Antarvasnax शीतल का समर्पण
07-19-2021, 12:13 PM,
#41
RE: Antarvasnax शीतल का समर्पण
उसके जाने के बाद शीतल ने राहत की सांस ली। वो सोच रही थी की कुछ लोग होते हैं जो वसीम की तरह होते हैं। नहीं तो सबके सब हरामी लार टपकते हए उसे देखते हैं। वसीम तो इंसान नहीं देवता था।

शीतल फिर घर में अकेली थी। वो विकास की बातों को सोच रही थी। और अभी मकसद और वसीम में तुलना करने के बाद उसे लगा की वो तो सच में वसीम की मशीबत और बढ़ा दी है? वसीम चाचा के लिए तो अब खुद को रोक पाना और मुश्किल हो गया होगा। उफफ्फ... में भी कितनी खराब औरत है। बेकार में विकास ने यहाँ घर लिया। किसी की शांत जिंदगी में तफान ले आई मैं। उसपर से ये कैसी मदद करने चली में की और बढ़ा ही दी उनकी मशीबत। सच बात तो ये है की बिना मुझे चोदे वसीम चाचा को राहत नहीं मिल सकती। ये बात मुझे पता थी और में इसके लिए तैयार भी थी। तभी तो गई थी वसीम चाचा की बाहों में नंगी होकर। काश की उस दिन उन्होंने मुझे चोद ही दिया होता तो फिर ये झमेला ही नहीं होता। उनसे चुदवाने के लिए ही ना मैं विकास को पटाई। कितनी चालबाजी करके मैं उसमें पमिशन ली थी वसीम चाचा से चुदवाने की। मुझे तो घिन आती है की पहले उसे चोदने दी और फिर नंगी उससे छिपककर सेंटिमेंटल करके चुदवाने की पमिशन ली। और इतना होने के बाद अब मैं उनसे चुदवाऊँगी भी नहीं, तो मुझसे खराब और बुरी कोई होगी क्या? मैं तो वसीम चाचा की जान को खतरे में डाल दी उफफ्फ..."

शीतल का ध्यान घड़ी की तरफ गया। एक बजने वाले थे। मतलब अब किसी भी बात वसीम चाचा आनं वाले होंगे। बो दौड़कर रूम में से अपनी पैंटी बा ली और छत पे अच्छे से फैलाकर टांग आई। फिर भागती हुई अपने घर में आई और दरवाजा बंद कर ली। शीतल हौंफ रही थी लेकिन वो खुश थी। मैं चुद नहीं सकती लेकिन पैंटी वा बाहर छोड़ने में तो कोई दिक्कत नहीं हैं। कम से कम वसीम चाचा उसमें वीर्य तो निकाल लेंगे। मुझे वहीं पैटी ब्रा पहनने में कोई तकलीफ नहीं है।

थोड़ी देर बाद वसीम के आने की आहट हुईं। शीतल की धड़कन तेज हो गई। वो सिर्फ वसीम के बारे में सोच रही थी की क्या सोच रहे होंगे मेरे बारे में? पता नहीं पैंटी ब्रा छुएंगे की नहीं? उन्होंने कहा तो था की नहीं छएंगे। नहीं वसीम चाचा, कम से कम उसमें वीर्य तो निकाल लीजिएगा। पलीज मेरी मजबूरी को समझिए। मैं एक शादीशुदा औरत हैं, जो अपने पति के अलावा किसी और के बारे में सोच भी नहीं सकती। लेकिन फिर भी मैं आपकी इतनी मदद कर रही हैं और चुदवाने के अलावा आपकी हर तरह से मदद करेंगी?

वसीम ने अपने रूम में जाते वक्त शीतल की टंगी हुई पैटी बा को देखा तो मुश्कुरा उठा। सुबह पटी बा यहीं नहीं थी? शापद विकास से वो रूपाना चाहती होगी। शायद विकास को पता चल गया होगा या विकास शीतल पे शक करने लगा होगा? हम्म्म... रंडी की चूत तो पूरी गरम है। लेकिन ऐसे खाने में मजा नहीं आएगा। गंड़ मजबूर है पति के हाथों। कोई बात नहीं, दो-चार दिन और देखता हूँ, नहीं तो फिर दूसरा रास्ता अपनाना होगा। लेकिन चुदेगी तो तू जरूर मेरे से शीतल शर्मा।

दोपहर के 2:30 बज गये थे। अब तक शीतल बेचैन हो चुकी थी? अगर कहीं उन्होंने पैंटी ब्रा पे वीर्य नहीं गिराया होगा तो? नहीं नहीं, उन्हें इस तरह तड़पता हुआ छोड़ा नहीं जा सकता। वैसे भी चुदवाने के अलावा मैं बाकी सब कुछ तो कर ही सकती है। अपने पतिव्रता धर्म का इतना त्याग तो करना ही होगा मुझे। और बैंसे भी मेरे पास मेरे पति की पमिशन हैं। उन्हें थोड़े ही पता है की मैं चुदवाने का डिसाइड की हैं। उन्हें तो में बोलकर आई थी की मैं आपको तड़पता नहीं छोड़ सकती चाहे कुछ भी हो। मैं जितना कर सकती हैं उतना तो करेंगी हो। शीतल बेचैन हो गई और छत पे चल दी। उसकी पैंटी ब्रा उसी तरह टंगी हुई थी जैसे वो तंग कर गई थी। मतलब वसीम चाचा ने इसे छुआ भी नहीं। पागल है ये आदमी और मुखें भी पागल कर देगा।

शीतल गुस्से में पैंटी ब्रा को हाथ में ली और वसीम के दरवाजा पे नाक की. "वसीम चाचा... वसीम चाचा.."

अंदर वसीम मुश्कुरा उठा और हड़बड़ाने की आक्टिंग करता हुआ दरवाजा खोला. "क्या हुआ?"

शीतल ने पैटी ब्रा दिखाते हुए गुस्से में ही पूछा- "ये क्या है? आप समझते क्या है खुद का? हर चीज में जिद। आपने इसपर वीर्य क्यों नहीं निकाला?"

वसीम कुछ नहीं बोला। वो उसे ऐसे देख रहा था जैसे वहाँ शीतल नहीं कोई अजूबा हो। वो हँसना चाहता था, ठहाके लगाना चाहता था लेकिन वो सिर झुकाए खड़ा रहा- "नहीं शीतल, मैं अब ये सब कुछ नहीं करेगा। और प्लीज... मुझे मेरे हाल में छोड़ दो। मेरी तकदीर में खुदा ने तड़पना ही लिखा है.."

शीतल- "आप पागल हैं वसीम चाचा। मैं वो सब नहीं जानती। मुझे आपमें बहस भी नहीं करना। बस ये लीजिए मेरी पैटी ब्रा और इसपर बीर्य गिराइए बस..."

वसीम- "नहीं शीतल प्लीज... अब नहीं। जो गलती में कर चुका है उसे और मत बढ़ाओ। जाओ यहाँ से.."

शीतल आगे बढ़ी और वसीम की लुंगी का खोल दी। लुंगी नीचे गिर पड़ी। वसीम नीचे से नंगा हो गया। वसीम का लण्ड उसके पैरों के बीच शांत बेजान पड़ा था। शीतल उसे पकड़ ली और हाथ आगे-पीछे चलाने लगी। शीतल का स्पर्श पाते ही मुर्दै में जान आ गई और लण्ड टाइट होता चला गया।

वसीम- "आहह... नहीं शीतल आहह... ये क्या कर रही हो? आह्ह.. छोड़ो, नहीं ये गलत है..." कहकर वसीम में शीतल के हाथ को हल्के से पकड़कर हटाने का कोशिश किया। लेकिन ना तो वो हटाना चाहता था और ना ही हटा पाया।
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07-19-2021, 12:14 PM,
#42
RE: Antarvasnax शीतल का समर्पण
शीतल वसीम के हाथ को हटा दी और लण्ड में जल्दी-जल्दी हाथ आगे-पीछे करने लगी। उसकी चूड़ियां छन-छन कर रही थीं। थोड़ी ही देर में शीतल का हाथ दर्द करने लगा। वो नीचे बैठ गई और दूसरे हाथ से करने लगी।

लेकिन भला इतनी जल्दी बसौम का लण्ड चौर्य कैसे छोड़ देता? शीतल गुस्से से ऊपर बसौम को देखी, जो चेहरे पे ऐसे भाव बनाए था जैसे बहुत मजकूर और परेशान हो।

शीतल और जोर से करती हई खीझ में बोली "निकालिए ना वीर्य चाचा। क्यों खुद को ही परेशान कर रहे हैं?"

वसीम को शीतल की खीझ में हँसी आ गई। लेकिन उसने खुद को हँसने से रोक लिया।

शीतल समझ गई की वसीम उसकी बात नहीं मानने वाला है। वो खड़ी हो गई और वसीम के गले लगकर उसके होठ चूमने लगी। उसे लगा की अब शायद वसीम अपने लण्ड का वीर्य गिरा पाए। लेकिन वा वसीम खान था। शीतल वसीम के होंठ च मते हुए ही लण्ड को हाथ से आगे-पीछे करने लगी।

कुछ असर नहीं होता देखकर शीतल फिर बोली. "क्यों नहीं वीर्य निकाल रहे आप? आखिर चाहते क्या हैं आप? में इतना कुछ कर रही हूँ अब और क्या करें कूद जाती हूँ में ही छत से.." और वसीम से अलग हो गई थी।

शीतल- "आप क्यों खुद तड़पना चाहते हैं? क्यों कर रहे हैं आप ऐसा? आप चाहते क्या है आखिर... शीतल आगे बद कर वसीम को धक्का दी।

वसीम- "शीतल में कुछ भी चाहूं क्या फर्क पड़ता है? इंसान की सारी चाहत पूरी तो नहीं होती."

शीतल अभी वसीम से बहस के मूड में नहीं थी। वो नीचे बैठ गई और वसीम के लण्ड को मुँह में ले ली। उफफ्फ... इसी मदहोश कर देने वाली खुश्बू की तो दीवानी थी वो। शीतल बड़ा सा मँह खोली अपना और लण्ड का अंदर लेती हुई चसने लगी। शीतल अपने दोनों हाथ से वसीम की गाण्ड पकड़ते हुए लण्ड चसने लगी। अब वसीम का लण्ड और टाइट हो गया था।

वसीम- "आहह... शीतल प्लीज़... आह्ह... ये क्यों कर रही हो तम्म ओहह..." वसीम सीधा खड़ा शीतल के सिर पे हाथ रखें खड़ा था।

शीतल अपने हिसाब से लण्ड को अच्छे से चस रही थी। हालांकी वसीम का आधे से ज्यादा लण्ड बाहर था। अब शीतल का दिमाग कुछ और कर रहा था। शीतल लण्ड चूसते-चूसते ही अपनी नाइटी को उतार दी। अब शीतल पैंटी ब्रा में बैठी वसीम का लण्ड चूस रही थी। वसीम का लण्ड पूरा टाइट था लेकिन वीर्य निकलना आसान नहीं था। शीतल बोली- "क्सीम। चाचा प्लीज... निकालिए ना वीर्य। मुझे नहीं आता। क्यों परेशान कर रहे हैं। आप वीर्य नहीं निकालंगे ता मुझे लगेगा की मैं कसूरवार ..."

शीतल समझ रही थी की उसने शेर के मुँह में खून लगाकर उसकी भूख को और बढ़ा दिया है। शेर खुद को भूखा मारना चाहता है, लेकिन वो हिम्मत नहीं हारेगी। शीतल खड़ी हो गई और फिर वसीम से चिपक गई। वो अपनी पैंटी को थोड़ी नीचे की और लण्ड को अपनी पैटी में लेते हए चूत से सटा ली। शीतल वसीम में पूरी चिपकी हुई थी और वसीम का लण्ड शीतल की पैंटी में चूत से रगड़ रहा था।

शीतल- "उस पैटी पे नहीं तो इस्स पैटी में गिरा लीजिये वसीम चाचा। लेकिन बिना वीर्य गिराए मैं आपको छोड़गी नहीं आहह..."

वसीम का लण्ड पूरा टाइट था और वो चूत के छेद पे रगड़ रहा था। वसीम ने अब शीतल को पकड़ लिया। अचानक शीतल को अपनी चूत में लण्ड की चुभन हुई और शीतल दर्द से चिढंक गईं। शीतल वसीम के कंधे को पकड़कर पंजे के बल उठ गई। वसीम ने शीतल को खुद से चिपकाए हुए ही उठा लिया। वसीम का लण्ड शीतल की चूत के बीच में फंसा था, और एक तरह से शीतल क्सीम के लण्ड में बैठी थी।

लण्ड चूत में सटते ही शीतल पागल हो उठी। वसीम भी पागलों की तरह शीतल के होठों को चूसने लगा और टी शर्ट ब्रा का पीछे से उठा दिया। शीतल ब्रा को हटा दी और वसीम का साथ देने लगी। उसकी नंगी चूची एक बार फिर वसीम के सीने से दब रही थी। वसीम इसी तरह शीतल को लिए हुए ही बैंड पे आ गिरा और होंठ चूमते हए ही शीतल की चूची को जोर-जोर से मसलने लगा।

शीतल- “आहह... उहए.." किए जा रही थी। शीतल पागल हो रही थी। अब उसका जिक्षम उसके काबू में नहीं था।

वसीम शीतल से अलग हुआ और उसकी पैंटी को उसके पैरों से अलग करता हुआ फेंक दिया। उसने एक चूची को कस के भींचा और दूसरे हाथ से शीतल की चूत में अपनी बीच वाली उंगली को घुसा दिया।

शीतल का बदन ऐंठ गया- "आह्ह... अहह... वसीम्म्म चाचा आहह...'

वसीम अपनी उंगली को शीतल की गीली चूत के अंदर जलता हआ महसूस किया। उसे शीतल के बदन की गर्मी का एहसास हो गया। उसे अंदाजा हो गया की ये राड़ उसे कितना मजा देने वाली है। शीतल की चूत की आग आसानी से वैसे भी बुझने वाली नहीं थी और वसीम बस इस आग को बढ़ा रहा था।

वसीम तीन-चार बार उंगली को अंदर-बाहर किया और शीतल के मुँह में दे दिया। शीतल अपनी ही चूत के रस को पागलों की तरह चस ली। शीतल का दिमाग भी साथ-साथ काम कर रहा था और उसे अपनी पतिक्ता कसम भी याद आ रही थी। लेकिन एक तो उसका जिश्म उसके काबू में नहीं था और दूसरा वा वसीम को रोकना नहीं चाहती थी। वो सोची की विकास ने तो बोल ही दिया है चुदवाने को तो चुदवा ही लेती हैं। और उसके पैर अपने
आप फैल गये थे।
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07-19-2021, 12:14 PM,
#43
RE: Antarvasnax शीतल का समर्पण
वसीम ने उसके फैलते पैर और ऊपर उठती कमर को देख लिया। उसने मन ही मन सोचा. "अभी नहीं रंडी, अभी तुझं और तड़पना है मेरे लण्ड के लिए। अभी मेरे लण्ड और तेरी चूत के बीच तेरा पति खड़ा हैं। तुझं मुझसे चुदवाने के लिए गिड़गिड़ाना होगा रांड़, अपने पति से बगावत करना होगा..' साँचकर वसीम उठा और खड़ा होकर लण्ड पे हाथ आगे-पीछे चलाने लगा।

शीतल ये देखकर चकित हो गई- "आहह... नहीं वसीम चाचा आह्ह... ये क्या कर रहे हैं आप आअहह... नहीं ऐसा मत करिए प्लीज... ओहह... इसे मेरी चूत में डालिए आहह... नही..." शीतल हड़बड़ा कर उठी और वसीम का हाथ पकड़ने की कोशिश की। वो चुदने के लिए खुद को मेंटली तैयार कर चुकी थी और फिजिकली तो वो तैयार थी ही। लेकिन वसीम ने ऐसा करके जैसे उसे आसमान से जमीन में ला पटका हो।

वसीम का लण्ड झटके खाने लगा और गाढ़ा सफेद वीर्य हवा में उछलता हुआ इधर-उधर गिरने लगा।

शीतल को समझ में नहीं आया की क्या करें? वो वसीम के लण्ड को हाथ में पकड़ ली और वीर्य उसके सामने जमीन पे गिरने लगा। ताजा वीर्य सामने बह रहा था। शीतल तुरंत ही अपना मुह खोली और लण्ड को मुह में ले ली। वसीम का मोटा लण्ड अब शीतल के मुँह में झटके मार रहा था और गरमा गरम बीर्य शीतल की जीभ को अपना टेस्ट दे गया। लण्ड वीर्य उगले जा रहा था और शीतल उसे अपने मुँह में भरती हुई जीभ से होकर गले में उतारती जा रही थी। लण्ड थक गया और उसने वीर्य गिराना बंद कर दिया लेकिन इससे शीतल के प्यासे जिएम की प्यास और बढ़ गई थी। वो चूस-चसकर वीर्य को निकालने लगी और पीने लगी।

वसीम हॉफ्ता हा चैयर पे जा बैठा और शीतल अपने सिर को बेड पे टिकाए नीचे ही बैठी रही। शीतल खुद के लिए बहुत बुरा महसूस कर रही थी की आज भी इतना कुछ होने के बाद भी वो बिना चुदे रह गईं। वो उठी और वसीम की चेपर के सामने जा बैठी।

शीतल- "ऐसा क्यों किया आपने वसीम चाचा? मुझे चोदा बन्यों नहीं: लण्ड को मेरी चूत में क्यों नहीं डाला? वीर्य को मेरी चूत में बन्यों नहीं गिराए? ये क्या पागलपन है बोलिए?"

वसीम आँखें बंद किए हए ही बोला- "क्योंकी मेरे नशीब में यही लिखा है..."

शीतल- "प्लीज... वसीम चाचा ऐसा ऐसा मत बोलिए। आपके नशीब में मेरी चूत है। मैं नंगी बैठी हैं आपके सामने। आप क्यों ऐसा करके खुद को तकलीफ दे रहे और मुझे भी?"

वसीम- "तुम किसी और के नशीब में हो शीतल। तुम जितना मेरे लिए कर रही हो उतना कोई नहीं करेगा। इसके लिए तुम्हारा शुक्रिया। लेकिन मुझे इससे आगे के लिए मजबूर मत करो। किसी के चाहने में कुछ नहीं होता...'

शीतल- "सारी चाहत भले किसी की पूरी ना हो पाई हो। लेकिन समय और हालत के मुताबिक इंसान को जो मिलता है उसी में टलकर खुश होने की कोशिश करता है। मैं मनती हैं की तन्हाई आपकी तकदीर में थी। लेकिन जब मैं यहाँ आई तो आपकी तन्हाई कुछ हद तक तो दूर कर हो सकती थी। लेकिन आपने इसे भी एक मर्ज़ बना लिया..."

वसीम- "शीतल तुम किसी और की अमानत हो। बस यही मेरी मर्ज़ का कारण है। तुम भले ही मुझे अपना जिश्म दे देना चाहती हो, लेकिन वो किसी और की अमानत है। तुम्हारे पति की है। तुम्हारे चूत में उसका वीर्य गिरेगा, तुम उसके वीर्य में माँ बनोगी, तो मैं कैसे अपने वीर्य को तुम्हारे चूत में गिरा द" ।

शीतल इस बात का ता मानती ही थी की उसके बदन पर केवल उसके पति का हक है। लेकिन वा अजीब पेशोपेश में फंसी है। वो वसीम से दूर रहती है तो लगता है की वसीम से चुदवाएगी नहीं, लेकिन वसीम के बारे में सोचती है तो उसका जिस्म वसीम के लिए पेश कर देती है। उसे विकास की बात याद आ गई की सब कुछ ऊपर वाले के हाथ में छोड़ दो और निशचित होकर रहो।

शीतल भला वसीम को अपनी हालत क्या बताती की वो खुद किस मजधार में है? वो उठी और अपने कपड़े देंटने लगी। उसकी नाइटी पे भी वसीम का वीर्य गिर गया था। शीतल ने सिर्फ नाइटी पहन ली और पैंटी ब्रा को हाथ में लेकर नीचे चल दी।

शीतल- "आपको जो समझ में आता है वो करिए, मुझे जो समझ में आता है में कर रही हैं। आपसे बस इतना ही कहूँगी की परेशान मत रहा करिए, और सब ऊपर वाले पे छोड़ दीजिए.. बोलती हुई शीतल नीचे चल दी और वसीम उस हसीन अप्सरा को गाण्ड हिलाकर जाते देखता रहा।

शीतल नीचे आकर सोफे पे लेट गई। उसे अपनी जीभ में अभी भी वसीम के वीर्य का टेस्ट महसूस हो रहा था। बो मदहोश होने लगी। सोचने लगी की- "ठीक ही है, शायद यही सही हैं। वो मुझे चोदना नहीं चाहते और मैं भी उनसे चुदवाना नहीं चाहती। लेकिन बाकी चीज करने में मुझे काई दिक्कत नहीं है, और अब उन्हें भी नहीं होगी।

और अगर कभी ऐसा हुआ की उन्होंने मुझे बोला तो मैं चुदवा लेंगी। विकास बोल हो चुका है और तब मुझे भी कोई ऐतराज नहीं.."

शीतल आज खुद को संतुष्ट महसूस कर रही थी की बिना चुद भी वो वसीम की मदद कर पा रही है। उसकी पतिव्रता धर्म भी निभ रही थी और वसीम की मदद भी हो रही थी। शाम होते-हाते वो परेशान हो गई की आज की बात वो विकास को बताए या नहीं? विकास ने मुझे चुदवाने की पमिशन भी दे दी और जब में मना की की में वसीम चाचा से नहीं चुदवाऊँगी तो उन्होंने मुझे समझाया भी। लेकिन फिर वो कहेंगे की कभी बोलती हो की नहीं चुदवाऊँगी तो कभी चुदवाने पहुँच जाती हो?

बहुत सोचने के बाद शीतल इस नतीजे पे पहुँची की जब वसीम उसे चोदने के लिए तैयार हो जाएंगे तब बता दंगी। लेकिन अगर ऐसा हआ की वसीम चाचा दिन में चोद दिए तो, क्या मैं उन्हें उस वक़्त मना करुंगी। नहीं नहीं, मैं उन्हें मना नहीं कर सकती। चुदवा तो लेंगी ही उस वक्त और शाम में बोल दूँगी की मुझे वसीम चाचा से चुदबाना है और फिर अगले दिन बोल दूँगी की चुदवा ली। शीतल के दिमाग में ये सारा हिसाब किताब चल रहा था।
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07-19-2021, 12:14 PM,
#44
RE: Antarvasnax शीतल का समर्पण
विकास उसे देखकर मश्करा रहा था। उसे दिन में क्या हुआ ये पता तो था नहीं। उसे लग रहा था की शीतल अभी तक अपनी बात पे कायम है और वसीम से दर रही है। वो शीतल के पास आया और यसए पीछे से पकड़कर कंधे में किस लेता हा बोला- "मेरी जान, इतना मत सोचो। मैंने कहा ना की सब ऊपर वाले में छोड़ दो। वसीम चाचा से ज्यादा तकलीफ में तो तुम हो। मैं अपने आफिस में मकसूद को और बाकी लोगों को दूसरे घर के लिए बोल दंगा कल। तभी तम खुश रह पाओगी और वसीम चाचा भी रिलैक्स हो पाएंगे..."

अब भला शीतल क्या बोलती की घर चेंज मत कीजिए, मैं बिना चर्दै वसीम को सर्विस दे रही है? वो सिर्फ हाँ में सिर हिलाई।

शीतल भी सोचने लगी की- "ये भी ठीक है। ना बो चोदना चाहते हैं ना मैं चुदवाना चाहती हैं। तो जब तक यहाँ हैं तब तक आज की तरह ही चलने देती हैं। फिर जाने के बाद मैं भी रिलैक्स महंगी और बो भी। पता नहीं वसीम चाचा रिलॅक्स हो पाएंगे या नहीं? जाने से पहले तो एक बार उनसे चुदवा ही लेंगी। जब मैं जिद करके बीर्य गिरवा सकती हैं तो चुद भी सकती हैं। यहाँ से जाने से पहले अगर वसीम चाचा ने मुझे चोद लिया तो फिर वो रिलैक्स रह पाएंगे।

अगले दिन शीतल नहाने में थोड़ा ज्यादा टाइम लगाई। उसने अपनी चूत में उग आए हल्के बालों को भी साफ कर लिया और अपनी पैटी ब्रा को गम में ही सूखने दी। विकास को लगा की शीतल अपनी बात में कायम है लेकिन शीतल को अब इसकी जरूरत ही नहीं थी। क्योंकी वसीम का वीर्य अब उसके पैटी बा में नहीं सीधा उसके मह में गिरजा था- उम्म्म्म ... क्या यम्मी टेस्ट था उसका आहह..."

शीतल एक बजने का इंतजार कर रही थी। आज वो शार्टस और टाप पहन हई थी। शीतल पेंटी और ब्रा उत्तार दी थी। वो जानती थी की उसे नहीं जाना है और नंगी हो जाना है तो पैटी ब्रा की क्या जरूरत थी? और कौन सा उसे रोड में जाना है। बीच में कोई उसे देंखेंगा नहीं और जो देखेंगा उसके सामने तो नंगी ही होना है। वसीम के साथ पल बिताने की चाहत में उसके निपल टाइट हो गये थे और टाप के ऊपर से झौंक रहे थे। उसकी चूत तो वसीम के बारे में सोचते ही गीली हो जाती थी।

वसीम के आने की आहट हुई और शीतल का मन हआ की दौड़कर बाहर चली जाए। लेकिन फिर उसे लगा की पहले उन्हें ऊपर जाकर फ्रेश ता हाने देती हैं। बड़ी मुश्किल से शीतल ने 5-7 मिनट गुजारे और फिर ऊपर चल दी। वसीम के घर का दरवाजा बंद देखकर उसे बुरा भी लगा। वो दरवाजा पे नाक की।

वसीम सोचने लगा- "आ गई रंडी.. उसने दरवाजा खोला और शीतल अंदर आ गई और बैंड के पास खड़ी हो गई। वसीम कुछ नहीं बोला और यूँ ही खड़ा रहा। शीतल को लगा था की वसीम उसे इस तरह देखकर खुश होगा
और बाहों में भर लेगा, लेकिन वो तो ऐसे खड़ा था जैसे वो यहाँ क्यों आ गई?

शीतल आगे बढ़ी और वसीम के गलें लग गई और उसे लिप-किस करने लगी।

वसीम में किस में शीतल का साथ नहीं दिया और छूटते ही बोला- "तुम क्यों आ गई यहाँ?"
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शीतल तुरंत बोली- "आपका वीर्य गिरवानें। आप रोज पहा करते थे ना। आप मुझे सोच करके वीर्य गिराते थे तो अब मेरे साथ करते हुए गिराए.."

वसीम - "प्लीज शीतल, तुम समझो मेरी बात। ये ठीक नहीं है। ये गुनाह है, पाप है...' बोलता हा वसीम चयर पे
जा बैठा।

शीतल झट से उसकी गोद में जा बैठी- "क्या पाप है? ना तो आप मुझे चोद रहे हैं और ना मैं चुदवा रही हैं। मेरे जिएम में मेरे पति का ही हक है और वो तो आप लें नहीं रहे हैं। तो फिर इतना करके तो मैं आपकी मदद कर हो सकती हैं। आप भी बिना मुझे चोदे रिलैंक्स रहेंगे और मैं भी."

वसीम मन ही मन सोचने लगा की. "अगर इतने ही से मन भरना होता तो इतना इंतजार नहीं करता। ना खुद इतना तरसता तरै जिस्म के लिए, ना तुझे तड़पने देता अपने लण्ड के लिए? अब तक तो कई दफा तेरी चूत को अपने वीर्य से भर चुका होता। मुझे तुझे पालतू कुतिया बनाना है। अकेले में नहीं, तेरे पति के सामने। ताकी जब मैं तुझे चोदं तो मेरे या तेरे मन में कोई डर नहीं रहे। मुझे कंडोम पहनने के लिए या चूत में वीर्य ना भरने के लिए ना बोल पाए त..."

वसीम बोला- "अगर तुम इस तरह मेरे साथ करोगी तो फिर मैं खुद को नहीं रोक पाऊँगा शीतल..."

शीतल तुरंत जवाब दी "तो आप रोकतें क्यों हैं? मुझे तो यही समझ में नहीं आता। मैं तो बो की मत राकिए। तभी ना ऐसे आपके पास आती हैं। आप पता नहीं मुझे किस टाइप की औरत समझने लगे होंगे?" शीतल वसीम की छाती को सहलाती हुई उसके जाँघों को सहलाने लगी थी।

वसीम- "क्योंकी तुम किसी और की हो, मेरी नहीं। नाजायज रिस्ते नहीं बनाना चाहता में.."

शीतल वसीम का हाथ पकड़कर टाप के ऊपर से अपने चूची पे रख ली। वसीम ने उसे कस के मसल दिया।
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07-19-2021, 12:14 PM,
#45
RE: Antarvasnax शीतल का समर्पण
शीतल- "आह्ह... वसीम चाचा, ये नजायज रिस्ता कैसे है? जब मैं खुद आपसे चोदने को कह रही है। विकास को मैं बता चुकी हूँ आपके बारे में और उन्होंने मुझे कह दिया है की मैं आपसे चुदवा सकती हूँ.'

वसीम- "नहीं, मुझे यकीन नहीं हो रहा की वो तुम्हें मुझसे चुदवाने बोल दिया है..."

शीतल वसीम के लण्ड को बाहर कर चुकी थी और हाथ में लेकर सहलाती हां बोली- "मैं सच कह रही हैं। लेकिन आप मुझे चोदना ही नहीं चाहतं और मैं भी सोची की मेरे जिश्म पे मेरे पति का हक है तो वो आपको क्यों दूर लेकिन आप जब भी मुझे चोदना चाहूँ मेरा जिस्म आपका है। मैं आपके लिए हमेशा तैयार हैं..."

वसीम- "तुम झूठ बोल रही हो ना, सिर्फ मेरा दिल रखने के लिए। ताकी मैं तुममें भरोसा करके तुम्हें चोद दूं और तब तुम्हारे हिसाब से मुझे सुकून मिलंगा। लेकिन इस तरह तुम मुझे और तकलीफ दोगी शीतल." कहकर वसीम शीतल को अपनी गोद से उतारते हुए खड़ा हो गया था, और वो थोड़ा गुस्से में भी था।

शीतल- "मैं झठ क्यों बोलेंगी वसीम चाचा? उन्होंने तो मझे उसी दिन सटई को ही बोल दिया था। लेकिन मैं ही फिर बदल गई थी की में अपना जिश्म आपको नहीं दे सकती। अगर मैं उस दिन तैयार र ही आप मुझे चोद चुके होते उनके पमिशन से। विकास बहुत अच्छे हैं, और उन्हें मेरी फीलिंग और मेरे फैसले की कदर है। उसके बाद भी आप मुझे चोद नहीं रहे थे तो मैं सांची की इसी तरह चलने देती हैं। आपको भी राहत मिलेगी और मेरा जिस्म भी मेरे पति के लिए बचा रहेगा... :

वसीम- “उफफ्फ... शीतल, इस तरह मुझे राहत नहीं मिलती। बल्कि मैं और जलता रहता हैं। अगर तुम और तुम्हारा पति मेरी मदद करने के लिए इतनी बड़ी कुर्बानी देने को तैयार हो तो फिर मुझे बन्या पाब्लम है? अगर तुम्हारी और तुम्हारे पति की पमिशन है तो फिर मैं कोई गुनाह नहीं करूँगा तुम्हें चोदकर."

शीतल विकास के सीने से चिपक गई। उसकी चूची वसीम के सीने में दब रही थी।

शीतल- "तो अब आप मुझे चोद सकते हैं ना, तो चाद लीजिए। परे कर लीजिए अपने अपमान। पूरी कर लीजिए अपनी तमन्नाओं का जिन्हें सोचते हए आप मेरे पैटी बा पे वीर्य गिराते हैं। गिरा लीजिए मेरी चूत में वीर्य। अब मत रोकिए खुद को और पूरी तरह मुझे हासिल कर लीजिए.

वसीम में शीतल को कस के पकड़ लिया और उसके होठों को पागलों की तरह चूमने लगा। वो पीछे से शीतल की टाप को ऊपर करता हुआ उसकी नंगी पीठ को सहलाने लगा। वसीम का हाथ पीठ सहलाता हुआ सामनें आया और टाप को सामने से भी उठाकर उसकी चूचियों को बेरहमी से मसलने लगा।

शीतल को बहुत दर्द हो रहा था और वो दर्द से आह ... उह्ह... भी कर रही थी। लेकिन वसीम जैसे पागल हो गया था। शीतल भी उसे गोकी या मना नहीं की। वो नहीं चाहती थी की वसीम रूके या किसी भी तरह उसे कोई कमी लगे। शीतल वसीम की खुशी के लिए अब सारा दर्द सह सकती थी।

वसीम भले ही शीतल के साथ ये सब पागलों की तरह कर रहा था, लेकिन उसका दिमाग उसी तरह शांति से अपने प्लानिंग में लगा था। उसे लगा की चुदबाने के लिए अगर ये गांड झठ बोल रही होगी और उसने अपने पति को मनाया नहीं होगा तो जो वो 5 दिन से बिना चोदे रह रहा है वो तो बेकार हो जाएगा। क्योंकी अगर ये ऐसे चुद जाएगी तो फिर मेगा प्लान 15-20 दिन के लिए टल जाएगा। अभी तो राड़ की चूत पूरी गरम है लेकिन एक बार चुदवाने के बाद फिर से ये पतिवता धर्म और पति की अमानत में सब सोचने लगेगी। नहीं मुझे कन्फर्म करना होगा की विकास का स्टैंड क्या है अभी तक?
अचानक वसीम रुक गया और शीतल से अलग हो गया।
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07-19-2021, 12:14 PM,
#46
RE: Antarvasnax शीतल का समर्पण
शीतल हड़बड़ा गई की अब क्या हुआ इस पागल इंसान को? उसे गुस्सा भी आया क्योंकी वो गरमा चुकी थी। उसकी चूत में पानी चूने लगा था। फिर भी वो बड़े प्यार से पूछी- "क्या हुआ वसीम चाचा, रुक क्यों गये अब?"

बमीम बोला- "नहीं, मुझे तुमपे ऐसे ही यकीन नहीं करना चाहिए। मुझे एक बार विकास से कन्फर्म हो लेना चाहिए। जब मैंने इतने दिन दर्द सहा है तो एक दिन और। रात में तुम बोलना विकास को की वो मुझे बोल दे, उसके बाद ही मैं तुम्हारे साथ कुछ कर पाऊँगा.."

शीतल के मन में कोई डर नहीं था। वो फिर से वसीम के सीने लग गई और बोली- "आप विकास से काल करके पछलीजिए."

वसीम को लगा की ये सही है। तरंत ही उसके दिमाग में ख्याल आया की- "अगर बडी ने उसे बताया नहीं होगा तो फ्री फोकट में बात बिगड़ जाएगी...

वसीम थोड़ा गुस्से में था- "में नहीं, तुम अपने नम्बर से काल लगाओं और मुझे सुनाओ, अगर बो हाँ कह देगा फिर मुझसे बात करवाओ। अगर ऐसा कर सकती हो तो ठीक है नहीं तो प्लीज.. चली जाओं यहाँ से और अब दुबारा मेरे आस-पास भी मत आना। अगर तुमनें आज झूठ कहा है तो मुझे अपनी शकल भी मत दिखाना.."

शीतल को कोई प्राब्लम नहीं थी, बोली- "मेरा मोबाइल तो नीचे ही है। यहाँ लाइट भी कटी हुई है और गर्मी भी लग रही है। आप भी नीचे चलिए और वहीं बात भी कर भी लीजिएगा और वहीं मेरे बेडरूम में ही मेरे साथ अपने अपमान परे कर लीजिएगा.."

वसीम ने कुछ देर सोचा और उसमें उसे कोई बुराई नहीं नजर आई। उल्टा वो और उत्तजित हो गया की शीतल के बेडरूम में उसकी चूत की चुदाई करेंगा। दोनों नीचे आ गयें। वसीम ने मुख्य दरवाजा बंद कर दिया ताकी बीच में कोई उसे डिस्टर्ब ना कर पाए।

शीतल अपने घर का दरवाजा बंद कर ली। वसीम सोफे में बैठ गया। उसके लण्ड में हलचल मचने लगी थी। फाइनली उसका प्लान सफल होने वाला था। विकास के पमिशन के बाद वो आराम से शीतल को चोद सकता था और उसे छिपाने की जरूरत नहीं थी। बस सिर्फ इस रांड़ ने झला बोला हो। अगर ये झठ बोली होगी तो इसे चोदूंगा तो नहीं, लेकिन इसकी गाण्ड फाइदंगा आज।

शीतल अपना फोन ढूँट करके आई और वसीम की गोद में बैठ गई। उसने वसीम के गाल में किस किया और उसका हाथ अपनी चूचियों में रखवा लिया।

वसीम सोचने लगा की- "बस रांड, कुछ मिनटों की देर है, फिर मसलंगा तेरी चूची और तब तझे पता चलेगा की चुदाई क्या होती है? बहुत खुजली मची है ना तेरी चूत में... सब एक ही झटके में मिट जाएगी..

शीतल बिकास का काल लगाई। रिंग जा रही थी। वसीम की सांस तेज हो गई थी। शीतल को भी अजीब लगने लगा की वो फोन पे विकास से ये पूछेगी की वो वसीम चाचा से चुदेगी या नहीं। हे भगवान... वो कहाँ बैठे होंगे, किसके साथ होंगे? कहीं किसी ने सुन लिया तो? कहीं उनका मूड खराब हो गया और उन्हें गुस्सा आ गया तो?

कहीं बो मना कर दिए तो? शीतल की भी धड़कन तेज हो गई थी। लेकिन विकास ने काल नहीं उठाया।

सन्नाटा था रूम में। वसीम तो कुछ नहीं बोला।

शीतल बोली- "काल तो नहीं उठाए, फिर से करें क्या?"

वसीम कुछ बोला नहीं और अपने कंधे ऊपर करता हा इशारा किया की तुम समझो क्या करना चाहिए?

शीतल फिर से डायल करने लगी लेकिन फिर रुक गई, और बोली- "अगर वो कहीं मीटिंग या किसी के साथ होंगे
और अगर किसी ने सुन लिया तो? मैं उन्हें बता चुकी हूँ और वो मुझे बोल चुके है की तुम चुदवा सकती हो। आप मेरा भरोसा कीजिए। मैं झठ नहीं बोलती। रात में वो आएंगे तब पूछ लीजिएगा..."

वसीम "ठीक है...' बोलता हुआ शीतल को गोद में उठाया और बाहर जाने लगा। उसके लण्ड के साथ धोखा हो रहा था। उसे गुस्सा आ रहा था।

शीतल भी उसे जाता देखकर हड़बड़ा गई, दौड़कर वसीम के सामने आई और बोली- "आप जा क्यों रहे हैं? रात को विकास आएंगे तो पूछ लीजिएगा। मैं खुद आपको उनसे कन्फर्म करवा दूंगी की मैं सच बोल रही हैं, उन्होंने पमिशन दी है। ट्रस्ट कीजिए मरे में..." और शीतल ने वसीम का हाथ पकड़ लिया और उसे अंदर खींचने लगी।

वसीम भला शीतल से क्या हिलता। वसीम बोला- "जब कन्फर्म करवा देना तब आना मेरे सामने..."

शीतल उसका हाथ पकड़े हुए ही बोली. "नहीं रुकिये, मैं फिर काल लगाती हैं। लेकिन आप मत जाइए."

वसीम सोफे पे बैठ गया और शीतल ने अब बिना किसी बात की परवाह किए विकास के पास काल लगा दी। शीतल की बुरी या अच्छी ये तो पता नहीं, लेकिन कि मत से विकास में फिर काल रिसीव नहीं किया। शीतल उदास नजरों से वसीम की तरफ देखने लगी की मैं क्या कर सकती हैं, अब अगर बा काल नहीं रिसीव कर रहे हैं तो? वो नहीं चाहती थी की वसीम यहाँ से जाए। वसीम जब चोदने के लिए तैयार हुआ था तो शीतल में उसका पागलपन देखा था। अब अगर वसीम उसे बिना चोदें चला गया तो पता नहीं क्या कर ले? पहले तो वो शेर के मुँह में सिर्फ खून लगाई थी, आज तो खाना सामने लाकर हटा ले रही है। \

वसीम उठने लगा।
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07-19-2021, 12:14 PM,
#47
RE: Antarvasnax शीतल का समर्पण
शीतल तुरंत क्सीम पे गिर पड़ी और उससे रुकने की मिन्नतें करने लगी- "नहीं वसीम चाचा प्लीज... मत जाइए, मेरा भरोसा करिए..."

वसीम कुछ नहीं बोला और उठकर जाने लगा।

शीतल उसे पकड़ ली और बोली- "नहीं में आपको ऐसे नहीं जाने दूँगी। अगर आप मुझे चोदना नहीं चाहते तो कोई बात नहीं, लेकिन अपना वीर्य तो गिराते जाइए...

वसीम- "उसकी कोई ज़रूरत नहीं... बोलता हुआ दरवाजे तक आ गया।

शीतल को उसके गुस्से से भी डर लग रहा था की ये मुझे तो कुछ नहीं बोल रहे, लेकिन पता नहीं गुस्से में कहीं कुछ कर ना लें। शीतल उसके सामने खड़ी हो गई, और कहा- "नहीं मैं आपको ऐसे जानें नहीं दे सकती। आपको मुझे नहीं चोदना है तो मत चोदिए। लेकिन वीर्य तो आपको गिराना ही होगा। अगर आप यहाँ से गयें तो मैं ऊपर भी आ जाऊँगी। अगर आपने दरवाजा बंद कर लिया तो मुख्य दरवाजे पे ही आपका इंतजार करती रहूंगी, वो भी नंगी। लेकिन आपको बिना वीर्य निकाले तो मैं नहीं छोड़ सकती.."

वसीम ने उसे एक हाथ में साइड किया और दरवाजा खोलने लगा। शीतल बैठकर उसके पैर पकड़ ली- "वसीम चाचा आपको मेरी कसम, पलीज... अपना वीर्य निकाल लीजिए। आपकी नजर में मेरी जो भी अहमियत हो, विकास की बीवी की, आपका भला चाहने वाले की, एक रंडी की, या एक सड़क की कुतिया की, उसका मान रखते हए वीर्य निकाल दीजिए प्लीज..."

वसीम रुक गया। वो समझ गया था की शीतल सच बोल रही है। अब कुछ घंटों की बात है जब शीतल आफीशियली मेरी रंडी होगी। और वीर्य गिराने में कोई परेशानी नहीं है, वो भी तब जब रंडी इतना जिद कर रही है। वसीम को रुकता देखकर शीतल उसकी लूँगी को नीचे खींच ली। लूँगी वसीम के पैरों में गिर पड़ी और बो नीचे से नंगा हो गया।

शीतल अपने जिश्म को वसीम के बदन से रगड़ती हई सही पोजीशन में आई और वसीम का लण्ड पकड़ ली। मुर्दै में जान आ गई और लण्ड टाइट होने लगा। शीतल लण्ड को मुँह में ली और चूसने लगी। वीर्य की खुश्बू से बो मदहोश होने लगी।

शीतल लण्ड को मुँह से निकाली और वसीम को बोली- "सोफा पे आ जाइए वसीम चाचा, वही आराम से बैठिए.."

वसीम बोला- " सोफा पे क्यों, तुम्हारे बेडरूम में ही चलते हैं. वहीं पे वीर्य निकालूँगा."

शीतल के लिए तो ये खुश होने वाली बात थी। बो खुश होकर बोली- "ही... चलिए ना, आइए.."

वसीम इसी तरह नंगे ही बेडरूम की तरफ चल पड़ा और शीतल उसके पीछे थी। शीतल को लगा की शायद वसीम चोदने के लिए तैयार हो गया है। अचानक उसकी चूत बहुत गीली हो गई। वसीम दरवाजा पे रुक गया।

शीतल पहले बेडरूम में जाती हुई बोली- "आइए ना, बैठिए ना..."

वसीम बेडरूम के अंदर घुसा तो उसकी नजर एक कोने में पड़े शीतल की पैटी ब्रा पे गई, जिसे वह उतारकर ऊपर गई थी। पता नहीं क्यों शीतल अचानक शर्मा गई और जल्दी से उसे हटाने लगी।

वसीम मश्करा उठा और बोला- "उसे छिपा क्यों रही हो?"

शीतल को भी लगा की सही बात है, इसमें क्या शर्माना और इनसे क्या शर्माना? वो अपनी झेंप मिटाते हुए पैटी ब्रा को वसीम के सामने कर दी और बोली- "नहीं, छिपा नहीं रही थी, बेड था इसलिए बस हटा रही थी..."
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07-19-2021, 12:15 PM,
#48
RE: Antarvasnax शीतल का समर्पण
शीतल को भी लगा की सही बात है, इसमें क्या शर्माना और इनसे क्या शर्माना? वो अपनी झेंप मिटाते हुए पैटी ब्रा को वसीम के सामने कर दी और बोली- "नहीं, छिपा नहीं रही थी, बेड था इसलिए बस हटा रही थी..."

वसीम ने पैंटी ब्रा उसके हाथ में ले लिया और शीतल की गर्दन के पीछे हाथ रखकर उसके होंठ चूसने लगा। शीतल गरम तो थी ही, वसीम से चिपक गई। वसीम दसरे हाथ से उसकी चूची मसलने लगा इतने जोर से तो नहीं मसल रहा था फिर भी इतना जोर तो था ही की शीतल को दर्द हो रहा था। वसीम ने होंठ चूसना बंद किया और थोड़ा झुका। वा टाप के ऊपर से चूची मसलते हुए निपल को चूसने लगा। उसकी थूक से टाप भीग रहा था। उसने शीतल को बैड में गिरा दिया और निपल को टाप के ऊपर से चूसने लगा। वसीम चूचियों का कस के मसल रहा था और निपल का भी उंगली से मसलते हुए शीतल को दर्द दे रहा था।

वसीम चैक कर रहा था की उसकी रंडी उसके लिए कितना दर्द सह सकती है? इसी हिसाब से वो अपने प्लान को आगे बढ़ाता। वसीम निपल को चूसता हुआ दाँत काटने लगा। अब शीतल के लिए दर्द बर्दास्त करना मुश्किल हो रहा था फिर भी वो आह्ह... उह्ह ... करती हुई बदन को हिला रही थी और दर्द को सह रही थी।

वसीम खुश हो गया। पहले तो दोनों निपल टाप के ऊपर से पता लग रहे थे लेकिन अब तो साफ-साफ दिख रहे थे। टाप वसीम के थक लगने से ट्रांसपेरेंट हो चका था और निपल साफ-साफ दिख रहें थे। टाप शीतल के बदन से निपल के पास चिपका हुआ था। शीतल सीधी ही लेटी हुई थी बेड पे। वसीम उठकर दोनों निपल को देखने लगा। उसे इस तरह देखता देखकर शीतल शर्मा गई।

वसीम बोला- "अगर तुम्हें ऐतराज ना हो तो क्या मैं इसकी पिक ले सकता हूँ अपने मोबाइल में.."

शीतल वसीम को किसी चीज के लिए मना नहीं करना चाहती थी। वो इतना जानती थी की जब वो वसीम चाचा की मदद करने के लिए अपना जिश्म देने के लिए तैयार है तो वो सब कुछ सहेगी। वो वसीम को सब कुछ करने देगी जो वो चाहेगा। क्योंकी मना करने की स्थिति में हो सकता है की वो रुक जाएंग

शीतल तुरंत बोली. "हाँ बिल्कुल। आप कुछ भी कर सकते हैं वसीम चाचा.."

वसीम खुश होता हुआ बाहर गया और अपना मोबाइल ले आया। उसके मोबाइल में बहुत अच्छा कैमरा तो नहीं था लेकिन फिर भी ठीक ठाक था। रूम में आते ही वो बोला- "तुम घबराओ मत, तुम्हारा चहरा नहीं लूँगा, बस इस निपल की पिक लूगा। मुझे इस तरह बिना ब्रा के ट्रांसपेरेंट कपड़े बहुत पसंद है."

शीतल तुरंत बोली. "कोई बात नहीं है, आप जैसे चाहे वैसे पिक ले सकते हैं। आप चेहरे के साथ भी पिक ले सकते हैं। टाम उतारकर भी आप पिक लीजिए मुझे कोई प्राब्लम नहीं है। मैं बोली थी ना की मैं पूरी तरह आपके लिए हैं, तो आप जो चाहे कर सकते हैं वसीम चाचा। मुझे आप पे भरोसा है.."

वसीम खुश हो गया। चेहरे की तो वो ऐसे भी लेता। अब उसके सब का बाँध टूटने ही वाला था। अब अगर विकास नहीं माना होगा तब भी वो अब इस रंडी को चोदेगा और अपनी कुतिया बनाकर चोदेगा। वसीम निपल
के ऊपर मोबाइल लाया और पिक लेने लगा। वा एक हाथ से पिक लेने लगा और एक हाथ से निपल को उमेठने लगा। फिर उसने एक निपल को टाप से बाहर निकल दिया और पूरी चूची को मसलता हुआ पिक लेने लगा।
-
शीतल गरम तो थी ही, ये पल उसे और रोमांचित करने लगा। उसका चेहरा सेक्सी सा हो गया था। वसीम अब उसके चेहरा के साथ चूची को पिक लेने लगा। उसने दोनों चूची को बाहर कर दिया और चेहरे के साथ पिक लेने लगा।
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07-19-2021, 12:24 PM,
#49
RE: Antarvasnax शीतल का समर्पण
शीतल गरम तो थी ही, ये पल उसे और रोमांचित करने लगा। उसका चेहरा सेक्सी सा हो गया था। वसीम अब उसके चेहरा के साथ चूची को पिक लेने लगा। उसने दोनों चूची को बाहर कर दिया और चेहरे के साथ पिक लेने लगा।

माँग में सिंदूर, माथे पे बिंदी, गले का मंगलसूत्र नंगी चूचियों के बीच में तो कभी निपल में फंसाकर। बड़ी-ड़ी गोल-गोल गोरी सी चचियों के बीच बाउन कलर का छोटा सा सिक्का और उसके बीच उभरे हए निपला इन पिक्स को देखकर ही लोगों के लण्ड टाइट हो जाते। वसीम ने मोबाइल रखा और शीतल की शार्टस को उतार दिया। शीतल की नंगी चिकनी चूत चमक उठी।

वसीम सोचने लगा की- "मादरचोद, ये तो चुदवाने के लिए हमेशा तैयार रहती है.. उसने शीतल के पैर को फैला दिया। शीतल की चूत पूरी तरह गीली थी तो वो शर्मा गई। वो पैर तो फैला ली लेकिन अपनी जांघों को दबाए रखने की कोशिश की, और अपने हाथों को चूत पे रख ली।

वसीम फिर से पिक लेने लगा। नंगी चूत के साथ चेहरे की भी। वसीम में शीतल को टाप उतारने बोला। शीतल पूरी तरह नंगी होकर बैंड के बीच में लेट गई। वसीम उसकी फुल पिक ले रहा था। उसने शीतल को पैर फैलाने का इशारा किया। शीतल शर्म हया छोड़कर पैर फैला दी। वसीम पिक लेता हुआ चूत के नजदीक आता जा रहा था। ज्यादातर पिक में शीतल का चेहरा आ रहा था। वसीम ने एक हाथ से चूत के छेद को फैलाया और उंगली अंदर डाल दिया। वसीम के चूत छूते ही और उंगली अंदर जाते ही शीतल का बदन हिलने लगा। वो एक हाथ से तकियं को पकड़ी और दूसरे हाथ से चूची मसलते हये कमर के ऊपर का जिश्म हिलने लगी।

शीतल चूत की गर्मी से मचल रही थी। वसीम को चूत में उंगली डालते ही एहसास हो गया था की कल भी शीतल बिना चुदे ही रह गई थीं। अभी शीतल फ्री तरह से वसीम के कंट्रोल में थी।

वसीम ने मोबाइल रख दिया और शीतल की चूत को फैलाकर जीभ की नोक से चाटने लगा। उफफ्फ... शीतल पागल होने लगी। वसीम धीरे-धीरे उसकी चूत को चूसने लगा। वसीम की जीभ का कोमल टच शीतल की चूत को पिघला रहा था। शीतल उसके सिर को अपनी चूत पे दबा ली और कमर उठा ली। उसके चूत ने पानी छोड़ दिया। पानी गिरते ही शीतल कमर को बेड पे पटक दी और जोर-जोर से सांस लेने लगी। बीम उस कामरस को पी गया। वसीम अब सीधा खड़ा हुआ और अपने लण्ड को हिलाने लगा।

शीतल अब तक सोच रही थी की आज वसीम उसे चोदने वाला है लेकिन आज फिर उसके सपने चकनाचूर हो गये, कहा- "वसीम चाचा ये क्या कर रहे हैं आप? मुझमें भरोसा कीजिए, चोद लीजिए मझे। मेरी चूत में वीर्य गिराइए प्लीज.. वसीम चाचा खुद को इतना मत तड़पाइए.." कहकर शीतल हड़बड़ा कर उठ बैठी थी, और वो वसीम का हाथ पकड़ ली।

वसीम शीतल की हालत देखकर मन ही मन मुश्कुरा रहा था। खुद को ना तड़पाना रंडी की तुझे ना तड़पाना? वो तो सोच की तेरी चूत का पानी निकाल दिया। मन तो यही था की इसी तरह जलता हुआ छोड़ दूं की तू विकास के आते ही चूत फैलाकर तैयार हो जायें। लेकिन तब पता नहीं त बया करती? कही चूत की गर्मी में पागल होकर काम ही ना खराब कर देती।

वसीम बोला- "अभी नहीं, विकास से कन्फर्म हो जाने के बाद। इतना कुछ इसलिए किया क्योंकी तुमने कसम दी थी अपनी। तुम लोग सच में बहुत महान हो। फरिश्ता हो मेरे लिए। इतना कोई नहीं करेंगा किसी अंजान के लिए। लेकिन इससे ज्यादा आज नहीं.."

शीतल नीचे बैठ गई और बोली- "जैसी आपकी मजी, लेकिन वीर्य तो मुझे निकालने दीजिए, कम से कम ये तो मेरा हक है..." और वो लण्ड चूसने लगी।

वसीम ने मोबाइल उठा लिया और पिक लेने लगा। शीतल अपना चेहरा ऊपर कर ली और लण्ड चूसते हए पिक खिंचबाने लगी। वो जितना मैंह में भर सकती थी भरकर जोर-जोर से चस रही थी। वो थकने लगी तो वसीम लण्ड को हाथ में पकड़कर जोर-जोर से हिलाने लगा। शीतल को लगा की कहीं आज भी वसीम वीर्य को जमीन पे ना गिरा दे। वो अलर्ट हो गई। वो अभी भी पूरी तरह गरम थी।

शीतल अपनी दोनों चूचियों को मसलती हुई बोली- "वसीम चाचा, वीर्य को मेरी माँग में भर दीजिए। आपका वीर्य माँग में भरने पे लगता है की मैं आपकी ही हैं, तब मुझे लगता है की मेरे जिश्म में आपका भी हक है। तब मैं खुद को पूरी तरह आपको समर्पित कर पाती हैं। अपने वीर्य को मेरी माँग में भर दीजिए वसीम चाचा, और मेरे मैंह में गिराइए। कल जब आप मुझे चोदेंगे तो वीर्य को मेरी चूत में भर दीजिएगा..."

वसीम का लण्ड वीर्य छोड़ने लगा। शीतल आँख बंद करके सिर को आगे कर दी और वसीम वीर्य को शीतल के माथे पे माँग में गिराने लगा। वीर्य माँग में भरता हुआ माथे पे बहने लगा। शीतल जो अभी बोली थी वो महसूस करने लगी। वो अपने चेहरे को ऊपर उठाई और मुह खोल दी। वसीम वीर्य को उसके मुह में भरने लगा।

आअहह... इसी टेस्ट की तो दीवानी थी शीतला वसीम ने वीर्य की आखिरी बूंद भी उसके मुँह में गिरा दिया। शीतल की आँखें बंद थी। वसीम क्या हल्का महसूस करेगा, जितना हल्का वो महसूस कर रही थी। वसीम उसकी पिक ले रहा था।
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07-19-2021, 12:24 PM,
#50
RE: Antarvasnax शीतल का समर्पण
शीतल की माँग में लाल और सफेद कलर का मिक्स लिक्विड भरा हुआ था, जिसे देखकर कोई भी कह देता की में वीर्य ही है। वीर्य मौंग से बहता हुआ सीधी रेखा में बिंदी को भिगा दिया था, और नीचं आता हुआ आँखों के बगल से होकर गाल पे बह रहा था। वसीम ने शुरू का बीर्य माथे पे गिराया था, जो बहुत ज्यादा था तो वो बहकर शीतल के परे चेहरा में फैल गया था। शीतल की ये पिक सबसे ज्यादा सेक्सी थी। वसीम ने अपने लण्ड के साथ शीतल के बौर्य से भरे चेहरा का पिक भी लिया था। 50 साल के वीर्य से भरी हुई नगी शीतल।

वसीम बाहर आ गया और अपनी लुंगी को पहनकर ऊपर अपने सम चला गया। शीतल उसी तरह बैठी, बहकर आ रहे वीर्य को चाटती हुई जन्नत का सुख भोगती रही।

वसीम ऊपर जाकर अपनी दुकान भी जा चुका था।

शीतल उसी तरह बैठी हुई थी और अपनी उंगली से चहरे पे लगे वीर्य को चाटती हुई साफ करने लगी थी। उसने आँख के पास साफ कर लिया था और अब वो आँखें खोल चुकी थी। वो उठकर आईने के सामने चली गई की वो अभी कितनी हसीन लग रही है। फुल साइज आईने के सामने खड़ी नंगी शीतल खुद को देख रही थी।

अपनी माँग में और बिंदी पे लगे वीर्य को देखकर उसे बहुत मजा आया। वो समझने लगी की वसीम भी उसका पति है और उसके जिस्म पे वसीम का भी पूरा हक है। वो अपने चेहरे पे लगे वीर्य को उंगली से फैलाकर पूरे चेहरा पे लगा ली, जैसे कोई फेसपैक लगाते हैं।

"आहह... वसीम चाचा आप कितने अच्छे हैं। इतना कुछ होने के बाद भी मुझे चोदे नहीं। लेकिन बिना चाहें भी क्या सुख देते हैं आप। उफफ्फ... चूत में जब जीभ सटाए तो लगा की जैसे करेंट मार रहा हो। चूची को और निपल को ऐसे मसले की अभी ही दूध निकल देंगे। थोड़ा और जोर से चूसते तो शायद आज ही दूध निकाल भी देते। क्या खुश्बू है आपके वीर्य की। आज ये इसी तरह मेरे चहरे पें रहेगा। विकास के आने के बाद भी। उसे ये दिखाकर बताऊँगी की आज क्या-क्या हुआ और आप मुझे कैसे चोदेंगे? वसीम चाचा आप मुझे चोदिए। जैसे चाहे चोदिए। रोकिए मत खुद को। मैं आपको किसी चीज में मना नहीं करेंगी। मैं आपकी रंडी हैं। पूरी तरह समर्पित रंडी। आप अगर निपल काटकर खून भी निकाल देंगे तब भी में आपको नहीं रोकंगी। मैं आपका वीर्य अपनी माँग में सिंदूर के साथ भरी हैं वसीम चाचा। आपकी पूरी पत्नी ना सही रंडी या गखेल तो हैं ही अब मैं। क्या हुआ जो आपने मुझे आज नहीं चोदा। कल तो आप चोदिएगा। ओहह... जो आदमी जीभ से ऐसे चोद सकता है पता नहीं लण्ड से कैसे चोदेगा? मझे तो अब चैन ही नहीं पड़ेगा जब तक आपसे चुदवा ना लें..."

.
शीतल इसी तरह नंगी और वीर्य का फेसपैक लगाए रूम से बाहर निकली तो देखी की उसके घर का दरवाजा खुला है। वो चकित हो गई की आज फिर मैं घर में नंगी हैं और मेरे घर का दरवाजा खुला है। ये तो अच्छा है की कोई नहीं आया, नहीं तो पता नहीं क्या होता? ऐसे में अगर मकसूद या उस जैसा कोई कमीना आदमी आ गया तो वसीम चाचा के चोदने से पहले वो चोद जाएगा। वो जाकर दरवाजा बंद कर ली और घर के कामों में लग गई। बो नंगी ही थी और चेहरा में लगा वीर्य का फेसपैक सख गया था।

शीतल बिजी थी जब उसका फोन बजा। विकास का काल था। पहले तो उसने पूछा- "क्यों काल की धी?"

इससे पहले की शीतल कुछ बताती वो बोला- "शाम में मेरा एक साथी अपनी बाइफ के साथ डिनर पे घर आ रहा है। तो अच्छा खाना बना लेना और अच्छे से सज संबर कर तैयार हो जाना...'

शीतल कुछ बाल भी नहीं पाई की विकास ने काल काट दिया।

शीतल का मन उदास हो गया की वीर्य को अब धाना होगा, जो उसकी माँग में है और फेसपैक जैसा लगा है। शीतल पहले घर को साफ करती हुई ठीक से अइजस्ट करने लगी। तभी उसकी नजर सोफा में रखे मोबाइल पे पड़ी। ये तो क्सीम चाचा का मोबाइल हैं। वो यहाँ कैसे छोड़कर चले गये? तभी उसे याद आया की वसीम चाचा ने उसकी पिक्स लिया है। उसका चेहरा शर्म और शरारत से भर गया।

शीतल फोन गैलरी में जाकर पिक्स देखने लगी। अपनी ही चूत और चूची को वो इस तरह कभी नहीं देखी थी। बहुत सारे पिक्स में उसके फेस एक्सप्रेशन ऐसे थे जैसे वो चुदाई के लिए पागल हो रही हो। अपनी ही नंगी पिक देखकर शीतल शर्मा गई। उसकी पिक्स उसे बहुत अच्छी लगी। सच में में उनकी रंडी बन गई हैं। कैसे अपनी ही चूची मसल रही हैं। लण्ड तो ऐसे चूस रही हैं जैसे चाकलेट आइस्क्रीम हो। खासकर माथे और चेहरे पे वीर्य में भरा हा वाला। शीतल 8-10 पिक अपने मोबाइल में ट्रांसफर कर ली।

तभी उनका मोबाइल बज उठा। दुकान लिखा हुआ आ रहा था। शीतल काल रिसीव तो कर ली लेकिन कुछ बोली नहीं। उधर से वसीम की आवाज आई. "हेलो... हेल्लू... हेलो शीतल..."

शीतल तब तक आवाज पहचान चुकी थी, बोली- "हेलो वसीम चाचा.."

वसीम- "हाँ, वसीम बोल रहा है। मेरा मोबाइल वहीं छुट गया है, उसे कुछ करना मत, आफ करके छोड़ दो। मैं रात में आऊँगा तो ले लूँगा..."

अब शीतल की शरारत बढ़ गई। वो वसीम को छेड़ने के अंदाज में बोली- "कुछ करेंगी नहीं, बस इसमें किसी की कुछ पिक्चर है वहीं देख रही हैं..."
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