Antarvasna kahani नजर का खोट
04-27-2019, 12:54 PM,
RE: Antarvasna kahani नजर का खोट
पूजा की तस्वीर यहाँ होना मुझे चौंका गया क्योंकि एक वो ही थी जो इन सब में फिट नहीं बैठती थी, मेरा मतलब पूजा काफी समय से निष्काषित थी अपने परिवार से तो उसकी तस्वीर यहाँ होने का बस एक ही मतलब था की राणाजी को भान था उसकी उपस्तिथि का,
जब तस्वीरो से ध्यान हटा तो मैंने कमरे में मौजूद हर चीज़ का अवलोकन करना शुरू किया ऐसा लगता था की जैसे हर चीज़ को बहुत प्यार से सहेज कर रखा गया है, एक बक्से में मुझे भाई का पूरा सामान मिला ,

एक बक्से में मेरा पुराना सामान जिसे मैंने यु ही फेंक दिया था ,कुछ पलो के लिए मैं खो सा गया पर अब कुछ सवाल और खड़े हो गए थे जिनके जवाब सिर्फ राणा हुकुम सिंह ही दे सकते थे अब,

पर एक चीज़ इन तस्वीरो में ऐसी थी जो कुछ जँच नहीं रही थी मतलब कुछ ऐसा और तब मुझे समझ आया की क्या खटक रहा था, दरअसल जीजी की एक भी तस्वीर नहीं थी वहां पर , जिस तरीक़े से मेरी और भाई की चीज़ों को सहेजा गया,
उसी तरह जीजी की भी कोई तो निशानी जरूर होनी चाहिए थी ना, पर मुझे इस पुरे कमरे में कुछ नहीं मिला , क्या राणाजी सिर्फ अपने बेटों को ही चाहते थे , बेटी को नहीं या फिर कोई और बात थी,

शायद अब सही समय आ गया था की खुल कर सवाल जवाब कर ही लिए जाये मैं हल्के कदमो से चलते हुए अपने आप से सवाल जवाब कर रहा था की मेरी उंगलिया दिवार के एक कोने से जा लगी, तो कुछ गीला गीला सा लगा जैसे शायद पानी हो या कुछ उमस सा सीलन जैसा कुछ 

अब हुआ कौतुहल मुझे, मेरी उंगलिया कोने में फस गयी थोड़ा जोर लगाया तो दिवार करीब तीन फुट सरक गयी और मैं हैरान ही रह गया ये तो,,,, ये तो एक सुरंग सी थी मेरा तो सर ही घूम गया आखिर ये हो क्या रहा था अब ये सुरंग कहा जाती थी

फिर मैंने सोचा की शायद आज तकदीर भी ये ही चाहती है की जो होना है आज ही हो जाये, मैंने एक बार फिर लालटेन को अपनी साथी बनाया और चलता गया ये सोचते हुए की राणाजी को आखिर इसकी क्या जरुरत पड़ी होगी

धीरे धीरे सुरंग कुछ चौड़ी होने लगी पर अंत नहीं आ रहा था जी घबराये वो अलग , ऐसा लगे की जैसे किसी भूल भुलैया में फस गया हूं हाथ पांवो में दर्द होने लगा था पता नहीं कितने कोस चल चुका था पर सुरंग का जैसे अंत ही नहीं हो रहा था 

पसीने पसीने हुआ मैं कभी बैठ कर साँस लू तो कभी फिर चल पडू , प्यास के मारे गला सूखे वो अलग पर अब इतनी दूर आ गया था तो वापिस जाने का सवाल ही नहीं था 

पर जब हौंसला बिलकुल टूटने को ही था तभी एक हलकी सी रौशनी दिखी, मानो प्राणदान मिले हो मैं और तेज चलने लगा और जल्दी ही ऊपर जाती सीढिया दिखी और जिस तरह से हमारे घर में हुआ था ये सीढिया भी मुझे एक कमरे में ले गयी

इस कमरे में अँधेरा कुछ ज्यादा था और लालटेन भी बुझ गयी थी मैंने पर्दा हल्का सा उठाया तो खिड़की से ढलते सूरज की रौशनी आयी तो पता चला की सुबह की शाम हो गयी थी पर जब कमरे की दीवारों पर नजर पड़ी तो होश आया मुझे 

यही तो आना चाहता था मैं, हां यही तो आना चाहता था हमेशा से , मेरा मतलब जबसे मैं इन सब में पड़ा था, दोस्तों मैं इस समय उस कमरे में था जो कभी पद्मिनी का रहा होगा जो तस्वीरो में इतनी सुन्दर दिखती होगी प्रत्यक्ष में उसकी क्या खूब आभा रही होगी, मंत्रमुग्ध 

और अगर ये पद्मिनी का कमरा था तो मैं अर्जुनगढ़ की हवेली में था, मैंने घूम घूम कर कमरे को देखा हर चीज़ ऐसे थी जैसे की बरसो से उनको छुआ नहीं गया है सिवाय पद्मिनी की तस्वीरो के जिन पर कोई मिटटी जाले नहीं था 

इसका मतलब कोई अवश्य आता जाता था यहाँ पर पूजा के अनुसार हवेली सालो से बंद पड़ी थी, अब ये क्या हो रहा था मुझे कोई अंदाज नहीं था , आखिर हमारे पुरखो ने क्या गुल खिलाये थे और ये सुरंग जो देव गढ़ से अर्जुनगढ़ तक आती थी इसके क्या मायने थे आखिर इसे किसलिए बनाया गया था


और क्या राणाजी के कमरे से सुरंग का सिर्फ पद्मिनी के कमरे तक आना महज एक इत्तेफाक था , नहीं हो सकता है की सुरंग पहले बनायीं गयी हो और विवाह के बाद इस कमरे में पद्मिनी रही हो, मैंने अपने इस शक को दूर करने के लिए फिर से कमरे का अवलोकन किया पर अर्जुन सिंह से सम्बंधित कोई चीज़ नहीं मिली

अब बात ये भी थी की जैसा की मैं जानता था बाद में पद्मिनी ने राणाजी को राखी बांधी थी पर क्या राणाजी एक तरफ़ा चाहते थे पद्मिनी को, इस विचार के पीछे मेरे पास ठोस कारन था की राणाजी को सिर्फ जिस्म से मतलब था चाहे वो किसी का भी हो

तो क्या उन्होंने राखी का मान नहीं रखा होगा, या जो भी कारन हो पर इतना जरूर था की कुछ ऐसा था जिसे सबसे छुपाया गया था और शायद इसी वजह से दोनों दोस्त दुश्मन बने हो, अपने ख्यालो में खोए हुए मैं कब कमरे से निकल कर सीढियो के पास आ गया पता ही न चलता अगर उस आवाज ने मेरा ध्यान न खींचा होता

"तो आखिर, आ ही गए तुम यहाँ पर"

मैंने नजर घुमा कर देखा और बस इतना बोल पाया " आप, आप यहाँ पर"
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04-27-2019, 12:55 PM,
RE: Antarvasna kahani नजर का खोट
मेरी आँखों के सामने कामिनी खड़ी थी लाल जोड़े में सजी हाथो में पूजा की थाली लिए ,वो कामिनी जिसने खुद मुझे बताया था की वो विधवा हो गयी बरसो पहले तो फिर आज वो क्यों दुल्हन के लिबास में थी, क्यों उसकी मांग में आज सिंदूर था क्यों हाथो में चुडिया थी क्यों।और सबसे बड़ी बात वो इस समय अर्जुनगढ़ की हवेलिया में क्या कर रही थी

कामिनी- तुम्हारा हैरान होना लाज़मी है कुंदन

मैं- आप मेरा मतलब ये सब क्या, कैसे

वो- मैं तुमसे भी पूछ सकती हूं कि यहाँ तुम कैसे, क्यों पर ये ठीक नहीं होगा क्योंकि कही न कही हम लोगो को ऐसे, इन कुछ कठिन सी परिस्तिथियों में टकराना ही था ,है ना

मैं- कमसेकम मैं आपकी मौजूदगी तो यहाँ नहीं सोच रहा था

वो- तो इस वीरान इस बरसो से खंडहर पड़ी ईमारत में किसका इंतज़ार था तुम्हे

मैं- उसका जिसने देवगढ़ से यहाँ तक सुरंग बनवायी

कामिनी- अपनी उम्र से बहुत तेज हो तुम कुंदन जब तुम्हे पहली बार देखा था तभी समझ गयी थी पर कोई बात नहीं, देर सवेर तुम्हे पता चल ही जाना था

मैं- पर महत्वपूर्ण ये है की आप इस हवेली में क्यों है

कामिनी- मुझे लगा था की तुम सब समझ गए हो, तुम्हे सब समझ जाना चाहिए था जब तुम पहली बार अनपरा आये थे , बेशक तब भी तुम कुछ सवाल लेकर आये थे और आज भी तुम सवालो में उलझे हो

मैं- सही कहा पर आज मैं अपने हर सवाल का जवाब आपसे जान कर रहूँगा

कामिनी- मुझे भी ऐसा ही लगता है की वक़्त आ गया है

मैं- तो आप यहाँ कैसे

वो- हर साल सिर्फ इसी दिन इसी समय मैं यहाँ आती हु

मैं- क्यों

वो- क्योंकि आज करवा चौथ है , माना कि बूढ़े होने लगे है पर फिर भी दिल है की मानता नहीं

मैं- तो उस दिन झूठ क्यों बोला

कामिनी- क्योंकि कभी कभी झूठ सच से ज्यादा फायदेमंद होता है खासकर उस स्तिथि में जिसके लिए जूठ बोला गया वो भी अपना हो और जिसके लिए सच छुपाया वो भी अपना

मैं- आज बातो की चाशनी में नहीं फिसलूंगा मैं

वो- सुबह से निर्जला हु मैं भी आज झूठ नहीं बोलूंगी कुंदन वचन देती हूं
मैं- आखिर ये हो क्या रहा है ये रिश्तो की उलझन ये दुश्वारियां क्यों आज अपने ही शक के घेरे में है

कामिनी- क्योंकि प्रेम का नाश हो रहा है धीरे धीरे और जाने अनजाने सबके पैर धंसे है लालच और हवस के कीचड में ,अब औरो का क्या ज़िक्र बस तुम और मैं अपनी बात ही ले लेते है

कामिनी की बात में जो व्यंग्य था उसे समझ लिया था मैंने

मैं- हां ये सच है, पर बाते वर्तमान की नहीं अतीत की है आप वैसे किसके लिए आई थी यहाँ ,ठाकुर जगन सिंह के लिए क्या
वो- तो फिर हम उसकी हवेली में जाते यहाँ नहीं, और कुंदन लाशें कब से किसी को इंतज़ार करवाने लगी

मैं- तो आपको पता चल गया

कामिनी- मैंने ही मारा था उसको, मैंने ही

कामिनी की बात ने मेरे सारे दिमाग को हिला दिया था आखिर क्या वजह आन पड़ी थी जगन सिंह को मारने की

मैं- पर क्यों ,ऐसा क्या हुआ जो जान ही ले ली उसकी

कामिनी- उसको मरणा ही था , क्योंकि उस रात वो न मरता तो तुम मरते, उसने पूरी साज़िश कर ली थी तुम पर हमला करने की


ये कामिनी का एक और धमाका था

मैं- पर मैं ,वो क्यों मारना चाहता था मुझे

कामिनी- क्योंकि तुम उसके झांसे में नहीं आ रहे थे यहाँ तक की वो अपनी लड़की भी तुम्हे देने को तैयार हो गया था पर तुम माने नहीं, और वसीयत का जो डंडा तुमने अड़ाया था वो रस्ते पर आ जाना था तो क्या करता वो

मैं- पर अर्जुन सिंह की तलवार और मेरे भाई की घडी वहां

कामिनी- दरअसल हुकुम सिंह उस रात मेरे साथ था हम कुछ समय पहले लाल मंदिर में मिले थे वो बहुत उदास था तो अर्जुन की तलवार से मन बहला रहा था पर जैसे ही उसे पता चला की जगन क्या गुल खिला रहा है गुस्से में तलवार हाथ में ही रह गयी, रही बात घडी की तो हुकुम अपनी औलादो को बहुत चाहता है बस इन्दर की निशानी के तौर पे रख ली जो वहां गिर गयी

मैं- बात जम नहीं रही, राणाजी अपने दोस्त की तलवार को कभी ऐसे नहीं छोड़ते

कामिनी- सही कहा पर फिर तुम्हे ये सुराग कैसे मिलते

मैंने हैरान होकर उसकी तरफ देखा

वो- ये हुकुम सिंह ही है जो तुम्हे यहाँ तक लेके आये है तुम इतिहास के जिन पन्नो की तलाश कर रहे हो वो मार्गदर्शक रहे है हर कदम पर तुम्हारे

मैं और हैरान हो गया ये सुनकर ,

कामिनी- जीवन बड़ी कठिन राह है कुंदन, जैसे एक छलावा जो दीखता है वो होता नहीं

मैं- पर पुजारी को मारने की क्या जरूरत थी

कामिनी- कौन पुजारी

मैं- लाल मंदिर का

वो- उसके बारे में कुछ नहीं पता मुझे

मैं- चलो मान लिया पर कुछ सवाल अभी भी है

वो- जैसे

मैं- ये व्रत किसके लिए रखा आपने

वो- अगर मैं ये कहु की मेरा व्यक्तिगत मामला है तो

मैं- बेशक पर एक औरत जिंदगी भर विधवा होने का ढोंग करती है और फिर एक दिन करवा चौथ को एक सुहागन के रूप में मिलती है अजीब नहीं है कुछ

वो- मेरे लिए नहीं क्योंकि इस सिंदूर की बहुत बड़ी कीमत चुकाई है मैंने अगर देख सको तो इस सिंदूर के नीचे खून से सनी हुई मुझे देखो, और खून गैरो का नहीं अपनों का है, उन अपनों का जो जी गए और हमे सजा दे गए जीने की

मैं- पहेलिया नहीं कामिनी की पहेलिया नही मुद्दे पे आइये

कामिनी- सच का कड़वा घूंट पि सकोगे कुंदन तुम बोलो अगर हां तो फिर तैयार हो जाओ गैरत के उस दरिया में उतरने को जहा आत्मा तक सड़ जाती है

मैं- बस इतना बता दो की कौन है वो जिसके नाम का सिंदूर रंग गया एक विधवा को

कामिनी- नहीं मानोगे तुम

मैं- आज तो बिलकुल नहीं

कामिनी- तो सुनो मेरी मांग में उसका सिंदूर है जिसका खून तुम्हारी रगों में दौड़ रहा है हुकुम सिंह की ब्याहता हु मैं

कामिनी के शब्द अबतक हवेली में गूंज रहे थे जैसे किसी ने मेरे सर पर हथौड़ा मार दिया हो ये क्या कह गयी कामिनी, ये कैसा अनर्थ था ये क्या कर गयी वो मैं धम्म से फर्श पर ही बैठ गया ये कैसा धमाका कर दिया था उसने अब सब कुछ झुलसने वाला था औऱ पहली चिंगारी मुझे जलाने वाली थी

बेशक इस समय एक गहरी ख़ामोशी हमारे दरमियान थी पर कामिनी के कहे शब्द किसी भारी हथौड़े की तरह मेरे कानों में पड़ रहे थे, राणाजी की ब्याहता यानी ,यानि एक नाते से मेरी माँ नहीं ये नहीं हो सकता एक नजर मैं उसको देखता एक नजर मैं हवेली की दीवारों को,

मैंने बस अपना सर झुका लिया क्योंकि अब मायने बदल गए थे, मुझे कामिनी से ज्यादा गुस्सा अब अपने आप पर आ रहा था मेरी आँखों के सामने वो द्रश्य बार बार आ रहे थे जब मैं और कामिनी। एक हुए थे ग्लानि से डूबने लगा था मैं

मैं- क्यों, मुझसे क्यों पाप करवाया

कामिनी- तुम्हारा कोई दोष नहीं कुंदन, कुछ मेरा कसूर है कुछ नियति का

मैं- हर बात के लिए नियति की आड़ लेना ठीक नहीं

वो- तो क्या करे हम, उस रात जब उस बगीचे में जो कुछ हुआ

मैं- तो रोक क्यों नहीं दिया मुझे क्यों धकेला इस पाप के दरिया में क्यों

कामिनी- उस दिन मैं वहां हुकुम सिंह का इंतज़ार कर रही थी, पर संयोग से एक तो अँधेरे का वक़्त ऊपर से तुम्हारी कद काठी भी अपने पिता सी

मैं- अब भी बहाना, आपको पता तो चल गया था कि मैं कोई और हु

कामिनी- तब तक देर हो गयी थी कुंदन वो एक कमजोर लम्हा था

मैं- बात जंची नहीं, क्योंकि राणाजी उस दिन वहां नहीं थे, सिर्फ मैं और भाभी ही थे

वो- सही कहा तुमने, पर वो पास से गुजर रहे थे कुछ काम से तो आधी रात के लगभग आये थे

मैं- चलो मान लिया पर ये जानते हुए की मैं कौन हूं आप कौन फिर भी अनपरा में जबकि आप टाल सकती थी

कामिनी- मैंने कहा ना वो कमजोर लम्हे थे मेरे लिए जब तुम साथ थे उस समय मैं तुम्हे नहीं तुम्हारे अंदर हुकुम सिंह की छवि देख रही थी

मैं- पर अपने बेटे सामान के साथ

कामिनी- ये कहकर अब हम सिर्फ एक दूसरे पर कीचड ही उछाल सकते है, क्योंकि इस दलदल में अब हम सब धँसे है

मैं-कैसे नजरे मिलाऊँगा राणाजी से मैं

कामिनी- ये मेरा प्रश्न होना चाहिए खैर, यहाँ बात चरित्र की है ही नहीं

मैं- पर मैं कैसे जीऊंगा इस बोझ के साथ

कामिनी- जब तक पता नहीं था तो मजे ले रहे थे तब कुछ नहीं था, तब मैं ही क्या कोई भी औरत चाहे किसी भी उम्र की हो बस मजा लिया और काम खत्म, अब आखिर दुहाई भी तो किन रिश्तो की जिनका बोझ तुम एक साँस नहीं उठा सकते

हमने कहां ना की उसके लिए अगर कोई जिम्मेदार है तो बस हम क्योंकि ये हमारी खता है की हम कमजोर पड़ गए, और इसका प्रायश्चित भी हम ही करेंगे क्योंकि जीवन में सबसे मुश्किल होता है अपने आपसे भागना

जो हम न जाने कबसे करते आ रहे है, तुम्हे जरा भी जरुरत नहीं है कुछ सोचने की माना अब तुम्हारे लिए भी इस राज़ को अपने सीने में दफन करना मुश्किल होगा पर मेरे बच्चे यही ज़िन्दगी है कुछ बाते ऐसी है जो तुम क्या हम ही आज तक समझ नहीं पाए

परन्तु सब ठीक होगा और जल्दी ही ठीक होगा हमने इस बारे में बहुत सोचा और हम जान गए की ये शुरुआत हमसे हुई तो अंत भी हमसे ही होगा

मैं- क्या करने वाली है आप

वो- कुछ नहीं कुछ भी नहीं बस तुमसे कुछ बाते करने का दिल है दरअसल मैं मिलना चाहती थी तुमसे तुम्हे सब बताना चाहती थी पर ,पर हम सबकी कुछ कमजोरिया होती ही है, बेशक तुम आज नहीं समझ पाओगे पर जब तुम हमारी अवस्था में आओगे तब जरूर
कामिनी मेरे पास आई और बोली- जानते हो जब तुमने मुझसे पूछा था की मैं पद्मिनी को कैसे जानती हूं

मैं- याद है

कामिनी- तो मेरा जवाब भी याद होगा ही

मैं कुछ कहता उससे पहले ही वो बोली- अगर तुम्हे मेरा जवाब याद है तो तुम्हारे प्रश्न का उत्तर भी तुम्हे मिल जायेगा की मैं यहाँ इस हवेली में कैसे

मैं- हां आपने बताया था कि आप पद्मिनी की बहन है , ओह एक मिनट इसका मतलब इसका मतलब आप

बिना मेरे जवाब की प्रतीक्षा किये वो चलते हुए दौर के उस हिस्से की तरफ बढ़ गयी जहा एक के बाद एक कई कटार लगी हुई थी मैं बस उसे देखता रहा और जब तक उसकी बात मेरे समझ में आयी शायद देर हो गयी थी

"नहीं, नहीं रुकिए" चिल्लाते हुए मैं उसकी तरफ भागा पर तब तक कामिनी ने कटार अपने सीने में उतार ली थी

"कुंदन" वो कुछ चीखी सी और फर्श पर गिर पड़ी

मैं उसके पास पंहुचा "ये क्या किया आपने क्या किया आपने मैं अभी आपको डॉक्टर के पास ले चलता हूं कुछ नहीं होगा आपको,कुछ नहीं होगा "

कामिनी- नहीं, कुंदन नही, मुझे तो जाना ही था पर कमसे कम आज , आज देखो सुहाग के जोड़े में जा रही हु हिच्छ सारी जिंदगी हुकुम ने मुझे दुनिया से छुपा कर रखा पर उससे कहना की एक पति के हक़ से मुझे आखिरी विदाई दे

मेरी आँखों से आंसू निकल पडें मैं घुटनो के बल बैठ गया और कामिनी का सर अपनी गोद में रख लिया उसकी पकड़ मेरी कलाई पर कस गयी

कामिनी- मैंने किसी का हक़ नहीं मारा किसी को दुःख नहीं दिया बस प्रेम किया था हुकुम से और उम्र ही निकल गई परीक्षाएं देते देते, पर शुक्र है कि आज हुकुम की छाया में ही जी निकल रहा है हिच्छ

खून बहुत तेजी से बह रहा था कटार तेज थी अंदर तक जख्म कर गयीं थी खून रोकने की कोशिश में मैंने कटार को खींचा तो वो मेरे हाथ में आ गयी और कामिनी दर्द से तड़प उठी उसकी आँखे बंद होने लगी

"आह कुंदन, एक विनती है तुमसे पूरा करोगे ना"

मैं- जी

कामिनी- एक बार एक बार मुझे माँ पुकारोगे एक बार कहो माँ मेनका मा कहोगे ना

मैं- हां, हाँ मा मेरी मेनका माँ मा रोते हुए मैं बोला

और जैसे ही मैंने ये कहा उसकी पकड़ टूटने लगी आवाज कांपने लगी वो बस इतना बोली- कुंदन, कविता को संभालना सम्भलना उसे और फिर साँस टूट गयी मैंने उसे अपनी बाहों में भर लिया और रोने लगा पर शायद क़यामत अभी आनी बाकी थी तभी दरवाजा खुला और सामने राणाजी खड़े थे और सामने मैं अपनी गोद में मेनका की लाश लिए बैठा था
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04-27-2019, 12:55 PM,
RE: Antarvasna kahani नजर का खोट
ठीक उसी वक़्त, देवगढ़ का मंदिर

आज की रात बड़ी आस वाली रात थी सभी सुहागनें अपना सोलह श्रृंगार किये हुए हाथो में पूजा की थाली लिए और दिल में ढेरों अरमान लिए मंगल गा रही थी इस पूजा के बाद बस उन्हें चाँद के दीदार करके अपना व्रत खोलना था 

और पूजा भी किसी बिजली की तरह लहराते हुए अपने दिल में कुंदन के प्रेम को समाये उसके लिए व्रत किये जा रही थी मंदिर की ओर तभी उसकी नजर पास ही एक पेड़ के नीचे चबूतरे पर बैठी एक लड़की पर पड़ी न जाने क्यों पूजा के कदम रूक गए और वो उस लड़की की तरफ बढ़ चली

पूजा- अरे सुनो, तुम यहाँ ऐसे उदास क्यों बैठी हो

छज्जेवाली ने पूजा को ऊपर से नीचे तक देखा और बोली- आपसे मतलब 

पूजा- मतलब तो कुछ नहीं, पर आज जब सब स्त्रियां ऐसे सजी संवरी है यहाँ, तो तुम्हे कुछ उदास सा देख कर रुक गयी, कुछ परेशानी है क्या 

छज्जेवाली- नहीं कोई परेशानी नहीं, और आपको क्यों बताऊ, वैसे भी ये करवा चौथ तो सुहागनों के लिए है मैं तो कुंवारी हु मुझे क्या लेना देना 

पूजा उसके पास बैठते हुए- तन से कुंवारी हो मन से नहीं, मन तो किसी और को सौंप ही चुकी हो 
छज्जेवाली ने घूर कर पूजा की तरफ देखा 

पूजा- तुम्हारे होंठ झूठ बोल सकते है पर आँखे नहीं ,तो मामला मोहब्बत का है, है ना 

छज्जेवाली- अब क्या फर्क पड़ता है 

पूजा- अरे फर्क क्यों नहीं पड़ता, फर्क पड़ता है क्योंकि ये तुम्हारी ज़िन्दगी है और प्यार अगर है तो वो जरूर मिलेगा बस कोशिश करो, 

छज्जेवाली- ये बस किताबी बाते है ज़िन्दगी से इनका कोई वास्ता नहीं 

पूजा- लगता है बड़ी गहरी चोट खायी हो प्रेम में, पर अगर प्यार सच्चा है तो तुम हैरान- परेशान क्यो हो 

छज्जेवाली- क्योंकि प्रेम बस किसी को पाना ही नहीं है प्रेम तो एक साधना है ये मेरी चाहत है की मैं उनको चाहू, ये मंदिर देख रही हो ये कान्हा का है और मेरी नियति मीरा की चाहत है 

पूजा- बाते तो बहुत अच्छी करते हो पर कान्हा के साथ हमेशा राधिका पूजी है 

छज्जेवाली- क्या फर्क पड़ता है राधा होब्या मीरा दोनों अपनी जगह सही है, दोनों का अपना भाग है दोनों का अपना वजूद है 

पूजा- न जाने क्यों तुम्हे देख एक अपनापन सा लगता है तुम्हारी इन कजरारी आँखों में एक आस का बादल है इन होंठो पर एक कहानी है और मैं समझ रही हु की तुम्हे चाहने वाले की भी कोई मज़बूरी रही होगी वार्ना इतनी प्यारी गुड़िया को कोई दुःख क्यों देगा 

छज्जेवाली- नहीं कोई मजबुरी नहीं, बस हालात ही कुछ ऐसे हो गए एक तरफ फ़र्ज़ था एक तरफ मोहब्बत और मैं उनके हाथ कैसे कमजोर कर सकती थी

पूजा- हम्म, मैं समझती हु कई बार परिस्तिथियों पर चाह कर भी हमारा नियंत्रण नहीं रहता पर अपने हक़ को छोड़ना नहीं चाहिए था तुम्हे 

छज्जेवाली- वो भी मुझे चाहते है उनके मन के किसी कोने में मैं हमेशा हु पर उन्होंने दोस्ती का दामन थामा क्योंकि प्रेम के कई रूप होते हों पर दोस्ती का महत्व अलग होता है, और अगर वो मुझे चुन लेते तो दोस्ती और फ़र्ज़ से मुह मोड़ने का कलंक लगता जो मुझे मंजूर नहीं

पूजा- वाह, अच्छा लगा आजके ज़माने में भी ऐसे लोग है जो ज़िन्दगी को ऐसे सोचते है ऐसे जीते है, बुरा न मानो तो हमे नाम बताओगी उस इंसान का जिसके तुम जैसे हमदर्द, हमसफ़र है 

छज्जेवाली- कुंदन, कुंदन ठाकुर

जैसे ही छज्जेवाली ने ने कहा पूजा के हाथ काँप गए चेहरे का रंग उड़ गया पर उसने अपने आप को संभाल लिया एक गहरी सांस ली और बोली- ये थाली पकड़ो जरा 

पूजा ने अपनी थाली छज्जेवाली के हाथ में दे दी और अपनी केसरिया चुनरिया उसे ओढा के बोली- तुम बहुत प्यारी हो, आज के दिन तुम्हे ऐसे ही नहीं रहना चाहिए जाओ जा के पूजा करो , तुम्हे तुम्हारा प्रेम जरूर मिलेगा 

छज्जेवाली- पर ये तो आपका है मैं कैसे 

पूजा- क्या फर्क पड़ता है, मुझसे ज्यादा इस पर अब तुम्हारा हक़ है और फ़िर राधिका हो या मीरा मोहन तो सबके ही है बस इतना कहूँगी की तुम्हे तुम्हारी प्रीत जरूर मिलेगी जाओ अब जल्दी जाओ चाँद निकलने ही वाला है 

छज्जेवाली की आँखों से आंसू निकल पड़े गला भर गया वो कुछ कहना चाहती तो पर पूजा ने उसके होंठो पर ऊँगली रख दी और उसे अपने सीने से लगा लिया और पूजा की आँख से कुछ बुँदे टपक गयी 

पूजा- जाओ खुशिया तुम्हारा इंतज़ार कर रही है 

पूजा बस उसे मंदिर की सीढ़ियां चढ़ते हुए देखती रही और फिर मुस्कुराते हुए ही वहां से मुड गयी आँखों के पानी को पोंछने की जरा भी कोशिश न की उसने पर दिल का बोझ कुछ हल्का सा लगने लगा था 

ठीक उसी समय अर्जुनगढ़ की हवेली

मैं अपनी गोदी में मेनका की लाश लिए बैठा था और तभी दरवाजा खुला और सामने राणाजी खड़े थे जो एक मात्र लैंप जल रहा था वो तेजी से फड़फड़ाने लगा और अगले ही पल राणाजी की चीख ने जैसे हवेली के जर्रे जर्रे को हिला दिया 

"मेनका, मेंकाआआआआआता" राणाजी चीखते हुए हमारी तरफ दौड़े और जिस ताकत से उन्होंने मुझे मेनका से दूर कर दिया जैसे किसी आंधी में एक तिनका इतनी तेजी से मैं ऊपर जाती सीढियो से टकराया की आँखों के आगे अँधेरा छ गया

पर अपनी होश खोटी आँखों से मैंने देखा की राणाजी ने मेनका की लाश को अपने आगोश में भर लिया और उनके करूण रुदन से जैसे आज सब तबाह हो जाना था

" उठो मेनका बात करो हमसे देखो हम आ गए तुम्हारा हुकुम सिंह आ गया उठो मेनका उठो" राणाजी उसके गालो को थपथपाते हुए बोले पर मेनका जा चुकी थी उनसे दूर हम सब से बहुत दूर इतनी दूर की अब कभी वापिस नहीं आ सकती थी कभी नहीं

तभी राणाजी के हाथ मेनका के ज़ख्म को छू गए और उनकी आँखों में खून उतर आया जबड़े भींच गए 

राणाजी- नहीं, तुम मुझे छोड़ कर नहीं जा सकती हर मुश्किल से मुश्किल घड़ी में मेरा साथ दिया तो अब क्यों ,क्यों गयी ,क्यों अकेला कर गयी मुझे क्यों 

किसी बच्चे की तरह बिलखते हुए देखा मैंने अपने पिता को, उनके विलाप के संताप से मेरा कालेजा भी फटने लगा था अपने सर की चोट को संभालते हुए मैं लड़खड़ाते कदमो से उनके पास गया और धीरे से बोला - बापू सा

वो मेरी तरफ पलटे और अगले ही पल उनकी लात मेरे सीने से टकराई मैं हवा में उछलता हुआ दरवाजे से जा टकराया


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04-27-2019, 12:55 PM,
RE: Antarvasna kahani नजर का खोट
"आह " इस बार मैं अपने दर्द को ना रोक सका पर पसलियों में चोट गहरी लग गयी थी क्योंकि पलक झपकते ही मुह से उबाक के साथ खून भी निकल पड़ा 

पर राणाजी पर किसी पागल हाथी जैसा उन्माद चढ़ गया था और क्रोध में वो भूल गए थे की सामने उनका बेटा है उनका अपना खून मेरे बालो से पकड़ कर उठाया और एक बार फिर से फेंक दिया मुझे 

मैं- मेरी बात तो सुनिये बापू सा , सुनिये आह 

राणाजी- क्यों क्यों किया तूने ऐसा आखिर क्यों मार डाला मेरी मेनका को क्यों

मैं- मैंने नहीं मारा 

तड़ाक, मेरी बात पूरी होने से पहले ही उनका तमाचा मेरे गाल पर पड़ा और पेट में एक लात अब मुझे भी गुस्सा आने लगा था पर सामने मेरा बाप था पर कोई कितना बर्दास्त करेगा आखिर इस बार मैंने उनका हाथ पकड़ लिया

मैं- मेरी बात सुनिये बापू सा 

राणाजी को जैसे ही ये आभास हुआ की मैंने उनका प्रतिकार किया है ,उनका हाथ पकड़ रखा है उनकी आँखे जैसे जल गयी गुस्से में 

राणाजी- गुस्ताख़ तेरी ये जुर्रत तू हमारा हाथ पकड़ेगा हमारा ठाकुर हुकुम सिंह का 

मैं- बस बापू सा अब बहुत हुआ, मैं कब से कह रहा हु मेरी बात सुनिये पर आप है की समझ ही नहीं रहे कही ऐसा न हो की आपका क्रोध जब शांत हो तो सिवाय पछताने के आपके पास कुछ न बचे 

राणाजी- हमारा तो सब तबाह हो चूका है सब खत्म कर दिया तूने 

इस बार राणाजी की लात बहुत जोर से लगी मुझे बिलबिला गया दर्द के मारे, मुझे भी अब गुस्सा आ रहा था पर मैं सोच रहा था कि बाप के सामने हाथ उठ गया तो कल को खुद की नजरों में गिर जाऊंगा और बाप है की समझ ही नहीं रहा है

मै उठते हुए- बापू सा, मैं अंतिम बार कह रहा हु शांत हो जाइये वरना पिता पुत्र की रेखा पार न हो जाये 

राणाजी- कब तक शब्दो की आड़ लेगा कायर , तेरी हैसियत नहीं की तू हमारा सामना कर सके रिश्ता तो उसी समय खत्म हो गया जब तेरे हाथ हमारी मेनका की तरफ बढे थे अब तेरी लाश ही जायेगी यहाँ से 

मैं समझ गया था कि ये अब कुछ नहीं सुनेंगे, कोशिश करनी बेकार है अब धर्मसंकट ये था कि उनपर जूनून था और मैं अपना अंत नहीं चाहता था और राणाजी का ये रौद्र रूप आज विध्वंस करने पर उतारू था

मेरा शरीर अब मचलने लगा था प्रतिकार करने को क्योंकि उसकी भी सहन शक्ति खत्म हो रही थी और राणाजी ने जैसे आज ना रुकने की कसम खा ली थी ,दरअसल मैं अपने मन की जंग में उलझ गया था एक तरफ जैसा भी हो 

मेरा बाप था और दूसरी तरफ बार बार मेरे जेहन में वो मंजर आ रहा था जो मैंने खारी बॉवड़ी में पद्मिनी की आँखों में देखा था आज ,आज वो पल आखिर आ ही गया था उस दिन मैंने एक बाप बेटे की रक्त रंजित तलवारो को आपस में टकराते हुए देखा था 

और नसीब देखो, आज भी ऐसी ही मुश्किल घड़ी थी इस बार मैंने नीचे झुक कर राणाजी के वार को बचाया और उनकी कमर में हाथ डाल कर उन्हें उठाते हुए पटक दिया, एक पल तो मुझे लगा की बूढी हड्डिया चटक न जाए उनपर होने वाला हर प्रहार मेरे ही कलेजे को चीर जाना था



मैं- मान, जाइये रुक जाइये 

राणाजी उठते हुए- अब आएगा मजा 

मजा, मैंने सोचा कैसा मजा आएगा अपनी ही औलाद के खून को बहाने में अखिर ये कैसी प्यास है जो अपनों के रक्त से ही बुझती है ये कैसा स्वाद मुह लगा है इन हथियारों को, की अपनों के ही दुश्मन बन पड़े है 

राणाजी एक बार फिर मुझ पर लपके और पूरी शक्ति से मैंने एक घूंसा उनकी जांघ पर दे मारा, मुझे इतनी आत्मग्लानि थी की क्या बताऊँ, जिस खम्बे का सहारा लेकर वो बैठे थे उसी खम्बे पर दे दनादन मैंने अपना गुस्सा उतारना शुरू किया उंगलिया छिल गयी खून रिसने लगा 

राणाजी एक बार फिर जुट गए थे मेरे बदन के साथ साथ मेरी आत्मा को तार तार करने के लिए पर अब भावनाओ पर गुस्सा हावी होने लगा था , राणाजी की बूढी हड्डियों में अभी भी बहुत दम था इसका भान जल्दी ही हो गया मुझे जब मैं फर्श पर दर्द से तड़प रहा था

राणाजी ने दिवार से तलवारे निकाल ली और एक मेरी और फेंकते हुए बोले- ले उठा तलवार और कर मेरा सामना, जिस धरती पर मेरी मेनका की लाश पड़ी है मैं उस धरा को सींच दूंगा तेरे रक्त से 

मै उठते हुए - हां तो कर लीजिए अपने मन की पर ये याद रखना रक्त के जितने भी छींटे उड़ेंगे वो रक्त आपका अपना ही होगा, 

राणाजी- आज तक बस मेरा रक्त ही तो बहता आया है पर फिर भी टुटा नहीं क्योंकि मेरी शक्ति मेरी प्रेरणा मेरी मेनका मेरे साथ थी पर आज तेरी वजह से सब खत्म हो गया और जब सब खत्म हो ही गया है तो आज अंत कर दूंगा 

मैं कुछ करता उससे पहले ही उनकी तलवार मेरी बाह पे चीरा लगा गयी और अगले ही पल हवेली हमारी तलवारो की टंकारो से गूंज गयी मेरी पकड़ तलवार की मुठ पर कस्ती जा रही थी और आखिर वो लम्हा भी आया जब मेरी तलवार ने राणाजी के रक्त का चुम्बन लिया 

अब खून चाहे उनका गिरे या मेरा बात एक ही थी तलवारो को कहा भान था कि हर बार मेरा ह्रदय ही घायल हो रहा था हम दोनों के बदन घावों की शरण स्थली बनते जा रहे थे और तभी लगा की जैसे आज तक़दीर दगा दे गयी

मेरी तलवार दो टुकड़ों में बंट गयी और मेरे सीने में एक लंबा घाव हो गया " आई" मैं लहराते हुए गिरा और इससे पहले की राणाजी की लहराती तलवार मेरे जिस्म में प्रविष्ट हो जाती दरवाजे से एक साया तेजी से मेरी तरफ आया और मुझे परे धकेल दिया टन की तेज आवाज से तलवार फर्श से टकराई

" बंद कीजिये बापू सा, बंद कीजिये ये रक्त का खेल कब तक इन तलवारो से खेलेंगे जिन्हें अपने ही खून की पहचान नहीं कब तक आप अपनी जिद के लिए मासूमो के जीवन बर्वाद करते रहेंगे कब तक आप अपने मन की करते रहेंगे कब तक"
" दूर हट हरामजादी दूर हट कही ऐसा ना हो की इसके चक्कर में आज तेरे टुकड़े भी यही पड़े मिले"
भाभी- बस ठाकुर साब बस, अब अगर कुंदन की तरफ आपका एक भी कदम उठाया तो ठीक नहीं होगा फिर मैं भी भूल जाउंगी की मैं कौन हूं और मैं अगर अपनी पे आयी तो आज अफ़सोस के सिवाय कुछ नहीं बचेगा ,कुछ नहीं बचेगा

राणाजी- तू मेरे टुकड़ो पे पलने वाली कुतिया तेरी औकात ही क्या है आज जिस शान बान , जो शौकत जो रुतबा तेरा है उसकी वजह है की तू हमारे घर के रहती है हमारा दिया खाती है 

भाभी- अपनी नजरो से इस धूल का चश्मा उतारो ठाकुर साहब और सच का सामना करो , उस सच का जिससे सारी उम्र भागते रहे और कुंदन का खून करके क्या साबित करोगे आखिर कब तक अपने अहंकार का पोषण करते रहोगे कब तक आज थमना होगा आज इसी वक़्त

राणाजी- जस्सी, जुबान को लगाम दे वर्ना आज लाशो के जो ढेर लगेंगे उसमे एक लाश तेरी भी होगी 
भाभी- तो ठीक है आज हम भी देखते है कि ठाकुर हुकुम सिंह जो अपने आपको दुनिया का सबसे बड़ा मर्द समझता है आज उसकी तलवार का सामना हम करेंगे और देखते है कि जिन कंधो पर आजतक वो अपनों की लाशों का बोझ लादे है आज हम देखते है की दबंग राणाजी अपने आप से कहा तक भागेंगे 

भाभी में भी दिवार पर टँगे म्यान से एक तलवार खींच ली और राणाजी से बोली- आज मेरी तलवार के पहले वार से ही आपको अतीत के पन्ने पलटते हुए दिखेंगे वो पन्ने जो खून से रंगे है

दर्द से कराहते हुए मैंने देखा की जैसे उस समय दो बिजलिया आपस में टकरा रही हो दोनों की आँखों में बस नफरत ही तो कभी राणाजी तो कभी भाभी , जैसे जैसे वक़्त गुजरता गया दोनों के जिस्म लाल होते गए 
पर तभी , भाभी लहराती हुई राणाजी की तरफ लपकी और कब वो उनकी तलवार ले उडी खुद राणाजी को यकीन नहीं आया उनकी आँखे जैसे शून्य हो गयी थी होंठ कांपने लगे

राणाजी - ये दांव तुमने कैसे , कैसे कर पाई तुम ये हम पूछते है है कैसे जस्सी ऐसा तो सिर्फ सिर्फ


भाभी- ऐसा तो सिर्फ पद्मिनी ही कर सकती थी यही कहना चाहते है ना आप 

राणाजी ने जस्सी भाभी के मुह से जैसे ही पद्मिनी का नाम सुना राणाजी का क्रोध न जाने कैसे गायब हो गया वो एक दम शांत हो गए हवेली एक बार फिर से उसी तरह शांत हो गयी जैसे वो हमेशा से थी भाभी मेरे पास आई और मुझे सहारा देकर खड़ा किया और मेरे सर पर अपने दुप्पट्टे को पट्टी की तरह बांधा और मुझे लेकर दरवाजे की ओर बढ़ गयी 

राणाजी- जस्सी, तुम इस तरह बिना हमारे सवाल का जवाब दिए नहीं जा सकती नहीं जा सकती 

भाभी मुड़ी और बोली- क्या सुन पाओगे ठाकुर साहब, जानते हो आज अगर मैं चाहती तो आज ये हवेली आपके खून से लाल रँगी होती क्योंकि कुंदन पर वार करके आपने हर मर्यादा पार कर दी पर आपकी सबसे बड़ी सजा तो ये होगी की आप ज़िंदा रहे पल पल तड़पे जैसे पिछले 12 सालों से तड़पते रहे है पर अब जो घाव मैं आपको दूंगी उसके बाद आप पल पल मरेंगे पल पल मरेंगे

राणाजी- मरे हुए को क्या मारना जस्सी मर तो हम उसी दिन गए थे जब हमारे इन हाथो से हमारे भाई, हमारे दोस्त अर्जुन का खून हुआ था सांसे उसकी टूटी थी पर प्राण हमारे छुटे थे हम तो उसी दिन मर गए थे जब अर्जुन की दी हुई जिम्मेदारी को नहीं निभा पाये थे बस चल फिर रहे थे क्योंकि मेनका के रूप में एक लौ थी पर आज वो भी बुझा दी इस कुंदन ने अब क्या जीना क्या मारना 

मैं- मैंने माँ को नहीं मारा बापू सा, उन्होंने खुद अपनी जान दी जब आप यहाँ पहुचे तो मैं बस कोशिश कर रहा था 

राणाजी चुप रहे एक शब्द नहीं बोले 

भाभी- सारी उम्र आप मेनका के लिए लड़ते रहे दुनिया से भागते रहे अपने आप से मेनका को तो पा लिया पर कभी सोचा नहीं की आपकी और मेनका की एक बेटी थी क्या उसकी याद नहीं आयी आपको , कैसे जिन्दा रही होगी वो या मर गयी पर आपको क्या आपको तो बस अपनी शर्तों पे जीना था 

राणाजी- तुम्हे कैसे पता की मेरी और मेनका की एक बेटी थी 

भाभी- अब क्या फर्क पड़ता है राणा हुकुम सिंह 

राणाजी- फर्क पड़ता है आजतक , आजतक उसकी तलाश में हु मैं मेरी आँखे आज भी तरस रही है उसको देखने की पर वो न जाने कहा किस हाल में है 

भाभी- एक कहावत है राणाजी की जो जैसा बोता है वैसा ही काटता है, कभी आपने सोचा की आखिर मेरी और कामिनी की दुश्मनी का क्या राज़ है क्यों मैं उससे बस नफरत करती हूं क्यों

राणाजी कुछ नहीं बोले

भाभी- पता नहीं मैंने क्या कर्म किये थे जो पद्मिनी जैसा संरक्षक मिला मुझे, जानते हो उसने मेरे लिए जीने की व्यवस्था की यहाँ तक त्रिलोक जो को मुझे गोद दिया ताकी मैं चैन से जी सकु,और फिर एक दिन मैं देवगढ़ आ गयी 

और फिर जो कुछ आपने मेरे साथ किया सिर्फ नफरत की मैंने आपसे इस घर में मौजूद हर इंसान से सिवाय माँ सा के जिन्होंने अपनी सगी बेटी कविता से भी ज्यादा मेरा मान रखा क्योंकि वो जान गयी थी वो जान गयी थी

राणाजी - क्या 

भाभी- वही जो हवस में अँधा एक इंसान नहीं समझ पाया
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04-27-2019, 12:55 PM,
RE: Antarvasna kahani नजर का खोट
भाभी- राणा हुकुम सिंघ आज आपके चेहरे पर जो ये नकाब है इसको उतार दूँगी मैं और ऐसे तार तार करुँगी की आप तो क्या कोई और भी किसी मजलूम पर अपनी मर्दानगी साबित नहीं करेगा आज के बाद कोई ठाकुर किसी औरत के मांस को नहीं नोचेगा

ठाकुर हुकुम सिंह जिसकी वीरता के चर्चे दूर दूर तक है, जिसकी जुबान की मिसाले दी जाती है जो समाज का ठेकेदार बना हुआ है जो न्यायकर्ता है वो ख़ुद किस कीचड में डूबा हुआ है आज सारी दुनिया जानेगी आज सारी दुनिया जानेगी

राणाजी- चुप कर कुतिया औकात से ज्यादा भौंक रही है

भाभी- किस औकात की बाय करते हो कपडे उतरने के बाद हम सब नंगे ही तो हो जाते है ,है ना, तो मेरे सवाल का जवाब नहीं दिया की आखिर मेनका के दीवाने ने अपनी बेटी को ढूंढने की कोशिश क्यों ना की

राणाजी- हम आज तक उसको तलाश कर रहे है जस्सी, पर तुम्हे इतनी दिलचस्पी क्यों है 

भाभी- क्या फर्क पड़ता है राणाजी , आपको तो बस जिस्म चाहिए अपने नीचे चाहे फिर मेरा हो या कविता का है ना, राणाजी

ये क्या कहा भाभी ने कविता के साथ राणाजी नहीं ऐसा नहीं हो सकता नहीं हो सकता मेरी बहन के साथ राणाजी पर वो उनकी बेटी भी तो थी उनका अपना खून, नहीं भाभी नहीं , पर भाभी ने ऐसा कहा तो क्यों कहा

"तड़ाक" अगले ही पल भाभी के गाल पर राणाजी का पंजा छप गया था मैंने भाभी को पीछे किया और खुद उनके और राणाजी के बीच आ गया जीजी के साथ क्या हुआ क्या नहीं अब शायद जानने का वक़्त आ गया था 

मैं- क्या हुआ था जीजी के साथ क्या किया आपने मैं पूछता हूं पूछता हूं मैं 

मेरी आँखों के अचानक ही खून उतर आया था भाभी के शब्द मेरे कानों में पिघले शीशे की तरह घूम रहे थे मुझे आभास भी न हुआ की कब मैंने राणाजी का गिरेबां पकड़ लिया, और शायद उन्होंने भी ये एहसास था


ठाकुर हुकुम सिंह जिनका अहंकार, जिनका गुरुर उनके कद से भी ऊँचा था जब उन्होंने महसूस किया कि किसी के हाथ उनके गिरेबां तक है उसी पल जैसे टूट गए वो , चुपचाप चलकर वो सीढ़ियों पर बैठ गए अपनी आँखों में छलक आये आंसुओ को पोंछा और बोले-
जस्सी वो मेरी गलती नहीं थी वो बस एक हादसा था 

भाभी- तो क्या हादसा कुंदन के साथ नहीं हो सकता किस आधार पर इसे कामिनी का कातिल समझ लिया और कैसी नफरत अपने खून से जो उसे पानी की तरह बहाते आ रहे हो

राणाजी-क्या लगता है तुम्हे जस्सी और क्या लगता है कुंदन की तुम लोग कोई सूरमा हो कोई बहुत बड़े जासूस हो और खासकर तुम जस्सी क्या लगता है की जिन सुरागों की वजह से तुम सब कुछ जान पायी वहाँ तक तुम अपने आप पहुच गयी नहीं जस्सी नहीं 

ऐसा इसलिए हुआ की हम चाहते थे ,हम ठाकुर हुकुम सिंह खुद ऐसा चाहते थे जानती हो क्यों क्योंकि हम उकता गए थे इस वीराने से तंग आ चुके थे हम इस अकेलेपन से कहने को तो क्या नहीं हमारे पास सब कुछ है ऐसी कोई चाहत नहीं जिसे हम पूरी न कर सके पर फिर भी ये जो अकेलापन है ना ये जो अधूरापन है इसे तुम लोग नहीं समझोगे कभी नहीं समझोगे

मैं-मुझे इस वक़्त कोई बकवास नहीं सुननी मुझे अगर कोई चाहत है तो अपने बहन को देखने की उसे अपने सीने से लगाने की एक पिता और पुत्र का रिश्ता आज खत्म हो गया है और एक भाई आज अपनी बहन का पता लेकर रहेगा

राणाजी- जानते हो कुंदन जब भी हम तुम्हे देखते है दिल के किसी कोने में एक अहसास होता है कभी कभी हम तुम्हारे अंदर उस हुकुम सिंह को भी देखते है जो हम नहीं बन सके,साथ ही मुझे ये भी लगता है की जब आज इस भयानक रात में तुम पर हम पर जूनून सवार है तो तुम्हे आज एक कहानी सुननी चाहिए

हाँ तो जस्सी, क्या कहा था तुमने की हमे समझना चाहिए था की आखिर क्यों तुम मेनका से इतनी नफरत करती हो तो मैं तुम्हे बताता हूं की तुम्हारे पास हमसे नफरत करने का वाजिब कारण है पर मेनका से नहीं 

जस्सी, तुम सोचती हो की तुम्हे उस घर की चार दिवारी में ही सब मालूम हो गया कभी सोचा नहीं की बिना किसी विशेष परिश्रम के एक के बाद एक राज़ तुम जानती गयी जबकि हमे एक उम्र लग गयी संभलने में

नहीं जस्सी ये सब तुम्हारी मेहनत का नतीजा नहीं बल्कि सिर्फ इसलिए हुआ की क्योंकि हम चाहते थे हम 

भाभी हैरान होकर उनकी तरफ देखती रही

राणाजी- और तुम कुंदन , तुम्हे क्या लगता है की तुम मसीहां हो लोगो के लिए तुम तारणहार हो

मैं- नहीं मैं बस अपने माथे से आपके नाम को मिटाने की कोशिश कर रहा हु 

राणाजी- तो कहा तक कामयाब हुए तुम 

राणाजी की बात का कोई जवाब नहीं था मेरे पास

राणाजी- जस्सी, तो पद्मिनी ने तुम्हारे पालन पोषण की व्यवस्था की अपनी बेटी बनाकर पाला तुम्हे यहाँ तक की उस खजाने का प्रथम प्रहरी भी बनाया और तमाम चीज़े जिन पर तुम आज इतराती फिर रही हो वो सब हमारी ही इच्छा थी 

राणाजी आज हमें हैरान ही हैरान किये जा रहे थे भाभी कुछ बोलना चाहती थी पर राणाजी ने हाथ उठाकर उन्हें चुप रहने का इशारा किया और मुझसे बोले- और तुम कुंदन तुम हमेशा सोचते रहे की तुम्हे आखिर इंद्र जैसी सुविधाएं क्यों नहीं मिली

मैं- नहीं मैंने ऐसा कभी नहीं सोचा 

राणाजी- तब तो हमे माफ़ करो हमारी गलतफहमी के लिए , तो जस्सी हम तुम्हारे गुनहगार आज से नहीं बल्कि उसी समय से है जब तुम्हारा जन्म हुआ था 

भाभी- तो फिर क्यों, क्यों किया ऐसा मेरे साथ क्यों रौंद दिया उस फूल को जिसे खुद अपने बगीचे में लगाया था क्यों 

राणाजी- हर इंसान में कुछ कमियां होती है हमारी भी एक कमी है और हम चाह कर भी अपने कुछ कर्मो का प्रायश्चित नहीं कर सकते तुमने कहा कि तुम हमे ऐसी सजा दोगी , जस्सी हम तो पल पल ही तिल तिल करके मर रहे है तुम क्या हमें सजा दोगी हमने तो खुद अपनी नियति चुनी है


 
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04-27-2019, 12:55 PM,
RE: Antarvasna kahani नजर का खोट
भाभी- कितना झूठ बोलेंगे , कितने गर्त में और गिरेंगे आज जब बाज़ी हाथ से निकलते देखी तो ये मज़बूरी का चोला ओढ़ लिया, राणा हुकुम सिंघ जो बस कुछ देर पहले अपने गुरुर में अपना ही खून बहाने को आतुर था अब देखो , इतनी जल्दी तो कोई रंडी भी ग्राहक नहीं बदलती जितनी जल्दी आप एक मगरूर से मजलूम हो गए,

आपको क्या लगा इन चिकनी चुपड़ी बातो में आ जायेंगे हम नहीं सरकार नहीं, जरा अपनी आँखे खोलिये और देखिये कुंदन को आप बता सकते है कि क्या कसूर है इसका नहीं आप नहीं बता सकते मैं बताती हु,

आपने कभी अपनी ज़िंदगी में परिवार, रिश्तो नातो को कभी तवज्जो नहीं दी आपने केवल लोगो को खिलोने से ज्यादा इज्जत नहीं दी दिल किया तो खेला दिल किया तो नया खिलौना ले लिया ,

माना बहुत प्रेम किया मेनका से, पर फिर क्यों नहीं उसको लाये समाज के आगे बीवी बनाकर सारी उम्र वो परदे के पीछे रही रखैल बन कर अब ऐसे मत देखिये आज जस्सी रती भर भी नहीं डरेगी आपसे,

ये कैसा प्यार था मेनका से जो एक बंजारन को हवेली की रानी न बना सके, अजी छोड़िये बात तो तब शुरू हुई थी जब भरी पंचायत में आपके घमण्ड को आपके बेटे ने नहीं माना, कितनी मुश्किलें पैदा की आपने इसके लिए जीना हराम कर दिया,

पर दाद देनी पड़ेगी इसकी, अपनी मेहनत से उस जमीन पर फसल लगा दी जहा आप एक दाना नहीं बो पाये थे असल में आपकी आँखों में जलन देखती थी मैं कुंदन के लिए, और होती भी क्यों न बरसो बाद राणाजी को कोई टक्कर दे रहा था और जब अपना ही खून बगावत पर हो तो मजा कुछ और ही होता है ना,

खैर कुंदन की बात बाद में पहले आपकी और मेरी बात हो जाये, आपकी सारी बाते सच है हो सकता है की आपको ये पता हो की पद्मिनी ने मेरे लिए बहुत कुछ किया है और जब आपको पता चला की जिस खजाने के लिए आपने इतने पापड़ बेले थे उस तक पहुचने का रास्ता मैं हु तो जुगत लगा कर मुझे अपने घर ले आये,

पर किया क्या मेरे साथ, जब इतने दिन मेरी तरफ आँख उठा कर न देखा तो फिर क्यों सोच बदल गयी, ये सब तभी क्यों शुरू हुआ जब कुंदन ने आपके खिलाफ सर उठाना शुरू किया तभी क्यों 

मैं आँखे फाड़े बस उनकी बाते सुन रहा था 

भाभी- कुंदन, तुम हमेशा पूछते थे ना की मैं राणाजी और तुम्हारे बीच हमेशा इनका चुनाव क्यों करती थी बार बार तुम जिस मज़बूरी को पूछते थे आज मैं बताती हु की वो मज़बूरी क्या थी, वो मज़बूरी तुम थे बोलते बोलते भाभी को आवाज रुंध गयी 

भाभी- हां कुंदन इस इंसान को मालूम था कि मैं किस हद तक तुमसे जुडी हु इस घर में माँ सा के बाद बस तुम ही तो थे जो मेरे अपने थे अपनी खुंदक मिटाने के लिए इन्होंने मेरा इस्तेमाल किया और इस डर से की कही ये तुम्हे ना मरवा दे मै सोती रही इनके साथ 

भाभी की आँखों से गिरते आंसू मेरे कलेजे को चीर रहे थे मुझे आज सच में इतना गुस्सा था कि राणाजी के दो टुकड़े कर दू, पर भाभी ने मुझे रोका

भाभी- कुंदन इस इंसान की सबसे बड़ी सजा ये ही होगी की ये जिए , 


मैं- आपको एक बार तो मुझे बताना चाहिए था मैं पागलो के तरह हर बार पूछता रहा पर आप चुप रही मेरे लिए ये बलिदान करने की जरूरत नहीं थी नहीं थी 

भाभी- जरूरत थी, कुंदन क्योंकि जो इंसान जब अपनी बेटी ले साथ इतनी खौफनाक हरकत कर सकता था उसके लिए मेनका की बेटी ला जिस्म क्या था कुछ भी नहीं, जिस इंसान को पता ही नहीं की रिश्ते होते क्या है उसके लिए हर औरत बस एक जिस्म है साधन है अपनी आग बुझाने का और फिर जिस्म तो जिस्म होता है चाहे जायज बेटी का हो या फिर नाजायज बेटी का 

मैं- राणाजी घिन्न आती है मुझे जो आपकी वजह से मैं इस दुनिया में आया, काश मैं दिखा पाता किस हद तक दर्द उबल रहा है मेरे दिल में, दिल तो करता है अभी जान से मार दू पर जस्सी भाभी, कहते कहते मेरे शब्द लड़खड़ा गए की अब जस्सी को क्या काहू 
भाभी या बहन साला रिश्ते नातो का कोई मोल ही ना बचा था

मैं- जस्सी, ये आपका गुनहगार है आप इसे सजा देंगी 

राणाजी किसी बूत की तरह सीढियो पर बैठे थे शांत किसी सागर की तरह जैसे कुछ विचार कर रहे हो भाभी ने एक नजर उनकी ओर देखा और फिर मेरी बाहं पकड़ते हुए मुझे अपने साथ दरवाजे की तरफ ले चली जल्दी ही वहाँ बस मेनका की लाश और राणाजी ही रह गए 

मेरी चोटो का दर्द न जाने कहा गुम हो गया था पर दिल आज बुरी तरह से जल रहा था जस्सी गाड़ी चला रही थी जल्दी ही अर्जुनगढ़ को पार करते हुए हम कच्चे रस्ते पर उतर गए मेरे मन में हज़ार विचार थे हज़ार नयी मुश्किलें आ जो खड़ी थी 

मैं- तो आप सब जानती थी, इसीलिए आप मुझे हमेशा रोक देती थी 

जस्सी- इस बारे में हम कल बात करेंगे

मैं- ठीक है अभी मुझे खेत पर छोड़ दो 

जस्सी- पागल हुए हो क्या, इस हालत में नहीं छोड़ सकती तुम्हे, तुम मेरे साथ चल रहे हो 

मैं- नहीं, अभी नहीं आप मुझे बस वहाँ छोड़ दो 

जस्सी- इतने जिद्दी क्यों हो तुम

मैं- इसके बारे में हम कल बात करेंगे 

कुछ देर बाद बड़े अनमने ढंग से जस्सी ने मुझे खेत में बने कमरे में छोड़ा और न चाहते हुए भी वहां से चली गयी , मैंने जब ये तस्सली कर ली की जस्सी चली गयी है तो मैं लड़खड़ाते हुए उस तरफ चल दिया जहा पूजा मेरा इंतज़ार कर रही थी

मैं बहुत थक गया था अपने दर्द की परवाह नहीं थी मुझे पर सीने में धड़कता मेरा मासूम दिल कुछ कह रहा था जिसे सुनने की हिम्मत अब नहीं थी मेरी आँखों में जो हसरत थी अपनी जीजी को देखने की वो दम तोड़ चुकी थी , मुझे उनके जिन्दा होने की उम्मीद नहीं थी,

पर जस्सी का ख्याल मुझे चैन नहीं लेने दे रहा था वो भाभी नहीं बहन थी मेरी, इस अकाट्य सत्य ने मेरे हर विचार को बदल दिया था और मुझे अपनी नजरो में इतना गिरा दिया था की अब उठ पाना नामुमकिन था

आँखों में कुछ आंसू लिए मैं उस तरफ चले जा रहा था जहाँ पूजा मुझे मिलनी थी ,मैं उसी पेड़ के पास पहुंचा जहाँ मेरी पहली मुलाकात पूजा से हुई थी उसी पेड़ के चबूतरे पर बैठी मेरा इंतज़ार कर रही थी वो

पूजा- कुंदन, बहुत देर लगाई आने में

मैं- आ गया मेरी जान आ गया अब तू देर ना कर सबसे पहले अपना व्रत खोल

पूजा- हां, कुंदन

उसने एक थाली मेरी तरफ की मैंने गिलास से उसे पानी पिलाया कुछ घूंट पीने के बाद वो बोली- बस कुंदन 
मैंने गिलास रख दिया और उसका हाथ अपने हाथ में लिया 

मैं- पूजा एक बात बतानी थी तुझे 

वो- हां कुंदन बता 

मैं उसे पूरी बात बताना चाहता था पर मेरे शब्द लड़खड़ा रहे थे पूजा समझ गयी और बोली- क्या हुआ सब ठीक तो है 

मैं-कुछ देर तेरी गोद में सर रख कर लेट जाऊ 

पूजा- हां 

मैं उसकी गोद में लेट गया वो मेरे सर पर हाथ फेरने लगी तभी उसका हाथ मेरे ज़ख्म पर लगा 

पूजा- ये गीला सा क्या है 

मैं- चोट लगी है खून है 

पूजा- किसकी मजाल मेरे कुंदन पर हाथ उठा सके 

मैं- शांत हो जा , मैं बहुत थका हुआ हूं मेरी जान थोड़ी देर तेरे आँचल तले सुकून लेने दे

फिर वो कुछ न बोली बस मेरे सर को सहलाती रही जब बहुत देर हुई तो बोली- चल घर चल 

उसने गाड़ी स्टार्ट की और हम उसके घर आ गए जब उसने बल्ब की रौशनी में मेरा हाल देखा तो एक बार फिर उसकी आँखों में गुस्सा तैरने लगा कई देर तक वो चिल्लाती रही झल्लाती रही और मैंने फिर उसे पूरी बात बताई

बहुत ध्यान से उसने पूरी बात सुनी और बोली- तेरे पिता और भाभी दोनों ही बहुत बड़ा खेल खेल रहे है दोनों का व्यवहार एक सा है वैसे तो हमेशा आक्रामक रहते है पर मौका मिलते ही भावनात्मक फायदा लेने से नहीं चूकते,
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04-27-2019, 12:55 PM,
RE: Antarvasna kahani नजर का खोट
मैं मेनका के बारे में ज्यादा नहीं जानती और जस्सी के बारे में भी उतना ही जानती हूं जितना तू , पर माँ ने मेनका को सदा बहन माना था तो ये मुमकिन है की जस्सी के लिए उन्होंने वो सब किया हो, जो की सच भी है जैसा की तुमने खुद देखा अगर माँ उसको खजाने की प्रथम प्रहरी बना सकती है तो पूरी तरह जस्सी की बात सच है सिवाय कुछ बिंदुओं के

मैं- राणाजी का भी ऐसा ही है

पूजा- पर तुम एक बात भूल रहे वो तुम्हारी माँ को, तुम्हारी माँ को भी कुछ ना कुछ जरूर ऐसा मालूम होगा जो तुम्हारे काम आ सके ,बाकी न जस्सी पे भरोसा करो न राणाजी पे

मैं- बात सही है पर देखो हम फिर से विचार करते है कोई सुराग ऐसा जरूर मिलेगा जो राह आसान करेगा

पूजा- मेनका के बारे में तुमने बताया था कि उसके बच्चे विदेश में है उनका अता पता कुछ मिले तो

मैं- तो चलो अनपरा 

वो- अभी 

मैं- अभी नहीं कल सुबह मैं जस्सी से मिलूंगा उसके बाद 

पूजा- हो ना हो इस खेल में जस्सी और राणाजी की पूरी मिलीभगत है 

मैं- कैसे 

पूजा- जस्सी की वो बात याद करो जब उसने कहा था की कैसे शादी के बाद उसे रौंद दिया था और अब उसने कहा कि तुम्हे ढाल बना के राणाजी ने उसे मजबूर किया ये विरोधाभास क्यों, क्योंकि कुछ तो झोल है , माना जस्सी तुम पर जान छिड़कती है पर तुम्हारे गिड़गिड़ाने पर भी उसने राणाजी का हाथ नहीं छोड़ा इसके पीछे क्या कारण रहा होगा कोई तो बहुत ही मजबूत बात है

मैं- यही बात मुझे खटक रही है, दिल में तीर की तरह चुभ रही है

पूजा- कल अनपरा से कुछ मिल जाये उसके बाद तुम अपनी माँ से मदद लो कुछ तो बात बनेगी ही


बातो बातो में रात कब गुजर गयी पर सुबह सुबह ही मैंने पूजा को एक काम करने को कहा और जस्सी से मिलने घर चल दिया घर पर कोई हलचल नहीं थी पर जस्सी की गाड़ी बाहर ही थी 

मैं अंदर गया जस्सी ने मुझे देखा और कुछ देर में मेरे लिए चाय ले आयी 

मैं- मुझे आपसे कुछ बात करनी थी 

वो- मुझे भी, तो जैसे तुम्हे मेरे बारे में सब मालूम हो गया है , नहीं तुम्हे शर्मिंदा होने की जरूरत नहीं असल में अब हमारे बीच कुछ भी रिश्ता हो फर्क नहीं पड़ता 

मैं- देखो मैं कुछ सवाल ही करूँगा और इस बार सब सच बोलना 

जस्सी-हु

मैं- आपका और भाई का बिस्तर पर कैसा रिश्ता था 

जस्सी- क्या मतलब 

मैं- क्या वो आपको संतुष्ट कर पाते थे

जस्सी- कुंदन ये मेरा निजी विषय है 

मैं- नहीं, हम तुम नंगे है तो थोड़ा और नँगा होने में क्या जाता है

जस्सी- मुद्दे पे आओ

मैं- ठीक है, इतना बता दो एक बार आपने बोला की आपको शादी के बाद ही राणाजी ने चोद दिया था तो फिर कल ये क्यों कहा की मुझे ढाल बना कर उन्होंने आपको चोदा

जस्सी- कुंदन, अब वो समय नहीं रहा की मैं खुद को तुम्हारी नजरो में पाक साफ रखू, देखो ये बात सोलह आने सच है कि मेरी शादी के कुछ महीनो बाद ही राणाजी ने मुझे चोद दिया था, इन्दर ड्यूटी पे था और तुम आज जितने समझदार नहीं थे और मैं तब राणाजी का विरोध करने की स्तिथि में नहीं थी,

पर जैसे जैसे तुम मेरे करीब आये मुझमे कुछ हौसला आया मैं मना करने लगी पर फिर उन्होंने एक दिन स्पस्ट तुम्हे मेरे बीच रख दिया , पर मैं उससे पहले ये जान चुकी थी की मैं उनकी बेटी हु

मैं- झूठ लग रही है आपकी बात

जस्सी-तो मैं ऐसा कह दू की मुझे मजा आता था तुम्हारे बाप से चुदने में तो यकीन होगा 

मैं- यहाँ रिश्तो की बात नहीं बस औरत मर्द के सम्बन्धो की है तो मजा तो आता होगा न

जस्सी- तो तुम भी चोद के देख लो मजा तो तब भी आ जायेगा है, ना तुम्हे भी तो भाभी के जिस्म की चाहत थी 

मैं-तो बता क्यों नहीं देती की क्यों

भाभी- पहले मेरी मज़बूरी थी क्योंकि मैं चाह कर भी कुछ नहीं कर सकती थी और न बाद में कुछ कर पायी 

मैं- ये पता होने के बाद भी

जस्सी- कुंदन अब सच में फर्क नहीं पड़ता 

मैं- हां क्योंकि आप जानती थी की इंद्र आपको माँ बनने का सुख नहीं दे सकता फौज में लगी एक चोट से वो पिता नहीं बन सकता था 

जस्सी- तो तुम्हे मालूम हो गया 

मैं- हां, और शायद माँ बनने के लिए आपने भी राणाजी को अपनी नियति मान लिया

जस्सी- क्या तुम्हे याद नहीं हमने हमेशा एक तरह से तुम्हे अपनी औलाद ही समझा है 

मैं- मानता हूं पर सब रिश्ते थोड़े उलझे हुए है ना

जस्सी- हां पर हर रिश्ता नहीं क्योंकि मैं समझ चुकी हूं की किसी रिश्ते का कोई मोल नहीं होता दुनिया में कुछ है तो बस जिस्मो का रिश्ता

मैं- तो आप दोनों के बीच इन्दर दिवार था जिसे हटा दिया

जस्सी- सचमुच, क्या ऐसा करने की जरूरत थी वो भी तब जब साल में नो महीने इंद्र घर से बाहर होता था हद करते हो कुंदन

"जस्सी ठीक कह रही है, इंद्र की मौत के पीछे वो और राणाजी नहीं बल्कि हम है, हमने मारा है उसे"


अचानक ही हम दोनों की आँखे दरवाजे की तरफ हो गयी जहाँ से माँ चलते हुए अंदर आ रही थी 

माँ- ऐसे क्या देख रहे हो इन्द्र को हमने मारा है और ऐसा करने की हमारे पास एक बेहद ठोस वजह है 

पिछले कुछ समय से मुझे तो आदत हो गयी थी झटके खाने की तो ये सुनकर कुछ खास फर्क नहीं पड़ा पर जानने की इच्छा जरूर हुई की क्यों 

जस्सी- नहीं, माँ नहीं, आपको कुछ कहने की जरूरत नहीं है मैं हु ना मैं देखती हूं 

माँ- शांत जस्सी शांत , अब तुम्हे कुछ भी कहने की जरुरत नहीं है तुमने बहुत कुछ सहा है इस घर के लिए पर अब बस बहुत हुआ ,पर हम तुम्हे अब और इन नालायको की नजरों में गिरने की जरूरत नहीं है तुम्हारे त्याग को ये वहशी कभी नहीं समझ पाएंगे 

मैं- क्या कह रही है आप 

माँ- तुम बस इतना जान लो की इंद्र को मैंने मारा जिसे अपनी कोख से जन्म दिया उसे अपने ही हाथो से मारा वो बम मैंने ही लगाया था 

मैं- पर क्यों माँ क्यों

माँ- कुंदन क्योंकि उस दिन वो कुछ ऐसा करने वाला था जिससे दुनिया बदल जाती और तुम दोनों भाइयो की तलवारे एक दूसरे के रक्त की प्यासी हो जाती, इंद्र की बुरी नजर उस लड़की पर थी जिसे तुम प्रेम करते हो ऐसे देखने की जरुरत नहीं हमे, हम उसी लड़की की बात कर रहे है जो तुम्हारे साथ ही पढ़ती है माँ है तुम्हारी इतना तो हमे भी मालूम है की औलाद क्या करती फिरती है 

तो इंद्र अगर उसके सम्मान को ठेस पहुँचाता तो फिर अनर्थ होता और शायद उसके पाप का घड़ा भी भर गया था तो हमे ये करना पड़ा और ये कदम हमे बरसो पहले ही उठा लेना चाहिए था 

मैंने एक बार माँ सा की ओर देखा और फिर जस्सी की तरफ 

माँ- जानते हो जिस जस्सी पर तुम आरोप पे आरोप लगाए जा रहे हो उसे कोई जरूरत नहीं थी तुम्हारे बाप के साथ सोने की उसकी रखैल बनने की पर उसने ये किया ताकि तुम्हारी बहन कविता की सांस चलती रहे 

जस्सी- माँ आप कुछ मत बोलिये 

माँ सा- आज मैं चुप नहीं रहूंगी जस्सी, बोलने दे मुझे बल्कि ये हिम्मत मुझे तभी दिखानी चाहिए थी जब उस नीच ने जो बदकिस्मती से मेरा पति भी है ये खौफनाक खेल की शुरुआत की थी पर मैं चुप रह गयी अपमान का घूंट पि गयी और ज़िंदा रह गयी बेशर्मो की तरह 

कुंदन तेरी बहन कही विदेश नहीं गयी बल्कि वो राणाजी के कब्ज़े में है अपने उस अपराध की सजा भुगत रही है जो खुद राणाजी कर चुके है 

मैं- क्या 

माँ सा- प्रेम 

मेरा तो माथा ही घूम गया पर दिल में सुकून भी हुआ की जीजी जीवित तो है कमसेकम 

माँ- ये तब की बात है जब जस्सी नयी नयी ब्याह के आयी थी , कविता का किसी लड़के से प्रेम की बात राणाजी को मालूम हुई तो उन्होंने उस लड़के के पूरे परिवार को मार दिया पर कविता के पेट में उसके प्यार की निशानी थी तहखाने में राणाजी कविता को मार ही देना चाहते पर न जाने कैसे जस्सी वहां पहुच गयी और शराब के नशे में चूर राणाजी से विनती की कविता को बक्श देने की और बदले में उस मक्कार ने शर्त रखी

तबसे लेकर आज तक जस्सी घुट घुट के मर रही है ताकि कविता की सांस चले वो ज़िंदा रहे मुझसे तो लाख गुना जस्सी भली है जिसने सौतेले रिश्तो के लिए खुद को दांव पे लगा दिया और एक मैं हु जो अपनी सगी बेटी के लिए कुछ न कर सकी क्योंकि इस चारदीवारी में औरतों और जूतियों में कोई ज्यादा फर्क नहीं है 

पर आज मैं ये ऐलान करती हूं की इसी वक़्त से हुकुम सिंह के लिए इस हवेली के दरवाजे हमेशा हमेशा के लिए बंद हो गए 
माँ सा ने आखिर बता ही दिया था की क्यों जस्सी हर बार राणाजी को चुनती थी मैंने बस उसके पैर पकड़ लिए और अपना सर झुका कर उसके पैरों को चूम लिया शायद यही मेरा प्रयाश्चित था 

मैं- पर जीजी कहा है मैं कुछ भी करके उन्हें छुड़ा लूंगा 

जस्सी- इसका पता बस राणाजी को है 

मैं- जीजी का पता मैं उगलवा के रहूँगा उनसे चाहे कुछ भी करना पड़ेगा

जस्सी- तुम नहीं ये काम मैं करुँगी क्योंकि ये काम आसान नहीं है राणाजी हद से ज्यादा नफरत करते है कविता से और उन्होंने ऐसा इंतज़ाम किया होगा की वो न जी सके न मर सके

मैं- हर इंतज़ाम की ऐसी तैसी कर दूंगा मैं बाप बेटे का रिश्ता भूल गया हूं मैं अगर मेरी बहन के लिए बाप का सर भी काटना पड़े तो कुंदन के हाथ कांपेंगे नहीं, जितना दर्द मेरी बहन ने सहा है जितनी चीखे उसके हल्क से निकली है ब्याज समेत हुकुम सिंह से वसुलूंगा मैं ,जा रहा हु और वादा करता हु जीजी के साथ ही आऊंगा

आज जितनी जस्सी के लिए मेरी नजरो में जितनी इज्जत बढ़ गयी थी उतना ही क्रोध अपने पिता के लिए था सांझ तक तक़रीबन मैं हर जगह जहाँ राणाजी के होने की उम्मीद थी वहां गया पर वो न मिला 

एक तो मैं गुस्से में भन्नाया हुआ था और ऊपर से राणाजी का कही अता पता नहीं था पल पल बेचैनी बढ़ती जा रही थी हार कर मैं पूजा के घर गया तो ताला लगा था पर कुछ ही देर में वो आ गयी मैंने उसे पूरी बात बताई 

पूजा- बिना वक़्त गवाये हमे अनपरा चलना चाहिए 

मैं- पहले राणाजी को तलाश किया जाये 

पूजा- चलो तो सही क्या पता वहां वो मिल जाये 

जल्दी ही गाड़ी अनपरा गाँव की तरफ बढ़ रही थी 

पूजा- मैंने पता कर लिया चन्दा का इन सब से कुछ लेना देना नहीं है वो अपने खेतों और घर में ही व्यस्त है एक दो बार राणाजी से मिली है पर बाकि साफ़ है 

मैं- तो जब मेनका नहीं रही राणाजी किस पर सबसे ज्यादा भरोसा कर सकते है 

पूजा-शायद खुद पर
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04-27-2019, 12:56 PM,
RE: Antarvasna kahani नजर का खोट
मैं- तो जब मेनका नहीं रही राणाजी किस पर सबसे ज्यादा भरोसा कर सकते है 

पूजा-शायद खुद पर
पूजा- हाँ, मेनका के बाद कोई भी ऐसा नहीं जिस पर वो विश्वास करेंगे 

मैं- बात सही है पर उन्होंने भी ये बात सोच ली होगी की सबसे पहले हम अनपरा जायेंगे 

पूजा- तो क्या न जाये 

मैं- चलना तो होगा ही क्योंकि कुछ ना कुछ तो मिलेगा हमे

अनपरा पहुचने तक बहुत बेचैनी सी रही मन में पर जब वहां पहुचे तो उस हवेली का दरवाजा खुला था मैं और पूजा अंदर गए पर वहां कोई नहीं था हमने मुख्य द्वार को बंद किया और तलाशी लेने लगे और जब मेरी नजर उस शेल्फ पर पड़ी जो पूरी तरह किताबो से भरी थी 

मुझे ये अटपटा सा लगा क्योंकि कौन इतनी किताबो में दिलचस्पी लेगा जबकि जिंदगी की डोर उलझी हो मैंने कुछ किताबो को हटाया और मुझे एक दरवाजा दिखा जिस पर एक जंग खाया ताला था कोई खास देर न लगी उसे तोड़ने में और जैसे ही अंदर गया आँखे खुली रह गयी 

इतना धन इतना सोना आँखे उस पीले पन से चुंधिया गयी मेरी ,

पूजा- बाप रे ये तो ये तो 

मैं- असली सोना है

पूजा- जानती हूं कुंदन पर यहाँ कैसे

मैं- उनका ही होगा 

पूजा- ये तो मै भी जानती हूं पर गौर से देख जरा ये जेवर ये मुर्तिया ये झालर कुछ अजीब नहीं है क्या 

मैं- घरेलु सा नहीं लगता 

पूजा- घर में किसी के पास इतना सोना होता नहीं होगा 

मैं- अपने पुरखों के पास होगा 

पूजा- होगा, पर ऐसा नहीं जरा इस मूर्ति को देख एक दिव्यता सी लगती है जैसे किसी मंदिर की मूर्ति हो ये 

मैं- पूजा मंदिर की मूर्ति यहाँ कैसे आएगी 

पूजा-खैर, जाने दे वैसे ही तेरे बाप ने जान को इतना जंजाल लगाया हुआ है अब उनसे ही पूछ लेना इस सोने के बारे में भी

एक कमरे के कुछ तस्वीरें थी राणाजी और मेनका की पर उसके अलावा पूरी हवेली में कुछ भी ऐसा न मिला जिससे कुछ पता चले, तलाशी लेते लेते रात होने को आयी थी पर हाथ खाली थे

पूजा- लगता नहीं यहाँ कुछ है कविता से सम्बन्धित

मैं- अब क्या करूँ कहा ढूंढू 

पूजा- हौंसला रख सब ठीक होगा वैसे राणाजी किसकी सबसे ज्यादा परवाह किसकी करते है 

मैं- मेनका की 

पूजा- और वो रही नहीं जैसा की तुमने बताया राणाजी कितने उग्र हो गए और फिर एकदम शांत जबकि उस स्तिथि में कोई इंसान शांत नहीं हो सकता 

मैं- कहना क्या चाहती हो 

पूजा- देखो मेरा बस ख्याल है की ये सब अभिनय हो एक नाटक हो हमे वो सब दिखाने का जो हम देखना चाहते है

मैं- पूजा साफ़ साफ़ बोल 

पूजा- देख जब हम यहाँ आये तो हर चीज़ खुली है मतलब गहने पैसे कपडे और यहाँ कोई भी नहीं है मेरा मतलब कोई नौकर नौकरानी तो होता इतनी बड़ी हवेली कोई कैसे खुली छोड़ देगा 

पूजा की बात में दम था पर मैं उसके आगे ये नहीं बताना चाहता था की यहाँ एक नौकरानी थी जब मैं पहली बार आया था 

मैं- अभी बस ध्यान उस काम पर रख जिसके लिए आये है

पूजा- न जाने क्यों जस्सी फिट नहीं होती सारे मामले में

मैं- बताया न तुझे 

पूजा- देख, जब कविता के लिए जस्सी राणाजी के पास जा रही थी तो वो क्या ऐसा नहीं कर सकती थी की राणाजी को बोलती की कविता की घर ले आये बदले में वो , वो सब करती रहेगी 

मैं- राणाजी घाघ है 

पूजा- जानती हूं तो इस बात का क्या सबूत है कि कविता जिन्दा ही होगी 

मैं- मेरा हौंसला मत तोड़ 

वो- विरोधाभास कुंदन राणाजी के चरित्र का शायद एक पक्ष ऐसा है जो हमसे छूट रहा है कोई ऐसी बात मतलब तूने बताया था न की उस तहखाने में तुम सब की तस्वीरें थी एक क्रम में परिवार के सब लोग एक साथ 

मैं- वहां, एक चीज़ अजीब थी 

वो- क्या 

मैं- वहां, तेरी तस्वीर भी थी 

पूजा- मेरी तस्वीर, पर कैसे ऐसा कैसे हो सकता है इसका मतलब राणाजी जानते है मेरे बारे में 

मैं- पर किस तरह से 

पूजा- मुझे क्या मालूम 

मैं- ऐसी एक डोर है जिससे हम सब बंधे है पर उद्देश्य क्या है ये कोई नहीं जानता 

पूजा-वास्तव में मेरी तस्वीर का वहां होना अचंभित करता है कुंदन मैं एक बार वो तहखाना देखना चाहूंगी 

मैं- सारा घर ही तेरा है तू जब कहे तब 

पूजा- आज रात को 

मैं- पर उसके लिए यहाँ से वापिस मुड़ना होगा 

पूजा- हां, थोड़ी बहुत और देख लेते है फिर चलते है 

पर कुछ नहीं मिला हार गए वो अलग पर सवाल ज्यो का त्यों था की कविता है तो कहा है और किस हाल में है राणाजी ने क्या कोई अन्य गुप्त ठिकाना बनाया हुआ था या वो एक बार फिर कोई खेल रच रहे थे जिसके मोहरे हम थे या फिर ये शांति किसी आने वाले तूफ़ान से पहले की शांति थी 

मैं- एक काम कर सकती क्या 

वो- बोल तो सही 

मैं- जस्सी को धर ले 

पूजा- धर तो लूंगी पर फिर तू कहना मत की ऊपर नीचे हो गया क्योंकि वो भी शातिर है आसानी से काबू नहीं आएगी 

मैं- तुझे जो करना है कर 

पूजा- एक बात और 

मैं- क्या 

वो- बताती हु 

पूजा मेरे पास आई और हौले से अपने लरजते हुए होंठ मेरे होंठो पर रख दिए जैसे ही उसके लबो का स्वाद मुझे आया जिस्म में सुरसुराहट बढ़ गयी मेरे हाथ अपने आप उसकी कमर पर कस गए और इससे पहले की मैं उस चुम्बन को ठीक से महसूस कर पाता एक तेज चीख से पूरी हवेली गूंज गयी
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04-27-2019, 12:56 PM,
RE: Antarvasna kahani नजर का खोट
हम दोनों के कानों को तेजी से बेध रही थी वो चीख जैसे किसी को जिबह किया जा रहा हो पर हम तकरीबन पूरी हवेली को तलाश चुके थे तो ये कौन था हम दौड़ पड़े उस ओर जहां से ये चीख आ रही थी, ये चीख उस कमरे से आ रही थी जिसमे सोना भरा था 

और जैसे ही हम अंदर दाखिल हुए हमने देखा की ये मेनका की नौकरानी थी उसके शरीर पर कुछ पिघला सा पड़ा था और वो जैसे झुलस गयी थी और तभी मुझे समझ आया की ये क्या है वो बुरी तरह तड़प रही थी चीख रही थी पिघला सोना उसकी खाल को बेध रहा था 

जगह जगह छाले से हो गए थे और जैसे जैसे जहाँ जहाँ वो सूख रहा था परत सी बन रही थी स्तिथि ऐसी थी की हम चाह कर भी उसकी मदद नहीं कर पा रहे थे , वो बार बार चीख रही थी कुछ इशारा कर रही थी पर इससे पहले की हम कुछ समझ पाते उसने दम तोड़ दिया

पूजा- ये तो मर गयी

मैं- गर्म सोना 

वो- पर इतने सोने को तो किसी भट्टी में ही गर्म 

मैं- शायद ये ही तो कहना चाहती थी ये 

पूजा- सही कहा यही कही है कुछ 

कुछ ही देर में हमे सीढिया मिली जो नीचे जा रही थी कुछ अँधेरा था पर जल्दी ही रोशनी दिखी ये एक बड़ा सा कमरा था फर्श पर निशान थे सोने के तारों का शायद यही उस नौकरानी पर पिघला सोना गिर गया होगा 

पूजा- सोने को क्यों पिघलाया गया होगा 

मैं- पता नहीं 

पूजा- वो देख उधर क्या है 

उसने कुछ इशारा सा किया और हम कोने की तरफ चल पड़े वहाँ पर एक आदमकद मूर्ति खड़ी थी जिसकी पीठ मेरी तरफ थी और जब मैं उसके चेहरे की ओर गया तो मेरे होश ही उड़ गए 

"जीजी, ये जीजी की प्रतिमा है" मेरी आँखे साक्षात् जीजी को ही देख रही थी ऐसे लग रहा था की अभी ये अपनी पलके झपकायेगी और मुझे गले से लगा लेगी पर ये एक प्रतिमा थी सिर्फ प्रतिमा

पर अगले ही पल मेरा कलेजा किसी आशंका से भर गया मैंने सोचा की कही जीजी पर तो ये सोने की परत नहीं चढ़ा दी गयी हो , शायद पूजा ने मेरे मन की बात समझ ली और उसने प्रतिमा को कुछ जगह से बजाया सा और बोली- बस मूर्ति ही है ,खोखली है 

जान में जान आयी मेरी


पूजा- पर ये मूर्ति बनायीं क्यों गयी 

मैं- ऐसी मुर्तिया या तो मंदिर में स्थापित की जाती है या फिर किसी अनुष्ठान हेतु 

पूजा- क्या कहा फिर से बोल

मैं- ऐसी मुर्तिया या तो मंदिर में स्थापित की जाती है या फिर किसी अनुष्ठान में 

पूजा- पर कविता की मूर्ति मंदिर में स्थापित नहीं हो सकती प्रयोजन कुछ और होगा , बात कुछ ओर ही है पहले छुपाया हुआ सोना और अब ये ऐसी मूर्ति कुंदन अतीत की किसी साजिश की बू आ रही है मुझे इस सोने की चमक के पीछे गड़बड़ है बता रही हु

मैं- कही ऐसा तो नहीं की राणाजी ने किसी तरह जीजी का उपयोग किया हो मेरा मतलब कही बलि तो न दे दी 

पूजा- ना मेरा मन नहीं मानता क्योंकि बलि तंत्र में दी जाती है और यहाँ आसापास क्या पूरी हवेली में तंत्र से सम्बंधित कोई सामान नहीं है, ओह तेरी, कुंदन अप्सरा , अप्सरा इस मूर्ति को अप्सरा के रूप में ढाला गया है

मैं- मतलब 

पूजा- अप्सरा का भोग एक विशेष सिद्धि के लिए कुंदन देख मैं बस अंदाजा लगा रही हु एक अनुमान है मेरा अप्सरा का भोग देकर बदले में कुछ ऐसा माँगा जाता है जिसे इंसान का पूर्ण बदल जाता है 


मैं- क्या

पूजा- कोई अधूरी कामना, या फिर कोई प्रयोजन जैसे कोई शक्ति पाना 

मैं- पर राणाजी क्यों करेंगे ऐसा 

पूजा- राणाजी नहीं ,मेनका ये घर मेनका का है कुछ तो ऐसा है कुंदन जो नजरो से परे है धोखा हो रहा है 

मैं- साफ़ साफ़ क्यों नहीं बोलती तू आखिर

पूजा- हमे जाना होगा अभी 

मैं- कहां

पूजा-बताती हु आ मेरे साथ 

पूजा ने मेरा हाथ पकड़ा और बिजली की सी तेजी से मुझे खींचती हुई हवेली से बाहर निकल आयी और जैसे ही हम गाडी तक पहुचे हवेली सुलग उठी धू धू करके जलने लगी वो हैरत और घबराहट ने मेरे पांवो को जकड़ सा लिया था आग की वो लपटे जैसे कुछ कह रही थी मुझसे 

पूजा ने मुझे गाड़ी में धकेला और तेजी से हम निकल गये बहुत देर तक तो मैं समझ ही नहीं पाया कि हुआ क्या फिर एक शांत जगह पूजा ने गाड़ी रोकी हम बाहर आये 

पूजा- षड्यंत्र 

मैं चुप रहा 

पूजा- पहले से तय था कि हम वह आएंगे और इस आग में जल जायेंगे 

मैं- राणाजी हमे मारना चाहते है 

पूजा- मेनका , वो जिन्दा है ऐसा मुझे लगता है और अगर ऐसा है तो कुछ अनिष्ट होने वाला है 

मैं- मुझे डर नहीं तू जब साथ है 

पूजा के चेहरे पर एक फीकी हँसी देखि मैंने उसने बस गले लगा लिया मुझे और बोली- मैं हर लम्हा तेरे साथ हु 

वो अभी भी मेरे आगोश में थी उसकी महकती सांसे जैसे सुकून दे रही थी मुझे कुछ पलों के लिए मैं सबकुछ भूलने लगा पर मेरे नसीब में अभी सुख था नहीं , पूजा मुझसे दूर हो गयी और बोली- गाड़ी में बैठो 

पूजा के चेहरे पर एक शिकन थी कुछ तो था जो वो इतना परेशां हो गयी थी उसके लरजते होंठ जैसे वो खुद को रोक रही थी मुझे कुछ बताने से पर क्या क्या समझ गयी थी रात के दूसरे पहर में हमारी गाडी अँधेरी सड़को पर दौड़ रही थी पहले मुझे लगा वो लाल मंदिर जा रही है पर गाडी वहाँ से दाये मुडी 

मैं- कहा 

पूजा- सूरज बंजारा 

मैं- पर 

पूजा- समझ जाओगे समझ जाओगे

मैं- बता भी दे 

पूजा- बस एक अनुमान है उसकी पुष्टि करना चाहती हु सूरज बंजारे ने माँ को तंत्र ज्ञान दिया था तो क्या उन्होंने मेनका को भी सिखाया होगा 

मैं- अपनी बेटी को तो ज्ञान दिया ही होगा 

पूजा- कुंदन मेरे पास अभी बहुत सवाल है बहुत सम्भवना है जिसमे सबसे पहली ये है कि राणाजी अगर प्रेम करते थे मेनका से तो उसे पत्नी बना कर रखते कौन विरोध करता उनका ,उन्होंने उसे रखा तो सही पर दुनिया से छुपा कर ये बात खटकती है 
मतलब ये कैसा प्रेम है जो वो परवाह तो आजतक करते है उसकी पर प्रेम को परिवार का दर्जा नहीं दिया 

मैं- बात तो सही है 

पूजा- मेनका दिल बहलाने का साधन नहीं थी कुंदन उसका प्रयोजन कुछ और था और उसकी पुष्टि सूरज बंजारा करेगा

हमने पगडंडी से पहले ही गाडी रोक दी और पैदल ही झोपडी की तरफ चल पड़े, पर्दा हटाकर देखा तो अंदर लालटेन मन्द लौ में जल रही थी

पूजा ने बाबा को जगाया

बाबा- आप लोग इस समय 

पूजा- बाबा बहुत जरुरी बात है 

बाबा- हां पर हुआ क्या 

पूजा- अप्सरा सिद्धि के बारे में बात करनी है 

जैसे ही पूजा के शब्द बाबा के कानों में पड़े बाबा की खांसी छूट गयी मैंने पानी का गिलास भरा और पकड़ाया 

बाबा- ऐसा कुछ नहीं होता बेटी
Reply
04-27-2019, 12:56 PM,
RE: Antarvasna kahani नजर का खोट
पूजा- बाबा, आखिर क्यों छुपा रहे हो आप जबकि हम जानते है मेनका आज भी जिंदा है तो ये ढोंग करने की जरूरत नहीं और मुद्दे पे आओ मैं समझ गयी हु इस षड्यंत्र को और मेनका के इरादे को भी अप्सरा सिद्धि से मेनका का प्रयोजन क्या है ये जानना है मुझे अभी

पूजा की बात सुनकर बाबा के चेहरे का रंग फक्क से उड़ गया साँस जैसे अटक सी गयी पानी का जो गिलास उसके हाथ में था अचानक से गिर गया बाबा की आँखों में मैंने एक डर सा देखा 

बाबा- बेटी,ये एक बहुत ही गूढ़ सिद्धि होती है जिसमे एक हज़ार लड़कियों की बलि दी जाती है पर ये कोई साधारण बलि नहीं होती है उन लड़कियों की स्वर्ण प्रतिमा भेंट की जाती है परंतु वो स्वर्ण ऐसा वैसा नहीं होता मंदिर का स्वर्ण होता है

मैं-मंदिर का स्वर्ण समझा नहीं बाबा 

बाबा- कुछ प्राचीन मंदिर अपने आप में बहुत राज़ समेटे होते है जैसे तंत्र का गहन ज्ञान कुछ जाग्रत देवी देवता या फिर खजाना और ऐसा ही खजाना जिसमे से कुछ स्वर्ण अगर उसके रक्षक किसी को प्रसन्न होकर दे दे वो ही ये अप्सरा सिद्धि कर सकता है

पूजा- पर कोई क्यों करता है ये सिद्धि 

बाबा- क्योंकि, क्योंकि अगर कोई ये सिद्धि कर पाता है तो समस्त जग के महा भट्ट, नाहरवीर , यहाँ तक की श्री श्री जी जिन्होंने तंत्र के मंत्र लिखे है उनके साक्षत दर्शन हो जाते है धरती में जहाँ भी धन गड़ा हो हर पल सिद्ध करने वाले को नजर में रहेगा चाहे वो उसका मालिक हो न हो 

मैं- मुझे नहीं लगता कि धन के लिए ये सिद्धि की जायेगी मेनका और राणाजी के पास धन की कोई कमी नहीं मामला यहाँ फस रहा है

बाबा- तो फिर एक ही बात हो सकती है 

मैं- क्या 

बाबा- देखो इस बात का कोई प्रमाण नहीं है की अब जो मैं तुम्हे बताने जा रहा हु वो पूर्ण सच हो, पर एक किवंदिति है कि जो अप्सरा सिद्धि कर ले उसके लिए एक और सिद्धि का मार्ग खुल जाता है और वो सिद्धि है क्षण को बदलने की 

मैं- मतलब 

पूजा- मतलब ये कुंदन की व्यक्ति समय पर विजय प्राप्त कर लेता है और अपनी मर्ज़ी अनुसार समय की धारा मोड़ सकता है 

मैं- क्या ये हो सकता है 


बाबा- अब ये स्तय है या नहीं इसका कोई प्रमाण नहीं पर किवंदिति अवश्य है 

पूजा- पर किसका इतना सामर्थ्य बाबा 

बाबा- पता नहीं, इतना साहस तो पद्मिनी भी न करती बेटी 

पूजा- तो कौन आसरा अब क्योंकि समय पर जिसका जोर वो तो प्रलय ला दे 

बाबा- एक रास्ता है पर राह कठिन है 

मैं- उपाय बताओ बाबा 

बाबा ने कुछ गहरी सांस ली फिर बोले- ऐसी सुहागन नारी जिसने 21 नाहरवीर साधे हो जिसकी आँखे स्वर्ण आभा वाली हो जिसका गठबंधन किसी ऐसे पुरुष से हुआ हो जिसने माता को अपने पौरुष से विजित बलि दी हो अगर वो उस दरबार में हाज़री लगाये और प्रार्थना करे तो बात बन जाये पर इस यज्ञ में जो की रात के तीसरे पहर पूरा होगा किसी तरह का विघ्न न आये 

बाबा- अब ऐसा जोड़ा कहा से मिलेगा और बड़ी बात ये की वो हमारे लिए ऐसा क्यों करेगा 

बाबा- इसमें मैं कुछ नहीं कर सकता परन्तु सबसे महत्वपूर्ण बात ये है कि जातक को अपने ह्रदय का रक्त उतनी बार ही माता को अर्पण करना होगा जितनी बार उसकी पत्नी मन्त्र पढ़ेगी उतने ही छींटे वो देवी की प्रतिमा पर मारेगा और जैसे ही पत्थर की मूर्ति स्वर्ण प्रतिमा हो जाये समझो सिद्धि पूर्ण हुई

पूजा- बहुत दुष्कर राह है बाबा 

बाबा ने अगले ही पल हमे जाने को कहा मैं कुछ और जानना चाहता था पर पूजा ने मेरा हाथ पकड़ लिया और बोली- चलो 
हम गाड़ी में बैठे पूजा- कुंदन हमे अभी लाल मंदिर चलना होगा 

मैं- चलो 

पूजा- एक बात और 

मैं- क्या 

वो- ये प्रण हम दोनों को पूरा करना होगा 

मैं- पर कैसे 

पूजा- मैं वो सुहागन हु जिसने 21 नाहरवीर साधे है मेरी आँखे देखो सुनहरी है, है ना 

मैं- इस पर तो मेरा ध्यान ही ना गया 

पूजा-और तुमने लाल मंदिर के अंगार की बलि दी थी हम ही वो जोड़ा है जो ये कर सकते है 

मैं- पर हम कैसे 

पूजा- हम ही क्योंकि लगता है राणाजी और मेनका अप्सरा सिद्धि से ऊपर चले गए होंगे

मैं- तो इसका मतलब जीजी 

पूजा- हां भी और ना भी तंत्र में एक नियम है कि 999 ही होते है जबकि 1000 बोलते है क्योंकि 1000वाला खुद जातक होता है वो अपने रक्त से भोग जो देता है 

मैं- तो जीजी 

पूजा-अभी समय नहीं है तू चल बस 

अगले कुछ घण्टे हमारे अफरा तफरी में बीते मैं नए पुजारी से मिलने गया और उसे बताया की कल रात हमे मंदिर खाली चाहिए पूजा तब तक आवश्यक तैयारियां करने गयी, मंदिर से लौटते समय मैं सोच रहा था की राणाजी कहा होंगे इस समय पल पल मुझे डर लग रहा था की कही जरा सी देरी हुई और कविता जीजी।।।।

सबसे अहम् बात थी की वो और मेनका आखिर क्यों वक़्त की धारा को मोड़ना चाहते थे, ऐसा कौन सा क्षण था जिसे वो बदलना चाहते थे राणाजी का जीवन सामान्य न होकर अपितु किसी चक्रव्यूह जैसा था जिसमे हम सब फस गए थे और दांव पर था मेरी बहन का जीवन 

ऐसा लगता था की मैं जैसे बरसो से थका हुआ था मैं दिवार के सहारे बैठा हुआ था पूजा मेरे पास आई और बोली- घबराना नहीं मैं ढाल हु तुम्हारी 

मैं- घबरा नहीं रहा हु सोच रहा हु की तूने मुझसे बाते छुपाई 

पूजा- मज़बूरी थी मेरी पर तेरी कसम इस काम से निपट लू तुझे हर वो बात बता दूँगी जो तू जानने का हकदार है 

मैंने उसे अपनी गोद में बिठा लिया और उसकी आँखों में देखते हुए बोला- मेरी जान है तू बस इतना जान ले कुंदन सिर्फ इसलिए ही है ताकि तू है 

पूजा- जानती हूं 

मैं- तो फिर बस 

पूजा- कुंदन ये यज्ञ बहुत मुश्किल होगा हो सकता है की मेरे कदम डगमगाये, हों सकता है की मैं राख हो जाऊ हो सकता है की कोई ऐसा नजारा तू देखे जो तुझे पथ से भटकाये पर तू डिगना नहीं

मैं- तू बस हाथ थामे रखना मेरा बाकि जो हो देख लेंगे 

पूजा बस हौले से मुस्कुरा दी
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