मुन्ना रुक गया उसको नज़र उठा इशारा किया काम चालू रखो. मुन्ना समझ गया और लंड खींच कर धक्का मारा और आधे से अधिक लंड को धंसा दिया. बसंती का पूरा बदन अकड़ गया था. खुद मुन्ना को लग रहा था जैसे किसी जलती हुए लकड़ी के गोले के अंदर लंड घुसा रहा है लंड की चमड़ी पूरी उलट गई. आज के पहले उसने किसी अनचुड़ी चूत में लंड नही डाला था. जिसे भी चोदा था वो चुदा हुआ भोसड़ा ही था. बसंती के होंठो को लाजवंती ने अपने होंठो के नीचे कस कर दबा रखा था इसलिए वो घुटि घुटे आवाज़ में चीख रही थी और छटपटा रही थी. मुन्ना उसकी इन चीखो को सुन रुका मगर लाजवंती ने तुरंत मुँह हटा कर कहा "मालिक झटके से पूरा डाल दो एक बार में….ऐसे धीरे धीरे हलाल करोगे तो और दर्द होगा साली को…डालो" मुन्ना ने फिर कमर उठा कर गांद तक का ज़ोर लगा कर धक्का मारा. कच से नारियल तेल में डूबा लंड बसंती की अनचुड़ी चूत की दीवारों को कुचालता हुआ अंदर घुसता चला गया. बसंती ने पूरा ज़ोर लगा कर लाजवंती को धकेला और चिल्लाई "ओह…..मार दियाआआअ….आह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्हहरामी ने मार दिया….कुट्टी साली भौजी हरम्जदि……बचा लूऊऊऊ…आआ फाड़ दीयाआआआआअ…खून भीईीईईईईईईई…" अरीईईईई कोइईईईईई तूऊऊऊओ बचाऊऊऊऊलाजवंती ने जल्दी से उसका मुँह बंद करने की कोशिश की मगर उसने हाथ झटक दिया. मुन्ना अभी भी चूत में लंड डाले उसके उपर झुका था.


"लंड बाहर निकालो,आआह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह मुझे नही चुदाआआआआआनाआआआआअ ... भौजिइइईईईईईईई को चोदूऊऊओ... मलिक उतर जाओ... तुम्हरीईईईईए पाओ पड़ती हू... मररर्र्र्र्र्ररर जाउन्गीईईईई.." तब लाजवंती बोली "मालिक रूको मत…जल्दी जल्दी धक्का मारो मैं इसकी चुचि दबाती हू ठीक हो जाएगा.." बस मुन्ना ने बसंती की कलाईयों को पकड़ नीचे दबा दिया और कमर उठा-उठा कर आधा लंड खींच-खींच कर धक्के लगाना शुरू कर दिया. कुच्छ देर में सब ठीक हो गया. बसंती गांद उचकाने लगी. चेहरे पर मुस्कान फैल गई. लॉरा आराम से चूत के पानी में फिसलता हुआ सटा-सॅट अंदर बाहर होने लगा…..

उस रात भर खूब रासलीला हुई. बसंती कीदो बार चुदाइ हुई. चूत सूज गई मगर दूसरी बार में उसको खूब मज़ा आया. बुर से निकले खून को देख पहले थोड़ा सहम गई पर बाद में फिर खुल कर चुदवाया. सुबह चार बजे जब अगली रात फिर आने का वादा कर दोनो विदा हुई तो बसंती थोड़ा लंगड़ा कर चल रही थी मगर उसके आँखो में अगली रात के इंतेज़ार का नशा झलक रहा था. मुन्ना भी अपने आप को फिर से तरो ताज़ा कर लेना चाहता था इसलिए घोड़े बेच कर सो गया.

आम के बगीचे में मुन्ना की कारस्तानिया एक हफ्ते तक चलती रही. मुन्ना के लिए जैसे मौज मज़े की बाहर आ गई थी. तरह तरह के कुतेव और करतूतो के साथ उसने लाजवंती और बसंती का खूब जम के भोग लगाया. पर एक ना एक दिन तो कुच्छ गड़बड़ होनी ही थी और वो हो गई. एक रात जब बसंती और लाजवंती अपनी चूतो की कुटाई करवा कर अपने घर में घुस रही थी कि आया की नज़र पर गई. वो उन्दोनो के घर के पास ही रहती थी. उसके शैतानी दिमाग़ को झटका लगा की कहा से आ रही है ये दोनो. लाजवंती के बारे में तो पहले से पता था की गाओं भर की रंडी है. ज़रूर कही से चुदवा कर आ रही होगी. मगर जब उसके साथ बसंती को देखा तो सोचने लगी की ये छ्छोकरी उसके साथ कहाँ गई थी.


दूसरे दिन जब नदी पर नहाने गई तो संयोग से लाजवंती भी आ गई. लाजवंती ने अपनी साड़ी ब्लाउस उतारा और पेटिकोट खींच कर छाती पर बाँध लिया. पेटिकोट उँचा होते ही आया की नज़र लाजवंती के पैरो पर पड़ी. देखा पैरो में नये चमचमाते हुए पायल. और लाजवंती भी ठुमक ठुमक चलती हुई नदी में उतर कर नहाने लगी.

"अर्रे बहुरिया मरद का क्या हाल चाल है…"

"ठीक ठाक है चाची….परसो चिट्ठी आई थी"

"बहुत प्यार करता है…और लगता है खूब पैसे भी कमा रहा है"

"का मतलब चाची ….."

"वाह बड़ी अंजान बन रही हो बहुरिया….अर्रे इतना सुंदर पायल कहा से मिला ये तो…"

"कहा से का क्या मतलब चाची….जब आए थे तब दे गये थे"

"अर्रे तो जो चीज़ दो महीने पहले दे गया उसको अब पहन रही है"

लाजवंती थोड़ा घबरा गई फिर अपने को सम्भालते हुए बोली "ऐसे ही रखा हुआ था….कल पहन ने का मन किया तो…"

आया के चेहरे पर कुटिल मुस्कान फैल गई

"किसको उल्लू बना….सब पता है तू क्या-क्या गुल खिला रही है….हमको भी सिखा दे लोगो से माल एंठाने के गुण"

इतना सुनते ही लाजवंती के तन बदन में आग लग गई.

"चुप साली तू क्या बोलेगी …हराम्जादी कुतिया खाली इधर का बात उधर करती रहती है…."

आया का माथा भी इतना सुनते घूम गया और अपने बाए हाथ से लाजवंती के कंधे को पकड़ धकेलते हुए बोली "हरम्खोर रंडी…चूत को टकसाल बना रखा है…..मरवा के पायल मिला होगा तभी इतना आग लग रहा है".

"हा हा मरवा के पायल लिया है..और भी बहुत कुच्छ लिया है…तेरी गांद में क्यों दर्द हो रहा है चुगलखोर…" जो चुगली करे उसे चुगलखोर बोल दो तो फिर आग लगना तो स्वाभाभिक है.

"साली भोसर्चोदि मुझे चुगलखोर बोलती है सारे गाओं को बता दूँगी बेटाचोदी तू किस किस से मरवाती फिरती है" इतनी देर में आस पास की नहाने आई बहुत सारी औरते जमा हो गई. ये कोई नई बात तो थी नही रोज तालाब पर नहाते समय किसी ना किसी का पंगा होता ही था और अधनंगी औरते एक दूसरे के साथ भिड़ जाती थी, दोनो एक दूसरे को नोच ही डालती मगर तभी एक बुढ़िया बीच में आ गई. फिर और भी औरते आ गई और बात सम्भाल गई. दोनो को एक दूसरे से दूर हटा दिया गया.

नहाना ख़तम कर दोनो वापस अपने घर को लौट गई मगर आया के दिल में तो काँटा घुस गया था. इश्स गाओं में और कोई इतने बड़ा दिलवाला है नही जो उस रंडी को पायल दे. तभी ध्यान आया की चौधरैयन का बेटा मुन्ना उस दिन खेत में पटक के जब लाजवंती की ले रहा था तब उसने पायल देने की बात कही थी, कही उसी ने तो नही दिया. फिर रात में लाजवंती और बसंती जिस तरफ से आ रही थी उसी तरफ तो चौधरी का आम का बगीचा है. बस फिर क्या था अपने भारी भरकम पिच्छवाड़े को मॅटकाते हुए सीधा चौधरैयन के घर की ओर दौड़ पड़ी.
Reply


Possibly Related Threads…
Thread Author Replies Views Last Post
  Raj sharma stories चूतो का मेला sexstories 201 3,300,155 02-09-2024, 12:46 PM
Last Post: lovelylover
  Mera Nikah Meri Kajin Ke Saath desiaks 61 522,334 12-09-2023, 01:46 PM
Last Post: aamirhydkhan
Thumbs Up Desi Porn Stories नेहा और उसका शैतान दिमाग desiaks 94 1,151,284 11-29-2023, 07:42 AM
Last Post: Ranu
Star Antarvasna xi - झूठी शादी और सच्ची हवस desiaks 54 872,039 11-13-2023, 03:20 PM
Last Post: Harish68
Thumbs Up Hindi Antarvasna - एक कायर भाई desiaks 134 1,542,420 11-12-2023, 02:58 PM
Last Post: Harish68
Star Maa Sex Kahani मॉम की परीक्षा में पास desiaks 133 1,987,088 10-16-2023, 02:05 AM
Last Post: Gandkadeewana
Thumbs Up Maa Sex Story आग्याकारी माँ desiaks 156 2,797,166 10-15-2023, 05:39 PM
Last Post: Gandkadeewana
Star Hindi Porn Stories हाय रे ज़ालिम sexstories 932 13,516,814 10-14-2023, 04:20 PM
Last Post: Gandkadeewana
Lightbulb Vasna Sex Kahani घरेलू चुते और मोटे लंड desiaks 112 3,826,074 10-14-2023, 04:03 PM
Last Post: Gandkadeewana
  पड़ोस वाले अंकल ने मेरे सामने मेरी कुवारी desiaks 7 266,219 10-14-2023, 03:59 PM
Last Post: Gandkadeewana



Users browsing this thread: 3 Guest(s)