Antarvasna kahani चुदासी चौकडी
10-15-2018, 10:55 PM,
#11
RE: Antarvasna kahani चुदासी चौकडी
सिंधु टपक पड़ी " देख तो भाई ..कितना नाटक करती है...अंदर से तो मरी जा रही है तेरे साथ सोने को और बाहर से शर्मा रही है... दीदी शरमाना छोड़ और बैठ जा भाई की गोद में ..ज़रा उसके हथियार की झलक तो ले ले बाहर से ..देख ना कैसा कड़क हो रहा है "

और ऐसा बोलते हुए सिंधु झट खाट से उठी , बिंदु के सामने गयी , उसे हाथों से थामा , उठाया और मेरी गोद में डाल दिया...और खुद भागती हुई मा के पास चली गयी ..

मेरा लंड सही में तना था ...बिंदु के भारी भारी मुलायम चूतड़ के भार से मैं सिहर उठा ..मैने उसे अपने सीने से लगाया और उसकी भारी भारी चुचियाँ हल्के हल्के मसल्ने लगा ...बिंदु मेरी गोद में कसमसा रही थी और मेरा लौडा उसकी चूतड़ की गुदाज़ फांकों में धंसा था ...बिंदु भी सिहर उठी

मैने उसके चेहरे को अपनी तरफ करते हुए उसके नर्म और गर्म होंठों पर अपने होंठ रख दिए और चूसने लगा ...

बिंदु ने आँखें बंद कर ली थीं और सिसकारियाँ ले रही थी ...पर वो सिंधु की तरह बेधड़क और बिंदास नही थी...थोड़ी देर में ही उसकी शर्म और लाज़ उस पर हाबी हो गये , उस ने सिसकारियाँ लेते हुए फुसफुसाते हुए कहा .." भाई ..अभी छोड़ो ना ....क्या करते हो ...मा देखेगी ना ...."

मैने धीमी आवाज़ में उसके गालों को चूमते हुए कहा.." ह्म्‍म्म्मम.. ..तो फिर अकेले में सब कुछ करेगी क्या ..?"

" जब अकेले होंगे तो देखेंगे .." और झट से अपने को मेरी बाहों से छूटती हुई मेरे गालों की चूम्मी लेते हुए वो भी मा की तरफ चली गयी ..

मैं उसकी इस अदा पर बस मर मिटा ...बिंदु दोनो से कितना अलग थी ...उसकी झिझक , उसका शरमाना उसे और भी हसीन बना देता था ...

थोड़ी देर में ही एक थाली में समोसे और नमकीन लिए और दूसरी थाली में चार ग्लास चाइ लिए तीनों मा बेटियाँ आ गयीं ...समोसे और चाइ की थालिया नीचे फर्श पर रख , तीनों नीचे बैठ गयीं , मैं भी मा के पास आ कर बैठ गया ...

हम कितने दिनों बाद आज इस तरह साथ बैठ चाइ पी रहे थे...

"मा ..आज कितना अच्छा लग रहा है ना...सब साथ साथ बैठे चाइ पी रहे हैं .." मैने कहा

सिंधु ने भी कहा " हां ..मा ..भाई ठीक ही बोल रहा है..अब से रोज अपन ऐसे ही साथ चाइ पिएँगे ..कितना अच्छा लगता है..."

मा की आँखों में आँसू थे ... "हां मेरे बच्चों ...अपनी जिंदगी में और क्या है..बस हम सब का साथ ...भगवान हमेशा हमें ऐसे ही साथ बनाए रखे ..."

बिंदु से रहा नहीं गया वो भी बोल उठी " हां मा ..हम सब हमेशा ऐसे ही रहेंगे ..हमें और कोई नहीं चाहिए..और कुछ नहीं चाहिए ...बस ....हम सब एक दूसरे के लिए सब कुछ हैं ..सब कुछ ..."

" वाह वाह ,,वाह रे बिंदु ..तू बोलती कम है पर जब बोलती है खूब बोलती है . कितनी बड़ी बात बोल दी तू ने ..हम सब एक दूसरे के लिए सब कुछ हैं .... " मैने कहा

" हां भाई सब कुछ .....है ना मा ...??" बिंदु ने फिर से बोला..

मा ने अपने आँसू पोंछते हुए कहा " हां बिंदु ... "

माहौल ज़रा सीरीयस हो गया था..मैने उसे हल्का बनाने की कोशिश करते हुए कहा

" अरे वाह री बिंदु ..तू तो मेरी सब कुछ है...फिर इतनी दूर क्यूँ बैठी है....पास आ ना ..." बिंदु ने शरमाते हुए नज़रें झुका ली ..पर मा और सिंधु हंस पड़े ....

तब तक चाइ पीनी ख़त्म हो गयी थी ...मा और सिंधु ने सब समेटा और दोनो चले गये चूल्‍हे की तरफ ...बिंदु भी उनके साथ जाने लगी ..मैने उसे थामते हुए अपनी तरफ खिचा

" तू तो मेरी सब कुछ है मेरी रानी ...." ऐसा बोलते हुए उसके होंठ चूम लिए ..इस बार उस ने भी मेरा साथ दिया ..पर फिर थोड़ी देर बाद कहा :

" भाई इतनी बेसब्री क्यूँ कर रहे हो....बस आज रात भर की तो बात है..कल मेरा सब कुछ ले लेना ना भाई.....सच मानो भाई मैं सब कुछ तुझ पे लूटा दूँगी ..सब कुछ..."

और मेरे गालों को चूमते हुए सिंधु और मा की तरफ भागती हुई चली गयी..

मैने उसकी आँखों में एक अजीब तड़प, प्यार और शर्म की मिलीजुली झलक देखी...

मैं मन ही मन आनेवाली खुशियों से झूम उठा ...

आज मुझे समझ आ गया अच्छी तरह ..... हम ग़रीब थे ज़रूर , पर प्यार , एक दूसरे का साथ और खुशियों में कितने अमीर थे.... कितने अमीरों से भी अमीर...

तीनों मा बेटियाँ चूल्‍हे के पास जाने क्या क्या ख़ूसूर पूसूर करती रात के खाने की तैय्यारियाँ कर रहीं थीं ..मैं ऐसे ही खाट पर आँखें बंद किए लेटा लेटा बोर हो रहा था .

मैं थोड़ी देर बाहर निकल गया , घूमा घामा और वापस आया ..फिर सब साथ मिल कर खाना खाए और मैं तो खाट पर जाते ही सोने लगा ..काफ़ी थक गया था .... सिंधु और मा की चुदाइ का असर था शायद ..

थोड़ी देर बाद मुझे ऐसा लगा मेरे बगल कोई आ कर लेटा है....देखा तो सिंधु थी ..

"क्या है सिंधु ...मुझे सोने दे ना .." मैने आधी नींद में ही उस से बोला ..

" भाई तो मैने कब कहा मत सो...तू सो ना ..बस मैं तेरे हथियार को पकड़ के तेरे साथ सोती हूँ ...मुझे उसे थामे बिना चैन नही आ रहा है ...पकड़ने दे ना ..मैं और कुछ नहीं करूँगी ...."

उस ने धीमी आवाज़ में कहा और अपने हाथ से मेरे पॅंट की ज़िप खोल दी , पॅंट को कमर से नीचे सरका दिया और अंडरवेर के अंदर हाथ डाल मेरे लंड को अपनी मुट्ठी में ले लिया ..मैं सिहर उठा

" उफ्फ तू भी ना सिंधु ..." मैने झुझलाते हुए कहा

" अरे भाई ..कहे को अपना दिमाग़ खराब करते हो...तू चुपचाप लेटा रह ..मैं बस अपने प्यारे लंड को सहलऊंगी..देख ना मा और बिंदु कैसे सो रहे हैं नीचे..उन्हें कुछ पता नहीं चलेगा .."

'ठीक है बाबा तेरा जो जी में आए कर मैं सोता हूँ " और मैने उसकी ओर पीठ कर आँखें बंद कर ली .

सिंधु बड़े आराम आराम से उसे सहलाती जाती ,कभी दबा देती , कभी सुपाडे के उपर नाख़ून चलाती ....मुझे भी अच्छा लग रहा था , बहुत हल्का हल्का महसूस हुआ और मैं जाने कब गहरी नींद में सो गया..

सुबेह उठा तो देखा सब कुछ नॉर्मल था ..पॅंट की ज़िप लगी थी ..पर तंबू ज़रूर बना था ....एक दम उँचाई लिए हुए ...

मा चाइ बना कर काम पे निकल गयी थी , सिंधु जाने की तैय्यारि में थी और बिंदु कोने में खड़ी सारी पहेन रही थी ....बिंदु हमेशा सारी ही पेहेन्ति थी और सिंधु सलवार कुर्ता ...बिंदु थोड़ी भारी भारी थी ..सारी उस पर अच्छी लगती ....

सिंधु ने कहा " बिंदु देख ले रे कैसा तैय्यार है भाई का हथियार ....बस ले ले आज अपने अंदर ...देखना कितना मस्त है रे ...उफ़फ्फ़ मेरा तो जी कर रहा है आज फिर से ले लूँ अंदर ..." और उस ने फिर से मेरे लौडे को कस के पकड़ लिया

" अरे छोड़ सिंधु .....मुझे मूतास लगी है रे ...जाने दे ..छोड़ ना ..." और मैं हड़बड़ाता हुआ उठा ...अपने हाथों से अपने लंड को दबाता हुआ.....और पानी से भरा मग्गा उठाया और बाहर निकल गया ...

बिंदु और सिंधु मेरी बदहाली पर जोरों से हंस पड़ीं....

जब मैं वापस आया तो देखा बिंदु खाट पर बैठी थी ... सिंधु का पता नहीं था ...

मैने इधर उधर देखा और पूछा " सिंधु नहीं दिख रही ...गयी क्या..?"

" हां भाई गयी वो काम पर ..." और अपना चेहरा मुँह से छुपाते हुए हँसने लगी ...

" ह्म्‍म्म्म ... याने कि मैदान सॉफ ..." और मैं उसे अपने से जाकड़ लिया और उसे खाट पर लिटाते हुए उसके उपर आ गया ,

...उसकी सारी की पल्लू सीने से अलग हो गयी थी ..उसका सीना धौंकनी की तरह चल रहा था .उसकी चुचियाँ उपर नीचे हो रहीं तीन ..बड़ी सुडौल थी , सिंधु से.थोड़ी बड़ी ,हथेलियों मे भरा भरा , बड़े अच्छे से मेरे हाथों में समा गयी दोनो चुचियाँ ,.मैं उन्हें मसल्ते हुए बिंदु के होंठ चूमने लगा ..

" उफफफफ्फ़ भाई थोड़ा तो सब्र करो ना बाबा..मैं कहाँ भाग रही हूँ..आज तो पूरा दिन है अपने पास ..,मैने आज काम की छुट्टी कर ली है...चलो उठो भाई ..हाथ मुँह धो लो ..साथ चाइ पीते हैं ...फिर जो जी में आए करो ...." बिंदु ने मेरे हाथ हटा दिए अपने सीने से और मेरे चेहरे को थामते हुए चूम लिया ...." मेरे राजा भाई ..चल उठ ..." और मेरी ओर मुस्कुराते हुए देखी और खाट से उठी , चूल्‍हे की तरफ चली गयी ..

मैं तो उसके इस रूप से फिर से दंग रह गया..कहाँ तो इतनी चुप रहती है और अभी इतनी बातें कर ली ...येई था बिंदु का कमाल ... मौके के हिसाब से अपने आप को ढाल लेती ...

मैं भी उठ गया और हाथ मुँह धो , खाट पर बैठा बिंदु के चाइ लाने का इंतेज़ार कर रहा था.

बिंदु एक थाली में दो ग्लास चाइ और कल शाम के बचे नमकीन गरम कर ले आई थी ...

हम दोनो ने एक एक ग्लास ले ली और बिंदु मेरे बगल बैठ गयी और नमकीन वाली थाली को अपनी गोद में रख लिया ...

मैं सरकते हुए उस से बिल्कुल चिपक गया ...मैं उसकी सुडौल, मांसल और मुलायम जांघों की गर्मी अपने जाँघ पर महसूस कर रहा था.... मैं चाइ की चुस्कियाँ लिए जा रहा था ...

" भाई ..नमकीन भी खाओ ना ...'"

" तुम खिलाओ ना बिंदु अपने हाथ से ....अभी तो कोई देख नहीं रहा ना ..." मैने उसे छेड़ते हुए कहा ..

"उफ़फ्फ़ तुम भी ना भाई ...बड़े बदमाश हो गये हो ....अच्छा चलो ..मुँह खोलो ..."

क्रमशः…………………………………………..
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10-15-2018, 10:55 PM,
#12
RE: Antarvasna kahani चुदासी चौकडी
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गतान्क से आगे…………………………………….

उस ने एक नमकीन उठाई अपनी उंगलियों से मेरे मुँह के अंदर डाला ..मैने उसका हाथ थाम लिया , नमकीन दाँतों से काटा और साथ में उसकी लंबी पतली उंगलियाँ भी अपने मुँह के अंदर ले लिया ..और उन्हें चूसने लगा .....

बिंदु ने हाथ हटाने की नाकामयाब कोशिश की ..मेरी पकड़ बहुत मजबूत थी ...

मैं उन्हें चूस्ता रहा ....

" भाई तू कितना प्यार करता है हम सब से ..? तुझे मेरी उंलगलियाँ भी इतनी प्यारी हैं..?''

मैने उसकी उंगली अपने हाथ से पकड़ा रहा पर उंगलियाँ मुँह से निकालते हुए कहा ..

:" हां री बिंदु ..बहुत ...मैं तेरे लिए कितना तड़प रहा था कल से ...मेरा वश चले तो तुझे नंगा कर के पूरे का पूरा खा जाऊं बिंदु ..सही में ...."

" चल गंदे..ऐसा भी कोई करता है... मेरा हाथ छोड़ो..चाइ तो पूरी पी लो भाई ."

" बिंदु प्यार में कुछ भी गंदा नहीं होता ..सब अच्छा लगता है रे ..." मैं फिर चाइ की चुस्की ली और उसकी उंगलियाँ चूसने लगा .....

" तू मान ने वाला नहीं ठीक है बाबा तू चाइ और मेरी उंगलियों का ही नाश्ता कर ..." हारते हुए उस ने अपना वो हाथ मेरे हवाले छोड़ दिया और खुद चाइ और नमकीन खाती रही ...

मैं नमकीन भी खाता..चाइ की चूस्कियाँ भी लेता उसकी उंगलियाँ भी चूस्ता रहा ....

बिंदु भी काफ़ी गर्म हो गयी थी ..उसकी आँखों में एक हल्का सा शुरूर सा छा गया था ...

वो भी अब मस्ती के अलाम में थी..

चाइ पीने के बाद मैने सोचा के वो थाली रखने कोने की ओर जाएगी ..पर अब उसे मेरे साथ की इतनी प्यास थी..उस ने थाली नीचे फर्श पर रखते हुए उसे खाट के अंदर ही सरका दिया ..और एक नशीली मुस्कुराहाट अपने चेहरे पर लाते हुए मेरी ओर देखती रही ....मानो मेरे अगले कदम का उसे इंतेज़ार हो...

मैं भी उसे देखता रहा..एक टक..उस ने नज़रें झुका लीं ..मैं उसके इस अदा पर मर मिटा..

उसकी खाट से नीचे लटकती टाँगों को उठाते हुए अपनी गोद पर ले आया ...इस तरह कि उसकी चूतड़ मेरी गोद में थी और टाँगें खाट पर ..उसकी पीठ को जकड़ता हुआ अपनी तरफ खिचा ..अपने सीने से लगाया और बूरी तरह उस से चिपक गया ..उसके होंठ चूमने लगा..उसकी गर्दन चूमने लगा ..उसकी छाती चूमने लगा ..बिंदु ने अपनी बाहें मेरी गर्दन के गिर्द लपेट ली और मेरे से और भी चिपक गयी ....

सिसकारियाँ निकल रही थी ...उसके मुँह से ....मैने अब उसके होंठों को जोरों से चूसना शुरू कर दिया और अपनी जीभ भी उसके होंठों के बीच लगाया ...उसके होंठ चाटने लगा ....उस ने अपना मुँह खोल दिया मैं टूट पड़ा उसके मुँह के अंदर ....जीभ पूरा अंदर कर दिया और अंदर उसके मुँह का रस, लार सब कुछ जीभ से चाट ता जाता ...उसके तालू पर जीभ फिराता ..उसके गालों के अंदर चाट ता ....उफफफफफ्फ़ ..एक अजीब ही स्वाद था बिंदु का ...

वो आँखें बंद किए मेरे गले में बाहें डाले मस्ती में थी ..सिसक रही थी...

मैने अपने हाथ उसकी पीठ पर ले जाते हुए उसकी ब्लाउस के हुक खोले ...उसके बाहों से अलग करते हुए उतार दिया .....उफफफफ्फ़ उस ने ब्रा भी नहीं पहना था ...उसकी भारी भारी चुचियाँ उछलते हुए मेरे सीने से लगीं .....अयाया ..कितना मुलायम , और भरा भरा था ..मैं उसके मुँह के अंदर जीभ फिरना चालू रखा ..अपने हाथ उसकी चूचियों पर रखा और मसल्ने लगा..उसकी घूंदियों पर अपनी उंगलियाँ चलाता रहा ..घुमाता रहा ....

बिंदु मेरी गोद में तड़प रही थी ...इसी तड़प में उस ने मेरी जीभ अपने होंठों से पकड़ लिया और जोरों से चूसने लगी ..मानो अपनी तड़प मेरी जीभ से चूस चूस मिटाना चाह रही हो..उसके हाथ मेरे गले में और , और टाइट होते जा रहे थे ...वो मुझ में समा जाना चाह रही थी ...

मैं मुँह को उसके मुँह से हटाया ..उसका उसकी पीठ अपने हाथों से थामा और मुँह उसकी चूची पर लगा जोरों से चूसने लगा

"आअहह ......उफ़फ्फ़ हाइईईईई ...ऊवू भाई ...आआआआः क्या कर रहे हो....." बोले जा रही थी , उसका चेहरा पीछे की ओर लटक गया था ..आँखें बंद थीं ....सर हिलाए जा रही थी और मैं उसकी एक चूची चूस रहा था दूसरी मसल रहा था ....

उसके पैर भी कांप रहे थे मेरी गोद में ...उसकी चूतड़ भी उछल रही थी ...जितना चूस्ता उतना ही काँपती और चूतड़ उछालती ...

" भाई ..मैं मर जाऊंगी ..ऊवू भाई ये क्या है ....आआअह्ह "

मेरा लौडा भी उसके चुतडो के बीच फनफना रहा था ..

मैने उसकी कमर से सारी ढीली कर दी ....पेटिकोट का नडा खोल दिया ...वो भी समझ गयी और अपने चूतड़ उपर कर दी....

मैने एक झटके में ही उसकी पेटिकोट और सारी टाँगों से बाहर कर दी ..वो मेरी गोद में बिल्कुल नंगी थी .....

मैने सब कुछ छोड़ उसके नंगे बदन निहार रहा था ...हम दोनो बस हाँफ रहे थे ..एक दूसरे को देखे जा रहे थे ....

मैं उसे फिर से अपनी बाहों में लिया और खाट पे लिटा दिया और खुद भी अपने कपड़े उतार उसके उपर आ गया..

आआआह दो नंगे बदन आपस में चिपके ..दोनो एक दूसरे में समाए को बेताब ..दोनो एक दूसरे की गर्मी और शरीर की नर्मी महसूस कर रहे थे ...

मैने फिर से उसे चूमना शुरू कर दिया ..उसकी चुचियाँ मेरे सीने से चिपकी थीं ..मेरी जाँघ उसकी जाँघो पर थी ..मेरा लौडा उसकी अब तक बूरी तरह गीली चूत दबाए जा रहा था और मेरे होंठ उसके होंठ चूस रहे थे ....अब वो भी मुझ में समा जाने की जोश में अपने हाथों से मेरी पीठ को जाकड़ लिया था और अपनी तरफ दबाए जा रही थी और मेरे होंठ चूसे जा रहे थी ..चूसे जा रही थी ..

" उफफफ्फ़ भाई.....भाई ..क्या हो रहा है..मेरे अंदर ...लगता है सब कुछ बाहर निकल जाएगा ...ऊवू भाई ..कुछ करो ना ....आआआः.." बिंदु कुछ भी बोले जा रही थी ....

अब मेरा भी धीरज छूट रहा था ..

मैं उसकी जांघों के बीच आ गया ..उसकी टाँगें फैला दीं ''उफ़फ्फ़ क्या टाइट फुद्दि थी बिंदु की ...थोड़ी और चौड़ी सिंधु से और ज़्यादा फूली फूली ....

रस से सराबोर ....मैने अपनी उंगलियों से उसकी फुद्दि की फाँक अलग की ....वोई गुलाबीपन ..वोई चमकीला गुलाबी .....मैं देखता रहा ..

बिंदु आँखें बंद किए लंबी लंबी सांस ले रही थी

मैने उसे और भी गीली करना चाहता था ''जिस से उस कुँवारी चूत में मेरा मोटा लंड बिना ज़्यादे मुश्किल के चला जाए ..

मैं उसकी फैली टाँगों के बीच झूक गया ..उसकी फुद्दि उंगलियों से अलग की और अपनी जीभ वहाँ लगा दी ...और एक बार उपर नीचे किया ..

बिंदु एक दम से उछल पड़ी ...उसकी टाँगें थरथरा गयी " ऊऊऊउउउउह भाई ....अया क्या किया तू ने .....सहा नहीं जाता भाई ......." उसकी चूत से पानी रीस्ता जा रहा था ..मैं थोड़ी देर तक अपनी जीभ फुद्दि पर चलाता रहा ..वो तड़प उठ ती हर बार .... उसकी फुददी के अंदर कपकपि होने लगी ..चूतड़ उछलने लगे ......

" भाई ..भाई कुछ करो ना ...करो ना ..अब सहा नहीं जाता ..मैं मर जाऊंगी भाई ...मर जाऊंगी ....हाई रे ..आह ये क्या है....भाई रहेम करो मेरे पर ..कुछ करो ना ....." बिंदु तड़प रही थी ...

मैं भी तड़प रहा था ...

" बिंदु ,,,देख थोड़ा दर्द होगा ..तू संभाल लेना ..." मैने कहा

" हां भाई मैं जानती हूँ ..तू फिकर मत कर भाई ...आह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह तू डाल दे अब ..डाल ना रे ...डाल दे ना देर मत कर .."

मैं घुटनों के बल बैठ गया , अपना तन्नाया लौडा हाथ से थामते हुए उसकी संकरी फुद्दि के मुँह में लगाया और हल्के से दबाया...बिंदु की चूत इतनी गीली थी और मेरी जीभ चलाने से शायद उसके मसल्स ढीले हो गये थे ..फतच से सुपाडा अंदर चला गया ....

बिंदु सिहर गयी ... मैं रुक गया ...

" मत रूको भाई ..पूरा डाल दो कुछ नहीं होगा ....बस डाल दो "

उस ने मेरी चूतड़ अपने हाथों से थाम लिया और अपनी ओर दबाया ..उसी के साथ मैने भी धक्का लगाया ...साला लंड फथचफाचता हुआ अंदर चला गया ..आधे से भी ज़्यादा ..

पर बिंदु की दबी सी चीख निकल गयी और आँखों से आँसू टपकने लगे ..

मैं रुक गया ..उसे अपने से और भी चिपका लिया और उसके होंठ चूसने लगा..उसकी चुचियाँ हल्के हल्के मसल्ने लगा ..

वो शांत हो गयी ...अब मैने अपना लौडा बाहर निकाला सिर्फ़ सुपाडे तक ..और फिर जोरों से धक्का दिया ..बिंदु ने भी मेरे चूतड़ दबाए ..पूरा लंड अंदर था ...

बिंदु कांप रही थी ..उसकी फुद्दि भी कांप रही थी ..उस ने बड़ी मुश्किल से अपनी चीख दबाई थी ...मैं लौडा अंदर लिए लिए ही पड़ा रहा थोड़ी देर ..

मुझे ऐसा महसूस हुआ जैसे किसी ने बड़ी जोरों से अपनी मुट्ठी से मेरे लौडे को जाकड़ रखा हो ...

मैं बिंदु को चूमे जा रहा था ..चूसे जा रहा था , उसे अपने सीने से चिपकाए रखा ..

अब फिर थोड़ी देर बाद धीरे धीरे अंदर बाहर , अंदर बाहर का खेल चालू हो गया ...बिंदु पसीने से लत्पथ थी ...

अब उसे अंदर लेने में कोई परेशानी नहीं थी ...." हां भाई अब डालते जाओ ..रूको मत ..हां भाई अब दर्द नही है भाई ..तू कितना अच्छा है ..मेरा सोना भाई..मेरा राजा भाई ,,हां रे मैं निहाल हो गयी ...हां अब करते जाओ ..करते जाओ ...एयाया हाआँ रे मत रुक .."

उसकी ऐसी बातें सुन सुन मैं मस्त होता जा रहा था और मेरे धक्के भी ज़ोर पकड़ते जा रहे थे....

मेरा भी बुरा हाल था ...टाइट चूत में लंड भी काफ़ी अकड़ जाता है ....काफ़ी घिसाई के मारे सारा मज़ा वहाँ लंड के अंदर जमा होता जाता है ....बाहर निकलने को बेताब ..

बिंदु हाई हाई कर रही थी ..कांप रही थी .उसकी चूत बहुत गीली थी
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10-15-2018, 10:56 PM,
#13
RE: Antarvasna kahani चुदासी चौकडी
अचानक मुझे ऐसा महसूस हुआ उसकी चूत की पकड़ मेरे लंड पर टाइट हो गयी ..मानो उसे और भी जाकड़ लेगी ..फिर ढीली हुई ..फिर टाइट और फीर बिंदु का पूरा बदन ऐंठ गया ..उसकी चूतड़ ने मेरे लंड पर एक दो बार उछाल मारी और तेज धार मेरे लंड पर महसूस हुआ ..बिंदु ढीली पड़ गयी मेरे नीचे ...उसके हाथ पैर ढीले पड़ गये ..वो निढाल हो कर मेरे नीचे पड़ी थी..

मैं भी दो चार धक्के और लगा उसकी चूत में फव्वारे छोड़ दिया..मेरा लंड झटके ख़ाता हुआ झड़ता रहा ...बिंदु मेरे गर्म वीर्य की महसूस से कांप उठी ..सिहर उठी .. मैं पूरा झाड़ता हुआ , हांफता हुआ उसके सीने पर ढेर हो गया ..

दोनो हाँफ रहे थे ..

जब मेरी सांस ठीक हुई ..मैने अपना सर उसके मुलायम सीने से उपर उठाया ..उसे देखा ..बिंदु की आँखें अभी भी बंद थीं ..चेहरे पे एक सुकून था , मानो उस ने सारा जहाँ फ़तेह कर लिया हो .. ...होंठों पे हल्की सी मुस्कान थी ...

मैने उसके होंठों को चूम लिया ..

बिंदु ने आँखें खोल दीं ..मेरी ओर देखा ..मेरे बाल सहलाने लगी

" बिंदु ....दर्द ज़्यादा हुआ क्या..?"

उस ने कहा " भाई ..अगर येई दर्द है तो ऐसे हज़ारों बार का दर्द अपने भाई पर कुर्बान है ...तू रोज मुझे ऐसा दर्द दे भाई ..... "

और वो मुझ से चिपक गयी और खुशी के मारे फफक फफक के रो पड़ी .... ये रोना तभी आता है जब खुशियाँ सारी सीमायें तोड़ डालती हैं, जब किसी को ये समझ में ना आए के क्या कहे , कैसे कहे ....फिर आँसू ही आखरी सहारा होता है अपने आप को ज़ाहिर करने का ....

"भाई तुम कितने अच्छे हो ..कितने प्यारे हो ....उफफफफ्फ़ कितना प्यार है तुझे हम सब से ...."

" हां बिंदु .." और मैं फिर से उसके सीने पर सर रख दिया , दोनो एक दूसरे की बाहों में पड़े पड़े सो गये...

थोड़ी देर बाद मेरी नींद खुली ..मैने आँखें खोलीं..देखा बिंदु दुनिया से बेख़बर मेरे सीने से लगे अभी भी सो रही थी..कितनी मासूम लग रही थी ... उसका एक हाथ मेरे सीने पर रखा था ...

दीवार पर टाँगे एक पुरानी सी घड़ी पर नज़र गयी ...10 बज गये थे..मेरे काम पर जाने का टाइम हो चूका था .... बिंदु की तरफ नज़र गयी ..अफ कितनी हसीन लग रही थी ...उसका नंगा बदन मेरे से चिपका...चेहरे पर सुकून ..मानो मेरे सीने से लगी अपने आप को कितना महफूज़ समझ रही हो ...

मैं उठना चाहा ..पर जाने क्यूँ उसके हाथ मेरे सीने पर कस गये ...मानो मुझे रोक रही हो...मुझे समझ नही आया ये अंजाने में हुआ या उस ने जान बूझ कर किया....

मैं रुक गया...अपनी शर्मीली बहेन पर मेरा मन फिर से डोल गया ...मैने सोचा चलो आज का काम अपनी बहेन पर कुर्बान कर दो..उस ने भी तो आज सब कुछ मेरे पर कुर्बान कर दिया है...ऐसा मौका बार बार नहीं आता ....

मैं फिर से लेट गया ..और उस के चेहरे की तरफ घूमता हुआ आमने सामने लेट गया ..उसका चेहरा अपने हाथों में लिया और उसके होंठ चूमने लगा ...मेरे चूमने से उसकी नींद खुल गयी ...

" भाई ....अभी भी मन नहीं भरा ..? और कितना चूसोगे ..उफ्फ देखो ना मेरे होंठ कितने सूज गये हैं .." उस ने खुमारी से भारी आवाज़ में कहा ..

" बिंदु ..इस से कभी मन भरता है क्या..? मन करता है बस तुम्हें ऐसे ही चूस्ता रहूं .." और मैने ऐसा कहते हुए उसे अपने से और भी चिपका लिया.." तू ने ही तो कहा था ना मैं जो जी में आए करूँ ....तो रानी मैं वोई तो कर रहा हूँ.." मैने हंसते हुए कहा ..

बिंदु ने फिर से आँखें झुका लीं

" बड़े बेशरम हो ...तुम ..." धीमे से उस ने कहा ...और मेरे सीने पर प्यार से मुक्के लगाने लगी

मैने उसके हाथ पकड़ लिए और उसकी हथेली मुँह में डाल उसकी लंबी लंबी और मुलायम उंगलियाँ चूसने लगा ...

" भाई...तेरे को लगता है सब कुछ छोड़ मेरी उंगलियाँ ही इतनी अच्छी लगीं ...जब देखो चूसना शुरू करते हो .."

" हां रे बड़ी मस्त हैं ..." मैने कहा और चूसना शुरू कर दिया ...बिंदु भी अब मस्ती में आ रही थी ...उसकी आँखें बंद हो रही थीं

मैने एक टाँग उसकी जाँघ के उपर रख उसे अपने से और भी चिपका लिया ..अब उसकी चुचियाँ मेरे सीने से बिल्कुल चिपक गयी थीं ...मानो गुब्बारा चिपका हो..

मेरा लौडा भी उसकी जांघों के बीच उसकी चूत से रगड़ खा रहा था

बिंदु को भी अच्छा लगा ...उसकी चूतड़ भी अपने आप आगे की ओर हो गये ... मैने अपना हाथ नीचे किया उसकी चूत पर लगाया ...

काफ़ी चीपचीपा था ..मेरे वीर्य , उसके खून और रस से भरा भरा ...

बिंदु ने मेरे हाथ रोक लिए और कहा " भाई ज़रा रुक ना ..मैं अभी आई ...और उठ कर कोने की ओर गयी , मैने अपना सर घुमाया उसकी तरफ ...देखा तो पहले तो च्छुरर चुर्र मूतने की आवाज़ आई...बिंदु कोने में जहाँ पानी की बाल्टी रखी थी ..वहाँ एक नाली बनी थी ..वहीं बैठ कर मूत रही थी...अया उसकी चूत से मूत की धार की आवाज़ ने मुझे सन सना दिया .... फिर मैं देखा उस ने अपनी टाँगें फैलाई और एक गीले कपड़े से जांघों के बीच अच्छी तरह सॉफ किया , और दूसरा सूखा कपड़ा हाथ मे लेते हुए मेरी तरफ आई....

उफफफफ्फ़ ..पूरी की पूरी नंगी , मेरे सामने बिंदु खड़ी थी ...चलती हुई मेरी तरफ बढ़ रही थी ..मानो कोई मॉडेल फॅशन परदे में चल रही हो..इतना शेप्ली था बिंदु का बदन ..चुचियाँ उछलती हुई , पेट और भारी भारी जंघें हिलती हुई....चूत बिल्कुल सॉफ सुथरा , चमचमाती हुई .. चेहरे पर हल्की हल्की शर्मीली मुस्कान ...नज़रें आधी झुकी आधी खुली ...मैं तो बस पागल हो उठा और इसके पहले कि वो खाट पर बैठ टी , मैने उसे जाकड़ लिया ..अपने सीने से चिपका लिया ...और उसे बेतहाशा चूमने लगा ..कभी होंठों को, कभी चूचियों को..कभी पेट ..उफ़फ्फ़ मेरी समझ में नहीं आ रहा था क्या करूँ ..कहाँ कहाँ चूमूं...

" उफफफफफ्फ़.भाई क्या कर रहे हो...छोड़ो ना ...".और वो कसमसा रही थी मेरी बाहों में ...

मेरा लौडा फिर से खड़ा उसकी जांघों के बीच दबा था ...

"ठहरो ना भाई..इतने उतावले मत हो ना....देख ना तेरा हथियार भी गंदा है...मैं सॉफ कर देती हूँ..चल बैठ जा ...फिर जो चाहे करना ..छोड़ ना .."

और उस ने बड़ी मुश्किल से अपने को छुड़ाया ..मुझे धीरे से धकेलते हुए खाट पर बैठा दिया ..खुद नीचे फर्श पर बैठ गयी मेरे पैरों के बीच और मेरे तननाए लौडे को अपने हाथों में लिया और सूखे कपड़े से अच्छी तरह अपनी हथेली उपर नीचे करते हुए बड़े प्यार से पोंछने लगी...मेरे लौडे पर लगे खून , वीर्य और उसकी चूत के रस को पोंछती रही ...

मेरा लौडा हिल रहा था उसके हाथ के छूने से ...मैं बिल्कुल पागल हो गया ...

मैने उसे अपनी बाहों से जकड़ता हुआ उठाया और खाट पे लिटा दिया ..और उसके टाँग फैला दी ..आज पहली बार मैं इतना बेचैन हुआ था किसी की चूत में लंड पेलने को..

क्रमशः…………………………………………..
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10-15-2018, 10:56 PM,
#14
RE: Antarvasna kahani चुदासी चौकडी
7

गतान्क से आगे…………………………………….

मेरे चूम्मा चाटी से उसकी भी चूत गीली थी....पहली चुदाई का उस पर कोई निशान नहीं था ..चूत चमक रही थी ..मुझ से रहा नहीं गया ..मैने झूकते हुए उसकी चूत की फाँक को उंगलियों से फैला दिया और अपने होंठ गुलाबी फाँक में लगा बूरी तरह चूसने लगा ..बिंदु उछल पड़ी ,,उसकी चूत से रस की धार मेरे मुँह में फूट पड़ी

" हाआआआआऐयइ रे ..ऊवू मैं मर गेययी..भाई ..क्या कर रहे हो....आआअह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह मेरे अंदर क्या कर दिया रे भाई...अयाया " कांप उठी बिंदु ....उसके चूतड़ उछल रहे थे..

मुझ से रुका नहीं गया ...

मैने चूसना बंद किया...अपना लौडा थामा और रख दिया उसकी चूत पर ..उसकी चूतड़ थामी और एक झटके में अंदर पेल दिया .....आधे से ज़्यादा लौडा अंदर फतच से फिसलता हुआ घूस गया..

" आआआः भाई ..ज़रा संभाल के दर्द होता है ...उफफफफ्फ़ ..मैं मर जाऊंगी भाई ..धीरे करो ना ..."

मेरा लौडा उसकी टाइट चूत में फँसा था ..मुझे होश आया ..मैने क्या कर दिया ..उफ़फ्फ़..बेचारी की चूत अभी भी पूरी तरह खुली नहीं थी ..

मैने उसे अपने से और चिपका लिया उसे चूमने लगा ..उसकी चुचियाँ सहलाने लगा

" ओह सॉरी बिंदु ..क्या करूँ ..तू ने मुझे पागल कर दिया था ना..."और मैं उसे और भी चूमने लगा ..

" भाई कोई बात नहीं ..मैं भी तो पागल हो गयी हूँ ना ..तेरे लौडे के लिए ....मैं समझती हूँ भाई..पर अभी नयी नयी चूत है ना भाई..ज़रा आराम आराम से करो ना ....मैं थोड़ी ना रोकूंगी.."

उफ़फ्फ़ बिंदु जैसी शर्मीली लड़की के मुँह से चूत और लौडा सुन के मैं और भी जोश में आ गया .. जवानी के जोश ने उसे कितना बेशर्म कर दिया था ..सब कुछ भूल गयी थी बिंदु ....

मैने अब धीरे धीरे से अपने और भी कड़क हुए लौडे को अंदर पेलना चालू कर दिया ...इस बार अंदर जाने में ज़्यादे तकलीफ़ नहीं हुई ..बिंदु ने भी अपने को बिल्कुल ढीला छोड़ दिया था और अपनी टाँगें और फैला दी थीं ...फिर एक और झटका दिया मैने और पूरे का पूरा लौडा अंदर था .....अयाया उसकी चूत से अब तो रस की गंगा बह रही थी ...मेरे लौडे और उसकी चूत की दीवार के बीच से रीस रही थी ...

मैने अब धक्के लगाने शुरू कर दिए ..अंदर बाहर ..अंदर बाहर ..पूरी जड़ तक ..फतच फतच की आवाज़ और बिंदु की सिसकारियाँ " हाईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईई रे ....उफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफ्फ़ ..भाईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईई ....आआह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह ..इतना मज़ा ...ऊवू भाई हांईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईरे ... आज मेरी जान निकाल दो मेरे राजा भाई....आआआआआह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह ..ये क्या हो रहा है...."

और मेरे धक्के भी ज़ोर पकड़ते गये ....और ज़ोर ...

और फिर बिंदु की सीसकारीया चीख में बदल गयी ..:" भाई..भाई .....ऊवू भाई ..बस बस ...आआआआआआः " ..और वो अपनी चूतड़ उछाली..मेरे लौडे पर उसकी चूत के काँपने का . जकड़ने का और ढीली होने का ऐएहसास हुआ ..और बिंदु भी ढीली हो कर , टाँगें और हाथ फैला कर सूस्ट पड़ गयी ..उसकी चूत से गाढ़ा रस का रिसाव मेरे तननाए लंड पर महसूस हुआ ..मैं भी दो चार ज़ोर दार धक्के लगाता हुआ उसकी चूत में पीचकारी छोड़ दिया ..गर्म वीर्य की धार से बिंदु का सूस्त बदन भी गन्गना गया ..सिहर उठी बिंदु ..और मैं उसके सीने पर हांफता हुआ ढेर हो गया...

दो दो बार घमासान चुदाई से मैं पस्त हुआ सो रहा था ..के मेरे सीने पर कुछ गीला पन महसूस हुआ.मेरी आँखें खुल गयी ..देखा तो बिंदु जाग गयी थी और मेरी घूंडिया चूसे जा रही थी और हाथ नीचे किए मेरे मुरझाए लौडे से खेल रही थी ....

मैं चुप चाप लेता रहा और बिंदु को देखता रहा ...और मन ही मन सोचने लगा के लौडे और चूत का खेल भी क्या चीज़ है...बिंदु जैसी शर्मीली लड़की भी देखो कैसी बेशरम हो गयी ...

मैने कहा" बिंदु ..तुझे मेरा लौडा इतना अच्छा लगा रे ..? देख ना सब के सामने तो कितना शरमाती है और अभी कितने प्यार प्यार से सहला रही है...?"

मुझे जगा देख वो थोड़ी शरमाई और नज़रें नीची कर ली पर बोल उठी

" हां भाई ...तू ठीक ही कह रहा है..देखो ना मुझे क्या हो गया..मेरा हाथ खुद ही वहाँ चला गया "...और मेरे लौडे को जोरों से जाकड़ लिया " और तेरा लौडा भी तो कितना मस्त है रे ... कितना कड़क , मोटा और लंबा ...हाथ से पकड़ने में बड़ा अछा लगता है रे ..तभी तो साली सिंधु जब देखो इसे थाम्ति रहती है.."

मैने उसे अपने से चिपका लिया " बस अब क्या है..ये तो बस तुम सब के लिए ही है रे बिंदु ..जब मन आए थाम लिया कर ...."

तभी उसकी नज़र दीवाल पर लगी घड़ी की ओर गयी और वो चौंक्ति हुई बोली ..

" अरे बाप रे देख तो भाई 1230 बज गये ..अरे बाबा चल उठ ...मा और सिंधु आते ही होंगे ..."

मैने उसे फिर से जकड़ा और उसकी चुचियाँ दबा दी ...और कहा

" तो क्या हुआ मेरी बहेना रानी..अब तो सब कुछ हो गया सब से ..क्या छुपा है..आने दो ना उन्हें भी साथ लिटा देंगे ...."

उस ने मेरे गालों पर हल्का सा थप्पड़ लगाते हुए कहा

" चुप रे बेशरम ..ऐसा भी कहीं होता है ... " और अपने को छुड़ाने की कोशिश की

मैने उसे और भी चिपका लिया और कहा

" बस देखती जा बिंदु ये लौडे और चूत का खेल क्या क्या रंग दिखाता है...हम चार ही रहेंगे ..पर अब साथ रहेंगे हर समय ..सब काम साथ साथ करेंगे ...."

" हाई रे भाई..मैं तो शर्म से मर जाऊंगी रे ..ऐसा मत बोल ....."

" हा हा हा ! देख बिंदु ..पहले तू अकेले में भी कितना शरमाती थी ..पर देख अब तेरी हालत...? बस वैसे ही देखना कितना अच्छा लगेगा ...."

" ठीक है बाबा जब की जब देखी जाएगी..अभी तो उठ और कपड़े पहेन ...."

और ऐसा बोलती हुई बिंदु मुझे धकेल्ति हुई उठ गयी और अपने कपड़े उठा कोने की ओर चली गयी ..

मैं भी उठा और हाथ मुँह धो कपड़े पहेन खाट पर बैठ गया ..

थोड़ी देर बाद ही दरवाज़े पर खत खत हुई , मैं समझ गया दोनो आ गयी तीन ..मैने बिंदु की तरफ देखा ..वो भी कपड़े पहेन चूकी थी ..मैं दरवाज़े की तरफ गया और दरवाज़ा खोला ..

दोनो मा बेटी बाहर खड़े थे..

दरवाज़ा खुलते ही मा तो सीधे चूल्‍हे की तरफ चली गयी ..उसके हाथ में एक बड़ा सा पॉलितेन बॅग था ..और सिंधु मेरे सामने खड़ी मुझे नीहार्ते हुए बोली

" भाई चेहरा बड़ा थका थका लग रहा है तेरा ..लगता है बिंदु की तो तू ने अच्छे से ले ली .." और बिंदु की ओर देख जोरों से हँसने लगी ...

तब तक बिंदु भी पास आ गयी थी ... उसके चेहरे पर वोई शर्मीली मुस्कान थी ..

सिंधु बोल उठी " हाई रे देख तो कितना शर्मा रही है..साली पूरे का पूरा लंड ले ली और अब शर्मा रही है...बोल मज़ा आया ना..? "

" चुप कर बेशरम ..कुछ भी बोलती है ..." बिंदु बोलते हुए उसकी तरफ बढ़ती है उसे थप्पड़ लगाने को ..सिंधु उस से बचते हुए और जोरों से हंसते हुए मा की ओर चली जाती है ..मैं भी मुस्कुरा रहा था ..

" अरे बाबा ये हँसी मज़ाक छोड़ो और आ जाओ.....खाना लगाती हूँ मैं खाना तो खा लो ...."मा की आवाज़ आई .

खाने की बात से मुझे महसूस हुआ कि सही में जोरों की भूख लगी है ..मैं भी मा की ओर बढ़ा ..

वहाँ देखा तो दो थालियों में काफ़ी कुछ रखा था ..पुलाव और सब्जियाँ और कुछ मीठाइयाँ भी थी ..

" अरे वाह मा आज इतना सब कहाँ से ले आई ..??"

" अरे बेटा मिसेज़ केपर के यहाँ कल कीटी (किटी) पार्टी थी ..काफ़ी सामान बचा था ..उस ने मुझे दिया तुम सब के लिए ..."

मैं मन ही मन सोचा चलो बिंदु की पहली चुदाई का जश्न भी हो गया ...सिंधु के शरारती दिमाग़ में भी शायद येई बात आई..वो कहाँ चुप रहती

मेरे बगल में बैठती हुई उस ने मेरे लंड को कस के पकड़ लिया और सब को दिखाती हुई बोली

" वाह रे मा ..देख इस लंड का कमाल ...बिंदु की पहली चूड़ाई ऐसी जबरदस्त की और इतनी मस्त कि उस खुशी में देखो हमारे यहाँ मीठा और पकवानों का ढेर लग गया ".....और उसने मेरी ओर अपना चेहरा किए मुझे चूम लिया...

बिंदु की तो आँखें फ़ाटी की फ़ाटी रह गयी सिंधु की इस बेशर्मी से ...और मा की आँखों में एक चमक और लंड की भूक दिखी ...पर उसे छुपाने की नाकाम कोशिश में हंस पड़ी...और कहा

"अरे बिंदु ... ठीक ही तो कह रही है सिंधु ..आज तेरा उद्घाटन हो गया ..चल इसी खुशी में हम सब मीठा खाएँगे ....समझ ले भगवान भी खुश हो गया है ..वरना मीठा और पकवान का संजोग आज ही क्यूँ होता ....."
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10-15-2018, 10:56 PM,
#15
RE: Antarvasna kahani चुदासी चौकडी
बिंदु का तो चेहरा देखने लायक था ...गाल एक दम लाल हो गये थे ....

फिर उस ने अपनी शर्मीली आवाज़ में कहा...

" क्या मा तू भी कैसी कैसी बातें करती है...वो तो है ही बेशरम ...साली खुद तो सब से पहले भाई का मोटा लंबा लौडा अंदर ले ली ..और अब उद्घाटन मेरा करवा रही है .... " बिंदु ने भी बराबरी में जवाब दिया ...

मैने ताली बजाते हुए कहा " सब्बाश बिंदु ....चल आज तू ने भी कुछ तो बोला ...."

मा भी बोली " हां रे देख तो आज बिंदु भी बोल रही है..."

सिंधु कहाँ चुप रहती ..उस ने फिर से मेरे लौडे को जकड़ते हुए कहा " सब भाई के हथियार का कमाल है मा ..."

मा जोरों से हंस पड़ी.." वाह रे भाई के लंड की दीवानी..तुझे हर बात में उसके हथियार का कमाल नज़र आता है ..ज़रा सुनूँ तो वो कैसे...?" मा की आँखों में फिर से वोई चमक और भूख दिखी.

सिंधु ने मेरे लंड को और भी अच्छे से जाकड़ लिया और मा और बिंदु की ओर करते हुए कहा

" देख ..इस हथियार ने आज बिंदु की चूत खोल दी ...और साथ साथ उसका मुँह भी खुल गया ..क्यूँ ठीक कहा ना मैने,,..?"

इस बात पर हम सब के साथ साथ बिंदु भी जोरों से हंस पड़ी और कहा ....

" उफफफफ्फ़.सिंधु..तू भी ना.... बात में तुझ से कोई जीत नहीं सकता.."

वैसे बात सिंधु की बिल्कुल सही थी ...अब धीरे धीरे बिंदु भी काफ़ी खुलती जा रही थी ..और घर में एक बड़ा ही मस्त माहौल होता जा रहा था ....

सिंधु अभी भी मेरे बगल बैठी मेरे हथियार को जकड़े थी ....

मैं आगे की ओर झूकता हुआ थाली से मीठा उठाया और बिंदु को कहा

" पास आ ना बिंदु ...चल तेरी उद्घाटन की खुशी में तेरा मुँह मीठा करता हूँ ... आ ना रे .."

बिंदु चाहे कितनी भी खुल जाए पर उसकी नज़ाकत तो रहेगी ही..उस ने शरमाते हुए ...आँखें नीची करते हुए अपना चेहरा मेरी ओर किया और मुँह खोल दिया ..

मैने पहले उसके होंठ चूमे और मीठा मुँह में डाल दिया ...

सिंधु उछल पड़ी .." वाह भाई ..मान गये ...तुस्सी ग्रेट हो...".और उस ने मेरे लौडे को छोड़ते हुए मीठा उठाई और मेरे मुँह में डाल दिया ..मैने भी उस के और मा के मुँह में मीठा डाली और फिर सब के सब खाने पर टूट पड़े...

खाते वक़्त खुशी के मारे मा की आँखों से आँसू टपक रहे थे ..

" आज पहली बार इतनी खुशी इस घर में आई है..बेटा मैं तो निहाल हो गयी .... तेरे जैसा बेटा और भाई सभी मा और बहनो को मिले ..." माँ ने अपने आँचल से अपने आँसू पोंछते हुए कहा ..

इस बार बिंदु भी बोल उठी " हां मा तू कितना सच बोल रही है...भाई हो तो मेरे जग्गू भाय्या जैसा .."

और उस ने मेरे गाल चूम लिए .

सिंधु ने भी मेरे से चिपकते हुए मेरी दूसरी गाल चूम ली ...

हम सब हँसी , मज़ाक के माहौल में खाना खाते रहे...

कहते हैं ना चुदाई के बाद लौडे की भूख तो शांत हो जाती है ..पर पेट की भूख जाग उठ ती है..मुझे भी बिंदु की चुदाई के बाद जोरों की भूख लगी थी , और आज ही बढ़िया खाना भी था ..छक के खाया मैने ...और शायद सब ने ....

खाने के बाद मैं तो खाट पे जाते ही लेट गया और , बाकी सब भी नीचे बिस्तर लगा लेट गये ..मा मेरे बराबर नीचे लेटी थी ...मैं उसी ओर करवट लिए उसे देख रहा था ...भरा भरा गदराया बदन ... मा काम से थकि थी ..सो रही थी ...उसकी करवट दूसरी तरफ थी ..उसकी चूतड़ मेरी ओर थी ... आज पहली बार उसकी चूतड़ इतने इतमीनान से देख रहा था..क्या गोलाई लिए हुए थे ...गोल गोल ... और सारी उसके चूतड़ की फाँक में घूसी हुई ... उसके चूतड़ के उभार बिल्कुल अछी तरह दिख रहे थे... मन तो किया के अपना मुँह चूतड़ में घूसा दूं और खा जाऊं ...

उसकी हर चीज़ मेरे लिए नायाब थी ... मा को देखते ही मुझे उस से लिपट जाने को जी करता ..उसमें समा जाने को जी करता था ...उस दिन कितना सुकून मिला था मा के साथ ..येई तो फ़र्क था उस में और बिंदु और सिंधु में ...बिंदु और सिंधु को चोद्ने के बाद मेरे लौडे की आग और भी भड़ाक जाती पर मा के पास मेरी प्यास और लौडे की आग शांत हो जाती...मा की रसीली चूत में लौडा शांत हो जाता और उसकी चूचियों चूसने से दिमाग़ शांत ...बिंदु को चोद्ने के बाद मेरे अंदर अभी भी आग लगी थी ...मैं बूरी तरह मा के पास जाना चाह रहा था ...जहाँ मेरी शांति थी ..हां मा सही में मेरी शांति थी ...

ऐसा सोचते सोचते ही मेरा लौडा तन्ना रहा था ...एक दम कड़क ..और मैं मा की ओर देखता हुआ अपने हाथ से लौडे को थामे धीरे धीरे हिलता जा रहा था ...दोनो बहेनें गाढ़ी नींद में थीं, मैं भी लौडा हिलाता जाने कब सो गया ..

नींद खुली तो देखा मेरी फूल्झड़ी सिंधु मेरे लौडे को थामे मुझे उठा रही थी ..

" भाई उठो , चलो चाइ पी लो ...सब तुम्हारे लिए बैठे हैं ..."

अच्छी नींद की वाज़ेह से मैं काफ़ी हल्का महसूस कर रहा था और सिंधु की हरकतों का जवाब देने को तैय्यार था ..

मैने उसे अपनी हाथों से थामा और अपने उपर लेता हुआ जोरों से भींच लिया और उसके होंठ चूसने लगा ...वो भी मुझ से लिपट गयी ...आख़िर सिंधु जो थी ..उसे तो बस मौका चाहिए ..

उधर चूल्‍हे के पास बिंदु और मा बैठे थे हमारे लिए ..

बिंदु बोली " देख ना मा ..तू ने सिंधु को भाई को उठाने को भेजा ..साली उसे क्या उठाईगी..खुद चिपक गयी है भाई से .. "

मा हँसने लगी और आवाज़ दी .." जग्गू बेटा चल उठ .. आ जा जल्दी चाइ पी ले और एक और अच्छी बात है आज की ..आ जा सुनाती हूँ.."

इस बात पर हम सब चौंक पड़े .." अच्छी बात..?? क्या है मा ..?? " मैने सिंधु के चेहरे को अलग करते हुए कहा

सिंधु ने भी कहा " वाह भाई ..क्या मौका देख तू ने बिंदु का उद्घाटन किया रे..."

और वो मेरे उपर से उठ ते हुए मेरा हाथ पकड़ मुझे भी उठाया और मुझे अपने से चिपकाते हुए उनकी ओर मुझे खिचते हुए चल पड़ी ..

हम दोनो भी वहाँ बिंदु और मा के सामने बैठ गये ..सिंधु मेरे से चिपकी बैठी थी ...मैं उसके पेट सहला रहा था ..

बिंदु खा जानेवाली निगाहों से हमें देख रही थी ..

सिंधु ने कहा .." अरे ऐसे क्या देख रही है..आ ना तू भी चिपक जा ...भाई का दिल और हथियार दोनो बहुत बड़ा है..क्यूँ है ना भाई..??" और मेरे लौडे को भी दबा दिया ..मैं सिहर गया ..

" चल बेशरम कहीं की , कुछ भी बकवास करती है ..." बिंदु ने चाइ का ग्लास मुझे थमाते हुए कहा

मैने एक हाथ से चाइ का ग्लास संभाला , दूसरा हाथ सिंधु के बदन से खेल रहा था ..

और सिंधु भी एक हाथ से चाइ पी रही थी और दूसरे हाथ से मेरे लौडे से खेल रही थी ..मा और बिंदु हमें देख मज़े ले रहे थे..

मैने कहा " हां मा बता ना क्या अच्छी खबर है ..?"

मा ने कहना शुरू किया" बेटा मिस्सेज़ केपर है ना , उनके बंगले का सर्वेंट क्वॉर्टर खाली है अभी..उन्होने हमें कहा है वहाँ आ जायें ..."

सुनते ही मैं उछल पड़ा ..." ये तो सही में बड़ी अच्छी बात है मा.."

मिसेज़ केपर जिनके यहाँ मा अभी सिर्फ़ झाड़ू पोंच्छा और बर्तन का काम करती थी ..काफ़ी पैसेवाली एक अधेड़ उम्र की औरत थी...उनका बंगला काफ़ी बड़ा था ...उनकी सिर्फ़ एक लड़की थी जो अपने पति के साथ बाहर रहती थी ..पति की मौत किसी बीमारी की वाज़ेह से तीन चार साल पहले हो गयी थी ..बेचारी अकेली थी ...और किटी पार्टी और ऐसी ही पार्टियों से अपना मन लगाती ..

" पर मा उनके यहाँ तो एक नौकरानी है ना ..?"" मैने कहा

" हां रे थी तो , पर उसकी चोरी की आदत से परेशान हो उस ने उसे निकाल दिया , और अब मेरे को बोलती है आ जाने को ..कोई ख़ास काम नहीं है ..सिर्फ़ उनका खाना बनाना ..बर्तन ,कपड़े , झाड़ू पोंच्छा ..और जो भी उपरी काम..पर मुझे बाकी काम छोड़ना पड़ेगा..सिर्फ़ उनका ही काम करना है ..."

सिंधु बिंदु तो बहुत खुश थे

बिंदु ने कहा " तो क्या है मा ...घर भी तो अच्छा है ना..इस झोपडे से तो लाख दर्ज़े अच्छा होगा ...अच्छा बाथरूम तो होगा ना वहाँ..?'

सिंधु ने पूछा " कमरे कितने हैं मा..??"

" हां रे बाथरूम भी है , किचन भी है और दो कमरे भी हैं..."

बाथरूम के नाम से बिंदु खिल उठी और दो कमरों के नाम से सिंधु ...

" ओओओह्ह्ह मा ..दो कमरे..?? उफ़फ्फ़ मज़ा आ गया ....एक कमरे में भाई रहेगा और बस हम तीनों में जिस का भी मन करे भाई के साथ ......उहह बस मा तुम हां कर दो ..."

हम सब सिंधु की बात से ठहाके मार रहे थे ...

" ये सिंधु भी ..बस इसके दिमाग़ में तो हमेशा एक ही बात रहती है.." बिंदु ने भुन्भूनाते हुए कहा ..

" अरे बाबा तुम दोनो लड़ना बंद करो ...... मैं उन्हें हां कर देती हूँ और मिस्सेज़ केपर कहें तो हम सब कल ही वहाँ चले जाएँगे .." मा ने आखरी फ़ैसला सुना दिया..

क्रमशः…………………………………………..
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10-15-2018, 10:56 PM,
#16
RE: Antarvasna kahani चुदासी चौकडी
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गतान्क से आगे…………………………………….

हम सब कितने खूश थे..'

सिंधु ने आख़िर बोल ही दिया..." ये सब भाई के लंड और दीदी की चूत का कमाल है...चाहे जो भी हो दीदी ..तेरी चूत है कमाल की..ऐसी खुली ..साली अपनी तो किस्मत ही खुल गयी ...भाई अब से तुम रोज इसकी चूत खुली की खुली ही रखना ..."

बिंदु उसे मारने को दौड़ी ..पर मैने उसे पकड़ लिया . और उसे चूम लिया ...और कहा " सिंधु ठीक ही तो कह रही है बिंदु..तू सही में कमाल की है.."

" उफफफफ्फ़..भाई तू भी ना.." और शरमाते हुए अपना चेहरा मेरे सीने पर रख दिया..बिंदु ने अपनी अदा दिखा ही दी ...

और फिर मा और सिंधु भी हम से चिपक गये .. हम सब नये घर की खुशियाँ एक दूसरे से बाँटने में जुटे थे....

दूसरे दिन मा ने मिसेज़. केपर से बात कर ली और हम सब अपने थोड़े से सामान के साथ अपने नये घर शिफ्ट हो गये ...नये घर के साथ हमारी एक नये जिंदगी की शुरुआत हुई....

सब बड़े खुश थे..सिंधु तो झूम रही थी खुशी के मारे ..उसे इस बात की खुशी थी के अब अपने प्यारे भाई के साथ इतमीनान से चुदाइ कर सकती है..बिंदु भी काफ़ी खुश थी पर उसकी खुशी में बाथरूम ने चार चाँद लगा दिए थे....उसे नाले की ओर जाने में बड़ी मुश्किल होती थी ...

और मैं..? मुझे तो बस मा का इंतेज़ार था ..कब मैं इस घर की चारदीवारी में , एक शकून भरे माहौल में उस के साथ खो जाऊं ..उसकी बाहों में , उसके सीने में समा जाऊं ....उसे इतना प्यार करूँ के हम दोनो सब कुछ भूल एक दूसरे में समा जायें ....मैं सिहर उठा इस सोच में ..मैं मा से लिपटने , उसमें समा जाने को तड़प रहा था ...

हमारे नये घर का माहौल ही अलग था ..कहाँ वो भीड़ भाड़ वाली झोपड़ी..जहाँ बाहर भी भीड़ और शोर-गुल ..और अंदर भी चार चार लोगो की जमात .... यहाँ हर तरफ बिल्कुल शांत था , अंदर भी बहार भी ..

म्र्स केपर के बंगले के चारों-ओर काफ़ी खुली जगह थी ...पेड़ पौधों से भरी..एक माली इनकी देख भाल करता... हमारा क्वॉर्टर बंगले के पीछे था , बंगले से लगा ...सामने भी खुला था और अपने पीछे भी खुला ...बड़ा मस्त था यहाँ का माहौल ...

मा म्र्स. केपर से पूछ कर उनके यहाँ से कुछ पूराने और बेकार पड़े फर्निचर लेती आई..दो तीन स्टील की कुर्सियाँ ..एक पुराना सा स्टील का पलंग ..जैसा हॉस्पिटल्स में होता...और एक स्टील का टेबल भी ...

इन्ही सब की सेट्टिंग और सॉफ सफाई में एक दिन निकल गया ...

मा सुबेह ही हमारी चाइ बना , बंगले पर चली जाती और वहाँ के काम निबटा ..करीब 12 बजे आ जाती ...खाने की चिंता नहीं रहती..खाना म्र्स केपर के यहाँ से लेती आती ...उनका बचा खुचा भी हमारे लिए बहुत था ...फिर शाम को करीब 4 बजे फिर जाती और रात का खाना साथ लिए करीब 8-9 बजे आ जाती ...

बिंदु और सिंधु भी अपने काम से सुबेह जा कर 12-1 बजे तक आ जाती थीं ..मैने भी अपना काम इसी हिसाब से सेट कर लिया था ...दो पहर के बाद मैं भी फ्री रहता था ..

मा की चाहत अपने चरम पर थी ...मैं पागल होता जा रहा था ...शायद मा का भी कुछ वोई हाल था ..सिंधु जब भी मेरे लौडे को थाम्ती ..बड़ी भूखी निगाहों से मा मेरे लंड को देखती. ..

रात हम सब खाना खा कर मा के कमरे में लेटे थे..मा स्टील वाले पलंग पर लेटी थी और मैं नीचे बीचे बिस्तर पर अपनी दोनो प्यारी बहनो के बीच..

अभी तक नये घर में चुदाई नही हुई थी ..आज मेरा मन चुदाई का उद्घाटन करने का था ..

मैं मा की ओर चेहरा किए लेटा था हम दोनो एक दूसरे को बड़ी ललचाई नज़रों से देख रहे थे ...और सिंधु मेरी ओर करवट लिए मेरी जाँघ पर अपना पैर रखे मेरे लौडे को मेरे पॅंट के उपर उपर से ही सहलाए जा रही थी ..और बिंदु मेरे से सटी हुई लेटी लेटी ही सिंधु की हरकतों का मज़ा ले रही थी ...

मैं गरम होता जा रहा था ..और लगातार मा को ही देखे जा रहा था..मा ने मेरी हालात समझ ली ..उस ने अपने ब्लाउस और ब्रा उतार कर अपनी चूचियों नंगी कर दीं ..और मुझे दिखा दिखा मसल्ने लगी ....उनकी निगाहें मेरे पॅंट के उभार की ओर थी

मैने मा की ओर देखते हुए कहा

" मा क्या देख रही है...देख ना सिंधु मुझे पागल कर रही है.." मैने कहा

मा ने जवाब दिया " अरे जग्गू वो बेचारी देख ना कितना प्यार करती है तेरे से...तभी तो ऐसा कर रही है .."

मा का जवाब सुनते ही सिंधु का मेरे लौडे से खेलना और भी ज़ोर पकड़ लिया ...और उसकी तंग मेरे जांघों के और भी उपर आ गये , उसका घूटना मेरे बॉल्स को दबा रहा था मैं मचल उठा ..

'"ऊफ्फ सिंधु...क्या कर रही है रे .." मैने कराहते हुए कहा ..

" क्या करूँ भाई..तेरा लंड है ही इतना मस्त..हाथों मे लेती हूँ ना..मुझे ऐसा लगता है मानो ये मेरी चूत के अंदर है .." सिंधु ने कहा और उसकी पकड़ और भी टाइट हो गयी

"मा सिंधु की किस्मत कितनी अच्छी है..उसे जो अच्छा लगता है कितने आसानी से मिलता जा रहा है .." मैं मा की ओर देखते हुए कहा ...मेरी नज़रों में मा ने अपने लिए तड़प देखी , और कहा

" अरे तो मेरे बेटे को किस ने रोका है....तेरा भी जो मन आए कर ना ..."

और ऐसा कहते हुए मा ने अपनी सारी भी कमर तक उठा दी ..और मेरी ओर थोड़ा और झूकती हुई अपनी टाँग घूटने से मोडते हुए उपर कर ली और फैला दी ..उसकी चूत , मुँह खोले मेरे सामने थी ..मैं तो पागल हो उठा .......

सिंधु और बिंदु भी बोल उठी " हां भाई ..तेरे को किस ने रोका ...हम सब तेरे लिए ही तो हैं ना .."

" सच्च ..?" ...मैने सब से पूछा .. मेरी नज़र अभी भी मा पर ही थी ..मा एक टक मुझे ही देखे जा री थी , उसका चेहरा तमतमाया और आँखें सूर्ख लाल , उस ने कुछ कहा नहीं...वो शायद अपने बेटे के अगले कदम का इंतेज़ार कर रही थी..

सिंधु अब मेरे से चिपक गयी थी और मुझे चूम रही थी उस ने अपने खेल को आगे बढ़ाते हुए मेरे पॅंट की ज़िप खोल मेरे लौडे को आज़ाद कर दिया . मेरा लौडा और भी कड़क होता हुआ उसकी मुट्ठी से जकड़ा था ...

बिंदु की नज़रें फटी की फटी थीं ... उस ने मेरे सीने में अपना सर रखे अपना मुँह छुपा लिया ..

मैं सीधा लेटा था और उसकी मुट्ठी में मेरा लौडा हवा से बातें कर रहा था..

मेरा मन तो मा को चोद्ने का था ..पर सिंधु के पागलपन और बिंदु की अदाओं को देख मैने सोचा चलो पहले इन्हें शांत कर दूँ ...फिर मा के साथ अपने कमरे में.......उफफफफ्फ़..मा के साथ होने की बात से ही मुझे झुरजुरी आने लगी...

मैने सिंधु को सीधा कर अपने बगल कर दिया..और उसकी सलवार का नाडा खोल दिया ..उसके सलवार को उसकी घुटनों तक कर दिया ..उसकी गीली चूत नंगी थी..और अपनी उंगलियाँ उसकी फाँक के उपर नीचे करने लगा ..सिंधु सिहर उठी ..और अपनी पकड़ और भी मजबूत कर ली मेरे लौडे पर...

बिंदु को अपने सीने से लगे रहने दिया और अपना दूसरा हाथ उसकी सारी के अंदर ले जाता हुआ उसकी चूत की फाँक पर भी मैं अपनी उंगली फेरने लगा ....

दोनो बहनो की चूत इतनी गीली थी ..मेरी उंगलियाँ फीसलती हुई उपर नीचे हो रही थी ..मेरी नज़र बराबर मा की ओर ही थी ...मैं "ऊवू मा ..ऊवू मा' की रट लगाए जा रहा था..मा अपने हाथों से अपनी चुचियाँ मेरी ओर किए मसल्ति जा रही थी ..

सिंधु सिसकारियाँ ले रही थी..मा मेरे लौडे को ही देखे जा रही थी और बिंदु मेरे से और भी चिपकती जा रही थी

मेरा लौडा सिंधु की हथेली में कड़क और कड़क होता जा रहा था ..मा मेरे लौडे को देख अपनी चूत और भी फैलाती जाती ..उसकी गुलाबी चूत से रस रीस रहा था ..और मा की नज़रें लगातार मेरे पर थी ...

अब सिंधु का भी हाथ और ज़ोर पकड़ता जा रहा था ..जैसे जैसे मेरी उंगलियाँ उसकी चूत पर उपर नीचे होती उसका हाथ उतनी ही तेज़ी से मेरे लौडे की चॅम्डी को उपर नीचे करती ..और बिंदु तो बस सिसकारियाँ लिए जाती और मुझ से ज़ोर और जोरों से चिपकती जाती ...और मेरे होंठ चूस्ति जाती ..उसने अपनी टाँग मेरी जाँघ पर रख दी थी ...और मेरी जाँघ अपने पैर से दबाती जाती ..

मुझ से रहा नहीं जा रहा था ....मेरा लौडा सिंधु की हथेली में कड़क होता जा रहा था ...मुझे ऐसा महसूस हुआ अब फॅट पड़ेगा ....मैं .."मा, मा..." कर रहा था ...सिहर रहा था ..."अया आ " कर रहा था ..सिंधु समझ गयी मैं झड़ने वाला हूँ, उसने अपने हाथ चलाने में और तेज़ी कर दी..तेज़ और तेज़ , मेरी उंगलियाँ भी उनकी चूत पे और भी तेज़ी से उपर नीचे होने लगी ...और फिर मेरा लौडा सिंधु की मजबूत पकड़ के बावजूद झटके पे झटका खाता खाता वीर्य का जोरदार फ़ौव्वररा छोड़ दिया , साथ साथ मेरे हाथ भी दोनो बहनो की चूत पर इतने जोरों से घिसाई की दोनो " हा हााईयईईईईईईईईईईईई हाइईईईईईईईईईई हाइईईईईईईईईईईई " करते चूतड़ उछालते उछालते अपनी अपनी चूतो के रस से मेरे हाथ गीले कर दिए और दोनो अकड़ते हुए ढीली पड़ गयीं ...हाँफने लगीं ...

मैं " मा मा "की रट लगाए उसे देखता देखता पस्त पड़ गया ...

मा की चूत से भी रस बूरी तरह टपक रहा था ..उसकी आँखें भी नशीली थीं ..मुझ से चूद्ने को बेताब ....

थोड़ी देर बाद मेरी सांस ठीक हुई ..दोनो बहेनें अभी भी सुस्त पड़ी थीं ..

मैं उठा ..मा की तरफ बढ़ा ..उन्हें अपनी गोद में उठाया , मा ने अपनी बाहें फैलाए अपने बेटे के गले को थामते हुए अपना सर मेरे कंधे पर रख दिया

" हां बेटा ..ले चल मुझे ..ले चल ....बहुत प्यासी है रे मेरी चूत...चल तेरे कमरे में ..." मा ने मेरे कान में धीमी आवाज़ में फूसफूसया ..

और मैं मा को उठाए ,उसके सीने को अपने सीने से लगाए ...उसकी चुचियाँ अपने सीने से चिपकाए था ...मा की टाँगें मेरे कमर के गीर्द थीं ..मुझसे बूरी तरह चिपकी ...मैं उन्हें बेतहाशा चूमे जा रहा था ..और अपने कमरे की ओर बढ़ता जा रहा था...

कमरे में जाते ही मैने मा को अपनी खाट पर बिठा दिया ..उसके पैर खाट से नीचे थे ..मेरा मुरझाया लौडा मा को गोद में लेने और उनकी जांघों के बीच घीसने से तन्न था..मैने अपना पॅंट उतार फेंका ..अपनी शर्ट भी उतार दी ...और मा का ब्लाउस तो पहले से ही उतरा था ...मैं उसके पैर की तरफ झूकता हुआ ..उसकी सारी और पेटिकोट भी उतार दी ...मा चुपचाप बैठी मेरी हरकतें देख रही थी ...अपने को अपने बेटे के हाथों नंगी होती देख उसके बदन सिहर रहे थे.
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10-15-2018, 10:56 PM,
#17
RE: Antarvasna kahani चुदासी चौकडी
हम दोनो बिल्कुल नंगे थे ...बिल्कुल उस तरह जैसा उनकी चूत से पहली बार इस दुनिया में आया था ...उफ़फ्फ़ मा के सामने नंगा होना भी कितना सुखदायी होता है...कोई शर्म लीहाज़ नहीं ....सब कुछ कितना अपनापन लिए होता है...पर मा को नंगी देखना ...ये शायद दुनिया का सब से अद्भूत नज़ारा था ....जहाँ से मैं निकला था ...उसे देखना ....एक कंपकपी सी आ रही थी मेरे पूरे बदन में .. ...उसके सामने खड़ा हो कर देखे जा रहा था .अपनी मा को ...उसके नायाब बदन को ...भारी भारी चुचियाँ ...गोल गोल घुंडिियाँ ...घुंडीयों के चारो ओर काले काले सिक्के जैसी गोलाई ....और उसके बीच घुंडी ...भरा भरा पर सपाट पेट और पेट के नीचे उसकी भारी चूतड़ ..बैठने से उसके चूतड़ खाट पर फैले थे... जंघें भी फैली थी ..उस ने अपनी टाँगें भी थोड़ी फैला दी थीं...उफ्फ चूत की फाँकें गुलाबी फाँक ....मैं उन्हें एक टक देखे जा रहा था ..

" बेटा ...कब तक देखता रहेगा ...मैं क्या तुझे इतनी अच्छी लगती रे..??" मा ने कहा ..

अब मैं मा की ओर अपना चेहरा किए उसकी गोद पर आ गया .मेरी टाँगें उसकी कमर को लपेटे खाट पर थी ..अपने लौडे को उसके पेट पर दबाता हुआ उस से लिपट गया ...और उसकी कान में कहा ....

" हां मा ..तू तो दुनिया की सब से खूबसूरत औरत है...तेरा सब कुछ कितना सुन्दर है मा .."

उसकी चुचियाँ हल्के से पकड़ लिया ..दबाया ...और मसल्ने लगा ... अपने होंठ उसके होंठों से लगा चूसने लगा ...

मा तड़प उठी ..मा की चूचियों में कितना प्यार भरा था ..उफफफ्फ़ ..जितनी बार दबाता ..मुझे ऐसा महसूस होता जैसे उसका प्यार छलक के उसकी घूंदियो से बाहर आ जाएगा ...

मा ने अपने हाथ मेरी पीठ पर रखते हुए मुझे अपनी ओर खिचा और वो भी मेरे होंठ चूसने लगी ..अपने बेटे के होंठ ...मा बेटा दोनो एक दूसरे का प्यार अपने में समेट लेने को बेताब थे ..तड़प रहे थे ...

हम सिसकारियाँ ले रहे थे , अया ..उउउः किए जा रहे थे..हम और , और और भी एक दूसरे से चिपके जा रहे थे

मेरा लौडा और भी कड़क होता जा रहा था ..मा के पेट में मानो घूसने को तैय्यार ...

मा ने अपना एक हाथ नीचे करते हुए मेरे लौडे को बड़े प्यार से थामा ..और सहलाने लगी ...जैसे उस ने हाथ लगाया , मेरा लौडा और भी तंन हो गया ..और उसकी चूत से पानी टपकने लगा ..

" आअह..... बेटा सिंधु ठीक ही कहती है..तेरा लौडा कमाल का है..हाथ में लो तो ऐसा लगता है जैसे ये मेरी चूत के अंदर है ...उफफफफफ्फ़ ...बेटा ..अब आ जा ना मेरे अंदर ...देख ना मेरी चूत कितना रो रही है तेरे लौडे से अलग होने पर...डाल दे ना अंदर ..मेरे बच्चे ...डाल दे ना ...." मा मस्ती में बोली जा रही थी

मैं उसकी चुचियाँ चूस रहा था ...मा की चूची ..सब से नशीली चूची ..मैं नशे में था ..

मैने उसे अब लिटा दिया

उसके पैरों के बीच बैठ गया ..मा की आँखें बंद थीं ... अपने बेटे को उसने अपने आप को सौंप दिया था ...

मा की टाँगें फैली थीं...उसकी चूत इतनी गीली थी ..उसकी चूत के होंठ , चमक रहे थे गीलेपन से

मैं झुकता हुआ उसकी फाँक अपनी उंगलियों से अलग किया ..अया कितनी गुलाबी थी अंदर ..कितना मांसल था और कितना मुलायम ...फूली फूली चूत ...

मैने अपने होंठ वहाँ रखे और उसकी चूत को होंठों से जाकड़ लिया और जोरों से चूस्ता रहा ..उसका पूरा रस मेरे अंदर एक ही बार पतली धार बनाता हुआ चला गया ..मा की चूतड़ उपर उछल पड़ी

" आआआः ....हाआाआआं रे ...अया ले ले बेटा ..अपनी मा की चूत खा जा ..पूरा रस पी जा ...अच्छा लगा ना ..? सब कुछ तो तेरा ही है बेटा ..इसी रस से तो तू बना था .. इसे तू पी जा ..पूरा पी जा ..हा रे ..हाआंन्‍नननननननननननणणन् ....ऊवू ..कितना अच्छा लग रहा है...." मा बद्बडाये जा रही थी ..

मैने उसके चूतड़ के नीचे हाथ रखे उपर उठाए उसकी चूत और भी अपने मुँह से चिपका लिया ..चूसे जा रहा था ...उफफफफफ्फ़ ..कितना सुख था उसकी चूत में ..मेरी सारी दुनिया थी वहाँ ... मेरा पूरा प्यार , पूरा सुख और सारी खुशियाँ मा की चूत में थी ..मैं सब कुछ अपने अंदर ले लेना चाहता था ..सब कुछ ...

मा तड़प रही थी ... बड़बड़ा रही थी ...अपनी चूतड़ उछाले जा रही थी ...

आख़िर मुझ से रहा नहीं गया ...मैं अब उसकी चूत के अंदर जा कर उसका सब कुछ महसूस करना चाहा ..उसकी चूत में अपनी उंगली डाल दी ....आआआआः मानो किसी गर्म , नर्म और मुलायम सी मक्खन के कटोरे में उंगली घूसी हो ...

मैं अपनी उंगलियों को अंदर ही अंदर घूमाता रहा ..और उसे महसूस करता रहा ...

मा की तड़प बढ़ती जा रही थी ..मछली की तरह ...

" बेटा ....अब डाल दे ना ...मैं मर जाऊंगी रे ...आआआः ....."

मुझे भी अब उसके अंदर अपने लौडे से महसूस करने की ललक हो रही थी ..

मैने अपनी अब तक उसके रस से सनी और चेपचीपी उंगलियों और हथेली को मा को देखाता हुआ चाट लिया ..फिर उसी हाथ से अपने लौडे को थामता हुआ उसकी फडक्ति चूत के मुँह पे रखा ..

मा ने फ़ौरन अपनी चूतड़ उपर की और मैने भी अपने लौडे को अंदर दबाया ...एक ही बार में फिसलता हुआ लौडा मा की नर्म , गर्म और मक्खन जैसी चूत के अंदर था ...

दोनो को राहत मीली..

" हां बेटा ..अब जितनी देर मेरे अंदर रहना है रह ..बस डाले रह मेरी चूत में ....रखे रह अपना लौडा मेरी चूत में ..जिंदगी भर ...आआअह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह..सारी जिंदगी बेटे के लौडे को लिए रहूंगी ..हां बेटा .."

और मैं भी अपना लौडा अंदर किए किए ही उस से चिपक गया ..बूरी तरह ...उसने भी मुझे अपने से चिपका लिया ...अपनी टाँगें मेरे चूतड़ पर रख दबाती रही ..ज़ोर और ज़ोर लगाती हुई..

मैं कभी उसकी चुचियाँ चूस्ता ...कभी उसके होंठ चूस्ता ...और अपना लौडा और भी अंदर तक दबाने की कोशिश करता ..मेरी जंघें , बॉल्स और लौडे की जड़ मा की चूत से चिपकी थी ..हम दोनो एक दूसरे से और , और और भी चिपकते जाते ..इतना की शायद एक दूसरे के अंदर समा जाने की कोशिश में तड़प रहे थे .

ये ऐसा सुख था ..जो शायद मा की चूत में ही मिल सकता था ..और कहीं नहीं ...

फिर मैने अपने लौडे को बाहर किया और झट से फिर से अंदर .... लंड के बाहर निकलते ही मा ने अपनी चूतड़ उपर उठा ली ..मानो उसे फिर से अंदर लेने की तड़प रही हो..मैने भी झट अंदर डाल दिया अपना गीला लौडा ...

उफ़फ्फ़ ये अंदर बाहर का खेल ..कितना नायाब था ... लौडा बाहर निकलते ही अंदर जाने को पागल हो उठता ..और मा की चूत भी उसे निगलने को छटपटा उठ ती ...

हम दोनो पागल हो रहे थे...

अंदर डालते ही मेरा पूरा बदन सिहर उठता , मा भी कांप उठ टी ...सिसकारियाँ लेती जाती ...

" ओऊओह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह ..जग्गू ...उफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफ्फ़ ..कितना सुख है रे तेरे लौडे में ..हां रे कितना आराम है ...ऐसा लग रहा है ..अंदर कितना खाली खाली था ...अब तू ने भर दिया ...सब कुछ दे दिया ..मैं निहाल हो गयी रे ..हां ..रे ..आआअह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह ...."

मा की सिसकारियाँ सुन सुन मैं और भी तड़प उठ ता ..और भी जोश में आता जा रहा था ...धक्के पे धक्का लगाए जा रहा था ...

फतच फतच और ठप ठप की आवाज़ों से हमारा नया कमरा गूँज रहा था ..कितना मज़ा आ रहा था ..कोई डर नहीं , किसी के सुन ने की परवाह नहीं ...वहाँ बस सिर्फ़ मैं था और मेरी मा ...

उसकी चूत कितनी गीली और गर्म थी ...

उसकी टाँगों की जाकड़ मेरे चूतड़ पर बढ़ती जा रही थी ..बढ़ती जा रही थी ...मेरा लौडा अंदर फीसलता हुआ जा रहा था ...इतनी गीली थी उसकी चूत ..

"हा ..बेटा ...हां रे ...अयाया ...ऊवू ..मैं मर जाऊंगी रे ..सहा नहीं जा रहा बेटा ....उफफफफ्फ़ ..क्या हो रहा है..ऐसा कभी नहीं हुआ रे ...अयाया ...क्या हो रहा है.." .और मा की चूत की पकड़ मेरे लौडे पर बहुत टाइट हो गयी ...फिर एक दम से ढीली ..फिर टाइट , फिर उसके चूतड़ ने उछाल मारी ..एक बार , दो बार और मेरा पूरा लौडा उसके गाढ़े रस से सराबोर होता गया ..और फिर मा के हाथ पैर ढीले पड़ गये ..

क्रमशः…………………………………………..
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10-15-2018, 10:56 PM,
#18
RE: Antarvasna kahani चुदासी चौकडी
-9

गतान्क से आगे…………………………………….

उसके रस की धार से मेरा लौडा भी सिहर उठा ...उसकी गर्मी से गन्गना उठा और मैं भी झटके पे झटके खाता उसकी चूत के अंदर झाड़ता गया ..झाड़ता गया ,..उसकी चूत मेरे वीर्य की पीचकारी से भर गयी ...वो भी सिहर उठी ..उसका सूस्त बदन भी कांप उठा ......

मैं पस्त हो कर उसके सीने से लगा उसके उपर ढेर हो गया ..मा के सीने पर सर रखे हांफता जा रहा था ..

मा मेरे बालों को सहला रही थी.."हां बेटा ...हां ..आ जा मेरे लाल ..हां आ जा मेरी गोद में ..मेरे सीने से लगा रह ..." और मेरे गले में अपनी बाहें डाले मुझे अपने सीने से और भी चिपका लिया ...मुझे अपनी बाहों के घेरे में , अपनी महफूज़ सीने से लगा लिया... ..

मैं मा की बाहों और गर्म सीने से लगा ..जाने कब सो गया ...गहरी नींद में...

नींद खुली तो देखा सुबेह हो चुकी है....रात भर मैं बेहोशी के आलम में सोता रहा ..इतनी अच्छी नींद आज तक मुझे नहीं आई...मा की गोद में ...उसकी नर्म , गरम छाती से लगा ...काफ़ी हल्का महसूस हो रहा था ...मानो सर के अंदर बिल्कुल खाली हो...

मेरा सर अभी भी मा के सीने पर ही था..मा की नींद भी खुल गयी थी ...उसके चेहरे पर भी सुकून था ... अलसाई सी थी उसकी आँखे ... सूस्त ..जैसे सारी थकावट उसकी दूर हो गयी हो...

मैने अपना सर उसके सीने से हटाता हुआ उसके बगल लेट गया ..उसकी बाहों का तकिया बनाए और उसके टाँगों पर अपनी टाँगें रख उसे अपनी तरफ खिचाा और उसके होंठ चूसने लगा ..

"उफफफफफफ्फ़..कितना चूसेगा रे..रात भर तो चूस चूस के देख ना कितना सूज गया है...चल अब हट ... सुबेह हो गयी है..मुझे जाना है ना बंगले पे...चल छोड़ ना बेटा .." मा ने मुझे अपने से अलग करने की कोशिश की ..पर मैं उस से और भी लिपट गया..

"उम्म्म्मम..मा ...सुबेह सुबेह तेरे होंटो का रस सही में कितना ताज़ा ताज़ा है ..थोड़ी देर चूसने दे ना .."

" हाईईईईईईईईईईईईईईई रे ..हाईईईईईईईईईईईईईईईईईई ..अब सुबेह सुबेह मेरे होंठ भी तेरे को चाहिए ...ले ले बाबा ले ले ..जल्दी कर .." और अपना होंठ उस ने मेरे होंठों से और भी चिपका दिया ...मैं उसकी चुचियाँ मसलता हुआ होंठ चूसे जा रहा था ...."

" बस बस अब बहुत हो गया ...चल उठने दे ना बेटा ..चूसना ना ..अब क्या है ...जब जी में आए चूस लेना ....मैं कहीं भागी थोड़ी जा रही हूँ बेटा....चल छोड़ ना ...." और इस बार वो मुझे अपने से हटाते हुए उठ गयी ...और फिर अपने कपड़े उठाए और चल पड़ी बाथरूम की ओर...

मैं होंठों पर अपनी जीभ फ़ीराते हुए उसके रस का स्वाद लेता रहा ...

मैं भी उठा ..मेरा लौडा मा की चुसाइ से बिल्कुल सामने की ओर सलामी दे रहा था..हिलता हुआ फन्फना रहा था...

मैं अपनी बहनो के कमरे की ओर रुख़ किया ...सोचा वहीं अपने लौडे को शांत किया जाए ..

वहाँ अंदर गया कमरे में ..तो देखा दोनो बहेनें अभी भी वैसे ही सो रही थीं नीचे बिस्तर पर...

दुनिया से बेख़बर ... कितनी मासूम लग रही थीं दोनो ...

मैं भी वैसे ही दोनो के बीच लेट गया ...और बारी बारी से दोनो को चूमता रहा ...मा के होंठों के बाद इनके होंठों का मज़ा कुछ और ही था ..मा के होंठ मुलायम , भरे भरे और रसीले थे , इनके होंठ पतले पर भरे भरे , कमसिन जवानी की आग थी उनमें ..कसी कसी और नशीली ... अफ दोनो नायाब ...

सिंधु मेरे चूमते ही जाग गयी , बिंदु भी जाग गयी और मेरे सीने पर शरमाते हुए अपना चेहरा रख लिया ..और मेरे सीने पर अपने हाथ फेरने लगी ..बिंदु को मेरे सीने से लगने की चाहत रहती तो सिंधु को मेरे लौडे को थामने की ...

दोंनों अभी भी नींद की खुमारी में थे ..

मैं सीधा लेटा था और मेरा लौडा हवा से बातें कर रहा था ...

सिंधु की आँखों में चमक आ गयी

" उफफफफ्फ़ ... भाई ये लौडा है या बाँस का खंबा ...." उस ने बिना देर किए उसे झट अपनी मुलायम हथेली से थाम लिया और दबा दिया ..मैं सिहर उठा ..मेरा मन किया अभी के अभी डाल दूं उसकी चूत में ...और फिर उसकी चूत उसकी सलवार के उपर से ही अपनी उंगलियों से दबा दिया...

सिंधु चहूंक पड़ी ...

उसे मेरी आँखों में चूत की भूख दिखाई दी...

" भाई चोदेगा क्या ....चल आ जा जल्दी से चोद ले ..मुझे भी बड़ी चूदास लगी है रे ... लगता है कितने दिनों से प्यासी है .."सिंधु बोल उठी ..

बिंदु ने उसकी बात सुनी और जवाब दिया ..

" हां भाई चोद ले सिंधु को ..साली बहुत छटपटा रही है ..पर यही पर चोद्ना ..मेरे सामने ...मैं भी देखूं ज़रा साली कैसे चूद्ति है अपने भाई से ...चल ना भाई ..सुबेह सुबेह एक मस्त नज़ारा ले लें ..फिर रात को मुझे भी चोद देना ..."

मैं तो दोनो बहनो की बातें सुन सुन हैरान था ...कितनी बेबाक हो गयी थीं दोनो अपने भाई से ..

मैं तो बस तैयार ही था .....मा अभी तक बाथरूम में ही थी ..पर अब किसी के रहने यह ना रहने का दर और झिझक हमारे बीच नहीं था ...हम चारों अब एक दूसरे से बिल्कुल अच्छी तरह खुल गये थे ....और एक दूसरे की ज़रूरतों और मूड से वाक़ीफ़ हो चूके थे ..और उसे पूरी करने को जी जान से जुट जाते

मैं सिंधु की ओर बढ़ा ...उसकी टाँगों के बीच आ गया ...

उसकी सलवार का नाडा खोल दिया , उस ने अपने चूतड़ उठाए और खुद ही सलवार को पैरों से बाहर कर दिया और अपनी टाँगें फैला दीं..उसकी चूत तो मेरे लौडे को थामते ही पहले से ही पूरी तरह गीली थी ...सुबेह का टाइम था और हमें काम पर भी जाना था मैने देर करना ठीक नहीं समझा ..

उसकी टाँगें फैलाई और बिंदु झट से अपनी शर्म छोड़ ..हम दोनो के बगल आ गयी और सिंधु की कमीज़ उसके सीने से उपर कर उसकी चूचियों को हल्के हल्के मसल्लना शुरू कर दिया ...

सिंधु तड़प उठी और सिसकियाँ लेते हुए कहा " भाई देर ना करो ..बस अब डाल दो ना ...बस डाल दो कुछ सोचो मत .."

बिंदु का मुँह हमारी तरफ था , मैने अपना लौडा थामा और सिंधु की चूत पे लगाया , मैं इतना पागल हो उठा था एक ही झटके में उसकी चूत के अंदर धँसा दिया ...चूत इतनी गीली थी ..पर टाइट भी ..फिसलता हुआ अंदर गया पर आधे में फँस गया ...

" आआआआः भाई .ज़रा धीरे करो ना ..मा की चूत नहीं है ना ...दर्द होता है .."

मैं थोड़ी देर रुका ...बिंदु ने उसकी चुचियाँ मसल्ते हुए उसे चूम लिया और उसके होंठ चूसने लगी

मैने दूबारा लौडा अंदर पेला ..इस बार पूरा अंदर था

" अभी कैसा लगा सिंधु ..?" मैने पूछा

"मत पूछ भाई ...आ कितना मस्त है रे..अंदर ऐसा लग रहा है जैसे अंदर की खूजली पर कोई मोटी सी उंगली कर रहा हो...बड़ा अच्छा लगा रहा है भाई ..बस अब करते जाओ..रूको मत " और उस ने अपनी चूतड़ उपर कर दी ..टाँगें और भी फैला दी ..अब रास्ता खुला था पूरी तरह ..

और मैने तबाद तोड़ अंदर बाहर का खेल शुरू कर दिया ...

हमारी चुदाई का खेल चालू था ...बिंदु अपने एक हाथ से सिंधु की चुचियाँ मसल रही थी और दूसरे हाथ की उंगलियों से , सारी को अपने घूटने तक कर अपनी गीली चूत की फाँक पर बूरी तरह रगड़ती जा रही थी ..उसकी आँखें बंद थी

मेरे धक्कों के साथ सिंधु की सिसकारियाँ बढ़ती जाती और बिंदु की उंगलियाँ अपनी चूत पर और भी तेज़ होती जाती ...और उसका चेहरा मस्ती से भरता जाता ..मैं तो पहले से ही मस्त था ...ज़्यादे देर तक टीक नहीं सका .सिंधु की टाइट चूत की पकड़ ने भी मस्ती को और भी बढ़ा दिया ..मैं जोरदार धक्के पे धक्का मारता हुआ झड़ने लगा ...

ज़ोर्दार पीचकारी उसकी चूत के अंदर छोड़ने लगा ..और बिंदु हाँफती हाँफती अपनी उंगलियों का चलाना तेज़ करती गयी और मुझे झाड़ता देख वो और भी मस्ती में आ गयी अपनी टाँगें फैलाई फैलाई चूतड़ उछालते हुए गाढ़ा गाढ़ा रस अपनी चूत से उगलने लगी ..

उधर सिंधु भी मेरे गर्म वीर्य की धार से गन्गना उठी ..सिहर गयी और मुझ से चिपक गयी बूरी तरह , मेरे लौडे को अपनी चूत से जाकड़ लिया ...कुछ देर तक ऐसे ही जकड़ी रही अपनी चूत से मेरे लौडे को ..मानो उसे अपनी चूत से चूस डालेगी..और मुझ से और भी जोरों से चिपक गयी ..और फिर ढीली हो कर मेरे नीचे पड़ गयी ...

अया क्या मस्ती थी सुबेह सुबेह ...हम तीनों एक दूसरे से लिपटे थे....और एक दूसरे को चूमे जा रहे थे ...

" सिंधु..आज ज़यादा दर्द तो नहीं हुआ ना रे..? मैं बहुत जोश में था .." मैने सिंधु को चूमते हुए कहा

" नहीं भाई ..अब मेरी चूत बिल्कुल तैय्यार हो गयी है भाई के बाँस के खंबे के लिए.."और उस ने हाथ.नीचे करते हुए अपने प्यारे प्यारे खंबे जैसे मेरे लौडे को , जो अब तक सिकुड कर बाँस के लंबी , सुखी , पतली पट्टियों की तरह झुका झुका और मुरझाया सा था ....

हम आपस में ऐसे ही लिपटे एक दूसरे से खेल रहे थे .कभी चूमते , कभी चाट लेते , कभी दबा देते ...सिंधु मेरे लौडे से खेलती रही और बिंदु मेरे सीने पर हाथ फेरती रही ...बड़ा ही प्यारा माहौल था ..

तभी मा बाथरूम से बिल्कुल तरो-ताज़ा हो..बाहर आई और हमे मस्ती करते हुए देखा और बोल उठी ;

" वाह रे ...सुबेह सुबेह इतना प्यारा माहौल...बस ऐसे ही तुम लोग हमेशा प्यार करते रहो...पर अब उठो भी ...तैय्यार हो जाओ ..मैं जाती हूँ चाइ बनाती हूँ...मुझे देर हो रही है..."

और हम सब फिर से एक दूसरे को चूमते हुए उठ गये... आज के दिन की शुरुआत हो चूकी थी ...प्यार , और रस से भरपूर शुरुआत .

और इसी तरह मस्ती , प्यार और हंसते , मुस्कुराते हमारे दिन गुज़रते गये . हम सब एक दूसरे के इतने करीब थे के एक दूसरे के दिल की बातें , देखते ही समझ जाते ...हम बस अपनी ही दुनिया में मस्त थे ...एक दूसरे में खोए ..किसी और की हमें परवााह ही नहीं थी ..बस हम थे और हमारी चुदासि-चौकड़ी .....येई हमारा मक़सद था ...ये चुदासी-चौकड़ी का नामकरण हमारी सब से चुदासि बहेन सिंधु का ही दिया था ...बड़ा सटीक नाम था ...

ऐसे ही करीब महीने दो महीने निकल गये ......

एक रोज की बात है....

मैं अपने काम से उस रोज कुछ जल्दी ही घर आ गया ...मा अभी भी बंगले पर ही थी

मैं हाथ मुँह धो बिस्तर पे लेटा था ..

दरवाज़े पे ख़त-खत हुई ..मैं बाहर आया तो देखा बंगले का माली वहाँ खड़ा था ..

मैने पूछा " क्या है शंकर भाऊ ..? " उसे सब इसी नाम से बुलाते ...थोड़ा बुज़ुर्ग था ...इसलिए भाऊ याने बड़े भाई के तरह उसे मानते...

" जग्गू ..तुझे मेम साहेब ( म्र्स. केपर ) बूला रही हैं ..जल्दी जा ..."
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10-15-2018, 10:56 PM,
#19
RE: Antarvasna kahani चुदासी चौकडी
मैं बड़ा हैरान था ... म्र्स केपर मुझे क्यूँ बुलाने लगी..और मा तो वहीं हैं ..फिर कोई काम होता वे मा से भी बता सकती थीं..मुझे बुलाने की क्या ज़रूरत..? और आज तक तो कभी उन्होने बुलाया नहीं ...क्या बात हो सकती है..?

हम सब वहाँ उन्हें मेम साहेब ही बोलते थे....एक दो बार मैने उन्हें देखा भी था ..बहुत सीरीयस सी लगी मुझे ..थोड़ी मोटी..भारी भारी सा बदन ...एक पंजाबी औरत की तरह ...बिल्कुल गोरी चिटी ..पर मिज़ाज़ हमेशा गर्म ही रहता ....मैं डरा डरा सा था ...

मैने फिर से भाऊ से पूछा " मेम साहेब मुझे बूला रही है..?? क्या बात है भाऊ..?"

" अब मैं क्या बताऊ रे जग्गू ..जा जल्दी जा ..देर ना करना ..वरना चील्लायेगि ..."

" अच्छा ठीक है तू चल मैं अभी के अभी आया ..कपड़े तो पहेन लूँ "

भाऊ वापस लौट गया और मैं अंदर गया..कपड़े पहेने , बाल-वाल ठीक किए और बंगले की ओर निकल पड़ा .

मेरे चेहरे पे एक उलझन, शंका, डर , परेशानी ..इन सब का मिला जुला झलक सॉफ नज़र आ रहा था ..

मैं लंबे लंबे कदमों से वहाँ पाहूंचा .

बरामदे की सीढ़ियाँ चढ़ ही रहा था के दरवाज़ा खुला और मा बाहर आई ...और मुझे देखा ..मैं परेशान सा था ...मा ने मेरे चेहरे पे हवाइयाँ उड़ते देखा और वो जोरों से हंस पड़ी ...

मुझे थोड़ा गुस्सा भी आया ..मेरी जान निकल रही है और ये हँसे जा रही है...

मा मेरे पास आई ..मेरे गालों को पूचकारते हुए कहा

" अरे..अरे तू तो बड़ा परेशान है...अरे कोई परेशानीवाली बात नही ..अंदर जा और मेम साहेब से अदब से बात करना ..और जो वो कहें हां कर देना ...ठीक है ना..? " उस के चेहरे पर एक अजीब सी मुस्कान थी ..मुझे कुछ समझ नहीं आया उसकी मुस्कुराहट के पीछे क्या छिपी थी ...

मैने " हां " में गर्दन हीला दी ..पर चेहरे पे उलझन कम नहीं हुई और भी बढ़ गयी ..

मा तो मुझे दिलासा देती हुई अपनी अजीब सी मुस्कान लिए आगे बढ़ गयी घर की ओर ..पर मैं और ही हैरान परेशान था ..

मेम साहेब मा से भी खबर भिजवा सकती थीं ...मेरे को ही क्यूँ बुलाया ..मैं लाख कोशिश करता रहा ..दीमाग चलाता रहा ..पर ये सवाल अभी भी मेरे सामने पहाड़ की तरह खड़ा था ...

मैने डरते डरते अपने कदम आगे बढ़ाए ..दरवाज़े के बाहर अपने चप्पल उतारे और दरवाज़ा खटखटाया ...

अंदर देखा तो वहाँ कोई नहीं था ..ड्रॉयिंग रूम खाली था ...

थोड़ी देर तक दरवाज़े पर ही खड़ा रहा ...कोई बाहर नहीं आया ..मेरी परेशानी बढ़ती जा रही थी ..एक मिनिट..दो मिनिट ..कोई नहीं ..मैने फिर से दरवाज़ा खटखटाया ...

इस बार अंदर से आवाज़ आई " कौन है ..?" बड़ी रुअब्दार और कड़क आवाज़ थी ...एक औरत की आवाज़ और इतनी रूखी ..मेरी तो जान ही निकल गयी ...मैने इस से पहले कभी भी मेम साहेब की आवाज़ नहीं सुनी थी ...पर उनका सीरीयस चेहरा ज़रूर देखा था..और ये आवाज़ उनके सीरीयस चेहरे से बिकुल मेल खा रहा था

मैने हकलाते हुए जवाब दिया " मैं हूँ जग्गू..मेम साहेब.." मेरी आवाज़ ऐसी थी ..मुझे खूद सामझ नहीं आया ये आवाज़ मेरी ही थी ...

" ओऊह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह जग्गू ..तू आ गया ...ज़रा बैठ , मैं बस आई.." इस बार आवाज़ कुछ नर्मी लिए थी...थोड़ी राहत मीली ....

मैं खड़ा ही रहा , थोड़ी देर बाद ड्रॉयिंग रूम की सीढ़ियों से चलती में साहेब नीचे उतरने लगी ...

मेरी परेशानी फिर से बढ़ गयी ...

मैं आँखें फाडे उनकी तरफ देख रहा था ..क्या यही हैं वो सीरीयस सी दिखनेवालि मेम साहेब .???

एक मोटी औरत भी इतनी खूबसूरत दिख सकती है ..आज तक मैने सोचा ना था ..

जैसे जैसे सीढ़ियों से उतरते पास आती जाती ..उनके शरीर की बनावट और खूबसूरती भी मेरे सामने उभरती जाती ...

आज तक मैने उन्हें इतने पास से कभी नहीं देखा था ...और ज़्यादा ध्यान से भी नहीं देखा था ...

उनकी हाइट एक औरत की उँचाई के हिसाब से ज़्यादा ही थी ..इस से उनका मोटापा ज़्यादा नहीं दिखता ..मांसल बाहें ...भरा भरा सीना ..लो कट कुर्ता था .....दूधिया रंग ...नाक नक्शा भी सुडौल ...गहरे पिंक लिपस्टिक ...होंठों पर खीलते हुई ...टाइट सलवार से जंघें बाहर निकलने को बेताब ....

और हल्का सा पर्फ्यूम ...

उनका ये रूप मेरी परेशानी को और भी बढ़ा दिया ....पर डर कम हो गया ...कम से कम इतना मुझे विश्वास हो गया और कुछ भी कर लें मेम साहेब ..पर इस रूप में गुस्सा तो नहीं ही करेंगी..

मैं अभी भी खड़ा ही था ..

वो पास रखे सोफे पर आ कर बैठ गयी ..और मुझे अपने पास बुलाया

" आ जग्गू बैठ ..खड़ा क्यूँ है ..? "

मेरी हिम्मत नहीं हुई उनके साथ बैठने की " नहीं मेम साहेब मैं यहीं ठीक हूँ.."

" अरे आ तो ..मैं क्या इतनी भयानक हूँ..मेरे से डर लग रहा है तेरे को..? " उन्होने हंसते हुए कहा ..

" आ जा आ पास बैठ ..तुझ से कुछ ज़रूरी बातें करनी है..तू उतनी दूर खड़ा रहेगा फिर बातें कैसी होगी..?? डरो मत ..आ जाओ.." उन्होने बड़ी प्यारी प्यारी आवाज़ में कहा..

मैं सेहम्ते हुए पास गया और उन से कुछ दूरी बनाते हुए सोफे के बिल्कुल आगे की तरफ बैठ गया ..सर सामने की तरफ ...

उन्होने समझ लिया फिलहाल मैं इस से ज़्यादा और पास नहीं आ सकता ...

उन्होने बात शुरू की

" देख जग्गू ..तुझे कार चलानी आती है ना ..?? शांति बता रही थी तू जानता है...?"

'' हां मेम साहेब ..पर मेरे पास लाइसेन्स नहीं.." मैने कार सफाई करते करते अपने एक और सफाई करनेवाले दोस्त से जो पार्ट टाइम ड्राइवरी भी करता था ..उस से कार चलाना सीख ली थी...ये मेरे लिए भी ज़रूरी था ..क्योंकि कभी कभी सफाई की कार आगे पीछे भी करनी पड़ती थी , और कभी वॉश करने के लिए पानी के नल के पास कार ले जानी पड़ती ..कार चलाना जान ने से मेरे काम में सहूलियत होती

" कोई बात नहीं जग्गू ..फिलहाल कॉंपाउंड से बहार जाने की ज़रूरत नहीं ..तू मुझे कार चलाना सीखा दे ...कॉंपाउंड के अंदर ही..बोल सीखायगा ..?? कुछ दिनों बाद मैं अपना और तेरा दोनो का साथ ही पक्का लाइसेन्स भी बनवा दूँगी..."

बात करते करते मेम साहेब मेरे करीब आ गयी ..मुझ से लघ्भग चिपकती हुई...उनके बदन की खूशबू मुझे और भी परेशान कर रही थी ..आज मेरी परेशानी कम होती नज़र ही नहीं आती ...

" हां मेम साहेब सीखा दूँगा ..." मैने धीमी आवाज़ में कहा ..

" गुड ..चलो अच्छा हुआ तुम ने हां कर दी..कल से शुरू कर दें..? मैं इतने दिनों से तेरे को देख रही हूँ..तू काम से आता है फिर हमेशा घर पर ही रहता है..और लड़कों की तरह आवारगार्दी नहीं करता ..इसलिए मैने तुझ को ही बोला ..." ऐसा कहते हुए उन्होने अपना एक हाथ मेरे कंधे पर रख दिया और उसे हल्के से दबा भी दिया ...

उनकी इस हरकत से में चौंक उठा ..और उनकी तरफ देखा ... उनके चेहरे पर हल्की सी मुस्कान थी ..

" अरे बाबा तू इतना आगे क्यूँ बैठा है..आराम से बैठ ना ..."

" जी मैं ठीक हूँ .. " मैं ने फिर से धीमी आवाज़ में कहा ..

"खाक ठीक है..चल पीठ पीछे कर और सोफे से पीठ टीका ...दिखने में इतना लंबा चौड़ा लगता है..पर इतना डरता है ...मैं कोई खा जाऊंगी ..??" और हँसने लगी

क्रमशः…………………………………………..
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10-15-2018, 10:57 PM,
#20
RE: Antarvasna kahani चुदासी चौकडी
10

गतान्क से आगे…………………………………….

उनकी ऐसी बातों से मुझे थोड़ी राहत मीली और मैं पीछे सरकता हुआ थोड़े आराम से बैठा ...

पर मैं सोचने लगा..इनके पास तो ड्राइवर है ..फिर इन्हें कार चलाना क्यूँ सीखना है ..और सीखना भी है तो मुझ से क्यूँ..? ड्राइवर से ही सीख लेतीं ....

उनकी नज़र मेरी तरफ ही थी ...उन्होने भाँप लिया मैं किसी सोच में हूँ ..

" क्या सोच रहा है तू...कोई प्राब्लम है सीखाने में..?"

" अरे नहीं मेम साहेब कोई प्राब्लम नहीं ..पर आप अपने ड्राइवर से ही क्यूँ नहीं सीख लेती?"

" हां रे सीख तो लेती उस से ..पर वो तो नौकरी छोड़ रहा है ..उसे यहीं कॉर्पोरेशन में नौकरी मिल गयी ..एक दो दिनों में चला जाएगा ..मैने सोचा मेरी गाड़ी ज़्यादा चलती नहीं दूसरा ड्राइवर क्यूँ रखूं..क्यूँ ना खुद ही ड्राइविंग सीख लूँ ... ?" और अब उनका दूसरा हाथ मेरी जाँघ पर था ... और उन्होने बड़े ही आराम से रखा .जैसे ये बस ऐसे ही हो गया हो ...

पर मेरी तो साँस अटक गयी ... एक हाथ से मेरा कंधा दबा रही थी और दूसरा हाथ मेरी जाँघ..

और मैं बीच में उनके भारी और मांसल हथेलियों की गर्मी से कांप उठा था ...उनके पर्फ्यूम से मदहोशी छा रही थी...सीधा असर उसका मेरे पॅंट के अंदर हो रहा था ...

" हां मेम साहेब बात तो आप ठीक कह रही हैं ... " मेरी आवाज़ थोड़ी भर्राइ थी.

" तो मैं ये समझ लूँ ना के तू मुझे सीखायगा कार चलाना..??"

" हां मेम साहेब ..क्यूँ नहीं ...मुझे कोई दिक्कत नहीं ..आप बताइए कब आऊ..??" मुझे मा की बात याद थी के "मेम साहेब जो भी कहें हां कर देना" ... और मैने मा की बात रख ली ..पर यह बात और थी के इस " हां " में मेम साहेब का भी कितना " हाथ " था ....

" वाह ...तो फिर कल से शुरू कर दें ...तू कल से ठीक 4 बजे शाम को आ जाना ...और अंधेरा होने से पहले तक जितना हो सकेगा सीख लेंगे ..." और उनकी मेरे जाँघ के उपर वाली हथेली थोड़ी सी नीचे सरक गयी थी "अंजाने" में ही मेरे कड़क लंड को छू रही थी ...

मैं फिर से चौंक गया ..और उनकी तरफ देखा ...मेरी हिम्मत कुछ बढ़ गयी,,..अपनी आँखें उनकी आँखों में डालते हुए , एक टक देखता रहा और फिर कहा...उनकी आँखें भी मुझे एक टक देख रही थी ...

" तो ठीक है मेम साहेब ...कल से शुभ काम शुरू करते हैं ..मैं चलूं अब..?" मैं उनकी आँखों में झाँकते हुए कहा

" हां रे ज़रूर ..कल से आ जाना ठीक 4 बजे..." और मैं उठता उस से पहले उनके दोनो हाथों ने फिर कमाल दिखाया ...कंधे को जोरों से दबाया और जाँघ की हथेली ने उंगलियो को और नीचे पहूंचाते हुए मेरे कड़क लंड को सहला दिया ....

फिर से हम दोनो एक दूसरे की आँखों में झाँक रहे थे ....

हम दोनो उठे...मेरी आँखों में तड़प थी , उनकी आँखों में चमक और होंठों पर एक शरारती मुस्कान .....

मैं मेम साहेब के ड्रॉयिंग रूम से बाहर आया...राहत की सांस ली....पर मेरी उलझन और भी बढ़ गयी...क्या जो भी अंदर हुआ अभी अभी ..सब सच था यह सपना...मेम साहेब का इतने हंस हंस के इतने प्यार से मुझ से बातें करना..उनकी उंगलियों का मेरे लौडे को छूना और सहलाना...मुझे कंधों से जकड़ना ....ये सब बस ऐसे ही अंजाने में हो गया यह फिर किसी और मतलब से ...

इन सब सवालों के जाल में मैं बूरी तरह फँसा था .. मेम साहेब की बातों का ग़लत मतलब निकाल अगर मैं कुछ बेवकूफी कर दिया तो लेने के देने पड़ जाएँगे ...उनका हमारे उपर काफ़ी अहेसान था ...एक भी ग़लत कदम और हम फिर से झोपड़ी वाली गली में ....मुझे बहुत फूँक फूँक कर कदम उठाना था ...तभी मेरे दिमाग़ में मा की तस्वीर कौंध गयी ..जब वो बंगले से बाहर आ रही थी उसके चेहरे पर अजीब सी मुस्कान थी .....मतलब इन सब बातों का मा से भी कोई ताल्लुक है ....मा से पता किया जाए ....

और मैं तेज़ कदमों से अपने घर पहून्चा ...

मा किचन में थी और सिंधु और बिंदु अभी तक आए नहीं थे ...

मैने स्टील वाली कुर्सी उठाई और किचन के अंदर गया ..मैं कुर्सी उसके बगल रख बैठ गया ...

मा ने पूछा " आ गये बेटा..? क्या बोली मेम साहेब ..?"

मैं बोला " वो मुझ से ड्राइविंग सीखना चाहती हैं .." मेरी आवाज़ में थोड़ी परेशानी झलक रही थी ...

" तो सीखा दे ना ...इसमें तेरे को क्या मुश्किल है ..?"

" मा ..पर जाने क्यूँ मुझे लगता है वो कुछ और भी करना चाहती हैं..जो शायद मेरे लिए मुश्किल है .." मैने सीधा सा जवाब दिया

" क्या मतलब रे तेरा ..? " मा ने मेरी तरफ देखते हुए कहा ..मानो उसे कुछ पता ही नहीं.

" मा अब मैं कैसे बताऊं ... ?" मैने नाटक किया, देखते हैं मा क्या बोलती है ..

" अरे वाह इतना बड़ा गबरू जवान है..और तेरे को बताने में मुश्किल हो रही है..बोल ना रे ..तेरे को क्या लगा ..वो और क्या चाहती है...?" मा के चेहरे पर फिर से वोई अजीब सी मुस्कान थी..

" अच्छा ..बताता हूँ ..पर पहले तू बता मा ..तू आज बार बार ये मुस्कान क्यूँ फेंके जा रही है मेरे उपर ...?? जब तू वहाँ से बाहर निकली तब भी बड़ी मुस्कुरा रही थी..और अभी फिर वोई मुस्कुराहट..??" मैने मा की आँखों में देखता हुआ कहा ..

इस बार मा जोरों से हंस पड़ी ...और कहा " तू साला भोले का भोला ही रहेगा ...." फिर बात बदलते हुए कहा " अछा तू पहले बता मेम साहेब ने ऐसा क्या किया के तेरे मन में ये बात आई के वो कुछ और भी चाहती है ...फिर मैं भी बताऊँगी .."

और फिर मैने मेम साहेब का मेरे लौडे को सहलाने वाली बात बताई.....

मा फिर से जोरों से हँसी और कहा

" अरे तू है ही ऐसा ...लंबा , चौड़ा ...और मासूम सा चेहरा ...हो सकता है उसका दिल तेरे पर आ गया होगा ..?" और फिर हँसने लगी ..

" देख मा ... मज़ाक छोड़ और सॉफ सॉफ बोल ना वो क्या चाहती है...."

" अरे बेटा मैं क्या जानूं..उनके दिल की बात..तू ही पूछ ले ना ...?" और फिर वोई मुस्कान..

" देखो मा मज़ाक छोड़...मैं किसी को पूछने वूच्ने वाला वाला नहीं ....अगर वो कुछ और चाहती है ..मैं तो साफ मना कर दूँगा ...मैं सिर्फ़ इतना जानता हूँ के मैं तुम तीनों को छोड़ और किसी के साथ और कुछ नहीं कर सकता ..." मैने अपनी चाल चल दी ...

मा फिर से हँसने लगी ..

" अच्छा ..ऐसा क्या है बेटा जो तू हम से करता है पर किसी और से नहीं कर सकता..??" उसकी आँखों में शरारत सॉफ सॉफ झलक रही थी ...

मैं झूंझला उठा मा की शरारती अदाओं से ...मैने देखा सीधी उंगली से काम चलने वाला नहीं..उंगली टेढ़ी करो और लौडा सीधा..तभी मा कुछ उगलेगी ...

" ह्म्‍म्म ..तो मेरी मा को अभी तक ये पता नहीं ...ठीक है बताता हूँ..."

और ये कहता हुआ पॅंट की ज़िप खोली लौडा बाहर निकाला ..मा को उसकी कमर से जकड़ता हुआ उसकी सारी घुटनों तक कर दिया और उसे अपने लौडे पर बिठा दिया...

उसकी चूतड़ की फाँक में मेरा लौडा धँस गया ..मा चीहुंक

उठी..

" अरे अरे ये क्या कर रहा है...बेशरम ..."

मैने उसे जाकड़ लिया ..उसकी चुचियाँ दबाते हुए ..उसके होठ चूसने लगा ..

मा मेरी गोद में मुझ से छूटने को कसमसा रही थी ...

"कुछ नहीं कर रहा मा ..बस बता रहा हूँ ..मैं क्या करता हूँ.."

" तू बड़ा बेशरम हो गया है ...तू मानेगा नहीं ...ठीक है बाबा छोड़ ना मुझे ..बताती हूँ मेम साहेब क्या चाहती हैं..." मा ने मुझ से छूटने की नाकाम कोशिश करते हुए कहा ...

मैने उसे छोड़ा ..उसकी सारी नीचे कर दी ..पर गोद से हटाया नहीं ...

" ह्म्‍म्म्म..ये हुई ना बात ...चल जल्दी बता....." मैने मा का चेहरा अपनी तरफ करते हुए कहा

" बेटा वो तेरा मस्त , लंबा , मोटा लौडा अपनी चूत में लेना चाहती है ...."

" पर मा मैं सॉफ सॉफ बोल रहा हूँ...ये लौडा सिर्फ़ तुम तीनों के लिए है...बस..."

ये बात सुनते ही मा ने मुझे गले लगा लिया ..मुझे चूम लिया ...

" वाह रे वाह मेरा राजा बेटा ..मैं तो बस निहाल हो गयी तेरे प्यार से ..पर फिर भी ..."

"फिर भी क्या..? " मैने पूछा
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