Chodan Kahani जवानी की तपिश
06-04-2019, 01:09 PM,
#21
RE: Chodan Kahani जवानी की तपिश
मैंने सलामू की बात सुनकर हल्के से सिर हिलाया और जीप की तरफ बढ़ गया। दोनों गार्ड आगे बढ़कर मेरे पैर छुये। सिंध में पीरों के मुरीद उनको सम्मान देने के लिए उनके पैर छूते हैं, चाहे वो बड़ा हो या फ़िर छोटा। मैंने उनको ऐसा करने से कुछ नहीं कहा।

फ़िर एक गार्ड ने आगे बढ़कर जल्दी से जीप का दरवाजा खोल दिया, और मैं आगे बढ़कर सामने वाली सीट पर बैठ गया। मेरे बैठते ही सलामू भी दूसरी तरफ से आकर ड्राइविंग सीट पर बैठ गया, और दोनों गार्ड भी जल्दी से पिछली तरफ चढ़ गये। यह एक खुली विल्स जीप थी। अक्सर ऐसी जीप शिकार वगैरा के लिए इश्तेमाल होती है। ज़्यादा तर ऐसी जीप में दरवाजे भी नहीं होते। मगर कुछ जीप में साइड पर से छोटे-छोटे दरवाजे लगाए जाते हैं।

सलामू ने जल्दी से जीप आगे बढ़ा दी। हम लोग हवेली के बड़े दरवाजे से गुजरते हुए बाहर निकल आए। अब जीप गाँव के कच्चे पक्के रास्तों से होती हुई कब्रिस्तान की तरफ बढ़ रही थी, जो कि गाँव से कुछ ही दूर, गाँव से जरा हटकर था। मैं बड़े गौर से गाँव की तरफ देख रहा था, इतनी जल्दी वहाँ जैसे पूरा दिन ही निकल आया था। जबकी सर्दियाँ करीब थी सुबह और रात के वक्त हल्की सी ठंड महसूस होती थी। मगर गाँव के लोग माल मवेशी लेकर अपने घरों से निकल चुके थे। कुछ लोग खेतों पर भी काम कर रहे थे।

मैं बड़े गौर से गाँव की जिंदगी देख रहा था। यह एक छोटा सा गाँव था। दूसरे छोटे मोटे गाँव के मुकाबले में इसे बड़ा कहा जा सकता था। हम लोग बीच गाँव के एक छोटे से बाजार से गुजर रहे थे, जिसमें कुछ होटल्स और चन्द दुकानें खुली हुई थीं। हमारी जीप जहाँ से गुजर रही थी लोग हमें देखकर रुक जाते, या फ़िर बैठे हुए लोग खड़े हो जाते। मैंने महसूस किया था कि हमारे गुजरते ही वो एक दूसरे का ध्यान जीप में बैठे मेरी तरफ करवाते और दूर से ही अपने दोनों हाथ जोड़ देते।

जीप बहुत हल्की रफ़्तार से आगे बढ़ रही थी, जिसके कारण मैं उनके भाव और उनकी हरकतें वाजेह तौर पर देख सकता था। मैंने एक नजर सलामू की तरफ देखा तो वो भी यह सब कुछ देख रहा था। उसके होंठों पर एक मुश्कुराहट थी। इसी दौरान हम लोग गाँव से बाहर निकल आए थे। अब दूर खतों में कुछ लोग काम करते नजर आ रहे थे। हम थोड़ी ही देर में कब्रिस्तान पहुँच गये। वहाँ दुआ वग़ैरह करने के बाद हम लोग वापिस इसी जीप मैं औतक की तरफ चल दिए, जहाँ लोगों का बहुत भीड़ लगा हुआ था। औतक के बाहर बहुत सी बड़ी-बड़ी हर माडेल की गाड़ियाँ भी मौजूद थीं।


मेरे औतक पर पहुँचते ही वहाँ मौजूद लोगों में एक हलचल सी मच गई। बहुत से लोग मुझे देखने के लिए इकट्ठे हो गये थे। मैं सलामू के साथ जल्दी से बड़े हाल की तरफ बढ़ा। मैंने हाल के बाहर एक जगह जूते उतारे तो एक शख्स ने जल्दी से मेरे जूते उठाकर अपने सिर पर रख लिए। पहले तो मैं उसे ऐसा करते देखकर बड़ा परेशान हुआ, मगर बड़े हाल में बैठे बहुत से लोगों की नजरें मुझ पर थी। शायद वो मेरा अंदर आने के इंतजार कर रहे थे। मैंने सलामू की तरफ देखा तो उसने जल्दी से उस शख्स को जूते संभाल कर रखने का कहा। और साथ ही मुझे हाल कमरे में दाखिल होने का इशारा कर दिया।

मैं दिल पर पत्थर रखकर हाल कमरे में दाखिल हो गया। मेरे अंदर दाखिल होते बहुत से लोग मेरे स्वागत में खड़े हो गये। कुछ लोगों ने आगे बढ़कर मेरा हाथ थाम लिया और बारी-बारी मेरा हाथ चूमकर अपनी आँखों पर लगाने लगे। मैं उनको ऐसा करने से ना रोक पा रहा था, और ना ही मुझे यह सब कुछ पसंद था। मैंने बड़ी बेबस नजरों से सलामू की तरफ देखा तो उसने मुझे हौसला करने और कुछ ना करने का इशारा किया।

मैं वहाँ से चलता हुआ उस जगह पहुँचा जहाँ पीर जमाल शाह एक बड़े से रेशमी बिस्तर पर गाव तकिया लगाये बैठे थे। मैंने उनकी तरफ देखा तो वो भी मेरी ही तरफ मुखातिव थे। उनकी आँखों में नफरत और गुस्से की झलक सॉफ तौर पर नजर आ रही थी। मैंने उनकी नजरों को कोई अहमियत ना देते हुये एक तरफ लगे सफेद रंग के दूसरे रेशमी बिस्तर की तरफ कदम बढ़ा दिया। जहाँ पर टेक के लिए तो खूबसूरत रेशमी गाव तकिये पहले से ही मौजूद थे।

सलामू ने जल्दी-जल्दी लोगों को एक तरफ किया और मेरी वहाँ बैठने की जगह बनाई। मैं उस बिस्तर पर बैठ गया। बाकी लोग बिस्तर से हटकर नीचे लगे हुए कालीन पर बैठ गये। पूरे हाल कमरे में चारों तरफ लोगों के बैठने के लिए कालीन लगाए गये थे। उसके बाद ताजियत का शाम तक ना खतम होने वाला दौर शुरू हो गया। दिन कैसे गुजरा कुछ पता ही ना चला। बाबा की ताजियत के लिए बहुत से लोग वहाँ पर आए। अपने इलाके के आला अफ़सरान, पुलिस के आला औहदेदार, मिनिस्टर तक बाबा की ताजियत के लिए वहाँ पहुँचे हुए थे। मुरीदों की तो कोई इंतिहा ही नहीं थी। यह सब देखकर मैं हैरान था कि मेरा खानदान कितना मुअज्जिज खानदान है,


और लोग मेरे बाबा की कितनी इज़्र्जत करते थे। हर आँख नम थी, सिवाए पीर जमाल शाह की। मैं सारा दिन वक्त-बा-वक्त उसपर नजर रख रहा था।
Reply
06-04-2019, 01:09 PM,
#22
RE: Chodan Kahani जवानी की तपिश
सलामू ने जल्दी-जल्दी लोगों को एक तरफ किया और मेरी वहाँ बैठने की जगह बनाई। मैं उस बिस्तर पर बैठ गया। बाकी लोग बिस्तर से हटकर नीचे लगे हुए कालीन पर बैठ गये। पूरे हाल कमरे में चारों तरफ लोगों के बैठने के लिए कालीन लगाए गये थे। उसके बाद ताजियत का शाम तक ना खतम होने वाला दौर शुरू हो गया। दिन कैसे गुजरा कुछ पता ही ना चला। बाबा की ताजियत के लिए बहुत से लोग वहाँ पर आए। अपने इलाके के आला अफ़सरान, पुलिस के आला औहदेदार, मिनिस्टर तक बाबा की ताजियत के लिए वहाँ पहुँचे हुए थे। मुरीदों की तो कोई इंतिहा ही नहीं थी। यह सब देखकर मैं हैरान था कि मेरा खानदान कितना मुअज्जिज खानदान है,


और लोग मेरे बाबा की कितनी इज़्र्जत करते थे। हर आँख नम थी, सिवाए पीर जमाल शाह की। मैं सारा दिन वक्त-बा-वक्त उसपर नजर रख रहा था।

इस दौरान मैंने भी महसूस किया कि पीर जमाल शाह भी मुझे बार-बार देख रहा है। इस दौरान पीर जमील शाह, जमाल शाह का बेटा भी एक दो बार हाल कमरे में चक्कर लगा चुका था। उसके आने पर मुरीदों और काम करने वालों में खलबली सी मच जाती थी। सब लोग उसके एक इशारे के मुंतज़िर रहते कि कहीं उनका इशारा हो जाए और उनसे कोई गलती ना हो जाये।

इस दौरान सलामू भी कुछ देर में मेरे पास आ जाता और फ़िर वो मुख्तलिफ कामों से बाहर भी निकल जाता। शाम के वक्त लोगों की भीड़ कम होना शुरू हुआ तो, पीर जमाल शाह भी अपनी जगह से उठकर कहीं चले गये। मैं भी सलामू का इंतजार करने लगा कि वो आए तो मैं भी जाकर अपने कमरे में आराम करूँ। सारा दिन यहाँ बैठ कर थक गया था, और कल की थकान भी अभी बाकी थी। क्योंकी मैं कल रात को भी अपनी नींद पूरी ना कर पाया था। थोड़ी देर में ही सलामू आ गया और मैं उसके साथ हवेली के मर्दानखाने में अपने रिजर्व कमरे में पहुँच गया।

रूम की तरफ आते हुए मैंने पीर जमाल शाह के रूम की तरफ गौर से देखा और अंदाज़ा लगाने की कोशिस की कि पीर जमाल शाह अंदर है या नहीं? मगर रूम की बंद लाइटें और खामोशी से मुझे अंदाज़ा हुआ कि पीर जमाल शायद अभी तक वहाँ नहीं पहुँचा था।

अपने रूम में पहुँचते ही मैं अपने बेड पर गिर गया, मेरी टांगे नीचे लटकी हुई थी। मैंने जूते उतारने की भी जहमत महसूस नहीं की। सलामू सामने खड़ा मुझे गौर से देख रहा था। मैंने अपनी आँखें बंद कर ली, मेरे सिर में बहुत दर्द हो रहा था। उसी वक्त मुझे अपनी पैरों पर एक हाथ का स्पर्श महसूस हुआ। मैं जल्दी से उठकर बैठ गया। देखा तो सलामू मेरे जूते उतारने की कोशिस कर रहा था।

मैंने जल्दी से अपना पैर दूर करते हुए उससे कहा-“सलामू चाचा, यह आप क्या कर रहे हो? आपको यह सब करने की जरूरत नहीं…”

सलामू ने मुश्कुराकर मुझे देखते हुए कहा-“छोटे साईं, जब आप छोटे थे तो कितनी ही बार मैंने आपको जूते पहनाए और उतारे भी हैं। मुझे मना मत करो। लेट जाओ, आप बहुत थके हुए हो…”

मैंने जल्दी से उसे दोनों बाजू से पकड़कर खड़ा करते हुए कहा-“चाचा, तब मैं छोटा था, यह सब कुछ खुद नहीं कर सकता था। लेकिन अब मैं बड़ा हो गया हूँ और यह सब मैं खुद कर सकता हूँ…”

मेरे कंधे को थपक कर उसने बड़े प्यार से मेरे बाजू को पकड़कर मुझे बेड पर बिठा दिया और बड़ी ही अपनियत से कहा-“छोटे साईं, आप कितने भी बड़े हो जाओ, लेकिन मेरे लिए वही छोटे साईं ही हो। मुझे आपका कोई भी काम करके बहुत खुशी मिलेगी। मुझे यह सब करके ऐसा महसूस होता है कि आपके बाबा मुझे शाबासी दे रहे हों, और छोटे साईं आपकी खिदमत करने का मैंने आपके बाबा से वादा किया है। मैं मेरा अहलो--अयाल आपके गुलाम हैं। मुझे यह सब करने से अगर कभी आपने मना किया तो मैं मर जाउन्गा…” उसने अपने दोनों हाथ मेरे सामने बाँध लिए।
Reply
06-04-2019, 01:10 PM,
#23
RE: Chodan Kahani जवानी की तपिश
मेरे कंधे को थपक कर उसने बड़े प्यार से मेरे बाजू को पकड़कर मुझे बेड पर बिठा दिया और बड़ी ही अपनियत से कहा-“छोटे साईं, आप कितने भी बड़े हो जाओ, लेकिन मेरे लिए वही छोटे साईं ही हो। मुझे आपका कोई भी काम करके बहुत खुशी मिलेगी। मुझे यह सब करके ऐसा महसूस होता है कि आपके बाबा मुझे शाबासी दे रहे हों, और छोटे साईं आपकी खिदमत करने का मैंने आपके बाबा से वादा किया है। मैं मेरा अहलो--अयाल आपके गुलाम हैं। मुझे यह सब करने से अगर कभी आपने मना किया तो मैं मर जाउन्गा…” उसने अपने दोनों हाथ मेरे सामने बाँध लिए।


उसका प्यार और मुझसे इतनी मुहब्बत देखकर मैं कुछ बोल नहीं पाया। मैं वैसे ही लेट गया और सलामू मेरे दोनों जूते उतारकर धीरे-धीरे मेरे दोनों पैरों को मिलाने लगा। जिसके कारण मुझे बहुत ही सकून मिल रहा था मेरी आँखें खुद-ब-खुद बंद होने लगी, और मुझे कब नींद आ गई मुझे पता ही ना चला।

शायद कल से लेकर अब तक की थकावट और सलामू के इस तरह से पैर दबाने के कारण मुझे जो सकून मिला था, तो मैं सो गया। मैंने कपड़े भी चेंज नहीं किए। जब मेरी आँख खुली तो कोई मुझे आवाजें दे रहा था। जो मुझे कहीं दूर से सुनाई दे रही थी। मैं धीरे-धीरे शोर की तरफ लौटा तो मुझे सारा की आवाज सुनाई दे रही थी। जो मुझे जगा रही थी। मैंने आँख खोलकर सारा की तरफ देखा तो, वो मेरे बेड के करीब खड़ी मुझे देखकर मुश्कुरा रही थी। मैं उसे देखकर उठकर बैठ गया। अब जब मैंने दीवाल घड़ी पर नजर डाली तो वहाँ 8:00 बज रहे थे। इसका मतलब था कि में सिर्फ़ एक घंटा ही सोया था। लेकिन मेरा सिर में दर्द का दूर-दूर तक कोई नाम निशान ही नहीं था, और ना ही मुझे ऐसा महसूस होता था कि मेरी नींद पूरी ना हुई हो। मैं खुद को बिल्कुल फ्रेश महसूस कर रहा था।

इसी दौरान सारा शोख से लहजे में हँसते हुए बोली-“छोटे साईं, कितने घोड़े बेचकर सोये थे। सुबह के 8:00 बज रहे हैं। आपको पता है के आप कितना सोये हैं?” कल रात का खाना भी वैसा ही रखा है। लगता है कि सारी रात में आपकी आँख नहीं खुली…”

सारा की बात सुनकर मैं हैरान रह गया कि मैं कल शाम 7:00 बजे से सो रहा था। पहले तो कभी मेरे साथ ऐसा नहीं हुआ था। मैं इतनी गहरी नींद और इतनी देर तक कभी नहीं सोया। शायद यह वो जेहनी थकान थी जो पिछले चन्द दिनों से मुझे सोने नहीं दे रही थी। और अब जब सोया तो पता ही नहीं चला कि मैं कितनी देर सोया था। मुझे लग रहा था कि अगर अब भी सारा मुझे ना जगाती तो शायद मैं अभी भी सोया ही रहता।

मैंने मुश्कुराकर उसे देखा और कहा-“पता ही नहीं चला मैं कैसे इतनी देर सोया रहा हूँ। शायद पिछले दिनों की थकावट थी…” मैं यह कहता हुआ उठकर वाशरूम की तरफ बढ़ गया। फ़िर वाशरूम के दरवाजे पर रुकते हुए मैंने सारा को देखा और कहा-“मेरे दूसरे कपड़े निकाल दो, इनकी तो पूरी क्रीज खराब हो चुकी है…”

सारा गर्दन हिलाती हुई अलमारी की तरफ बढ़ गई। मैं जब तक नहाकर फारिग हुआ तब तक सारा मेरे कपड़े निकाल चुकी थी और वो मैंने उससे थोड़ा सा दरवाजा खोलकर ले लिए थे। मैं चेंज करके बाहर निकला तो सारा उसी टेबल के सामने जहाँ मेरा नाश्ता पड़ा था बैठी हुई थी। मैं आगे बढ़कर सोफा पर बैठ गया और जल्दी-जल्दी नाश्ता करने लगा। सारा वहाँ बैठी मुझे देख रही थी। मगर मैंने आज उससे कोई बात नहीं।

शायद सारा से भी खामोशी बर्दास्त नहीं हो रही थी। आख़िरकार, वो बोल पड़ी-“छोटे साईं, कल आप बहुत परेशान लग रहे थे? कोई बात हुई थी क्या मर्दानखाने में जो आप पूछ रहे थे?”

मैंने नजरें उठाकर सारा की तरफ देखा तो वो सवालिया नजरों से मुझे देखे जा रही थी। मैं सोच में डूब गया कि सारा से वो बात करनी चाहिए या नहीं? और उसने कैसे अंदाज़ा लगाया कि मर्दानखाने में कोई बात हुई है, जिसके कारण मैं परेशान हूँ? कहीं सारा को इस सारे चक्कर का पता तो नहीं? कहीं सारा उस औरत को जानती तो नहीं? या उसने ही मुझसे बात करने के लिए सारा को कहा हो और वो मेरा रियेक्शन देखना चाहती हो कि वो सब देखकर अब मैं क्या करना चाहता हूँ?



मुझे इस तरह सोच में डूबा देखकर सारा ने कहा-“छोटे साईं आपके लिए एक पैगाम है और खत है मेरे पास…”

मैंने जल्दी से सारा को देखा और बोला-“किसका पैगाम?”

इस दौरान सारा अपने दुपट्टे को थोड़ा साइड पर करके अपने गिरेबान में हाथ डालकर एक लिपटा हुआ कागज निकाल रही थी। उसके इस तरह कगाज निकालने के दौरान जो उसने एक हाथ अपने मम्मे के नीचे रखकर उसे ऊपर की तरफ दबाव देकर दूसरे हाथ से वो कागज निकालने के दौरान उसके सफेद-सफेद गोरे-गोरे मम्मे का कुछ हिस्सा मुझे वाजेह तौर पर नजर आया था। मेरी आँखें सारा के मम्मे की जगह पर रुक हो गई थीं, जिसे सारा ने भी महसूस कर लिया और उसने जल्दी से अपने दुपट्टे से अपने सीने को ढक लिया।

मैंने उससे नजरें चुराते हुए एक बार फ़िर पूछा-“किसका पैगाम है मेरे लिए और यह खत किसने दिया है?” मैं खत को बड़ी हैरत से देख रहा था, जो अब मेरे हाथ में था। उसमें से सारा के बदन की सौंधी-सौंधी खुश्बू उठती हुई महसूस हो रही थी।

सारा-“बड़ी बीबी साईं का पैगाम है। उन्होंने कहा है कि आप उनसे मिलने से पहले कोई भी जल्दबाजी ना करें और ना ही कोई ऐसा कदम उठायें जिससे आपको किसी नुकसान का अंदेशा हो। सलामू पर पूरा भरोसा रखें और जो हो रहा है उसे खामोशी से देखते रहें…”
Reply
06-04-2019, 01:10 PM,
#24
RE: Chodan Kahani जवानी की तपिश
मैंने उससे नजरें चुराते हुए एक बार फ़िर पूछा-“किसका पैगाम है मेरे लिए और यह खत किसने दिया है?” मैं खत को बड़ी हैरत से देख रहा था, जो अब मेरे हाथ में था। उसमें से सारा के बदन की सौंधी-सौंधी खुश्बू उठती हुई महसूस हो रही थी।

सारा-“बड़ी बीबी साईं का पैगाम है। उन्होंने कहा है कि आप उनसे मिलने से पहले कोई भी जल्दबाजी ना करें और ना ही कोई ऐसा कदम उठायें जिससे आपको किसी नुकसान का अंदेशा हो। सलामू पर पूरा भरोसा रखें और जो हो रहा है उसे खामोशी से देखते रहें…”

मैं बहुत ही हैरत से सारा की बातें सुन रहा था। मुझे उसकी किसी बात की भी समझ नहीं आई थी। मैं अभी सारा से कोई सवाल करने ही वाला था कि सलामू उसी वक्त अंदर दाखिल हुआ। सारा ने सलामू को देखकर खत की तरफ इशारा किया। मुझे ऐसे लगा कि वो शायद मुझे खत छुपाने को कह रही है। मैंने खत को फौरन ही अपनी कमीज की साइड पाकेट में डाल लिया। अब पता नहीं कि सलामू की उसपर नजर पड़ी थी या नहीं? मगर उसके चेहरे के भाव से कोई अंदाज़ा नहीं हो रहा था।

कुछ देर के बाद में सलामू के साथ एक बार फ़िर कल की तरह पहले कब्रिस्तान गया। आज बाबा का सोयम था। औतक पर बहुत भीड़ लगी हुई थी। बहुत से लोग आए हुए थे, खैरात भी चल रही थी। सोयम पर बहुत सी डेगें बनवाई हुई थी। सारा दिन लंगर चलता रहा। फ़िर धीरे-धीरे शाम होती गई और लोग कम होते गये। दूर से आने वाले वो मुरीद भी जो पहले दिन से ही यहाँ पर थे, वो भी जा चुके थे। बाबा के सोयम पर मामू भी आए थे। मुझे उनसे अकेले में बात करने का कुछ टाइम मिला तो मामू ने मुझे बताया कि कल उन लोगों ने भी अम्मी का सोयम किया था और, खतम भी कराया था। सब लोग मुझे मिस कर रहे थे।

फ़िर उन्होंने मेरा प्रोग्राम पूछा तो मैंने उनको बताया कि दादी मुझसे मिलना चाहती हैं। मगर मैं अभी तक उनसे नहीं मिला, और यहाँ कुछ लोग हैं जो मुझे अब बाबा की जगह पर मानते हैं। मगर कुछ ऐसे भी हैं जिनकी नजरों में मेरे लिए नफरत के सिवा कुछ नहीं।

जवाब में मामू ने कहा-“अगर तुम्हारी दादी तुम्हें अपनाना चाहती हैं तो तुम इनकार मत करना। आख़िरकार यह सब कुछ तुम्हारा ही तो है। और तुम्हारी माँ की भी तो यही ख्वाइश थी कि तुम अपने खानदान से दूर ना रहो। लेकिन इस बात का हरगिज़ यह मतलब ना लेना कि हम तुमको खुद से दूर करना चाहते हैं। हमारे घर के दरवाजे तुम्हारे लिए हमेशा खुले हैं। तुम जब चाहो वहाँ आ सकते हो। वो भी तुम्हारा अपना ही घर है। लेकिन अपना हक मत छोड़ो…”


मैंने मामू को अपने किसी भी फ़ैसले के बारे में फ़िलहाल कुछ नहीं बताया, और ना ही मुझे जो शक थे उनका कोई जिकर किया। बस उनकी बातें और नसीहतें सुनकर खामोश रहा। फ़िर शाम को मामू भी चले गये। इस दौरान सलामू दूर से मुझे और मामू को बातें करते देखता रहा था। मैंने जब भी उसकी तरफ निगाह उठाई तो उसकी आँखों में एक बिनती थी कि मैं वहाँ से जाने का कोई प्रोग्राम ना बनाऊूँ। जब मामू चले गये तो वो फौरन मेरे पास आया और मुझे हवेली चलने का कहा।

मैं उसका साथ मर्दानखाने में आ गया, और खामोशी से आकर एक सोफा पर बैठ गया। मेरे दिल-ओ-दिमाग़ में तूफान चल रहे थे। मैं कोई फैसला नहीं कर पा रहा था कि मुझे क्या करना चाहिए? यहाँ एक ना समझ में आने वाला सिलसिला बना हुआ था। दादी का अजीबो गरीब पैगाम। सारा का वो खत देना। इसके साथ ही मैंने चौंक के फौरन अपने साइड पाकेट को हाथ लगाया तो वो खत वहीं मौजूद था। सारा दिन मुझे उसे पढ़ने का मोका नहीं मिल सका था, और ना ही वो मुझे याद भी रहा था। और अभी मैं सलामू चाचा के होते हुए उसे पढ़ना भी नहीं चाहता था। मैंने फौरन सलामू चाचा की तरफ देखा तो वो एक साइड पर खड़े मुझे खामोशी से देख रहे थे। उन्होंने मेरे चेहरे के उतार चढ़ाव से अंदाज़ा लगा लिया था शायद कि कोई फैसला नहीं कर पा रहा कि मैं क्या करूँ।

मुझे गौर से देखते हुए सलामू चाचा ने कहा-“छोटे साईं। मुझे पता है कि आप बहुत परेशान हैं। वालिदान की जुदाई का गम बहुत बड़ा है। मगर आपको जल्द ही अपने फ़ैसले पर नजर करनी पड़ेगी। इस हवेली और इस हवेली में रहने वालों को आपकी जरूरत है…”

मैं खामोशी से उसकी बातें सुन रहा था।

सलामू-“छोटे साईं, किसी और के लिए नहीं तो अपने बाबा के लिए ही यहाँ रुक जाओ। वो आपको यहाँ देखना चाहते थे अपनी जगह पर, यही उनका सबसे बड़ा ख्वाब था…”

मैं-“लेकिन मैं बाबा का खवाब इस तरह पूरा नहीं करना चाहता था। मैं जो भी करता उनकी सरपरस्ती में करना चाहता था…” यह कहते ही मैं खुद को रोक नहीं पाया, और मेरी आँखों में से आँसू बह निकले।

सलामू चाचा किसी सोच में डूब गये। फ़िर एक गहरी साँस लेते हुए बोले-“छोटे साईं, आप मुझ पर कितना भरोसा करते हैं?”

मैंने हैरत से सलामू की तरफ देखा और कहा-“आपको यह सवाल पूछने की जरूरत क्यों महसूस हुई? क्या मेरेी किसी बात से आपको लगा कि मैं आप पर भरोसा नहीं करता?”

सलामू जल्दी से बोला-“नहीं, ऐसी कोई बात नहीं। आप नाराज ना हो। मैं तो बस आपसे यह जानकर तसल्ली करना चाहता था कि वाकई आप मुझ पर भरोसा करते भी हैं कि नहीं?”

मैंने मुश्कुराते हुए उनको देखकर कहा-“चाचा सलामू। मुझे बाबा के अल्फाज अब भी वाजेह अंदाज में याद हैं। उन्होंने मुझसे कहा था, अगर कभी तुम अकेले पड़ जाओ, और अपनो में से कोई भी तुम्हारे करीब ना हो तो, तुम सिर्फ़ और सिर्फ़ सलामू पर इस तरह भरोसा कर सकते हो जिस तरह मुझ पर…”

मेरी बात सुनकर सलामू की आँखों में पानी भर आया।
Reply
06-04-2019, 01:10 PM,
#25
RE: Chodan Kahani जवानी की तपिश
मेरी बात सुनकर सलामू की आँखों में पानी भर आया।

मैंने उनको देखते हुए अपनी बात जारी रखी-“और अब जब मेरे अपने मेरे करीब नहीं है तो आप ही इस दुनियाँ में मेरे अपने हो। मैं आप पर आँखें बंद करके भरोसा करता हूँ…”

मेरी बात खतम होते ही सलामू ने कहा-“तो उस भरोसे के बदले में सिर्फ़ आपको यह बात कहूँगा कि सिर्फ़ बात की वजह से आप अपनी दादी से नफरत ना करें कि उन्होंने आपकी वालिदा को कभी अपनी बहू तसलीम नहीं किया। बहुत सी ऐसी बातें हैं, जो मैं आपको अभी नहीं बता सकता। तुम्हें इन तमाम बातों के लिए अपनी दादी हुजूर से मिलना होगा। इस वक्त तुम्हारा उनसे मिलना बहुत जरूरी है। वो तुम्हारी दुश्मन नहीं। और उनको इस वक्त तुम्हारी सख़्त जरूरत है…”

मैं सलामू की बात सुनकर परेशान हो गया। और जल्दी से बोला-“लेकिन सलामू चाचा, मुझसे यह दिखावा नहीं होगा। मैं अपनी माँ की तड़प कभी नहीं भूल पाऊूँगा जो उनको दादी हुजूर से मिलने और खुद को इस हवेली की बहू तसलीम करवाने की थी। और वो यह हसरत लिए ही इस दुनियाँ से चली गई…”

मेरी बात सुनकर सलामू जल्दी से बोला-“लेकिन छोटे साईं, आप भूल रहे हैं कि झगड़ा किस बात पर था? आपकी दादी का कहना था कि आपकी वालिदा आपकी कभी भी ऐसी तालीम नहीं कर सकती कि आप इस हवेली और इस पीरों की गद्दी के सही वारिस बन पाओ, और अब आप यह सब करके उनकी सारी बातों को सच साबित करना चाहते हैं, उनको बताना चाहते हैं कि वाकई बीबी साहब ने आपकी ऐसी तालीम नहीं की। अगर वो जिंदा होती तो क्या वो आपको कभी अपनी दादी से नफरत करने का कहती?”
सलामू मुसलसल बोलता जा रहा था और मेरे अंदर में आँधियाँ चल रही थी।

सलामू-“बीबी साहब को आपकी दादी हुजूर ने कभी बहू तसलीम नहीं किया। मगर क्या कभी आपने उनकी जबान से अपनी दादी के खिलाफ कोई बात कभी सुनी। कभी उनको बुरा भला कहते सुना? उल्टा वो तो हर वक्त इस इंतजार में थी कि कब उनको मोका मिले और वो यह साबित करके आपकी दादी हुजूर के सामने सुरखरू हो सके कि उन्होंने आपकी अच्छी तालीम करके इस काबिल बना दिया है कि आप हवेली के सही वारिस साबित हो सकें । लेकिन जिंदगी ने उनसे वफा नहीं की। मगर जब आपको आज यह मोका मिल रहा है तो आप क्यों उनको शर्मिंदा करने पर तुले हुए हैं?”

मेरी आँखों से आँसू की लडियाँ लगी हुई थी। मुझे हिचकियाँ लग चुकी थी। मैं खुद को हिचकियाँ रहा था कि यह मैं क्या करने चला था? खुद अपने हाथों से अपनी अम्मी का खवाब तोड़ने चला था? खुद ही बाबा की जिंदगी के किए गये इतने अहम फ़ैसले को गलत साबित करने चला था? मैं सलामू चाचा को कुछ कह नहीं पा रहा था।

उन्होंने आगे बढ़कर मेरी पीठ को थपथपाया, और कहा-“अब भी तुम्हारे पास मोका है सोच लो? फ़िर भी जो तुम्हारा दिल कहे वो करो…” यह कहकर वो जल्दी से रूम से बाहर निकल गया।



मैं बहुत देर तक रोता रहा, और सलामू की कहीं गई बातों को सोचता रहा। बहुत देर तक मैं अम्मी और बाबा की कहीं गई बातों को याद करके रोता रहा। फ़िर कुछ देर के बाद मैं गहरी-गहरी साँसें लेने लगा। मेरे दिमाग़ से बोझ उतर चुका था, और अब मैं एक फ़ैसले पर पहुँचने का फैसला कर चुका था।
इसी दौरान मुझे वो खत याद आया, और मैंने जल्दी से खत अपनी जेब से निकाला तो एक सौंधी-सौंधी सी खुश्बू मेरी नाक से टकराई। मैंने जल्दी से खत को अपनी नाक के करीब करके सूँघा तो उसमें से सारा के पशीने की हल्की सी महक अभी तक आ रही थी। मैंने उसे सूंघते हुए उस खुश्बू को आँखें बंद करके एक गहरी साँस लेते हुए अपने अंदर उतारने की कोशिस की, तो अचानक से बंद आँखों के पीछे सारा नजर आने लगी। मेरे दिल की धड़कनें तेज होने लगी। मैंने जल्दी से आँखें खोलकर खुद पर कंट्रोल किया और खत को खोलने लगा। पेपर जब खुलकर मेरे सामने आया तो उसकी तेहरीर बहुत ही खूबसूरत अल्फाज में मेरी नजरों के सामने आई। जो कि इस तरह थी।
“ब्रदर-ए-मोहतरम
असलम अलीकुम्
आप यक़ीनन हैरान होंगे कि हम कौन हैं, और आपको इस तरह खत क्यों लिख रहे हैं? हम वो हैं जो इस हवेली की बड़ी-बड़ी दीवारों में बचपन से ही कैद हैं। हम वो बदनसीब बहनें हैं जिन लोगों का एक भाई तो है, लेकिन उन्होंने आज तक उसे नहीं देखा। भाई हम आपकी सौतेली बहनें हैं। लेकिन बचपन से लेकर बाबा की जिंदगी तक हमने बाबा से आपके बारे में इतनी बातें सुनी हैं कि हम आपसे मिलने के लिए बहुत बेचैन हैं। हर भाई अपनी बहनों का फख्र होता है, और आप भी हमारे फख्र हो, हमारे साईं हो। बाबा के बाद आप ही हमारे अपने हो। हमें उस कंधे की जरूरत है जिस पर हम अपना सिर रखकर अपना दुख, अपनी खुशी बयान कर सकें। बाबा के बाद हमें उस शफकत की जरूरत है, जैसी बाबा हमें देते थे, और अब वो सिर्फ़ आपसे ही हमें मिल सकती है। हमें नहीं पता की आप हमारे बारे में क्या सोचते हैं? मगर भाई हमने हमेशा आपकी एक खयाली तस्वीर बनाकर अपनी आँखों में सजाई हुई है। हमने कभी नहीं सोचा था कि हम इस समय आपसे मिलेंगे, जब बाबा हमारे बीच नहीं होंगे। मगर भाई, आज हमें आपकी जरूरत है।

हमें पता है कि आप हमसे कोई रिश्ता नहीं रखना चाहते। मगर भाई आप दूसरों के किए गये फ़ैसलों की सजा हमें क्यों देना चाहते हैं? हमें इस बात से कोई सरोकार नहीं कि कोई आपके बारे में क्या कहता है? हमारे लिए तो बस इतना ही काफी है कि इस दुनियाँ में हमारा एक भाई है। हमारी इज्जतो का रखवाला, हमारे लिए एक मजबूत दीवार जो किसी भी दुख और तकलीफ को हमारे करीब भी नहीं आने देगा। भाई यह हम दो बहनों की इल्तजा है कि हमें छोड़कर कभी मत जाना। हमें बाबा के बाद अब आपकी सख़्त जरूरत है। अगर तुम यहाँ से चले गये तो, चारों तरफ फैले हुए वहशी दरिंदे हमें खा जाएँगे, ना हमारी इज़्जतें महफूज रहेंगी ना हमारी जान।

मजलूम बहनों की इज़्र्जत की खातिर ही रुक जाओ। हम बहुत अकेले हो गये हैं। हमें बहुत डर लगता है भाई। हमें बहुत डर लगता है।
फकत आपकी मजलूम बहनें

खत पढ़कर एक बार फ़िर मेरी आँखों से आँसू जारी हो गये, और ना जाने किस जज़्बे के तहत मैंने खुद कलमी की।

“मैं आ रहा हूँ, मेरी बहनों तुम्हारे पास। मैं तुम्हें कभी छोड़कर नहीं जाउन्गा…” इसके साथ ही मैं उस खत को चूमने लगा। मुझे वो रिश्ता मिल रहा था जिसके लिए मैं बचपन से तरसा था, बहन का रिश्ता। मैंने कल सुबह जनानखाने में जाने का फैसला कर लिया था। यह फैसला करने के बाद मुझे एक रूहानी सकून सा मिल गया था।
Reply
06-04-2019, 01:10 PM,
#26
RE: Chodan Kahani जवानी की तपिश
मैंने उससे नजरें चुराते हुए एक बार फ़िर पूछा-“किसका पैगाम है मेरे लिए और यह खत किसने दिया है?” मैं खत को बड़ी हैरत से देख रहा था, जो अब मेरे हाथ में था। उसमें से सारा के बदन की सौंधी-सौंधी खुश्बू उठती हुई महसूस हो रही थी।

सारा-“बड़ी बीबी साईं का पैगाम है। उन्होंने कहा है कि आप उनसे मिलने से पहले कोई भी जल्दबाजी ना करें और ना ही कोई ऐसा कदम उठायें जिससे आपको किसी नुकसान का अंदेशा हो। सलामू पर पूरा भरोसा रखें और जो हो रहा है उसे खामोशी से देखते रहें…”

मैं बहुत ही हैरत से सारा की बातें सुन रहा था। मुझे उसकी किसी बात की भी समझ नहीं आई थी। मैं अभी सारा से कोई सवाल करने ही वाला था कि सलामू उसी वक्त अंदर दाखिल हुआ। सारा ने सलामू को देखकर खत की तरफ इशारा किया। मुझे ऐसे लगा कि वो शायद मुझे खत छुपाने को कह रही है। मैंने खत को फौरन ही अपनी कमीज की साइड पाकेट में डाल लिया। अब पता नहीं कि सलामू की उसपर नजर पड़ी थी या नहीं? मगर उसके चेहरे के भाव से कोई अंदाज़ा नहीं हो रहा था।

कुछ देर के बाद में सलामू के साथ एक बार फ़िर कल की तरह पहले कब्रिस्तान गया। आज बाबा का सोयम था। औतक पर बहुत भीड़ लगी हुई थी। बहुत से लोग आए हुए थे, खैरात भी चल रही थी। सोयम पर बहुत सी डेगें बनवाई हुई थी। सारा दिन लंगर चलता रहा। फ़िर धीरे-धीरे शाम होती गई और लोग कम होते गये। दूर से आने वाले वो मुरीद भी जो पहले दिन से ही यहाँ पर थे, वो भी जा चुके थे। बाबा के सोयम पर मामू भी आए थे। मुझे उनसे अकेले में बात करने का कुछ टाइम मिला तो मामू ने मुझे बताया कि कल उन लोगों ने भी अम्मी का सोयम किया था और, खतम भी कराया था। सब लोग मुझे मिस कर रहे थे।

फ़िर उन्होंने मेरा प्रोग्राम पूछा तो मैंने उनको बताया कि दादी मुझसे मिलना चाहती हैं। मगर मैं अभी तक उनसे नहीं मिला, और यहाँ कुछ लोग हैं जो मुझे अब बाबा की जगह पर मानते हैं। मगर कुछ ऐसे भी हैं जिनकी नजरों में मेरे लिए नफरत के सिवा कुछ नहीं।

जवाब में मामू ने कहा-“अगर तुम्हारी दादी तुम्हें अपनाना चाहती हैं तो तुम इनकार मत करना। आख़िरकार यह सब कुछ तुम्हारा ही तो है। और तुम्हारी माँ की भी तो यही ख्वाइश थी कि तुम अपने खानदान से दूर ना रहो। लेकिन इस बात का हरगिज़ यह मतलब ना लेना कि हम तुमको खुद से दूर करना चाहते हैं। हमारे घर के दरवाजे तुम्हारे लिए हमेशा खुले हैं। तुम जब चाहो वहाँ आ सकते हो। वो भी तुम्हारा अपना ही घर है। लेकिन अपना हक मत छोड़ो…”


मैंने मामू को अपने किसी भी फ़ैसले के बारे में फ़िलहाल कुछ नहीं बताया, और ना ही मुझे जो शक थे उनका कोई जिकर किया। बस उनकी बातें और नसीहतें सुनकर खामोश रहा। फ़िर शाम को मामू भी चले गये। इस दौरान सलामू दूर से मुझे और मामू को बातें करते देखता रहा था। मैंने जब भी उसकी तरफ निगाह उठाई तो उसकी आँखों में एक बिनती थी कि मैं वहाँ से जाने का कोई प्रोग्राम ना बनाऊूँ। जब मामू चले गये तो वो फौरन मेरे पास आया और मुझे हवेली चलने का कहा।

मैं उसका साथ मर्दानखाने में आ गया, और खामोशी से आकर एक सोफा पर बैठ गया। मेरे दिल-ओ-दिमाग़ में तूफान चल रहे थे। मैं कोई फैसला नहीं कर पा रहा था कि मुझे क्या करना चाहिए? यहाँ एक ना समझ में आने वाला सिलसिला बना हुआ था। दादी का अजीबो गरीब पैगाम। सारा का वो खत देना। इसके साथ ही मैंने चौंक के फौरन अपने साइड पाकेट को हाथ लगाया तो वो खत वहीं मौजूद था। सारा दिन मुझे उसे पढ़ने का मोका नहीं मिल सका था, और ना ही वो मुझे याद भी रहा था। और अभी मैं सलामू चाचा के होते हुए उसे पढ़ना भी नहीं चाहता था। मैंने फौरन सलामू चाचा की तरफ देखा तो वो एक साइड पर खड़े मुझे खामोशी से देख रहे थे। उन्होंने मेरे चेहरे के उतार चढ़ाव से अंदाज़ा लगा लिया था शायद कि कोई फैसला नहीं कर पा रहा कि मैं क्या करूँ।

मुझे गौर से देखते हुए सलामू चाचा ने कहा-“छोटे साईं। मुझे पता है कि आप बहुत परेशान हैं। वालिदान की जुदाई का गम बहुत बड़ा है। मगर आपको जल्द ही अपने फ़ैसले पर नजर करनी पड़ेगी। इस हवेली और इस हवेली में रहने वालों को आपकी जरूरत है…”

मैं खामोशी से उसकी बातें सुन रहा था।

सलामू-“छोटे साईं, किसी और के लिए नहीं तो अपने बाबा के लिए ही यहाँ रुक जाओ। वो आपको यहाँ देखना चाहते थे अपनी जगह पर, यही उनका सबसे बड़ा ख्वाब था…”

मैं-“लेकिन मैं बाबा का खवाब इस तरह पूरा नहीं करना चाहता था। मैं जो भी करता उनकी सरपरस्ती में करना चाहता था…” यह कहते ही मैं खुद को रोक नहीं पाया, और मेरी आँखों में से आँसू बह निकले।

सलामू चाचा किसी सोच में डूब गये। फ़िर एक गहरी साँस लेते हुए बोले-“छोटे साईं, आप मुझ पर कितना भरोसा करते हैं?”

मैंने हैरत से सलामू की तरफ देखा और कहा-“आपको यह सवाल पूछने की जरूरत क्यों महसूस हुई? क्या मेरेी किसी बात से आपको लगा कि मैं आप पर भरोसा नहीं करता?”

सलामू जल्दी से बोला-“नहीं, ऐसी कोई बात नहीं। आप नाराज ना हो। मैं तो बस आपसे यह जानकर तसल्ली करना चाहता था कि वाकई आप मुझ पर भरोसा करते भी हैं कि नहीं?”
Reply
06-04-2019, 01:11 PM,
#27
RE: Chodan Kahani जवानी की तपिश
सलामू जल्दी से बोला-“नहीं, ऐसी कोई बात नहीं। आप नाराज ना हो। मैं तो बस आपसे यह जानकर तसल्ली करना चाहता था कि वाकई आप मुझ पर भरोसा करते भी हैं कि नहीं?”

मैंने मुश्कुराते हुए उनको देखकर कहा-“चाचा सलामू। मुझे बाबा के अल्फाज अब भी वाजेह अंदाज में याद हैं। उन्होंने मुझसे कहा था, अगर कभी तुम अकेले पड़ जाओ, और अपनो में से कोई भी तुम्हारे करीब ना हो तो, तुम सिर्फ़ और सिर्फ़ सलामू पर इस तरह भरोसा कर सकते हो जिस तरह मुझ पर…”

मेरी बात सुनकर सलामू की आँखों में पानी भर आया।

मैंने उनको देखते हुए अपनी बात जारी रखी-“और अब जब मेरे अपने मेरे करीब नहीं है तो आप ही इस दुनियाँ में मेरे अपने हो। मैं आप पर आँखें बंद करके भरोसा करता हूँ…”

मेरी बात खतम होते ही सलामू ने कहा-“तो उस भरोसे के बदले में सिर्फ़ आपको यह बात कहूँगा कि सिर्फ़ बात की वजह से आप अपनी दादी से नफरत ना करें कि उन्होंने आपकी वालिदा को कभी अपनी बहू तसलीम नहीं किया। बहुत सी ऐसी बातें हैं, जो मैं आपको अभी नहीं बता सकता। तुम्हें इन तमाम बातों के लिए अपनी दादी हुजूर से मिलना होगा। इस वक्त तुम्हारा उनसे मिलना बहुत जरूरी है। वो तुम्हारी दुश्मन नहीं। और उनको इस वक्त तुम्हारी सख़्त जरूरत है…”

मैं सलामू की बात सुनकर परेशान हो गया। और जल्दी से बोला-“लेकिन सलामू चाचा, मुझसे यह दिखावा नहीं होगा। मैं अपनी माँ की तड़प कभी नहीं भूल पाऊूँगा जो उनको दादी हुजूर से मिलने और खुद को इस हवेली की बहू तसलीम करवाने की थी। और वो यह हसरत लिए ही इस दुनियाँ से चली गई…”

मेरी बात सुनकर सलामू जल्दी से बोला-“लेकिन छोटे साईं, आप भूल रहे हैं कि झगड़ा किस बात पर था? आपकी दादी का कहना था कि आपकी वालिदा आपकी कभी भी ऐसी तालीम नहीं कर सकती कि आप इस हवेली और इस पीरों की गद्दी के सही वारिस बन पाओ, और अब आप यह सब करके उनकी सारी बातों को सच साबित करना चाहते हैं, उनको बताना चाहते हैं कि वाकई बीबी साहब ने आपकी ऐसी तालीम नहीं की। अगर वो जिंदा होती तो क्या वो आपको कभी अपनी दादी से नफरत करने का कहती?”
सलामू मुसलसल बोलता जा रहा था और मेरे अंदर में आँधियाँ चल रही थी।

सलामू-“बीबी साहब को आपकी दादी हुजूर ने कभी बहू तसलीम नहीं किया। मगर क्या कभी आपने उनकी जबान से अपनी दादी के खिलाफ कोई बात कभी सुनी। कभी उनको बुरा भला कहते सुना? उल्टा वो तो हर वक्त इस इंतजार में थी कि कब उनको मोका मिले और वो यह साबित करके आपकी दादी हुजूर के सामने सुरखरू हो सके कि उन्होंने आपकी अच्छी तालीम करके इस काबिल बना दिया है कि आप हवेली के सही वारिस साबित हो सकें । लेकिन जिंदगी ने उनसे वफा नहीं की। मगर जब आपको आज यह मोका मिल रहा है तो आप क्यों उनको शर्मिंदा करने पर तुले हुए हैं?”

मेरी आँखों से आँसू की लडियाँ लगी हुई थी। मुझे हिचकियाँ लग चुकी थी। मैं खुद को हिचकियाँ रहा था कि यह मैं क्या करने चला था? खुद अपने हाथों से अपनी अम्मी का खवाब तोड़ने चला था? खुद ही बाबा की जिंदगी के किए गये इतने अहम फ़ैसले को गलत साबित करने चला था? मैं सलामू चाचा को कुछ कह नहीं पा रहा था।

उन्होंने आगे बढ़कर मेरी पीठ को थपथपाया, और कहा-“अब भी तुम्हारे पास मोका है सोच लो? फ़िर भी जो तुम्हारा दिल कहे वो करो…” यह कहकर वो जल्दी से रूम से बाहर निकल गया।



मैं बहुत देर तक रोता रहा, और सलामू की कहीं गई बातों को सोचता रहा। बहुत देर तक मैं अम्मी और बाबा की कहीं गई बातों को याद करके रोता रहा। फ़िर कुछ देर के बाद मैं गहरी-गहरी साँसें लेने लगा। मेरे दिमाग़ से बोझ उतर चुका था, और अब मैं एक फ़ैसले पर पहुँचने का फैसला कर चुका था।
Reply
06-04-2019, 01:11 PM,
#28
RE: Chodan Kahani जवानी की तपिश
इसी दौरान मुझे वो खत याद आया, और मैंने जल्दी से खत अपनी जेब से निकाला तो एक सौंधी-सौंधी सी खुश्बू मेरी नाक से टकराई। मैंने जल्दी से खत को अपनी नाक के करीब करके सूँघा तो उसमें से सारा के पशीने की हल्की सी महक अभी तक आ रही थी। मैंने उसे सूंघते हुए उस खुश्बू को आँखें बंद करके एक गहरी साँस लेते हुए अपने अंदर उतारने की कोशिस की, तो अचानक से बंद आँखों के पीछे सारा नजर आने लगी। मेरे दिल की धड़कनें तेज होने लगी। मैंने जल्दी से आँखें खोलकर खुद पर कंट्रोल किया और खत को खोलने लगा। पेपर जब खुलकर मेरे सामने आया तो उसकी तेहरीर बहुत ही खूबसूरत अल्फाज में मेरी नजरों के सामने आई। जो कि इस तरह थी।
“ब्रदर-ए-मोहतरम
असलम अलीकुम्
आप यक़ीनन हैरान होंगे कि हम कौन हैं, और आपको इस तरह खत क्यों लिख रहे हैं? हम वो हैं जो इस हवेली की बड़ी-बड़ी दीवारों में बचपन से ही कैद हैं। हम वो बदनसीब बहनें हैं जिन लोगों का एक भाई तो है, लेकिन उन्होंने आज तक उसे नहीं देखा। भाई हम आपकी सौतेली बहनें हैं। लेकिन बचपन से लेकर बाबा की जिंदगी तक हमने बाबा से आपके बारे में इतनी बातें सुनी हैं कि हम आपसे मिलने के लिए बहुत बेचैन हैं। हर भाई अपनी बहनों का फख्र होता है, और आप भी हमारे फख्र हो, हमारे साईं हो। बाबा के बाद आप ही हमारे अपने हो। हमें उस कंधे की जरूरत है जिस पर हम अपना सिर रखकर अपना दुख, अपनी खुशी बयान कर सकें। बाबा के बाद हमें उस शफकत की जरूरत है, जैसी बाबा हमें देते थे, और अब वो सिर्फ़ आपसे ही हमें मिल सकती है। हमें नहीं पता की आप हमारे बारे में क्या सोचते हैं? मगर भाई हमने हमेशा आपकी एक खयाली तस्वीर बनाकर अपनी आँखों में सजाई हुई है। हमने कभी नहीं सोचा था कि हम इस समय आपसे मिलेंगे, जब बाबा हमारे बीच नहीं होंगे। मगर भाई, आज हमें आपकी जरूरत है।

हमें पता है कि आप हमसे कोई रिश्ता नहीं रखना चाहते। मगर भाई आप दूसरों के किए गये फ़ैसलों की सजा हमें क्यों देना चाहते हैं? हमें इस बात से कोई सरोकार नहीं कि कोई आपके बारे में क्या कहता है? हमारे लिए तो बस इतना ही काफी है कि इस दुनियाँ में हमारा एक भाई है। हमारी इज्जतो का रखवाला, हमारे लिए एक मजबूत दीवार जो किसी भी दुख और तकलीफ को हमारे करीब भी नहीं आने देगा। भाई यह हम दो बहनों की इल्तजा है कि हमें छोड़कर कभी मत जाना। हमें बाबा के बाद अब आपकी सख़्त जरूरत है। अगर तुम यहाँ से चले गये तो, चारों तरफ फैले हुए वहशी दरिंदे हमें खा जाएँगे, ना हमारी इज़्जतें महफूज रहेंगी ना हमारी जान।

मजलूम बहनों की इज़्र्जत की खातिर ही रुक जाओ। हम बहुत अकेले हो गये हैं। हमें बहुत डर लगता है भाई। हमें बहुत डर लगता है।
फकत आपकी मजलूम बहनें

खत पढ़कर एक बार फ़िर मेरी आँखों से आँसू जारी हो गये, और ना जाने किस जज़्बे के तहत मैंने खुद कलमी की।

“मैं आ रहा हूँ, मेरी बहनों तुम्हारे पास। मैं तुम्हें कभी छोड़कर नहीं जाउन्गा…” इसके साथ ही मैं उस खत को चूमने लगा। मुझे वो रिश्ता मिल रहा था जिसके लिए मैं बचपन से तरसा था, बहन का रिश्ता। मैंने कल सुबह जनानखाने में जाने का फैसला कर लिया था। यह फैसला करने के बाद मुझे एक रूहानी सकून सा मिल गया था।
Reply
06-04-2019, 01:11 PM,
#29
RE: Chodan Kahani जवानी की तपिश
मैंने उसी सोफे से अपना सिर टिका लिया और उसी हालत में मुझे नींद आ गई, कि अचानक किसी ने मेरे कंधे को पकड़कर झींझोड़ा । मैं चौंक कर उठ गया, और जल्दी से देखा तो मेरी एक साइड पर सारा खड़ी हुई थी। उसके चेहरे पर अजीब सा तसव्वुर फैला हुआ था।

मैंने उसे देखकर कहा-“क्या बात है, कुछ परेशान सी लग रही हो?”

उसी वक्त उसने दूर की तरफ इशारा करते हुए कहा-“वो देखो तुमसे कोई मिलने आया है…”

मैं दूर की तरफ देखा तो वहाँ एक बड़ी सी चादर में लिपटा हुआ कोई खड़ा था। उसने तो अपने चेहरे को भी मुकम्मल तौर पर ढका हुआ था। मैं जल्दी से अपनी जगह उठकर खड़ा हो गया। मेरे जेहन में अचानक से वो चादर वाली घूम गई, जो उस रात मेरे हाथों से निकलकर भागी थी। क्या यह वही थी? मैं हैरत की तस्वीर बना उसको देख रहा था।

चादर में लिपटी खातून ने गर्दन हिलाकर सारा को इशारा किया तो सारा ने जल्दी से आगे बढ़कर रूम का दरवाजा अंदर से लाक कर दिया और चिटकनी भी चढ़ा दी। मैंने इस दौरान गर्दन घुमाकर दीवाल घड़ी की तरफ देखा तो उस वक्त रात के 12:00 बज रहे थे। हम शहर में रहने वालों के लिए रात अभी स्टार्ट ही हुई थी। मगर वहाँ पर आधी रात गुजर चुकी थी। रूम में पिन ड्रॉप साइलेंस था। दिल की धड़कनों और दीवाल घड़ी की टिक-टिक सुनाई दे रही थी।

उस खातून ने एक नजर सारा की तरफ देखा और धीरे से खुद पर से चादर हटाने लगी। चादर के हटते ही मेरा दिल बहुत जोर-जोर से उछलने लगा। उस पर्दे के पीछे से एक बहुत ही खूबसूरत खातून, जिनकी उमर लगभग 30 से 35 साल होगी, मगर वो किसी भी तरह 25 से ज़्यादा की नहीं लग रही थी, और वो भी सिर्फ़ अपने भारी-भारी सीने और दोनों साईडों से बल खाती हुई कमर की गोलाईयों की वजह से। जिनसे अंदाज़ा हो रहा था कि जितना खूबसूरत फ्रंट है, उससे कहीं ज़्यादा बैक होगा। गोरा रंग, बड़ी-बड़ी आँखें ऐसी की उनमें एक बार डूबने के बाद फ़िर कभी उभरने का तिवार ही खतम हो जाए, रसीले होंठ, मैंने बड़ी मुश्किल से खुद को इस बेखुदी में जाने से रोका, जो उसे देखकर मुझे होने लगी थी।

मैंने खुद को संभाल लिया कि क्या पता यह कौन है? मुझे जल्दीबाजी के बजाए थोड़ा सबर से काम लेना चाहिए। इसी आसना में मुझ पर एक अचानक इफ्ताद आ पड़ी। वो खातून इतनी तेजी से मेरी तरफ बढ़ी की मुझे संभलने का कोई मोका ही ना मिल सका। अगले ही पल वो मेरे सीने से लगी रो रही थी। छोटे कद के कारण उनका सिर मेरे कंधों तक आ रहा था।

उसका लरजता हुआ बदन मुकम्मल तौर पर मेरे साथ चिपका हुआ था। मैं हैरान नजरों से कभी सारा की तरफ, और कभी उस खातून की तरफ देख रहा था। उसका पूरा जिश्म मेरे साथ सख्ती के साथ भिंचे होने और लंबे कद के फायदे के कारण अब मेरी नजरें वाजिए तौर पर उसकी कमर से होती हुई उसकी बैक तक जा रही थी।

जहाँ पर अपना अंदाज़ा 100 पर्सेंट दुरिस्त देखकर मुझे जहाँ खुशी हो रही थी, वहीं इतनी खूबसूरत अंदाज में गोलाई की शकल ली हुई भारी-भारी गाण्ड देखकर मैं पागल हो रहा था। मुझे महसूस हुआ कि मुझे अब जल्द से जल्द यह जान लेना चाहिए कि यह खातून कौन हैं?

ताकी मैं अपनी आँखों को मुकम्मल तौर पर इस बात की इजाजत दे सकूँ कि वो उस हसीन सरपे का दिल खोलकर और जी भरकर नजारा कर सके। ताकी मैं उसके साथ अपना सिलसिला कुछ आगे बढ़ाकर उसके हुश्न को खिराज -ए-तहसीन दे सकूँ।

मैंने उसे दोनों बाजू से पकड़कर खुद से अलग किया। जो कि मेरे लिए बड़ा ही आजमाइशी पल था। मैंने सवालिया नजरों से सारा की तरफ देखा तो वो शायद मेरी बात समझ गई थी।

सारा मेरे करीब आकर बोली-“छोटे साईं। यह आपकी बड़ी फूफो नरेन हैं…”
सारा के मुँह से यह बात सुनकर कि वो मेरी फूफो हैं। सारा की बात सुनकर मेरे सारे अरमानों पर पानी फ़िर गया। मैंने जल्दी से खुद को कंट्रोल किया और बड़ी हैरत से उनकी तरफ देखने लगा। फूफो नरेन ने अपनी आँसुओं से भरी आँखों से मुझे नजरें उठाकर देखा।

“फूफो…” उन्हें इस तरह अपनी तरफ देखते हुए देखकर मेरे मुँह से सिर्फ़ इतना ही निकल सका।

जिसके जवाब में उन्होंने अपने दोनों हाथों से मेरे चेहरे को अपने हाथों में लेते हुए कहा-“मैं कुरबान, मैं सदके मेरी जान। मैं तेरी फूफो। मेरे भाई की निशानी, हमारा वारिस, बाबा की दूसरी तस्वीर। हू-ब-हू अपने दादा पे गये हो…” उन्होंने अपने हाथों से पकड़कर मेरा सिर नीचे की तरफ झुकाया और मेरी पेशानी को बहुत ही मुहब्बत से चूमा।


मैं उनकी मुहब्बत और खुलुस देखकर खुद को दिल ही दिल में मालमत करने लगा कि मैं इनके बारे में क्या सोच रहा था? (उस वक्त तक मैंने कभी भी इन्सेस्ट सेक्स के बारे में नहीं सोचा था और न ही मैं इस चीज को पसंद करता था)
Reply
06-04-2019, 01:11 PM,
#30
RE: Chodan Kahani जवानी की तपिश
मैं उनकी मुहब्बत और खुलुस देखकर खुद को दिल ही दिल में मालमत करने लगा कि मैं इनके बारे में क्या सोच रहा था? (उस वक्त तक मैंने कभी भी इन्सेस्ट सेक्स के बारे में नहीं सोचा था और न ही मैं इस चीज को पसंद करता था)

जब से हमने सुना था की तुम इस दुनियाँ में आए हो। तब से तुम्हें देखने के लिए तड़प रहे हैं। लेकिन समाज और रिवाजों की जजीरों ने हमें मजबूती से जकड़ रखा था। मगर अब जब तुम इतने करीब आकर भी हमसे दूर जा रहे थे तो, मैं खुद को रोक ना पाई। आज मैंने वो तमाम जंजीरें तोड़ दी हैं। और आज मैं पहली बार इस जनानखाने के मजबूत दरवाजों से गुजरकर अपने बेटे, अपने भतीजे के पास आई हूँ, और अब मैं तुम्हें कहीं जाने नहीं दूँगी। तुम्हें कोई हक नहीं पहुँचता की तुम किसी जुर्म के बगैर हमें खुद से दूर रहने की सजा दो। अब तो अम्मा साईं भी यही चाहती हैं कि तुम अपनी हवेली में आ जाओ, और अपने तमाम जायज हकों को उसी तरह हासिल करो, जिस तरह इस हवेली का सही वारिस उसको हासिल करता है…”

कहकर एक बार फ़िर उन्होंने मुझे खुद के साथ भींच लिया और एक बार फ़िर बिलख-बिलख के रोने लगी-“तुम्हें हम यहाँ से कहीं जाने नहीं देंगे। हमारा अब कोई नहीं है, तुम्हारे सिवा…

उनकी मुहब्बत और तड़प देखकर मैंने एक बार फ़िर दोनों बाजू से पकड़कर उनको खुद से अलहदा किया तो वो चौंक पड़ी कि शायद मेरे ऊपर उनकी किसी बात का कोई असर नहीं पड़ा। मैंने मुश्कुराकर उन्हें देखा और उनको दोनों बाजू से पकड़कर उनके माथे को चूमते हुए कहा-“आप परेशान ना हों। मैं कहीं नहीं जा रहा। मुझे मेरी दो मासूम बहनों का पैगाम भी मिल चुका है। मैं तो खुद सुबह होने का इंतजार कर रहा था, ताकी सुबह होते ही सबसे पहले दादी हुजूर के कदमों में गिरकर उस ना-फरमानी की माफी माँग सकूँ जो चन्द दिन मैंने उनका अपने पास आने का हुकुम ना मानकर की थी…”

मेरी बात सुनकर फूफो नरेन और सारा के चेहरे पर खुशी के तसूर नुमाया थे। फूफो ने जल्दी से आगे बढ़कर एक बार फ़िर मुझे अपने गले से लगाया, और कहा-“मुझे यकीन था कि मेरे भाई का खून पानी नहीं हो सकता। वो हमें इस बीच मंझदार में छोड़कर नहीं जाएगा…” वो बहुत देर तक मेरे सीने से लगी रोती रही।

मैं उन्हें तसल्ली देता रहा। फ़िर फूफो नरेन कुछ देर मजीद रूम में रुकी, और फ़िर किसी के देख ना लिए जाने के डर से जल्द ही वहाँ से चली गई। और जाते-जाते भी मुझे ताकीद कर गई कि मैं सुबह जल्दी ही जनानखाने में आ जाऊँ। मैंने उनसे वादा कर लिया। फूफो नरेन ने मुझसे इस बात का भी वादा लिया कि मैं उनके यहाँ आने का किसी से भी जिकर ना करूँ।

फूफो के जाने के बाद मैं बेड पर आकर लेट गया। नींद मेरी नजरों से कोसों दूर थी। मैंने अपने बारे में कभी भी ऐसा नहीं सोचा था कि मुझे इतने जल्द ही अपने फ़ैसले खुद करने होंगे। मैं तो एक प्यार सा नौजवान था जिसकी लाइफ सिर्फ़ और सिर्फ़ तीन चीजों पर टिकी हुई थी। मेरी परिवार, स्पोर्ट में मार्शल आर्ट, और सेक्स। स्टडी को मैंने कभी 7वी क्लास के बाद संजीदगी से नहीं लिया था। मगर शायद में ***** गिफ्टेड था। जो इसके बावजूद भी हमेशा टाप ही करता था। खूबसूरत औरतें मेरी न जाने क्यों बचपन से ही कमजोरी थीं।

अम्मी अक्सर मजाक में कहती थी कि मैं तो बचपन में भी किसी मामूली सूरत की औरत की गोद में नहीं बैठता था। जहाँ कोई खूबसूरत खातून देखी नहीं कि फौरन उनकी गोद में जा बैठता था। स्कूल की स्टडी का सातवा साल था यानी कि मैं 7वी के एग्जाम्की तैयारी कर रहा था कि इसी दौरान हमारे स्कूल में एक नई टीचर सबा की एंट्री हुई।
Reply


Possibly Related Threads…
Thread Author Replies Views Last Post
  Raj sharma stories चूतो का मेला sexstories 201 3,408,304 02-09-2024, 12:46 PM
Last Post: lovelylover
  Mera Nikah Meri Kajin Ke Saath desiaks 61 534,028 12-09-2023, 01:46 PM
Last Post: aamirhydkhan
Thumbs Up Desi Porn Stories नेहा और उसका शैतान दिमाग desiaks 94 1,194,714 11-29-2023, 07:42 AM
Last Post: Ranu
Star Antarvasna xi - झूठी शादी और सच्ची हवस desiaks 54 903,055 11-13-2023, 03:20 PM
Last Post: Harish68
Thumbs Up Hindi Antarvasna - एक कायर भाई desiaks 134 1,602,593 11-12-2023, 02:58 PM
Last Post: Harish68
Star Maa Sex Kahani मॉम की परीक्षा में पास desiaks 133 2,036,721 10-16-2023, 02:05 AM
Last Post: Gandkadeewana
Thumbs Up Maa Sex Story आग्याकारी माँ desiaks 156 2,878,179 10-15-2023, 05:39 PM
Last Post: Gandkadeewana
Star Hindi Porn Stories हाय रे ज़ालिम sexstories 932 13,810,792 10-14-2023, 04:20 PM
Last Post: Gandkadeewana
Lightbulb Vasna Sex Kahani घरेलू चुते और मोटे लंड desiaks 112 3,939,473 10-14-2023, 04:03 PM
Last Post: Gandkadeewana
  पड़ोस वाले अंकल ने मेरे सामने मेरी कुवारी desiaks 7 276,371 10-14-2023, 03:59 PM
Last Post: Gandkadeewana



Users browsing this thread: 2 Guest(s)