Antarvasna kahani माया की कामुकता
12-13-2018, 02:41 AM,
RE: Antarvasna kahani माया की कामुकता
"अबे ए.. दो दो हज़ार में छोकरे लोग लाइन लगा के खड़े हो जाएँगे.. चल फुट ले " राजू ने मुझे जाने के लिए कहा.. पलट के मैं जाने लगा, और अंदर ही अंदर खुद को कोसने लगा, कि मैने 2000 में ही बात मान ली होती तो क्या जाता.. खुद को गालियाँ देता मैने कुछ कदम आगे बढ़ाए ही थे कि पीछे से राजू बोला



"आए बादशाह.. चल तीन रख लेना.... कल 1 बजे मिलूँगा मैं तुझे इधर समझा...." राजू ने पीछे से आवाज़ दी और कहीं चला गया... वो बात सुन के जैसे मानो मैने कोई बढ़ी उपलब्धि हासिल कर ली हो.. तीन हज़ार रुपये आने का सोच कि मैं रात भर सो नहीं पाया.. सुबह काम करने की दिल भी नहीं हुई, पूरा दिन बस यही सोचता रहा के तीन हज़ार के लिए क्या काम कैसे करूँगा.. यह सब सोच सोच के शाम ढलने लगी और मैं वहीं चाइ की दुकान पे बैठा रहा...रात के करीब 10 बजे सोया ताकि 1 बजे राजू के आने से पहले उठ सकूँ... ठीक 1 बजे मैं उठा और कपड़े पहेन के मैं दुकान के बाहर आया तो राजू भी सामने से आ रहा था.... मैं धीरे धीरे उसकी तरफ बढ़ने लगा और उसके पास जाके खड़ा हो गया



"सही है गुरु.. पहले काम के लिए तैयार है ना.." राजू ने अपनी बीड़ी जलाते हुए कहा



"हां.... मैं तैयार हूँ...." मैने निडरता से कहा



"वाह, अच्छा सुन डरने का नहीं.. समझा" राजू ने भीड़ी के धुँए को आसमान में उड़ा के कहा



"अगर डरँगा, तो काम बुरा मान जाएगा.." मैने भी उसके हाथ से बीड़ी ली और उसका कश लेने लगा



"वाह बेटे, सही है... चल अब आजा देखते हैं.." कहके राजू और मैं दोनो डॉक्स में गये और आने वाली बोट का इंतेज़ार करने लगे.. 



ठीक 2 बजे हमे दूर से बोट आती दिखी.. राजू और मैं वहीं खड़े खड़े उसका इंतेज़ार करने लगे.. जैसे जैसे बोट नज़दीक आती, मेरे दिल की धड़कन तेज़ होती जाती... लेकिन तीन हज़ार रुपये, बार बार मुझे अपने कदम पीछे हटाने से रोक रहे थे.... जैसे ही बोट किनारे पे आई, पहले राजू उसके नज़दीक गया और अंदर बैठे आदमी से कुछ हाथ में लेके देखा और फिर अंगूठा दिखा दिया उसे.. फिर उससे हमारे पैसे लेके मुझे समान उठाने का इशारा किया... हम जल्दी से अपने अपने बॉक्सस उठा के किनारे पे रखने लगे... जैसे ही हम ने आखरी बॉक्स किनारे पे रखा, हमे फिर से एक बोट आती दिखी, लेकिन वो पोलीस की थी...



"अबे, यह कहाँ से आ गये.. आज से पहले तो कभी नहीं आए, अब हम कहाँ रखेंगे इसको.." राजू ने अपने बाल खींच के समान की तरफ इशारा करके कहा



"डर नहीं रखने का बादशाह, इसी के लिए अपुन ने तुझसे 3000 माँगे थे..." मैने वहीं खड़े रहके पोलीस की बोट की तरफ इशारा किया और उन्हे अपने पास बुलाने लगा.. जैसे ही पोलीस की बोट हमारे पास आई, उसमे से एक इनस्पेक्टर और दो हवलदार बाहर आए..



"सुलेमान साब.. वादे के मुताबिक यह रहे आपके 2000 रुपये...." मैने राजू से पैसे लिए और उसमे से 2000 निकाल के उनके हाथ में थमा दिए



"हम तीन हैं.. तो 2 हज़ार कैसे बाटेंगे हम.." इनस्पेक्टर सुलेमान ने कहा



"ठीक है साब... दूसरी बार जब माल आएगा , तब आपका यह कर्ज़ा भी उतार देंगे..." मैने 2000 उसके हाथ में पकड़ाए और उसे चलता किया



"अबे, यह क्या.. कैसे, मतलब..." राजू हकलाने लगा



"कहने से कोई बादशाह नहीं बन जाता गुरु... मैं जब काम हाथ में लेता हूँ तभी उसके बारे में पूरी तरह सोच लेता हूँ... यह बॉमबे पोलीस की नयी मुहिम है, बोट में स्मगलिंग का समान रोकने की.... सामने दुकान पे यह सब बातें चलती रहती है.. कल तेरे से मिलने के बाद जब मैं उधर गया तो यह इनस्पेक्टर वहीं बैठा अपने साथियों से बात कर रहा था... लेकिन पैसे पैसे पे लिखा है खर्च करने वाले का नाम... मैने तुझसे 1000 ज़्यादा माँगा, और देना इसको पड़ा.. " मैने राजू की जेब से बीड़ी निकाल के सुलगाई



"और वो तेरी बात मान गया.." राजू ने असचर्या में आके पूछा
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12-13-2018, 02:41 AM,
RE: Antarvasna kahani माया की कामुकता
"पैसा चीज़ ही ऐसी है बादशाह.. इसकी माया से कौन बच पाया है... इनस्पेक्टर को अपना घर चलाना है, तुझे अपना घर बनाना है.. और मुझे इस शहेर पे राज करना है.... इसके लिए पैसा ही लगेगा..." मैने अपनी नज़र समंदर के चारो और घुमा के कही... उस दिन राजू और मेरी पहली कामयाबी थी.. हम ने दो दो हज़ार रुपये बनाए, जो हमारी रोज़ की मेहनत से कहीं ज़्यादा थे... उस दिन से लेके पिछले एक साल तक, जब भी ऐसा कुछ काम आता तो राजू और मैं उसे बिना कुछ सोचे ही ले लेते.. जैसे जैसे काम बढ़ता गया, वैसे वैसे हमारा पैसा और पोलीस का हिस्सा भी.. स्मग्लर्स भी खुश, हम भी खुश और पोलीस भी खुश.. ऐसे बहुत कम मौके आते हैं जब काम से जुड़े सब लोग खुश हो...



29 डिसेंबर 1979... उस रात भी राजू और मैं समान को अनलोड कर रहे थे ताकि दूसरी बोट आने तक उसे संभाल सकें और उसमे लोड कर सकें.... मैं आखरी बॉक्स उठा ही रहा था, कि बोट के अंदर बैठे एक लड़के ने मुझे देखा और बुलाया



"सुनो.. इधर आओ.." उस लड़के ने मुझे कहा.. मैने ध्यान से देखा तो वो कोई अमीर लड़का लग रहा था, उमर शायद मेरे जितनी या मुझसे एक या दो साल बड़ी बस.. मैं सीधा उसके पास गया और जाके चुप चाप खड़ा हो गया



"मैं काफ़ी दिनो से देख रहा हूँ तुम्हे, इस काम से डर नहीं लगता " उस आदमी ने अपनी सिगर्रेट जला के कहा



"अगर डरुन्गा तो पैसे कैसे बनाउन्गा.." मैने चौड़ा होके कहा



"यह पकडो मेरा अड्रेस.. अगर ज़्यादा पैसे बनाने हो तो मुझे यहाँ आके मिलो..." उस आदमी ने एक पेज निकाला और उसपे कुछ लिख के दिया



"करना क्या होगा.." मैने पेज देखे बिना अपनी जेब में डाल दिया



"काम यही है.. बस ज़रिया बदल जाएगा, पानी के बदले यह काम तुम्हे रोड से करना होगा.. अगर हिम्मत हो तो कल 12 बजे आ जाना..."



मैं बिना कुछ बोले वहाँ से निकल गया और राजू को बताए बिना दूसरी बोट का इंतेज़ार करने लगा.. जब तक दूसरी बोट आती तब तक मैं बस यही सोच रहा थे कि राजू को उस बात के बारे में बताऊ के नहीं... जब तक मैं कुछ सोच पाता, तब तक दूसरी बोट भी आ गयी और हम फिर अपने काम में लग गये... अंत तक मैं इसी दुविधा में था कि राजू को बताया जाए कि नहीं... लेकिन काफ़ी देर हो चुकी थी, मैने इसलिए राजू के सामने खामोश रहना ही ठीक समझा.. दूसरे दिन सुबह को मैं जल्दी अच्छे से तैयार हुआ और उस आदमी के दिए हुए अड्रेस पे चला गया.. क्यूँ कि पैसे थे काफ़ी, इसलिए आराम से टॅक्सी पकड़ी और निकल गया बांद्रा की तरफ.... बांद्रा पहुँच के मैं सीधा उस आदमी से मिलने गया.. काफ़ी देर तक इंतेज़ार करने के बाद मुझे अंदर बुलाया गया..



"आओ.... मुझे यकीन थे तुम ज़रूर आओगे राकेश.." उस आदमी ने कुर्सी पे बैठे बैठे ही कहा.. आस पास नज़र घुमाई तो रूम की चका चोंध देख के मैं हैरान हो गया... झूमर, आलीशान खाने की टेबल, महेंगे कालीन, पर्दे.. सब कुछ था जो एक अमीर आदमी के घर होना चाहिए..



"ना ना.. यह सब इतना आसानी से नहीं मिलता... इसके लिए काफ़ी ख़तरा उठाना पड़ेगा तुम्हे... मंज़ूर है तो मिलाओ हाथ.." उस लड़के ने मेरे पास आके कहा... काफ़ी देर तक मैं बस कुछ सोचता रहा, और फिर कहा



"मंज़ूर है.."



"आए शाबाश... मेरा नाम रॉकी है.. आज से जो करेंगे मिल के करेंगे.." रॉकी ने मुझसे कहा और मुझे सब समझाने लगा.... सब काम समझ के मैने रॉकी के साथ काम करना शुरू किया.. पैसे के लिए मैं कुछ भी करने को तैयार रहता था.. काफ़ी बार पोलीस ने पकड़ा और फिर कुछ सबूत ना मिलने पे छोड़ दिया... रॉकी के साथ मैने करीब 3 साल काम किया. 3 साल में ड्रग्स से लेके इल्लीगल एलेक्ट्रॉनिक गूड्स, हम सब स्मगल करते थे... जब सरकार ने गोल्ड पे इम्पोर्ट ड्यूटी भी बढ़ाई, हम ने उसके बिस्किट्स की स्मगलिंग भी स्टार्ट की... काला काम करते करते मैं इतना अँधा हो चुका था, कि मुझे सही ग़लत की पहचान ही नहीं रही थी.. बस पैसा, और खुद सारा पैसा.. मेरा यही लक्ष्य था... स्मगलिंग में काफ़ी सारे दुश्मन बनते गये हमारे, लेकिन रॉकी और मैने हर एक दुश्मन को या तो दोस्त बना लिया या तो उसे रास्ते से हटा दिया... मुंबई, पुणे, नासिक, कोल्हापुर, एक जगह नहीं थी महाराष्ट्रा की जहाँ हम स्मगलिंग का माल ना पहुँचाते..... 1979 से लेके 1985.... 7 साल मैने बिना कुछ सोचे समझे रॉकी के साथ काम किया... पैसा अछा ख़ासा बन चुका था.. कभी कभी कोई मुश्किल काम भी आते, तो रॉकी पीछे कदम हटाता, पर मैं नहीं..



"राकेश.. धीरे, अभी पैसा काफ़ी है हमारे पास..." मुझे ऐसे मौके पे हमेशा रॉकी कहता



"अगर धीरे चलूँगा तो रुक ही जाउन्गा दोस्त.. इसलिए चलने दे मुझे.." मैं हमेशा रॉकी को यह जवाब देता और काम में लग जाता..



इसी बीच रॉकी और मैने एक साथ शादी कर ली... सीमी मुझसे प्यार करती थी, मैं क्या काम करता हूँ यह जानते हुए भी उसने मुझसे शादी की.. शादी के बाद भी सीमी मुझे रोज़ बोलती यह सब काम छोड़ने के लिए.. सीमी के साथ उसकी सहेली रोज़ा, जो रॉकी की पत्नी थी.. दोनो हमे सुबह शाम एक ही बात बोलती, रॉकी रोज़ा की बात सुन के धीरे धीरे इस काम से निकलने लगा था, पर मैं बेलगाम घोड़े की तरह था.. सीमी की बातों को अनसुना करके दिन रात यही काम करता और बस पैसा पैसा करता रहता....



"ठीक है बस.. आप दोनो की बात मैं मानता हूँ.. आप दोनो सही हो, पर कुछ काम तो करना पड़ेगा ना...." मैने एक दिन सीमी और रोज़ा से कहा जब हम रॉकी के घर खाने पे मिले थे
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12-13-2018, 02:41 AM,
RE: Antarvasna kahani माया की कामुकता
"शुक्र है आप माने तो.. और काम तो काफ़ी सारे हैं, आप कुछ मॅन्यूफॅक्चरिंग का ही कीजिए, आज कल सूरत में काफ़ी मिल्स हैं, वहाँ से कपड़ा लेके यहाँ बेचें.. पैसे का पैसा, इज़्ज़त की इज़्ज़त भी.." रोज़ा ने रॉकी और मुझे कहा.. सीमी ने भी रोज़ा की बात में हामी भरी, और रॉकी तो बस मुझे ही घूर रहा था, जैसे मेरे हां कहने का इंतेज़ार कर रहा हो..



"क्या भाभी.. अच्छा सुनिए, सुन रॉकी.. अब स्मगलिंग के धंधे में काफ़ी किच किच है... रोज़ रोज़ पोलीस से मिलो, और अब काफ़ी लोग इस लाइन में घुस आए हैं.. मैं कल ही सूरत के एक हीरा व्यापारी से मिला हूँ. उसके साथ कुछ दूसरे व्यापारी भी हैं जो वापी के हैं.. हम 4-5 लोग हैं, कुछ शुरुआत में 3 करोड़ जैसा लागत है, हम दोनो को 50-50 लाख निकालने हैं..... मिलके हवाला के धंधे में घुसते हैं.." मैने टेबल पे सब के सामने कहा



"भाई, तू सोचना छोड़ ही दे.. मेरे पास कुछ 55 लाख हैं, अगर 50 लाख लगा दूँगा, तो मेरे पास क्या बचेगा, आगे की ज़िंदगी कैसे कटेगी.. और जो हम ने प्रॉपर्टी देखी है खार में, यह रहे उसके काग़ज़, मैने साइन कर दी है, तुम भी कर दो.. अच्छी प्रॉपर्टी बन जाएगी आने वाली ज़िंदगी के लिए.. हवाला के धंधे में सब कुछ चला गया तो वापस सब शुरुआत से शुरू करना पड़ेगा.. मैं तैयार नहीं हूँ इसके लिए.." रॉकी के इस जवाब ने मेरी सारी उम्मीदों पे पानी फेर दिया....



दूसरे दिन, जब मैं प्रॉपर्टी पेपर पे साइन करके रॉकी के घर पहुँचा तो देखा रॉकी घर नहीं था... शाम भी हो रही थी



"अरे आप, आइए ना.. " रोज़ा ने मुझे बिठाते हुए कहा



"बस भाभी.. यह पेपर्स रॉकी को दे देना, मैं जाता हूँ.." मैने जवाब दिया



"अरे राकेश , आप चाइ पीके जाइए..प्लीज़" कहके रोज़ा किचन में चाइ बनाने लगी..... मैं भी बातें करने रोज़ा के साथ किचन में चला गया.. हम दोनो किचन में खड़े खड़े ही बातें करने लगे और इतने में बारिश होने लगी...



"लीजिए.. अब तो यहीं रुकना पड़ेगा आपको.." रोज़ा ने हँस के मुझे कहा.. रोज़ा की आँखों को देख के मेरे शरीर में जैसे एक अजीब सी लहेर दौड़ गयी हो... उसकी आँखों में डूबता चला गया. वो समा ही ऐसा हो चुका था कि मैं खुद की भावनाओ को काबू नहीं कर पाया.. मैं धीरे धीरे रोज़ा की तरफ बढ़ा और एक ही पल में उसे अपनी बाहों में भर लिया.. पहले तो रोज़ा ने भी काफ़ी मना किया, लेकिन धीरे धीरे वो मेरा साथ देने लगी... हम दोनो बारिश में बेकाबू से होने लगे.. रॉकी और सीमी को भूल के हम दोनो बस वहीं खड़े खड़े अपने जिस्म की आग की गर्मी में पिघलने लगे.... दूसरे दिन सुबह जब मेरी आँख खुली तो मैं रॉकी के बिस्तर पे रोज़ा की बाहों में था... रॉकी के साथ मैं बैईमानी नहीं कर सकता, यह सोच के मैं धीरे से रोज़ा से अलग हुआ और कपड़े पहेन के बाहर जा ही रहा था के सामने पड़ी मेज़ पे मेरी नज़र पड़ी... वहाँ पे वो प्रॉपर्टी के पेपर थे जिस पे मेरे और रॉकी के साइन थे, और उसी के पास थी रॉकी की तिजोरी की चाबी.. मैने धीरे से चाबी को उठाया और पास में रखी तिजोरी को खोलने लगा.. रोज़ा अभी भी नींद में थी.. इसलिए मैने आराम से तिजोरी में से सारे पैसे निकाले और प्रॉपर्टी के पेपर्स वापस लेके घर चला आया... सीमी की नज़रों से छुपा के मैने पैसों का ब्रीफ केस अपने कपबोर्ड में छुपा दिया.. अगले दिन रॉकी का फोन आया मुझे



"भाई, घर पे चोरी हो गयी है यार... " रॉकी ने बड़ी हताशा वाली आवाज़ में कहा.. रॉकी की बात सुन मैने कुछ नहीं कहा, इतने में पीछे से रोज़ा की आवाज़ आई



"जब तक राकेश भाई सहाब घर नहीं थे , तब तक सब पैसे तिजोरी में थे.."



"रोज़ा खामोश रहो.. राकेश मेरा दोस्त है, वो कभी ऐसा नहीं करेगा.... भाई , माफ़ कर दे यार... बस तू यहाँ जल्दी से आजा यार..." रॉकी ने सुबक्ती हुई आवाज़ में कहा.. मैं काफ़ी देर तक सोचता रहा और फिर सीमी के साथ उनके घर पहुँच गया.. रॉकी के घर पहुँचते ही रोज़ा ने फिर वोई बात की..



"ओफफो.. रोज़ा, तो तुम क्या कह रही हो.. राकेश यहाँ प्रॉपर्टी के पेपर्स लाया, और तुम्हारे सामने पैसे लेके निकला." रॉकी ने झल्ला के कहा.. रॉकी की यह बात सुन रोज़ा खामोश हो गयी क्यूँ कि पिछली रात हम से जो पाप हुआ था वो दबा के रखना ज़रूरी था हमारे लिए...



"भाई परेशान ना हो... हम कुछ करेंगे..." मैने रॉकी को आश्वासन देके कहा



"कैसे परेशान ना होऊ यार, पोलीस में भी खबर नहीं कर सकते....." रॉकी टूटी हुई आवाज़ में बोलने लगा.. कुछ देर तक मैं और सीमी वहीं बैठे रहे और फिर वापस अपने घर आ गये.. अगले 10 दिन तक मेरी और रॉकी की कोई बात चीत नहीं हुई.. हम स्मगलिंग के काम को छोड़ ही चुके थे.. कुछ बड़ा हो तो मैं करता, वरना रॉकी बिल्कुल नहीं आता कभी मेरे साथ... ठीक 10 दिन बाद रॉकी का फोन आया



"भाई.. जल्दी घर आजा भाभी के साथ..." कहके रॉकी ने फोन कट किया... मैं जल्दी से सीमी के साथ निकला और रॉकी के घर पहुँचा... 



"भाई.. बधाई हो... आप तो चाचा बनने वाले हो" रॉकी ने मुझे देख के कहा और मुझसे गले लग गया... रॉकी की यह बात सुन मेरी नज़रें जैसे ही रोज़ा से टकराई, उसने अपनी नज़रें नीची कर ली... उसकी नज़रों से सॉफ पता चल रहा था कि यह रॉकी का नहीं, हमारे किए हुए पाप का बीज है... रॉकी को इतना खुश देख मुझे एक घुटन सी होने लगी....



"भाई, अब मेरे पास तो पैसा है नहीं, और हवाला के पैसे के लिए चाहिए 1 करोड़... तो स्मगलिंग का कुछ वापस करना पड़ेगा... पर तब तक जब तक रोज़ा हमारे बच्चे को जनम नहीं दे देती.. जैसे ही मेरा बच्चा होगा, मैं उस दिन से कसम ख़ाता हूँ, हराम के पैसे को चुकाउन्गा तक नहीं.." रॉकी ने सब के सामने कहा... रॉकी को ऐसे देख मैने कुछ नहीं कहा और बस उसकी हां में हां भारी.. रॉकी को बताए बिना मैने सूरत और वापी के व्यापारियों से संपर्क किया और उन्हे एक करोड़ दे दिया हवाला में घुमाने के लिए...



"पैसे देने की हिम्मत रखता हूँ, तो वापस लेने का जिगरा भी है सेठ.. आज से ठीक तीन महीने बाद आपसे मिलूँगा, अपना हिस्सा लेने के लिए" मैने सूरत के व्यापारी को पैसा देते हुए कहा.. 


इधर रॉकी और मैं फिर से स्मगलिंग के काम में लग गये... स्मगलिंग में पहले जैसे पैसे नहीं थे.. सरकार ने काफ़ी चीज़ों से इम्पोर्ट रिस्ट्रिक्षन हटा लिया था, इसलिए काफ़ी चीज़े तो इंडिया में लीगली आ जाती. पैसा मिलता तो बस ड्रग्स की स्मगलिंग से.. लेकिन ड्रग्स में ख़तरा काफ़ी था, इसलिए ड्रग्स बेचने वाले कम थे.. जब भी कोई काम मिलता, तो उसमे इतने पैसे नहीं आते.. तीन महीने गुज़रे पर हवाला से भी कुछ पैसा नहीं आया..



"देख भाया... यह धंधा ही ऐसा है, आज नहीं आया तो कुछ वक़्त के बाद आएगा.. अगर तुझे मारे पे विश्वास ना है, तो ले ले अपना 1 करोड़ और चलता बन.. और रुकना है तो थोड़ा रुक जा.. मारवाड़ी सेठ की ज़बान है, 1 करोड़ का 3 करोड़ दूँगा अगर और 6 महीने दिए तो.." सूरत के व्यापारी ने मुझे कहा.. उसकी बात सुन मैं फिर सोचता रह गया.. जी मार के भी मैने उसे हां कह दिया और फिर रॉकी को जाय्न कर लिया.. इधर रोज़ा की डेलिवरी डेट भी नज़दीक आ रही थी.. हम दोनो हमारी पुरानी बात को भूलने की कोशिश कर रहे थे, और रोज़ा भी धीरे धीरे सब भूलने लगी थी... रोज़ा की डेलिवरी के ठीक दो दिन पहल रॉकी और मैं मिले थे



"यार, एक बड़ा कन्साइनमेंट है कल. अगर वो कन्साइनमेंट कल ठीक तरह से मैने पहुँचा दिया तो मुझे काफ़ी पैसे मिलने वाले हैं.. यूँ समझ ले, चोरी हुई रकम से दो गुना पैसा आ जाएगा मेरे पास. और डेलिवरी परसो की, मतलब ठीक वक़्त पे पैसे आ जाएँगे और मेरी कसम भी रह जाएगी " रॉकी ने खुश होके कहा



"ठीक है दोस्त... सब पैसा तेरा, मुझे उसमे से कुछ भी नहीं चाहिए..." कहके मैने रॉकी से अलविदा लिया और घर निकल आया.. दूसरी शाम को रॉकी और मैं वो कन्साइनमेंट लेने गये.. ठीक तरह से हम ने माल ले तो लिया, पर जैसे ही हम डेलिवरी के लिए निकले, पोलीस हमारे पीछे लग गयी.. पोलीस और हमारे बीच काफ़ी देर तक दौड़ भाग हुई... इसी दौरान रॉकी को गोली लग गयी और वो ऑन दा स्पॉट मर गया... रॉकी को हॉस्पिटल ले जाने के बदले, मैं पहले ड्रग्स को पहुँचाना चाहता था, क्यूँ कि रकम काफ़ी बड़ी थी.. करीब 2 घंटे बाद जब पोलीस से हम दूर निकले तब मैने लालच में आके पहले माल डेलिवर किया.. फिर जब तक रॉकी को हॉस्पिटल ले गया, तब तक रॉकी अपनी साँसें तोड़ चुका था... जिस हॉस्पिटल में रॉकी को ले गया, रोज़ा भी वहीं अड्मिट थी.. इसलिए मैं रोज़ा के पास पहुँचा तो पता चला उसकी डेलिवरी भी आज ही थी.. उधर सीमी मौजूद थी तो मैने कुछ नहीं कहा और बस रोज़ा की डेलिवरी का इंतेज़ार करने लगा..



रोज़ा ने दो लड़कियों को जन्म दिया था... लेकिन डेलिवरी के वक़्त रोज़ा को काफ़ी प्राब्लम हुई इसलिए वो डेलिवरी के बाद काफ़ी देर बेहोश रही.. मैने सीमी को भी घर भेज दिया ये कहके कि मैं भी जल्द ही घर आउन्गा... सीमी के घर जाते ही मैं रोज़ा के डेलिवरी रूम में गया.. रोज़ा अब तक बेहोश थी, लेकिन उसके पास दो बच्चियाँ देख मेरा दिल रो पड़ा.. ना तो रोज़ा के पास पैसे थे, और ना ही उसके पति का सहारा.. दो बच्चियों को पालना मुश्किल हो जाएगा.. इसलिए मैने उसके बगल से एक लड़की को अपनी गोद में उठाया और चुरा के उसे अपने घर ले आया.. घर ले आके मैने सीमी को सारी सच्चाई बता दी.. काफ़ी देर तक सीमी ने भी मुझे खरा खोटा कहा, और गुस्सा भी हुई... लेकिन सीमी मुझसे काफ़ी प्यार करती थी... इसलिए वो मुझे छोड़ भी नहीं सकती थी...

"ठीक है.. लेकिन इस बच्ची को हम नहीं पाल सकते, तो अब यह बच्ची पलेगि हमारी नज़र में ही.. लेकिन हमारे घर नहीं.. कहीं और" सीमी ने मुझे अपना फ़ैसला सुनाया.. मैं उस वक़्त काफ़ी परेशान था तो सीमी की हां में हां भर दी... दूसरे दिन जब रोज़ा को पता चला कि उसके पति की मौत हो चुकी है, और उसकी एक बच्ची भी गायब है तो वो भी हॉस्पिटल में फूट फूट के रोने लगी.. काफ़ी वक़्त बाद जब रोज़ा ने खुद को संभाला, तब सीमी ने रोज़ा से बात की



"रोज़ा... हम तुम्हें ऐसे नहीं देख सकते.... इसलिए राकेश ने तुम्हारे लिए एक फ्लॅट खरीदा है, दोस्ती का फ़र्ज़ निभाने दो हमे प्लीज़.. आज से तुम वहाँ रहोगी, और इस बच्ची की परवरिश भी हमारी निगरानी में होगी.."सीमी ने रोज़ा से कहा, लेकिन उसे अब तक नहीं बताया कि रॉकी की मौत और पैसों का ज़िम्मेदार मैं था.. रोज़ा ने काफ़ी देर हमारी बात नहीं मानी, पर अंत में वो हमारे दिए हुए फ्लॅट में रहने लगी.. मैने हवाले में जो एक करोड़ लगाया था वो 9 महीने बाद 3 नहीं, बल्कि 4 करोड़ हुआ.. 1985 से लेके 1995 तक मैं उस 3 करोड़ का 300 करोड़ बना चुका था.. पूरा का पूरा ब्लॅक....



रोज़ा की बच्ची मेरी बच्ची थी, इसलिए उसकी शादी तक की ज़िम्मेदारी मैने निभाई... आज से कुछ 4 महीने पहले जब मुझे और सीमी को पता चला कि रोज़ा भी बस मौत के नज़दीक है, तब हम उससे मिलने पहुँचे.. मरते वक़्त भी रोज़ा हमारा शुक्र मना रही थी कि हम ने उसकी इतनी मदद की... जब सीमी से देखा नहीं गया, तो रोज़ा और उसकी लड़की की मौजूदगी में सीमी ने उन्हे सारी सच्चाई बता दी... यह सब बातें सुन रोज़ा का तो मानो जैसे दिल ही बंद हो गया हो... हमारी बात सुनने के करीन 10 मिनट बाद रोज़ा ने अपनी आखरी साँस ली.. बचपन से लेके आज से 4 महीना पहले तक, हम ने रोज़ा की एक लड़की को पाला , पोसा और उसे हर वो चीज़ दी जो उसके लिए ज़रूरी थी और आश्वासन रखा इस बात का कि उसे कभी एहसास ना हो के उसके साथ सौतेला व्यवहार हुआ है...



इस वाक्य के बाद राकेश खामोश हो गया था... उसने फिर से अपने स्पेक्स पहेन लिए और भारत को देखने लगा.... यह सब सुन के भारत को विश्वास नहीं हो रहा था कि राकेश का पास्ट इतना काला था...भारत ने पूरी बात को हजम करने की कोशिश की, लेकिन फिर एक जगह पे आके उसका दिमाग़ रुका और उसने राकेश से कहा


"डॅड... आपके पार्ट्नर की बीवी की दो लड़कियाँ... एक की शादी आपने करवाई, और शायद उसी की मौजूदगी में आपने रोज़ा से सच्चाई कही थी.. राइट " भारत ने बड़े ही कॅल्क्युलेटिव तरीके से कहा



"यस सन.. राइट.." राकेश ने भारी आवाज़ से कहा



"ओके डॅड, तो जो बच्ची आपने चुराई..वो आपने कहा कि मोम ने उसे पालने से मना कर दिया, लेकिन वो पली आपकी निगरानी में ही.. तो फिर वो लड़की कहाँ गयी..." भारत ने अपने शब्दों को अपनी जगह पे रखने की कोशिश की... "और डॅड.... इससे पहले प्लीज़ आप मुझे बताइए, यह सब मुझे आप आज ही क्यूँ बताना चाहते थे..." भारत ने बड़े आश्चर्या चकित होके पूछा



"भारत, तुम में मैं खुद को देख रहा हूँ.. पैसे की माया में जैसे मैं अँधा था वैसे ही तुम बन गये हो.. जैसे मैने कभी दोस्तों रिश्तेदारों की परवाह नहीं की, तुम भी वैसे ही कर रहे हो.. हर वो चीज़ जो मैं अपनी जवानी में कर चुका हूँ, तुम भी ठीक उस राह पे जा रहे हो.. फरक यह है कि मैने सब काम ब्लॅक किया था, और तुम कॉर्पोरेट कल्चर में जाके वाइट कॉलर में कर रहे हो.." राकेश ने भारत की आँखों में देख कहा



"कम ऑन डॅड... मैं किसी के कंधों पे या किसी के विश्वास को मार के उपर नहीं जा रहा..." भारत ने भी बराबरी बनाते कहा



"जेपीएम इंडिया के सेल्स फिगर कैसे निकाले तुमने.. मैं अच्छी तरह जानता हूँ बेटे..." राकेश ने एक शैतान हँसी के साथ कहा.. राकेश की यह बात सुन भारत खामोश रहा, लेकिन उसे यह समझ नहीं आया कि राकेश को कैसे पता चला इन सब के बारे में.. उसे भरोसा था कि शालिनी कभी किसी से यह सब बातें शेअर नहीं करेगी... 



"हैरान नहीं हो भारत. बाप हूँ मैं तुम्हारा, और तुम्हे क्या लगता है, हवाला के धंधे में मेरा काफ़ी स्ट्रॉंग नेटवर्क था... विक्रम कोहली बहुत पुराना खिलाड़ी है इन सब का... विक्रम कोहली मुझ से पहले हवाले के धंधे से निकल चुका था.. अगर वो कॉर्पोरेट में है तो बस दुनिया से अपना कला धन छुपाने के लिए.. अगर तुम मेरे बेटे ना होते तो विक्रम कब का अपनी चाल चल चुका होता, लेकिन जैसे ही विक्रम को पता चला के तुम मेरे लड़के हो उसने मुझसे बात की और मेरे कहने पे ही वो अब तक खामोश है..." राकेश ने भारत के कंधे पे हाथ रख के कहा



"डॅड वो खामोश है के नहीं, वो कहानी मैं आप को बाद में बताता हूँ.. पर उससे पहले मुझे बताइए.. कहीं उन दो लड़कियों का नाम इस लिस्ट में सब से उपर तो नहीं" भारत ने राकेश को उसकी बनाई हुई लिस्ट हाथ में देते हुए कहा


भारत के हाथ से वो लिस्ट लेके राकेश ने जब उसे देखा, तो उसे कुछ समझ नहीं आया.. उसने ध्यान से लिस्ट को देखा , फिर कहा



"यह दो पहले नाम... और विक्रम कोहली का नाम इसमे क्या कर रहा है.. और यह मेहुल, यह शायद वोही आदमी है जो बॅंक लूट में फसा था राइट... और यह सिद्धार्थ कौन है ?" राकेश ने हैरानी से पूछा



"डॅड, बस आपको पहले दो नाम ही बताने थे, बाकी की बातें आपको घर चल के क्लॅरिफाइ करता हूँ... हां लेकिन अब तक ,मुझे आपने नहीं बताया, कि यह सब आपने आज ही क्यूँ बताया.. आइ मीन डॅड, देअर इस डेफनेट्ली आ स्पेसिफिक रीज़न राइट... कम ऑन, स्पिल दा बीन्स आउट नाउ..." भारत ने औथोरटिव वे में राकेश से कहा... राकेश और भारत बातें करते करते आगे बढ़ने लगे और राकेश ने उसे सब बता दिया..



"ओके डॅड.. नो इश्यूस, चलिए यह भी देख लेंगे, फिलहाल तो घर चलते हैं, हम दोनो की बीवियाँ काफ़ी चिंता में होंगी..." भारत ने मज़ाक में कहा



"यार इतनी टेन्षन वाली बात है, और तुम्हे मज़ाक सूझ रहा है.. अब क्या करें इसका पहले वो तो बताओ..." राकेश ने फिर भारत से सवाल पूछा



"डॅड, आप की पहचान है कोई यूएस में.." भारत ने सवाल का जवाब सवाल से दिया



"हां भारत, आइ हॅव आ फ्रेंड...क्यूँ" राकेश और भारत आगे बढ़ते बढ़ते ही बातें कर रहे थे



"कॉल हिम नाउ प्लीज़... उधर तो अभी शाम ही हुई होगी..." कहके भारत ने अपना फोन राकेश को दिया, और बिना कुछ पूछे, राकेश ने अपने दोस्त का नंबर मिलाया.. कुछ रिंग्स के बाद जब राकेश के दोस्त ने फोन उठाया, थोड़ी ही हेलो के बाद राकेश ने भारत को फोन दिया



"हेलो सर... आइ गेस आप न्यू जेर्सी में हैं अभी." भारत ने आगे बढ़ते हुए कहा



"अरे नहीं बेटा, आइ स्टे देअर. आज कुछ काम से न्यू यॉर्क में ही हूँ, बोलो, हाउ कॅन आइ हेल्प यू." राकेश के फ्रेंड ने हँस के कहा



"सर, न्यू यॉर्क डोव्न्टोव्न, स्ट्रीट नो 4 पे ब्लॉक 2 में दो इंडियन्स रहते थे.. सिद्धार्ता आंड रूबी.. सिद्धार्ता तो इंडिया आ गया है, बट आइ डाउट रूबी ईज़ इन सम डेंजर.. तो आप ज़रा लोकल पोलीस से कॉपरेट कर सकते हैं, रूबी ईज़ आ फॅमिली.." भारत के कदम एक दम राकेश के कदमों से मिलकर आगे बढ़ रहे थे...
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12-13-2018, 02:41 AM,
RE: Antarvasna kahani माया की कामुकता
"आर यू शुवर बेटा... आंड मैं क्या कहूँगा पोलीस को, हाउ डू आइ नो ऑल दिस...." राकेश के फरन्ड को टेन्षन सी होने लगी



"सर, यू जस्ट टेल देम यह शॅरन मर्डर केस का एक क्लू है.. अगर रूबी को वो ढूँढ लेंगे तो शॅरन मर्डर केस के आरोपी तक भी वो आसानी से पहुँच जाएँगे.. आंड अगर थोड़ी प्राब्लम होती है तो लेट मी नो... मेरा बॉस भी यूएस में ही है, ही विल टेक केर ऑफ यू.." भारत बड़े इतमीनान से बोल रहा था



"शुवर बेटा, आइ विल डू इट राइट अवे आंड कीप यू अपडेटेड...बाइ" कहके राकेश के दोस्त ने फोन रखा और भाग के वो पोलीस के पास पहुँचा और उन्हे सब बयान कर दिया



उधर राकेश और भारत चलते चलते बातें करने लगे और घर पहुँच के देखा तो सीमी और शालिनी उन दोनो का ही इंतेज़ार कर रहे थे..



"वेलकम, मिस्टर होने वाले दादा जी.." सीमी ने राकेश के गले लग के कहा... यह न्यूज़ पाकर राकेश को काफ़ी खुशी मिली... उसने शालिनी और भारत दोनो को गले लगाया...



"आंड भारत.. आइम वेरी अपसेट विद यू... निधि वाली बात तुमने शुरू से ही मुझसे छुपाई..... उससे प्यार करते थे तब भी नहीं बताया, और आज जब वो हमारे बीच नहीं रही, तब भी... कब तक अकेले रहना पसंद करोगे बेटा तुम.. दिस ईज़ व्हाट फॅमिलीस आर मेड फॉर ना.. शेअर दा जाय्स आंड सोर्रोव्स...." सीमी ने भारत को प्यार से समझाते हुए कहा



"कम ऑन मोम... डोंट बी एमोशनल नाउ... आंड रही निधि की बात, तो आइ मॅनेज्ड इट... " भारत ने सीमी से आँख चुराते हुए कहा जिसे सब ने देख लिया लेकिन किसी ने कुछ नहीं कहा...



"ओके, तो आज से निधि की फोटो यहाँ लिविंग रूम में ही लगेगी... आंड मुझे इस बात पे कोई प्राब्लम नहीं चाहिए.... शालिनी गेट मी दा फोटो बेटा" सीमी ने शालिनी से कहा, और शालिनी ने भी बिना कुछ कहे सीमी को पिक ला दी... सीमी ने आगे बढ़ के अपनी फॅमिली पिक के पास निधि की फ्रेम लगा दी...



"भारत.. शी ईज़ वेरी ब्यूटिफुल... लेकिन इसकी इस हालत के लिए भी ज़िम्मेदार तुम हो... जब तुम निधि को डेट कर रहे थे, और उसके अंकल की शर्त के बारे में हमे बताते, तो हम कुछ रास्ता निकलते बेटा.... हम से शेअर ना करके तुम्हे क्या मिला आख़िर..." सीमी आज खुल के भारत से बातें कर रही थी, उसे परवाह नहीं थी कि शालिनी वहाँ खड़ी है....



"मोम... ऐसा नहीं है... और आपको नहीं बताया, तभी तो मुझे मेरी यह स्वीटहार्ट मिली ना..." भारत ने शालिनी को पीछे से गले लगा के कहा... राकेश ने भारत का इशारा समझा, और इससे पहले सीमी कुछ बोलती, बीच में राकेश बोल पड़ा



"अरे भाई चलो अब.. जो बीत गयी, सो बात गयी... चलो अब आराम करते हैं थोड़ा,आइएम टाइयर्ड .... आंड भारत, यू ऑल्सो टेक रेस्ट.. कल काम है ना" राकेश यह कहके सीमी के साथ अपने रूम की ओर बढ़ गया



भारत ने शालिनी से सब बातें डिसकस की, जो उसने राकेश के साथ की थी..



"डोंट वरी शालिनी.. नतिंग विल हॅपन टू एनी ऑफ अस.. आंड रूबी के लिए भी आइ हॅव चेक्ड, लोकल पोलीस वहाँ की उसकी सर्च में लग गयी होगी अब तक.. इंतेज़ार बस कल का है अब, जब इन सब पर से परदा उठेगा और सब राज़ खुलेंगे..



"पर भारत.. आइ स्टिल फील, कल पोलीस की हेल्प लेनी ही पड़ेगी, आइ मीन... यू नेवेर नो, वो लोग कुछ भी कर सकते हैं.... आंड उनका मैं रिवेंज तो तुम से है... आइ मीन, अगर डॅड उन्हे अपनी प्रॉपर्टी दे भी देंगे, तो भी हाउ कॅन वी बी शुवर कि वो लोग तुम्हे कुछ नहीं करेंगे.... वी नीड टू बी कॉशियस ना.." शालिनी ने चिंता व्यक्त करे हुए कहा



"आइ हॅव ऑलरेडी टेकन केर ऑफ दट हनी.... मुझे बस कुछ छोटा सा समान चाहिए, जो मुझे सुबह को मिलेगा.. फिलहाल, तो यू नीड रेस्ट ओके... चलो सो जाओ आराम से अब.." 



"वी नीड रेस्ट समझे.." कहके शालिनी ने भारत का हाथ पकड़ा, और दोनो अपने रूम की तरफ निकल गये....


भारत और राकेश की आँखों से नींद कोसों दूर थी, राकेश बार बार यह सोच रहा था कि कल क्या होगा.. भारत को बता के कहीं उसने अपने गुनाहों की सज़ा भारत को भी तो नहीं दे दी.. भारत के आगे तो अभी काफ़ी ज़िंदगी है, कल कुछ उपर नीचे हुआ तो वो क्या मूह दिखाएगा शालिनी और सीमी को... उधर भारत यह सोच रहा था, कि कल जब राकेश वहाँ जाएगा, तो क्या वो सीमी और शालिनी को साथ ले जाए..



"नई, मोम और शालिनी यहीं रहेंगे..." भारत ने धीरे से खुद से कहा और सोने की कोशिश करने लगा



सुबह सब कुछ नॉर्मल ही था, राकेश को अंदर ही अंदर काफ़ी चिंता थी, लेकिन वो अपनी चिंता व्यक्त नहीं करना चाहता था... सीमी और शालिनी ने भी यह देखा लेकिन दोनो ने राकेश से कुछ नहीं कहा.. सुबह के 8 बजे से लेकिन दोपहर के 12 बजे तक राकेश बस घर के चक्कर काट रहा था, कभी बाल्कनी में, कभी लिविंग रूम में... 



"भारत भी नहीं दिख रहा, व्हेअर ईज़ ही.." फाइनली राकेश ने सीमी से पूछा.. सीमी कुछ जवाब देती इससे पहले घर की डोरबेल बजी.. सीमी ने दरवाज़ा खोल के देखा तो सामने भारत खड़ा था, और उसके हाथ में एक फेमस शर्ट की ब्रांड का बाग था



"हेलो डॅड.. हेलो लॅडीस..." भारत ने घर में आते हुए कहा



"कहाँ थे तुम सुबह से भारत.." राकेश ने भारत से कहा , और उसका फोन रिंग हुआ.. राकेश ने देखा तो एक जाना पहचाना नंबर देख कर उसके चेहरे पे शिकन सी आ गयी.. यह देख भारत के साथ सीमी और शालिनी भी उसके पास पहुँचे और राकेश खामोश खड़ा बस बजते हुए फोन को देख रहा था



"कम ऑन डॅड... वी ऑल आर हियर ना.. आन्सर इट नाउ...." कहके भारत ने फोन राकेश को हाथ में दिया, और राकेश ने काँपते हाथों से फोन को ग्रीन कलर की ओर स्वाइप किया और उसे स्पीकर पे रखा.. सुखी हुई हलक से आवाज़ निकाल के राकेश ने जवाब दिया



"हेलो..."



"हेलो पापा... कैसे हैं आप, और इतनी देर क्यूँ लगाई फोन उठाने में...आप ठीक तो हैं..." सामने से जवाब आया



"हां, सब ठीक है..." राकेश ने बस इतना ही कहा



"ग्रेट.. अच्छा मेरा भाई और भाभी कैसे हैं.. और मोम, आइ होप सब काफ़ी खुश हैं आपके इस फ़ैसले से.." सामने से फिर ऐसी बात सुन राकेश के चेहरे पे पसीना बढ़ता गया



"कैसे फ़ैसले से.." राकेश ने हैरान होके कहा



"कम ऑन डॅड, आपने ही तो फ़ैसला किया, के आपकी सारी प्रॉपर्टी आप मेरे नाम कर रहे हैं.. अब जब सारी प्रॉपर्टी, बॅंक बॅलेन्स और स्टॉक्स, सब मेरे नाम होगा तो आप तो रोड पे आ जाएँगे ना.. तो ऐसी हालत में मेरे भाई भाभी और मोम कहाँ सोएंगे.. इसलिए कहा, वो यह सब जान कर खुश हैं ना.... हाहहहहहहहाहा...." एक लंबी हँसी सुन के राकेश के साथ सीमी और शालिनी भी डर गयी... शालिनी ने कस के सीमी को पकड़ लिया, और सीमी ने भी उसे हौसला दिया



"पॉइंट की बात पे आओ..." राकेश ने फिर सुखी हुई आवाज़ में कहा



"क्या डॅड.. अच्छा चलिए, तो आप कितनी देर में आ रहे हैं आज यहाँ. जल्दी आइए तो काफ़ी सारी बातें भी करनी हैं आपके साथ.. और हां, आप अकेले मत आना... मोम और भाभी को तो लाना ही, पर भाई.. उसे तो बिल्कुल मत छोड़ना अकेला... भाई को काफ़ी मिस करती हूँ आज कल मैं...." कहके फोन कट हो गया... फोन के कट होते ही सीमी और शालिनी की आँखों में जहाँ डर था, वहीं राकेश भी एक ख़ौफ्फ में समा सा गया था.. 



"डॅड. चलिए, दीदी से मिलते हैं... और हां, आप यह वाली शर्ट पहनिए.. मैं ख़ास यह न्यू शर्ट लेने गया था आज के इस अवसर के लिए.." भारत ने राकेश के हाथ में बॅग पकड़ते हुए कहा
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12-13-2018, 02:42 AM,
RE: Antarvasna kahani माया की कामुकता
राकेश अपनी गाड़ी में सीमी और शालिनी को लेके बोरीवली की ओर चल पड़ा... भारत पीछे अपनी गाड़ी में आ रहा था,

राकेश काफ़ी धीरे धीरे बढ़ रहा था, वो आगे के बारे में सोचने लगा.. अगर सब कुछ उसके हाथ से चला जाएगा तो वो क्या करेगा, कहाँ रहेगा... और अपने गुनाहो की सज़ा उसके साथ साथ उसकी फॅमिली को मिल रही थी... यह सब सोच सोच के वो काफ़ी परेशान हो रहा था, गाड़ी के पवरफुल एसी में भी उसका चेहरा पूरा पसीने से भीगा हुआ था.. स्टियरिंग पे उसके काँपते हाथ देख सीमी ने उसे कहा



"राकेश, डोंट वरी.. जब तक हम सब साथ हैं, हमारा फ्यूचर भी सेफ है... मुझे पूरा विश्वास है तुम पे... रिलॅक्स रहो, और जो हो रहा है.. होने दो..." 



सीमी की बात सुन के राकेश को अच्छा लगा, लेकिन फिर भी उसको चिंता घेरे हुई थी.. उसने कुछ जवाब नहीं देके गाड़ी की स्पीड बढ़ाई और आगे बढ़ता चला गया.. कुछ दूर जाके, राकेश ने पीछे देखा तो भारत नहीं दिखा उसे.. राकेश ने भारत को फोन किया पर कोई जवाब नहीं आया... इससे राकेश की चिंता और बढ़ गयी..



"डॅड, रिलॅक्स.. भारत ने ज़रूर कुछ सोचा होगा.. आप चिंता ना करें प्लीज़..." इस बार शालिनी ने कहा और फिर राकेश घबराने लगा... करीब आधे घंटे बाद जब भीड़ भाड़ वाले इलाक़े से राकेश आगे बढ़ा, बताए हुए अड्रेस पे जाके उसने कार पार्क की... जब उसने ध्यान से उस घर को देखा, उसकी पुरानी यादें ताज़ा हो गयी...



"यह वोही घर है जहाँ से मैने उस रात पैसे चोरी किए थे ताकि मैं हवाला में घुस सकूँ.... रेआलिटी ऑफ लाइफ... व्हाट गोज़ अराउंड.. कम्ज़ अराउंड.." राकेश ने सीमी और शालिनी से कहा और तीनो अंदर की तरफ बढ़ने लगे..

उधर करीब 20 मिनट बाद , भारत भी बोरीवली वाले रास्ते पे आ गया.. रास्ते में उसने दो तीन फोन किए जिसमे से एक मुन्ना को था..



"हां मुन्ना, समझ गया ना.. अगर तूने मेरा यह काम कर दिया, तो तुझे पैसे से तोल दूँगा समझा.. और कोई गड़बड़ हुई तो.."



"अरे साब, आज तक क्या गड़बड़ हुई है... आप फ़िक्र ना करें, अपुन भी आधे घंटे में बोरीवली पहुँचता है.. " कहके मुन्ना ने फोन कट किया और भारत गाड़ी आगे बढ़ाने लगा.



राकेश, सीमी और शालिनी तीनो मेन गेट पे पहुँच के दरवाज़ा खुलने का इंतेज़ार करने लगे... करीब 1 मिनट में, जब दरवाज़ा खुला, तो उनके सामने एक साया था.. धीरे से तीनो अंदर की तरफ बढ़ने लगे, लेकिन अंधेरा होने की वजह से तीनो कुछ ज़्यादा चल नहीं पा रहे थे आगे.. थोड़ा आगे आके जब तीनो रुके



"यहाँ इतना अंधेरा क्यूँ है..." सीमी ने राकेश से कहा...



"यह अंधेरा भी तुम्हारी वजह से ही हुआ है.. तुम्हारे पति की वजह से, उसकी लालच की वजह से.. और आज इस अंधेरे में रोशनी भी यही फेलाएगा, यही शक्स..." एक चीख ने तीनो लोगों का ध्यान कमरे में सामने की तरफ मोड़ा, और धीरे धीरे कर घर की हर एक लाइट जलने लगी.. जैसे जैसे लाइट जलती, वैसे वैसे तीन परछाईयाँ उनको दिखती... जब सब बतियां जल चुकी थी, राकेश के सामने खड़ा था उसका अतीत, और उसका आने वाला कल...



"वेलकम डॅड.. हाउ आर यू...... आंड मेरी सौतेली मोम... क्या हाल हैं आपके हाँ..." उस लड़की ने आगे बढ़के कहा



"भाभी जी.. कैसी हैं आप.. भैया कहीं ज़्यादा परेशान तो नहीं कर रहे ना आपको..." उस लड़की ने शालिनी को गले लगाते हुए कहा



"देखो, जिस काम के लिए आए हैं, उस काम पे आओ.. ज़्यादा बकवास नहीं सुननी मुझे" राकेश ने तंग होके कहा



"सुनना तो तुमको पड़ेगा राकेश... सुनना तो पड़ेगा, क्यूँ कि आज मेरा वक़्त आया है... तुम्हारी वजह से मेरा बाप मरा, मेरी माँ विधवा हुई, बचपन से मैं अपनी बहेन से दूर रही... और तुम मुझे चुप रहने के लिए कह रहे हो.... नहीं राकेश, आज तक तुम बोल रहे थे, अब से बस मैं बोलूँगी...."



"खैर... बातें तो मैं काफ़ी सारी करूँगी, पर उससे पहले क्यूँ ना पेपर्स साइन कर दिए जायें.. बहेन, ज़रा पेपर्स लाना, और साथ में पेन भी.." दो लड़कियाँ राकेश के आगे कुछ पेपर्स लाई... राकेश ने पेपर्स देखे तो वो भी शॉक हो गया....



"हैरान मत हो राकेश.. इसमे सिर्फ़ यह लिखा है कि तुम अपनी सारी प्रॉपर्टी, बॅंक बॅलेन्सस, कॅश, स्टॉक्स, गाड़ियाँ, तुम्हारी यूएस वाली प्रॉपर्टी और बिज़्नेस.. ये सब चीज़े मेरे नाम कर रहे हो.... चलो जल्दी साइन करो, मेरे पास बातें बहुत हैं.. और वक़्त कम.... और हां, मेरा भाई नहीं दिख रहा... वो कहाँ है आख़िर...." इस आख़िरी वाक्य के ख़तम होते ही घर की सब लाइट्स एक बार फिर ऑफ हो गयी... लाइट्स के ऑफ होते ही राकेश और सीमी के साथ शालिनी घबराने लगे.. लेकिन वो लोग वहीं खड़े रहे..



"लाइट्स को क्या हुआ... मेहुल , चेक करो जल्दी से... मुझे कुछ होशयारी नहीं चाहिए.. जल्दी देखो.." जो आवाज़ अब तक बुलंद थी, वो अब अचानक घबराने लगी थी.. मेहुल भी जल्दी से दौड़ने लगा ही था, कि सब के कानो में पड़ी कुछ कदमों की आवाज़.. धीरे धीरे राकेश के सामने से एक शक्स उनकी ओर चला हुआ आ रहा था...जब सब शांत हुआ, तो घर की लाइट्स भी जलने लगी.. एक एक कर घर की सब बत्तियाँ रोशन हुई... राकेश सीमी और शालिनी के साथ खड़ा था भारत..



"हेलो दीदी.. कैसी हो , तुमने पुकारा और हम चले आए.." भारत ने एक शैतानी हँसी में कहा



"ओह तो तुम हो.. मुझे लगा कोई चोर है... खैर, एक ही बात है.. तुम भी तो चोर के बेटे ही हो..." उसे जवाब मिला....



"अब ज़्यादा टाइम नहीं वेस्ट करो, जल्दी से इन पेपर्स पे साइन करो और चलते बनो.." मेहुल ने राकेश से कहा, जिसके हाथ में एक रिवॉल्वार थी...



राकेश ने कुछ देर सोचा, और एक नज़र भारत की तरफ की... भारत ने साइन करने का इशारा किया... जैसे ही राकेश ने पेन की निब पेपर्स पे रखी, उसके आगे उसका बीता हुआ कल एक फ्लॅशबॅक की तरह आ गया.... जहाँ राकेश अभी साइन कर रहा था, यहाँ काफ़ी साल पहले राकेश ने अपने दोस्त के साथ खाना खाया था... सब चीज़ें उसके दिमाग़ में आने लगी.. उसके दोस्त का चेहरा, उनके साथ किए हुए काम, राकेश की वो की हुई बेईमानी, उसके दोस्त की मौत, उसके दोस्त की विधवा.. सब कुछ... 



"डॅड, साइन कीजिए.. फिर लॅंड्स एंड में ड्रिंक्स के लिए भी चलना है..." भारत ने राकेश के कंधे पे हाथ रख के कहा जिससे राकेश वापस प्रेज़ेंट में आ गया.... होश संभाल के राकेश ने पेपर्स पे साइन किए और पेपर्स आगे बढ़के थमाने लगा... जैसे ही राकेश ने पेपर्स मेहुल के हाथ में थमाए, ठीक उसी वक़्त अचानक मेहुल के पीछे से ही कुछ दौड़ते हुए लोगों की आवाज़ उनके कानो पे पड़ने लगी... जब राकेश ने सामने और मेहुल ने मूड के देखा, तो जिस दिशा से भारत आया था, उसी दिशा से कुछ कॉन्स्टेबल्स और दो सीनियर इनस्पेक्टर्स आगे आ रहे थे... उन सब को देख मेहुल आगे के गेट की तरफ बढ़ने लगा लेकिन नाकाम रहा..



"तो दीदी... आज का क्या प्रोग्राम है.." भारत ने पेपर्स अपनी ब्लेज़र में डाल के कहा



"यू आर अंडर अरेस्ट मिस..." सीनियर इन्स्पेक्टर ने इतना ही कहा कि बीच में भारत फिर बोला



"मिस रीना शाह.... मेरी प्यारी दीदी.... और मेरी मौसेरी बहेन... प्रीति.." भारत ने कहा



"तुम्हे क्या लगा, तुम आसानी से सब कुछ कर लोगि.. और मुझे पता तक नहीं चलेगा... तुम्हारे दिमाग़ की तारीफ़ करनी पड़ेगी आख़िर , अपने दो साथियों को आगे के गेट की तरफ रखा, ताकि कुछ भी गड़बड़ हो तो तुम्हे बता सकें... जब मैने उन्हे घर से थोड़ा दूर खड़े हुए देखा, उसी वक़्त मैं समझ गया तुम्हारे प्लान के बारे में.. तभी पीछे का रास्ता अपना के मैं यहाँ आया हूँ..... 

अच्छा किया तुमने कि प्रीति को भी इन सब में शामिल कर दिया... जिस दिन डॅड ने तुम्हे तुम्हारी मरती हुई माँ के सामने सब बताया, तुम प्रीति के पास, यानी नताशा के घर पहुँची.... नताशा ने जब तुम्हे ठीक नही बताया, तब तुमने उसे भी जान से मारने की धमकी दी... नताशा से जब तुम जान गयी कि प्रीति यूस में है, तुम उससे यूएस मिलने चली गयी.. प्रीति को हमारे खिलाफ भड़का के, तुमने उसे अपनी साइड में ले लिया... प्रीति से मिलके जब तुम वापस इंडिया आई, तब तुमने मेरे बारे में पता किया.. मेरे बारे में ढूँढते ढूँढते तुम्हे मेहुल का पता मिला... तभी तो अपने वकील से बात करके, मेहुल की बीमारी का नाटक कर के, तुम लोगों ने उसे परोल पे छुड़ाया... अब तुम्हारे साथ मेहुल भी जुड़ गया.. प्रीति यूएस में अपना काम निपटा के तुम्हारे पास आने की तैयारी कर रही थी.. पर अफ़सोस, मैने प्रीति को शॅरन से मिलाया था.. न्यू यॉर्क में जब शॅरन ने एक शाम को प्रीति के घर विज़िट ली, फोन पे उसने प्रीति और तुम्हारी बातें सुनी... यहाँ पे शॅरन ने यह सब बातें मुझे बताना चाही, लेकिन उसने सिड से डिसकस करना बेहतर समझा... जब सिड को इन सब के बारे में पता चला, मुझसे बदला लेने की आड़ में वो प्रीति के थ्रू तुमसे मिला... क्यूँ कि शॅरन अब तुम्हारे खिलाफ सब जान चुकी थी, इसलिए तुमने सिद्धार्थ को पैसों का और मुझसे बदला लेने के लिए भड़काया और शॅरन का खून करवाया.. 

उधर मेहुल ने भी अपने बदले की आग को ठंडा करना चाहा.. बॅंक के कांड के बाद जब इसे पता चला निधि मेरे साथ थी, इससे रहा नहीं गया और यह बदले की आड़ में निधि की जान लेने की सोचने लगा.. इसी बीच जब प्रीति और सिद्धार्थ दोनो यूएस से आए, तब तुमने प्रीति का टेस्ट लेना चाहा.. प्रीति तुम्हारे साथ वाकई में है या नहीं, यह जानने के लिए तुमने उसे निधि का खून करने का काम सौंपा.... प्रीति जानती थी निधि मलेशिया में है, इसलिए उसे कुछ ज़्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ी.. लेकिन अफ़सोस.. तुम्हारा राज़ इसने खोल दिया..." भारत ने अपने जेब से चैन निकालते हुए कहा... चैन देख के प्रीति और रीना दोनो हक्के बक्के रह गये... रीना बस एक टक चैन को ही देखती रही, और प्रीति भी वहीं बस ज़मीन को घूर्ने लगी..



"डोंट वरी... मुझे प्रीति ने नहीं बताया, जिस दिन मैं तुम्हारे घर खाने आया था, तुम्हारी फोटो देखी थी.. कमाल लग रही थी यह चैन तुम्हारी गर्दन पे.... उस दिन से मैं यह सोच रहा था, कि यह चैन मलेशिया में कैसे पाई गयी, क्यूँ कि जिस दिन निधि का खून हुआ, उस दिन तो हम कोलकाता में ही थे... और मेरी किस्मत देखो.. डॅड, जब वर्ल्ड टूर पे थे, तुमने तभी उन्हे ब्लॅकमेल स्टार्ट किया... तुम्हे लगा शायद अपने अतीत के बारे में वो अपने बेटे से छुपाएँगे और तुम उसका फ़ायदा लोगि.. पर मिस रीना शाह... तुम यह भूल गयी, कि तुम्हारे सामने मैं हूँ..... और हां, इन सब में एक बात का और भी पता लगाया है मैने... जब सिद्धार्थ ने शॅरन का खून किया और कंपनी में रिज़ाइन रखा, तब रूबी उसके घर गयी थी.. 
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12-13-2018, 02:42 AM,
RE: Antarvasna kahani माया की कामुकता
जब रोज़ी सिद्धार्ता से मिलने पहुँची, तब उसने सिद्धार्थ को तुम्हारे साथ फोन पे बात करते हुए सुन लिया....सिद्धार्थ को जब पता लगा, वो रूबी के पीछे दौड़ा... भागते भागते रूबी का फ़ोन भी रास्ते में गिर पड़ा... अपने घर जाने के बदले, रूबी लोकल साइबर केफे में गयी और यह सब बातें मुझे मैल करने की सोची.. रूबी ने जब सारा मैल ड्राफ्ट कर लिया, तब अचानक उसके पास सिद्धार्थ आया... सिड ने हल्के से इशारे में उसे बाहर आने को कहा, क्यूँ कि वो पब्लिक प्लेस में उसके साथ कुछ नहीं कर सकता.. रूबी इतना डर चुकी थी, कि मैल सेंड के बदले, मैल सेव ऐज ड्राफ्ट का बटन क्लिक हुआ उससे.... रूबी का दिमाग़ ब्लॉक हो चुका था, उसे समझ नहीं आ रहा था कि वो मैल टाइप किया हुआ कहाँ गया.. क्यूँ कि उसके सामने सिद्धार्थ था जो बाहर उसका इंतजार कर रहा था, उसने अपना यूज़र नेम और पासवर्ड मुझे मैल कर दिया इस उम्मीद में कि शायड मैं ही उसका टाइप्ड मैल ढूँढ लूँ...."



"आंड दीदी.. गेस व्हाट.. यहाँ फिर मैं आपका भाई निकला.... रूबी अब बिल्कुल सेफ है.. उस पोलीस ने उसे ढूँढ निकाला है, अभी मेरी बात हुई उससे" भारत ने रीना के इर्द गिर्द घूमते हुए कहा



"आपको आप के बचाव में कुछ कहना है... "सीनियर इनस्पेक्टर ने रीना से पूछा, जब भारत शांत हुआ



"इनस्पेक्टर.. यह अपनी मर्ज़ी से अपनी जायदाद मेरे नाम कर रहे हैं.. मैं इनकी नाजायज़ औलाद हूँ इसलिए.." रीना ने ठंडे दिमाग़ से जवाब दिया



"यह झूठ बोल रही है इनस्पेक्टर, यह हमें ब्लॅकमेल कर रही थी .. क्या सबूत है तुम्हारे पास रीना, कि मैं अपनी मर्ज़ी से यहाँ आया हूँ.."राकेश ने गुस्से में कहा



"क्या सबूत है तुम्हारे पास राकेश कि मैं तुम्हे ब्लॅकमेल कर रही थी.."रीना ने पलट के कहा



"होल्ड ऑन.. दीदी, क्यूँ कि तुम मेरी बहेन हो, इसलिए तुमने डॅड को पिछले 10 दिन में जो भी कॉल किए सब अलग अलग प्रीपेड नंबर्स से.. इसलिए वो तो सबूत नहीं है मेरे पास... लेकिन हां, क्यूँ कि मैं तुम्हारा भाई हूँ, तुम्हे निराश करना मुझे बिल्कुल अच्छा नहीं लगेगा... " कहके भारत राकेश के पास गया और उसकी शर्ट का उपर का बटन जो पूरा मेटल का था वो निकालने लगा.. धीरे से बटन को शर्ट से अलग कर के, वो आगे गया



"दीदी, यह कॅमरा है.. इसमे वीडियो रेकॉर्डेड है.. आप बहुत सुंदर लग रही हो इसमे, कसम से.." भारत ने वो बटन इनस्पेक्टर को देते हुए कहा



"मिस रीना.. आपको कुछ कहना है... " इनस्पेक्टर ने बटन लेते हुए कहा



"लेट्स गो इनस्पेक्टर.." रीना ने बस इतना ही कहा



"लेकिन मिस्टर भारत आपने तो कहा था कि यहाँ 5 लोग हैं, यह तीन, मतलब रीना , प्रीति और मेहुल.. यह तीनो यहाँ है , बाकी के दो कहाँ हैं.." इनस्पेक्टर ने भारत से पूछा



"यहाँ है साहब..." सामने से मुन्ना ने जवाब दिया जो अपने दोस्त के साथ था और दोनो के हाथों में विक्रम और सिद्धार्थ थे....



"यह लीजिए... बहुत मुश्किल से हाथ में आए हैं.. एक तो आसानी से आ गया, लेकिन यह दूसरा भागते भागते पीछे की तरफ गया.. यह तो किस्मत अच्छी है कि वो थक गया था भाग भाग के और मैने उसे दौड़ के पकड़ लिया..." मुन्ना ने सिद्धार्थ की तरफ इशारा करते हुए कहा... इनस्पेक्टर ने दोनो को पकड़ा, और सब को लेके बाहर जाने लगा. बाहर जाते जाते भी रीना के चेहरे पे एक हँसी थी.. भारत ने उसे इग्नोर किया और कुछ ही पल में वहाँ बस वो 4 ही रह गये..



"मुन्ना, शुक्रिया दोस्त, यह ले तेरा पैसा... " भारत ने मुना के हाथ में एक ब्रीफ केस दिया.. जब मुन्ना ने खोल के देखा तो उसकी आँखों की चमक सब कहने लगी



"कितना है साहब..." मुन्ना ने अपने दाँत निकालते हुए कहा



"बहुत है.. जाओ, ऐश करो.. शुक्रिया.." भारत ने मुन्ना को बाहर भेज दिया... 



राकेश और सीमी काफ़ी खुश थे, शालिनी ने भी चैन की साँस ली, और सब एक दूसरे से बातें करने लगे..



"थॅंक्स सन... थॅंक्स आ लॉट.." राकेश ने भारत को गले लगाते हुए कहा... लेकिन भारत के आस पास क्या हो रहा है सब उसे कुछ महसूस नहीं हो रहा था... उसके कानो में बस गूँज रहे थे तो मुन्ना के शब्द



"साहब, यह दौड़ दौड़ के थक गया था, तभी मेरे हाथों में आया...."




सिद्धार्थ, कभी थकने वालों में से नहीं था.. फिर अगर वो पीछे भागा था, तो ज़रूर उसे मेरी गाड़ी दिखी होगी... अगर वो वहाँ रुका तो उसने ज़रूर कुछ मेरी गाड़ी को किया होगा...



"सन.. क्या सोच रहे हो.. चलें.." राकेश ने भारत को अपनी बाहों में लेते हुए कहा



"नथिंग डॅड.. शायद कुछ ज़्यादा ही सोचता हूँ.. लेट्स गो.." कहके वो लोग पीछे के रास्ते से गये जहाँ भारत की गाड़ी खड़ी थी.... सब लोग गाड़ी में बैठ गये



"चलिए डॅड, आपको आपकी प्यारी कार तक छोड़ देता हूँ.. लॅंड्स एंड टुनाइट ओके.." भारत ने हँस के कहा और गाड़ी स्टार्ट करके आगे आके राकेश की गाड़ी के पास आए...



"चलो बेबी, यू कम विद मोम डॅड.. मैं कुछ काम निपटा के आता हूँ पोलीस स्टेशन से.. सी यू इन ईव्निंग.." भारत ने शालिनी से कहा और एक गुड बाइ किस दी.... राकेश , सीमी और शालिनी तीनो रोड क्रॉस करके गाड़ी में बैठ गये.. सामने भारत वहीं खड़े खड़े उन्हे देख रहा था, उनके जाने का वेट कर रहा था.. सीमी आगे राकेश के साथ और शालिनी पीछे बैठी थी.. गाड़ी में बैठते ही सीमी ने एक नज़र भारत को हँस के देखा और हाथ हिला के उसे कुछ इशारा किया... राकेश के चेहरे पे एक बहुत लंबी हँसी थी खुशी की.... जैसे ही राकेश ने गाड़ी के स्टारटर में चाबी डाल के चाबी घुमाई... 



"बूओमम्म्म........" की आवाज़ से उनकी गाड़ी ब्लास्ट हुई



आस पास अफ़रा तफ़री मच गयी.. भारत की आँखों के सामने राकेश और सीमी के साथ शालिनी की बॉडीस पड़ी थी, दौड़ के भारत वहाँ गया, लेकिन उसका कोई फ़ायदा नहीं हुआ... जब तक वो वहाँ पहुँचता उनकी जान जा चुकी थी... जल्द से जल्द आंब्युलेन्स भी आई, लेकिन कुछ काम की नहीं.. चीख चीख के भारत आंब्युलेन्स में रोने लगा, उसकी आँखों से आँसुओं के बदले जैसे खून बह रहा था.... काफ़ी चिल्ला रहा था, काफ़ी ज़ोर से रो रहा था, लेकिन भारत की आवाज़ उसके माँ बाप और उसकी बीवी तक नहीं पहुँच रही थी... 




भारत अब अकेला पड़ चुका था दुनिया में, माँ बाप बीवी. उसके साथ कोई नहीं था.... आज शमशान घर में भी वो अकेला था, उसके साथ कोई रिश्तेदार , कोई दोस्त, कोई हमदर्द नहीं था... आज उसके दिल के टुकड़े हो चुके थे.. आज उसे समझ आई थी रिश्तों की आहेमियत, जब तक तीनो के शव जलते रहे तब तक भारत वहीं बैठा रो रहा था... कोई पैसा, कोई पॉवर, कोई ताक़त.. उसके कुछ काम नहीं आया आज... पोलीस स्टेशन में विक्रम ने कबूला कि उस गाड़ी में बॉम्ब उसने प्लांट किया था , उसे लगा था शायद भारत जाते जाते गाड़ियाँ बदल देगा क्यूँ कि पूरा प्लान खुल चुका था,.. लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ.. शायद जब भारत ने सोचना छोड़ दिया, तब से ही वो अकेला हो गया था... अगर वो ज़्यादा सोचता मुन्ना के शब्दों के बारे में, तो उस गाड़ी में शायद वो होता.. रीना और प्रीति पे इंटरनॅशनल पोलीस के केसस भी दर्ज हुए.. सिद्धार्थ को यूएस पोलीस के पास भेजा गया, और विक्रम और मेहुल आर्तर रोड जैल भेजे गये... भारत ने राकेश की 80% जायदाद दान कर दी.. 20% लेके वो इंडिया से काफ़ी दूर चला गया... 



भारत अब अकेला रहता था... कोई दोस्त नहीं, कोई हमदर्द नहीं.. सुबह से लेके शाम वो बस समुंदर की लहरों के पास बैठा रहता और रात होते ही लहरों के पास सो जाता.. शालिनी और उसके होने वाले बच्चे की याद आती, तो उसकी आँखें नम हो जाती.. सीमी और राकेश के बारे में सोच के उसका दिल भारी हो जाता... आज उसके दिमाग़ में शालिनी के बस वो शब्द बार बार आ रहे थे



"हम मरेंगे तो पैसा और पॉवर अपने साथ नहीं ले जाएँगे.. सुकून है, जो हमारे साथ रहेगा... इसके अलावा कुछ नहीं...."





समाप्
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