Antarvasna kahani नजर का खोट
04-27-2019, 12:48 PM,
#61
RE: Antarvasna kahani नजर का खोट
भाभी- क्या बात है कुछ परेशान से हो 

मैं- नहीं ऐसी कोई बात नहीं 

वो- बताओ क्या बात है 

मैं- पद्मिनी के बारे में सोच रहा हु 

वो- पर क्यों 

मैं- पता नहीं 

वो- तो बंद करो सोचना इस मुद्दे पर हम बात कर चुके है पर हमें समझ नहीं आता की आखिर क्यों तुम्हे इतनी दिलचस्पी है इसमें 

मैं- पता नहीं और आप है की कुछ बताती नहीं 

वो- क्या सुनना चाहते हो तुम आज बता ही दो ताकि मैं वो सुना सकू तुमको

मैंने भाभी के चेहरे पर गुस्सा देखा पर मैं करू भी तो क्या 

मैं- मैं वो सब जानना चाहता हु जो मुझसे छुपाया गया है 

भाभी- क्या सुनना चाहते हो तुम यही न की तुम्हारे बाप और भाई कितने बड़े रंडीबाज है अतीत में क्या क्या गुल खिलाये है उन्होंने ये जानना चाहते हो गांव में ऐसी कोई बहन बेटी औरत नहीं जो इनके नीचे न आयी हो ये जानना चाहते हो क्या जानना चाहते हो तुम की पद्मिनी के साथ क्या हुआ था क्या जानना चाहते हो तुम की उस रात अर्जुनगढ़ की हवेली में क्या हुआ था जिसने सबकी ज़िन्दगी तबाह कर दी और जान कर क्या तुम सब ठीक कर सकोगे बताओ कर सकोगे

भाभी जैसे चीखते हुए बोली पर अगले ही पल उन्हें अहसास हो गया की भावनाओ में बह कर उन्होंने बहुत बड़ी गलती कर दी है

मैं- मैं हर उस इंसान के बारे में जानना चाहूंगा जो मुझसे जुड़ा है क्योंकि परवाह है मुझे रिश्तो की और किसी के हक़ की 

भाभी- किस हक़ की बात करते हो तुम उस हक़ की जिस हक़ से एक ससुर अपनी नयी नवेली बहु को अपनी चार दिवारी के अंदर रौंद डालता है या फिर उस हक़ की जिससे उसका पति अपनी पत्नी को छोड़ कर बाहर मुह मारता फिरता है अपनी अय्याशीयो के लिए उसका इस्तेमाल करता है 

क्या सच सुनना चाहते हो तुम जिस परिवार जिस घर की तुम दुहाई देते हो इतनी बड़ी बड़ी बातें करते हो ये जो शराफत का नकाब तुम सब ओढ़े हुए हो इसके पीछे क्या है घृणित गंदे लोगो की हवस का दलदल और कुछ नहीं 

तुम हक़ की बात करते हो बताओ कहा है मेरा हक़ और कहा थे तुम और तुम्हारी ये बाते जब मेरे हर सपने को तार तार किया गया था ये कैसा हक़ है कुंदन जिसमे जिस्म की चाहत तो सबको है पर जिस्म के पीछे दर्द के सैलाब को कोई महसूस नहीं करना चाहता

किस हक़ की बात करते हो कुंदन ठाकुर दुनिया की जाने दो क्या तुम अपने घर में अपनी भाभी को उसका हक़ दे सकोगे बात करते है बड़ी बडी पर कभी ये नहीं समझ पाए की आखिर क्यों माँ सा मेरी इतनी निगरानी रखती है क्यों जब तुम मेरे पास होते हो तो वो मुझे किसी न किसी बहाने से अपने पास बुला लेती है क्योंकि उसे डर है कि कभी तुम भी अपने बाकि लोगो की तरह मेरे साथ ।।।

बात करते है हक़ की लो बता दिया मैंने सच तुम्हे हो जायेगी तसल्ली आईने से जब धूल उतरेगी तो लोगो के चेहरे दिखेंगे अपने घर की दिखती नहीं दुसरो को पानी उधार देंगे 

मेरे दिमाग की हर नस जैसे फट ही गयी थी मेरे पैर ब्रेक पर दबते गए और चर्रर्रर करते हुए गाड़ी रुक गयी मैंने दरवाजा खोला और गाड़ी से उतर गया पर ऐसे लग रहा था जैसे की पांवो की ताकत ख़तम हो गयी हो
कच्ची सड़क से थोड़ी दूर एक पेड़ था मैं उसके पास जाकर बैठ गया भाभी का कहा प्रत्येक शब्द मेरे कानो में गूँज रहा था बल्कि यु कहु की किसी चाबुक के वार सा लग रहा था उनको मैंने हमेशा हँसते मुस्कुराते देखा था पर क्या मालूम था इस घर में सब नकाब ओढ़े है कोई शराफत का तो कोई मुस्कराहट का 
तभी मेरी आँखों के सामने वो मंजर आया जब मैंने पद्मिनी की जलती हुई आँखों में वो झलक देखि थी वो मेरा डर था पर अब लगने लगा था की वो मेरे लिए एक इशारा था तभी गाड़ी का दरवाजा खुला और भाभी नीचे उतरी
भाभी- क्या हुआ मिट गयी सारी उमंगे दम तोड़ गयी बड़ी बड़ी बातें
मै खामोश रहा 
भाभी- वो दौर था जो बीत गया और अब आदत हो गयी है हमने बार बार कहा की गड़े मुर्दे ना उखाड़ो पर सुनी नहीं तुमने
मैं- मुझे तो मर जाना चाहिए भाभी
वो- बस यही बाकि था है ना
मैं- इस घर में ये सब होते रहा कैसे आप सब मुस्कुराते हुए ये सब 
वो- अब आदत हो गयी है 
मैं- अब नहीं होगा ये सब नहीं होगा अगर ये सब ऐसे ही होना था तो ये ही सही मैं हर उस हाथ को उखाड़ दूंगा जो मेरी भाभी की बेअदबी के लिए बढ़ा हो फिर चाहे मेरा बाप या भाई कोई भी ना हो 
भाभी-कुंदन मेरी बात सुनो 
मैं- कहना सुनना अब सब बाद में अब अगर कुछ बोलेगी तो मेरी बन्दुक 
भाभी- तो फिर जाओ और लाशो के ढेर लगा दो आग लगादो जला दो सब कुछ पर इतना याद रखना उन लाशो के ढेर में एक लाश मेरी भी होगी 
मैं- ये क्या कह रही है छोड़ दू आपके गुनहगारो को 
वो- और तुम क्या चाहते हो की दुनिया ये कहे की रांड ने बाप बेटो भाई के बीच तलवारे चलवा दी मैं नहीं चाहती की मेरी वजह से तुम लोग लड़ मरो मेरा जो है वो मेरी तक़दीर पर तुम ऐसा कुछ नहीं करोगे अपनी भाभी का इतना मान तो रखोगे ना
मैं- किस दुनिया की बात करती हो भाभी और क्यों मेरे हाथ बांधती हो
वो- जो हमने बनायीं है गाड़ी में बैठो आने जाने वाले देख रहे है 
भाभी के कहने से गाड़ी में तो बैठ गया पर मेरे अंदर गुस्सा फुफकार रहा था जिसे भाभी भी महसूस कर रही थी उसके चेहरे पर चिंता की लकीरें खिंच आयी थी घर आते ही मैं अपने कमरे में चला गया गुस्सा इतना था कि सामान पर उतरने लगा 
भाभी कमरे में आयी और बोली- क्या साबित करना चाहते हो 
मैं- आपने एक बार मुझे चुनने को कहा था आज मैं आपसे पूछता हूं की मुझमे और इस घर के तमाम लोगो में से आप किसे चुनेंगी 
भाभी- होश में रह कर बात करो कुंदन
मैं- जवाब दो भाभी 
भाभी खामोश रही मैंने कुछ देर इंतज़ार किया जवाब का और फिर कमरे से बाहर निकल गया मैंने अपना फैसला ले लिया था कुंदन को कुंदन ही रहना था ठाकुर कुंदन नहीं बनना था 
हमेशा से मुझे खुद पर अपने परिवार पर गर्व रहा था पर आज सब मिथ्या लगता था सब झूठ था पर अब जाये तो कहा जाये जहा भी जो था सब राणाजी का ही था पर शायद एक जगह थी जो मेरी थी मेरे दादा की जमीन का वो बंजर टुकड़ा और दादा की जमीन पर पोते का हक़ होता है 
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04-27-2019, 12:49 PM,
#62
RE: Antarvasna kahani नजर का खोट
पर अपने पास और भी ठिकाने थे मैं गाँव से पैदल ही निकल पड़ा सोचा था कहा जाये पर पहुँच गया कहि और ही रोने का जी कर रहा था मैं खारी बावड़ी की सीढ़ियों पर बैठ गया आज मुझे कोई डर नहीं लग रहा था क्योंकि शायद मेरे अंदर से जीने की चाह ही खत्म हो गयी थी
वो राणाजी जिनके इंसाफ की लोग मिसाले देते है वो बड़ा भाई जिसने जान से ज्यादा मुझे प्यार किया मेरी तरफ आने वाली हर मुश्किल को अपने सर लिया उनकी हकिकत मेरी नजरो के सामने थी जैसे दुनिया की हर चीज़ से नफरत सी हो गयी थी मुझे
ना जाने कब नींद ने मुझे अपनी पनाह में लिया पर जब मैं जागा तो मेरे ऊपर एक कम्बल पड़ा था और कुछ दूरी पर पूजा बैठी थी
मैं- तू कब आयी
वो- मेरी छोड़ तू बता यही जगह मिली तुझे सोने की 
मैं- पता नहीं कब नींद आ गयी 
वो- मैंने कहा था न कुंदन तू ऐसे अकेला मत घूमा कर खासकर ऐसी जगहों पर 
मैं- तो तू क्यों आयी 
वो- कल दोपहर को तेरा भाई यहाँ आया था एक औरत के साथ तो मैंने सोचा की रात को जाकर देखती हूं कुछ सुराग मिलेगा या नहीं 
मैं- छोड़ उसे और मेरी सुन 
मैंने उसे बताया की मैंने घर छोड़ दिया है और क्या वो मुझे अपने साथ रखेगी
पूजा- ये पूछ कर तूने छोटा कर दिया मुझे मेरा सबकुछ तेरा है तू जब तक चाहे रह मेरे पास 
मैं- तो चल फिर भूख भी लगी है
वो- चल फिर 
पर मैं जानता था कि घर से कोई ना कोई मुझे ढूंढते हुए यहाँ तक जरूर आएगा और मैं पूजा को उनके सामने नहीं लाना चाहता था इसलिए मैं खाना खाकर झोपडी में आ गया इस हिदायत के साथ की वो मुझसे मिलने यहाँ न आये मैं खुद आऊंगा
झोपडी में लेटे हुए मैं सोच रहा था की भाभी ने मुझे क्यों नहीं चुना क्या मैं उनके लिए कोई नहीं या फिर झूठी मान मार्यादा मुझसे ज्यादा महत्वपूर्ण हो गयी थी लगा की क्या घर छोड़के कोई गलती की पर अब जो कदम उठा लिया उठा लिया 
अब क्या सोचना तभी बाहर गाड़ी की आवाज सुनी तो मैं बाहर आया तो देखा भाई आया था 
भाई- कुंदन घर चल 
मैं- वो मेरा घर नहीं है
वो- सोचके बोल भाई 
मैं- मत बोल मुझे भाई आप ऐसे निकलोगे मैंने कभी सोचा नहीं था 
वो- बात क्या है बता तो सही 
मैं- सब पता चल गया है आपके और बापू सा के बारे में बाहर का तो क्या कहूँ पर अपने घर की बहू अपनी इज्जत के साथ भी घिन्न आती है मुझे

वो- ओह तो ये बात है तो साफ़ बोल न तेरा दिल आ गया है जस्सी पे और तू भी 
मैं- जुबान संभाल कर बोलना भाई 
वो- अब तू सिखाएगा मुझे, देख तुझे अगर जस्सी पसंद है तो तू रख ले उसको मुझे कोई दिक्कत नहीं है उसका भी टाइम पास हो जायेगा पर तू घर चल
मैं- आप अभी चले जाओ यहाँ से और वापिस कभी मत आना 
वो- तो एक दो कौड़ी की औरत के लिए तू मुझे जाने को कह रहा है 
मैं-हां और साथ ही राणाजी को ये सुचना दे देना की मुझे उस घर से कुछ नहीं चाहिए एक सुई भी नहीं और आपसे एक गुजारिश है उस घर में मेरी भाभी को सम्मान देना 
भाई- एक बार फिर सोच ले
मैं- सोच लिया परख लिया समझ लिया 
कुछ मिनट बाद मैं भाई की गाडी को जाते हुए देख रहा था सच कहूं तो हर कोई मतलबी लगने लगा था मुझे उन लोगो से ज्यादा गुस्सा अपने आप से था 
रात को पूजा अपने साथ बिस्तर और खाना लायी खाने के बाद हम बाते करने लगे
वो- कुंदन तूने जब फैसला ले लिया है तो अगर तू कहे तो मैं मकान का काम चलवा दू 
मैं- रहने दे बस कुछ समय की बात है फिर तुझे तेरी हवेली में ही रहना है 
वो- ये झोपडी महलो से ज्यादा भाये मुझे
वो-ये झोपडी महलो से ज्यादा भाये मुझे
मैं बस मुस्कुरा दिया वो मेरे और पास आ गयी थी मैं नहीं जानता था की उसका और मेरा रिश्ता क्या था कौन लगती थी वो मेरी पर इतना जरूर था की मेरे लिए अगर कही सुकून था तो बस उसके कदमो में
मैं- पूजा मुझे लगता है हमे पद्मिनी की आत्मा की शांति के लिए कुछ करना चाहिए
वो- तुम कैसे जानते हो उन्हें
मैं- जैसे तुम पर तुम तो कुछ बताओगी नहीं है ना
वो- मेरे पास कुछ भी बताने को नहीं सिवाय इसके की जो हु जैसी हु तुम्हारे सामने हु
मैं- बस इसी तरह मेरे सवाल पर रोक लग जाती है 
वो- तुम्हे किस जवाब की आस है 
मैं- मैं बस इतना जानना चाहता हु की आखिर वो क्या वजह थी जिससे दो भाई से भी बढ़कर दोस्त दुश्मन बन गए
वो- इसका जवाब तुम्हारे पिता के पास है कुंदन 
मैं- ऐसा लगता है क़ी मैं पागल हो रहा हु 
वो- तुम खुद पर इतना दवाब मत डालो सच कहूं तो तुम्हारी इस हालत की जिम्मेदार मैं हु अगर मैं तुम्हारी ज़िन्दगी में न आती तो तुम इन झमेलो में नहीं पड़ते
मैं- पर तुम्हे तो आना ही था तुम न आती तो मुझे कैसे पता लगता की ज़िंदगी होती कैसी है
वो- कुंदन तुम कुछ ज्यादा ही तारीफ करते हो मेरी 
मैं- सरिता देवी तुम्हारी माँ नहीं थी ना 
वो- नहीं 
मैं- तो फिर झूठ क्यों बोला 
वो- जन्म देने वाला बड़ा होता है या फिर पालने वाला 
मैं- समझ गया 
वो- नहीं समझे 
मैं- समझाओ फिर 
वो- गौर से देखो मेरी आँखों में क्या दीखता है 
मैंने कुछ पल उसकी आँखों में देखा 
मैं- सच में 
वो- हाँ 
मैं- तो तुम खारी बावड़ी के बारे में पहले से जानती थी ना
वो- नहीं 
मैं- तो कल रात तुम इस आस में खारी बावड़ी गयी थी की तुम उन्हें देख सको क्योंकि तुमने सोचा की अगर वो मुझे दिखी तो तुम्हे भी दिखेंगी
वो- नहीं, मेरे जाने का कारन मैंने बताया न तुम्हे
मैं- मैं तुम्हारे मामाँ के घर गया था शादी थी उनके यहाँ पर तुम क्यों नहीं गयी
वो- बरसो से आना जाना नहीं है इसलिए
मैं- जिधर भी जाओ हर रिश्ता उलझा पड़ा है हर डोर टूटी पड़ी है
वो- सो जाओ अब 
मैं- चल दूसरी बाते करते है 
वो- दूसरी कौन सी 
मैं- एक बात बता जब तुझे छूता हु तो तुझे कैसा लगता है 
वो- अच्छा लगता है
मैं- और यहाँ पे
मैंने सलवार के ऊपर से चूत को सहलाना शुरू किया 
वो- अभी नहीं कुंदन मुझे सच में बहुत नींद आ रही है 

मैं- चल फिर सो जा
तो दो चार दिन गुजर गए ऐसे ही पर घर से कोई नहीं आया पर उस दोपहर जब मैं जमीन से पत्थर चुन रहा था तो एक गाड़ी मेरी और आते हुए दिखी मैं अपना काम करता रहा गाडी रुकने पे देखा भाभी आयी थी 
मैं- ठकुराइन जसप्रीत को प्रणाम 
वो- एक थप्पड़ मारूंगी न तो होश में आ जाओगे
मैं- होश तो अब जाके आया है 
वो- कभी ये नहीं सोचा की तुम्हारे बिना मेरा क्या होगा उस घर में तुम ही तो मेरा हौंसला हो
मैं- आपसे कहा था न की चुन लो किसी एक को
वो-तुम मेरी मज़बूरी क्यों नहीं समझ्ते हो
मैं- आप भी कहा समझते हो
वो- तो क्या करूँ तुम्हारी तरह घर छोड़ आउ ताकि गांव बस्ती में तमाम बातें चले लोग क्या क्या कहेंगे कि देवर के साथ भाग गयी 
मैं- हर उस जुबान को काट दूंगा जो मेरी भाभी के बारे में ऐसा बोलेगी
वो- अगर इस काबिल होते तो घर में रहकर ही कुछ ऐसा करते की भाभी का मान बढ़ता
मैं- अब उस घर नहीं आऊंगा कभी
भाभी- तो अड़ गए हो जिद पर 
मैं- कैसी जिद भाभी
वो- तुम्हारी यही बात सबसे बुरी लगती है हमे तुम एक बार अड़ जाओ तो फिर सब बेकार है 
मैं- आप चाहे जान मांग लो पर उस घर चलने को अब ना कहना 
वो- अब तुमने सोच ही लिया है की हम यहाँ से खाली हाथ जाए तो ये ही सही पर ये हमेशा याद रखना उस घर में कोई अपना हमेशा तुम्हारा इंतज़ार करेगा तुम्हारे लिये कुछ पैसे लाये है उम्मीद है मना नहीं करोगे बैंक में संदेसा भिजवा देंगे जब भी जितने भी पैसो की जरुरत हो ले आना और ये मत समझना की बात उस घर की बहू कह रही है तुम्हारी भाभी कह रही है
भाभी के जाने के बाद मैं बस सोचता रहा की आगे क्या किया जाये पढाई लगभग छूट सी गयी थीं ज्यादातर समय उस जमीन पर ही गुजरता सावन जा चूका था मौसम बदल रहा था पर इतने दिन बाद भी राणाजी एक बार भी इधर नहीं आये थे और आते भी किस मुह से
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04-27-2019, 12:49 PM,
#63
RE: Antarvasna kahani नजर का खोट
हर रात मेरी पूजा के साथ गुजरती तो अक्सर शाम छज्जे वाली के साथ मैं सच कहूं तो तंग होने लगा था इस दोहरी ज़िन्दगी से कभी कभी चाची मिलने आ जाया करती थी तो गांव बस्ती की खबर मिल जाती थी मैं हद से ज्यादा मेहनत करता ताकी इस जमीन पर फसल ऊगा सकु
पर सिंचाई वाली समस्या ज्यो की त्यों थी पूजा ने कहा था की बिजली लगवा लू तो मोटर ले लेंगे पर राणाजी की वजह से बिजली दफ्तर से ना ही मिली सबसे बड़ी समस्या ये थी की इस तरफ खम्बा नहीं था वार्ना तार डाल लेते
बदन थक कर चूर हो जाता था पर ज़मीन की प्यास नहीं बुझती थी पर चाहे जान निकल जाये घबराना नही है एक रात मैं अकेले ही बैठे बैठे सोच रहा था की मुझे कामिनी का ख्याल आया तो मैंने सोचा की मिल लिया जाये एक बार 
क्या पता वो ही कुछ मदद कर दे तो अगले दिन मैंने पूजा को बताया की मैं कुछ समय के लिए बाहर जा रहा हु वो साथ आना चाहती थी पर मैंने मना किया और दोपहर से कुछ पहले मैं चल दिया 
अब गाड़ी तो थी नही बस पकड़ी और हिचकोले खाते हुए सफर शुरू हो गया वैसे तो लंबा सफर नहीं था पर बस कभी रूकती कभी चलती तो डेढ़ घंटे के आस पास लग गया और मैं पंहुचा अनपरा गाँव
वहां उतर कर कामिनी का पता पूछा तो पता चला की गाँव से करीब आठ दस कोस दूर पहाड़ो की तरफ हवेली है उसकी और पैदल ही जाना पड़ेगा इस समय तो , अब जाना तो था ही मैं चल दिया इसमें भी काफी समय लग गया बीच में एक दो और लोगो से पूछा और जैसे तैसे मैं हवेली के दरवाजे पर पहुच ही गया
हवेली की रंगत देखने से लग रहा था की जैसे सालो से कोई रहता नहीं होगा उस बड़े से दरवाजे को ढुलकाया तो खुल गया और मैं अंदर गया वाह क्या नजारा था दूर तक घास का मैदान था और फिर हवेली मैं आगे बढ़ने लगा तभी एक औरत मेरी तरफ दौड़ते हुए आयी
औरत- अरे कहा घुसे आ रहे हो 
मैं- कामिनी जी से मिलना है 
वो- वो किसी से नहीं मिलती जाओ तुम यहाँ से 
मैं- उनसे जाकर कहो की कुंदन आया है देवगढ़ से 
ये सुनते ही उस औरत ने कहा - आइये हुकुम और मुझे अपने साथ अंदर ले गयी
बाहर से हवेली चाहे जैसी लग रही हो पर अंदर से बहुत आलीशान थी मैं सोफे पर बैठ गया और कुछ देर बाद मैंने ऊपर से कामिनी को आते देखा उसने भी मुझे देखा और बोली- बड़ी देर कर दी मेहरबाँ आते आते

मैं-मुझे तो आना ही था
वो- वो ही तो मैंने कहा बड़ी देर लगा दी 
मैं- हां देर तो हुई पर आ ही गये
वो- बाते तो होती रहेंगे पहले तुम चाय नाश्ता करो 
उसने नौकरानी को बुलाया और कुछ ही देर में नाश्ता हाज़िर हो गया करीब एक घंटे बाद हम दोनों ऊपर आ गए 
मैं- हवेली शानदार है आपकी 
वो- हुआ करती थी किसी ज़माने में अब तो बस दिन गुजार रही है मेरी तरह 
मैं- ऐसा क्यों 
वो- इतनी बड़ी जायदाद है पर सँभालने वाला कोई नहीं दो दो बेटे है पर विदेश जाकर बैठे है जब भी कहा आने को बस एक ही जवाब अगले साल पता नहीं कब आएगा उनका ये अगला साल
मैं- मतलब आप अकेली रहती है 
वो- अब नहीं तुम जो आ गए हो
मैं- अकेला नहीं आया हु अपने साथ कुछ सवाल भी लाया हूँ 
वो- जवाब तो हर पल तुम्हारे आस पास ही है कुंदन
मैं- पर मुझे आपकी आस है 
वो- मेरे लबो से लेकर मेरे नीचे तक हर जगह जवाब ही है तलाश कर लो 
मैं- उस रात कैसा लगा आपको 
वो- तुम्हे कैसा लगा 
मैं- अच्छा लगा पर सब अचानक हुआ तो 
वो- तो क्या 
मैं- मेरा ऐसा सोचना है जब ये सब करो तो जल्दबाज़ी नहीं होनी चाहिए 
वो- उम्दा ख्याल है शायद तुम्हे अजीब लगा हो उस समय पर ये सब चलता रहता है एक अरसे पहले मैं विधवा हो गयी कुछ समय बच्चो की परवरिश में लग गया अब काफी समय से अकेली हु तो थोड़ा दिल बहला लेती हूं 
मैं- आपका जीवन जैसे चाहे जिए 
वो- सही है तो किन सवालो के जवाब चाहिए तुमको 
मैं- अर्जुनगढ़ की हवेली का हकदार कौन है 
वो- जवाब तुम भी जानते हो है ना
मैं- आप बताओ 
वो- देखा जाये तो कोई नहीं 
मैं- क्यों, 
वो- खँडहर में किसकी दिलचस्पी होगी अर्जुन के भाइयो ने अपना अपना बंटवारा कर लिया और अलग बस गए 
मैं- और कोई उस खंडहर को फिर से आबाद करना चाहे तो 
वो- इशारा समझ रही हु मैं तुम्हारा पर ये मुमकिन नहीं उसके लिए पर तुम्हारे लिए आसान है 
मैं- समझा नहीं कुछ
वो- अभी नहीं समझोगे पर जल्दी ही समझ जाओगे 
मैं- उलझाओ मत 
वो- बिना लहरो में उलझे सागर पार करना चाहते हो 
मैं- क्या पता 
वो-चलो एक सवाल हम पूछते है तुम जवाब देना वो क्या वजह थी जिसके लिए तुमने जान की बाजी लगा दी 
मैं- सम्मान, नारी का सम्मान 
वो- सच में, जिस कुल के दीपक तुम हो उसके मुंह से अच्छी नही लगती ये बात
मैं- और कोई वजह हो तो आप बता दे
वो- शुरू से ही हमे लगा था की तुम अलग हो निराले हो
मैं- क्या मैं आप पर भरोसा कर सकता हु
वो- भरोसा नहीं तो तुम यहाँ नहीं आते
मैं- आप किसी जोगन को जानते है 
वो- हाँ 
मैं- कौन है वो
वो- पद्मिनी खुद को जोगन कहती थी हमेशा से उसकी तीव्र लालसा थी जादू में, सुबह शाम बस कुछ न कुछ करती रहती और जल्दी ही वो इन सब में माहिर हो गयी थी की बड़े बड़े तांत्रिक हाथ जोड़ देते उसके आगे 
मैं- एक ठकुराइन का जादू टोने से क्या वास्ता 
वो- निराली थी वो तुम्हारी तरह जैसे तुम पीछा छुड़ाना चाहते हो ऐसे ही वो थी 
मैं- सब बताइये 
वो- बताती हु पर पहले खाना खा लो तैयार हो गया होगा फिर कुछ देर आराम कर लो 
उसने नौकरानी से खाना लगाने को कहा कुछ समय खाने में गया और करीब घंटे भर बाद हम उसके बैडरूम में थे उसने बस एक झीना सा गाउन पहना हुआ था जिसके अंदर से उसके अंदरूनी अंग साफ़ झलक रहे थे 
वो- क्या देख रहे हो ऐसे 
मैं- जो उस अँधेरे में नहीं देख पाया था 
वो हंसी और अपने गाउन की डोरी को खोल दिया और मेरे सामने नंगी खड़ी हो गयी 
वो- लो देखो अच्छे से
मैं अपने कपडे उतारते हुए- देखूंगा ही नही करूँगा भी 
मैंने उसे अपनी गोद में लिया और कुरसी पर बैठ गया मेरा लण्ड उसके नितंबो की दरार में सेट हो गया और मेरे हाथ उसकी चूचियो पर पहुच गए 
मैं- उस रात की तरह कोई जल्दबाज़ी तो नहीं 
वो- मेहमान हो जमके मेजबानी करुँगी
मैंने अपने दांत कामिनी के कंधे पर लगाये और उसके मुलायम मांस को चूमने लगा मेरी उंगलिया उसके भूरे रंग के निप्पल्स को मसलने में लगी थी 
मैं- गर्म हो 
वो- ठंडा कर दो 
उसके नितम्बो की थिरकन ने मेरे लण्ड का जीना हराम किया हुआ था पर मैं कामिनी नाम की इस शराब को धीरे धीरे पीना चाहता था कुछ देर उसके स्तनों से खेलने के बाद मैंने उसे घुमा दिया और उसका चेहरा अपनी तरफ कर दिया
मैंने धीरे धीरे उसके सेब से गालो को चूमना शुरू किया 
मैं- होंठ खोलो 
जैसे ही उसने अपने होंठ खोले मेरी जीभ उसके मुंह में सरक गयी और हमारा चुम्बन शुरू हो गया सांसे सांसो में उलझने लगी मैंने आहिस्ता से उसके चेहरे को थोड़ा सा ऊपर किया ताकि अच्छे से किस कर सकू
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04-27-2019, 12:49 PM,
#64
RE: Antarvasna kahani नजर का खोट
जब तक सांसो के साथ छोड़ने की नौबत नहीं आयी मैं उसके होंटो का जाम पीता रहा अपनी लड़खड़ाती सांसो को सँभालते हुए वो मेरी गोदी से उतर गयी और कालीन पर खड़ी हो गयी उसने धीरे से अपने पैर खोलकर इशारा किया 
मैं उसके पैरों के बीच बैठ गया और उसके चूतड़ पर हाथ रखते हुए अपना मुंह उसकी गोरी चीट्टी बिना बालो की चूत पर रख दिया जैसे ही मेरे दांतो में उसकी चूत के वो नर्म से होंठ फसे वो तड़प गयी 
"सीईईई"
मैंने उसके कूल्हों पर दवाब डाला जिससे उसका अगला हिस्सा आगे हो गया और मैं उसकी चूत को खाने लगा उसके पैरों में थिरकन होने लगी और कमरा सुलग गया उसकी सिसकारियों से
"आह आई आई" बार बार उसके होंठो से ऐसी आवाजे निकलती पूरी जीभ पर उसके नमकीन पानी का चस्का लग चुका था और वो गर्म होने लगी थी कामिनी में काम भड़काना ही तो मेरा उद्देश्य था क्योंकि उस रात बगीचे में उसकी चूत को हद से ज्यादा दाहकता महसूस किया था मैंने
जैसे जैसे मेरी जीभ उसकी चूत में घुसती जा रही थी उसके पैर खुलते जा रहे थे मैंने अब अपनी बीच वाली ऊँगली अंदर डाल दी और उसे घर्षण का अहसास करवाने लगा 
उसकी आहे बढ़ती जा रही थी पल पल वो पागल हो रही थी और जब मुझे लगा की बस अब ये झड़ने के पास है तो मैंने उसे बिस्तर पर खींच लिया और अपने लण्ड को चूत पर टिका दिया

मैंने अपने लण्ड को चूत पर टिकाया कामिनी बस झड़ने के करीब ही थी और मैंने पूरा जोर लगाते हुए लण्ड को एक झटके में ही उसके अंदर पंहुचा दिया
" आह आराम से आऐ" कामिनी जोर से चिल्लाई 
और मैंने लण्ड को उसी पल वापिस खींच कर फिर से धक्का लगाया उसकी बेहद गीली चिकनी चूत मेरे लण्ड से चौड़ी होने लगी मैंने तेजी से धक्के मारने शुरू किये और कामिनी जैसे चीखने ही लगी थी 
"आह आआह एआईईईई" कामिनी जोर जोर से आहे भर रहे थी लण्ड बड़ी तेजी से अंदर बाहर हो रहा था चूँकि उसका स्खलन पास था इसलिए मैं चाहता था की वो जोर से झड़े इसलिए मैं बहुत तेजी से उसे पेल रहा था उसकी आँखों में एक गुलाबिपन सा उतर आया था 
"ओफ ओहोहझज्जह " कामिनी आहे भरती हुई मुझसे लिपट गयी उसकी गांड ऊपर उठ गयी और वो झड़ने लगी जितना वो झड़ रही थी उतनी तेज मैं धक्के मार रहा था उसका बदन मस्ती से झटके खाते हुए धीरे धीरे शांत हो गया
मैंने अपने धक्के रोक लिए और पूरी तरह उसके ऊपर लेट गया मैंने कामिनी के गाल को मुह में भर लिया कुछ मिनट बाद मैने फिर से अपनी कमर हिलानी शुरू की और उसकी चूत भी लण्ड की चोट से गर्माने लगी
बड़े प्यार से उसके होंठो पर जीभ फेरते हुए मैं उसको चोदने लगा साथ ही कामिनी भी अपनी कमर हिलाने लगी चुदाई की आवाज पूरे कमरे में गूंज रही थी कुछ समय बाद वो मेरे ऊपर आ गयी और कूदने लगी 
उसने मेरे हाथों को अपने हाथों में दबा लिया और पूरी शक्ति लगाते हुए सम्भोग सुख का आनंद उठाने लगी जब वो कुछ पल रूकती तो मैं नीचे से धक्के मारता मैंने भी कई दिन से चुदाई नहीं की थी और कामिनी भी प्यासी थी तो आज की रात मस्त कटने वाली थी
आधे घंटे की धुआंदार चुदाई के बाद मैंने उसकी चूत को सींच दिया और उसके पास ही लेट गया वो उठ कर बाथरूम में चली गयी मैं उखड़ती सांसो को थामने लगा जैसे ही वो आयी मैंने उसे फिर से पकड़ लिया 
वो- आज क्या इरादा है 
मैं- पूरी रात लेनी है 
वो- ले लो 
कामिनी ने मेरे लण्ड को अपने हाथ में ले लिया और मैं उसकी चुची पीते हुए उसे फिर से गर्म करने लगा और एक बार फिर हम चुदाई के मैदान में आ डटे थे पूरी रात रुक रुक कर मैं और कामिनी एक दूसरे को भोगते रहे 
जब मेरी आँख खुली तो मैंने देखा दोपहर का एक बजे है और कामिनी पास ही सोयी पड़ी थी मैने उसे नहीं जगाया और नहाने चला गया वो थोड़ा और देर से जागी शाम को वो मुझे अपनी प्रॉपर्टी में घुमाने ले गयी और एक रात हमारी एक दूसरे की बाहों में गुजरी


तो तीसरे दिन मैंने सोचा की कामिनी से पूछा जाए
मैं- कामिनी मैं अब सब कुछ जानना चाहता हु 
वो- तो गड़े मुर्दे उखाड़ कर ही मानोगे पर जब उन मुर्दो की दुर्गन्ध दूर तक फैलेगी तो 
मैं- परवाह नहीं 
वो-तो सुनो ये सब शुरू होता है जब राणाजी और अर्जुन की दोस्ती हुई थी जल्दी ही दोनों इतने पक्के मित्र बन गए की दोनों की दोस्ती की मिसाले दी जाने लगी दोनों जवान थे नसों में ताज़ा खून उबाल मारता था अपनी मर्ज़ी का करते थे 
रौब था रुतबा था और अहंकार हद से ज्यादा जवानी का जोश ऐसा चढ़ा था की किसी मगरूर हाथी की तरह किसको मसल दिया किसको रौंद दिया कोई होश नहीं दोनों गाँवो में ऐसी कितनी ही लडकिया औरते थी जो इनके नीचे लेटी थी
कुछ साल ऐसे गुजर गए और फिर एक दिन इनको एक साधु मिला जिसने इनको एक ऐसे खजाने का पता बताया जो अगर मिल जाये तो पता नहीं कितनी पीढ़ियों का कल्याण हो जाये चढ़ती जवानी के साथ इनको चस्का लग गया और कब जूनून बन गया इतने प्रयत्न किये गए बड़े बड़े तांत्रिक बुलाये गए पर खजाना दीखता जरूर पर प्राप्त नहीं कर पाते थे ये लोग
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04-27-2019, 12:49 PM,
#65
RE: Antarvasna kahani नजर का खोट
इधर पद्मिनी सब कुछ भूल कर अपनी तंत्र साधना में लगी रहती पर जवानी की दस्तक को वो भी महसूस कर रही थी इधर दोनों ठाकुर पागल थे की कैसे उस खजाने को हासिल कर सके पर एक तांत्रिक ने बताया की घंटाकर्ण के नाहरवीरो को अगर बाँध लिया जाये तो बात बने
कुछ दिन और गुजरे और फिर लाल मंदिर में मेला लगा और पद्मिनी भी आई समय का फेर देखो पहली नजर में ही अर्जुन सिंह दिल हार बैठा नजरे चार हुई तो अरमान मचल गए इधर राणाजी का भी हाल बुरा था पद्मिनी को देखने के बाद पर चूँकि अर्जुन का दिल लगा था तो वो टाल गया
अर्जुनगढ़ से पद्मिनि के घर विवाह प्रस्ताव गया परन्तु उसके भाई को ऐतराज़ था क्योंकि उसे अर्जुन के बारे में पता था पर पद्मिनी के पिता चाहते थे की रिश्ता हो जाये क्योंकि अर्जुन के खानदान की तूती बोलती थी उन दिनो
पर उनके मन में भी एक संशय था की क्या अर्जुन सच में उनकी बेटी से प्रेम करता है या बस जी बहलाने की बात है परंतु पद्मिनी और अर्जुन एक दूसरे के प्रेम में डूबे हुए थे गहरायी तक और एक दिन ऐसा भी आया जब दोनो का विवाह हो गया 
सब ठीक चल रहा था पद्मिनी ने साल भर बाद ही एक कन्या को जन्म दिया परन्तु अर्जुन खुश नहीं था क्योंकि उसे बेटा चाहिए था गुजरते वक़्त के साथ उसका समय पद्मिनी से हट कर बाहर ही गुजरने लगा 
दोनों दोस्त अय्याशीयो के सागर में बहुत गहरे उतर चुके थे इधर न जाने कितने पल आते जब पद्मिनि को अपने साथी की जरुरत होती पर अपना मन मसोस कर रह जाती शायद वो रक्षा बंधन का दिन था ठाकुर हुकुम सिंह बहुत उदास थे क्योंकि आज ही के दिन उनकी बहन की मौत हो गयी थी
जब ये बात पद्मिनि को पता चली तो वो राणाजी को राखी बांधने गयी और शायद ये पहला अवसर था जब हुकुम सिंह को भान हुआ था कि शारीरिक संबंध के अलावा भी जीवन में कुछ रिश्ते होते है जबसे पद्मिनि ने राणाजी की कलाई पर राखी बांधी थी वो बदलने से लगे थे
अर्जुन को भी बहुत समझाते पर ठाकुर का दम्भ इधर वक़्त उड़ता जा रहा था पद्मिनि ने अपने जादू वाले शौक को फिर से जिन्दा कर लिया और फिर जिसने 9 नाहरवीरो को बाँध लिया हो उसकी तो बात ही निराली होगी ना
इधर अर्जुन कई कई दिनों तक घर नहीं आता पद्मिनि अकेली पड़ने लगी थी तो उसके अकेलेपन का फायदा अर्जुन के बड़े भाई ने उठाने का सोचा अब पद्मिनी बेइंतेहा खूबसूरत जो थी पर पद्मिनि उसके इरादों को भांप गयी परंतु खानदान की इज्जत के कारण चुप रही
इस बीच खजाने की बात जो कुछ समय के लिए दब गयी राणाजी के कहने पर पद्मिनि मान गयी और उसने ये सोचकर की अगर इससे उसके पति फिर से उसकी परवाह करने लगेंगे उसने हाँ की पर ये काम इतना आसान नहीं था 
परंतु पुरे 21 दिन के बाद आखिर पद्मिनि ने अपना लोहा मनवा लिया 
मैं- फिर क्या हुआ 
वो- वही जो शायद कभी नहीं होना चाहिए था वो हुआ जिसने सबकी ज़िन्दगी को बदल दिया
मैं- क्या हुआ था आखिर ऐसा
वो-पद्मिनि की मौत हो गयी 
मैं- पर ऐसा क्या हुआ था की उनको आत्महत्या करनी पड़ी
कामिनी ने मुझे घूर कर देखा और बोली- तुम कैसे जानते हो इस बात को
मैं- क्योंकि मैंने उसे जलते हुए देखा है अपनी आँखों से ,उसकी जलन को महसूस किया है अपने आगोश में 
वो- कैसे हो सकता है ये सब जबकि पद्मिनि की मौत 25 साल पहले हुई थी उस समय तो तुम पैदा भी नही हुए थे 
मैं- आपका कहना सही है परंतु मेरी बात भी सही है
मैंने कामिनी को वो सब बता दिया जो उस दिन मेरे साथ खारी बावड़ी पे हुआ था
कामिनी के आँखे हैरत से फ़टी रह गयी मेरी बात सुन कर और वो बस खामोश हो गयी
मैं- पद्मिनी की मौत की क्या वजह थी 
वो- मैं नहीं जानती 
मैं- तो आखिर ऐसा क्या हुआ की दो बेहद खास मित्र लाल मंदिर में एक दूसरे के आगे आ खड़े हुए वो भी एक दूसरे के खून से अपनी तलवारो की प्यास बुझाने के लिए
वो- इसी सवाल का जवाब तो मैं पिछले 12 साल से तलाश रही हु
मैं- तो असली बात का आपको भी नहीं पता खैर उस खजाने का हुआ
वो- वो उसी खारी बावड़ी में कही दफ़न हो गया और जिसने भी उसे पाने की कोशिश की उसकी लाश मिली 
मैं- बस मेरे दो सवाल और है पहला ये की पद्मिनि की बेटी का क्या हुआ 
वो- अर्से से कोई खबर नहीं मुझे पहले सुना की अर्जुन ने उसे विदेश भिजवा दिया फिर सुनने में आया की अर्जुन के बाद उसके भाइयो ने उसे मरवा दिया क्या पता 
मैं- आपका पद्मिनि से क्या रिश्ता है
वो- मेरी बहन थी वो 
कामिनी ने जैसे हथौड़ा मार दिया था मेरे सर पर रिश्तो की ये कैसी भूल भुलैया में उलझा था मैं लग रहां था कि हर रिश्ता झूठ पर टिका है 
मैं- मै एक बार फिर से पूछना चाहूंगा की अर्जुनगढ़ की हवेली का वारिस कौन है
वो- तुम्हे क्या लगता है 
मैं- कायदे से तो अर्जुन और पद्मिनि की बेटी हुई न 
वो- हां हुई पर यहाँ पर एक क़ानूनी पेंच है 
मैं- क्या 
वो- अर्जुन सिंह की वसीयत , तुम्हे पता होगा ना की उसने अपने पीछे कितनी जायदाद छोड़ी है यहाँ तक की उसके भाई जगन की आधे से ज्यादा प्रॉपर्टी भी अर्जुन की है जो उसने दबा ली है 
मैं- क्या लिखा है उस वसीयत में 
वो- यही की उस प्रॉपर्टी का मालिकाना हक अर्जुन की बेटी का सिर्फ एक दशा में होगा जब उसकी शादी राणा हुकम सिंह के बेटे से होगी पर चूँकि इन्दर की शादी हो चुकी है बचे तुम तो एक तरह से मालिक हुए न पर यहाँ पेंच है की हकदार नहीं है 
मैं- ये शर्त लगाने की क्या वजह रही होगी
वो- यही की दोस्ती रिश्तेदारी में बदल जाये तुम तो जानते हो अपने समाज में कब माँ बाप बच्चो का रिश्ता तय करदे कोई कह नहीं सकता
मैं- आपकी बात सही है पर मुझे लगता है ये शर्त दवाब में लिखी या वसीयत में डाली गयी है
मैं- क्योंकि अगर हवेली की हकदार की मुझसे शादी हो तो टेक्निकली मैं मालिक अपने आप बन जाता हूं है ना 
वो- यही पर तुम गलत साबित होते हो कुंदन
मैं-कैसे
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04-27-2019, 12:49 PM,
#66
RE: Antarvasna kahani नजर का खोट
वो- देखो शायद अर्जुन को बेटा था नहीं और उससे बेहतर वो कहा जानता था की उसकी बेटी की हिफाज़त हुकुम सिंह के घर से ज्यादा कहा होगी ऊपर से दोनों दोस्तों का वादा दोस्ती को रिश्तेदारी में बदल देने का पर गड़बड़ बस ये हो गयी की वक़्त का पहिया घूम गया और सब चीज़े गड़बड़ा गयी पर इसी शर्त के कारण आज भी हवेली महफूज़ है क्योंकि हक़दार है नहीं और कोई उसपे कब्ज़ा या बेच सकता नहीं
मैं- ह्म्म्म और असली हक़दार कहा मिलेगी
वो- इसका जवाब देने की मुझे कोई जरुरत नहीं कुंदन
मैं- क्यों 
वो- क्योंकि तुम जवाब जानते हो तुम्हारी इतनी दिलचसपी एकाएक क्यों बढ़ गयी क्यों तुम अतीत के पन्नो को पलटने में इतने उत्सुक हो इसका कोई ठोस कारण होगा तुम्हारे पास
मैं-मैं तो बस दोनों गाँवो की दुश्मनी खत्म करना चाहता हु 
वो- नही तुम्हे गाँवो की परवाह नहीं तुम्हे किसी और की परवाह है 
मैं- जो आप समझे समझ सकती है मैं चलता हूं 
वो- आज और रुको हमे अच्छा लगेगा
मैंने भी कामिनी की बात को नहीं टाला और एक रात हमारी एक दूसरे की बाहों में कटी अगले दिन मैं वापिस हुआ कुछ नयी बातें पता चली पर सब और उलझ गया था और जवाब कुछ नहीं था मुझे लग रहा था की वसीयत में जो शर्त थी वो इसलिए भी हो सकती थी की अर्जुन ठाकुर की प्रॉपर्टी हमारे पास जाये
अँधेरी गुफा में भटकने वाली हालत हो गयी तो मेरी हर कड़ी बहुत गहरे तक जुडी थी मुझसे कौन अपना कौन पराया सब बेमानी बातें थी और इतना सब मालूम पड़ने के बाद अब रिश्तो से विश्वास उठ ही गया था मेरा जबकि एक सवाल अभी भी था की जब दोनों दोस्ती को रिश्तेदारी में बदलना चाहते थे तो ऐसी क्या बात हुई की दुशमनी हो गयी
मामला हद से ज्यादा उलझ गया था हवस लालच रिस्तो की गिरावट और इन सब के बीच मेरी मोहब्बत और मोहब्बत भी कैसी दिल भी साला दगाबाज़ दो दो के लिए धड़क रहा था मैं उस पल के लिए सोचने लगा जब दोनों लडकिया एक दूसरे के सामने होंगी क्या होगा
पूजा मेरी ज़िंदगी में सुकून था तो आयत जलती धुप में छाया थी मेरे लिए इन दोनों के अलावा भाभी भी थी ये ज़िन्दगी जाने क्या करवाने वाली थी आगे कौन जानता था पर इतना जरूर था की ये तो बस शुरुआत थी तूफ़ान आने तो बाकी थे

अपने आप में खोया हुआ मैं कच्चे रस्ते से जा रहा था तभी घण्टी की आवाज सुनी पलट कर देखा वो आ रही थी तो मैं रुक गया 
वो- कहा से आ रहे है 
मैं- शहर तक गया था कुछ काम से
वो- आजकल ज्यादा काम नहीं हो रहे आपको इतना भी क्या मसरूर होना की अपनों के लिए समय ही न रहे 
मैं- आप ही बताओ फिर क्या करूँ
वो-मिलते जुलते रहा कीजिये सरकार हमे भी जीने का बहाना मिल जायेगा 
मैं- इस तरफ कैसे 
वो- किसी ने बतलाया की आप आजकल भटकते बहुत है तो सोचा की हम भी भटक ले सुना है की दो भटकते हुए मिल जाये तो ज़िन्दगी पार हो ही जाती है 
मैं- बात तो दुरुस्त है 
वो- हमने सुना आपने घर छोड़ दिया ये ठीक नहीं किया आपने 
मैं- देखो आपसे मैं कुछ छुपाना नहीं चाहता पर बात ही कुछ ऐसी हो गयी थी 
वो- आप हम पर विश्वास कर सकते है 
मैं- ज़िन्दगी के खेल अलग होते है अब जैसे वो नचाये नाचना पड़ता है 
जितना उसे बताना चाहिए था मैंने उसे बता दिया 
वो-देखो मैं जैसी भी हु हरदम आपके साथ हु पर अकेले रह कर आप क्या करेंगे 
मैं- मेरा एक मकसद है बस वो पूरा हो जाये उसके बाद बस आप और मैं
वो शर्मा गयी
मैं- मेरा साथ निभाओगी न
वो- क्या लगता आपको
मैं- आप ही बता दो ना
वो- प्रेम परीक्षा मांगेगा सरकार
मैं- आप साथ होंगी तो पास कर जायेंगे
वो- मैंने कहा ना मैं हरदम आपके साथ ही हु 
मैंने उसका हाथ पकड़ लिया 
मैं- निभा देना सरकार भटक ही रहे है पनाह देना
वो मुस्कुरा पड़ी बोली- चलो जाती हूं देर हो रही है
मैं- फिर कब मिलोगी
वो- मिल जायेंगे ऐसे ही भटकते हुए 
दो चार और बातो के बाद वो अपने कुवे पर चली गयी मैं अपने रास्ते पर मैं सोच रहा था अगली गर्मी तक तीन चार पक्के कमरे बनवा लूंगा ताकि सर पर छत आ जाये और जीने में आसानी हो थोड़ी घर के साथ ऐशो आराम भी गया
पूजा के घर ताला लगा था मैंने सोचा कहा घूमती रहती है ये पागल लड़की अभी शाम का टाइम हो रहा है पर घर नहीं थी तो मैं आगे बढ़ गया झोपडी में सामान रखा और फिर एक बाल्टी भर के हाथ मुह धोये और आराम करने लगा 
रात को वो आयी खाना लेके मैंने खाना खाया वो मेरे पास बैठ गयी

मैं- बैग में मिठाई है निकाल ले लाया हूँ तेरे लिए
वो- शुक्रिया 
उसने बर्फी निकाली और हम दोनों में थोड़ी थोड़ी खायी फिर वो बोली- कहा गया था तू 
मैं- कुछ काम से गया था पर तू एक बात बता तू हर टाइम मेरी हवेली मेरी हवेली करती है वो हवेली तो मेरी है 
वो- और तू किसका है पगले
मैं- तूने वसीयत पढ़ रखी है ना
वो- हां 
मैं- तो क्या इरादा है कही मुझे अपने जाल में फंसा के सबकुछ अपने नाम करना तो नहीं चाहती
वो- क्या मेरा क्या तेरा कुंदन ऐसी हज़ार वसीयतें तुझ पर वार के फेंक दू प्यारे तेरे मेरे बीच ये धन की दीवारे कभी नहीं होंगी
मैं- चिंता न कर किसी वकील से मिल कर कोई तोड़ निकालता हु फिर सब तेरा 
वो- मुझे नहीं चाहिए कुछ पर तू बता तुझे वसीयत के बारे में किसने बताया 
मैं- अजी आप नहीं बताएंगी तो क्या हुआ आपको हवेली दिलवाने का बीड़ा लिया है तो करेंगे कुछ न कुछ
वो- तुझे अगर दौलत और मेरे में से एक चुनना हो तो क्या फैसला करेगा 
मैं- मेरी दौलत तो तू ही है जब तेरे जैसा खरा खजाना मेरे पास है तो और क्या चाहिए
वो- तू नहीं पूछेगा की मैं दौलत और तुझमे किसे चुनूंगी
मैं- अजी सरकार, हम भी आपके दौलत भी आपकी जिसे चाहे ले लीजिए पर ऐसे इन होंठो पर जीभ न फेरिये दिल तड़प जाता है 
वो- लो चुम लो
मैं- जरूर सरकार पर एक बात जानने की बड़ी इच्छा है की आप विदेश में कौन देश गयी थी 
वो- लन्दन 
मैं- तभी इतनी गोरी चमड़ी हो 
वो- ये बात किस ने बताई तुझे 
मैं- बस आईडिया लगाया ऐसी मुलायम खाल किसी विलायत वाले की ही होगी
वो- मैं कभी नहीं गयी विदेश में कही और थी 
मैं- हां मालूम है भटक रही थी जादू टोना सीखते हुए , तू माहिर है न इसमें 
वो- हां 
मैं- तू यहाँ वापिस बस उस खजाने के लिए आई थी ना 
वो- नहीं रे मैं आयी थी कुछ और काम से और मिल गयी तुझसे और तेरी होकर रह गयी
मैं- मैं तुझसे तेरा काम नहीं पूछुंगा पर इतना जरूर कहूंगा तुझे सफलता मिले तेरी हर मुराद पूरी हो पर इतना ध्यान रखना अगर कभी ऐसा मोड़ आये जोकी पक्का आएगा तो तू हिचकना मत समझ रही है न मैं क्या कह रहा हु 
वो- तू मेरी बात सुन अगर तू है तो मैं हु ये बात कान खोलके सुन ले बाकी दुनिया मेरे लिए एक पल भी मायने नहीं रखती अगर कुछ है तो बस तू,बस तू 
मैंने उसका हाथ पकड़ कर अपने दिल पर रखा और बोला- क्या सुनाई देता है 
वो- कुछ नहीं 
मैं- फिर से सुन 
वो- कहा न कुछ नहीं 
मैंने उसको देख उसने मुझे देखा और मेरे पास लेट गयी 
वो- ऐसे न देखो सही तो कहा कुछ नहीं सुनाई दिया क्योंकि जो चीज़ वहाँ थी वो अब यहाँ धड़क रही है
उसने मेरा हाथ अपने सीने पर रख दिया एक छोटी सी बात में बहुत कुछ कह गयी थी वो 
वो- अगर ज़िन्दगी हो तेरे साथ हो 
मैं- चाहने लगी है मुझे
वो- तुझे क्या लगता है 
मैं- अपने आप से पूछ ले 
उसने धीरे से मेरी गर्दन पर चुम्बन लिया और मुझसे चिपक कर लेट गयी बोली- जमींन प्यासी है कुंदन 
मैं- ह्म्म्म 
वो- पानी का क्या होगा 
मैं- बिजली के लिए बात की थी पर राणाजी की वजह से बिजली नहीं मिल पायेगी और बिना बिजली के इतना पानी कैसे निकलेगा कुवे से 
वो- हम अपने खम्बे लगा लेते है सारी दुनिया ही चोरी की बिजली इस्तेमाल कर रही है थोड़ी चोरी हम भी कर लेते है 
मैं- पर खम्बे कहा से आएंगे 
वो- आएंगे कुंदन आएंगे खम्बे भी आएंगे पर पानी की बड़ी मोटर भी लेनी पड़ेगी और पाइप भी
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04-27-2019, 12:49 PM,
#67
RE: Antarvasna kahani नजर का खोट
मैं- तो उसमें क्या ले लेंगे 
वो- हां ले लेंगे
मैं- पर तू कमरे कब बनवायेगी
वो- पहले पानी का काम करेंगे फिर देखेंगे
मैं- फिर क्यों अभी एक दो दिन में काम शुरू करवा देता हूं 
वो- मैं सोच रही थी की.......
मैं- मैंने कहा न तू जब चाहेगी हवेली तेरी हो जायेगी
वो- मैंने कहा न मुझे अब हवेली नहीं चाहिए दरअसल धन दौलत का मोह नहीं है मुझे तुझसे क्या छुपा है धन दौलत का करुँगी तो क्या एक जिंदगी में भला कितना चाहिए मुझे मेरी बस एक इच्छा है की एक घर हो जिसमें अपनों के साथ सुकून से जी सकु
मैं- तेरी ये इच्छा जल्दी ही पूरी होगी पूजा
वो- काश

मैं-काश क्या
वो- कुछ नहीं सो जा सुबह कई काम करने है 
उसने करवट बदली और सो गयी मैं भी उससे चिपक गया और सोने की कोशिश करने लगा सुबह जब मैं उठा तो दोपहर हुई पड़ी थी आज तो लंबा सोया था मैं
कुछ समय नहाने धोने में चला गया उसके बाद मैं पुजा के घर की तरफ चल दिया पर रस्ते में ही एक गाड़ी मेरे पास आकर रुकी मैंने देखा उसमे ठाकुर जगन सिंह था 
मैं- इस तरफ कैसे 
वो- तुमसे मिलने ही आ रहे थे 
मैं- सच में 
वो- हां 
मैं- बताइये क्या खिदमत कर सकता हु आपकी 
वो-हमें मालूम हुआ की तुम कामिनी से मिले थे और तुमको वसीयत के बारे में सब मालूम हो गया है 
मैं- ओह अच्छा इसलिए आप यहाँ आये है
वो- मेरा आने का मकसद दूसरा है पर ये जगह ठीक नहीं इन बातों के लिए 
मैंने उन्हें अपनी झोपडी पे आने को कहा और कुछ देर बाद हम दोनों वह थे 
मैं- तो क्या मकसद है आपका 
वो- देखो कुंदन मैं बात घुमा फिरा कर नहीं कहूंगा अब जब तुम वसीयत के बारे में जान ही गए हो तो मैं ज्यादा कुछ नहीं कहूंगा पर एक बात बताओ बाप की प्रॉपर्टी पर किसका हिस्सा होता है उसके बेटो का ना 
मैं- हां पर बाप की मर्ज़ी भी होती है की वो चाहे तो बेटो को सबकुछ दे चाहे तो नहीं दे
वो- मानता हूं पर साथ ही उस सूरत में पोतो का हक़ नहीं होगा क्या 
मैं- बिलकुल होगा 
वो- तो देखो भाईसाहब की वसीयत के अनुसार उन्होंने सब कुछ अपने वारिस के नाम किया है 
मैं- तो गलत क्या है 
वो- और हम दो भाइयो का हिस्सा 
मैं- अब समझा आप यहाँ किस लिए आये है पर आपको एक बात बता दू आप इस मामले में निश्चिन्त रहे कुंदन का ज़मीर अभी ज़िंदा है जितना भी बंटवारा होगा उसके तीन हिस्से ही होंगे आप तीन भाइयो के परंतु अर्जुन सिंह के पुश्तैनी हिस्से और जो भी जायदाद उन्होने खुद अपने दम पर अर्जित की है उसमें से एक रुपया और एक इंच जमीन भी नहीं छोडूंगा
जगन- सही बात है तुम्हारी 
मैं- तो हो गया फैसला बताइये इसके सिवा और क्या खिदमत कर सकता हु आपकी 

वो-कुछ ज़मीने है भाई साहब की जिन पर हमारी फैक्टरियां लगी है अगर वो तुम वापिस ले लोगे तो हम सड़क पर आ जायेंगे
मैं- तो उसमें मैं क्या कर सकता हु ठाकुर साब जिसका हक़ है वो तो अपना हक लेगा ही पर आप फ़िक्र न करे हर समस्या का समाधान होता है इसका भी होगा मुझे कुछ समय दे 
वो- आशा है तुम सोच समझ कर निर्णय लोगे तुम बहुत सुलझे हुए हो कुंदन जिस शालीनता से जिस संम्मान से तुमने हमसे बात की हम बहुत प्रभवित हुए है हमे खुशि होगी जीवन में अगर कभी तुम्हारे काम आये तो 
मैं- काम आ सकते है मैं चाहता हु दोनों गाँवो की दुश्मनी खत्म हो जाये क्या ऐसा हो सकता है 
वो- इसका जवाब अपने पिता से पूछो हम खुद भी किसी तरह की दुश्मनी के पक्ष में नहीं है पर कुछ पुराने ज़ख्म गाहे बगाहे ताज़ा होते रहते है और अपने साथ दर्द लाते है और सहना सबको पड़ता है 
मैं- आपकी बात जायज है पर कर्म ,कर्मो की सजा अब देखिये मेरा और अंगार का क्या पंगा था पर बात जो उसने बोली थी और फिर क्या हुआ अब उसका भी परिवार होगा दुःख उनको भी है और मैं भी हत्या का पाप भोगूँगा तो ठाकुर साब सब कर्मो का खेल है जमाना जिस तेजी से बदल रहा है भाईचारा खत्म हो गया और हम अपने झूठे अहंकार में जी रहे है उच्च निम्न बस ज़िन्दगी इसी में सिमट कर रह गयी है
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04-27-2019, 12:49 PM,
#68
RE: Antarvasna kahani नजर का खोट
हम क्यों इंसान को इंसान की नजर से नहीं देख पाते क्यों दुसरो की बहू-बेटियो की इज्जत नहीं कर पाते आखिर ये कैसा दम्भ है ये कैसी हवस हुई हमारी आपसी दुश्मनी में ये गांव वाले क्यों पिसे क्यों सजा मिले इनको 
जगन - बाते बहुत सही है कुंदन पर अब क्या किया जा सकता है जब भी कोई कोशिश हुई इस नफरत को भुलाने की एक नया जख्म मिल जाता है और फिर वही सब चालू हो जाता है 
मैं- खैर जाने दीजिए आपसे एक सवाल है की अर्जुनसिंह की बेटी का क्या हुआ क्या आप लोग इस काबिल नहीं हुए की अपने भाई की आखिरी निशानी को संभाल कर रख पाते
जगह- कुंदन, माना हम खुदगर्ज़ है पर वो एक दौर था जो बीत गया उस समय हालात इतने भयावह थे की खुद अपना साया भी साथ छोड़ जाये तो ताज़्ज़ुब न हो परिस्तिथियां इतनी भयंकर थी की आज भी रूह कांप जाती है तो हम भला उसको कैसे सँभालते 
मैं- पर वो आपकी जिम्मेदारी थी आपके खानदान की बेटी थी वो
जगन- हां सही कहा तुमने, तुम्हारा आरोप सही है पर हम ही जानते है जो हुआ 
मैं- क्या हुआ था 
वो- इसका तुमसे कोई लेना देना नहीं है 
मैं- अब कहा है वो 
वो- पता नहीं पर सुनने में आया था कि वो विदेश चली गयी थी बस इतना ही पता है 
मैं- कभी सोचा नहीं की विदेश में उसका कौन है , कभी याद नहीं आयी की वो कैसे जीती होगी कैसे पलेगी वो जब हर जगह जिस्म से खाल नोचने को भेड़िये खुल्ले घूम रहे है ठाकुर साब आपने हक़ की बात की थी तो एक बात और बता दू मैं आपके हिस्से के साथ कोई ना इंसाफी नहीं होने दूंगा पर हवेली की हक़दार ने जो जो दुःख सहे है उसकी आँख से गिरे एक एक आंसू का ब्याज तक वसुलूंगा 
जगन कुछ नहीं बोला और चुपचाप चले गया मैं रह गया अकेला साला दो कौड़ी का आदमी पूजा को सहारा दे नहीं सका पर जब लगा की अब सब पास से जायेगा तो चला आया पर मैं इस मामले में क्या कर सकता था पूजा जो फैसला लेगी हमे मंजूर होगा
मैं बस फिर पूजा के घर जाने की सोच ही रहा था की मैंने दूर से उसे आते हुए देखा तो मैं वही रुक गया वो कुछ देर में आ गयी 
वो- खाना लायी हु 
मैं- तुझसे कहा था न दिन में मत आया कर 
वो- टाइम देख क्या हुआ है मैंने सोचा भूखा पड़ा होगा और साहब के नखरे तो देखो 
मैं- तू समझती क्यों नहीं अभी तुझे सबके सामने ला नहीं सकता तेरी जान को खतरा हो जायेगा 
मैं- खतरा कब नहीं था सरकार तुम नहीं थे जब भी तो खतरा था जब घर से बाहर पहला कदम रखा था तब से आजतक खतरे की तलवार हमेशा ही लटक रही है तो क्या मैंने जीना छोड़ दिया 
मैं- परवाह है तुम्हारी
वो- डरते हो तुम, हिम्मत नहीं है दुनिया के सामने मेरे हाथ को थामने की तुममे 
मैं- ऐसा मत बोल पूजा 
वो- क्यों सच का स्वाद कड़वा लगा ले खाना खाले स्वाद बदल जायेगा 
मैं-नहीं अब तेरे हाथ का खाना तभी खाऊंगा जब मेरे पास तेरे इस सवाल का जवाब होगा 
वो- उफ्फ्फ ये अदाएं चल अब आजा मैं भी भूखी ही आयी हु 
मैं- कह दिया न दोहराने की आदत नहीं मुझे 
वो- बस कुंदन बुरा मान गया मेरी बात का
मैं-बुरा तो मानूँगा ही ना तू बात ही ऐसी बोलती है 
मेरी आँख से आंसू बह चले वो मेरे पास आई और धीरे से उन आंसुओ को चूम लिया
वो-मुझसे कभी नाराज़ न होना कुंदन सह नहीं पाऊँगी मेरी ज़िंदगी सिर्फ तुमसे शुरू होती है और तुम पर ही खत्म होती है न मुझे प्रारम्भ पता है न मुझे अंत पता है अगर कुछ जानती हूं तो बस इतना एक मैं खुद को और एक तुम्हे भूख लगी है खाना खा ओ
मैं- खाता हूं पर तू ऐसी बाते न किया कर 
वो- नहीं करुँगी 
खाने के बाद मैं कुवे पर आकर बैठ गया और ज़िंदगी के बारे में सोचने लगा साला अच्छी खासी ज़िन्दगी जी रहे थे पूजा क्या आयी जीवन डोर ही बदल गयी थी कहने को कुछ नहीं था न समझाने को भाभी की बहुत याद आती थी पर हम भी मजबूर थे 
पर इसी सोच विचार से जीवन थोड़ी न गुजरना था तो दिल पर पत्थर रख कर यादो को दबा दिया पूजा ने कुवे के पास ही चारपाई निकाल ली और उस पर बैठ गयी
मैं- तेरा चाचा आया था आज 
वो- किसलिए 
मैं- वसीयत का रोना लेके 
वो- तो रोने दे अपने को क्या 
मैं- तेरी जमीनों पर फैक्टरियां लगाई है उसने अब बोल क्या कहती है 
वो- तू जो चाहे कर
मैं- जमीन तेरी है 
वो- क्या तेरा क्या मेरा 
मैं- बात को समझ 
वो- कहा न जो तुझे करना है कर मुझे इन सब की चाहत नहीं प्यारे
मैं- ठीक है फिर अगली बार आएगा तो बोल दूंगा की तू ही रख ले 
वो- मैं बस एक बार हवेली में जाना चाहती हु 
मैं- तो चल न कौन रोकता है तुझे
वो- तू नहीं समझेगा अभी कुछ हसरतो का मोल
मैं- तू जादू इसलिए सीखती थी ना ताकि अपनी माँ को देख सके 
वो- नहीं मेरी दिलचस्पी उस खजाने में थी 
मैं- कसम से
वो- कसम से 
मैं- तूने देखा है उसे 
वो- देखा है 
मैं- हासिल कर ले फिर 
वो-चाहत नहीं 
मैं- अभी तो तू बोली
वो- दिलचस्पी और चाहत में अंतर होता है कुंदन बाबु वैसे तुम चाहो तो निकाल लू तुम्हारे लिए 
मैं- और वो डोरे वो व्यवस्था जो उसकी सुरक्षा के लिए है उनका क्या 
वो- तोड़ दूंगी 
मैं- रहने दे मेरा खजाना तो तू ही है और आदमी का काम मेहनत से चलता है तू क्या किसी मणि से कम है 
वो हंस पड़ी 
मैं'- तुम्हारी माँ बहुत खूबसूरत थी 
वो- क्या मैं उनकी छाया हु
मैं- नहीं 
वो- काश होती 
मैं- तू उनसे भी ज्यादा खुबसुरत है 
वो- झूठी तारीफे न कर
मैं- जिस दिन तू दुल्हन बनेगी देख लेना 
उसने एक गहरी सांस ली और बोली- काश नसीब में हो 
मैं- क्या बोली
वो- कुछ नहीं तू आराम कर रात को घर आ जाना कुछ काम है मुझे मैं चलती हु 
मैं- रुक न 
वो- समझा कर 

पूजा के जाने के बाद मैं लेट गया और ऐसे ही शाम हो गयी रात मेरी पूजा के साथ गुजरी अगली दोपहर में ऐसे ही कुछ काम से गाँव की तरफ जा रहा था की तभी मैंने देखा की एक लड़की पास के खेत पर एक पेड़ से लटकी तड़प रही है तो मैं तेजी से दौड़ा और उसको नीचे उतारा पर तब तक वो बेहोश हो चुकी थी
मैंने पास के धौरे से पानी लिया और उसके चेहरे पर मारा तो उसे होश आया और वो रोते हुए बोली- मर क्यों नहीं जाने दिया मुझे 
मैं- सुनो, मरने से क्या होगा तकलीफ कम हो जायेगी तुम्हारी नहीं क्या हुआ जो जान देने चली हो
वो और जोर से रोने लगी तो मैंने उसे खींच के थप्पड़ लगाया और पूछा- बता तो सही क्या हुआ 
उसने रोते हुए मुझे बताया की उसकी माँ हमारे खेतो पर आती है चरी काटने पर आज वो आयी थी और आज ही उसकी किस्मत फुट गयी कुछ देर पहले भाई यही था और उसने इस लड़की की इज्जत लूट ली थी
उस लड़की के आंसू मेरे कलेजे को चीर गए
मैं- चल मेरे साथ 
वो- कहाँ 
मैं- तेरे गुनहगार के पास आज पंचायत तेरा न्याय करेगी
वो- नहीं मैं नहीं जाउंगी मेरी इज्जत तो गयी अब माँ बाप की इज्जत भी पंचायत में तार तार करवा दू 
मैं- पर तेरा न्याय 
वो- न्याय तो कठपुतली है आप ठाकुर लोगो की हम गरीबो को कुछ मिलता है तो जुल्म षोशण आप बड़े लोगो का आज तो आपने बचा लिया पर ये ज़िन्दगी कितना बर्दास्त कर पायेगी और कब तक आप बचाओगे आप जाओ आखिर क्यों मेरी खातिर अपने भाई से बुरे होते हो मुझे तो मरना ही है
मैं- ख़बरदार जो फिर मरने की बात की वो दरिंदा मेरा भाई नहीं है पर तू मेरी बहन जरूर है और अगर तेरा न्याय न कर सका तो मैं इस जीवन में कुछ नहीं कर सकता 24 घंटे में तेरे गुनहगार को तेरे कदमो में ला गिराउंगा और जो सजा तू चाहे उसे देना 
बिना उसकी तरफ देखे मैं वहां से चल पड़ा गुस्से से धधकता हुआ आज मैंने सोच लिया था की इस कलंक का काम तमाम कर दिया जाये आज कुछ ऐसा होगा की आजके बाद इस गांव में कोई माई का लाल परायी औरत से जबर्दस्ती ना कर सके
मैं सोचते हुए जा रहा था कि आज आरपार का काम ही होगा मेरी आँखों में बार बार उस लड़की की तस्वीर आ रही थी जिसकी इज्जत नहीं बल्कि उसकी जिंदगी को ही रौंद डाला था उस हवस के पुजारी ने पर आज मैं इस किस्से को ही तबाह कर देने वाला था
जैसे जैसे घर पास आ रहा था मेरी आँखों में क्रोध बढ़ता जा रहा था और फिर मैंने इंद्र की गाड़ी देखि जो घर के बाहर ही खडी थी मैं घर से बस जरा सा दूर ही था कि मैंने भाई को घर से बाहर निकलते हुए देखा उसके हाथ में चाबी का छल्ला था अपनी मस्ती में आगे बढ़ते हुए वो जा रहा था एक पल वो अपनी गाड़ी के पास रुका और फिर मेरी गाड़ी का दरवाजा खोल दिया उसने
मैं चिल्लाया और दौड़ा उसकी तरफ की कही भाग न जाये ये पर मैं चूँकि थोड़ा सा दूर था वो सुन न पाया उसने गाडी चालू की और बस कुछ दूर ही गाड़ी आगे बढ़ी थी की।।।
Reply
04-27-2019, 12:49 PM,
#69
RE: Antarvasna kahani नजर का खोट
तभी जैसे सब कुछ जल उठा चारो तरफ तेज धुंआ फ़ैल गया ऐसा कानफोड़ू शोर हुआ जैसे कान के परदे ही फट गए हो धमाका इतना तेज था की मैं पास की दिवार से जा टकराया अपने होशो को सँभालने में कुछ ही सेकंड लगे थे 
पर जब धुंआ कुछ छंटा तो कलेजा हलक को आ गया जहाँ बस कुछ देर पहले गाड़ी थी वहां अब बस एक लोहे का जलता हुआ टप्पर थे और आस पास मेरे भाई के मांस के लोथड़े पड़े थे सब कुछ धु धु करके जल रहा था 
कुछ देर पहले एक जीता जागता इंसान अब लोथड़ो में बंटा था तभी घर से निकल कर लोग आते हुए दिखे मैंने राणाजी को देखा उनके पीछे माँ और भाभी को देखा और मैं उनकी तरफ दौड़ पकड़ा मैंने भाभी को अपनी बाहों में जकड़ लिया और मेरी रुलाई छूट पड़ी
मैं- मत देखो भाभी मत देखो 
भाभी- कुंदन इंद्र। ?????
मैं- नहीं भाभी भाई 
ये वो पल था जब लफ़्ज़ों ने जबान का साथ छोड़ दिया था और मैं बताता भी तो क्या उसको भाभी ने मुझे धक्का दिया और उस तरफ दौड़ पड़ी जहा मेरे माँ बाप अपने घुटने टिकाये बिलख रहे थे मैंने अपनी भाभी को देखा जो पगलाई सी हो गयी थी सर से चुनरिया कब की गिर चुकी थी पर किसे परवाह थी 
और इन सब के बीच मैं अकेला तन्हा जिसे समझ नहीं आ रहा था की आखिर ये क्या हो गया मेरी आँखों के सामने बस कुछ ही दूरी पर मेरे भाई के परखच्चे उड़ गए थे और मैं कुछ नहीं कर पाया था कुछ नहीं कुछ देर पहले मैं खुद उससे झगड़ा करने के लिए आया था और अब भावनाओ का ज्वार भाटा फुट पड़ा था 
सब तबाह हो गया था घर का बड़ा स्तम्भ ढह गया था मेरी आँखों से कब पानी झरने लगा पता नहीं मैं बस एक कोने में बैठ गया आस पास लोगो का मजमा लग गया था चारो तरफ चीख पुकार मच गयी थी कुछ औरते माँ और भाभी को अंदर ले गई
कुछ देर बाद टुकड़ो को जैसे तैसे समेटा गया और एक चादर से ढक दिया गया धमाका इतना भीषण था की मेरे कान अब तक सुन्न थे मैं थोड़ा सा सरका तो पाया कि लोहे का एक छोटा सा टुकड़ा पसली में घुस गया है उसे खींच के निकाला तो जान ही निकल गयी मिटटी लगा के जख्म को रोका 
कुछ लम्हो में दुनिया पूरी तरह से बदल गयी थी सब खत्म हो गया था वो काला दिन था हमारे परिवार के लिए मैं खुद अंतर्मन के द्वन्द से घिर गया था मेरे सामने भाई के दो चेहरे आ रहे थे एक जिसमे वो ठाकुर इंद्र था जिससे नफरत थी मुझे और दूसरा वो भाई था जिसकी छाया तले मैं बड़ा हुआ था 
मुझे भाभी की परवाह थी बस मेरा दिल उस वक़्त कांप गया जब मुझे भान हुआ वो विधवा हो गयी है जिस भाभी को हमेशा दूल्हन से रूप से देखा उसे विधवा के रूप में कैसे देखूंगा मैं मेरी आँखों से दर्द बह रहा था आंसुओ के रूप पे 
वो समय बहुत दुःख भरा था जब भाभी की चूड़ियों को टूटते हुए देखा मैंने जब भाभी की मांग का सिंदूर मिटाते हुए देखा मैंने तब मैं समझ पाया की आखिर उस दिन क्यों वो मुझे चुन नहीं पायी थी अंतिम संस्कार के लिए शारीर तो था नहीं पर रस्म थी करनी पड़ी 


दो दिन गुजर गए थे घर में जैसे मुर्दानगी सी पसर गयी थी लोग शोक व्यक्त करने आते चले जाते पर हम पर जो बीत रही थी बस हम ही जानते थे उस शाम मैं बैठा था कि मैंने पूजा को आते हुए देखा मैं उसे देख कर खड़ा हो गया पर उसने मुझे इशारे से समझाया और चुपचाप जाके महिलाओं में बैठ गई
करीब आधे घंटे बाद वो जाने लगी तो मैं उसके पीछे आया जी तो करता था कि उसके आगोश में फूट फ़ूट कर रोउ 
वो- मैं जानती हूं तुम पर क्या बीत रही है पर इस कठिन समय में परिवार का साथ मत छोड़ना मैं हर दम तुम्हारे साथ हु बाकि कामो की कोई फ़िक्र मत करना बस परिवार का साथ छोड़ना मत 
ये लड़की मुझे बहुत गहरायी से समझती थी इसको मेरी हर चाह का पता था मैंने सर हिलाकर हां कहा और वो वापिस मुड़ गयी हमारे अपने रिश्ते अलग जगह थे मैं इस बात से दुखी नहीं था कि भाई की मौत हो गयी थी उसके कर्मो का फल कभी तक मिलना ही था उसे 
पर मेरा कलेजा भाभी की वजह से फट रहा था मैंने देखा वो कैसे गुमसुम हो गयी थी किसी लाश की तरह मेरी इतनी हिम्मत नहीं होती थी की मैं उनके पास जा सकु कुछ दिन और गुजरे और मैंने राणाजी का वो रूप देखा जिसके बस मैंने किस्से सुने थे 
आसपास के सभी गाँवो में लाशो के ढेर लगा दिए उन्होंने जिसपे भी हल्का सा शक हुआ उसकी जान गयी मैं हैरान था इतना कत्ले आम किस लिए की उनका बेटा मारा गया और जो वो या उनके बेटे ने किया उसका क्या मैं जानता था की इसको अभी रोकना होगा हर हाल में रोकना होगा और ये हिम्मत मुझे करनी होगी
जैसे ही ये ख्याल मेरे दिल में आया मेरी आँखों के सामने वो मंजर आ गया जो मैंने पद्मिनी की जलती आँखों में देखा था मैंने सोचा ये ही होना है तो ये ही सही ये मैं भी चाहता था कि भाई को मारने वाला पकड़ा जाये पर मासूमो के खून की कीमत पर नहीं हरगिज़ नहीं
मैंने राणाजी से बात करने की सोची पूरी रात मैं इंतज़ार करता रहा पर वो नहीं आये कुछ पलो के लिए झपकी सी लग गयी सुबह चार बजे के करीब कुछ आवाज हुई तो मैंने देखा की वो आ गए है 
मैं- आपसे बात करनी है
वो- अभी नहीं 
मैं- आपने शायद सुना नहीं मैंने कहा अभी
राणाजी चलते चलते रुक गए और मेरी तरफ ऐसे देखने लगे जैसे की मैंने कोई आश्चर्यजनक बात बोल दी हो
वो- होश में हो या आज चढ़ा ली है 
मैं- ये मासूमो का खून कब तक बहेगा
वो- जब तक इंद्र का कातिल नहीं मिल जाता 
मैं- तो कातिल को पकड़िये मासूमो पर अत्याचार क्यों 
वो- इंद्र हमारा बेटा था खून था हमारा और किसकी मजाल जो हमारे बेटे की तरफ,,,,,
मैं- ये मत भुलिये की हर निर्दोष भी किसी का बेटा किसी का भाई है जिसे आप बस शक के आधार पर काट रहे है
वो- क्या हमें सच में इस बात की परवाह है
मैं- पर मुझे है जिस बेटे के लिए आप इतना तड़प रहे है ये क्यों भूल जाते है की उस बेटे ने भी न जाने कितनी जिंदगियां बर्बाद कर दी थी ये सब तो होना ही था कभी न कभी तो अफ़सोस क्यों
राणाजी- जुबान को लगाम दो कुंदन वार्ना जुबान खींच ली जायेगी
मैं- वो दिन गए राणाजी जब किसी भी मजलूम की आवाज दबा दी जाती थी आपको बंद करना होगा ये सब अभी के अभी 
राणाजी- एक शब्द अगर और तुम्हारे मुह से निकला तो तुम्हारे लिए ठीक नहीं होगा
मैं- बंद कीजिये ये अपनी झूठे रौब का प्रदर्शन ठाकुर हुकुम सिंह जी आपके बेटे का इतना दर्द होता है तो उन घरों के दर्द का सोचिये जिनके चिराग आप और आपके बेटे ने बुझा दिए 
वो- इससे पहले की हम अपना आपा खो दे निकल जाओ यहाँ से
मैं- यहाँ से तो निकल जाऊंगा पर अब से हर उस शक्श के आगे ढाल बनकर खड़ा रहूँगा जिसके खिलाफ आपकी तलवार उठेगी पर साथ ही ये भी कहता हूं कि भाई के कातिल को भी तलाश कर आपके सामने जरूर लाऊँगा
गुस्से से अपने पैर पटकते हुए मैं घर से बाहर निकल गया भोर होने में समय था तो मैं चाची के घर जाके सो गया थोड़े समय के लिए और फिर दोपहर को ही उठा दिन ऐसे ही गुजर रहे थे भाभी बस अपने कमरे में गुमसुम बैठी रहती थी न कुछ बोलती थी और उन्हें देख कर मेरा कलेजा जैसे फट ही जाता था 
पर ये समय ही ऐसा था मैं घंटो भाभी के कमरे में बैठे रहता पर वो कुछ ना बोलती जैसे दर्द के समुन्दर में डूब गयी थी वो उस दिन मैं घर के बाहर बैठा था की तभी एक पुलिस की जीप आकर रुकी और एक पुलिस वाला उतरा
पुलिस वाला- सुनो ठाकुर हुकुम सिंह से कहो की इंस्पेक्टर चन्दन आया है इंदरजीत की मौत के सिलसिले में कुछ बात करनी है 
मैं- क्या तुम्हे ये नहीं मालूम की आजतक इस गांव के कभी पुलिस नहीं आयी
चन्दन- हर काम की कभी न कभी तो शुरुआत होती है न बरखुरदार, जाओ हुकुम सिंह जी को कहो
मै- राणाजी इस वक़्त नहीं है मुझसे बात करो
वो- और तुम कौन हो
मैं- इलाके में नए आये हो क्या दारोगा 
वो- हाँ, और आते ही पता चला अब ऐसे हाई प्रोफाइल केस में रिस्क लेना तो बनता ही है 
मैं- रिस्क न तुम्हारे पिछवाड़े में डाल कर मुह से निकाल दूंगा 
वो- इतने मत उड़ो बरखुरदार, दारोगा है हम इस इलाके के एक बार उठवा लिया न तो न कोई रपट होगी न कोई कार्यवाही
मैं- जानता है किस से बात कर रहा है मेरा मूड वैसे भी ठीक नहीं है निकल लो
वो- हाँ निकल लेंगे पर हुकुम सिंह को कह देना की थाने आये बात करनी है 
मैं- शब्दो पे लगाम रख दारोगा अगर हम चाहे तो पूरा थाना यहाँ आकर सलामी ठोकेगा
वो-छोरे पुलिस को जागीर मत समझ जलवे हमारे भी कम नहीं है चल मत भेजना किसी को थाने एक काम कर इंद्र की घरवाली को बुलवा कुछ सवाल पूछने है 
मेरा दिमाग खराब हो गया मैंने उसकी गुद्दी पकड़ ली और धर दिए दो चार गरमा गर्मी हो गयी
मैं- साले दो कौड़ी के पुलिसिये तेरी इतनी औकात तू हमारी भाभी से सवाल जवाब करेगा तू 
चन्दन- देख लूंगा तुझे 
मैं- चल निकल ले अभी वरना अपने घर वालो को कभी देख नहीं पायेगा
तभी राणाजी आ गए तो बीच बचाव हुआ बाद में पता चला की चूँकि भाई फौज में था तो केंद्र सरकार की तरफ से एक जाँच करने का आदेश था जिसकी वजह से दारोगा यहाँ आया था 
राणाजी- दारोगा, जो भी फॉर्मेलिटी है हम थाने भिजवा देंगे बात खत्म
दारोगा- पर इसने मुझ पर हाथ उठाया उसका हिसाब मैं ले कर रहूँगा
राणाजी- जरूर अगर तुम ले सको तो
उस टाइम तो वो दारोगा चला गया पर मुझे लगा की ये कुछ न कुछ तो खुराफात जरूर करेगा पर अभी के लिए बात आई गयी हो गयी कुछ दिन ऐसे ही गुजर गए भाभी का मन कुछ हल्का हो जाये तो मैं उन्हें कुवे पर ले आया 
मैं- भाभी कब तक आप ऐसे गुमसुम रहेंगी आपको ऐसे देख कर मैं परेशान हो जाता हूं
वो- तुम नहीं समझोगे
मैं- सही कहा भाभी पर जो जिंदगी वो जी रहे थे आज नहीं तो कल ये होना ही था 
वो- कुंदन, मुझे अभी इस बारे में बात नहीं करनी है
मैं- मत कीजिये पर आप ऐसे उदास न रहिये
वो- कहाँ उदास हु देवर जी 
मैं- मुझसे झूठ नहीं बोल सकते आप 
वो-अजीब लगता है तुम्हारी भाभी विधवा जो हो गयी है 
Reply
04-27-2019, 12:50 PM,
#70
RE: Antarvasna kahani नजर का खोट
मैं- भाभी आपके दुःख का भान है पर ये तो होना ही था एक न एक दिन
वो- सही कहते हो 
मैं- भाभी मैं हर पल आपके साथ हु पर अब भैया की जगह आप हो आपको संभालना होगा सब कुछ 
वो- तुम किसलिए हो फिर
मैं- भाभी आपको सब पता है ना 
वो- मेरे लिए भी
मैं- आपके एक इशारे पर जान दे दू पर जबतक राणाजी ये वचन न दे की ये सब बंद होगा मैं अलग हु उनसे पर मैं इस काबिल भी हु की घर के बाहर से भी अपनी जिम्मेवारियां निभा सकू
वो- तो फिर हमारा सब कहना सुनना बेकार
मैं- समझो ना
कुछ और बाते हुई फिर मैंने भाभी को चाची के साथ रवाना कर दिया और खुद पूजा के घर आ गया 
पूजा- कैसे है घर पे सब 
मैं-ठीक है थका हु थोड़ी देर सोना चाहता हु 
वो- ठीक है पर मैं कुछ बात करना चाहती थी 
मैं- क्या 
वो- यही की उस दिन निशाना तुम्हारे भाई नहीं तुम थे 
मैं- क्या बोल रही है 
वो- देखो बम तुम्हारी गाड़ी में लगाया गया था मतलब साफ है न 
मैं- पुरे गांव को पता है मैं गाड़ी बहुत यूज़ करता हु मेरा काम तो साइकिल से हो जाता है पर उसे भी कोई ले गया
वो- सोचो जरा फिर कातिल को कैसे पता लगा मतलब वो इतना सटीक कैसे हो सकता था की उसे ये पता हो की इन्दर कब कौन सी गाड़ी ले जायेगा 
पूजा की बात में दम था मैंने खुद देखा था की कैसे वो पहले अपनी गाड़ी के पास रुके थे और बाद में मेरी गाड़ी का दरवाजा खोला था
वो- किस सोच में डूब गए 
मैं- दम तो है तेरी बात में
वो- अब तू सोच ऐसा कौन दुश्मन है तेरा जो जान से ही मारना चाहेगा और एक बात ये भी की उसकी पहुँच इतनी है की तेरे घर तक आ गया
मैं- मेरा कोई दुश्मन नहीं 
वो- पर निशाना तो तू ही था न 
मैं- नहीं मैं ज्यादातर अकेला रहता हूं भटकता रहता हूं मुझ पर कोई कभी भी हमला कर सकता है 
वो- पर मुझे लगता है कि ये एक बहुत गहरी साजिश है कुंदन 
मैं- अभी दिमाग काम नहीं कर रहा है आ कुछ देर सोते है फिर विचार करेंगे
वो- तू सो मुझे कपडे धोने है कुछ देर बाद आती हु
मैं आके लेट गया और कब नींद आयी कुछ पता नहीं चला शाम को उठा और अपनी झोपड़ी पर आया ही था कि मैंने देखा
मैंने देखा एक सूटकेस देखा जिसमे बहुत सारे पैसे भरे थे अब इसको कौन रख गया मैंने सोचा साला लोगो को चोरी करते तो सुना था पर ऐसे रकम रखते हुए आज पहली बार था आजकल पता नहीं क्या क्या हो रहा था की अब किसी बात पे अचरज नहीं होता था
की आखिर हो क्या रहा है दिल तो करता था की सर पटक लू पत्थर पर , मेरे दिमाग में पूजा की कही बात गूंज रही थी की उस हमले का निशाना मैं था पर मेरी किस से दुश्मनी थी किसी से भी नहीं तो किसने किया होगा ये काम 

जबकि भाई के हज़ार दुश्मन हो सकते थे उसने ना जाने कितने लोगो के जीवन को दुःख से भर दिया था पर एक बात जरूर थी की जिसने भी गाड़ी में बम लगाया ये पक्का था की वो था करीबी पर कौन क्या राणाजी ने तो नहीं 

जिस तरह से उनका चरित्र उभर कर आया था शक की सम्भावना बनती थी क्या पता इंद्र कोई ऐसा राज़ जान गया हो जिससे राणाजी को परेशानी हो सकती थी पर जैसा पूजा ने कहा की हमले का असली निशाना मैं था तो कातिल ने गाड़ी में बम क्यों लगाया जबकि उसके पास और भी बहाने थे

एक बात हो सकती थी की कातिल ऐसा बताना चाह रहा हो की इंद्र की जगह तुम भी हो सकते थे धमाका बिलकुल मेरी आँखों के सामने हुआ था पर कोई कैसे इतना सटीक पूर्वानुमान लगा सकता था ह्म्म्म शायद कोई साज़िश पर ये नया दुश्मन कौन पैदा हो गया था

पूरी रात मैं और पूजा सवालो के अँधेरे में जवाबो की रौशनी तलाश करते रहे पर उम्मीद का चिराग जल नहीं पाया उस दोपहर जब मैं खेत की तारबंदी कर रहा था तो एक गाड़ी आकर रुकी मैंने देखा की मुनीम जी के साथ एक आदमी और था

मुनीम- सरकार, ये वकील साहब है आपसे मिलने आये है 

मैं- भला मुझसे इनको क्या काम आन पड़ा

वकील- काम है तभी तो आये है

मैं- तो बताइए

वो- ठाकुर इंद्र की वसीयत के सिलसिले के में 

मैं- भैया को क्या जरुरत आन पड़ी वसीयत की

वकील- ये तो मुझे नहीं पता पर इस वसीयत में उनके जो भी खेत है बैंक अकाउंट में जमा रकम कुछ रिहाइशी प्रॉपर्टी करीब बीस किलो सोना और चांदी सब आपके नाम कर गए है 

मैं- पर मेरे नाम क्यों मेरा क्या लेना देना जब भाभी है और वैसे भी कायदे से पति के बाद सबकुछ पत्नी का हो जाता है 

वकील- हो जाता है पर यहाँ मामला अलग है ठाकुर इंद्र ने अपने होशो हवास में ये डीड बनायीं है

मैं- तो आप एक वसीयत और बनाये जिसमे ये सब कुछ भाभी के नाम हो जाये 

वो- ऐसा नही हो सकता 

मैं-क्यों 

वकील- ठाकुर इंद्र ने सख्त निर्देश दिए है कि अगर किसी कारण से कुंदन ठाकुर इस वसीयत की शर्तों को नहीं मानता तो ये सब प्रॉपर्टी और तमाम चीज़े गरीब बच्चो की शिक्षा हेतु चली जाएँगी 

मैं- क्या बकवास है जिसका हक़ है उसी को नहीं दिया जा रहा वकील साहब तो ऐसा हो सकता है की हर चीज़ के पेपर्स मेरे नाम होते ही मैं उनको भाभी के नाम कर सकू

वकील- नहीं जी, वसीयत में साफ़ लिखा है या तो आप या ट्रस्ट और अगर आप जान बूझ कर भी ऐसा कुछ करते है तो आप नहीं कर पायेंगे

मैं- चलो मान लिया पर अगर भाभी कोर्ट में गयी तो उस समय क्या होगा 

वो- नहीं जाएँगी क्योंकि इस वसीयत में जो डिक्लेरेशन है वो इंद्र के साथ जसप्रीत की भी है ये एक संयुक्त वसीयत है 
मेरे जीवन में एक के बाद एक धमाके होते जा रहे थे उन दोनों को आखिर ऐसी क्या जरूरत हो गयी थी की सब मेरे नाम करना पड़ा भाभी भी आजकल एक पहेली बन गयी थी खैर मैंने वकील से वसीयत की एक कॉपी ले ली 

जब पूजा आयी तो मैंने उसे दिखाई

पूजा- तुम्हारे घरवाले भी अजीब है 

मैं- तुझे अब पता चला 

वो- भाभी से पूछ लो ,वैसे आजकल पांचों उंगलिया घी में है जिधर निगाह करते हो सब तुम्हारा हो जाता है 

मैं- बात तो सही है पर इस चीज़ की चाहत है ही नहीं मुझे क्या करूँगा इन सब का जब मेरा सुख तेरे पास है तेरी एक मुस्कान पे ये सब कुर्बान है पूजा 

वो-ज्यादा रोमांटिक मत हो 

मैं- एक बात बता तुम्हारे बापू वाली वसीयत में भी एक झोल है 

वो-क्या 

मैं- ये की उसके अनुसार तेरी शादी राणाजी के बेटे से होनी थी पर किस बेटे से वो साफ नहीं है

वो- मुर्ख इंद्र की पहले ही शादी हो चुकी तो तुम बचे न 

मैं- मान ने अगर इंद्र कुंवारा होता तब 

वो- मैं नहीं मानती इन कागज़ के टुकड़ों को अब क्या ये कागज़ के टुकड़े मेरी ज़िंदगी का फैसला करेंगे 

मैं- तो अब भी क्यों मानती है 

वो- क्योंकि अगर तू राणाजी का छोरा न होता तब भी तेरा मेरा रिश्ता होता कुछ रिश्ते बस बन जाते है कुंदन 

मैं- कल जाके भाभी को उनकी अमानत लौटा दूंगा क्या कहती है 

वो- तो क्या तुम रखने का सोच रहे थे 

मैं- चल पगली वैसे मैं चलू क्या कल तुम्हारे साथ तुम्हारे घर तुम सबसे मेरा परिचय करवाना 

मैं- चल मजा आएगा और वैसे भी कभी न कभी तो तुझे वही रहना ही होगा 

वो- मैं क्यों रहूंगी वहां भला

मैं- क्या पता रहना पड़ गया तो

वो- तब की तब देखेंगे 

मैं- और बता 

वो- क्या बताऊँ सब तो पता है तुझे 

मैं- जो छुपाया है वो बता 

वो- अब क्या रहा कुछ छुपाने को कुंदन

मैं- तेरा अतीत

वो- जब वक़्त आएगा अतीत के पन्ने भी खोल दूंगी

मैं- इंतज़ार रहेगा 

वो- मुझे भी

मैं- फ़िलहाल मुझे भाई के कातिल की तलाश है 

वो- मिल जायेगा 

मैं- हम्म्म्म
बहुत देर तक हम दोनों अपने अपने तरीको से सम्भवनाओ की तलाश करते रहे कुछ लोग थे शक के घेरे में पर शक करने से क्या होता है अगले दिन मैंने भाभी से मिलने का सोचा और घर गया
मैं जब घर पंहुचा तो भाभी थी नहीं घर पर मैंने माँ सा से पूछा तो उन्होंने कहा की बता कर नहीं गयी है तो मुझे अजीब सा लगा क्योंकि भाभी पहले ऐसा कभी नहीं करती थी पर फिर भी मैंने इंतज़ार करने का सोचा सुबह से दोपहर हो गयी पर वो नहीं आयी
न वो थी घर पे न राणाजी तो मेरे दिमाग में तरह तरह के विचार आने लगे को कही दोनों साथ तो नहीं होंगे और कहाँ होंगे जब इन्तहा हो गयी इंतज़ार की तो मैं घर से निकला और वापसी का रास्ता ले लिया पर जब मैं अपने कुवे की तरफ पंहुचा तो मैंने देखा की वहाँ पर भाभी और राणाजी दोनों की गाड़ी खड़ी है
तो मेरे मन में सबसे पहला विचार ये ही आया की दोनों यहाँ पर कही राणाजी भाभी के साथ कुछ कर तो नहीं रहे होंगे मैं दौड़ते हुए कुवे पर बने कमरे की तरफ गया पर मैं देखना चाहता था कि अंदर क्या हो रहा होगा तो मैं पीछे वाली खिड़की की दराज से झाँकने लगा 
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