Antarvasna kahani नजर का खोट
04-27-2019, 12:35 PM,
#31
RE: Antarvasna kahani नजर का खोट
वापसी में रस्ते भर मैं बस पूजा के बारे में ही सोचता रहा मेरी सांसे अभी तक उसके होंठो के स्वाद से महक रही थी और दिल में उसका असर कुछ ज्यादा सा था अपने आप में खोया हुआ मैं घर आते ही भाभी से टकरा गया 

वो- देख के चलना 

मैं- माफ़ी भाभी 

वो- कहा गायब थे जनाब सुबह से 

मैं- बस ऐसे ही टाइम पास 

वो- तो टाइम पास भी करने लगे आप , माँ सा से मिल लो आपको पूछ चुकी है कई बार 

मैं- जी 

मैं माँ सा के कमरे में गया 

वो- कुंदन 

मैं- क्या हालत बना रखी है अपने जैसे सदियों से बीमार हो आप पहले की तरह अच्छे हो जाओ आपको ऐसे देख कर ठीक नहीं लगता मुझे 

वो- जल्दी ही ठीक हो जाउंगी 

मैं- हां, कितने दिन हुए अभी आपकी डांट नहीं सुनी तो खाना भी अच्छा नहीं लगता मुझे 

वो- ठीक हो जाने दे फिर जी भर के कान मरो दूंगी तेरे 

मैं- माँ सा मैं जनता हु की आप इस समय बहुत मुशिकल दौर से गुजर रही हो पर मैं आपको विस्वास दिलाता हु की जो भी होगा ठीक होगा आप फिकर ना करे 

वो- माता पे पूरा विस्वास है मुझे 

हम बाते कर ही रहे थे की तभी नर्स ने कहा इनको ज्यादा बात नहीं करने देनी तो अं वापिस बाहर आ गया तभी भाई भी आ गया उसके हाथ में कुछ सामान था
भाई- कुंदन ये ले ये वस्त्र तुझे वहा पहनने है और साथ ही कुछ तलवारे है और जो भी हथियार तुझे चाहिए देख ले जरा 

मैं- आता हु भाई जी 

मैंने उन चीजों को देखा जिनकी मेरे जीवन में कोई आवश्यकता नहीं थी कभी भी बस ऐसे ही मैंने चुनाव कर लिया और अपने कमरे में चला गया पूजा से मिलके जितना सुकून मुझे मिला था यहाँ आकर वापिस ऐसे लग रहा था की जैसे कैद में पंछी लौट आया हो पता नहीं ये मुझे क्या होता जा रहा था मैं कुर्सी पर बैठा पता नहीं क्या क्या सोच रहा था की भाभी आ गयी पता नहीं चला 

भाभी- कुंदन 

मैं- जी भाभी 

वो- हाथ आगे कर जरा तेरी लिए कुछ लायी हु 

मैं- क्या 

वो- पहले हाथ आगे कर जरा 

मैं- ये लो 

मैंने जैसे ही हाथ आगे किया भाभी चौंक गयी और बोली- ये तेरे हाथ में क्या बंधा है 

मैं- डोरा है भाभी 

वो- कुंदन और मेरे हाथ में क्या है 

मैंने देखा भाभी के हाथ में भी वैसा ही धागा था जैसे पूजा ने मेरे हाथ में बांधा था भाभी बस मुझे देखे जा रही थी 

मैं- क्या हुआ 

वो- किसने दिया तुझे ये जाहरवीर जी का धागा 

मैं- क्या हुआ पहले बताओ तो सही मामूली धागा ही तो है 

वो- मामूली धागा नहीं है ये कुंदन ये डोरा या तो पत्निया ही या फिर बड़ी भाभी ही बांध सकती है तो इसका मतलब ........... 

मैं- इसका मतलब ये धागा आप ही बांधोगी भाभी 

वो- पर तेरे हाथ में ..... 

मैं- पर वर क्या भाभी , मेरे हाथ में जो धागा है वो इसके जैसा है पर असली आपके पास है अब आपके सिवा कौन हक़दार इसका 
अब बांधो जल्दी से 

भाभी ने धागा बाँधा और कुछ दुआ दी मुझे और बोली- तो मेरी देवरानी पसंद कर ली तुमने और बात इतनी आगे बढ़ गयी है 

मैं- भाभी आपभी शक करने लगे मुझ पर ऐसा कुछ भी नहीं है 

वो- भाभी को तो तूने पराया ही कर दिया कुंदन वर्ना मेरी आँखे इतनी भी नहीं फूटी की धागे धागे में फरक न महसूस कर सकू 

मैं- भाभी, आप इस घर में मेरी सबकुछ हो भाभी , या मेरी दोस्त जो भी हो बस आप ही हो फिर आपसे भला मैं क्या छुपाऊ कुछ 
होगा तो सबसे पहले आपको ही बताऊंगा न 

वो- जाने दो अब क्या फायदा इन बातो का न ही सही समय है वर्ना मेरे सवाल इतने है की जवाब देते नहीं बनेगा तुमसे 

मैं- आपके हर सवाल को सर माथे पर लेगा आपका देवर और अगर आपको एक धागे की वजह से ऐसा लगता है की मैं आपसे दूर हु तो अभी इस धागे को तोड़ देता हु 


वो- नहीं कुंदन नहीं 

मैं- तो फिर कभी मत कहना की भाभी को पराया कर दिया है आपकी जगह कोई नहीं ले सकता 

भाभी बस मुस्कुराई और मुझे गले लगा लिया और चुपके से बोली- मेरा प्यारा देवर 

उनके जाने के बाद मैं सोचने लगा की मैं उनकी तेज नजरो से अपने इस अनकहे रिश्ते को ज्यादा समय तक नहीं छुपा पाउँगा और होगा क्या जब ये बात सबके सामने आएगी और भाभी वो किस सवाल के बारे में कह रही थी की पूछने पे आएँगी तो मैं जवाब नहीं दे पाउँगा आखिर ऐसा क्या जानती है वो मैं सोचने लगा 

पता नहीं कब रात घिर आई थी हमेशा की तरह आज भी वो खामोश थी आसमान में कुछ तारे थे जो शायद कुछ कहने की कोशिश कर रहे थे जैसे तैसे मैंने खाना खाया और आने वाले कल के बारे में सोचने लगा वो कल जो शायद आये या ना आये ये पता नहीं किस प्रकार की भावनाए मुझमे उमड़ रही थी मैंने देखा घर में ख़ामोशी थी पर हर कमरे की बत्ती जल रही थी मतलब कोई भी नहीं सो रहा था 

और नींद आती भी किसे शायद सब दुआ कर रहे थे की दिन कभी निकले ही ना मैंने अपने हाथ में वो कपडे लिए जो भाई लाया था एक कुरता और एक धोती कुछ देर उनको हाथ में लिए रखा और फिर मैंने देखा भाई बाहर खड़ा था तो मैं भी आ गया 

मैं- क्या हुआ नींद नहीं आ रही क्या 

वो- बस ऐसे ही 

मैंने देखा उनके हाथ में गिलास था शायद पेग लगा रहे थे पर रात के इस वक़्त 

मैं- क्या हुआ भाई 

वो- पता नहीं ऐसे लगता है जैसे सीने में दर्द सा हो रहा हो 

मैं – तबियत ख़राब है मैं अभी डॉक्टर को बुलाके लाता हु 

वो- नहीं भाई, कुछ नहीं है 

मैं- तो फिर क्या बात 

वो- तू कब इतना बड़ा हो गया पता ही नहीं चला यार, अभी कल तक मेरे सामने नंगा घूमता था और आज देख 
मैं समझ गया भाई भी कल की वजह से थोडा परेशान है मैं बस चुपचाप भाई के सीने से लग गया उसकी गर्म बाहों में कुछ देर के लिए जैसे पनाह सी मिल गई वो क्या बोल रहा था क्या नहीं पर आज लग रहा था की बल्कि मैं महसूस कर रहा था की घर क्या होता है परिवार क्या होता है मैंने दरवाजे पर खड़ी भाभी को देखा और उनकी आँखों में कुछ आंसू भी देखे जो मेरे कलेजे को जला गए 

बाकि समय हम तीनो ने साथ ही काटा पर ऐसे लगा की जैसे आज भोर जल्दी ही हो गयी हो घर में सुबह से ही चहल पहल बढ़ गयी थी मेरा भाई पल पल मेरे साथ था किसी साये की तरह मैं दो पल के लिए घर के बाहर गया और मैंने देखा जैसे की पूरा गाँव ही वहा आ गया था मुझे नहलाया गया और फिर भाभी ने आरती की पर उनकी डबडबाई आँखे बहुत कुछ कह रही थी मेरे सर पर हाथ रखते हुए बस उन्होंने इतना कहा- अखंड जोत जलाई है निर्जला रहूंगी जब तक तुम नहीं आओगे मेरा मान रखना 

भाई ने मुझे अपनी गाड़ी में बिठाया और एक के बाद एक गाड़िया दौड़ पड़ी उस रस्ते की तरफ जो लाल मंदिर की और जाता था करीब पौने घंटे बाद हम वहा पहुचे और जैसे ही मैं गाड़ी से उतरा चारो तरफ कुंदन ठाकुर के नाम के जयकारे लगने लगे इतनी भीड़ मैंने पहले कभी नहीं देखि थी और तभी मैंने ठाकुर जगन सिंह को हमारी और आते देखा

वो हमारे पास आया और बोला- ठाकुर कुंदन सिंह, मुझे तो उसी दिन समझ जाना चाहिए था पर पता नहीं तेरे अन्दर की आग को मैं पहचान नहीं सका 

“आग पहचानी नहीं जाती जगन सिंह आग में बस जला जाता है ” राणाजी ने हमारी और आते हुए कहा 

जगन- राणा हुकुम सिंह वाह तो ठीक बारह साल बाद ले ही आये वो ही दौर एक बार फिर पर इस बार दांव पर लगाया तो किसको जिसके दूध के दांत अभी टूटे नहीं 

मैं- तमीज से ठाकुर साहब 

राणाजी- अपने भाई के पास जाओ कुंदन 

जगन- हां मिलवा लो जिससे मिलवाना है क्या पता बाद में नसीब हो ना हो 

राणाजी- अपनी मर्यादा में रहे जगन सिंह जो बात करनी है हमसे करे बच्चो को बीच में ना लाये 

जगन- यहाँ तो बच्चे ही हमे बीच में ले आये अब देखते है ऊंट किस करवट बैठेगा हमे तो बड़ी उत्सुकता है जिस तरह से आपके शेर ने चुनौती दी थी कितनी देर वो टिक पायेगा बड़ा सुकून मिलेगा जब उसका गर्म लहू इस पवित्र धरती की प्यास बुझाएगा बारह साल बहुत होते है हुकुम सिंह पर देखो तक़दीर एक बार उसी मोड़ पर सबको ले आई है ना 

राणाजी- तब भी बात तुम नहीं समझ सकते थे और आज भी नहीं समझ रहे हो हमने तो हथियार उसी दिन गिरा दिया था पर खैर अब चुनौती स्वीकार हुई है तो मान भी होगा 

जगन – हमे तो उस पल का इंतजार है जब कुंदन की लाश यहाँ पड़ी होगी और आप अपने घुटनों पर बैठे होंगे 

राणाजी- तुम्हारा नीचपन गया नहीं आज तक खैर ना तुम पहले बात करने लायक थे ना आज हो 

जगन- मेरी तो बस एक ही हसरत की आपके खून से अपनी तलवार की पयस बुझा सकता पर आपने तो हथियार ही छोड़ दिया कायरता का नकाब ओढ़ लिया 

राणाजी- इन हाथो ने हथियार छोड़े है चलाना नहीं भूले और दुआ करना की तुम्हारे जीवन में वो दिन कभी नहीं आये बाकि किसी लोहे के टुकड़े की इतनी हसियत नहीं जो हमारे लहू से अपनी प्यास बुझा सके 
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04-27-2019, 12:35 PM,
#32
RE: Antarvasna kahani नजर का खोट
दिन सरपट दौड़ा जा रहा था सुबह कब दोपहर और दोपहर कब साँझ में ढलने लगी थी पता नहीं चला और फिर वो समय भी आ गया जब अंगार उस मैदान में दहाड़ रहा था भीड़ जय जयकार कर रहा था 

भाई- डर तो नहीं लग रहा ना 

मैं- नहीं भाई 

वो- कुंदन हौसला रखना चाहे कुछ भी हो चाहे जितनी बार भी तू गिरे इतनी हिम्मत करना की तू उठ सके अपने दुश्मन को अपने से कम मत समझना हम सब हर पल तेरे साथ है खुद को अकेला मत समझना जैसे ही तू उसके सामने हो तुझे बस इतना याद रहना चाहिए की तू यहाँ किसलिए है तेरा प्रण तेरा लक्ष्य है उसका मान रखना तेरा कर्म है और उसमे कमी नहीं होने पाए ये तेरी कर्मभूमि है तेरा अग्निपथ है जिसे तुझे पार करना है ना खुद क लिए न हमारे लिए बल्कि उस वजह के लिए जिसके कारण तूने जीवन दांव पर लगाया है 

चाहे कुछ हो उफ्फ्फ भी ना करना न कुछ ज्यादा सोचना यही वो लम्हा है जिसका तुमने इंतजार किया था या तो इस पार या उस पार 
मैं- जी भाई जी भाई 

और फिर वो वक़्त आ ही गया जब मैं और अंगार एक दुसरे के सामने खड़े थे आँखों में आँखे डाले हमारे चारो और इतना शोर था की कानो में परदे बुरी तरह से हिल रहे थे पुजारी ने शंखनाद कर दिया था अंगार और मैं बस घुर रहे थे एक दुसरे को और इस से पहले मैं कुछ करता मेरे बदन ने झटका खाया और मैं निचे गिर पड़ा उसने पता नहीं कब मेरी पसलियों में ऐसा जोर दार घूंसा मारा की मेरी आँखों के आगे अँधेरा छा गया 

पसलिया जैसे तिदक सी गयी थी मैं अपनी साँस को संभाल रहा था की तभी एक लात और , और मैं घिसट गया उसने मुझे उठाया और बहुत जोर से धरती पर पटका “आह ” इस बार मैं अपनी चीख नहीं रोक पाया पर मुझे उठाना था उसके अगले प्रहार को रोका मैंने और उठा 

अंगार- छोरे, गलती की तूने बीस बीस गाँवो के जवान मेरे नाम से मूत देते और तू मेरे सामने खड़ा हो गया गलती की तूने 

मैं- आजा फिर दिखा तेरा जोर कितना है आ दिखा तेरा वो डर जिसके आगे बीस गाँवो के जवान मूत देते है आ साले आ 

एक बार फिर हम दोनों गुत्थम गुत्था हो गए थे उसके बाजु मुझे अपने कंधो में धंसते महसूस हो रहे थे पर मुझे हार स्वीकार नहीं थी बल में मुझसे कही ज्यादा था वो और जल्दी ही उसको भीड़ का समर्थन भी मिलने आगा क्योकि बार बार वो मुझ पर भारी पड़ने लगा था कभी वो कभी मैं बस कोशिश थी एक दुसरे पर काबू पाने की क्योंकि ये कोई साधारण मुकाबला नहीं था ना ये आन बान का प्रश्न था मेरे लिए 

तभी मेरा प्रहार उसके चेहरे पर लगा और उसके होंठो से खून बहने लगा मेरी नजर भाई पर पड़ी तो वो मेरी तरफ देख कर मुस्कुराया पर उसके चेहरे पर फिकर देखि मैंने और तभी अंगार ने मेरे सर पर वार किया बस यही असावधानी मुझ पर भारी पड़ गयी और एक के बाद एक प्रहार मी बदन पर पड़ने लगे मेरी आँखों से आंसू निकलने लगे जैसे जान बाकी नहीं रही 

अंगार- बस साले निकल गया जोश तेरा 

मैं- अभी कहा अभी तो शुरुआत है 

जैसे ही वो मेरे पास आया मैंने अपना हाथ उसके पैरो में उलझाया और उसे गिरा दिया और चढ़ गया उसके ऊपर और मारने लगा उसको पर उसने मुझे पलट दिया पर इसी बीच मेरे हाथो उसकी गर्दन आ गयी और मैंने मौका देखते हुए अपनी पकड़ मजबूत कर दी पर वो इतनी आसानी से काबू कहा आने वाला था उसने अपना जोर लगाते हुए मुझे इस तरह फेका की जहा हथियार थे मैं वहा जाकर गिरा मेरा सर पता नहीं किस चीज़ से टकराया पर खून निकल आया 

भीड़ जैसे पागल ही हो रही थी और एक पागलपन मैंने अंगार की आँखों में भी देखा मेरा सारा जोश मेरी ताकत ना जाने कहा गायब हो गयी थी मैंने देखा उसने अपने हाथ में तलवार उठा ली थी और अगले ही पल उसका वार मेरी पीठ को चीर गया मैं बहुत जोर से चिल्लाया और मेरा कुरता तार तार होकर जमीन पर गिर गया

बड़ी मुस्किल से अपने आप पर काबू पाते हुए मैंने उसका प्रहार रोका अगले कुछ मिनट मैं बस बचने का प्रयास करता रहा और इसी बीच मैंने ढाल फेक कर मारी उसके हाथ पर तो तलवार निचे गिर गयी और मैं फिर से भीड़ गया उस से आस पास हल्का हल्का अँधेरा होने लगा था भीड़ ने मशाले, लालटेने जला ली थी पर शोर में किसी तरह की कमी नहीं आई थी 

कभी लात कभी घूंसे तो कभी ताकत का मोल हम दोनों अपनी अपनी ओर से हर तरीका अपना रहे थे और कही ना कही मुझे ये भान भी होने लगा था की वो थक रहा है पर वो हर बार मेरे अंदाजे को गलत साबित कर देता उसकी वो लात जो मेरे पेट में पड़ी तो मैं दोहरा हो गया खांसी सी चल गयी राल बहने लगी और तभी उसने तलवार उठा ली 

“उठ ” उसने कहा और सीधा तलवार जो घुमाई तो इस बार मेरी बाह चिर गयी 

अंगार- आज इस धरती की प्यास तेरे खून से बुझेगी 

मैं- तो बुझा ना किसने रोका है तुझे 

मैंने भी तलवार उठा ली और जैसे ही हमारी तलवारे आपस में टकराई वातावरण में गर्मी बढ़ सी गयी तन्न तन्न की आवाज उस शोर में गूंजने लगी उसके वार को बचाते हुए जैसे ही मैंने उसकी पीठ को काटा तो पता नहीं क्यों पर मुझे भी जूनून सा चढ़ने लगा मैंने एक वार और किया और वो जमीन पर गिर पड़ा मैंने उसके कुलहो पर एक लात मारी खीच कर और फिर मारने लगा उसको 

इस बार मैं उस पर भारी पड़ने लगा था कुछ देर तक बस वो पिटता रहा पर तभी उसने चाल खेल दी उसने मेरी आँखों पर मिटटी उठा के मारी और कुछ पल के लिए मैं अँधा सा हो गया मेरी आँखों में तेज जलन हुई और तलवार हाथो से छुट गयी इसी का फायदा उठाते हुए उन मेरी टांगो के बीच एक लात मारी खीच कर और मेरी साँस अटक गयी किसी डाली की तरह लहराते हुए मैं गिरा जमीन पर 

और चारो तरफ जैसे सन्नाटा सा छा गया पता नहीं लोग खामोश हो गये थे या मेरे कान काम से गए थे और अगली ही लात फिर से मेरी गोलियों पर पड़ी और मैं शांत पड़ गया उसके बाद मुझे बस सीने में तेज दर्द महसूस हुआ और फिर मार पे मार पड़ती गयी आँखों के आगे अँधेरा छाया था और तेज दर्द से बदन टूट रहा था 

तभी जैसे कोई मुझे खड़ा कर रहा हो और अगले ही पल जैसे मैं दूर जा गिरा ऐसे कई बार हुआ मेरे साथ और फिर मैं जमीन पर गिर गया जैसे सब कुछ ख़तम हो गया हो उसने मेरे सीने पर पैर रखा और चीखते हुए बोला- देखो इस कल के लौंडे ने मुझे चुनौती थी देखो कैसे मेरे कदमो में पड़ा है इसका आज वो हाल होगा की अंगार के नाम से लोगो की हड्डिया कांप जाया करेंगे देखो गौर से इसको इसका क्या हाल करता हु 

अंगार- मर गया क्या अभी मत मारना तू अभी तो मैंने मारा ही नहीं तुझे अभी तो खेला है तेरे साथ 

मैं निचे पड़े पड़े- तो मार ना साले, मारता क्यों नहीं मैं भी तो देखू 

वो- बड़ा ढीठ है तो कुत्ते की पूँछ की तरह उठ तो सही जरा मुकाबला तो कर मेरा 

उसने मुझे उठाया और फिर से मुझे दूर फेक दिया एक बार फिर मैं घिसटता हुआ गया मेरी पूरी छाती लहुलुहान थी बल्कि पूरा बदन कहू तो कोई बात नहीं मैं अपनी आँखे खोलने की कोशिश कर रहा था मेरे आंसुओ स मिटटी हट तो रही थी पर दिख धुंधला सा रहा था पर फिर भी जैसे तैसे मैं उसका मुकाबला कर रहा था बल्कि बस पिट रहा था उसके वार बार बार मुझे काट रहे थे तडपा रहे थे 

मुझे वो फिर मेरे पास आया और बोला- साले मुकाबला नहीं कर पायेगा तूने तो अपनी कसम नहीं निभाई पर मैं तुझे एक बात बोलता हु यहाँ से जाने से के बाद सबसे पहले तेरी उस चमक्छ्लो को उठाके ले जाऊंगा और फिर उसके साथ क्या क्या करूँगा 

उसकी उस मतवाली गांड को अपने इन्ही हाथो से रगडू गा उसके बदन से एक एक कपडा उतारूंगा और फिर उसे अपनी रखैल बनाऊंगा जब मेरा जी करेगा उसको अपने लंड पर बिठाऊंगा पर तू , तू तो देखने के लिए रहेगा नहीं यहाँ पर पर वो हमेशा याद करेगी जब जब मैं उसके हुस्न को मसलुंगा पर पहले तेरा किस्सा ख़तम करूँगा 

उसने जैसे ही ये बाते बोली मेरी आँखों क सामने पूजा का चेहरा आ गया और मेरी आँखे झट से खुल गयी उसने अपनी तलवार ऊपर उठाई और मैंने उसे झट से पकड़ ली मुझे अपने बाजुओ में एक नया खून जोर मारता महसूस हुआ और मैं अपने हाथो से उसकी तलवार थामे हुए खड़ा हो गया और उसकी आँखे आश्चर्य से फ़ैल गयी 

मैं- क्या करेगा तू फिर बोल के दिखा बोल साले एक बार फिर बोल के दिया मैंने उसकी छाती में लात मारते हुए कहा 

मैं- तू उसके कपडे उतरेगा तू उसको अपनी रखैल बनाएगा उठ अंगार और दिखा बनाके दिखा 

मैंने अबकी बार उसके घुटने पर लात मारी और कड़क की तेज आवाज आई साथ ही वो जोर से चीखा पर उसकी चीख से ज्यादा मुझे खुद पर गुस्सा आ रहा था की कैसे ये फिर से पूजा के बारे में इतना गलत बोल गया 

मैं- अंगार मैंने तुझसे कहा था की जहा जहा तूने उसको हाथ लगाने को बोला था वहा वहा से मैं तेरा मांस उतारूंगा याद है या नहीं 

मैंने अब पहली बार उसकी आँखों एक खौफ देखा मैंने उसे उठाया और बोला- देख अपने चारो और देख आज ये सब देखेंगे और सीख लेंगे की किसी भी औरत या लड़की की इज्जत करना सीखे बिना उसकी मर्ज़ी के उसका कोई मालिक नहीं बन सकता नहीं बन सकता 

मैंने इएक तलवार उठा ली और पूरी ताकत सी प्रहार किया और अंगार की चीख गूंजने लगी लोगो का शोर शांत हो गया जैसे कोई मरघट जिन्दा हो गया हो उसका इक चुतड काट दिया था मैंने 

मैं- तैयार हो देख मैं अपनी कसम पूरी कर रहा हु उसको अपनी गोद में बिठाएगा तू चल दिखा बिठा के दिखा मैंने एक वार और किया उसकी पेट पर और खून का दरिया बह चला अंगार की चीख चारो दिशाओ में गूंज रही थी 

पता नहीं मैं क्या क्या बोल रहा था और वो धाती पर पड़ा तड़प रहा था पर मुझे चैन नहीं था मेरे बदन में दर्द था जो खून बन कर बह रहा था मैंने अपनी तलवार उठाई और अगले ही पल घुटने से उसका पैर काट डाला और इसी के साथ जैसे खून की गाढ़ी धारा बह चली धरती की प्यास बुझाने को मुझे उसकी चीखो से कोई वास्ता नहीं था जहा जहा उसने कहा था मैंने वही से उसका मांस काटा मैंने आखिर मैंने पूजा से वादा जो किया था की उसकी बेइज्जती का बदला जरुर लूँगा 
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04-27-2019, 12:36 PM,
#33
RE: Antarvasna kahani नजर का खोट
मेरा रुदन जब ख़तम हुआ तब तक उसके शरीर के पांच टुकड़े हो चुके थे मैंने अपनी चुनौती पूरी की मैंने देखा मेरे गाँव के लोग जय जय कार कर रहे थे मैंने राणाजी को अपनी और आते देखा अब मुझे अंगार का सर माता के दरबार में चढ़ाना था पर मैं अगर कुछ चाहता था तो सिर्फ पूजा से मिलना जैसे तैसे मैंने वो रस्म निभाई और फिर एक मटकी में अंगार का जितना खून इकठ्ठा कर सकता था कर लिया 

मैं अपने भाई के पास गया और उस से गाड़ी की चाबी मांगी उसके चेहरे पर हज़ार सवाल थे पर उसने चाभी मेरे हाथ में रख दी मैंने गाड़ी चालू की और अपने दर्द से जूझते हुए अपपनी बेहोश होती आँखों और खोते होश को सँभालते हुए गाड़ी तेजी से भागा दी मेरी छाती का ज़क्म खुला था जिसमे से अभी भी खून रिस रहा था सर घूम रहा था पुरे बदन में दर्द था पता नहीं ये कैसा जीवट था बस पहुच गया मैं उसके दरवाजे पर 

“पूजा पूजा ” मैंने चिल्लाते हुए उसका दरवाजा पीटना शुरू किया

जैसे ही दरवाजा खुला मैं उसकी बाहों में झूल गया 

“कुंदन ” वो चीखी और मुझे अपनी बाहों में लिए लिए ही बैठ गयी उसकी आँखों से आंसू झर झर के गिरने लगे 

मैं- पूजा मैंने अपनी कसम निभा दी देख मैं लौट आया हु और साथ उस नीच का खून भी लाया हु तेरे पैर धोने को 

वो- कुंदन तू बहुत घायल है तुझे इलाज की जरुरत है तू रुक मैं करती हु कुछ , करती हु कुछ 

मैं- कुछ नहीं होगा पगली जब तू साथ है तो भला मुझे क्या हो सकता है मैं कहा गिर सकता हु जब तू है मुझे थामने के लिए पगली 

पूजा की आँखों से आंसू बाहे जा रहे थे वो जोर जोर से रोये जा रही थी 

मैं- रोती क्यों है देख मै आ गया हु न तेरे पास इर क्यों रोती है 

वो- खून, बहुत खून बह रहा है कुंदन 

मैं- पानी पिला दे थोडा पूजा प्यास लगी है
वो- लाती हु 

वो तेजी से भागी अन्दर मैंने एक नजर खुद को देखा और फिर उसने प्याला मेरे होंठो से अलग दिया उसके हाथो से कुछ घूंट पानी पीकर लगा की जैसी बरसो की प्यास बुझ गयी हो जैसे किसी प्यासी जमीन पर घनघोर बारिश बरस पड़ी हो 

वो- एक मिनट मैं अभी आई 

वो दौड़ कर अन्दर गयी और फिर आई तो उसके हाथो में कुछ लेप सा था जो वो मेरे सीने पर मलने लगी और जैसे मेरा सब कुछ जलने लगा धुआ सा उठने लगा पर वो उसे मेरे बदन पर लगाती रही बेशक जलन हुई पर उसके लेप का असर भी हुआ कुछ पलो के लिए मैंने आँखे मूंद ली वो मुझे सहलाती रही मैं उसकी गोद में लेटा रहा 

फिर मुझे अपने गालो पर कुछ गीला सा लगा मैंने देखा उसके आंसू थे 

मैं- रोती क्यों है पगली 

वो- कहा रो रही हु 

मैं- फिर आंसू क्यों 

वो- आँख में कुछ चला सा गया होगा 

मैं सहारा लेते हुए उठा और उसके हाथ को अपने हाथ में लिया और बोला- पूजा अभी मुझे जाना होगा मैं बाद में मिलूँगा 

वो- तेरी हालत ठीक नहीं है मैं चलती हु साथ 

मैं- नहीं रे, तेरा कुंदन इतना भी कमजोर नहीं लाल मंदिर से सीधा तेरे पास आया हु पर अभी घर भी जाना होगा एक और जरुरी काम है जो करना है पर उस से पहले तू यहाँ आ 

मैंने वो मटकी ली और उसे दिखत हुए बोला देख इसमें उ नीच क खून है जिस से मैं तेरे पैर धोऊंगा अपने पैर आगे कर 

अपने आपको सँभालते हुए मैंने पूजा के पैरो को धोया और फिर उसे हैरान परेशान छोड़ कर मैं गाव की तरफ मुड गया पर मेरी हालत भी ठीक नहीं थी पल पल आँखों के आगे अँधेरा छा रहा था और तभी जैसे उक्काब आई और खून की उलटी गाड़ी में ही गिरने लगी लगा की जैसे अब प्राण निकले ही गाँव पता नहीं दूर था या पास था होश जैसे गुम सा ही था अँधेरा जैसे निगलने ही वाला था और तभी पता नहीं भाभी का चेहरा नजर आने लगा 

जो अपने देवर का इंतज़ार कर रही थी की वो आकर उसका निर्जला उपवास तोड़ेगा बड़ी मुश्किल से अपन आप पर काबू पाया ये मैं जानता हु या बस मेरा खुदा की कैसे मैं पहुच पाया पता नहीं साला रास्ता लम्बा हो गया था या फिर हमारी ही हिम्मत टूट गयी थी बस फिर इतना ही याद रहा की गाडी जब रुकी तो घर के बाहर भीड़ लगी थी और भाभी आरती का थाल लिए मेरी राह देख रही थी 

बस उसके बाद कुछ याद ना रहा इसके सिवा की भाभी की बाहों में झूल गया था जब आँखे खुली तो खुद को हॉस्पिटल में पाया बदन पर जगह जगह पट्टिया बंधी थी कुछ छोटी कुछ बड़ी थोडा बहुत हिलने की कोशिश की तेज दर्द हुआ फिर मेरी नजर भाभी पर पड़ी जो अभी अभी आ रही थी 

भाभी- कुंदन ओह , होश आ गया तुम्हे 

मैं- भाभी 

वो- कुछ मत बोलो बस लेटे रहे मैं अभी डॉक्टर को बुलाती हु 

फिर कुछ देर बाद डॉक्टर के साथ पूरा परिवार ही आ गया ऐसा लगा मुझे डॉक्टर ने पता नहीं क्या चेक किया और क्या बताया पर अपने को करीब हफ्ता भर उधर ही रुकना पड़ गया सब लोग पल पल मेरे पास ही रहते पर मैं बस पूजा को ही देखना चाहता था अपने पास मुझे अपने से ज्यादा उसकी फ़िक्र थी पता नहीं क्यों उससे इतना लगाव हो गया था की जैसे मेरी हर साँस बस पूजा का नाम ही सुमरती थी 

डॉक्टर ने बताया था की कुछ चोट ज्यादा समय लेंगी ठीक होने में और सर पर जो घाव लगा उसकी वजह से कमजोरी भी लगेगी पर खाने- पीने और दवाइयों से रिकवरी हो जाएगी पर कब हफ्ते भर से यहाँ पड़े है जिंदा लाश की तरह वैसे तो सब था यहाँ पर पर अब कोफ़्त होने लगी थी उस दिन मैंने आखिर कह ही दिया

मैं- हटाओ यार ये ताम-झाम तुम्हारे जाने दो हमे बाकि अब घर पर ठीक हो लेंगे 

डॉक्टर- पर अभी आपको और रुकना पड़ेगा 

मैं- समझो आप अब मैं बेहतर हु वैसे भी बस पट्टिया ही तो बदलनी है वो तो घर पर भी बदली जा सकती है मुझे बस जाना है 

तो आखिर मैंने कुछ हिदायतों के साथ अपनी बात मनवा ही ली और घर आ गया , यहाँ आकर बहुत सुकून मिला लगा की मैं ठीक ही हो गया हु पर कुछ पाबंदिया थी जबकि दिल अपना उड़ना चाहता था असमान में मिलना चाहता था पूजा से और छज्जे वाली की भी बहुत याद आने लगी थी पर भाभी एक पल भी अकेला नहीं छोडती थी , कोई ना कोई हर पल साथ ही रहता पर अब मन बेकाबू होने लगा था

तो उस दोपहर पहन कर नीली शर्ट आधी बाजु वाली और बालो को ठीक से बा कर हमने भी सोच लिया की आज पूजा से मिलना ही है और बस अपने आप में मुस्कुराते हुए कमरे से निकल रहे थे की दरवाजे पर भाभी सा से टकरा गए 

भाभी- कहा जा रहे हो 

मैं- जी बस सोचा थोडा बाहर घूम लू 

वो- तबियत इतनी भी ठीक नहीं हुई अभी 

मैं- अभी मन नहीं लगता भाभी मैं जल्दी ही आ जाऊंगा 

वो- उफ्फ्फ ये बेताबी तुम्हारी काश कोई इतना हमारे लिए भी तड़प जाये 

मैं- भाभी आपको तो टांग खीचने का बहाना चाहिए बस चलो आप नहीं चाहती तो नहीं जाता 

वो- वैसे भी नहीं जा पाते, राणाजी और तुम्हारे भाई निचे ही है 

मैं- कोई बात नहीं 

मैं वापिस अपने पलंग पर बैठ गया भाभी सामने कुर्सी पर बैठ गयी और बोली- वैसे इतनी बेताबी किस से मिलने की है तुम्हे जो बार बार ये बेकरारी तुम्हारे चेहरे पर आ जाती है 

मैं- कितनी बार बताऊ भाभी 

वो- जब तक तुम सच नहीं बता देते की कौन है वो जो हमारे देवर के लिए इतनी महत्वपूर्ण हो गयी है 

मैं- इतना भी शक ना करो भाभी 

वो- शक क्या देवर जी आप कहो तो सही हम तो सबूत पेश करदे याद है हमने कहा था की जिस दिन ठकुराईन जसप्रीत सवाल करने पे आएगी जवाब नहीं सुझेंगे 

मैंने भाभी के चेहरे पर वो ही रहस्यमयी शरारती मुस्कान देखि और आज भी उन्होंने वो ही बात बोली थी 

मैं- आज आप कर ही लो सवाल जवाब भाभी 

वो- देख लो फिर ना कहना 

मैं- नहीं कहूँगा 

वो- तो फिर बताओ क्या चल रहा है दरअसल मेरे मन में दो बाते है एक पर मुझे पूरा विश्वास है और दूसरी को मेरा मन नहीं मानता पर सच छुपता भी तो नहीं 

मैं- पहेलियाँ ना बुझाओ भाभी आप ऐसे ही जान ले लो मेरी 

वो- ना जी ना जान लेके हम क्या करेंगे 

मैं- तो फिर क्या बात 

वो-ठीक है मुद्दे पर आते है अब प्रेम-प्रसंग तो तुम कबुलोगे नहीं तो मैं दूसरी बात करती हु और मैं उम्मीद करुँगी की तुम झूठ नहीं बोलो और ना ही कोई बहाना मारो 

मैंने हाँ में सर हिलाया 

वो- तू तुम्हारे और चाची के बीच क्या सम्बन्ध है 
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04-27-2019, 12:36 PM,
#34
RE: Antarvasna kahani नजर का खोट
भाभी ने सीधा परमाणु बम ही फोड़ दिया था जैसे सैकड़ो बिजलिया गिरा दी हो उन्होंने मुझ पर मी चेहरे का रंग पल भर में ही उड़ गया गले में थूक अटक सा गया मैंने भाभी के चेहरे पर एक चमक देखी 

मैं- चाची और बेटे के आलावा क्या सम्बन्ध होगा भाभी 

वो- वो ही मैंने पूछा 

मैं- कहना क्या चाहती है आप 

वो- वही जो तुमने छुपाया 

मैं- क्याआआआअ 

वो- कुंदन मैं जानती हु तुम्हारे और चाची के बीच अनैतिक सम्बन्ध है मुझे गुस्सा भी है तुम पर की तुमने माँ सामान चाची के साथ ही और तुमसे ज्यादा गुस्सा उन पर है की अपने बेटे के साथ ही छी पर तुमसे ये उम्मीद नहीं थी मुझे 

मैं- क्या अनाप शनाप बक रही हो भाभी 

भाभी मुसकुराते हुए उठी और मेरी अलमारी खोली और मेरे कपड़ो के बीच से वो चीज़ निकाली जिसके बाद मैं कुछ कहने की हालत में नहीं था मेरी छोरी पकड़ी गयी थी भाभी के हाथ में चाची की कच्छी थी 

मैं- क्या है ये 

वो- यहाँ नहीं होनी चाहिए ना 

मैं- किसकी है ये 

वो- जाहिर है मेरी तो नहीं है दरअसल ये मुझे उस दिन मिली जिस रात चाची तुम्हारे कमरे से सोयी थी तुम्हारी चादर के निचे जब मैं सफाई करने आई तो मैंने देखा की एक बिस्तर बस ऐसे ही था जबकि एक की चादर की सिलवटे पूरी कहानी कह रही और फिर मुझे ये मिली एक पल तो मैंने सोचा की शायद तूमने मेरे कपडे चुराए है पर फिर मैंने गौर किया अब इतनी नासमझ भी नहीं हु मैं है ना 

मैंने मन ही मन चाची को हज़ार गालिया दी ऐसी भी क्या मदहोशी कपड़ो का तो ध्यान रखना चाहिए था ना अब मेरी गांड मर गयी थी मैं तो नंगा हो गया भाभी के सामने अब क्या कहता पर फिर भी अपने बचाव की एक आखिरी कोशिश की और बोला 

मैं- भाभी हो सकता है की उन्होंने कपडे बदले हो तो रह गयी हो 

भाभी- हां, पर चाची को उसी कमरे में कपड़े बदलने की क्या जरुरत जहा जवान बेटा हो 

मैं- मुझे नहीं मालूम भाभी 

वो- कुंदन, मैं बस तुमसे ये सुनना चाहती हु की ये सच है न और तुम सिर्फ सच बोलोगे वर्ना मैं अभी चाची से ये सवाल करती हु की उनके कपडे मेरे देवर के कमरे मी क्या कर रहे है 

मैंने अपनी नजरे नीची कर ली अब क्या कहते भाभी चाची से पूछती तो और फजीती होती और माँ सा तक बात पहुचती तो और समस्या होती राणाजी तो मार ही डालते 

भाभी- तो कब से चल रहा है ये 

मैं- माफ़ी भाभी सा माफ़ी 

भाभी- माफ़ी किस लिए ठाकुर कुंदन सिंह ठाकुरों को बस इस चीज़ की ही तो प्यास होती है फिर चाहे कही से भी मिले ठाकुरों की हवस कहा कायदे देखती है चाची क्या मैं भी हो सकती हु या कोई और हैं ना या घर में कोई और या जो भी आखिर सब औरतो का निचला हिस्सा एक सा ही तो होता है 

भाभी ने पता नहीं किस अंदाज में कही थी ये बात क्या हिकारत थी या बातो से ही मुझे जलील कर रही थी वो 

भाभी-कोई ताज्जुब नहीं मुझको जो तुम्हारा ये रूप देखा मैंने ठाकुरों की परवर्ती को बहुत अच्छे से जानती हु मैं कोई रिश्ता कोई नाता मायना नहीं रखता उनके लिए अगर कुछ है तो ये प्यास ये प्यास जो कभी बुझती नहीं बस तरीके बदल जाते है कोई ताज्जुब नही 

मैं- कुंदन को कोई प्यास नहीं भाभीसा, ना कोई प्यास न कोई चाह ये और बात है की जो कुछ पिछले दिनों मेरे जीवन में घटा है मैं बतला सकता आपका हर सवाल जायज है और मैं जानता हु की आप अपने जवाब तलाश कर भी लेंगी जिन्दगी में बहुत से ऐसे रिस्ते होते है जो ना होकर भी होते है उनके कोई नाम नहीं होते पर उनकी अहमियत बहुत होती है ऐसा ही रिश्ता मेरा चाची से है जिस्मानी ही नहीं नहीं बल्कि एक दोस्त का भी जिस्म के आलावा भी कुछ बंधन होते है पर आप नहीं समझोगे 

भाभी- समझती हु तभी तो किसी से कुछ नहीं कहा और अब भी नहीं कहूँगी क्योंकि भरोसा है तुझ पर इसलिए नहीं की तू मेरा देवर है बल्कि इसलिए की इंसानियत जिन्दा है तुझमे बस इसी बात की ख़ुशी है की कुंदन जब तू किसी अनजान के लिए अपना जीवन दांव पर लगा सकता है तो हमारे लिए इस परिवार के लिए क्या कर जायेगा एक और मुझे नाज है तुझ पर पर शिकवा भी है की बाते छुपाते हो मुझसे
मैं- भाभी क्या छुपता हु आपसे सब खुली किताब की तरह ही तो है 

वो- खैर, मैंने और तुम्हारे भैया ने तुम्हारे लिए एक तोहफा लिया है आओ दिखाती हु 

मैं- आप मेरे साथ हो इससे अच्छा तोहफा क्या हो सकता है मेरे लिए 

वो- अब तुम तो हमारी देवरानी की बाते बताते नहीं हो पर हम तो तुम्हारे लिए कुछ कर सकते है न आओ 

मैं और भाभी निचे आये हमे देख कर भाई भी हमारे पास आ गया और हम घर से बाहर आये तो देखा की बाहर एक चमचमती हुई गाड़ी खड़ी थी 

भाभी- तुम्हारी नयी गाड़ी हमने सोचा तुम्हे जरुरत होने लगी है 

मैं- इसकी क्या जरुरत थी 

भाई- एक छोटी सी भेंट हमारी तरफ से 

अब भाई- भाभी को मैं मना भी तो नहीं कर सकता था तो बस हाथ जोड़कर चाबी ले ली कल तक इस घर में कोई पुराणी जीप नहीं चलाने देता था आज गाड़ी मिल रही थी तो हसी आ गयी 

मैं- आओ आपको घुमाऊ 

भाई- मुझे राणाजी के साथ कही जाना है जरुरी काम से तू अपनी भाभी को ले जा और थोडा ध्यान से अभी तबियत ठीक नहीं हुई तुम्हारी 

मैं- जी 

मैंने भाभी को बिठाया और नयी गाड़ी दौड़ा दी 

मैं- भाभी कहा चले 

वो- जहा तुम्हारा दिल करे 

मैं- दिल का क्या भाभी दिल तो कुछ भी कहेगा 

वो- तुम्हारा दिल क्या कहता है 

मैं- भाभी एक बात कहू 

वो- हाँ 

मैं- चाची से कुछ बात मत करना उस बारे में 

वो- ठीक है पर मेरी भी एक शर्त है 

मैं- जी 

वो- हम उस वजह से मिलना चाहते है और तुम इंकार नहीं करोगे 

मैं- ठीक है भाभी पर मुझे थोडा वक़्त चाहिए 

वो- हम्म गाड़ी पीर साहब की मजार की और ले लो पास ही है आये है तो दर्शन करके चलते है 
उसके बाद हम वहा गए मेरी नजरे छजे वाली ओ तलाश कर रही थी क्योंकि वो अक्सर वहा आते-जाते रहती थी पर ख़राब किस्मत हो तो कोई नहीं मिलता उसके बाद घर आये और आते ही चाची मिल गयी भाभी ने शरारती नजरो से देखते हुए मुझे छेड़ा और अन्दर चली गयी 

चाची- कहा गए थे 

मैं- भाई ने नयी गाड़ी दी है तो बस घूम रहे थे आप बताओ 

वो- तेरे मामा ने नयी फक्ट्री लगायी है तो उसका संदेसा आया है की कोई पूजा करवा रहा है आना है 

मैं- तो हो आओ उसमे क्या है 

वो- हाँ जाना तो है ही पर मैं सोच रही थी की तू साथ चलता तो ठीक रहता 

मैं- क्या करूँगा मैं 

वो- तू चलता तो मैं भी बहाना बनाके जल्दी वापिस आ जाती और फिर तेरा भी फायदा हो जाता 
चाची ने इशारो इशारो में अपनी बात कही 

मैं- बात तो थारी चोखी है पर प्यारी चाची माँ सा मुझे जाने न देगी तबियत का पंगा पड़ेगा 

वो- तू हां कर मैं संभालती हु बाकि 

मैं- तो फिर ठीक है पर वादे से ना फिरना 

वो- कभी मना किया क्या तुझे 

पर हमारी ऐसी किस्मत कहा थी जो बात इतनी आसानी से बन जाती माँ सा ने भाई को भेज दिया चाची के साथ और हमारा प्लान शुरू होने से पहले ही दम तोड़ गया तो बस रह गए कलेजे पर पत्थर धर कर अब घर पर कहा मन लगना था तो थोड़ी जोर जबर करके गाँव में घुमने निकल गए पता नहीं क्यों गाँव में रुतबा सा बढ़ गया था तो अपने उसी कैसेट वाले के पास पहुच गए वैसे भी बहुत दिनों से कुछ नए गाने सुने नहीं थे 
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04-27-2019, 12:36 PM,
#35
RE: Antarvasna kahani नजर का खोट
मैं- और भाई क्या हालचाल 

वो – बढ़िया आप बताओ ठाकुर साहब 

मैं- यार तू भी 

वो- तो क्या कहे 

मैं- कुंदन बोल भाई और एक नयी कैसेट भर 

वो- हां, अभी लो आज फ्री ही हु वैसे आपकी वो आयत आई थी आज 

मैं- कब 

वो- घंटे भर पहले ही गयी है 

मैं- तो यार बताना था ना 

वो- कितनी बार तो बताया पर आप है की टाइम पर आते ही नहीं 

मैं- भाई एक से एक पंगा तैयार रहता बस उलझ ही जाता हु कभी कुछ कुछ होता है साला खुद के लिए समय निकालना भारी हो रहा है अब तबियत कुछ ठीक नहीं तो वैसे 

वो- वैसे बवाल तगड़ा काट दिया आपने 

मैं- अरे कुछ नहीं बस ऐसे ही हो गया 

वो- हम सुने कोई लड़की वडकी का पंगा हुआ आपके और अंगार के बीच 

मैं- कौन बोला तेरे को 

वो- बस आजकल आपके ही चर्चे है चारो और तो आ गयी खबर 

मैं- झूटी खबरों पे ध्यान ना दिया कर 

वो- खैर, बताओ कौन कौन से गाने भरे 

मैं- जो आयत ले गयी वो ही भर दे 

उसने मुस्कुराते हुए गाने भरने चालु किये मैं बाहर आके बैठ गया हलवाई की दुकान पर एक चाय ली और चुसकिया लेते हुए बस आयत के बारे में ही सोचने लगा वैसे तो हमको यकीन था की छजे वाली का ही नाम आयत है पर बस कन्फर्म हो जाता तो बेहतर रहता क्योंकि इक तो उससे मुलाकात बहुत कम हो रही थी और हुई भी तो ज्यादा कुछ बात ना हुई 

पर जब भी आयत के बारे में सोचता तो पूजा मेरे दिल दिमाग पर हावी होने लगती मर ध्यान आयात से हट कर पूजा पर ही चला जाता और मैं फिर खोने लगता उसके अहसास में बड़ी विचित्र सी स्तिथि उत्पन्न हो रही थी और हम भी समझ रहे थे की कभी ना कभी ये दो नावो की सवारी महंगी पड़ेगी हमे 

पर हमारा नाजुक दिल कहा किसी की सुनता था वो तो बस वो ही करता था जो उसको करना होता था खैर एक बार जो घर स निकले तो फिर रात को ही गए वापिस जब मैं घर आया तो बिजली गुल थी और मोसम बरसात का हो रहा था ये सावन भी न इस धरती पर नहीं ये मुझ पर बरस रहा था इस बार 

अपने आप में इस कदर खोया हुआ था की भाभी कब कमरे में आई कुछ पता नहीं चला होश जब आया जब उन्होंने मेरा हाथ पकड़ा
भाभी- कहा खोये हुए हो देवर जी 

मैं- अरे भाभी आप 

वो-हां, मैं पर किसी और को होना चाहिए था क्या 

मैं- नहीं आप भी पता नहीं क्या क्या बोलती हो 

वो- सोचा यहाँ ही बिस्तर लगा लू 

मैं- सारा घर आपका है जहा जी करे लगा लो 

वो- इस बार बरसात बहुत ज्यादा पड़ रही है ना 

मैं- हां, 

वो- जानते हो ये बारिश की बुँदे भी अपनी कहानी सुनाती है 

मैं- और क्या कहती है ये 

वो- ये तो समझने वाले पे है 

मैं- तो आपको क्या कहती है ये 

वो- कुछ नहीं 

मैं- बढ़िया 

भाभी मुस्कुराई 

मैं- और बताओ 

वो- क्या बताये हम बाते तो तुम्हारे पास है 

मैं- अजी हम तो झोंके हवा के से हो रहे है अब कुछ होश ना कुछ खबर अपने से बेगाने होने लगे है 

भाभी- इश्क में जो पड़ गए हो 

मैं- नहीं भाभी मुझे ऐसा नहीं लगता है इश्क बुरी बीमारी और फिर मैं इस काबिल कहा 

वो- इश्क हो तो काबिल अपने आप कर देता है 

मैं- भाभी इश्क मुझे अपनाये इस काबिल नहीं मैं 

वो- जुबान झूठ बोलती है पर आँखे कुछ और बयां करती है 

मैं- अभी कैसे कहू मैं 

वो- देर ना करना ,वर्ना फिर सारी उम्र मलाल रहेगा 

मैं- किस बात का 

वो- तुम जानो 

मैं- क्या जानू क्या समझू 

वो- बस महसूस करो इश्क अपनी मोजुदगी खुद बता देगा 

मैं- इश्क हमारे जैसो के लिए कहा सबसे पहले राणाजी ही काट डालेंगे 

वो- ये तो इश्क करने से पहले सोचना था और इश्क सच्चा होगा तो पर पा जाओगे 

मैं- छोड़ो ना इन बातो को भाभी और कुछ बाते करो 

वो- क्या बात करू कुछ भी तो नहीं मेरे पास कहने को 

मैंने रेडियो चालू किया कुछ गाने बजने लगे लैंप की रौशनी में एक दुसरे के आमने-सामने बैठे हुए हम दोनों बस एक दुसरे को ही देख रहे थे जैसे कहना तो बहुत कुछ चाहते थे पर पता नहीं वो कौन सी बात थी जो होंठो तक आकार रुक जाती थी 


लैंप की लौ में भाभी का गोरा चेहरा किसी खरे सोने की तरह दमक रहा था चेहरे को उनके बाल हलके हलके जैसे चूम रहे थे उनके गाल पर जो काला तिल था बस एक नजर में ही किसी को भी बेक़रार कर जाये भाभी जब मुस्कुराती थी तो उनके मोतियों से दांत उनके सुतवा होंठ खूबसूरती की जीती जागती मिसाल थी वो पता नहीं कब मैं उन्हें निहारने में इतना खो गया 

भाभी- अब ऐसे भी मत देखो देवर जी की नजरो से ही ............................. उन्होंने अपनी बात अधूरी छोड़ दी 

मैं- कुछ नहीं भाभी वो .....

वो- वो क्या 

मैं- कुछ नहीं 

वो- सब समझती हु मैं 

मैं –समझती ही तो नहीं हो भाभी समझती तो ऐसी बात ना करती 

वो- तो कैसी बाते करू तुम ही बता दो 

मैं- जाने दो , सो जाओ रात बहुत हुई 

वो- हाँ रात बहुत हुई पर तुम्हारी आँखों में नींद नहीं 

मैं- अब नींद है भाभी आये आये ना आये 

वो- अक्सर इस हाल में नींदे उड़ जाया करती है 

मैं- किस हाल में भाभी 

वो- जो अभी तुम्हारा है 

मैं- बस यही तो कसमकश है भाभी की पता नहीं ये क्या हो रहा है पल पल ऐसा लगता है की जैसे सब कुछ बदल सा गया है 

वो- सब नहीं बस तुम बदल गए हो जैसा मैं पहले कहा इश्क हो गया है तुमको चाहे तुम मानो या ना मानो 

मैं- इश्क पर किससे बस यही उलझन है भाभी 

वो- दो चार है क्या 

मैं- पता नहीं पर इतना जरुर जानता हु की जैसे कई टुकड़े हो गए है मेरे जैसे बिखर कर रह गया हु मैं 

वो- ये भटकाव अच्छा नहीं इश्क बुरी बला होती है लग जाये तो आसानी से पीछा नहीं छूटता हम तुम्हे मना तो नहीं कर सकते पर इतना जरुर कहेंगे की प्रीत का स्वाद जो चखा जुबान ने फिर बेगाने हुए जग से समझो अब भाभी तुम्हे क्या समझाए आखिर हमारी हदे बस इस चारदीवारी तक ही तो है पर फिर भी हम थोड़े उत्सुक है अपने देवर की प्रेम कहानी को महसूस करने के लिए 

मैं- प्रेम बस किस्से कहानियो में होता है भाभी 

वो- तो क्या तुम्हरे लिए भी बस ये जिस्मो का खेल है 

मैं- भाभी मेरे लिए जिस्मो का कोई मोल नहीं न ही सूरत का बस दिल धड़क सा जाता है अपने आप 

वो- तो बताओ जरा कैसी है वो 

मैं- आप पूछ कर ही मानेंगी ना 

वो- इतना तो हक़ है हमारा 

मैं- उस से कही ज्यादा पर मैं फिर से दोहराऊंगा की मेरे पास कुछ भी नहीं बताने को फ़िलहाल तो पर जब भी कुछ होगा ये वादा है की सबसे पहले सिर्फ आपको ही बताऊंगा 

वो- हमे इंतजार रहेगा खैर, सो जाओ अब 

मैं- आप सो जाइये मुझे अभी नींद नहीं आ रही 

वो- तो मैं भी जागती हु फिर 

मैं- आपकी मर्ज़ी 

व्- एक बात कहे 

मैं- जी 

वो- चाची और तुम में ये सब कैसे शुरू हुआ 

मैं- पता नहीं 

वो- अब इतना भी शर्माना बता भी दो 

मैं- बस हो गया अपने आप 

वो- अपने आप कुछ नहीं होता कही ना कही से तो शुरू हुआ ही होगा कोई तो बात 

मैं- भाभी अब क्या नंगा ही करोगी झूठा सा पर्दा तो रहने दो ना 

वो- अच्छा ठीक है नहीं पूछती अब खुश 

मैं- आप बताओ कुछ 

वो- मैं क्या बताऊ 

मैं- कुछ भी 

वो- मेरी तो इतनी ही जिंदगी है कुछ पीहर में कट गयी कुछ यहाँ इन चार दीवारियो में कट रही है एक औरत की बस यही कहानी यही फ़साना है इसके सिवा कुछ नहीं 

मैं- समझता हु भाई फौज में है तो आपको अक्सर उनके बिना ही रहना पड़ता है पर तीन बरस और उनके पन्द्रह हो जायेंगे फिर वो हमेशा के लिए आपके साथ ही तो होंगे 

वो- वो तो है पर कुछ बाते और भी होती है जीवन में जो तुम अभी नहीं समझोगे 

मैं- बताओगी तो समझ लूँगा 

वो- मुझे नींद आ रही है चलो अब सोने दो 
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04-27-2019, 12:36 PM,
#36
RE: Antarvasna kahani नजर का खोट
भाभी ने बड़ी सफाई से बात को टाल दिया था पर हम कुछ कह भी तो नहीं सकते थे उनको तो हमने भी बिस्तर पकड लिया और छत की ओर देखते देखते पता नहीं कब सो गयी
सुबह जब आँख खुली तो कमरे में मैं अकेला ही था बाहर आके देखा तो मोसम खुशगवार था आज सोचा की पूजा से मिलूँगा ही वर्ना फिर चैन नहीं मिलेगा तो सबसे नजरे बचा की अपनी साइकिल उठाई और निकल गए घर से बाहर पर चूँकि लगी हुई थी तो पैडल मारने में तकलीफ सी हो रही थी पर इतनी दूर पैदल भी तो नहीं जा सकता था तो बस साइकिल को घसीटते हुए पूजा के घर पहुच गए पर वहा ताला लगा था कसम से अब तो इस ताले से दुश्मनी सी लगने लगी थी 



मैं वहा से घूमते घूमते जमीन की तरफ आया तो देखा की जुम्मन चारो तरफ तारो की बाड भी बना गया था मैंने झोपडी का दरवाजा खोला और अन्दर देखा पर देखने को क्या था वहा सिवाय कुछ सामान के सिवा तो मैं खाट पर लेट गया और बस पूजा के बारे में ही सोचने लगा नजरे ही तो तरस गयी थी जैसे उसका दीदार करने को हवा में एक ठंडक सी थी तो पता नहीं कब आँख सी लग गयी


पर जब मेरी झपकी टूटी तो मैंने देखा वो सामने दूसरी चारपाई पर बैठी है और मुझे ही देख रही है मैं उनींदी आँखों से उसके फूल से चेहरे को देखा हलके केसरिया सूट-सलवार में क्या गजब लग रही थी वो देख कर मेरी नींद झट से गायब हो गई 



मैं- कब आई पूजा और जगाया क्यों नहीं 



वो- बस कुछ देर पहले ही आई और सो रहे थे इसलिए जगाया नहीं 



मैं- बोली कडवी लग रही है नाराज हो क्या 



वो- नाराज हो सकती क्या तुमसे वो तुम इतने दिन से आये नहीं न ओई खबर तो बस उदास सी हु 



मैं- होस्पिटल में था कुछ दिन और फिर अभी घरवाले भी कही आने जाने नहीं देते तो पर अभी देख सबसे पहले तुझसे ही मिलने आया हु 



वो- मेरी याद आई 



मैं- याद तो उनकी आती है जो दूर रहते है और तू मुझसे दूर कहा पगली 



वो- अच्छा जी और जो मेरा हाल कलेजे में अटका उसका क्या 



मैं- जो हाल तेरा वो हाल मेरा पूजा सच कहू बस एक बार तू अब सीने से लगा ले तो करार आ जाये काश मैं तुझे बता सकता ट्रे बिन अक्य महसूस किया मैंने 



वो बस उठी और अपनी बाहे मेरे लिए फैला ली जैसे ही उसने मुझे छुआ कसम से जान गए की चैन- सुकून आखिर होता क्या है उसके बदन से जो खुसबू आ रही थी दिल पर जादू चलाने लगी मैंने भी उसे अपनी बाहों में कस लिया कुछ देर हम यु ही एक दुसरे के आगोश में रहे फिर वो मेरे पास ही बैठ गयी 



वो- पता है कितना परेशान हुई मैं 



मैं- समझता हु पर मुझे तेरी फिकर है क्योंकि तू अकेली रहती है और इस बात के बाद कही जयसिंह गढ़ वाले तुझे कोई नुकसान न पंहुचा दे 



वो- इतना बुरा टाइम भी नहीं है मेरा मैं तुझे विशबास दिलाती हु मैं सुरक्षित हु 



मैं- पर 



वो- पर वर कुछ नहीं अभी बस अपनी बाते कर 



मैं- जैसा तू कहे पर फिर भी थोडा ध्यान रखना 



वो- मैं क्यों ध्यान करू, तुम जो ही ध्यान रखने के लिए 



मैं- वो तो है वैसे आज बड़ी टंच लग रही है आज किसपे अपनी अदाओ के तीर चलाने का इरादा है 



वो- और कौन हो सकता है तुम्हारे सिवा पता नहीं क्यों पर सुबह से ही लग रहा था की आज तुम जरुर आओगे 



मैं- सच में 



वो- हाँ कुंदन वैसे आज मैं तुझसे कुछ मांग सकती हु क्या 



मैं- ये भी कोई कहने की बात है जो दिल करे मांग 



वो- आज का पूरा दिन मेरे साथ रहेगा ना 



मैं- बस इतनी सी बात तू कहे तो हमेशा तेरे साथ रहू एक दिन की क्या बात और कुछ मांग पगली 
वो- इतना ही बहुत है मेरे लिए जब तू साथ है तो और क्या चाहू मैं 
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04-27-2019, 12:36 PM,
#37
RE: Antarvasna kahani नजर का खोट
तभी उसका हाथ मेरे सीने पर लगा और मुझे दर्द हुआ 



मैं- आह 



वो- चोट लगी 



मैं- हां 



वो- देखू जरा 



मैं- हाँ 



उसने धीरे धीरे फूंक मारनी शुरू की तो मुझे मजा आने लगा और एक बार फिर से अपने सीने से लगा लिया धड़कने धडकनों से उलझने लगी 



वो- छोड़ ना क्या करता है 



मैं-कुछ भी तो नहीं कर रहा 



वो- मान जा 



मैं- तू जब जब सीने से लगती है अच्छा लगता है जी करता है हमेशा तुझे अपने सीने से लगाये रखु 
वो- उस दिन तू चला क्यों गया था मुझे पूरी रात नींद नहीं आई 



मैं- घर जाना जरुरी था मुझे पता है तू तो खुद को संभाल सकती है पर घर पे माँ और भाभी इंतजार कर रही थी अब घर का भी समझना पड़ता है ना 



वो- सो तो है 



मैं-पर वहा भी मन नहीं लगा एक पल को भी जब से तू जिंदगी में आई है एक ठहराव सा आ गया है हर बात बस तुझ पर आकर रुक जाती है पता नहीं तूने क्या जादू कर दिया है मुझपर 



वो- मैं क्या करुँगी, मैं कोई जादूगरनी थोड़ी न हु 



मैं- जादूगरनी ही तो है देख जब पहली बार तुझसे मिला था तो तू जादू ही तो कर रही थी 



वो- अरे वो तो बस खामखा 



मैं- पर मुझे तो तू मिल गयी ना 



वो मुस्कुराई और हमे फिर से बहाना मिल गया उसे गले लगाने का कहना तो बहुत कुछ था उससे पर बाते जुबान पर आकर रुक सी जा रही थी बहुत देर तक हम बस ऐसे ही गप्पे लड़ाते रहे फिर वो बोली- 



पूजा- चल घर चलते है बहुत देर हुई 



मैं- ये भी तो तेरा ही है 



वो- सो तो है पर मैंने सोचा की तुझे भूख लगी होगी 



मैं- भूख तो लगी है पर दिल कह रहा है तुझे ही खा जाऊ आज 



वो- तंदूरी मुर्गी हु के जो खा जायेगा 



मैं- अब दावत तो मांगूंगा ही 



वो- चल फिर नदी पर चलते है कुछ मच्छी पकड़ते है 



मैं- ये भी ठीक है चल फिर 



पहले हम उसके घर आये और फिर नदी पर चल दिए पूजा साथ थी तो बहुत अच्छा लग रहा था जैसे बहारे साथ हो मेरे जल्दी ही हम नदी पर पहुच गए और अपनी तैयारिया करने लगे 



वो- देख अभी पकडती हु 



मैं- हां 



पूजा मछलिया पकड़ने लगी मैंने अपने कपडे उतारे और पानी में घुस गया 



वो-पट्टिया गीली हो जाएँगी तुम्हारी


मैं- होने दो क्या फर्क पड़ता है तुम हो तो सही 



अब वो क्या कहती मैं खुद बहुत दिनों बात ऐसे खुल्ले पानी में आया था तो बहुत मजा आ रहा था जल्दी ही उसने काफी मछलिया पकड़ ली 



मैं- पूजा आजा मजा आ रहा है


वो- नहीं मैं ठीक हु 



मैं- बस क्या आजा न मेरे लिए 



वो- समझा कर मैं कैसे आ सकती हु मेरे पास दुसरे कपडे भी नहीं है और फिर दिन का समय है 

मैं- पूजा हम जंगल की तरफ है चारो तरफ सुनसान है कोई नहीं अपनी सिवा और फिर मैं हु ना 



वो- समझा कर और तू भी बाहर आजा ज्यादा पानी में रहना ठीक नहीं 



अब उसका कहा तो मानना ही था मैं बाहर आया और पेड़ो के पीछे चला गया कपडे पहनने को तब तक उसने भी सब समेट लिया और हम वापिस उसके घर की तरफ हो लिए
मैं- क्या तू आती तो मजे आते 



वो- तू मुझे पानी में देखना चाहता था बिना कपड़ो के 



मैं- वो बात नहीं है बस दिल किया और तू चाहती तो कपडे पहने हुए भी आ सकती थी 



वो- चल फिर कभी तेरी ये इच्छा भी पूरी करुँगी 



मैं- मेरी ऐसी कोई इच्छा नहीं और ना तेरे जिस्म की चाहत बस तुझसे लगाव है 



वो- जानती हु 



मैं- फिर आयी क्यों नहीं 



वो- दिन का समय है कोई भी आ निकले तो ............. पर मैंने कहा न तेरी इच्छा जल्दी ही पूरी करुँगी मैं


मैं- मेरी तो बस एक ही इच्छा है की अब जल्दी से मच्छी भुन डालू तेज तेज चल बादल छाने लगे है 



वो- चल तो रही हु 
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04-27-2019, 12:36 PM,
#38
RE: Antarvasna kahani नजर का खोट
ये सावन का मौसम भी अजीब था इस बार गजब बरसात पड़ रही थी जब भी दिल किया बस हो जाते शुरू खैर हम उसके घर आये और करने लगे खाने की तैयारी और उधर मोसम भी अपनी तयारी कर रहा था वैसे तो अभी शाम होने में थोडा समय था पर बारिश की वजह से अँधेरा सा होने लगा था 
पूजा- तगड़ी बरसात आएगी आज तो 



मैं- आने दे अपने को क्या 



वो- ये भी सही है 



मैं चाय की चुसकिया लेते हुए मच्छी साफ कर रहा था और वो रोटियों की तयारी कर रही थी बार बार मेरी नजर उसके चेहरे पर जाती 



वो- तू ऐसे मत देखा कर 



मैं- अब देखने पर भी पाबन्दी है क्या 



वो- ये ही समझ ले 



मैं- क्यों समझ ले 



वो- तू बहुत शैतान है कुंदन 



मैं- और तू भी 



हलकी फुलकी बाते करते हुए हम दोनों बस उन लम्हों को जी रहे थे दीन दुनिया से बेखबर जैसे दुनिया बस उस छोटे से घर में ही सिमट सी गयी थी बार बार वो अपनी नीली आँखों से मेरी तरफ देखती तो अनजाने में ही बहुत कुछ कह जाती थी जिसे बस मेरा दिल चुपचाप सुन लेता था उसके पास रहते ही मुझे पता नहीं क्या हो जाता था इतना खुश मैं पहले कभी नहीं था 



एक तो बारिश तेज पड़ रही थी ऊपर से बिजली चली गयी तो हो गया अँधेरा 



वो- इसको भी अभी दगा देना था 



मैं- कोई बात नहीं लालटेन जला ले 



वो उठते हुए- हां, रौशनी तो करनी ही पड़ेगी 



पूजा अन्दर लालटेन लेने चली गयी और मैंने थोड़ी शरारत करने की सोची जब वो लालटेन जला रही थी मैं उसके पीछे खड़ा हो गया और उसकी कमर पर अपने हाथ कस लिए 



वो- छोड़ ना लालटेन गिर जाएगी 



मैं- गिरने दे 



कहते हुए मैंने उसके पेट को दबाते हुए उसे और पीछे किया तो उसकी गांड मेरे अगले हिस्से से आ लगी जिसे उसने भी महसूस किया और वो कसमसाने लगी 



मैं उसकी गर्दन पे अपनी सांसे छोड़ते हुए- ऐसे ही खड़ी रह ना 



वो- कुंदन 



मैं- श्ह्ह्हह्ह्ह्हह्ह 



उसके बदन से एक भीनी भीनी सी खुसबू आ रही थी जो मेरे जिस्म में उतर रही थी मैंने लालटेन की रौशनी में उसकी आँखों को बंद होते देखा और उसने अपने बदन को ढीला छोड़ दिया मैं कुछ देर उससे ऐसे ही लिपटा रहा और फिर उस से दूर हो गया वो बस मुस्कुराई और फिर बरामदे में आ गयी 



मैं मच्छी बनाने लगा वो मेरे पास ही बैठ गयी 



मैं- रोटी बना ले 



वो- पहले तू अपना काम कर ले फिर बनाती हु 



मैं- ठीक है 



वो- तुझे बारिश में भीगना बहुत पसंद है ना 



मैं- बहुत, पर जाने दे तू तू भीगेगी नहीं मेरे साथ तो फिर क्यों जी जलाना 



वो- भीगेगा 



मैं- भीग लूँगा पर तू साथ आएगी तो 



वो- चल फिर, पर अपनी पट्टियों को बचाने का इंतजाम करके 



मैं- उसकी चिंता मत कर झोले में दवाइया और पट्टी है पर थोड़ी देर रुक वर्ना मच्छिया जल जाएँगी 



वो हस पड़ी और मैं भी मुस्कुरा दिया तो करीब आधे घंटे बाद मैंने अपना काम कर लिया था उसने मेरा हाथ पकड़ा और हम आँगन में आ गए जैसे ही बारिश ने हमे अपनी बाहों में लिया मजा हो आ गया उसके भीगे चेहरे पर बार बार उसकी लटे आ जाती थी जैसे कह रही हो की आ छुकर दिखा हमे 



वो- क्या देख रहा है 



मैं- तुझे, इतनी खुबसूरत जो है तू 



वो- तुझे लगता है तो होउंगी खुबसूरत 



मैं- एक बार तेरी जुल्फे संवार दू 



वो- हम्म 



मैंने धीरे से उसके चेहरे पर आई लटो को पीछे किया और चुपके से उसके कान के पीछे चूम लिया मैंने उसके बदन को हलके से कांपते हुए महसूस किया उसने अपना एक हाथ मेरे कंधे पर रखा और अगले ही पल मैंने अपना हाथ उसकी कमर में डाल दिया उस ठंडी में गर्माहट सी मिली हमारी आँखे एक दुसरे को तौल रही थी और फिर मैंने धीरे से उसकी चुन्नी हटा दी 
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04-27-2019, 12:45 PM,
#39
RE: Antarvasna kahani नजर का खोट
मैंने देखा कैसे बारिश की शबनमी बुँदे उसके गुलाब से होंठो को छू कर टपक रही थी उसकी नीली आँखे बस मुझे ही देख रही थी और फिर मैंने उसे अपनी बाँहों में भर लिया अपने सीने से लगा लिया दूर कही बादल गरजे और वो मुझसे अलग हो गयी और घुमने लगी उस आँगन में जैसे कोई मोरनी नाच रही हो ऐसी लगी मुझे वो पता नहीं क्यों मुझे ऐसे लगा जैसे बस ये ही तो चाहता था मैं हमेशा से 



वो हसते मुस्कुराते मेरे आगे पीछे फिर रही थी कभी मुझे छू जाती लिपट जाती और कभी दूर हो जाती ये लम्हे बहुत खास थे लगा की जैसे जीना तो मैंने अब सीखा है अबतक तो बस सांसे ही ले रहा था , न वो कुछ बोल रही थी ना मैं कुछ पर फिर भी जैसे दिल ने वो सुना जिसे बरसो से वो सुनना चाहता था और फिर मैंने उसका हाथ पकड़ लिया वो रुक गयी 



वो- क्या हुआ 



मैं- बैठ पास मेरे 



मैं वही धरती पर ही बैठ गया और वो मेरी गोद में सर रखकर लेट गयी सच ही तो था पनाह तो इसी धरती में मिलती है उसका हाथ मेरे हाथ में था 



मैं- शुक्रिया 



वो- किसलिए 



मैं- मुझे खुद से मिलाने के लिए 



वो- यही मैं कहू तो 



मैं- पूजा बहुत कुछ कहना चाहता हु पर जुबान साथ नहीं दे रही 



वो- कोई जरुरत नहीं 



मैं- जी करता है बस ऐसे ही बैठे रहे 




वो- तबियत ख़राब हो जाएगी तुम्हारी 



मैं- होने दो तुम साथ हो तो फिर चाहे मौत क्यों ना आ जाये 



वो- ऐसी बाते करोगे तो मैं नाराज हो जाउंगी फिर 



मैं- अच्छा बाबा 



बारिश में और तेजी आ गयी थी तो हम अन्दर आ गयी उसने मुझको तौलिया दिया और खुद अन्दर चली गयी

मैंने जल्दी से कपडे बदले और आंच के पास बैठ गया जल्दी ही वो भी आ गयी और रोटिया सेंकने लगी आंच की लपटों में पूजा बड़ी सुन्दर लग रही थी बिजली अभी तक नहीं आई थी और आसार भी नहीं थे मुझे लगा की घर बता देना चाहिए था चिंता कर रहे होंगे पर फिर सोचा की क्या बताता की पूजा के पास हु तो जाने दिया उसने जल्दी ही खाना बना लिया और हमने साथ ही खाया 



करीब घंटे भर बाद मैंने अपना बिस्तर लगाया और सोने की तैयारिया करने लगा थोड़ी देर बाद वो भी आ गयी मैंने देखा उसने खुद को एक चादर से ढका हुआ था 



मैं- तुझे क्या हुआ सोना नहीं है क्या 



वो- सोना है ना 



मैं- तो लगा ले बिस्तर 



वो- लगा तो है 



वो मेरे बिस्तर घुस गयी और बोली- लालटेन बुझा दे कुंदन 



मैंने दरवाजा बंद किया लालटेन बुझाई और बिस्तर में सरक गया और अन्दर जाते ही जो उसको छुआ मैंने मैं समझ गया उसके बदन पर बस दो ही वस्त्र थे , अंदरूनी वस्त्र जैसे ही मैंने उसे छुआ वो बस लिपट गयी मुझसे और मैं कुछ नहीं कह पाया कुछ देर वो ऐसे ही लिपटी रही और फिर बोली- मैंने कहा था ना तेरी मन चाही करुँगी 



मैं- पर पूजा 



वो मेरे होंठो पर ऊँगली रखते हुए- श्हह्ह्स्शह्ह्ह्ह ये मेरी मर्ज़ी है ..............


वो थोडा और करीब आ गयी मेरे उसने अपना पैर मेरे पैरो पर रखा मेरा हाथ उसकी अधनंगी पीठ पर रेंगने लगा हमारी सांसे चादर के अन्दर मचलने लगी और बिस्तर गरम होने लगा उसके बदन की तपिश से मैं पिघलने लगा था गर्मी बर्दाश्त से बाहर होने लगी जैसे कोई आग जल रही हो मेरे इर्द-गिर्द वो पल पल मेरे और पास आती जा रही थी इतनी पास की जैसे बेताब हो मुझमे समा जाने के लिए 



वो- तू मुझे नदी किनारे देखना चाहता था ना 



मैं- मैं बस तुझे महसूस करना चाहता था 



वो- मैं तेरे आगोश में हु महसूस कर बता मुझे 



मैंने उसके होंठो को अपनी गर्दन पर महसूस किया पुच हलके से चूमा उसने और मेरा बदन कांपने लगा ये बड़ा ही अलग सा अहसास था जिसे मैंने पहले कभी महसूस नहीं किया जबकि मैं चाची के साथ ये सब कर चूका था साँस जैसे फूलने सी लगी थी 



हुम्म्मम्म्म्म hummmmmmmmmmmmmmmm 



पूजा बस धीरे धीरे मेरी गर्दन को चूम रही थी और उसका हाथ मेरे सीने पर रेंग रहा था जबकि मेरा हाथ उसकी ब्रा की लेस पर था मैं सोच रहा था की ब्रा के हुको को खोलू या नहीं वो अपना अनमोल खजाना मेरे लिए खोले हुए थी पर मेरा मन पता नहीं क्यों मान नहीं रहा था मैंने सोचा कही ये मेरी परीक्षा तो नहीं ले रही पर साथ ही उसके इरादे खतरनाक लग रहे थे 



उसने मेरा हाथ अपने हाथ में लिया और उसे अपने उन्नत वक्षो पर रख दिया मैंने धीरे से उसके उभारो को दबाया और वो तड़प उठी उसके होंठो से एक आह निकली जो मुझे दीवाना बना गयी “आह आह ” उसका पैर लगातार मेरे पैर से रगड़ खा रहा था और मेरी टांगो के बीच सुरसुराहट बढ़ने लगी थी उसने एक कदम आगे बढ़ते हुए अपने होंठो को मेरे लरजते होंठो से सटा दिया और उसकी सांसे मेरे मुह में घुलने लगी 



मैंने उसे थोडा सा उठाते हुए अपनी बाहों में भर लिया जिससे उसका उपरी हिस्सा मेरे ऊपर आ गया और हमारे होंठ एक दुसरे से उलझने लगे एक मीठा सा स्वाद हम दोनों के दरमियान घुलने लगा जैसे ही उसकी जीभ मेरे मुह में आई मैंने उसकी ब्रा को खोल दिया और उसकी नंगी पीठ पर अपने हाथ फिराने लगा कमरे में ख़ामोशी छाने लगी थी पर चादर के अन्दर तूफान था 
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04-27-2019, 12:45 PM,
#40
RE: Antarvasna kahani नजर का खोट
हम दोनों एक दुसरे को बेतहाशा चूम रहे थे और पता नहीं कब वो पूरी तरह मेरे ऊपर आ गयी पता नहीं चला इसका गुमान तब हुआ जब उसकी पीठ पर रेंगते मेरे हाथ उसके सुडौल नितम्बो पर आ गए उसकी कच्छी के ऊपर से ही मैंने उसके नितम्बो को सहलाया तो वो और मदमस्त होने लगी उसका जिस्म और तपने लगा किसी शान से खड़े पर्वतो की नुकीली चोटियों से तने हुए उसके उभार मेरे सीने पर पूरा दवाब डाले हुए थे और हद तो तब हो गयी जब कच्छी की दोनों साइड से होते हुए मेरे हाथो ने उसके चूतडो के नरम मांस को छुआ 



“ओह! पूजा ” मैं बस इतना बोल पाया और उसको पलट दिया अब मैं ऊपर था वो निचे उसकी उंगलिया मेरी शर्ट के बटन से उलझने लगी और जल्दी ही मैं भी बस कच्छे कच्छे में ही था मैंने अपने हाथ उसके उभारो पर रखे और बस आहिस्ता से उनको सहलाने लगा वो मीठी मीठी आहे भरने लगी उसकी सांसो में जैसे एक खनक सी थी जो किसी को भी मदहोश कर सकती थी दीवाना बना सकती थी मैंने खुद को उसकी छातियो पर झुकाया और बड़ी ही नजाकत से पूजा के निप्पल को अपने मुह में ले लिया उसका हल्का सा नमकीन स्वाद मेरी जीभ पर जैसे ही लगा उसने चटखारे लेते हुए वहा पर रगड़ मारी 



“सीई सी आई ” जल्दी ही उसकी मस्ती भरी आहे पुरे कमरे में गूंज रही थी उसकी एक चूची मेरे मुह में थी और दूसरी मेरे हाथ में उत्तेजना से भरी हुई पूजा बस अपने हाथ पैर पटकते हुए उन अनमोल पलो का आनंद ले रही थी जो उसके और मेरे बीच घट रहे थे बहुत देर तक मैं बस उसके उभारो का लुत्फ़ लेता रहा इस बीच कब उसका हाथ मेरे कच्छे में पहुच गया मुझे पता नहीं चला 



पर जब चला तो बदन उत्तेजना में ऐसे ऐंठने लगा की जैसे मेरे तन में कोई भूचाल आ गया हो उसने मेरे सुपाडे की खाल को पीछे किया और बड़े प्यार से अपनी मुलायम उंगलिया सुपाडे की संवेदनशील त्वचा पर फिराने लगी तो मुझ पर ऐसी मस्ती चढ़ने लगी की जिसे मैं शब्दों में बयां नही कर सकता और जैसे कयामत ही हो गयी जब उसने दूसरी मुट्ठी में मेरी दोनों गोलियों को भर लिया 



मुझे लगा आज तो पिघल ही जाऊंगा पर पता नहीं क्यों पहली बार मेरा मन साथ नहीं दे रहा था ऐसे लग रहा था की जैसे कोई जबरदस्ती हो रही हो मेरे साथ दिल कुछ और कह रहा था और दिमाग कुछ और कह रहा था जैसे मैंने अपने आप को एक दोराहे पर देखा जिसके दोनों रास्ते अलग अलग तरफ जाते थे सबकुछ था वो थी मैं था उत्तेजना थी वो रात थी वो बात थी जिसके बाद हमारा रिश्ता और मजबूत हो जाना था 



इसी पशोपेश में पता नहीं कब मेरे होंठ उसकी छातियो से हट कर उसके पेट को चुमते हुए उस जन्नत के दरवाजे पर दस्तक देने लगे थे मैंने अपने कांपते होंठ कच्छी के ऊपर से ही उसकी योनी स्थल पर रखे तो जैसे हम दोनों एक साथ सुलग उठे उसके पैर अपने आप ऊपर उठते हुए फ़ैल गए और उसके हाथ पल भर में ही मेरे सर पर आ गए उसकी उंगलियों को मैंने अपने बालो पर महसूस किया 



मेरे होंठो ने उस विशेष जगह पर बहुत गीलापन सा महसूस किया और एक मदहोश कर देने वाली खुशबु जो उसकी योनी से आ रही थी “पुच ” कच्छी के ऊपर से हलके से मैंने जैसे ही वहा पर चूमा मेरे दांत उस नर्म फुले हुए मांस में धंसने लगे बेहद ही खास लम्हे थे वो और तभी वो तड़प उठी उसकी आहे मुझे दीवाना बनाने लगी मेरे हाथ उसकी कच्छी की इलास्टिक में उलझ चुके थे उसने अपने चूतडो को थोडा सा उठाया ताकि मैं कच्छी को उतार सकू पर तभी मेरे हाथ रुक गए....

और मैं उसके ऊपर से हट गया और पास बैठ गया 

वो भी उठ बैठी और बोली- क्या हुआ 

मैं- पूजा, मुझसे ना होगा 

वो उठी और उसने लालटेन जलाई और उसे धीमी कर दिया और वापिस मेरे पास आके बैठ गयी मैंने उसके जिस्म को उस मंद रौशनी में देखा जिसे ढकने की उसने जरा भी कोशिश नहीं की कुछ देर वो मेरे पास बैठी रही फिर बोली 

वो- क्या हुआ 

मैं- पूजा मुझे तेरे जिस्म की चाहत नहीं इसकी जरुरत नहीं मुझे मेरे लिए अगर कुछ है तो बस तू बस तू 

वो मुस्कुराई और मुझे अपने सीने से लगा लिया कुछ देर बाद बोली- ये मेरी ख्वाहिश है की मैं इस जिस्म को तेरे नाम कर दू 

मैं- जब तू मेरी तो ये जिस्म भी मेरा हुआ ना 

वो- तो फिर दुरी क्यों 

मैं- कहा है दुरी , कोई दुरी नहीं पर तू मिलन चाहती है तो मिलन जरुर होगा पर पूजा ऐसे नहीं मैं भी चाहता हु की तेरा मेरा मिलन हो पर जब हो तब मैं तेरे सारे सुख तेरे कदमो में डाल दू जल्दी ही मैं जगन सिंह से छीन लूँगा वो हवेली और वो जायदाद तब मैं इस काबिल होऊंगा 

वो- कुंदन, क्या मैं तुझसे कुछ मांग सकती हु देगा मुझे कुछ 

मैं- मांग के तो देख फिर कहना 

वो- तो वादा कर जबतक मैं ना कहू, तू ना जयसिंह गढ़ जायेगा और ना ही जगन सिंह या किसी और से हवेली या मेरे इस बाबत कोई बात करेगा वचन दे मुझे रख मेरे सर पर हाथ 

मैं- बेडिया ही डालनी थी तो वैसे ही डाल देती पर अगर वहा नहीं जाऊंगा तो तेरा हक़ कैसे दिलाऊंगा तुझे 

वो- रख मेरे सर पर हाथ कुंदन तूने हमेशा मान रखा मेरी बात का ये वचन दे मुझे 

मैं- पर पूजा 

वो- वचन दे मुझे 

मैं- दिया वचन जब तक तू ना कहेगी मैं उधर मुह नहीं करूँगा तेरे से अच्छा क्या मेरे लिए दिया वचन 

मैंने उसके सर पर हाथ रख दिया और वो मेरे सीने से लग गयी मैंने महसूस किया की उसकी आँखों से कुछ आंसू निकल कर मेरे कंधो पर गिरने लगे है मैंने उसे अपनी बाहों में भींच लिया 

मैं- अब क्या ऐसे ही रहेगी कपडे नहीं पहनने 

वो- तुझसे कैसा पर्दा 

मैं लेट गया वो भी मेरे पास लेट गयी मेरी बाहों में दिल को बहुत सुकून मिल रहा था 

मैं- मेरी रूह का हिस्सा है तू 

वो- एक बात कहू 

मैं- हां 

वो- मेरे साथ रहेगा ना 

मैं- जब तक है जान 
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