Antarvasnasex मुंबई से भूसावल तक
07-01-2017, 11:36 AM,
#1
Antarvasnasex मुंबई से भूसावल तक
मुंबई से भूसावल तक--1

परेश जोशी एक 45 साल का हॅटा कटता मरद था. लंबा कद, गुलाबी गोरा रंग और
भारी मून्छे उसके व्यक्तित्व को और भी आकर्षक बनाती थी. जब वह 22 साल का
था तब उस'का प्यार एक लड़'की से हुवा था पर उस लड़'की ने अप'ने घर वालों
के दबाव में आकर घरवालों की मर्ज़ी से दूसरी जगह शादी कर ली. इस घट'ना से
परेश का दिल इत'ना टूटा की उसे औरत जात से नफ़रत हो गई. उस'ने जिंद'जी
में कभी भी शादी ना कर'ने की कसम खाली जिसे वह अब तक निभा रहा है. आज वह
एक लॅडीस गारमेंट्स बनाने की फॅक्टरी में सेल्स मॅनेजर है, अच्छी तनख़ाह
है और मौज मस्ती से रहता है.

वैसे तो इन वर्षों में कई औरतें और लड़'कियाँ उस'की जिंद'गी में आई पर वह
किसी का ना हो सका. होता भी कैसे उसे तो औरत जात से नफ़रत थी. हर औरत या
लड़'की उसे केवल वासना शांत करने का एक खिलौना जान पड़'ती. वह जो भी औरत
या लड़'की उसके बिस्तर में आती उसे बूरी तरह से जॅलील कर अप'नी घृणा
प्रदर्शित करता और उस'से बहशीपन दिखाते हुए अप'नी वासना मनचाहे ढंग से
शांत करता. उस'के इसी रवैये से बेचारी दूबारा उस'के पास भी नहीं फटक'ती
थी. पर अचानक उस'की जिंद'जी में दो औरतें और एक कम'सीन लड़'की एक साथ आ
गई. देखें परेश को उनसे प्यार होता है या ऐसे ही एक बहशी की तरह उन'से
पेश आता है.

वह सेल्स मॅनेजर था सो प्रायः टूर पर जाते रह'ता था. पर वह ज़्यादातर
प्लेन या ट्रेन में एसी क्लास में सफ़र करता था. आज परेश मुंबई सेंट्रल
स्टेशन पर आम मुसाफिरों की तरह खड़ा था जहाँ पाँव रख'ने की भी जगह नहीं
थी और किसी भी कीमत पर रिज़र्वेशन नहीं मिल रहा था. परेश जोशी रह रह के
अपने बॉस को कोष रहा था जिस'ने उसे खड़े पाँव भूसावल जाने का हुक्म दे
दिया था.पर आज की भीड़ देख के उस'के हौस'ले पस्त होने लगे. त्योहारों का
मौसम था और स्टेशन पर ज़रूरत से ज़्यादा भीड़ थी. परेश ने रिज़र्वेशन
ऑफीस में बहुत कोशीष की कि उसे किसी तरह एक सीट मिल जाय पर हर कोशीष
नाकाम'याब रही. ट्रेन के आने में अभी देर थी और वह स्टेशन पर एक जगह खड़ा
ट्रेन का इंत'ज़ार कर रहा था.

परेश जहाँ जनरल बुगी ठहर'ती है वहीं खड़ा ट्रेन के आने का इंत'ज़ार कर
रहा था. तभी उस'के पास एक 17 साल की मस्त जवान लड़'की एक बुड्ढे के साथ
आकर खड़ी हो गई' शायद उसे भी इसी ट्रेन से कहीं जाना था. ट्रेन के आने
में अभी भी लग'भग 45 मिनिट्स की देरी थी. तभी परेश का ध्यान उस लड़'की की
तरफ चला गया. वह 5'5" की तीखे नाक नक्श की बिल्कुल गोरी एक आकर्षक लड़'की
थी. कमर पत'ली पर स्तन और नितंब भारी थे. मनचले भीड़ का फाय'दा उठा कर
आते जाते उस'की मस्त गान्ड पर अप'ने हाथ ब्रश कर'ते चले जाते पर वह
लड़'की इन सब की परवाह नहीं करते हुए शांत खड़ी थी. शायद मुंबई में रह कर
वह इन सब की आदी थी और शायद नौक'री पेशा लड़'की थी.

उस लड़'की ने क्रीम कलर की कमीज़ और मॅचिंग सलवार पहन रखी थी. तंग सलवार
कमीज़ उस'के बदन के कटाव और उभार साफ दिखा रही थी. परेश पिच्छ'ले 10
मिनिट से उसी लड़'की को निहारे जा रहा था और इस बीच 3 - 4 लोग उसके भारी
नितंबो को छ्छूते हुए चले गये. पर परेश ने देखा कि उस लड़'की ने लोगों की
इस हरक़त पर कोई ध्यान नहीं दिया. वह लड़'की आप'ने साथ आए बुड्ढे से
बातें कर रही थी और तभी वह बुड्ढ़ा एक टीटी को देख कर उस'की और लॅप'का.
अब वह लड़'की अकेली खड़ी थी और परेश ठीक उसके पिछे आ कर खड़ा हो गया और
एक हाथ की हथेली उस'की गान्ड पर रख दी. तभी उस लड़'की ने पिछे मूड के
देखा और परेश बोल पड़ा,

"ऑफ आज तो बड़ी भीड़ है, शायद तुम्हें भी इसी ट्रेन से कहीं जाना है?
कुच्छ तक़लीफ़ तो नहीं ना तुमको बेटी? अरे आरामसे खड़ी रहो, बहुत भीड़
है, संभलके खड़ी रहो मेरे पास, ठीक है?" तब उस लड़'की ने कहा,

"आप कहाँ जा रहे हैं? परेश ने अप'नी हथेली उसी तरह उस लड़'की की गान्ड पर
जमाए रखी और कहा,

"मैं भूसावल जा रहा हूँ. तू चाहे तो मेरे साथ चल. मैं अपने बैठ्ने के लिए
कुच्छ इंतज़ाम करूँगा. तू रहेगी मेरे साथ तो बातें करते चलेंगे? वैसे
मेरा नाम परेश है, तेरा नाम क्या है? वैसे वह बुड्ढ़ा कौन है तेरे साथ
बेटी?"

"अरे अंकल, मुझे भी भूसावल तक ही जाना है. मैं यहाँ अपने मामा के घर आई
थी, नानाजी मुझे ट्रेन मैं बैठाने आए हैं. अब रिज़र्वेशन नहीं है इसलिए
इस जनरल बुगी मैं बैठ्ने रुकी हूँ. मेरा नाम सुरभि मिश्रा है. देखो अगर
नानाजी मेरे लिए सीट लाए तो मैं वहाँ बैठुन्गि नहीं तो आपके साथ
बैठुन्गि. "

"अरे यह तो बहुत ही अच्छी बात है. तुम्हारे जैसी मस्त लड़'की ट्रेन में
साथ रहेगी तो इस भीड़ में भी मज़ा आएगा. यह कह'ते हुए परेश ने सुरभि की
गान्ड की दरार में अंगुल चला दी. सुरभि चिहुन्क के रह गई पर बोली कुच्छ
नहीं. तभी परेश ने सुरभि के नाना को वापस आते देखा और बोला,

"देख सुरभि, तेरा नाना आ रहा है. सीट मिली होगी तो मैं तेरे साथ आउन्गा
नहीं तो तू मेरे साथ आजाना. नाना ने आके बताया कि कोई सीट नहीं मिली है
यह सुन परेश खुश हो गया. तभी परेश ने एक कुली से बात की तो कुली ने बताया
कि 500/- लगेंगे और दो जनों की बैठ'ने की वह व्यवस्था कर देगा. परेश ने
किसी तरह 400/- में सौदा पटाया और अप'ने पर्स से 400/- निकाल'के कुली को
दे दिए. सुरभि के नानाजी तुरंत अप'ने पॉकेट से 200/- निकाल'के परेश को
देने लगे तो परेश बोला,

अरे आप यह क्या कर रहे हैं. सुरभि तो मेरी बिटिय जैसी है. आप बिल्कुल
फ़िक़र नहीं करें. मुझे भी भूसावल जाना है और सुरभि बिटिया को आराम से
इसके घर पाहूंचा देंगे. सुरभे और उसके नानाने आँखों से क्रितग्यता प्रकट
की और तभी ट्रेन धीरे धीरे प्लॅटफॉर्म के अंदर आने लगी. तभी वह कुली आ
गया और उस'ने परेश और सुरभि का सामान उठ लिया और एक भीड़ भरे डब्बे में
चढ गया. वह डिब्बे के बाथरूम के साम'ने जाके रुका और दरवाजा ठक'ठकाया तो
उस'के भीतर बैठे एक साथी ने दरवाजा खोला. कुली ने दोनों का सामान वहाँ रख
दिया और वापस जाने के लिए जैसे ही मुड़ा परेश ने उसे पकड़ लिया और पूचछा,

अबे भोस'डी के सीट कहाँ है. कुली ने कहा,

"साहब यह सीट मतलब बुगी का टाय्लेट है. इतनी भीड़ मैं कोई भी पेशाब करने
नहीं आता. साहब आप यहीं बैठिये. भूसावल तो क्या 9-10 घंटे का ट्रिप है.
सुबह आप उतर जाओगे. बोलो, देदु यह जगह आप'को? वैसे अभी एक मिया-बीवी ने
दूसरा टाय्लेट लिया है 700 मैं. यह कह कुली तो चल'ता बना. परेश बूरी तरह
से बौख'लाया हुवा था और सुरभि से बोला,

"बेटी, अब तो लग'ता है यहीं रात गुज़ार'नी होगी. ऐसा करते हैं हम अंदर से
दरवाजा बंद कर लेते हैं और चाहे कोई भी कितना भी बजाए दरवाजा नहीं
खोलेंगे. यह कह परेश ने अंदर से दरवाजा बंद कर लिया. परेश के पास भी एक
सूटकेस था और सुरभि के पास भी एक सूटकेस. उस'ने दोनों सूटकेस बाथरूम की
दीवार से सटा के लगा दिए और सुरभि को उनपर बैठा दिया, खुद वेस्टर्न
स्टाइल की टाय्लेट की सीट पर ही बैठ गया. आदमी की ज़रूरत किसी भी
परिस्थिति में अप'ना रास्ता ढून्ढ लेती है. जैसे ही एकांत मिला, परेश का
दिमाग़ सुरभि के बारे में सोच'ने लगा. सुरभि उस'की बेटी की उमर की कच्ची
कली थी. वह सोच'ने लगा कि यह लड़'की इस भीड़ भरी ट्रेन में ज़रा भी विरोध
नहीं करेगी और भूसावल तक उसे मन'मानी कर'ने देगी. साथ ही उस'का बहशीपन भी
जाग'ने लगा.

सुरभि मुझे तो यह भीड़ देख के पेशाब लग गई. परेश कमोड के साम'ने खड़ा हो
गया और ज़िप खोली और अंडरवेर से 8' लंबा लंड निकाल लिया और सुरभि के
साम'ने ही मूत'ने लगा. सुरभि आँखे फाड़ कर परेश अंकल का लंड देख रही थी.
ज़िंदगी मैं पह'ली बार वह लंड देख रही थी. परेश का वह तग'डा मोटा लंड
देखके सुरभि शरमाई पर फिर भी नज़र लंड से नहीं हट पायी. ऐसा नंगा लंड
देखके सुरभि का जिस्म अपने आप गरम होने लगा. उस'ने चुदाई की बातें सुनी
तो थी लेकिन कभी लंड नहीं देखा था. वा परेश के लंड से बह रही पेशाब की
धार देख रही थी. परेश अपना लंड मूठ मैं पकड़के मूत रहा था. सुरभि के
साम'ने अपना लंड बेशर्मी से मसल्ते परेश बोला,

"अरे बेटी, तू तो मुझे मूत'ते हुए बड़े ध्यान से देख रही थी. पह'ले कभी
किसी को मूत'ते हुए नहीं देखा है क्या? अब तो रात यहीं गुज़ार'नी है
इस'लिए सारे काम यहीं कर'ने पड़ेंगे. मुझे मूत'ते देख तुम्हें भी पेशाब
लगी हो तो कर'लो. परेश की बात सुनके सुरभि कुच्छ नहीं बोली, तब परेश
सुरभि को उठ कर खुद सूट्केसो पर बैठ गया और उस'से बोला,

"अरे, सलवार नीचे करके कमोड पे बैठ जा और च्चरर च्चरर कर'के मूत ले. मैं
जैसा तेरे साम'ने मूत रहा था तू भी मेरे साम'ने मूत. " सुरभि शरमाते हुए
कमीज़ उप्पर करके, सलवार और चड्डी नीचे करके कमोड पर बैठ गई. कुच्छ ही
देर में परेश के कानों में सुर सुर की आवाज़ पड़ी जिसे सुन वह और मस्त हो
गया. सुरभि का मूत'ना जैसे ही ख़तम हुवा परेश वेस्टर्न कमोड पे बैठ गया
और सुरभि का हाथ पकड़ के उसे अप'नी गोद में बैठा लिया.

"अब हमें कोई डिस्टर्ब नहीं करेगा, कोई दरवाज़ा बजाएगा तो मदेर्चोद की मा
चोद दूँगा. अब तू आरामसे अपने परेश चाचा की गोद में बैठी रह." परेश की
गंदी ज़ुबान सुन'के सुरभि कुच्छ उत्तेजित भी हो रही थी और उसे अब कुच्छ
कुच्छ इस अज़ान'बी चाचा से डर भी लग'ने लग गया था. फिर भी अप'ने को
नॉर्मल कर'ती हुई बोली,

"चाचा, यह क्या हम पूरे सफ़र टाय्लेट मैं बैठेन्गे क्या?" सुरभि की
चूचियों से खेलते हुए परेश बोला,

"और नहीं तो क्या? अरे इस भीड़ मैं यही एक जगह है जहाँ हमें कोई डिस्टर्ब
नहीं करेगा. तुम भी इस जर्नी को सारी जिंद'गी याद रखोगी. सुर'भी, तुम तो
पूरी जवान हो गई हो. कभी जवानी का मज़ा लिया या नहीं?

छ्ची! चाचा आप कैसी बातें कर रहे हैं. परेश ने अब सुरभि के एक मुम्मा
अप'ने हाथ में ले लिया था और बोला,

तुम्हारे मम्मे तो पूरी जवान लड़'की जैसे बड़े बड़े हैं. आज तो मज़ा
आजाएगा. देखो, आज रात भर मैं तुझे बहुत मज़ा दूँगा मेरी सुरभि जान और
तुझे सुबह तक लड़'की से औरत बना दूँगा समझी?"यार परेश के मुँह से यह सब
बातें सुनके सुरभि पूरी तरह शरमाई. वह अब समझ चुकी थी की परेश चाचा ने
जान बूझके यह जगह चुनी है जहाँ वह उसकी जवानी के साथ खेल सके. ऐसा नहीं
था कि सुरभि यह नहीं चाहती थी लेकिन एक अजनबी के साथ वा पह'ली बार अकेली
रहनेवाली थी रात भर और वह अजनबी उसके साथ क्या करना चाहता है यह उसे
मालूम था. सुरभि परेश से पह'ले ही कुच्छ डरी हुई थी पर इस भीऱ भरी ट्रेन
में वह परेश से दूर भी नहीं होना चाहती थी. सुरभि के चहेरे पे कुच्छ दर
देखके परेश उसके स्तन मसल्ते बोलता है,

"अरे तू क्यों डरती है जान? तू भूसावल तक मेरी अमानत है, बोल है ना?" अब
और शरम से सुरभि ने परेश को देखके हां मैं सिर हिलाया. इतने वक़्त से
परेश से अपना जिस्म मसल'वाके, टाय्लेट मैं एक मर्द की गोद में बैठ'के वह
जवान लौंडिया एक'दम गर्म हो गई थी. वह आज इस अजनबी चाचा के हाथो अपनी
जवानी लूटने तैयार थी.

ट्रेन ने अब रफ़्तार पकड़ ली थी. टाय्लेट के बाहर बहुत शोर मचा था. सब
लोग भीड़ मैं अपने लिए जगह बना रहे थे. यहाँ परेश, सुरभि के जिस्म को
हौले-हौले मसल्ते उसे चूम'ने लगा. सुरभि भी आहे भरते उसका साथ दे रही थी.
जैसे ट्रेन ने स्पीड पकड़ी, परेश खड़ा हुआ और अपनी पॅंट शर्ट उतारी.
अंडरवेर से अपना मोटा लंबा लॉडा सह'लाते परेश बोला,
क्रमशः...........
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07-01-2017, 11:36 AM,
#2
RE: Antarvasnasex मुंबई से भूसावल तक
मुंबई से भूसावल तक--2

गतान्क से आगे.......
"चल मेरी सुरभि जान, अब तू भी नंगी हो जा. जो जिस्म अब तक कपड़ो के उप्पर
से मसल रहा था उसे अब नंगा देखने का जी कर रहा है. तुझे ऐसा मज़ा दूँगा
कि तू दुनिया भूल जाएगी मेरी जान. चल सलवार कमीज़ उतार तेरी. " पूरी
रोशनी मैं परेश को नंगा देखके पह'ले तो सुरभि हक्का-बक्का रह गयी. उसका
मोटा लंड वह देखती ही रही. यही वह लंड था जो ट्रेन मैं चढ़ते वक़्त उसकी
गान्ड पे रगड़ रहा था. ज़िंदगी मैं पह'ली बार सुरभि असली मर्द का लंड देख
रही थी. वह लंड को देखने मैं इतनी खो गयी कि अचानक उसे परेश का हाथ अप'नी
कमर पे महसूस हुआ. परेश उसकी सलवार का नाडा खोल रहा था.

नाडा खोलके परेश ने उसकी सलवार नीचे खींची और उसे अपनी कमीज़ उतारने को
कहा. सुरभि ने धीरे से अपनी कमीज़ उठा के उसे निकाल दिया. लड़'की के सीने
पे वह छोटे कड़क स्तन देख परेश से रहा नहीं गया. सुरभि की कमर मैं हाथ
डालके उसे पास खींचते परेश बारी-बारी उसके स्तन चूमने लगा. स्तन चुम्के
फिर जीभ से उसे चाटने लगा. जब परेश सुरभि के निपल्स को चाटने लगा तो
सुरभि ज़ोरो से सिसकारिया भरते अपना सीना परेश के मुँह पे दबाने लगी.
अच्छे से सुरभि के निपल को चाट्के परेश उंगलियो से उनसे खेलते बोला,
"यह बता मेरी जान, नीचे तूने ब्रा क्यों नहीं पहनी?" शरम से परेश को
देखते सुरभि बोली,

"मैने मा को ब्रा देने के लिए बोला तो वह बोल रही थी कि अगले महीने से
ब्रा लाएँगे मेरे लिए. वह भी बोली की सुरभि अब तू इतनी बड़ी हो गयी है कि
तुम अब ब्रा पहना करो. " सुरभि के जिस्म पे अब सिर्फ़ ब्लॅक पॅंटी थी.
उसका पूरा जिस्म निहारते परेश वह जिस्म मसल्ते बोला,

"हां वह तो है, अब तेरा जिस्म पूरा भरने लगा है सुरभि. वैसे तेरी जैसी
कमसिन लड़'की को ब्रा नहीं पहनानी चाहिए. तुम ब्रा नहीं पहनोगि तो हम
जैसे मर्दों की नज़र तुमपे आएगी और हमारे से चुदवाने के बाद तुम्हारी
ज़िंदगी बनेगी. बेटी तुझे मैं ब्रा पॅंटी दूँगा. मेरा ब्रा पॅंटी का ही
धंधा है. आज रात तुझे जवानी का मज़ा दूँगा और फिर ब्रा पॅंटी दूँगा. वैसे
तेरी मा का नाम और उमर क्या है?" अपना जिस्म परेश के हाथो मसल'वाते सुरभि
बोली,

"मेरी मा का नाम विभा देवी है और वह 42 साल की है. परेश चाचा क्यों नहीं
पहनना चाहिए ब्रा हम लड़'कियों को? अब बोलते हो ब्रा पॅंटी नहीं पहननी
चाहिए हमें और फिर ब्रा पॅंटी देने की बात भी करते हो, वह क्यों?" परेश
ने सुरभि की चड्डी नीचे खींचते उसको पूरी नंगी किया. काली झांतों से भरी
गीली चूत देखके वह बड़ा खुश हुआ. उंगली से उसकी चूत सह'लाते उसने 2-3 बार
सुरभि की चूत चूम ली. फिर एक उंगली आहिस्ता से सुरभि की अनचुड़ी चूत मैं
घुसाते वह बोला,

"तेरी जैसी कमसिन लड़'की को तुम्हारी मा ब्रा पहनने नहीं देती जब तक कि
तुम्हारे स्तन बड़े नहीं होते. मेरे साम'ने बिना ब्रा पॅंटी के रह तू
बेटी, बस दुनिया के बाकी मर्दों के साम'ने ब्रा पॅंटी पहनने को बोल रहा
हूँ. बोल आजतक कोई मर्द खेला था क्या तुझसे सुरभि?" बेशरम होके अपनी कमर
परेश के मुँह के पास दबाते सुरभि बोली,

"नहीं, कोई नहीं खेला आज तक मेरे बदन के साथ तुम्हारे जैसा. तुम तो एक'दम
अच्छे हो परेश चाचा. " टाय्लेट मैं दोनों मदरजात नंगे थे. ट्रेन अब पूरी
रफ़्तार से चल रही थी. एंजिन ड्राइवर जैसे बार-बार हॉर्न बजा रहा था ठीक
वैसे ही परेश उसके स्तन दबा रहा था, मानो वह ट्रेन का हॉर्न हो. सुरभि भी
हवस से भरा अपना जिस्म उस अजनबी से मसल'वा रही थी. अच्छे से स्तन मसलके
परेश ने WC पे बैठके सुरभि को नीचे बैठके लंड उसके चहेरे पे घुमा के
होन्ठ पे रख दिया. सुरभि को बहुत शर्म आई जब परेश उसके मुँह पे अपना मोटा
लंड रगदके मुस्कुराते हुए उसके होन्ठ पे बार-बार घुमाने लगता है. उसे वह
किताब की पिक्चर याद आई जो उसकी सहेली ने दी थी जिसमे यह लॉडा चूसना
दिखाया था. अपना लंड सुरभि के होंठों पे रगड़ते और सुरभि के स्तन मसल्ते
परेश बोला,

"तुझे अच्च्छा लगा ना मेरा तेरे जिस्म से खेलना सुरभि? आज तुझे चोद के
मेरी रान्ड बनाउन्गा तुझे समझी? तुम्हारा परेश चाचा बहुत तबीयत वाला
आद'मी है. तुम्हारे जैसी कच्ची काली का खाश शौकीन है वह. चल मुँह खोल और
अपने परेश चाचा का लॉडा चूस. " सुरभि परेश के लंड को हाथ मैं लेके मसल्ते
बोली,

"हां परेश चाचा मुझे अच्च्छा लगा जब तुम मेरे जिस्म से खेलते हो. मुझे
नहीं मालूम मेरी सहेलिया भी किसी के साथ करती है या नहीं पर आज मैं
तुम्हारे साथ सब करूँगी. " इतना बोलके सुरभि मुँह खोले परेश का लंड चाटने
लगी. लॉड का चिकना रस उसे पह'ले कसेला तो लगा पर बिना कुच्छ बोले वा परेश
का लंड चाटने लगी. एक दो बार लंड चाट्के सुरभि ने लंड का सूपड़ा मुँह मैं
लिया और उसे चूसने लगी. जैसे ही सुरभि परेश का लंड चूसने लगी, टाय्लेट के
दरवाज़े पे क़िस्सी ने बाहर से दस्तक लगाई. एक दो बार दस्तक सुनके परेश
को बड़ा गुस्सा आया. सुरभि तो डर के मारे कुच्छ बोल ही नहीं पाई. अपना
नन्गपन च्छुपाने वह उठि और नीचे पड़ी कमीज़ उठाके पहनने लगी. परेश ने
उस'से कमीज़ ली और उसे चुप रहने बोला. फिर उसने पॅंट शर्ट पहनते सुरभि को
डोर के पिछे नंगी खड़ी करके आधा दरवाज़ा खोला. एक 20-22 साल का मर्द वहाँ
खड़ा था. ज़रा गुस्से से वह बोला,

"अरे भाई साहब, कितना समय ले रहे हो आप? मैं 15 मिनिट से खड़ा हूँ यहाँ.
" परेश का चहेरा गुस्से से लाल हो उठा. उस'ने उस आदमी को जलती नज़र से
देखके कहा,

"तेरी मा की चूत, मदेर्चोद हरामी लॉड, इस भीड़ मैं तुझे क्या मूत'ने की
पड़ी है? साले मैने पैसे देके रात भर के लिए यह टाय्लेट मेरी बेटी और
मेरे लिए बुक की है. फिर अगर तूने या किसी ने दस्तक दी तो बाहर आके गान्ड
मारूँगा उसकी. बहन्चोदो, इधर बैठ्ने को जगह नहीं और मूत'ने की पड़ी है
तुमको. और हां मूत'ना है हरामी तो जाके तेरी मा की चूत मैं मूत. " वह
आदमी और पॅसेज मैं बैठे बाकी पॅसेंजर परेश की गंदी गाली, उसका गुस्से से
लाल हुआ चहेरा और उँची आवाज़ मैं दी गयी धमकी से इतने डर गये की कोई
कुच्छ नहीं बोला. यह देखके पेशाब करने आया आदमी भी वहाँ से चला गया.

परेश को यकीन हुआ कि अगर कोई टाय्लेट इस्तेमाल करने आया भी तो बाहर के
लोग उसे परेश की धमकी बताके टाय्लेट पे दस्तक देने से रोकेंगे. सब लोगो
की तरफ एक बार गुस्से से देखके परेश ने दरवाज़ा बंद किया. वहाँ डोर के
पिछे सुरभि डर से नंगी ही खड़ी थी. फिर एक बार परेश का वह रूप देखके और
गालियाँ सुनके वह बहुत घबराई हुई थी. लेकिन एक ही पल मैं उस नंगी कमसिन
सुरभि को देखके परेश के चहेरा खिल गया और गुस्सा गायब हो गया.

नंगी सुरभि को बाँहों मैं लेके वह उस'का जिस्म मसल्ने लगा. थोडा समय
जिस्म मसल्ने से सुरभि भी डर भूल गयी और फिर उसके जिस्म मैं वासना भरने
लगी. सुरभि फिर जोश मैं आई तो वह खुद कमोड पे बैठ और सुरभि को नीचे बैठके
अपना लंड उसके मुँह मैं डाला. सुरभि अब ज़रा बराबर होके परेश का लंड
चूसने लगी. परेश आँखे बंद करके अपना लंड चूस्वाके मज़ा ले रहा था. एक हाथ
सुरभि की बालो मैं घूमाते दूसरे हाथ से सुरभि के निपल्स से खेलते,
हौले-हौले अपने लंड से सुरभि का मुँह चोद्ते बोला,

"आह ऐसे ही चूस्ति रहो, और मुँह खोल, मेरा लंड और अंदर लेके उसे चाट्के
चूस और मेरी गोतिया भी सह'ला जान, तुझे छिनाल बनाने मैं मज़ा आएगा. आज
तुझे खूब चोदुन्गा. अच्च्छा है ना मेरा लॉडा सुरभि?" परेश के मुँह से
छिनाल बनाने की बात सुनके सुरभि को खराब लगता है. वह परेश का लुन्ड मुहसे
निकालके उसे सह'लाते बोलती है,

"एक बात बताओ परेश चाचा, आप मुझे यह इतनी गंदी गालियाँ क्यों दे रहे हो?"
अपना लंड सुरभि के खुले मुँह मैं घुसाते परेश फिर उसके मम्मो से खेलते
बोला,

"क्योंकि तू मेरी रांड़ है. तेरी जैसी 3 कमसिन चूतो को मैने मेरी रान्ड
बनाया है सुरभि, तुझे अच्छा लगेगा ना मेरी रखैल बनके?" परेश चाचा से अपने
निपल्स सह'लाने से सुरभि को बड़ा अच्च्छा लगता है. वह ज़्यादा से ज़्यादा
लंड चूसने लगती है. जब परेश ज़रा ज़ोर्से निपल्स से खेलता था तब उसे दर्द
होता था और वह हल्की सी आवाज़ भी करती लेकिन फिर भी उसका मन नहीं हुआ की
परेश चाचा से दूर हो जाए. सुरभि एक गुलाम जैसे परेश का हर कहा मान रही
थी. परेश अपना लंड सुरभि के मुँह से निकालके उप्पर करते सुरभि का मुँह
अपनी गोटियो पे दबाता है. उन गोटियो की पसीने की बास सुरभि सूंघति है. वह
हल्के से गोतिया चाट्के बोलती है,

"चाचा अब वह 3 लड़'किया कहाँ है?" अपनी गोतिया सुरभि को चॅट'वाते परेश बोला,

"वह है मेरे शहर मैं और जब मैं बुलाता हूँ तो आती है. अभी एक दोस्त के
जनम दिन दिन पे उनमे से 2 लड़'कियो को मैने मेरे दोस्तो के साथ खूब चोदा
था. पूरे 2 दिन उनको चोदा और फिर पैसे भी दिए थे. तुझे भी बहुत पैसे
दूँगा, बनेगी ना तू मेरे इस लॉड की रांड़?" दोस्तो से चुदवाने की बात
सुनके सुरभि घबराते हुए बोली

"नहीं मुझे सिर्फ़ आपकी बनना है. आप जो भी कहेंगे मैं करूँगी चाचा. "
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07-01-2017, 11:36 AM,
#3
RE: Antarvasnasex मुंबई से भूसावल तक
इतना बोलके सुरभि फिर बारी-बारी से परेश की गोतिया चूसने लगती है. इस
लड़'की के मुँह से वह बात सुनके परेश बड़ा खुश हुआ. झुकके सुरभि के निपल
से खेलते वह बोला,

"ठीक है जान तू सिर्फ़ मेरी रंडी बनेगी, मैं तुझे मेरी स्पेशल रखैल बनाके
रखूँगा पर अब तुझे अपने बदन पर किसी भी मर्द का हाथ नहीं लग'ने देना होगा
समझी? तू सिर्फ़ परेश की रखैल है समझी? आह ऐसे ही गोतिया चूस मेरी कमसिन
रंडी, आज तुझे जन्नत दूँगा. " परेश की गोतिया चूस्के सुरभि फिर उसका लंड
चूसना शुरू करते बोली,

"हां मैं क़िस्सी को भी अपना जिस्म टच नहीं करने दूँगी परेश चाचा." परेश
सुरभि को उठाके अपनी नंगी जाँघ पे बैठा उसके मम्मो से खेलने लगता है.
सुरभि को परेश का लंड अपनी नंगी जांघों मैं महसूस होता है. सुरभि का एक
मम्मा मसल्ते और दूसरा चाट्के परेश बोला,

"मेरा लंड इतना अच्च्छा चूसा है तूने तो अब उतनी ही तेरी चुदाई मस्त
करूँगा सुरभि रान्ड. आज तेरी चूत को चोद्के उसपे इस लॉड का ठप्पा लगा
दूँगा. " एक सेक्सी अंगड़ाई लेते सुरभि परेश का लंड अपने पैरो के बीच हाथ
डालके पकड़ते बोली,

"नहीं छ्छूने दूँगी मैं अपना जिस्म किसी को भी परेश चाचा क्योंकि अब मैं
सिर्फ़ आप की हूँ. पर परेश चाचा यह आप चोदने का क्या बोल रहे हो? अभी जो
हम कर रहे थे उसे क्या बोलते है फिर?"

बेटी जब मेरा यह लंड तेरी इस चूत (यहाँ परेश सुरभि की चूत मैं उंगली
घुसाता है) घुसके तेरी चूत का परदा फाऱ्के अंदर-बाहर होगा तब तेरी चुदाई
होगी. पह'ले तेरी चूत चोदुन्गा और फिर तेरी यह मस्त गान्ड मारके तुझे
मेरी रखैल बनाके रखूँगा बहन्चोद. हम तेरी जैसी कमसिन लड़'की को शादी के
पह'ले ही चोद्के सुहागरात का मज़ा देते है. अभी जो तूने मेरा लंड चूसा वह
तो सिर्फ़ खेल की शुरूवात थी, रांड़ अब तुझे चोदुन्गा तो देख'ना इतना
मज़ा आएगा, बोल सुरभि तू अब चुदेगि ना तेरे इस परेश चाचा से?" परेश सुरभि
का पूरा जिस्म मसल्ते यह गालियाँ इतने प्यार से दे रहा था कि सुरभि को
ज़रा भी बुरा नहीं लगा . सुरभि बल्कि मस्ती से परेश के साथ वह सब कर रही
थी जो परेश कह रहा था. परेश का मोटा लंड पकड़के अब सुरभि बोली,
क्रमशः...........
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07-01-2017, 11:36 AM,
#4
RE: Antarvasnasex मुंबई से भूसावल तक
मुंबई से भूसावल तक--3

गतान्क से आगे.......
"ओओह मा, नही परेश चाचा यह तो बहुत मोटा है, कैसे जाएगा मेरे अंदर? मुझे
तो डर लग रहा है. जब आपने प्लॅटफॉर्म पे मुझे मसला तो मुझे नहीं पता था
कि बात यहाँ तक आएगी. नहीं नहीं चाचा आप वह अंदर डालने की बात मत करो,
बहुत दर्द होगा, यह इतना बड़ा मेरे अंदर कैसे जाएगा?" सुरभि को खड़ी करते
परेश ने उसकी चूत उंगलियो से फैलाते हुए झुकके चाटने लगा. इस नये प्यार
से सुरभि बहाल होते सिसकारिया भरते परेश का मुँह अप'नी चूत पे दबाने लगी.
परेश पूरी जीभ चूत मैं घुसाके चाटने लगा. सुरभि की चूत का पानी वह बड़े
टेस्ट से पी रहा था. सुरभि की चूत चाट्के उसे और गरम करते परेश बोला,

"अरे डरो नहीं, पह'ले दर्द होगा बाद मैं मस्ती से चुदवाना शुरू करेगी
समझी? मैने तेरी जैसी 3 लड़'कियो को चोदा है जो पह'ले ना-ना कर रही थी
लेकिन एक बार लंड चूत मैं लेने के बाद गान्ड उठा-उठाके चुदवाने लगी. रही
बात प्लॅटफॉर्म की तो सुरभि रान्ड तेरी मा तुझे ब्रा नहीं पहनती तो तेरे
स्तन उच्छल रहे थे, प्लॅटफॉर्म पे 3-4 मर्दों ने तुझे च्छुवा तो भी तू
कुच्छ नहीं बोली और इस टाइट सिल्क सलवार मैं तेरी गान्ड मटक रही थी इसलिए
मेरी नज़र तुझपे गयी, इसका मतलब तूने ही मुझे ललचाया ना? बोल सही है ना
मेरी रांड़?"

इस बार परेश ज़रा ज़ोर्से सुरभि के निपल मसलता है क्योंकि उसे मालूम है
की ट्रेन की आवाज़ मैं सुरभि की चीख कोई नहीं सुन सकता. सुरभि ज़ोर्से
चीखी लेकिन इतनी भी ज़ोर्से नहीं कि आवाज़ टाय्लेट के बाहर जाए. परेश
चाचा के हाथ अपने मम्मो पे दबाते वह बोली,

"आ उही मा छ्चोड़ दो. कितने ज़ोरो से दबा रहे हो? दर्द होता है ना चाचा.
आप ज़रूर झूट बोल रहे हैं कि आपने 3 लड़'कियो को चोदा है. मुझे नहीं
करवाना कुच्छ भी, देखो परेश चाचा मुझे छोडो मुझे जाने दो. " सुरभि के
मुँह से उसे जाने देने की बात सुनके परेश ज़रा गुस्से से उसका एक मम्मा
चूस्ते, दूसरा बेरहमी से मसल्ते चूत मैं उंगली डालते बोलता है,

"हां छोड़ दूँगा, पह'ले मस्ती तो करने दे. साली नाटक मत कर, इतना गरम
किया मुझे तो क्या अब मूठ मारु रान्ड? तेरी मा की चूत एक तो लंड गर्म
करती है और फिर नाटक करती है. साली तेरी मा भी हरामी है तभी तेरी जैसी
जवान बेटी को बिना ब्रा के भेजती है, वह भी क़िस्सी की रांड़ होगी, है
ना? देख सुरभि अब कुच्छ भी हो, तुझे बिना चोदे जाने तो नहीं दूँगा, चाहे
जो हो जाए. " सुरभि के स्तन और बेरहमी से मसल्ते परेश उसको घुमा के WC पे
कुतिया जैसे झुकाके लंड पिछे से उसकी चूत पे रखते रगड़ने लगता है. बेचारी
सुरभि रोने लगती है. परेश मे आए इस चेंज से डरके वह रोते-रोते कहती है,

"नाहहीी-2 ऐसा मत करो परेश आहह ओह्ह नही, प्ल्ज़्ज़ मत मारो और मेरी मा
को गाली मत दो. उसको क्या मालूम था कि आप मुझे मिलोगे और मेरे साथ ट्रेन
मैं ऐसा करोगे, आ छोड़ दो. " सुरभि यह बोलती तो है लेकिन जैसे ही परेश का
लंड उसे अपनी चूत पे महसूस होता है उसे बहुत अच्च्छा लगता है. उसकी चूत
मचलने लगती है और वह महसूस करती है की उसके निपल कड़क हो गये हैं.

परेश के बहशीपान को जगाने के लिए सुरभि की यह बात काफ़ी थी. उस'ने अप'ना
लंड खींच लिया और सुरभि की उभरी गान्ड पर तीन चार कस'के तमाचे लगाए और
बोला,

"मदरचोड़ सिर्फ़ परेश बोलती है रांड़? तेरी मा की चूत तुझे और तेरी मा को
और गालियाँ दूँगा, क्या उखाडेगी मेरी रंडी? बहन्चोद तेरी मा ने तुझे ढंग
के कपड़े पहनाए होते तो ना मेरी नज़र तुझपे पड़ती और ना मैं तुझे चोदने
यहाँ लाता, है ना? बोल है ना तेरी मा हरामी सुरभि?" परेश सुरभि की कमर
पकड़के लंड उसकी चूत पे रगड़ते ज़रा सा दबाता है. उस'के लंड का सूपड़ा अब
सुरभि की चूत को खोल चुका है. इससे सुरभि को दर्द होता है और वह तड़पति
है. उसकी सासे अटक जाती है. ज़िंदगी मैं पह'ली बार चूत मैं गरम लंड का
अहसास हो रहा था. दर्द से बचने के लिए वह परेश की कमर पकड़ते बोलती है,

"सॉरी चाचा, मुझसे ग़लती हुई, फिर कभी आप'को नाम से नहीं बूलौंगी. और
हां, मेरी मा हरामी है, वह जान बूझके मुझे ऐसे कपड़े पहनाती है जिससे
मर्दों की नज़र मुझपे पड़े और वह मुझे तंग करे. वह जलती है मेरे रूप से
इसलिए ऐसा करती है. अब प्लीज़ मुझे छोडो चाचा, मैं दर्द नहीं सह पाउन्गि.
आआह मुझे छोड़ दो अहह. " सुरभि के मुँह से उसकी मा की बेइज़्ज़ती सुनके
परेश को अच्च्छा लगता है. वह सुरभि की कमर और कस्के पकड़ते लंड और ज़रा
चूत पे दबा कर बोलता है,

"बहन्चोद तुझे छोड़ दूँगा तो यह खड़ा लंड क्या तेरी मा की गान्ड मैं डालु
छिनाल? मुझे पता है तेरे जैसी कमसिन रंडी की मा बड़ी छिनाल है. साली नाटक
किया तो यहीं मार डालूँगा तुझे. मदरचोड़ चल टांगे खोल तेरी, मेरे लंड को
तेरी चूत फाड़नी है रखैल. क्या मस्त माल है तू छिनाल, चल खोल पैर तेरे. "
परेश की गालियाँ और धमकी सुनके सुरभि डर के अपने पैर खोलती है. परेश की
मार और गालियो से उसे बड़ा डर और दर्द होता है और वह इस बात से ज़रा
ज़्यादा तड़पति है. अब वह डर से अपने पैर खोलती है. सुरभि को कस्के
पकड़के परेश एक धक्का देता है और लंड की टोपी अंदर घुसती है. जैसे ही लंड
का बड़ा सूपड़ा सुरभि की कमसिन चूत मैं घुसता है वह दर्द से चिल्ला उठती
है,

"ऊऊही मा ओह्ह मर गययी, नही चाचा नीककाल्लो लुंदड़ मुउझे दर्द हो रहा
हाई. " सुरभि के दर्द की परवाह किए बिना परेश अब सुरभि के मुँह पे एक हाथ
और कमर मैं दूसरा डालके उसे कस्के पकड़ते ज़ोर्से लंड चूत मे घुसता है.
लंड सुरभि की चूत को बेरहमी से फाड़के अंदर घुसता है. सुरभि दर्द से बहाल
होके चिल्लाना चाहती है पर परेश उसका मुँह और कस्के पकड़ते बोलता है,

"आ तेरी मा की चूत क्या टाइट चुउत्त हाई तेरी रांद्ड़. तेरी मा की चूत आज
सही मैं मस्त लड़'की मिली है इस को, बहन्चोद तेरी मा को भी चोदना चाहिए
जिसने ऐसी गरम बेटी पैदा की, ले छिनाल अब तुझे देख कैसे मेरी रांड़ बनाता
हूँ. " परेश को अपने लंड पे सुरभि का गरम खून महसूस होता है. इससे वह अब
और बेरहमी से सुरभि को चोदने लगता है.

वह बेचारी लड़'की इस हल्लबबी लंड के घुसने से बहाल होके रोने लगती है.
उसे ऐसा लगता है उसकी चूत को परेश चाचा ने फाड़ दिया है. वह चिल्लाके
अपना दर्द निकालना चाहती है पर परेश उसे वह रिहायत भी नहीं देता. 15-20
बार लंड चूत मैं घुसाके निकालने के बाद जब परेश सुरभि के मुँह पे रखा हाथ
ज़रा हल्का करता है तो सुरभि की सिसकारियो भरी आवाज़ उसे सुनाई देने लगी.
सुरभि बेचारी रोते बोल रही थी,

"आआह श्ह.. ऊहह, आ उही मा मार्र गआययी उउफ्फ नही उहह, उम्म परेश चाहचहा आ
मेरी चूत को मत फाडो आहह निकालो ना अप'ना लंड. आ मैं मार जाउन्गि अहह उही
मा आरी यह तो बहुत मोटा है उही मा मुझसे नहीं होगा आह. " परेश को सुरभि
की इन बातों पे बिल्कुल भी तरस नहीं आता. उसका मोटा लंड क़िस्सी तीर की
तरह अंदर घुसते सुरभि की चूत को चीरते चोद रहा था. सुरभि के मुँह पे रखा
हाथ हटा के, सुरभि के स्तन मसल्ते परेश सुरभि को चोद रहा था. सुरभि एक
बेबस कुतिया जैसे कमोड का सहारा ले झुका के अपनी चूत पह'ली बार मरवा रही
थी. बड़ी बेदर्दी से स्तन मसल्ते सुरभि की चूत चोद्ते परेश बोला,

"नहीं मरने दूँगा तुझे रंडी, अब तो और चुदवाना है तुझे छिनाल, बहन्चोद
क्या गरम चूत है तू. साली प्लॅटफॉर्म पे भी नाना के साम'ने मस्ती कर रही
थी और फिर मूत'ने लगी थी तो तुम्हारी चूत दिखी. यह ले और ले और ले
मदरचोड़, चूत फटने दे तेरी, तेरे जैसी लड़'की हमसे चूत फटवाने के लिए ही
पैदा होती है. सब ठीक होगा, अभी देख 5 मिनिट मैं दर्द ख़तम होगा और तू
खुद चुदवाने लगेगी समझी? साली तेरी मा को भी चोदुन्गा, वह भी मस्त माल है
ना?" सुरभि की चूत ज़रा गीली होने से अब परेश का लंड ज़रा आसानी से उसकी
चूत मैं घुस रहा था. परेश के मुँह से अपनी मा के लिए दी गयी गंदी गालियो
से भी उसे शरम आ रही थी. अपनी चूत फटने के दर्द से सुरभि सिसकते बोली,

"आ उही मा चाचा उम्म उम्म छोडो ना उही मा बहुत दर्द हो रहा है. आह सच मैं
फॅट जाएगी उम्म आ. चाचा बहुत दर्द हो रहा है, प्लीज़ जाने दो मुझे. "
सुरभि की रिक्वेस्ट को अनसुना करके परेश बेरहमी से उसके स्तन दबाते चूत
मारने लगता है. सुरभि भी ज़रा पैर रिलॅक्स करती है और अब परेश का लंड
सुरभि की गीली चूत मैं आराम से चुदाई करने लगता है.
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07-01-2017, 11:37 AM,
#5
RE: Antarvasnasex मुंबई से भूसावल तक
सुरभि की चूत इतनी
गीली हो गयी थी कि परेश की चुदाई से फ़चा फॅक की आवाज़ आ रही थी. अब
दोनों हाथो से सुरभि को कस्के पकड़ते परेश लंबे धक्के देते बोला,

"देख साली चिल्ला रही थी पर चूत गीली हुई ना? कैसे मस्ती से अब लंड ले
रही है तेरी चूत, बोल रांड़ है ना तू मेरी, बोल मदरचोड़ जल्दी बोल नहीं
तो अब गान्ड मारूँगा तेरी, तेरी मा की चूत मस्त माल है तू. और फैला अपने
पैर सुरभि और देख तुझे जन्नत दिखाता हूँ. " सुरभि को अब मज़ा आ रहा था और
वह भी गान्ड हिलाने लगती है. इतने मोटे लंड से मज़ा तो आ रहा था पर दर्द
भी हो रहा था जिस'से सिसकिया भरते वह बोली,

"आआह्होह्ह उही प्ल्ज़्ज़ धीरी करो ना परेश चाचा. अभी भी दर्द हो रहा है
लंड घुसने से. मुझपे रहम खाओ और धीरे-धीरे चोदो मुझे परेश."

"आरामसे मारो? क्यों तुझे चोद्ता हूँ तो तेरी मा की गान्ड मैं दर्द होता
है क्या छिनाल? मज़ा आ रहा है ना अब तुझे? साली मुझे फिर नाम से पुकरती
है रांड़? दुबारा मुझे नाम से पुकारा तो गान्ड मारूगा तेरी. हरामी, मैं
तेरे बाप की उमर का हूँ, ज़रा इज़्ज़त से नाम ले मेरा. क्या तेरी मा ने
तुझे इतना भी नहीं सिखाया रंडी? अच्च्छा लग रहा है ना मेरा हल्लब्बी लंड
चूत मैं? सुरभि मदरचोड़ अब तुझे मेरी रांड़ बनाके रखूँगा. " सुरभि के
निपल्स खींचते परेश ट्रेन के स्पीड मैं उसकी चूत चोद रहा था. इस दर्द और
गालियो से सुरभि बहाल हो रही थी पर उसे अब ऐसा लग रहा था जैसे की उसकी
चूत मैं लाखो चितिया हलचल मचा रही थी. सुरभि भी मस्ती मैं आके अपनी गान्ड
आगे पिछे करके चूत मरवा रही थी पर दर्द ख़तम नहीं हुआ था. वह बेशरम होके
अपने बाप की उमर के आदमी से चुदवा रही थी. वह अब दर्द और मज़े के अंदाज़
से बोली,

"आ हा मैं तुम्हारी रान्ड हुई परेश चाचा, प्लीज़ मुझे माफ़ करो, मैं अब
आप'को कभी नाम से नहीं पुकारूँगी. उम्म चोदो मुझे पर ज़रा आराम से, अभी
दर्द हो रहा है परेश आहह धीरे करो ना अंदर उही मा. " एक हाथ से सुरभि के
स्तन मसल्ते दूसरे हाथ से सुरभि की नंगी गान्ड पे थप्पड़ मारते परेश
बोला,

"अब आई ना लाइन पे रानी? साली फिर कभी नाम से पुकारा तो तेरे यह निपल चबा
डालूँगा. अरे मेरी प्यारी जान, यह दर्द अभी ख़तम होगा समझी, अभी अच्च्छा
लगेगा तुझे और तू खुद ज़ोर्से चोदने बोलेगी मुझे. मेरी जान अब ज़रा ठीक
से बता तू मेरी कौन है?" चुदाई का स्पीड अब और तेज़ करते परेश बेरेहमी से
सुरभि की चूत चोद रहा था. सुरभि परेश के इस तेज़ धक्को से उचकति है और
उसकी चीख निकलती है क्योकि परेश चाचा का मोटा और लंबा लंड अब उसकी बच्चे
दानी से टकराता है बार-बार. आँखे बंद करते वह परेश के हाथ अपने मम्मो पे
दबाते बोलती है,

"आह उही मा अच्च्छा चाचा मैं आपकी रंडी हूँ, आपकी कमसिन रंडी सुरभि हूँ
मैं, आहह और चोद चाचा, अब मज़ा आ रहा है. पूरा लंड डालो मेरी चूत मैं और
जैसा चाहे वैसा चोदो मुझे. " इतना कहते सुरभि अपनी छूट और रिलॅक्स करती
है और अब परेश का लुन्ड और ज़ोर्से उसे चोदने लगता है. सुरभि के मस्त
स्तन बेरहमी से मसल्ते, धक्के पे धक्का देके परेश उसको चोद रहा है. सुरभि
के मुँह से और ज़ोर्से चोदने की बात सुनके वह खुश होके बोलता है,

"हां मेरी जान, मेरे लॉड की रानी, तुझे खूब मस्ती से चोदुन्गा. तेरी जैसी
कमसिन लड़'की को मस्ती देना मुझे अच्छि तरह आता है. वैसे साली तेरी मा
कैसी है? तेरे जैसी मस्त चूत को चोदने के बाद अब उसे चोदने का दिल है
जिसने इतनी गरम चूत पैदा की. क्या तेरी मा भी तेरे जैसी सेक्सी माल है
क्या सुरभि रांड़?" सुरभि को अब परेश दुनिया का सबसे अच्च्छा इंसान लग
रहा था. उस'के दिमाग़ ने काम करना बंद कर दिया था. अब उसके दिल-ओ-दिमाग़
मैं सिर्फ़ लंड और चूत ही था. अब परेश की चुदाई से उसकी चूत से आवाज़
निकाल रही थी. सुरभि को परेश का गर्म लॉडा अंदर बाहर होने से अब बहुत
अच्च्छा लग रहा था. बेशरम होके वह बोली,
क्रमशः...........
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07-01-2017, 11:37 AM,
#6
RE: Antarvasnasex मुंबई से भूसावल तक
मुंबई से भूसावल तक--4

गतान्क से आगे.......
"आ उम्म आ उम्म ओह्ह चाचा उम्म, मेरी मा मेरी जैसी सुन्दर है चाचा, तुम
उसको भी चोद लेना उम्म आहह. वह बड़ी सेक्सी है और मुझे अच्च्छा लगेगा अगर
आपने उसे चोदा तो. अफ चाचा चोद्ते रहो मुझे, मुझे बहुत मज़ा आ रहा है. "
अब दोनों रिलॅक्स होके चुदाई का मज़ा ले रहे थे. सुरभि को अपनी पह'ली
चुदाई का सही मज़ा दे रहा था परेश और उसे खुशी थी कि इस कमसिन अनचुदी चूत
को उसने खोला था. बराबर धक्के मारते वह बोला,

"तेरी मा तेरे जैसी सुंदर है तो उसे ज़रूर चोदुन्गा, मुझे तो नयी-नयी चूत
चोदने का बड़ा शौक है. तेरी मा को तेरे जैसे चोद्के खूब मस्ती दूँगा मैं.
मज़ा आ रहा है ना छिनाल? देख लिया ना तूने मेरा लंड चूत मैं? क्यों घबरा
रही थी छिनाल? चल मस्ती से चुद'वा रंडी. " सुरभि नीचे हाथ डालके अपनी चूत
मैं घुसते निकालते परेश का लंड महसूस करते बोलती है,

"आहह अफ चाचा, मज़ा आ रहा है आप'के मोटे लंड से. बहुत दर्द दिया पह'ले पर
अब उसे ज़्यादा मज़ा दे रहा है आपका लंड. चाचा आप मेरी मा को घर मैं आके
चोद लेना, वह दिन भर घर मैं रहती है. जैसा आपने मुझे पटाया वैसे ही मा को
पटाओ. उम्म ओह्ह चाचा और चोदो मुझे मेरी चूत को ज़ोर्से चोद्ते रहो. "
सुरभि बेचारी को पता भी नहीं था कि वह इस मर्द को उसकी मा को चोदने बुला
रही थी मतलब क्या कर रही थी. इस कच्ची उमर मैं अच्छे बुरे का ख़याल भी
नहीं था उसे. उसको यह भी पता नहीं था कि कोई भी शादी शुदा औरत क़िस्सी
गैर मर्द के साथ चुदति नहीं. परेश सुरभि की इस मासूमियत को समझ गया और इस
बात पे खुश होते उसकी पीठ चूमते बोला,

"तू मेरी सबसे अच्छि रांड़ है, साली मदरचोड़ तू तेरी मा को मुझसे चुदवाने
तैयार हुई. सुरभि तेरे जैसी रांड़ हो तो मज़ा आएगा. मैं ज़रूर तेरी मा को
चोदुन्गा तेरे घर आके मेरी छिनाल. तू जो इतना मस्त है तो तेरी मा भी मस्त
होगी. मुझे पता है इतने मोटे लंड से पह'ली चुदाई करते वक़्त दर्द होता है
पर जान अब तो तुझे भी मज़ा आ रहा है ना? चूत मैं लंड लेने के बाद अच्च्छा
लग रहा है ना? सुरभि अब झड़ने के बाद तेरी गान्ड मारूँगा छिनाल. तुझे
मेरी ख़ास्स रंडी बनाउन्गा, तुझे बहुत पैसे दूँगा और तेरे जिस्म से खूब
खेलूँगा. " परेश सुरभि के स्तन बेरहमी से नोचते, निपल खींचते चोद रहा था.
वह सुरभि को जितना ज़्यादा दर्द दे रहा था उतनी ही सुरभि ज़्यादा गर्म
होके सिसकारिया भरते चुदवा रही थी. सुरभि आहे भरते दिल खोलके चुड़वाते
बोली,

"परेश चाचा उम्म बहुत अच्च्छा लग रहा है. मेरी मा को भी ज़रूर चोदना आप.
उस'के लिए मैं खुद आपको मेरे घर ले चलूंगी. उम्म बहुत अच्च्छा लग रहा है
और चोदो मुझे उम्म. चाचा मुझे लगता है कुच्छ निकलने वाला है मेरी चूत से.
लगता है मैं फिर मूतनेवाली हूँ चाचा. " परेश समझा कि सुरभि अब झऱ्ने वाली
है.

वह सुरभि को कस्के पकड़ कर और ज़ोर्से उसे चोदने लगा. अब सुरभि की गीली
चूत की चुदाई से फकच्छ-फकच्छ की आवाज़ आ रही थी. सुरभि बड़ी ज़ोर्से आहे
और सिसकारिया भर रही थी. परेश भी उसका जिस्म नोचते, मसल्ते चोद रहा था.
वह भी अब झरनेवाला था. सुरभि की चूत फुल गयी थी उसकी हालत परेश के मोटे
लंड ने बहुत खराब कर दी थी. पर इतना होने के बाद भी सुरभि जी भरके चुद'वा
रही थी. जब सुरभि की चूत ने पानी छोड़ तो वह सिहर गयी और अपना जिस्म
जकड़ते बोली,

"आहह चाचा देखो मेरा मूत निकला. मुझे अजीब लग रहा है चाचा. मुझे कस्के
पाकड़ो चाचा, बड़ा अच्च्छा लग रहा है, उम्म आहह चाचा. " जैसे सुरभि की
चूत ने पानी छोड़ा परेश भी सुरभि की चूत मैं आख़िरी धक्को की बरसात करते
बोला,

"मेरी रंडी जान, तूने अभी पेशाब नहीं किया, अब तेरी चूत ने पह'ली चुदाई
का पानी छोड़ा है. तुझे चोद्के मेरा लॉडा भी झऱ्ने वाला है. मदरचोड़
रंडी, तेरी चूत की पह'ली चुदाई का पानी तेरी चूत मैं ही डालूँगा आह यह ले
छीन्नाल, मादीर्रकचोड़ड़ काँमस्सिईन्न रांन्दड़ ले मीर्रा पान्नी. "
सुरभि की कमसिन चूत मैं परेश का लंड आँखरी बार टाइट होके जैसे झऱ्ने लगता
है, परेश सुरभि को कस्के पकड़के स्तन दबाता है. लंड के धक्के चूत मैं
देके वह अपना पानी सुरभि की चूत मैं डालते बोलता है,

"आ ले मीरीई चुट्त मेरी काँमस्सिईन रांन्दड़. मज़्ज़ा आया साल्लीी तुझे
चोद्के सुरभि. ले मेरे लॉड का पानी ले तेरी चूत मैं. " परेश के लंड का
गरम पानी का अहसास सुरभि को अपनी चूत मैं होता है और वह अपने दोनों हाथ
पिछे करके परेश को अपने बदन से और सटाती है. झऱ्ने के बाद थोड़ा समय
दोनों वैसे ही खड़े रहते है. सुरभि का जिस्म प्यार से मसल्ते परेश अपना
लंड सुरभि की चूत से बाहर निकालता है. उस'के लंड पे सुरभि की कमसिन चूत
के पानी के साथ ज़रा सा खून भी लगा है.

जब दोनों की साँसे नॉर्मल होती है, परेश ने सुरभि की चड्डी से पह'ले
प्यार से सुरभि की चूत सॉफ करके फिर अपना लंड सॉफ किया. चड्डी साइड मैं
रख कर वह फिर कमोड पे बैठ्के नंगी सुरभि को अपने गोद मैं बैठाता है.
सुरभि अब शर्मा रही थी. हवस की प्यास बुझने के बाद उसे अब इस अंजान मर्द
के साम'ने नंगी रहने में कैसा तो लग रहा था. उस'ने नीचे पड़ी कमीज़ उठाके
अपने सीने पे रखी. परेश उसकी बात समझा और प्यार से सुरभि को चूमते बोला,

"बोल सुरभि, अच्च्छा लगा ना मुझसे चुदवा के और मेरी रंडी बनके तुझे
छिनाल? बोल मेरी रांड़ बनके कैसा लग रहा है?" और ज़्यादा शरमाते सुरभि
बोली,

"ऊऊम्म चाचा बहुत अच्च्छा लग रहा है इतना मज़ा कभी नहीं मिला. " सुरभि की
बात सुनके परेश उसे बाँहों मैं भरके प्यार से 1-2 बार चुमके ज़रा आराम
करने लगता है.

ट्रेन अपनी रफ़्तार से चल रही थी. रात का वक़्त था, इसलिए बुगी मैं सब
शांत था. सब पॅसेंजर्स जहाँ थे और जिस हाल मैं थे या तो सो रहे थे या
सोने की कोशिश कर रहे थे. ट्रेन की इस रफ़्तार मैं बुगी के टाय्लेट मैं
एक हवस का तूफान आके गया इसका क़िस्सी को पता भी नहीं था. ज़िंदगी मैं
पह'ली बार अपनी चूत मैं लंड लेके सुरभि ने अपना कुवरापान समाप्त किया था.
लेट्रीन के फ्लोर पे वह अपने नंगे जिस्म पे सिर्फ़ कमीज़ ऊढाके परेश की
जाँघ पे सिर रखके लेटी थी. चुदाई के बाद की थकान अब ज़रा कम हुई थी.

परेश हल्के-हल्के सुरभि की पीठ सह'लाके उस'से बातें करने लगा. सुरभि की
नंगी पीठ को परेश का नंगा लंड महसूस होता है. पह'ली चुदाई के बाद सुरभि
भी फ्री हुई थी, उसे अब शरम नहीं महसूस हो रही थी. वह भी परेश से सॅट'के
बैठ्के उसकी नंगी टाँगें सह'लाने लगी. परेश सुरभि को कस्के अपने बदन से
सट उसके स्तन हौले-हौले मसल्ने लगता है. काली झांतों से भरी सुरभि की चूत
सह'लाके दूसरे हाथ से उसके स्तन मसल्ते परेश बोला,

"यह बता बेटी तुझे चुदाई का मज़ा आया. " सुरभि आधी टर्न होते परेश के
सीने पे सिर रखते बोली,

"हां चाचा, बहुत मज़ा आया आपके साथ. इतना मज़ा कभी नहीं मिला था मुझे. "
सुरभि के निपल्स हल्के से मसल्ते परेश बोला,

"सुरभि तेरे घर मैं कौन है और?"

"मैं, डॅडी और मम्मी है घर मे. मैं अकेली औलाद हूँ और कोई नहीं है चाचा. "

"बेटी तेरे मा बाप क्या करते हैं?"

"डॅडी सॉफ्टवेर इंजिनियर है और मम्मी हाउसवाइफ है, घर मैं ही रहती है.
डॅडी को टूर पे जाना पड़ता है महीने मैं 8-10 दिन, इसलिए मम्मी कोई जॉब
नहीं करती. "
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07-01-2017, 11:37 AM,
#7
RE: Antarvasnasex मुंबई से भूसावल तक
"ओह अच्च्छा, सुरभि, अभी जब तुझे चोद रहा था तब तू बोली की तेरी मा को भी
चोदू, क्या सच्च मैं तू चाहती है कि मैं तेरी मा को चोदू?तू यह भी बोली
की तेरी मा मस्त सेक्सी औरत है, सुरभि मुझे तेरी मा जैसी औरतो को चोदने
मैं बड़ा मज़ा आता है. वह एक्सपीरियेन्स्ड औरत है इसलिए और ही मस्ती से
चुड़वति होगी. " सुरभि अब शर्मा गयी. चुदाई के जोश मे वह कुच्छ भी बोली
होगी पर अब वह चुप थी. परेश ने 2-3 बार उसके जिस्म को मसल्ते यह बात पुछि
तो वह बोली,

"चाचा वह मैं गर्मी मे कुच्छ भी बोल गयी पर मेरा वैसा कुच्छ मतलब नहीं
था. अब वह अगर आपसे मिलके कुच्छ करना चाहे तो मैं कुच्छ बोल नहीं सकती.
यह बात सच्च है कि वह अच्छि दिखती है और हमेशा अच्छे कपड़े पहनती है पर
वह यह सब करेगी यह मुझे नहीं पता. " परेश सोचने लगा कि अगर वह सुरभि की
मा को चोदना चाहता है तो सुरभि को ही पटाना पड़ेगा. सुरभि को इतना गर्म
करना होगा कि वह उसे पूरी मदद करे अपनी मा को परेश के नीचे सुलाने में.
परेश ने नंगी सुरभि को अपनी जाँघ पे बैठाते अपना लंड उसके हाथ मे देते
कहा,

"सुरभि बेटी अब यह जो मेरा लंड तू सह'ला रही है वैसे लंड के लिए कोई भी
औरत अपनी टाँग फैलाती है. तेरी यह अच्छि किस्मत है कि तेरी पह'ली चुदाई
ऐसे तगड़े लॉड से हुई. मुझे यकीन है कि भले तेरी मा तेरे बाप से आज तक
चुदी है लेकिन मेरा यह लॉडा देखके उसका मन ज़रूर होगा मेरे लंड से
चुद'वाने में. बेटी, क्या तू नहीं चाहती कि जिस लॉड ने तुझे इतना मज़ा
दिया वह तेरी मा चूसे और उसे अपनी चूत में ले?क्या तू नहीं चाहती कि मैं
इस लंड से तेरी मा को भी चोद्के उसे भी खूब मस्ती दूँ?क्या तुझे नहीं
लगता कि मेरा लंड देखके तेरी मा की चूत भी गीली नहीं होगी. क्या तू नहीं
चाहती कि तेरी मस्त मा को नंगी करके, उसके जिस्म से खेलते, उसके स्तन
मसल्ते, चूमते और चूस्के मैं तेरी मा से मेरा लंड चूस्वाके पह'ले उसकी
चूत और फिर गान्ड मारु?" इस बात का सुरभि के कमसिन दिल पे बहुत असर हुआ.
वह सोचने लगी की इस लंड से अगर उसकी मा चुद'वाने लगी तो उसे कितना मज़ा
मिलेगा.

वैसे उसे यह सोचके शर्म भी आ रही थी कि परेश चाचा उसकी मा के बारे मैं
इतना गंदा ओपन्ली उसे बोल रहे थे. लेकिन पह'ली बार लंड लेने के बाद सुरभि
अच्छे-बुरे के बारे मैं सोचना जैसे भूल गयी थी. अभी भी चाचा का लंड
सह'लाते सह'लाते उसकी चूत गर्म होने लगी. परेश सुरभि के मन मैं चल रही
खलबली को समझा और उसे और बेकरार करने के लिए अब उसकी चूत और मम्मो से
मस्ती करने लगा. धीरे-धीरे सुरभि का जिस्म फिर गर्म होने लगा. वह परेश के
लंड को सह'लाते बोली,

"चाचा मुझे कुच्छ समझ मैं नहीं आता कि क्या करू. मैं तो अब चाहती हूँ कि
आप मा के साथ यह सब करो पर डरती हूँ की कहीं मा ने बखेरा खड़ा कर दिया या
कोई गड़बड़ होगी तो क्या होगा. मैं तो चाहती हूँ कि आपने जो कहा वह आप
करो मा के साथ पर मैं इसमे आपकी क्या मदद करू?" बात बनती देख परेश सुरभि
के निपल्स चूस्ते बोला,

"तुझे मेरी मदद कैसे करनी है वह मैं बताउन्गा तुझे रानी, तू यह बता तेरी
मा का हर्दिन मूड कैसा होता है. "

"जब डॅडी टूर पे जाते हैं तो मा गुम्सूम रहती है और जब डॅडी आ जाते हैं
तो बड़ी खुश होती है. वह वैसे तो सुबह जल्दी उठ जाती है लेकिन डॅडी के
टूर से आने के बाद के 2-3 दिन आराम से उठ'ती है. "

"ओह मतलब, तेरा बाप टूर से आने के बाद 2-3 रात तेरी मा को खूब चोद्ता
होगा. इस बात से यह तो समझा कि तेरी मा अभी भी चुदवाती है तेरे बाप से.
यह बता सुरभि बेटी, तेरा बाप अब कहाँ है? घर पे है या टूर पे गया है?"

"चाचा डॅडी तो 3 दिन पह'ले टूर पे गये हैं, अगर वह होते तो मुझे लेने
आनेवाले थे पर उनको जाना पड़ा इसलिए मैं अकेली आ रही थी. डॅडी अब 4 दिन
के बाद आएँगे. " इस बात पे खुश होते परेश ने जी भरके सुरभि के स्तन
मसल्ते एक निपल चूस्ते कहा,

"वाह यह तो बहुत अच्छि बात है. बेटी अब तू कल घर जाएगी तो तेरी मा से
मेरी बहुत तारीफ कर, मेरी एक'दम अच्छि इमेज बना उनके साम'ने. मा को यह भी
कह'ना कि तेरे पिछे कुच्छ आवारा लड़'के पड़ गये थे और परेश चाचा ने ही
तुझे उन आवारा लड़'कों से बचाया था. मैं कल शाम को तेरे घर आउन्गा, तू
तेरी मा को बोल की तूने मुझे चाय पे बुलाया है. हम दोनों को एक दूसरे से
मिलाने के बाद तू कोई बहाना करके घर से निकल जाना तो फिर मैं तेरी मा को
पटाउंगा. तू साम'ने रहेगी तो तेरी मा को पटा नहीं सकूँगा. तू जब जाएगी तो
1-2 घंटे वापस मत आना जिससे उसे मैं आराम से पटा सकु. इतनी मदद को करेगी
ना मेरी बेटी? बेटी तू इतनी मदद तो करेगी ना तेरे परेश चाचा की जिससे वह
तेरी मा को भी इस लॉड से चोद सके?" सुरभि अब फिर गर्म हो रही थी. परेश ने
फिर से इस कमसिन लड़'की को बहकाया था. वह परेश को चूमते हुए बोली,

"हां चाचा मैं ज़रूर आपकी मदद करूँगी. मैं भी अब चाहती हूँ कि आप मा को
इस लंड से वैसे ही मज़ा दो जो आपने मुझे दिया है. आपने जैसा बोला मैं
वैसा करके आप'को पूरी मदद दूँगी जिससे आप मा को पटा सके. " सुरभि की
रज़ामंदी से खुश होके परेश ने सुरभि को उठाके कमोड पे बैठाया. फिर उसकी
टांगे खोलके उस'की नंगी चूत सह'लाते 2-3 बार चूमा. फिर उंगलियो से सुरभि
की चूत खोलके परेश ने उसकी चूत चाट्के जीभ उसकी चूत मैं डाल दी. सुरभि की
ज़िंदगी मैं पह'ली बार कोई उसकी चूत चाट रहा था. सुरभि ने परेश का सिर
पकड़के कहा,
"चाचा यह क्या कर रहे हैं आप? मुझे बहुत गुदगुदी हो रही थी चाटने से. "
चूत मैं जीभ घुसाके अच्छे से उसे चाट्के परेश बोला,

"बेटी तूने मेरा लंड चूसा था, अब मैं तेरी यह चूत चाटूंगा. तेरी इस कमसिन
चूत को मैं जीभ से चोद्के तेरा पानी पीना चाहता हूँ मेरी बेटी. " सुरभि
की कमर को पकड़के अपने मुँह पे दबाते परेश चूत चाटने लगा. सुरभि ने भी
उसका सिर अपनी चुतपे दबाते, उसके बालो में हाथ घुमाना शुरू किया. वह
सिसकारिया भरते अपनी छूट चाट्वाने लगी. वह एक हाथ से अपने स्तन मसल रही
थी और दूसरे हाथ से परेश का सिर चूत पे दबा रही थी. परेश आज ही उसे चुदाई
मैं माहिर बना देना चाहता था. 10-15 मिनिट चूत चाटने के बाद जब सुरभि
झऱ्ने लगी तो उसने परेश का सिर अपनी टाँगो मैं दबाते अपने स्तन मसल्ते
पानी छोड़ा. इस कमसिन चूत का पानी परेश बड़ी खुशी-खुशी चाटने लगा. पूरा
पानी चाटने के बाद भी वह सुरभि की चूत चाट ही रहा था. फिर परेश ने सुरभि
को नीचे सुलाके एक बार उसकी चूत को फिर चोदा. पह'ली बार सुरभि कुतिया
बनके चुदी थी और दूसरी बात एक औरत बनके.

पूरी रात भर परेश ने सुरभि को सोने नहीं दिया. सुरभि के जिस्म से खेलते
अपना लंड उस'से सहल'वाके और चूस्वाके वह सुरभि का मज़ा ले रहा था. सुरभि
भी बेशरम होके परेश की हर बात मान रही थी. सुबह तक परेश ने 3 बार सुरभि
को चोदा. जब स्टेशन आने का समय हुआ तो परेश सुरभि को कपड़े पहननेको बोला.
टाय्लेट की ज़मीन पे पड़ी सलवार कमीज़ की हालत तो एक'दम खराब हो गई थी.
यह देखके सुरभि ने सूटकेस से दूसरी सलवार कमीज़ निकालके पहनी और अपना
हुलिया ठीक किया. जैसे स्टेशन आया परेश ने टाय्लेट का डोर खोला और जल्दी
से सुरभि को लेके ट्रेन से उतर गया. कल के प्रोग्राम की अच्छी तरह से
सेटिंग करने के बाद, सुरभि से उसके घर का अड्रेस लेके परेश ने उसे एक
रिक्कशे मैं बैठाया और खुद अपने रास्ते निकल गया. परेश ने सुरभि की मा को
कैसे चोदा ये कहानी फिर कभी आपका दोस्त राज शर्मा

समाप्त
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