Antarvasna Sex Kahani फार्म हाउस पर मस्ती
01-19-2018, 01:20 PM,
#1
Antarvasna Sex Kahani फार्म हाउस पर मस्ती
फार्म हाउस पर मस्ती


मेरा नाम कल्याणी है, शादी के बाद से अब मै गोरखपुर में अपने पति के साथ रहती हूँ. अब तो मै ३६ साल की, २ बच्चो की माँ हूँ और जीवन में सैक्स का मैंने शादी से पहले और शादी के बाद भरपूर आनंद लिया है. राजेश्वर सिंह जो मेरे पति है उनसे जब मेरी शादी हुयी तब शुरू की रातो में ही पता चल गया था कि मेरे पति में वो जबांजी नही है जो शादी से पहले मैंने अपने प्रेमी से चुदवाने में महसूस की थी. मैं तो सोचती थी कि वो हर दिन मुझे कम से कम 3-4 बार तो छोड़ेगा ही और अपनी जोरदार चुदाई से मेरी सारी नसे ढीली कर देगा. लेकिन जो जल्दीबाजी करते थे और जल्दी ही अपना पानी मेरी चूत में छोड़ देते थे. मैं शर्म से कुछ कह नही पाती थी, बस मौका मिलने पर ऊँगली से ही अपनी चूत की चोद के झड़ लेती थी 

हमारी शादी को करीब ८ माह हो गए थे, लेकिन मै अपनी पहली चुदाई की ही याद में कैद होकर रह गयी थी. क्यों की मै अंदर से खुश नही थी, इसलिए मै गुमसुम रहने लगी, किसी भी काम में मन नही लग रहा था. मुझे उखड़ा हुआ देख कर राजेश्वर ने मुझसे कहा, "कल्याणी चलो शोहरतगढ़ चलते है, नेपाल की सीमा पर है वहां चचेरे भाई का बड़ा फार्म हाउस है , वहां कुछ दिन बिता कर आते है और तुमहरा दिल भी भल जायेगा." मैंने फ़ौरन हाँ कर दी मै भी गोरखपुर की उस वातावरण से अलग जाकर कुछ दिन रहना चाहती थी और सोचा, की हो सकता है राजेश्वर घर से बाहर आकर कुछ अपने अंदर मर्दानगी भरेगा और मै खुल के वहां के खुले मैदानों में खूब चुदुंगी.

हम लोग जब फार्म हाउस पहुंचे तो वहां हम लोगो का स्वागत गजेन्द्र नाम के आदमी ने किया , जो वहां की खेती और जानवरो की देखभाल करता था . वो करीब ३७/३८ साल का सँवला सा, भरे बदन का आदमी था. वहां वह अपनी पत्नी मुनिया जो करीब ३५ साल की थी और दो बच्चो के साथ रहता था. 

उन दोनों ने हमारा जी खोल कर स्वागत किया और खाने पीने का प्रबंध किया. हम लोगो को पहुँचते पहुंचते काफी शाम होगयी थी तो हम लोगो ने जल्दी ही खाना खा लिया और जो कमरा हम लोगो के लिए तैयार था उसमे जाकर लेट गए. शहर से दूर बिलकुल अलग वातावरण था और मै आस लगाये हुए थी की राजेश्वर यहां खुल के मुझे प्यार करेंगे लेकिन वो तो थके हुए थे और यही कह कर मुँह मोड़ कर बिस्तर पर लेट गए.मैंने इतने सपने संजोये हुए थे की मुझे तो झल्लाहट के मारे नींद ही नही आरही थी. रात के सन्नाटे में मुझे बगल वाले कमरे में जिस में गजेन्द्र और उसकी पत्नी सोते थे से आवाजे आने लगी. पहले तो पलंग के हिलाने की आहत हुयी और फिर दबी दबी सीत्कारें आने लगी. मै समझ गयी थी की बगल के कमरे में गजेन्द्र अपनी पत्नी मुनिया को चोद रहा है और यह जानकर मेरी चूत भी भड़क गयी मैंने अपनी टैंगो को फैला दिया और उँगलियों से खुद को ही चोदने लगी. अनायास मुझे गजेन्द्र और उसकी बीवी का ही ख्याल आने लगा..कितना मोटा होगा उसका? किस तरह से वो उससे मस्त होकर चुदवा रही होगी? और यही सोचते सोचते मेरी चूत ने पानी फेंक दिया. झड़ने के बाद बड़ी रहत मिली और मै वैसे ही सो गयी.





अगले दिन हम लोग खेतो मै घूमे और पास के एक बड़े से तालाब में मछली भी पकड़ी. राजेश्वर का बीच में ही मन उखड गया और वापस चलने को कहने लगे, लेकिन मेरा तो घूमने को मन था, सो अनमने मन से मै उनके साथ वापस चली आई. मेरा मूड खराब होगया था और वो मेरे चहरे से साफ़ दिख भी रहा था की मुझे बीच से आना अच्छा नही लगा है. फार्म हाउस बड़ा था और अगल बगल काफी बहुत कुछ सुन्दर था. मेरे लौटने पर राजेश्वर ने कहा, 'कल्याणी हम यहाँ आये है तो कम से कम अपने स्टॉकिस्ट लोगो से भी मिल लूँ, तुम चाहो तो चले चलते है सब अगल बगल ही है, रात को लौट आएंगे.' मैंने तुनक के जवाब दिया,' मै यहाँ इस लिए तो नही आई थी!! मै नही जाउंगी आप अपना काम कर आइये.' राजेश्वर मेरी बात सुन कर मुझसे फिर कोई आग्रह नही किया और स्टॉकिस्ट से मिलने का इरादा छोड़ दिया. रात को खाना खाने के लिए बैठ रहे थे की मेरे ससुर जी का फोन गया. उनसे बात कर के पता चला की मार्च की क्लोजिंग से पहले पिछले हिसाब पुरे होने है इस लिए मेरे पति को वाकई स्टाकिस्टों से मिलाना जरुरी है. बेचारे राजेश्वर ने अपने पिता से यह नही बताया की मेरे कारण वो नही जा पाये थे . मुझे भी अफ़सोस हुआ की नाहक बिना पूरी बात जाने मैंने राजेश्वर का साथ देने से मना कर दिया. रात को जब वो बिस्तर पर ए तो मैंने बेशर्म होकर उनको बाँहों में ले लिया और कहा ,'सॉरी , माफ़ कर दो, कल हम लोग चलेंगे.' मेरे पति ने मुझे कस के चुम लिया और कहा 'नही कल्याणी तुम नही जाऊगी. मै खुद चला जाऊंगा तुम यहां आराम करो. गोरखपुर में तो तुमको कहा आराम मिलता है.' यह सुनकर मै वही रुकने को तैयार हो गयी और उस रात मेरे पति ने मुझे चोदा , लेकिन जैसे ज्यादातर होता था वो शराफत से मुझे चोद कर सो गए और मै बदन के झझकोरे जाने के एहसास की कमी लिए हुयी, अतृप्त सो गयी.
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01-19-2018, 01:20 PM,
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अगले दिन वो सुबह का नाश्ता करके अपने स्टाकिस्टों से मिलने चले गए और मै वही रह गयी. उनके जाने के बाद मुनिया मेरे पास आई और कहा ,' बहु रानी हमने गजेंदर से कह दिया है की आपको खेत घुमा लाये .मै तब तक यहाँ का काम संभालती हूँ.' उसकी बात सुन कर मै तो खुश होगयी. सोचा अब राजेश्वर भी नही है मै अब बिना मालिकन वाले रौब के आराम से घूमूंगी. मैंने अपने साडी पहनने का इरादा छोड दिया और सलवार और कुरता पहन लिया. मैंने चहरे पर गॉगल्स लगाया और एक शाल अपने ऊपर डाल ली. तभी गजेन्द्र गाडी लेकर गया और मै उस में बैठ गयी. करीब ३०/३५ मिनिट बाद हम लोग उस खेत पर पहुंचे जहां सरसो लगी हुयी थी. हर तरफ सरसो और चने के खेत थे. गजेन्द्रे ने गाड़ी खेत से सटे एक झोपड़ी के पास रोक दी उस के बगल में एक खालिस ईटो के ३ कमरो की पुरानी सी ईमारत भी थी.आस पास गाय और भैसी बढ़ी थी और मुर्गे मुर्गी दाने चुग रहे थे. गाड़ी की आवाज सुनकर उस झोपड़ी से ३ बच्चे और एक २७/२८ साल की औरत निकल कर आई. उसने सर पर पल्ला डाले हुआ था. दूर से ही उसने गजेन्द्र को देख कर कहा,' पाये लागी बाबू'.

गजेन्द्र ने उसका अभिवादन स्वीकार करते हुए कहा ,' अरी धन्नी कइसन है? देख आज बहूजी आई है खेत देखन.'

'पाये लागी बहूजी, आवैं !' धन्नी ने हँसते हुए हमारा स्वागत किया.

'वो दुलारे कहाँ है ?' गजेन्द्र ने धन्नी से पूछा.

'जी बगलिया वाले गाँव गवा है.'

'क्यूँ ?'

"कल रतिया भूरिया गरम होके बोलन लागी तो बगलिया से उसके वास्ते भूरा लाये गए है.'

'ओह अच्छा ठीक है.' गजेन्द्र ने मुस्कुराते हुए मेरी ओर देखा और फिर धन्नी से बोला,'तू बहूजी को अंदर लेजा और हाँ,इनकी अच्छे से देख भाल करियो. हमारे यहाँ पहली बार आई हैं खातिर में कोई कमी ना रहे !' कहते हुए गजेन्द्र पेड़ के नीचे बंधे पशुओं की ओर चला गया.

भूरिया और भूरे का क्या चक्कर था मुझे समझ नहीं आया. मैं और धन्नी कमरे में आ गए. बच्चे झोपड़े में चले गए. कमरे में एक तख्त पड़ा था. दो कुर्सियाँ, एक मेज, कुछ बर्तन और कपड़े भी पड़े थे.

मैं कुर्सी पर बैठ गई तो धन्नी मेरे पास नीचे फर्श पर बैठ गई. तब मैंने पूछा,'ये भूरिया कौन है?'

'भूरिया! 'उसने हँसते हुए पेड़ के नीचे खड़ी एक छोटी सी भैंस की ओर इशारा करते हुए कहा.

'क्यों ? क्या हुआ है उसे ? कहीं बीमार तो नहीं ?', मैंने हैरान होते हुए पूछा.

'आप भी बहुरानी! एकै जवानी चढ़ल बा! पिया मिलन के वास्ते बावली हुई है." कह कर धन्नी खिलखिला कर हँसने लगी, तो मेरी भी हंसी निकल गई.

मैंने उसको झेड़ते हुआ पूछा, 'अच्छा यह पिया-मिलन कैसे करेगी ?'

'बहुरानी सब्र रहे. अभी थोड़ी देर बाद भूरा ओपर चढ़ कर जब अपनी गाज़र इसकी फुदकनी में डलिहिये तब ओके गर्मिया सारी निकल जाई.'

उसकी बात सुनकर मेरा दिल जोर जोर से धड़कने लगा था और मेरी चूत यह सोंच कर धरधरा गयी कि आज मुझे जबरदस्त चुदाई देखने को मिलने वाली है. मैंने कई बार सड़क चलते कुत्ते कुत्तियों को आपस में जुड़े हुए जरुर देखा था पर कभी बड़े जानवर को चोदते हुए नही देखा था.

उधर वो भैंस बार बार अपनी पूंछ ऊपर करके मूत रही थी और जोर जोर से रम्भा रही थी.

थोड़ी ही देर में दो आदमी एक भैंसे को रस्सी से पकड़े ले आये, उसी को धन्नी भूरे कह रही थी. गजेन्द्र उस पेड़ के नीचे उस भैंस के पास ही खड़ा था. भैसा उस भैंस की ओर देखकर अपनी नाक ऊपर करके हवा में पता नहीं क्या सूंघने की कोशिश करने लगा.

तभी एक आदमी हमारे कमरे की ओर आ गया, उसकी उम्र कोई ४० की लग रही थी. वो मुझे बाद में समझ आया कि यही तो धन्नी का पति दुलारे है.

उसने धन्नी को आवाज लगाई,'धन्नी! चने री दाल भिगो दी थी ना?'

'हाँ जी सबेरे ही भिगो दी थी'

'ठीक है', कह कर वो वापस चला गया.

अब दुलारे उस भैंस के पास गया और उसके गले में बंधी रस्सी पकड़ कर खड़ा हो गया. दूसरा आदमी उस भैंसे को खूंटे से खोल कर भैंस की ओर ले आया. भिसा दौड़ते हुए भैंस के पास पहुँच गया और पहले तो उसने भैंस को पीछे से सूंघा और फिर उसे जीभ से चाटने लगा. अब भैंस ने अपनी पूछ थोड़ी सी ऊपर उठा ली और थोड़ी नीचे होकर फिर मूतने लगी. भैंसे ने उसका सारा मूत चाट लिया और फिर उसने एक जोर की हूँकार की.

अब धन्नी दरवाजा बंद करने लागी. उसने बच्चों को पहले ही झोपड़े के अंदर भेज दिया था. इतना अच्छा मौका मैं भला कैसे छोड़ सकती थी. मैंने एक दो बार डिस्कवरी चेनल पर पशुओं का समागम देखा था पर आज तो लाइव शो था, मैंने उसे दरवाज़ा बंद करने से मना कर दिया तो वो हँसने लगी.
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01-19-2018, 01:20 PM,
#3
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अब मेरा ध्यान भैसे के लंड की ओर गया,वो कोई 10-12 इंच की लाल रंग की गाज़र की तरह लंबा और मोटा लंड उसके पेट से ही लगा हुआ था और उसमें से थोड़ा थोड़ा सफ़ेद तरल पदार्थ सा भी निकल रहा था. मैंने साँसें रोके उसे देख रही थी. अचानक मेरे मुँह से निकल गया,'हाय राम इतना लंबा ?'

मुझे हैरान होते देख धन्नी हंसने लगी और बोली,'गजेन बाबू का भी ऐसा ही लंबा और मोटा है.'

उसकी इस बात पर मै हैरान होगयी और मैं धन्नी से पूछना चाहती थी कि उसे कैसे पता कि गजेन्द्र का इतना मोटा और लंबा है, पर इतने में ही वो भैसा अपने आगे के दोनों पैर ऊपर करके उछला और भैंस की पीठ पर चढ़ गया. उसका पूरा लंड एक झटके में भैंस की चूत में समां गया. मेरी आँखें तो फटी की फटी रह गई थी. मुझे तो लग रहा था कि वह उस भैंसे का वजन सहन नहीं कर पाएगी पर वो तो आराम से पैर जमाये खड़ी रही.

अब भैंसे ने हूँ, हूँ.करते हुए 4-5 झटके लगाए. और फिर धीरे धीरे नीचे उतरने लगा. होले होले उसका लंड बाहर निकलने लगा. अब मैंने ध्यान से देखा भैंसे का लंड एक फुट के आस पास रहा होगा. नीचे झूलता लंड आगे से पतला था पर पीछे से बहुत मोटा था जैसे कोई मोटी लंबी लाल रंग की गाज़र लटकी हो. लंड के अगले भाग से अभी भी थोड़ा सफ़ेद पानी सा निकल रहा था. भैंस ने अपना सर पीछे मोड़ कर भैसे की ओर देखा और दुलारे भैंसे को रस्सी से पकड़ कर फिर खूंटे से बाँध आया.

मेरी बहुत जोर से इच्छा हो रही थी कि अपनी चूत में अंगुली या गाजर डाल कर जोर जोर से अंदर बाहर करूँ. कोई और समय होता तो मैं अभी शुरू हो जाती पर इस समय मेरी मजबूरी थी. मैंने अपनी दोनों जांघें जोर से भींच लीं. मुझे धन्नी से बहुत कुछ पूछना था पर इस से पहले कि मैं पूछती वो उठ कर बाहर चली गई और चने की दाल वाली बाल्टी दुलारे को पकड़ा आई. फिर गजेन्द्र ने साथ आये उस आदमी को ५०० रुपये दिए और वो दोनों भैंसे को दाल खिला कर उसे लेकर चले गए. इसके बाद गजेन्द्र भी खेत में घूमने चला गया.

'बहूजी आप के लिए खाना बनाई ?' धन्नी ने उठते हुए कहा।

'तुम मुझे बहूजी नहीं, बस कल्याणी बुलाओ और खाने की तकलीफ रहने दो. बस मेरे साथ बातें करो !'

'जे ना हो सकत! आप मालिकन हुए और मेहमान भी. आप बैठो, आभिया आवत हाई.'

'चलो, मैं भी साथ चलती हूँ'

मैं उसके साथ झोपड़े में आ गई.बच्चे बाहर खेलने चले गए. उसने खाना बनाना चालू कर दिया. अब मैंने धन्नी से पूछा,'ये दुलारे तो उम्र में तुमसे बहुत बड़ा लगता है?'

'हमारे नसीबय खोट रहल.' धन्नी कुछ उदास सी हो गई.

वो थोड़ी देर चुप रही फिर उसने बताया कि दरअसल दुलारे के साथ उसकी बड़ी बहन की शादी हुई थी. कोई 10-11 साल पहले उसकी बहन की मौत हो गई तो घर वालों ने बच्चों का हवाला देकर उसे दुलारे के साथ ब्याह दिया. उस समय उसकी उम्र लगभग १६/१७ साल ही थी. उसने बताया कि सुहागरात में धन्नी ने उसे इतनी बुरी तरह चोदा था कि सारी रात उसकी कमसिन चूत से खून निकलता रहा.और 5-६ साल तक ठीक चलता रहा लेकिन अब जब वो पूरी तरह जवान हुई है तो दुलारे ढल चूका है .अब तो कभी कभार ही उसको हाथ लगता है और वो भी जल्दी धक जाता है. 

'तो तुम फिर कैसे गुज़ारा करती हो ?' मैंने पूछा तो वो हँसने लगी.

फिर उसने थोड़ा शर्माते हुए सच बता दिया,'शादी का 3-4 साल बाद हम यहाँ आये रहे. हम लोगन पर गजेन बाउ के ढेरो अहसान रहल . गजेन बाउ पहेलियाँ हसी मजाक करे चालू कियन. ख़ास ख्याल रखे रहे हमार. दुनो के जरूरत रहल. हमार आदमी तो कुछ करे काबिल रहए नही गयो रहे और और मुनिया भौजाई के गांड मरवाये का कौनो शौक नाही रहल. . अब का बताई गजेन बाउ के गांड मारे का शौक बा.'

उसकी बातें सुनकर मेरी चूत इतनी गीली हो गई थी कि उसका रस अब मेरी जांघो में बह निकला और पेंटी पूरी गीली हो गई . मै अपने को रोक नही पायी और अपनी चूत को सलवार के ऊपर से ही मसलना चालू कर दिया.

अब वो भी बिना शर्माए सारी बात बताने लगी थी. उसने आगे बताया कि गजेन्द्र का लंड मोटा और बड़ा है. रंग काला है और उसका सुपारा मशरूम की तरह है. वह चुदाई करते समय इतना रगड़ता है कि हड्डियाँ चटका देता है. चुदाई के साथ साथ वो गन्दी गन्दी गालियाँ भी निकलता रहता है. वो कहता है इससे लुगाई को भी जोश आ जाता है. मेरी तो एक बार चुदने के बाद पूरे एक हफ्ते की तसल्ली हो जाती है. मैं तो आधे घंटे की चुदाई में मस्त हो जाती हूँ उस दौरान 2-3 बार झड़ जाती हूँ.

'क्या उसने तुम्हारी कभी ग... गां... मेरा मतलब है...!' मैं कहते कहते थोड़ा रुक गई।

'हाँ जी ! कई बार मारो .'

'क्या तुम्हें दर्द नहीं होता ?'

'पहेलियाँ बहुत होत रहल अब्बे बड़ा नीक लागे.'
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01-19-2018, 01:20 PM,
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RE: Antarvasna Sex Kahani फार्म हाउस पर मस्ती
उसकी बात सुनकर मेरा मन बुरी तरह उस मोटे लंड के लिए कुनमुनाने लगा . काश एक ही झटके में गजेन्द्र अपना पूरा लंड मेरी चूत में उतार दे तो यहां आना धन्य हो जाए. मेरी चूत ने तो उस मोटे लंड की सोंच कर ही अपना पानी छोड़ दिया.


धन्नी ने खाना बहुत अच्छा बनाया था, चने की दाल, मटर गोभी की सब्जी और देसी घी से चिपटी गयी चुलेह की मोटी रोटी. धन्नी ने कहा कि कल वो दाल बाटी और चोखा बना कर खिलाएगी.

शाम के 4 बज रहे थे. हम लोग वापस आने के लिए जीप में बैठ गए तो गजेन्द्र उस झोपड़े की ओर चला गया जहां धन्नी बर्तन समेट रही थी. वो कोई 20-25 मिनट के बाद आया. उसके चेहरे की रंगत से लग रहा था कि वो जरूर धन्नी को चोद कर आया है.यह जानकर की वो धन्नी की चोद के आया है मेरे तन बदन में आग लग गयी.

मेरा मन चुदाई के लिए इतना बेचैन हो रहा था कि मैं चाह रही थी कि घर पहुँचते ही कमरा बंद करके घोड़ी बन जाऊं और राजेश्वर मेरी बहती चूत में अपना लंड डाल कर मुझे आधे घंटे तक तसल्ली से चोदे. पर मेरी किस्मत खराब थी, एक तो राजेश्वर देर से आया और फिर रात में भी उसने कुछ नहीं किया. उसका लंड खड़ा तो हुआ लेकिन कड़ा नही हुआ. मैंने चूसा भी पर वो मेरे मुँह में ही झड़ गया. फिर वो तो पीठ मोड़ कर सो गया पर मैं तड़फती रह गई. अब मेरे पास बाथरूम में जाकर चूत में अंगुली करने के सिवा और कोई रास्ता ही नही बचा था.

जिस कमरे में हम ठहरे थे उसका बाथरूम साथ लगे कमरे के बीच साझा था और उसका दरवाज़ा दोनों तरफ खुलता था. मैंने अपनी पनियाई चूत में कोई 15-20 मिनट अंगुली तो जरूर की होगी तब जाकर उसका थोड़ा सा रस निकला. जब मै शांत हुयी तो मुझे साथ वाले कमरे से कुछ सीत्कारें सुनाई दी. मैंने बत्ती बंद करके की-होल से उस कमरे में झाँका.अंदर का नज़ारा देख कर मेरा रोम रोम झनझना उठा.




मुनिया मादरजात नंगी हुई अपनी दोनों टांगें चौड़ी किये बेड पर चित्त लेटी थी और उसने अपने चूतड़ो के नीचे एक मोटा तकिया लगा रखा था. गजेन्द्र उसकी जाँघों के बीच पेट के बल लेटा हुआ मुनिया की झांटों वाली चूत को जोर जोर से चाट रहा था जैसे वो भैसा उस भैंस की चूत को चाट रहा था. जैसे ही वो अपनी जीभ को नीचे से ऊपर लाता तो उसकी फांकें चौड़ी हो जाती और अंदर का गुलाबी रंग झलकने लगता. मुनिया ने गजेन्द्र का सर अपने हाथों में पकड़ रखा था और वो आँखें बंद किये जोर जोर से आह्ह.... उह्हह.... कर रही थी. मुझे गजेन्द्र का लंड अभी दिखाई नहीं दिया था. अचानक गजेन्द्र ने उसे कुछ इशारा किया, तो मुनिया झट से अपने घुटनों के बाल चौपाया हो गई और उसने अपने चूतड़ ऊपर कर दिए.


उसके चूतड़ तो मेरे चूतडो से भी भारी और गोल थे. अब गजेन्द्र भी उठ कर उसके पीछे आ गया अब मैंने उसके लंड को पहली बार देखा. लगभग 8 इंच का काले रंग का लंड मेरी कलाई जितना मोटा लग रहा था और उसका सुपारा मशरूम की तरह गोल था!




अब मुनिया ने कंधे झुका कर अपना सर तकिये पर रख लिया और अपने दोनों हाथ पीछे करके अपनी चूत की फांकों को चौड़ा कर दिया और अपनी जांघें थोड़ी और चौड़ी कर ली. उसकी फांकें तो काली थी पर अंदर का रंग लाल तरबूज की गिरी जैसा था जो पूरा काम-रस से भरा था. गजेन्द्र ने पहले तो उसके चूतडो पर 2-3 बार थपकी लगाई और फिर अपने एक हाथ पर थूक लगा कर अपने सुपारे पर चुपड़ दिया. फिर उसने अपना लंड मुनिया की चूत के छेद पर रख दिया. अब गजेन्द्र ने उसकी कमर पकड़ ली और उस भैंसे की तरह एक हुंकार भरी और एक जोर का झटका लगाया.पूरा का पूरा लंड एक ही झटके में घप्प से चूत के अंदर समां गया. मेरी तो आँखें फटी की फटी रह गई. मैं तो सोचती थी कि मुनिया जोर से चिल्लाएगी पर वो तो मस्त हुई आह...याह्ह...करती रही.
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01-19-2018, 01:20 PM,
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RE: Antarvasna Sex Kahani फार्म हाउस पर मस्ती
मेरी साँसें तेज हो गई थी और दिल की धड़कने बेकाबू सी होने लगी थी. मेरी आँखों में जैसे लालिमा सी उतर आई थी. मुझे तो पता ही नहीं चला कब मेरे हाथ अपनी चूत की फांकों पर दुबारा पहुँच गए थे. मैंने फिर से उसमें अंगुली करनी चालू कर दी. दूसरी तरफ तो जैसे सुनामी ही आ गई थी. गजेन्द्र जोर जोर से धक्के लगाने लगा था और मुनिया की कामुक सीत्कारें पूरे कमरे में गूँजने लगी थी। बीच बीच में वो उसके मोटे नितंबों पर थप्पड़ भी लगा रहा था. वो धीमी आवाज में गालियाँ भी निकाल रहा था और मुनिया के चूतडो पर थप्पड़ भी लगा रहा था. जैसे ही वो उन कसे हुए चूतडो पर थप्पड़ लगाता चूतड़ थोड़ा सा हिलते और मुनिया की सीत्कार फिर निकल जाती.

वो तो थकने का नाम ही नहीं ले रहे थे. जैसे ही गजेन्द्र धक्का लगता मुनिया भी अपने चूतड़ पीछे की ओर कर देती तो एक जोर की फच्च की आवाज आती. उन्हें कोई 10-12 मिनट तो हो ही गए होंगे. अब कुछ धीमा हो गया था.वो धीरे धीरे अपना लण्ड बाहर निकालता और थोड़े अंतराल के बाद फिर एक जोर का धक्का लगता तो उसके साथ ही मुनिया की चूत की गीली फांकें उसके लण्ड के साथ ही अंदर चली जाती.

मैंने कई बार ब्लू फिल्म देखी थी पर सच कहूँ तो इस चुदाई को देख कर तो मेरा दिल बाग-बाग ही हो गया था. मेरी आँखों में सतरंगी तारे जगमगाने लगे थे. मैंने अपनी चूत में तेज तेज अंगुली करनी चालू कर दी. मेरे ना चाहते हुए भी मेरी आँखें बंद होने लगी और मैं एक बार फिर झड़ गई.

अब गजेन्द्र ने मुनिया के चूतडो पर हाथ फिराया और दोनों गोलों को चौड़ा कर दिया उसके बीच काले रंग का फूल जैसे मुस्कुरा रहा था. उसने धक्के लगाने बंद नहीं किये थे. हलके धक्कों के साथ वो फूल भी कभी बंद होता कभी थोड़ा खुल जाता. अब वो अपना एक हाथ नीचे करके मुनिया की चूत की ओर ले गया. मेरा अंदाज़ा था कि वो जरुर उसकी चूत के दाने को मसल रहा होगा. अब उसने दूसरे हाथ का अंगूठा मुँह में लेकर उस पर थूक लगाया और फिर मुनिया की गांड के छेद में घुसा दिया.




इसके साथ ही मुनिया की एक किलकारी कमरे में गूँज गई.......... ईईईईईईईईईईईईइ............

शायद वो झड़ गई थी. कुछ देर वो दोनों शांत रहे फिर गजेन्द्र ने अपना लण्ड बाहर निकल लिया. चूत रस से भीगा लण्ड ट्यूब लाइट की दूधिया रोशनी में ऐसा लग रहा था जैसे कोई काला नाग फन उठाये नाच रहा हो. उसका लण्ड तो अभी भी झटके खा रहा था. मुझे तो लगा यह अपना लण्ड जरुर मुनिया की गांड में डालने के चक्कर में होगा. पर मेरा अंदाज़ा गलत निकला.

'मुनिया ,तेरी चूत तो अब भोसड़ा बन गई है.सच कहता हूँ एक बार गांड मरवा ले ! तू चूत मरवाना भूल जायेगी !'

'जाओ कोई और ढूंढ़ लो मुझे अपनी गांड नहीं फड़वानी !'

मुनिया घोड़ी बने शायद थक गई थी वो अपने चूतडो के नीचे एक तकिया लगा कर फिर चित्त लेट गई. चूत पर उगी काली काली झांटें चूत रस से भीग गई थी. अब गजेन्द्र फिर उसकी जाँघों के बीच आ गया और उसने अपना लण्ड हाथ में पकड़ कर उसकी चूत में डाल दिया. जब उसके ऊपर लेट गया तो मुनिया ने अपने दोनों पैर ऊपर उठा लिए, गजेन्द्र ने अपना एक हाथ उसकी गर्दन के नीचे लगाया और एक हाथ से उसके मोटे मोटे उरोजों को मसलने लगा. साथ ही वो उसके होंठों को भी चूसे जा रहा था. मुनिया ने उसे कस कर अपनी बाहों में जकड़ लिया. ऐसा लग रहा था जैसे दोनों गुत्थम-गुत्था हो गए थे. गजेन्द्र के धक्कों की रफ़्तार अब तेज होने लगी थी. 

मेरी चूत ने भी बेहताशा पानी छोड़ दिया था और ज्यादा मसलने के कारण उसकी फांकें सूज सी गई थी. मेरा मन कर रहा था कि मैं अभी दरवाज़ा खोल कर अंदर चली जाऊं और मुनिया को एक ओर कर गजेन्द्र का पूरा लण्ड अपनी चूत में डाल लूँ. या फिर उसको चित्त लेटा कर मैं अपनी चूत को उसके मुँह पर लगा कर जोर जोर से रगडूं ! पर ऐसा कहाँ संभव था. लेकिन अब मैंने पक्का सोच लिया था कि चाहे जो हो जाए, मुझे कुछ भी करना पड़े मैं इस मूसल लण्ड का स्वाद जरुर लेकर रहूँगी.

उधर गजेन्द्र ने धक्कों की जगह अपने लण्ड को उसकी चूत पर रगड़ना चालू कर दिया. मैंने मस्तराम की प्रेम कहानियों में पढ़ा था कि इस प्रकार लण्ड को चूत पर घिसने से औरत की चूत का दाना लण्ड के साथ बहुत रगड़ खाता है और औरत बिना कुछ किये धरे जल्दी ही झड़ जाती है. मुनिया की सीत्कारें बंद बाथरूम तक भी साफ़ सुनाई दे रही थी.
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01-19-2018, 01:20 PM,
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RE: Antarvasna Sex Kahani फार्म हाउस पर मस्ती
अचानक मुनिया की एक जोर की कामुक सीत्कार निकली और वो जोर जोर से चिल्लाने लगी,'ओह... जगन... अबे साले...जोर जोर से कर ना.. ओ....आह मेरी माँ उईई...माँ..... और जोर से मेरे राजा....या.....उईईईईई....'

अब गजेन्द्र ने जोर जोर से धक्के लगाने शुरू कर दिए. मुनिया ने अपने पैरों की कैंची सी बना कर उसकी कमर पर लपेट ली. जैसे ही गजेन्द्र धक्के लगाने के लिए ऊपर उठता,मुनिया के चूतड़ भी उसके साथ ही ऊपर उठ जाते और फिर एक धक्के के साथ उसके चूतड़ नीचे तकिये से टकराते और धच्च के आवाज निकलती और साथ ही उसके पैरों में पहनी पायल के रुनझुन बज उठती।

'गज्जू मेरे सांड...मेरे...राज़ा......अब निकाल दो....आह्ह्ह........'

लगता था मुनिया फिर झड़ गई है।

'ले मेरी रानी.... आह्ह.... अब मैं भी जाने वाला हूँ.... आह...यह्ह्ह्ह.'

'ओ म्हारी माँ .... मैं … मर गई री ईईईइ.'

और उसके साथ ही उसने 5-6 धक्के जोर जोर से लगा दिए. मुनिया के पैर धड़ाम से नीचे गिर गए और वह जोर जोर से हांफने लगी गजेन्द्र का भी यही हाल था. दोनों ने एक दूसरे को अपनी बाहों में जकड़ लिया और दोनों की किलकारी एक साथ गूँज गई और फिर दोनों के होंठ एक दूसरे से चिपक गए.

कोई 10 मिनट तक वो दोनों इसी अवस्था में पड़े रहे फिर धीरे धीरे एक दूसरे को चूमते हुए उठ कर कपड़े पहनने लगे. मुझे लगा वो जरुर अब बाथरूम की ओर आयेंगे. मेरा मन तो नहीं कर रहा था पर बाथरूम से बाहर आकर कमरे में जाने की मजबूरी थी. मैं मन मसोस कर कमरे में आ गई.

कमरे में राजेश्वर के खर्राटे सुन कर तो मेरी झांटे ही सुलग गई. मेरी आँखों में नींद कहाँ थी मेरी आँखों में तो बसगजेन्द्र का मूसल लण्ड ही बसा था। मैं तो रात के दो बजे तक करवटें ही बदलती रही और जब आँख लगी तो फिर सारी रात वो काला मोटा लण्ड ही सपने में घूमता रहा.


अगले दिन मुझे सुबह उठने में देरी हो गई .। राजेश्वर नहा धो कर फिर किसी काम से जा चूका था. जब मैं उठी तो मुनिया ने बताया कि धन्नी ने संदेश भिजवाया है कि वो मेरे लिए आज विशेष रूप से दाल बाटी और चोखा बनाएगी सो मैं आज फिर फ़ार्म हाउस के उस हिस्से में जाऊं.मैं भी तो इसी ताक में थी. 

जब हम पहुंचे तो झोपड़ी से धन्नी निकल आई और मुस्कराते हुए 'पाये लागी' कहा.


मुझे धन्नी के पास चोद कर गजेन्द्र खेत में बने ट्यूब वेल की ओर चला गया और मैं धन्नी के साथ कमरे में आ गई.आज दुलारे और बच्चे नहीं दिखाई दे रहे थे. मैंने जब इस बाबत पूछा तो धन्नी ने बताया कि बच्चे तो स्कूल गये हैं और दुलारे किसी काम से फिर शहर चला गया है शाम तक लौटेगा.

फिर वो बोली, 'बहूजी, आप बइठल जाये , खनवा बनाये कर आवत हाई.'

मुझे बड़ी जोर से सु सु आ रहा था,साथ ही मेरी चूत भी कुलबुला रही थी, मैंने पूछा'.बाथरूम किधर है?'

मेरी बात सुन कर धन्नी हँसते हुए बोली,"पूरा खेतवा ही बाथरूम बा!'

"ओह.'

'सरसों और चना के खेतवा मा हुयी ले कौनो न लौकयी.'

मजबूरी थी मैं सरसों के खेत में आ गई, मेरे कन्धों तक सरसों के बूटे खड़े थे. आस पास कोई नहीं था. मैंने अपनी साड़ी ऊपर की और फिर काले रंग की पेंटी को जल्दी से नीचे करते हुए मैं मूतने बैठ गई.

फिच्च सीईईई.... के मधुर संगीत के साथ पतली धार दूर तक चली गई. जैसे ही मैं उठने को हुई तो सुबह की ठंडी हवा का झोंका मेरी चूत पर लगी तो मैं रोमांच से भर उठी और मैंने उसकी फांकों को मसलना चालू कर दिया. मेरे ख्यालों में तो बस कल रात वाली चुदाई का दृश्य ही घूम रहा था. मेरी आँखें अपने आप बंद हो गई और मैंने अपनी चूत में अंगुली करनी शुरू कर दी. मेरे मुँह से अब सीत्कार भी निकलने लगी थी।
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01-19-2018, 01:21 PM,
#7
RE: Antarvasna Sex Kahani फार्म हाउस पर मस्ती
कोई 5-7 मिनट की अंगुलबाजी के बाद अचानक मेरी आँखें खुली तो देखा सामने गजेन्द्र खड़ा अपने पजामे में बने उभार को सहलाता हुआ मेरी ओर एकटक देखे जा रहा था और मंद मंद मुस्कुरा रहा था.

मैं तो हक्की बक्की ही रह गई. मैं तो इतनी सकपका गई थी कि उठ भी नहीं पाई.

गजेन्द्र मेरे पास आ गया और मुस्कुराते हुए बोला,'भौजी आप घबराएं नहीं ! मैंने कुछ नहीं देखा.'

अब मुझे होश आया. मैं झटके से उठ खड़ी हुई. मैं तो शर्म के मारे धरती में ही गड़ी जा रही थी. पता नहीं गजेन्द्र कब से मुझे देख रहा होगा. और अब तो वो मुझे बहूजी के स्थान पर भौजी (भाभी) कह रहा था.

'वो, वो.' मै सकपकाते हुए बोली.

'अरे! कोई बात नहीं, वैसे एक बात बताऊँ?'

'क... क्या.?'

'आपकी छमिया बहुत खूबसूरत है!'

वो मेरे इतना करीब आ गया था कि उसकी गर्म साँसें मुझे अपने चेहरे पर महसूस होने लगी थी.उसकी बात सुनकर मुझे थोड़ी शर्म भी आई और फिर मैं रोमांच में भी डूब गई.। अचानक उसने अपने हाथ मेरे कन्धों पर रख दिए और फिर मुझे अपनी और खींचते हुए अपनी बाहों में भर लिया. मेरे लिए यह अप्रत्याशित था. मैं नारी सुलभ लज्जा के मारे कुछ बोलने की स्थिति में नहीं थी, और वो इस बात को बहुत अच्छी तरह जानता था.

सच कहूँ तो एक पराये मर्द के स्पर्श में कितना रोमांच होता है मैंने आज दूसरी बार महसूस किया था. मैं तो कब से चाह रही थी कि वो मुझे अपनी बाहों में भर कर मसल डाले. यह अनैतिक काम मुझे रोमांचित कर रही थी. उसने अपने होंठ मेरे अधरों पर रख दिए और उन्हें चूमने लगा. मैं अपने आप को छुड़ाने की नाकामयाब कोशिश कर रही थी पर अंदर से तो मैं चाह रही थी कि इस सुनहरे मौके को हाथ से ना जाने दूँ. मेरा मन कर रहा था कि गजेन्द्र मुझे कस कर अपनी बाहों में जकड़ कर ले और मेरा अंग अंग मसल कर कुचल डाले. उसकी कंटीली मूंछें मेरे गुलाबी गालों और अधरों पर फिर रही थी. उसके मुँह से आती मधुर सी सुगंध मेरे साँसों में जैसे घुल सी गई।

'न.. नहीं..गजेन्द्र यह तुम क्या कर रहे हो ? क.. कोई देख लेगा..? छोड़ो मुझे ?' मैंने अपने आप को छुड़ाने की फिर थोड़ी सी कोशिश की.

'अरे भौजी क्यों अपनी इस जालिम जवानी को तरसा रही हो ?'

'नहीं...नहीं...मुझे शर्म आती है..!'

अब वो इतना फुद्दू और अनाड़ी तो नहीं था कि मेरी इस ना और शर्म का असली मतलब भी ना समझ सके.

'अरे इसमें शर्म की क्या बात है. मैं जानता हूँ तुम भी प्यासी हो और मैं भी.' कह कर उसने मुझे जोर से अपनी बाहों में कस लिया और मेरे होंठों को जोर जोर से चूमने लगा.

मेरे सारे शरीर में एक बिजली सी दौड़ गई और एक मीठा सा ज़हर जैसे मेरे सारे बदन में भर गया और आँखों में लालिमा उभर आई. मेरे दिल की धड़कने बहुत तेज हो गई और साँसें बेकाबू होने लगी. अब उसने अपना एक हाथ मेरे चूतडो पर कस कर मुझे अपनी ओर दबाया तो उसके पायजामे में खूंटे जैसे खड़े लण्ड का अहसास मुझे अपनी नाभि पर महसूस हुआ तो मेरी एक कामुक सीत्कार निकल गई.।

'भौजी,.चलो कमरे में चलते हैं !'

'वो..वो...ध..धन्नी ?' मैं तो कुछ बोल ही नहीं पा रही थी.

'ओह तुम उसकी चिंता मत करो उसे दाल बाटी ठीक से पकाने में पूरे दो घंटे लगते हैं।'

'क्या मतलब.?'

'वो' सब जानती है ! बहुत समझदार है खाना बहुत प्रेम से बनाती और खिलाती है।' जगन हौले-हौले मुस्कुरा रहा था.

अब मुझे सारी बात समझ आ रही थी. कल वापस लौटते हुए ये दोनों जो खुसर फुसर कर रहे थे और फिर रात को गजेन्द्र ने मुनिया के साथ जो तूफानी पारी खेली थी लगता था वो सब इस योजना का ही हिस्सा थी. खैर गजेन्द्र ने मुझे अपनी गोद में उठा लिया तो मैंने भी अपनी बाहें उसके गले में डाल दी. मेरी तंग चोली में कसे उरोज उसके सीने से लगे थे, मैंने भी अपनी नुकीली चूचियाँ उसकी छाती से गड़ा दी.

हम दोनों एक दूसरे से लिपटे कमरे में आ गए.
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01-19-2018, 01:21 PM,
#8
RE: Antarvasna Sex Kahani फार्म हाउस पर मस्ती
उसने धीरे से मुझे बेड पर लेटा दिया और फिर कमरे का दरवाजे की सांकल लगा ली. मैं आँखें बंद किये बेड पर लेटी रही. अब गजेन्द्र ने झटपट अपने सारे कपड़े उतार दिए.अब उसके बदन पर मात्र एक पत्तों वाला कच्छा बचा था। कच्छा तो पूरा टेंट बना था. वो मेरे बगल में आकर लेट गया और अपना एक हाथ मेरी साड़ी के ऊपर से ही मेरी चूत पर लगा कर उसका छेद टटोलने लगा और दूसरे हाथ से वो मेरे उरोजों को मसलने लगा.


फिर उसने मेरी साड़ी को ऊपर खिसकाना शुरू कर दिया. मैंने अपनी जांघें कस लीं. मेरी काली पेंटी में मुश्किल से फंसी मेरी चूत की मोटी फांकों को देख कर तो उसकी आँखें ही जैसे चुंधिया सी गई.उसने पहले तो उस गीली पेंटी के ऊपर से सूंघा फिर उस पर एक चुम्मा लेते हुए बोला,'भौजी, ऐसे मज़ा नहीं आएगा! कपड़े उतार देते हैं'


मैं क्या बोलती. उसने खींच कर पहले तो मेरी साड़ी और फिर पेटीकोट उतार दिया. मेरे विरोध करने का तो प्रश्न ही नहीं था. फिर उसने मेरा ब्लाउज भी उतार फेंका.मैं तो खुद जल्दी से जल्दी चुदने को बेकरार थी. मेरे ऊपर नशा सा छाने लगा था और मेरी आँखें उन्माद में डूबने लगी थी. मेरा अंदाज़ा था वो पहले मेरी चूत को जम कर चूसेगा पर वो तो मुझे पागल करने पर उतारू था जैसे. अब उसने मेरी ब्रा भी उतार दी तो मेरे रस भरे गुलाबी संतरे उछल कर जैसे बाहर आ गए. मेरे उरोजों की घुन्डियाँ ज्यादा बड़ी नहीं हैं बस मूंगफली के दाने जितनी गहरे गुलाबी रंग की हैं. उसने पहले तो मेरे उरोज जो अपने हाथ से सहलाया फिर उसकी घुंडी अपने मुँह में लेकर चूसने लगा. मेरी सीत्कार निकलने लगी। मेरा मन कर रहा था वो इस चूसा-चुसाई को छोड़ कर जल्दी से एक बार अपना खूंटा मेरी चूत में गाड़ दे तो मैं निहाल हो जाऊं.




बारी-बारी उसने दोनों उरोजों को चूसा और फिर मेरे पेट, नाभि और पेडू को चूमता चला गया. अब उसने मेरी पेंटी के अंदर बने उभार के ऊपर मुँह लगा कर सूंघा और फिर उस उभार वाली जगह को अपने मुँह में भर लिया. मेरे सारे शरीर में सिहरन सी दौड़ गई और मुझे लगा मेरी चूत ने फिर पानी छोड़ दिया.


फिर उसने काली पेंटी को नीचे खिसकाना शुरू कर दिया. मैंने दो दिन पहले ही अपनी झांटे साफ़ की थी इसलिए वो तो अभी भी चकाचक लग रही थी. मेरी ज्यादा चुदाई नहीं हुई थी तो मेरी फांकों का रंग अभी काला नहीं पड़ा था. मोटी मोटी फांकों के बीच चीरे का रंग हल्का भूरा गुलाबी था. मेरी चूत की दोनों फांकें इतनी मोटी थी कि पेंटी उनके अंदर धंस जाया करती थी और उसकी रेखा बाहर से भी साफ़ दिखती थी उसने केले के छिलके की तरह मेरी पेंटी को निकाल बाहर किया. मैंने अपने चूतड़ उठा कर पेंटी को उतारने में पूरा सहयोग किया. पर पेंटी उतार देने के बाद ना जाने क्यों मेरी जांघें अपने आप कस गई.
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01-19-2018, 01:21 PM,
#9
RE: Antarvasna Sex Kahani फार्म हाउस पर मस्ती
अब उसने अपने दोनों हाथ मेरी केले के तने जैसी जाँघों पर रखे और उन्हें चौड़ा करने लगा. मेरा तो सारा खजाना ही जैसे खुल कर अब उसके सामने आ गया था. वो थोड़ा नीचे झुका और फिर उसने पहले तो मेरी चूत पर हाथ फिराए और फिर उस पतली लकीर पर उंगुली फिराते हुए बोला,'भौजी.. तुम्हारी छमिया तो बहुत खूबसूरत है, लगता है उस राजेश्वर भईया ने इसका पूरा मज़ा नहीं लिया है.'


मैंने शर्म के मारे अपने हाथ अपने चहरे पर रख लिए. अब उसने दोनों फांकों की बालियों को पकड़ कर चौड़ा किया और फिर अपनी लपलपाती जीभ मेरी चूत की झिर्री के नीचे से लेकर ऊपर तक फिरा दी. फिर उसने अपनी जीभ को 3-4 बार ऊपर से नीचे और फिर नीचे से ऊपर फिराया. मेरी चूत तो पहले से ही काम रस से लबालब भरी थी. मैंने अपने आप ओ रोकने की बहुत कोशिश की पर मेरी सीत्कार निकलने लगी. कुछ देर जीभ फिराने के बाद उसने मेरी चूत को पूरा का पूरा मुँह में भर लिया और जोर जोर से चूसने लगा. मेरे लिए यह किसी स्वर्ग के आनंद से कम नहीं था.




राजेश्वर को चूत चाटने और चूसने का बिलकुल भी शौक नहीं है. एक दो बार मेरे बहुत जोर देने पर उसने मेरी चूत को चूसा होगा पर वो भी अनमने मन से. जिस तरह से गजेन्द्र चुस्की लगा रहा था मुझे लगा आज मेरा सारा मधु इसके मुँह में ही निकल जाएगा. उसकी कंटीली मूंछें मेरी चूत की कोमल त्वचा पर रगड़ खाती तो मुझे जोर की गुदगुदी होती और मेरे सारे शरीर में अनोखा रोमांच भर उठता.


उसने कोई 5-6 मिनट तो जरुर चूसा होगा. मेरी चूत ने कितना शहद छोड़ा होगा मुझे कहाँ होश था. पता नहीं यह चुदाई कब शुरू करेगा. अचानक वो हट गया और उसने भी अपने कच्छे को निकाल दिया। 8 इंच काला भुजंग जैसे अपना फन फैलाए ऐसे फुन्कारें मार रहा था जैसे चूत में गोला बारी करने को मुस्तैद हो.उसने अपने लण्ड को हाथ में पकड़ लिया और 2-3 बार उसकी चमड़ी ऊपर नीचे की फिर उसने नीचे होकर मेरे होंठों के ऊपर फिराने लगा. मैंने उसे अपने दोनों हाथों की मुट्ठियों में पकड़ लिया मैंने अपनी दोनों बंद मुट्ठियों को 2-3 बार ऊपर नीचे किया और फिर उसके सुपारे पर अपनी जीभ फिराने लगी तो उसका लण्ड झटके खाने लगा।

'भौजी इसे मुँह में लेकर एक बार चूसो बहुत मज़ा आएगा.'




मैंने बिना कुछ कहे उसका सुपारा अपने मुँह में भर लिया. सुपारा इतना मोटा था कि मुश्किल से मेरे मुँह में समाया होगा.मैंने उसे चूसना चालू कर दिया पर मोटा होने के कारण मैं उसके लण्ड को ज्यादा अंदर नहीं ले पाई. अब तो वो और भी अकड़ गया था। गजेन्द्र ने अपनी आँखें बंद कर रखी थी और दोनों हाथों से मेरा सर पकड़ कर सीत्कार करने लगा. मुझे डर था कहीं उसका लण्ड मेरे मुँह में ही अपनी मलाई ना छोड़ दे. मैं ऐसा नहीं चाहती थी.3-4 मिनट चूसने के बाद मैंने उसका लण्ड अपने मुँह से बाहर निकाल दिया.

अब वो मेरी जाँघों के बीच आ गया और मेरी चूत की फांकों पर लगी बालियों को चौड़ा करके अपने लण्ड का सुपारा मेरी चूत के छेद पर लगा दिया. मैं डर और रोमांच से सिहर उठी. हे भगवान इतना मोटा और लंबा मूसल कहीं मेरी चूत को फाड़ ही ना डाले!

अब उसने अपना एक हाथ मेरी गर्दन के नीचे लगा लिया और दूसरे हाथ से मेरे उरोजों को मसलने लगा. फिर उसने अपनी अंगुली और अंगूठे के बीच मेरे चुचूक को दबा कर उसे धीरे धीरे मसलने लगा. मेरी सिसकारी निकल गई. उसका मोटा लण्ड मेरी चूत के मुहाने पर ठोकर लगा रहा था. मुझे बड़ी हैरानी हो रही थी यह अपना मूसल मेरीचूत में डाल कर उसे ओखली क्यों नहीं बना रहा. मेरा मन कर रहा था कि मैं ही अपने चूतड़ उछाल कर उसका लण्ड अंदर कर लूँ. मेरा सारा शरीर झनझना रहा था और मेरी चूत तो जैसे उसका स्वागत करने को अपना द्वार चौड़ा किये तैयार खड़ी थी.


अचानक....................................
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01-19-2018, 01:21 PM,
#10
RE: Antarvasna Sex Kahani फार्म हाउस पर मस्ती
अचानक उसने एक झटका लगाया और फिर उसका मूसल मेरी चूत की दीवारों को चौड़ा करते हुए अंदर चला गया.मेरी तो मारे दर्द के चीख ही निकल गई. धक्का इतना जबरदस्त था कि मुझे दिन में तारे नज़र आने लगे थे. मुझे लगा उसका मूसल मेरी बच्चेदानी के मुँह तक चला गया है और गले तक आ जाएगा. मैं दर्द के मारे कसमसाने लगी. उसने मुझे कस कर अपनी अपनी बाहों में जकड़े रखा. उसने अपने घुटने मोड़ कर अपनी जांघें मेरी कमर और कूल्हों के दोनों ओर ज्यादा कस ली. मेरे आंसू निकल गए और चूत में तो ऐसा लग रहा था जैसे किसी ने उसे तीखी छुरी से चीर दिया है. मुझे तो डर लग रहा था कहीं वो फट ना गई हो और खून ना निकलने लगा हो.




कुछ देर वो मेरे ऊपर शांत होकर पड़ा रहा. उसने अपनी फ़तेह का झंडा तो गाड़ ही दिया था. उसने मेरे गालों पर लुढ़क आये आंसू चाट लिए और फिर मेरे अधरों को चूसने लगा. थोड़ी देर में उसका लण्ड पूरी तरह मेरी चूत में समायोजित हो गया. मुझे थोड़ा सा दर्द तो अभी भी हो रहा था पर इतना नहीं कि सहन ना किया जा सके. साथ ही मेरी चूत की चुनमुनाहट तो अब मुझे रोमांचित भी करने लगी थी. अब मैंने भी सारी शर्म और दर्द भुला कर आनंद के इन क्षणों को भोगने का मन बना ही लिया था. मैंने उसकी जीभ अपने मुँह में भर ली और उसे ऐसे चूसने लगी जैसे उसने मेरी चूत को चूसा था. कभी कभी मैं भी अपनी जीभ उसके मुँह में डालने लगी थी जिसे वो रसीली कुल्फी की तरह चूस रहा था.


उसने हालांकि मेरी चूत की फांकों और कलिकाओं को बहुत कम चूसा था पर जब वो कलिकाओं को पूरा मुँह में भर कर होले होले उनको खींचता हुआ मुँह से बाहर निकालता था तो मेरा रोमांच सातवें आसमान पर होता था. जिस अंदाज़ में अब वो मेरी जीभ चूस रहा था मुझे बार बार अपनी चूत के कलिकाओं की चुसाई याद आ रही थी.


मेरी मीठी सीत्कार अपने आप निकलने लगी थी. मुझे तो पता ही नहीं चला कि कब गजेन्द्र ने होले होले धक्के भी लगाने शुरू कर दिए थे. मुझे कुछ फंसा फंसा सा तो अनुभव हो रहा था पर लण्ड के अंदर बाहर होने में कोई दिक्कत नहीं आ रही थी. वो एक जोर का धक्का लगता और फिर कभी मेरे गालों को चूम लेता और कभी मेरे होंठों को। कभी मेरे उरोजों को चूमता मसलता और कभी उनकी घुंडियों को दांतों से दबा देता तो मेरी किलकारी ही गूँज जाती.अब तो मैं भी नीचे से अपने चूतडो को उछल कर उसका साथ देने लगी थी.


हम दोनों एक दूसरे की बाहों में किसी अखाड़े के पहलवानों की तरह गुत्थम गुत्था हो रहे थे, साथ साथ वो मुझे गालियाँ भी निकाल रहा था. मैं भला पीछे क्यों रहती। हम दोनों ने ही चूत भोसड़ी लण्ड चुदाई जैसे शब्दों का भरपूर प्रयोग किया. जितना एक दूसरे को चूम चाट और काट सकते थे काट खाया. इतनी कसी हुई चूत उसे बहुत दिनों बाद नसीब हुई थी. मैंने अपनी जांघें जितनी चौड़ी की जा सकती थी कर ली ताकि वो ज्यादा से ज्यादा अंदर डाल सके. मुझे तो लगा मैं पूर्ण सुहागन तो आज ही बनी हूँ.सच कहूं तो इस चुदाई जैसे आनंद को शब्दों में तो वर्णित किया ही नहीं जा सकता.




वो लयबद्ध ढंग से धक्के लगाता रहा और मैं आँखें बंद किये सतरंगी सपनों में खोई रही. वो मेरा एक चूचक अपने मुँह में भर कर चूसे जा रहा था और दूसरे को मसलता जा रहा था. मैं उसके सर और पीठ को सहला रही थी. और उसके धक्कों के साथ अपने चूतड़ भी ऊपर उठाने लगी थी. इस बार जब मैंने अपने चूतड़ उछाले तो उसने अपना एक हाथ मेरे नितंबों के नीचे किया और मेरी गांड का छेद टटोलने लगा।


पहले तो मैंने सोचा कि चूत से निकला कामरज वहाँ तक आ गया होगा पर बाद में मुझे पता चला कि उसने अपनी तर्जनी अंगुली पर थूक लगा रखा था. तभी मुझे अपनी गांड पर कुछ गीला गीला सा लगा. इससे पहले कि मैं कुछ समझती उसने अपनी थूक लगी अंगुली मेरी गांड में डाल दी. उसके साथ ही मेरी हर्ष मिश्रित चीख सी निकल गई। मुझे लगा मैं झड़ गई हूँ.

'अबे...ओ...बहन के ..भोसड़ी के...ओह..'

'अरे मेरी रानी ... तेरी चूत की तरह तेरी गांड भी कुंवारी ही लगती है ?'

'अबे साले..... मुफ्त की चूत मिल गई तो लालच आ गया क्या ?' मैंने अपनी गांड से उसकी उंगुली निकालने की कोशिश करते हुए कहा।

'भौजी.. एक बार गांड मार लेने दो ना ?' उसने मेरे गालों को काट लिया।

'ना...बाबा... ना... यह मूसल तो मेरी गांड को फाड़ देगा. तुमने इस चूत का तो लगता है बैंड बजा दिया है, अब गांड का बाजा नहीं बजवाऊंगी.'
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