Chodan Kahani जवानी की तपिश
06-04-2019, 01:07 PM,
#11
RE: Chodan Kahani जवानी की तपिश
मगर सलामू ने भी शायद सब सुन लिया था। उसने बड़े धीरे से चारों तरफ देखते हुये मुझे कहा-“छोटे साईन आप इनकी बातों पर ध्यान ना दें। ऐसे बकवास करना उनकी आदत है। लेकिन यह जमील शाह है बहुत ही जालिम आदमी। सारे हरी इससे घबराते हैं। इसलिए इसको कोई इनकार नहीं करता…”
मैंने खामोशी से सलामू की बात सुनी और किसी रद्दे अमल की इजहार नहीं किया। हम गाँव की गलियों में से गुजरते हुए एक शानदार किलानुमा इमारत के सामने जा पहुँचे। उसकी दीवारों को देखने के लिए भी गर्दन को ऊँचा करना पड़ता था। यह थी पीरों की हवेली। जिस जगह ताजेयात के लिए लोगों के बैठने का इंतज़ाम था, वो जगह भी किसी से कम नहीं थी। मगर इतनी बड़ी हवेली, जिसकी दीवारें लगभग 20 फीट ऊूँची थी, और एक बड़ा सा लकड़ी का गेट चौबारे वाले बुर्जो के साथ बीच में नसाब था। बिल्कुल इसी तरह जैसे पुराने जमाने के किलों (फ़ोर्ट) में होता था। यह हवेली भी एक छोटा किला ही लग रही थी। मैं जैसे ही वहाँ पहुँचा तो गेट पर खड़े गार्ड ने जल्दी से मेरे लिए बड़ा दरवाजा खोल दिया।

मुझे समझ नहीं आई की उस बड़े दरवाजे में छोटा दरवाजा भी था, जिससे हम बड़े आसानी से गुजर सकते थे तो, बड़ा दरवाजा क्यों खोला गया है?

सलामू ने शायद मेरे चेहरे पर इस हैरत को पढ़ लिया, कहा-“आप वारिस है इस गढ़ी के, और गढ़ी के वारिसों के लिए छोटा दरवाजा नहीं खुलता…”

सलामू की बात सुनकर मेरे चेहरे पर एक जहरीली मुश्कुराहट दौड़ गई। लेकिन मैंने सलामू को कहा कुछ नहीं। दिल में सोचा कि जो करते हैं करने दो। मैंने कौन सा हमेशा यहाँ रहना है? मैंने कदम आगे बढ़ा दिए। लेकिन मेरे दिमाग़ में तूफान मौजूद था। आज मैं उस हवेली में कदम रखने जा रहा था, जहाँ मेरी माँ को कभी दाखिल नहीं होने दिया गया। वो अपने आपको इस हवेली की बहू तसलीम करवाने का ख्वाब दिल में लेकेर हमेशा के लिए दुनियाँ छोड़ गई।

बाबा जो चाहते थे कि मेरी माँ यहाँ आये और इसी हवेली में राज करे। वो भी अब इस दुनियाँ में ना रहे। और आज मैं इस हवेली में क्यों दाखिल हो रहा हूँ? यह सब सोचकर मेरे कदम एक बार फ़िर रुक गये।

मुझे रुकता देखकर सलामू चौंक गया मेरे चेहरे के भाव पढ़कर सलामू ने जल्दी से मेरी पीठ पर हाथ रखा, और एक लंबी साँस लेकर बोला-“छोटे साईन, इस हवेली ने आपकी माँ को वाकई कुछ ना दिया हो, मगर इस हवेली में आना और अपनी गढ़ी संभालना आपके बाबा का बहुत बड़ा ख्वाब था। आज आप इस हवेली में दाखिल हो गये हो। गढ़ी भी दूर नहीं…”


मैंने लरजती नजरों से सलामू की तरफ देखा और उसके गले लग गया। मुझे किसी अपने की कमी महसूस हो रही थी। एक सलामू ही था जिसने मुझे गोद में खिलाया था, घुमाया था। वही था जो बाबा के साथ हमारे पास शहर आता था। बाबा अक्सर कहते था कि कभी कोई बुरा वक्त आए तो हम लोग सलामू पर आँखें बंद करके भरोसा कर सकते हैं।

और आज मुझे अहसास हो गया था कि सलामू गाँव का उजड्ड और अनपढ़ बंदा होने के साथ-साथ बहुत तजुर्बेकार आदमी था, जो मेरे चेहरे के भाव में से अंदाज़ा लगा गया कि मैं क्या सोच रहा हूँ? बाबा ने उसे अपने साथ रखकर यह फैसला भी सही किया था। सलामू मेरी पीठ को थपक रहा था। मुझे ऐसा लगा की शायद बाबा मेरी साथ ही हैं और मेरा होसला बढ़ा रहे हैं। मैंने नजरें भर का सलामू को देखा, तो उसके चेहरे पर एक मुहब्बत भरी मुश्कुराहट थी।

मैंने एक बार फ़िर कदम आगे बढ़ा दिया। मेनगेट के बाद बहुत दूर तक सीधा रास्ता जाता था जिसको दो हिस्सों में बाँटा गया जहाँ बीच में एक ग्रीन बेल्ट था और रोड के दोनों तरफ खूबसूरत लान। सामने दो मंज़िला हवेली अपनी और अपने रहने वालों की कदामत का मंज़र पेश कर रही थी। सूरज ढलने ही वाला था, रोशनी हल्की होने लगी थी इसी दौरान किसी ने हवेली की तमाम लाइटें जला दी थी। लेकिन इतनी बड़ी हवेली होने के बावजूद ऐसा लगता था कि पूरी हवेली खाली है। कहीं कोई आवाज सुनाई नहीं दे रही थी।

हवेली के मेनगेट के सामने एक बहुत बड़ा कार पोर्च बना हुआ था। हम लोग मेनगेट से जैसे ही अंदर दाखिल हुए तो सामने एक बहुत बड़ा हाल था, जिसकी छत दूसरी मंज़िल की छत तक चली गई थी और उसके ऊपर एक गुंबदनुमा छत बनी हुई थी, जिसमें एक बहुत कीमती फ़ानूस लटक रहा था। हाल को बहुत ही कीमती चीजों से सजाया गया था। मेनगेट के बिल्कुल सामने एक और बड़ा गेट था जो बंद था।

मुझे उस गेट को दिखाते हुए सलामू ने कहा-“यह जनानखाने का गेट है और इस तरफ किसी गैर मेहराम को जाने की इजाजत नहीं…”

मैंने एक गहरी नजर से इस दरवाजे की तरफ देखा, और फ़िर दायें और बायें तरफ बनी हाल के साईड से राहदारियों की तरफ देखा जिसमें हल्की सी रोशनी फैली हुई थी। मैं आगे बढ़कर हाल के बीचोबीच आया और उन राहदारियों की तरफ देखा तो उनमें तरतीब के साथ दोनों तरफ दरवाजे और खिड़कियाँ नजर आईं।

सलामू ने फ़िर कहा-“यह मेहमान खाने हैं…” फ़िर सलामू मुझे लेकर एक तरफ बनी हुई सीढ़ियों से ऊपर की मंज़िल की तरफ बढ़ गया।

मैं जैसे ही ऊपर पहुँचा तो सामने बने हुए एक कमरे का अचानक से दरवाजा खुला और एक बहुत ही खूबसूरत लड़की, मामूली से कपड़ों में सिर पर दुपट्टा ओढ़े बाहर निकली। उसने अपने हाथ में एक ट्रे उठाई हुई थी। वो मामूली कपड़े भी उसकी खूबसूरती में कोई कमी नहीं ला पा रहे थे। उसकी बड़ी-बड़ी आँखें साँवला बदन, और सीने के उभार उसकी भरपूर जवानी का पता दे रहे थे। वो दरवाजे से निकलते ही मुझे और सलामू को देखकर चौंक गई। उसने जल्दी से एक हाथ से अपने दुपट्टे को चेहरे पर कर लिया, जैसे मुझसे परदा करना चाह रही हो।

मैंने उसे ऐसा करते देखकर उसपर से नजरें हटा ली।

सलामू उसे परदा करते देखकर जल्दी से बोला-“अरे छोरी चेहरा क्यों छुपा रही हो? यह कोई गैर नहीं हैं। इस हवेली के मालिक और वारिस छोटे साईन हैं…”

छोटे साईन का सुनकर उस लड़की को जैसे झटका सा लगा, और दुपट्टा उसके हाथ से गिर सा गया और वो फौरन आगे बढ़ी और मेरे कदमों में बैठकर मेरे पैर चूमने लगी।
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06-04-2019, 01:07 PM,
#12
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सलामू उसे परदा करते देखकर जल्दी से बोला-“अरे छोरी चेहरा क्यों छुपा रही हो? यह कोई गैर नहीं हैं। इस हवेली के मालिक और वारिस छोटे साईन हैं…”

छोटे साईन का सुनकर उस लड़की को जैसे झटका सा लगा, और दुपट्टा उसके हाथ से गिर सा गया और वो फौरन आगे बढ़ी और मेरे कदमों में बैठकर मेरे पैर चूमने लगी।

मैं उसकी यह हरकत देखकर घबरा सा गया। मैंने जल्दी से नीचे देखा तो मेरी आँखें फटी की फटी रह गई। नीचे बैठे हुए उसके खुले गले से उसका आधा खुला सीना बिल्कुल सॉफ दिखाई दे रहा था। यहाँ तक कि उसके सीने पर कोई ब्रा भी नजर नहीं आ रही थी।

मुझे इस तरह नीचे देखते हुए देखकर सलामू ने जल्दी से कहा-“साईन यह हवेली की नौकरानी है। अपना बख्सु है ना मलही, उसकी बेटी है, और मुरीद है आपकी…”

मैंने सलामू की बात सुनकर जल्दी से अपना चेहरा ऊपर किया, और सलामू को देखने लगा। मैंने अपने चेहरे के भाव को सलामू से छुपाते हुए अपने चेहरे को नॉर्मल रखा। मुझे डर था कि कहीं सलामू मेरी चोरी पकड़ ना ले। मैंने गर्दन हिलाई और उससे थोड़ा दूर हटकर खड़ा हो गया।

सलामू ने मुझे दूर होते देखकर जल्दी से उसे कहा-“चल उठ सारा, और जल्दी से छोटे साईन के लिए खाने का इंतज़ाम कर…”

वो जल्दी से उठी और तेज-तेज कदमों से सीढ़ियाँ उतरती हुई जनानखाने वाले दरवाजे में गायब हो गई। मेरी नजरें उसका पीछा कर रही थीं। मैं खुद पर काबू नहीं रख पा रहा था। वो जितनी सामने से खूबसूरत थी, उतनी ही पीछे से भी। उसकी उभरी-उभरी गाण्ड के दोनों पाट उसके तेजी से सीढ़ियों से उतरते वक्त इस तरह हिल रहे थे, जैसे कहीं किसी की दिल की रियासत में जलजला आ गया हो। मुझे अपने अंदर कुछ ऐंठन सी होने लगी।

मेरा बचपन में ही हुश्न परस्त वाकिया हुआ था। जिंदगी में पहली बार मेरा दिल सिक्स क्लास में अपनी एक खूबसूरत टीचर को देखकर बहुत धड़का था और उसकी धड़कन 8वी क्लास में पहुँचकर उसी टीचर ने रोकी थी। क्या गजब की टीचर थी। वो मेरी स्कूल टीचर होने के इलावा मेरी सेक्स टीचर भी थी। उसने मुझे सेक्स के मामले में इतना ठीक कर दिया था कि मेट्रिक तक आते-आते मैं अपनी कितनी ही क्लास फेलोज को अपनी मर्दानगी का सबूत दे चुका था।

सलामू की आवाज ने मुझे अपने खयालों से चौंका दिया-“छोटे साईन, क्या सोच रहे हैं?”

“कुछ नहीं…” मैंने जल्दी से कहा।

सलामू मुझे लेकर एक कमरे के दरवाजे की तरफ बढ़ा, और दरवाजा खोलकर मुझे अंदर दाखिल होने का इशारा किया। मैंने कमरे में दाखिल होकर एक नजर कमरे पर डाली। बहुत ही शानदार और सजा हुआ रूम था। रूम की एक-एक चीज से मालिकों की अमीरी का पता चलता था।


मैं अभी चारों तरफ देख ही रहा था कि सलामू ने जल्दी से कहा-“छोटे साईन आप जल्दी से नहा धो लें। मैं आपके लिए रात के कपड़े निकाल देता हूँ…”

मैंने हैरत से सलामू को देखते हुए जुमला दोहराया-“रात के कपड़े?”

सलामू मुश्कुराते हुए-“जी छोटे साईन, आपके मामूजान वापिसी में आपके कपड़ों का बैग मुझे दे गये थे। उसमें से कपड़े निकालकर मैंने इस अलमारी में रखवा दिए हैं…”

मैंने बड़े से डबलबेड पर बैठते हुए अपने जूते उतारे। इस दौरान सलामू जल्दी से एक दो पट्टे वाली चप्पल ले आया, जो एक साइड पर रखी हुई थी। मैंने उन्हें यह करता देखकर जल्दी से कहा-“चाचा, आप मेरे लिए ये सब ना किया करें। आप मेरे बड़े हैं, और वैसे भी मुझे यह सब पसंद नहीं…”

मेरी बात सुनकर सलामू की आँखों में आँसू भर आए, और उसने शराफत भरे अंदाज में जल्दी से कहा-“अच्छा छोटे साईन आइन्दा नहीं करूँगा। बस आप जल्दी से फ्रेश हो जाओ। सारा अभी खाना लाती ही होगी…”

मैं मुश्कुराता हुआ वाशरूम की तरफ बढ़ गया। वाशरूम में पहुँचकर मैं अपने कपड़े उतारकर शावर के नीचे खड़ा हो गया। शावर में गरम पानी का कनेक्शन भी मौजूद था। मैंने मिक्सर सेट किया और उसके साथ ही जिश्म को सकून देता हुआ गरम पानी मेरे बदन पर गिरने लगा। जिसके कारण मेरे जिश्म की सारी थकान उतरने लगी और मैंने अपनी आँखें बंद की तो, घर की नौकरानी सारा एकदम से मेरी नजरों के सामने घूम गई। उसका गोरा और साँवला जिश्म का खयाल मेरे अंदर गर्मी बढ़ाने लगा।

वालिदान की जुदाई के दुख में सारा का नजर आना मेरे लिए एक खुशगवार अहसास था। लेकिन एक लम्हे में ही अम्मी और बाबा की जुदाई का दुख मेरे ऊपर फ़िर से हावी होने लगा। और पता नहीं कब शावर से बहते पानी की बूँदों के साथ ही मेरी आँखों से भी आँसू की धारा बहने लगी। ना मालूम कितना वक्त गुजर गया, जिसका मुझे अहसास ही ना रहा। वाशरूम का दरवाजा बजने की आवाज पर मैं चौंका, और जल्दी से शावर बंद करके बाहर की आवाज सुनने लगा।

बाहर सलामू मुझे पुकार रहा था-“छोटे साईन, छोटे साईन…”

मैंने जल्दी से दरवाजे के करीब जाकर जवाब दिया-“जी चाचा…”

सलामू-साईन आपके कपड़े ले लें, और सारा खाना भी ले आई है।

मैंने थोड़ा सा दरवाजा खोलकर चाचा से नाइट ड्रेस ले ली। ट्राउजर और शर्ट लेकर मैंने जल्दी से चेंज किया और बाहर निकल आया। बाहर रूम में सारा एक तरफ फर्श पर बैठी थी और उसने खाने की ट्रे सोफा के सामने रखी टेबल पर रखी हुई थी। मुझे आता देखकर वो जल्दी से खड़ी हो गई। सलामू भी एक साइड पर मौजूद था। सारा को देखकर मेरे दिल की धड़कनें एक बार फ़िर तेज हो गई थीं। मगर मैंने खुद पर कंट्रोल करते हुए आगे बढ़कर सोफा पर बैठ गया, जिसके सामने खाने की ट्रे, एक टेबल पर सफेद कपड़े से ढकी हुई थी। सारा ने जल्दी से आगे बढ़कर खाने की ट्रे पर से पाश हटाया तो पूरी ट्रे कई तरह के खानों से भरी हुई थी।
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06-04-2019, 01:07 PM,
#13
RE: Chodan Kahani जवानी की तपिश
मैंने थोड़ा सा दरवाजा खोलकर चाचा से नाइट ड्रेस ले ली। ट्राउजर और शर्ट लेकर मैंने जल्दी से चेंज किया और बाहर निकल आया। बाहर रूम में सारा एक तरफ फर्श पर बैठी थी और उसने खाने की ट्रे सोफा के सामने रखी टेबल पर रखी हुई थी। मुझे आता देखकर वो जल्दी से खड़ी हो गई। सलामू भी एक साइड पर मौजूद था। सारा को देखकर मेरे दिल की धड़कनें एक बार फ़िर तेज हो गई थीं। मगर मैंने खुद पर कंट्रोल करते हुए आगे बढ़कर सोफा पर बैठ गया, जिसके सामने खाने की ट्रे, एक टेबल पर सफेद कपड़े से ढकी हुई थी। सारा ने जल्दी से आगे बढ़कर खाने की ट्रे पर से पाश हटाया तो पूरी ट्रे कई तरह के खानों से भरी हुई थी।



मैं इतना सब कुछ देखकर घबरा गया, और जल्दी से बोला-“यह सब इतना कुछ कौन खाएगा? मुझे तो वैसे भी कुछ अच्छा नहीं लग रहा…”

मेरी बात सुनकर सारा जल्दी से शोख अंदाज में बोली-“कहाँ साईं। यह सब तो मैं अकेले ही खा जाऊँ, और आप तो इतने तगड़े जवान हो, आप नहीं खा पाओगे?”

उसकी बात सुनकर सलामू जल्दी से बोला-“छोरी ज़्यादा जबान मत चला…” फ़िर मेरी तरफ देखकर बोला-“छोटे साईं, आपने जो खाना हो वो खा लें, बाकी यह वापिस ले जाएगी। और इस छोरी की बातों को दिल पर मत लेना, इसे तो ऐसे ही ज़्यादा बोलने की आदत है…”
मैंने सारा की तरफ देखा तो वो सलामू चाचा की डाँट सुनकर मुँह फुलाए एक तरफ खड़ी थी। मैंने शोख नजरों से उसकी तरफ देखा, और खामोशी से खाना खाने लगा।

इसी दौरान चाचा सलामू बोले-“छोटे साईं। आप खाना खाकर आराम करिए, मैं दूसरे मेहमानों का इंतज़ाम देख लूँ । सरकार की तदफीन पर बहुत दूर-दूर से लोग आए हुए हैं…”
मैंने गर्दन हिलाते हुए चाचा सलामू को जाने का इशारा किया, और वो बाहर निकल गया। चाचा सलामू के बाहर निकलते ही सारा जल्दी से मेरे करीब आकर टेबल के पास बैठ गई। मैंने नजरें उठाकर सारा की तरफ देखा। वो बड़ी मासूमियत से मुझे देख रही थी। मुझे अपनी तरफ देखते हुए पाकर उसने कहा-“साईं, आपने अपने दादा साईं की तस्वीर देखी है?”


मैंने हल्के से कहा-“नहीं…”

उसने जल्दी से कहा-“आप बिल्कुल अपने दादा जैसे दिखते हैं। लोग कहते हैं कि वो भी आपकी तरह ही जवानी में ऐसे ही गबरू जवान थे…”

मैंने उसे देखते हुई कहा-“तुमने मेरे दादा की तस्वीर कहाँ देख ली?”

उसने जल्दी से कहा-“बड़ी साईं के रूम में आपके दादा की बहुत बड़ी तस्वीर लगी हुई है…”

मैंने उसका जवाब सुनकर कोई जवाब नहीं दिया और फ़िर से खाने लगा। मैं जानबूझ कर उसकी तरफ से नजरें चुरा रहा था। उसकी गहरी और बड़ी-बड़ी खूबसूरत आँखें मुझे अपनी तरफ खींच रही थीं, और मैं इस वक़्त जबकी मेरे वालिदान को गुजरे हुए दो दिन भी नहीं हुए थे, ऐसा कुछ नहीं करना चाहता था कि जिस पर मुझे अपने आप पर शर्मिंदा होना पड़े।

उसने एक बार फ़िर जल्दी से कहा-“छोटे साईं, अब आप यही रहोगे ना?”

उसकी इस बात पर मैंने एक बार फ़िर नजरें उठाकर उसे देखा। उसकी आँखों में एक हसरत सी महसूस हुई और एक बे-यकीनी का अहसास भी हुआ, कि कहीं मैं यह ना कह दूँ कि मैं यहाँ नहीं रहूँगा।

मैंने उसकी बे-यकीनी को यकीन में बदल दिया। उसपर से नजरें हटाते हुए हल्के से कहा-“नहीं…”

“क्यों, आप यहाँ क्यों नहीं रहेंगे? यह सब कुछ आप ही का तो है, और अब आप इस गढ़ी के वारिस भी तो हैं…” उसके लहजे में एक तड़प सी थी।

मैंने अपना हाथ खाने से रोक लिया। मेरे चेहरे पर उसकी बात सुनकर एक बार फ़िर गुस्से के भाव आ गये थे। मैंने बड़ी मुश्किल से खुद पर कंट्रोल करते हुए, सख़्त आवाज में उसे कहा-“मेरा इस गढ़ी से कोई ताल्लुक नहीं और ना ही मुझे इस तमाम दौलत और जायदाद का कोई शौक है। मैं बाबा के सोयम के बाद एक लम्हा भी यहाँ रुकना पसंद नहीं करूँगा…”

“मगर उनका क्या होगा, जो आपसे बहुत सी उम्मीदें लगाए बैठे हैं?” सारा ने कहा।

मैंने हैरत से सारा की तरफ देखा-“किसका क्या होगा? कौन मुझसे उम्मीदें लगाए बैठा है?”

सारा-आपकी दादी, आपकी दूसरी माँ, आपकी दो बहनें, और इस इलाके के वो तमाम लोग जो आपके बाबा के वफादार थे और अब आपके हैं।

मैं-“मेरा उन लोगों से कोई ताल्लुक नहीं। जिनको मैं नहीं जानता। मेरा रिश्ता इस गाँव के हवाले से सिर्फ़ अपने बाबा के साथ था, जो अब टूट चुका है…” कहकर मैंने उसके चेहरे को देखा तो उसकी बड़ी-बड़ी आँखें पानी से भरी हुई थीं। मुझे देखकर सारा उठ गई और अपने दुपट्टे से अपनी आँखों में आए आँसू को सॉफ किया और जल्दी से एक साइड पर रखे फ्रिज की तरफ बढ़ गई। फ्रिज खोलकर उसने एक पानी की बोतल निकाली और साइड टेबल पर रखा ग्लास उठाकर मेरी तरफ बढ़ी।

मैं खामोशी से उसे यह सब कुछ करते देखता रहा।

फ़िर उसने बोतल खोलकर एक ग्लास पानी का भरा, और मेरे सामने बोतल और ग्लास दोनों रख दिए। फ़िर रुंधी हुई आवाज में बोली-“साईं, आप आराम से खाना खा लें, मैं यह बर्तन सुबह ले जाऊँगी…” यह कहकर वो तेजी से रूम से बाहर निकल गई, और मैं चाहते हुए भी रोक ना पाया।
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06-04-2019, 01:07 PM,
#14
RE: Chodan Kahani जवानी की तपिश
खाने के बर्तन मेरे सामने पड़े रहे, और मुझे अब खाना भी अच्छा नहीं लग रहा था। मैंने हाथ बढ़ाकर पानी का ग्लास उठाया, और थोड़ा सा पानी पीकर वापिस रख दिया। मैंने सामने वाली टेबल से अपनी टांगे एक तरफ करते हुए सीधी की, और वहीं पर सोफा से टेक लगा ली। मेरे जेहन में एक बार फ़िर माँजी के दरीचे खुल गये। बाबा, अम्मा के साथ गुजरे हुए खुशियों के पल, बाबा की बातें जो उस वक्त मुझे समझ में नहीं आती थी। लेकिन आज कुछ-कुछ समझ में आने लगी थी।

एक दिन जब मैं और बाबा, एक वाटर-फ़िल्टर कंपनी को 10 वाटर फ़िल्टर प्लांट का आडटर देकर गाड़ी में आ रहे थे तो मैंने बाबा से पूछा था-“बाबा इतने वाटर फ़िल्टर प्लांट का आप क्या करेंगे? कोई नया बिज्निस स्टार्ट करने का इरादा है क्या?”

जिस पर बाबा ने मुझे देखकर मुश्कुराते हुए कहा था-“ऐसा ही समझ लो। लेकिन इस बिज्निस में से पैसे की आमदनी नहीं होनी…”

मैं-तो फ़िर? मैंने हैरत से बाबा को देखते हुए कहा।

बाबा-सिर्फ़ दुआयें और मुहब्बतें मिलनी हैं। जो एक दिन तुम्हारे काम आयेंगी।

मैं-“मैं समझ नहीं पाया बाबा…” मैंने मुश्कुराकर बाबा को देखते हुए कहा।

बाबा-बेटे हमारी जागीर में बहुत से छोटे मोटे गाँव आते हैं। उनमें से कितने ही गाँवो में पीने का मीठा और सॉफ पानी मौजूद नहीं है। मैंने यह तमाम फ़िल्टर वहीं लगवाने हैं ताकी गाँव के लोगों को सॉफ और मीठा पानी मिल सके।

मैं-लेकिन बाबा। नॉर्मेली जागीरदार तो इस तरह नहीं करते। आप भी तो जागीरदार हैं, फ़िर यह सब कुछ?

बाबा-तुम्हें किसने कहा कि जागीरदार इस तरह नहीं करते?

मैं-बाबा, जनरली मेरे साथ भी कुछ लड़के पढ़ते हैं, जो अपने गाँव के जागीरदारों के बेटे हैं। वो तो अपने गाँव के लोगों को अपना गुलाम समझते हैं, और बहुत बुरा सलूक करते हैं। और हाँ टीवी पर भी तो मुख्तलिफ प्रोग्राम्स वगैरा में दिखाते हैं की अन्द्रुन सिंध रहने वाले लोगों के साथ उनके वादरे वगैरा किया करते हैं…”

बाबा इस दौरान मुश्कुराते हुए मुझे देखते रहे-“तुम सही कह रहे हो। मैं इस बात से इनकार नहीं करूँगा कि ऐसा कुछ नहीं होता। जितना बुरा सोच सकते हो उससे भी बुरा होता है। मगर सब एक जैसे भी नहीं हैं। और असल बात यह है कि यह गाँव वाले एक लिहाज से हमारी रियाया हैं, और हम इनके बादशाह, या मालिक। अगर यही नहीं रहेंगे तो हमारी बादशाहत किस पर होगी? और हमने मरकर भगवान को भी तो मुँह दिखाना है…”

बाबा की बात सुनकर मुझे अपने बाबा पर फख्र सा महसूस होने लगा कि मेरे बाबा इतने अच्छे दिल के मालिक हैं। मैंने मुश्कुराकर बाबा के कंधे पर सिर रखकर कहा-“बाबा आप बहुत अच्छे हैं…”

बाबा-“और मुझसे भी अच्छा तुमने बनना है। एक दिन यह सब कुछ तुमने ही संभालना है…”

बाबा की बात सुनकर मैंने बाबा को तो कोई जवाब नहीं दिया मगर मेरे दिल में उस वक्त यही खयाल था कि ऐसा मोका कभी नहीं आएगा। मैं बाबा का यह खवाब पूरा नहीं कर पाऊूँगा तब तक, जब तक दादी मेरी माँ को उस हवेली में कबूल नहीं कर लेती। यह सब सोचते-सोचते पता नहीं कब मेरी आँख लग गई थी। कि मेरी आँख दीवार पर होने वाली वाकफे से टक-टक की आवाजों से खुल गई। मैंने जल्दी से रूम में चारों तरफ नजर दौड़ाई मगर रूम में कुछ नहीं था। इसी दौरान गौर करने से महसूस हुआ कि यह आवाज उस दीवार में से आ रही थी, जिसके साथ लगे सोफे पर मैं उसी दीवार के साथ सोया हुआ था।

पहले तो मैने दीवार घड़ी में वक्त देखा तो रात का एक बज चुका था। मुझे वहाँ सोये हुए तकरीबन 7 घंटे हो चुके थे। मुझे महसूस हुआ कि मेरी नींद शायद पूरी हो चुकी थी, क्योंकी मैं सरे शाम ही सो गया था। इसीलिए इस हल्की सी आवाज पर भी मेरी आँख खुल गई थी। मैंने दीवार से कान लगाकर कुछ सुनने की कोशिस की। ऐसा महसूस हुआ कि कोई चीज हर 3 से 5 सेकेंड के वाकफे के साथ दीवार से टकरा रही है। मगर मैं समझ नहीं पाया कि यह है क्या। मैंने सोचा कि देखना चाहिए कि यह क्या मुसीबत है? मैं उठकर दरवाजे की तरफ बढ़ा। दरवाजा खोलकर मैंने राहदरी में देखा तो वो दूर-दूर तक सुनसान पड़ी हुई थी। मैंने उस तरफ देखा जिस तरफ से आवाज आ रही थी।

तो उस तरफ एक रूम का दरवाजा नजर आया, और उससे पहले एक बड़ी खिड़की मेरे रूम के दरवाजे से 10 फीट की दूरी पर मौजूद थी, और उसी खिड़की से हल्की सी रोशनी छनकर बाहर आ रही थी। मैं उस खिड़की की तरफ बढ़ गया, और उसके सामने पहुँचकर मैंने अंदर कुछ सुन-गुन लेने की कोशिस की, तो मैं चौंक गया। अंदर से सेक्स में डूबी हल्की-हल्की आवाजें बाहर तक आ रही थीं। यह आवाजें सुनकर में फौरन समझ गया कि दीवार पर होने वाली हल्की-हल्की आवाजें उन्हीं धक्कों की हैं जो कोई दबा के लगा रहा है, और उसके कारण शायद बेड दीवार से टकरा रहा था। जिसके कारण दीवार में से आवाजें आ रही थीं।

एक लम्हे के लिए मेरे जिश्म के तमाम बाल खड़े हो गये। लेकिन फ़िर जल्दी से मुझे खयाल आया कि यहाँ कौन हो सकता है? यह तो मर्दानखाना है। यहाँ किसी औरत का होना और वो भी इस वक्त? हैरत की बात थी। अब मेरा फितरती जासूस मुझे इस बात के लिए मजबूर कर रहा था कि मैं उसे देखूँ कि यह कौन है? और आज जबकी इस हवेली के मालिक के तदफीन को गुजरे 24 घंटे भी नहीं हुए। तो कौन ऐसा है जो आज के दिन इस मर्दानखाने में अय्याशी कर रहा है?
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06-04-2019, 01:08 PM,
#15
RE: Chodan Kahani जवानी की तपिश
एक लम्हे के लिए मेरे जिश्म के तमाम बाल खड़े हो गये। लेकिन फ़िर जल्दी से मुझे खयाल आया कि यहाँ कौन हो सकता है? यह तो मर्दानखाना है। यहाँ किसी औरत का होना और वो भी इस वक्त? हैरत की बात थी। अब मेरा फितरती जासूस मुझे इस बात के लिए मजबूर कर रहा था कि मैं उसे देखूँ कि यह कौन है? और आज जबकी इस हवेली के मालिक के तदफीन को गुजरे 24 घंटे भी नहीं हुए। तो कौन ऐसा है जो आज के दिन इस मर्दानखाने में अय्याशी कर रहा है?

मैंने पीछे हटकर पूरे कमरे की दीवार का जायजा लिया, कि शायद मुझे कोई ऐसी जगह नजर आ जाए जहाँ से मैं यह सब देख सकूँ। मैंने जल्दी से आगे बढ़कर दूर के एक छेद से आँख लगाकर देखने की कोशिस की। मगर मैं अपनी कोशिस में कामयाब ना हो सका। मैं एक बार फ़िर खड़ा हो गया, और कमरे का जायजा लेने लगा। कमरे की दीवार सीधी कोने तक चली गई थी। जहाँ से ऊपर के मंज़िल की सीढ़ियाँ नीचे की तरफ जा रही थी। मैं जल्दी से उस तरफ बढ़ा तो उस तरफ की दीवार को देखकर ही मेरा दिल बल्लियों उछलने लगा। दीवार के इस तरफ 8 फीट की ऊँचाई पर एक रोशनदान मौजूद था, जहाँ तक मैं थोड़ी कोशिस से आसानी से पहुँच सकता था, और अंदर होने वाला कारनामा देख सकता था।

मैंने फौरन ही इधर-उधर नजर दौड़ाई ताकी मैं कोई ऐसी चीज ढूँढ सकूँ, जिसपर चढ़कर मैं उस रोशनदान तक पहुँच सकूँ। मेरी नजर एक तरफ रखी साइड टेबल पर पड़ी, जिसके ऊपर एक खूबसूरत सा शो-पीस रखा हुआ था। मैंने जल्दी से उस शो-पीस को उस टेबल से उतारकर नीचे रखा, और टेबल को उठाकर ठीक उस रोशनदान के नीचे लाकर रख दिया। टेबल रखने के बाद मैंने एक नजर चारों तरफ घुमाई। कहीं कोई मुझे यह सब करते हुए देख तो नहीं रहा? मगर यह देखकर मुझे तसल्ली हुई कि हर तरफ नीम अंधेरे और खामोशी का आलम था।

मैंने लकड़ी के लगे हुए बॉर्डर को पकड़कर नीचे हाल कमरे की तरफ देखा तो वो भी खाली था। जिस जगह टेबल मौजूद था वहाँ पर बरे-ए-रास्ते तीन जगह से नजर पड़ रही थी, नीचे में हाल, जनानखाने के दरवाजे, और ऊपर के पोर्शन में दूसरी तरफ की राहदरी से। लेकिन मैं यह खतरा लेने के लिए तैयार था। मैं जल्दी से टेबल पर चढ़ गया और रोशनदान जो की बहुत ही थोड़ा सा खुला हुआ था, उसको पकड़ते हुए हल्के से मजीद खोला तो, वो बड़े आराम से खुल गया। उसके खुलते ही मेरी नजरें सीधी टेबल-लैंप जो कि बेड की साइड पर जल रहे थे, उनकी हल्की रोशनी में सीधी बेड पर पड़ी।

जहाँ एक शख्स जिसकी नंगी कमर और पीछे गाण्ड के दोनों अकड़े हुए पाटों के साथ, जिनको देखकर ऐसा लग रहा था कि वो चुदाई में पूरी जान लगा रहा था, और उसकी दोनों टांगे नजर आ रही थी। उसके नीचे दबी हुई औरत तो मुझे नजर ना आ सकी लेकिन उसके दोनों पैर जो कि उस शख्स के कंधों पर रखे हुए थे, और उसकी गाण्ड का निचला हिस्सा जो उस शख्स की दोनों रानों के बीच में से नजर आ रहा था।

जिस पर लटके हुए उस शख्स के बड़े बड़े टट्टे बार-बार हर शाट के साथ लग रहे थे और उनके कारण उसकी गाण्ड का सुराख भी नजर नहीं आ रहा था। लेकिन उसके चूतर के हुश्न को यह नीम अंधेरा भी छुपा नहीं पा रहा था। उसके भरे-भरे और गोरे-गोरे चूतर देखकर ही अंदाज़ा हो रहा था कि जो भी औरत उसके नीचे है, वो बहुत शानदार है। भरे हुए और मजबूत जिश्म का वो आदमी उसकी टांगे उठाये हुए जमा जमा कर उसकी चूत पर अपने शाट मार रहा था। उसके धक्के बड़े जानदार थे।

जिसके कारण उस औरत की मुसलसल लज़्जत में डूबी हुई आवाजें सुनाई दे रही थी-“आआह्ह… अह्ह… मर गई आह्ह…”

रूम का रोमांटिक माहौल देखकर मेरे शेर में भी जान आना शुरू हो गई थी। मैं सारा को देखकर वैसे ही अपने आपको बड़ी मुश्किल से रोक पाया था, और अब यह मंज़र तो मेरी हालत खराब कर रहा था। लेकिन एक बेचैनी जो मुझे बार-बार यह सोचने पर मजबूर कर रही थी कि आख़िर यह कौन है? इसका इस हवेली से क्या ताल्लुक है, जो हवेली के मर्दानखाने में मौजूद है? और बिना किसी खौफ के वो यहाँ किसी की चूत भी मार रहा है? और वो भी ऐसे वक्त पर जब इस हवेली का मालिक, गढ़ी का वारिस, एक हादसे में मर चुका है, और पूरी हवेली पर मातम की हालत छाई हुई है। ऐसे वक्त में तो कोई ऐसा ही होगा जिसको मेरे वालिद के जाने का कोई दुख ना हो?
***** *****

ठंड के मौसम में भी मुझे वहाँ पर खड़े हुए गर्मी महसूस हो रही थी। यह गर्मी मेरे अंदर की थी, जो अब मुझे बेचैन कर रही थी। अंदर से आती हुई सेक्स से भरपूर आवाजें मेरी गर्मी में इजाफा कर रही थीं। मगर सेक्स से ज़्यादा मुझे जासूस मजबूर कर रहा था कि मैं वहाँ पर रुक कर अंदाज़ा लगाने की कोशिस करूँ कि यह कौन हैं?

अब उनकी पोजीशन बदल चुकी थी। वो शख्स इसी कंडीशन में सामने होते हुए ही उस औरत को डोगी स्टाइल की पोजीशन में ले आया था, और अब वो उसे डोगी स्टाइल में दबा-दबा के चोद रहा था। शायद उसकी मंज़िल करीब थी। उसके धक्कों की स्पीड में इजाफा आ चुका था और इन्ही धक्कों को ना संभालते हुए बेड साइड पर रखे हुये साइड से एक टेबल लैंप जोरदार आवाज से नीचे गिर गया, और उसका बल्ब टूटने की वजह से कमरे में होने वाली रोशनी और भी कम हो गई थी। लैंप के गिरने और टूटने से उनकी शानदार चुदाई पर कोई फरक नहीं पड़ा। वो लोग इसी तरह अपनी चुदाई एंजाय कर रहे थे।


अब औरत की आवाजें कुछ और भी तेज हो गई थीं, और मजीद 5 मिनट की चुदाई के बाद उस औरत की तेज-तेज आवाजों से सॉफ अंदाज हो रहा था कि वो अपनी मंज़िल पर पहुँच चुकी है। उसके हिलने की रफ़्तार में कमी आ गई थी। पहले जो वो मर्द के साथ ही जोर-जोर से पीछे की तरफ हिल-हिल कर धक्के मार रही थी अब वो बंद हो चुके थे। मजीद 5 मिनट की चुदाई के बाद उस शख्स की भी जोरदार आवाजें अब जिबह किए हुए जानवर की गुर्राहटो में बदल चुकी थीं। उसका जिश्म भी अकड़ने लगा था और फ़िर वो एक शानदार गुर्राहट के साथ जो उसने रूम की छत की तरफ गर्दन उठाकर निकाली थी, अपनी मंज़िल को पहुँच गया था।

इसी हालत में एक दो झटकों के बाद वो उस औरत के साथ ही मुँह के बल बेड पर गिर गया। औरत पेट के बल बेड पर पड़ी हुई थी और मर्द उसके ऊपर ही गिरा हुआ था। जिसके कारण वो उसके नीचे दबी सॉफ नजर नहीं आ रही थी। वैसे भी अब एक साइड लैंप जिसमें कम पावर का बल्ब लगा हुआ था उसकी रोशनी में वो लोग मुझे ठीक से नजर नहीं आ रहे थे।

थोड़ी देर के बाद उस औरत ने खुद को उसके नीचे से निकाला और दोनों पैर लटका कर बेड पर बैठ गई। वो शख्स उसी तरह बेसूध पेट के बल बेड पर पड़ा हुआ गहरी-गहरी साँसें ले रहा था। उसकी तेज साँसों से ऐसा लगता था कि कई मील दौड़ता हुआ आया हो। उस औरत ने एक नजर उसकी तरफ देखकर बेड से नीचे पड़े अपने कपड़े उठाने लगी। मैं समझ गया कि अब वो कपड़े पहनकर रूम से बाहर निकलेगी।

मैं जल्दी से रोशनदान से नीचे उतर आया और उस साइड टेबल को उठाकर अपनी सही जगह पर रखा, जिस पर थोड़ी देर मैंने खड़े होकर अंदर रूम में होने वाला खेल देखा। उसपर रखा हुआ शो-पीस मैंने एक बार में उसपर रखकर तेजी से सेट किया, और जल्दी-जल्दी वहीं कहीं छुपने की जगह ढूँढने लगा, ताकी रूम से निकलकर जाने वाली औरत को मैं वहाँ से आसानी से देख सकूँ कि वो कौन है? क्या वो कहीं बाहर से आई थी या फ़िर जनानखाने से?
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06-04-2019, 01:08 PM,
#16
RE: Chodan Kahani जवानी की तपिश
मुझे एक तरफ बड़े से स्टूल के पीछे खुद को छुपाने का मोका मिल गया। जहाँ से मैं आसानी से उस रूम पर नजर रख सकता था। मुझे वहाँ पर खड़े हुए अभी ज़्यादा देर ना हुई थी कि रूम का दरवाजा खुला। मेरे दिल की धड़कन बढ़ चुकी थी। जासूस ने मुझे बेचैन कर दिया था। मैं बड़े गौर से उस तरफ देख रहा था और नीम अंधेरे में मुझे एक बड़ी सी चादर में लिपटा हुआ वजूद रूम से बाहर आते नजर आया। जिसने दरवाजे से निकलकर एक नजर चारों तरफ देखा और किसी की मोजूदगी को महसूस ना करते हुए, वो जल्दी से बाहर आ गया। उसकी नजर मुझ पर नहीं पड़ी थी। एक तो में बड़े से स्टूल के पीछे था दूसरा वहाँ पर रोशनी दूसरी जगह के मुकाबले में कम ही थी।

वो पूरी तरह चादर में लिपटी हुई थी, और उसने अपने चेहरे पर चादर की ही मदद से नकाब लिया हुआ था। उसने जल्दी से नीचे जाने वाली सीढ़ियों की तरफ कदम बढ़ा दिया। मैं उसको सही तरह से देख नहीं पाया। मैंने जल्दी से एक फौरी फैसला लेते हुए सामने आने का सोचा, और फौरन ही स्टूल की आड़ से निकलकर उसके सामने आ गया। वो मुझसे कुछ ही दूर थी।


यह फैसला मैंने इसलिए लिया था कि अगर मैं उसको सही से देख नहीं पाया तो, कोई बात नहीं। मगर वो मुझे जरूर देखे और उसे पता होना चाहिए कि उसका यह खेल मैंने देखा है। मुझे इस तरह अचानक सामने देखकर वो डर गई और खुद को संभाल ना पाई। खौफ की वजह से पीछे हटते हुए उसका पाँव पीछे लटकती हुई अपनी ही चादर से उलझा और वो लड़खड़ाती हुई पीछे दीवार से जा टकराई, और गिर पड़ी। इस हड़बड़ाहट में उसकी चादर चेहरे से हट गई।

मगर हाए री किश्मत… मैं अब भी उसका चेहरा ना देख पाया। खुद को फौरी तौर पर मुझसे दूर करने के चक्कर में वो पलट गई थी, जिसके कारण उसका चेहरा दूसरी तरफ हो गया था। मैंने जल्दी से आगे बढ़कर उसको पकड़ने का सोचा ही था कि वो बड़ी तेजी से खुद की चादर संभालते हुए उठी और उसी तेजी से दो-दो सीढ़ियाँ फलाँगती हुई नीचे की तरफ भागी।

मैं भी उसके पीछे भागा मगर वो तो जैसे छलावा बनी हुई थी। उसकी फुर्ती काबिल-ए-तारीफ थी। अगले ही लम्हे वो सीढ़ियों से नीचे थी, और इस दौरान उसने अपने आपको संभाल लिया था। उसने एक बार फ़िर अपना चेहरा चादर से ढक लिया। सीढ़ियों की नीचे वो एक लम्हे के लिए रुकी और उसने मेरी तरफ देखा और फ़िर अगले ही लम्हे वो जनानखाने का दरवाजा खोलकर उसमें गुम हो चुकी थी।

मैं हैरत से सीढ़ियों के बीच ही खड़ा उसे देखता रहा, और उसकी फुर्ती पर हैरान होता रहा कि वो किस तेजी से मेरे हाथों से निकल गई थी। मैं कुछ देर तक वहीं खड़ा इस असमंजस में था कि क्या मैं उसके पीछे इस जनानखाने की तरफ जाऊँ या ना जाऊँ? मुझे इस बात का तो कोई खौफ नहीं था कि अगर मैं जनानखाने की तरफ गया तो कोई मुझे कुछ कहेगा। मगर इस वक्त वहाँ जाने पर मैं किसी को क्या जवाब दूँगा कि मैं जनानखाने में इस वक्त क्यों आया था? मुझे तो यह भी पता नहीं था कि जनानखाने में कौन-कौन रहता है और यह कौन हो सकता है? क्या मेरी सौतेली माँ, या मेरी वो सोतेली बहनों में से कोई एक?

अब तक जो रिश्ते मेरे सामने, सारा की जुबानी आ चुके थे। उनमें से यह तीन ही लोग थे जिनपर मैं शक कर सकता था। या फ़िर जनानखाने में इस वक्त आए हुए खानदान के लोगों में से कोई और? यह सब सोच-सोचकर मेरा सिर घूमने लगा। मैंने सिर झटक कर अपने आपको इन सोचों से आजाद किया और एक गहरी साँस लेकर और चारों तरफ नजरें घुमाते हुए, कुछ सोचकर मैं वापिस अपने कमरे की तरफ चल दिया और एक बार फ़िर मैं उस रूम के दरवाजे के सामने खड़ा हुआ था, जहाँ कुछ ही देर पहले सेक्स गेम चल रहा था।

एक लम्हे के लिए मैंने सोचा कि अंदर जाकर देखूँ की वो कौन कंजड़ है जो आज यहाँ अपनी हवस पूरी कर रहा था? फ़िर मैंने बड़ी मुश्किल से खुद को कंट्रोल किया, और यह सोचकर अपने रूम की तरफ बढ़ गया कि कल पता लगा लूँगा कि इस रूम में कौन था? और मुझे यह सारी चीजें सावधान होकर करनी होगी। कहीं किसी बेवकूफी में अपने आपको ना नुकसान पहुँचा लूँ?

रूम में दाखिल होकर मैंने रूम का दरवाजा बंद किया, मगर कोई लाक या कुण्डी ना लगाई। मैंने फ्रिज से एक ठंडे पानी की बोतल निकाली और उसका ढक्कन खोलकर ऐसे ही अपने मुँह से लगाकर बड़े-बड़े घूँट लेकर इस ठंडे पानी से अपने अंदर लगी उस आग को बुझाने की नाकाम कोशिस करने लगा, जो कुछ ही देर पहले वो खेल देखकर मेरे अंदर भड़क चुकी थी। मुझे पता था कि यह आग इस पानी से ठंडी नहीं होगी। मगर इस आग को ठंडा करने का ना तो कोई तरीका था अभी मेरे पास, और ना ही मैं उसको किसी तरीके से ठंडा भी करना चाहता था। क्योंकी यह आग अपनी जगह मगर अपनों का दुख अपनी जगह था।

मैं अपने बाबा और अम्मी की इस अचानक जुदाई को इतनी आसानी से नहीं भूल सकता था, की खुद को हवस की ख्वाहिश में गुम करके उनको भूल जाऊँ। लेकिन इस वाकिये ने मेरी सोच का रुख बदल दिया था। मैं वो बोतल लेकर बेड पर आकर बैठा, और एक बार फ़िर उस बोतल से ठंडे पानी का बड़ा सा घूँट अपने अंदर उतरा। मेरी तबीयत कुछ सम्भलने लगी थी। मैंने अपने जेहन को पुरसकून करने की कोशिस की और संजीदगी से अब सोचने लगा।

अब यह हवेली मुझे बहुत ही पुर-इसरार लग रही थी। मुझे महसूस होने लगा कि इस हवेली में कोई घिनौना खेल चल रहा है, और उसका ताल्लुक कहीं ना कहीं शायद बाबा की मौत से भी था। यह खयाल आते ही मैं चौंक गया। अब मेरा जेहन इस नज़रिए पर सोच रहा था कि कहीं बाबा और अम्मी की मौत एक दहशतगदी का वाकिया नहीं बल्की कोई सोची समझी साजिश ही ना हो।

यह खयाल आते हैं मैं बेचैन हो गया। मैं बेड से उठकर रूम में टहलने लगा। बहुत से खयालात मुझे परेशान करने लगे। अगर वाकई यह कोई सोची समझी साजिश है तो, मुझे क्या करना चाहिए। इस साजिश का कैसे पता लगाऊूँ। मैंने बहुत देर तक इस बारे में सोचा, और फ़िर मैंने फैसला किया कि मुझे इस सिलसिले में सलामू चाचा को विश्वास में लेना पड़ेगा। एक वही शख्स था जिसपर बाबा बहुत विश्वास करते थे।

मुझे तो अभी अपने दोस्त और दुश्मन का भी पता नहीं था। यह सब कुछ सोचने के बाद मैं अपने बिस्तर पर आ गया और सोने की कोशिस करने लगा। लेकिन नींद मेरी आँखों से कोसों दूर थी, और वक्त था कि गुजरने का नाम ही नहीं ले रहा था।
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06-04-2019, 01:08 PM,
#17
RE: Chodan Kahani जवानी की तपिश
मुझे तो अभी अपने दोस्त और दुश्मन का भी पता नहीं था। यह सब कुछ सोचने के बाद मैं अपने बिस्तर पर आ गया और सोने की कोशिस करने लगा। लेकिन नींद मेरी आँखों से कोसों दूर थी, और वक्त था कि गुजरने का नाम ही नहीं ले रहा था।

रात के किस पहर मैं सो गया, मुझे पता ही ना चला। सुबह सारा की आवाज पर मेरी आँख खुली। जो मेरे बेड के पैताने के पास खड़ी मेरा पैर हिला-हिलाकर मुझे आवाज दे रही थी-“छोटे साईं, छोटे साईं…”

मैंने एक झटके से आँखें खोलकर सारा की तरफ देखा। मुझको उठता देखकर वो मेरा पैर छोड़कर दूर हट गई। उसके चेहरे पर एक बड़ी ही खूबसूरत मुश्कुराहट थी। मैं आँखें मलते हुए उठा।

इस दौरान सार बड़ी शोख अंदाज में बोली-“बहुत गहरी नींद सोते हैं, छोटे साईं। कितनी देर से उठा रही हूँ…”

मैं उसकी तरफ देखकर हल्के से मुश्कुरा दिया और फ़िर एक नजर दीवाल घड़ी पर डाली जहाँ सुबह के 8:00 बज रहे थे। मैं वक्त देखकर चौंक गया, और सारा की तरफ देखकर बोला-“अभी तो सिर्फ़ 8:00 ही बज रहे हैं। तुमने मुझे इतनी जल्दी क्यों उठा दिया?”

उसने हैरत के मारे अपनी बड़ी-बड़ी आँखें कुछ और बड़ी करते हुए कहा-“इतनी देर तो हो गई है साईं। सलामू चाचा दो मर्तबा चक्कर लगा चुके हैं, और मैं भी अब दूसरी मर्तबा आपके लिए नाश्ता लाई हूँ। अम्मा कहती हैं कि जब नई-नई जवानी आती है तो बंदे को बड़ी गहरी नींद आती है, क्योंकी सारी रात उसे शैतानी ख्वाब जो तंग करते हैं…”

मैं उसकी बात सुनकर थोड़ा हैरान हुआ कि उसने कितनी गहरी बात और किस आसानी से कर दी थी। मुझे उसकी बात सुनकर एक शरारत सूझी-“अच्छा तुम्हारी अम्मा सिर्फ़ कहती हैं, या इसमें कुछ हकीकत भी है?”

उसने छूटते ही कहा-“साईं, बड़े बूढ़े जो कहते हैं, वो गलत नहीं होता। यह सब सच है…”

मैं-“अच्छा तो तुम्हें कभी आई है गहरी नींद? और तुमने देखे हैं शैतानी ख्वाब?” मैंने उसे गौर से देखते हुए कहा।

मेरी बात सुनकर उसके गालों पर एक लाली सी फूट आई। मगर उसने फारी तौर पर कोई जवाब नहीं दिया।

मैंने उसे देखते हुए कहा-“क्या हुआ सारा। क्या तुम अभी तक जवान नहीं हुई क्या?”

मेरी बात सुनकर वो शरमा सी गई, और सिर झुका कर अपने दुपट्टे को अपनी उँगली पर लपेटते हुए बोली-“कैसी बात कर रहे हैं छोटे साईं। क्या मैं आपको जवान नहीं लगती?”



मैं उसकी हालत देखकर महजूज हो रहा था। एक बार फ़िर उसे छेड़ते हुए बोला-“जवान तो लगती हो, पर तुमने बताया नहीं कि तुमने कभी शैतानी खवाब देखे हैं?”

उसके गालों की लाली कुछ और भर गई, और उसने गर्दन हिलाकर जवाब दिया-“देखे हैं…”

मैं-“अच्छा तो फ़िर क्या होता है शैतानी ख्वाबो में?” मैंने मुश्कुराते हुए एक बार फ़िर सवाल किया।

वो चौंक कर मुझे देखने लगी। उसकी आँखों में तश्नगी सॉफ दिख रही थी। एक लम्हे के लिए उसकी आँखों में मुझे मुहब्बत और तड़प का समुंदर हिलोरें मारता नजर आया। मगर बड़ी जल्दी ही उसने खुद को संभाल लिया और जल्दी से बात बदलते हुए बोली-“साईं, यह गाँव है। यहाँ लोग सवेरे ही उठ जाते हैं। आप जल्दी से नहा धोकर नाश्ता कर लें। सलामू चाचा आने वाले होंगे आपको लेने…” यह कहकर वो जल्दी से अलमारी की तरफ बढ़ गई और अलमारी खोलते हुए बोली-“मैं आपके दूसरे कपड़े निकाल देती हूँ…”

वहीं से उसने मुझे देखा तो मैं उसे अभी तक मुश्कुराकर शरारती नजरों से देख रहा था। उसने जल्दी से अपना चेहरा अलमारी की तरफ कर लिया। मैंने भी मजीद उसे तंग करना मुनासिब ना समझा और उठकर वाशरूम की तरफ बढ़ गया। मेरी नींद अभी पूरी नहीं हुई थी, मेरा सिर थोड़ा भारी भारी था। मैं शावर खोलकर उसके नीचे खड़ा हो गया। नीम गरम पानी ने मुझे कुछ फ्रेश कर दिया।


10 मिनट के बाद में फ्रेश होकर फारिग ही हुआ था कि बाहर से वाशरूम का दरवाजा बजा और सारा की आवाज आई-“छोटे साईं। मैंने आपके कपड़े निकाल दिए हैं। अगर आपको चाहिए तो बता दें…”

मैंने जवाबन कहा-“हाँ दे दो…” फ़िर आगे बढ़कर मैंने दरवाजा थोड़ा सा खोल दिया और अपना एक हाथ बाहर निकालकर उससे कपड़े ले लिए। मैं कपड़े लेने के बाद जल्दी से बाहर आ गया। मैं वाशरूम से बाहर निकला तो सारा सोफे के पास रखी टेबल के करीब खाने के बर्तनों पर झुकी हुई थी। इस तरह उसे झुके देखकर मेरे जिश्म में करेंट सा दौड़ गया। उसकी भारी-भारी गाण्ड का रुख बिल्कुल मेरी तरफ था। इस तरह झुके होने से उसकी गाण्ड वाजेह तौर पर अपने उभारों और बीच की लकीर का नजारा दे रही थी। सारा ने वैसे ही झुके-झुके गर्दन मोड़कर मुझे आते देखा।
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06-04-2019, 01:08 PM,
#18
RE: Chodan Kahani जवानी की तपिश
मेरी नजरें उसकी गाण्ड पर लगी हुई थीं, जिसको शायद उसने भी महसूस कर लिया, और सीधी खड़ी हो गई। मगर उसने अपने चेहरे से महसूस नहीं होने दिया कि उसने मुझे इस तरह अपनी गाण्ड पर नजरें लगाये देख लिया है।

सारा-“छोटे साईं। आ जाईए नाश्ता ठंडा हो रहा है…”

मैं टेबल की तरफ बढ़ गया। मैं अपने आपको थोड़ा-थोड़ा शर्मिंदा महसूस कर रहा था कि सारा मेरे बारे में क्या सोचेगी? मैं उससे नजरें चुराते हुए सोफे पर बैठ गया, और नाश्ते की ट्रे अपने सामने कर ली। नाश्ते में मक्खन और रोटी थी, साथ ही दूध का भरा ग्लास। मैं जल्दी-जल्दी नाश्ता करने लगा। सारा मेरे सामने ही टेबल के पास फर्श पर बैठ गई। मैंने चोरी-चोरी से उसे देखा तो उसके चेहरे पर हल्की सी मुश्कुराहट थी, और अब उसकी नजरों में शरारत नजर आ रही थी।



फ़िर एक खयाल अचानक से मेरे दिल में आया और मैंने सारा पर नजर डाले बिना ही पूछा-“सारा तुम कब से इस हवेली में काम कर रही हो?” मैंने उसके चेहरे के भाव नहीं देखे मगर उसके लहजे से महसूस हुआ कि उसके बोलने में हैरत थी।

सारा-“कब से क्या मतलब साईं। मैं तो पैदा ही इस हवेली में हुई थी?”

मैं-मेरा मतलब था कि तुम यहाँ यह सब जो काम कर रही हो, वो कब से कर रही हो?

सारा-साईं बचपन से ही। हम तो यहाँ के ही हैं। हमने यही सब कुछ करना है। यही हवेली में सामने की तरफ हमारे घर हैं। मेरी माँ, बाबा और उनके माँ बाप भी यही काम करते थे। हमारा तो मरना जीना यहाँ इसी हवेली में है।

मैं-अच्छा तो यह बताओ कि जनानखाने में कौन-कौन रहता है?” मैंने गर्दन हिलाते हुए पूछा।

मुझे जनानखाने के बारे में पूछते हुए पता नहीं सारा ने क्या समझा? उसके चेहरे पर खुशी के भाव थे। वो जल्दी से बोली-“जनानखाने में आपके खानदान की तमाम औरतें और हम जैसी कनीज रहती हैं…”

मैं-वो तो मुझे पता है। लेकिन मैं यह जानना चाहता हूँ कि मेरे खानदान में कौन-कौन ऐसी औरतें हैं जो मुस्तकिल वहीं जनानखाने में रहती हैं?” इस बार मैंने सारा को देखते हुए पूछा।

सारा जल्दी से बोली-“आपकी दादी, दूसरी माँ, दो बहनें, आपकी 3 बुआ यानी फूफो, और इन सबकी एक-एक ख़ास नौकरानी। और इनके इलावा 10 और काम करने वाली, जो हवेली का मुख्तलिफ काम करती हैं। यहाँ वही हवेली में रहती हैं हमेशा से…” उसने मुझे देखते हुए कहा।

सारा की बात सुनकर मैं कुछ देर तक तो खामोश रहकर नाश्ता करता रहा। लेकिन एक बार फ़िर मैंने उससे पूछा-“और आजकल तो हवेली में दूसरी औरतें भी तो आई हुई होंगी ना?”

सारा-औरतें तो सारा दिन आती रहती हैं। सारे गाँव की और जागीर के दूसरे गाँवो की भी। आजकल तो बहुत भीड़ लगी रहती है। इतना बड़ा हादसा जो हो गया है इस हवेली मैं…”
आख़िर में बात करते हुए उसकी आँखों में पानी भर आया, जिसे उसने जल्दी से अपने दुपट्टे के पल्लू से सॉफ कर लिया।

कुछ देर के लिए रूम में खामोशी सी फैल गई। फ़िर अचानक से सारा बोली-“छोटे साईं। आप यह सब क्यों पूछ रहे हो? कल तक तो आप कह रहे थे कि आपका इस हवेली से कोई ताल्लुक नहीं, और न ही कोई रिश्ता है तो आज फ़िर यह सब?”

मैंने खाने से हाथ रोक लिया और सारा की तरफ देखने लगा-“मेरा आज भी इस हवेली से कोई ताल्लुक नहीं है। लेकिन एक फ़ितरती जासूस, मुझे यह सब पूछने पर मजबूर कर रहा है कि इतनी बड़ी हवेली में एक दो आफराद तो नहीं रहते होंगे ना? इसीलिए पूछ लिया…” यह सब कहते हुए मेरे चेहरे पर कुछ सख्ती सी आ गई थी।

जिसे सारा ने भी महसूस कर लिया और वो जल्दी से बोली-“साईं आप नाराज ना हो। मैंने तो यह सब इस उम्मीद में कहा कि शायद आपने अपना खयाल बदल लिया हो, और आपके खून ने जोश मारा हो। आख़िर इस हवेली में रहने वालों और आपका खून एक ही तो है। वो सब आपके अपने सगे हैं। मुझे नहीं पता की आपके जेहन में क्या है। लेकिन वहाँ अंदर रहने वाले सब लोग आपसे बहुत मुहब्बत करते हैं। वो तड़प रहे हैं आपसे मिलने के लिए। उनका बस चले तो वो सब रिवाजों की जंजीरें तोड़कर आपके पास यहाँ मर्दानखाने में आ जाएँ और आपको अपने साथ ले जाएँ। लेकिन यह उनके बस में नहीं…” यह सब कहते हुए सारा की आँखों से अब आँसू बहने लगे थे, और उसकी आवाज भी रुंध गई थी। जिसको सारा बड़ी मुश्किल से कंट्रोल करने की कोशिस कर रही थी। वो बार-बार अपनी आँखों में आने वाले आँसू सॉफ कर रही थी।
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06-04-2019, 01:09 PM,
#19
RE: Chodan Kahani जवानी की तपिश
जिसे सारा ने भी महसूस कर लिया और वो जल्दी से बोली-“साईं आप नाराज ना हो। मैंने तो यह सब इस उम्मीद में कहा कि शायद आपने अपना खयाल बदल लिया हो, और आपके खून ने जोश मारा हो। आख़िर इस हवेली में रहने वालों और आपका खून एक ही तो है। वो सब आपके अपने सगे हैं। मुझे नहीं पता की आपके जेहन में क्या है। लेकिन वहाँ अंदर रहने वाले सब लोग आपसे बहुत मुहब्बत करते हैं। वो तड़प रहे हैं आपसे मिलने के लिए। उनका बस चले तो वो सब रिवाजों की जंजीरें तोड़कर आपके पास यहाँ मर्दानखाने में आ जाएँ और आपको अपने साथ ले जाएँ। लेकिन यह उनके बस में नहीं…” यह सब कहते हुए सारा की आँखों से अब आँसू बहने लगे थे, और उसकी आवाज भी रुंध गई थी। जिसको सारा बड़ी मुश्किल से कंट्रोल करने की कोशिस कर रही थी। वो बार-बार अपनी आँखों में आने वाले आँसू सॉफ कर रही थी।

मैं हैरत का बुत बना उसे देखा रहा था। फ़िर मैंने सारा को देखकर कहा-“सारा तुम कितना पढ़ी हो?”

मेरी बात सुनकर उसने हैरत से मुझे देखा-“साईं, मैं कहाँ पढ़ी लिखी हूँ, मैंने तो कभी किसी किताब को हाथ भी नहीं लगाया…”

मैं-तो फ़िर तुम इतनी बड़ी- बड़ी बातें कैसे कर लेती हो?”


मेरी बात सुनकर सारा ने एक सर्द ‘आह’ भरी और मुश्कुराते हुए कहने लगी। उसकी मुश्कुराहट में दर्द सा छुपा हुआ था-“साईं, यह जो वक्त हैं ना यह बहुत बड़ा उस्ताद है। यह इंसान को सब सिखा देता है। और साईं, मैं सबसे ज़्यादा इस वक्त की मारी हूँ…”

मैं हैरत से उसकी बातें सुन रहा था। अपनी बातों से तो सारा कहीं से भी अनपढ़ नहीं लगती थी। मैं उसकी कहीं हुई बातों को सोचने लगा। क्या जो सारा कह रही है सब सच है? क्या जनानखाने के रहने वाले सब लोग मुझसे बहुत मुहब्बत करते हैं? मुझसे मिलने के लिए तड़प रहे हैं? फ़िर उसकी एक बात अचानक से मेरे जेहन में आई और मैंने जल्दी से कुछ सोचते हुए सारा से पूछा-“सारा, क्या जनानखाने की औरतों को मर्दानखाने में आने की इजाजत नहीं है?”

सारा-“नहीं साईं, जनानखाने की बीबीयों यानी आपके खानदान में से किसी भी औरत को मर्दानखाने में आने की इजाजत नहीं है। बाकी वहाँ पर काम करने वाली, जैसे की मैं, वो मर्दानखाने में आ जा सकती हैं…”

सारा की बात सुनकर मैं सोचने लगा की फ़िर तो शायद जो औरत रात के अंधेरे में यहाँ आई थी वो कोई काम करने वाली ही होगी। अगर वो काम करने वाली नहीं थी, तो वो कौन थी जिसने हवेली के उसूलों और रिवाजों से जंग करने का बीड़ा उठाया है? यह सोचकर मेरी बेचैनी और बढ़ गई।

मैंने फ़िर एक सवाल किया सारा से-“अच्छा यह बताओ कि आजकल हवेली में रात के वक्त कौन-कौन रुका हुआ है?”

मेरा सवाल सुनकर सारा के चेहरे पर हैरत के भाव थे। वो मेरा सवाल सुनकर थोड़ा सा उलझ गई थी। मैंने उसके चेहरे पर उलझन के भाव देखकर कहा-“मेरा मतलब है कि क्या खानदान की दूसरी औरतें जो मेरा मतलब है कि पीर जमाल शाह के घर की औरतें या जो हमारे दूसरे रिश्तेदार हैं उनकी औरतें भी तो आई हुई होंगी ना? क्या वो हवेली में ही रहती हैं?”


मेरी बात सुनकर वो जल्दी से बोली-“जी साईं, आजकल खानदान की तमाम औरतें जो दूसरी जगह से आई हुई हैं, वो भी जनानखाने में मेहमान हैं, और वही रुकी हुई हैं…”

उसकी बात सुनकर मैंने एक अंदाज़ा लगाया कि शायद उनमें से ही कोई हो। अब सिर्फ़ यह पता लगाना था कि उस रूम में कौन था? मैंने पूछा-“सारा, तुम सिर्फ़ मेरी खिदमत के लिए यहाँ आई हो या तमाम मर्दानखाने में तुम ही नाश्ता पानी वगैरह देती हो?”

सारा-“साईं, वैसे तो हम तीन लड़कियाँ हैं जो मर्दानखाने का खयाल रखती हैं और सब रुम्स में जाती हैं। मगर जब से आप आए हो तो मुझे सिर्फ़ आपका खयाल रखने का कहा गया है…” उसने मुश्कुराकर जवाब दिया।
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06-04-2019, 01:09 PM,
#20
RE: Chodan Kahani जवानी की तपिश
सारा-“साईं, वैसे तो हम तीन लड़कियाँ हैं जो मर्दानखाने का खयाल रखती हैं और सब रुम्स में जाती हैं। मगर जब से आप आए हो तो मुझे सिर्फ़ आपका खयाल रखने का कहा गया है…” उसने मुश्कुराकर जवाब दिया।

और में उसकी बात सुनकर चौंक गया-“किसने मेरा खयाल रखने को कहा है?” मैंने हैरत से पूछा।

सारा-“वो बड़ी बीबी साईं ने। मेरा मतलब है आपकी दादी हुजूर ने…”

उसकी बात सुनकर मैं चौंक गया-“उनको मेरे यहाँ आने का पता है?”

मेरी बात सुनकर उसके चेहरे पर मुश्कुराहट आ गई-“जी साईं। उनको पता है…”

मैंने सारा की बात सुनकर गर्दन हिलाई-“अच्छा सारा, यह मेरे बराबर वाला जो कमरा है। इसमें कौन रुका हुआ है?”

मेरी बात सुनकर सारा के चेहरे पर परेशानी सी फैल गई। लेकिन फ़िर जल्दी से बोली-“यह कमरा तो साईं जमाल शाह का है। यह कमरा मुस्तकिल उनके लिए ही रिजर्व है। वो जब भी यहाँ आते हैं तो, इसी कमरे में रुकते हैं…”

मैं सारा की बात सुनकर चौंक गया। पीर जमाल शाह, यानी के बाबा के बाबा का कजिन और उनकी दूसरी बीवी की बहन का शौहार था जो रात को अय्याशी कर रहा था। यानी कि पीर जमाल शाह ही था वो शख्स जिसको बाबा के जाने का कोई दुख नहीं था। लेकिन उसके साथ औरत कौन थी? क्या उसकी बीवी वो जनानखाने से आई थी उससे मिलने? या फ़िर कोई और? अगर बीवी थी तो उसे ऐसी क्या आग लगी हुई थी कि उसने यहाँ मर्दानखाने में आने का खतरा उठा लिया? और पीर जमाल शाह ने उसे मर्दानखाने में आने पर कुछ नहीं कहा। उस वक्त वो रस्मो रिवाज कहाँ गए? मगर नहीं, वो उसकी बीवी नहीं हो सकती। अगर वो जमाल शाह की बीवी और जमील शाह की माँ होती तो यक़ीनन उमर में बड़ी होती। वो तो अपनी हरकतों से कोई जवान औरत थी। उसकी वो फुर्ती, मैं अभी तक नहीं भूल पाया था। किस तेजी से वो मेरे हाथों से निकल गई थी।

मुझे कुछ सोचता देखकर सारा बोली-“साईं, आप नाराज ना हो तो मैं एक बात पूछूँ?”

मैंने सारा की तरफ सवालिया नजरों से देखा।

तभी सारा बोली-“साईं, मुझे लगता है कि कोई ख़ास बात है जिसकी वजह से ही आप यह सब कुछ पूछ रहे हैं? अगर कोई ऐसी बात है तो, मुझे बतायें। हो सकता है कि मैं आपकी कोई मदद कर दूँ…”

मैं उसकी बात सुनकर चौंक गया। फ़िर एक लम्हे के लिए खयाल आया कि मैं सारा को सब बता दूँ। लेकिन फ़िर खामोश हो गया कि अभी वक्त मुनासिब नहीं। मगर इस दौरान मैंने अपने दिमाग़ में कुछ अहम फ़ैसले कर लिए थे।

अभी मैं यह सोच ही रहा था कि सलामू चाचा आ गये, और मुझे देखते हुए मुश्कुराकर बोला-“नाश्ता कर लिया छोटे साईं?”

मैंने मुश्कुराकर सलामू चाचा को देखा और जल्दी से सोफा से उठते हुए कहा-“जी चाचा। मैंने नाश्ता कर लिया…”

इसी दौरान सारा भी जल्दी से उठ गई थी और उसने बर्तन समेटने शुरू कर दिए थे।

सलामू ने मुझे सारा को देखते हुए कहा-“छोरी, यह बर्तन उठाकर छोटे साईं का कमरा सेट कर दो और बिस्तर की चादर वगैरा भी बदल देना…”

सलामू की बात सुनकर सारा ने जल्दी से गर्दन हिलाई, और फ़िर सलामू ने मुझे अपने साथ चलने का इशारा किया। मैं सलामू के साथ रूम से बाहर निकल आया। फ़िर कुछ ही देर में हम लोग मर्दानखाने के अंदरूनी गेट के पास मौजूद थे। बाहर पोर्च में एक जीप खड़ी थी, और उसके साथ ही दो नौजवान गार्ड हाथों में हथियार लिए मौजूद थे। दोनों ही बड़े तगड़े और लगभग 6 फीट की हाइट के जवान थे। मैं उन्हें और जीप को देखकर रुक गया और चाचा से पूछा-“यह सब क्या है। हमने औतक तक ही तो जाना है ना?”

सलामू ने जल्दी से कहा-“नहीं साईं, हम पहले बाबा की कब्र पर जायेंगे दुआ पढ़ने। हमारे यहाँ रिवाज है के सोयम तक हमने रोजाना सुबह को कब्र पर जाना होता है…”

मैंने सलामू की बात सुनकर हल्के से सिर हिलाया और जीप की तरफ बढ़ गया। दोनों गार्ड आगे बढ़कर मेरे पैर छुये। सिंध में पीरों के मुरीद उनको सम्मान देने के लिए उनके पैर छूते हैं, चाहे वो बड़ा हो या फ़िर छोटा। मैंने उनको ऐसा करने से कुछ नहीं कहा।
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