मेले के रंग सास, बहु, और ननद के संग
10-08-2018, 01:06 PM,
#21
RE: मेले के रंग सास, बहु, और ननद के संग
ससुरजी ने कुछ देर सासुमाँ को चोदा फिर कहा, "कौशल्या, मुझे तो तुम्हारी यह योजना ठीक नही लग रही. माँ-बेटे का संबंध बहुत ही गलत बात है. पर जो तुम्हे ठीक लगे करो."

सासुमाँ मेरे नीचे लेटे मेरे चूतड़ों को मसल रही थी और मेरी चूत चाट रही थी. मैं उनके ऊपर लेटे उनकी चूत की चुदाई देख रही थी. ससुरजी का ठाप लेती हुई वह बोली, "देखना, जब तुम्हारे दोनो बेटे...तुम्हारे सामने...अपनी माँ को चोदेंगे...तुम्हे देखने मे बहुत मज़ा आयेगा."

ससुरजी मुंह से जो भी कहें, अपनी पत्नी को अपने बेटों के चुदवाने की कल्पना करके उनको काफ़ी मज़ा आया था. सासुमाँ के टांगों को पकड़ के जोरों की ठाप लगाने लगे.

सासुमाँ भी मज़े लेते हुए बोली, "हाय, बहुत जबरदस्त चोदाई कर रहे हो मेरे राजा!! और चोदो मुझे! आह!! मज़ा आ गया बहु के साथ तुमसे चुदवाने मे! मैं हमारे बेटों से चुदुंगी सुनकर...लगता है तुमको...कुछ ज़्यादा ही चढ़ गयी है."
"हाँ कौशल्या!" ससुरजी हांफ़ते हुए बोले, "अब मुझसे रुका नही जा रहा. मैं सच मे देखना चाहता हूँ बलराम तुम्हारी चूत कैसे मारता है. आह!! ले साली रंडी! अपने बेटे से चुदवाना चाहती है! ले मेरा लन्ड!"

"हाय राजा! बस थोड़ी देर और पेलो!" सासुमाँ लगभग चीखकर बोली, "मैं बस झड़ने वाली हूँ! हाय! आह!! पेलो और जोर से!! उम्म!! आह!! चोद डालो!! हाय!!" बोलकर वह झड़ने लगी.

ससुरजी भी दमदार ठुकाई करते हुए सासुमाँ की चूत मे झड़ने लगे. "आह!! ले साली रंडी!! ले अपने गर्भ मे!! आह!! कुतिया, कल तु अपने बेटे का पानी ले रही होगी अपने गर्भ मे!! आह!! आह!! आह!! आह!!"

जब ससुरजी झड़ गये तो सासुमाँ के बगल मे लेट गये. मैने उनका लन्ड अपने मुंह मे लिया और चाट के साफ़ करने लगी. लन्ड पर उनका वीर्य और सासुमाँ की चूत का पानी लगा हुआ था. कुछ देर चूसने के बाद मैं सासुमाँ के ऊपर से उतर गयी और ससुरजी के दूसरी तरफ़ लेट गई.

रात भर सासुमाँ और मैं नंगे ही ससुरजी से ऐसे लिपटे रहे जैसे हम उनकी दो बीवियाँ हों.

वीणा, यह थी घर पर हमारे दूसरे दिन की कहानी. आगे की खबर अगले ख़त मे लिखूंगी.

बहुत सारा प्यार,
तुम्हारी मीना भाभी

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मीन भाभी की चिट्ठी पढ़कर मैं अपनी चूत मे एक हाथ से बैंगन पेलने लगी और दूसरे हाथ से जवाब लिखने लगी. जवाब लिखकर मैने डाक मे डाल दी.

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मेरी प्यारी भाभी,

तुम्हारी चिट्ठी मिली. पढ़कर बहुत मज़ा आया, और सच कहूं तो बहुत ईर्ष्या भी हुई. भाभी, तुम बुरा नही मानना पर यह कोई इन्साफ़ है कि तुम्हारे घर पर एक से एक लन्ड हैं लेने के लिये और मेरे घर पर बस यह बैंगन है?

मेरा जवाब मिलने मे देर हो तो भी तुम अपने घर पर हो रहे दिलचस्प घटनाओं के बारे मे लिखते रहना. मुझे उम्मीद है जब तक तुम्हारी अगली चिट्ठी आयेगी तुम किशन से चुद चुकी होगी.

तुम्हारी वीणा

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अगले दिन मीना भाभी की एक और चिट्ठी आयी. रोज़ की तरह मैं चिट्ठी और एक मोटे से बैंगन को लेकर अपने कमरे मे चली गयी. आजकल नीतु को शक होने लगा था कि अखिर मीना भाभी मुझे रोज़ चिट्ठी क्यों भेजती है. इसलिये मुझे सारी चिट्ठीयां छुपाकर रखनी पड़ती थी. अगर उसने पढ़ ली तो शायद उसका दिमाग ही खराब जायेगा!

खैर, अपने एकमात्र साथी, महाशय बैंगन को लेकर मैं भाभी की चिट्ठी पढ़ने लगी.

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मेरी प्यारी ननद रानी,

तुम्हारा ख़त मिला. औरत-औरत के संभोग मे बहुत रस होता है. तुम होती तो मैं ज़रूर तुम्हारे साथ समलैंगिक संभोग करती. पर एक सुझाव देती हूँ - ठीक लगे तो आज़माना. तुम्हारी छोटी बहन नीतु अब काफ़ी बड़ी हो गयी है. उस उम्र के किशोरी लड़कियों को मर्द और औरत दोनो बहुत चाव से भोगते हैं. देखो अगर तुम उसे पटा सको. कम से कम तुम्हे जवानी का मज़ा लेने के लिये एक साथी तो मिल जयेगा!

मुझे पता है कि तुम मेरी कहानी का बेसब्री से इंतज़ार कर रही हो. यहाँ रोज़ इतना कुछ होता है, सोचती हूँ तुम्हे रोज़ एक ख़त लिखूं. आज के ख़त मे मैं तुम्हे अपने तीसरे दिन के कारनामों के बारे मे बताती हूँ.

हमारा पूरा दिन घर के काम मे गुज़र गया. तुम्हारे बलराम भैया का पाँव अब ठीक हो रहा है, पर डाक्टर ने उन्हे बिस्तर पर लेटे रहने की हिदायत दी है. खाना पीना उन्हे सब बिस्तर पर ही दिया जाता है. बाथरूम जाने के अलावा वह बिस्तर से नही उठते हैं और कभी अपने कमरे के बाहर नही आते हैं.

दोपहर के खाने के बाद तुम्हारी मामीजी बोली, "बहु, तु अभी जाकर किशन को पटाने की कोशिश कर. वह अपने कमरे मे होगा."
मैने खुश होकर कहा, "ठीक है माँ! अभी जाती हूँ!"
"और हाँ, दरवाज़ा पूरा बंद नही करना. हम बाहर से देखेंगे. तेरे ससुरजी को देखने का बहुत मन है."
"जी, माँ." मैने जवाब दिया.

तुम्हारे मामाजी बोले, "जैसे बस मुझे ही मन है! तुम्हे जैसे बहु को चुदते देखकर मज़ा नही आयेगा?"
"मैने कब कहा मुझे मज़ा नही आयेगा?" सासुमाँ बोली, "मै भी देखूंगी अपने लाडले बेटे को अपनी भाभी की चूत मारते हुए."
"और यह सब देखते हुए तुम अपनी भी चूत मराओगी." ससुरजी बोले.
"हाय, यह क्या कह रहे हो तुम?" सासुमाँ बोली.
"कौशल्या, जब बहु और किशन अन्दर चुदाई कर रहे होंगे, मैं तुम्हे पीछे से कुतिया बना के चोदुंगा. बहुत मज़ा आयेगा." ससुरजी बोले.
"पागल हो गये हो तुम?" सासुमाँ बोली, "घर पर इतने लोग हैं! किसी ने देख लिया तो?"

ससुरजी बोले, "मैं गुलाबी को कोई काम देकर हाज़िपुर बाज़ार भेजता हूँ. उसे आने मे दो घंटे तो लगेंगे. बलराम तो खाने के बाद सो जायेगा. वैसे भी वह अपने कमरे से बाहर नही निकलता है. और घर मे है ही कौन? देखना खुले आम नंगे होकर चुदाने मे बहुत मज़ा आयेगा तुम्हे."
सासुमाँ बोली, "ठीक है पर मैं सारे कपड़े नही उतारूंगी. मेरी साड़ी उठाकर तुम पीछे से चोद लेना."
ससुरजी हारकर बोले, "ठीक है, भाग्यवान! जैसा तुम ठीक समझो."

गुलाबी के बाज़ार जाने के बाद तुम्हारे मामा, मामी, और मैं किशन के कमरे के पास गये. उसका दरवाज़ा बंद था, पर दरवाज़े के फांको से साफ़ दिख रहा था कि वह फिर कोई अश्लील कहानियों की किताब पड़ रहा है. मैने दरवाज़ा खटकाया तो उसने किताब छुपा दी और आकर दरवाज़ा खोला. सासुमाँ और ससुरजी बाहर रुक गये और मैं किशन के कमरे के अन्दर आ गयी. मैने दरवाज़ा ठेल कर बंद कर दिया पर कुंडी नही लगाई ताकि बाहर से अन्दर का दृश्य बिना असुविधा के देखा जा सके.

मुझे देखकर किशन की आंखें चमक उठी और पजामे मे उसके लौड़ा ताव खाने लगा. मैं जाकर उसके बिस्तर पर बैठ गयी और उसके तकिये के नीचे से छुपाई हुई किताब निकाली.

"देवरजी, फिर तुम गंदी किताबें पढ़ रहे हो?" मैने पन्नों को उलट-पुलटकर पूछा. इस किताब के बीच मे कुछ तसवीरें थी जिसमे नंगे आदमी-औरत चुदाई कर रहे थे. "अब जब तुमने अपनी भाभी के जलवे देख लिये हैं, तुम्हे यह सब देखने की क्या ज़रूरत है?"
"भाभी, वह तो ऐसे ही..." किशन बोला.
"अच्छा बताओ, मैं देखने मे अच्छी हूँ या यह विलायती छिनाल?" मैने एक चुदाई की तस्वीर दिखाकर कहा.
"भाभी, आप बहुत सुन्दर हैं! आप जैसी कोई नही है!" किशन बोला.

सुनकर मैं मुस्कुरा दी, और पिछले दिन की तरह मैने अपना आंचल सीने से गिरा दिया था. फिर मैने अपने ब्लाउज़ के हुक खोल दिये और ब्लाउज़ उतार दी. और फिर ब्रा भी उतारकर रख दी.

किशन मेरी चूचियों को आंखों से ही पीने लगा. पजामे मे उसका लौड़ा बिलकुल तना हुआ था. अपने गोलाइयों को अपने हाथों से मसलते हुए मैने कहा, "देवरजी, मेरी चूचियां इस विलायती चुदैल से अच्छी हैं?"
"हाँ...हाँ भाभी." किशन थूक गटक कर बोला, "आपके दूध बहुत सुन्दर है. कल हाथ लगाकर मुझे बहुत अच्छा लगा था."
"यह सब किताबें पढ़नी बंद कर दोगे तो अपनी भाभी का एक एक अंग जितना जी चाहे देख सकोगे." मैने कहा.
"भाभी, मैं यह सब किताबें और नही पढ़ुंगा." किशन बोला और उसने अपने दोनो हाथ मेरे दो चूचियों पर रख दिये.

मैं मज़े से सिहर उठी, पर उसके हाथ हटाकर मैने कहा, "देवरजी, याद है न कल क्या हुआ था? जोश जोश मे अपना पानी अपने पजामे मे ही गिरा दोगे, तो मेरी प्यास कैसे बुझाओगे?"
"भाभी, आज पानी नही निकलेगा." किशन बोला और फिर मेरे चूचियों पर हाथ रखने लगा.
"रुको, देवरजी." मैने उसके हाथ हटाकर कहा, "पहले, तुम्हारे जोश का कुछ इलाज किया जाये, फिर जितना चाहे मेरी चूचियों को मसल लेना. चलो, अपना पजामा उतारो."

किशन शरमाकर मेरे सामने खड़ा रहा, तो मैने मुस्कुराकर कहा, "देवरजी, मर्द होकर औरत से शरमा रहे हो? मेरी चूचियां तो देख ली, अब मुझे अपना लौड़ा दिखाओ."

मैने उसके पजामे का नाड़ा खींचकर खोल दिया और उसका पजामा ज़मीन पर गिर गया. उसका लन्ड उसके चड्डी को जैसे फाड़कर बाहर आ रहा था. मैने उसके चड्डी को खींचकर नीचे उतार दी तो उसका खड़ा लन्ड उछलकर हिलने लगा. किशन ने अपना पजामा और चड्डी अपने पाँव से अलग कर दिये. उसने पजामे के ऊपर सिर्फ़ एक बनियान पहना था. मैने उसके बनियान को सीने के ऊपर चढ़ा दिया. फिर उसके कमर को पकड़कर उसे अपने करीब खींचा. फिर उसके खड़े लन्ड को पकड़कर मैने अपने मुंह मे ले लिया.
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10-08-2018, 01:06 PM,
#22
RE: मेले के रंग सास, बहु, और ननद के संग
किशन अपनी आंखें मींचे खड़ा रहा. उसका शरीर कांप रहा था. मुझे लगा वह अपना पानी छोड़ देगा, पर ऐसा नही हुआ.

मैने धीरे धीरे उसके किशोर लन्ड को चूसना शुरु किया. एक अलग ही महक और स्वाद था उसके लन्ड मे. मैं उसके लन्ड को पेलड़ तक अपने मुंह मे ले रही थी, फिर निकाल कर उसके सुपाड़े को जीभ से सहला रही थी, और कभी लन्ड को मुंह से निकाल कर चाट रही थी. अपने दूसरे हाथ की उंगलियों से पेलड़ मे उसके टट्टों को सहला रही थी.

बीच बीच मे मैं कनखियों से दरवाज़े की तरफ़ भी देख रही थी. मुझे पता था कि मेरे ससुरजी और सासुमाँ मेरे कुकर्मों को देख रहे है और शायद बाहर खड़े होकर चुदाई कर रहे हैं. उन्हे दिखाने मे मुझे और ज़्यादा मज़ा आ रहा था.

"देवरजी," मैने किशन का लन्ड मुंह से निकालकर कहा, "अपने लौड़े के बालों को साफ़ रखा करो. औरतों को चूसने मे ज़्यादा मज़ा आता है."

किशन आंखें बंद करके अपने आप पर काबू रखने की कोशिश कर रहा था.

मैने कुछ देर और उसके लन्ड को चूसा और कहा, "देवरजी, अगर सम्भाला नही जा रहा है तो अपना पानी निकाल दो. मुझे भी ज़रा अपना गला तर करना है."

मेरा कहना था कि किशन ने दोनो हाथों से मेरा सर पकड़ लिया और मेरे मुंह मे अपना लन्ड पेलने लगा. उसके लौड़े का सुपाड़ा जा जाकर मेरे गले से टकराने लगा. एक ही मिनट पेलकर, वह झड़ने लगा. मेरे सर को कस के दबाकर, अपना लौड़ा मेरे मुंह मे पूरा ठूंसकर, वह अपना पेलड़ खाली करने लगा.

पता नही कितना वीर्य था उसके पेलड़ मे, पर मुझे लगा वह रुकने का नाम ही नही लेगा. मेरा मुंह उसके वीर्य से पूरा भर गया और मेरे होठों से निकलकर मेरी नंगी चूचियों पर गिरने लगा.

मेरी सांस रुकने लगी तो मैने उसे धक्का देकर उसका लन्ड अपने मुंह से निकाल दिया. उसके लन्ड के निकलते ही ढेर सारा वीर्य मेरे मुंह से निकलकर मेरे चूचियों पर आ गिरा. बाकी का वीर्य निगलकर मैं हंसने लगी. "देवरजी, कितनी मलाई सम्भाल कर रखे थे अपनी भाभी के लिये? इतना तो मुझसे पिया ही नही गया."

झड़कर किशन को जैसे आराम मिल गया था. पर उसका लौड़ा अभी भी तना हुआ था.
मैं किशन के वीर्य को अपने गोरी गोरी नंगी चूचियों पर मलने लगी और अपने खड़े निप्पलों को मीसने लगी. जब मेरी चूचियां पूरी तरह उसके वीर्य से चिपचिपा हो गयी मैने उठकर अपनी साड़ी बदन से अलग कर दी. किशन आंखें फाड़-फाड़कर मुझे देख रहा था.

मैने कहा, "देवरजी, अब आपको अपनी चूत के दर्शन कराती हूँ. वैसे तो तुम दरवाज़े के बाहर से मेरी चूत देख ही चुके हो, पर आज पास से देखो." बोलकर मैने अपनी पेटीकोट उतार दी और पूरी तरह नंगी हो गयी.

किशन के खाट पर लेटकर मैने उसे अपने पास आने को कहा. वह तुरंत मेरे ऊपर आकर चढ़ गया. मैं उसका सर पकड़कर अपने पास ले आयी और फिर उसके होठों को अपने होठों से चिपकाकर पीने लगी. उफ़्फ़! क्या कोमल, रसीले होंठ थे उसके! एक हाथ से मैं उसके चिपचिपे लन्ड को भी सहलाने लगी.

कुछ देर उसके होंठ पीकर मैने कहा, "देवरजी, ज़रा मेरे चूचियों को पीयो."
"पर भाभी, उस पर तो मेरा...पानी..." किशन हिचकिचा कर बोला.
"तो क्या हुआ?" मैने डांटकर कहा, "जब मैं तुम्हारा आधा लीटर वीर्य पी सकती हूँ, तो तुम भी थोड़ा चख लोगे तो कुछ नही होगा."

मैने उसका सर पकड़कर अपने चूचियों पर दबा दिया तो वह मेरे निप्पलों को मुंह मे लेकर चूसने लगा. बहुत मज़ा आने लगा मुझे. मेरी चूत तो कब से गीली ही पड़ी थी. बस एक खड़े लन्ड का इंतज़ार था मुझे.

किशन मेरी चिपचिपे चूचियों को जोश मे दबाने और चूसने लगा. फिर मैं उसके सर को और नीचे कर के अपनी चूत के पास ले गयी और बोली, "देवरजी, अब मेरी चूत को चाट दो. औरतों को चूत चटवाने मे बहुत मज़ा आता है."

किशन मेरी चूत के फांक मे जीभ डालकर अच्छे से चाटने लगा. मैं आह!! कर उठी. "हाय, देवरजी, बहुत अच्छा चाट रहे हो. उम्म!! ऐसे ही चाटते रहो. आह!! चाटकर मुझे एक बार झड़ा दो."

किशन जितना मेरी चूत को चाट रहा था मेरी मस्ती भी खलास होने को आ रही थी. जल्दी ही उसके सर को जोर से अपनी चूत पर दबाकर मैं झड़ने लगी. "हाय, कितना मज़ा आ रहा है! देवरजी, और चाटो अपनी भाभी की चूत! आह!! ओह!! उम्म!!"

झड़के मुझे कोई शांति नही हुई. मुझे तो लौड़े की ज़रूरत थी. "देवरजी, अब मेरे ऊपर चढ़ जाओ." मैने कहा, "अब तुम्हे अपनी भाभी को चोदकर उसकी प्यास बुझानी है, समझे?"

वीणा, नौजवानों की यह खूबी होती है कि जल्दी ही फिर वे चुदाई के लिये तैयार हो जाते है. किशन का लन्ड भी पूरी तरह कड़क हो गया था.

किशन मेरे दो टांगों के बीच बैठा तो मैने उसका लन्ड पकड़कर अपनी चूत पर रखा और कुछ देर उसके सुपाड़े को अपनी चूत के फांक मे रगढ़ा. फिर उसके लन्ड को अपनी चूत पर सेट करके मैने कहा, "देवरजी, अब धीरे से अपने लन्ड पर दबाव डालो."

किशन ने दबाव डाला तो उसका खड़ा लन्ड मेरी बहुत ही गीली चूत मे आराम से पूरा घुस गया. उसे इतना मज़ा आया कि वह गनगना उठा.

मैने उसे कमर चलाने से रोका और कहा, "देवरजी, अब थोड़ी देर मेरी चूत मे लन्ड डाले पड़े रहो. कुछ करो मत."
"भाभी, बहुत गरम है आपकी चूत!" किशन कसमसा कर बोला. उसकी आवाज़ से मैं समझ रही थी कि वह मुश्किल से अपने पर काबू किये हुए था.
"तुमने कभी किसी चूत मे लन्ड नही डाला है ना, इसलिये तुम्हे आदत नही है." मैने कहा, "कुछ एक बार चोद लोगे तो कोई मुश्किल नही होगी."

किशन मेरी चूत मे अपना पूरा लन्ड डाले मेरे ऊपर लेटा रहा. मैने उसके नंगे बदन को जकड़कर अपनी चूत मे उसके लन्ड के सुखद अनुभव का मज़ा लेती रही.

कुछ देर बाद जब किशन को अपने पर काबू हुआ तो मैने उसे कहा, "देवरजी, अब धीरे धीरे मुझे पेलना शुरु करो. बहुत धीरे धीरे."

किशन ने ऐसा ही किया. उसका लन्ड मेरी चूत के अन्दर बाहर होने लगा तो मुझे और मज़ा आने लगा. धीरे धीरे वह अपनी गति बढ़ाने लगा और मैं भी उसका साथ देने लगी. उसे बाहों मे जकड़कर, उसके ताल पर ताल मिलाकर मैं अपना कमर उठाने लगी. "हाय, राजा! क्या चोद रहो हो अपनी भाभी को! उम्म!! आह!! पेलो देवरजी, अच्छे से पेलो अपनी चुदैल भाभी को! हाय, बहुत मज़ा आ रहा है!"

किशन बस "ऊंघ! ऊंघ! ऊंघ! ऊंघ!" की आवाज़ निकालकर ठाप लगा रहा था. पर नौसिखिया होने के चलते वह मुझे ज़्यादा देर चोद नही सका. मुझे जोर से ठोकते हुए बोला, "भाभी, मेरा पानी छूटने वाला है!"
मैं बोली, "कोई बात नही, देवरजी! भर दो अपना वीर्य मेरे गर्भ मे! आह!! ओह!! उम्म!! और जोर से! और जोर से!! डाल दो पूरा अन्दर!"

मुझे पता था की हमारी यह अवैध चुदाई मेरे ससुरजी और सासुमाँ बाहर से देखे रहे हैं. सोचकर ही मैं झड़ने लगी. किशन ने अपना लन्ड मेरे चूत की गहराई मे ठूंस दिया और मुझे जकड़कर मेरे चूत मे अपना पानी छोड़ने लगा. चूत के अन्दर देवर के पहले वीर्य को पाकर मैं सुख के सातवें आसमान पर उड़ने लगी.

झड़ने के बाद किशन और मैं काफ़ी देर तक एक दूसरे से लिपटे आलिंगन का आनंद लेते रहे. किशन मेरे ऊपर ही लेटा रहा और उसका अब ढीला हो चुका लन्ड मेरी चूत के बाहर आ गया.

"देवरजी" मैने कुछ देर बाद कहा, "मज़ा आया अपनी भाभी को चोदकर?"
"हाँ भाभी. बहुत मज़ा आया." किशन बोला, "पर हमे यह सब नही करना चाहिये था ना?"

मैने समझ गयी छोकरे का लन्ड नीचे होते ही उसकी अंतरात्मा सर उठाने लगी है.
"क्यों, देवरजी?" मैने पूछा.
"भाभी तो माँ समान होती है." किशन ने कहा.
"और मुझे चोदकर तुमने मानो अपनी माँ को ही चोद लिया है?" मैने पूछा. "तुम जो कहानियाँ पढ़ते हो उसमे तो देवर लोग अपनी भाभी को चोदते हैं. बेटे अपनी माँ को चोदते हैं. तुम तो मेरा नाम लेकर मुठ भी मारते हो. अब मुझे चोद लेने के बाद तुमको क्या हो गया."
"जी, कहानी पढ़ना अलग बात है." किशन बोला.
"मन मे पाप और कर्म मे पाप मे कोई फ़र्क नही है, देवरजी." मैने कहा, "तुम ऐसी कहानियाँ पढ़ते हो क्योंकि तुम्हारे मन मे मेरे लिया पाप था और अपनी माँ के लिये पाप है. है कि नही बोलो."
"जी है." किशन धीरे से बोला.
"अब जब मन मे पाप हो ही गया तो करने मे कोई ज़्यादा बुराई है क्या?"
"पता नही, भाभी." वह बोला.
"देवरजी, इतने धरम-करम मे मत पड़ो." मैने उसके सर के बालों मे उंगलियाँ चलाकर कहा, "चोदने को चूत मिले तो चोद लो! फिर वह चूत भाभी की हो या माँ की या घर के नौकरानी की. ऐसे मौके ज़िंदगी मे बार बार नही आते, समझे?"

किशन चुप रहा फिर बोला, "पर भाभी आपने क्यों मेरे साथ यह सब किया. आपके लिये तो भैया हैं ना."
"मेरे भोले देवरजी!" मैने कहा, "घर पर जवान देवर हो तो किस भाभी का मन नही मचलता उससे चुदवाने के लिये? मुझे क्या तुमने कोई शराफ़त की देवी समझ रखा है? हर औरत की तरह मेरे मन मे भी पाप है और कुकर्म करने के लिये मेरा मन भी मचलता है. आज मुझे मौका मिला तो तुमसे चुदवा लिया. तुम्हारी भाभी कोई देवी-शेवी नही है, देवरजी. एक जवान, गर्म औरत है जिससे जितने लन्ड मिले कम हैं."

किशन मेरी बात सुनकर हंस दिया. बोला, "भाभी, मेरी माँ भी आप जैसी है क्या?"
उसका मतलब समझकर मैने कहा, "बहुत बड़ी चुदैल है सासुमाँ. आज भी ससुरजी जब उन्हे ठोकते हैं तो बाहर तक उनकी मस्ती की आवाज़ आती है. अपनी उम्र मे उन्होने न जाने कितने लन्ड लिये होंगे."
"नही भाभी, मेरी माँ ऐसी नही हो सकती." किशन बोला.
"तो क्या तुमने सिर्फ़ अपनी भाभी को ही एक मात्र छिनाल समझ लिया है? औरतों को देवी बनाने की मर्दों की बड़ी बुरी आदत है." मैने कहा, "कहते हैं ना, औरत को ना ताज चाहिये ना तख्त चाहिये. उसे तो बस एक लन्ड मोटा और सख्त चाहिये. माँ, बहन, भाभी, बेटी, बीवी, साली - सब एक जैसी होती हैं. सबके पास चुदाने के लिये चूत होती है और सबको लौड़ों की चाहत होती है."

किशन और जोर से हंसने लगा. अपनी माँ के बारे मे बुरा-भला सुनकर उसका लन्ड फिर सख्त होने लगा था. वह बोला, "अगर भैया को पता लग गया तो?"
"नही पता लगेगा." मैने कहा. "मैं सब देख लुंगी. तुम बस मेरा कहना मानो और देखो कितना मज़ा है चुदाई मे."
"ठीक है भाभी." किशन बोला.
"लगता है अपनी माँ के चरित्र के बारे मे सुनकर तुम्हारा लन्ड फिर खड़ा हो गया है." मैने उसके लौड़े को पकड़कर कहा, "चलो, देवरजी, अपनी भाभी को एक और बारी चोदकर उसकी प्यास ठीक से बुझा दो."
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10-08-2018, 01:06 PM,
#23
RE: मेले के रंग सास, बहु, और ननद के संग
मैने किशन का लन्ड फिर अपने चूत के फांक मे रखा और उसने कमर से दबाव डालकर अन्दर पेल दिया. दो बार झड़ लेने की वजह से अबकी बार वह अपने जोश को काबू मे रख पा रहा था. धीरे धीरे, मज़े लेकर वह मुझे चोदने लगा. मुझे भी अबकी बार ज़्यादा मज़ा आ रहा था.

"बहुत अच्छा चोद रहे हो, देवरजी!" मैने उसका हौसला बढ़ाने के लिये कहा, "जल्दी ही मैं तुमको एक अव्वल दर्जे का चोदू बना दूंगी. फिर घर के सब औरतों को मज़ा दिये फिरना."

अबकी बार चुदाई लगभग 10 मिनट चली, फिर हम दोनो ने अपना पानी छोड़ दिया.

किशन अपने बिस्तर पर नंगा लेटा रहा और मैने उठकर अपनी पेटीकोट, ब्लाउज़, साड़ी वगैरह पहन ली.

कमरे से निकलते हुए बोली, "देवरजी, अब तुम यह गंदी कहानियाँ पढ़ना छोड़ दो. इनमे कुछ नही रखा है. जब मन करे, मुझे कहना और मैं तुम्हे अपनी चूत दे दूंगी चोदने के लिये. समझे? बिलकुल संकोच नही करना!"
"जी भाभी." किशन खुश होकर बोला.

मैं किशन के कमरे से निकली तो देखा तुम्हारे मामा और मामी बाहर खड़े है. सासुमाँ की आंखे वासना से लाल थी. उनका ब्लाउज़ खुल हुआ था और उनकी बड़ी बड़ी चूचियां लटक रही थी. ससुरजी की लुंगी उनके पैरों के बीच थी और उनका लन्ड तनकर खड़ा था.

"हाय, माँ-बाबूजी, आप दोनो का अभी हुआ नही क्या?" मैने फुसफुसाकर कहा.
"मैं तो दो बार झड़ चुकी हूँ, बहु." सासुमाँ बोली, "बहुत मज़ा आया किशन और तेरी चुदाई देखकर. तेरे बाबूजी तो अभी तक झड़े नही हैं."
"फिर अपने कमरे मे जाकर बाकी काम कीजिये." मैने कहा.

हम तीनो सासुमाँ के कमरे मे आ गये. मेरे दरवाज़ा बंद करते ही ससुरजी और सासुमाँ ने अपने सारे कपड़े उतार दिये और बिस्तर पर एक दूसरे पर टूट पड़े. ससुरजी ने सासुमाँ के पाँव फैलाकर अपना लन्ड उनकी भोसड़ी मे पेल दिया और लगे सासुमाँ को तबाड़-तोड़ चोदने.

"हाय बहुत गरम हो गये हो तुम?" सासुमाँ कमर उठाकर ठाप लेटे हुए बोली.
"हाँ, कौशल्या!" ससुरजी बोले, "देवर और भाभी की चुदाई का ऐसा कामुक खेल मैने कभी नही देखा है. इतना मज़ा आयेगा यह खेल देखकर मे मुझे पता नही था."
"तुम बस देखते जाओ." सासुमाँ बोली, "जब मैं बलराम और किशन से चुदुंगी, तब तुम्हारी क्या हालत होगी तुम सोच भी नही सकते!"
"छिनाल! रंडी! मैं तुझे अपने दोनो बेटों का लन्ड अपनी चूत और गांड मे लेते देखना चाहता हूँ!" ससुरजी बोले, "ले साली, मेरा लन्ड ले! तु इतनी बड़ी रंडी होगी मुझे अंदाज़ा ही नही था."
"हाय, राजा, बहुत जोश मे आ गये हो!" सासुमाँ बोली, "बजाओ मेरी भोसड़ी को! आह!! जल्दी ही तुम्हारी सारी इच्छायें मैं पूरी कर दूंगी! और जोर से! हाय मैं फिर झड़ने वाली हूँ!"

मैने बिस्तर पर बैठकर तुम्हारे मामा और मामी की जोशीली चुदाई देख रही थी. कुछ ही देर मे दोनो से और रहा नही गया और वह जोरों की आवाज़ें निकालकर झड़ने लगे. अपना सारा पानी सासुमाँ की चूत मे डालकर ससुरजी शांत हुए.

उस रात मैं फिर ससुरजी और सासुमाँ के साथ सोई. पर हमने और चुदाई नही की. सासुमाँ और मैं ससुरजी को दोनो तरफ़ से पकड़कर सो गये.

बताओ, वीणा, कैसी लगी मेरी कहानी? मुझे जल्दी से ख़त लिखकर बताना. कल के कारनामों को लेकर कल एक और ख़त लिखूंगी. तब तक के लिये तुम अपनी चूत मे बैंगन पेलकर काम चलाओ.

तुम्हारी चुदैल भाभी

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मीना भाभी की चिट्ठी पढ़कर मैं उदास हो गयी. भाभी अपने घर पर कितने मज़े कर रही है. भाभी अब अपने ससुर और देवर दोनो के साथ चुदाई का मज़ा ले रही है. और मैं यहाँ एक मर्द के प्यार के लिये तरस रही हूँ. कभी सोचती थी गाँव मे किसी से चुदवा लूं, पर फिर सोचती थी कि बात बाहर आ गयी तो मेरे माँ-बाप की कितनी बदनामी होगी. भाभी की सलाह अनुसार मैने अपनी छोटी बहन नीतु के साथ शारीरिक संबंध बनाने की सोची, पर मैं उसके ईर्ष्यालु स्वभाव से इतनी चिढ़ती थी कि उसे हाथ लगाने का भी मन नही करता था.

मैने आखिर भाभी की चिट्ठी का जवाब दिया.

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प्रिय मीना भाभी,

तुम्हारी चिट्ठी मिली. हमेशा की तरह पढ़कर बहुत मज़ा आया और बहुत चुदास भी चढ़ी. मैं तो बोली ही थी तुम्हे अपने देवर को पटाने मे कोई मुश्किल नही होगी.

पर भाभी, गाँव लौटने के बाद मेरा मन घर पर लगता ही नही है. पूरी ज़िन्दगी जैसे सूनी सूनी हो गयी है. मुझे हर वक्त सोनपुर मे हम सब ने जो मज़े किये थे उसकी याद आती है. मैं हर समय चुदासी रहती हूँ और अपनी बुर मे लंबे बैंगन घुसाकर अपनी प्यास बुझने की कोशिश करती हूँ. पर तुम ही बताओ, बैंगन से लौड़े का सुख मिलता है भला? यही सब सोचकर मैं उदास हो जाती हूँ.

तुम ने नीतु के साथ संभोग करने को कहा था. वह तो मुझसे नही होगा. बहुत ही अड़ियल और उबाऊ लड़की है. मुझे तो अपनी प्यास बुझाने के लिये कोई मर्द ही चाहिये.

मेरे माँ-बाप मेरी शादी के लिये एक दो रिश्ते देख रहे हैं. सोचती हूँ हाँ कर दूं. कम से कम पति का लौड़ा तो मिलेगा.

खैर, तुम बताओ तुम्हारी आगे की योजना क्या है. तुम्हारी चिट्ठी की प्रतीक्षा रहेगी.

तुम्हारी दुखियारी ननद वीणा

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भाभी की अगली चिट्ठी अगले ही दिन आ गयी. आजकल मेरे जीवन मे यही एक मनोरंजन का साधन था. अपने कमरे मे छुपकर मैं उसकी चिट्ठी पढ़ने लगी.

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मेरी प्यारी वीणा,

आशा है तुम्हे मेरी चिट्ठियां पढ़ने मे बहुत मज़ा आ रहा है. मुझे तो लिखने मे बहुत ही मज़ा आता है.

कल सुबह तो गज़ब ही हो गया. जिस बात की हम सब ने सिर्फ़ योजना बनाई थी वह सफल हो गयी. अब लगता है हमारे बाकी सब कर्यक्रम आसानी से पूरे होने वाले हैं!

नाश्ते के बाद रोज़ की तरह गुलाबी गरम पानी लेकर तुम्हारे बलराम भैया के कमरे मे गयी. उसने बहुत प्यार से उनका पाँव गीले कपड़े से सेंका.

हैरत की बात यह है की तुम्हारे भैया ने गुलाबी का बलात्कार करने की कोशिश की थी और अब मौका पाते ही उसे जगह जगह पर हाथ लगाते हैं. पर गुलाबी फिर भी उनके पास जाती है उनकी सेवा करने के लिये. मेरे समझाने का शायद कुछ असर हुआ है क्योंकि आज जब मैं दोनो को बाहर से देख रही थी, गुलाबी उनसे काफ़ी खुलकर बात कर रही थी.

"गुलाबी, बहुत सुन्दर लग रही है आज तु?" मेरे उन्होने कहा.
"नही बड़े भैया, हम तो एक नौकरानी हैं." गुलाबी शरमाकर बोली.
"तो क्या नौकरानी लोग सुन्दर नही होते?" उन्होने कहा, "बहुत कटीली जवानी है तेरी, गुलाबी. क्या सुन्दर तेरी कजरारी आंखें हैं. और कितने लुभावने तेरे जोबन हैं. रामु तो तुझे पाकर बहुत खुश होगा?"
"बड़े भैया, ऊ तो न जाने कब से घर पर ही नही हैं." गुलाबी आंखे नीची कर के बोली.
"तो मरद के बिना कैसे सम्भालती है अपनी जवानी को तु?" मेरे पति ने पूछा.
"आप भी क्या कहते हैं, बड़े भैया!" गुलाबी बोली, पर उसकी आवाज़ मे एक कसक थी.

"हर औरत को मर्द की ज़रूरत होती है. है कि नही?" उन्होने पूछा.
"होती है, बड़े भैया." गुलाबी मुस्कुराकर बोली. लग रहा था उसकी लाज काफ़ी कम हो गयी थी.
"और मर्द को तो बहुत ही ज़रूरत होती है जवान औरत की."
"क्यों, भाभी जो हैं आपके लिये." गुलाबी बोली.
"कहाँ रे!" मेरे वह एक ठंडी आह भरकर बोले, "वह तो मेरे पास आती ही नही. जबसे आयी है मेरे साथ सोती भी नही."
"हाय राम! फिर आप कैसे सोते हैं?"
"नींद नही आती है, गुलाबी. 10-15 दिनों से किसी औरत के साथ मिलन नही हुआ है ना." मेरे वह बोले.

मेरे उनके मुंह से चुदाई के बातें सुनकर गुलाबी की आंखें चमक रही थी, पर वह कुछ नही बोली.

"क्यों, गुलाबी, तुझे रात को नींद आती है?" तुम्हारे भैया ने पूछा.
"नही आती." गुलाबी थोड़ा नखरा करके बोली.
"मैं तेरा दर्द समझ सकता हूँ." वह बोले, "तेरा भी तो किसी मर्द के साथ 10-15 दिनों से मिलन नही हुआ है."
"कैसी बातें करते हैं आप, बड़े भैया!" गुलाबी बोली, "हम काहे किसी और मरद के साथ मिलन करें? मेरा मरद तो आने ही वाला है."
"रामु तो जाने कब आयेगा. तु तब तक कैसे जियेगी?"

गुलाबी कुछ न बोली.

मेरे उन्होने कहा, "गुलाबी, मेरे पाँव का दर्द तो अब चला ही गया है. ज़रा मेरे कंधे दबा दे ना. बैठे-बैठे बहुत थक जाता हूँ."

गुलाबी आना-कानी किये बगैर तुम्हारे भैया के बगल मे जा बैठी और उनके दायें कंधे को अपने कोमल हाथों से दबाने लगी.

"आह! कितना अच्छा दबा रही है तु!" वह बोले, "ठीक से बैठ ना मेरे पास! मुझसे संकोच कर रही है क्या?"

गुलाबी और थोड़ा करीब होकर बैठी. अब तुम्हारे भैया ने अपना हाथ उसके जांघ पर रखा और घाघरे के ऊपर से सहलाने लगे.

जब गुलाबी ने कुछ नही कहा तो उन्होने उसके घाघरे के नीचे हाथ डालकर उसके नंगे जांघ को सहलाना शुरु किया. गुलाबी सिहर उठी, पर उसने कुछ नही कहा.

हिम्मत बढ़ाकर, तुम्हारे भैया ने दूसरे हाथ को गुलाबी के एक चूची पर रखा और कहा, "गुलाबी, जब कोई मरद तेरे जांघों को सहालत है तुझे मज़ा आता है?"

गुलाबी ने हाँ मे सर हिलाया और उनके कंधे को दबाती रही.

"और मैं जो तेरे जोबन को दबा रहा हूँ, तुझे मज़ा आ रहा है?" कहकर उन्होने गुलाबी के चूची को प्यार से दबाया.

गुलाबी गनगना उठी और उसने हाँ मे सर हिलाया.

मेरे वह समझ गये के लड़की अब पटने ही वाली है. अपना दायाँ हाथ गुलाबी के घाघरे के और अन्दर ले जाकर उन्होने उसके नंगी चूत को छुआ. गुलाबी का सारा शरीर कांप उठा.

धीरे धीरे वह गुलाबी की चूत को सहलाने लगे और बोले, "गुलाबी, तु चड्डी नही पहनती है?"
"नही, बड़े भैया. मेरा मरद मना करता है." गुलाबी अपनी उखड़ी सांसों के बीच बोली.
"क्यों? तेरा मरद तुझे कभी भी कहीं भी चोदता है क्या?"

उनकी अश्लील भाषा को नज़र-अंदाज़ करके गुलाबी ने हाँ मे सर हिलाया.

"कहाँ कहाँ चोदा है रे तुझे रामु ने?" उन्होने पूछा.

बायाँ हाथ चूची दबाये जा रहा था. दायाँ हाथ चूत सहलाये जा रहा था. मेरे उनका लौड़ा खड़ा हो गया था. वे आजकल लुंगी के नीचे चड्डी नही पहन रहे थे, इसलिये लौड़ा तम्बू बनाये खड़ा था.

"कमरे मे." गुलाबी बोली. फिर थोड़ा रुक कर बोली, "खेत मे भी."
"बहुत गरम औरत है रे तु, गुलाबी." मेरे वह बोले, "खेत मे भी चुदाई है? अच्छा यह बता, उस दिन जब मैने तुझे खेत मे प्यार किया था तब तु भाग क्यों गयी थी?"

गुलाबी सर झुकये बैठी रही. उसने कोई जवाब नही दिया.

मेरे उन्होने एक हाथ से अपना लौड़ा पकड़कर हिलाया और गुलाबी से बोले, "देख गुलाबी, तेरी जवानी ने मेरा क्या हाल कर दिया है."

गुलाबी ने पीछे मुड़कर उनके लुंगी मे ढके खड़े लन्ड को देखा और मुस्कुरा दी.

"हाथ लगा के देख ना." मेरे वह बोले, "डर मत."

गुलाबी ने एक कांपते हाथ से उनके लौड़े को पकड़ा और थोड़ा हिलाकर बोली, "बहुत मोटा है, बड़े भैया." उसकी आंखें वासना से लाल हो उठी थी. मेरे वह मज़े मे कसमसा रहे थे.

"तु रामु का लन्ड चूसती है?" उन्होने पूछा.
गुलाबी ने नही मे सर हिलाया.
"मेरा लन्ड चूसेगी?"
"नही, बड़े भैया." गुलाबी नखरा करके बोली. पर वह अपने छोटे से कोमल हाथ से तुम्हारे भैया के लन्ड को हिलाती रही. उसकी सांसें तेज चल रही थी और उसकी जवान चूचियां चोली मे ऊपर-नीचे हो रही थी.

तुम्हारे भैया बोले, "अच्छा ठीक है. तु मेरे पास आ."
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10-08-2018, 01:06 PM,
#24
RE: मेले के रंग सास, बहु, और ननद के संग
गुलाबी उनकी तरफ़ मुड़कर बैठी तो उन्होने अपना हाथ उसकी चोली मे घुसा दिया और उसकी चूची को मसलने लगे. दूसरे हाथ से फिर उसकी चूत सहलाने लगे. गुलाबी आंखें बंद करके मज़ा ले रही थी. मैं हैरान थी कि मेरे समझाने से कितनी जल्दी यह लड़की पराये मर्द के चुदवाने को तैयार हो गयी थी.
"ब्रा नही पहनी तु?" तुम्हारे भैया ने गुलाबी से पूछा.
"नही बड़े भैया." गुलाबी ने कहा, "मेरा मरद मना करता है."
"ठीक कहता है रामु. चड्डी और ब्रा मत पहना कर." मेरे वह बोले, "चूची दबाने और चोदने मे आराम होता है. सुन, एक दो दिन मे मैं ठीक हो जाऊंगा और खेत मे जाने लगुंगा. तु मुझे खाना देने आयेगी खेत मे?"
"हाँ, बड़े भैया. हम तो हमेसा आपको खाना देने आते हैं." गुलाबी ने कहा.
"जब तु आयेगी ना, तब तुझे बहुत प्यार से खेत मे चोदुंगा." उन्होने कहा. "वहाँ कोई देखेगा भी नही. बहुत मज़ा पायेगी."

गुलाबी ने कोई जवाब नही दिया तो मेरे वह बोले, "डरती है क्या? रामु तो घर पर है नही. जब तक वह ना आये मुझसे चुदवा के अपनी प्यास बुझा."
"नही, बड़े भैया. ई सब हमसे नही होगा." गुलाबी बोली और अचानक उठ खड़ी हुई.

"क्या हुआ गुलाबी! कहाँ जा रही है?" मेरे वह खीजकर बोले, "साली, अभी तो अपनी चूची दबवा कर मज़ा ले रही थी. अचानक सती-सावित्री होने का शौक कैसे पैदा हो गया?"
"हम सादी-सुदा औरत हैं." गुलाबी बोली, "भाभी हमको ई सब करने को नही कहतीं तो हम कभी नही करते."
"किसने कहा तुझे यह सब करने को?" मेरे उन्होने आश्चर्य से पूछा.

गुलाबी को अपनी गलती का एहसास हुआ तो उसने झेंपकर आंखें नीची कर ली. तुम्हारे भैया की आंखें हैरत से बड़ी बड़ी हो गयी थी. "मीना ने तुझे कहा तु मुझसे अपनी चूची दबवा?"

गुलाबी बिना जवाब दिये दौड़कर कमरे से बाहर निकल आयी. मेरे वह पीछे से बोले, "ठहर साली, जब अगली बार मेरे कमरे मे आयेगी तुझे तेरी भाभी के सामने पटककर चोदुंगा. तब तेरे पतिव्रता होने का नाटक खतम होगा. और तेरी भाभी को भी देख लूंगा. खुद तो मुझसे चुदवाती नही है. अब अपनी नौकरानी को भेजी है मेरा लन्ड खड़ा करने के लिये."

गुलाबी बाहर आयी तो मैने उसे पकड़ा. उसकी सांसें उखड़ी हुई थी, आंखें वासना से लाल थी. मुझे हैरत हुई वह बिना चुदाये बाहर आ कैसे गयी. मैं तो ऐसे हालत मे अपने आप को नही सम्भाल पाती.

"क्यों रे गुलाबी, क्या हुआ अन्दर?" मैने पूछा.
"भाभी, बड़े भैया फिर हमरे साथ जबरदस्ती कर रहे थे." गुलाबी बोली.
"तु झूठ कब से बोलने लगी रे?" मैने कहा, "मैने तो देखा तु मज़े से अपनी चूची दबवा रही थी और चूत सहलवा रही थी. तु तो उनका लौड़ा भी हिला रही थी."

गुलाबी बोली, "ऊ तो आप हमको बोली करने को इसलिये हम किये."
"और तुझे बिलकुल मज़ा नही आया?" मैने उंगली से उसके मुंह को ऊपर उठाकर पूछा.
"आया, भाभी." गुलाबी धीरे से बोली.
"बड़े भैया का लौड़ा कैस लगा रे?"
"बहुत बड़ा है, भाभी." गुलाबी बोली.
"रामु जितना है?" मैने पूछा.
"उनसे भी बड़ा है." गुलाबी बोली.
"हूं. तो सोच, जब तुझे रामु का लौड़े चूत मे लेना इतना अच्छा लगता है, तो उससे भी बड़ा लन्ड चूत मे लेगी तो कितना मज़ा आयेगा?" मैने पूछा.
"हमे नही पता."
"तो पता कर ले ना!" मैने कहा. "जैसे तेरे बड़े भैया बोले, तु जब उन्हे खाना देने खेत मे जायेगी तब उनसे वहाँ एक बार चुदवा लेना. बस एक बार. मैं कब कह रही हूँ तु उनकी रखैल बन जा!"

गुलाबी चुप रही तो मैने कहा, "ठीक है सोच के देख. बहुत मज़ा देते हैं तेरे बड़े भैया! तु मेरी फ़िकर मत करना. मैं बिलकुल बुरा नही मानुंगी क्योंकि मैं खुद पराये मरद से चुदवाती हूँ."

गुलाबी ने मेरी आंखों मे देखा. मैं मुस्कुरा रही थी. मुझे देखकर वह भी मुस्कुरा उठी और बोली, "भाभी, हम को किसन भैया को नास्ता देने खेत मे जाना है." बोलकर वह रसोई मे चली गयी.


मैं अपने पति देव के कमरे मे घुसी. मुझे देखते ही वह अपने खड़े लौड़े की तरफ़ इशारा करके बोले, "देख रही हो यह? 15 दिनों से ब्रह्मचारी बना बैठा हूँ. तुम्हे तो मुझ पर तरस ही नही आता."

मैने उनके पास जाकर बैठी और बोली, "ब्रह्मचारी और आप? मेरे पीछे आपने गुलाबी की इज़्ज़त लूटने की कोशिश की थी. जैसे मैं कुछ जानती ही नही."

सुनकर तुम्हारे भैया के चेहरे पर हवाईयां उड़ने लगी. "यह क्या कह रही हो तुम, मीना?"
"वही जो गुलाबी ने मुझे बताया." मैने जवाब दिया, "और जो मैने अपनी आंखों से देखा."
"तुमने सब देखा?" वह बोले. काफ़ी डरे लग रहे थे.
"हूं. मेरे पति देव अपनी नौकरानी पर इतने आशिक हैं मुझे पता नही था. बड़े प्यार से सहला रहे थे आप उसकी चूत को!"
"तुम गलत समझ रही हो, मीना!" तुम्हारे भैया बोले.
"इसमे गलत समझने का क्या है जी?" मैने पूछा, "जब एक आदमी खेत मे अपनी शादी-शुदा नौकरानी का बलात्कार करने की कोशिश करता है तो उसकी नीयत का साफ़ पता चल जाता है."

मेरे वह कुछ देर चुप बैठे रहे. उनका लौड़ा अब ढलकर लुंगी मे छुप गया था. फिर वह बोले, "तो फिर गुलाबी क्यों कह रही थी तुमने उसे मुझे से अपनी चूची मलवाने को भेजा है?"
"ठीक ही तो कह रही थी वह." मैने मचलकर कहा.
"तुमने...तुमने सच मे उसे बोला...के वह आकर...मुझसे..."
"हूं!"
"मगर क्यों?"
"ताकि वह थाने मे जाकर आपके ऊपर बलात्कार का केस ना ठोक दे!" मैने कहा. "आपका चरित्र कितना खराब है वह तो मैं समझ ही गयी हूँ. मेरे कहने से आप रुकने वाले तो हो नही. मौका मिलते ही बेचारी गुलाबी को कहीं पटककर चोद लोगे. रोना तो फिर मुझे पड़ेगा ना!"

तुम्हारे भैया को मेरी बात समझ मे नही आयी.

मैने कहा, "आपको गुलाबी को जबरदस्ती चोदना ना पड़े इसलिये उसे मैं आपके लिये पटा रही हूँ. पट जायेगी तो खुद ही चुदवा लेगी आपसे."

मेरे उनको अपने कानों पर विश्वास नही हुआ. "यह क्या कह रही तो तुम, मीना? एक पत्नी होकर तुम मेरे लिये गुलाबी को पटा रही हो?"
"तो क्या हुआ." मैने कहा, "गुलाबी को चोद लोगे तो क्या मुझे प्यार करना बंद कर दोगे?"
"नही, मीना! मैने तुम्हे प्यार करना कभी बंद नही करुंगा." वह बहुत गंभीरता से बोले.
"मै जानती हूँ. और मैं यह भी देख रही हूँ कि गुलाबी पर आपका कितना दिल आ गया है. वह है ही ऐसी चीज़ - इतनी जवान, भोली, और मनचली. काफ़ी सुन्दर है और उसकी चूचियां भी बहुत कसी कसी हैं. किसी भी मर्द का मन करेगा उसे चोदने का."
"मीना, तुम मेरे लिया इतना बड़ा त्याग करने को तैयार हो?" उन्होने पूछा.
"अपने पति के सुख का खयाल मैं नही रखूंगी तो कौन रखेगा?" मैने हंसकर कहा और उनके लुंगी मे हाथ डालकर उनके लौड़े को हिलाने लगी. लन्ड फिर से खड़ा हो गया.

"तुम कितनी अच्छी हो, मीना!" वह बोले और मेरी पीठ को सहलाने लगे.
"आप भी पति कुछ बुरे नही हैं!" मैने कहा, "मुझे विश्वास है कि किसी दिन मुझसे कोई भूल-चूक हो गयी, तो आप भी मेरे लिये ऐसा ही त्याग खुशी खुशी करेंगे."
"कैसे भूल-चूक, मीना?" वह सतर्क होकर बोले.
"जैसी भूल-चूक आप गुलाबी के साथ कर रहे हैं." मैने ने आंख मारकर कहा.
"कैसी बातें करती हो, तुम!"
"क्यों, मैं कोई भूल-चूक नही कर सकती क्या?" मैने पूछा, "मैं एक जवान औरत हूँ. देखने मे बुरी भी नही हूँ. और आपको तो पता है मुझमे चुदाई की भूख कितनी ज़्यादा है. अगर मैं किसी और मर्द से चुदवा बैठूं, तो आप क्या मुझे प्यार करना बंद कर देंगे?"

तुम्हारे भैया मेरी बात सुनकर गनगना उठे. मेरे हाथ को पकड़कर अपने लन्ड पर चलाने लगे और छत की तरफ़ देखते हुए कल्पनाओं मे खो गये. शायद कल्पना मे मुझे किसी और मर्द के साथ चुदाई करते देख रहे थे.

कुछ देर बाद वह बोले, "नही मीना, तुम चाहे कोई भी गलती करो, मैं तुम्हे प्यार करना बंद नही करुंगा."
"आप कितने अच्छे हैं!" मैने कहा और उनके होठों को चूम लिया. फिर मैं उठकर बाहर जाने लगी.

"हे भगवान, तुम फिर जाने लगी!" तुम्हारे भैया चिल्लाये.
"आपका पैर तो पहले ठीक हो जाये, फिर जितना चाहे चोद लेना मुझे!" मैने कहा और कमरे के बाहर निकल आयी.
"इन औरतों ने तो मेरा दिमाग ही खराब कर दिया है!" वह मेरे पीछे से चिल्लाये, "भगवान कसम! जो अगली औरत मेरे कमरे मे आयी उसे चोदे बिना नही छोड़ूंगा!"

वीणा, मज़े की बात यह है कि उनके कमरे मे जाने वाली अगली औरत तुम्हारी मामीजी थीं.

किशन सुबह-सुबह खेत मे काम देखने गया था. जब गुलाबी उसके लिये नाश्ता लेकर चली गयी, तब मुझसे अन्दर का हाल पूछकर सासुमाँ तुम्हारे भैया के कमरे मे गई.

जाते ही देखा कि उनका लौड़ा तो खड़ा होकर लहरा रहा है और वह हाथ से लौड़े को पकड़कर मुठ मार रहे हैं. अपनी माँ को देखते ही उन्होने खड़े लन्ड को अपनी लुंगी मे छुपा लिया और बोले, "माँ तुम, यहाँ!"

सासुमाँ ने हंसकर लुंगी मे खड़े उनके लन्ड को देखा और कहा, "तेरा यह हाल बहु ने किया है, या गुलाबी ने?"

माँ के सामने उनकी तो बोलती बंद हो गई. बस हाथ से अपने लन्ड तो दबाकर लुंगी मे छुपाने लगे.

"अरे बोल ना! इतना शरमा क्यों रहा है?" सासुमाँ बोली, "अब तु एक आदमी बन गया है. तुझसे मैं ऊंच-नीच, दुनिया-दारी की बातें कर सकती हूँ."

मेरे उन्होने थूक गटका और पूछा, "माँ, तुम्हे गुलाबी के बारे मे किसने बताया?"
"बहु ने, और किसने."
"मीना ने तुम्हे भी बता दिया?"
"तो क्या हुआ." सासुमाँ बोली, "मै कोई अनछुई कली हूँ क्या जो सुनकर शरम से मर जाऊंगी?"
"तो तुमने उसे क्या कहा?"
"मैने बहु को कहा कि मेरा बेटा जवान मर्द है और उसे भी और मर्दों की तरह औरत की भूख होती है." सासुमाँ बोली, "गुलाबी तुझे भा गयी है. इसमे अचरज की क्या बात है अगर तुने उसके साथ जबरदस्ती की है."

तुम्हारे भैया ने अपनी माँ के मुंह से कभी ऐसी बातें नही सुनी थी. हैरान होकर बोले, "फिर मीना ने क्या कहा?"
"बहु को कोई ऐतराज़ नही है." सासुमाँ बोली, "वह गुलाबी को समझा रही है तेरे साथ संबंध बनाने की लिये. बहुत अच्छी बहु है हमारी. लाखों मे एक है!"
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10-08-2018, 01:06 PM,
#25
RE: मेले के रंग सास, बहु, और ननद के संग
सासुमाँ अब जाकर अपने बेटे के पास पलंग पर बैठ गई. उनका आंचल ढलक रहा था और ब्लाउज़ के ऊपर से उनके विशाल चूचियों के बीच की घाटी दिखाई दे रही थी. तुम्हारे भैया की हालत इतनी खराब थी कि अपनी माँ की चूचियों को भी नज़रों से पीये जा रहे थे.

"क्या देख रहा है रे?" सासुमाँ ने पूछा.
"नही, कुछ नही!" उन्होने कहा और अपनी नज़रें फेर ली.
"सच मे, बलराम, औरत के भूख ने तुझे पागल ही बना दिया है." सासुमाँ हंसकर बोली, "तु तो अपनी माँ पर भी बुरी नज़र डाल रहा है! ठहर, मैं बात करती हूँ बहु से. गुलाबी राज़ी हो या ना हो, बहु का तो फ़र्ज़ बनता है तेरी प्यास बुझाने का!"
"नही माँ!" उन्होने कहा, "ऐसी बात नही है."
"अरे इतना शरमा क्यों रहा है?" सासुमाँ बोली, "तु एक जवान मर्द है. औरत के जोबन पर तेरी नज़र जाना तो स्वभाविक ही है. चाहे वह जोबन मेरा ही क्यों न हो."

फिर अपने आंचल को और थोड़ा नीचे कर के बोली, "वैसे एक ज़माने मे तुने तो मेरे दूध से बहुत खेला है."
"तब मैं बच्चा था, माँ." तुम्हारे भैया बोले.
"हाँ, पर तु जब मेरे दूध से खेलता था और चूसता था, मुझे मज़ा तो आता ही था." सासुमाँ बोली, "तुझे तो पता है, औरत को उसके जोबन दबवाने मे बहुत मज़ा आता है. बहु कह रही थी तुने आज गुलाबी के जोबन से बहुत खेला है?"

तुम्हारे भैया फटी-फटी आंखों से देखते हुए अपनी माँ की बातों को सुन रहे थे. सासुमाँ की रसीली बातें सुनकर उनका लन्ड उनके हाथ के काबू मे ही नही रह रहा था.

"अरे बोल ना!" सासुमाँ हंसकर बोली, "बहुत कसे कसे लगते हैं गुलाबी के जोबन. बहुत मज़ा आया होगा तुझे? मर्दों की रुचि मैं खूब समझती हूँ. तेरे पिताजी को भी कसे कसे जोबन बहुत पसंद हैं. किसी ज़माने मे वह मेरे जोबन को पगालों की तरह दबाते थे. और मुझे स्वर्ग का मज़ा आता था. पर अब मुझमे गुलाबी और मीना बहु जैसी बात कहाँ! उनकी नज़र तो अब गुलाबी और मीना बहु के जवान गोलाइयों को नापती रहती हैं!"

अपनी माँ की बातों को सुनकर तुम्हारे भैया जैसे गनगना उठे. कांपती आवाज़ मे बोले, "माँ, तुम कैसी बातें कर रही हो आज?"
"अरे ऐसे ही मन हुआ तुझसे बातें करूं! तु भी अकेले बिस्तर पर पड़े पड़े ऊब जाता होगा." सासुमाँ बोली, "बहु और गुलाबी तो रसोई मे व्यस्त रहती हैं. तुझे समय कैसे देंगी? सोचा मैं ही तेरा मनोरंजन कर दूं!"

तुम्हारे भैया की हालत देखने लायक थी. 10-15 दिनों से उन्होने कोई चूत नही मारी थी. मैं और गुलाबी पास आकर चूची दबवा रहे थे, चूत मसलवा रहे थे, उनका लन्ड भी हिला रहे थे, पर अपनी चूत नही दे रहे थे. और यहाँ उनकी माँ आकर अपना आंचल गिराकर ऐसी रसीली बातें कर रही थी. उनकी सारी कोशिशों के बावजूद उनका लौड़ा काबू मे नही रह रहा था. वह अपने घुटने मोड़कर अपनी जांघों के बीच अपने खड़े लन्ड को दबा के रखने की कोशिश कर रहे थे.

उनके दयनीय हालत को देखकर, सासुमाँ बोली, "अरे तु ऐसे क्यों पड़ा हुआ है? पेट मे दर्द है क्या?"
"नही माँ." वह बोले.
"तो सीधे होकर आराम से लेट ना!" सासुमाँ बोली और उनको पकड़कर सीधा करने लगी.
"नही, माँ, मैं ऐसे ही ठीक हूँ!" वह अपने जांघों मे अपने खड़े लन्ड को दबाये बोले.

तुम्हारे मामीजी ने अपने बेटे के लुंगी मे नज़र डाली और कहा, "अच्छा, तु इसकी वजह से शरमा रहा है! अरे मैने अपनी जवानी के दिनो मे ऐसे औज़ार बहुत देखे हैं!"
"क्या!" मेरे उनका मुंह खुला का खुला रह गया.
"क्यों मैं कभी जवान नही थी क्या?" सासुमाँ बोली.
"मेरा मतलब....तुमने कहा...तुमने ऐसे औज़र....बहुत देखे हैं..." वह बोले.
"हाँ देखे हैं ना...बहुत से देखे हैं. और उनसे खेला भी है." सासुमाँ बोली, "मै जवानी मे मीना बहु की तरह बहुत नटखट थी. अब तुझे क्या बताऊं, तु तो बेटा है मेरा, पर बहुत जी करता है काश उन दिनो के मज़े फिर से ले पाती."

कुछ देर के लिये सासुमाँ जैसे सपनों मे खो गयी. फिर अपने बेटे को बोली, "अरे तु अब भी वैसे ही पड़ा है? चल सीधे होकर लेट."

तुम्हारे भैया न चाहते हुए भी सीधे होकर लेट गये. अब उनका लौड़ा लुंगी को तम्बू बनाकर खड़ा हो गया.
सासुमाँ ने अपने होठों पर जीभ फेरा और कहा, "बहुत बड़ा है तेरा. तेरे पिताजी जैसा ही है. पूछुंगी बहु से वह पूरा ले पाती है या नही. और हाँ, जब तु गुलाबी के साथ करेगा ना, तो आराम से करना. रामु का उतना बड़ा नही है. बेचारी को तकलीफ़ होगी."
"माँ, तुम्हे कैसे पता रामु का कितना बड़ा है?" उन्होने हैरान पूछा.
"हम औरतें आपस मे बातें नही करती हैं क्या?" सासुमाँ बोली. फिर अपने मुंह को हाथ से ढक कर बोली, "हाय, तुने क्या सोच लिया, मैने रामु के साथ मुंह काला किया है!" फिर वह जोर से हंसने लगी.
"नही...मेरा वह मतलब नही था." तुम्हारे भैया हड़बड़ा के बोले.

हंसी रुकी तो सासुमाँ बोली, "वैसे रामु देखने मे जवान पट्ठा है. बस थोड़ा काला है. पर सुना है गुलाबी को रोज़ बहुत मज़ा देता है."
"माँ, तुम लोग आपस मे यह सब बातें करती हो?" उन्होने पूछा.
"तु नही जानता औरतें आपस मे क्या क्या बातें करती हैं." सासुमाँ बोली, "तेरे पिताजी का कितना बड़ा है, वह मेरे साथ कितना करते हैं, तुने बहु के साथ कहाँ कहाँ किया है....कुछ भी छुपा नही रहता. बहु तो तेरी तारीफ़ किये नही थकती. मुझे बहुत गर्व होता है मेरा बेटा ऐसा बांका जवान है जो अपनी गरम बीवी को रोज़ ठोक-बजाकर तृप्त रखता है."
"कहाँ! वह तो अब मेरे पास ही नही आती है, माँ!" मेरे वह बोले, "ना जाने क्या हुआ है उसे."
"अरे वह सोचती है तेरा पाँव ठीक नही हुआ है. धक्कम-पेली मे चोट बढ़ सकती है."
"मेरा पाँव बिलकुल ठीक हो गया है, माँ!" वह बोले, "बस तुम लोग ही मुझे घर के बाहर नही जाने देते हो."

"ठहर, मैं देखती हूँ.", बोलकर सासुमाँ बेटे के पाँव के पास जा बैठी और धीरे से दबाने लगी. बोली, "यहाँ दर्द है क्या?"
"नही." वह बोले.

सासुमाँ ने अपना हाथ थोड़ा और ऊपर उठाया और घुटनों को दबाकर पूछा, "यहाँ दर्द है?"
"नही, माँ."

सासुमाँ अब उनके जांघों को सहलाने लगी. उनकी आंखें तो बेटे के लुंगी मे खड़े लन्ड पर थी. उन्होने अपना आंचल पूरा गिरा दिया था जिससे ब्लाउज़ और ब्रा मे कसी उनकी बड़ी बड़ी चूचियां दिखाई दे रही थी. बेटे की निगाहें भी माँ की चूचियों पर ही थी. दोनो की सांसें फूल रही थी और आंखों मे लाल डोरे तैर रहे थे.

तुम्हारे भैया के कमरे का दरवाज़ा खुला हुआ था और मैं चौखट के आड़ से अन्दर का नज़ारा देख रही थी. अचानक किसी ने मेरी चूचियों को पीछे से दबाया. मैं मुड़ी तो देखा तुम्हारे मामाजी है. मुझे चुप रहने का इशारा करके वह मेरे साथ अन्दर देखने लगे.

सासुमाँ ने बेटे की लुंगी लगभग कमर तक चढ़ा दी और वह अपने हाथ बेटे के जांघों के ऊपर की तरफ़ ले गयी और लगभग उनके लौड़े के पास दबाने लगी. "यहाँ दर्द है?" वह भारी आवाज़ मे बोलीं.
"माँ, मेरे पाँव मे मोच आया था, जांघ मे नही." मेरे वह बोले.
"तु चुप बैठ. कभी कभी पाँव का दर्द ऊपर चढ़ जाता है." सासुमाँ बोली और लौड़े के पास जांघों को दबाने लगी. लुंगी ऊपर उठ जाने की वजह से उनका काले रंग का मोटा पेलड़ लुंगी के नीचे से नज़र आ रहा था.
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10-08-2018, 01:07 PM,
#26
RE: मेले के रंग सास, बहु, और ननद के संग
कभी कभी जाने-अनजाने मे सासुमाँ का हाथ बेटे के खड़े लौड़े पर लग जाता था तो दोनो सिहर उठते थे. अब तक माँ-बेटे दोनो की शर्मओ-हया और विवेक बुद्धि हवस के तूफ़ान मे कहीं बह गये थे.

मेरे पीछे से ससुरजी ब्लाउज़ के ऊपर से मेरी चूचियों को दबा रहे थे. धीरे से मेरे कान मे बोले, "हाय यह क्या कर रही है कौशल्या अपने बेटे के साथ! लगता है बलराम को मादरचोद बनाकर ही छोड़ेगी."
मुझे तो मज़ा आ रहा था माँ-बेटे का कुकर्म देखकर.

"तेरा वह बहुत बुरी तरह खड़ा है रे, बलराम! मेरा बार बार हाथ लग जा रहा है." सासुमाँ बोली.
"माँ, तुम नीचे की तरफ़ दबाओ." मेरे वह बोले.
"नही क्यों, तुझे अच्छा नही लग रहा मैं ऊपर दबा रही हूं?" सासुमाँ ने कहा और फिर उनका हाथ बेटे के खड़े लन्ड पर लग गया.
"अच...अच्छा लग रहा है, माँ." वह अपनी सांस रोककर बोले.
"तो तु आराम से लेट ना, और मज़े ले." सासुमाँ बोली.
"माँ, कहीं मीना या गुलाबी अन्दर आ गयी तो क्या सोचेंगी." वह बोले.

सासुमाँ पलंग से उठी और बोली, "हाँ तु ठीक कह रहा है. मैं दरवाज़ा बंद कर देती हूँ. वह सोचेंगी तु सो रहा है."

बोलकर वह दरवाज़े के पास आयी. वहाँ मुझे और ससुरजी जो देखकर उनके चेहरे पर एक शर्मिली मुसकान बिखर गयी.
मैने फुसफुसाकर कहा, "माँ, बहुत बढ़िया चल रहा है! दरवाज़ा थोड़ा खुला रखिये. हम लोग देख रहे हैं."

सासुमाँ ने दरवाज़ा ठेल दिया और बेटे के बिस्तर पर जा बैठी. ससुरजी और मैं दोनो पाटों के फांक से अन्दर देखने लगे. ससुरजी की सुविधा के लिया मैने अपने साड़ी का आंचल गिरा दिया और अपने ब्लाउज़ के हुक खोलकर अपने ब्रा को ऊपर कर दिया जिससे वह आराम से मेरी नंगी चूचियों को मसल सके. वह मेरे चूतड़ मे अपना खड़ा लन्ड रगड़ने लगे, मेरी चूचियों को मसलने लगे और अन्दर का नज़ारा लेने लगे.

सासुमाँ फिर बेटे के लौड़े के पास उसके जांघ को दबा रही थी. वह बोली, "बलराम, ठीक से दबा नही पा रही हूँ. तेरा लुंगी और थोड़ा ऊपर कर दूं?"
"माँ फिर वह मेरा...वह बाहर आ जायेगा." मेरे वह बोले.
"तो आ जाये ना!" सासुमाँ बोली, "मै कोई पहली बार लौड़ा देख रही हूं?" बोलकर उन्होने बेटे की लुंगी को पेट पर चढ़ा दिया. उनका नंगा लन्ड सासुमाँ के आंखों के सामने था. मोटा, 8 इंच लंबा, सांवले रंग का लन्ड छत की तरफ़ खंबे की तरह खड़ा था.

"हाय, कितना सुन्दर है रे तेरा लौड़ा." सासुमाँ बोली, "बहु को चुसाता है क्या?"
"हाँ. मीना बहुत मज़े से चूसती है" वह बोले.
"तेरे पिताजी का लन्ड भी इतना ही बड़ा है." सासुमाँ बोली, "मैं तो अब भी रोज़ चूसती हूँ."

सासुमाँ की भाषा अब बहुत ही अश्लील होती जा रही थी. तुम्हारे भैया को भी अपने माँ के मुंह से ऐसे गन्दे शब्द सुनकर उत्तेजना हो रही थी.

"मै तेरा लन्ड पकड़ूं तो तुझे बुरा तो नही लगेगा?" सासुमाँ बोली, "बहुत दिन हो गये हैं कोई जवान लन्ड पकड़े हुए."

उनके बेटे ने ना मे सर हिलाया तो सासुमाँ ने एक हाथ से बेटे के मोटे लन्ड को पकड़ लिया और और हाथ को ऊपर-नीचे करके धीरे धीरे हिलाने लगी. मेरे उन्होने अपनी आंखें बंद कर ली और माँ के हाथ का मज़ा लौड़े पर लेने लगे.

"अच्छा, यह बता, तु बहु को अपनी मलाई पिलाता है क्या?" सासुमाँ ने पूछा.
"नही, माँ. बहुत नखरे करती है." वह बोले.
"हाय, कैसी मूर्ख औरत है!" सासुमाँ बोली, "ऐसा सुन्दर लौड़ा मिले तो मैं एक बून्द मलाई भी न छोड़ूं! कभी पूछना अपने पिताजी से, मुझे उनकी मलाई पीना कितना अच्छा लगता है. मैं समझाती हूँ बहु को! जल्दी ही मज़ा ले लेकर तेरी मलाई पियेगी."

कुछ देर बेटे का लौड़ा हिलाकर सासुमाँ बोली, "बलराम, बहुत मन कर रहा है तेरा लौड़ा थोड़ा चूसने का. बहुत दिन हो गये किसी जवान आदमी का लौड़ा चूसे हुए."
"चूसे लो, माँ!" मेरे वह गनगना कर बोले.

सासुमाँ ने तुरंत अपना मुंह बेटे के लन्ड पर झुकाया और आधा लन्ड मुंह मे ले लिया. फिर प्यार से बेटे के लौड़े को चूसने लगी.

तुम्हारे भैया अपने हाथों से बिस्तर के चादर को नोच रहे थे और अपने आप पर काबू रखने की कोशिश कर रहे थे. वैसे तो वह घंटे भर मुझे चोद सकते थे, पर अपनी माँ के द्वारा लन्ड चुसाने का उनका पहला अनुभव था.

"माँ, धीरे चूसो! हाय मेरा पानी निकल जायेगा!" वह आंखें बंद किये कसमसा कर बोले.
"तो निकाल दे ना!" सासुमाँ ने मुंह से लौड़ा निकाला और कहा. "मैं भी तो देखूं कितना स्वाद है तेरी मलाई मे."

सासुमाँ ने अपने ब्लाउज़ के हुक खोल दिये और ब्लाउज़ उतार दी. फिर अपने ब्रा को ऊपर चढ़ाकर अपनी भारी भारी चूचियों को आज़ाद किया. फिर एक हाथ से बेटे का लन्ड पकड़कर चूसने लगी और दूसरे हाथ से उसके पेलड़ को छेड़ने लगी. बीच-बीच मे अपने निप्पलों को चुटकी मे लेकर मीस भी लेती थी.

तुम्हारे भैया अपनी कमर उठा उठाकर अपनी माँ के मुंह मे लन्ड पेलने लगे और बड़बड़ाने लगे. "हाय माँ, कितना अच्छा चूस रही हो! उम्म!! ऊंघ!! चूसना बंद मत करना. मैने पानी नही निकाला तो मर जाऊंगा! आह!! माँ, मेरा पानी निकल रहा है. तुम मुंह हटा लो! आह!! ओह!! आह!! ओह!!"

उन्होने अपना वीर्य छोड़ना शुरु किया पर सासुमाँ ने अपना मुंह नही हटाया. होठों को लन्ड के ऊपर-नीचे कर कर के बेटे के पेलड़ से मलाई निकालने लगी. उनका जब मुंह भर गया तो सफ़ेद वीर्य होठों से चूकर बाहर गिरने लगा. जब बेटा पूरा झड़ चुका तो सासुमाँ ने लन्ड से अपना मुंह हटाया और अपने मुंह का सारा वीर्य गटक कर पी गयी. फिर बेटे के लन्ड पर लगे वीर्य को चाट चाटकर खाने लगी.

ससुरजी मेरी चूचियों को मसलते हुए बोले, "बहु, कौशल्या ऐसी गिरी हुई औरत हो सकती है विश्वास नही होता. अपने बेटे का लन्ड चूसकर उसका वीर्य पी रही है! सोनपुर जाने के बाद वह सचमुच बहुत बदल गयी है."
"हाय बाबूजी, जैसे आप नही बदल गये सोनपुर जाकर!" मैने कहा. "आपके लन्ड की हालत बता रही है कि माँ-बेटे के कुकर्म को देखकर आपको भी बहुत मज़ा आ रहा है."

झड़ने के बाद भी तुम्हारे भैया का लौड़ा खड़ा का खड़ा रहा. उन्होने आंखें खोली तो अपनी माँ को बिना ब्लाउज़ के, चूचियां मसलते हुए देखा.

"आराम मिला तुझे, बेटा?" सासुमाँ ने पूछा, "बहुत तड़प रहा था बहु और गुलाबी के लिये. इसलिये मैने सोचा तेरा लन्ड चूसकर झड़ा देती हूँ."
"बहुत आराम मिला, माँ." मेरे वह बोले.
"अब मेरा हाल देख ना!" सासुमाँ अपने नंगी चूचियों को मसलते हुए बोली, "तेरा गरम लौड़ा चूसकर मेरा क्या हाल हो गया है! तेरे पिताजी तो रात को ही मेरी चूचियों को पीयेंगे. तब तक मैं क्या करूं?"
"हाय माँ! मैं चूस देता हूँ तुम्हारी चूचियों को!" मेरे वह बोले.

सासुमाँ ने अपने हाथ पीछे करके अपने ब्रा का हुक खोला और ब्रा को नीचे फेंक दिया. अब उनकी मांसल चूचियां खुल के हिल रही थी. तुम्हारे भैया लालची निगाहों से अपने माँ की चूचियों को देख रहे थे.
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10-08-2018, 01:07 PM,
#27
RE: मेले के रंग सास, बहु, और ननद के संग
सासुमाँ अपने बेटे के करीब जाकर बैठी और बोली, "ले थोड़ा दबा दे. चूची मसलवाने मे मुझे बहुत मज़ा आता है. अब तो ढीली हो गयी है मेरी चूचियां - बहु और गुलाबी की तरह कसी नही है. पता नही तुझे मज़ा आयेगा के नही."

तुम्हारे भैया ने तुरंत अपनी माँ की चूचियों को अपने हाथों से दबाना शुरु किया और बोले, "नही माँ. बहुत मज़ेदार हैं तुम्हारे मम्में."
"तो फिर मेरी निप्पलों को चुटकी मे लेके मींज." सासुमाँ बोली.
बेटे ने ऐसा ही किया तो वह बोल उठी, "हाय! कितना अच्छे से मींज रहा है रे! बहु के साथ भी ऐसा ही करता है क्या? उफ़्फ़!! बेटे थोड़ा चूस भी दे मेरी चूचियों को!"

तुम्हारे भैया ने बिस्तर से उठने की कोशिश की तो सासुमाँ बोली, "अरे तु मत उठ. पाँव मे लग सकता है. तु लेटे रह. मैं ही तुझे अपनी चूचियां पिलाती हूँ."

बोलकर सासुमाँ बिस्तर पर चढ़ गयी और अपने दोनो पैर तुम्हारे भैया के दोनो तरफ़ रखकर उनके सीने पर बैठ गयी. फिर अपनी नंगी चूचियों को पकड़कर अपने बेटे के मुंह मे देने लगी. मेरे वह भी अपनी माँ की चूचियों को दबाने लगी और बारी-बारी चूसने लगे. उनका लौड़ा फिर ताव मे आकर फनफनाने लगा.

"हाय, बेटा! चूस अपनी माँ की चूचियों को!" सासुमाँ सित्कारी भरकर बोली, "आह!! कितना मज़ा है तेरे जीभ मे. उफ़्फ़!! मीना बहु कितनी सौभाग्यवति है जिसे तेरे जैसा लौड़ा मिला है. मैं उसकी जगह होती तो तेरा लौड़ा दिन-रात अपनी चूत मे डाले पड़ी रहती. आह!! और जोर से मसल बेटे! उम्म!!"

इधर मुझे और ससुरजी को भी बहुत जोश चढ़ गया था. घर पर कोई नही था. गुलाबी खेत से अब तक आयी नही थी. मैने ससुरजी के लुंगी को खोल दिया और उनके लौड़े को पकड़कर हिलाने लगी. वह मेरी चूचियों को मसल रहे थे और मेरे कंधों को चूम रहे थे. मुझे बोले, "बहु ब्लाउज़ और ब्रा उतार दे तो मैं ठीक से मसल सकूंगा."

मैने अपनी ब्लाउज़ और ब्रा उतार दी और ऊपर से पूरी नंगी हो गयी. अब ससुरजी मेरी चूचियों को दो हाथों से पकड़कर खूब मसलने लगे और मुझे मज़ा देने लगे. साथ ही मेरे कंधे और गले को चूमने लगे.

बेटे के सीने पर बैठे होने के कारण सासुमाँ की साड़ी और पेटीकोट कमर तक चढ़ गयी थी और उनकी नंगी जांघें नज़र आ रही थी. अपने बेटे के हाथ मे अपनी चूचियां देकर उन्होने अपना हाथ पीछे किया और बेटे का खड़ा लन्ड पकड़ लिया.
"हाय, बलराम! तेरा लौड़ा तो फिर से पूरा खड़ा हो गया रे!" सासुमाँ बोली, "तुझे अपनी माँ की चूचियां इतनी पसंद आयी!" वह बेटे का लन्ड पकड़कर हिलाने लगी.
"हाँ, माँ! तुम बहुत ही मस्त हो!" मेरे वह बोले, "तुम्हारे साथ इतना मज़ा आयेगा मैं कभी सोचा नही था."
"हाय! अगर सोचा होता तो क्या करता?" सासुमाँ बोली, "गुलाबी की तरह मुझे पटककर चोद देता?"

मेरे वह कुछ नही बोले. बस माँ की चूचियों को मसलते रहे और उनके निप्पलों को चूसते रहे.

सासुमाँ अब बेटे के सीने से थोड़ा नीचे सरक आयी और फिर अपने गरम होंठ अपने बेटे के होठों पर रख दी. फिर बहुत प्यार से अपने बेटे के होठों को पीने लगी. मेरे वह भी अपनी माँ के मुंह मे जीभ ठेलकर उन्हे चुसने लगे जैसे के दोनो कोई नयी दंपति हो.
देखकर मेरे ससुरजी गनगना उठे. मेरी चूतड़ मे अपना खड़ा लन्ड जोर से दबाकर, चूचियों को भींचकर बोले, "उफ़्फ़! क्या कर रही है कौशल्या अपने ही बेटे के साथ!"
"मुझे तो देखने मे बहुत मज़ा आ रहा है, बाबूजी!" मैने कहा.
"बलराम तेरा पति है, बहु!" ससुरजी बोले, "तुझे ज़रा भी बुरा नही लग रहा?"
"नही बाबूजी!" मैने कहा, "मै भी तो आपसे चुदवाती हूँ. हाय, और जोर से मसलिये, बाबूजी!"
"अपनी साड़ी उतार दे बहु." ससुरजी बोले.

मैने जल्दी से साड़ी उतार दी. अब मैं सिर्फ़ पेटीकोट मे थी. मेरे नंगे बदन को सहलाते हुए ससुरजी बोले, "पेटीकोट भी उतार दे ना! पूरी नंगी हो जा. तुझे पीछे से चोदता हूँ."
"कोई आ जायेगा, बाबूजी." मैने कहा.
"कौन आयेगा?" ससुरजी बोले, "गुलाबी को आने मे अभी देर है. गाँव मे सब से बतियाकर ही लौटेगी."

मैने अपनी पेटीकोट उतार दी और नंगी हो गयी. ससुरजी ने मुझे बाहों मे भर लिया और मेरे होठों को चूमने लगे. कमरे के बाहर खुले मे नंगे होने मे मुझे बहुत रोमांच हो रहा था.
"बाबूजी, आप भी अपनी बनियान उतार दीजिये." मैने कहा.

तुम्हारे मामाजी ने अपनी बनियान उतार दी और वह भी पूरी तरह नंगे हो गये. कमरे के अन्दर क्या हो रहा है देखने के लिये मैं मुड़ी तो उन्होने मुझे आगे की तरफ़ झुका दिया और अपना सुपाड़ा मेरी गीली चूत पर रख दिया.
"हाय, पेल दीजिये, बाबूजी!" मैने कहा तो, ससुरजी ने मेरी कमर पकड़कर अपना मोटा लौड़ा मेरी चूत मे पीछे से घुसा दिया. फिर मेरी चूचियों को मसलते हुए मुझे कुतिया बनाके चोदने लगे.

अन्दर सासुमाँ अब भी अपने बेटे के होठों को पीये जा रही थी. पर अब उनकी साड़ी कमर के एक दम ऊपर चढ़ चुकी थी और उनकी नंगे चूतड़ दिख रहे थे. वह अपनी चूत अपने बेटे के पेट पर रगड़ रही थी और कराह रही थी.

थोड़ा और नीचे सरक कर सासुमाँ ने अपनी मोटी बुर अपने बेटे के खड़े लन्ड पर रखा. बुर के फांक के बीच लौड़े को रखकर वह बुर को लौड़े के ऊपर-नीचे घिसने लगी.

"आह!! बेटे, क्या लौड़ा बनाया है तुने!" सासुमाँ बोली.
मेरे वह अपनी कमर उठाकर अपना लन्ड अपनी माँ की बुर पर दबाने लगे और बोले, "हाय माँ, यह क्या कर रही हो तुम?"
"तेरे लन्ड पे अपनी चूत घिस रही हूँ, और क्या. आह!!" सासुमाँ मज़ा लेते हुए बोली.
"पर माँ-बेटे की चोदाई गलत बात है, माँ!" वह बोले.
"पता है गलत बात है." सासुमाँ बोली, "पर मैं अभी इतनी गरम हूँ कि किसी का भी लौड़ा ले सकती हूँ! आह!! हाय क्या मज़ा आ रहा है, हाय!!"
"हमे यह सब नही करना चाहिये, माँ!" वह बोले.
"अरे चुप भी कर भड़ुये!" सासुमाँ खीजकर बोली, "चूत चूत होती है और लन्ड लन्ड होता है! चूत चोदने के लिये होती है और लन्ड चुदाने के लिये होता है. आह!! क्या लौड़ा है रे तेरा! डाल दे बेटे, अपनी माँ की चूत मे अपना लौड़ा डाल दे! ओह!!"

तुम्हारे भैया को मज़ा तो आ रहा था, पर वह चुप रहे.

सासुमाँ ने अपना हाथ पीछे लेकर बेटे के लन्ड को पकड़ा और उसके सुपाड़े पर अपनी बुर सेट किया. फिर दबाव डालकर बेटे के लन्ड को अपनी चुत मे लेने लगी.

इधर अन्दर का नज़ारा देखकर ससुरजी बोले, "अरे कौशल्या ने अपने बेटे का लन्ड अपनी चूत मे ले ही लिया!" उन्हे बहुत जोश आ रहा था यह सब देखकर. मेरी कमर को पकड़कर जोर जोर से मुझे ठोकने लगे.

उधर सासुमाँ अपने बेटे के लन्ड पर ऊपर-नीचे होकर चुद रही थी. बेटा भी माँ के नंगे चूचियों को पकड़कर मसल रहा था और कमर उठा उठाकर अपनी माँ की चूत मे लन्ड पेल रहा था. दोनो की सांसें धौंकनी की तरह चल रही थी. माँ-बेटे के पवित्र रिश्ते को भूलकर दोनो अपनी घिनौनी हवस मे डूबे हुए थे. सासुमाँ कमर उठा उठाकर ठाप दे रही थी तो उनकी बुर को चौड़ी कर के मेरे उनका मोटा लौड़ा अन्दर बाहर हो रहा था.

"हाय, क्या मज़ा है रे तेरे लन्ड मे, बलराम!" सासुमाँ बोली, "आह!! कितनी जलन हो रही है मुझे जो बहु तेरा यह लौड़ा रोज़ चूत मे लेती है! ऊम्म!! चोद बेटा, अपनी रंडी माँ को चोद अच्छे से!! कितने दिन हो गये ऐसे जवान लन्ड से नही चुदी हूँ! चोद मुझे और जोर से चोद!! आह!!"

उधर सासुमाँ कमर उठा उठाकर चुद रही थी और इधर ससुरजी मुझे कुतिये की तरह चोदे जा रहे थे. मुझे इतना मज़ा आ रहा था, पर मैं अपने मुंह कस के बंद करके चुदाये जा रही थी. बाहर का दरवाज़ा खुला ही था. किशन अचानक आ जाता तो देखता उसकी प्यारी भाभी नंगी होकर उसके बाप से खुले आम चुदवा रही है.

"ओह माँ!! ऊंघ!! कमर धीरे चलाओ!" मेरे वह अन्दर बोल रहे थे, "मेरे पानी निकल जायेगा!"
"अरे निकाल दे ना!" सासुमाँ बोली, "भर दे अपनी माँ का गर्भ! आह!! मैं भी झड़ने वाली हूँ, बेटे!! आह!! ओह!! ऊह!! चोद बेटे, चोद मुझे!! चोद अपनी चुदैल माँ को! आह!! आह!!"

दोने माँ-बेटे वासना मे डूबे हुए और 10-12 मिनट चुदाई करते रहे. सासुमाँ बीच-बीच मे झड़ रही थी, पर चुदाई जारी रख रही थी. पर इतने मे तुम्हारे भैया ने अपनी माँ के कमर को पकड़ा और अपना लन्ड उनकी बुर मे पूरा घुसाकर झड़ने लगे. "ऊंघ!! ऊंघ!! आह!! ले साली रंडी!! ले अपने बेटे का वीर्य अपने गर्भ मे!! आह!! आह!! आह!! आह!!"

झड़ने के बाद सासुमाँ बेटे का लन्ड चूत मे डाले उसके सीने पर लेट गयी.

इधर मैं दो बार झड़ चुकी थी. ससुरजी और खुद को सम्भाल नही पाये. अपनी बीवी को अपने बेटे के साथ चुदाई करते देखकर वह बहुत गरम हो गये और मेरी चूचियों को जोर से दबाते हुए मुझे बेरहमी से ठोकने लगे.
अचानक, दूर से गुलाबी और किशन के हंसने की आवाज़ आयी. वह दोनो खेत से घर लौट रहे थे.

"हाय बाबूजी, देवरजी और गुलाबी वापस आ गये हैं!" मैने डर कर कहा.
पर ससुरजी इतने जोश मे थे कि उन्होने मुझे चोदना बंद नही किया. मेरी कमर पकड़कर मेरी चूत मे अपना लन्ड पेलते रहे.

"छोड़िये बाबूजी!" मैने छुटने की कोशिश करके कहा, "वह दोनो आ जायेंगे तो गज़ब हो जायेगा!"
"होने दे गज़ब!" ससुरजी हांफ़ते हुए बोले, "किशन से तु चुद ही चुकी है. गुलाबी भी देख ले के ससुर-बहु की चुदाई कैसी होती है."
"नही बाबूजी! उन्होने देख लिया तो सारी योजना खराब हो जायेगी!" मैने विनती करके कहा.
"ठहर ना बहु, अब बस एक मिनट ही लगेगा. मैं बस झड़ने ही वाला हूँ." बोलकर ससुरजी बहुत जोर जोर से मुझे ठोकने लगे. उनके लौड़े का सुपाड़ा मेरे गर्भ के मुंह पर जाकर टकराने लगा.

किशन और गुलाबी की आवाज़ और पास आ रही थी. मुझे डर लग रहा था और चुदाई मे एक अलग आनंद भी आ रहा था यह सोचकर की किशन और गुलाबी अगर मुझे और ससुरजी को इस हालत मे देख ले तो क्या सोचेंगे!

चार-पांच ठाप और लगाकर ससुरजी ने मुझे अपने सीने से चिपका लिया और अपना लौड़ा मेरे चूत की गहरायी मे पेलकर वह अपना पानी छोड़ने लगे. उधर किशन और गुलाबी आंगन मे आ गये थे. वीर्य का आखरी बून्द मेरी चूत मे गिराकर ससुरजी ने अपना नरम हो चुका लौड़ा मेरी चूत से निकाल लिया. मेरी चूत से ससुरजी का वीर्य निकलकर मेरी जांघों पर बहने लगा और कुछ बूंदें ज़मीन पर गिर गयी. मैं ससुरजी के हाथों से छूटकर सासुमाँ के कमरे मे भागी और पलंग पर पस्त होकर लेट गई. ससुरजी भी मेरे पीछे पीछे कमरे मे आ गये और दरवाज़ा बंद करके मेरे बगल मे लेट गये.

इतने मे किशन और गुलाबी अन्दर आ गये.

"माँ! माँ, कहाँ हो तुम!" किशन बोला, "भाभी! कहाँ हो सब लोग?"

उसकी माँ तो उसके बड़े भाई से चुदवा कर नंगी पड़ी थी. उसकी भाभी उसके बाप से चुदवाकर यहाँ पड़ी थी.

गुलाबी की आवाज़ आयी, "अरे यहाँ जमीन पर कौन इतना सारा कपड़ा रख दिया है? ई तो मालिक की लुंगी और बनियान है. और ई भाभी के साड़ी ब्लाउज़ हैं! और यहाँ बून्द बून्द जाने का गिरा हुआ है!"

मैं चुद कर इतनी थक गयी थी कि ससुरजी के नंगे बदन से लिपट का सो गयी.

जब मेरी आंख खुली, तो देखा सासुमाँ मुझे जगा रही थी. उनके चेहरे पर खुशी की चमक थी.

ससुरजी बोले, "क्यों कौशल्या, आ गयी अपने बेटे के साथ मुंह काला करके? अब अपने दूसरे बेटे को भी मादरचोद बना लो फिर तुम्हारे पापों का घड़ा भर जाये."
"तुम चुप रहो जी." सासुमाँ बोली, "जब बलराम को कोई आपत्ती नही है अपनी माँ को चोदने मे तो तुम्हे क्यों जलन हो रही है? अब से तो मैं उससे रोज़ चुदुंगी. उफ़्फ़! ऐसा मज़ा मुझे ज़िन्दगी मे नही आया!"
"माँ, वह मेरे पति हैं!" मैने कहा, "आप उनको अकेले ही भोगेंगी क्या?"
"अरे बहु, तेरे लिये किशन और तेरे ससुरजी हैं ना!" सासुमाँ बोली, "रामु एक बार आ जाये तो उसे भी पटा लेना. बलराम को बस मेरी प्यास बुझाने के लिये छोड़ दे."
"माँ, आपके लिये किशन और रामु को भी तैयार करती हूँ." मैने कहा, "मेरे पति को मुझसे मत छीनिये!"
"अच्छा बहुत हो गया मज़ाक." सासुमाँ बोली, "अब तु उठकर कपड़े पहन."

उस रात मैं तुम्हारे भैया के साथ ही सोयी, मगर हम दोनो को ही चुदाई का कोई मन नही था. वह बोले उनके सर मे दर्द है. मैने भी कहा मैं काम करके बहुत थक गयी हूँ.

वीणा, जल्दी बताना तुम्हे आज के कहानी की किश्त कैसी लगी. मुझे पूरी उम्मीद है तुम ठरक कर पागल हो गयी होगी. देखो कहीं अपने पिताजी से चुदवा न बैठो!

ढेर सारा प्यार,
तुम्हारी मीना भाभी

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Reply
10-08-2018, 01:07 PM,
#28
RE: मेले के रंग सास, बहु, और ननद के संग
मीना भाभी ने ठीक ही कहा था. उनकी कहानी की यह किश्त पढ़कर मैं सचमुच ठरक के पागल हो गई. बार बार मैं उनके चिट्ठी को पढ़ रही थी और बार बार अपनी चूत मे बैंगन पेलकर अपनी मस्ती झाड़ रही थी. मुझे तो विश्वास ही नही हो रहा था कि मामीजी ने सचमुच बलराम भैया से चुदवा लिया था. कैसा घोर अनर्थ! कैसा घोर पाप! और पढ़कर कैसी चरम उत्तेजना!

न जाने मैं रात को कब सोयी. सुबह उठते ही मैने भाभी की चिट्ठी का जवाब लिखा.


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प्रिय भाभी,

तुम्हारी चिट्ठी मिली. चिट्ठी नही एक कमोत्तेजना का विस्फोट था. अगर किसी और को मिल जाये तो उसे पढ़कर विश्वास ही न हो के किसी के घर मे ऐसा अनाचार भी होता है. तुम नही जानती मेरा पढ़कर कल क्या हाल हुआ. रात भर ठरक के मारे सो नही पायी. बार बार उठकर तुम्हारी चिट्ठी को पढ़ी और चूत मे बैंगन पेली. जब सो जाती थी तो सपनों मे मामीजी और बलराम भैया को चुदाई करते देखती थी.

और तुमने लिखा भी तो खूब है! अगर चुदाई-कथा का कोई पुरस्कार होता है तो तुम्हे ज़रूर मिलनी चाहिये!

जल्दी से लिखो तुम्हारे घर पर आगे क्या हुआ. मुझसे सब्र नही हो रहा है!! 

तुम्हारी बहुत ही ठरकी हुई ननद,
वीणा

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मेरा अगला दिन भाभी की चिट्ठी की प्रतीक्षा मे बीत गया. भाभी की चिट्ठीयों ने मुझे किसी जासूसी कहानी की तरह रोमांच से भर रखा था. मैं बार-बार घर के बाहर जाकर देख रही थी कि डाकिया आया कि नही. मेरी छोटी बहन नीतु मेरी बेचैनी को देखकर अचंभे मे पड़ गयी.

आखिर शाम की तरफ़ डाकिया आया और मीना भाभी की एक नयी चिट्ठी दे गया. चिट्ठी मिलते ही मैं भागकर अपने कमरे मे चली गयी.

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प्रिय ननद वीणा,

तुम्हारा ख़त मिला. पढ़कर दुख हुआ कि तुम अपने घर पर खुश नही हो. मैं तुम्हारा दर्द समझ सकती हूँ. तुम्हारी तरह मुझे बिना लौड़े के रहना पड़ता तो मैं शायद राह चलते किसी से चुदवा बैठती! मैने तुम्हे वादा किया था कि तुम्हारे लिये मैने कुछ सोच रखा है. मेरा भरोसा रखो और किसी को शादी के लिये हाँ मत कह दो. लौड़े के चाहत मे किसी गलत आदमी से शादी कर बैठी तो बहुत पछताओगी!

हम लोग सब यहाँ बहुत मज़े मे हैं (क्यों न हों - जी भर के चुदाई जो मिल रही है!) तुम्हारे मामा और मामी तुम्हे बहुत याद करते हैं.

वीणा, कल दोपहर की तरफ़ रामु अपने गाँव से लौट आया. सासुमाँ, मैं, और गुलाबी रसोई मे थे. तुम्हारे मामाजी किशन को लेकर खेत मे गये थे. तुम्हारे बलराम भैया बिस्तर पर पड़े-पड़े सो रहे थे. पिछले दिन अपनी माँ को चोदकर उनकी काफ़ी दिनो की प्यास जो बुझ गयी थी!

घर के बाहर किसी के आने की आवाज़ हुई तो सासुमाँ बोली, "बहु, देख तो कौन आया है."

मैने घर के आंगन मे पहुंची तो देखा हमारा नौकर रामु बगल मे एक पोटली दबाये चला आ रहा है.

मुझे देखते ही रामु बोला, "नमस्ते भाभी! घर पर कैसे हैं सब लोग?"
"सब लोग बहुत अच्छे हैं!" मैने कहा, "पर तुम कहाँ हवा हो गये थे, रामु? सोनपुर से जो अपने गाँव गये, उसके बाद कोई खबर ही नही?"
"भाभी, अब का बतायें!" रामु रोनी सुरत बनाकर बोला, "गाँव पहुंच के देखे हमरे बापू बीमार हो गये हैं. डाक्टर के पास लाने ले जाने मे ही इतने दिन लग गये."
"अब तो सब कुशल-मंगल हैं ना?"
"हाँ, भाभी. अब सब कुसल मंगल हैं." रामु ने कहा.

मेरा आंचल थोड़ा ढलका हुआ था और मैने आज ब्रा नही पहनी थी. इससे ब्लाउज़ के ऊपर से मेरी चूचियों के बीच की घाटी नज़र आ रही थी. रामु की निगाहें कभी मेरे चूचियों पर जाती कभी मेरे चेहरे पर.

मैने मुस्कुराकर पूछा, "क्या देख रहे हो रामु?"
रामु चौंक कर बोला, "कुछ नही, भाभी. बस अपनी जोरु को ढूंढ रहे थे."
"जो तुम देख रहे हो वह तुम्हारी जोरु के नही हैं. तुम्हारे बड़े भैया की अमानत है!" मैने मसखरा करके कहा. 

रामु ने झेंप के सर झुका लिया.

"गाँव मे गुलाबी की बहुत याद आयी क्या?" मैने पूछा.
"जी, कभी कभी." रामु बोला.
"क्यों नही आयेगी! जवान, सुन्दर बीवी को यहाँ जो छोड़ गये थे!" मैने कहा, "और मेरी याद आयी वहाँ?"
"भाभी...आपकी याद? ऊ तो...हमेसा ही आती है." रामु ने कहा. उसकी निगाहें बार-बार मेरे उभरे हुए चूचियों पर जा रही थी.
"अच्छा, तुम अपने कमरे मे जाओ. मैं गुलाबी को भेजती तुम्हारे पास." मैने कहा, "उसे पाने के लिये तो तुम तड़प रहे होगे?"
"नही भाभी...ऐसी बात नही."
"क्यों अपने गाँव मे कोई भाभी पटा रखी है क्या?" मैने पूछा.
"आप भी कैसा मजाक करती हैं, भाभी!"

मैं अपने चूतड़ मटकाते हुए अन्दर आ गयी और रामु मेरे पीछे पीछे अन्दर आकर अपने कमरे की तरफ़ चल दिया.

मैं रसोई मे पहुंची तो सासुमाँ ने पूछा, "कौन था, बहु?"
"माँ, रामु आ गया है अपने गाँव से." मैने कहा. सुनकर गुलाबी का चेहरा खिल उठा. "आते ही पूछ रहा था उसकी गुलाबी कहाँ है. बेचारा तड़प रहा है अपनी जोरु से मिलने के लिये."

सासुमाँ गुलाबी को बोली, "तो तु जाना ना रामु के पास. इतनी दूर से थक हारकर आया है बेचारा."
"नही मालकिन, हम ई काम खतम करके जाते हैं." गुलाबी बोली.
"साली, इतना नाटक मत कर! मैं जानती हूँ तु भी मर रही है उससे मिलने के लिये." मैने कहा, "माँ और मैं सब काम सम्भाल लेंगे. चल तुझे छोड़ आती हूँ रामु के पास. अरे उठ ना!"

मैने गुलाबी का हाथ पकड़ा और खींचकर उसे रसोई के बाहर ले आई.

"गुलाबी, कितने दिन हो गये तुझे रामु से चुदे हुए?" बाहर आकर मैने पूछा.
"14-15 दिन हो गये, भाभी." गुलाबी ने जवाब दिया.
"और इस बीच तेरे बड़े भैया ने तेरी चूची और चूत मसलकर तुझे बहुत गरम कर दिया होगा. है ना?" मैने कहा, "हाय, तु तो मर रही होगी अपने आदमी का लन्ड लेने के लिये!"
"मन तो कर रहा है, भाभी." गुलाबी एक शर्मिली मुसकान के साथ बोली.
"और रामु भी बेकरार होगा तुझ पर चढ़ने के लिये. क्यों?"
"हमे नही पता, भाभी!" गुलाबी बोली और अपने कमरे की तरफ़ भाग गई.

रामु और गुलाबी का कमरा घर के पीछे की तरफ़ था. मैं पीछे पीछे उनके कमरे की तरफ़ गयी. 

गुलाबी ने कमरे मे घुसते ही दरवाज़ा बंद कर लिया. मैने दरवाज़े मे एक छेद ढूंढ निकाला और अन्दर देखने लगी.
गुलाबी तो अन्दर जाते ही रामु से ऐसे लिपट गयी जैसे बरसों बाद मिल रही हो. रामु भी अपनी जवान बीवी के होठों और गालों पर तबाड़-तोड़ चुम्बन लगाने लगा.

जब चुम्बन की बौछार रुकी तो गुलाबी गुस्से से बोली, "कहाँ थे तुम इतने दिनो तक! हमरी का हालत हुई यहाँ जानते हो?"
"जानते हैं, मेरी जान!" रामु बोला, "भरी जवानी मे तु बहुत तड़पी होगी. हम भी तुझे बहुत याद किये. पर का करें! उधर बापु बीमार जो हो गये थे!"
"झूठ मत बोलो!" गुलाबी नखरा कर के बोली, "हम का जाने, उधर सायद किसी कलमुही के साथ इतने दिनो तक मुंह काला कर रहे थे!"
"नही रे, तेरे रहते हम ऐसा काहे करेंगे?" रामु बोला.
"सारे मरद एक जैसे होते हैं." गुलाबी बोली, "जोरु पर पियार जताते है और पीछे से दूसरी औरतों पर मुंह मारते हैं."
"अच्छा! और हम का जाने, सायद तु हमरे पीछे यहाँ रंगरेलियां मना रही थी?" रामु मुस्कुराकर बोला.
"यहाँ है ही कौन जिसके साथ हम रंगरेलियां मनायेंगे?" गुलाबी बोली.
"हम नही जानते का, इस घर मे तेरी जवानी पर किस किस की नज़र है? रामु बोला.

सुनकर गुलाबी थोड़ा घबरा गयी. जल्दी से बोली, "छोड़ो भी! इतने दिनो बाद आये हो. मुंह हाथ धो लो. तुमको भूख लगी होगी. हम कुछ खाने को लाते हैं."
रामु ने गुलाबी को अपने सीने से चिपका लिया और बोला, "भूख तो हमे बहुत लगी है पर खाने की नही. अब तुझे खायेंगे तो हमरी भूख मिटेगी!"

बोलकर उसने गुलाबी को बिस्तर पर लिटा दिया और उस पर चढ़कर उसके होंठ चूमने लगा. उसके कठोर, मर्दाने हाथ गुलाबी की चोली के ऊपर से उसकी चूचियों को मसलने लगे.

गुलाबी अपने आदमी के गले मे हाथ डालकर उसके चुम्बनों का मज़ा ले रही थी. वह बोली, "सुनो जी, ऐसे ही दबाओगे का? हमरी चोली तो उतार लो!"

रामु और गुलाबी दोनो उठ गये. रामु ने गुलाबी के पीठ पीछे हाथ ले जाकर उसकी चोली खोलकर रख दी. चोली खुलते ही गुलाबी की चूचियां खुले मे आ गई.

वीणा, गुलाबी की चूचियां सांवले रंग की हैं और अपने उम्र के अपेक्षा बड़ी और मांसल हैं. शायद रामु ने मसल मसल के उन्हे बड़ा कर दिया हैं. जवान होने के कारण उनमे कोई ढीलापन नही हैं. बल्कि मेरी चूचियों की तरह खड़ी खड़ी हैं. उसके काले निप्पल थोड़े लंबे हैं और एक दम खड़े हैं.

रामु ने गुलाबी को लिटा दिया और उसकी चूचियों को दबाने लगा.

वह बोला, "अच्छा किया तु बिरा नही पहिनी. चड्डी भी मत पहिना कर. ई सब बड़े के लोगों के चोंचलों से चुदाई का सारा मजा खराब हो जाता है."
"भाभी हमको सिखाई थी बिरा पहिनना." गुलाबी बोली, "बोली थी हमरे जोबन सुन्दर लगेंगे. भाभी भी पहिनती हैं."
"अरी तेरे जोबन ऐसे ही बहुत बड़े और सुन्दर हैं." रामु गुलाबी की चूचियों को मसलते हुए बोला, "भाभी के जोबन भी इतने सुन्दर और उठे हुए हैं. उनको बिरा पहिनने की का जरुरत है?"
"हाय, तुम का भाभी के जोबन पर भी नज़र डालते हो!" गुलाबी बोली.
"कैसे न डालें!" रामु ने कहा, "साली है ऐसी कटीली चीज! कैसी गोरी-चिट्टी, सुन्दर लुगाई है! अपनी गोल गोल चूचियां घर भर मे उछाले फिरती है. आज हम देखे के साली बिरा भी नही पहिनी थी. जी कर रहा था कि चूचियों को कस कस कर दबायें और मुंह मे लेकर चूसें!"

वीणा, सुनकर इधर मेरे तो कान खड़े हो गये. रामु मेरे बारे मे ऐसे बुरे विचार रखता है!

रामु की बात सुनकर गुलाबी गुस्सा होने के बजाय हंस दी. "भाभी के जोबन तुमरे हाथ मे नही आयेंगे. बड़े भैये भाभी के जोबन को बहुत चूस चाटकर सांत रखते हैं!"
"तुझे कौन बोला रे?" रामु ने पूछा.
"भाभी खुदे बताई." गुलाबी बोली.
"तेरे को ई सब भी बताई वो?" रामु ने हैरान होकर पूछा.
"और भी बहुत कुछ बताई है." गुलाबी ने कहा और अपना एक हाथ रामु के लौड़े पर ले गयी.

रामु का लौड़ा पैंट मे तनकर खड़ा था. लौड़े को सहला कर गुलाबी बोली, "हाय, तुमरा लौड़ा कितना खड़ा हो गया है!"

अपनी भोली भाली पत्नी के मुंह से यह अश्लील शब्द सुनकर रामु बोला, "गुलाबी, तु लौड़े को लौड़ा कबसे कहने लगी?"
"और का कहेंगे?" गुलाबी ने पूछा.
"पहले तो नही कहती थी!" रामु बोला, "यह भी का भाभी सिखाई है तुझको?"
"हाँ." गुलाबी बोली और हंसने लगी.

उसने हाथ नीचे करके रामु के पैंट की बेल्ट खोल दी. फिर पैंट के हुक को खोलकर उसने अपना हाथ अन्दर डाल दिया. रामु ने अन्दर चड्डी पहना हुआ था.

"तुम काहे चड्डी पहिन रखे हो?" गुलाबी ने पूछा, "हमे तो तुमने मना किया है."
"मरदों की बात और है." रामु बोला, "राह चलते कोई मस्त माल देखकर लौड़ा खड़ा हो गया तो लोग का कहेंगे?"
"नही! तुम भी चड्डी मत पहना करो!" गुलाबी बोली, "अकेले हम ही काहे अपनी चूत खोलकर हमेसा चुदाई के लिये तैयार बैठे रहें!"

रामु गुलाबी के मुंह से ऐसी भाषा सुनकर स्तब्ध रह गया. "गुलाबी, ई भासा भी तुझे भाभी सिखाई है का?"
गुलाबी हंसने लगी और रामु को चूमने लगी. "बहुत कुछ सिखाई है भाभी हमको!"

उसने फिर हाथ से रामु की पैंट और चड्डी नीचे कर दी और उसके लौड़े से खेलने लगी. रामु ने अपनी पैंट और चड्डी अपने पैरों से अलग कर दिये और फिर वह गुलाबी पर लेटकर उसके मस्त चूचियों से खेलने लगा.

जैसे वह दोनो लेटे थे, रामु की गांड दरवाज़े की तरफ़ थी. रामु का रंग काला था और उसका लौड़ा और पेलड़ भी काला था. मैने कभी उसका लौड़ा देखा नही था. लंबाई मे किशन के जितना, करीब 7 इंच का था पर मोटाई किशन से काफ़ी ज़्यादा थी. उसका पेलड़ बहुत बड़ा और भारी लग रहा था.

गुलाबी ने कुछ देर रामु के लौड़े को हाथ से पकड़कर हिलाया. फिर कहा, "सुनो जी, थोड़ा नीचे उतरकर पीठ के बल लेट जाओ ना."

रामु ने ऐसा ही किया. अब उसका काला लन्ड छत की तरफ़ खड़ा होके फुंफकार रहा था.

गुलाबी उठकर बैठ गयी और रामु के लन्ड को पकड़ कर हिलाने लगी और एक हाथ से अपने निप्पलों को खींचने लगी. वह सिर्फ़ एक घाघरा पहने थी और ऊपर से पूरी नंगी थी. बीच-बीच मे वह अपने निप्पलों को लन्ड के सुपाड़े पर रगड़ती थी.

लन्ड हिलाते हिलाते गुलाबी ने रामु के कमीज के बटन खोल दिये और उसके बनियान को सीने पर चढ़ा दिया. फिर उसने अपने लंबे, घने, काले बालों का जूड़ा बनाया और अचानक झुककर रामु का काला लन्ड अपने मुंह मे ले लिया और चूसने लगी.
रामु जोर से कराह उठा. "हाय! ई का कर रही है तु? तु लौड़ा कबसे चूसने लगी? मैं कहता हूँ तो कभी नही चूसती है!"

गुलाबी बिना कुछ बोले मज़े से पति का लन्ड चूसने लगी. कभी वह लन्ड को गले तक घुसा लेती और कभी बाहर निकालकर सुपाड़े को जीभ से चाटती.

"तुझे लौड़ा चूसना भी भाभी ही सिखाई है का?" रामु ने पूछा.
"उंहूं!" गुलाबी ने कहा और चुसाई जारी रखी.

"हमे पहले ही सक था." रामु लन्ड चुसाई का मज़ा लेते हुए बोला, "ई भाभी साली बहुत छिनाल किसम की औरत है. तभी तुझे लन्ड चूसना सिखाई है."
"तो का बुराई है लौड़ा चूसने मे?" गुलाबी ने पूछा, "भाभी तो बड़े भैया का लौड़ा रोज़ चूसती है. हम को तो मज़ा आ रहा है चूसने मे. तुम को मज़ा आ रहा है कि नही, यह बोलो!"
"तु बहुत भोली है रे!" रामु बोला, "भाभी के साथ रहेगी तो तेरे को भी अपने जैसी छिनाल बनाकर छोड़ेगी. आज लौड़ा चूसना सिखाई है. कल किसी और से चुदवाना सिखायेगी. हाय, साली कैसे अपनी मस्त गांड को हिला हिलाकर चलती है, जैसे घर के सारे आदमियों का लौड़ा खड़ा करना चाहती है! उफ़्फ़!!"
"बहुत पियार आ रहा है भाभी पर?" गुलाबी हंसकर बोली.
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10-08-2018, 01:07 PM,
#29
RE: मेले के रंग सास, बहु, और ननद के संग
वह कभी मुंह उठाकर पति का लन्ड हिला रही थी और कभी मुंह मे लेकर चूस रही थी.

"गुलाबी, तुझे बुरा तो नही लग रहा?" रामु ने पूछा.
"हम काहे बुरा माने?" गुलाबी बोली, "सब मरद लोग को जवान औरत देखकर ठरक चढ़ती है. और भाभी है भी तो बहुत सुन्दर!"
"ऊ तो है. पर पता नही हमसे आज ऐसे हंस हंसकर काहे बात कर रही थी." रामु बोला, "घर की बहु कभी घर के नौकर के साथ ऐसी बातें करती है का?"

"देखो जी, कहीं तुमसे चुदवाना तो नही चाहती?" गुलाबी ने पूछा.
"चुप कर. कुछ भी बोलती है." रामु डांटकर बोला, "भाभी काहे हमसे चुदवाने लगी."
"औरों से तो चुदवाती है, तुम से काहे नही चुदवायेगी?" गुलाबी बोली और उसने लन्ड चूसना जारी रखा.

"का कह रही है तु?" रामु चौंक के बोला, "कौन बोला तेरे को?"
"भाभी खुदे बोली." गुलाबी बोली, "बोली ऊ सोनपुर के मेले मे चार-चार से एक साथ चुदवाई थी."
"अरे ऊ मजाक कर रही होगी, पगली!" रामु बोला, "पर बहुत गंदा दिमाग है भाभी का! हमको लगता है अगर हम कभी उसके साथ जबरदस्ती किये तो बहुत मज़े से हमरा लन्ड लेगी."

वीणा, अपने बारे मे रामु की ऐसी बातें सुनकर मुझे बहुत मज़ा आ रहा था. उसे क्या पता मैं सचमुच उससे चुदवाने का कर्यक्रम बनाये बैठी थी!

"हाय, ई का कह रहे हो तुम!" गुलाबी बोली, "हम मर गये हैं का जो परायी औरत की इज्जत लूटना चाहते हो?"
"अरे तु तो बुरा मान गयी! हम तो मजाक कर रहे थे!" रामु बोला, "बस, बहुत चूस ली मेरा लन्ड. और चूसेगी तो तेरे मुंह मे अपनी सारी मलाई गिरा देंगे."

गुलाबी ने झट से पति का लन्ड अपनी मुंह से निकाल लिया.

"का हुआ?" रामु ने पूछा, "भाभी तुझे अब तक मलाई पीना नही सिखाई?"
"नही." गुलाबी बोली, "हम पूछे नही वह बड़े भैया का मलाई पीती है कि नही."
"जरूर पीती होगी. ऊ जैसी गरम चुदैल है, लगता है उसका कोई कुकर्म करना बाकी नही है." रामु बोला, "चल, अपना घाघरा उतार. थोड़ा चोद लेता हूँ तुझे. तु भी बहुत दिनो से चुदी नही है."

गुलाबी ने उठकर अपना घाघरा उतार दिया और पूरी तरह नंगी हो गई. उसका जिस्म बहुत सुडौल था. नंगी चूची और चूतड़ बहुत कामुक लग रहे थे.

वह बिस्तर पर जाकर लेट गयी और उसने अपनी दोनो टांगें फैला दी. उसकी सांवली चूत पर बहुत बाल थे. उसने दो उंगलियों से अपने चूत को खोला और कहा, "हाय, और रहा नही जा रहा, जी. अपना लौड़ा घुसाओ ना हमरी चूत मे!"

रामु को अपनी भोली भाली पत्नी के मुंह से ऐसी अश्लील भाषा सुनकर बहुत उत्तेजना हो रही थी. उसने अपनी कमीज और बनियान उतार दी और पूरी तरह नंगा हो गया. उसके शरीर भी कसरत किया हुआ सुडौल शरीर था. अपनी बीवी के पैरों के बीच बैठकर उसने अपने लन्ड का सुपाड़ा गुलाबी की चूत पर रखा और एक जोरदार धक्का दिया.

"हाय! मार डाला! आह!!" गुलाबी बोल उठी, "पेल दो पूरा लन्ड हमरी चूत मे! ऊह!!"

रामु ने कमर उठाकर अपना लन्ड सुपाड़े तक निकाल लिया और फिर जोरदार धक्का देकर पेलड़ तक अन्दर पेल दिया.

"आह!!" गुलाबी बोली, "इतने दिनो बाद तुम्हारा लौड़ा लेके बहुत मज़ा आ रहा है! उम्म!! ओह!!"

रामु कमर उठा उठाकर गुलाबी को चोदने लगा और गुलाबी कमर उठा उठाकर उसका साथ देने लगी.

मैं गुलाबी के कमरे मे झांक ही रही थी कि पीछे से तुम्हारी मामीजी चली आयी. धीरे से मेरे कान मे बोली, "क्या देख रही है, बहु? रामु गुलाबी को चोद रहा है क्या?"
"हाँ माँ, बहुत जोश मे हैं दोनो." मैने कहा.

सासुमाँ ने छेद से कुछ देर अन्दर देखा और कहा, "बहुत मस्त माल है गुलाबी. नंगी बहुत कमोत्तेजक लग रही है. कैसे कमर उठा उठाकर पति से चुदवा रही है. बहु, तु उसे जल्दी पटा ले. घर के मर्द बहुत मज़े ले लेकर चोदेंगे उसे."
"हाँ, माँ. मैं तो कोशिश कर रही हूँ." मैने कहा, "लगता है दो एक दिन मे पट जायेगी."
"बहुत इज़्ज़त करती है तेरी. उसे तु जो सिखायेगी वह सीख लेगी."
"हाँ माँ." मैने कहा, "मेरे कहने पर गुलाबी ने आपके बेटे से अपनी चूची और चूत मिसवाई थी. और मेरे कहने पर वह रामु का लौड़ा भी चूसी."

"और हाँ, उसे कहना अपने चूत के बाल साफ़ किया करे." सासुमाँ बोली. "वर्ना चूत चाटने मे मज़ा नही आयेगा."
"ठीक है, माँ." मैने कहा.
"रामु भी बुरा नही है, बहु." सासुमाँ बोली, "अच्छा खासा लन्ड है उसका. उसे अपनी जवानी का नज़ारा दे और चुदवा ले. बहुत मज़ा पायेगी."
"हाय माँ, वह कमीना तो मेरी इज़्ज़त लूटने के लिये पहले से तैयार बैठा है!" मैने कहा, "अभी गुलाबी को सब बता रहा था."
"फिर तो काम आसान है." सासुमाँ हंसकर बोली और एक हाथ से अपनी एक चूची दबाने लगी. "मुझे भी मन है उसका काला लौड़ा अपनी चूत मे लेने का."

कुछ देर अन्दर देखने के बाद सासुमाँ हट गयी और मैं अन्दर देखने लगी. सासुमाँ ने मेरी ब्लाउज़ के हुक खोल दिये और मेरी दोनो चूचियों के मसलने लगी.
अन्दर रामु अपनी बीवी को जमकर चोदे जा रहा था. उनका पुराना खाट रामु के धक्कों से चरमरा रहा था.

गुलाबी अपने पति को जकड़े हुए कमर उठा उठाकर लन्ड ले रही थी और मस्ती मे बड़बड़ा रही थी. "हाय मेरे चोदू! कितने दिनो बाद चुद रहे हैं हम! आह!! और देर करते तो हम किसी और से चुदा लेते!! आह!! मेरे राजा, चोदो अच्छे से अपनी पियारी गुलाबी को!! ऊह!! पेलो हमरी चूत अच्छे से!! ऊम्म!! कितना मजा आ रहा है!"

रामु को भी बहुत आनंद आ रहा था गुलाबी को चोदने मे. "ऊंघ! ऊंघ! ऊंघ!" आवाज़ निकाल के वह ठाप लगा रहा था. पेलड़ मे उसके बड़े बड़े टट्टे नाच रहे थे और उसके ठाप के साथ उसका काला पेलड़ गुलाबी की गांड पर जा के लग रहा था.

"यह ले मेरी पियारी गुलाबी...बिना लौड़े के इतनी प्यासी हो गयी थी...के किसी और से चुदवा लेती! हाँ?" रामु गुलाबी को ठोकता हुआ बोला, "लौड़ा ले...और सांती कर अपनी चूत की! भाभी तो तुझे...पूरी छिनाल बना दी है! आज लौड़ा चूसी है...कल तु मेरा पानी भी पियेगी! ले साली, छिनाल! और का का की है मेरे पीठ पीछे! बोल, साली रंडी! भाभी तुझे किसी और से...चुदाई भी है का? बोल!"

"हाय, राजा! और जोर से चोदो! हम झड़ने वाले हैं!" गुलाबी चिल्लाई.

रामु और जोर से ठाप लगाने लगा और गुलाबी की चूचियों को बेरहमी से मसलने लगा. उसका मोटा काला लन्ड गुलाबी की चूत के पानी से चमक रहा था. एक पिस्टन की तरह वह गुलाबी की चूत के अन्दर बाहर हो रहा था.

गुलाबी जल्दी ही झड़ गयी और रामु को पकड़कर हांफ़ने लगी. रामु ने भी अपना लन्ड जड़ तक बीवी की चूत मे ठूंस दिया और अपना पानी छोड़ने लगा. एक दूसरे से लिपटकर वह हांफ़ने लगे. उनका बदन पसीने-पसीने हो गया था.

मैने दरवाज़े के छेद से मुंह हटाया तो सासुमाँ बोली, "झड़ गये क्या दोनो?"
"हाँ!" मैने मुस्कुराकर कहा और अपने ब्लाउज़ के हुक लगा लिये.
"चल फिर, रसोई मे बहुत काम है" सासुमाँ बोली, "इनकी चुदाई देखने से खाना नही बनेगा."

हम दोनो सास बहु रसोई मे चले गये. करीब एक घंटे बाद गुलाबी रसोई मे आयी. उसके बाल बिखरे थे और सिंदूर फैल गया था. लग रहा था जैसे बहुत बुरी तरह उसका बलात्कार हुआ है.


उस रात खाने के बाद जब सब अपने कमरों मे चले गये, मैं किशन का कमरे मे गयी. उसने दो दिनो से मुझे चोदा नही था और बहुत बेचैन था मेरी चूत मारने के लिये. मेरे कमरे मे पहुंचते ही उसने मुझे चूमना शुरु कर दिया और मेरे कपड़े उतारने लगा. मैने भी उसके कपड़े उतार के उसे नंगा कर दिया. हम दोनो नंगे होकर बिस्तर पर लेट गये.

मैने कुछ देर उसे अपनी चूचियां चुसाई. जब मुझे लगा कि उसका जोश उसके काबू मे आ गया है, मैने उसे अपने ऊपर चढ़ाया और मुझे चोदने को कहा. अपना लन्ड मेरी गरम चूत मे डालकर वह कमर चला चलाकर चोदने लगा. मैं भी दिन भर चुदी नही थी. बहुत मज़ा आ रहा था उससे चुदवाने मे. उस दिन किशन ने मुझे करीब 10 मिनट तक पेला, फिर मेरी चूत मे झड़ गया.

मैं किशन के कमरे के बाहर निकली तो देखा ससुरजी तुम्हारे बलराम भैया के कमरे के बाहर अंधेरे मे खड़े हैं और दरवाज़े के एक फांक से अन्दर देख रहे हैं. उन्होने लुंगी नही पहनी थी और अपना मोटा, खड़ा लन्ड हाथ मे लेकर हिला रहे हैं.

मैं पीछे से जाकर उनके लन्ड को पकड़कर हिलाने लगी और पूछी, "क्या देख रहे हैं, बाबूजी?"
"कौशल्या कोई बहाना बनाकर आज बलराम के साथ सो रही है. उन्हे ही देख रहा हूँ." ससुरजी ने कहा.

मैने कमरे के अन्दर नज़र डाली तो पाया तुम्हारी मामीजी मादरजात नंगी होकर बिस्तर पर टांगें खोले पड़ी थी. उनका बेटा पूरा नंगा था और अपनी माँ पर चढ़ा हुआ था. उनका 8 इंच का लन्ड उनकी माँ की बुर मे डला हुआ था और वह कमर उठा उठाकर अपनी माँ को चोद रहे थे. दोनो माँ-बेटे हवस के दुराचारी खेल मे डूबे हुए थे. सासुमाँ कमर उठा उठाकर बेटे को जोर जोर से चोदने को कह रही थी. और बेटा माँ की घिनौनी चाहत को खुशी से पूरी कर रहा था.

हम ससुर और बहु कुछ देर माँ-बेटे की चुदाई देखते रहे. सासुमाँ बार-बार झड़ रही थी और मस्ती मे अनाप-शनाप बक रही थी. आज रात सासुमाँ अपने बेटे के साथ सोने वाली थी. शायद देर रात तक वह बेटे से चुदवाने वाली थी.

मैने ससुरजी से कहा, "बाबूजी, यह दोनो तो लगता है पूरी रात चुदाई करेंगे. चलिये ना, मुझे बिस्तर मे ले जाकर चोदिये. किशन से चुदाकर मेरी प्यास नही बुझी है."

ससुरजी का खड़ा लन्ड पकड़कर मैं उन्हे उनके कमरे मे ले गई.


जाकर मैं जल्दी से नंगी हो गयी और बिस्तर पर लेट गयी. ससुरजी भी पूरे नंगे हो गये और मुझ पर चढ़ गये. मेरी चूचियों को दबाते और चूसते हुए वह मुझे चोदने लगे. मेरी चूत मे किशन का ढेर सारा वीर्य भरा हुआ था जो मेरी चूत से बहकर बाहर आ रहा था. उसी वीर्य मे ससुरजी अपना लन्ड फच! फच! कर के पेलने लगे जिससे किशन का वीर्य और बाहर आने लगा.

कमरे मे रात भर के लिये हम ससुर और बहु ही थे और एक पति-पत्नी की तरह हम देर रात तक चोदाई करते रहे.

कहो ननद रानी, कैसी लग रही है मेरी कहानी? अपना जवाब जल्दी भेजो. आगे की कहानी कल लिखती हूँ!

तुम्हारी भाभी
Reply
10-08-2018, 01:07 PM,
#30
RE: मेले के रंग सास, बहु, और ननद के संग
भाभी की यह चिट्ठी बहुत लंबी नही थी. पर पढ़कर मुझे बहुत आनंद आया.

मै रामु से पहले कई बार मिल चुकी थी क्योंकि वह मामाजी के घर पर बहुत सालों से नौकर है. मुझे कभी लगा नही के वह मीना भाभी के बारे मे ऐसे बुरे विचार रखता होगा. मैं सोचने लगी, क्या वह मेरे बारे मे भी ऐसी लंपट बातें सोचता है?

मैने भाभी की चिट्ठी का जवाब भेजा.


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मेरी प्यारी मीना भाभी,

तुम्हारी चिट्ठी मिली. तुमने बहुत ज़्यादा तो नही लिखा है, पर अब जब रामु गाँव से वापस आ गया है, मुझे लगता है तुम्हारी कहानी कोई नयी करवट लेने वाली है. वैसे तुम्हारा यह नौकर तुम्हारे बारे मे कैसी गंदी गंदी बातें अपनी बीवी से करता है! सुनकर तुम्हे बुरा नही लगा? उसके मन मे तो तुम्हारे लिये बहुत ही बुरे विचार हैं.

वैसे तो मैं एक घर के नौकर से चुदवाने के पक्ष मे नही हूँ - घर के नौकर नौकरानीयों को अपनी जगह पर रहना चाहिये. पर मेरी वर्तमान हालत ऐसी है कि हमारे घर मे कोई नौकर होता तो मैं उससे ज़रूर चुदवा लेती.

अपनी अगली चिट्ठी जल्दी भेजना!

तुम्हारी वीणा

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अगले दिन जब डाकिया आया तब मैं अपने कमरे मे थी. मेरी माँ ने मेरे लिये भाभी की चिट्ठी ली और मेरे कमरे मे ले आयी.

"वीणा, मीना ने चिट्ठी भेजी है तेरे लिये." माँ ने कहा, "कितना भारी लिफ़ाफ़ा है - न जाने क्या लिखा है! पढ़कर बता तो क्या कहती है? मेरे भाई के घर पर सब ठीक तो है?"

मैने जल्दी से माँ के हाथ से भाभी की चिट्ठी ले ली. अब माँ को क्या बताती भाभी चिट्ठीयों मे क्या लिखती है?

"सब ठीक ही होगा, माँ." मैने से कहा, "भाभी को तो आदत है बहुत बोलने की और बहुत लिखने की."

मेरी माँ चली गयी तो मैं अपने कमरे का दरवाज़ा बंद करके बैठ गयी भाभी की चिट्ठी पढ़ने, जैसे कि वह कोई रोचक जासूसी उपन्यास हो. जैसा कि पाठक गण देखेंगे, भाभी की यह चिट्ठी बहुत ही धमाकेदार थी.

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मेरी प्रिय वीणा,

तुम्हारा ख़त मिला. जानकर मुझे बहुत खुशी हुई कि तुम्हे हमारे घर की कहानी पढ़कर बहुत मज़ा आ रहा है.

कल तुम्हारे मामा, मामी, और मेरी योजना दो कदम और आगे बढ़ गई. अगर तुम्हे मेरा पिछला ख़त छोटा लगा हो तो मैं दावे के साथ कहती हूँ तुम यह किश्त पढ़कर बहुत संतुष्ट होगी!

तुम्हारे बलराम भैया का पैर अब ठीक ही हो गया है, पर वह खेत मे नही जा रहे हैं.

कल सुबह की बात है. नाश्ते से पहले किशन खेत मे फसल देखने चला गया.

जब नाश्ता तैयार हुआ सासुमाँ ने किशन के लिये नाश्ता एक डिब्बे मे भरा और गुलाबी को कहा, "गुलाबी, जा यह डिब्बा किशन भैया को दे आ. और सुन, बहुत काम है आज रसोई मे. जल्दी आ जाना!"

गुलाबी जाने को हुई तो मैने कहा, "माँ, गुलाबी काम मे व्यस्त है तो मैं दे आती हूँ देवरजी को खाना."
सासुमाँ ने मेरी तरफ़ एक अर्थ भरी मुसकान फेंकी और कहा, "ठीक है, बहु. तु ही जा. पर तु भी देर नही करना. बहुत काम है आज."
"मै जल्दी आ जाऊंगी, माँ." बोलकर टिफिन का डिब्बा लेकर मैं घर से निकल पड़ी.

किशन को खाना देने जाने का मेरा एक ही उद्देश्य था. पिछली रात मैं ससुरजी के साथ ही सोयी थी, पर सुबह से चूत मे खलबली होने लगी थी. क्या बताऊं, वीणा! सोनपुर मे चुदने के बाद से मेरी यौन भूख हद से ज़्यादा बढ़ गयी है. सारा दिन बस चुदाई करते रहने का मन करता है. मैने सोचा किशन खेत मे अकेला होगा. वहीं कहीं उससे एक पानी चुदवा लुंगी.

वीणा, तुम तो जानती हो तुम्हारे मामाजी की कितनी बड़ी खेती है. किशन के पास पहुंचते पहुंचते मुझे आधा घंटा लग गया. सरसों के खेत के बीच जो कुटिया बनी है उसके बाहर एक चारपायी पर किशन बैठे हुए नाश्ते की राह देख रहा था. आस-पास दूर दूर तक कोई नही था.

मुझे देखते ही किशन बोला, "अरे भाभी, तुम खाना देने आयी हो? गुलाबी नही आयी?"
"क्यों, तुम्हे गुलाबी का इंतज़ार था? कुछ चल रहा है क्या गुलाबी और तुम्हारे बीच?" मैने पूछा, "बहुत जल्दी पक गये, देवरजी! अब कामवाली पर भी मुंह मारने लगे हो!"
"नही भाभी! ऐसा कुछ नही है!" किशन बोला, "वह रोज़ मुझे खेत मे खाना देने आती है ना. बस इसलिये. आपने क्यों कष्ट किया."

मैने टिफिन का डिब्बा चारपायी पर रखा और किशन के बगल मे बैठ गयी.

मैने कहा, "देवरजी, मुझे कष्ट तो बहुत हो रहा है. अब तुम ही कुछ इलाज करो."
मेरा इशारा न समझ के किशन ने पूछा, "क्या कष्ट है आपको, भाभी?"
"हाय, इतना भी नही समझते, देवरजी?" मैने टिफिन का डिब्बा खोलते हुए कहा, "औरत को जवानी मे एक ही तो कष्ट होता है."

किशन मेरी मुंह की तरफ़ देखता रहा. छोकरा अभी तक अनाड़ी ही था.

मैने टिफिन से रोटी और सबजी निकालकर एक थाली मे रखी और कहा, "देवरजी, जवानी मे लड़की एक बार जब चुद जाती है, उसके बाद वह हर वक्त बस चुदवाना ही चाहती है. और समय पर लौड़ा न मिलने पर उसे बहुत कष्ट होता है."

सुनकर किशन मुस्कुरा दिया और मेरी जांघ पर हाथ रखकर सहलाने लगा. उसने एक तंग कुर्ता पजामा पहना हुआ था. पजामे मे उसका लन्ड सर उठाने लगा.

मैने रोटी तोड़कर, थोड़ी सब्जी लेकर एक कौर किशन के मुंह मे डाली और कहा, "देवरजी, तुम तो कल रात 10 मिनट मे ही खलास हो गये थे. मैं तो सारी रात तड़पती रही."
"क्यों भैया कुछ नही किये आपके साथ?" किशन ने पूछा, "आपके कमरे से देर रात तक भैया और आपकी मस्ती की आवाज़ें आ रही थी."

सुनकर मैं डर गई. पिछली रात मैं तो ससुरजी से चुदवाई थी. तुम्हारे बलराम भैया मेरे कमरे मे मुझे नही अपनी माँ को चोद रहे थे. कहीं किशन ने देख तो नही लिया?

"तुमने देखा हम दोनो को चुदाई करते हुए?" मैने पूछा.
"नही भाभी. जब मैं वहाँ गया तब अन्दर की बत्ती बंद थी. कुछ दिखाई नही दिया." किशन बोला.

मेरी जान मे जान आयी. मैने कहा, "हाँ, तुम्हारे भैया ने बहुत देर रात तक चोदा मुझे. पर क्या करूं, मेरी बेदर्द जवानी है ऐसी बला! सुबह उठी नही कि फिर मुझे तड़पाने लगी!"

किशन ने आवाज़ नीची करके कहा, "और जानती हो भाभी, कल रात माँ और पिताजी के कमरे से भी बहुत आवाज़ें आ रही थी."
"कैसे आवाज़ें?" मैने पूछा.
"वैसी आवाज़ें जो आपके कमरे से आ रही थी. मस्ती की आवाज़ें." किशन बोला, "बोलना तो नही चाहिये, पर लगता है पिताजी माँ की बहुत जोरदार ठुकाई कर रहे थे!"

अब मैं उसे क्या बताती की उसके पिताजी उसकी माँ को नही मुझे ठोक रहे थे.

मैने मुस्कुरा के उसके गाल को चूमा और एक हाथ उसके पजामे मे खड़े लन्ड पर ले गयी. उसका लन्ड पूरी तरह खड़ा हो चुका था. उसके पजामे के नाड़े को खोलकर मैने पजामे को नीचे उतार दिया. फिर खींचकर उसके चड्डी को भी उतार दिया. अब उसके नंगे लन्ड को मुट्ठी मे लेकर मैं हिलाने लगी. हाथ मे गरम लन्ड के छुअन से मैं गनगना उठी.

मैने एक रोटी की कौर उसके मुंह मे दी और पूछा, "किशन तुम्हे अपने माँ-पिताजी की चुदाई की आवाज़ें सुनकर अच्छा लगा?"
"भाभी, आप बुरा तो नही मानेंगी?" किशन ने पूछा.
"नही, क्यों?"
"बत्ती बंद होने के कारण मुझे कुछ दिखाई तो नही दे रहा था, पर मैं कल्पना कर रहा था कि माँ किस तरह पिताजी से चुद रही होगी." किशन बोला, "सोचकर मैं बहुत गरम हो गया था."
"यह तो गरम होने वाली ही बात है. सासुमाँ अभी भी बहुत सुन्दर हैं देखने मे. और उनकी चूचियां तो मेरी चूचियों से दुगुनी है.", मैने कहा. "देवरजी, तुम अपनी माँ को चुदते हुए देखना चाहोगे?"
"हाँ भाभी." किशन थोड़ा शरमा के बोला. उसका लन्ड मेरे हाथ मे फुंफकार रहा था.
"क्या तुम अपनी माँ को चोदना पसंद करोगे?" मैने पूछा.

किशन चुप रहा, पर उसकी सांसें बहुत तेज चल रही थी.
"देवरजी, तुम्हे अपनी माँ को चोदने का मन करता है तो इसमे शरमाने की कोई बात नही है." मैने कहा, "बहुत से लड़के अपनी माँ को चोदना चाहते हैं. और बहुत सी मायें अपने बेटों से चुदवाकर अपनी हवस मिटाती हैं."
"भाभी, क्या ऐसा भी होता है?" किशन ने आश्चर्य से पूछा.
"बहुत कुछ होता है दुनिया मे, मेरे भोले देवरजी!" मैने कहा.
"पर मेरी माँ ऐसी औरत लगती नही है." किशन बोला.
"तो मैं क्या ऐसी औरत लगती हूँ जो अपने देवर से खेत मे आ के चुदवाती है?" मैने कहा, "सासुमाँ भी एक औरत है और उसे भी दूसरी औरतों की तरह बहुत चुदवाने का मन करता होगा. तभी तो वह बाबूजी से मज़े ले लेकर चुदवाती है. उन्होने अपनी जवानी मे क्या क्या कुकर्म किये हैं हमे क्या पता. अगर वह तुम्हारे भैया से चुदी हो तो हैरत की कोई बात नही है."

मेरी बात सुनकर किशन गनगना उठा.

मैने किशन को एक और कौर रोटी खिलायी. उसके हाथ मेरी जांघों से हटकर मेरे नंगे, सपाट पेट को सहलाने लगे थे. मेरे आंचल को उसने गिरा दिया था और मेरी छोटी ब्लाउज़ मे कैद मेरे चूचियों को बीच-बीच मे दबा रहा था.

किशन ने मेरी ब्लाउज़ के हुक खोल दिये और मेरी ब्लाउज़ उतार दी. फिर ब्रा का हुक खोलकर मेरी ब्रा भी उतार दी. अब मैं उसके सामने अध-नंगी बैठी थी. सुबह की धूप मेरी नंगी चूचियों पर पड़ रही थी और ठंडी ठंडी हवा से मुझे सिहरन हो रही थी. दूर दूर तक कोई भी नही था, पर इस तरह खुले मे नंगे होने के कारण मुझे डर भी लग रहा था और रोमांच भी हो रहा था.

मैने किशन के मुंह मे एक और कौर रोटी डाली और दूसरे हाथ से उसके लन्ड को हिलाने लगी. वह मेरे पास बैठकर खाना खा रहा था और मेरी चूचियों को मसल रहा था और मेरी निप्पलों को चुटकी मे लेकर मींज रहा था. चारो तरफ़ सन्नाटा था. सिर्फ़ किशन का लन्ड हिलाने के कारण मेरे हाथ की चूड़ियाँ खनक रही थी.

बीच-बीच मे झुककर किशन मेरी चूचियों को पी भी रहा था जिससे सब्जी मेरे निप्पलों पर लग जा रही थी.

"हाय देवरजी, क्या कर रहे हो!" मैने मज़ा लेते हुए कहा, "मेरी चूचियों को तो जूठा कर दिया तुमने."
"बहुत स्वाद आ रहा है, भाभी!" किशन हंसकर बोला, "बैंगन के भर्ते से कभी मैने चूची नही खाई है."

इस तरह हंसी मज़ाक करते हुए किशन का खाना खतम हुआ. उसने मुंह धोया, पानी पिया और कहा, "भाभी, मेरी भूख तो आपने मिटा दी. अब मेरी बारी है आपकी भूख मिटाने की."
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