Behen ki Chudai बहन का दांव
09-25-2018, 01:23 PM,
#1
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रश्मी को जैसे ही उसके भाई का फोन आया, वो उसी वक़्त अपने स्कूल से निकल पड़ी..उसकी माँ पिछले 20 दिनों से हॉस्पिटल में है..उन्हें हार्ट अटॅक आया था..पर अब धीरे-2 सुधार हो रहा है..पर फिर भी डॉक्टर्स कह रहे हैं की 10 दिन और लगेंगे..
रश्मी एक प्राइवेट स्कूल मे टीचर थी और हॉस्पिटल मे उसका छोटा भाई मोनू रहता था..वो एक आवारा किस्म का लड़का था और अपनी डील -डोल की वजह से गुंडागर्दी भी सीख गया था वो..इसलिए उसकी दोस्ती भी ऐसे लड़को के साथ ही थी..पर जब से उनकी माँ हॉस्पिटल मे थी वो आवारगार्दी कर ही नही पाता था..इसलिए 5:30 होते ही वो अपनी बहन को फोन खड़का देता और उसके आते ही अपने दोस्तो के साथ निकल जाता..ज़िम्मेदारी का ज़रा भी एहसास नही था उसमे..
दिल्ली में रोहिणी की एक डी डी ऐ कॉलोनी मे घर था उनका..बस यही 2 मंज़िला घर था जो उनके पिताजी छोड़ गये थे...उपर वाले हिस्से में दो बेडरूम और नीचे किचन और ड्रॉयिंग रूम.
रश्मी की उम्र तो शादी के लायक हो चुकी थी पर घर की पूरी ज़िम्मेदारी उसके उपर थी...इसलिए वो अभी शादी के बारे मे दूर -2 तक सोच भी नही सकती थी..
वो थी तो काफ़ी सुंदर पर बिना मेकअप के और सादे कपड़ो मे रहने की वजह से कोई उसपर ज़्यादा ध्यान नही देता था..लड़को को वो खुद ही अपने पास फटकने नही देती थी..क्योंकि प्यार-व्यार के चक्कर मे पड़कर वो अपनी ज़िम्मेदारियो से दूर नही होना चाहती थी.
कुल मिलाकर काफ़ी समझदार और घरेलू किस्म की सुंदर सी लड़की थी रश्मी....
और उसका भाई मोनू गुंडा टाइप का..हल्की दादी मूँछ मे रहता था हमेशा..बिखरे हुए बाल..सिगरेट की लत्त भी थी उसको..पर अपने मोहल्ले मे काफ़ी दबदबा था उसका..और वो अपने कसरती बदन को बुरे कामो मे इस्तेमाल करके थोड़ी बहुत कमाई भी कर लेता था...पर वो पैसे वो अपने दोस्तो और शराब मे ही उड़ाता..
घर का खर्चा चलाने की ज़िम्मेदारी सिर्फ़ और सिर्फ़ रश्मी की ही थी.
उनके घर का खर्चा वैसे ही बड़ी तंगी मे चल रहा था.. उपर से माँ की बीमारी ने भी काफ़ी पैसे ख़त्म कर दिए..
और साथ ही साथ दीवाली भी आने वाली थी..सिर्फ़ दस दिन बाद..ऐसी हालत मे रश्मी बस यही सोच रही थी की कैसे चलेगी ये जिंदगी..
रश्मी के हॉस्पिटल पहुँचते ही मोनू फ़ौरन वहाँ से निकल गया...इतनी जल्दी मचाते हुए रश्मी ने उसे पहली बार देखा था..
रात के समय हॉस्पिटल मे किसी के भी रहने की मनाही थी..वैसे भी देखभाल के लिए नर्सेस रहती ही थी..इसलिए रश्मी भी घर आ जाती थी..
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09-25-2018, 01:23 PM,
#2
RE: Behen ki Chudai बहन का दांव
घर पहुंचकर उसने अपना लोवर और एक हल्की सी टी शर्ट पहनी और खाना बनाने मे लग गयी..वो रात के समय अपने अंडरगार्मेंट्स भी उतार देती थी..यही नीयम था उसका रोज का..10 बजे तक मोनू भी आ जाता था और दोनों मिलकर खाना खाते थे...सुबह वो स्कूल निकल जाती और मोनू नहा धोकर हॉस्पिटल के लिए...पिछले दो महीने से यही नीयम चल रहा था..
पर आज 11 बजने को हो रहे थे और मोनू का कहीं पता नही था...रश्मी को भी काफ़ी भूख लगी थी..उसने उसका नंबर कई बार ट्राइ किया पर हर बार वो काट देता...आख़िर मे जाकर जब उसने फोन उठाया तो सिर्फ़ इतना कहकर फोन रख दिया की 'दीदी , दस मिनिट मे आया बस...'
दस मिनिट के बाद जब मोनू आया तो वो काफ़ी खुश लग रहा था...पर रश्मी के गुस्से वाले चेहरे को देखकर वो सहम सा गया और चुपचाप अपने कमरे मे जाकर चेंज करने लगा..और कपड़े बदल कर नीचे आया.
रश्मी : "ये हो क्या रहा है आजकल...ये जानते हुए भी की माँ हॉस्पिटल में है, तुम इतनी रात को मुझे अकेला छोड़कर बाहर रहते हो..आख़िर गये कहाँ थे..और मेरा फोन क्यो काट रहे थे..''
मोनू : "वो...मैं ...जुआ खेलने गया था...''
वैसे तो जुआ खेलना उसका हमेशा का काम था, पर माँ हॉस्पिटल में है, ऐसी हालत मे भी वो जुआ खेलने से बाज नही आ रहा, ये रश्मी से बर्दाश्त नही हुआ..उसके मुँह मे जो भी आया, वो उसे कहती चली गयी..काफ़ी भला-बुरा सुनने के बाद अचानक मोनू ने अपनी जेब से 500 के लगभग 20-30 नोट निकाल कर उसके सामने रख दिए..
और उन्हे देखते ही रश्मी की ज़ुबान पर एकदम से ताला सा लग गया..
मोनू (मुस्कुराते हुए) : "ये जीते है मैने..दीदी, आपको पता है ना दीवाली आने वाली है...और इसी टाइम ऐसी बड़ी-2 गेम्स चलती है...और जब आप फोन पर फोन कर रहे थे,मेरी एक बड़ी सी गेम फंसी हुई थी...इसलिए फोन काट रहा था..और जैसे ही ये पैसे जीता, मैं वहाँ से निकल आया..''
इतने पैसे एकसाथ देखकर रश्मी हैरान थी...वो महीना भागा-दौड़ी करके सिर्फ़ 15000 कमाती थी...और उसके भाई ने लगभग उससे दुगने पैसे कुछ ही घंटो मे लाकर उसके सामने रख दिए थे..
वो जुए को हमेशा से बुरा मानती थी...पर उनके जो हालात थे, उसमे पैसे अगर जुआ खेलकर भी आए, तो उसे उसमे कोई प्राब्लम नज़र नही आ रही थी..
मोनू ने वो सारे पैसे ज़बरदस्ती रश्मी के हाथों मे रख दिए और बोला : "दीदी, मैं उतना भी बुरा नही हू जितना आप मुझे समझती हो...मुझे भी माँ की फ़िक्र है..अब मुझे आप की तरह कोई जॉब तो देगा नही, इसलिए जो मेरी समझ मे आता है, मैं करता हू...और ये पहली बार नही है की मैने जुए में पैसे जीते हैं, पर हाँ , इतने पैसे एक साथ पहले कभी नही जीते..पर पहले मैं उन पैसों को उड़ा देता था..पर आज के बाद ऐसा नही करूँगा..मैं भी आपकी मदद करूँगा..



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09-25-2018, 01:23 PM,
#3
RE: Behen ki Chudai बहन का दांव
अपने भाई की ऐसी समझदारी भरी बाते सुनकर रश्मी एक दम से अपनी सीट से उठी और मोनू के सिर को अपनी छाती से लगाकर सिसकने लगी : "मुझे माफ़ कर देना मेरे भाई...मैने तुझे इतना बुरा-भला कहा..मैं वो माँ की वजह से इतनी परेशान थी की जो मेरे मुँह मे आया, वो कहती चली गयी...''
ये मोनू के लिए पहला मौका था जब उसकी बहन के मुम्मे उसके चेहरे पर दबे पड़े थे...उसने आज तक अपनी बहन के बारे मे कोई ग़लत बात नही सोची थी..पर आज जिस तरह से उसने मोनू के सिर को पकड़कर अपनी छाती से लगाया था..और जब मोनू को ये महसूस हुआ की रश्मी ने पतली सी टी शर्ट के अंदर कुछ भी नही पहना है तो उसे ऐसा एहसास हुआ की उसका चेहरा सीधा उसके नंगे मुम्मो के उपर रखा हुआ है...इतने नर्म और मुलायम थे उसके मुम्मे ...और उसके जिस्म से निकल रही एक कुँवारी सी खुश्बू...वो तो बस अपनी आँखे बंद करके उस सुगंध को सूंघता ही रह गया..
रश्मी बोलती जा रही थी : "पर मोनू, ये पैसा हराम का है...आगे से कोशिश करना की अपनी मेहनत का ही पैसा घर लाया करो..''
उसकी बात से सॉफ जाहिर था की वो इन पैसो को अभी के लिए मना नही कर रही ...करती भी कैसे..उसे पता था की उनसे हॉस्पिटल के बिल्स आसानी से दिए जा सकते हैं..
मोनू ने अपना सिर उपर उठाया और बोला : "नही दीदी, आप ऐसा क्यो सोच रही है...ये दीवाली के दिन है, इन दिनों में जुए से जीते गये पैसे मेहनत किए हुए पैसों से कम थोड़े ही होते हैं...और आप कैसे कह सकती है की इसमे मेहनत नही है, इसमे बहुत दिमाग़ लगता है..और दिमाग़ लगाकर कमाई हुई रकम भी तो मेहनत से कमाए हुए पैसो के बराबर हुई ना..''
रश्मी के पास उसकी बात का कोई जवाब नही था..उसके दोनो हाथों मे मोनू का चेहरा था..जो उसकी दोनो छातियों के बीच से झाँकता हुआ उसकी तरफ देख रहा था..इतने करीब से और इतने प्यार से तो उसने आज तक नही देखा था अपने भाई को...उसने नीचे झुककर उसके माथे को चूम लिया और बोली : "ठीक है...पर मुझसे वादा कर, दीवाली के बाद तू ये जुआ नही खेलेगा..सिर्फ़ इन्ही दिनों के लिए खेल ले बस...और अपनी लिमिट मे रहकर..और बाद मे कोई अच्छा सा काम करके मेरी घर चलाने मे मदद करेगा..''
मोनू : "ठीक है दीदी...अब जल्दी से खाना लगाओ...बड़ी भूख लगी है मुझे..''
और फिर हंसते हुए रश्मी उसके लिए खाना परोसने लगी..
खाना खाते हुए अचानक रश्मी ने कहा : "तुम रम्मी खेलते हो या पत्ते पर पत्ता ..''
मोनू खाना खाते-2 अचानक रुक गया और ज़ोर-2 से हँसने लगा , और बोला : "हा हा हा, दीदी आप भी ना, ये बच्चों वाले खेल तो घर पर खेले जाते हैं..''[url=http://rajsharmastories.com/memberlist.php?mode=viewprofile&u=32926][/url]
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09-25-2018, 01:23 PM,
#4
RE: Behen ki Chudai बहन का दांव
रश्मी ने भी ये बात इसलिए कही थी क्योंकि वो खुद अपने भाई के साथ बचपन मे यही खेल खेलती थी..और कई बार क्या, हमेशा ही मोनू को उसमें हरा देती थी..
मोनू : "हम लोग खेलते हैं, तीन पत्ती ..यानी फ्लेश ''
रश्मी : "ये कैसे होता है....''
मोनू : "उम्म्म.....आप ऐसा करो...खाना खाने के बाद में आपके रूम मे आता हू...वहीं दिखाता हूँ की ये कैसे होता है..''
रश्मी भी खुश हो गयी....वैसे भी खाना खाने के बाद वो रात को 12 बजे तक जागती रहती थी...ऐसे मे अपने भाई के साथ कुछ वक़्त गुजारने की बात सुनकर वो काफ़ी खुश हुई..और उसने खुशी-2 हाँ कर दी.
किचन समेटने के बाद वो अपने कमरे मे गयी, जहाँ पहले से ही मोनू अपने हाथ मे ताश की गड्डी लेकर उसका इंतजार कर रहा था.
आने से पहले रश्मी अपना मुँह अच्छी तरह फेस वॉश से धोकर आई थी...ये काम वो रोज रात को करती थी...अपने चेहरे को चमका कर रखती थी वो हमेशा..इसलिए जब वो मोनू के पास पहुँची तो उसका चेहरा ऐसे चमक रहा था जैसे वो अभी नहा धोकर आई है..
और मुँह धोने की वजह से उसकी टी शर्ट भी आगे से गीली हो गयी थी..और इसलिए उसके उभारों वाली जगह टी शर्ट से चिपक कर पारदर्शी हो गयी थी..पर निप्पल्स वाली जगह से नही, सिर्फ़ उपर-2 से..पर इतना गीलापन भी काफ़ी था मोनू के लंड की नोक पर गीलापन लाने के लिए..आज उसके साथ लगातार दूसरी बार ऐसी घटना हो रही थी ,आज से पहले उसने अपनी बड़ी बहन को ऐसी नज़रों से देखा ही नही था...दोनो अलग-2 और अपने मे मस्त रहते थे..पर आज जिस तरह से उसने मोनू के सिर को अपने सीने से लगाया और अब अपनी गीली चुचियों के दर्शन भी करवा रही है..ऐसे मे इंसान का अपने लंड पर बस चलना काफ़ी मुश्किल हो जाता है.
रश्मी धम्म से आकर उसके सामने पालती मार कर बैठ गयी और बोली : "हांजी ...अब बताओ...क्या होता है ये तीन पत्ती''
मोनू : "जितने भी खेलने वाले होते हैं, उन्हे 3-3 पत्ते बाँट दिए जाते हैं...और जिसके पत्ते बड़े होंगे, वही जीत जाएगा..''
रश्मी : "बस....इतना सा ...ये तो बड़ी आसान सी गेम है...बिल्कुल बच्चों वाली...हा हा ..''
वो तो ऐसे बिहेव कर रही थी जैसे वो एक ही बार मे सीख चुकी है..
मोनू : "ये इतना भी आसान नही है, जितना लग रहा है...चलो,मैं पत्ते बाँटकर दिखाता हूँ ...''
और मोनू ने गड्डी कटवाई और फिर 3-3 पत्ते आपस मे बाँट लिए..रश्मी ने फ़ौरन पत्ते उठा लिए.
मोनू : "अरे....दीदी , ऐसे एकदम से नही उठाते...पहले ब्लाइंड चलनी पड़ती है... और अगर आपके पत्ते अच्छे हुए तो आप चाल चल सकती हो ''
और फिर मोनू उसे ब्लाइंड और चाल के बारे मे बताने लगा..और ब्लाइंड और चाल के बारे मे अच्छी तरह से समझ कर वो बोली : "कोई बात नही...अगली बार से ध्यान रखूँगी..पर इन पत्तो का क्या करू...ये बड़े कहलाएँगे या नही..''
इतना कहकर उसने अपने तीनों पत्ते मोनू के सामने फेंक दिए...वो तीनों इक्के थे..
मोनू : "वाव दीदी...इक्के की ट्रेल...पहली बार मे ही आपके पास इक्के की ट्रेल आई ..बहुत बाड़िया...आपको पता है, इनके आगे कुछ भी नही चलता..ये सबसे बड़े होते हैं...सामने वाले के पास चाहे कुछ भी हो, आपसे जीत नही सकता...''
रश्मी (आँखे घुमाते हुए ) : "कुछ भी....आ हाँन...''
और ना चाहते हुए भी रश्मी की नज़रें घूमती हुई मोनू के शॉर्ट्स की तरफ चली गयी...और वहाँ पर उठ रहा तंबू उसकी नज़रों से छुपा नही रह सका. रश्मी को तो अपनी आँखो पर विश्वास ही नही हुआ...ऐसा उसने जान बूझकर नही किया था..ऐसे ही उसकी नज़रें घूमती हुई वहाँ चली गयी थी..और वो इतनी भी नासमझ नही थी की इतने बड़े उभार का मतलब ना समझ सके..
असल मे वो दुनिया के सामने तो भोली भाली बनकर रहती थी...पर अपनी जिंदगी मे वो एक नंबर की ठरकी थी..वो होती है ना घुन्नी टाइप की लड़कियाँ , जो अपने आप को दुनिया की नज़रों से छुपा कर रखती है...पर अंदर से बड़ी चालू होती है...ठीक वैसी ही थी रश्मी भी..उसने आज तक कभी भी सेक्स नही किया था..पर सेक्स से जुड़ी बाते उसे हमेशा उत्तेजित करती थी..स्कूल / कॉलेज में भी वो लड़को से दूर रहती थी..पर रोज रात को उन्ही लड़को के बारे मे सोच-सोचकर फिंगरिंग किया करती थी...ये उसका अभी तक का नीयम था, इसलिए उसे सोते-2 रोज 12 बज जाते थे...अपने मोबाइल पर वी चेट पर चेटिंग करना..फेक नाम से एफ बी पर अकाउंट भी बनाया हुआ था उसने और उसमें वो लड़को से रोज रात को चेटिंग करती थी...अपने मोबाइल से अपनी चूत की और मुम्मों की पिक्स उन्हे भेजकर उत्तेजित भी करती थी...पर किसी से फोन पर बात नही करती थी और ना ही किसी के सामने खुलकर आती थी..यानी अपना चेहरा हमेशा छुपा कर ही रखती थी..
और जब मोनू ने ये बात बोली तो अपनी आदत से मजबूर उसकी नज़रें उसके लंड वाली जगह पर चली ही गयी...
और फिर ना जाने क्या सोचकर उसने अपनी नज़रें घुमा ली...पर उनमे आ चुका गुलाबीपन मोनू से छुपा न रह सका..
मोनू : "क्या हुआ दीदी...आप एकदम से चुप सी क्यों हो गयी...''
रश्मी : "बस...ऐसे ही...उम्म्म्म एक बात पूछू तुझसे मोनू...''
मोनू : "हाँ दीदी...पूछो...''
रश्मी : "मैं तुझे कैसी लगती हू...''
मोनू : "आप....मतलब...आप तो अच्छी ही हो दीदी...इसमे पूछने वाली क्या बात है...''
रश्मी : "अरे नही बुद्धू ....मेरा पूछने का मतलब...देखने में ...कैसी हूँ मैं ...''
इतना कहकर उसने अपनी ज़ुल्फो मे हाथ फेरा..अपने खुले हुए बाल पीछे किए...और अपना सीना बाहर की तरफ़ निकाल कर ऐसे पोज़ दिया जैसे कोई फोटो सेशन हो रहा हो वहाँ...
मोनू की नज़रें रश्मी की हर हरकत पर थी...उसके नाज़ुक हाथों का जुल्फे पकड़कर पीछे करना...अपने चेहरे पर उँगलियों को फेरना , बालों को कान के पीछे अटकाना..सब वो ऐसे देख रहा था जैसे वो सब रश्मी उसके लिए ही कर रही हो..[url=http://rajsharmastories.com/memberlist.php?mode=viewprofile&u=32926][/url]
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09-25-2018, 01:23 PM,
#5
RE: Behen ki Chudai बहन का दांव
मोनू अपनी बहन की सुंदरता देखकर हैरान हुए जा रहा था...उसे पता तो था की वो सुंदर है..पर इतनी सेक्सी भी है, ये आज ही पता चला उसको..अभी तो उसने कोई मेकअप नही किया हुआ..अपने गुलाबी होंठों पर लाल लिपस्टिक , आँखो मे रश्मी और चेहरे पर मेकअप करने के बाद तो ये कयामत ही लगेगी
रश्मी : "क्या सोचने लगे अब....बोलो ना..''
मोनू (झेंपता हुआ सा) : "बोल तो दिया दीदी...आप अच्छी हो...चलो अब आगे देखो...मैं दोबारा पत्ते बाँट रहा हू...''
और मोनू ने बात बदलते हुए फिर से 3-3 पत्ते बाँट दिए..ये काम उसने इसलिए भी किया था की रश्मी की ऐसी बातें सुनकर उसके लंड ने अपना पूरा आकार ले लिया था और वो अंडरवीयर में ऐसे फँस गया था की उसे सही करने के लिए वो अपने हाथ नीचे भी नही कर पा रहा था...क्योंकि अपनी बड़ी बहन के सामने वो कैसे अपने लंड को हाथ लगाता भला..इसलिए उसने बात बदलने में ही भलाई समझी ताकी उसका लंड नीचे बैठ जाए
अब की बार रश्मी ने पत्ते नही उठाए..
रश्मी : "पर तुमने तो कहा था की ब्लाइंड चलने के लिए पैसे चाहिए होते है...अब क्या हम दोनो भी पैसो से खेलें क्या ...''
मोनू : "नही...उसके बदले कुछ भी रख देते है...''
इतना कहकर वो इधर उधर देखने लगा...
रश्मी के मन मे तब तक एक बात आ चुकी थी, वो बोली : "एक काम करते है...ब्लाइंड या चाल के बदले हम एक दूसरे से सवाल करेंगे...और सामने वाला उसके जवाब बिल्कुल सच मे देगा...बोलो मंजूर है...''
मोनू को समझ नही आया की उसकी बहन करना क्या चाहती है...पर वो समझ चुका था की रश्मी उसे फंसाना चाहती है , जो भी था,उसमें वो फंसना नही चाहता था
मोनू : "क्या दीदी...आप भी ना...इसमे मज़ा नही आएगा...रूको...में पैसे लेकर आता हू...उससे ही खेलते है...या फिर माचिस की तिल्लिया लेकर आता हू, उन्हे आपस मे बाँट लेंगे, उनसे खेलेंगे...''
रश्मी : "नही...अब तो मैं ऐसे ही खेलूँगी...वरना तुम उठाओ ये पत्ते और जाओ अपने कमरे मे...मुझे भी नींद आ रही है..''
दोनो ही सूरत मे रश्मी अपना फायदा देख रही थी...अगर वो खेलने के लिए मान जाता तो वो उससे अपनी पसंद के सवाल करके कुछ सच उगलवाती...और अगर वो चला जाता तो रोज रात की तरह चेटिंग वगेरह करते हुए मुठ मारती ...और वैसे भी आज वो कुछ ज़्यादा ही उत्तेजित हो रही थी...पता नही क्यो.
वापिस जाने की बात सुनते ही मोनू हड़बड़ा सा गया...आज पहली बार तो उसे अपनी बड़ी बहन को ऐसे देखने का मौका मिला था..और उपर से वो थोड़ा नॉटी भी बिहेव कर रही थी...ऐसे मे वापिस जाना मतलब हाथ में आया मौका खो देने जैसा ही था.
हमेशा अपनी 'बहन' को 'बहन' की नज़र से देखने वाला मोनू अचानक से ही उसे एक 'लड़की' की नज़र से देखने लग गया..और देखे भी क्यो ना..खूबसूरत तो थी ही वो..अपनी अदाओं का जादू वो ऐसे चला रही थी जैसे कोई किसी को पटाने के लिए करता है...अब उसकी समझ में ये नही आ रहा था की उसकी हरकतों को वो क्या समझे...पर जो भी था अभी तक तो मोनू को मज़ा ही आ रहा था...और ऐसे मज़े को वो खोना नही चाहता था..
मोनू : "ठीक है दीदी....जैसा आप कहो...''
और वो फिर से वही बैठ गया और पत्ते बाँटने लगा..रश्मी के होंठों पर विजयी मुस्कान तैर गयी.
रश्मी ने भी आज से पहले अपने भाई के बारे मे ऐसा नही सोचा था...पर वो सोच रही थी की कैसे वो अब तक रोज रात को इस कमरे मे सोते हुए अपनी चूत की मालिश करती है और बिल्कुल साथ वाले कमरे में ही उसका जवान भाई भी सोता है...उसके इतनी पास रहते हुए वो ये सब काम करती है..सिर्फ़ एक दीवार ही तो है बीच मे...और अगर वो दीवार भी ना हो तो...और वो उसके सामने ही नंगी होकर अपनी चूत रगड़ रही हो तो....ये सोचते ही उसके पूरे बदन में एक सिहरन सी दौड़ गयी....उसके होंठ काँपने लगे...उपर वाले भी ...और नीचे वाले भी.
मोनू : "अब क्या हुआ दीदी.....आपकी ब्लाइंड है...पूछो ..क्या पूछना है...''
पूछना तो रश्मी बहुत कुछ चाहती थी..पर फिर भी अपने होंठों को दांतो से काटकर बड़ी मुश्किल से अपने आप पर काबू किया और बोली : "तेरी....तेरी...एक गर्लफ्रेंड थी ना...वो अभी भी है क्या...और क्या नाम है उसका..''
मोनू की आँखे गोल हो गयी...उसने तो सोचा भी नही था की ये बातें इतनी पर्सनल भी हो सकती है...
और ये रश्मी को कैसे पता चला की उसकी एक गर्लफ्रेंड है ...ये बात तो उसने आज तक उसे नही बताई...वो ज़्यादा बाते करता ही नही था रश्मी के साथ..इसलिए वो हैरान हो रहा था की ये रश्मी आज एकदम से क्यों उसकी पर्सनल जिंदगी के बारे मे पूछ रही है..
मोनू : "वो....थी या नही थी...आप क्यो पूछ रही हो...और आपको कैसे पता की मेरी एक जी एफ थी..''
रश्मी : "गेम का रूल है ये...तुझे बताना पड़ेगा...मुझे कैसे पता वो बात रहने दे...''
मोनू फँस चुका था...वो सोचने लगा की अगर उसे ये बात पता है तो उसके सामने झूठ बोलने का कोई फायदा नही है..
मोनू : "जी...वो अभी भी है...और उसका नाम रुची है...''
रुची का नाम सुनते ही रश्मी का दिमाग़ सुन्न सा हो गया...ये तो उसकी बचपन की सहेली थी...जिसके साथ वो पिछले 2 सालो से बात नही कर रही...दोनो मे किसी बात को लेकर इश्यू हो गया था इसलिए..
पर उसका खुद का भाई, उसकी सबसे करीबी सहेली के साथ लगा हुआ है, ये उसने सोचा भी नही था.
रश्मी : "रुची के साथ.....ओह्ह्ह्ह माय गॉड ...पर ये कब से चल रहा है...मुझे तो पता भी नही..''
मोनू : "आप एक ही बार मे दो सवाल नही पूछ सकती...अब मेरी ब्लाइंड है..यानी सवाल पूछने की बारी अब मेरी है..''
मोनू अपने आप को बड़ा समझदार समझ रहा था उस वक़्त...उसने मुस्कुराते हुए वही प्रश्न अपनी बहन से भी पूछ लिया : "आपका कोई बाय्फ्रेंड है क्या...या कभी रहा हो...क्या नाम है उसका..''
रश्मी ने सपाट चेहरे से उत्तर दिया : "नही...कोई था ही नही तो नाम किसका बताऊ ..''
बेचारा मोनू अपना सा मुँह लेकर रह गया.
वैसे इन बातो का कोई मतलब नही था...दोनो भाई बहन ने आज से पहले कभी इस विषय पर बात नही की थी...उन्हे थोड़ा अटपटा भी लग रहा था...पर मज़ा भी बहुत आ रहा था...ख़ासकर रश्मी को..वो तो समझ चुकी थी की इस गेम के ज़रिए वो आज सब कुछ उगलवा लेगी मोनू से..जो वो हमेशा से उससे पूछना चाहती थी..पर शरम के मारे कभी पूछने की हिम्मत ही नही हुई.
रश्मी : "अब मेरी बारी...अब ये बताओ...रुची के साथ तुमने क्या -2 किया है..''
ये उसकी ब्लाइंड थी..
मोनू (झल्लाकर) : "आप भी ना दीदी...ये कैसे सवाल पूछ रही है...मुझे शर्म आ रही है..''
रश्मी : "एक लड़का होकर भी तू ऐसे शरमा रहा है...रहने दे..मुझे नही खेलनी ये गेम शेम ..तू जा अपने कमरे में ..मुझे वैसे भी नींद आ रही है..''
ये तो जैसे उसके स्वाभिमान पर चोट कर दी थी रश्मी ने...वो एकदम से तैश मे आकर बोला : "मुझे कोई शरम-वरम नही आती ...ये तो तुम्हारा लिहाज कर रहा हू..वरना मुझे ये बाते बताने मे कोई फ़र्क नही पड़ता..''
रश्मी (चटखारे लेते हुए) : "तो बता ना...चुप क्यों है अभी तक...बोल, क्या-2 किया है तुम दोनो ने अभी तक..''
रश्मी फुल टू मूड में आ चुकी थी अब तक...और शायद ये भी भूल चुकी थी की वो क्या पूछ रही है और किससे...
मोनू : "हमने....वो किस्सस वगैरह ...हग्स....उम्म.....एंड फकिंग भी ....''[url=http://rajsharmastories.com/memberlist.php?mode=viewprofile&u=32926][/url]
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09-25-2018, 01:23 PM,
#6
RE: Behen ki Chudai बहन का दांव
लास्ट का वर्ड यानी फकिंग सुनते ही रश्मी एकदम से सुलग कर रह गयी...दो साल पहले तक, जब तक दोनो की दोस्ती थी, उन्होने यही डिसाईड किया था की अपनी शादी से पहले किसी को भी वो सब नही करने देंगी...पर ये रुची कितनी चालू निकली...इन दो सालो मे वो कितनी बदल गयी है...कहाँ से कहाँ पहुँच गयी...अपना वादा तोड़ दिया...और चुदवा भी ली...और वो भी उसके खुद के भाई से...
रश्मी को गुस्सा तो बहुत आया..पर वो कर भी क्या सकती थी...उसकी अपनी लाइफ थी..वो जैसे चाहे , वैसे चलाए...वो बेकार मे ही गुस्सा करके अपना खून जला रही है.
वो थोड़ा नॉर्मल हुई...पर 'फकिंग' शब्द सुनने के बाद वो अपने भाई से नज़रें नही मिला पा रही थी...और ये जानकार भी की छोटा होते हुए भी उसका भाई उससे आगे निकल गया है...यानी किसी के साथ संबंध बना लिया है उसने...और एक वो है...अभी तक अपनी कुँवारी चूत की घर बैठकर मालिश कर रही है बस...
उसके मन मे आया की 'काश....ऐसी कोई जगह होती..जहाँ कभी भी , कोई भी जाकर चुद सके..बिना कोई सवाल पूछे..बस वहाँ जाए, और चुदाई करनी या करवानी शुरू कर दे...तो वो भी वहाँ जाती और अपने प्यासे जिस्म की प्यास बुझा लेती...'
ऐसे बे-सिर-पैर के ख़याल अक्सर उसके दिमाग़ मे आते रहते थे.
अब मोनू की बारी थी...पर उसकी समझ में नही आ रहा था की वो पूछे भी तो क्या पूछे ...उसकी बहन ने वो काम अभी तक नही किए थे...तो कैसे वो आगे की बाते पूछे..वो पूछना चाहता था की 'दीदी,आपने किसी के साथ कोई संबंध नही रखा,पर क्या आपने आज तक मूठ भी नही मारी..आपको कुछ होता नही है क्या अंदर से...'
पर वो ऐसा पूछ नही पाया...
फिर अचानक वो बोला : "आप ये बताओ...ये कैसे पता चला की मेरी एक गर्लफ्रेंड है...मैने तो आज तक आपको बताया नही..और रुची से तो आपकी 2 सालो से बोलचाल बंद है..फिर पता कैसे चला..''
रश्मी ने सिर झुकाते हुए धीरे से कहा : "वो....मैने....कई बार...तुम्हारे मोबाइल पर मैसेजस पड़े हैं...इसलिए...''
मोनू : ओह तेरी.....तो ऐसे पता चला रश्मी को...'
और रश्मी को उसका नाम शायद इसलिए नही पता था क्योंकि उसने अपने मोबाइल मे रुची को ''शोना'' के नाम से सेव किया हुआ था..और ये नया नंबर था, इसलिए रश्मी समझ नही पाई की ये ''शोना'' असल मे उसकी पक्की सहेली रुची ही है.
मोनू : "चलो कोई बात नही...अब तो आपको पता चल ही गया है...अब आप फिर से ब्लाइंड यानी कुछ और पूछना चाहती हो तो पूछो ...वरना अपने पत्ते खोलकर चाल चलो...''
रश्मी के पास तो काफ़ी सवाल थे...पर पहली बार मे ही वो सब पूछकर वो मोनू को भगाना नही चाहती थी...उसने अपने पत्ते उठा लिए..पर ये पत्ते उसकी समझ मे नही आए...
मोनू ने भी अपने पत्ते उठा कर देखे...उसके पास 5 का पेयर आया था...वो खुश हो गया..पर रश्मी के प्रश्नवाचक चेहरे को देखकर बोला : "क्या हुआ दीदी...पत्ते ठीक नही आए क्या...''
रश्मी : "पता नही...ये देखो ज़रा...''
उसने अपने पत्ते सामने फेंक दिए...वो थे इक्का, बादशाह और बेगम...
मोनू : "यार दीदी....आप तो कमाल हो...पता है ये क्या है....सबसे बड़ी सीक्वेंस ...इनको तो सिर्फ़ और सिर्फ़ ट्रेल ही काट सकती है..जो बड़ी मुश्किल से आती है...जैसी आपके पास पिछली बार आई थी..इक्के की ''
और फिर मोनू ने रश्मी को सभी तरह के पत्तो के बारे मे बताया की क्या बड़ा होता है...क्या छोटा...सुच्ची किसे कहते हैं...कलर...पेयर ..सीक्वेंस ...सभी की जानकारी दी उसने..
मोनू : "ये गेम तो आप जीत गयी...''
रश्मी : "अब पैसे तो रखे नही है हमने ...फिर मुझे क्या मिलेगा...''
वो मंद -2 मुस्कुरा भी रही थी ये बोलते हुए...
मोनू को उसकी हँसी का जो मतलब नज़र आ रहा था..वो कहना नही चाहता था...और ये भी नही बोलना चाहता था की जीतने के बाद वो क्या माँगने की बात कर रही है...
मोनू : "वो बाद मे बता देना...अभी मुझे कुछ और देखना है...''
रश्मी : "क्या ???"
और जान बूझकर रश्मी ने अपने दोनो हाथ अपनी छातियों पर रख लिए...जैसे मोनू उन्हे ही देखने की बात कर रहा हो और फिर मोनू के मासूमियत से भरे चेहरे पर पसीना देखकर वो खुद ही हंस-हंसकर लोट-पोट हो गयी...
रश्मी : "हा हा हा ....मोनू तू भी ना....कितना बड़ा भोंदू है...पता नही तूने वो सब कैसे किया होगा रुची के साथ...वो तो तुझे कक्चा खा गयी होगी...''
मोनू : "मुझे ...और वो....आप ये बात कैसे कह सकती हो ...''
वो ताश की गड्डी को पीसता हुआ बोला
रश्मी : "मुझे पता है...वो ऐसी ही है शुरू से...जिस तरह की बाते वो करती थी की ये करेगी...वो करेगी...मैं तो सोच भी नहीं सकती थी वो सब...और वो बोल भी देती थी...उसकी बातें सुनकर ही मुझे पता चल गया था की इसके हाथ जो भी पहला शिकार आएगा...वो उसका क्या हाल करेगी...और मुझे क्या पता था की उसका शिकार मेरा भाई ही होकर रहेगा...हा हा''
और वो फिर से अपना पेट पकड़कर ज़ोर-2 से हँसने लगी. अब मोनू अपनी बहन को क्या बताता...पहली बार उसने रुची की चूत यहीं मारी थी...वो भी इसी बेड पर, जहाँ वो इस समय खेल रहे थे..रश्मी स्कूल गयी हुई थी और माँ किसी काम से मार्केट...
उस समय उसने रुची की ऐसी चीखे निकलवाई थी की वो आज भी याद करके सहम जाती है...बाद में तो उसे मोनू के मोटे लंड की आदत पड़ गयी...पर बाद मे भी हर बार वो उसकी रेल बनाकर ही चुदाई करता था...वो हारकर पस्त हो जाती है..पर मोनू अपनी हार नही मानता...और शायद इसलिए वो पिछले 1 साल से किसी और की तरफ देखती तक नही है...ऐसी चुदाई करने वाला बी एफ आसानी से थोड़े ही मिलता है आख़िर.
मोनू : "चलो , छोड़ो अब ये सब सच बुलवाने वाली गेम्स...मेरे दिमाग़ मे कुछ आ रहा है...वो चेक करने दो पहले मुझे...''
और फिर से उसने दोनों को 3-3 पत्ते बाँटे...और फिर बिना ब्लाइंड या चाल चले मोनू ने दोनो के पत्ते पलट कर सीधे कर दिए..
मोनू ने अपने पत्ते देखे...ऐसे ही थे..बेकार से...पर रश्मी के पत्ते इस बार भी कमाल के थे...उसके पास पान का कलर आया था. मोनू ने फिर से पत्ते बाँटे और फिर से उन्हे पलट कर सीधा किया...इस बार भी रश्मी के पास इकके का पेयर आया. वो फिर से पत्ते बाँटने लगा[url=http://rajsharmastories.com/memberlist.php?mode=viewprofile&u=32926][/url]
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09-25-2018, 01:23 PM,
#7
RE: Behen ki Chudai बहन का दांव
रश्मी : "ये तू कर क्या रहा है...मुझे भी तो बता ज़रा...''
मोनू : "रूको दीदी. ...बस थोड़ी देर और...''
और उसके बाद मोनू ने 3 बार और पत्ते बाँटे ...और हर बार रश्मी के पत्ते भारी थे...और हर बार उसके पास चाल खेलने लायक ही पत्ते आ रहे थे...कभी पेयर ...कभी कलर...कभी सीक्वेंस. आख़िर मे मोनू बोला : "दीदी...लगता है आपके अंदर कोई शक्ति छुपी है...या कोई वरदान है ,आप देख रही हो ना...हर बार आपके पत्ते कितने जबरदस्त आ रहे हैं...''
रश्मी : "हाँ तो....''
मोनू (अपने चेहरे पर चालाकी भरी मुस्कान लाते हुए) : "दीदी ...मेरे पास एक प्लान है..''
रश्मी : "प्लान....? कैसा प्लान...और किसलिए.."
मोनू : "देखो दीदी...आजकल दीवाली का टाइम है..और इस टाइम सभी लोग जुआ खेलते हैं...वैसे जुआ खेलने वाले तो पूरा साल खेलते हैं पर इन दिनों और भी ज़्यादा और बड़ी-2 गेम्स होती है ...और इसलिए वो कल में इतने पैसे जीत कर लाया था...''
रश्मी : "हाँ ...तो ..? "
मोनू : "तो अगर हम लोग ये जुआ खेले...मेरा मतलब है की तुम...तो शायद काफ़ी पैसे आ सकते हैं...मेरे जितने भी दोस्त है वो सब खेलने वाले हैं...उनके साथ खेलेंगे..और मुझे पूरा विश्वास है की आप ही जीतोगे ..आप देख रहे हो ना, किस तरह के पत्ते आते हैं हर बार आपके पास...''
रश्मी का तो दिमाग़ ही घूम गया उसकी बात सुनकर..
रश्मी : "तू पागल हो गया है....तू चाहता है की में तेरी तरह जुआ खेलूं ..और वो भी तेरे उन आवारा दोस्तों के साथ...तुझे शर्म नही आएगी की तेरी बहन बाहर जाकर जुआ खेले...कभी सुना है तूने की कोई लड़की जुआ खेलती है...तुझे पता भी है की कितनी बदनामी होगी हमारी...''
बोलते-2 उसकी आवाज़ काफ़ी तेज हो गयी थी गुस्से की वजह से.
मोनू आराम से सब सुनता रहा और आख़िर मे बोला : "दीदी....सबसे पहले तो ये ख्याल मन से निकाल दो की लड़कियाँ ये काम नही करती...ये दीवाली के दिन है...और इन दिनों लड़कियाँ और औरतें ही सबसे ज़्यादा खेलती हैं...चाहे शगुन के लिए ही सही पर इन दिवाली के दिनों में जुआ खेलना शुभ माना जाता है..और आपको कहीं बाहर नही जाना है खेलने, मैं उन्हे यहीं बुला लूँगा...अपने घर पर..और आपको मेरे होते हुए किसी से भी डरने की जरुरत नही है...आप शायद नही जानती की मेरा कितना दबदबा है इस मोहल्ले में...कोई आपकी तरफ आँख उठा कर भी नही देख सकता...''
रश्मी उसकी बात सुनती रही..शायद उसको वो सब सही लग रहा था अब..
रश्मी (थोड़े नरम स्वर मे) : "पर...माँ हॉस्पिटल में है और हम लोग ऐसे घर मे बैठकर जुआ खेलेंगे...माना की तेरे दोस्त तेरे सामने नही बोलेंगे...पर पीछे से तो हर कोई यही कहेगा ना की माँ हॉस्पिटल मे है और इन्हे जुआ खेलने की पड़ी है..''
मोनू : "ये सब मै माँ के लिए ही कर रहा हू...कल मेरी डॉक्टर् से बात हुई थी..उन्हे घर लाने के लिए..तो उन्होने कहा था की या तो 10 दिन तक उनका हॉस्पिटल मे रहकर इलाज करवा लो...या फिर घर लेजाकर एक इंजेक्शन रोज लगवाना, 5 दीनो तक..जो करीब 3000 का एक है..हम उन्हे कल ही घर ले आएँगे...और इन पैसों से उनका घर पर ही इलाज करवाएँगे..''
रश्मी को उसकी बात मे तर्क नज़र आया...क्योंकि ये बात डॉक्टर ने उसे भी कही थी...पर इतने पैसे कहाँ से लाती वो, यही सोचकर उसने उस बात पर ज़्यादा ध्यान नही दिया था..कहने को तो ये सरकारी हॉस्पिटल था पर उसमे भी उनके पैसे लग ही रहे थे....और रोज -2 आने-जाने की मशक्कत भी अलग से करनी पड़ती थी.अगर माँ को घर ले आएँ तो ये सारी चिंता और परेशानी ख़त्म हो जाएगी.
रश्मी : "पर असली में खेलते हुए अगर मैं हार गयी तो, मेरा मतलब है की अगर खेलते हुए लक्क ने मेरा साथ नही दिया तो ??"
मोनू : "आप उसकी चिंता मत करो , मै सब संभाल लूंगा "
रश्मी चुप हो गयी....मोनू समझ गया की वो उसकी बातों पर विचार कर रही है.
मोनू : "दीदी...आप इतना मत सोचो...आजकल तो सभी के घर पर जुआ चलता है...कल भी मै अपने दोस्त राजेश के घर पर ही खेल रहा था...और उसकी बीबी को तो आप जानती ही हो, दिव्या, वो भी खेल रही थी उसके साथ...अब ऐसा त्योहार का माहोल हो तो घर की औरतों का भी थोड़ा बहुत एंटरटेनमेंट हो जाता है...''
रश्मी तो पहले ही मान चुकी थी...मोनू बेकार मे अभी तक उसे मनाने के लिए इधर-उधर की बातें कर रहा था..
वो जैसे ही बोला 'और वो जो मेरा दोस्त है ना.....'
रश्मी : "ओके ..बाबा ...समझ गयी....अब चुप कर जा....समझ गयी मैं...''
रश्मी ने हंसते हुए कहा तो मोनू भी खुशी के मारे उछल पड़ा...और प्रेम भाव मे आकर वो रश्मी से लिपट गया..
मोनू : "ओह ...दीदी ....मुझे पता था की आप ज़रूर समझोगी...भले ही ये ग़लत तरीका है पैसे कमाने का..पर हमें इस समय इन पैसो की बहुत ज़रूरत है...''[url=http://rajsharmastories.com/memberlist.php?mode=viewprofile&u=32926][/url]
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09-25-2018, 01:23 PM,
#8
RE: Behen ki Chudai बहन का दांव
रश्मी की साँसे तेज हो गयी...दरअसल मोनू के जिस्म से निकल रही मर्दाना खुशबु उसे सम्मोहित सी कर रही थी...ऐसा लग रहा था की जैसे कोई नशा है जो मोनू के शरीर से निकल कर उसकी सांसो मे समा रहा है..और ये सब महसूस करते-2 कब उसके निप्पल बाहर निकल कर मोनू को चुभने लग गये, उसे भी पता नही चला...और मोनू को लगा की शायद उसके गले मे पड़ा हुआ लॉकेट चुभ रहा है उसके सीने मे..पर फिर उसे याद आया की वो तो काफ़ी उपर बँधा है...और तब उसे एहसास हुआ की ये कोई लोकेट नही बल्कि कुछ और है...जो दोनो तरफ से एक बराबर चुभ रहा है..और उसे समझते देर नहीं लगी की वो क्या है
अब उत्तेजित होने की बारी मोनू की थी...उसने लाख कोशिश की पर उसके लंड ने उसकी एक नही मानी और एकदम से तन कर खड़ा हो गया..जिसे रश्मी ने भी अपने पेट पर महसूस किया..
और ये था उसके शरीर पर किसी खड़े लंड का पहला एहसास...
भले ही रात के समय वो कितने ही लड़को के लंड खड़े करके मज़े लेती थी पर उनके एहसास को महसूस करने का ये पहला अवसर था उसके लिए और इस एहसास ने उसके शरीर को पसीने से भिगो दिया..और चूत को भी महका दिया. दोनो एकदम से अलग हो गये...और एक दूसरे से नज़रें चुराते हुए इधर-उधर देखने लगे..
मोनू : "ओके ..दीदी ...अब मै चलता हू...अपने रूम मे..गुड नाइट. और हां आप कल स्कूल की छुट्टी कर लेना..हम दोनो सुबह ही हॉस्पिटल चलेंगे और माँ को घर ले आएँगे......''
रश्मी : "ओक....मै सुबह स्कूल में फोन कर दूँगी...गुड नाइट..''
उस रात रश्मी ने अपने वर्चुअल आशिकों से कोई भी बात नही की...पर जम कर अपनी बिना बालों वाली चूत को रगड़ा...इतना रगड़ा की उसपर लाल निशान पड़ गये..और जब वो झड़ी तो उसके शरीर के कंपन से पूरा पलंग हिल गया और वो ये सोचकर मुस्कुरा उठी की जब वो किसी के लंड की वजह से झड़ेगी तो शायद ये पलंग टूट ही जाएगा. मोनू भी अपने कमरे मे जाकर पूरा नंगा हो गया..और अपने हाथ में लंड लेकर ज़ोर-2 से हिलाने लगा..वो चाहता नही था की इस समय उसकी बहन रश्मी का ख़याल भी आए..इसलिए वो अपनी आँखे बंद करके रुची के बारे में सोचने लगा..उसके नंगे शरीर के बारे मे सोचने लगा..उसे कैसे चोदा था वो याद करने लगा..पर अपने ऑर्गैस्म के करीब जाते-2 कब रुची का चेहरा रश्मी मे बदल गया, वो भी समझ नही पाया...और अंत मे आकर जब उसके लंड से पिचकारियाँ निकली तो उस सफेद पानी के साथ -2 उसके मुँह पर भी रश्मी का ही नाम था..
''अहह ....ओह रश्मी...... उम्म्म्मममममममममम''
फिर वो सब कुछ साफ़ करके सो गया...ऐसे ही नंगा.
अगली सुबह रश्मी की नींद जल्दी खुल गयी...जो उसकी हमेशा की आदत थी...भले ही उसे आज स्कूल नही जाना था पर नहा धोकर वो 8 बजे तक तैयार हो गयी...घर की सफाई भी कर ली...वो रोज 8 बजे तक निकल ही जाती थी घर से..और मोनू घर पर सोता रहता था...वो 10 बजे उठता और करीब 12 बजे तक हॉस्पिटल पहुंचता था रोज...यही था दोनो का नियम पिछले एक महीने से...
रश्मी नीचे किचन मे अपने लिए चाय बना ही रही थी की बाहर का दरवाजा खुलने की आवाज़ आई...उसने बाहर भी झाड़ू लगाया था इसलिए दरवाजा खुला ही रह गया था..वो किचन से निकल कर जब तक बाहर निकली तो उसने देखा की रुची जल्दी से अंदर घुसी और उसने दरवाजा अंदर से बंद किया और हिरनी की तरह छलाँगें लगाती हुई वो उपर मोनू के कमरे की तरफ चल दी..
उसने एक टी शर्ट और स्कर्ट पहनी हुई थी , जिसमे वो बड़ी सेक्सी लग रही थी
रश्मी के चेहरे पर शरारत भरी मुस्कान तैर गयी...रुची को शायद नही पता था की आज रश्मी घर पर ही है...और शायद उसके स्कूल चले जाने के बाद पीछे से घर पर आना उसका रोज का नियम था...
रश्मी ने सोचा 'अच्छा, तो ये कारण है मोनू के रोज इतनी लेट हॉस्पिटल पहुंचने का, रुची कभी मेरे सामने तो घर पर आ नहीं सकती , इसलिए मेरे स्कूल जाने के बाद के टाइम पर ही आई है ,अब मज़ा आएगा...उपर का सीन देखने लायक होगा'
उसने जल्दी से गैस को बंद किया और दबे पाँव उपर चल दी.. अपनी पुरानी सहेली और अपने प्यारे भाई को रंगे हाथों पकड़ने. रुची भागती हुई सी मोनू के रूम मे पहुँची..वो चादर तान कर सो रहा था..
रुची : "गुड मॉर्निंग जानू...देखो मैं आ गयी...''
पर वो जाग रहा होता तो जवाब देता न...रात को वो ना जाने कितनी देर तक अपनी बहन और जुए के बारे मे सोचता रहा था..
रुची : "अब ये नाटक छोड़ो...मुझे पता है तुम जाग रहे हो...नीचे का दरवाजा तुमने मेरे लिए ही खोलकर रखा था ना आज...''
पर फिर भी कोई जवाब नही मिला. रुची आगे बड़ी और उसने एक ही झटके मे मोनू की चादर खींच कर अलग कर दी और जो उसने सामने देखा , उसे अपनी आँखो पर विश्वास नही हुआ. मोनू मादरजात नंगा होकर सो रहा था और उसका 8 इंच का लंड पूरा खड़ा होकर हुंकार रहा था..अब ये मॉर्निंग इरेक्शन था या फिर वो कोई सपना देखा रहा था, ये अलग बात थी पर रुची की आँखो मे एक अजीब सी चमक आ गयी..वो तो वैसे भी उसके लंड की दीवानी थी और अभी भी चुदवाने के लिए ही आई थी..उसने मोनू को ऐसी गहरी नींद मे सोते हुए आज तक नही देखा था..और ना ही कभी नंगा सोते हुए..वो हमेशा शॉर्ट्स और टी शर्ट पहन कर ही सोता था..
पर उसे क्या पता की कल रात को क्या-2 हुआ मोनू के साथ और अपनी बहन रश्मी के बारे मे सोचकर मूठ मारने के बाद उसने कपड़े पहनने की जहमत भी नही उठाई और ऐसे ही सो गया. ये भी बिना सोचे समझे की सुबह किसी ने देख लिया तो क्या सोचेगा. रुची के होंठ सूख गये उसके लंड को देखकर पर नीचे के होंठ गीले हो गये..उसका एक हाथ अपनी चूत पर चला गया...और दूसरे से वो अपनी ब्रेस्ट को मसलने लगी और धीरे-2 चलती हुई वो मोनू के पलंग पर बैठ गयी. इसी बीच रश्मी भी उपर आ चुकी थी और दरवाजे के बाहर छुपकर वो उनकी रासलीला देख रही थी पर जब उसने अंदर देखा तो उसके होश ही उड़ गये उसका भाई पलंग पर नंगा लेटा हुआ था यानी सो रहा था और उसका लंड बिल्कुल उपर की तरफ मुँह करके हुंकार रहा था. ये रश्मी की जिंदगी का पहला लंड था जो उसने अपनी आँखो से देखा था और वो भी अपने खुद के भाई का उसकी भी हालत रुची जैसी हो गयी उपर के होंठ सूख गये और नीचे के गीले हो गये. रुची तो निश्चिंत थी की उन दोनो के अलावा कोई भी घर पर नही है और किसी और के एकदम से आने की भी आशा नही है क्योंकि दरवाजा वो खुद बंद करके आई है. रश्मी ने देखा की रुची के होंठ थरथरा रहे हैं जैसे वो मोनू के लंड को अपने मुँह मे लेकर चूसना चाहती हो वो बाहर खड़ी होकर खुद इतनी उत्तेजित हो रही थी, अंदर खड़ी हुई रुची का पता नही क्या हाल हो रहा होगा..[url=http://rajsharmastories.com/memberlist.php?mode=viewprofile&u=32926][/url]
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09-25-2018, 01:24 PM,
#9
RE: Behen ki Chudai बहन का दांव
अचानक रश्मी ने देखा की अपने दोनो हाथ उपर करके रुची ने अपनी टी शर्ट को उतार कर नीचे फेंक दिया...नीचे उसने एक सेक्सी सी ब्रा पहनी हुई थी...जिसमे उसके 32 साइज़ के बूब्स क़ैद थे...फिर रश्मी के देखते ही देखते रुची ने अपनी स्कर्ट भी उतार दी...और अब वो उसके भाई के कमरे मे सिर्फ़ ब्रा-पेंटी मे खड़ी थी..पेंटी की हालत देखकर रश्मी समझ गयी की वो कितनी ज़्यादा उत्तेजित है...क्योंकि वो पूरी तरह से गीली हो चुकी थी.
आज पहली बार रश्मी ने अपनी सहेली को ऐसी हालत मे देखा था...कपड़ो में तो वो साधारण सी ही लगती थी...पर अब उसका कसा हुआ बदन किसी लिंगरी मॉडेल से कम नही लग रहा था...बिल्कुल सही आकार के बूब्स थे उसके...सपाट पेट और भरी हुई सी गांड ...
वो उसकी सुंदरता का अवलोकन कर ही रही थी की रुची ने एक और दुसाहसी कदम उठाते हुए पहले अपनी पेंटी और फिर ब्रा भी खोल कर नीचे गिरा दी..और अब वो पूरी नंगी होकर खड़ी थी उस छोटे से कमरे मे...जहाँ उसका भाई गहरी नींद मे सोया हुआ था...
रश्मी समझ गयी की अब ये क्या करने वाली है...वैसे भी कल रात को ही मोनू ने बता दिया था की वो उसके साथ फकिंग कर चुका है...इसलिए उसे अभी चुदाई के लिए तैयार होते देखकर रश्मी को ज़्यादा आष्चर्य नही हुआ..
रुची ने अपना हाथ अपनी चूत पर रगड़ा और ढेर सारा शहद निकाल कर मोनू के लंड पर मल दिया...और फिर अपना मुँह नीचे करके उसने उस शहद से डूबे भुट्टे को अपने मुँह मे लिया और ज़ोर-2 से चूसने लगी...
मोनू का शरीर कुछ देर के लिए कसमसाया...पर शायद गहरी नींद में था वो..इसलिए कुछ और नही किया...पर उसका सिर इधर-उधर होने लगा था...क्योंकि नींद मे ही सही, उसे ये एहसास हो रहा था की उसका लंड चूसा जा रहा है...
फिर रुची ने एक मिनट तक चूसने के बाद उसे बाहर निकाला और मोनू के पलंग पर चढ़ गयी ..उसके दोनों तरफ टांगे करते हुए उसने उसके लंड को ठीक अपनी चूत के उपर रखा और धप्प से उपर बैठ गयी..
''अहह....... उम्म्म्मममममममममम ............ ओह .... मोनू .............. ''
और अपने लंड पर दबाव का एहसास और रुची की चीख सुनकर मोनू की नींद एकदम से खुल गयी..और सोते हुए वो ये सपना देखा रहा था की उसका लंड रश्मी चूस रही है..और चुदाई भी वो करवा रही है...इसलिए आँखे खुलने से पहले उसके मुँह से एक उत्तेजना से भारी आवाज़ निकली : "ओह ..... रश्मी ..........''
और फिर जब उसने आँखे खोलकर देखा की असल मे उसके उपर रुची है तो उसके तो जैसे होश ही उड़ गये...
मोनू : " ये...ये क्या ..... रुची ...... तू ....यहाँ ....और ये क्या है ..... श तेरी ......''
और रुची उसे शक भारी नज़रों से देखते हुए ,गुस्से मे भरकर बोली : "क्या बोला तू अभी....रश्मी बोला था न ...''
तब तक मोनू की नज़र बाहर छुपकर उनकी चुदाई देख रही रश्मी पर जा चुकी थी..और उसे समझते देर नही लगी की असल मे हो क्या रहा है वहाँ...
वो एकदम से बोला : "अरी बेवकूफ़...अपने पीछे देख...रश्मी दीदी खड़ी है..उन्हें देखकर बोला था मैं ''
और इतना कहते हुए उसने नीचे गिरी हुई चादर अपने और रुची के नंगे जिस्म पर खींच ली..
रश्मी भी समझ गयी की अब छुपने का कोई फायदा नही है...वो बाहर निकल कर अंदर आ गयी..
और रुची की हालत तो ऐसी हो रही थी जैसे कोई चोर चोरी करते हुए पकड़ा गया हो...एक तो उसकी पुरानी सहेली , उपर से उससे बोलचाल बंद...और साथ ही वो उसके घर पर ही उसके भाई से चुदवाती हुई पकड़ी गयी..इससे ज़्यादा शरम की और क्या बात हो सकती है...
रश्मी के लिए ऐसे मोनू के कमरे मे खड़े रहना थोड़ा अजीब सा था...कल रात को उनके बीच वो बात चीत न हुई होती तो शायद मोनू के देख लेने के बाद वो भागकर नीचे चली जाती और बाद मे इस घटना के बारे मे कोई बात भी नही करती...पर अब दोनो के बीच हालात बदल चुके थे..
दूसरी तरफ मोनू को भी ज़्यादा डर नही लगा...क्योंकि इतनी अंडरस्टैंडिंग तो हो ही चुकी थी उनमें कल रात , जब वो अपनी बहन को देखकर और उसकी बहन उसको देखकर और वैसी बाते करके कितने उत्तेजित हो रहे थे...
रश्मी : "तो ये सब होता है रोज मेरे जाने के बाद...''
रुची ने अपना चेहरा चादर के अंदर छुपा लिया...बेचारी अपना मुँह तक नही दिखा पा रही थी अपनी पुरानी सहेली को..
रश्मी ने एकदम से हंसते हुए कहा : "इट्स ओके रुची ..... ऐसे शरमाने की या डरने की कोई ज़रूरत नही है... मुझे मोनू ने सब बता दिया है तुम दोनों के बारे में ...''
रुची ने एकदम से अपना सिर चादर से बाहर निकाला...और मोनू के चेहरे को घूरने लगी..
मोनू : "अरे .... कल रात ही बात हुई थी तुम्हे लेकर...इसलिए बताना पड़ा...डोंट वरी ... दीदी से डरने की कोई बात नही है..''
रश्मी : "हाँ ...रुची ....और मै किचन मे ही थी...जब तुम उपर आई...इसलिए मैने जब तक उपर आकर देखा की तुम क्या कर रही हो तो.....आधे से ज़्यादा मामला निपट चुका था....''
उसके चेहरे पर शरारत भरी मुस्कान थी. उसकी बात सुनकर रुची के साथ-2 मोनू भी शरमा गया.
रश्मी : "अब जल्दी से बाकी का काम निपटा लो मोनू ...और तैयार हो जाओ...हॉस्पिटल भी जाना है...में नीचे नाश्ता बना रही हू...''
इतना कहकर वो नीचे उतर गयी...उन दोनों को उसी हालत मे छोड़कर..
पर रश्मी ने नीचे उतरने के 5 मिनट बाद ही रुची भी नीचे उतरी और रश्मी से बिना कुछ बोले बाहर निकल गयी.शायद उन्होंने रश्मी के घर पर रहते चुदाई के इरादे को त्याग दिया था
आधे घंटे बाद मोनू भी तैयार होकर नीचे आ गया...और दोनो हॉस्पिटल के लिए निकल पड़े..
रास्ते मे दोनो के बीच रुची वाले मामले को लेकर कोई बात नही हुई...बस नॉर्मल बातें होती रही..और जुए के बारे में भी बातें हुई.[url=http://rajsharmastories.com/memberlist.php?mode=viewprofile&u=32926][/url]
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09-25-2018, 01:24 PM,
#10
RE: Behen ki Chudai बहन का दांव
शाम तक दोनो अपनी माँ को डिसचार्ज करवाकर घर ले आए...और उन्होने संभलकर उन्हे उपर वाले कमरे मे भी पहुँचा दिया..डॉक्टर्स के परामर्श के अनुसार अब उन्हे अगले 5 दीनो तक वो इंजेक्शन लगना था..आज का वो लगवा कर ही आए थे....इसलिए 8 बजते-2 रश्मी ने खाना भी बना दिया और उन्हे खाना खिला कर सुला भी दिया..
मोनू बाहर गया हुआ था...रश्मी नीचे ड्रॉयिंग रूम मे बैठकर टीवी देख रही थी की बाहर की बेल बजी..
उसने दरवाजा खोला तो बाहर मोनू अपने 2 दोस्तों के साथ खड़ा था.
मोनू : "आ जा भाई ....अपना ही घर समझ .... ''
और रश्मी को उनका परिचय करवाते हुए बोला : "दीदी ...ये मेरे दोस्त है .... ये रिशू, इसको तो आप जानती ही हो.... और ये है राजेंद्र...मतलब राजू ...''
दोनो ने रश्मी को नमस्ते की और अंदर आकर बैठ गये.
दोनो भाई बहन ने पहले से डिसाईड कर लिया था की कैसे वो योजना के अनुसार खेलने के लिए मैदान में उतरेगी..
सो अंदर आते ही मोनू शुरू हो गया : "दीदी ....अब आपके कहने पर ही में आज घर पर आकर खेल रहा हू...थोड़ा बहुत शोर शराबा हुआ तो आप बुरा मत मानना ..''
रश्मी : "अब तेरी दीवाली के दिनों मे जुआ खेलने की जिद्द है तो में क्या कर सकती हू ... जब तूने खेलना ही है तो घर पर ही खेल ना... माँ की तबीयत खराब हुई तो में अकेली कहाँ भागूँगी .तू घर पर रहेगा तो मुझे तसल्ली रहेगी..''
ये सब बातें वो अपनी बनाई योजना के अनुसार कर रहे थे..
उसके बाद वो तीनों वहीं टेबल के चारो तरफ बैठ गये...और पत्ते बाँटने लगे..
रश्मी भी मोनू के पास जाकर बैठ गयी और बोली : "अब मैने बोर तो होना नही है....में भी तुम्हारे पास बैठकर ये खेल देखूँगी..''
मोनू कुछ बोल पता, इससे पहले ही रिशू बोल पड़ा : "हां ...हां ..रश्मी ..क्यों नही ...ज़रूर बैठो ....''
उसकी आँखो की चमक बता रही थी की वो रश्मी को ऐसे पत्तो के खेल मे इंटरस्ट लेते देखकर कितना खुश हो रहा था...अब उसकी खुशी के पीछे मंशा क्या थी,ये तो वो ही जाने, पर उसकी बात सुनकर रश्मी भी हँसती हुई सी मोनू के साथ बैठ गयी और फिर शुरू हुआ जुआ.
रश्मी सोफे के साइड मे हाथ रखने वाली जगह पर बैठी थी...मोनू के कंधे पर हाथ रखकर...उसके उपर झुकी हुई सी..मोनू को उसकी गर्म साँसे अपने कान और चेहरे पर सॉफ महसूस हो रही थी..
मोनू ने पत्ते बाँटे..और सभी ने बूट के 100 रुपय बीच मे रख दिए..
और उसके बाद सभी ने 2 बार ब्लाइंड भी चली 100-100 की..
सबसे पहले राजू ने अपने पत्ते उठा कर देखे..और देखने के साथ ही उसने 200 की चाल चल दी.
चाल देखते ही रिशू ने भी अपने पत्ते उठा कर देखे..पर देखने के साथ ही पैक भी कर दिया..
अब बारी थी मोनू की
मोनू ने मुड़कर रश्मी की तरफ देखा...उसने सिर हिला कर उसे इशारा किया और अगले ही पल मोनू ने फिर से ब्लाइंड चल दी
राजू बोला : "ओहो ..... इतना कॉन्फिडेन्स ....आज क्या हो गया तुझे...''
और हंसते हुए उसने फिर से 400 की चाल चल दी...डबल करते हुए.
अब तो मोनू को भी डर सा लगने लगा..उसने अपने पत्ते उठा कर देखे...एक-2 करते हुए..
पहला पत्ता था इक्का..
दूसरा निकला बादशाह...
मोनू का दिल ज़ोर-2 से धड़कने लगा...वो सोचने लगा की अगला पत्ता कोई भी आ जाए...बेगम आए तो सबसे बढ़िया ...वरना..एक और इक्का...या एक और बादशाह ...कलर तो बन नही सकता था...क्योंकि अभी तक के दोनो पत्ते अलग-2 थे..
उसने भगवान का नाम लेते हुए तीसरा पत्ता भी देखा...
वो गुलाम निकला..
शिट यार....ऐसा कैसे हो सकता है...शायद...मैं खेल रहा हू इसलिए...रश्मी खेलेगी तो उसके पास पत्ते आएँगे ना अच्छे ...मैं बेकार में ही इतना आगे खेल गया..पर फिर भी,शो माँगने लायक तो थे ही उसके पत्ते..
और उसने 400 बीच मे फेंक कर शो माँग लिया..
राजू ने अपने पत्ते सामने फेंक दिए..उसके पास पान का कलर था..
मोनू ने अपने पत्ते नीचे पटक दिए..
राजू ने हंसते हुए सारे पैसे उठा लिए..
रश्मी ने झुक कर राजू के पत्ते उठा कर देखे..शायद वो ये देखने की कोशिश कर रही थी की कही बीच मे पान के अलावा कोई दूसरा लाल रंग ना हो...
पर इतना ही समय काफ़ी था, राजू की तीखी नज़रों ने उसके गले की गहराई नाप ली...उसकी ब्लेक ब्रा मे कसे हुए उसके दोनो मुम्मे किसी टेनिस बॉल्स की तरह अपने जाल मे फँसे हुए दिख गये उसे...उसने गहरी मुस्कान के साथ रिशू की तरफ देखा...वो भी शायद उस गहराई को देख चुका था...दोनों के चेहरों पर कुटिलता से भरी हँसी आ गयी..और आँखो ही आँखो मे उन्होने रश्मी की जवानी से भरी छातियों का गुणगान कर दिया..
अगली गेम शुरू हुई...इस बार दो ब्लाइंड चलने के बाद रिशू ने पत्ते देखे और पेक कर दिया..दो और ब्लाइंड चलने के बाद मोनू ने पत्ते उठा लिए...वो अभी के लिए ज़्यादा रिस्क नही लेना चाहता था...पर उसके पास बड़े ही बेकार पत्ते आए...7, 3, 5.
उसने बिना शो माँगे ही पैक कर दिया...
राजू ने फिर से हंसते हुए सारे पैसे उठा लिए.
मोनू : "आज तो लगता है इसी का दिन है...दो गेम में ही डेड -दो हज़ार जीत गया...''
राजू : "मोनू भाई, ये तो वक़्त-2 की बात है...कल तुम्हारा दिन था...आज मेरा दिन है...और वैसे भी, अभी तो खेल शुरू हुआ है...शायद तुम जीत जाओ आगे चलकर...''
मोनू ने मन मे सोचा 'वो तो होना ही है...एक बार रश्मी को आने दो बीच मे..फिर देखना, तुम्हारी जेब कैसे खाली करवाता हूँ मैं...''
अगला खेल शुरू हुआ..तभी मोनू बोला : "मैं ज़रा बाथरूम होकर आता हू...तुम मेरे पत्ते रश्मी को बाँट दो...तब तक ये खेल लेगी...''
इसमे भला उन दोनो को क्या परेशानी हो सकती थी..उनके तो चेहरे और भी ज़्यादा चमक उठे..
मोनू उठकर उपर चला गया..
रश्मी सोफे पर बैठी..उसका दिल अब जोरो से धड़क रहा था..राजू ने गड्डी को रश्मी की तरफ बढ़ाया .ताकि वो उसे काट सके..जैसे ही रश्मी ने गड्डी पर हाथ रखा, राजू ने उसके हाथ के उपर अपना हाथ रखकर उसे दबोच लिया..
राजू : "अर्रे...अर्रे ....ऐसे नही....इतने पत्ते मत निकालो...थोड़ा आराम से...आधे से कम काटो...आराम से...''
और ये सब कहते-2 वो रश्मी के नर्म और मुलायम हाथ को अपने कठोर हाथों से सहला भी रहा था..
रश्मी भी उसके ऐसे स्पर्श के महसूस करके कसमसा उठी..उसके शरीर के रोँये खड़े हो गये...क्योंकि आज तक उसे किसी ने इस तरह से छुआ नही था..कल अपने भाई का स्पर्श और अब इस राजू का...दो दिन मे दो मर्दों के शरीर ने उसे छुआ था..ये एक कुँवारी लड़की के लिए एक शॉक से कम नही होता..
रश्मी ने थोड़े से ही पत्ते उठाए और ताश को काट कर नीचे रख दिया.राजू ने पत्ते बाँटे.
बूट के बाद सभी ने 3-3 बार ब्लाइंड चली..रश्मी वैसे तो निश्चिन्त ही थी, क्योंकि उसे पता था की उसके पत्ते अच्छे ही निकलेंगे..पर एक डर भी लग रहा था..की कहीं कुछ गड़बड़ ना हो जाए...
और ऐसा सोचते-2 उसने एकदम से अपने पत्ते उठा लिए...उन्हे देखकर उसकी समझ मे कुछ नही आ रहा था...एक बादशाह था...दूसरी बेगम....और तीसरा दस.
मोनू ने तो कहा था की उसके पत्ते हमेशा चाल चलने लायक होते हैं...उसने गेम समझ तो ली थी..पर अभी तक सही से वो अपने दिमाग़ मे बिठा नही पाई थी..पर फिर भी मोनू की बात को याद करते हुए उसने चाल चल दी ..
रिशू तो रश्मी के हुस्न का दीदार करने मे मस्त था...वो उसकी छातियों को टकटकी लगाकर देखे जा रहा था..और उसका साइज़ क्या होगा ये सोचने मे मग्न था...उसके निप्पल किस पॉइंट पर होंगे, वो उसकी रूपरेखा बना रहा था...ब्रा तो वो देख ही चुका था उसकी, ब्लैक कलर की..अगर वो ब्रा में ही बैठकर खेले तो कितना मज़ा मिलेगा..
और रिशू को अपनी तरफ ऐसे देखते देखकर रश्मी का दिल भी हिचकोले खा रहा था...और उसके दोनो निप्पल एकदम से सख़्त होकर सूट के कपड़े मे उभर आए...
और रिशू का अंदाज़ा बिल्कुल सही निकला, उसने जिस जगह पर सोचा था, वहीं पर उसे हल्के-2 निप्पल्स उभरते हुए दिख गये..वो अपनी क़ाबलियत पर खुश हो गया.
पर रश्मी को चाल चलते देखकर उसने एकदम से अपने पत्ते उठाए...उसके पास इक्का और दो छोटे पत्ते थे...चाल चलने या शो माँगने का सवाल नही था, क्योंकि राजू ने अभी तक अपने पत्ते देखे भी नही थे..
रिशू ने पेक कर दिया.
अब राजू की बारी थी....उसने अपने पत्ते उठाए...उसके पास इक्का, बादशाह और दुग्गी थी...उसका एक मन तो हुआ की पेक कर दे...क्योंकि सामने से चाल आ चुकी थी...पर वो इतने पैसे जीत चुका था अभी तक की शो माँगकर भी वो ही फायदे में ही रहता...और वैसे भी वो देखना चाहता था की रश्मी के पत्ते कैसे हैं...उसे खेलना भी आता है या नही..
और उसने 400 बीच मे फेंक कर शो माँग लिया..
और रश्मी के पत्ते देखकर वो ज़ोर-2 से हँसने लगा..और सारे पैसे बीच मे से उठा कर अपनी तरफ कर लिए...रिशू भी रश्मी के पत्ते देखकर मुस्कुरा दिया और बोला : "अभी तुम्हे सही से खेलना आता नही है रश्मी...या फिर तुम ब्लफ खेल रही थी...''
तब तक उपर से मोनू भी आ गया...उसने भी बीच मे पड़े रश्मी और राजू के पत्ते देखे...उसे तो विश्वास ही नही हो रहा था की रश्मी अपनी पहली ही गेम में हार गयी...उसने तो क्या-2 सोचा हुआ था..पर ऐसे रश्मी को हारता हुआ देखकर उसे अपनी सारी प्लानिंग फैल सी होती दिख रही थी..
मोनू : "अरे नही....ब्लफ भला ये क्या जाने...हम दोनो बस घर बैठकर थोड़ा बहुत खेल लेते हैं, बस वही आता है इसे...चलो, एक बार और बाँटो पत्ते...देखते हैं की इसकी कैसी किस्मत है ...''
रश्मी के साथ एक बार
और खेलने की बात सुनकर रिशू और राजू मुस्कुरा दिए...पर रश्मी ने धीरे से मोनू के कान मे कहा : "नही मोनू...तुम ही खेलो...मुझे नही लगता की मैं कल की तरह जीत पाऊँगी ..वो शायद कोई इत्तेफ़ाक था...ऐसे ही बेकार मे अपने पैसे मत बर्बाद करो...''
मोनू फुसफुसाया : "नही दीदी....एक और गेम खेलो...शायद इस बार अच्छे पत्ते आ जाए..प्लीज़ ...मेरे कहने पर...''
और मोनू के ज़ोर देने पर रश्मी फिर से खेलने लगी.
उसके निप्पल का साइज़ और भी ज़्यादा बड़ चुका था...शायद परेशानी में भी लड़कियो के निप्पल खड़े हो जाते हैं, जैसे उत्तेजना के वक़्त होते हैं...
वो दोनो हरामी तो उसकी छातियों पर लगे छोटे-2 बल्ब देखकर अपने लंड सहला रहे थे...मोनू का ध्यान इस बात पर नही था अभी...उसे तो चिंता सता रही थी की अगली गेम वो जीतेगा या नही..
पत्ते फिर से बाँटे गये...बूट के बाद 2-2 बार ब्लाइंड भी चली गयी...रिशू ने फिर से अपने पत्ते उठाए...और पहली बार वो अपने पत्ते देखकर खुश हुआ...और उसने 200 की चाल चल दी..
रिशू के बाद राजू ने भी अपने पत्ते देखे और चाल चल दी..
मोनू ने रश्मी को भी अपने पत्ते उठाने के लिए कहा..
रश्मी ने काँपते हाथों से एक-2 करके अपने पत्ते उठाए..
पहला 7 नंबर था..
दूसरा पत्ता 9 नंबर था...और अभी तक के दोनो पत्ते हुक्म के थे..[url=http://rajsharmastories.com/memberlist.php?mode=viewprofile&u=32926][/url]
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