Chodan Kahani घुड़दौड़ ( कायाकल्प )
12-17-2018, 02:06 AM,
#11
RE: Chodan Kahani घुड़दौड़ ( कायाकल्प )
मैंने अपनी उंगली रोक ली, लेकिन उसको योनि से बाहर नहीं निकलने दिया। साथ ही साथ उसके स्तनों का आनंद उठाता रहा। कोई एक दो मिनट में मैंने महसूस किया की रश्मि अब तनाव-मुक्त हो गयी है। मैंने धीरे धीरे अपनी उंगली को उसकी योनि के अन्दर बाहर करना शुरू कर दिया। इन सभी क्रियाओं का सम्मिलित असर यह हुआ की रश्मि अब काफी निश्चिन्त हो गयी थी और उसकी योनि कामरस की बरसात करने लगी। मेरी उंगली पूरी तरह से भीग चुकी थी और आसानी से अन्दर बाहर हो पा रही थी।

उंगली अन्दर बाहर होते हुए मुश्किल से दो मिनट हुए होंगे की इतने में ही रश्मि ने पहली बार चरमसुख प्राप्त कर लिया। उसकी सांस एक पल को थम गयी, और जब आई तो उसके गले से एक भारी और प्रबल आह निकली। मुझे पक्का यकीन है की बाहर अगर कोई बैठा हो या जाग रहा हो, तो उसने यह आह ज़रूर सुनी होगी। फिर वह निढाल होकर बिस्तर पर गिर गयी और गहरी गहरी साँसे भरने लगी। मैंने उंगली की गति धीमी कर दी, जिससे उसकी योनि का उत्तेजन ख़तम न हो। 

"जस्ट रिलैक्स! अभी ख़तम नहीं हुआ है। असली काम तो बाकी है।" मैंने प्यार से बोला। 

लगता है अभी अभी मिले आनंद से वह प्रोत्साहित हो गयी थी, लिहाजा उसने हाँ में सर हिलाया।

मैं उठ कर बैठ गया, और थोड़ा सुस्ताने लगा। थोड़ी देर के आराम के बाद मैंने उसकी दोनों जांघो को फैला दिया, जिससे उसकी योनि के होंठ खुल गए थे। उसकी योनि के बाहर का रंग उसके निप्पल के जैसा ही था, लेकिन योनि के अन्दर का रंग ‘सामन’ मछली के रंग के जैसा था। मेरा मन हुआ की कुछ देर यहीं पर मुख-मैथुन किया जाए, लेकिन मेरी खुद की दशा ऐसी नहीं थी की इतनी देर तक अपने आपको सम्हाल पाता। मुझे यह भी डर लग रहा था की कहीं शीघ्रपतन जैसी समस्या न आ खड़ी हो। मेरा लिंग अब वापस खड़ा हो चुका था, और अपने गंतव्य को जाने को व्याकुल हो रहा था। एक गड़बड़ थी - मेरा लिंग उसकी योनि के मुकाबले बहुत विशाल था, और अगर मैं जरा सी भी जबरदस्ती करता, या फिर अगर लिंग अन्दर डालने में कोई गड़बड़ हो जाती तो यह लड़की पूरी उम्र भर मुझसे डरती रहती। 

मेरे पास अपने लिंग को चिकना करने के लिए कुछ भी नहीं था ..... 'एक सेकंड ... मैं अपने लिंग को ना सही, लेकिन उसकी योनि को तो अच्छे से चिकना कर सकता हूँ न!' मेरे दिमाग में अचानक ही यह विचार कौंध गया। 

मैंने उसकी योनि पर हाथ फिराया - रश्मि की सिसकारी छूट पड़ी। उसके शरीर के सबसे गुप्त और महफूज़ स्थान में आज सेंध लगने जा रही थी। यहाँ छूना कितना आनंददायक था - कितना कोमल .. कितना नरम! मैं वासना में अँधा हुआ जा रहा था .. मैंने उसके भगोष्ठ के होंठों को अपनी उँगलियों से पुनः जांचना आरम्भ कर दिया। मैंने उसकी योनि से रस निकलता हुआ देखा, और समझ गया की अब यह सही समय है।

मैंने बिस्तर पर लेटी रश्मि के नग्न रूप का पुनः अवलोकन किया। उसकी आँखें बंद थी, लेकिन लिंग प्रवेश की स्थिति में होने वाली पीड़ा की घबराहट में उसके शरीर की विभिन्न माँस-पेशियाँ कसी हुई थी। उसको पूरी तरह शांत और शिथिल करने के लिए मैंने उसके कान को चूमना आरम्भ किया। ऐसे करते करते, धीरे धीरे उसकी ठोढ़ी की तरफ बढ़ते हुए मैं उसके होंठो को चूम रहा था, और गले से होते हुए शरीर के ऊपरी भाग को चूमना और हलके हलके चाटना जारी रखा। कुछ देर ऐसे ही करते हुए, इस समय मैं रश्मि के निप्पल्स को चूम और चूस रहा था। रश्मि की आहें छूट पड़ीं और मेरे होंठो पर एक मुस्कान आ गई। चूसते चूसते मैंने उसके स्तन पर दांत से हल्का सा काट लिया और उसकी सिसकी निकल गयी। रश्मि अब मूड में आने लग गयी थी - उसकी साँसे भारी हो गयी थी, बढ़ते रक्त-संचालन के कारण उसके गोरे शरीर में लालिमा आ गयी थी। लेकिन अभी मैं उसको अभी छोड़ने के मूड में नहीं था, और लगातार उसके शरीर के साथ लगातार छेड़-छाड़ करता जा रहा था।


रश्मि को चूमते, चाटते और छेड़ते हुए जब मैं उसके योनि क्षेत्र पर पहुंचा तो उसने योनि द्वार को दो तीन बार चाटा और फिर उसकी जांघो के अंदरूनी हिस्से को चूमने और चाटने लगा। रश्मि वापस अपनी उत्तेजना के चरम बिंदु पर पहुच चुकी थी। मैं कभी उसकी जांघों, तो कभी उसकी योनि को चूमता-काटता जा रहा था। रश्मि का शरीर अब थर थर कांप रहा था और साँसे भारी हो गयी। लेकिन फिर भी मैं अगले दो तीन मिनट तक उसकी योनि के साथ खिलवाड़ करता रहा। उसकी आँखें अब बंद थी और शरीर बुरी तरह थरथरा रहा था। 

यह मेरे लिए सकते था की अब वाकई सही समय आ गया है। मैंने उसकी टांगो को फैला दिया। उसकी योनि का खुला हुआ मुख काम-रस से भीगने के कारण चमक रहा था। 

"जस्ट ट्राई टू रिलैक्स! ओके?" कह कर मैंने एक हाथ से उसकी योनि को थोडा और फैलाया और अपने लिंग को उसकी योनि मुख से सटा कर धीरे-धीरे आगे की तरफ जोर लगाया, जिससे मेरा लिंग अपने गंतव्य की ओर चल पड़ा। मेरे लिंग का सुपाड़ा, लिंग के बाकी हिस्सों से बड़ा है, अतः रश्मि को सबसे अधिक पीड़ा शुरू के एक दो इंच से ही होनी चाहिए थी। लेकिन यह लड़की अभी भी छोटी थी, और उसके शरीर की बनावट परिपक्वता की तरफ भी अग्रसर थी। यह बात मुझसे छिपी हुई नहीं थी। इसलिए मैंने सुपाड़े का बस आधा हिस्सा ही अन्दर डाला और उसकी योनि से निकलते रस से उसको अच्छी तरह से भिगो लिया। सबसे खतरनाक बात यह थी की मुझमें अब इतना धैर्य नहीं बचा हुआ था। मुझे लग रहा था की अगर कुछ देर मैंने यह क्रिया जारी रखी तो इसी बिस्तर पर स्खलित हो जाऊँगा। न जाने क्यों, रश्मि के अन्दर अपना वीर्य डालना मुझे इस समय दुनिया का सबसे ज़रूरी कार्य लग रहा था।

मेरा लिंग तैयार था। मैंने एकदम से जोरदार धक्का लगाया और मेरा आधा लिंग रश्मि की योनि में समा गया।
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12-17-2018, 02:08 AM,
#12
RE: Chodan Kahani घुड़दौड़ ( कायाकल्प )
"आआह्ह्ह ..." रश्मि की गहरी चीख निकल गयी। मुझे तो मानो काटो तो खून नहीं! मैं एकदम से सकपका गया, 'कहीं इसको चोट तो नहीं लग गयी?' मैंने एक दो पल ठहर कर रश्मि की प्रतिक्रिया भांपी - लेकिन भगवान् की दया से उसने आगे कुछ नहीं कहा। बाहर लोगों ने सुना तो ज़रूर होगा ... 

'भाड़ में जाएँ सुनने वाले! लड़की के साथ यह तो होना ही है आज तो...' मैंने रुकने का कोई उपक्रम नहीं किया। मैंने अपना लिंग रश्मि की योनि से बाहर निकालना शुरू किया, लेकिन पूरा नहीं निकाला ... इसके बाद पुनः थोडा सा और अन्दर डाला और पुनः निकाल लिया। 

ऐसे ही मैंने कम से कम पांच छः बार किया। रश्मि चीख तो नहीं थी, लेकिन मेरी हर हरकत पर कराह ज़रूर रही थी। लेकिन इस समय मेरे पास इन सब के बारे में सोचने का धैर्य बिलकुल भी नहीं था। मैंने अपना लिंग रश्मि के अन्दर और भीतर तक घुसा दिया और सनातन काल से प्रतिष्ठित पद्धति से काम-क्रिया आरम्भ कर दी। रश्मि का चेहरा देखने लायक था - उसकी आँखें बंद थीं, लेकिन मुंह पूरा खुला हुआ था। इस समय उसके लिए साँसे लेने, हिचकियाँ लेने और सिसकियाँ निकालने का यही एकमात्र साधन और द्वार था। मेरे हर धक्के से उसके छोटे स्तन हिल जाते। और नीचे का हिस्सा, जहाँ पेट और योनि मिलते हैं, मेरे पुष्ट मांसल लिंग के कुटाई से लाल होता जा रहा था।

मैंने रश्मि को भोगने की गति तेज़ कर दी । रश्मि अपनी उत्तेजना के चरम पर थी, लेकिन अभी उसको इसकी अभिव्यक्ति करनी नहीं आती थी - बस उसने मेरे कन्धों को जोर से जकड रखा था। संभवतः उसको अपनी कामाभिव्यक्ति करने में लज्जा आ रही हो। मुझको भी महसूस हुआ की उसका खुद का चरम-आनंद भी पास में है। हमारे सम्भोग की गति और तेज़ हो गई - रश्मि की रस से भीगी योनि में मेरे लिंग के अन्दर बाहर जाने से 'पच-पच' की आवाज़ आने लग गई थी। पलंग के पाए ज़मीन पर थोड़ा थोड़ा घिसटने से किकियाने की लयबद्ध आवाज़ निकाल रहे थे, उसी के साथ हमारी कामुकता भरी आहें भी निकल रही थीं। कमरे में एक कामुक माहौल बन चला था। 

इस पूरे काम में इतना समय लग चुका था की मेरा कुछ क्षणों से अधिक टिकना संभव नहीं था। और हुआ भी वही। मेरे लिंग से एक विस्फोटक स्खलन हुआ, और उसके बाद तीन चार और बार वीर्य निकला। हर स्खलन में मैंने अपना लिंग रश्मि की योनि के और अन्दर ठेलने का प्रयत्न कर रहा था। मेरे चरमोत्कर्ष पाने के साथ ही रश्मि पुनः चरम आनंद प्राप्त कर चुकी थी। इस उन्माद में उसकी पीठ एक चाप में मुड़ गयी, जिससे उसके स्तन और ऊपर उठ गए। मैंने उसका एक स्तनाग्र सहर्ष अपने मुह में ले लिया और उसके ऊपर ही निढाल होकर गिर गया। 

मेरा रश्मि की मखमली गहराई से निकलने का मन ही नहीं हो रहा था। इसलिए मैंने अपने लिंग को उसकी योनि के बाहर तब तक नहीं निकाला, जब तक मेरा पुरुषांग पूरी तरह से शिथिल नहीं पड़ गया। इस बीच मैंने रश्मि को चूमना, दुलारना जारी रखा। अंततः हम दोनों एक दुसरे से अलग हुए। मैंने रश्मि को मन भर के देखा; वह बेचारी शर्मा कर दोहरी हुई जा रही थी और मुझसे आँखे नहीं मिला पा रही थी। उसके चेहरे पर लज्जा की लालिमा फैली हुई थी। 

मैंने पूछा, "रश्मि! आप ठीक हैं?" उसने आँखें बंद किये हुए ही हाँ में सर हिलाया। 

"मज़ा आया?" मैंने थोड़ा और कुरेदा - ऐसे ही सस्ते में कैसे जाने देता? रश्मि का चेहरा मेरे इस प्रश्न पर और लाल पड़ गया - वह सिर्फ हलके से मुस्कुरा सकी। मैंने उसको अपनी बांहों में कस के भर कर उसके माथे को चूम लिया, और अपने से लिपटा कर बिस्तर पर लिटा लिया।

हम लोग कुछ समय तक बिस्तर पर ऐसे ही पड़े पड़े अपनी सांसे संयत करते रहे। लेकिन कुछ ही देर में वह बिस्तर पर उठ बैठी। वह इस समय आराम में बिलकुल भी नहीं लग रही थी। मुझे लगा की कहीं सेक्स की ग्लानि के कारण तो वह ऐसे नहीं कर रही है? मैंने प्रश्नवाचक दृष्टि उसकी ओर डाली।

"क्या हुआ आपको?" 

"जी ... मुझे टॉयलेट जाना है ...." उसने कसमसाते हुए बोला।

दरअसल, रश्मि को सेक्स करने के बाद मूत्र विसर्जन का अत्यधिक तीव्र एहसास होता है। निःसंदेह उसको और मुझको यह बात अभी तक नहीं मालूम थी। हम लोग अभी तो एक दूसरे को जानने की पहली दहलीज पर पाँव रख रहे थे। उसकी इस आदत का उपयोग हम लोगों ने अपने बाद के सेक्स जीवन में खूब किया है। खैर, उसको टॉयलेट जाना था और तो और, मुझे भी जाना था। मैंने देखा की कमरे से लगा हुआ कोई टॉयलेट नहीं था। 

"इस कमरे से लगा हुआ कोई टॉयलेट नहीं है क्या?" रश्मि ने न में सर हिलाया ... 

"तो फिर कहाँ जायेंगे ..?"

"घर में है ..."

"लेकिन ... मुझे तो अन्दर से लोगों के बात करने की आवाज़ सुनाई दे रही है। लगता है लोग अभी तक नहीं सोये।" मैंने कहा, "... और घर में ऐसे, नंगे तो नहीं घूम सकते न? सिर्फ टॉयलेट जाने के लिए पूरे कपडे पहनने का मन नहीं है मेरा।"

रश्मि कुछ बोल नहीं रही थी। 

"वैसे भी सबने अन्दर से हमारी आवाजें सुनी होंगी ... मुझे नहीं जाना है सबके सामने ..." मैंने अपनी सारी बात कह दी।

"इस कमरे का यह दूसरा दरवाज़ा बाहर बगीचे में खुलता है ..."

"ओ के .. तो?"

".... हम लोग बगीचे में टॉयलेट कर सकते हैं ... वहां एकांत होगा .." एडवेंचर! लड़की तो साहसी है! इंटरेस्टिंग!

"ह्म्म्म .. ठीक है। चलिए फिर।" मैंने पलंग से उठते हुए बोला। रश्मि अभी भी बैठी हुई थी - शायद शरमा रही थी, क्योंकि उठते ही वह (मनोवैज्ञानिक तौर पर) पूरी तरह से नग्न हो जाती (बिस्तर पर चादर इत्यादि तो थे ही, जिनके कारण आच्छादित (कपड़े पहने रहने) होने का एहसास तो होता ही है)।
मैंने अपना हाथ उसकी तरफ बढ़ाया, "चलो न .." रश्मि ने सकुचाते हुए मेरा हाथ थाम लिया और मैंने उसको सहारा देकर पलंग से उठा लिया।
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12-17-2018, 02:08 AM,
#13
RE: Chodan Kahani घुड़दौड़ ( कायाकल्प )
अपनी परी को मैंने पहली बार पूर्णतया नग्न, खड़ा हुआ देखा। मैंने उसके नग्न शरीर की अपर्याप्त परिपूर्णता की मन ही मन प्रशंशा की। उसके शरीर पर वसा की अनावश्यक मात्रा बिलकुल भी नहीं थी। उसके जांघे और टाँगे दृढ़ मांस-पेशियों की बनी हुई थीं। एक बात तो तय थी की आने वाले समय में यह लड़की, अपनी सुन्दरता से कहर ढा देगी। मेरे लिंग में पुनः उत्थान आने लगा। रश्मि की दृष्टि पुनः लज्जा के कारण नीची हो गयी। लेकिन उसने दूसरे दरवाज़े का रुख कर लिया।

मैंने उसको दरवाज़ा खोलने से रोका और स्वयं उसको खोल कर बाहर निकल आया, सब तरफ देख कर सुनिश्चित किया की कोई वहां न हो और फिर उसको इशारा देकर बाहर आने को कहा। वह दबे पाँव बाहर निकल आई, किन्तु इतनी सावधानी रखने के बाद भी उसकी पायल और चूड़ियों की आवाजें आती रही। बगीचा कमरे से बाहर कोई आठ-दस कदम पर था। रात में यह तो नहीं समझ आ रहा था की वहां पर किस तरह के पेड़ पौधे थे, लेकिन यह अवश्य समझ आ रहा था की किस जगह पर मूत्र किया जा सकता है। रश्मि किसी झाड़ी से कोई दो फुट दूरी पर जा कर बैठ गयी। अँधेरे में कुछ दिखाई तो नहीं दिया, लेकिन मूत्र विसर्जन करने की सुसकारती हुई आवाज़ आने लगी। मेरा यह दृश्य देखने का मन हो रहा था, लेकिन कुछ दिख नहीं पाया।

मैंने रश्मि के उठने का कुछ देर इंतज़ार किया। उसने कम से कम एक मिनट तक मूत्र किया होगा, और फिर कुछ देर तक ऐसे ही बैठी रही। मैंने फिर उसको उठ कर मेरी तरफ आते देखा। यह सब होते होते मेरा लिंग कड़क स्तम्भन प्राप्त कर चुका था। इस दशा में मेरे लिए मूत्र करना संभव ही नहीं था।

"आप भी कर लीजिये .."

"चाहता तो मैं भी हूँ, लेकिन मुझसे हो नहीं पा रहा है ..."

"क्यों .. क्या हुआ?" रश्मि की आवाज़ में अचानक ही चिंता के सुर मिल गए। अब तक वह मेरे एकदम पास आ गयी थी।

"आप खुद ही देख लीजिये ..." कहते हुए मैंने उसका हाथ पकड़ कर अपने लिंग पर रख दिया। उसके हाथ ने मेरे लिंग के पूरे दंड का माप लिया - अँधेरे में लज्जा कम हो जाती है। उसको समझ आ रहा था की लिंगोत्थान के कारण ही मैं मूत्र नहीं कर पा रहा था।

"आप कोशिश कीजिये ... मैं इसको पकड़ लेती हूँ?" उसने एक मासूम सी पेशकश की।
"ठीक है ..." कह कर मैंने अपने जघन क्षेत्र की मांस-पेशियों को ढीला करने की कोशिश की। रश्मि के कोमल और गर्म स्पर्श से यह काम होने में समय लगा। खैर, बहुत कोशिश करने के बाद मैंने महसूस किया की मूत्र ने मेरे लिंग के गलियारे को भर दिया है ... तत्क्षण ही मैंने मूत्र को बाहर निकलता महसूस किया। 

"इसकी स्किन को पीछे की तरफ सरका लो ..." मैंने रश्मि को निर्देश दिया। 

रश्मि ने वैसे ही किया, लेकिन बहुत कोमलता से। मैंने भी लगभग एक मिनट तक मूत्र विसर्जन किया। मुझे लगता है की, संभवतः रश्मि ने छोटे लड़कों को मूत्र करवाया होगा, इसीलिए जब मैंने मूत्र कर लिया, तब उसने बहुत ही स्वाभाविक रूप से मेरे लिंग को तीन-चार बार झटका दिया, जिससे मूत्र की बची हुई बूँदें भी निकल जाएँ। मैंने उसकी इस हरकत पर बहुत मुश्किल से अपनी मुस्कराहट दबाई। इसके बाद हम दोनों वापस अपने कमरे में आ गए।

अच्छा, हमारी तरफ शादी की पहली रात को एक रस्म होती है, जिसको ‘मुँह-दिखाई’ कहा जाता है। इसमें दुल्हन का घूंघट उठाने पर उसको एक विशेष स्मरणार्थक वस्तु (निशानी) दी जाती है। मुझे इसके बारे में याद आया, तो मैंने अपने बैग में से रश्मि के लिए खास मेड-टू-आर्डर करधनी निकाली। यह एक 18 कैरट सोने की करधनी थी, जिसमें रश्मि के रंग को ध्यान में रखते हुए इसमें लाल-भूरे, नीले और हरे रंग के मध्यम मूल्यवान जड़ाऊ पत्थर लगे हुए थे। वह उत्सुकतावश मुझे देख रही थी की मैं क्या कर रहा हूँ, और यूँ ही नग्नावस्था में बिस्तर के बगल खड़ी हुई थी। मैं वापस आकर बिस्तर पर बैठ गया और रश्मि को अपने एकदम पास बुलाकर उसकी कमर में यह करधनी बाँध दी, और थोड़ा पीछे हटकर उसके सौंदर्य का अवलोकन करने लगा। 

रश्मि के नग्न शरीर पर यह करधनी ही सबसे बड़ी वस्तु बची हुई थी – उसकी बेंदी और नथ तो कब की उतर चुकी थीं, और बिंदी हमारे सम्भोग क्रिया के समय न जाने कब खो गयी। उसका सिन्दूर और काजल अपने अपने स्थान पर फ़ैल गया, और लिपस्टिक का रंग मिट गया था। किन्तु न जाने कैसे यह होने के बावजूद, वह इस समय बिलकुल रति का अवतार लग रही थी। थोड़ी ऊर्जा होती तो एक बार पुनः सम्भोग करता। लेकिन अभी नहीं।

“आपको यह उपहार अच्छा लगा?”

रश्मि ने लज्जा भरी मुस्कान के साथ सर हिला कर मेरा उपहार स्वीकार किया। मैंने उसकी कमर को आलिंगन में लेकर उसकी नाभि, और फिर उसकी कमर को करधनी के ऊपर से चूमा।

“आई लव यू!” कह कर मैंने उसको अपने पास बिठा लिया और फिर हम दोनों बिस्तर पर लेट कर एक दूसरे की बाहों में समां कर गहरी नींद में सो गए।

मेरी नींद खिड़की से आती चिड़ियों की चहचहाने के आवाज़ से खुली। मैं बहुत गहरी नींद सोया हूँगा, क्योंकि मुझे नींद में किसी भी सपने की याद नहीं थी। मैंने एक आलस्य भरी अंगड़ाई ली, तो मेरा हाथ रश्मि के शरीर पर लगा, और उसके साथ साथ रात की सारी घटनाएं ही याद आ गयीं। मैंने अपनी अंगड़ाई बीच में ही रोक दी, जिससे रश्मि की नींद न टूटे। मैं वापस बिस्तर में रश्मि से सट कर लेट गया - आपको मालूम है "स्पून पोजीशन"? बस ठीक वैसे ही। रश्मि के शरीर की नर्मी और गर्माहट ने मेरे अन्दर की वासना पुनः जगा दी। कम्बल के अन्दर मेरा हाथ अपने आप ही रश्मि के एक स्तन पर आकर लिपट गया। अगले कुछ ही क्षणों में मैं उसके शरीर के विभिन्न हिस्सों का जायज़ा लेने लगा। साथ ही साथ यह भी सोचता रहा की क्या रश्मि को भी रात की बातें याद होंगी?

मुझे अपनी सुहागरात की एक एक बात याद आ रही थी, और उसी आवेश में मेरा हाथ रश्मि की आकर्षक योनि पर पर चला गया, और मेरी उंगलियाँ उसके स्पंजी होंठों को दबाने सहलाने लगी। प्रतिक्रिया स्वरुप रश्मि के कोमल और मांसल नितम्ब मेरे लिंग पर जोर लगाने लगे। सोचो! ऐसी सुन्दर लड़की को सेक्स के बारे में सिखाना भी एक बहुत बड़ी उपलब्धि है। कुछ ही देर की मालिश ने रश्मि के मुंह से कूजन की आवाज़ आने लग गयी - लड़की को नींद में भी मज़ा आ रहा था। मेरे लिंग में कड़ापन पैदा होने लगा। विरोधाभास यह की आज के दिन हमको कुछ पूजायें करनी थी - ये भारतीय शादियों में सबसे बड़ा जंजाल है - खैर, वह सब करने में अभी देर थी। फिलहाल मुझे इस सौंदर्य और प्रेम की देवी की पूजा करनी थी।
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12-17-2018, 02:08 AM,
#14
RE: Chodan Kahani घुड़दौड़ ( कायाकल्प )
मैंने उसकी योनि से हाथ हटा कर उसके कोमल स्तन पर रख दिया और कुछ क्षण उसके निप्पल से खेलता रहा। फिर, मैंने अधीर होकर रश्मि को अपनी तरफ भींच लिया। मेरे ऐसा करने से रश्मि के शरीर में हलचल हुई, लेकिन मैंने उसको छोड़ा नहीं। रश्मि अब तक जाग चुकी थी - लेकिन सूरज की रोशनी, जो कमरे के सामने के पेड़ की पत्तियों से छन छन कर अन्दर आ रही थी, उसकी आँखों को चुंधिया रही थीं, और उसकी आँखें बंद हो रही थीं। मैं उसके इस भोलेपन और प्रेम से अभिभूत हो गया था - मेरे लिए वह निश्छल लालित्य की प्रतिमूर्ति थी। एकदम परफेक्ट!

मैंने अपनी पकड़ ढीली कर दी और हाथ हटा लिया, जिससे वह अपने हाथ पाँव हिला सके और नींद से जाग सके। रश्मि ने सबसे पहले अपना सर मेरी तरफ घुमाया - मैंने देखा की उसकी आँखों में पल भर में कई सारे भाव आते गए - आश्चर्य, भय, परिज्ञान, लज्जा और प्रेम! संभवतः उसको कल रात के कामोन्माद सम्बन्धी अनुभव याद आ गए होंगे। उसके होंठों पर एक मीठी मुस्कान आ गयी।

"गुड मोर्निंग, हनी!" मैंने दबी हुई आवाज़ में कहा, "सुबह हो गयी है ..."

रश्मि ने थोड़ा उठते हुए अंगडाई ली, इससे ओढ़ा हुआ कम्बल उसके ऊपर से सरक गया, और एक बार फिर से रश्मि के स्तन नग्न हो गए। मेरी दृष्टि तुरंत ही उन कोमल टीलों की तरफ चली गयी। उसने झटपट अपने शरीर को ढकना चाहा, लेकिन मैंने उसके हाथ को रोक दिया और अपने हाथ से उसके स्तन को ढक लिया और उसको धीरे धीरे दबाने लगा। 

"हमारे पास कुछ समय है ..." मैंने कहा - मेरी आवाज़ और आँखों में कामुकता थी। मेरा लिंग उसके शरीर से अभी भी लगा हुआ था, लिहाज़ा वह उसके कड़ेपन को अवश्य ही महसूस कर पा रही थी।

रश्मि समझते हुए मुस्कुराई, "जी .... आपने कल मुझे थका दिया ... अभी .... थोड़ा नरमी से करियेगा? वहां पर थोड़ा दर्द है ..." 

तब मुझे ध्यान आया ... थोड़ा नहीं, काफी दर्द होगा। कल उसने पहली बार सेक्स किया है, और वह भी ऐसे लिंग से। निश्चित तौर पर उसकी हालत खराब होगी। ये बेचारी लड़की मुझे मना नहीं कर सकेगी, इसलिए ऐसे बोल रही है। ऐसे में मुझे हड़बड़ी नहीं करनी चाहिए। लेकिन, मेरा अभी सेक्स करने का बहुत मन है ... और हर बार लिंग से ही सेक्स किया जाए, यह कोई ज़रूरी नहीं। मैंने सोचा की मैं उसके साथ मुख-मैथुन करूंगा, और अगर लकी रहा, तो वह भी करेगी। देखते हैं।

"ओह गॉड! आई वांट यू सो मच!" कहते हुए मैं रश्मि के ऊपर झुक गया और अपने होंठो को उसकी गर्दन से लगा कर मैंने रश्मि को चूमना शुरू किया - एक पल को वह हलके से चौंक गयी, लेकिन फिर मेरे प्रत्येक चुम्बन के साथ उठने वाले कामुक आनंद का मज़ा लेने लगी। मैंने अपनी जीभ को रश्मि के मुख में डालने का प्रयास किया तो रश्मि ने भी अपना मुख खोल कर पूरा सहयोग दिया। हमारी जिह्वाओं ने एक अद्भुत प्रकार का नृत्य आरम्भ कर दिया, जिसका अंत (जैसी मेरी उम्मीद थी) हमारे शरीर करते। रश्मि ने अपनी बाहें मेरी गर्दन के इर्द-गिर्द डाल कर मुझे अपनी तरफ समेट लिया और मैंने उसको कमर से थाम रखा था। भाव प्रवणता से चल रहे हमारे चुम्बन ने हम दोनों में ही यौनेच्छा की अग्नि पुनः जला दी। 

उसकी गर्दन को चूमते हुए मैं नीचे की तरफ आने लगा और जल्दी ही उसके कोमल स्तनों को चूमने लगा। मुझे उनको देख कर ऐसा लगा की वो मेरे ही प्रेम और दुलार का इंतज़ार कर रहे थे। यहाँ पर मैंने काफी समय लगाया - उसके निप्पलों को अपने मुंह में भर कर मैंने उनको अपनी जीभ से सावधानीपूर्वक खूब मन भर कर चाटा, और साथ ही साथ दोनों स्तनों के बीच के सीने को चूमा। मेरी आवभगत का प्रभाव उसके निप्पलो ने तुरंत ही खड़े होकर प्रदर्शित करना शुरू कर दिया। कुछ और देर उसके स्तनों को दुलार करने के बाद, मैंने अनिच्छा से और नीचे बढ़ना आरम्भ कर दिया। उसके निप्पल्स को चूमना और चूसना सबसे रोमांचक अनुभव था। मेरा अगला निशाना उसका पेट था, जिसको चूमते हुए मैं अपने चेहरे को उस पर रगड़ता भी रहा।

खैर, जैसा विधि का विधान है, मैं कुछ ही देर में उसके पैरों के बीच में पहुँच गया। मेरे चेहरे पर, मैं उसकी योनि की आंच साफ़ साफ़ महसूस कर रहा था। मैंने उसकी दोनों जांघो को फैला दिया, जिससे उसकी योनि के होंठ खुल गए। उसकी योनि के बाहर का रंग उसके निप्पल के जैसा ही था, लेकिन योनि के अन्दर का रंग 'सामन' मछली के रंग के जैसा था। रश्मि की योनि के दोनों होंठ, उसके जीवन के पहले रति-सम्भोग के कारण सूजे हुए थे। मैंने उन्ही पर अपनी जीभ का स्नेह-लेप लगान शुरू कर दिया, और बहुत ही धीरे-धीरे अन्दर की तरफ आता गया। मुझे रश्मि के मन का प्रावरोध कम होता हुआ सा लगा - उसने मेरे चुम्बन पर अपने नितम्बों को हिलाना चालू कर दिया था - और मैं यह शर्तिया तौर पर कह सकता हूँ की उसको भी आनंद आ रहा था। कुछ देर ऐसे ही चूमते और चाटते रहने के बाद रश्मि के कोमल और कामुक कूजन का स्वर आने लग गया, और साथ ही साथ उसकी योनि से काम-रस भी रिसने लगा। इसको देख कर मुझे शक हुआ की संभवतः उसका रस मेरे वीर्य से मिला हुआ था। लेकिन मुझे कोई परवाह नहीं थी - वस्तुतः, यह देख कर मेरा रोमांच और बढ़ गया। मैंने उसकी जांघें थोड़ी और खोल दी, जिससे मुझे वहां पर लपलपा कर चाटने में आसानी रहे।

मेरी जीभ ने जैसे ही उसकी योनि के अन्दर का जायजा लिया उसकी हलकी सी चीख निकल गयी, "ऊई माँ!"

रश्मि के मज़े को देख कर मैंने अपने काम की गति को और बढ़ा दिया - अब मैं उसकी पूरी योनि को अपने मुंह में भर कर चूसने लगा, और अपने खाली हाथों से उसके स्तनों और निप्पलों को दबाने कुचलने लगा। जब उसके निप्पल दुबारा खड़े हो गए, तब मैंने अपने हाथो को वहां से हटा कर रश्मि के नितम्ब को थाम लिया। फिर धीरे धीरे, मैंने दोनों हाथों से उसके नितंबों की मालिश शुरू कर दी। मेरा मुंह और जीभ पहले से ही उसकी योनि पर हमला कर रहे थे। रश्मि की तेज़ होती हुई साँसे अब मुझे सुनाई भी देने लग गयी थी।

रश्मि धीरे से फुसफुसाई, "धीरे .. धीरे ..." लेकिन मेरी गति पर कोई अंकुश नहीं था … "आअह्ह्ह्ह! प्लीज! बस ... बस ... अब और बर्दाश्त नहीं कर सकती ...."

प्रत्यक्ष ही है, की यह सब रश्मि के लिए काफी हो चुका था। वह कल रात की गतिविधियों के फलस्वरूप तकलीफ में थी। फिर भी मैंने अभी बंद करना ठीक नहीं समझा - लड़की अगर यहाँ तक पहुंची है, तो उसको अंत तक ले चलना मेरी जिम्मेदारी भी थी, और एक तरह से कर्त्तव्य भी। मेरे हाथ इस समय उसके नितम्बो के मध्य की दरार पर फिर रहे थे। मैंने कुछ देर तक अपनी उंगली उस दरार की पूरी लम्बाई तक चलाई - मन तो हुआ की अपनी उंगली उसकी गुदा में डाल दूँ - लेकिन कुछ सोच कर रुक गया, और उसकी योनि को चूसने - चाटने का कार्य करता रहा।

अब रश्मि के मुख से "आँह .. आँह .." वाली कामुक कराहें निकल रही थी। मानो वह दीन-दुनिया से पूरी तरह से बेखबर हो। अच्छे संस्कारों वाली यह सीधी-सादी लड़की अगर ऐसी निर्लज्जता से कामुक आवाजें निकाले तो इसका बस एक ही मतलब है - और वह यह की लोहा बुरी तरह से गरम है - चोट मार कर चाहे कैसा भी रूप दे दो। पहले तो मेरा ध्यान बस मुख-मैथुन तक ही सीमित था, लेकिन अब मेरा लक्ष्य था की रश्मि को इतना उत्तेजित कर दूं, की सेक्स के लिए मुझसे खुद कहे।
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12-17-2018, 02:08 AM,
#15
RE: Chodan Kahani घुड़दौड़ ( कायाकल्प )
यह सोच कर मैंने अपना मुँह उसकी योनि से फिर से सटाया, और अपनी जीभ को उसके जितना अन्दर पहुंचा सकता था, उतना डाल दिया। मेरे इस नए हमले से वह बुरी तरह तड़प गयी - उसने अपनी टाँगे पूरी तरह से खोल दी, लेकिन योनि की मांस-पेशियों को सिकोड़ ली। ऐसा नहीं है मेरे मन पर मेरा पूरा नियंत्रण था - मेरा लिंग खुद भी पूरी तरह फूल कर झटके खा रहा था।

आप सभी ने तो देखा ही होगा - 'ब्लू फिल्मों' में हीरो कुछ इस तरह दिखाए जाते हैं की मानो वो चार-चार घंटे लम्बे यौन मैराथन को भी मजे में कर सकते हैं। और इतनी देर तक उनका लिंग भी खड़ा रहता है और उनकी टांगो और जांघों में ताकत शेष रहती है। संभव है की कुछ लोग शायद ऐसा करते भी होंगे, और उनकी स्त्रियों से मुझे पूरी सहानुभूति भी है। मुझे अपने बारे में मालूम था की मैं ऐसे मैराथन नहीं खेल सकता हूँ। वैसे भी मैं आज तक किसी भी ऐसे व्यक्ति से नहीं मिला हूँ जिसने ऐसा दावा किया हो। खैर, यह सब कहने का मतलब यह है की मेरे लिए यह सब जल्दी ही ख़तम होने वाला था ....

मैंने ऊपर जा कर रश्मि के होंठ चूमने शुरू कर दिए - हम दोनों ही कामुकता के उन्माद के चरम पर थे और एक दूसरे से उलझे जा रहे थे। रश्मि की टाँगे मेरे कंधो पर कुछ इस तरह लिपटी हुई थी की मुझे कुछ भी करने से पहले उसकी टांगो को खोलना पड़ता। मैंने वही किया और उसके सामानांतर आकर उसको पकड़ लिया। ऐसा करने से मेरा उन्नत शिश्न अपने तय निशाने से जा चिपका।

मुझे लगता है की यौन क्रिया हम सभी को नैसर्गिक रूप में मिलती है - चाहे किसी व्यक्ति को वात्स्यायन की विभिन्न मुद्राओं का ज्ञान न भी हो, फिर भी स्त्री-पुरुष दोनों ही सेक्स की आधारभूत क्रिया से भली भाँति परिचित होते ही हैं। कुछ ऐसा ही ज्ञान इस समय रश्मि भी दिखा रही थी। वह अभी भी कामुकता के सागर में गोते लगा रही थी और पूरी तरह से अन्यमनस्क थी। लेकिन उसका जघन क्षेत्र धीरे-धीरे झूल रहा था - कुछ इस तरह जिससे उसकी योनि मेरे लिंग के ऊपर चल फिर रही थी और उसके अनजाने में ही, मेरे लिंग को अपने रस से भिगो रही थी।

रश्मि अचानक से रुक गयी - उसने अपनी पलकें खोल कर, अपनी नशीली आँखों से मुझे देखा। और फिर बिस्तर पर लेट गयी।

'कहीं यह आ तो नहीं गयी!' मेरे दिमाग में ख़याल आया। 'ये तो सारा खेल चौपट हो गया।'

मैं एक पल अनिश्चय की हालत में रुक गया और अगले ही पल रश्मि ने लेटे-लेटे ही अपना हाथ बढ़ा कर मेरे लिंग को पकड़ लिया और उसको अपनी योनि की दिशा में खीचने लगी। मैं भी उसकी ही गति के साथ साथ चलता रहा। अंततः, वह मेरे लिंग को पकड़े हुए अपनी योनि द्वार पर सटा कर सहलाने लगी। 

यह पूरी तरह से अविश्वसनीय था। 

रश्मि मुझे सेक्स करने के लिए खुद ही आमंत्रित कर रही थी!! 

कामोन्माद का ऐसा प्रदर्शन! 

वाह!

अब आगे जो मुझे करना था, वह पूरी तरह साफ़ था। मैंने बिलकुल भी देर नहीं की। रश्मि को मन ही मन इस निमंत्रण के लिए धन्यवाद करते हुए मैंने उसको हौले से अपनी बाँहों में पकड़ लिया। ऐसा करने से उसके दोनों निप्पल (जो अब पूरी तरह से कड़क हो चले थे) मेरे सीने पर चुभने लगे। मैंने रश्मि को फिर से कई बार चूमा - और हर बार और गहरा चुम्बन। चूमने के बाद, मैंने उसके नितम्बों को पकड़ कर हौले हौले दबा दिया; साथ ही साथ मैंने अपने पैरों को कुछ इस तरह व्यवस्थित किया जिससे मेरा लिंग, रश्मि की योनि को छूने लगे।

मैंने लिंग को हाथ से पकड़ कर, पहले रश्मि के भगनासे पर फिराया, और फिर वहां से होते हुए उसके भगोष्ठ के बीच में लगा कर अन्दर की यात्रा प्रारंभ की। मेरे लिंग की इस यात्रा में उसका साथ रश्मि ने भी दिया। जैसे ही मैंने आगे की तरफ जोर लगाया, नीचे से रश्मि ने भी जोर लगाया। इन दोनों प्रयासों के फलस्वरूप, मेरा लिंग, रश्मि की योनि में कम से कम तीन चौथाई समां गया। रश्मि की उत्तेजना इसी बात से प्रमाणित हो जाती है। मैंने रश्मि की गर्मागरम, कसी हुई, गीली, रसीली योनि में और अन्दर सरकना चालू कर दिया। रश्मि की आँखें बंद थी, और हम दोनों में से कोई भी कुछ भी नहीं बोल रहा था। लेकिन फिर भी, ऐसा लगता था मानो हम दोनों इस नए 'केबल-कनेक्शन' के द्वारा बतला रहे हों। इस समय शब्दों की कोई आवश्यकता नहीं थी। मैंने महसूस किया की मैं अपनी डार्लिंग के अन्दर पूरी तरह से समां गया हूँ।

इस छण में हम दोनों कुछ देर के लिए रुक गए - अपनी साँसे संयत करने के लिए। साथ ही साथ एक दूसरे के शरीर के स्पर्श का आनंद भी लेने के लिए। करीब बीस तीस सेकंड के आराम के बाद मैंने लिंग को थोडा बाहर निकाल कर वापस उसकी योनि की आरामदायक गहराई में ठेल दिया। रश्मि की योनि के अन्दर की दीवारों ने मेरे लिंग को कुछ इस तरह कस कर पकड़ लिया जैसे की ये दोनों ही एक दूसरे के लिए ही बने हुए हों। अब मैंने अपने लिंग को उसकी योनि में चिर-परिचित अन्दर बाहर वाली गति दे दी। साथ ही साथ, हम दोनों एक दूसरे को चूमते भी जा रहे थे।

मेरी कामना थी की यह कार्य कम से कम दस मिनट तक किया जा सके, लेकिन मैं सिर्फ पच्चीस से तीस धक्कों तक ही टिक सका। अपने आखिरी धक्के में मैं जितना भी अन्दर जा सकता था, चला गया। शायद मेरे इशारे को समझते हुए रश्मि ने भी अपने नितम्ब को ऊपर धकेल दिया। मेरा पूरा शरीर स्खलन के आनंद में सख्त हो गया - मेरे लिंग का गर्म लावा पूरी तीव्रता से रश्मि की कोख में खाली होता चला गया। पूरी तरह से खाली होने के बाद मैंने रश्मि को बिस्तर से उठा कर अपने से कस कर लिपटा लिया, और उसके कोमल मुख को बहुत देर तक चूमता रहा। यह आभार प्रकट करने का मेरा अपना ही तरीका था।

हम लोग कुछ समय तक ऐसे ही एक दूसरे के आलिंगन में बंधे हुए यौन क्रिया के आनंद रस पीते रहे, की अचानक रश्मि कसमसाने लगी। मैंने प्रश्नवाचक दृष्टि उसकी ओर डाली।

"क्या हुआ?"

"जी ... टॉयलेट जाना है ...." उसने कसमसाते हुए बोला।

जैसा की मैंने पहले ही बताया है, रश्मि को सेक्स करने के बाद मूत्र विसर्जन का अत्यधिक तीव्र एहसास होता है। वैसे भी सुबह उठने के बाद सभी को यह एहसास तो होता ही है ... लिहाज़ा रश्मि को और भी तीव्र अनुभूति हो रही थी। उसके याद दिलाने से मुझे भी टॉयलेट जाने का एहसास होने लगा। और इस कमरे से लगा हुआ कोई टॉयलेट नहीं था - मतलब अब तो कमरे से बाहर घर के अन्दर वाले बाथरूम में जाना पड़ेगा। इतनी सुबह तो बाहर बगीचे में तो जाया नहीं जा सकता न। वैसे भी अब उठने का समय तो हो ही गया था। आज के दिन कुछ पूजायें करनी थी, और उसके लिए नहाना धोना इत्यादि तो करना ही था।

हम दोनों ही उठ गए। मूर्खता की बात यह की हम दोनों के सारे सामान इस कमरे में नहीं थे। रश्मि ने न जाने कैसे कैसे अपने आप को सम्हाल कर साड़ी, पेटीकोट और ब्लाउज पहना। स्पष्ट ही था की वो साड़ी नियमित रूप से नहीं पहनती थी – संभवतः हमारा विवाह पहला अवसर था जब उसने साड़ी पहनी हो। और इस कारण से वो ठीक से पहनी नहीं गयी, और चीख चीख कर हमारी कल रात की हरकतों की सबसे चुगली रही थी। यह सब करते करते हम दोनों को कम से कम दस मिनट लग गए। इस बीच मैंने भी अपना कुरता और पजामा पहन लिया। उस बेचारी का इस समय बुरा हाल हो रहा होगा - एक तो सेक्स का दर्द और ऊपर से मूत्र का तीव्र एहसास! रश्मि धीरे-धीरे चलते हुए दरवाज़े तक पहुंची। दरवाज़ा खोलने से पहले उसको कुछ याद आया, और उसने अपने सर को पल्लू से ढक लिया।

'हह! भारतीय बहुओं के तौर तरीके! ये लड़की तो अपने मायके से ही शुरू हो गयी!' मैंने मज़े लेते हुए सोचा।

"जाग गयी बेटा!" ये भंवर सिंह थे ... अब उनको क्या बताया जाए की जाग तो बहुत देर पहले ही गए हैं। और ऐसा तो हो नहीं सकता की अपनी बेटी की कामुक कराहें उन्होंने न सुनी हो। रश्मि प्रत्युत्तर में सिर्फ मुस्कुरा कर रह गयी। उसने जल्दी से बाथरूम की तरफ का रुख किया। रश्मि के पीछे ही मैं कमरे से बाहर निकला। मैंने यह ध्यान दिया की वहाँ उपस्थित सभी लोग रश्मि के अस्त-व्यस्त कपड़े और चेहरे को देख कर मंद मंद मुस्कुरा रहे थे। 

"... आइये आइये .." भंवर सिंह जी ने मुझे देख कर कहना जारी रखा, "बैठिये .. सुमन बेटा, जीजाजी के लिए चाय लाओ ..... आप जल्दी से फ्रेश हो जाइये ... आज भी काफी सारे काम हैं।"

कम जान पहचान होने के कारण मैं मना नहीं कर सका। वैसे भी, गरम चाय इस ठण्डक में आराम तो देगी ही। अब मैंने अपने चारों तरफ नज़र दौड़ाई - घर में सामान्य से अधिक लोग थे। 

'शादी-ब्याह का घर है', मैंने सोचा, '... सारे रिश्तेदार आये होंगे ..'

सभी लोग मेरी तरफ उत्सुकतापूर्वक देख रहे थे... लेकिन अगर मेरी नज़र किसी की नज़र से मिलती तो वो तुरंत अपनी नज़र नीची कर लेते - मानो को कोई चोरी पकड़ी गयी हो। एक-दो औरतें लेकिन बड़ी ढिठाई से मुझे घूरे जा रही थी। मैंने उनको नज़रंदाज़ करना ही उचित समझा। भंवर सिंह से आगे कोई बात नहीं हो पायी ... वो आगे के इंतजाम के लिए कमरे से बाहर चले गए थे। लिहाज़ा, अब मेरे पास चाय आने के इंतज़ार के अतिरिक्त और कोई काम नहीं बचा था।

मुझे अब ठण्ड लगने लग गयी थी... मेरे पास इस समय कोई गरम कपड़ा नहीं था। मेरा सामान कहीं नहीं दिख रहा था। 'इतनी ठण्ड में तो जान निकल जायेगी' मैंने सोचा।

"जीजू, आपकी चाय...." यह सुन कर मेरी जान में जान आई।

"थैंक यू!" मैंने मुस्कुराते हुए कहा।

".. और ये है आपके लिए शाल!" सुमन ने बाल-सुलभ चंचलता के साथ कहा।

"सुमन! यू आर अन एंजेल! .... फ़रिश्ता हो तुम!" मैंने मुस्कुराते हुए मन से आभार प्रकट किया।

सुमन के चेहरे पर प्रसन्नता की लहर दौड़ गयी। 

"जीजू ... आपकी स्माइल मुझे बहुत पसंद है ..." सुमन ने चंचलता से कहना जारी रखा, "... और आपसे मैं एक बात कहूँ?"

"हाँ .. बोलो न" मैंने चाय की पहली चुस्की लेते हुए कहा।

"मैं आपको जीजू न बोलूँ तो चलेगा?"

"बिलकुल!"

"मैं आपको दाजू कहूँ?" 

"कह सकती हो .. लेकिन इसका मतलब क्या होता है?"

"दाजू होता है बड़ा भाई ... आप मेरे बड़े भैया ही तो हैं न..." सुमन की इस स्नेह भरी बात ने मेरे ह्रदय के न जाने कैसे अनजान तार छेड़ दिए। मेरा मन हुआ की इस बच्ची को जोर से गले लगा लूँ! एक रोड-ट्रिप पर निकला था, और आज एक पूरा परिवार है मेरे पास!

मेरे चाय पीने, नहा-धो कर नाश्ता करने तक के अंतराल तक रश्मि मेरे सामने नहीं आई। वह अन्दर ही थी ... अपने परिजनों के साथ बात-चीत कर रही होगी। खैर, जब वह बाहर निकली, तो उसने नीले रंग की साड़ी पहनी हुई थी। बाकी का पहनावा कल के जैसा ही था। नई-नवेली दुल्हन को वैसे भी सोलह श्रृंगार करना शोभा भी देता है। बस एक अंतर था – आज उसने मेरी दी हुई करधनी भी पहनी हुई थी। कोई आश्चर्य नहीं की वहां उपस्थित कई लोगों की नज़र उसी करधन पर थी। मैंने कुर्ता और चूड़ीदार पजामा पहना हुआ था। हम दोनों ने ही शाल ओढ़ा हुआ था। दिन में भी ठंडक काफी थी। आज की व्यवस्था यह थी की इस कसबे की मानी हुई संरक्षक देवी के दर्शन और पूजा-पाठ करनी थी। उनका मंदिर घर से कोई एक किलोमीटर दूर पहाड़ के ऊपर बना था। लिहाज़ा वहां पर जाने के लिए पैदल ही रास्ता था। अगर मुझे मालूम होता, तो रश्मि को इतना परेशान न करता। खैर, अब किया भी क्या जा सकता था।

पहाड़ी रास्ते पर चलते हुए मैंने रश्मि से पूछा की क्या वह ठीक से चल पा रही है …. जिसका उत्तर उसने हाँ में दिया। रास्ते में मेरे ससुर जी, सासु माँ और सुमन मुझसे कुछ न कुछ बातें करते जा रहे थे – मुझे या तो उस जगह के बारे में बताते, या फिर अपनी पहचान के लोगो से मेरा परिचय भी करते। कुछ देर चलते रहने के बाद मंदिर आया। वहां पंडित जी पहले से ही तैयार थे, और हमारे आते ही उनके मंत्रोच्चारण शुरू हो गए। कुछ देर में पूजा सम्पन्न हुई और हम लोग मंदिर के बाहर एक चौरस मैदान में आकर रुके। पंडित जी यहाँ भी आकर मंत्र पढने लगे और कुछ ही देर में उन्होंने मुझे एक पौधा दिया, और मुझे उसको रोपने को बोला। मुझे उस समय याद आया की उत्तराँचल में कुछ वर्षो से एक आन्दोलन जैसा चला हुआ है, जिसको "मैती" कहा जाता है। 

आज के दौर में "ग्लोबल वार्मिंग" मानवता और धरती दोनों के लिए एक बड़ी समस्या बनकर उभरा, ऐसे में मैती आंदोलन अपने आप में एक बड़ी मिसाल है। कुछ लोगों के लिए यह सिर्फ रस्म भर हो सकता हैं, लेकिन वास्तविकता में यह एक ऐसा भावनात्मक पर्यावरणीय आंदोलन है जिसे अगर व्यापक प्रचार मिले तो पर्यावरण प्रदूषित ही ना हो। इस रीति में शादी के समय वैदिक मंत्रेच्चार के बीच दूल्हा-दुल्हन द्वारा फलदार पौधों का रोपण किया जाता है। जब भी उत्तराँचल के किसी गांव में किसी लड़की की शादी होती है, तो विदाई के समय दूल्हा-दुल्हन को गांव के एक निश्चित स्थान पर ले जाकर फलदार पौधा लगवाया जाता है। दूल्हा पौधो को रोपित करता है और दुल्हन इसे पानी से सींचती है, फिर गाँव के बड़े बूढ़े लोग नव-दम्पत्ति को आशीर्वाद देते हैं। 

मुझे पता चला की दूल्हा अपनी इच्छा अनुसार मैती संरक्षकों (जिनको मैती बहन कहा जाता है) को पैसे भी देता है, जो की रस्म के बाद रोपे गए पौधों की रक्षा करती हैं, खाद, पानी देती हैं, जानवरों से बचाती हैं। मैती बहनों को जो पैसा दूल्हों के द्वारा इच्छानुसार मिलता है, उसे रखने के लिए मैती बहनों द्वारा संयुक्त रूप से खाता खुलवाया जाता है। उसमें यह राशि जमा होती है। खाते में अधिक धानराशि जमा होने पर इसे गरीब बच्चों की पढ़ाई पर भी खर्च किया जाता है। 'ऐसे प्रयास के लिए तो मैं कितने ही पैसे दे सकता हूँ' मैंने सोचा, लेकिन उस समय मेरी जेब में इतने पैसे नहीं थे। इसलिए मैंने उन लोगो को घर पर अपने साथ बुलाया। वहां पर मैंने एक लाख रुपये का चेक काट कर उनको दिया। मुझे लगा की आज का दिन कुछ सार्थक हुआ।
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12-17-2018, 02:08 AM,
#16
RE: Chodan Kahani घुड़दौड़ ( कायाकल्प )
आज का कार्यक्रम अब समाप्त हो गया था, खाना-पीना करने के बाद अब मेरे पास कुछ भी करने को नहीं था। मुझे रश्मि का साथ चाहिए था, लेकिन यहाँ पर लोगों का जमावड़ा था। जो भी अंतरंगता और एकांत मुझे उसके साथ मिला था, वह सिर्फ रात को सोते समय ही था। मैं उसके साथ कहीं खुले में या अकेले बिताना चाहता था। मैं अपनी कुर्सी से उठ कर अन्दर के कमरे में गया, जहाँ रश्मि थी। मैंने देखा की अनगिनत औरतें और लड़कियां उसको घेर कर बैठी हुई थी। मुझे उनको देख कर चिढ़ हो गयी। मुझे वहां दरवाज़े पर सभी ने खड़ा हुआ देखा … रश्मि ने भी। मैंने उसको इशारे से मेरी ओर आने को कहा। रश्मि उठी, और अपना पल्लू ठीक करती हुई मेरी तरफ आई। 

"जी?"

"रश्मि … कहीं बाहर चलते हैं।"

"कहाँ?" 

"मुझे क्या मालूम? आपका शहर है …. आपको जो ठीक लगे, मुझे दिखाइए …."

"लेकिन, यहाँ पर इतने सारे लोग हैं …"

"अरे! इनसे तो आप रोज़ मिलती होंगी। मुझे आपके साथ कुछ अकेले में समय चाहिए …"

रश्मि के गाल यह सुन कर सुर्ख लाल हो गए। संभवतः, उसको रात और सुबह की याद हो आई हो। 

"जी, ठीक है।"

"और एक बात, यह साड़ी उतार दीजिये।"

"जी???" 

"अरे! मेरा मतलब है की शलवार कुरता पहन कर आओ। चलने फिरने में आसानी रहेगी। हाँ, मुझे आप शलवार कुर्ते में ज्यादा पसंद हैं …." मैंने उसको आँख मारते हुए कहा। 

"जी, ठीक है। मैं थोड़ी देर में बाहर आ जाऊंगी।"

मुझे नहीं पता की उसने शलवार कुर्ता पहन कर बाहर आने के लिए अपने घर में क्या क्या झिक झिक करी होगी, लेकिन क्योंकि यह आदेश मेरी तरफ से आया था, कोई उसका विरोध नहीं कर सका। रश्मि ने हलके हरे रंग का बूटेदार शलवार कुर्ता और उससे मिलान किया हुआ दुपट्टा पहना हुआ था। उसके ऊपर उसने लगभग मिलते रंग का स्वेटर पहना हुआ था। इस पहनावे और लाल रंग की चूड़ियों में वह बला की खूबसूरत लग रही थी। इस समय दोपहर के डेढ़ बज रहे थे। ठंडक और दोपहर होने के कारण आस पास कोई लोग भी नहीं दिखाई दे रहे थे। अच्छी बात यह थी की ठंडी हवा नहीं चल रही थी, नहीं तो यूँ बाहर घूमने से तबियत भी बिगड़ सकती थी। रश्मि मुझे मुख्या सड़क से पृथक, पहाड़ी रास्तों से प्रकृति के सुन्दर दृश्यों के दर्शन करने को ले गयी। कुछ देर तक पैदल चढ़ाई करनी पड़ी, लेकिन एक समय पर समतल मैदान जैसा भी आ गया। रश्मि ने बताया की इसको बुग्याल बोलते हैं। इन चौरस घास के मैदानों में हरी घास और मौसमी फूलों की मानो एक कालीन सी बिछी हुई रहती है। यहाँ से चारों तरफ दूर-दूर तक ऊंचे-ऊंचे देवदार और चीड के पेड़ देखे जा सकते थे। 

"क्या मस्त जगह है …" कहते हुए मैंने रश्मि का हाथ थाम लिया, और उसने भी मेरा हाथ दृढ़ता से पकड़ लिया। 

"मैं आपको अपनी सबसे फेवरिट जगह ले चलूँ?" रश्मि ने उत्साह के साथ पूछा।

"बिलकुल! इसीलिए तो आपके साथ बाहर आया हूँ।"

इस समय अचानक ही किसी तरफ से करारी ठंडी हवा चली। 

"अगर ऐसे ही हवा चलती रही तो ठंडक बढ़ जायेगी" मैंने कहा। रश्मि ने सहमती में सर हिलाया।

"हाँ, इस समय तक पहाडो पर बर्फ गिरनी शुरू हो जाती है…. लेकिन अभी ठीक है… चार बजे से पहले लौट चलेंगे लेकिन, नहीं तो बहुत ठंडक हो जायेगी।" उसने कहा, और बुग्याल में एक तरफ को चलती रही। कोई पांच-छः मिनट चलने पर मुझे सामने की तरफ एक झील दिखने लगी। उसके बगल में ही एक झोपड़ा भी बना हुआ था। रश्मि वहां जा कर रुक गयी। पास से देखने पर यह झोपड़ा नहीं, एक घर जैसा लग रहा था। कहने को तो एकदम वीरान जगह थी, लेकिन कितनी रोमांटिक! एक भी आदमी नहीं था आस पास। 

"यहाँ मैं बचपन में कई बार आती थी …. यह घर मेरे दादाजी ने बनवाया था, लेकिन दादाजी के बाद पिताजी नीचे कस्बे में रहने लगे - वहां हमारी खेती है। पिछले दस साल से हम लोग यहाँ नहीं रहते हैं। लेकिन मैं यहाँ अक्सर आती हूँ। मुझे यह जगह बहुत पसंद है।" 

"क्या बात है!" मैंने एक बाल-सुलभ उत्साह से कहा, "मैंने इससे सुन्दर जगह नहीं देखी …" मैंने रुकते हुए कहा, "और मैंने आपसे सुन्दर लड़की आज तक नहीं देखी।"

रश्मि उत्तर में हलके से मुस्कुरा दी। घर के सामने, झील के लगा हुआ पत्थर का बैठने का स्थान बना हुआ था। हम दोनों उसी पर बैठ गए। इसी समय बदल का एक छोटा सा टुकड़ा सूरज के सामने आ गया और एक ताज़ी बयार भी चली। मौसम एकदम से रोमांटिक हो चला। ऐसे में एक सुन्दर सी झील के सामने, अपनी प्रेमिका के साथ बैठ कर आनंद उठाना अत्यंत सुखद था।

“रश्मि, आई ऍम कम्प्लीटली इन लव विद यू! जब मैंने आपको पहली बार स्कूल जाते हुए देखा, तभी से।” मुझे लगा की आज यह पहला मौका है जब हम दोनों पहली बार एक दूसरे से खुल कर बात चीत कर सकते हैं। तो इस अवसर को मैं गंवाना नहीं चाहता था। “मुझे कभी कभी शक भी हुआ की कहीं यह ऐसे ही लालसा तो नहीं – लेकिन मेरे मन ने मुझे हर बार बस यही कहा की ऐसा नहीं हो सकता। और यह की मुझे आपसे वाकई बेहद बेहद मोहब्बत है।“

रश्मि मेरी हर बात को अपनी मनमोहक भोली मुस्कान के साथ सुन रही थी। मैंने उसके हाथ को अपने हाथ में ले लिया और कहना जारी रखा,

“और मैं आपसे वादा करता हूँ की मैं आपको बहुत खुश रखूंगा, और आपके हर सपने को पूरा करूंगा।”

“मेरा सपना तो आप हैं! आप जिस दिन हमारे घर आये, उस दिन से आज तक मैं हर दिन यही सोचती हूँ की ये कोई सपना तो नहीं! वो दिन, वो पल इतना अद्भुत था, की मेरी बोलती ही बंद हो गयी थी।”

“मेरा भी यही हाल था, जब मैंने आपको पहली बार देखा। मैंने उसी क्षण में प्यार महसूस किया।”

हम दोनों कुछ पल यूँ ही चुप-चाप बैठे रहे, फिर मैंने पूछा,

“रश्मि, आपसे एक बात पूछूं? व्हाट डू वांट इन लाइफ?”

मेरे इस प्रश्न पर रश्मि ने पहली बार मेरी आँखों में आँखे डाल कर देखा। वह कुछ देर सोचती रही, और फिर बोली,

“हैप्पीनेस!”

“और आप हैप्पी कैसे होंगी?”

“मेरी ख़ुशी आपसे है – आप मेरे जीवन में आ गए, और मैं खुश हो गयी। आपका प्यार और आपको प्यार करना मुझे ख़ुश रखेगा। आप मेरे सब कुछ है – आपके साथ मैं बहुत सेफ हूँ! ये बात मुझे बहुत ख़ुश करती है। और यह भी की मेरा परिवार साथ में हो और सुरक्षित, स्वस्थ हो।”

रश्मि की भोली बातें सुन कर मैं भाव-विभोर हो गया। 

“मैं आपको बहुत प्यार करूंगा! आई विल कीप यू एंड योर फॅमिली सेफ! एंड आई विल बी एवरीथिंग एंड मोर फॉर यू!”

“यू आलरेडी आर द होल वर्ल्ड फॉर मी!”

रश्मि की इस बात पर मैंने उसको जोर से भींच कर अपने गले से लगा लिया। हम लोग काफी देर तक ऐसे ही एक दूसरे को पकडे हुए बातें करते रहे – कोई भी विशेष बात नहीं। बस मैंने उसको अपने रोज़मर्रा के काम, बैंगलोर शहर, और उत्तराँचल में जो भी जगहें देखीं, उसके बारे में देर तक बताता रहा। रश्मि ने भी मुझे अपने परिवार, बचपन, और अन्य विषयों के बारे में बताया। मेरे बचपन में कोई भी ऐसी बात नहीं हुई जिसको मैं वहाँ बताता, और ऐसे अच्छे मौसम में बने मूड का सत्यानाश करता। 

रश्मि बहुत ख़ुश थी। वह अभी खुल कर मेरे साथ बात कर रही थी, और लगातार मुस्कुरा रही थी। मैं निश्चित रूप से कह सकता था की वह हमारी इस नयी अंतरंगता को पसंद कर रही थी। जब हम एक रिश्ते में शुरूआती नाज़ुक दौर – जिसमें एक दूसरे को जानने की प्रक्रिया चल रही होती है – को पार कर लेते हैं, तो हममें एक प्रकार की शान्ति और ताजगी आ जाती है। इस समय हम दोनों अपने सम्बन्ध के दूसरे चरण में थे, जिसमें हम हमारे मासूम प्रेम का कोमल एहसास था।

मेरे मन में एक कल्पना थी - और वह यह की खुले में - संभवतः किसी खेत में या किसी एकांत, निर्जन जगह में - सम्भोग करना। यह स्थान कुछ वैसा ही था। वैसे यह बहुत संभव था की गाँव और कसबे का कोई व्यक्ति यहाँ आ सकता, लेकिन मेरे हिसाब से इस समय और इस मौसम में यह होने की सम्भावना थोड़ी कम थी। यह देख कर मेरे दिमाग में अपनी कल्पना को मूर्त रूप देने की संभावना जाग उठी। ताज़ी, सुगन्धित हवा ने मेरे अन्दर एक नया जोश भर दिया था। कुछ तो बात होती है नए विवाहित जोड़ों में – उनमें उत्साह और जोश भरा हुआ रहता है। हमने अभी कुछ ही घंटों पहले ही सेक्स किया था, लेकिन अभी पुनः करने की तगड़ी इच्छा जाग गयी। 

मैंने रश्मि की छरहरी कमर में अपनी बाँह डाल कर उसको अपने से चिपटा लिया। रश्मि भी बहुत ही मुश्किल से मिले इस एकांत का आनंद उठाना चाहती थी - वह भी मुझसे सिमट सी गयी। मैंने अपना गाल, रश्मि के गाल से सटा दिया और सामने के सुन्दर दृश्य का आनंद लेने लगा। ऐसे सुन्दर पर्वतों की गोद में, दुनिया के भीड़-भाड़ से दूर …. यह एक ऐसी दुनिया थी, जहाँ जीवन पर्यन्त रहा जा सकता था। 

"आई लव यू" मैंने कहा और रश्मि के गाल को चूम लिया। रश्मि ने फिर से मुझे अपनी भोली मुस्कान दिखाई। उसके ऐसा करते ही मैंने उसके मुखड़े को अपनी बाँहों में भरा और उसके सुन्दर कोमल होंठों को चूम लिया। मैंने उसको विशुद्ध प्रेम और अभिलाषा के साथ चूम रहा था। रश्मि मेरे लिए पूरी तरह से "परफेक्ट" थी। हाँलाकि वह अभी नव-तरुणी ही थी, और उसके शरीर के विकास की बहुत संभावनाएं थी। मुझे उसके शरीर से बहुत लगाव था - लेकिन मेरे मन में उसके लिए प्रेम सिर्फ शारीरिक बंधन से नहीं बंधा हुआ था, बल्कि उससे काफी ऊपर था। लेकिन यह सब कहने का यह अर्थ नहीं है की मुझे उसके शरीर के भोग करने में कोई एतराज़ था। मैं उससे जब भी मौका मिले, प्रेम-योग करने की इच्छा रखता था। रश्मि मेरे चुम्बन से पहले तो एकदम से पिघल गयी - उसका शरीर ढीला पड़ गया। उसकी इस निष्क्रियता ने असाधारण रूप से मेरे अन्दर की लालसा को जगा दिया। 

मैंने उसके होंठो को चूमना जारी रखा - मेरे मन में उम्मीद थी की वह भी मेरे चुम्बन पर कोई प्रतिक्रिया दिखाएगी। मुझे बहुत इंतज़ार नहीं करना पड़ा। उसने बहुत नरमी से मेरे होंठो को चूमना शुरू कर दिया, और मुझे अपनी बांहों में बाँध लिया। मैंने उसको अपनी बांहों में वैसे ही पकड़े रखा हुआ था, बस उसको अपनी तरफ और समेट लिया। हम दोनों के अन्दर से अपने इस चुम्बन के आनंद की कराहें निकलने लगीं। पहाड़ की ताज़ी, सुगन्धित हवा ने हम दोनों के अन्दर स्फूर्ति भर दी।
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12-17-2018, 02:09 AM,
#17
RE: Chodan Kahani घुड़दौड़ ( कायाकल्प )
न जाने कैसे और क्यों मैंने इन चुम्बनों के बीच रश्मि के स्वेटर को उसके शरीर से उतार दिया। रश्मि पहाड़ो पर ही पली बढ़ी थी - यह ठंडक वस्तुतः उसके लिए सुखदायक थी। स्वेटर तो उसने बस किसी अप्रत्याशित ठंडक से बचने के लिए पहना हुआ था। ठंडी ताज़ी बयार के सुख से रश्मि के मुंह से सुख वाली आह निकल गयी। मैंने उसको पुनः चूमना शुरू कर दिया और साथ ही साथ उसके कुर्ते के ऊपरी बटन खोलने लगा। मुझे ऐसा करते देख कर रश्मि चुम्बन तोड़ कर पीछे हट गयी।

"रुकिए! प्लीज!" उसने अपनी आँखें सिकोड़ते हुए कहा, "… यहाँ नहीं। अगर कोई देख लेगा तो?"

"मुझे नहीं लगता यहाँ कोई इस समय आएगा।"

"लेकिन दिन में ….?"

"क्यों? दिन में क्या बुराई है? सब कुछ साफ़ साफ़ दिखता है!" मैंने शैतानी भरा जवाब दिया।

"आप भी न … आपकी बीवी को अगर कोई ऐसी हालत में देखेगा तो क्या आपको अच्छा लगेगा?" बात कहने का उसका अंदाज़ शिकायत वाला था, लेकिन स्वर में किसी भी प्रकार की शिकायत नहीं थी। 

"ह्म्म्म … इस बारे में सोचा नहीं कभी। लेकिन अभी लग रहा है की मेरी इतनी सेक्सी बीवी है, तो कोई अगर देख भी ले, तो क्या ही बुराई है?" मैंने उल्टा जवाब देना जारी रखा। 

"प्लीज …." रश्मि ने विनती की। लेकिन मेरे हाथ तब तक उसके कुर्ते के सारे बटन खोल चुके थे (सिर्फ तीन बटन ही तो थे)। 

“यू आर स्मोकिंग हॉट! आपका साथ मुझे इतना उत्तेजित कर देता है की मैं अपने आपको रोक ही नहीं पाता!” मैं सुन नहीं रहा था, और उसके कुरते को हटाने की चेष्टा कर रहा था। 

उसने हथियार डाल ही दिए, "अच्छा ठीक है … लेकिन प्लीज एक बार देख लीजिये की कोई आस पास नहीं है।" वो बेचारी मेरी किसी भी बात का विरोध नहीं कर रही थी।

"ओके स्वीट हार्ट!" मैंने अनिच्छा से उससे अलग होते हुए कहा। मैंने जल्दी से चारों तरफ का सर्वेक्षण किया। वैसे मेरे ऐसा करने का कोई फायदा नहीं था। मुझे पहाड़ी इलाको की कोई जानकारी नहीं थी। कोई भी व्यक्ति, जो इस इलाके का जानकार हो, अगर चाहे तो बड़ी आसानी से मेरी दृष्टि से बच सकता था। मुझे यह पूरा काम समय की बर्बादी ही लग रहा था। मैं जल्दी ही वापस आ गया।

कोई नहीं है …." मैंने ख़ुशी ख़ुशी उद्घोषणा की, और वापस उसको चूमने में व्यस्त हो गया। मैंने देखा की रश्मि ने अपने कुर्ते के बटन वापस नहीं लगाए थे, मतलब यह की वह भी तैयार थी। मैंने उसके कुर्ते के अन्दर हाथ डाल कर उसके स्तनों को हलके हलके से दबाया और फिर उसके कुर्ते को उसके शरीर से उतारने लग गया। 

"वाकई कोई नहीं है न?" रश्मि ने घबराई आकुलता से पूछा - अब तक कुर्ते का दामन उसके स्तनों के स्तर तक उठ चुका था।

मैंने उसको फिर से चूम लिया। 

"यहाँ बस दो ही लोग आने वाले थे … जो की आ चुके हैं" मैंने मुस्कुराते हुए जवाब दिया।

रश्मि भी उत्तर में मुस्कुराई और मुस्कुराते हुए उसने अपने दोनों हाथ उठा दिए, जिससे मैं उसके कुर्ते को उतार सकूं। कुरता उतरते ही उसके सुन्दर और दिलचस्प स्तन दिखने लग गए। उसके निप्पल पहले ही खड़े हुए थे - या तो यह ठंडी हवा का प्रभाव था, या फिर कामुक उत्तेजना का। मैंने उसके स्तनों को अपने हाथों में समेट लिया। रश्मि के दृदय के स्पंदन, उसके स्तनों की कोमलता और उसके निप्पलों के कड़ेपन को महसूस करके मुझे उसकी उत्तेजना का अनुमान हो गया। हम वापस अपने कामुक चुम्बनों के आदान प्रदान में व्यस्त हो गए।

रश्मि की उत्तेजना बढती ही जा रही थी - वह मेरे चुम्बनों का उत्तर और भी भूखे चुम्बनों से दे रही थी। उसके होंठ मेरे होंठो को बुरी तरह चूम रहे थे, और अब उसके हाथ मेरे पजामे के नाड़े को टटोल कर खोलने की कोशिश कर रहे थे। उसकी इस हरकत से मुझे आश्चर्य हुआ। 

'प्रकृति और उसके अजीब प्रभाव' मैंने मन ही मन सोचा।

नाडा खुलते ही मेरा पजामा नीचे सरक गया, और सामने अंडरवियर को उभारता हुआ मेरा लिंग दिखने लगा। ठंडी हवा से मेरे जांघो और अन्य संवेदनशील स्थानों पर रोंगटे खड़े हो गए। रश्मि ने कल रात की दी हुई शिक्षा का पालन करते हुए मेरे अंडरवियर को नीचे सरका दिया। मेरा उत्तेजित लिंग अब मुक्त था। बिना कोई देर किये उसने लिंग को अपने गरम हाथो में पकड़ कर प्यार से सहलाने लगी। अब तक मैंने भी उसकी शलवार को नाड़े से मुक्त कर दिया था। मैं उससे अलग हुआ और उसकी चड्ढी और शलवार को एक साथ ही नीचे सरका कर उसके शरीर से अलग कर दिया। अब पूर्णतया अनावृत रश्मि इस निर्जन प्राकृतिक सौन्दर्य का एक हिस्सा बन चुकी थी। मैंने भी अपना कुरता और अन्य वस्त्र तुरंत अपने शरीर से अलग कर दिए। हम दोनों ही अब पूर्णरूपेण नग्न हो गए थे - प्रेम-योग में कोई बाधा नहीं आनी चाहिए।

रश्मि की कशिश ही कुछ ऐसी थी की मैं उसके साथ कितनी भी बार सम्भोग कर सकता था। हमारे इस संक्षिप्त सम्बन्ध में मुझे रश्मि के संग का आनंद आने लगा - उसके शरीर का भोग करना, उसके शरीर के हर अंग और उसकी हर भावनाओं का अन्वेषण करना - यह सब मुझे बहुत आनंद देने लग गया था। रश्मि का हाथ मेरे लिंग पर था, और उसको सहला रहा था। मुझे उसकी इस क्रिया से आनंद आने लग गया। उसने ऐसा बस दस बारह सेकंड ही किया होगा की उसने अपना हाथ मेरे लिंग से हटा लिया और पत्थर पर लेट गयी - सम्भोग की मुद्रा में - अपनी टाँगे थोड़ा खोल कर।

"ये क्या है? छोड़ क्यों दिया?" मैंने उसको छेड़ा।

"आइये न!" क्या बात है! 

"नहीं! ऐसे नहीं। कुछ अलग करते हैं!"

"अलग? क्या?"

"अरे! यह कोई ज़रूरी नहीं है की पीनस हमेशा वेजाइना के अन्दर ही जाए!"

"जी …. पीनस क्या होता है? और वो दूसरा आपने क्या कहा?"

"पीनस होता है यह," मैंने अपने लिंग को पकड़ कर दिखाया, "… और वेजाइना होती है यह …." मैंने उसकी योनि की तरफ इशारा किया।"अब समझ में आया आपको?"

"जी! आया …. लेकिन 'ये' 'इसके' अन्दर नहीं आएगा, तो … फिर …. कहाँ …. जाएगा?" रश्मि थोड़ी अस्पष्ट लग रही थी।

"अगर बताऊँगा तो आप नाराज़ तो नहीं होंगी?"

"आप तो मेरे मालिक है … आपकी बात मानना मेरा फ़र्ज़ है!" 

"हनी!" मैंने थोड़ा जोर देते हुए कहा, "मैं तुमको एक बात बोलना चाहता हूँ - और वह यह की किसी शादी में पति-पत्नी दोनों का दर्ज़ा बराबर का होता है। लिहाज़ा, कोई मालिक और कोई गुलाम नहीं हो सकता। और, सेक्स जितना मेरे मज़े के लिए है, उतना ही आपके मज़े के लिए है। इसलिए हम दोनों को ही अपने और एक-दूसरे के मज़े का ध्यान रखना होगा। समझी?"

"जी …. समझ गयी …. आप कुछ बताने वाले थे?"

"हाँ … मैं यह कह रहा था की क्यों न आज आप मेरे 'इसको', अपने मुंह में लें?"

"जीईई!!? मुंह में?"

"हाँ! अगर आप ऐसा करेंगी तो मुझे बहुत अच्छा लगेगा …. लेकिन तभी करियेगा, जब आपका मन करे। मैं कोई दबाव नहीं डालूँगा।"

"नहीं … दबाव वाली बात नहीं है। लेकिन …." बोलते बोलते रश्मि रुक गयी।

"हाँ हाँ …. बताइए न?"

"जी … लेकिन माँ ने बोला था की.…" कहते कहते रश्मि के गाल सुर्ख होने लगे।

मैंने उसको आगे बोलने का हौसला देते हुए सर हिलाया।

"यही की …. आपका … 'बीज' …… बेकार … खर्च न होने दूँ!" रश्मि ने जैसे तैसे अपनी बात ख़तम की।

"ह्म्म्म! माँ ने ऐसा कहा?" रश्मि ने सर हिलाया, "अच्छा, मुझे एक बात बताइए …." रश्मि ने बड़े भोलेपन से मुझे देखा, "…. आपको इससे क्या समझ आया?"

उसने कुछ देर सोचा और कहा, "यही की आपका … वीर्य …. मेरे अन्दर …" वह शर्म से इतनी गड़ गयी की आगे कुछ नहीं बोल पायी।

"हाँ! लेकिन, वीर्य को 'अन्दर' लेने का सिर्फ यही तो एक रास्ता नहीं है …", रश्मि मेरी बात को ध्यान से सुन रही थी, "…. जहाँ तक मुझे मालूम है, तीन रास्ते हैं - पहला तो यह की आप इसको अपनी योनि में जाने दें, जैसे की हमने पहले किया है," रश्मि इस बात से शर्म से और भी लाल हो गयी, लेकिन मैंने अपनी बात कहनी जारी रखी, "दूसरा यह की 'इसको' आप अपने मुँह में लें, और जब मैं वीर्य छोड़ूँ तो आप उसको पी जाएँ …." रश्मि का चेहरा अनिश्चितता और जुगुप्सा से थोडा विकृत हो गया, "… और तीसरा 'गुदा मैथुन'…"

"गुदा?" उसके पूछने पर मैंने उसके नितम्बों पर अपना हाथ फिराया।"

मतलब आपका लिंग मेरे पीछे! बाप रे!" वह थोडा सा रुकी, फिर बोली "न बाबा! मुझे नहीं लगता की यह 'वहां' पर फिट होगा।" 

मैंने कुछ नहीं कहा। उसने कहना जारी रखा, "क्या आप वहाँ डालना चाहते हैं?"

"देखो, कुछ लोग ऐसा करते हैं, और कुछ स्त्रियाँ इसको पसंद भी करती हैं - अगर ठीक ढंग से किया जाए तो!"

"आप.…?"

"अगर आप ट्राई करना चाहती हैं तो.…."

"जी …. मुझे नहीं मालूम। लेकिन अगर ठीक लगा तो कर भी सकती हूँ। आप मुझे वह सब बताइए जिससे मैं आपको खुश रख सकूं।"

"हनी! मैंने पहले ही कहा है, की यह सिर्फ मेरे लिए नहीं है - आपके लिए भी उतना ही है। आप मुझे खुश करना चाहती हैं, यह एक अच्छी बात है.. लेकिन, मैंने भी आपको खुश करना चाहता हूँ।"

इतना कह कर मैं चुप हो गया.. इस सारे वार्तालाप में मेरे लिंग का उत्थान जाता रहा.. रश्मि ने मन ही मन में कुछ तय किया, और फिर हलकी कंपकंपी के साथ मेरे लिंग को अपने हाथ में ले लिया। उसकी छोटी छोटी उंगलिया मेरे लिंग के चारों तरफ लिपटी हुई थीं, जिनसे वो इसको कभी दबाती, तो कभी हलके से खींचती। वह कुछ देर तक यूँ ही खेलती रही - उसने मेरे वृषण को भी अपने हाथ में लिया - उनकी हलकी हलकी मालिश की और उनको कुछ इस प्रकार अपनी हथेली में उठाया जैसे की वह उनका भार जानना चाहती हो। फिर उसने लिंग की जड़ को पकड़ कर धीरे धीरे ऊपर-नीचे वाला झटका देने लगी - मेरे लिंग के आकार में अब तक खासा बढ़ोत्तरी हो चली थी।
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12-17-2018, 02:09 AM,
#18
RE: Chodan Kahani घुड़दौड़ ( कायाकल्प )
रश्मि ने मेरी तरफ एक शरारती मुस्कान फेंकी, "मुझे नहीं लगता की यह मेरे वहां पर फिट हो पायेगा।"

उसने मेरे लिंग के साथ छेड़-खानी करनी बंद नहीं करी। इस समय वह उसकी पूरी लम्बाई पर अपना हाथ फिरा रही थी, जिसके कारण मेरे शिश्न का शिश्नग्रच्छद पीछे सरक गया और उसका गुलाबी चमकदार हिस्सा दिखने लगा। उसने अचानक ही मेरे लिंग की नालिकपथ से रिसते हुए द्रव को देखा।

"ये यहाँ से क्या निकल रहा है?" उसने उत्सुकतावश पूछा।

"इसको 'प्री-कम' कहते हैं" मैंने बताया।

उसने कुछ देर मेरे लिंग को यूँ ही देखा, और फिर धीरे से आगे झुक कर, मानो एक प्रयोगात्मक तरीके से प्री-कम को चाट लिया, और फिर मेरी तरफ देखा। मैंने उस पर प्रश्नवाचक दृष्टि डाली।

उसने मुस्कुराते हुए कहा, "थोड़ा नमकीन है …. लेकिन, आपका टेस्ट अच्छा है।" 

फिर, थोड़ा रुक कर, "मुझे बताइये की आपको कैसा पसंद है?"

मुझे लगा की जैसे वह मुझसे पूछ रही हो की वह मुख-मैथुन कैसे करे। 

मैंने पूछा, "आपने लोलीपॉप खाया है?" उसने हाँ में सर हिलाया। 

"बस इस गुलाबी हिस्से को लोलीपॉप के जैसे ही चूसो और चाटो। आप चाहे तो लिंग का और हिस्सा भी अन्दर ले सकती हैं.…. लेकिन, ध्यान से - यह बहुत ही नाज़ुक होता है - दांत न लगने देना।

"रश्मि ने समझते हुए अपनी जीभ पुनः बाहर निकाली और धीरे धीरे से मेरे लिंग के इस गुलाबी हिस्से को चारो तरफ से चाटा, और फिर इस प्रक्रिया में पुनः निकले हुए प्री-कम को चाट लिया। मेरे सात इंच लम्बे लिंग को बीच से पकड़ कर उसने अपने मुंह को धीरे धीरे खोलना शुरू किया। जब मेरा लिंग उसके मुंह के बिलकुल करीब आया, तब मुझे उसकी गरम साँसे अपने लिंग पर महसूस हुई। यह कुछ ऐसा संवेदन था, जिससे मुझे लगा की मैं अभी स्खलित हो जाऊँगा।

अब उसके होंठ मेरे लिंग के गुलाबी हिस्से के करीब आधे भाग पर जम गए। रश्मि बस एक पल को ठहरी, और फिर उसने लिंग को अपने मुँह में सरका लिया। मुझको एक जबरदस्त संवेदी अघात लगा। आप लोगो में जो लोग इतने भाग्यवान हैं, जिनको अपनी पत्नी या प्रेमिका से मुख-मैथुन का सुख मिला है, वो लोग यह बात समझ सकते हैं। और जिन लोगो को यह सुख नहीं मिला हैं, उनको अवश्य ही अपनी पत्नी या प्रेमिका से यह विनती करनी चाहिए। यह आघात था रश्मि के गरमागरम मुंह में निगले जाने का.. और यह आघात था इस संज्ञान का की एक अति-सुन्दर किशोरी यह कर रही थी.…

जैसा मैंने पहले भी बताया है, मेरा लिंग रश्मि की कलाई से भी ज्यादा मोटा है। लिहाज़ा, यह बहुत अन्दर नहीं जा सकता था। रश्मि ने भी यह अनुमान लगा लिया होगा की कितना अन्दर जा सकता था, क्योंकि उसने करीब करीब तीन इंच अपने मुंह में लिया होगा जब उसको घुटन सी महसूस हुई।

"बहुत ज्यादा अन्दर लेने की ज़रुरत नहीं है।" मैंने उसको कहा. उसने मेरे लिंग को मुंह में लिए लिए ही सर हिलाया, और धीरे धीरे अपनी जीभ को मेरे लिंग के सर और बाकी हिस्से पर फिरना शुरू कर दिया। मैंने महसूस किया की वह इसको थोड़ा चूस भी रही थी (उसके गाल वैसे ही हो रहे थे जैसा की चूसते समय होते हैं)…

"थोडा और तेज़!" मैंने उसको प्रोत्साहित किया। उसकी गति बढ़ गयी.. रश्मि इसको हलके से चूसती और शिश्नाग्र को चुभलाती थी - जिससे मेरे लिंग का कड़ापन और बढ़ जा रहा था। 

कभी कभी वो गलती से अपने दांतों से लिंग को हलके हलके काट भी रही थी और जोर जोर से चूस रही थी। इस चूषण का असर मेरे लिंग पर वैसा ही जैसे उसकी योनि की मांस-पेशियाँ मेरे लिंग पर कसती हैं। इस क्रिया में बीच बीच में रश्मि मेरे शिश्नाग्र के छेद के अन्दर अपनी जीभ भी घुसाने का प्रयास कर रही थी। इसके कारण मुखो रह रह के बिजली के झटके जैसे लग रहे थे। मेरे गले से उन्माद की तेज़ आवाज़ छूट पड़ी, और पूरा शरीर थरथराने लगा।

कुछ ही समय बीता होगा की मुझे अपने वृषण पर वैसा ही एहसास हुआ जैसा स्खलन के पूर्व होता है.… संभवतः, रश्मि ने भी यह महसूस किया होगा (हमारे प्रेम-मिलन के पूर्व अनुभव से उसको यह ज्ञान तो हो ही गया होगा)…. अब चूँकि वह मेरा 'बीज' नष्ट नहीं कर सकती थी, अतः उसको मेरा वीर्य पीना तय था!

इस संज्ञान से मेरा स्खलन बहुत ही तीव्र हुआ - मेरे गले से साथ ही साथ एक भारी कराह भी निकली। संभवतः उसको यह उम्मीद नहीं थी की मैं इस तीव्रता के साथ स्खलित होऊंगा। उसको थोड़ी सी उबकाई आ गयी, और इस कारण से मेरे दुसरे और तीसरे स्खलन का कुछ वीर्य उसके होंठो से बाहर ही छलक गया। लेकिन उसने अपने आपको संयत किया और आगे आने वाले स्खलनों को पी गयी। तत्पश्चात उसने मेरे लिंग को पम्प की तरह से चला कर बाकी बचा हुआ वीर्य भी निकाल कर गटक गयी।मेरे घुटने कमज़ोर होकर कांपने लगे - मुझे लगा की मैं अभी चक्कर खाकर गिर जाऊँगा। 

ऐसा ख़याल आते ही, मैंने रश्मि के दोनों कंधे थाम लिए, लेकिन फिर भी मेरे पैरों का कम्पन गया नहीं। रश्मि ने मेरा लिंग अभी भी अपने मुंह से बाहर नहीं निकाला था, लेकिन अभी वह उसको बहुत ही नरमी से चूस रही थी। उसको संभवतः महसूस हुआ होगा की अब कुछ भी नहीं निकल रहा है - उसने मेरी तरफ देखा और अपने मुंह को मेरे लिंग से अलग कर के कहा, 

"मैंने ठीक से किया?"

मैंने हामी भरी तो उसने आगे कहा, "आपने कितना ढेर सारा छोड़ा! … आप अभी खुश हैं?"

"बहुत!" मैं बस इतना ही बोल पाया।

वह खिलखिला कर हंस पड़ी.… मैं नीचे रश्मि के बराबर आकर बैठ गया और उसको चूमने लगा। मुझे अपने वीर्य का स्वाद आने लगा.. लेकिन रश्मि के स्वाद से मिलने के कारण मुझे ये अभी स्वादिष्ट लग रहा था। उसको चूमते हुए मैं उसकी पीठ सहलाने लगा - हवा की ठंडी के कारण उसकी त्वचा की सतह ठंडी हो गयी थी, लेकिन शरीर के अन्दर की गर्मी ख़तम नहीं हुई थी।

मुझे अचानक ही वातावरण की ठंडी का एहसास हुआ, तो मैंने उठ कर रश्मि को अपने साथ ही उठा लिया और चट्टान पर अपने कपड़े बिछा कर फिर उसको बैठने को बोला। 

जब वो बैठ गयी, तो मैंने कहा, "अब मेरी बारी है …. आपको खुश करने की!" 

यह कहते हुए मैंने रश्मि को हल्का सा धक्का देकर उस जुगाड़ी बिस्तर पर लिटा दिया, और उसके मुख को पूरी कामुकता के साथ चूमने लगा। मेरे मुख को जगह देने के लिए रश्मि का मुख भी पूरी तरह से खुला हुआ था। उसकी जीभ मेरी जीभ के साथ टैंगो नृत्य कर रही थी। कुछ देर उसके मुख को चूमने के बाद मैंने उसके दाहिने कंधे को चूमना शुरू किया और उसके ऊपरी सीने को चूमते हुए उसके बाएँ स्तन पर आकर टिक गया। रश्मि ने अपने हाथो की गोद बना कर मेरे सर को सहारा दिया, और मैंने उसके स्तन को शाही अंदाज़ में भोगना आरम्भ कर दिया - पहले मैंने उसके बाएं स्तन को चूसा, चूमा और दबाया, और फिर यही क्रिया उसके दायें स्तन पर की।

काफी समय स्तनों को भोगने के बाद मैं उसके धड़ को चूमते हुए उसके पेट तक आ गया। वहां मैंने उसकी नाभि के चारों तरफ अपनी जीभ से वृत्ताकार तरीके से चाटा, और फिर नाभि के अन्दर जीभ डाल कर कुछ देर चाटने का प्रोग्राम किया। मेरी इस हरकत से रश्मि की खिलखिलाहट छूट गयी। इसके बाद मैंने उसको सरल रेखा में चूमना शुरू किया और उसकी योनि के दरार के एकदम शुरूआती को चूम लिया। रश्मि के गले से आनंद की चीख निकल गयी और साथ ही साथ उसने अपने नितम्ब कुछ इस तरह उठा दिए जिससे उसकी योनि और मेरे मुख का संपर्क न छूटे! इस निर्जन स्थान में निर्बाध प्रेम संयोग करने के कारण वह बहुत ही आश्वस्त लग रही थी। लेकिन मैंने वह हिस्सा फिलहाल छोड़ दिया और उसके जांघ के भीतरी हिस्से को चूमने लगा। रश्मि ने अपनी जांघे खोल दी - इस उम्मीद में की मैं उसकी योनि पर हमला करूंगा। मैंने देखा की रश्मि की योनि के दोनों होंठ उसके काम-रस से भीग गए थे। मैंने उसके दाहिने पैर को उठाया और उसको चूमना शुरू किया - मैं उसकी पिंडली चूमते हुए टखने तक पहुंचा और उसके मेहंदी से सजे पैर को चूमा। 

चूमते हुए मैंने उसके पैर के अंगूठे को कुछ देर चूसा भी। मेरे ऐसा करने से रश्मि ने खिलखिलाते हुए अपना पैर वापस खीच लिया, और बोली, "गुदगुदी होती है!" मैंने फिर यही क्रिया उसके बाएं पैर पर करनी शुरू की। कुछ देर ऐसे ही खिलवाड़ करने के बाद मैं वापस जांघो के रास्ते होते हुए उसकी योनि की तरफ बढ़ने लगा। हाँलाकि, हम लोग पहले भी सम्भोग कर चुके थे, लेकिन रश्मि की योनि का ऐसा प्रदर्शन नहीं हुआ था। दिन के उजाले में मुझे उसका आकार प्रकार ठीक से दिखा - उसकी योनि के मांसल होंठ उसके टांगों के बीच के हिस्से की तरफ झुके हुए थे और चिकने और स्थूल थे (जैसा मैं पहले भी कह चुका हूँ, इनका रंग सामन मछली के मांस के रंग का था)। इनके ऊपरी हिस्से में गुलाबी मूंगे के रंग का हुड था, जिसमे से उसका भगनासा दिख रहा था। रश्मि की साँसे अब तक बहुत भारी हो चली थीं। 

मैंने रश्मि की टाँगे पूरी तरह से खोल दीं - उसके शरीर का लचीलापन मेरे लिए बहुत ही आश्चर्यजनक था! उसकी जांघे लगभग एक-सौ-साठ अंश तक खुल गयी थीं! मैंने अपनी जीभ से उसकी योनि के निचले हिस्से को ढंका और नीचे से ऊपर की तरफ चाटा - बहुत ही धीरे धीरे! जैसे ही मेरी जीभ का संपर्क उसके भगनासे से हुआ, उसकी सिसकी छूट गयी, और साथ ही साथ उसके शरीर में एक थरथराहट भी।

"हे भगवान!" वो बस इतना ही बोल पायी। लेकिन मेरे लिए यह काफी था।मैंने अपने मुख को वहां से हटाया और बैठे हुए ही अपने दोनों अंगूठों की सहायता से उसके योनि पुष्प की पंखुड़ियों को खोल कर उसके भगनासे को अनावृत कर दिया। उसकी योनि के अंदरूनी होंठ पतले थे और काफी छोटे थे। योनि-छिद्र गुलाबी लाल रंग का था, और उसका व्यास करीब करीब चौथाई इंच रहा होगा। उसकी योनि में से जिसमे दूधिया, लेकिन पारभासी द्रव रिस रहा था और योनि से होते हुए उसकी गुदा की तरफ जा रहा था। 

मैंने अपनी जीभ से उसके योनि रस का आस्वादन करते हुए, भगनासे को चाटना आरम्भ कर दिया। 

"आऊऊ!" रश्मि कराही, "थोडा थोड़ा दर्द होता है!"

अरे! अगर मज़ा लेना है तो कुछ तो सहना पड़ेगा न! लेकिन मेरे पास रश्मि को यह समझाने का समय और संयम नहीं था। मैंने उस छोटे से बिंदु को चाटना जारी रखा। रश्मि ने एक गहरी सांस छोड़ी, और अपने नितम्बो को मेरे चाटने की ताल में ऊपर की तरफ हिलाना शुरू कर दिया - मानो वह स्वयं ही अपनी योनि का भोग चढ़ा रही हो। कुछ देर तक यूँ ही चाटने के बाद मैंने अचानक से उसके समस्त गुप्तांग को अपने मुंह में भर कर कास के चूस लिया और अपनी जीभ को बड़े ही हिंसात्मक तरीके से उसके भगनासे पर फिराने लगा।

रश्मि की गले से एक अत्यंत कामुक सिसकारी छूट गयी और उसका शरीर कामोत्तेजना में दोहरा हो गया। उसके हाथ मेरे सर को बलपूर्वक पकड़ कर अपनी योनि में खीचने लगे। उसके हाँफते हुए गले से आहें निकलने लगीं।

उसका शरीर एक कमानी जैसा हो गया, और मेरे सर पर उसकी पकड़ और भी मजबूत हो गयी और अचानक ही उसका शरीर एकदम से कड़ा हो गया। रश्मि के शरीर में तीन बार झटके आये, और तीनो बार उसके मुंह से "ऊउह्ह्ह्ह!" निकला। अंततः, वह निढाल होकर लेट गयी।

रश्मि मुख मैथुन के ऐसे प्रहार के आघात के बाद अपनी आँखे बंद किये लेटी हुई थी - उसके स्तन उसकी तेज़ चलती साँसों के साथ ही उठ बैठ रहे थे और उसकी साँसे अभी भी उसके मुंह से आ-जा रही थीं। उसकी जांघे वापस खुल गयी थीं और उसकी छोटी सी योनि मेरे मौखिक परिचर्या के कारण पूरी तरह से गीली हो गयी थी - उसकी योनि से काम-रस अभी भी निकल रहा था।

हलकी ठण्ड होने के बावजूद रश्मि का शरीर पसीने की एक पतली परत से ढक गया था। मैंने उसके हाँफते हुए मुख को अपने मुख में लेकर भरपूर चुम्बन दिया - हमारे तीन संसर्गों में ही हमारे बीच के गुणधर्म और ऊर्जा कई गुना बढ़ चुके थे। इस विस्तीर्ण निर्जन प्राकृतिक स्थान में अपनी भावनाएँ अवरुद्ध करने का कोई अर्थ नहीं था। लिहाज़ा, हमारा जोश पाशविक जुनून तक पहुँच गया। हमारा चुम्बन कामोन्माद की पराकाष्ठ पर था - चुम्बनों के बीच में हम एक दूसरे के होंठों को हल्के हलके चबा भी रहे थे। मुझे लगा की हमारी जिह्वाएँ एक कठिन मल्लयुद्ध में भिड़ने वाली थी की रश्मि कसमसाते हुए बोली, "जी …. मुझे टॉयलेट करना है।"
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12-17-2018, 02:09 AM,
#19
RE: Chodan Kahani घुड़दौड़ ( कायाकल्प )
टॉयलेट? मुझे अब कुछ कुछ समझ आ रहा था। अवश्य ही रश्मि को सम्भोग के बाद मूत्र करने का संवेदन होता है। हो सकता है। ये सब सोचते हुए मुझे एक विचार आया। हम लोग इतने दुष्कर कार्य कर रहे थे, क्यों न एक कार्य और जोड़ लें? 

"टॉयलेट जाना है? और अगर मैं न जाने दूँ तो?" कहते हुए मैंने उसको अपनी बाँहों के घेरे में पकड़ कर और जोर से पकड़ लिया। रश्मि कसमसाने लगी। 

"प्लीज! जाने दीजिये न! नहीं तो यहीं पर हो जाएगा!" कहते हुए रश्मि शरमा गयी। 

"हा हा! ठीक है, कर लो …. लेकिन, मुझे देखना है।"

मेरी बात सुन कर रश्मि की आँखें आश्चर्य से फ़ैल गयीं! मेरी कामासक्ति के प्रयोग में रश्मि ने अभी तक पूरा साथ दिया था, लेकिन उसके लिए ये एक नया विषय था। 

"क्या?! छी! आप भी न!" 

"क्या छी? मैंने तो आपका सब कुछ देख लिया है, फिर इसमें क्या शर्म?" मेरी बात सुन कर रश्मि और भी शरमा गयी। मैं अब उठ कर बैठ गया और साथ ही साथ रश्मि को भी उसकी बाँहे पकड़ कर बैठा लिया, और इसके बाद मैंने रश्मि की टाँगे थोड़ी फैला दीं। मेरी इस हरकत से रश्मि खिलखिला कर हंस दी। 

"इस तरह से?" मैंने सर हिल कर हामी भरी …. "मुझे नहीं लगता की मैं ऐसे कर सकती हूँ!"

"जानेमन, अगर इस तरह से नहीं कर सकती, तो फिर बिलकुल भी नहीं कर सकती।" मैंने ढिठाई से कहा।

मैंने रश्मि का टखना जकड़ रखा था, और दृढ़ निश्चय कर रखा था की मैं उसको मूत्र करते हुए अवश्य देखूँगा - और अगर हो सका तो उसकी मूत्र-धार को स्पर्श भी करूंगा। उस समय नहीं मालूम था की यह अनुभव मुझे अच्छा भी लगेगा या नहीं - बस उस समय मुझे यह तजुर्बा लेना था। अंग्रेजी में जिसे 'किंकी' कहते हैं, वही! रश्मि ने थोड़ी कसमसाहट करके मेरी पकड़ छुड़ानी चाही, लेकिन नाकामयाब रही और अंततः उसने विरोध करना बंद कर दिया। उसने अपनी मुद्रा थोड़ी सी व्यवस्थित करी - पत्थर पर ही वह उकड़ू बैठ गयी - उसके ऐसा करने से मुझे उसकी योनि का मनचाहा दर्शन होने लगा।

"आप सचमुच मुझे ये सब करते देखना चाहते हैं?" मैंने हामी भरी, "…. ये सब कितना गन्दा है!"

"जानू! इसीलिए! मैं बस एक बार देखना चाहता हूँ। अगर हम दोनों को अच्छा नहीं लगा तो फिर नहीं करेंगे! ओके? जैसे आपने मेरी बात अभी तक मानी है, वैसे ही यह बात भी मान लीजिये।"

"जी, ठीक है … मैं कोशिश करती हूँ।"

यह कहते हुए रश्मि ने अपनी आँखें बंद कर लीं, और मूत्र पर ध्यान लगाया। उसकी योनि के पटल खुल गए - मैंने देखा की वहां की माँस पेशियाँ थोडा खुल और बंद हो रही थीं (मूत्राशय को मुक्त करने का प्रयास)। रश्मि के चमकते हुए रस-सिक्त गुप्तांग को ऐसी अवस्था में देखना अत्यंत सम्मोहक था।

मैंने देखा की मूत्र अब निकलने लगा है - शुरू में सिर्फ कुछ बूँदें निकली, फिर उन बूँदों ने रिसाव का रूप ले लिया, और कुछ ही पलों में मूत्र की अनवरत धार छूट पड़ी। रश्मि का मुँह राहत की साँसे भर रहा था। उसकी आँखें अभी भी बंद थीं - मैंने अपना हाथ आगे बढ़ा कर उसके मूत्र के मार्ग में लाया और तत्क्षण उसकी गर्मी को महसूस करने लगा। 

कोई दस सेकंड के बाद रश्मि का मूत्र त्यागना बंद हुआ। वह अभी भी आँखें बंद किये हुई थी - उसकी योनि की पेशियाँ सिकुड़ और खुल रही थीं और उसमें से मूत्र निकलना अब बंद हो चला था। मेरे दिमाग में न जाने क्या समाया की मैंने आगे बढ़ कर उसकी योनि को अपने मुंह में भर लिया, और रश्मि के मूत्र का पहला स्वाद लिया - यह नमकीन और थोड़ा तीखा था। मुझे इसका स्वाद कोई अच्छा नहीं लगा लेकिन उसका स्वाद अद्वितीय था और इसलिए मुझे बहुत रोचक लगा। मैंने उसकी योनि से अपना मुँह कास कर चिपका लिया और उसको चूस कर सुखा दिया। 

मेरी इस हरकत से रश्मि मेरे ऊपर ही गिर गयी - उसकी टांगों में कम्पन सा हो रहा था। उसने जैसे तैसे अपने शरीर का भार व्यवस्थित किया, जिससे मुझे परेशानी न हो, और फिर मुझे भावुक हो कर जकड कर एक ज़ोरदार चुम्बन दिया, "हनी … आई लव यू! …. ये … बहुत …. अजीब था। मेरा मतलब … यह बहुत उत्तेजक है, लेकिन बहुत ही …. अजीब!"

रश्मि को इस प्रकार अपनी भावनाएँ बताते हुए देखने से मुझे बहुत अच्छा लगा। एक प्रेमी युगल को अपनी अपनी काम भावनाएं एक दूसरे को बतानी चाहिए। तभी एक दूसरे को पूर्ण रूपेण संतुष्ट किया जा सकता है।

"आई लाइक्ड इट! इसको थोड़ा और आगे ले जायेंगे!" मैंने कहा और रश्मि को पुनः चूमने लगा।

सुमन का परिप्रेक्ष्य: 

सुमन कोई पाँच मिनट से झाड़ी के पीछे खड़ी हुई अपने दीदी और जीजाजी के रति-सम्भोग के दृश्यों को देख रही थी। उसके माँ और पिताजी ने उसको उन दोनों के पीछे भेज दिया था की उनको वापस ले आये, क्योंकि मौसम कभी भी गड़बड़ हो सकता है। सुमन रास्ते में लोगो से पूछते हुए इस तरफ आ गयी थी - उसको रश्मि की इस फेवरिट स्थान का पता था। सुमन उस जगह पर पहुँचने ही वाली थी की उसको किसी लड़की के कराहने और सिसकने की आवाज़ आई। 

वह आवाज़ की दिशा में बढ़ ही रही थी की उसने झील के बगल वाले प्रस्तर खंड पर दीदी और जीजू को देखा - वह दोनों पूर्णतः नंग्युल (नग्न) थे - दीदी लेटी हुई थी - उसके पाँव फैले हुए थे और आँखें बंद थीं - जीजू का सर दीदी की रानों (जाँघों) की बीच की जगह सटा हुआ था और वो उसकी पेशाब करने वाली जगह को चूम, चाट और पलास (सहला) रहे थे। उनके इस हरकत से ही दीदी की कराहटें निकल रही थीं। 

'छिः! जीजू कितने गंदे हैं! दीदी दर्द से कराह रही है और वो हैं की ऐसी गन्दी जगह को पलास रहे हैं!' ऐसा सोचते हुए सुमन की निगाहें अपने जीजू के निचले हिस्से पर पड़ी - उनका छुन्नू और अंडे दिख रहे थे। वह पहले सोचती थी की दीदी बहुत दुबली है, लेकिन उसको ऐसे निरावृत देख कर उसको समझ आया की वो तो एकदम गुंट (सुन्दर और सुडौल) है। जीजू भी बिना कपड़ों के कितने सुन्दर लगते हैं! 

सुमन को कुछ ही पलों में समझ आ गया की उसका यह आंकलन की दीदी दर्द से कराह रही है, दरअसल गलत था - वह वस्तुतः मज़े में आहें भर रही है। कोई चाहे कितना भी मासूम क्यों न हो, सयाना होते होते रति क्रिया का नैसर्गिक ज्ञान उसमें स्वयं आ जाता है। सुमन को स्त्री पुरुष के शारीरिक बनावट का अंतर मालूम था और उसको यह भी मालूम था की लिंग और योनि का आपस में क्या सम्बन्ध है। 

लेकिन उसको यह नहीं ज्ञात था की इस संयोजन में आनंद भी आता है। इस कारण से उसको अपनी भोली-भाली दीदी को इस प्रकार आनंद प्राप्त करने को उद्धत देख कर आश्चर्य हुआ। 

'कितनी निर्लज्जता से दीदी खुद भी अपनी योनि को जीजू के मुँह में ठेले जा रही थी! कैसी छंछा (चरित्रहीन औरत) जैसी हरकत कर रही है दीदी!'

एक बात देख कर सुमन को काफी रोमांच आया - जीजू के हाथ दीदी के दोनों दुदल (स्तन) और दुदल-घुंडी (निप्पल) को रह रह कर मींज भी रहे थे। इस समय दीदी जीजू के सर को पकड़ कर अपनी योनि में खीच रही थी और हाँफ रही थी। सुमन ने देखा की अचानक ही दीदी का शरीर कमानी जैसा हो गया, और उसके शरीर में झटके आने लगे। फिर वह निढाल होकर लेट गयी।

कुछ देर दीदी लेटी रही और फिर उठ कर जीजू से कुछ बाते करने लगी। फिर वह ऐसी मुद्रा में बैठ गयी जैसे पेशाब करते समय बैठते हैं - लेकिन पत्थर पर और वह भी जीजू के सामने? दीदी को ऐसा करते हुए तो वह सोच भी नहीं सकती थी - लेकिन जो प्रत्यक्ष में हो रहा है उसका क्या?

'इसको बिलकुल भी शर्म नहीं है क्या?'

सुमन को अपनी दीदी को ऐसे खुलेआम पेशाब करते देख कर झटका लगा और एक और झटका तब लगा जब जीजू ने अपना हाथ आगे बढ़ा कर उसके पेशाब की धार को छुआ। और उसका मन जुगुप्सा से भर गया जब उसने देखा की जीजू ने दीदी के पेशाब वाली जगह को अपने मुंह में भर लिया। 

'ये दीदी जीजू क्या कर रहे हैं? कितना गन्दा गन्दा काम!'

सुमन वहां से वापस जाने ही वाली थी की उसने देखा की दीदी और जीजू आपस में कुछ बात कर रहे हैं और जीजू का छुन्नू तेजी से उन्नत होता जा रहा है - उसका आकार प्रकार देख कर सुमन का दिल धक् से रह गया। 

'यह क्या है?' सुमन ने सिर्फ बच्चों के शिश्न देखे थे, जो की मूंगफली के आकार जैसे होते हैं। वो भी कभी कभी उन्नत होते हैं, लेकिन जीजू का तो सबसे अलग ही है। अलग … और बहुत सुंदर … और और बहुत … बड़ा भी! ये तो उसकी स्कूल की स्केल से भी ज्यादा लम्बा लग रहा था और मोटा भी था - बहुत मोटा।

दीदी ने बहुत ही प्यार से जीजू के छुन्नू को धीरे धीरे पलासना शुरू कर दिया था, और साथ ही साथ वो चट्टान पर कुछ इस तरह से लेट गयी की उसकी उसकी रानें पूरी तरह से खुल गयी। लेकिन फिर भी दीदी अपने उस हाथ से, जो जीजू के छुन्नू पर नहीं था, अपनी पेशाब करने वाली जगह को और फैला रही थी। दीदी की फैली हुई योनि को देख कर सुमन के दिल में एक आशंका या डर सा बैठ गया।

'क्या करने वाली है ये?' 

और फिर वही हुआ जिसकी उसको आशंका थी - जीजू अपना छुन्नू दीदी की योनि में धीरे धीरे डालने लगे। दीदी की छाती तेज़ साँसों के कारण धौंकनी जैसे ऊपर नीचे हो रही थी। 

'दीदी को कितना दर्द होगा! बेचारी देखो कैसे उसकी साँसे डर के मारे बढ़ गयी हैं!'

दीदी नीचे की तरफ, जीजू के छुन्नू को देख रही थी - जीजू अब साथ ही साथ दीदी के दुदल मींज रहे थे और चुटकी से दबा रहे थे। अंततः जीजू का पूरा का पूरा छुन्नू दीदी के अन्दर चला गया - दीदी के गले से एक गहरी आह निकल गयी। सुमन को वह आह सुनाई पड़ी - उसके दिमाग को लगा की दीदी दर्द के मारे कराह रही है, लेकिन उसके दिल को सुख भरी आह सुनाई दी। 

जीजू ने दीदी से कुछ कहा। जवाब में दीदी ने सर हिला कर हामी भरी। 

'दीदी ठीक तो है? बाप रे! इतनी मोटी और लम्बी चीज़ कोई अगर मेरे में डाल दे तो मैं तो मर ही जाऊंगी!' सुमन ने सोचा।

"करिए न … रुकिए मत।" सुमन को दीदी की हलकी सी आवाज़ सुनाई दी। 

'दीदी क्या करने को कह रही है? और वो ऐसी हालत में बोल भी कैसे पा रही है। मेरी तो जान ही निकल जाती और मैं रोने लगती।'

दीदी की बात सुन कर जीजू की कमर धीरे धीरे आगे पीछे होने लगी - लेकिन ऐसे की उनका छुन्नू पूरे समय दीदी के अन्दर ही रहे और बाहर न निकले। 

'हे भगवान्!' सुमन अब मंत्रमुग्ध होकर अपने दीदी और जीजा के यौन संसर्ग का दृश्य देख रही थी।
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12-17-2018, 02:09 AM,
#20
RE: Chodan Kahani घुड़दौड़ ( कायाकल्प )
रश्मि का परिप्रेक्ष्य: 

रश्मि को पिछले के रति-संयोगों में वैसा नहीं महसूस हुआ था, जैसा की उसको अभी हो रहा था। उसके पति का बृहद लिंग उसकी नन्ही सी योनि का इस प्रकार उल्लंघन और उपभोग कर रहा था जिसकी व्याख्या करना अत्यंत कठिन था! वह लिंग जिस तरह से उसकी योनि द्वार को फैला रहा था और इस क्रिया से होने वाला कष्ट भी अब उसको प्रिय लगने लगा था। उस लिंग के प्रत्येक प्रवेशन से उन दोनों के जघन क्षेत्र एकदम ठीक जगह पर, एकदम ठीक बल के साथ टकरा रहे थे। और उसके पति के वृषण उसके नितम्बो पर नरम नरम चपत लगा रहे थे। 

ऐसा सुख रश्मि को पहले नहीं महसूस हुआ। यह संवेदना थी आनंद की, कष्ट की, आनंदातिरेक की और एक तरह की हानि की। और कुछ भी हो, इस काम में मज़ा बहुत आ रहा था। 

जब रश्मि के विवाह का दिन निकट आने लगा, तो पास पड़ोस की तीन चार 'भाभियों' ने उसको अंतहीन और अधकचरी यौन शिक्षा प्रदान की। उनके हिसाब से पुरुष का लिंग सामान्यतः संकरा, थोड़ा लटकता हुआ, पतली ककड़ी जैसे आकार का होता है। किन्तु उसके पति का लिंग तो उनके बताये जैसा तो बिलकुल ही नहीं था - बल्कि उसके विपरीत कहीं अधिक प्रबल, लम्बा और मोटा था। उन्होंने यह भी बताया था की यौन क्रिया तो बस दो से चार मिनट में ख़तम हो जाती है, और ऐसा कोई घबराने वाली बात नहीं होती, और यह भी की ये तो पुरुष अपने मज़े के लिए करते हैं। लेकिन उसका पति इस विभाग में भी निश्चित रूप में लाखों में एक है - एक तो उनके बीच का एक भी यौन प्रसंग कम से कम पंद्रह बीस मिनट से कम नहीं चला … और तो और 'उन्होंने' उसके आनंद को हर बार वरीयता दी। भाभियों के हिसाब से सेक्स का मतलब लिंग का योनि में अन्दर बाहर जाना और तीन चार मिनट में काम ख़तम। लेकिन अब तक उन दोनों ने जितनी भी बार भी सेक्स किया, उतनी ही बार सब कुछ नया नया था। 

आखिर कितनी विषमता हो सकती है, इस चिरंतन काल से चली आ रही नैसर्गिक क्रिया में? रश्मि को अपनी योनि में एक तेज़ धक्का महसूस हुआ - उसने ध्यान किया की उसके पति का लिंग कुछ और फूल रहा था। और जिस तरह से वह लिंग उसके क्रोड़ को निःशेष कर रहा था, उससे वह अपने पति और उसके लिंग, दोनों की ही मुरीद बन चुकी थी। उसको मन ही मन ज्ञात हो चला था की रूद्र की वो पूरी तरह गुलाम बन गयी है। पहले तो अपने व्यक्तित्व, फिर अपने व्यवहार और अब अपने यौन-सामर्थ्य से उसके पति ने उसको पूरी तरह से जीत लिया था। इसके एवज़ में वह कुछ भी कहेंगे तो वह करेगी। अगर रूद्र चाहे तो दिन के चौबीसों घंटे उसके साथ सम्भोग कर सकता है और वो मना नहीं कर सकती थी।

मेरा परिप्रेक्ष्य:

आमतौर पर पुरुष एक स्खलन के आधे घंटे तक पुनः संसर्ग के लिए नहीं तैयार हो पाते। लेकिन रश्मि की कशिश ही कुछ ऐसी है की मैं तुरंत तैयार हो जाता हूँ। उसका अद्वितीय रूप, उसका भोलापन, उसकी सरलता और उसका कमसिन शरीर मेरी कामातुरता को कई गुना बढ़ा देता है। कभी कभी मन होता है की उसकी योनि में अपने लिंग का इतने बल से घर्षण करूँ की वहां लाल हो जाए। लेकिन, स्त्रियाँ हिंसा से नहीं, प्रेम से जीती जाती है। लिहाज़ा, मैं अपने मन के पशु पर लगाम लगा कर लयबद्ध तरीके से उसकी योनि का मर्दन कर रहा हूँ। उसकी कसी हुई और चिकनी योनि में मेरे लिंग का आवागमन बहुत ही सुखमय लग रहा है।

रश्मि का परिप्रेक्ष्य: 

रश्मि की कामाग्नि कुछ इस प्रकार से धधक रही है की उसको न तो अपने नीचे के शिलाखंड की शीतलता महसूस हो रही है और न ही अपने पर्यावरण की। इस समय उसके पूरे अस्तित्व का केंद्र उसकी योनि थी, जहाँ पर उसके पति का लिंग अपन कर्त्तव्य कर रहा था। उसके हर धक्के में आनंद और पीड़ा की ऐसी मधुर झंकार छूट रही थी की उसको लग रहा था की वह स्वयं ही कोई वाद्य-यन्त्र हो। ऐसे ही आनंद के सागर में हिचकोले खाते हुए उसकी दृष्टि झाड़ियों के पीछे चली गयी। 

'कोई तो वहां है!' हाँलाकि उसके नेत्रों में खींचे वासना के डोरे उसकी अवलोकन को धुंधला बना रहे थे, लेकिन थोडा जतन करने से उसको कुछ स्पष्ट दिखने लगा। जो व्यक्ति था, उसके कपडे बहुत ही जाने पहचाने थे। पर समझ नहीं आ रहा था की ये है कौन!

किन्तु, अपने आपको ऐसे नितांत नग्न और यौन की ऐसी प्रच्छन्न अवस्था में किसी और के द्वारा देखे जाने के एहसास से रश्मि की कामुकता और बढ़ गयी। 

'कोई देखता है तो देखे! आखिर वह अपने पति के साथ समागम कर रही है, किसी गैर के साथ थोड़े ही! और देखना ही क्या? जा कर सबको बताये की रश्मि और उसका पति किस तरह से सेक्स करते हैं। और यह भी की उसके पति का लिंग कितना प्रबल है!' 

यह सोचते हुए कुछ ही पलों में वह रति-निष्पत्ति के आनंदातिरेक पर पहुँच गयी। उसकी योनि से काम रस बरस पड़ा और रूद्र के लिंग को भिगोने लगा। आनंद की एक प्रबल सिसकारी उसके होंठों से निकल गयी। लेकिन रूद्र का प्रहार अभी भी जारी था - उसके हर धक्के के साथ ही साथ रश्मि उछल जाती। उसको इस समय न तो अपने आस पास का अभिज्ञान था और न ही भौतिकता के किसी भी नियम का। पूर्ण आनंद से ओत प्रोत होकर रश्मि इस समय अन्तरिक्ष की सैर कर रही थी।

सुमन का परिप्रेक्ष्य: 

सुमन का दिल एकदम से बैठ गया - 'दीदी उसी की तरफ देख रही है! क्या उसने मुझको देख लिया होगा? चोरी पकड़ी गयी? ऐसा लगता तो नहीं! अगर देखा होता तो शायद वो अपने आपको ढकने की कोशिश करती?' उसकी दृष्टि इस समय इस अत्यंत रोचक मैथुन के केंद्र बिंदु पर मानो चिपक ही गयी थी। जीजू का विकराल लिंग दीदी की छोटी सी योनि के अन्दर बाहर जल्दी जल्दी फिसल रहा था, और दीदी उसके हर धक्के से उछल रही थी, और आहें भर रही थी।

मेरा परिप्रेक्ष्य: 

मैंने अचानक ही रश्मि की योनि में चिकनाई बढती हुई देखी, जो की मेरे अगले धक्कों में ही मेरे लिंग के साथ बाहर आने लगी। रश्मि के शरीर की थरथराहट, गहरी गहरी साँसे, पसीने की परत, यह सब एक ही और संकेत कर रहे थे, और वह यह की रश्मि को चरम सुख प्राप्त हो गया है। लेकिन मेरी मंजिल अभी भी दो तीन मिनट दूर थी, इसलिए मैंने धक्के लगाना जारी रखा। कोई एक मिनट बाद रश्मि के शरीर की थरथराहट काफी कम हो गयी और वह अपनी आँखें खोल कर मेरी तरफ देखने लगी। कुछ देर और धक्के लगाने के बाद मुझे अपने अन्दर एक परिचित दबाव बनता महसूस हुआ। मैंने तत्क्षण कुछ नया करने का सोचा। ठीक तभी जब मेरा स्खलन होने वाला था, मैंने अपना लिंग बाहर निकाल लिया और हाथ से अपने लिंग को पकड़ कर मैथुन जैसे गति देने लगा। रश्मि ताज्जुब से मेरी इस हरकत को देखने लगी। उसके चेहरे के हाव भाव बड़ी तेजी से बदल रहे थे। मुझे उसको देख कर ऐसा लगा की उसको समझ आ गया है की मेरा प्लान अपने वीर्य को बाहर फेंकने का है। और यह एक निरादर भरा कार्य था। 

वह कुछ कर या कह पाती उससे पहले ही मैंने अपने आप को छोड़ दिया - मेरे गर्म, सफ़ेद वीर्य के लम्बे मोटे डोरे उसके पेट और जाँघों पर छलक गए। वीर्य की कुछ छोटी-छोटी बूँदें उसके योनि के बालों पर उलझ गईं। ऐसा करते हुए मेरी भरी हुई साँसों के साथ कराहें भी निकल गयीं - मेरे पाँव इस तरह कांपे की मुझे लगा की मैं अभी गिर जाऊँगा। मैंने पकड़ कर अपने आप को सम्हाला। 

रश्मि ने मेरे वीर्य से सने और रक्त वर्ण लिंग को देखा, फिर अपने पेट पर पड़े वीर्य को देखा और फिर बड़े अविश्वास से मेरी तरफ देखा। कुछ देर ऐसे ही घूरने के बाद उसने हाँफते हुए बोला,

"आपने ऐसे क्यों किया? मैंने आपको बोला था की आपका बीज मुझे मेरे अन्दर चाहिए!"

मैं अभी भी अपने आनंद के चरम पर था। 

"जानेमन! सॉरी! आगे से सारा सीमन आपके अन्दर ही डालूँगा!" 

मेरी बात सुन कर पहले तो उसको संतोष हुआ और फिर यह सोच कर की मेरा वीर्य लेने के लिए उसको सम्भोग करना पड़ेगा, उसका चेहरा शर्म से लाल हो गया। 

"इन द मीनटाइम, क्लीन दिस …" मैंने लिंग की तरफ इशारा करते हुए कहा। 

रश्मि मेरे यह कहने पर उठी और मेरे अर्ध उत्तेजित लिंग को अपने मुंह में लेकर चूसने लगी।

सुमन का परिप्रेक्ष्य: 

सुमन ने जो कुछ देखा, उससे उसका मन जुगुप्सा से पुनः भर गया। दीदी जीजू के छुन्नू को मुँह में भर कर चूस रही थी। 

'पहले जीजू, और अब दीदी! ये शादी करते ही क्या हो गया इसको? कितना गन्दा गन्दा काम! और वो भी ऐसे खुले में? और वो जीजू ने दीदी के ऊपर ही पेशाब कर दिया! (सुमन की रूद्र का वीर्यपात पेशाब करने जैसा लगा)? अरे इतनी जोर से लगी थी तो वहां बगल में कर लेते!'

सुमन ने देखा की कुछ देर चूसने के बाद दीदी जीजू से अलग हो गयी और दोनों ही उठ कर झील की तरफ चलने लगे। वहां पहुँच कर जीजू और दीदी अपने अपने शरीर को धोने लगे, और कुछ देर में वापस आकर उसी टीले पर बैठ गए। और आपस में एक दूसरे को गले लगा कर चूमने और पलासने लगे। लेकिन दोनों ने कपडे अभी तक नहीं पहने। 

'अरे! ऐसे तो दोनों को ठंडक लग जाएगी और इनकी तबियत ख़राब हो जाएगी। कुछ तो करना पड़ेगा! ये दोनों तो न जाने कब तक कपडे नहीं पहनेंगे - मैं ही उनके पास चली जाती हूँ। जब इन्ही लोगो को कोई शर्म नहीं है तो मैं क्यों शरमाऊँ?'
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