Bhoot bangla-भूत बंगला
06-29-2017, 11:11 AM,
#1
Bhoot bangla-भूत बंगला
भूत बंगला पार्ट--1


मैं पेशे से एक वकील हूँ. नाम इशान आहमेद, उमर 27 साल, कद 6 फुट, रंग गोरा. लॉ कॉलेज में हर कोई कहता था के मैं काफ़ी हॅंडसम हूँ. कैसे ये मुझे अब तक समझ नही आया क्यूंकी मेरी ज़िंदगी में अब तक कभी कोई लड़की नही आई. मैं शहर के उस इलाक़े में रहता हूँ जहाँ सबसे ज़्यादा अमीर लोग ही बस्ते हैं. नही घर मेरा नही है. किराए पर भी नही है. बस यूँ समझ लीजिए के मेरे यहाँ रहने से उस घर की देखभाल हो जाती है इसलिए मैं यहाँ रहता हूँ.

मेरी माली हालत कुच्छ ज़्यादा ठीक नही है. बड़ी मुश्किल से लॉ कॉलेज की फीस भर पाया था. जैसे तैसे करके अपने लॉ की पढ़ाई पूरी की और प्रॅक्टीस के लिए शहेर चला आया. 3 साल से यहाँ हूँ पर अब तक कोई ख़ास कामयाबी हाथ नही आई पर मैं मायूस नही हूँ. अभी तो पूरी ज़िंदगी पड़ी है.पर एक दिन मैं कामयाब ज़रूर कहलऊंगा, ये भरोसा पूरा है मुझे अपने उपेर.

जिस इलाक़े में मैं रहता हूँ यहाँ शुरू से आख़िर तक वही लोग बस्ते हैं जिनके पास अँधा पैसा है. इतना पैसा है के वो सारी ज़िंदगी बैठ कर खाएँ तो ख़तम ना हो. बड़े बड़े घर, उनके सामने बने शानदार गार्डेन्स, सॉफ सुथरी सड़क. कॉलोनी के ठीक बीच में एक पार्क बना हुआ था जिसके चारों तरफ तकरीबन 6 फुट की आइरन की फेन्स बनी हुई थी.

पर इस सारी खूबसूरती में एक दाग था. बंगलो नो 13. उस पूरे घर पर उपेर से नीचे तक धूल चढ़ि हुई थी. खिड़कियाँ गंदी हो चुकी थी जिनपर मैने आज तक कोई परदा नही देखा था. घर के सामने गार्डेन तो क्या एक फ्लवर पॉट तक नही था. पैंट उतर चुका था. घर के सामने जाने कब्से सफाई नही हुई थी और काफ़ी कचरा जमा हो गया था. घर का दरवाज़ा देखने से ऐसा लगता था के बस अभी गिर ही जाएगा. घर का हाल ऐसा था के हमारे देश के मश-हूर बिखारी भी उस घर में भीख माँगने नही जाते थे.

उस घर के बारे में कहानियाँ कुच्छ ऐसी थी के कोई भी उसमें रहने के ख्याल से ही काँप उठता था. उस घर के बारे में लोग बातें भी इतनी खामोशी से करते थे के जैसे किसी ने सुन लिया तो उनपर मुसीबत आ जाएगी. कहा जाता था के उस घर पर काला साया है और कोई भटकती आत्मा उस घर में निवास करती है और इसी वजह से पिच्छले 20 साल से उस घर में कोई रह नही पाया था. कुच्छ इन कहानियों की वजह से, कुच्छ अकेलेपन, कुच्छ पुरानी ख़स्ता हालत की वजह से उस बंगलो को भूत बंगलो के नाम से जाना जाने लगा था. इसके किसी एक कमरे में बहुत पहले एक खून हुआ था और कहा जाता के उसी दिन से इस बंगलो में उसी की आत्मा भटकती है जिसका खून हुआ था. देखने वालो का कहना था के उन्होने अक्सर रात के वक़्त एक रोशनी को बंगलो के एक कमरे से दूसरे कमरे में जाते देखा था और कयि बार किसी के करहने की आवाज़ भी सुनी थी. सफेद सारी में लिपटी हुई एक औरत को उस घर में भटकते हुए देखने का दावा बहुत सारे लोग करते थे.

इन कहानियों में कितना सच था ये कह पाना बहुत मुश्किल था पर जबकि वो घर बहुत ही कम किराए पर मिल रहा था कोई भी इंसान उसमें रहने को राज़ी नही था. वो घर पूरे शहेर में धीरे धीरे मश-हूर हो गया था. जो उस घर में रहेगा वो मारा जाएगा ऐसी बात हर किसी के दिमाग़ में बैठ चुकी थी. और एक साल गर्मी के मौसम में ये सारा भ्रम उस दिन ख़तम हो गया जब मिस्टर. भैरव मनचंदा उस घर में रहने आए. वो कोई 70 साल के दिखने में एक सीधे सादे से आदमी लगते थे. कोई नही जानता था के वो कहाँ से आए थे पर बंगलो नो 13 उन्होने किराए पर लिया और उस घर की ही तरह खुद भी एक अकेलेपन से भरी ज़िंदगी वहाँ जीने लगे.

शुरू शुरू में तो बात यही चलती रही के भूत बंगलो में रहने वाला इंसान एक हफ्ते से ज़्यादा नही टिक पाएगा पर जब धीरे धीरे एक हफ़्ता 6 महीने में बदल गया और मिस्टर मनचंदा ने वहाँ से नही गये तो लोगों ने भूत बंगलो के भूत को छ्चोड़के उनके बारे में ही बातें शुरू कर दी. बहुत थोड़े वक़्त में बंगलो और भूत की तरह उनके बारे में भी कई तरह की अजीब अजीब कहानियाँ सुनाई जाने लगी.

ऐसी कयि कहानियाँ मैने अपने घर के मलिक की बीवी से सुनी जो अक्सर मुझसे मिलने आया करती थी या यूँ कहूँ के ये देखने आती थी के मैं घर से कुच्छ चुराकर कहीं भाग तो नही गया. वो मुझे बताया करती थी के कैसे मिस्टर मनचंदा उस घर में अकेले पड़े रहते हैं, कैसे वो किसी से बात नही करते, कैसे उन्हें देखने से ये लगता है के उनके पास भी बहुत सा पैसा है, कैसे वो अक्सर रात को शराब के नशे में घर आते देखे गये हैं और कैसे वो काम वाली बाई जो अक्सर दिन के वक़्त भूत बंगलो में जाकर कभी कभी सफाई कर देती थी अब वहाँ नही जाती क्यूंकी उसे लगता है के मिस्टर मनचंदा के साथ कुच्छ गड़बड़ है.

इन सब बातों पर मैने कभी कोई ध्यान नही दिया. मेरा सारा ध्यान तो बस इस बात पर रहता था के मैं कैसे अपनी ज़िंदगी में कामयाभी हासिल करूँ. और इसी सब के बीच एक दिन मेरी मिस्टर मनचंदा से मुलाक़ात हुई. वो मुलाक़ात भी बड़ी अजीब थी.

नवेंबर की एक रात मैं लेट नाइट शो देखकर अकेला घर लौट रहा था. चारों तरफ गहरा कोहरा था. शहेर की सड़कों पर हर गाड़ी की स्पीड धीमी हो गयी थी और क्यूंकी वो इलाक़ा जहाँ मैं रहता था, कल्प रेसिडेन्सी, पेड़ों से घिरा हुआ था वहाँ कोहरा कुच्छ ज़्यादा ही गहरा था. मैं कॉलोनी के गेट से अंदर दाखिल हुआ तो एक कदम भी आगे बढ़ाना मुश्किल हो गया. मैं यहाँ पिच्छले 2 साल से था इसलिए सड़क का अंदाज़ा लगाता हुआ अपने घर की तरफ बढ़ा. क्यूंकी सड़क पर लगे लॅंप पोस्ट की रोशनी भी नीचे सड़क तक नही पहुँच पा रही थी इसलिए मैने सड़क के दोनो तरफ बने रेलिंग का सहारा लेना ठीक समझा. रेलिंग का सहारा लेता मैं धीरे धीरे आगे बढ़ा. सर्दी इतनी ज़्यादा थी के एक भारी जॅकेट पहने हुए भी मैं सर्दी से काँप रहा था.

मैं धीरे धीरे अंदाज़ा लगते हुआ अपने घर की तरफ बढ़ ही रहा था के सामने से एक भारी आवाज़ ने मुझे चौंका दिया.

"कौन है?" मैने रुकते हुए पुचछा

"एक खोया हुआ इंसान" फिर वही भारी आवाज़ आई "एक भटकती आत्मा जिसे भगवान माफ़ करने को तैय्यार नही है"

मैं उपेर से नीचे तक जम गया. ध्यान से देखा तो सामने एक साया कोहरे के बीच खड़ा था. उसके दोनो हाथ सड़क के किनारे बनी रेलिंग पर थे और उसने झुक कर अपना चेहरा भी अपने हाथ पर रखा हुआ हुआ. मैने धीरे से आगे बढ़कर उस आदमी के कंधे पर हाथ रखा पर वो वैसे ही झुका खड़ा रहा. अपना सर अपने हाथों पर रखे ऐसे रोता रहा जैसे किसी बात पर पछ्ता रहा हो. आवाज़ में दर्द सॉफ छलक रहा था.

"क्या हुआ? कौन हैं आप?" मैने कंधे पर अपने हाथ का दबाव बढ़ाते हुए पुचछा

"शराब" उस आदमी ने वैसे ही झुके हुए कहा "मैं एक सबक हूँ हर उस इंसान के लिए जो नशा करता है, वो इंसान जो अपनी ज़िंदगी को सीरियस्ली नही लेता, हर वो इंसान जो रिश्तों की कदर नही करता, वो ज़िंदगी जो अपनी समझ नही पाता. मैं एक सबक हूँ उन सबके लिए"

"आपको घर जाना चाहिए" मैने कहा

"मिल ही नही रहा" उस आदमी ने कहा "यहीं कहीं है पर कहाँ है समझ नही आ रहा. मुझे पता ही नही के मैं कहाँ हूँ"

"आप इस वक़्त कल्प रेसिडेन्सी में हैं" मेरा हाथ अब भी उस आदमी के कंधे पर था और वो अब भी वैसे ही झुका हुआ था.

"बंगलो नो. 13" वो आदमी सीधा हुआ "इस कोहरे में बंगलो नो. 13 नही मिल रहा. वहाँ जाना है मुझे"

"ओह" मैने उस आदमी को सहारा दिया "मेरे साथ आइए मिस्टर मनचंदा. मैं आपको घर तक छ्चोड़ आता हूँ"

जैसे ही उनका नाम मेरे ज़ुबान पर आया वो फ़ौरन 2 कदम पिछे को हो गये और मेरी तरफ ऐसे देखने लगे जैसे मुझे पहचानने की कोशिश कर रहे हों. आँखें सिकुड़कर मेरे चेहरे की तरफ घूर्ने लगी.

"कौन हो तुम?" मुझसे सवाल किया गया "मुझे कैसे जानते हो?"

"मेरा नाम इशान आहमेद है. यहीं कल्प रेसिडेन्सी में ही रहता हूँ. आपने बंगलो नो 13 का नाम लिया तो मैं समझ गया के आप हैं, मिस्टर मनचंदा, बंगलो के किरायेदार" मैने जवाब दिया

"बंगलो का भूत कहो" उन्होने मेरे साथ कदम आगे बढ़ाए "जिसकी हालत भूत से भी ज़्यादा बुरी है"

भूत से भी ज़्यादा बुरी?" मैने उन्हें सहारा देते हुए कदम आगे बढ़ाए

"मेरे गुनाहों का सिला बेटे. मैं आज वही काट रहा हूँ जो मैने कभी खुद बोया था. मेरे साथ ..... "अचानक उन्हें ज़ोर से खाँसी आई और बात अधूरी रह गयी

मुझे उनकी हालत पर काफ़ी तरस आया. बंगलो में इस हालत में रात भर उन्हें अकेला छ्चोड़ना मुझे ठीक नही लग रहा था पर मैं इस बात के लिए भी तैय्यार नही था के भूत बंगलो में मैं उनके साथ पूरी रात रुक जाऊं.

"कहाँ ले जा रहे हो मुझे" उन्होने सवाल किया

"आपके घर" मैने जवाब दिया

"तुम उन लोगों में से तो नही हो ना?" उन्होने फिर मेरे चेहरे की तरफ देखते हुए सवाल किया

"किन लोगों में से सर?" मैने सवाल का जवाब सवाल से दिया

"वही जो मुझे नुकसान पहुँचना चाहते हैं" जवाब आया

मुझे लगने लगा के ये आदमी शायद पागल है और इस वक़्त अपने पिच्छा च्छुदाने में ही समझदारी थी इसलिए मैने बहुत ही आराम से उनकी बात का जवाब दिया, बेहद प्यार से.

"मैने आपको कोई नुकसान नही पहुँचना चाहता मिस्टर मनचंदा."

धीरे धीरे हम बंगलो नो 13 तक पहुँचे.

"मेरा ख्याल है के आपको फ़ौरन सो जाना चाहिए" मैने उन्हें दरवाज़े पर छ्चोड़ते हुए कहा.

"जाना मत. मुझे अकेले अंदर जाते हुए डर लगता है. कितना अंधेरे है, कितनी सर्दी, कितनी खामोशी" उन्हें फिर से मेरा हाथ पकड़ लिया " रूको थोड़ी देर जब तक के मैं रोशनी का इंटेज़ाम नही कर लेता"

तब मुझे ध्यान आया के बंगलो में लाइट नही थी. क्यूंकी वो इतने सालों से वीरान पड़ा था इसलिए वहाँ का एलेक्ट्रिसिटी कनेक्षन हटा दिया गया था और पिच्छले 6 महीने से मनचंदा उस घर में बिना एलेक्ट्रिसिटी के रह रहा था.

"ठीक है मैं आपको अंदर तक छ्चोड़ देता हूँ" मैने कहा और जेब से लाइटर निकालकर जलाया. बंगलो के सामने बने गार्डेन से अंधेरे में होते हुए मैं उन्हें लेकर बंगलो के दरवाज़े तक पहुँचा. अंधेरे में उस घर को देखकर मैं समझ गया के क्यूँ उसको भूत बंगलो के नाम से पुकारते हैं. गहरी खामिषी और कोहरे के बीच खड़ा वो मकान खुद भी किसी भूत से कम नही लग रहा था. चारों तरफ सिर्फ़ हमारे कदमों की आहट ही सुनाई पड़ रही थी. मेरी धड़कन तेज़ हो चुकी थी और मैं खुद भी काँप रहा था. कुच्छ सर्दी से और कुच्छ डर से.

मनचंदा ने दरवाजा खोला और अंदर दाखिल हो गये जब्किमै वहीं बाहर दरवाज़े पर खड़ा रहा. वो मेरे हाथ से लाइटर ले गये था इसलिए मैं अंधेरे में खड़ा हुआ था. थोड़ी देर बाद अंदर टेबल पर रखा हुआ एक लॅंप जल उठा और चारों तरफ कमरे में रोशनी हो गयी.

मैने एक नज़र कमरे में डाली. लॅंप की हल्की रोशनी में जो नज़र आया उसे देखकर लगता नही था के मैं किसी भूत बंगलो में देख रहा था. मैने मनचंदा की तरफ नज़र डाली पर हल्की रोशनी में चेहरा नही देख पाया.

"मैं चलता हूँ" मैने अपना लाइटर भी वापिस नही लिया और कदम पिछे हटाए

"गुड नाइट" अंदर से सिर्फ़ इतनी ही आवाज़ आई.

मैं बंगलो से जल्दी जल्दी निकलकर अपने घर की तरफ बढ़ा. ये थी मेरी और मिस्टर मनचंदा की पहली मुलाक़ात.

मेरी मकान मालकिन एक ऐसी औरत थी जिसकी हमारे देश में शायद कोई कमी नही. एक घरेलू औरत जो उपेर से तो एकदम सीधी सादी सी दिखती हैं पर दिल में हज़ारों ख्वाहिशें दबाए रखती हैं. रुक्मणी सुदर्शन कोई 40 साल की थी. रंग गोरा और चेहरा खूबसूरत कहा जा सकता था.पहले उसके इस घर में मेरे सिवा और कोई नही रहता था. वो और उसका पति शहेर में बने उनके एक दूसरे घर में रहते थे जो हॉस्पिटल से नज़दीक पड़ता था. मिस्टर सुदर्शन की तबीयत काफ़ी खराब रहती थी जिसकी वजह से उन्होने अपनी ज़िंदगी के आखरी 10 साल बिस्तर पर ही गुज़ारे थे. उनके गुज़र जाने के बाद रुक्मणी ने वो घर बेंच दिया और यहीं इस घर में मेरे साथ शिफ्ट कर लिया था.

उसके चेहरे को नज़दीक से देखने पर उनकी उमर का अंदाज़ा होता था पर जिस्म से वो किसी 20-22 साल की लड़की को भी मात देती थी. वो अपने बहुत ख़ास तौर पर ध्यान रखती थी. अच्छे कपड़े पेहेन्ति थी और महेंगी ज्यूयलरी उसका शौक था. पति के मर जाने के बाद उसे कुच्छ करने की ज़रूरत नही थी. काफ़ी दौलत छ्चोड़ कर गये थे मिस्टर सुदर्शन अपने पिछे. उनकी कोई औलाद नही इसलिए वो सारा पैसा रुक्मणी आराम से बैठ कर खा सकती थी. वो ज़्यादातर वेस्टर्न आउटफिट्स में रहती थी और तंग कपड़ो में उसका जिस्म अलग ही निखरता था. अपने जिस्म पर उसने ना तो कोई ज़रूरत से ज़्यादा माँस चढ़ने दिया था और ना ही कहीं उमर का कोई निशान दिखाई देता था. सच कहूँ तो मैं शकल सूरत से अच्छा दिखता हूँ इस बात का सबूत भी उसने ही पहली बार मुझे दिया था.

रुक्मणी को शायद ये उम्मीद थी के इस उमर भी उसके सपनो का राजकुमार आएगा और उसे अपने साथ ले जाएगा. वो इसी उम्मीद पर ज़िंदा भी थी. अपने आपको को हर तरफ से खूबसूरत दिखाने की वो पूरी कोशिश करती थी और शायद मुझमें उसे अपना वो राजकुमार नज़र आने लगा. शुरू तो सब हल्के हसी मज़ाक से हुआ पर ना जाने कब वो मेरे करीब आती चली गयी और हम दोनो में जिस्मानी रिश्ता बन गया. अब हक़ीकत ये थी के वो दिन में तो मकान मालकिन होती थी पर रात में मेरे बिस्तर पर मेरी प्रेमिका का रोल निभाती थी.

इन सब बातों के बावजूद वो दिल की बहुत अच्छी थी. हमेशा हस्ती रहती और जिस तरह से वो 24 घंटे बोलती रहती थी वो पूरे कल्प रेसिडेन्सी में मश-हूर था. हर रात मेरा बिस्तर गरम करने के बावजूद भी कभी उसने मुझपर कोई हक नही जताया था और ना ही कभी उस रात के रिश्ते को कोई और नाम देने की कोशिश की थी. मैं जानता था के वो दिल ही दिल में मुझे चाहती है पर उसने कभी खुले तौर पर कभी ऐसा कोई इशारा नही किया और ना ही कभी ये ज़ाहिर किया के वो मुझसे शादी की उम्मीद करती थी. उसके लिए बस मैं उसका सपनो का वो राजकुमार था जिसे वो शायद सपनो में रखना चाहती थी. शायद डरती थी के अगर उस सपने को हक़ीक़त का रूप देना चाहा तो शायद सपना भी बाकी ना रहे.

मैं उसके घर के सबसे बड़े कमरे में रहता था और किराया उसने मुझसे लेना बंद कर दिया था. उल्टा वो मेरी हर ज़रूरत का ऐसे ख्याल रखती जैसे मेरी बीवी हो. सुबह मुझे जगाना, नाश्ता बनाना मेरे कपड़े ठीक करना और रात को फिर से चुपचाप नंगी होकर मेरे बिस्तर पर आ जाना. ये हर रोज़ का रुटीन था. ना इससे ज़्यादा कभी उसने कुच्छ कहा और ना ही मैने. वो शायद एक अच्छी बीवी बनती और एक अच्छी माँ भी पर वक़्त ने ये मौका दिया ही नही.

उसे कल्प रेसिडेन्सी के बारे में सब पता होता था. अक्सर खाने के बीच किसके यहाँ क्या हो रहा है वो मुझे बताया करती थी. ऐसा लगता था जैसे वो कोई चलता फिरता न्यूसपेपर है. मैने फ़ैसला किया के मनचंदा के बारे में अगर कोई मुझे बता सकता है तो वो रुक्मणी ही है. उसे जितना पता होगा उससे ज़्यादा किसी को पता नही होगा. मैं दिल में सोचा के एक बार उससे बात करूँ.

उस रात मैं नाहकर बाथरूम से निकला तो रुक्मणी मेरे कमरे में लगे फुल लेंग्थ मिरर के सामने खड़ी बाल ठीक कर रही थी. वो मेरी और देखकर मुस्कुराइ और फिर से अपने बाल बनाने लगी. मैने सामने खड़ी औरत को उपेर से नीचे तक देखा. खिड़की की तरफ से आती हल्की रोशनी में वो किसी बला से कम नही लग रही थी. एक हल्की से काले रंग की नाइटी पहनी हुई थी जो उसके घुटनो तक आ रही थी. रोशनी नाइटी से छन्कर इस बात का सॉफ इशारा कर रही थी के उसने नाइटी के अंदर कुच्छ नही पहना हुआ था. 36 साइज़ की चूचिया, पतली कमर, उठी हुई गांद उस वक़्त किसी भी मर्द का दिल उसके मुँह तक ले आते और ऐसा ही मेरे साथ भी हुआ. मैने अपने जिस्म पर लपेटा हुआ टवल उतारकर एक तरफ फेंका और पूरी तरह नंगा होकर उसके पिछे आ खड़ा हुआ.

मेरे करीब आते हुई उसने कॉम्ब नीचे रख दिया और अपने पेट पर रखे मेरे हाथों को अपने हाथों में पकड़ लिया. मेरा खड़ा हुआ लंड नाइटी के उपेर से उसकी गांद पर रगड़ रहा था और इसका असर उसपर होता सॉफ नज़र आ रहा था. धीरे धीरे उसकी साँस भारी हो चली थी. मैने हाथ थोड़ी देर उसके पेट पर फिराते हुए उसके गले को चूमना शुरू किया. उसने खुद ही अपना चेहरा मेरी तरफ घुमा दिया और हमारे होंठ एक दूसरे से मिल गये. वो पूरे जोश में मेरे होंठ चूम रही थी और मेरे हाथ अब उसकी चूचियो तक आ चुके थे. नाइटी के उपेर से मैं ज़ोर ज़ोर से उसकी चूचिया दबा रहा था और पिछे से अपना लंड उसकी गांद पर रगड़ रहा था.

अचानक वो पूरे जोश में पलटी और बेतहाशा मेरे चेहरे को चूमने लगी. मेरा माथा, मेरे गाल, होंठ, गर्दन को चूमते हुए वो नीचे की और बढ़ने लगी. छाती से पेट और फिर पेट के नीचे वो लंड तक पहुँचती पहुँचती अपने घुटनो पर बैठ गयी. अब मेरा लंड उसके चेहरे के ठीक सामने था. उसने मेरे लंड को अपने हाथ में पकड़ा और नज़र मेरी ओर उठकर धीरे धीरे लंड हिलाते हुए मुस्कुराइ. मैने भी जवाब में मुस्कुराते हुए धीरे धीरे उसकी बालों को सहलाया. थोड़ी देर ऐसे ही लंड हिलाने के बाद उसने अपना मुँह खोला और मेरे लंड को आधा अपने मुँह के अंदर ले लिया.

"आआहह रुक्मणी" उसके होंठ और गरम ज़ुबान को अपने लंड पर महसूस करते ही मैं कराह उठा.

ये एक काम वो बखूबी करती थी. लंड ऐसे चूस्ति थी के कई बार मुझे उसको ज़बरदस्ती रोकना पड़ता था और कई बार तो मैं ऐसे ही ख़तम भी हो जाता था और फिर दोबारा लंड खड़ा होने तक रुकना पड़ता था ताकि उसे चोद सकूँ. अपने मुँह और हाथों की हरकत का ऐसी ताल बैठाती थी के लंड संभालना मुश्किल हो जाता था और इस बार भी ऐसा ही हो रहा था. मेरा लंड उसने जड़ से अपने हाथ में पकड़ा हुआ था. जैसे ही वो लंड मुँह से निकालती तो उसका हाथ लंड को हिलाने लगता और फिर धीरे से वो लंड फिर मुँह में ले लेती.

मैं जनता था के अगर मैने उसको रोका नही तो वो मुझे ऐसे ही खड़ा खड़ा ख़तम कर देगी इसलिए मैने लंड उसके मुँह से निकाला और उसको पकड़कर खड़ा किया. खड़े होते ही उसने फिर मुझे चूमना शुरू कर दिया और मैने भी उसी जोश के साथ जवाब दिया. उसके होंठ चूमते हुए मेरे हाथ सरकते हुए उसकी कमर तक आए और उसकी नाइटी को उपेर की ओर खींचने लगे. वो भी इशारा समझ गयी और हाथ उपेर कर दिए. अगले ही पल उसकी नाइटी उतार चुकी और हम दोनो पूरी तरह से नंगे खड़े थे. मैने उसको अपनी बाहों में उठाया और बिस्तर पर लाकर गिरा दिया और खुद भी उसके साथ ही बिस्तर पर आ गया.

"ओह इशान" जैसे ही मैने उसका एक निपल अपने मुँह में लिया वो कराह उठी. मेरे एक हाथ उसकी दूसरी चाहती को दबा रहा था और दूसरे हाथ की 2 उंगलियाँ उसकी चूत के अंदर थी.

"ईशान्न्न्न्न " वो बार बार मेरा नाम ले रही थी और हाथ से मेरा लंड हिला रही थी. आँखें दोनो बंद किए हुए वो मेरे हाथ के साथ साथ अपनी कमर हिला रही थी. मैं बारी बारी से कभी उसके निपल चूस्ता और कभी धीरे से काट लेता.

"अब रुका नही जाता.... प्लज़्ज़्ज़्ज़ " उसने कराहते हुए कहा और मुझे पकड़कर अपने उपेर खींचने लगी. मैं भी इशारा समझ कर उसके उपेर आ गया. रुक्मणी की दोनो टांगे मुड़कर हवा में उपेर की तरफ हो चुकी थी और चूत खुलकर मेरे सामने थी. उसने एक हाथ से मेरा लंड पकड़ा और चूत पर रख दिया. मैने हल्का धक्का लगाया और धीरे धीरे मेरा लंड उसकी चूत के अंदर दाखिल हो गया.

"आआअहह " वो एक बार फिर ज़ोर से कराही और नीचे से कमर हिलाती हुई मेरे साथ हो चली.

"बंगलो नो 13 के बारे में आप क्या जानती हैं?" मैने उसकी चूत पर ज़ोर ज़ोर से धक्के मारते हुए कहा

"हां?" उसने चौंकते हुए अपनी आँखें खोली और मेरी तरफ देखा. मैने एक धक्का ज़ोर से मारा तो उसने फिर कराह कर अपनी आँखें बंद कर ली

"बंगलो नो 13. आप जानती हैं कुच्छ उसके बारे में?" मेरा लंड लगातार उसकी चूत में अंदर बाहर हो रहा था.

उसने हां में सर हिलाया

"क्या?" मैने फिर सवाल किया

"सब कुच्छ" वो नीचे से अपनी कमर हिलाते हुए बोली " भूत बंगलो है वो. एक आत्मा निवास करती है वहाँ. पर आप क्यूँ पुच्छ रहे हो? वो भी इस वक़्त?"

"आत्मा?" मैने उसके सवाल का जवाब दिए बिना कहा "कौन मनचंदा?"

मेरी बात सुनकर वो हस पड़ी और उसने अपनी आँखें खोली

"मेरा वो मतलब नही था. वो बेचारा तो अभी ज़िंदा है पर है अजीब और उससे बड़े अजीब आप हो जो इस वक़्त ऐसी बातें कर रहे हो" उसने मेरे बाल सहलाते हुए कहा

मैने लंड बाहर निकालकर पूरे ज़ोर से एक धक्का मारा और फिर अंदर घुसा दिया. उसकी आँखें फेल गयी

"आआहह. धीरे इशान. मार ही डालोगे क्या?"

"अजीब क्यूँ है मनचंदा?" मैने मुस्कुराते हुए पुचछा

"अजीब ही तो है" रुक्मणी बोली "कहाँ से आया है कोई नही जानता. ना किसी से मिलता है, ना बात करता है ना किसी को कुच्छ बताता है"

"तो इसमें अजीब क्या है?" मैं उसका एक निपल अपने मुँह में लेते हुए बोला "अगर कोई अकेला खामोशी से रहना चाहता है तो ये उसकी मर्ज़ी है"

"खामोश वो रहते हैं जीने पास च्छुपाने को कुच्छ होता है" रुकमी अपने निपल मेरे मुँह में और अंदर को घुसते हुए बोली "और जिस तरह से वो मनचंदा रहता है उससे तो लगता है के या तो वो कोई चोर है, या कोई गुंडा या कोई खूनी"

"और ऐसा किस बिना पर कह सकती हैं आप?" मैने उसका एक निपल छ्चोड़कर दूसरा मुँह में लिया और चूसने लगा. नीचे लंड अब भी चूत में अंदर बाहर हो रहा था.

मेरे इस सवाल पर वो भी खामोश हो गयी. शायद समझ नही आया के क्या जवाब दिया. फिर थोड़ी देर बाद बोली

"वो उस भूत बंगलो में रहता है"

"तो क्या हुआ?" मैने चूत पर धक्को की स्पीड बढ़ाते हुए कहा "कोई कहाँ रहना चाहता है ये उसकी अपनी मर्ज़ी होती है

"ऐसे इलाक़े में जहाँ इतने अच्छे घरों के लोग रहते हैं वहाँ इस अंदाज़ में रहने का कोई हक नही है मिस्टर मनचंदा को. वो जिस घर में रहता है उस घर तक की फिकर नही है उसको. सिर्फ़ 2 कमरे सॉफ करवा रखे हैं. एक बेडरूम और एक ड्रॉयिंग रूम.बाकी कमरे ऐसे ही गंदे पड़े रहते हैं. और वो बाई जो वहाँ काम करने जाती है कहती है के शराब बहुत पीता है आपका वो मनचंदा. खाना भी होटेल से माँगता है. ना वो न्यूसपेपर पढ़ता, ना ही उसका कोई लेटर आता, ना वो किसी से मिलते, सारा दिन बस घर में पड़ा रहता है और रात को उल्लू की तरह बाहर निकलता है. अब आप ही बताओ के कोई उसके बारे में क्या सोचे?"

"हो सकता है वो अकेला रहना चाहता हो" मैने कहा तो रुक्मणी इनकार में सर हिलाने लगी.

उसकी इस बात पर मैने उसके एक निपल पर अपने दाँत गढ़ा दिए. वो ज़ोर से करही और मेरे सर पर हल्के से एक थप्पड़ मार दिया.

इसमें ग़लत क्या है?" मैने फिर सवाल किया

"शायद नही है पर फिर उससे मिलने जो लोग आते हैं वो कहाँ से आते हैं?" रुक्मणी की ये बात सुनकर मैने धक्के मारने बंद किए और लंड छूट में घुसाए उसकी तरफ देखने लगा.

"क्या मतलब?" मैने पुचछा

मतलब ये के उससे मिलने कुच्छ लोग आते हैं पर वो सामने के दरवाज़े से नही आते. बंगलो में एक ही दरवाज़ा है सामने की तरफ और उसके ठीक सामने पोलीस चोकी है जहाँ एक पोलिसेवला 24 घंटे रहता है."

"हां तो?" मैने उसकी एक चूची पर हाथ फिराता हुआ बोला

"तो ये के उस पोलिसेवाले ने मनचंदा को हमेशा अकेले ही देखा है. वो हमेशा अकेले ही घर के अंदर जाता है पर रात को उस पोलिसेवाले ने अक्सर घर की खिड़की से 2-3 लोगों के साए देखे हैं. अब आप ही बताओ के वो कहाँ से आते हैं"

"शायद पिछे के दरवाज़े से?" हमारी चुदाई अब पूरी तरह रुक चुकी थी

"नही. बंगलो में पिछे की तरफ कोई दरवाज़ा है ही नही. पीछे की तरफ एक यार्ड बना हुआ है जिसके चारों तरफ फेन्स लगी हुई है. बंगलो में जाने के लिए सामने के दरवाज़े से ही जाना पड़ता है पर जो कोई भी उस आदमी से मिलने आता है वो दरवाज़े से नही आता" रुक्मणी एक साँस में बोली

"शायद दिन में आए हों" मैने सोचते हुए कहा

"नही. वहाँ 2 ही पोलिसेवालों की ड्यूटी लगती है. कभी एक दिन में होता है तो कभी दूसरा रात में. शिफ्ट चेंज करते रहते हैं आपस में. और उन दोनो में से किसी ने भी कभी किसी वक़्त किसी को बंगलो में जाते नही देखा. पता किया है मैने" रुक्मणी भी अब मेरे नीचे नंगी पड़ी होने के बावजूद चुदाई छ्चोड़कर बंगलो के बारे में खुलकर बात कर रही थी.

"तो हो सकता है के मनचंदा के साथ कोई और भी रहता हो वहाँ" मैने फिर सोचते हुए कहा

"बिल्कुल नही. उस घर को उसने अकेले ही किराए पर लिया है और कोई नही है वहाँ. इस बात का सबूत है वो काम करने वाली बाई जो अक्सर सफाई के लिए बंगलो में जाती है. उसने उस मनचंदा के सिवा वहाँ किसी को भी नही देखा. और मुझे तो लगता है के मनचंदा उसका असली नाम है ही नही"

"वो क्यूँ?" मैने मुस्कुराते हुए पुचछा

"क्यूंकी मुझे ऐसा लगता है और मुझे ये भी लगता है के अब हमें उस बारे में बात करना छ्चोड़कर दूसरी तरफ ध्यान देना चाहिए. इस वक़्त उससे ज़्यादा ज़रूरी कुच्छ और है ध्यान देने लायक" कहते हुए रुक्मणी ने अपनी एक चूची पकड़कर हल्के से दबाई,

मैं उसका इशारा समझते हुए दोबारा चूत पर धक्के मारने लगा. कुच्छ देर ऐसे ही चोदने के बाद मैने उसे घुटनो के बल झुका दिया और पिछे से उसकी गांद पकड़ कर चोदने लगा

क्रमशः..................
Reply
06-29-2017, 11:12 AM,
#2
RE: Bhoot bangla-भूत बंगला
भूत बंगला पार्ट--२

गतान्क से आगे.......................

चुदाई के बाद रुक्मणी वहीं मेरे साथ नंगी ही सो गयी. वो तो नींद में चली गयी पर मेरी आँखों से नींद कोसो दूर थी. हालाँकि ये सच था के रुक्मणी की कही बात सिर्फ़ उसका अपना ख्याल था पर ये भी सच था के कुच्छ अजीब था मनचंदा के बारे में जो मुझे परेशान सा कर रहा था. वो जिस तरह से अकेला रहता था, कहाँ से आया था किसी को पता नही था और सोचता था के कोई उसको नुकसान पहुँचाना चाहता है और आख़िर में बंगलो के अंदर देखे गये कुच्छ और लोग, पता नही मैं एक वकील था इसलिए इन बातों में इतनी दिलचस्पी दिखा रहा था ये बस यूँ ही पर मैं ये जानता था के मेरे दिमाग़ को सुकून तभी मिलेगा जब मुझे मेरे सवालों के जवाब मिल जाएँगे.मैं ये भी जानता था के किसी के पर्सनल मामले में यूँ दखल देना ठीक नही पर मेरी क्यूरीयासिटी इस हद तक जा चुकी थी के मैं आधी रात को ही बिस्तर से उठ खड़ा हुआ और सर्दी में घर से बाहर निकल गया. मैं खुद देखना चाहता था के क्या सच में बंगलो के अंदर कोई और भी दिखाई देता है.
धीरे धीर चलता मैं बंगलो नो 13 के सामने पहुँचा. बंगलो से थोड़ी ही दूर पर पोलीस चोवकी थी जहाँ पर पोलिसेवला कंबल में लिपटा गहरी नींद में डूबा हुआ था. मैं बंगलो के सामने सड़क के दूसरी तरफ खड़ा जाने किस उम्मीद में उस घर की और देखने लगा. बंगलो के ड्रॉयिंग रूम की खिड़की पर परदा गिरा हुआ था और उसके दूसरी तरफ से रोशनी आ रही थी. शायद मिस्टर मनचंदा अभी सोए नही थे. थोड़ी देर यूँ ही खड़े रहने के बाद मुझे खुद पर हसी आने लगी के कैसे मैं एक औरत के कहने पर आधी रात को यहाँ आ खड़ा हुआ. मैं जाने को पलटा ही था के मेरे कदम वहीं जम गये. खिड़की पर पड़े पर्दे के दूसरी तरफ दो साए नज़र आए. एक आदमी का और एक औरत का. मुझे एक पल के लिए यकीन नही हुआ के मैं क्या देखा रहा हूँ पर जब वो साए थोड़ी देर ऐसे ही खड़े रहे तो मुझे यकीन हो गया के मुझे धोखा नही हो रहा है. मैं ध्यान से खिड़की की तरफ देखने लगा जिसके पर्दे पर मुझे बस 2 काले साए दिखाई दे रहे थे.
जिस अंदाज़ में वो साए अपने हाथ हिला रहे थे उसे देखकर अंदाज़ा होता था के दोनो में किसी बात पर कहासुनी हो रही है जो धीरे धीरे बढ़ती जा रही थी.वो बार बार एक पल के लिए खिड़की के सामने से हट जाते और फिर उसी तरह झगड़ा करते हुए फिर खिड़की के सामने दिखाई देते. कुच्छ देर तक यही चलता रहा और फिर अचानक से उस आदमी के साए ने औरत के साए को गर्दन से पकड़ लिया और किसी गुड़िया की तरह बुरी तरह हिला दिया.वो औरत आदमी की पकड़ से छूटने की कोशिश करने लगी और मुझे ऐसा लगा जैसे मैने एक चीख सुनी हो.
पता नही क्या सोचकर पर फ़ौरन मैं बंगलो के दरवाज़े की तरफ भागा. शायद मैं उस औरत को मुसीबत से बचाना चाहता था. दरवाज़े पर पहुँचकर मैने ज़ोर से दरवाज़र खटखटाया और ठीक उसी पल ड्रॉयिंग रूम में जल रही रोशनी बुझ गयी और मुझे कुछ भी दिखाई देना बंद हो गया. पागलों की तरह मैं वहाँ खड़ा दरवाज़ा पीट रहा था. मुझे पूरा यकीन था के वो आदमी का साया मनचंदा ही था और उस औरत को मार रहा था.जब बड़ी देर तक दरवाज़ा नही खुला तो मैने पोलीस चोवकी तक जाने का फ़ैसला किया और बंगलो से निकल कर वापिस सड़क पर आ गया. एक आखरी नज़र मैने बंगलो पर डाली और पोलीस चोवी की तरफ बढ़ा. मैं मुश्किल से कुच्छ ही कदम चला था के सामने से मुझे एक आदमी आता दिखाई दिया. जब वो आदमी नज़दीक आया तो मैने उसका चेहरा देखा और मेरी आँखे हैरत से फेल गई.
वो आदमी मनचंदा था जो मेरे ख्याल से बंगलो के अंदर होना चाहिए था.

"मनचंदा साहब" मैं थोड़ा परेशान होते हुए बोला "आप?"
"हाँ मैं" उसने जवाब दिया "क्यूँ?"
"पर आप" मेरा सर चकरा उठा था "आप तो ..... "
"मैं क्या?" मनचंदा ने पुचछा
"मुझे लगा के आप घर के अंदर हैं" मैने बंगलो की तरफ देखते हुए कहा
"आपको ग़लत लगा" मनचंदा ने जवाब दिया "मैं अंदर नही बाहर हूँ. यहाँ आपके सामने"
"तो आपके घर में कौन है?"
"जहाँ तक मुझे पता है कोई नही" मनचंदा मेरे इन सवालो से ज़रा परेशान होने लगा था
"पर मैने किसी को देखा वहाँ. बंगलो के अंदर" मैने घर की तरफ इशारा करते हुए कहा
"बंगलो के अंदर?" मनचंदा चौंक उठा "कौन?"
"पता नही" मैने जवाब दिया "पर कोई था वहाँ"
"आपको धोखा हुआ होगा" मनचंदा ने मुस्कुराने की कोशिश की
"नही" मैं अपनी बात पे अड़ गया "मैं कह रहा हूँ के मैने किसी को देखा है और मुझे कोई ग़लती नही हुई"
"तो चलिए हम खुद ही चलकर देख लेते हैं" मनचंदा बंगलो की तरफ बढ़ा
"पर वो तो अब वहाँ से चले गये " मैं वहीं खड़ा रहा
"चले गये?" मनचंदा फिर मेरी तरफ पलटा
"हाँ" मैने कहा "मैने दरवाज़ा खटखटाया था क्यूंकी मुझे लगा के घर के अंदर कोई झगड़ा चल रहा है और उसी वक़्त घर में रोशनी बुझ गयी और किसी ने दरवाज़ा नही खोला. मेरे ख्याल से वो आदमी और औरत वहाँ से भाग गये"
मेरी बात सुनकर मनचंदा थोड़ी देर खामोश रहा और मेरी तरफ देखता रहा.फिर वो मुस्कुराते हुई मेरे थोड़ा करीब आया और बोला
"आपको ज़रूर कोई धोखा हुआ होगा. घर में इस वक़्त कोई नही हो सकता. मैने जाने से पहले खुद दरवाज़ा बंद किया था और मैं पिछे 4 घंटे से बाहर हूँ"
"आपको क्या लगता है के मैं पागल हूँ? जागते हुए सपना देख रहा था मैं?" मुझे हल्का गुस्सा आने लगा
"आप सपना देख रहे थे या नही इस बात का पता अभी लग जाएगा. चलिए हम लोग चलके खुद बंगलो के अंदर देख लेते हैं" मनचंदा फिर बंगलो की तरफ बढ़ा. हम दोनो सड़क के बीच भरी सर्दी में आधी रात को खड़े बहेस कर रहे थे.
"माफ़ कीजिएगा" मैं अपनी जगह पर ही खड़ा रहा "शायद मुझे इस मामले में पड़ना ही नही चाहिए था. ये आपका ज़ाति मामला है जिससे मेरा कोई लेना देना नही. पर एक बात मैं आपको बता दूँ मिस्टर मनचंदा. मुझे ज़्यादा कॉलोनी वाले आपको लेकर तरह तरह की बातें कर रहे हैं. हर कोई ये कहता फिर रहा है के आपके पिछे आपके बंगलो में कोई और भी होता है. और आप जिस तरह से रहते हैं, चुप चाप, किसी से मिलते नही उसे देखकर तो यही लगता है के आपके बारे में इस तरह की बातें होती रहेंगी और कोई ना कोई एक दिन पोलीस ले ही आएगा आपके यहाँ"
"पोलीस?" मनचंदा एकदम चौंक गया "नही नही. ये ठीक नही है. मेरा घर मेरी अपनी ज़िंदगी है. पोलिसेवाले अंदर ना ही आएँ तो बेहतर है. मैं एक शांत किस्म का आदमी हूँ और किस्मत का मारा भी जिसे अकेलापन पसंद है. मेरे घर में किसी और के होने की बात बकवास है"
"फिर भी जब मैने कहा के आपके घर में कोई है तो आप डर तो गये थे" मैने अपनी बात पर ज़ोर देते हुए कहा
"डर?" मनचंदा ने जवाब दिया "मैं क्यूँ डरने लगा और किससे डरँगा?"
"शायद उनसे जो आपको तकलीफ़ पहुँचाना चाहते हैं?" मैने मनचंदा की हमारी पहली मुलाक़ात की कही बात दोहराई
मनचंदा फ़ौरन 2 कदम पिछे को हो गया और मुझे घूर्ने लगा. उसके चेहरे पर परेशानी के भाव सॉफ देखे जा सकते थे.
"तुम इस बारे में क्या जानते हो?" उसने मुझसे पुचछा
"उतना ही जितना आपने बताया था मुझे उस रात जब मैं आपको घर छ्चोड़कर गया था" मैने उसे याद दिलाते हुए कहा
"उस रात मैं अपने होश में नही था. वो मैं नही शराब बोल रही थी" उसने जवाब दिया
"पर शराब सच बोल रही थी" मैने कहा
"देखिए" मनचंदा ने गहरी साँस लेते हुए कहा "मैं एक बहुत परेशान आदमी हूँ, अपनी ज़िंदगी का सताया हुआ हूँ"
"मैं चलता हूँ" मैने कहा "मेरी किस्मत खराब थी के रात के इस वक़्त मैं इस तरफ चला आया और आधी रात को सर्दी में यहाँ खड़ा आपस बहस कर रहा हूँ पर मुझे लगता है के अब हमें अपने अपने घर जाना चाहिए"
"एक मिनिट" मनचंदा ने मुझे रोकते हुए कहा "मैं आपका एहसान मानता हूँ के आपने मुझे होशियार करने की कोशिश की. कॉलोनी के लोगों से और मेरे घर में किसी के होने की बात से भी. तो इस वजह से ये मेरा फ़र्ज़ बनता है के मैं भी ये साबित करूँ के आप ग़लत हैं. मेरे घर में कोई नही है. आप एक बार मेरे साथ बंगलो की तरफ चलते देख अपनी तसल्ली कर लीजिए के वहाँ कोई इंसान नही था."
"अगर इंसान नही था तो कोई भूत भी नही था. जहाँ तक मैं जानता हूँ भूतों की परच्छाई नही बनती" मैने मज़ाक सा उड़ाते हुए कहा
"आप खुद चलते अपनी तसल्ली क्यूँ नही कर लेते" मनचंदा ने एक बार फिर मुझे अपने साथ बंगलो में चलने को कहा

मुझे खामोश देखकर मनचंदा ने एक बार फिर मुझे अंदर चलने को कहा. समझ नही आ रहा था के क्या करूँ. बंगलो नो 13 बहुत बदनाम था, तरह तरह की कहानियाँ इस घर के बारे में मश-हूर थी. उस घर में आधी रात को एक आज्नभी के साथ जाना मुझे ठीक नही लग रहा था. एक तरफ तो मेरा दिल ये कह रहा था के एक बार अंदर जाकर घर देख ही आउ और दूसरी तरफ डर भी लग रहा था. डर मनचंदा का नही था, वो एक बुद्धा आदमी था मेरा क्या बिगाड़ सकता था. डर इस बात का था के अगर घर के अंदर और लोग हुए तो?और अगर मनचंदा उनके साथ मिला हुआ तो? पर मेरी क्यूरिषिटी ने एक बार फिर मुझे मजबूर कर दिया के मैं एक बार देख ही आऊँ. मैने मनचंदा को इशारा किया और उसके पिछे बंगलो की तरफ चल पड़ा.
थोड़ी ही देर में मैं और मनचंदा बंगलो के अंदर ड्रॉयिंग रूम में खड़े थे. बंगलो में लाइट नही थी. मनचंदा ने आगे बढ़कर सामने रखा लॅंप जलाया.
"वो लोग जिनकी परच्छाई आपने पर्दे पर देखी थी, अगर वो सही में थे तो यहाँ खड़े होंगे" मनचंदा ने खिड़की के करीब रखी एक तबके की और इशारा करते हुए कहा
मैने हां में सर हिलाया
"अब एक बात बताओ इशान" उसने पहली बार मुझे मेरे नाम से बुलाया "तुम कहते हो के वो लोग आपस में लड़ रहे थे पर इस कमरे को देखकर क्या ऐसा लगता है के यहाँ कोई अभी अभी लड़ रहा था?"
मैने खिड़की की ओर देखा
"लड़ाई से मेरा मतलब ये नही था के कोई यहाँ कुश्ती कर रहा था मनचंदा साहब. लड़ाई से मेरा मतलब था के आपस में कहा सुनी हो रही थी. और ये पर्दे देख रहे हैं आप?" मैने खिड़की पर पड़े पर्दे की ओर इशारा किया "जब मैने देखा था तो खिड़की पर पर्दे नही थे. सिर्फ़ शीशे में अंदर खड़े लोगों की परच्छाई नज़र आ रही थी. ये पर्दे मेरे दरवाज़ा नॉक करने के बाद गिराए गये हैं"
"पर्दे जाने से पहले मैने गिराए थे इशान" मनचंदा ने तसल्ली के साथ कहा
जवाब में मैने कुच्छ नही कहा. सिर्फ़ इनकार में अपना सर हिलाया. जिस बात की मुझे उस वक़्त सबसे ज़्यादा हैरत हो रही थी वो ये थी के मैं क्यूँ ये साबित करने पर तुला हूँ के घर में कोई था. मुझे क्या फरक पड़ता है अगर कोई था भी तो और अगर नही था तो मेरा क्या फायडा हो रहा है. और दूसरी बात ये के क्यूँ मनचंदा इतना ज़ोर डालकर मेरे सामने ये साबित करना चाह रहा है के घर में कोई नही है. मैने मान भी लिया तो क्या बदल जाएगा और ना माना तो उसका क्या बिगाड़ लूँगा. इस बात से मेरा शक यकीन में बदल गया के कुच्छ है जो वो च्छुपाना चाह रहा है. मैं फिर उसकी तरफ पलटा.
पहली बार मैने मनचंदा को पूरी रोशनी में देखा. वो एक मीडियम हाइट का आदमी था. क्लीन शेव, चेहरे पर एक अजीब सी परेशानी. उसके चेहरे से उड़ा रंग और उसकी सेहत देखकर ही लगता था के वो काफ़ी बीमार है. आँखों में देखने से पता चलता था के वो शायद ड्रग्स भी लेता है. मैं उसकी तरफ देख ही रहा था के वो ख़ासने लगा. अपनी जेब से रुमाल निकालकर जब उसने अपना मुँह सॉफ किया तो रुमाल पर खून मुझे सॉफ नज़र आ रहा था.
उसके बारे में 2 ख़ास बातें मुझे दिखाई दी. एक तो उसके चेहरे के लेफ्ट साइड में एक निशान बना हुआ था, जैसे किसी ने चाकू मारा हो या किसी जंगल जानवर ने नोच दिया हो. निशान उसके होंठ के किनारे से उपर सर तक गया हुआ था. और दूसरा उसके राइट हॅंड की सबसे छ्होटी अंगुली आधी कटी हुई थी. हाथ में सिर्फ़ बाकी की आधी अंगुली ही बची थी.
"आप काफ़ी बीमार लगते हैं" मैने तरस खाते हुए कहा
"बस कुच्छ दिन की तकलीफ़ है. उसके बाद ना ये जिस्म बचेगा और ना ही कोई परेशानी" उसने मुस्कुरकर जवाब दिया
"इतनी सर्दी में आपको बाहर नही होना चाहिए था" मैने कहा
""जानता हूँ. पर इतने बड़े घर में कभी कभी अकेले दम सा घुटने लगता है इसलिए बाहर चला गया था"
उसके घर के बारे में ज़िक्र किया तो मैने नज़र चारो तरफ दौड़ाई. घर सच में काफ़ी बड़ा था इसका अंदाज़ा ड्रॉयिंग रूम को देखकर ही हो जाता था. मनचंदा ने ड्रॉयिंग रूम को काफ़ी अच्छा सज़ा रखा था. ज़मीन पर महेंगा कालीन, चारो तरफ महेंगी पेंटिंग्स, महेंगा फर्निचर, काफ़ी अमीर लगता था वो. कमरे में रखी हर चीज़ इस बात की तरफ सॉफ इशारा करती थी के मनचंदा के पास खर्च करने को पैसे की कोई कमी नही है. टेबल पर रखी शराब भी वो थी जो अगर मैं शराब पिया करता तो सिर्फ़ फ्री की पार्टीस में पीना ही अफोर्ड कर सकता था.
"काफ़ी अच्छा बना रखा है आपने घर को" मैने कहा तो मनचंदा मुस्कुराने लगा. "पर हैरत है के आपने सिर्फ़ 2 कमरों की तरफ ध्यान दिया है. बाकी घर का हर कमरा ऐसे ही गंदा पड़ा है"
"मुझे सिर्फ़ रहने के लिए 2 कमरों की ज़रूरत है इशान. बाकी कमरे सॉफ करके करूँगा भी क्या? वैसे तुम्हें कैसे पता के मैने बाकी घर ऐसे ही छ्चोड़ रखा है?" उसने पुचछा
"आप इस कॉलोनी में सबसे फेमस आदमी हैं मनचंदा साहब. आपके बारे में पूरी कॉलोनी को पता है" मैने भी मुस्कुराते हुए जवाब दिया
"शायद वो कम्बख़्त काम करने वाली बहुत बोल रही है" मनचंदा ने कहा और मेरी खामोशी को देखकर समझ गया के वो सच कह रहा है.
"आइए बाकी का घर भी देख लीजिए ताकि आपको तसल्ली हो जाए के घर में कोई नही था मेरे पिछे" उसकी बात सुनकर मैं फिर चौंक उठा. जितना ज़ोर डालकर वो ये साबित करना चाह रहा था के मैं ग़लत था, वो बात काफ़ी अजीब लग रही थी मुझे.
Reply
06-29-2017, 11:13 AM,
#3
RE: Bhoot bangla-भूत बंगला
उसने मुझे पुर घर का चक्कर लगवा दिया. हर कमरा खोलकर दिखाया. किचन का वो दरवाज़ा जो पिछे लॉन में खुलता था वो भी दिखा दिया. दरवाज़ा अंदर से बंद था तो वहाँ से भी कोई नही आ सकता था. पूरे घर का चक्कर लगाकर हम एक बार फिर ड्रॉयिंग रूम में पहुँचे.
"अब तसल्ली हुई के आपको सिर्फ़ एक धोखा हुआ था?" मनचंदा ने पुचछा तो मैने इनकार में सर हिलाया
"पर आपने खुद देख लिया के घर में कोई घुस ही नही सकता था. और अगर कोई यहाँ था को कहाँ गया? घर तो अंदर से बंद है" उसने फिर अपनी बात पर ज़ोर डाला
"मुझे नही पता के ये कैसे मुमकिन है मनचंदा साहब और ना ही मैं मालूम करना चाहता" मैने कहा "अपना घर दिखाने के लिए शुक्रिया. मैं चलता हूँ"
कहते हुए मैं दरवाज़ा की तरफ बढ़ा और खोलकर बाहर निकल गया
"जाओ" पीछे से मुझे मनचंदा की आवाज़ आई "और सबसे कह देना के मुझे अकेला छ्चोड़ दें. मेरे बारे में बाते ना करें. अकेला छ्चोड़ दें मुझे यहाँ घिस घिसकर मरने के लिए"

थोड़ी ही देर बाद मैं अपने घर अपने कमरे के अंदर था. रुक्मणी अब भी गहरी नींद में पड़ी सो रही थी. जो चादर उसने अपने जिस्म पर पहले डाल रखी थी अब वो भी नही थी और वो पूरी तरह से नंगी बिस्तर पर फेली हुई थी. मैं उसके बगल में आकर लेट गया और आँखे बंद करके सोने की कोशिश करने लगा पर नींद आँखों से कोसो दूर थी. समझ नही आ रहा था के क्या सच घर के अंदर कोई था ये मुझे धोखा हुआ था और ये मनचंदा ऐसी मरने की बातें क्यूँ करता है? कौन है ये इंसान? क्या कोई पागल है? कहाँ से आया है? ये सोच सोचकर मेरा दिमाग़ फटने लगा. समझ नही आ रहा था के मैं क्यूँ इतना उसके बारे में सोच रहा हूँ.
इन ख्यालों को अपने दिमाग़ से निकालने के लिए मैं रुक्मणी की तरफ पलटा. वो मेरी तरफ कमर किए सो रही थी. मैने धीरे से एक हाथ उसकी कमर पर रखा और सहलाते हुए नीचे उसकी गांद तक ले गया. वो नींद में धीरे से कसमसाई और फिर सो गयी. मैने हाथ उसकी गांद से सरकते हुए पिछे से उसकी टाँगो के बीच ले गया और उसकी चूत को सहलाने लगा. एक अंगुली मैने धीरे से उसकी चूत में घुमानी शुरू कर दी. मेरा लंड अब तक तन चुका था. मैने अपने शॉर्ट्स उतारकर एक तरह फेंके और पिछे से रुक्मणी के साथ सॅट गया और ऐसे ही लंड उसकी चूत में घुसने की कोशिश करने लगा पर कर नही सका क्यूंकी रुक्मणी अब भी सो रही थी. एक पल के लिए मैं उसे सीधी करके चोदने की सोची पर फिर ख्याल छ्चोड़कर सीधा लेट गया.
लड़कियों के मामले में मेरी किस्मत हमेशा ही खराब रही. हर कोई ये कहता रहा के मुझे मॉडेलिंग करनी चाहिए, हीरो बन जाना चाहिए पर कभी कोई लड़के मेरे करीब नही आई. इसकी शायद एक वजह ये भी थी के मैं खुद कभी किसी लड़की के पिछे नही गया. मैं हमेशा यही चाहता था के लड़की खुद आए और इसी इंतेज़ार में बैठा रहा पर कोई नही आई. पूरे कॉलेज हाथ से काम चलाना पड़ा और फिर फाइनली वर्जिनिटी ख़तम हुई भी तो एक ऐसी औरत के साथ जो विधवा थी और मुझे उमर में कम से कम 15 साल बड़ी थी.
कॉलेज में कयि लड़कियाँ थी जो मुझे पता था के मुझे पसंद करती हैं पर उनमें से कभी कोई आगे नही बढ़ी और मैं भी अपनी टॅशन में आगे नही बढ़ा. मैने एक ठंडी आह भरी और अपनी आँखें बंद कर ली, सोने की कोशिश में.
अगले दिन सुबह 9 बजे मैं अपने ऑफीस पहुँचा. मैं उन वकीलों में से था जो अब भी अपने कदम जमाने की कोशिश कर रहे थे. जिस बिल्डिंग में मेरा ऑफीस था वो रुक्मणी के पति की और अब रुक्मणी की थी. पूरी बिल्डिंग किराए पर थी और रुक्मणी के लिए आमदनी का ज़रिया था पर मेरा ऑफीस फ्री में था. मेरे घर की तरह ही इस जगह भी मैं मुफ़्त में डेरा जमाए हुए था.
दरवाज़ा खोलकर मैं अंदर दाखिल हुआ तो सामने प्रिया बैठी हुई थी.
प्रिया मेरी सेक्रेटरी थी. उसे मैने कोई 6 महीने पहले काम पर रखा था रुक्मणी के कहने पर. वो कहती थी के अगर सेक्रेटरी हो तो क्लाइंट्स पर इंप्रेशन अच्छा पड़ता है. प्रिया कोई 25 साल की मामूली शकल सूरत की लड़की थी. रंग हल्का सावला था. उसके बारे में सबसे ख़ास बात ये थी के वो बिल्कुल लड़को की तरह रहती थी. लड़को जैसे ही कपड़े पेहेन्ति थी, लड़को की तरह ही उसका रहेन सहन था, लड़को की तरह ही बात करती थी और बॉल भी कंधे तक कटा रखे थे. कहती थी के कंधे तक भी इसलिए क्यूंकी इससे छ्होटे उसकी माँ उसे काटने नही देती थी.
"गुड मॉर्निंग" उसने मेरी तरफ देखकर कहा और फिर सामने रखी नॉवेल पढ़ने लगी
"गुड मॉर्निंग" मैने जवाब दिया "कैसी हो प्रिया?"
"जैसी दिखती हूँ वैसी ही हूँ" उसने मुँह बनाते हुए जवाब दिया
मैं मुस्कुराते हुए अपनी टेबल तक पहुँचा और बॅग नीचे रखा
"मूड खराब है आज. क्या हुआ?" मैने उससे पुचछा
"कुच्छ नही" उसने वैसे ही नॉवेल पढ़ते हुए जवाब दिया
"अरे बता ना" मैने फिर ज़ोर डाला
"कल देखने आए थे मुझे लड़के वाले. कल शाम को" उसने नॉवेल नीचे रखते हुए कहा
"तो फिर?" मैने पुचछा
"तो फिर क्या. वही हुआ जो होना था. मना करके चले गये" वो गुस्से में उठते हुए बोली
"क्यूँ?" मैने पुचछा
"कहते हैं के मैं किसी घर की बहू नही बन सकती" वो मेरी टेबल के करीब आई
"और ऐसा क्यूँ?" मैने फिर सवाल किया
"उनके हिसाब से जो लड़की लड़कियों की तरह रहती ही नही वो किसी की बीवी क्या बनेगी. कहते हैं मैं लड़की ही नही लगती" उसकी आँखे गुस्से से लाल हो रही थी
"आप ही बताओ" उसने मुझपर ही सवाल दाग दिया "क्या मैं लड़की नही लगती"
मैने उसको और चिडाने के लिए इनकार में सर हिला दिया. उसको यूँ गुस्से में देखकर मुझे मज़ा आ रहा था.
मेरी इस हरकत पर वो और आग बाबूला हो उठी.
"क्यूँ नही लगती मैं लड़की. क्या कमी है?" उसने अपने आपको देखते हुए कहा. मैने जवाब में कुच्छ नही कहा
"बोलो. क्या नही है मुझमें लड़कियों जैसा?" कहते हुए उसने अपने दोनो हाथ से अपनी चूचियो की ओर इशारा किया "आपको क्या लगता है के ये मुझे मच्छर ने काट रखा है"
उसकी ये बात सुनकर मैं अपनी हसी चाहकर भी नही रोक सका.
"वो बात नही है प्रिया" मैने उसे अपने सामने रखी कुर्सी पर बैठने का इशारा किया."देख जो बात मैं तुझे कह रहा हूँ शायद तुझे थोड़ी सी अजीब लगे पर यकीन मान मैं तेरे भले के लिए कह रहा हूँ"
वो एकटूक मुझे देखे जा रही थी
"जबसे तू आई है तबसे मैं तुझे ये बात कहना चाह रहा था पर तू नयी नयी आई थी तो मुझे लगा के कहीं बुरा ना मान जाए. फिर हम दोनो एक दूसरे के साथ बॉस और एंप्लायी से ज़्यादा दोस्त बन गये तब भी मैने सोचा के तुझे ये बात कहूँ पर फिर कोई ऐसा मौका ही हाथ नही लगा."
"क्या कह रहे हो मुझे कुच्छ समझ नही आ रहा" उसने अपना चश्मा ठीक करते हुए कहा
"बताता हूँ. अच्छा एक बात मुझे सच सच बता. क्या तेरा दिल नही करता के तेरी ज़िंदगी में कोई लड़का हो, जो तुझे चाहे, तेरा ध्यान रखे. ज़िंदगी भर तेरे साथ चले" मैने उससे पुचछा
"हां करता तो है" उसने अपनी गर्दन हिलाते हुए कहा
"तो तू ही बता. क्या तू एक ऐसे लड़के के साथ रहना चाहेगी जो लड़कियों के जैसे कपड़े पेहेन्ता हो, मेक उप करता हो और लड़कियों की तरह रहता हो?" मैने थोड़ा सीरीयस होते हुए कहा
कुच्छ पल के लिए वो चुप हो गयी. नीचे ज़मीन की और देखते हुए कुच्छ सोचती रही. मैने भी कुच्छ नही कहा.
"मैं समझ गयी के आप क्या कहना चाह रहे हो" उसने थोड़ी देर बाद कहा
"बिल्कुल सही समझी. मैं ये नही कहता के तू लड़की नही. लड़की है पर लड़कियों जैसी बन भी तो सही" मैने मुस्कुराते हुए कहा
"कैसे?" उसने अपने उपेर एक नज़र डाली"मैं तो हमेशा ऐसे ही रही हूँ"
"ह्म्‍म्म्म" मैने उसे उपेर से नीचे तक देखते हुए कहा "तेरे पास सारे कपड़े ऐसे लड़कों जैसे ही हैं?"
"हां" उसे अपना सर हां में हिलाया
"तो कपड़ो सही शुरू करते हैं" मैने कहा "आज शाम को तू कुच्छ लड़कियों वाले कपड़े खरीद जैसे सलवार कमीज़ या सारी"
"ठीक है" उसने मुस्कुराते हुए कहा "शाम को ऑफीस के बाद चलते हैं"
"चलते हैं का क्या मतलब?" मैं चौंकते हुए बोला "अपनी मम्मी के साथ जाके ले आ"
"अरे नही" उसने फ़ौरन मना किया "मम्मी के साथ नही वरना वो तो पता नही क्या बाबा आदम के ज़माने के कपड़े ले देंगी. आप प्लीज़ चलो ना साथ"
वो बच्चो की तरह ज़िद कर रही थी. मैं काफ़ी देर तक उसको मना करता रहा पर जब वो नही मानी तो मैने हार कर हाँ कर दी.
दोपहर के वक़्त मैं कोर्ट से अपने ऑफीस में आया ही था के फोन की घंटी बज उठी. प्रिया ऑफीस में नही थी. शायद खाना खाने गयी हो ये सोचकर मैने ही फोन उठाया.
"इशान आहमेद" मैने फोन उठाते हुए कहा
"इशान मैं मिश्रा बोल रहा हूँ" दूसरी तरफ से आवाज़ आई "क्या कर रहा है?"
"कुच्छ नही बस अभी कोर्ट से ऑफीस पहुँचा ही हूँ. खाना खाने की तैय्यारि कर रहा था." मैने जवाब दिया
"एक काम कर पोलीस स्टेशन आ जा. खाना यहीं साथ खाते हैं. तुझसे कुच्छ बात करनी है" मिश्रा ने कहा
"क्या हुआ सब ख़ैरियत?" मैने पुचछा
"तो आ तो जा. फिर बताता हूँ" वो दूसरी तरफ से बोला
रंजीत मिश्रा मेरा दोस्त और एक पोलिसेवला था. उससे मेरी मुलाक़ात आज से 2 साल पहले एक केस के सिलसिले में हुई थी और उसके बाद हम दोनो की दोस्ती बढ़ती गयी. इसकी शायद एक वजह ये थी के तकरीबन ज़िंदगी के हर पहलू के बारे में हम एक ही जैसा सोचते थे. हमारी सोच एक दूसरे से बिल्कुल मिलती थी. वो मुझे उमर में 1 या 2 साल बड़ा था. सच कहूँ तो मेरे दोस्त के नाम पे वो शायद दुनिया का अकेला इंसान था. पोलीस में इनस्पेक्टर की पोस्ट पर था और अपनी ड्यूटी को वो सबसे आगे रखता था. रिश्वत लेने या देने के सख़्त खिलाफ था और अपनी वर्दी की पूजा किया करता था. इन शॉर्ट वो उन पोलिसेवालो मे से था जो अब शायद कम ही मिलते हैं.
उसका यूँ मुझे बुलाना मुझको थोड़ा अजीब लगा. प्रिया अब तक वापिस नही आई थी. मैने उसकी टेबल पर एक नोट छ्चोड़ दिया के मैं मिश्रा से मिलने जा रहा हूँ और ऑफीस लॉक करके पोलीस स्टेशन की तरफ चल पड़ा.

शामला बाई हमारे देश की वो औरत है जो हर शहर, हर गली और हर मोहल्ले में मिलती है. घर में काम करने वाली नौकरानी जो कि अगर देखा जाए तो हमारे देश का सबसे बड़ा चलता फिरता न्यूज़ चॅनेल होती हैं. मोहल्ले के किस घर में क्या हो रहा है उन्हें सब पता होता है और उस बात को मोहल्ले के बाकी के घर तक पहुँचना उनका धरम होता है. घर की कोई बात इनसे नही छिपटी. बीवी अगर बिस्तर पर पति से खुश नही है तो ये बात भले ही खुद पति देव को ना पता हो पर घर में काम करने वाली बाई को ज़रूर पता होती है और कुच्छ दिन बाद पूरे मोहल्ले को पता होती है.
ऐसी ही थी शामला बाई. वो मेरे घर और आस पास के कई घर में काम करती और उनमें से ही एक घर बंगलो नो 13 भी था. वो रोज़ सुबह तकरीबन 10 बजे मनचंदा के यहाँ जाती और घर के 2 कमरो की सफाई करके आ जाती थी. मनचंदा के बारे में जितनी भी बातें कॉलोनी वाले करते थे उनमें से 90% खुद शामला बाई की कही हुई थी. वो आधी बहरी थी और काफ़ी ऊँचा बोलने पर ही सुनती थी और जब बात करती तो वैसे ही चिल्ला चिल्लाके बात करती थी. वो जब मेरे यहाँ काम करने आती तो मैं अक्सर घर से बाहर निकल जाता था और तब तक वापिस नही आता था जब तक के वो सफाई करके वापिस चली ना जाए. अक्सर घर से कई चीज़ें मुझे गायब मिलती थी और मैं जानता था के वो किसने चुराई हैं पर फिर भी मैं कभी उसके मुँह नही लगता था. वो उन औरतों में से थी जिसने जितना दूर रही उतना अच्छा. पर जो एक बात मुझे उसकी सबसे ज़्यादा पसंद थी वो ये थी के वो टाइम की बड़ी पक्की थी. उसका एक शेड्यूल था के किस घर पर कितने बजे पहुँचना है और वो ठीक उसी वक़्त उस घर की घंटी बजा देती थी. ना एक मिनिट उपेर ना एक मिनिट नीचे.
वो रोज़ाना सुबह 7 बजे मनचंदा के यहाँ सफाई करने जाती और 8 बजे तक सब ख़तम करके निकल जाती थी. जाते वक़्त वो पास के एक होटेल से मनचंदा के लिए नाश्ता पॅक करते हुए ले जाती थी और फिर दोबारा दोपहर 12 बजे उसे दोपहर का खाना देने जाती थी. रुक्मणी ने मुझे बताया था के सिर्फ़ इतने से काम के लिए मनचंदा उसको ज़रूरत से कहीं ज़्यादा पैसे देता था. शायद वो उन पैसो के बदले में उससे ये उम्मीद करता था के वो मनचंदा के बारे में कॉलोनी में कहीं किसी से कुच्छ नही कहेगी. पर शामला बाई ठीक उसका उल्टा करती थी. वो उससे पैसे भी लेती और उसी की बुराई भी करती. जब उसके पास बताने को कुच्छ ना बचता तो अपने आप नयी नयी कहानियाँ बनती और पूरे कॉलोनी को सुनाती फिरती.
कहा जाए तो शामला बाई एक बेहद ख़तरनाक किस्म की औरत थी जिसको शायद आज से 400 - 500 साल पहले चुड़ैल बताकर ज़िंदा जला दिया जाता.वो असल में मनचंदा की सबसे बड़ी दुश्मन थी जो खुद उसके अपने घर में थी. अगर उसको ज़रा भी पता चल जाता के वो उसके बारे में कैसी कैसी बातें करती है तो शायद उसे अगले ही दिन चलता कर देता. शामला बाई को पूरा यकीन था के मनचंदा ने कहीं कुच्छ किया है और अब वो अपने गुनाह से छिपाने के लिए यहाँ इस भूत बंगलो में छुप कर बैठा हुआ है. वो शायद खुद भी लगातार इस कोशिश में रहती थी के मनचंदा का राज़ मालूम कर सके पर कभी इस बात में कामयाब नही हो सकी.
मनचंदा ने उसको अपने घर के एक चाबी दे रखी थी ताकि अगर वो कभी सुबह घर पर ना हो तो शामला अंदर जाकर सफाई कर सके. और अक्सर होता भी यही था के वो रोज़ाना सुबह 10 बजे जाकर मनचंदा को नींद से जगाती थी.
उस सुबह भी कुच्छ ऐसा ही हुआ था. शामला बाई होटेल पहुँची. होटेल का मलिक पिच्छले 6 महीने से मनचंदा के यहाँ खाना भिजवा रहा था इसलिए अब वो शामला बाई के आने से पहले ही ब्रेकफास्ट पॅक करवा देता था. उस दिन भी शामला बाई होटेल पहुँची तो ब्रेकफास्ट पॅक रखा था. उसने पॅकेट उठाया और बंगलो नो 13 में पहुँची. अपनी चाबी से उसने दरवाज़ा खोला और जैसे ही ड्रॉयिंग रूम में घुसी तो उसकी आँखें हैरत से खुली रह गयी.
पूरा ड्रॉयिंग रूम बिखरा हुआ था. कोई भी चीज़ अपनी जगह पर नही थी. टेबल पर रखे समान से लेकर आल्मिराह में रखी बुक्स तक बिखरी पड़ी थी. खिड़की पर पड़े पर्दे टूट कर नीचे गिरे हुए थे. शामला बाई ने ब्रेकफास्ट टेबल पर रखा और हैरत में देखती हुई ड्रॉयिंग रूम के बीच में आई. तब उसकी नज़र कमरे के एक कोने की तरफ पड़ी और उसके मुँह से चीख निकल गयी.
वहाँ कमरे के एक कोने में मनचंदा गिरा पड़ा था. आँखें खुली, चेहरा सफेद और छाती से बहता हुआ खून. उसको देखकर कोई बच्चा भी ये कह सकता था के वो मर चुका है.
"मैं अभी वहीं से आ रहा हूँ" कहते हुए मिश्रा ने खाना मेरी तरफ बढ़ाया "उसकी छाती पर किसी चाकू का धार वाली चीज़ से वार किया गया था. वो चीज़ सीधा उसके दिल में उतर गयी इसलिए एक ही वार काफ़ी था उसकी जान लेने के लिए."



क्रमशः........................
Reply
06-29-2017, 11:13 AM,
#4
RE: Bhoot bangla-भूत बंगला
भूत बंगला पार्ट--3

गतान्क से आगे.......................

मुझे उसकी बात पर जैसे यकीन ही नही हो रहा था. कुच्छ देर तक मैं खामोशी से खाना ख़ाता रहा. समझ नही आ रहा था के क्या कहूँ. कल रात ही तो मैं मनचंदा को अच्छा भला छ्चोड़के आया था.

"कब हुआ ये?" मैने खाना खाते हुए पुचछा

"कल रात किसी वक़्त. एग्ज़ॅक्ट टाइम तो पोस्ट-मॉर्टेम के बाद ही पता चलेगा." मिश्रा ने मेरी तरफ बड़ी गौर से देखते हुए कहा

"ऐसे क्या देख रहा है?" मैने पुचछा

"तू कल था ना उसके साथ. मनचंदा के? रात को?" उसने कहा तो मैं चौंक पड़ा.

"तुझे कैसे पता?" मैं पुचछा

"सामने ही पोलीस चोवकी है. पोलिसेवाले ने बताया के कल रात उसने तुम दोनो को एक साथ बंगलो के अंदर जाते देखा था" मिश्रा बोला.

"तुझे क्या लगता है?" मैने मुस्कुराते हुए कहा "मैने मारा है उसको?"

मिश्रा खाना खा चुका था. वो हाथ धोने के लिए उठ खड़ा हुआ

"चान्सस कम ही हैं. तेरे पास उसको मारने की कोई वजह नही थी और घर से कुच्छ भी गायब नही है तो नही, मुझे नही लगता के तूने उसको मारा है" वो हाथ धोते हुए बोला

हम दोनो पोलीस स्टेशन में बैठे खाना खा रहे थे. जब मैने भी ख़तम कर लिया तो मैं भी हाथ धोने के लिए उठ गया. एक कॉन्स्टेबल आकर टेबल से प्लेट्स उठाने लगा

"शुक्रिया" मैने मिश्रा से कहा "के आपने मुझे सस्पेक्ट्स की लिस्ट से निकाल दिया"

"वो छ्चोड़" मिश्रा वापिस अपनी सीट पर आकर बैठते हुए बोला "तुझे कुच्छ अजीब लगा था कल रात को जब तू मनचंदा से मिला था?"

"मुझे तो वो आदमी और उससे जुड़ी हर चीज़ अजीब लगती थी. पर हां कुच्छ ऐसा था जो बहुत ज़्यादा अजीब था" मैने कहा और कल रात की मनचंदा के साथ अपनी मुलाक़ात उसको बताने लगा.

"अजीब बात ये थी यार के मुझे पूरा यकीन है के मैने खिड़की पर 2 लोगों को खड़े देखा था पर जब मैं उसके साथ अंदर गया तो वहाँ कोई नही था" मैने अपनी बात ख़तम करते हुए कहा

"हो सकता है वो लोग छुप गये हों" मिश्रा बोला तो मैं इनकार में सर हिलने लगा

"मनचंदा जाने क्यूँ मुझे इस बात का यकीन दिलाना चाहता था के घर में कोई नही है इसलिए उसने मुझे घर का एक एक कोना दिखाया था. यकीन मान मिश्रा घर में कोई नही था. जिसे मैने खिड़की पर देखा था वो लोग जैसे हवा में गायब हो गये थे." मैने कहा

"तूने कहा के तू दरवाज़ा खटखटने के बाद जब किसी ने नही खोला तो पोलीस चोवकी की तरफ गया था. हो सकता है उस दौरान वो निकलकर भाग गये हों" उसने अपना शक जताया

"नही. मैं बंगलो से मुश्किल से 5 कदम की दूरी पर गया था और जहाँ मैं और मनचंदा खड़े बात कर रहे थे वहाँ से हमें बंगलो का दरवाज़ा सॉफ नज़र आ रहा था. बल्कि हम दोनो तो ख़ास तौर से बंगलो की तरफ ही देख रहे थे. अगर कोई बाहर निकलता तो हमें ज़रूर पता चलता." मैने कहा

"अजीब कहानी है यार." मिश्रा बोला "इस छ्होटे से शहर में जितना मश-हूर वो बंगलो है उतना ही ये केस भी होगा. भूत बंगलो में अजीब हालत में मर्डर हुआ, ये हेडलाइन होगी का न्यूसपेपर की. मीडीया वाले मरे जा रहे हैं मुझसे बात करने के लिए. कहानी ही अजीब है"

"पूरी बात बता" मैने सिगेरेत्टे जलाते हुए कहा

"सुबह घर की नौकरानी ने दरवाज़ा खोला और अंदर मनचंदा को मरा हुआ पाया. वो उसी वक़्त चिल्लती हुई बाहर निकली और चोवकी से पोलिसेवाले को बुलाके लाई जिसने फिर मुझे फोन किया. जब मैं वहाँ पहुँचा तो घर का सिर्फ़ वो दरवाज़ा खुला था जो नौकरानी ने खोला था. उसके अलावा घर पूरी तरह से अंदर से बंद था और नौकरानी के खोलने से पहले वो दरवाज़ा भी अंदर से ही बंद था. तो मतलब ये है के मनचंदा का खून उस घर में हुआ जो अंदर से पूरी तरह से बंद था" मिश्रा बोला

"कम ओन मिश्रा. घर के मेन डोर की और भी चाबियाँ हो सकती हैं यार या फिर हो सकता हो किसी ने बिना चाबी के लॉक खोला हो" मैने कहा

"नही" मिश्रा ने फिर इनकार में गर्दन हिलाई " घर के अंदर लॉक के सिवा एक चैन लॉक भी है. वो नौकरानी काफ़ी वक़्त से उस घर में काम कर रही है इसलिए जानती है के चैन लॉक के हुक दरवाज़े के पास किस तरफ है इसलिए वो अपने साथ हमेशा एक लकड़ी लेके जाती है. दरवाज़े का लॉक खोलने के बाद हल्का सा गॅप बन जाता है जिसमें से वो लड़की अंदर घुसकर चैन लॉक को हुक से निकाल देती थी. मैं खुद वो चैन लॉक देखा. ये मुमकिन है के उसे बाहर से किसी चीज़ की मदद से हुक से निकाला जा सके पर ऐसा बिल्कुल भी मुमकिन नही है के बाहर खड़े होके वो चैन वापिस हुक में फसाई जा सके" मिश्रा बोला

"और सुबह वो चैन अपने हुक में थी. याकि के चैन लॉक लगा हुआ था" मैने कहा तो मिश्रा ने हां में सर हिलाया

"तो इसलिए उसका खून घर में उस वक़्त हुआ जब वो घर में बिल्कुल अकेला था." मिश्रा बोला "और फिर सामने चोवकी पर जो पोलिसेवला था उसने मुझे बताया के बंगलो में तेरे निकालने के बाद ना तो कोई अंदर गया और ना ही कोई बाहर आया"

"स्यूयिसाइड?" मैने फिर शक जताया

"नही. जिस अंदाज़ में उसपर सामने से वार किया गया था, ऐसा हो ही नही सकता के उसने खुद अपने दिल में कुच्छ घुसा लिया हो. और फिर हमें वो हत्यार भी नही मिला जिससे उसका खून हुआ था. तो ऐसा नही हो सकता के उसने स्यूयिसाइड की हो और मरने से पहले हत्यार च्छूपा दिया हो" मिश्रा बोला

"रिश्तेदारों को खबर की तूने?" मैने पुचछा

"ये दूसरी मुसीबत है" मिश्रा बोला "सला पता ही नही के वो कौन था कहाँ से आया था. मैने बंगलो के मलिक से बात की पर उसको भी नही पता. उसने तो मनचंदा को बिना सवाल किए ही बंगलो किराए पर दे दिया था क्यूंकी उस घर में वैसे भी कोई रहने को तैय्यर नही था."

"तो अब क्या इरादा है?" मैने मिश्रा से पुचछा

"ये केस बहुत बड़ा बनेगा यार क्यूंकी वो साला बंगलो बहुत बदनाम है. मीडीया वाले इस केस को खूब मिर्च मसाला लगाके पेश करेंगे. अब मुसीबत ये है के पहले ये पता करो के मरने वाला था कौन, फिर ये पता करो के किसने मारा और क्यूँ मारा" मिश्रा गुस्से में बोला

मिश्रा के पास से मैं जब वापिस आया तो शाम हो चुकी थी. मैं ऑफीस पहुँचा तो प्रिया वहाँ से जा चुकी थी. मैं ऑफीस से कुच्छ फाइल्स उठाई और उन्हें लेकर वापिस घर आया. घर पहुँचा तो रुक्मणी जैसे मुझे मनचंदा के खून के बारे में बताने को मरी जा रही थी. मैं उसका एग्ज़ाइट्मेंट खराब नही करना चाहता था इसलिए मैने उसकी पूरी बात ऐसे सुनी जैसे मुझे पता ही नही के मनचंदा का खून हो चुका था.

मुझे अपनी ज़रूरत का कुच्छ समान खरीदना था इसलिए शाम को तकरीबन 8 बजे मैं घर से मार्केट के लिए निकला. जाते हुए मैं बंगलो 13 के सामने से निकलत तो दिल में एक अंजना सा ख़ौफ्फ उतर गया. पहली बार उस घर को देखकर मैं तेज़ कदमों से उसके सामने से निकल गया. सिर्फ़ एक यही ख्याल मेरे दिमाग़ में आ रहा था के कल तक इस घर में एक ज़िंदा आदमी रहता था और जो आज नही है. क्या सच में ये घर मनहूस है? समान खरीदते हुए भी पूरा वक़्त यही ख्याल मेरे दिमाग़ में चलता रहा के उसको किसने मारा और क्यूँ मारा?

रात को करीब 10 बजे मैं घर लौटा. रुक्मणी मुझे कहीं दिखाई नही दी. अपने कमरे में समान रखकर मैं किचन में पहुँचा. मुझे बहुत ज़ोर से भूख लगी थी और मैं जल्द से जल्द कुच्छ खाना चाहता था. किचन में पहुँचा तो वहाँ रुक्मणी खड़ी हुई कुच्छ फ्राइ कर रही थी.

उसे पिछे से देखते ही जैसे मेरी भूख फ़ौरन ख़तम हो गयी. रुक्मणी के जिस्म का जो हिस्सा मुझे सबसे ज़्यादा पसंद था वो उसकी गांद थी. लगता था जैसे बनानेवाले ने उसको बनाते हुए सबसे ज़्यादा ध्यान उसके जिस्म के इसी हिस्से पर दिया था और बड़ी फ़ुर्सत में बनाया था. उसकी गांद जिस अंदाज़ में उठी हुई थी और चलते हुए जैसे हिलती थी उसे देखकर अच्छे अच्छे का दिल मुँह में आ जाए. वो उस वक़्त वही नाइटी पहने खड़ी थी जो उसने कल रात पहेन रखी थी. वो ढीली सी नाइटी उसके घुटनो तक आती थी और जिस तरह से उसकी गांद उस नाइटी में दिखाई देती थी, वो देखकर ही मैं दीवाना हो जाता था. इस उमर में भी उसका जिस्म बिल्कुल कसा हुआ था. कई बार मैने बिस्तर पर उसकी गांद मारने की भी कोशिश की थी पर उसने करने नही दिया. एक बार जब मैने लंड घुसाने की कोशिश की तो वो दर्द से चिल्ला उठी थी और उसके बाद उसने मुझे कभी कोशिश करने नही दी.

उसको किचन में पिछे से देखकर मेरा लंड फिर से ज़ोर मारने लगा. मैं धीरे से चलता हुआ उसके करीब पहुँचा और पिछे से दोनो हाथ उसकी बगल से लाकर उसकी दोनो चूचियो पर रख दिए और लंड उसकी गांद से सटा दिया.

"ओह रुक्मणी" मैने उसके कान में बोला " खाना बाद में. फिलहाल थोड़ा सा झुक जाओ ताकि मैं पहले तुम्हें खा सकूँ"

मेरे यूँ करीब आते ही वो ऐसे चोन्कि जैसे 1000 वॉट का करेंट लगा हो और मुझसे फ़ौरन अलग हुई. उसकी इस अचानक हरकत से मैं लड़खदाया और गिरते गिरते बचा. वो मुझसे थोड़ी दूर हो पलटी और उसको देखकर मेरी आधी साँस उपेर और आधी नीचे रह गयी. जो औरत मेरे सामने खड़ी थी वो रुक्मणी नही कोई और थी.

वो आँखें खोले हैरत से मेरी तरफ देख रही थी और मैं उसकी तरफ. हम दोनो में से कोई कुच्छ नही बोला. उसका चेहरा रुक्मणी से बहुत मिलता था और कद काठी भी बिल्लुल रुक्मणी जैसी ही थी. तभी किचन के बाहर कदमों की आहट से हम दोनो संभाल गये. रुक्मणी किचन में आई और मुझे वहाँ देखकर मुस्कुराइ.

"आ गये" उसने कहा और फिर सामने खड़ी औरत की और देखा "देवयानी ये इशान है. मैने बताया था ना. और इशान ये मेरी बहेन देवयानी है. अभी 1 घंटा पहले ही आई है."

मुझे ध्यान आया के कई बार रुक्मणी ने मुझे अपनी छ्होटी बहेन के बारे में बताया था जो लंडन में रहती थी और रुक्मणी से 2 साल छ्होटी थी. वो किसी कॉलेज में प्रोफेसर थी और कभी शादी नही की थी. तभी ये कम्बख़्त रुक्मणी से इतनी मिलती है, बहेन जो है, मैने दिल ही दिल में सोचा और उसको देखकर मुस्कुराया. वो भी जवाब में मुस्कुराइ तो मेरी जान में जान आई के ये रुक्मणी से कुच्छ नही कहेगी. "मैं सोच रही थी के तुम्हें बताऊंगी के देवयानी आने वाली है पर भूल गयी." रुक्मणी ने कहा . मैने हां में सर हिलाया और फ़ौरन किचन से बाहर निकल गया.

उस रात मैं बिस्तर पर अकेला ही था. देवयानी के आने से रूमानी आज रात अपने कमरे में ही सो रही थी ताकि अपनी बहेन से बात कर सके. बिस्तर पर लेते हुए मैं जाने कब तक बस करवट ही बदलता रहा. नींद आँखों से कोसो दूर थी. बस एक ही ख्याल दिमाग़ में चल रहा था के मनचंदा को किसने मारा. और जो बात मुझे सबसे ज़्यादा परेशान कर रही थी के घर में कोई होते हुई भी मुझे कल रात अंदर कोई क्यूँ नही मिला? ऐसा कैसे हो सकता है के 2 लोग खड़े खड़े हवा में गायब हो गये. और बंद घर में मनचंदा का खून हुआ कैसे?
Reply
06-29-2017, 11:13 AM,
#5
RE: Bhoot bangla-भूत बंगला
रात को मैं बड़ी देर तक जागता रहा जिसका नतीजा ये निकला के मैं सुबह देर से उठा. भागता दौड़ता तैय्यार हुआ और ऑफीस जाने के बजाय सीधा कोर्ट पहुँचा जहाँ 11 बजे मुझे एक केस के सिलसिले में जाना था.

हियरिंग के बाद मैं ऑफीस पहुँचा. प्रिया सुबह से मुझे फोन मिलाने की कोशिश कर रही थी पर कोर्ट में होने की वजह से मैं फोन उठा नही सका.

ऑफीस पहुँचा तो वो मुझे देखते ही उच्छल पड़ी.

"कहाँ हो कल से इशान?" वो मुझे सर या बॉस कहने के बजाय मेरे नाम से ही बुलाती थी

"अरे यार सुबह बहुत देर से उठा था इसलिए ऑफीस आने के बजाय सीधा कोर्ट ही चला गया था" मैं बॅग नीचे रखता हुआ बोला

"एक फोन ही कर देते. मैं सुबह से परेशान थी के तुम हियरिंग के लिए पहुँचे के नही" उसने कहा तो मैं सिर्फ़ मुस्कुरा कर रह गया

"और कल कहाँ गायब हो गये थे?" उसने कल के बारे में सवाल किया

"दोपहर को ऑफीस आया तो तू नही थी. तभी वो इनस्पेक्टर मिश्रा आ गया और मुझे उसके साथ जाना पड़ा. शाम को वापिस आया तो तू घर जा चुकी थी" मैं हमेशा की तरह उसको अपने पूरे दिन के बारे में बताता हुआ बोला. हमेशा ऐसा ही होता था. वो मेरी ऑफीस के साथ साथ पर्सनेल लाइफ की सेक्रेटरी भी थी.

"हां वो मैं कल थोड़ा जल्दी चली गयी थी" वो मुस्कुराते हुए बोली "तुम नही आए तो मैने सोचा के मैं अकेले ही कुच्छ कपड़े ले आउ"

"कपड़े?" मैने हैरानी से उसकी तरफ देखा

"हां वो तुमने ही कहा था ना. लड़कियों के जैसे कपड़े" उसने याद दिलाते हुए कहा

"अच्छा हां. तो कुच्छ पसंद आया?"

"हां लाई हूँ ना. तुम्हें दिखाऊँगी सोचकर कल घर ही नही ले गयी. यहीं छ्चोड़ गयी थी" कहते हुए उसने टेबल के पिछे से एक बॅग निकाला और उसमें से कुच्छ कपड़े निकालकर मुझे दिखाने लगी. 2 लड़कियों के टॉप्स और 2 जीन्स थी. रंग ऐसे थे के अगर वो उनको पेहेन्के निकलती तो गली कर हर कुत्ता उसके पीछे पड़ जाता. पर मैं उसका दिल नही तोड़ना चाहता था इसलिए कुच्छ नही कहा.

"कैसे हैं?" उसने खुश होते हुए कहा

"अच्छे हैं" मैने जवाब दिया. सच तो ये था के वो कपड़े अगर कोई फ्री में भी दे तो मेरे हिसाब से इनकार कर देना चाहिए था

"मुँह उधर करो" उसने मुझसे कहा और आगे बढ़कर ऑफीस का गेट अंदर से लॉक कर दिया

"मतलब? क्यूँ?" मुझे उसकी बात कुच्छ समझ नही आई

"अरे पेहेन्के दिखाती हूँ ना. अब यहाँ कोई सेपरेट रूम या चेंजिंग रूम तो है नही. तो तुम मुँह उधर करो मैं चेंज कर लेती हूँ" उसने खिड़की बंद करते हुए कहा

"तू पागल हो गयी है?" मुझे यकीन नही हुआ के वो पागल लड़की क्या करने जा रही थी "यहाँ चेंज करेगी? बाद में पेहेन्के दिखा देना अभी रहने दे"

"नही. अगर ठीक नही लगे तो आज शाम को वापिस कर दूँगी. आज के बाद वो वापिस नही लेगा" उसने एक टॉप निकालते हुए कहा

"तो वॉशरूम में जाके चेंज कर आ" मैने उसे लॅडीस रूम में जाने को कहा. बिल्डिंग के उस फ्लोर पर एक कामन टाय्लेट था.

"पागल हो? वहाँ कितना गंदा रहता है. अब तुम उधर मुँह करो जल्दी" कहते हुए उसने अपनी शर्ट के बटन खोलने शुरू कर दिए. मेरे पास कोई चारा नही बचा सिवाय इसके के मैं दूसरी तरफ देखूं.

थोड़ी देर तक कपड़े उतारने और पहेन्ने की आवाज़ आती रही.

"अब देखो" उसने मुझसे कहा और मैं पलटा. उस एक पल में मैं 2 चीज़ें एक साथ महसूस की. एक तो मेरा ज़ोर से हस्ने का दिल किया और दूसरा मैं हैरत से प्रिया की तरफ देखने लगा.

वो हल्के सावले रंग की थी और उसपर वो भड़कता हुआ लाल रंग का टाइट टॉप लाई थी जो उसपर बहुत ज़्यादा अजीब लग रहा था. ये देखकर मेरा हस्ने का दिल किया. पर जिस दूसरी बात ने मेरा ध्यान अपनी तरफ किया वो था प्रिया का जिस्म. वो हमेशा लड़को के स्टाइल की ढीली सी शर्ट और एक ढीली सी पेंट पहने रखती थी और उसपर से लड़को के जैसा ही अंदाज़. मैने कभी उसको एक लड़की के रूप में ना तो देखा था और ना ही सोचा था पर आज वो मेरे सामने एक टाइट टॉप और उतनी ही टाइट जीन्स में खड़ी थी. आज मैने पहली बार नोटीस किया के वो आक्चुयल में एक लड़की है और बहुत खूब है. उसकी चूचिया उस टाइट टॉप में हद से ज़्यादा बड़ी लग रही थी. लग रहा था टॉप फाड़के बाहर आ जाएँगी. मेरी नज़र अपने आप ही उसकी चूचियो पर चली गयी. एक नज़र पड़ते ही मैं समझ गया के उसने अंदर ब्रा नही पहेन रखा था. उसके दोनो निपल्स कपड़े के उपेर सॉफ तौर पर उभर आए थे. दिल ही दिल में मैं ये सोचे बिना नही रह सका के उसकी चूचिया इतनी बड़ी थी और आज तक मैने कभी ये नोटीस नही किया

"कैसी लग रही हूँ?" उसने इठलाते हुए पुचछा तो मेरा ध्यान उसकी चूचियो से हटा. और अगले ही पल उसने जो हरकत की उससे मेरा दिल जैसे मेरे मुँह में आ गया. वो मुझे दिखाने के लिए घूमी और अपनी पीठ मेरी तरफ की. लड़कियों के जिस्म का एक हिस्सा मेरी कमज़ोरी है, उनकी गांद और प्रिया की गांद तो ऐसी थी जैसी मैने कभी देखी ही नही थी. उसने रुक्मणी और देवयानी को भी पिछे छ्चोड़ दिया था. वो हमेशा एक ढीली सी पेंट पहने रहती थी इसलिए आज से पहले कभी मुझे ये बात नज़र ही नही आई थी.

"बहुत अच्छी लग रही हो" वो फिर से मेरी तरफ पलटी तो मैने कहा.

"दूसरा पेहेन्के दिखाती हूँ" उसने कहा और दूसरी जीन्स उठाई

मैं हमेशा उसको एक सॉफ नज़र से देखता था और उसके लिए मेरे दिल में कोई बुरा विचार नही था. पर आज उसको यूँ देख कर एक पल के लिए मेरी नीयत बिगड़ गयी थी और मुझे दिल ही दिल में इस बात का अफ़सोस हुआ. मैने फ़ौरन उसको रोका

"अभी नही. शाम को. अभी वो मिश्रा आने वाला है" मैने बहाना बनाते हुए कहा.

"मिश्रा?" उसने मेरा झूठ मान लिया.

"हाआँ. तुम दोबारा पहले वाले कपड़े पहेन लो" मैने कहा और फिर से दूसरी तरफ पलट गया ताकि वो चेंज कर सके. पलटने से पहले मैने एक आखरी नज़र उसके कपड़ो पर डाली. मुझे वहाँ कोई ब्रा नज़र नही आया. प्रिया ने ब्रा पहेन भी नही रखा था. इसका मतलब सॉफ था के वो ब्रा पेहेन्ति ही नही थी जिसपर मुझे बहुत हैरत हुई. इतनी बढ़ी चूचिया और ब्रा नही पेहेन्ति?

नाम लिया और शैतान हाज़िर. ये कहवात मैने कई बार सुनी थी पर उस दिन सच होते भी देखी. मैने प्रिया से मिश्रा के बारे में झूठ कहा था पर वो सच में 15 मिनट बाद ही आ गया.

"क्या कर रहा है?" उसने ऑफीस में आते हुए पुचछा

"कुच्छ ख़ास नही" मैने कहा

"मेरे साथ चल रहा है? तेरी कॉलोनी ही जा रहे हैं. वो बंगलो नो 13 जाना है इन्वेस्टिगेशन के लिए तो मैने सोचा के तुझे साथ लेता चलूं. पहले सोच रहा था के फोन करूँ पर फिर चला ही आया" मिश्रा बिना मुझे बोलने का मौका दिए बोलता ही चला गया

मैने प्रिया की तरफ देखा. वो गुस्से से मुझे घूर रही थी. मेरा झूठ पकड़ा गया था. वो समझ गयी थी के मैने उसे झूठ कहा था के मिश्रा आ रहा है.

मैं मिश्रा के साथ हो लिया और थोड़ी ही देर बाद हम दोनो फिर से बंगलो नो 13 के अंदर आ खड़े हुए. आखरी बार जब मैं इस घर में आया था तो ये घर था पर अब एक पोलीस इन्वेस्टिगेशन सीन. मिश्रा ने मुझे इशारे से कमरे का वो कोना दिखाया जहाँ मनचंदा की लाश मिली थी. देखकर ही मेरे जिस्म में एक अजीब सी ख़ौफ्फ की लेहायर दौड़ गयी.

अगले 2 घंटे तक मैं, मिश्रा और 2 कॉन्स्टेबल्स बंगलो की तलाशी लेते रहे इस उम्मीद में के हमें कुच्छ ऐसा मिल जाए जो इस बात की तरफ इशारा करे के मनचंदा कौन था पर हमें कामयाभी हासिल नही हुई. कोई लेटर, टेलिग्रॅम तो दूर की बात, हमें पूरे घर में कहीं कुच्छ ऐसा नही मिला जो मनचंदा ने लिखा हो. उसके ड्रॉयर में एक डाइयरी थी जो खाली थी. उसके पर्स से भी हमें किसी तरह का कोई पेपर नही मिला. मोबाइल वो रखता नही था इसलिए वहाँ से किसी का कोई फोन नंबर मिलने का ऑप्षन तो कभी था ही नही. उसके किसी कपड़े पर भी ऐसा कोई निशान नही था जिसे देखके ये अंदाज़ा लगाया जा सके के वो कपड़े कहाँ से खरीदे गये थे. वो आदमी तो जैसे खुद एक भूत था.

ये बंगलो एक लंबे अरसे से खाली पड़ा था. मकान मलिक कहीं और रहता था और कोई भूत बंगलो को किराए पर लेने को तैय्यार नही था. इसलिए जब मनचंदा ने घर किराए पर माँगा तो मकान मलिक ने बिना कुच्छ पुच्छे फ़ौरन हाँ कर दी. हमने उससे बात की तो पता चला के उसके पास भी मनचंदा के नाम की सिवा कोई और जानकारी नही थी. मनचंदा ने जब बंगलो लिया था तो 2 महीने का किराया अड्वान्स में दिया था और उसके बाद हर महीने किराया कॅश में ही दिया. कभी किसी किस्म का कोई चेक़ मनचंदा ने नही दिया था.

कमरे में रखा सारा फर्निचर नया था. उसपर लगे स्टिकर्स से हमने दुकान का नंबर हासिल किया और फोन मिलाया. पता चला के मनचंदा ने खुद सारा फर्निचर खरीदा था और कॅश में पे किया था. तो वहाँ भी कोई स्चेक या क्रेडिट कार्ड की उम्मीद ख़तम हो गयी. पूरे घर में 2 घंटे भटकने के बाद ना तो हमें मनचंदा के बारे में कुच्छ पता चला और ना ही घर में आने का मैं दरवाज़े के साइवा कोई और रास्ता मिला. तक हार कर हम दोनो वहीं पड़े एक सोफे पर बैठ गये.

"कौन था ये आदमी यार" मिश्रा बोला "नाक का दम बन गया साला. आज का पेपर देखा तूने. हर तरफ यही छपा हुआ है के भूत बंगलो में खून हुआ है"

मैने हाँ में सर हिलाया

"समझ नही आ रहा के क्या करूँ" मिश्रा बोला "कहाँ से पता लगाऊं के ये कम्बख़्त कौन था और यहाँ क्या करने आया था. मर्डर वेपन तक नही मिला है अब तक. मैने पिच्छले एक साल की रिपोर्ट्स देख डाली पर किसी मनचंदा के गायब होने की कोई रिपोर्ट नही है"

"और ना ही ये समझ आया के खून जिसने किया था वो घर से निकला कैसे" मैने आगे से एक बात और जोड़ दी.

"हां" मिश्रा ने हाँ में सर हिलाया "वो खूनी भी और वो 2 लोग भी जिन्हे तूने घर में देखा था"

"क्या लगता है?" मैने मिश्रा की और देखा "बदले के लिए मारा है किसी ने उसको?"

"लगता तो यही है. घर से कुच्छ भी गायब नही है इसलिए चोरी तो मान ही नही सकते. और जिस हिसाब से तू कह रहा था के खुद मनचंदा ने ये कहा था के कुच्छ लोग उसको नुकसान पहकूंचना चाहते हैं तो उससे तो यही लगता है के किसी ने पुरानी दुश्मनी के चलते मारा है. पर उस दुश्मनी का पता करने के लिए पहले ये तो पता लगा के ये आदमी था कौन"

"एक काम हो सकता है" मैने कहा

"क्या?" मिश्रा ने फुरण मेरी तरफ देखा

"पेपर्स में छप्वा दे उसके बारे में" मैने कहा तो मिश्रा ज़ोर ज़ोर से हस्ने लगा

"मैं छप्वा दूँ? अबे आज के पेपर्स भरे पड़े हैं इस खून के बारे में" उसने मेरा मज़ाक उड़ाते हुए कहा

"हां पर सिर्फ़ खून हुआ है ये लिखा है पेपर्स में. तू ये छप्वा दे के पोलीस नही जानती के मरने वाला कौन है और अगर कोई इस आदमी को पहचानता है तो सामने आए" मैने कहा

"बात तो तेरी ठीक लग रही है पर यार जाने कितने लोग मरते हैं रोज़ारा हमारे देश में. किसी कोई कैसे पता चलेगा के ये आदमी उनका ही रिश्तेदार था?" वो बोला

"2 बातें. उसके चेहरे पर एक अजीब सा निशान था जैसे किसी ने चाकू मारा हो और दूसरा उसके हाथ की छ्होटी अंगुली आधी गायब थी. ये बात छप्वा दे. कोई ना कोई तो आ ही जाएगा अगर इसका कोई रिश्तेदार था तो" मैने कहा तो मिश्रा मुस्कुराने लगा
Reply
06-29-2017, 11:13 AM,
#6
RE: Bhoot bangla-भूत बंगला
"दिमाग़ है तेरे पास. कल छप्वा देता हूँ ", वो उठते हुए बोला "तू अभी घर जाएगा या ऑफीस छ्चोड़ूं तुझे"

"ऑफीस छ्चोड़ दे" मैने घड़ी की तरफ देखते हुए कहा "कुच्छ काम निपटाना है"

हम दोनो बंगलो से बाहर निकले और पोलीस जीप में मेरे ऑफीस की और चले. रास्ते में मेरे दिमाग़ में एक बात आई.

"यार मिश्रा एक बात बता. जो आदमी इतना छुप कर रह रहा हो जैसे के ये मनचंदा रह रहा था तो क्या वो अपने असली नाम से रहेगा? तुझे लगता है के मनचंदा उसका असली नाम था?"

मेरी बात सुनकर मिश्रा हाँ में सर हिलाने लगा

"ठीक कह रहा है तू. और इसी लिए शायद मुझे पोलीस रिपोर्ट्स में किसी मनचंदा के गायब होने की कोई रिपोर्ट नही मिली क्यूंकी शायद मनचंदा उसका असली नाम था ही नही." मिश्रा ने सोचते हुए जवाब दिया

वहाँ से मैं ऑफीस पहुँचा तो सबसे पहले प्रिया से सामना हुआ.

"झूठ क्यूँ बोला था?" उसने मुझे देखते ही सवाल दाग दिया

"क्या झूठ?" मैने अंजान बनते हुए कहा

"यही के वो आपका दोस्त मिश्रा आ रहा है" मेरे बैठते ही वो मेरे सामने आ खड़ी हुई

मैं जवाब नही दिया तो उसने फिर अपना सवाल दोहराया

"अरे पगली तू समझती क्यूँ नही. वजह थी मेरे पास झूठ बोलने की" मैने अपनी फाइल्स में देखने का बहाना करते हुए कहा

"वही वजह पुच्छना चाहती हूँ" वो अपनी बात पर आडी रही. मैने जवाब नही दिया

"ठीक है" उसने मेरे सामने पड़ा हुआ पेपर उठाया और जेब से पेन निकाला "अगर आपको मुझपर भरोसा नही और लगता है के आपको मुझसे झूठ बोलने की भी ज़रूरत है तो फिर मेरे यहाँ होने का कोई मतलब ही नही. मैं रिज़ाइन कर रही हूँ"

"हे भगवान" मैने अपना सर पकड़ लिया "तू इतनी ज़िद्दी क्यूँ है?"

"झूठ क्यूँ बोला?" उसने तो जैसे मेरा सवाल सुना ही नही

"अरे यार तू एक लड़की है और मैं एक लड़का. यूँ तू मेरे सामने कपड़े बदल रही थी तो मुझे थोड़ा अजीब सा लगा इसलिए मैने तुझे मना कर दिया. बस इतनी सी बात थी" मैने फाइनली जवाब दिया

"सामने कहाँ बदल रही थी. आपने तो दूसरी तरफ मुँह किया हुआ था" उसने नादानी से बोला

"एक ही बात है" मैं फिर फाइल्स की तरफ देखने लगा

"एक बात नही है" वो मेरे सामने बैठते हुए बोली "और आप मुझे कबसे एक लड़की समझने लगे. आप तो मुझे हमेशा कहते थे के मैं एक लड़के की तरह आपकी दोस्त हूँ और आपके बाकी दोस्तों में और मुझ में कोई फरक नही"

मुझे अब थोड़ा गुस्सा आने लगा था पर मैने जवाब नही दिया

"बताओ" वो अब भी अपनी ज़िद पर आडी हुई थी

"फरक है" मैने सामने रखी फाइल्स बंद करते हुए बोला और गुस्से से उसकी तरफ देखा "तू नही समझती पर फरक है"

"क्या फरक है?" उसने भी वैसे ही गुस्से से बोला

"प्रिया फराक ये है के मेरे उन बाकी दोस्तों के सीने पर 2 उभरी हुई छातिया नही हैं. जब वो कोई टाइट शर्ट पेहेन्ते हैं तो उनके निपल्स कपड़े के उपेर से नज़र नही आने लगते"

ये कहते ही मैने अपनी ज़ुबान काट ली. मैं जानता था के गुस्से में मैं थोड़ा ज़्यादा बोल गया था. प्रिया मेरी तरफ एकटूक देखे जा रही थी. मुझे लग रहा था के वो अब गुस्से में ऑफीस से निकल जाएगी और फिर कभी नही आएगी.

"सॉरी" मुझसे और कुच्छ कहते ना बना

पर जो हुआ वो मेरी उम्मीद के बिल्कुल उल्टा था. वो ज़ोर ज़ोर से हस्ने लगी.

"इतनी सी बात?" वो हस्ते हुए बोली

"ये इतनी सी बात नही है" मैने झेन्पते हुए कहा

"इतनी सी ही बात है. अरे यार दुनिया की हर लड़की के सीने पर ब्रेस्ट्स होते हैं. मेरे हैं तो कौन सी बड़ी बात है?" वो मेरे साथ बिल्कुल ऐसे बात कर रही थी जैसे 2 लड़के आपस में करते हैं.

उसके हस्ने से मैं थोड़ा नॉर्मल हुआ और मुस्कुरा कर उसकी तरफ देखने लगा

"और अब मेरे ब्रेस्ट्स पर निपल्स हैं तो वो तो दिखेंगे ही. बाकी लड़कियों के भी दिखते होंगे शायद. मैने कभी ध्यान से देखा नही" वो अब भी हस रही थी

"नही दिखते" मैं भी अब नॉर्मल हो चुका था "क्यूंकी वो अंदर कुच्छ पेहेन्ति हैं"

"क्या?" उसने फ़ौरन पुचछा

"ब्रा और क्या" जब मैने देखा के वो बिल्कुल ही नॉर्मल होकर इस बारे में बात कर रही है तो मैं भी खुल गया

"ओह. अरे यार मैने कई बार कोशिश की पर मेरा दम सा घुटने लगता है ब्रा पहनकर. लगता है जैसे सीने पर किसी ने रस्सी बाँध दी हो इसलिए नही पहना" वो मुस्कुरा कर बोली

मैं भी जवाब में मुस्कुरा दिया. वो मेरे साथ ऐसे बात कर रही थी जैसे वो किसी लड़की से बात कर रही हो. उस वक़्त मुझे उसके चेहरे पर एक भोलापन सॉफ नज़र आ रहा था और दिखाई दे रहा था के वो मुझपर कितना विश्वास करती है

"एक मिनिट" अचानक वो बोली "आपको कैसे पता के मैने अंदर ब्रा नही पहेन रखी थी?"

मेरे पास इस सवाल का कोई जवाब नही था

प्रिया ने मुझे ज़ोर देकर कपड़ो के बारे में फिर से पुचछा तो मैने उसको बता दिया के वो कपड़े अजीब हैं और उसपर अच्छे नही लगेंगे. शाम को वो कपड़े वापिस देने गयी तो मुझे भी ज़बरदस्ती साथ ले लिया. ऑफीस बंद करके हम निकले और थोड़ी ही देर बाद एक ऐसी दुकान पर खड़े थे जहाँ लड़कियों के कपड़े और ज़रूरत की दूसरी चीज़ें मिलती थी. दुकान पर एक औरत खड़ी हुई थी.

"कल मैने ये कपड़े यहाँ से लिए थे" प्रिया दुकान पर खड़ी औरत से बोली "तब कोई और था यहाँ"

"मेरे हज़्बेंड थे" दुकान पर खड़ी हुई औरत बोली "कहिए"

"जी मैं ये कपड़े बदलने आई थी. कोई दूसरे मिल सकते हैं? फिटिंग सही नही आई" उसने अपने पर्स से बिल निकालकर उस औरत को दिखाया

"ज़रूर" उस औरत ने कहा "आप देख लीजिए कौन से लेने हैं"

आधे घंटे तक मैं प्रिया के साथ बैठा लड़कियों के कपड़े देखता रहा. ये पहली बार था के मैं एक लड़की के साथ शॉपिंग करने आया था और वो भी लड़कियों की चीज़ें. थोड़ी ही देर में मैं समझ गया के सब ये क्यूँ कहते हैं के लड़कियों के साथ शॉपिंग के लिए कभी नही जाना चाहिए. आधे घंटे माथा फोड़ने के बाद उसने मुश्किल से 3 ड्रेसस पसंद की. एक सलवार सूट, 2 टॉप्स, 1 जीन्स और एक फुल लेंग्थ स्कर्ट जिनके लिए मैने भी हाँ की थी.

"मैं ट्राइ कर सकती हूँ?" उसने दुकान पर खड़ी औरत से पुचछा "कल ट्राइ नही किए थे इसलिए शायद फिटिंग सही नही आई"

"हां क्यूँ नही" उस औरत ने कहा "वो पिछे उस दरवाज़े के पिछे स्टोर रूम है. आप वहाँ जाके ट्राइ कर सकती हैं पर देखने के लिए शीशा नही है"

"कोई बात नही. ये देखके बता देंगे" प्रिया ने मेरी तरफ इशारा किया. हम तीनो मुस्कुराने लगे.

वो कपड़े उठाकर स्टोर रूम की तरफ बढ़ गयी. मैं दुकान से निकल कर पास ही एक पॅनवाडी के पास पहुँचा और सिगेरेत्टे जलाकर वापिस दुकान में आया. दुकान में कोई नही था. तभी वो औरत भी चेंजिंग रूम से बाहर निकली

"आपकी वाइफ आपको अंदर बुला रही हैं" उसने मुझसे कहा तो मुझे जैसा झटका लगा

"मेरी वाइफ?" मैने हैरत से पुचछा

"हाँ वो अंदर कपड़े पहेनकर आपको दिखाना चाहती हैं. आप चले जाइए" उसने स्टोर रूम की तरफ इशारा किया तो मैं समझ गया के वो प्रिया की बात कर रही है. मैं स्टोर रूम में दाखिल हुआ. अंदर प्रिया एक सलवार सूट पहने खड़ी ही.

"मैं तेरा हज़्बेंड कब्से हो गया?" मैने अंदर घुसते ही पुचछा

"अरे यार और क्या कहती उसको. थोड़ा अजीब लगता ना के मैं उसे ये कहती के यहाँ मैं आपके सामने कपड़े ट्राइ कर रही हूँ इसलिए मैने कह दिया के आप मेरे हज़्बेंड हो"

उसका जवाब सुनकर मैं मुस्कुराए बिना नही रह सका. तभी स्टोर रूम के दरवाज़े पर नॉक हुआ. मैने दरवाज़ा खोला तो वो औरत वहाँ खड़ी थी.

"आप लोग अभी हैं ना थोड़ी देर?" उसने मुझसे पुचछा तो मैं हां में सर होला दिया

"मुझे ज़रा हमारी दूसरी दुकान तक जाना है. 15 मिनट में आ जाऊंगी. तब तक आप लोग कपड़े देख लीजिए." उसने कहा तो हम दोनो ने हां में सर हिला दिया और वो चली गयी और मैने स्टोर रूम का दरवाज़ा बंद कर दिया. दुकान का दरवाज़ा वो जाते हुए बाहर से बंद कर गयी जिससे हम लोग उसके पिछे कपड़े लेकर भाग ना सकें.

मैं प्रिया की तरफ पलटा और एक नज़र उसको देखा तो मुँह से सीटी निकल गयी. वो सच में उस सूट में काफ़ी खूबसूरत लग रही थी.

"अरे यार तू तो एकदम लड़की बन गयी" मैने कहा "अच्छी लग रही है"

"थॅंक यू" उसने जवाब दिया" ये ले लूं? फिटिंग भी ठीक है"

"हाँ ले ले" मैने कहा

उसके बाद मैं स्टोर रूम के बाहर चला गया ताकि वो दूसरे कपड़े पहेन सके. उसने आवाज़ दी तो मैं अंदर गया. अब वो एक टॉप और जीन्स पहने खड़ी थी. इन कपड़ो में मेरे सामने फिर से वही लड़की खड़ी थी जिसको मैने सुबह देखा था. बड़ी बड़ी चूचियाँ टॉप फाड़कर बाहर आने को तैय्यार थी.

"ये कैसा है?" उसने मुझसे पुचछा

मैं एक बार फिर उसकी चूचियो की तरफ देखने लगा जिनपर उसके निपल्स फिर से उभर आए थे. उसने जब देखा के मैं कहाँ देख रहा हूँ तो अपने हाथ आगे अपनी छातियो के सामने कर लिए

"इनके सिवा बताओ के कैसी लग रही हूँ"

"अच्छी लग रही है" मैने हस्ते हुए जवाब दिया

उसने वैसे ही मुझे दूसरा टॉप और स्कर्ट पहेनकर दिखाया. उसे यूँ देख कर मैं ये सोचे बिना ना रह सका के अगर वो सच में लड़कियों की तरह रहे तो काफ़ी खूबसूरत है. अपना वो बेढंगा सा लड़को वाला अंदाज़ छ्चोड़ दे तो शायद उसकी गली का हर लड़का उसी के घर के चक्कर काटे.

मैं बाहर खड़ा सोच ही रहा था के स्टोर रूम से प्रिया की आवाज़ आई. वो मुझे अंदर बुला रही थी. मैं दरवाज़ा खोलकर अंदर जैसे ही गया तो मेरी आँखें खुली की खुली रह गयी.

वो अंदर सिर्फ़ स्कर्ट पहने मेरी तरफ अपनी पीठ किए खड़ी थी. स्कर्ट के उपेर उसने कुच्छ नही पहेन रखा था. सिर्फ़ एक ब्रा था जिसके हुक्स बंद नही थे और दोनो स्ट्रॅप्स पिछे उसकी कमर पर लटक रहे थे.

क्रमशः............................
Reply
06-29-2017, 11:13 AM,
#7
RE: Bhoot bangla-भूत बंगला
भूत बंगला पार्ट--4

गतान्क से आगे.....................

मैं अंदर घुसते ही फ़ौरन दूसरी तरफ पलट गया.

"क्या हुआ? उधर क्या देख रहे हो?" उसने मेरी तरफ पीठ किए किए ही पुचछा

"उधर कुच्छ नही देख रहा. तेरी तरफ ना देखने की कोशिश कर रहा हूँ" मैने जवाब दिया

"क्यूँ?" प्रिया भोलेपन से बोली

"क्यूंकी तू इस वक़्त मेरे सामने आधी नंगी खड़ी है इसलिए" मैने जवाब दिया और फिर बाहर जाने लगा

"अरे कहाँ जा रहे हो? इधर आओ" वो मुझे रोकते हुए बोली. अब भी उसकी पीठ मेरी तरफ थी

"क्या?" मैं रुक गया. पर अब भी मैने दूसरी तरफ चेहरा किया हुआ था.

"अरे यार अब ये फ़िज़ूल की नौटंकी छ्चोड़ो" वो थोड़ा सा चिड़के बोली "ज़रा मेरे पिछे आकर ये हुक्स बंद करो. मुझसे हो नही रहे"

मुझे समझ नही आ रहा था के हो क्या रहा है. या तो ये लड़की बिल्कुल बेवकूफ़ है या मुझपर कुच्छ ज़्यादा ही भरोसा करती है.

"कुच्छ पहेन ले प्रिया" मैने कहा

"हाँ पहेन लूँगी पर ज़रा ये हुक्स तो बंद करो. जल्दी करो ना" वो खुद ही थोड़ा सा मेरी तरफ सरक गयी.

जब मैने देखा के उसके दिल में कुच्छ नही है और ना ही वो मुझसे ज़रा भी शर्मा रही है तो मैं भी उसकी तरफ घूम गया और उसके नज़दीक गया. स्कर्ट उसने सरका कर काफ़ी नीचे बाँध रखा था और उसकी पॅंटी उपेर से दिखाई दे रही थी. मैने एक नज़र उसकी नंगी कमर पर डाली तो अंदर तक सिहर उठा. आख़िर था तो एक लड़का ही ना. भले वो लड़की कोई भी थी पर सामने एक लड़की आधी नंगी हालत में खड़ी हो तो असर तो होना ही था. मेरा लंड मेरी पेंट में झटके मारने लगा. मैने आगे बढ़कर उसकी ब्रा के दोनो स्ट्रॅप्स पकड़े और हुक लगाने की कोशिश करने लगा. मेरे दोनो हाथ की उसकी उंगलियाँ उसकी नंगी कमर पर लगी तो हटाने का दिल नही किया. मैने 2-3 बार कोशिश की पर हुक बंद नही कर पाया. एक बार मैने ज़ोर से कोशिश की तो थोड़ा सा हिली और पिछे को मेरे और करीब हो गयी. वो मुझसे हाइट में छ्होटी थी इसलिए उसके पिछे खड़े हुए मेरी नज़र सामने सीधा उपेर से उसके क्लीवेज पर पड़ी और नज़र जैसे वहीं जम गयी. ब्रा में उसकी चूचिया मुश्किल से क़ैद हो पा रही थी. मेरा दिल किया के अपने हाथ आगे करके उन दोनो चूचियो को मसल डालूं.

फाइनली मैं हुक बंद करने में कामयाब हो गया. प्रिया ने जब देखा के हुक लग गया तो वो आगे को हुई और मेरे सामने ही घूम गयी और मेरी तरफ देख कर मुस्कुराने लगी.

"तुम कह रहे थे ने के मुझसे लड़की बन कर रहना चाहिए इसलिए मैने सोचा के ये भी ले ही लूँ" उसने कहा

पर मुझे तो जैसे उसकी आवाज़ आ ही नही रही थी. वाइट कलर के ब्रा में उसकी हल्की सावली चूचिया जैसे मुझपर कहर ढा रही थी. आधी से ज़्यादा चूचिया ब्रा के उपेर और साइड से लग रहा था मानो अभी गिर पड़ेंगी. मेरी नज़र वहीं जमकर रह गयी थी. मैने जब जवाब नही दिया तो प्रिया ने महसूस किया के मैं क्या देख रहा हूँ. उसने शर्मा कर अपने दोनो हाथ आगे कर लिए और फिर से दूसरी तरफ घूमकर खड़ी हो गयी.

तभी बाहर दरवाज़ा खुलने की आवाज़ आई और मैं समझ गया के दुकान की मलिक वो औरत आ गयी है. प्रिया ने फ़ौरन आगे बढ़कर एक टॉप उठाया और मैं दरवाज़ा खोलकर स्टोर रूम से बाहर आ गया

थोड़ी देर बाद हम कपड़े उठाकर दुकान से निकल गये और बस स्टॉप की तरफ बढ़े जहाँ से प्रिया बस लेकर घर जाती थी. स्टोर रूम में मुझे अपनी तरफ यूँ देखता पाकर वो शायद थोडा शर्मा गयी थी इसलिए कुच्छ कह नही रही थी और मुझे भी बिल्कुल समझ नही आ रहा था के बात कैसे शुरू करूँ. हम दोनो चुप चाप चलते रहे.

थोड़ी ही देर में वो अपनी बस में बैठकर जा चुकी थी. मैने एक ठंडी आह भारी और अपनी कार की तरफ बढ़ गया.

शाम को तकरीबन 7 बजे मैं घर पहुँचा और ये देखकर राहत की सास ली के देवयानी घर पर नही थी.

"बाहर वॉक के लिए गयी है" रुक्मणी ने मुस्कुराते हुए मुझे बताया.

वो किचन में खड़ी खाना बना रही थी. मैने जल्दी से अपना समान वहीं सोफे पर रखा और किचन के अंदर दाखिल हुआ और रुक्मणी के पिछे जा खड़ा हुआ. मेरे हाथ उसकी कमर से होते हुए सीधा सामने उसकी चूचियो पर जा पहुँचा और मैं उसके गले को चूमते हुए उसकी चूचिया दबाने लगा. लंड पिछे से उसकी गांद से सॅट चुका था.

"क्या बात है बड़े मूड में लग रहे हो?" रुक्मणी आह भरते हुए बोली

मैं उसको कैसे बताता के प्रिया को यूँ ब्रा में देखकर लंड तबसे ही खड़ा हुआ है.

"कल रात तो आई नही थी ना" मैने लंड उसकी गांद पर रगड़ते हुए कहा

"वो देवयानी ..... "रुक्मणी कुच्छ कहना ही चाह रही थी के मैने उसको अपनी तरफ घुमाया और उसके होंठो पर अपने होंठ रख दिए. मैने पागलों की तरह उसको चूमने लगा और वो भी उसी गर्मी से मेरा जवाब दे रही थी.

"बेडरूम में चलो" मैने रुक्मणी से कहा

"नही" उसने फ़ौरन जवाब दिया "देवयानी काफ़ी देर की गयी हुई है. आती ही होगी"

मैं समझ गया के वो कह रही थी के जो करना है जल्दी निपटा लें वरना कहीं ऐसा ना हो के देवयानी आ जाए और मामला अधूरा रह जाए. उसने उस वक़्त एक टॉप और नीचे पाजामा पहेन रखा था. उसको चूमते हुए मैने उसका टॉप उपेर उठाया और उसकी दोनो चूचिया हाथों में पकड़ ली. ब्रा उसने अंदर पहेन नही रखा था इसलिए टॉप उठाते ही चूचिया नंगी हो गयी. बहुत जल्द उसका एक निपल मेरे मुँह में था और दूसरा मेरे हाथ की उंगलियों के बीच.

"आआहह " रुक्मणी ने अपनी गर्दन पिछे झटकते हुए अपना हाथ सीधा मेरे लंड पर रख दिया और पेंट के उपेर से दबाने लगी.

आग काबू के बाहर हो रही थी. मैने उसके दोनो कंधे पकड़े और नीचे की और दबाया. वो मेरा इशारा समझकर फ़ौरन अपने घुटनो पर बैठ गयी और मेरी पेंट खोलने लगी. पेंट खोलकर उसने नीचे घुटनो तक खींची और मेरा लंड अपने मुँह में भर लिया.

उसकी इस अदा का मैं क़ायल था. वो जिस तरह लंड चूस्ति थी वो मज़ा उसको चोदने में भी नही था. जो मज़ा वो अपने मुँह और हाथ से देती थी उसके चलते कई बार तो मेरा दिल करता था के मैं बस उससे लंड चुस्वता रहूं, चोदु ही ना. और उस वक़्त भी वो वही कर रही थी. मेरे सामने बैठी वो मेरा लंड पूरा का पूरा अपने मुँह में ले लेती और अंदर उसपर जीभ फिराती. उसका एक हाथ मेरी बॉल्स सहला रहा था और दूसरे हाथ से वो लंड चूसने के साथ साथ मसल भी रही थी.

इससे पहले के मैं उसके मुँह में ही पानी गिरा देता, मैने उसको पकड़कर फिर से खड़ा किया और घूमकर हल्का सा झुका दिया. वो इशारा समझते हुए किचन में स्लॅब के उपेर झुक गयी और अपनी गांद उठाकर मेरे सामने कर दी. मैने उसका पाजामा और पॅंटी खींचकर उसको घुटनो तक कर दी और उसकी गांद को हाथों में थाम कर लंड चूत पर रखा.

"आआहह जल्दी करो" वो भी अब मेरी तरह जिस्म की आग में बुरी तरह झुलस रही थी और लंड चूत में लेने को मरी जा रही थी.

मैने लंड पर हल्का सा दबाव डाला और लंड के आगे का हिस्सा उसकी चूत के अंदर हो गया.

"पूरा घुसाओ" उसने झुके झुके ही कहा

मैने लंड थोडा बाहर खींचा और इस बार धक्का मारा तो रुका नही. लंड उसकी चूत में अंदर तक घुसता चला गया. वो कराह उठी. मैने उसका टॉप उपेर खींचा और पिछे से उसकी कमर सहलाते हुए फिर से हाथ आगे लाया और उसकी छतिया पकड़ ली.

"ज़ोर से दबाओ" रुक्मणी बोली तो मैं उसकी चूत पर धक्के मारता हुआ उसकी चूचिया ऐसे रगड़ने लगा जैसे उनसे कोई दुश्मनी निकल रहा था. पीछे उसकी चूत पर मेरे धक्के पूरी ताक़त के साथ पड़ रहे थे. हवा में एक अजीब सी वासना की खुसबु फेल गयी थी और हमारी आअहह की आवाज़ों के अलावा सिर्फ़ उसकी गांद पर पड़ते मेरे धक्को की आवाज़ सुनाई दे रही थी. मेरी खुद की आँखें भी बंद सी होने लगी थी और लग रहा था के किसी भी पल मेरा लंड पानी छ्चोड़ देगा. एक बार आँखें बंद हुई तो ना जाने सामने कैसे प्रिया का नंगा जिस्म फिर से आँखों में घूमने लगा और इस ख्याल ने मेरे मज़े को कई गुना बढ़ा दिया. मैने यूँ ही आँखें बंद किए प्रिया की चूचियो के बारे में सोचने लगा और पूरी तेज़ी के साथ रुक्मणी को चोदने लगा. मैं प्रिया के हर अंग के बारे में सोच रहा था. उसकी नंगी कमर, ब्रा में बंद चूचिया और उठी हुई गांद.

गांद का ख्याल आते ही मेरे हाथ अपने आपं रूमानी की गांद पर आ गये और मैं उसकी गांद सहलाने लगा. धक्को की रफ़्तार अब काफ़ी बढ़ चुकी थी और मैं जानता था के अब किसी भी वक़्त मैं ख़तम हो जाऊँगा. मैने रुक्मणी से गांद मारने के बारे में पुच्छने की सोची और उसकी एक अंगुली उसकी गांद में घुसाने की कोशिश की. अंगुली गांद पर महसूस होते ही वो फ़ौरन आगे को हो गयी और मना करने लगी. एक बार गांद मरवाने की कोशिश से वो इतनी डर गयी थी के अब अंगुली तक नही घुसाने देती थी.

"अंदर मत निकालना" वो मेरे धक्को की रफ़्तार से समझ गयी के मैं ख़तम होने वाला हूँ "बाहर गिराना"

मैने हाँ में गर्दन हिलाई और फिर से उसको चोदने लगा

थोड़ी ही देर बाद देवयानी आ गयी और हम सब खाना खाकर अपने अपने रूम्स में चले गये.

अगले दिन सॅटर्डे था और सॅटर्डे सनडे को मैं काम नही करता था. चाय पीते हुए मैने न्यूसपेपर खोला तो फ्रंट पेज पर ही मनचंदा के बारे में छपा हुआ था के पोलीस को उसके बारे में कोई जानकारी नही है और अगर कोई कुच्छ जनता है तो पोलीस से कॉंटॅक्ट करे.
Reply
06-29-2017, 11:13 AM,
#8
RE: Bhoot bangla-भूत बंगला
मेरे पास करने को आज कुच्छ ख़ास नही था. आम तौर पर मेरे सॅटर्डे और सनडे रुक्मणी के साथ बिस्तर पर गुज़रते थे पर देवयानी के घर में होने की वजह से अब ये मुमकिन नही था. मैं काफ़ी देर तक बैठा न्यूसपेपर पढ़ता रहा. थोड़ी देर बाद रुक्मणी मुझे ब्रेकफास्ट के लिए बुलाने आई. उसको देखने से लग रहा था के वो कहीं जाने के लिए तैय्यर थी.

"कहाँ जा रही हो?" मैने उसको देखते हुए पुचछा

"कुच्छ काम है. थोड़ी देर में वापिस आ जाऊंगी. ब्रेकफास्ट टेबल पर मैने लगा दिया है खा लेना" उसने मुझसे कहा तो मैं हां में सर हिलाता खड़ा हो गया.

मैं नाहकार ब्रेकफास्ट के लिए टेबल पर आ बैठा. अभी मैं खा ही रहा था के देवयानी के कमरे का दरवाज़ा खुला और वो बाहर निकली. मैं उसको घर पर देखकर हैरान रह गया क्यूंकी मुझे लगा था के शायद वो भी रुक्मणी के साथ बाहर गयी होगी. पर शायद उसको देर तक सोने की आदत थी इसलिए रुक्मणी उसके बिना ही चली गयी थी.

"गुड मॉर्निंग" उसने मुझको देखते हुए कहा

मैने उसकी तरफ देखा और मुस्कुराते हुए जवाब दिया. वो अपने कमरे के दरवाज़े पर खड़ी थी और उसके कमरे की खिड़की ठीक उसके पिछे खुली हुई थी. उसने एक सफेद रंग की नाइटी पहेन रखी थी. खिड़की से सूरज की रोशनी पिछे से कमरे के अंदर आ रही थी जिसके वजह से उसकी नाइटी पारदर्शी हो गयी थी और उसकी दोनो टाँगो का आकर नाइटी के अंदर सॉफ दिखाई दे रहा था. मैने एक पल के लिए उसको देखा और फिर नज़र हटाकर नाश्ता करने लगा.

"रुक्मणी कहाँ है?" उसने वहीं खड़े खड़े पुचछा

"कहीं बाहर गयी है. थोड़ी देर में आ जाएगी" मैने जवाब दिया

"वैसे आपकी रात कैसी गुज़री ?" वो मेरे सामने टेबल पर बैठते हुए बोली

"ठीक ही थी" मैने मुस्कुरा कर जवाब दिया

"नही मेरा मतलब के रात अकेले कैसे गुज़री? मेरे आने से काफ़ी प्राब्लम हो रही होगी आपको, नही?" उसने सामने रखा एक एप्पल उठाया और बड़ी मतलबी निगाह से मेरी तरफ देखते हुए एप्पल खाने लगी.

"क्या मतलब?" मैने सवाल किया

"मतलब सॉफ है आहमेद साहब. पहले हर रात मेरी बहेन आपके साथ बिस्तर पर होती थी और अब आपको मेरी वजह से अकेले सोना पड़ रहा है" उसने जवाब दिया

मेरा मुँह का नीवाला मेरे मुँह में ही रह गया और मैं चुपचाप उसकी तरफ देखने लगा. जबसे वो आई थी तबसे मैने उससे कोई बात नही की थी इसलिए इस बात का सवाल ही नही उठता के उसको मेरी बातों से मेरे और रुक्मणी के रिश्ते पर कोई शक उठा हो और ऐसा भी नही हो सकता था के रुक्मणी ने उससे कुच्छ कहा हो.

"क्या कह रही हैं आप?" मैने धीरे से कहा

"ओह कम ऑन इशान" उसने हस्ते हुए कहा "तुम्हें क्या मैं छ्होटी बच्ची लगती हूँ? जिस तरह से तुमने मुझे पिछे से किचन में आकर पकड़ा था ये सोचकर के मैं रुक्मणी हूँ उससे इस बात का सॉफ अंदाज़ा लग जाता है के तुम्हारे और मेरी बहेन के बीच क्या रिश्ता है"

मेरे सामने उसकी बात सॉफ हो गयी. मैने उस दिन किचन में उसको पकड़ लिया था ये सोचकर के वो रुक्मणी है और ये बात सॉफ इशारा करती थी के मेरे और रुक्मणी के शारीरिक संबंध थे. मैं खामोशी से उसको देखता रहा

"अरे क्या हुआ?" वो उठकर मेरे करीब आते हुए बोली "रिलॅक्स. मुझे कोई प्राब्लम नही है यार. तुम दोनो की अपनी ज़िंदगी है ये और मुझे बीच में दखल अंदाज़ी का कोई हक नही. मुझे कोई फरक नही पड़ता"

उसने कहा तो मेरी जान में जान आई वरना मुझे लग रहा था के कहीं ये इस बात पर कोई बवाल ना खड़ा कर दे. वो अब मेरे पिछे आ खड़ी हुई थी और दोनो हाथ मेरे कंधे पर रख दिए

"और वैसे भी" वो नीचे को झुकी और मेरे कान के पास मुँह लाकर बोली "तुम यहाँ मेरी बहेन के घर में फ्री में रहो तो उसके बदले उसको कुच्छ तो देना ही पड़ेगा ना. और ठीक भी तो है, उस बेचारी की भी अपनी ज़रूरत है जिसका ध्यान तुम रख लेते हो. फेर डील"

वो पिछे से मुझसे सटी खड़ी थी और उसके दोनो हाथ मेरे कंधो से होते हुए अब मेरी छाती सहला रहे थे. उसकी दोनो चूचिया मेरे सर के पिछे हिस्से पर दबे हुए थे.

"वैसे एक बात कहूँ इशान" उसने वैसे ही झुके झुके कहा "जिस तरह से उस दिन तुमने मुझे पकड़ा था, उससे मुझे अंदाज़ा हो गया था के तुम मेरी बहेन को काफ़ी खुश रखते होंगे. और इसलिए ही शायद वो तुम पर इतनी मेहरबान है"

मेरी समझ में नही आ रहा था के क्या करूँ. वो जिस तरह से मेरे साथ पेश आ रही थी उससे ये बात ज़ाहिर हो गयी थी के वो क्या चाहती है.

"मैं तो सिर्फ़ ये कहना चाह रही थी के मर्दानगी की कदर करना मैं भी चाहती हूँ" उसने अपने होंठ अब मेरे कानो पर रख दिए थे.

उसके दोनो हाथ अब भी मेरी छाती सहला रहे थे और धीरे धीरे नीचे को जा रहे थे. जो करना था वो खुद ही कर रही थी. मैं तो बस बैठा हुआ था. उसके हाथ मेरे पेट से होते हुए मेरे लंड तक पहुँचे ही वाले थी के ड्रॉयिंग रूम में रखे फोन की घंटी बजने लगी और जैसे हम दोनो को एक नींद से जगा दिया. वो फ़ौरन मेरे से हटकर खड़ी हो गयी और मैं भी उठ खड़ा हुआ. एक नज़र मैने उसपर डाली और ड्रॉयिंग रूम में आकर फोन उठाया.

फोन के दूसरी तरफ इनस्पेक्टर मिश्रा था

"यार तेरी बात तो एकदम सही निकली" फोन के दूसरी तरफ से उसकी आवाज़ आई

"कौन सी बात"" मैने एक नज़र देवयानी पर डाली जो मुझे खड़ी देख रही थी.

"वो अड्वर्टाइज़्मेंट वाली" मिश्रा ने जवाब दिया

"मतलब? कुच्छ पता चला क्या?" मेरा ध्यान देवयानी से हटकर मिश्रा की तरफ आया

"हाँ और अड्वर्टाइज़्मेंट का इतनी जल्दी जवाब आएगा ये तो मैने सोचा ही नही था. आज सुबह ही तो छपा था" मिश्रा की आवाज़ से ऐसा लग रहा था जैसे वो अभी कोई जुंग जीत कर आया हो

"किसका जवाब दिया?" मैने पुचछा

"मनचंदा की बीवी का. फोन आया थे मुझे. वो कहती है के जिस आदमी का डिस्क्रिप्षन हमने अख़बार में छापा है वो उसके पति का है जो पिछले 8 महीने से गया है" मिश्रा ने कहा

"कहाँ से आया था" मैने पुचछा

"मुंबई से" मिश्रा बोला "और तेरी दूसरी बात भी सही थी"

"कौन सी?" मैने पुचछा

"मनचंदा उसका असली नाम नही था. उसका असली नाम विपिन सोनी था. और उसकी बीवी का नाम है भूमिका सोनी" मिश्रा बोला

"गुजराती?" मैने सोनी नाम से अंदाज़ा लगाते हुए कहा

"नही राजस्थानी" मिश्रा ने कहा "वो मंडे को आ रही है बॉडी देखने के लिए. फिलहाल तो वो ऐसा कह रही है. पक्का तो बॉडी देखने के बाद ही कह सकती है"

"ह्म्‍म्म्म" मैने सोचते हुए कहा "चलो केस में कुच्छ तो आगे बढ़े"

"हाँ अब कम से कम उस बेचारे की लाश लावारिस तो नही बची" मिश्रा बोला

"पर एक बात समझ नही आई" मेरे दिमाग़ में अचानक एक ख्याल आया "ये अड्वर्टाइज़्मेंट तो हमने यहाँ के अख़बार में दिया था. उसको मुंबई में खबर कैसे लग गयी?"

"उसकी कोई दोस्त है जो इसी शहेर में रहती है. उसने पेपर देखा तो फोन करके सोनी बताया और उसके बाद उसने मुझे फोन किया"

"ह्म्‍म्म्म" मैने फिर हामी भारी

"तू आएगा?" मिश्रा बोला

"कहाँ?" मैने पुचछा

"यार मैं सोच रहा थे के जब वो आइडेंटिफिकेशन के लिए आए तो तू भी यहाँ हो. अब तक तेरी ही कही बात से ये केस थोड़ा आगे बढ़ा है. हो सकता है आगे भी तेरी सलाह काम आए" मिश्रा ने कहा

"ठीक है. मुझे टाइम बता देना" मैने जवाब दिया
Reply
06-29-2017, 11:13 AM,
#9
RE: Bhoot bangla-भूत बंगला
उस दिन और उसके अगले दिन और कुच्छ ना हुआ. रुक्मणी और देवयानी दोनो साथ ही घर पर रही और बाहर गयी भी तो साथ. ना तो मैं देवयानी से कुच्छ बात कर सका और ना ही रुक्मणी को चोदने का मौका मिला. उपेर से दिमाग़ में मनचंदा यानी विपिन सोनी के खून का किस्सा घूमता रहा.

मंडे सुबह ही मेरे पास मिश्रा का फोन आ गया और उसने मुझे पोलीस स्टेशन पहुँचने को कहा. सोनी की बीवी सुबह ही उससे मिलने आने वाली थी. मेरी भी उस दिन कोर्ट में कोई हियरिंग नही थी इसलिए मैं भी तैय्यर होकर पोलीस स्टेशन जा पहुँचा.

तकरीबन सुबह 10 बजे मैं और मिश्रा बैठे भूमिका सोनी का इंतेज़ार कर रहे थे. वो अपने बताए वक़्त से आधा घंटा लेट आई.

"सॉरी इनस्पेक्टर. मैं ट्रॅफिक में फस गयी थी" उसने पोलीस स्टेशन में आते ही कहा.

भूमिका सोनी कोई 35 साल की गोरी चित्ति औरत थी. वो असल में इस क़दर गोरी थी के उसको देखने वाला या तो ये सोचता के वो कोई अँग्रेज़ है या उसको कोई बीमारी है जिसकी वजह से उसकी स्किन इतनी गोरी है. वो तो उसका बात करने का अंदाज़ था जो उसके हिन्दुस्तानी होने की गवाही दे रहा था वरना पहली नज़र में तो शायद मैं भी यही सोचता के वो कोई अँग्रेज़ औरत है. वो एक प्लैइन काले रंग के सलवार सूट में थी. ना कोई मेक उप और ना ही कोई ज्यूयलरी उसके जिस्म पर थी. तकरीबन 5"5 लंबी, काले रंग के बॉल और हल्की भूरी आँखें. उसके साथ एक कोई 60 साल का आदमी भी था जो खामोशी से बैठा उसके और मिश्रा के बीच हो रही बातें सुन रहा था.

मरनेवाला, यानी विपिन सोनी, तकरीबन 50 से 60 साल के बीच की उमर का था इसलिए मैं उम्मीद कर रहा था के जो औरत खुद को उसकी बीवी बता रही है वो भी उतनी ही उमर के आस पास होगी पर जब एक 35 साल की औरत पोलीस स्टेशन में आई तो मैं हैरान रह गया. और औरत भी ऐसी जो अगर बन ठनके गली में निकल जाए तो शायद हर नज़र उसकी तरफ ही हो. और अपनी बातों से तो वो 35 की भी नही लग रही थी. हमें लग रहा था जैसे हम किसी 16-17 साल की लड़की से बात कर रहे हैं. वो बहुत ही दुखी दिखाई दे रही थी और आवाज़ भी जैसे गम से भरी हुई थी जो मुझे बिल्कुल भी ज़रूरी नही लगा क्यूंकी अब तक ये साबित होना बाकी था के मरने वाला उसका पति ही थी. पर शायद ये उसका 35 साल की उमर में भी एक बचपाना ही था के उसने अपने आपको विधवा मान भी लिया था.

मेरी नज़र उसके साथ बैठे उस बूढ़े आदमी पर पड़ी जिसने अब तक कुच्छ नही कहा था और चुप बैठा हुआ था. थोड़ी देर बाद भूमिका ने बताया के वो आदमी उसका बाप था जो उसके साथ लाश को आइडेंटिफाइ करने के लिए आया था. सुरेश बंसल, जो की उसका नाम था, देखने से ही एक बहुत शांत और ठहरा हुआ इंसान मालूम पड़ता था. उसके चेहरे पर वो भाव थे जो उस आदमी के चेहरे पर होते हैं जिसने दुनिया देखी होती है, अपने ज़िंदगी में ज़िंदगी का हर रंग देखा होता है.

मिश्रा ने शुरू से लेकर आख़िर तक की कहानी भूमिका को बताई के किस तरह विपिन सोनी यहाँ रहने आया था और किस तरह घर के अंदर उसकी लाश मिली थी. इसी कहानी में उसने मुझे भूमिका से इंट्रोड्यूस कराया और बताया के मरने से पहले मैं ही वो आखरी आदमी था जिससे विपिन सोनी मिला था. वो मेरी तरफ घूम और मुझे देखते हुए बोली

"चलिए मुझे ये जानकार खुशी हुई के यहाँ कोई तो ऐसा था जो मेरे हज़्बेंड को जानता था"

"जी नही" मैने उसकी बात का जवाब दिया "मैं उन्हें आपके हज़्बेंड के तौर पर नही बल्कि मनचंदा के नाम से जानता था"

"उनका असली नाम विपिन सोनी था" कहते कहते भूमिका रो पड़ी "पर शायद अब तो उन्हें किसी नाम की ज़रूरत ही नही"

"दिल छ्होटा मत करो बेटी" भूमिका के बाप यानी सुरेश बंसल ने उसकी तरफ रुमाल बढ़ाया "वो अब भगवान के पास हैं और उससे अच्छी जगह एक भले आदमी के लिए कोई नही है"

थोड़ी देर तक सब खामोश बैठे रहे. जब भूमिका ने रोना बंद किया तो मिश्रा ने उससे फिर सवाल किया

"म्र्स सोनी आप ये कैसे कह सकती हैं के मरने वाला आपका पति था?"

"मैं जानती हूँ इनस्पेक्टर साहब" वो बोली "मनचंदा हमारे मुंबई के घर के ठीक सामने एक कपड़ो के दुकान का नाम है, मनचंदा गारमेंट्स. वहाँ से मिला था उन्हें ये नाम"

"और कुच्छ?" मिश्रा ने सवाल किया

"और मेरे पति के चेहरे पर बचपन से एक निशान था, स्कूल में लड़ाई हो गयी थी और किसी दूसरे बच्चे ने एक लोहे की रोड मार दी थी जिससे उनका चेहरा कट गया था. और उनके एक हाथ के छ्होटी अंगुली आधी है. एक बार शिकार पर उनके अंगुली कर गयी थी. और कोई सबूत चाहिए आपको?" भूमिका बोली

"जी नही इतना ही काफ़ी है" मिश्रा बोला "वैसे आपके पति कब्से गायब थे?"

"यही कोई एक साल से" भूमिका बोली

"नही बेटी" उसकी बात सुनकर उसके पास बैठा उसका बाप बोला "8 महीने से"

"यहाँ वो 6 महीने से रह रहे हैं. बीच के 2 महीने कहाँ थे आपको पता है?" मिश्रा ने पुचछा

भूमिका ने इनकार में सर हिलाया

"वो घर से गये क्यूँ थे? आपसे कोई झगड़ा?" मिश्रा ने फिर सवाल किया

इस बार जवाब भूमिका ने नही मैने दिया

"मिश्रा तुझे नही लगता के ये सारे सवाल बॉडी को आइडेंटिफाइ करने के बाद होने चाहिए?"

"सही कह रहा है" मिश्रा ने मुकुरा कर जवाब दिया "पहले म्र्स सोनी ये कन्फर्म तो कर दें के मरने वाला विपिन सोनी ही है"

वो थोड़ी देर बाद भूमिका और उसके बाप को जीप में बैठाकर हॉस्पिटल ले गया आइडेंटिफिकेशन के लिए. मुझसे उसने चलने के लिए कहा पर मुझे हॉस्पिटल्स से हमेशा सख़्त नफ़रत रही है. वहाँ फेली दवाई की महेक मुझे कभी बर्दाश्त नही हुई इसलिए मैने जाने से मना कर दिया और वापिस अपने ऑफीस की तरफ चला.

ऑफीस पहुँचा तो प्रिया खिड़की पर खड़ी बाहर देख रही थी. मैं अंदर आया तो उसने पलटकर मुझे एक नज़र देखा और फिर खिड़की से बाहर देखने लगी. हमेशा की तरह ने तो उसने मुझे गुड मॉर्निंग कहा और ना ही ये पुचछा के मैं देर से क्यूँ आया. उसकी इस हरकत से मुझे उस दिन चेंजिंग रूम में हुई घटना याद आ गयी और जाने मुझे क्यूँ लगने लगा के अब शायद वो रिज़ाइन कर देगी. मैं चुप चाप आकर अपनी डेस्क पर बैठ गया. मैं उम्मीद कर रहा था के शायद वो अब उस दिन खरीदे अपने नये कपड़े पहेनकर आएगी पर उसने फिर से वही अपने पुराने लड़को जैसे कपड़े पहेन रखे थे.

कमरे में यूँ ही थोड़ी देर खामोशी च्छाई रही. आख़िर में कमरे का सन्नाटा प्रिया ने ही तोड़ा.

"तुम उस दिन मुझे ऐसे क्यूँ देख रहे थे?" वो बिना मेरी तरफ पलते बोली

"मतलब?" मैने उसकी तरफ देखते हुए कहा

"मतलब उस दिन जब स्टोर रूम में मैने तुम्हें ब्रा का हुक बंद करने को कहा तो तुम्हारी नज़र कही और ही अटक गयी थी. क्यूँ?" इस बार भी वो बिना पलते खिड़की के बाहर देखते हुए बोली

मुझसे जवाब देते ना बना

"बताओ" वो फाइनली मेरी तरफ पलटी और खिड़की पर कमर टीकाकार खड़ी हो गयी

"क्या बताऊं प्रिया?" मैने भी सोचा के खुलके बात करना ही ठीक है. वो एक अच्छी सेक्रेटरी थी और उसको खोना बेवकूफी होती

"यही के क्यूँ देख रहे थे ऐसे" वो आदत के मुताबिक अपनी बात पर आड़ गयी

"अरे यार मैं एक लड़का हूँ और तुम एक लड़की तो ये तो नॅचुरल सी बात है. तुम अचानक मेरे सामने ऐसे आ गयी तो थोड़ा अजीब लगा मुझे. एक लड़का होने की हिसाब से मेरी नज़र तो वहाँ जानी ही थी. नॅचुरल क्यूरीयासिटी होती है यार" मैने एक साँस में कह डाला

कमरे में फिर खामोशी च्छा गयी

"मैने घर जाकर इस बारे में बहुत सोचा" वो धीरे धीरे मेरी तरफ बढ़ी "और साची कहूँ तो तुम्हारा यूँ देखना अच्छा लगा मुझे. कम से कम इस बात का तो पक्का हो गया के मैं लड़की हूँ और लड़के मेरी तरफ भी देख सकते हैं"

मैने नज़र उठाकर उसकी तरफ देखा. वो मुस्कुरा रही थी. मेरी जान में जान आई

"थॅंक्स यार" वो मेरे सामने बैठते हुए बोली "मुझे तो डाउट होने लगा था के कोई लड़का कभी क्या मेरी तरफ देखेगा पर उस दिन तुम्हारी नज़र ने ये साबित कर दिया के मुझ में वो बात है"

"है तो सही" मैने हस्ते हुए जवाब दिया "बस थोड़ा सा अपना ख्याल रखा करो"

"ह्म्‍म्म्म" वो गर्दन हिलाते हुए बोली

"और आज तुमने वो नये कपड़े नही पहने?" मैने सवाल किया

"नही साथ लाई हूँ" वो खुश होती हुई बोली "सोचा के पहले तुमसे एक बार बात कर लूँ फिर ट्राइ करूँगी. अच्छा बताओ के तुम्हें सबसे अच्छी ड्रेस कौन सी लगी?

"वो स्कर्ट और टॉप" मैने सोचते हुए जवाब दिया

"मुझे भी" वो बच्चो की तरह चिल्ला पड़ी "मैं वही पहेन लेती हूँ"

"ओह नो" मैने कहा "अब फिर उधर घूमना पड़ेगा"

"ज़रूरत नही है" वो खड़ी होते हुए बोली "मैने ब्रा पहेन रखा है आज"

मुझे उसकी बात एक पल के लिए समझ नही आई और जब तक समझ आई तब तक देर हो चुकी थी. वो फिर से मेरे सामने ही कपड़े बदलने वाली थी और मुझे डर था के अगर वो फिर उसी तरह मेरे सामने आई तो मेरी नज़र फिर उसकी चूचियो पर जाएगी. मैने उसको रोकना चाहा ही था पर तब वो अपनी शर्ट के सारे बटन खोल चुकी थी और फिर मेरे देखते देखते उसने एक झटके में अपनी शर्ट उतार दी.

क्रमशः........................
Reply
06-29-2017, 11:14 AM,
#10
RE: Bhoot bangla-भूत बंगला
भूत बंगला पार्ट--5

गतान्क से आगे.....................

मुझे यकीन नही हो रहा था के वो मेरे सामने ही कपड़े बदल रही है. उसने अपना चेहरा दूसरी तरफ किया हुआ हुआ कमर मेरी तरफ थी. सावली कमर पर वाइट ब्रा के स्ट्रॅप्स देख कर जैसे मेरे मुँह में पानी भर आया. वो उसी हालत में खड़ी अपना बॅग खोलकर कपड़े निकालने लगी. एक कपड़ा उसने खींच कर बाहर निकाला और देखा तो वो स्कर्ट थी. उसने एक पल के लिए दोबारा बॅग में हाथ डालने की सोची पर फिर एक कदम पिछे को हुई और अपनी पेंट खोलने लगी.

मैं आँखें फाडे उसको देख रहा था. मेरा मन एक तरफ तो मुझे घूम कर दूसरी और देखने को कह रहा था और दूसरी तरफ मेरा दिल ये भी चाह रहा था के मैं उसको देखता रहू. ये मेरी ज़िंदगी में पहली बार था के कोई ऐसी लड़की जिससे मेरा इस तरह का कोई रिश्ता नही था बेझिझक मेरे सामने कपड़े बदल रही थी. अगले ही पल उसने अपनी पेंट खोली और और नीचे को झुक कर उतार दी.

अब वो मेरे सामने सिर्फ़ एक वाइट कलर की ब्रा और ब्लू कलर की पॅंटी पहने मेरी तरफ पीठ किए खड़ी थी. उसकी पॅंटी ने उसकी गांद को पूरी तरह ढक रखा था पर फिर भी उस पतले कपड़े में हिलते हुए उसकी गांद के कुवर्व्स सॉफ दिखाई दे रहे थे. मेरी नज़र कभी उसकी कमर पर जाती तो कभी उसकी गांद पर. किसी गूंगे की तरह खड़ा मैं बस उसको चुप चाप देख रहा था. मैं सोच रहा था के वो यूँ ही मेरी तरफ पीठ किए स्कर्ट पहनेगी पर मेरी उम्मीद के बिल्कुल उल्टा हुआ. वो स्कर्ट हाथ में पकड़े मेरी तरफ घूम गयी.

आज पहली बार उसको आधी नंगी हालत में देख कर मुझे एहसास हुआ के उसको बनाने वाले ने भले शकल सूरत कोई ख़ास उसको नही दी थी पर वो कमी उसका जिस्म बनाने में पूरी कर दी थी. उसका जिस्म हर तरफ से कसा हुआ और कहीं ज़रा भी ढीलापन नही थी. मैने एक अपने सामने सिर्फ़ ब्रा और पॅंटी में खड़ी प्रिया को उपेर से नीचे तक देखा. वो फ़ौरन समझ गयी के मैं क्या देख रहा हूँ और हस पड़ी.

"ओह प्लीज़" वो बोली "अब तुम फिर मेरे ब्रेस्ट्स को घूर्ना मत शुरू कर देना"

मेरी शकल ऐसी हो गयी जैसे किसी चोर की चोरी पकड़ी गयी हो.

"नही ऐसा कुच्छ नही है" मैने झेन्प्ते हुए कहा

उसने फुल लेंग्थ स्कर्ट को एक बार झटका और फिर पहेन्ने के लिए सामने की और झुकी. उसकी दोनो छातिया जो अब तक मैं ब्रा के उपेर से देख रहा था उसके झुकने की वजह से आधी मेरे सामने आ गयी. भले ये एक पल के लिए ही था पर मैने अंदाज़ा लगा लिया के उसकी चूचिया बहुत बड़ी हैं और कहीं अगर उसके जिस्म पर ढीला पन है तो वो वहाँ है. वो शायद इतनी बड़ी होने की वजह से अपने वज़न से थोड़ा ढालकी हुई थी. स्कर्ट टाँगो के उपेर खींचती हुई वो उठ खड़ी हुई और नीचे से अपने बदन को ढक लिया. उसके बाद उसने बॅग से टॉप निकाला और उसको पहेन्ने के लिए हाथ उपेर उठाए.

"आह" उसके मुँह से एक आह निकली

"क्या हुआ?" मैने पुचछा

"ब्रा शाद टाइट आ गयी है. सुबह भी कपड़े बदलते हुए पिछे कमर पर स्ट्रॅप चुभ सा रहा था" उसने टॉप अपने गले से नीचे उतारते हुए कहा

"जाके बदल आना" मैं पहली बार अपने सामने एक लड़की को अपनी सेक्रेटरी के रूप में देख रहा था. आज से पहले तो मैने जैसे कभी उसपर इतना ध्यान दिया ही नही था.

"हां या शायद मुझे आदत नही है इसलिए थोड़ी मुश्किल हो रही है" कहते हुए उसने सामने से अपनी चूचियो को पकड़ा और हल्का सा इधर उधर करते हुए ब्रा के अंदर सेट करने लगी.

मेरा मन किया के मैं उसके हाथ सेआगे बढ़कर खुद उन दोनो छातियो को अपने हाथ में ले लूं. मेरा लंड पूरी तरह तन चुका था और उसको च्छुपाने के लिए मैं टेबल के पिछे से खड़ा भी नही हो रहा था के कहीं वो देख ना ले. कपड़े ठीक करके वो मेरे सामने आ खड़ी हुई और घूम घूमकर मुझे दिखाने लगी.

"कैसी लग रही हूँ?" उसने इठलाते हुए पुचछा

"पहली बार पूरी लड़की लग रही हो. बस थोडा सा चेंज और बाकी है" मैने जवाब दिया.

"क्या?" उसने पुचछा ही था के सामने रखे फोन की घंटी बजने लगी. मैने फोन उठाया. दूसरी तरफ मिश्रा था.

"वो सोनी की बीवी ने कन्फर्म कर दिया के लाश उसके पति की ही है" फोन के दूसरी तरफ से मिश्रा बोला

"अब?" मैने प्रिया की तरफ देखते हुए कहा

"कल सुबह वो पेपर्स पर साइन करके लाश ले लेगी. मैने उसको अभी कुच्छ दिन और यहीं शहेर में रहने को कहा है. वो मान गयी. पति का क्रियकरम भी यहीं करवा रही है. लाश मुंबई नही ले जा रही" मिश्रा बोला

"और कोई इन्फर्मेशन मिली उससे?" मैने सवाल किया

"नही अभी तो नही. मुझे फिलहाल उससे सवाल करना ठीक नही लगा. काफ़ी परेशान सी लग रही थी. एक दो दिन बाद फिर मिलूँगा उससे" मिश्रा ने कहा

"ह्म्‍म्म्म "मैं हामी भरी

"अच्छा एक बात सुन. मेरा पोलीस में एक दोस्त है जिसने अभी अभी शादी की है. वो पार्टी दे रहा है. शाम को तू आजा" मिश्रा ने कहा

वैसे तो मैं जाने को तैय्यार नही था क्यूंकी मैं उस पोलिसेवाले को जानता नही था पर मिश्रा के ज़ोर डालने पर मान गया. शाम को 7 बजे मिलने का कहकर मैने फोन नीचे रख दिया.

"क्या प्लान है?" प्रिया ने मुझे पुचछा तो मैने उसको शादी की पार्टी के बारे में बताया.

"ओके. एंजाय करना" उसने मुझसे कहा और वापिस अपनी टेबल पर जाके बैठ गयी.

अचानक मेरे दिमाग़ में एक ख्याल आया

"तुम साथ क्यूँ नही चलती. रात को मैं तुम्हें घर छ्चोड़ दूँगा" मेरा कहना ही था के वो इतनी जल्दी मान गयी जैसे मेरे पुच्छने का इंतेज़ार ही कर रही थी.

पार्टी मेरी उम्मीद से भी कहीं ज़्यादा बोर निकली. वो उस पोलिसेवाले के छ्होटे से फ्लॅट पर ही थी और कुच्छ फॅमिलीस आई हुई थी और मैं मिश्रा को छ्चोड़कर किसी को नही जानता था जो उस वक़्त पूरी तरह नशे में था इसलिए उसका होना या ना होना बराबर था. मैने कई बार वहाँ से निकलने की कोशिश की पर निकल ना सका. प्रिया भी मेरी तरह बोर हो रही थी और बार बार चलने को कह रही थी. आख़िर में तकरीबन 11 बजे हम दोनो वहाँ से निकल सके.

"क्या बोर पार्टी थी" मैने फ्लॅट से निकलकर नीचे बेसमेंट की ओर बढ़ते हुए कहा जहाँ मेरी कार खड़ी हुई थी

"सही में" प्रिया ने मेरे साथ कदम मिलाते हुए कहा. उसने उस वक़्त भी वही स्कर्ट और टॉप पहना हुआ था.

थोड़ी ही देर बाद हम दोनो बेसमेंट में पहुँचे और मेरी कार की तरफ बढ़े. मैने अपनी कार के पास पहुँचकर देखा तो प्रिया थोड़ा पिछे रुक गयी और एक अंधेरे कोने की तरफ ध्यान से देख रही थी. हम दोनो की नज़रें मिली और मैने के कुच्छ कहने के लिए मुँह खोला ही था के प्रिया ने मुझे हाथ से चुप रहने का इशारा किया और धीरे से अपनी और आने को कहा. मुझे समझ नही आया के वो क्या कह रही है पर मैं शांति से उसकी तरफ बढ़ा.

"क्या हुआ?" उसके पास पहुँच कर मैने कहा

"इधर आओ" उसने मेरा हाथ पकड़ा और मुझे तकरीबन खींचते दबे पावं से उस कोने की तरफ ले गयी जहाँ वो गौर से देख रही थी.

हम लोग धीरे धीरे चलते हुए उस कोने तक पहुँचे. प्रिया ने मुझे वहाँ रुकने का इशारा किया और किसी चोर की तरह चलती हुई आगे बढ़ी. सामने एक छ्होटा सा दरवाज़ा बना हुआ था जो बिल्डिंग की सीढ़ियों की और खुलता था. दरवाज़े की हालत देखकर ही लग रहा था के उन बिल्डिंग मे आने जाने के लिए सीढ़ियों का इस्तेमाल कम ही होता था. दरवाज़े पर ज़ंग लगा हुआ था और उसी वजह से उसको पूरी तरह बंद नही किया जा सकता था. देखकर लग रहा था के किसी ने दरवाज़ा बंद तो किया पर फिर भी वो हल्का सा खुला रह गया. प्रिया उस दरवाज़े के पास पहुँची और धीरे से उस खुले हुए हिस्से से अंदर देखने लगी. फिर वो पलटी और मुस्कुराते हुए मुझे बहुत धीरे से अपने पास आने को कहा.

मैं दरवाज़े के पास पहुँचा तो प्रिया ने साइड हटकर मुझे अंदर झाँकने को कहा. अंदर देखते ही जैसे मेरे होश से उड़ गये. अंदर मुश्किल से 17-18 साल का एक लड़का और उतनी ही उमर की एक लड़की खड़ी थी. उन दोनो को देखने से ही लग रहा था के वो दोनो अभी भी स्कूल में ही हैं. लड़की दीवार के साथ लगी खड़ी थी और लड़का उसके सामने खड़ा उसको चूम रहा था. मैने एक पल के लिए उन्हें देखा और नज़र हटाकर वापिस प्रिया की और देखा जो अब भी मुस्कुरा रही थी. मैने उसको वहाँ से चलने का इशारा किया पर उसने इनकार में सर हिलाया और फिर से मुझे हटाके अंदर झाँकने लगी. थोड़ी देर देखकर वो फिर से हटी और मुझे देखने को कहा. मैने अंदर नज़र डाली तो फिर नज़र हटाना मुश्किल हो गया.

उस लड़के ने लड़की की कमीज़ उपेर कर दी थी और उसकी छ्होटी छ्होटी चूचियो को मसल रहा था. लड़की की आँखें बंद थी और ज़ाहिर था के उसको भी बहुत मज़ा आ रहा था. मैं देख ही रहा था के पिछे से मुझे अपने कंधो पर प्रिया के हाथ महसूस हुए जो मुझे नीचे को दबा रहे थे. मैं समझ गया के वो मुझे बैठ जाने को कह रही है ताकि खुद भी मेरे सर के उपेर से अंदर देख सके. मैने नीचे को बैठ गया और अंदर देखने लगा. प्रिया पिछे से मेरे उपेर झुकी और खुद भी दरवाज़े से देखने लगी.

अब वो लड़का नीचे झुक कर उस लड़की की एक चूची को चूस रहा था और दूसरी को हाथ से मसल रहा था. लड़की का एक हाथ उसके सर पर था और वो खुद ज़ोर डालकर उस लड़के का मुँह अपनी चूची पर दबा रही थी और दूसरे हाथ से पेंट के उपेर से उसका लंड सहला रही थी. वो लड़का कभी उसकी एक चूची चूस्टा तो कभी दूसरी. हम दोनो चुप चाप खड़े सब देख रहे था और मैं अंदाज़ा लगाने की कोशिश कर रहा था के वो लड़का लड़की किस हद तक जाने वाले हैं. प्रिया मेरे उपेर को झुकी हुई और. उसकी चिन मेरे सर पर थी और दोनो हाथ मेरे कंधो पर.

थोड़ी देर यूँ ही चूचिया चूसने के बाद वो लड़का हटा और लड़की के होंठों को एक बार चूमकर उसे दीवार से हटाया. लड़की ने आँखें खोलकर उस लड़के की तरफ देखा जो तब तक खुद भी दीवार के साथ सॅट कर खड़ा हो चुका था. लड़की धीरे से मुस्कुराइ और उसके सामने आकर अपने घुटनो पर बैठ गयी और उसकी पेंट खोलने लगी. उसने लड़की की पेंट अनज़िप की और हुक खोलकर अंडरवेर के साथी ही पेंट नीचे घुटनो तक खींच दी. लड़का का खड़ा हुआ लंड जो की उतना बड़ा नही था ठीक उस लड़की की चेहरे के सामने आ गया. उसने एक बार नज़र उठाकर लड़के को देखा और मुस्कुरकर अपने मुँह खोलते हुआ पूरा लंड अपने मुँह में ले गयी.

लंड उस लड़की के मुँह में जाते ही मुझे अपने सर के उपेर एक सिसकी सी सुनाई दी तो मेरा ध्यान प्रिया पर गया. वो बड़ी गौर से उन दोनो को देख रही थी और शायद बेध्यानी में पूरी तरह मुझपर झुक चुकी थी. उसकी दोनो चूचिया मेरे कंधो पर दब रही थी और जिस तरह से वो हिल रही थी उससे मुझे अंदाज़ा हो गया के प्रिया काफ़ी तेज़ी के साथ साँस ले रही है. ज़ाहिर था के वो गरम हो चुकी थी और ये खेल देखने में उसको बड़ा मज़ा आ रहा था. मेरी नज़र उस लड़के लड़की पर और ध्यान अपने कंधो पर दब रही प्रिया की चूचियो पर था.

थोड़ी देर लंड चुसवाने के बाद उस लड़के ने लड़की को दोबारा खड़ा किया और फिर दीवार के साथ सटा दिया पर इस बार उस लड़की का चेहरा दीवार की तरफ और गांद लड़के की तरफ थी. वो लड़का उस लड़की के पिछे खड़े हुए अपने हाथ आगे को ले गया और उसकी सलवार का नाडा खोल दिया. खुलते ही सलवार सरकते हुए लड़की के पैरों में जा गिरी और बल्ब की रोशनी में उस लड़की की दूध जैसी सफेद टांगे चमकने लगी. पीछे खड़े लड़के ने लड़की की कमीज़ उपेर उठाकर उसके गले के पास फसा दी ताकि वो उपेर ही रहे और लड़की के पिछे बैठकर उसकी पॅंटी को पकड़कर नीचे खींचता चला गया.

मुझे अपने उपेर एक और सिसकी सी सुनाई दी तो ध्यान फिर प्रिया पर गया. वो अभी भी वैसे ही झुकी चुप चाप तमाशा देख रही थी. जो बदला था वो था मेरे कंधी पर उसकी चूचियो का दबाव जो पहला बहुत हल्का था पर अब इतना बढ़ चुका था के मुझे लगा के प्रिया या तो अंजाने में या जान भूझकर अपनी चूचिया मेरे कंधो पर रगड़ रही है. उधेर वो लड़का लड़की की पॅंटी को नीचे खींच कर पिछे से उसकी टाँगो के बीचे मुँह घुसाकर उस लड़की की चूत चाटने लगा. वो लड़की अब धीरे धीरे आहें भर रही थी और खुद भी अपनी गांद हिलाकर लड़के के मुँह पर अपनी चूत रगड़ रही थी. मैं उन दोनो को देखकर हैरत में पड़ गया. इतनी सी उमर में सेक्स का इतना ग्यान. वो किसी पोर्नस्तर्स की तरह सब कुच्छ एक दम सही तरीके से एक दूसरे को मज़ा देते हुए कर रहे थे. लड़की जब लंड चूस रही थी तो ऐसी थी के कोई पोर्नस्तर भी उसको देखकर शर्मा जाए और लड़का भी बिल्कुल उसी तरह उसकी चूत चाट रहा था.

प्रिया ने मेरा कंधा हिलाया और मुझे हटने को कहा. शायद यूँ मेरे पीछे से झुक कर देखने की वजह से वो थक गयी थी इसलिए मुझे हटाकर पिछे आने को कह रही थी. मैं हटा और उसके पिछे आकर खड़ा हो गया पर मेरी तरह वो नीचे नही बैठी बल्कि खड़ी खड़ी ही झुक कर उन दोनो को देखने लगी. मैं भी उसके पिछे खड़ा होकर अंदर ध्यान देने लगा.

वो लड़का अब भी लड़की की चूत चाट रहा था. उसने पिछे से दोनो हाथों से लड़की की गांद पकड़ कर खोल रखी थी और धीरे धीरे अपनी ज़ुबान उसकी चूत पर चला रहा था. एक हाथ की अंगुली से वो लड़की की गांद के छेद को टटोल रहा था. थोड़ी देर यूँ ही चलता रहा और फिर उसके बाद लड़का खड़ा होकर लड़की के पिछे पोज़िशन लेने लगा. लड़की ने खुद अपना एक हाथ टाँगो के बीचे से निकालकर लड़के का लंड पकड़ा और अपनी चूत में सही जगह पर रखा. लड़के ने उसकी कमर को पकड़ा और ज़ोर लगाया. लड़की के मुँह से अचानक निकली आह सुनकर मैं समझ गया के लंड अंदर जा चुका है जिसके बाद लड़की ने हाथ लंड से हटाकर फिर से दीवार पकड़ ली और आधी झुक गयी. अपनी गांद उसके उपेर को उठाकर और पिछे निकाल दी ताकि लड़के का लंड आसानी से अंदर बाहर हो सके. लड़का भी पिछे से स्पीड बढ़ा चुका था और तेज़ी के साथ लंड को चूत के अंदर बाहर कर रहा था. उसकी एक अंगुली अब भी उस लड़की की गांद पर घूम रही थी जिसे देख कर मेरे मंन में ख्याल आया के ये शायद उसकी गांद भी मरेगा.

गांद का ख्याल आते हुए मेरा ध्यान अपने सामने झुकी प्रिया की गांद पर गया और तब मुझे एहसास हुआ के पिछे से देखने के कारण मैं प्रिया के कितना करीब आ चुका था. मेरा लंड ठीक उसकी गांद के बीचे दबा हुआ था. वो भी ठीक अंदर खड़ी लड़की की तरह सामने दरवाज़े को पकड़े आधी झुकी खड़ी थी और मैं उसके पिछे था. मेरा लंड पूरी तरह तना हुआ था और जिस तरह प्रिया की गांद पर दबा हुआ था उससे ऐसा ही ही नही सकता था के प्रिया को ये महसोस ना हुआ हो. मैं अजीब हालत में पड़ गया. समझ नही आया के लंड हटा लूँ या फिर ऐसे ही रगड़ता रहूं. प्रिया की भारी गांद उस वक़्त मेरे लंड को जो मज़ा दे रही थी उसके चलते मेरे लिए मुश्किल था के मैं वहाँ से हट पाता. मैं उसकी हालत में खड़ा रहा और फिर अंदर देखने लगा.

लड़का अब भी उसी तेज़ी से पिछे से लड़की की चूत पर धक्के मार रहा था.उसके दोनो हाथ लड़की के पूरे जिस्म पर घूम रहे थे और वो लड़की भी उसका भरपूर साथ दे रही थी. जब वो आगे को धक्का मारता तो वो भी अपनी गांद पिछे को करती. उस लड़की के ऐसा करने से मुझे ऐसा लगा या सही में ऐसा हो रहा था ये पता नही पर मुझे महसूस हुआ के प्रिया भी अपनी गांद मेरे लंड पर ऐसे ही धीरे धीरे दबा रही थी. मैं भी काफ़ी जोश में आ चुका था और मैं अपना एक हाथ सीधा उसी गांद पर रख दिया और लंड धीरे से थोडा और उसकी गांद पर दबाया. उसके मुँह से एक बहुत हल्की सी आह निकली जिससे मैं समझ गया के उसको पता है के क्या हो रहा है और वो खुद भी गरमा चुकी है. मैं हाथ यूँ ही थोड़ी देर उसकी गांद पर फिराया और धीरे से आगे ले जाते हुए उसकी एक चूची पकड़ ली.

मेरा ऐसा करना ही था के प्रिया फ़ौरन सीधी उठ खड़ी हुई और मेरी तरफ पलटी. उसकी आँखों में वासना मुझे सॉफ दिखाई दे रही थी जो वो बुरी तरह से कंट्रोल करने की कोशिश कर रही थी.

"चलें?" उसने कहा और बिना मेरे जवाब का इंतेज़ार किए कार की तरफ बढ़ चली.

मैं मंन मसोस कर रह गया. एक आखरी नज़र मैने लड़का लड़की पर डाली. लड़की अब नीचे ज़मीन पर घोड़ी बनी हुई थी और लड़का अब भी पिछे से उसको पेल रहा था. मैने एक लंबी आह भारी और प्रिया के पिछे अपनी कार की ओर बढ़ चला.

उस रात नींद तो जैसे आँखों से कोसो दूर थी. मैं काफ़ी देर तक बिस्तर पे यहाँ से वहाँ डोलाता रहा. करवट बदल बदल कर थक गया पर नींद तो जैसे नाराज़ सी हो गयी थी. उस लड़के और लड़के के बीच सेक्स का खेल और उपेर से प्रिया की गांद पर डाबता मेरा लंड दिमाग़ से जैसे निकल ही नही रहे थे. एक पल के लिए मैने सोचा था के जिस तरह प्रिया की गांद पर मेरा लंड दबा था और उसने कुच्छ नही कहा था तो शायद बात इससे आगे बढ़ सके पर कुच्छ नही हुआ. वो खामोशी से कार में जाकर बैठ गयी और उसी खामोशी से पूरे रास्ते बैठी रही . घर जाकर भी वो कार से निकली और अंदर चली गयी, बिना कुच्छ कहे. मैं बुरी तरह से गरम हो चुका था और किस्मत खराब के जिस वक़्त घर पहुँचा तो रुक्मणी के साथ कोई मौका हाथ नही लगा. और दिमाग़ में अब भी सेक्स ही घूम रहा था. मैने हर कोशिश की सेक्स से ध्यान हटाने की पर कामयाब नही हुआ. परेशान होकर मैने विपिन सोनी मर्डर के बारे में सोचना शुरू कर दिया पर सोचने के लिए ज़्यादा कुच्छ था नही सिवाय इसके के वो एक अजीब सा आदमी था और बहुत ही अजीब तरीके से मारा था. अजीब बातें करता था और अजीब सा लाइफस्टाइल था. पर हाँ उसकी बीवी सुंदर थी. इस बार भी नाकामयाभी ही हाथ लगी. सेक्स से ध्यान हटाने की सोची और घूम फिरकर फिर वहीं पहुँच गया. अब विपिन सोनी की बीवी आँखो के सामने घूम रही थी.

ऐसे ही पड़े पड़े आधी रात का वक़्त हो गया. मैने घड़ी पर नज़र डाली तो रात का 1 बज रहा था. जब मुझे महसूस होने लगा के आज पूरी रात यूँ ही गुज़रने वाली है तो मैने कमरे में रखे टीवी का रिमोट उठाया. टीवी ऑन करने ही वाला था के एक अजीब सी आवाज़ पर मेरा ध्यान गया. ऐसा लग रहा था जैसे कोई बहुत ही हल्की सी आवाज़ में गा रहा है. मैने ध्यान से सुनना शुरू किया. आवाज़ किसी औरत की थी पर वो क्या गा रही थी ये समझ नही आ रहा था. मैने एक नज़र टीवी पर डाली पर वो बंद था. म्यूज़िक सिस्टम को देखा तो वो भी बंद. अपने कंप्यूटर की तरफ नज़र डाली तो वो भी ऑफ था फिर भी लग रहा था जैसे कहीं दूर किसी ने म्यूज़िक सिस्टम ओन किया हुआ हो या वॉल्यूम बहुत धीरे कर रखा हो पर फरक सिर्फ़ ये था के म्यूज़िक नही था. सिर्फ़ एक औरत के हल्के से गाने की आवाज़. मेरे दिमाग़ में रुक्मणी का नाम आया पर मैं जानता था के वो बहुत बेसुरा गाती थी जबकि ये आवाज़ जिस किसी की भी थी वो बहुत सुर में गा रही थी. घर में बाकी देवयानी ही थी. मैं समझ गया के आवाज़ देवयानी की ही है. अंधेरे में यूँ ही पड़े पड़े मैं उसकी आवाज़ पर ध्यान देने लगा. जितनी अच्छी तरह से वो गा रही थी उस हिसाब से तो उसको इंडियन आइडल में ट्राइ करना चाहिए था. जो बात मुझे अजीब लगी वो था गाना. वो कोई फिल्मी गाना नही था. लग रहा था जैसे कोई माँ अपने किसी बच्चे को लोरी सुना रही हो. लोरी के बोल मुझे बिल्कुल भी समझ नही आ रहे थे पर उस आवाज़ ने मुझपर एक अजीब सा असर किया. कई घंटो से खुली हुई मेरी आँखें भारी होने लगी और मुझे पता ही नही चले के वो आवाज़ सुनते सुनते मैं कब नींद के आगोश में चला गया.

सुबह उठा तो मुझपर एक अजीब सा नशा था. दिल में बेहद सुकून था. लग रहा था जैसे एक बहुत लंबी सुकून भरी नींद से सोकर उठा हूँ. मैं आखरी बार इस तरह कब सोया था मुझे याद भी नही था. जब भी सोकर उठता तो दिल में एक अजीब सी बेचैनी होती. उस दिन क्या क्या करना था और कल क्या क्या बाकी रह गया था ये सारे ख्याल आँख खोलते ही दिमाग़ में शोर मचाना शुरू कर देते थे. पर उस दिन ऐसा कुच्छ ना हुआ. मेरा दिमाग़ और दिल दोनो बेहद हल्के थे. और दीनो की तरह मैं परेशान ना उठा बल्कि आँख खोलते ही चेहरे पर मुस्कान आ गयी. मैं किस बात पर इतना खुश था ये मैं खुद भी नही जानता था.

"तुम गाती भी हो?" ब्रेकफास्ट टेबल पर मैने देवयानी से पुचछा

मेरी बात सुनकर उसने हैरत से मेरी तरफ देखा. फिर एक नज़र रुक्मणी पर डाली और दोनो हस्ने लगी.

"मज़ाक उड़ा रहे हो?" रुक्मणी ने मुझसे पुचछा.

"नही तो" मैने इनकार में सर हिलाया "मैं तो सीरियस्ली पुच्छ रहा था"

"ओह तो सीरियस्ली मज़ाक उड़ा रहे हो" देवयानी ने कहा

"तुम्हें कैसे पता के हम दोनो बहुत बेसुरी हैं?" रुक्मणी ने आगे कहा

"बेसुरी?" मैने आँखें सिकोडते हुए कहा

"हां और नही तो क्या" देवयानी बोली "हर वो इंसान जो हमको बचपन से जानता है इसी बात को लेकर हमारा मज़ाक उड़ाता है. अगर हम दोनो में से कोई भी गाने लगे तो घर के सारे शीशे टूट जाएँ"

मैं उन दोनो की बात सुनकर चौंक पड़ा. कल रात तो वो बहुत अच्छा गा रही थी. इतना अच्छा के 5 मिनट के अंदर अंदर मैं सो गया था

"तो कल रात तुम नही गा रही ही" मैने देवयानी और रुक्मणी दोनो से पुचछा

"नही तो" रुकमनि बोली और उन दोनो ने इनकार में सर हिलाया "हम दोनो भला रात को बैठके गाने क्यूँ गाएँगे?"

थोड़ी देर तक मैं उस रात के गाने को बारे में सोचता रहा पर फिर वो बात दिमाग़ से निकाल दी. रात का 1 बज रहा था और मैं सोने की कोशिश कर रहा था. बहुत मुमकिन था के किसी पड़ोसी ने गाना चला रखा था जिसकी हल्की सी आवाज़ मुझ तक पहुँच रही थी. मैं तैय्यार होकर घर से ऑफीस के लिए निकला. आधे रास्ते में ही था के मेरा फोन बजने लगा. कॉल मिश्रा की थी.

"कोर्ट में हियरिंग तो नही है तेरी आज?" मिश्रा ने पुचछा

"2 बजे के करीब एक केस की हियरिंग है. क्यूँ?" मैने पुचछा

"गुड. तो एक काम कर फिलहाल पोलीस स्टेशन आ जा" उसने मुझसे कहा. मैं खुद ही समझ गया के बात विपिन सोनी मर्डर केस को लेकर ही होगी

"क्या हुआ?" मैने पुचछा

"अरे यार यहाँ कुच्छ क़ानूनी बातें होने वाली हैं और तू जानता ही हैं के ये सब मेरे पल्ले नही पड़ता. तो मैने सोचा के मेरे पास जब एक घर का वकील है तो उसी को क्यूँ ना बुला लूँ"

वो बिल्कुल सही कह रहा था. लॉ से रिलेटेड बातें मिश्रा की समझ से बाहर थी जबकि वो एक पोलिसेवला था. उसके लिए तो उसका काम सिर्फ़ इतना था के जो भी ग़लत दिखे पकड़के उसकी हड्डियाँ तोड़ दो ताकि अगली बार कुच्छ ग़लत करने से पहले हज़ार बार सोचे.

"ठीक हैं मैं आ जाऊँगा. कितने बजे आना है?" मैने पुचछा

"अभी" मिश्रा ने जवाब दिया

पोलीस स्टेशन पहुँचा तो भूमिका सोनी और उसका बाप ऑलरेडी वहाँ बैठे हुए थे और मिश्रा उनसे कुच्छ बात कर रहा था. जाने क्यूँ दिल ही दिल में सोनी मर्डर केस में मुझे कुच्छ ज़्यादा ही इंटेरेस्ट था जबकि इससे मेरा कुच्छ लेना देना नही था. पर फिर भी मैं क्लोस्ली इस केस को फॉलो करना चाहता था इसलिए मुझे अपने उस वक़्त पोलीस स्टेशन में होने पर बेहद खुशी हुई.

"तो आपको कोई अंदाज़ा नही के आपसे अलग होने और यहाँ आने के बीच आपके पति कहाँ थे" मिश्रा भूमिका से पूछ रहा था. जवाब में भूमिका और उसके बाप दोनो ने इनकार में सर हिलाया

मेरे आने पर थोड़ी देर के लिए बात रुक गयी. मैं उन दोनो से मिला और एक चेर लेकर वहीं पर बैठ गया. हैरत थी के मेरे वहाँ होने पर ना तो भूमिका ने कोई ऐतराज़ जताया और ना ही उसके बाप ने.

"मेरी और मिस्टर सोनी की कभी बनी नही" भूमिका ने अपनी बात जारी की "काफ़ी झगड़े होते थे हम दोनो के बीच और ऐसे ही एक झगड़े के बाद वो घर छ्चोड़कर चले गये थे. उसके बाद मुझे उनके बारे में कुच्छ पता नही चला तब तक जब तक की मुझे आपकी अड्वर्टाइज़्मेंट के बारे में पता नही चला"

"आपने ढूँढने की कोशिश की?" मिश्रा ने पुचछा

"हाँ पोलीस में रिपोर्ट भी लिखवाई थी. न्यूसपेपर में आड़ भी दिया था" इस बार भूमिका का बाप बोला

"झगड़े किसी ख़ास बात पर" मिश्रा ने सवाल किया

"ऐसे ही मियाँ बीवी के झगड़े पर बहुत ज़्यादा होते थे. छ्होटी छ्होटी बात पर. मैने जितना उनके करीब जाने की कोशिश करती वो उतना ही दूर चले जाते. बात इतनी बिगड़ चुकी थी के अगर वो घर से ना जाते तो शायद मैं चली जाती " भूमिका ने जवाब दिया

"ह्म्‍म्म्म " मिश्रा सोचते हुए बोला "तो वो कोई 8 महीने पहले आपको छ्चोड़के चले गये थे और अपना कोई अड्रेस नही दिया था"

भूमिका ने फिर इनकार में सर हिलाया

"बॉडी हमें कब तक मिल सकती है?" भूमिका के बाप ने पुचछा

"शायद आज ही. पोस्ट मॉर्टेम हो चुका है. मौत उनके दिल में किसी तेज़ धार वाली चीज़ से हमले की वजह से हुई थी. हमारी तलाश अब भी जारी है और शायद इस वजह से कुच्छ दिन आपको और यहीं रुकना पड़े." मिश्रा ने पेन नीचे रखता हुए कहा

"पर मुझे प्रॉपर्टी के सिलसिले में वापिस मुंबई जाना पड़ सकता है" भूमिका बोली "मिस्टर सोनी की विल पढ़ी जानी है"

उसकी बात सुनकर मिश्रा ऐसे मुस्कुराया के मुझे लगा के भूमिका अभी उसको थप्पड़ मार देगी

"हाँ दौलत तो काफ़ी मिली होगी आपको. जिस तरह से आपने बताया है उससे तो लगता है के मिस्टर सोनी काफ़ी अमीर आदमी थे. अब तो आप एक अमीर औरत हो गयी" उसने कहा

मुझे यकीन नही हुआ के वो ये कह रहा है. ये उसके मतलब की बात नही थी और मुझे समझ नही आया के वो ऐसा क्यूँ कह रहा था पर उससे ज़्यादा हैरत तब हुई जब भूमिका भी जवाब में मुक्सुरा उठी.

"ये तो विल पर डिपेंड करता है" वो बोली "यहाँ से देअथ सर्टिफिकेट मिलने पर जब विल खुलेगी तब पता चलेगा के कितना मुझे मिला और कितना मिस्टर सोनी की बेटी को"

ये एक नयी बात थी. मैं और मिश्रा दोनो ही चौंक पड़े

"मिस्टर सोनी की बेटी?" मैं पूरी बात के दौरान पहली बार बोला "आपसे?"

"नही" वो मेरी तरफ देखकर बोली "मुझसे होती तो मैं हमारी बेटी कहती, सिर्फ़ मिस्टर सोनी की बेटी नही"

"तो आप उनकी दूसरी बीवी थी" मैने कहा

"जी हां" भूमिका ने एक लंबी साँस छ्चोड़ते हुए कहा "पहली बीवी से उनकी एक 24 साल की बेटी है, रश्मि"

"और उनकी वो बेटी कहाँ है?" मैने भूमिका से पुचछा

"अब ये तो भगवान ही जाने" उसने जवाब दिया "कोई साल भर पहले ऑस्ट्रेलिया गयी थी और अब वहाँ है के नही मैं नही जानती"

"क्या उसको इस बात की खबर है के उसके पिता अब नही रहे?" मिश्रा बोला

"पता नही" भूमिका ने कंधे हिलाते हुए कहा "मेरे पास ना तो उसका कोई अड्रेस है और ना ही फोन नंबर. जो पहले था अब वो फोन काम नही कर रहा और मुझसे उसने कभी बात नही की"

"और अपने पिता से?" मैने पुचछा

"पता नही" भूमिका ने जवाब दिया "शायद फोन करती हो"

कमरे में थोड़ी देर के लिए खामोशी च्छा गयी

"आपको क्या लगता है किसने मारा होगा आपके पति को?" मैने थोड़ी देर बाद सवाल किया

"नही जानती" भूमिका ने छ्होटा सा जवाब दिया

"उनके कोई दुश्मन?"

"नही जानती" फिर वही छ्होटा सा सवाल

"मुझे तो उन्होने कहा था के उनके दुश्मन थे जो उन्हें नुकसान पहुँचाना चाहते थे" मैने कहा

"मुझसे इस बारे में कभी कोई बात नही की उन्होने" भूमिका ने जवाब दिया

"देखा जाए तो पैसे के मामले में बड़ा टेढ़ा था वो" इस बार भूमिका के बाप ने जवाब दिया "इसके चक्कर में कई लोग उसको पसंद नही करते थे, जिनके साथ बिज़्नेस था वो. पर ऐसी कोई बात नही थी के कोई उसका खून ही कर दे. उसने तो कभी किसी को कोई नुकसान नही पहुँचाया"

"फिर भी उनका खून तो हुआ ही ना" मैने कहा तो कमरे में फिर पल के लिए सन्नाटा फेल गया

"सही कह रहे हैं आप" इस बार सनना भूमिका के बाप ने ही तोड़ा "और ये किसने किया ये सबसे ज़्यादा अगर कोई जानना चाहता है तो वो मैं और मेरी बेटी ही हैं"

"किसने किया ये तो फिलहाल कोई नही जानता पर कैसे किया ये मैं आपको ज़रूर बता सकता हूँ. उनपर किसी तेज़ धार वाली चीज़ से हमला किया गया था जो सीधा उनके दिल में उतर गयी. उनकी मौत भी फ़ौरन ही हो गयी." मैने कहा

"अगर बिल्कुल सही बात कहूँ तो हमला एक खंजर से किया गया था. पोस्ट मॉर्टेम की रिपोर्ट के हिसाब से वो ऐसा खंजर था जो पुराने ज़माने में राजा महाराजा रखा करते थे. वो तलवार जैसे होता है ना, आगे से मुड़ा हुआ" इस बार मिश्रा ने बात की

"खंजर?" भूमिका ने कहा और वो बेहोश होकर कुर्सी से गिर पड़ी.

क्रमशः..........................................
Reply


Possibly Related Threads…
Thread Author Replies Views Last Post
  Raj sharma stories चूतो का मेला sexstories 201 3,453,688 02-09-2024, 12:46 PM
Last Post: lovelylover
  Mera Nikah Meri Kajin Ke Saath desiaks 61 539,039 12-09-2023, 01:46 PM
Last Post: aamirhydkhan
Thumbs Up Desi Porn Stories नेहा और उसका शैतान दिमाग desiaks 94 1,213,051 11-29-2023, 07:42 AM
Last Post: Ranu
Star Antarvasna xi - झूठी शादी और सच्ची हवस desiaks 54 916,998 11-13-2023, 03:20 PM
Last Post: Harish68
Thumbs Up Hindi Antarvasna - एक कायर भाई desiaks 134 1,625,638 11-12-2023, 02:58 PM
Last Post: Harish68
Star Maa Sex Kahani मॉम की परीक्षा में पास desiaks 133 2,058,458 10-16-2023, 02:05 AM
Last Post: Gandkadeewana
Thumbs Up Maa Sex Story आग्याकारी माँ desiaks 156 2,912,987 10-15-2023, 05:39 PM
Last Post: Gandkadeewana
Star Hindi Porn Stories हाय रे ज़ालिम sexstories 932 13,931,252 10-14-2023, 04:20 PM
Last Post: Gandkadeewana
Lightbulb Vasna Sex Kahani घरेलू चुते और मोटे लंड desiaks 112 3,983,148 10-14-2023, 04:03 PM
Last Post: Gandkadeewana
  पड़ोस वाले अंकल ने मेरे सामने मेरी कुवारी desiaks 7 280,413 10-14-2023, 03:59 PM
Last Post: Gandkadeewana



Users browsing this thread: 1 Guest(s)