मेले के रंग सास, बहु, और ननद के संग
10-08-2018, 01:05 PM,
#11
RE: मेले के रंग सास, बहु, और ननद के संग
भाभी ने सर उठाया और कांपते हाथ से अपने ससुर का लण्ड पकड़ा. पकड़ते ही वह गनगना गयी. मामाजी भी सिहर उठे. भाभी धीरे धीरे मामाजी के गरम, मोटे लण्ड को हिलाने लगी. मामाजी भाभी की एक चूची को दबा दबा का मज़ा देने लगे.

कुछ देर बाद मामाजी बोले, "बहु, गरमी लग रही होगी तुझे. साड़ी उतार के आराम से बैठ. मैं भी तो तेरी जवानी को अच्छे से देखूं! मेरा बेटा तो रोज़ ही देखता है."

भाभी कुछ बोलने वाली थी, पर डाँट के डर से उठी और जल्दी से अपनी साड़ी उतार कर ज़मीन पर रख दी. फिर मामाजी की पास बैठ कर उनका लण्ड हिलाने लगी. मामाजी ने फिर भाभी की चूची दबानी शुरु की. फिर बोले, "बहु, ब्लाऊज़ के ऊपर से दबा का मज़ा नही आ रहा. ज़रा अपना ब्लाऊज़ उतार दे."

भाभी ने बिना कुछ कहे अपना ब्लाऊज़ भी उतार दिया. मामाजी ने भाभी के ब्रा को थोड़ा ऊपर खींचकर उनकी चूचियों को नंगा किया और मज़े से उन्हे दबाने लगे. भाभी को तो अब बहुत मज़ा आ रहा था. उन्होने खुद अपने हाथ पीछे ले जाकर अपने ब्रा का हुक खोल दिया और ब्रा उतार दी. अब भाभी कमर के ऊपर पूरी तरह नंगी थी.

मामाजी बोले, "यह अच्छा किया तूने बहु. अब मै अच्छी तरह तुझे मज़ा दे पाऊंगा. सुन, मन करे तो तू मेरा लण्ड चूस सकती है. बलराम तुझे अपना लण्ड चुसाता है कि नही?"

भाभी बोली, "जी बाबूजी, चुसाते हैं." बोलकर भाभी मामाजी के लण्ड पर झुक गयी और अपने नरम होठों मे भरकर चूसने लगी. मामाजी भी भाभी की गोल, नरम चूचियों को प्यार से दबाने और मसलने लगे जिससे भाभी मस्ती मे कराहने लगी.

मामाजी ने अपनी बनियान उतार दी और पूरे नंगे हो गये. खेतों मे मेहनत किया हुआ कठोर शरीर था उनका. उन्होने फिर भाभी के पेटीकोट का नाड़ा खींच कर खोल दिया. भाभी खुद ही अपनी पेटीकोट उतार कर नंगी हो गयी और मज़े ले ले कर अपने ससुर का लण्ड चूसने लगी. मामाजी उसकी एक चूची को मसल रहे थे, और अपनी दूसरी चूची के निपल को वह खुद ही छेड़ रही थी.

यह सब नज़ारा देखते देखते मुझे भी बहुत जोश चढ़ गया था. मैने भी अपनी ब्लाऊज़ और ब्रा उतार दी और अपने नंगे कंवारे चूचियों को अपने हाथों से मसलने लगी. मैने अपनी साड़ी भी उतार दी और पेटीकोट को उठाकर एक हाथ से अपनी गर्म चुत मे उंगली करने लगी.

उधर मामाजी से और रहा नही गया. उन्होने भाभी को बिस्तर पर लिटाया और उसके दोनो पाँव फांक करके उस पर चढ़ गये. अपना काला, मोटा लण्ड भाभी की चुत पर रखा और एक जोरदार धक्का मार कर पूरा अंदर पेल दिया. भाभी मस्ती मे चिहुक उठी. "ओहह!! धीरे, बाबूजी! मै कहीं भागी जा रही हूँ क्या?"

"आया मज़ा, बहु?" मामाजी ने पूछा और कमर चलाकर भाभी को चोदने लगे. भाभी बोली,"जी बाबूजी, बहुत मज़ा आ रहा है." बोलकर उसने मामाजी को सीने से चिपका लिया और उनके होंठ पीने लगी.

इस तरह कुछ देर मामाजी अपनी बहु को जोरदार ठाप देते रहे और उसके होठों और चूचियों को पीते रहे. भाभी का पारा बहुत ऊपर चढ़ चुका था. वह मस्ती की आवाज़ें निकालने लगी और कमर उठा उठा कर अपने ससुर के ठापों का जवाब देने लगी. "आहहह!! ऊहहह!! बाबूजी, कितना मज़ा आ रहा है! आहहह!! और जोर से पेलो मेरी चुत को, मेरे राजा!!" वह चिल्लाने लगी.

मामाजी ने अपनी पेलने की स्पीड बढ़ा दी और भाभी को दमदार ठाप देते हुए बोले, "छिनाल, तुझे यही चाहिये था ना? इसी के लिये तू मेले मे उन दो आदमीयों से चूची दबवा रही थी. उनका लौड़ा लेने के लिये पागल हो गयी थी. छिनाल, तेरे जैसी चुदैल की भूख कभी एक पति से नही बुझती. अब से तुझे हम बाप-बेटा इतना चोदेंगे कि बाहर के किसी की ज़रूरत महसूस नही होगी."

भाभी भी मस्ती की चरम सीमा पर पहुंच चुकी थी. अपना कमर उचका उचका कर मामाजी का लण्ड ले रही थी और बोल रही थी, "हाँ मेरे चोदू ससुरजी! एक लण्ड से मेरी भूख नही मिटती है! मैं दो दिन से बहुत से लण्ड ले रही हूँ! आहहह!! मुझे दिन रात लण्ड चाहिये, मेरे राजा!! और जोर से चोदो मुझे बाबूजी! और जोर से!! ओफ़्फ़्फ़्फ़!! कितना मज़ा आ रहा है!! चोद चोद कर अपनी बहु को रंडी बना दो, बाबूजी!! आहहह!! मै गयी, बाबूजी, मै गयी!!!"

बोलकर भाभी झड़ने लगी. मामाजी ने अपनी बहु को सीने से चिपका लिया और अपना लौड़ा भाभी की चुत मे पूरा ठूँसकर उसके गर्भ मे अपनी मलाई भरने लगे.

तूफ़ान शांत होने पर दोनो एक दुसरे से लिपट के लेटे रहे.

इधर मै भी जोर जोर से अपनी नंगी चूचियों को दबा रही थी और तीव्र गति से अपनी चुत मे उंगली कर रही थी. मै इतने जोर से झड़ी कि मेरी चीख निकल गयी.

मेरी चीख सुनकर मामाजी बोले, "बहु, दरवाज़े के बाहर कोई है क्या?"
भाभी मामाजी के नीचे लेटे अपनी चुत मे उनके लौड़े और उसके पानी का मज़ा लेती हुई बोली, "वीणा होगी, बाबूजी."
मामाजी उठकर बैठ गये और बोले, "वीणा! हाय यह क्या हो गया! उसने तो सब देख लिया होगा!"
भाभी बोली, "आप घबराइये नही, बाबूजी. वीणा भी बहुत खेल खाई हुई है. दो दिन से मेरे साथ वह भी खूब चूत मरा रही है."

भाभी झट से नंगी ही उठकर दरवाज़े के पास आयी और दरवाज़ा खोल कर मुझे पकड़ लिया. मुझे भागने का मौका ही नही मिला. मुझे खींचकर अंदर ले जाते हुए बोली, "ननद रानी, बाहर खड़े ससुर-बहु की चुदाई देखकर क्यों तरस रही हो. अंदर आकर खेलो हमारे साथ!"

मेरे बदन पर सिर्फ़ मेरा पेटीकोट था. मामाजी बिस्तर पर नंगे लेटे मेरे कंवारे चूचियों को ललचाई आँखों से देख रहे थे. मुझे इस तरह अध-नंगा देख कर उनके सुस्त लण्ड मे फिर ताओ आने लगा. वह नंगे ही उठकर आये और मुझे पकड़ कर बिस्तर पर ले गये. इधर भाभी ने झट से मेरे पेटीकोट का नाड़ा खोल दिया और मेरा पेटीकोट ज़मीन पर गिर गया. मैं मामाजी के सामने मादरजात नंगी हो गयी.

मैं हाथों से अपनी चुत और चूचियों को छुपाती हुई बोली, "भाभी, छोड़ो मुझे!"

भाभी हंस कर बोली, "साली, छुपके मेरी चुदाई देख रही थी! अब तेरी चुदाई होगी ताकि तू किसी को कुछ बोल ना सके. ले, चूस बाबूजी का लण्ड. चूसकर खड़ा कर!" और मेरे सर को जबरदस्ती मामाजी के लण्ड पर झुका दिया.

मामाजी का लण्ड सुस्त होकर भी 6-7 इंच लंबा और काफ़ी मोटा था. मैने उलटी आने का नाटक किया. भाभी ने जबरदस्ती मामाजी का ढीला लण्ड पकड़ कर मेरे मुँह मे ठूँस दिया और बोली, "ननद रानी, इतना नाटक किसको दिखाने के लिये कर रही हो? मेरे सामने तुमने जंगल मे मज़े लेकर रमेश, सुरेश, दिनेश, और महेश का लण्ड चूसा था. कल रात तो तुमने विश्वनाथजी का भी लौड़ा चूसा था और मज़े ले लेकर उनकी मलाई खाई थी! अब चूसो अपने मामाजी का लण्ड!"

मैं मामाजी का ढीला लण्ड चूसने लगी. जवानी की मस्ती तो मुझे चढ़ ही चुकी थी और लौड़े की मादक खुशबू मेरे नाक मे जाकर मुझे और मस्त बनाने लगी. पर मैं मामाजी के सामने रंडी की तरह पेश नही आना चाहती थी.

मामाजी चौंक कर बोले, "वीणा, तुमने कल उन चारों का लण्ड चूसा था?"
भाभी हंसकर बोली, "अब आपसे क्या छुपाना बाबूजी! जिस दिन हम दोनो मेले मे खो गये थे, उस दिन रमेश, सुरेश, दिनेश, और महेश ने जंगल मे ले जाकर हम दोनो का सामुहिक बलात्कार किया था. कल तो देर रात तक वह चारों और विश्वनाथजी मेरी और वीणा की चुदाई करते रहे. आप तो नशे मे टुन्न हो गये थे इसलिये आप को कुछ पता नही चला."

मामाजी की हैरानी बढ़ती ही जा रही थी. "बहु, यह तू क्या कह रही है? तुम दोनो तो बहुत बड़ी छिनालें हो!"

मैने चिढ़कर कहा, "भाभी, यह क्यों नही बताती कि रमेश और उसके ३ दोस्तों ने कल मामीजी को भी चोदा था?"

मामाजी बोले, "क्या!! कौशल्या (मेरी मामी) भी शामिल थी इस सब में?"

भाभी बोली, "बाबूजी, आपको क्या लगता है, सासुमाँ विश्वनाथजी के साथ अपने पीहर क्यों गयी है? रास्ते भर उनसे चोदवाने के इरादे से."

सुनकर मामाजी को बहुत गुस्सा आ गया. वैसे मेरे चुसाई से उनका लौड़ा फिर खड़ा हो गया था. वह बोले, "हे भगवान!! एक से एक रंडीयाँ बसी है मेरे घर मे! और विश्वनाथ मेरा दोस्त होकर मेरे साथ ऐस कैसे कर सकता है!"

भाभी ने मामाजी के दोनो तरफ़ अपने पाँव रख दिये और उनके मुँह मे एक चूची घुसाकर बोली, "बाबूजी, आप गुस्सा क्यों होते हैं? जैसे आपको मौका मिला तो आपने अपनी बहु को चोद लिया. वैसे ही मौका मिलने पर विश्वनाथजी और उन चारों बदमाशों ने वीणा, सासुमाँ और मुझे चोद लिया. मौका मिला है इसलिये सासुमाँ भी विश्वनाथजी से चुदवा रही होगी."

सुनकर मामाजी का गुस्सा ठंडा हो गया और वह भाभी की नंगी चूचियों को दबाने और चूसने लगे. दो दो नंगी औरतों के आक्रमण के आगे उनका गुस्सा टिक नही सका.

मैने कहा, "मामाजी, यह सोचिये कि कितना अच्छा हुआ. अब मामी भी चुद गयी है, इसलिये घर जाकर आप भाभी को खुले आम चोदेंगे तो भी वह कुछ नही बोलेंगी."
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10-08-2018, 01:05 PM,
#12
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मामाजी को अब हमारी बात समझ आयी. मुझे बोले, "वीणा, बहुत शैतान हो गयी है तू इन दो दिनो मे! चल लेट बिस्तर पर! अब तेरी चुदाई करता हूँ!"

मैं खुशी खुशी बिस्तर पर चूत खोलकर लेट गयी. भाभी मामाजी के ऊपर से उतरी और मेरे पास बैठ गयी. मामाजी उठे और मेरी फ़ांक की हुई टांगों के बीच बैठकर, मेरे चूत पर अपने लण्ड का मोटा सुपाड़ा रखा. फिर अचानक एक जोरदार धक्के से अपना आधा लण्ड मेरी चूत मे घुसा दिया.

मैं दर्द से बिलबिला उठी. "ऊइईई!! मर गयी मै!! मामाजी आराम से नही डाल सकते थे अपना मूसल जैसा लण्ड!! उफ़्फ़्फ़ माँ!! फाड़ के रख दिया मेरी चूत को!!"

मामाजी रुक गये और बोले, "बहु, तू तो कहती थी यह दो दिन से चुद रही है लोगों से?"

मैं बोली, "मामाजी, दो ही दिन से चुद रही हूँ. भाभी की तरह चुद चुद कर चूत का भोसड़ा नही बना लिया है! हाय कितना दर्द हो रहा है!!"

भाभी हंसी और मेरे नंगी चूचियों को मसलते हुए बोली, "अभी दर्द चला जायेगा, ननद रानी! और एक दो दिन इसी तरह चुदाती रहोगी तो तुम्हारी चूत भी मेरी तरह भोसड़ी बन जायेगी." फिर वह मेरे होंठ पीने लगी.

भाभी के चूची मसलने और होंठ पीने से जल्दी ही मेरा दर्द कम हो गया. मामाजी ने भी धीरे से धक्के लगा लगा कर अपना पूरा लण्ड मेरी चूत मे ठूंस दिया. मैं भी मज़े मे कमर उठाने लगी.

भाभी बोली, "बाबूजी, अब यह तैयार हो गयी है. अब जी भर के चोदिये इस साली रांड को."
मैं भी मस्ती मे बोली, "हाँ मामाजी, चोदिये मुझे! जोर जोर से चोदिये!"

मामाजी ने कमर उठा उठा कर मुझे पेलना शुरु कर दिया. मेरी कसी चूत मे उनका मोटा लण्ड अंदर बाहर होने लगा और मुझे स्वर्ग का आनंद आने लगा. "आहहह!! ओहहह! क्या चोद रहे हो मामाजी!!" मैं ठाप खाते खाते बड़बड़ाने लगी. "पेलो मुझे अच्छे से, मेरे प्यारे मामाजी! आहहह!! पेल पेल के ढीली कर दो मेरी चूत!! हाय क्या मज़ा आ रहा है!!"

मामाजी को भी मेरी कसी चूत पेलने मे बहुत मज़ा आ रहा था. करीब 15 मिनट चोदने के बाद, मामाजी बहुत जोरों से ठाप लगाने लगे. उनका भारी पेलड़ मेरी गांड पर आ आकर टकराने लगा. उनके ठापों से हमारे पसीने से भीगे शरीर से पचाक-पचाक की आवाज़ आने लगी. इधर भाभी ने मेरे सर के दोनो तरफ़ अपने पाँव रख कर अपनी चूत मेरे मुँह पर दबा रखी थी जिसे मैं मामाजी के ठापों की ताल पर चाट रही थी. पूरा घर चुदाई की मस्त आवाज़ों से गूंज रहा था.

मामाजी की तेज ठुकाई से मेरा पानी छूटने लगा. मस्ती के सातवें आसमान पर मै चिल्लाने लगी, "ओहहह!! मामाजी, और जोर से पेलो!! हाय मेरे प्यारे मामाजी!! फाड़ के भोसड़ी बना दो अपनी भांजी की चूत को! आहहह!! क्या मज़ा आ रहा है!! उम्म माँ!! मै तो चुद कर रांड बन गयी रे!! आहहह! आहहह! मै गयी, मामाजी!! आहहह!!"

मेरे मुँह पर अपनी चूत रगड़ते रगड़ते भाभी भी खलास हो गयी, और उधर मेरे गर्भ की गहराई मे मुझे मामाजी के पेलड़ की मलाई गिरती मेहसूस हुई.

उस रात मामाजी ने भाभी और मुझे एक बार और चोदा. फिर हम तीनो थक कर नंगे ही सो गये.

अगले पूरे दिन मामाजी भाभी और मुझे भोगते रहे. कभी वह हमारी चूची दबा देते, कभी गांड दबा देते. भाभी भी अपने ससुर से पूरी तरह खुल गयी थी. अपने अध-नंगे चूचियों का नज़ारा करा करा कर मामाजी को पागल बनाती रही. भाभी और मैने मामाजी को रमेश, सुरेश, दिनेश, महेश, और विश्वनाथजी के हाथों अपने बलात्कार और सामुहिक चुदाई की कहानी खोल कर सुनाई. उसके बाद उस रात भी मामाजी, भाभी, और मैं देर रात तक चोदा-चोदी करते रहे.

अगले दिन सुबह सुबह मामी विश्वनाथजी के साथ वापस आ गयीं. वह बहुत खुश लग रही थी. मैं और भाभी समझ गये कि दो दिनो से विश्वनाथजी से खूब चुद कर आयी है.

मामीजी नहाने गयी तो विश्वनाथजी भाभी को खींच कर अपने कमरे मे ले गये. उसे बिस्तर पर लिटा कर उसकी साड़ी कमर तक उठा दी और अपना विशाल खूंटे जैसा लण्ड उसकी की चूत मे पेल दिया. जोश मे वह भाभी को जोरों का ठाप लगाने लगे.

भाभी मज़ा लेते हुए बोली, "विश्वनाथजी, क्या बात है इतने जोश मे हैं? मेरी सासुमाँ के साथ रास्ते मे कुछ किये नही क्या?"
विश्वनाथजी- "अरे किया ना, मेरी जान! जाते समय ट्रेन के टायलेट मे उसे एक बार चोद लिया. अपने मैके मे तो वह कुछ देर ही रुकी थी. चुदवाने की उसे इतनी ललक थी कि कल की रात हम होटल मे ही रुके. पूरी रात उसको नंगा करके चोदता रहा. आते समय भी ट्रेन के टायलेट मे एक और बार चोद लिया. चलती ट्रेन मे वह बहुत मज़े ले लेकर चुदवाई!"
भाभी- "फिर भी इतनी ठरक चढ़ी हुई है आपको!"
विश्वनाथजी- "तेरे सामने तेरी सास क्या चीज़ है, मेरी जान! तुझे चोदने का मज़ा ही कुछ और है. अब तो तू अपने घर जाने वाली है. फिर कभी आये ना आये. इसलिये आखरी बार के लिये चोद लेता हूँ तुझे!"

मैं दरवाज़े के फ़ांक से अंदर का नज़ारा देख ही रही थी कि मामाजी पीछे से आ गये. मुझे हटाकर उन्होने अंदर झांका तो पाया कि उनके प्रिय मित्र उनकी बहु पर चढ़ कर उसे चोद रहे थे. देखते ही उनका लण्ड ठनक गया. मेरे गांड मे अपना खड़ा लण्ड घिसते हुए और मेरी चूचियों को दबाते हुए बोले, "मेरी बहु इतनी बड़ी छिनाल है मैने सोचा नही था!"

हम दोनो नज़ारा देख ही रहे थे कि मामीजी नहा कर निकली और भाभी को आवाज़ लगायी, "बहु! कहाँ है तू? सूटकेस से मेरे कपड़े निकाल दे बेटी!"

पर भाभी तो विश्वनाथजी की ठुकाई मे मशगुल थी!
मामाजी बोले, "वीणा, जा देख तो तेरी मामी क्या कह रही है."

मैं भाग कर मामीजी के पास ऊपर गयी. "भाभी ज़रा बाहर गयी है, मामीजी. मैं आपके कपड़े निकाल देती हूँ." मैने कहा और मामीजी के सूटकेस से उनके लिये ब्लाऊज़, साड़ी वगैरह निकाल के दी.

मामीजी कपड़े पहनते हुए बोली, "क्यों वीणा, मेरे पीछे तुम लोग बहुत मज़ा किये क्या?"
मैं उनका इशारा नही समझी, पर बोली, "हाँ मामी, बहुत मज़ा किये. आप भी बहुत मज़ा की होंगी विश्वनाथजी के साथ मैके जाकर!"
मामीजी मुझे डाँटकर बोली, "बेशरम, कुछ भी बोल देती है!"
मैने कहा, "विश्वनाथजी ने आपका बहुत खयाल रखा होगा रास्ते मे? वही बता रहे थे."
मामीजी ने थोड़ा सतर्क होकर पूछा, "क्या क्या बताया विश्वनाथजी ने?"
मैं बोली, "यही कि दो दिनो से कैसे कैसे उन्होने आपका खयाल रखा. आपको अच्छे होटल मे ठहराया. आप तो ट्रेन के टायलेट मे भी जाती थी तो..."

मामीजी अपनी आवाज़ नीची कर के बोली, "हाय राम! विश्वनाथजी ने यह सब भी बता दिया! मैं तो शरम से मर जाऊंगी!"
मैं बोली, "मुझसे मत शरमाइये मामीजी! मुझे तो सब कुछ पता है. उस रात रमेश और उसके ३ दोस्तों ने आपके साथ जो जो किया था मैने सब देखा था."

मामीजी ने हाथों मे अपना चेहरा छुपा लिया. उन्होने सिर्फ़ पेटीकोट और ब्रा पहना हुआ था. मैने हाथ बढ़ा कर उनके पहाड़ जैसे चूचियों को धीरे से दबाया तो उन्होने कहा, "अब मैं तुम्हे और बहु को क्या मुँह दिखाऊंगी! बलराम के पिताजी को पता चला तो वह तो मुझे तलाक़ ही दे देंगे!"

मैने प्यार से मामीजी की चूचियों को थोड़ा और दबाया तो उन्होने अनचाहे भी एक सितकारी भरी.

मैने कहा, "मामीजी, आप मुझे और भाभी को मुँह दिखाने की फ़िक्र मत कीजिये. हम दोनो भी कोई दूध की धुली नही हैं. उस रात रमेश और उसके ३ दोस्त, और विश्वनाथजी ने रात भर भाभी और मेरी भी इज़्ज़त लूटी थी."
मामी- "हाय राम! यह तू क्या कह रही है, वीणा? मुझे विश्वास नही हो रहा तेरी बातों पर!"
मैं- "पर यह सच है, मामीजी! और जहाँ तक रही मामाजी की बात, पिछले दो दिनो से वह मुझे और भाभी को एक ही बिस्तर मे भोग रहे हैं."
मामीजी- "क्या अनाप-शनाप बक रही है, वीणा? तेरा दिमाग तो नही खराब हो गया?"
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10-08-2018, 01:05 PM,
#13
RE: मेले के रंग सास, बहु, और ननद के संग
मैने मामीजी की चूची को और थोड़ा दबाया तो वह फिर मस्ती की आह भर उठी. मै समझ गयी कि यह सब सुनकर उनको जोश आने लगा है. मैने कहा, "मामीजी, आप मैके जाने के रास्ते विश्वनाथजी के साथ मुँह काला कर रहीं थी, तो कोई बात नही थी. भाभी और मैने मामाजी के साथ मुँह काला किया तो बुरी बात हो गयी! यह कैसी बात हुई?"

मामीजी हंसकर बोली, "नही रे, मुझे बस विश्वास नही हो रहा कि मेरे पीछे जवानी का ऐसा गंदा खेल तुम लोग खेल रहे थे."
मैने कहा, "मामीजी, अगर आपको मेरी बात पर विश्वास नही हो रहा तो अपने आँखों से देख लीजिये. अभी नीचे चलकर."

मामीजी ने कुछ नही कहा, पर मेरे पीछे पीछे पेटीकोट और ब्रा मे ही नीचे चली आयी.
विश्वनाथजी के कमरे के बाहर मामाजी नही दिखे. कमरे से मस्ती की हल्की आवाज़ें ज़रूर आ रही थी. "आहहह!! और जोर से!! उम्म!! क्या स्वाद है!! आहहह!! और पेलो मेरे राजा!!"

मर्दों की भी आवाज़ आ रही थी. "ले साली छिनाल! ले मेरा लौड़ा अपनी भोसड़ी मे! चूस कुतिया, चूस अच्छे से!"

मामीजी दरवाज़े के पास गयी और फ़ांक से अंदर देखी. वह चौंक के पीछे आ गयी. मैने पूछा, "क्या हुआ, मामी?". मामीजी बोली, "हाय राम! तेरे मामाजी और विश्वनाथजी एक साथ मीना बहु को ठोक रहे हैं!"

मैने अंदर देखा तो पाया कि भाभी अब भी साड़ी कमर तक उठा कर बिस्तर पर पड़ी थी, पर उसके ब्लाऊज़ और ब्रा उतार दिये गये थे. विश्वनाथजी उनके गोल गोल चूचियों को मलते हुए उसे चोदे जा रहे थे. मामाजी ने अपनी पैंट उतार दी थी और भाभी विश्वनाथजी की चुदाई खाते हुए मामाजी का लण्ड मज़े से चूस रही थी.

"यह तो बहुत अच्छा हुआ." मैने कहा.
"मतलब?" मामीजी ने हैरान होकर पूछा
"अब आप भी खुल कर विश्वनाथजी से जवानी का मज़ा ले सकती हैं. मामाजी कुछ नही बोल पायेंगे." मैने कहा
"वो कैसे?"
"मामीजी, आप भी कितनी भोली हैं!" मैने कहा, "अभी अंदर जाकर मामाजी को रंगे हाथों पकड़ लीजिये. फिर ज़िंदगी भर जिससे चाहे अपनी चूत मरवानी हो मरवाते रहना, वह चूँ तक नही करेंगे!"
"चुप, फूहड़ कहीं की!" मामीजी बोली, "वैसे बात तो तू ठीक कह रही है, वीणा. पर मुझे अंदर जाते डर लग रहा है."
"डरने की क्या बात है, मामी!" मैने कहा और उनको अचानक दरवाज़े पर धकेल दिया. दरवाज़ा अंदर से बंद नही था. तुरंत खुल गया और हम दोनो अंदर जा गिरे.

हमें देखकर मामाजी ने हड़बड़ा के अपना लण्ड भाभी के मुँह से निकाल लिया.

मामीजी को देखकर तो भाभी शर्म से पानी पानी हो गयी. उसने चीखकर अपना चेहरा अपने हाथों से ढक लिया और विश्वनाथजी से छूटने की कोशिश करने लगी. पर विश्वनाथजी ने भाभी को चोदना बंद नही किया. उसके दोनो पाँव कस के पकड़कर अपना मूसल जैसा लण्ड उसकी चूत मे पेलते हुए बोले, "आइये, भाभीजी! बस आपकी ही कमी थी. देखिये आपकी चुदैल बहु कैसे दो दो लौड़ों से चुदवा रही है."

मामी गुस्से का नाटक कर के मामाजी को बोली, "हाय राम! आप यह क्या कर रहे हैं अपनी बहु के साथ! आपको शरम नही आती?"

मामाजी डरने की बजाय जोर से हंसे और बोले, "कौशल्या, शरम तो तुम्हे आनी चाहिये, जो उस रात शराब पीकर रामेश और उसके ३ दोस्तों से चुदवाई थी. और मैके जाने के बहाने होटल मे और ट्रेन के टायलेट मे विश्वनाथ से चुदवा कर अपने जिस्म की भूख मिटा कर आ रही हो."

मामीजी ने गुस्से से विश्वनाथजी की तरफ़ देखा तो उन्होने कहा, "अरे भाभीजी! हम्माम मे हम सब नंगे हैं. यहाँ कौन है जो किसी और पे उंगली उठाने की हालत मे है? इसलिये मैने हमारे कुकर्म की सारी कथा भाईसाहब को बता दी है. अब गुस्सा छोड़िये और आप भी हमारे खेल मे शामिल हो जाईये. वैसे ब्रा और पेटीकोट मे बहुत सुंदर लग रही हैं आप. लगता है चुदाने के इरादे से ही यहाँ आयी हैं!"

मामाजी ने मामीजी का हाथ पकड़ा और अपने बाहों मे खींचकर कहा, "कौशल्या, अब गुस्सा थूक भी दो! आओ, तुम भी कपड़े उतार कर हमारे साथ मज़ा लो. देखो बहु बेचारी कैसे शर्म से मरी जा रही है."

भाभी अब भी अपना चेहरा छुपाये विश्वनाथजी के जोरदार ठाप खाये जा रही थी.

मैने पीछे से मामीजी की ब्रा का हूक खोल दिया और उनकी विशाल चूचियाँ आज़ाद हो गयी. मामाजी ने उनके पेटीकोट का नाड़ा खोल दिया और उनको पूरा नंगा कर दिया. मैने पीछे से पकड़ कर उनकी चूचियों को मसलना शुरु कर दिया और उनके मोटे मोटे निप्पलों को छेड़ने लगी. मामीजी को जल्दी ही बहुत मस्ती चढ़ गयी. 

मामाजी ने जैसे ही मामी को भाभी के बगल मे लिटाया, उन्होने अपने पाँव खोल दिये और अपनी मोटी बुर को सहलाते हुए बोली, "हाय विश्वनाथजी! आईये मेरी चूत को थोड़ा और मारिये. होटल और ट्रेन मे आपसे चुदवाकर मेरा मन नही भरा है."

विश्वनाथजी हंसे और बोले, "यह हुई ना बात! सास और बहु एक साथ एक ही बिस्तर मे चुदवा रहीं हैं!" बोलकर उन्होने अपना विशाल लण्ड भाभी की चूत से निकाला और मामीजी पर चढ़कर उनकी मोटी बुर मे एक धक्के मे पेल दिया. मामीजी ने विश्वनाथजी को अपनी बाहों मे जकड़ लिया और कमर उठा उठा कर उनसे चुदने लगी.

इधर अपने बगल मे नंगी सास को चुदवाते देखकर भाभी की शरम भी छूट गयी. वह चिल्लाकर बोली, "हाय, मेरा क्या होगा? मेरा पानी तो अभी निकला नही है! कोई मुझे भी तो चोदो!!"
मामी विश्वनाथजी का ठाप खाते खाते अपने पति को बोली, "सुनो जी! ज़रा अपनी बहु को चोद दो. बेचारी का पानी झड़ने ही वाला है!"

मामाजी यह सुनते ही भाभी पर चढ़ गये और उसे जोर जोर से चोदने लगे.

पूरे कमरे मे मस्ती का महौल हो गया. उधर मामीजी विश्वनाथजी से चुद रही थी और कह रही थी, "हाय मेरे राजा! जोर जोर से पेलो मुझे!! हाय दो दिन से होटल और ट्रेन मे कितना चोदे हो! मैके जा कर मुझे इतना मज़ा कभी नही मिला! आहहह!! चोद डालो मुझे! उफ़्फ़्फ़!! क्या मस्त मूसल है तुम्हारा!! साली यह रांड बहु अकेली क्यों खायेगी तुम्हारा यह मूसल! ओफ़्फ़्फ़!! और जोर से दो अपना लौड़ा!!"

इधर भाभी तो मस्ती के शिखर तक पहुच गयी थी. अपने सास के सामने कमर उठा उठा कर अपने ससुर का लण्ड ले रही थी और बड़बड़ा रही थी, "बाबूजी! आहहह!! मैं खलास हो रही हूँ!! चोदो जोर जोर से, मेरे प्यारे बाबूजी!! दिखा दो सासुमाँ को कि बहु की चूत कैसे मारी जाती है!! और जोर से, हाय और जोर से पेलो मुझे!! आहहह!! ओहहह!! मैं झड़ी! आहहह!!"

भाभी के झड़ते ही मामाजी उठे और अपना खड़ा लण्ड लिये मेरे पास आये. "वीणा, तुम क्या यहाँ फ़िल्म देखने आयी हो? उतारो अपने कपड़े!"

मुझे तो यह सब नज़ारा देख कर बहुत जोश चढ़ चुका था. मैने जल्दी से अपनी साड़ी उतार दी, पर पेटीकोट उतारने से पहले ही मामाजी ने मुझे बिस्तर पर भाभी के बगल मे लिटा दिया. मेरे पेटीकोट को खींच कर कमर तक चढ़ा कर उन्होने अपना लण्ड मेरी चूत पर रखा और अंदर ठांस दिया. मैं इतनी पनिया गयी थी कि लण्ड आराम से एक बार मे अंदर चला गया. मामाजी मुझ पर चढ़कर दना-दन मेरी चुदाई करने लगे.

भाभी जो अब थोड़ी तृप्त हो चुकी थी उठी और मेरे ब्लाऊज़ और ब्रा उतार दी. मैं अब ऊपर से नंगी थी और मेरे कमर पर बस मेरा पेटीकोट सिकुड़ा हुआ था. मामाजी का मोटा लण्ड मेरी चिकनी चूत के अंदर बाहर हो रहा था और उनके होंठ मेरे होठों और चूचियों को पिये जा रहे थे. मेरे बगल मे मामीजी भी पूरी तरह नंगे होकर विश्वनाथजी से चुदाये जा रही थी. सामुहिक चुदाई के इस माहौल मे मुझे अपूर्व मज़ा आने लगा.

कुछ देर की चुदाई के बाद मामीजी और मै झड़ने लगे. उधर मामी विश्वनाथजी को जकड़के चिल्लाने लगी, "हाय मेरे राजा! और जोर से चोदो अपनी रखैल को!! हाय अपनी रंडी को चोद चोद के मार डालो!! आहहह!!! मेरा पानी छूट रहा है, मेरे जान! और पेलो मुझे! जी करता है ज़िन्दगी भर तुमसे अपनी चूत मरवाती रहुं! हाय!! कभी ट्रेन मे, कभी खेत मे, बस मेरी चूत मारते रहो मेरे राजा!! आहहह!!!"

इधर मैं भी मामाजी को जकड़ कर झड़ने लगी और मस्ती मे अनाप-शनाप बकने लगी. मामाजी भी जोरों का ठाप देकर मेरे चूत मे झड़ने लगे.

जब सब लोग झड़ चुके तो हम सब हाँफ़ रहे थे. काफ़ी देर बाद हम लोगों की सांसें काबू मे आयी.


उसके बाद मामा, मामी, भाभी और मैं पूरी तरह से खुल गये. हम औरतें तो घर पर अध-नंगे ही रहने लगे. बस ब्रा और पेटीकोट या ब्लाऊज़ और पेटीकोट मे रहते थे ताकि मर्द लोग जब चाहे हमारे जिस्म से खेल सकें. मामाजी और विश्वनाथजी भी सिर्फ़ एक लुंगी मे रहते थे जिससे कि हम उनके नंगे बदन से और झूलते लौड़ों से खेल सकें.

अगले 4 दिनो तक हम पांचों ने जी भर कर सामुहिक सम्भोग किया. दिन हो या रात हम पांच नंगे होकर चोदा-चोदी मे डूबे रहते थे.
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10-08-2018, 01:05 PM,
#14
RE: मेले के रंग सास, बहु, और ननद के संग
चौथे दिन शाम को मामाजी के घर से बलराम भईया का खत आया कि उनको बहुत जोर की मोच लग गयी है और वह चल नही पा रहे हैं. उन्होने हमें जल्द से जल्द लौटने को कहा. मामाजी ने जाकर अगले दिन की टिकट बना ली. हम सब उदास हो गये क्योंकि हमारे मौज-मस्ती के दिन पूरे होने वाले थे.

उस शाम को मामीजी के कहने पर विश्वनाथजी जाकर रामेश, सुरेश, दिनेश, और महेश को बुला लाये.

शाम से ही बोतल पे बोतल शराब चलने लगी. भाभी, मामीजी, और मैने बहुत शराब पी. जब सब को बहुत नशा हो गया तब हम 9 लोग पूरी तरह नंगे हो गये. 6 मर्दों ने मिलकर एक ही बिस्तर पर हम तीनो औरतों की जम कर चुदाई की. एक एक औरत को दो दो आदमी चोद रहे थे. कोई हमारी चूत मार रहा था तो कोई गांड मार रहा था या मुँह चोद रहा था. मैं भाभी की चुदाई देख देख कर अपनी बुर चुदा रही थी, तो भाभी अपनी चूत और गांड मे एक साथ लण्ड लिये अपनी सास की चुदाई देख रही थी. बदल बदल के उन 6 आदमीयों ने हम 3 औरतों को चोद चोदकर बर्बाद कर दिया. हमारे गर्भ मे उन्होने ना जाने कितनी बार अपना वीर्य भरा. रात के 2 बजे जाकर हम सब थक कर सो गये.
अगले दिन अपना सामान पैक कर के हम स्टेशन की तरफ़ चल पड़े. जाते समय मामाजी ने विश्वनाथजी को हाज़ीपुर आने का न्योता दिया जिसे उन्होने खुशी खुशी मान लिया.


ट्रेन मे ज्यादा भीड़ नही थी. हम सब एक खाली कूपे मे बैठ गये.

ट्रेन चलने पर मामाजी बोले, "देखो जो कुछ सोनपुर मे हुआ वह बात यहीं रह जायेगी. पर हाज़ीपुर जाकर हमें बहुत ध्यान से चलना पड़ेगा. किसी को भनक भी पड़ गयी तो गज़ब हो जायेगा."

भाभी नखरा करके बोली, "तो क्या बाबूजी, हम घर मे मज़ा नही कर पायेंगे? आपसे बिना चुदे तो मैं एक दिन भी नही रह पाऊंगी!"
मामाजी- "अरे नही बहु, हम मज़ा तो करेंगे. पर छुपके करना पड़ेगा. घर मे बलराम है, किशन है, नौकर रामु और उसकी जोरु भी है..."
भाभी- "देवरजी (किशन) को तो मै सम्भाल लूंगी!"
मामाजी- "क्या मतलब?"
भाभी- "बाबूजी, यही तो उम्र है देवरजी की जवानी का मज़ा लेने के लिये! देखिये कैसे दो ही दिनो मे मै उसे मेरी चूत मारने के लिये पागल कर देती हूँ! फिर मै आपसे चुदुंगी तो वह कुछ नही बोलेंगे."
मामाजी- "बहु, तू तो एकदम रांड बन गयी है सोनपुर आ के! मेरे छोटे बेटे को भी नही छोड़ेगी?"
भाभी- "अरे छोड़िये ना, बाबूजी! सोनपुर मे कितना मज़ा आया खुलकर चोदा-चोदी करने मे. हाज़ीपुर जाकर मैं छुपते-छुपाते नही चुदाने वाली. मुझे बिलकुल मज़ा नही आयेगा."
मामीजी- "ठीक ही तो कह रही है बहु! किशन अब बड़ा हो गया है. घर मे चूत नही मिलेगी तो गाँव की औरतों पर मुँह मारने लगेगा. घर की बात घर मे ही रहे तो अच्छा है. किसी को क्या पता चलेगा कि भाभी देवर से चुदवा रही है?"
मामाजी- "वह तो ठीक है कौशल्या, पर रामु का क्या करेंगे. वह तो घर का आदमी नही है."
भाभी- "वह भी आप मुझ पर छोड़ दीजिये, बाबूजी! पहले मै रामु को पटा कर उससे चुदवा लूंगी. वैसे भी वह हर वक्त मेरी गोलाईयों को घूरता रहता है. फिर उसकी जोरु को पटाकर पहले देवरजी और फिर आपसे चुदवा दूंगी. फिर रामु अपना मुँह नही खोल पायेगा."
मामाजी- "अरे बहु, तूने तो सब कुछ सोच रखा है रे! सच, बहु हो तो ऐसी, क्यों कौशल्या? वैसे रामू की जोरु गुलाबी है बहुत कड़क माल! चोली मे उसके जवान चूचियों को देख कर मेरा तो लण्ड खड़ा हो जाता है. कैसे चूतड़ मटका मटका कर नाज़ से चलती है. उसे पटक कर चोद सकूं तो मज़ा ही आ जाये!"
भाभी- "बाबूजी आप मुझे थोड़ा वक्त दीजिये. जल्दी ही आप गुलाबी को उसके पति के सामने पटक कर चोद सकेंगे!"

सब लोग आने वाले दिनो के मज़े के बारे मे सोच कर खुश हो रहे थे. मैने कबाब मे हड्डी फेंक कर कहा, "आप लोग बलराम भईया को तो भूल ही गये! जब वह देखेंगे कि उनकी प्यारी बीवी अपने ससुर, देवर, और नौकर से सामुहिक चुदाई खा रही है, तो वह क्या बैठकर अपना लौड़ा हिलायेंगे? वह तो थाने मे जाकर आप सब पर केस ठोक देंगे! फिर जेल की चक्की पीसना सब लोग!"

मामीजी मुसकुराकर बोली, "मेरे बलराम को मैं सम्भाल लूंगी!"

"आप सम्भाल लेंगी!!" हम सब ने हैरान होकर मामीजी की तरफ़ देखा.

मामीजी- "सब लोग मुझे ऐसे क्या देख रहे हो? तुम सब ने अपना अपना इंतजाम कर लिया. बहु को चार चार लौड़े मिलेंगे. मुझे क्या मन नही करता सोनपुर की तरह सामुहिक ठुकाई खाने का?"
मामाजी- "तुम्हारे लिये मैं हूँ ना, कौशल्या! और रामु भी तो होगा."
मामीजी- "दो से मेरा क्या होगा? और तुम्हारा लण्ड तो मैं बरसों से ले रही हूँ."
मामाजी- "पर बलराम तुम्हारा अपना बेटा है, कौशल्या! यह तुम क्या कह रही हो?"
मामीजी- "तुम तो जी कुछ बोलो ही मत! हफ़्ते भर से अपनी सगी भांजी की चूत मार रहे हो, और यहाँ शराफ़त की माँ चुदा रहे हो!"
मामाजी- "कौशल्या, मामा-भांजी की चुदाई अलग बात है. पर तुम अपने बेटों से चुदवाने जैसी घिनौनी बात सोच भी कैसे सकती हो!"
मामीजी- "क्यों जी, तुम्हे सही-गलत का ठेका किसने दिया है? तुम्हारी बीवी और बहु हफ़्ते भर से रंडीयों की तरह सब से चुदती रही तब तुमने कुछ भी नही कहा. तुम्हारी बहु घर जा के अपने देवर और घर के नौकर से चुदवाने का कार्यक्रम बनाये बैठी है, पर तुम कुछ नही कह रहे हो. क्यों? क्योंकि तुम्हे भी अपनी हवस पूरी करने का मौका मिल रहा है. हमारी कोई बेटी होती तो मुझे पूरा यकीन है कि तुम अपनी हवस मिटाने के लिये उसे भी बर्बाद करके छोड़ते. तो मैं क्या गलत कर रही हूँ? मुझे अपने दो जवान पठ्ठों जैसे बेटों से चुदवाने का मन कर रहा है. देखती हूँ तुम कैसे मुझे रोकते हो!"

मैने झगड़ा मिटाने के लिये कहा, "मामाजी, मामी ठीक ही तो कह रही हैं. सोनपुर मे हम सब ने जो अय्याशियाँ की हैं, उसके बाद हमे मामीजी को कुछ कहने का हक नही बनता. जिसको जो करने मे मज़ा मिलता है उसे वह करने देना चाहिये."
भाभी- "वह सब तो ठीक है, माँ, पर आप यह सब करेंगी कैसे?"
मामीजी- "वह मुझ पर छोड़ बहु! बस तू गुलाबी को एक बार बलराम से चुदाने की व्यवस्था कर देना. फिर जैसा मैं कहूँ वैसा ही करना. जल्दी ही मैं अपने दोनो बेटों से अपना बिस्तर गरम करने लगुंगी. और तुम सब को भी घर मे खुल कर चुदाई करने की पूरी आज़ादी हो जायेगी."

यह सुन कर सब बहुत खुश हो गये. मामाजी ने भी और कोई आपत्ती नही की. पर मैने कहा, "आप सब तो हाज़ीपुर जाकर बहुत मज़े करेंगे. पर मेरा क्या होगा? घर जाने के बाद माँ और पिताजी मुझे लण्ड सूँघने का भी मौका नही देंगे! मैं तो बिना चुदाई के मर ही जाऊंगी!"

मामाजी बोले, "अरे बिटिया, हाज़ीपुर जाकर हम तुझे भूल थोड़े ही जायेंगे? हर 2-3 महीने मे तुझे अपने यहाँ बुला लेंगे. तू 1-2 हफ़्ते मज़े करके वापस अपने घर चली जाना!"
मैं- "उससे मेरा क्या होगा मामाजी! मुझे तो अब चुदाई की लत लग गयी है. मुझे तो रोज़ 2-3 लण्ड चाहिये!"
भाभी- "उदास मत हो, वीणा! तेरे लिये भी मैने कुछ सोच रखा है."
मैं- "क्या भाभी?"
भाभी- "समय आने पर बताऊंगी. पर अफ़्सोस, अभी तो कुछ दिन तुझे उपवासी रहना पड़ेगा."

इस तरह बातें करते करते हाज़ीपुर स्टेशन आ गया. मामीजी और भाभी उतर गयीं. मामाजी मुझे मेरे घर तक छोड़ कर अगले दिन हाज़ीपुर चले गये. और इस तरह मेरी मेले की सैर समाप्त हुई. 


मामाजी और मै शाम तक एक तांगे मे बैठकर गाँव मेहसाना पहुंचे. मामाजी के आवाज़ लगाते ही मेरे पिताजी, मेरी माँ, और मेरी छोटी बहन नीतु घर के बाहर आये. मामाजी ने अपने जीजा (मेरे पिताजी) और अपनी दीदी (मेरी माँ) के पाँव छुये.

"गिरिधर, कोई परेशानी तो नही हुई सोनपुर के मेले मे?" पिताजी ने मामाजी से पूछा.
"नही, जीजाजी." मामाजी मुझे आंख मारकर बोले, "परेशानी कैसी? बहुत मज़ा लिया वीणा बिटिया ने!"

सुनते ही नीतु बिफर पड़ी, "पिताजी! देखिये वीणा दीदी ने कितना मज़ा किया मेले मे! आप लोगों ने मुझे जाने ही नही दिया!"
पिताजी नीतु को बोले, "अरे तू कैसे जाती, बेटी? इतना बुखार था तुझे उस दिन!"
मामाजी बोले, "नीतु बिटिया, अगले साल जब सोनपुर मे मेला लगेगा हम तुझे ज़रूर ले जायेंगे!"

यूं ही बातें करते हुए हम अन्दर आ गये. रात के खाने तक हम सब सिर्फ़ मेले के बारे मे ही बातें करते रहे. मामाजी और मुझे बहुत कुछ बना-बना कर बोलना पड़ा क्योंकि हम लोगों ने मेला तो कम देखा था और बाकी सब कुकर्म ही ज़्यादा किये थे.

रात को खाने के बाद हम सोने चले गये. मामाजी को मेरे कमरे मे सोने को दिया गया. मैं उस रात नीतु के कमरे मे सोई.

नीतु काफ़ी रात तक मुझसे मेले के बारे मे पूछती रही फिर थक कर सो गयी.

उसके सोते ही मैं बिस्तर से उठी, धीरे से दरवाज़ा खोलकर बाहर आयी और अपने कमरे की तरफ़ गयी जहाँ मामाजी सोये हुए थे.

मैने दरवाज़ा खट्खटाया तो मामाजी ने खोला. "अरे वीणा बिटिया, तू यहाँ इतनी रात को?" उन्होने पूछा.

कमरे मे काफ़ी अंधेरा था. अटैचड बाथरूम की बत्ती जल रही थी जिससे थोड़ी रोशनी आ रही थी.

मैने अपने पीछे दरवाज़ा बंद किया और खाट पर जा बैठी.

"मामाजी, मुझे नींद नही आ रही है!" एक कामुक सी अंगड़ाई लेकर मैने कहा.
"तो मेरे कमरे मे क्यों आयी है?" आवाज़ नीची करके मामाजी ने पूछा.
"चुदवाने के लिये, और क्या?" मैने कहा, "आप कल चले जायेंगे. फिर न जाने मेरी किस्मत मे कब कोई लौड़ा होगा. इसलिये आज रात जी भर के आपसे चुदवाऊंगी."
"हश!! धीरे बोल, पागल लड़की!" मामाजी बोले, "यह विश्वनाथ का कोठा नही, तेरे माँ-बाप का घर है. दीदी और जीजाजी ने सुन लिया तो मुझे गोली मार देंगे!"
"मै कुछ नही जानती!" मैने हठ कर के कहा, "मुझे आपका लौड़ा चाहिये!"

मामाजी हंसे और बोले, "लौड़ा तो तु ऐसे मांग रही है जैसे कोई लॉलीपॉप हो!"

मामाजी मेरे सामने खड़े थे. मैने टटोलकर लुंगी की गांठ को खोल दी तो लुंगी ज़मीन पर गिर गयी. मैने मामाजी का काला लन्ड अपने हाथ से पकड़ा. उनका मोटा लन्ड पूरा खड़ा नही था पर ताव खा रहा था.

मैने कहा, "मामाजी, आपका लन्ड लॉलीपॉप से कुछ कम नही है. चूस के बहुत स्वाद आता है." बोलकर मैने उनका लन्ड अपने मुंह मे ले लिया और सुपाड़े पर जीभ चलाने लगी.

मामाजी को मज़ा आने लगा. वह दबी आवाज़ मे बोले, "आह! चूस बिटिया, अच्छे से चूस!"

मैं मन लगाकर मामाजी के लन्ड को चूसने लगी और उनके पेलड़ को उंगलियों से सहलाने लगी. जल्दी ही उनका लन्ड फूलकर कड़क हो गया. मामाजी मेरे सर को पकड़कर मेरे मुंह मे अपना लन्ड पेलने लगे.

कुछ देर बाद मामाजी ने मेरे मुंह से अपना लन्ड निकाल लिया और बोले, "चल लेट जा."

मैने खुश होकर अपनी साड़ी उतारनी चाही, तो मामाजी बोले, "कपड़े उतारने का समय नही है. बस लेट कर अपनी टांगें खोल. मैं जल्दी से तुझे चोद देता हूं."
"नंगे हुए बिना मुझे मज़ा नही आयेगा, मामाजी!" मैने आपत्ति जतायी.
"लड़की, अपने बाप के घर मे अपने मामा से चुदवा रही है यही कम है क्या?" मामाजी बोले, "इससे पहले कि किसी को भनक पड़ जाये, अपनी चूत मरा ले और निकल यहाँ से. मेरे घर जब आयेगी तब इत्मिनान से चोदूंगा तुझे."

मै अपनी साड़ी और पेटीकोट कमर तक उठाकर बिस्तर पर लेट गयी, और अपनी दोनो टांगें फैलाकर अपनी चूत मामाजी के आगे कर दी. मेरी चूत इतनी गरम हो गयी थी के उससे पानी चू रही थी.
मामाजी मेरे पैरों के बीच बैठे. अपने 8 इंच के लन्ड का फूला हुआ सुपाड़ा मेरी चूत के फांक मे रखा और एक जोरदार धक्का मारकर अपना लन्ड 3-4 इंच घुसा दिया. मैं अचानक के धक्के से चिहुक उठी.

"चुप, लड़की! मरवायेगी क्या?" मामाजी ने डांटकर कहा.
"थोड़ा बताकर घुसाइये ना!" मैने जवाब दिया.

मामाजी ने अब धीरे से दबाव देकर अपना पूरा लन्ड मेरी संकरी चूत मे घुसा दिया और मेरे ऊपर सवार हो गये. मैने मामाजी को बाहों मे भर लिया और उनके होठों का चुम्बन करने लगी. मेरे होठों को पीते हुए मामाजी अपनी कमर उठा उठाकर मुझे चोदने लगे.
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10-08-2018, 01:05 PM,
#15
RE: मेले के रंग सास, बहु, और ननद के संग
हम दोनो की ही सांसें तेज चल रही थी पर हम कोई आवाज़ नही कर रहे थे. बस चुपचाप अंधेरे मे लेटे चुदाई किये जा रहे थे. "ठाप! ठाप! ठाप! ठाप!" अंधेरे मे बस यही आवाज़ आ रही थी.

मुझे पेलते पेलते मामाजी बोले, "वीणा, नीतु अब बड़ी हो गयी है, है ना?"
मैं मामाजी के ठापों का कमर उठा उठाकर जवाब दे रही थी. मैं बोली, "हाँ, इस साल 18 की होगी."
"उसके मम्मे अब मीसने लायक बड़े हो गये हैं. अमरूद जैसे."
"मामाजी, अब आपकी बुरी नज़र मेरी छोटी बहन पर भी पड़ गयी है!" मैने कहा.
"क्यों इसमे क्या बुराई है?" मामाजी ठाप लगाते हुए बोले. "जब बड़ी भांजी को चोद सकता हूं तो छोटी को क्यों नही चोद सकता?"
"तो बुला लाऊं उसे यहाँ? उसके बुर का भी उदघाटन कर दीजिये!" मैने कहा.
"हो सकता है उसके बुर का उदघाटन पहले ही हो चुका हो!" मामाजी बोले, "आजकल के लड़कियों का कुछ पता नही. अब तेरे को ही देख ना. शकल से तु चुदैल थोड़े ही लगती है. कभी मौका मिला तो फुर्सत से नीतु को चोदुंगा. तु उसे पटाने मे मेरी मदद करेगी ना?"
"हाँ मामाजी." मैने कहा. चूत मे मामाजी के मोटे लन्ड की ठोकर से मुझे इतना मज़ा आ रहा था कि मै कुछ भी मानने को राज़ी थी.

धीरे धीरे हमारी सांसें और तेज हो गयी और मामाजी के धक्के भी तेज हो गये. अब मेरे लिये अपनी मस्ती को दबाये रखना मुश्किल हो रहा था.

"ओह!! मामाजी! आह!! और जोर से मामाजी! आह!!" मैं दबी आवाज़ मे बोलने लगी.
मामाजी कमर चलाते हुए बोले, "चुप कर, साली! बाहर कोई सुन लेगा!"

पर मुझसे खुद पर काबू नही हो रहा था. माँ, बाप, और छोटी बहन से छुपकर चुदवाने मे अलग ही मज़ा आ रहा था. मैं बस झड़ने ही वाली थी. मामाजी को जोर से जकड़कर मैने कहा, "और जोर से मामाजी! हाय और जोर से! क्या मज़ा आ रहा है चूत मराने मे!! उम्म!! आह!! हाय मैं गयी! हाय मैं गयी, मामाजी!!"

मेरी आवाज़ इतनी ऊंची हो गयी कि दरवाज़े के बाहर कोई होता तो ज़रूर सुन लेता. मामाजी ने मेरे होठों को अपने होठों से दबाकर बंद कर दिया जिससे मैं कोई आवाज़ न निकाल सकूं. फिर जोरों की ठाप देते हुए वह मेरी चूत मे झड़ने लगे. हम दोनो के मुंह से सिर्फ़ "ऊंघ!! ऊंघ!! ऊंघ!!" की आवाज़ निकल रही थी.

पुरा झड़ने के बाद मामाजी मेरे ऊपर कुछ देर लेटे हांफ़ते रहे. मैं भी उनके नीचे लेटे अपनी चूत मे उनके गरम वीर्य के अहसास का मज़ा लेती रही.

शांत होने पर मामाजी उठे और उन्होने अपना ढीला लौड़ा मेरी चूत से निकाल लिया. मेरी चूत से उनका वीर्य बहकर निकलने लगा.

"चल उठ, छोकरी." मामाजी बोले. "आज बस इतनी ही चुदाई होगी. इससे पहले कोई आ जाये, मेरे कमरे से निकल."

एक बार झड़के मेरी भूख नही मिटी थी. मैं तो रात भर चुदवा सकती थी. पर हालात को देखते हुए मैं बिस्तर से उठी, अपनी साड़ी ठीक की और चुपके से मामाजी के कमरे से निकल आई. मामाजी ने मेरे पीछे दरवाज़ा बंद कर लिया.

मेरे जांघों पर मामाजी का वीर्य बहने लगा था. अपनी चूत को अपनी जांघों से दबाकर मैं किसी तरह नीतु के कमरे तक पहुंची. मैने धीरे से नीतु के कमरे का दरवाज़ा खोला और आकर बिस्तर पर उसके पास लेट गयी.

अंधेरे मे नीतु के हलके सांसों की आवाज़ आ रही थी. शायद वह पूरे समय सोती ही रही थी और उसे मेरे आने-जाने का कुछ पता नही चला था.

पर अचानक नीतु ने पूछा, "दीदी, तु कहां गयी थी?"

मेरा दिल धक! से धड़क उठा.

"अरे तु सोयी नही है? मैं...मैं कहीं नही गयी थी!" मैने हड़बड़ाकर जवाब दिया.
"झूठ मत बोल, दीदी! तु मामाजी के पास क्यों गयी थी?" नीतु ने पूछा.
"ओह! वह तो ऐसे ही!" मैने हंसने की कोशिश की और कहा, "हम मीना भाभी और मामीजी के बारे मे बात कर रहे थे."
"पता नही तुम लोग क्या बातें कर रहे थे, पर अजीब आवाज़ें आ रही थी अन्दर से." नीतु बोली.
"कमीनी, तु कान लगाकर सुन रही थी क्या?" मैने पूछा.
"और तुम लोग अंधेरे मे बैठ के क्यों बातें कर रहे थे?" नीतु ने उलटे पूछा.
"तु अन्दर देख भी रही थी, साली!" मुझे तो डर से पसीने आने लगे. "ठहर मैं माँ से तेरी शिकायत करती हूं."
"दीदी, मैं तेरी जगह होती तो माँ-पिताजी को शिकायत करने नही जाती." नीतु ने मुझे धमकाया.
"क्या मतलब है तेरा?"
"कुछ नही!" नीतु बोली. उसने एक बड़ी सी नकली जम्हाई ली और कहा, "बड़ी नींद आ रही है, दीदी. मैं तो चली सोने."

नीतु ने मेरे किसी सवाल का और जवाब नही दिया. मैने अंधेरे मे लेटे सोचती रही नीतु ने क्या देखा और सुना होगा, और न जाने कब मेरी आंख लग गई.


अगले दिन सुबह नाश्ते के बाद मामाजी हाज़िपुर लौटने वाले थे. मैने सोचा मीना भाभी न जाने क्या कर रही होगी. उनका हाल-चाल पूछने के लिये, और मामाजी के साथ अपनी कल रात की चुदाई के अनुभव को बताने के लिये, मैने भाभी को एक चिट्ठी लिखी.

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प्रिय मीना भाभी,

आशा है घर पे सब कुशल-मंगल है. बलराम भैया, किशन, और बाकी सब लोग कैसे हैं? घर का हाल-चाल बताना.

भाभी, कल रात मौका देखकर मैने मामाजी से एक बार चुदवा लिया. मुझे तो उनसे सारी रात चुदवाने का मन था, पर वही नही माने.

खैर, आज सुबह मामाजी हाज़िपुर के लिये रवाना हो रहे हैं. दोपहर तक घर पहुंच जायेंगे. यह चिट्ठी मैं उनके हाथों भिजवा रही हूँ.

चिट्ठी का जवाब जल्दी देना. सोनपुर से लौटते समय ट्रेन मे तुमने जो योजना बनायी थी वह सफ़ल हो रही है या नही, सब खोलकर लिखना. मामीजी को मेरा प्रणाम कहना.

तुम्हारी वीणा

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अगले दिन दोपहर को मेरे नाम भाभी की एक चिट्ठी आयी. खानपुर से मेहसाना डाक आने मे एक दिन लगता है. यानी कि यह चिट्ठी भाभी ने हाज़िपुर पहुंचते ही लिखी थी. मैं चिट्ठी लेकर अपने कमरे मे भागी और पढ़ने लगी.

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मेरी प्यारी वीणा,

सासुमाँ और मैं सकुशल घर पहुंच गये हैं. घर पर सब ठीक है. तुम्हारे बलराम भैया के पाँव मे बहुत जोर की मोच आयी है. सारा दिन बिस्तर पर लेटे रहते हैं.

अब आती हूँ यहाँ घर के हाल-चाल पर.

तुम्हारी मामीजी और मैं हाज़िपुर स्टेशन से तांगा लेकर शाम तक गाँव पहुचे. पहुंचकर देखा तुम्हारे बलराम भैया अपने बिस्तर पर दायें पाँव मे मलहम-पट्टी किये पड़े हुए हैं. सेवा मे मेरा देवर किशन और हमारे नौकर रामु की जोरु गुलाबी बैठे हैं.

मुझे देखर मेरे पति देव का चेहरा खिल उठा. घर के सब लोग मौजूद थे नही तो वह तो मुझे वहीं गले लगा लेते. आखिर तुम्हारे भैया मुझे बहुत प्यार जो करते हैं!

किशन बोला, "माँ, बहुत झमेला हुआ यहाँ, इसलिये तुम सबको भैया ने जल्दी बुला लिया. भैया को मोच आते ही मैं तांगे मे उनको हाज़िपुर बाज़ार मे डाक्टर मिश्रा के यहाँ ले गया. वही मलहम-पट्*टी कर दिये और बोले कि कुछ दिन बिस्तर मे आराम करना."

मेरी सासुमाँ ने पूछा, "गुलाबी, रामु नही दिख रहा?"

गुलाबी अपनी चुनरी से घूंघट किये खड़ी थी. चुनरी का सिरा मुंह मे दबाये बोली, "मालकिन, ऊ आप लोगन के साथ जो सोनपुर गये थे, तब से लौटे ही नही हैं!"

सासुमाँ बोली, "हूं! अपने गाँव जाकर यहाँ सबको भूल गया है! लौटेगा तो अच्छी सबक सिखाउंगी!" फिर मेरे देवर को बोली, "किशन, तु जा के अपनी पढ़ाई कर. अब मैं और तेरी भाभी आ गये हैं. हम सब सम्भाल लेंगे."

किशन के जाते ही मैने कहा, "माँ, आप बैठिये. मैं सेंक लगाने के लिये गरम पानी लाती हूँ."
सासुमाँ बोली, "नही बहु, तु बैठ के बातें कर. बलराम बहुत दिनो बाद मिल रहा है न तुझसे. चल गुलाबी, मेरे साथ रसोई मे चल."

बोलकर सासुमाँ और गुलाबी मुझे तुम्हारे भैया के साथ अकेले छोड़कर चले गये.
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10-08-2018, 01:05 PM,
#16
RE: मेले के रंग सास, बहु, और ननद के संग
सबके जाते ही, तुम्हारे भैया ने मेरा हाथ पकड़कर जोर से खींचा और मुझे अपने सीने पे गिरा दिया.

"उई माँ! यह क्या हो गया आपको?" मैं बोली. मेरी नर्म चूचियां उनके कठोर सीने से लगकर पिचक गयी थी.

उन्होने मेरे नर्म होठों को अपने होठों से चूमा और बोले, "मेरी जान, कितने दिनो से तुम्हारी इस जवानी का मज़ा नही लिया, तुम्हारे इन गुलाबी होठों का रस नही पिया. मुझे बहुत याद आती थी अपनी प्यारी पत्नी की!"

फिर वह अपने हाथ मेरे चूचियों पर ले जाकर उन्हे मसलने लगे. इतने दिनो बाद पति का प्यार पाकर मुझे बहुत अच्छा लगाने लगा.

"क्यों, जान, तुम्हे मेरी याद आयी कि नही?" उन्होने पूछा.
"ऊंहुं!" मैने शरम का नाटक करते हुए सरासर झूठ बोला. "मुझे भी आपकी बहुत याद आयी."

मैने यह बताना उचित नही समझा कि सोनपुर मे मैं रोज़ इतने लौड़े ले रही थी कि पति की याद आने का मुझे समय ही कहाँ था!

हुम दोनो कुछ देर इसी तरह उलझे रहे. मैं उनके मस्त होठों को पीती रही, वह मेरे चूचियों को मसलते रहे. उनका लन्ड लुंगी के अन्दर तनकर खड़ा हो गया था. मैने हाथ से उसे पकड़ा और सहलाकर कहा, "क्या जी, इसका यह क्या हाल बना लिया है आपने?"

वह बोले, "मैने कहाँ, तुमने यह हाल बनाया है, मेरी जान! दस दिनो से तरस रहा हूँ इसे तुम्हारे अन्दर डालने के लिये! अब तुम आ गयी हो तो और सब्र नही हो रहा."
मैने कहा, "पागल हो गये हैं आप! माँ रसोई मे हैं. कभी भी आ सकती हैं. जो करना है रात को कर लेना."
वह बोले, "मीना, तुम नही जानती मेरा क्या हाल हुआ है इन दस दिनो की जुदाई मे! मैं सच मे पागल ही हो गया हूँ! और कुछ नही तो थोड़ा चूस ही दो. मैं और बर्दाश्त नही कर सकता!"

मैने उठकर दरवाज़ा ठेल के बंद कर दिया और उनके पास बैठ गई. लुंगी को कमर के पास से खोलकर थोड़ा नीचे उतारा तो उनका लौड़ा थिरक कर बाहर आ गया. उन्होने चड्डी नही पहनी थी.

वीणा, तुम्हारे भैया का लौड़ा बहुत सुन्दर है - बिलकुल तुम्हारे मामाजी जैसा. संवला, मोटा, और 8 इंच लम्बा है. नीचे मोटा सा काला पेलड़ है जिसके दो अंडकोषों मे हमेशा बहुत वीर्य रहता है. शादी के बाद मैं बहुत मज़े से उनके लन्ड को चूसती थी और अपने चूत मे लेती थी. जब तक मैं महेश और विश्वनाथजी से नही चुदी थी तब तक मुझे पता नही था कि लन्ड इससे भी बड़ा होता है.

मैने झुक कर उनके लन्ड को मुंह मे ले लिया और चूसने लगी. कितना स्वाद आ रहा था इतने दिनो बाद अपने पति का लौड़ा चखने मे. मेरे वह तो मज़े मे जोर से कराह उठे. मैं मज़े से उनका लौड़ा चूसती रही और उंगलियों से उनके पेलड़ को सहलाती रही और वह मेरे सर पर हाथ फेरते रहे.

"आह!! कितना अच्छा चूस रही हो, मेरी जान! ऊम्म!! सुपाड़े को ज़रा जीभ से चाटो! उफ़्फ़!! ऐसा लन्ड चूसना तुम्हे किसने सिखाया?"
मैने उनके लन्ड से मुंह उठाया और कहा, "आपने, और किसने!"
वैसे सच कहूं तो लन्ड चूसने की सही कला तो मैने रमेश और उनके तीन दोस्त, और विश्वनाथजी का हबशी लौड़ा चूसकर ही सीखा था.

हम पति-पत्नी वैवाहिक प्रेम मे जुटे ही थे कि फ़ट! से कमरे का दरवाज़ा खुला. गुलाबी एक गमले मे गरम पानी लेकर दन-दनाकर अन्दर आ गई. मुझे तुम्हारे भैया के लौड़े पर झुके देखकर चीख उठी, "हाय दईया!!" और तुरंत कमरे के बाहर निकल गयी. मैने झट से उनका खड़ा लौड़ा लुंगी से ढक दिया.

बाहर सासुमाँ की आवाज़ आयी, "क्या हुआ, गुलाबी! तु चिल्लाई क्यों?"
गुलाबी बोली, "मालकिन, वह भाभी और बड़े भैया..."
सासुमाँ गुलाबी को डांटकर बोली, "अरी मूरख! कोई पति-पत्नी के कमरे मे ऐसे ही घुस जाता है क्या?"
फिर वह थोड़ी देर बाद गुलाबी को लेकर हमारे कमरे मे आई.

तब तक मैने उठकर अपनी साड़ी ठीक कर ली थी और आंचल से घूंघट कर लिया था. पर मेरे उनका लौड़ा तो लुंगी मे तब भी तम्बू बनाये हुए था. गुलाबी की नज़र तो लौड़े से हट ही नही रही थी. मेरे वह बहुत लज्जित हो रहे थे अपने खड़े औज़ार पे, पर न जाने क्यों उनका लन्ड लुंगी मे फनफनाता ही रहा. जैसे माँ और गुलाबी के आने से उनके अन्दर एक भ्रष्ट आनंद उठने लगा था.

सासुमाँ ने एक नज़र बेटे के खड़े लौड़े पर डाली फिर उसे अनदेखा करके मुझे बोली, "बहु, तु मेरे साथ ज़रा रसोई मे आ. गुलाबी, तु बड़े भैया के पाँव को सेंक दे."

गुलाबी उनके खड़े लौड़े पे नज़र गाड़े हुए ना-नुकुर करने लगी, पर सासुमाँ ने अनसुनी कर दी. हम दोनो रसोई मे आ गये.

रसोई मे आते ही सासुमाँ मुस्कुराकर बोली, "क्या बहु, घर आते ही पति के औज़ार पर टूट पड़ी? रात का भी इंतिज़ार नही हुआ?"
"क्या करूं, माँ! दस दिन हो गये हैं उनके साथ सोये हुए. मैं अपने आप को सम्भाल नही पायी." मैने कहा.
"पर पिछले दस दिनो मे तुने लन्ड कुछ कम भी तो नही खाये हैं! कल रात ही तो तुने छह-छह मर्दों का लिया था." सासुमाँ बोलीं.

मैं थोड़ा शर्म से लाल होती बोली, "माँ, पर वह तो कल रात की बात थी. आज तो पूरे दिन मैने कुछ किया ही नही!"
"और करना भी मत!" सासुमाँ बोलीं.
"वह क्यों?"
"बहु, जैसा कहती हूँ वैसा ही कर." सासुमाँ बोली, "तु आज रात को बलराम से साथ सोना ज़रूर. उसे प्यार भी करना और थोड़ा मज़ा भी देना. पर ध्यान रहे उसके साथ संभोग नही करना. बस उसे बहुत गरम करके छोड़ देना. कहना उसके पाँव मे बहुत चोट लगी है. संभोग करने से चोट बढ़ सकती हैं."
"माँ, मुझे तो लगता है आज उनको मेरी चूत नही मिली तो वह पागल ही हो जायेंगे!" मैने कहा.
"अरे बहु, यही तो मैं चाहती हूँ!" सासुमाँ हंसकर बोली. "वैसे भी इन दस दिनो मे गुलाबी की मस्त जवानी देख देखकर बलराम बहुत ही नाज़ुक हालत मे है. देखा नही कैसी भूखी नज़रों से गुलाबी के उभारों को ताड़ रहा था?"
"हाँ, पर गुलाबी वैसी लड़की नही है." मैने कहा, "वह नही देने वाली आपके बेटे को."
"और मैं चाहती भी यही हूँ कि बलराम को कहीं से भी अपनी हवस मिटाने का मौका न मिले." सासुमाँ बोली. "बस तु मेरे कहे पर चलती रह और देख क्या क्या होता है!"

"पर माँ, मेरा क्या होगा!" मैं लगभग रोकर बोली, "मैं तो अभी से ही बहुत गरम हो गयी हूँ!"
"तेरा इंतज़ाम मैं करती हूँ, बहु!" सासुमाँ बोली, "तेरे ससुरजी कल आ जायेंगे. फिर जितना चाहे उनसे अपनी प्यास बुझा लेना. बस आज की रात किसी तरह गुज़ार ले. मेरा भी तो तेरे जैसा ही हाल है!"

उस रात को खाने के बाद हम सब अपने अपने कमरे मे चले गये. तुम्हारे भैया तो मुझे देखकर फूले नही समा रहे थे. उनका लन्ड अब भी लुंगी मे तनकर खड़ा था.

मैने दरवाज़ा बंद किया और उनके पास पलंग पर जा बैठी और उनके लौड़े को लुंगी के ऊपर से पकड़कर बोली, "क्यों जी, आप शाम से यूं ही इसे खड़ा किये बैठे हैं क्या?"
"मेरी जान, जब से तुम सोनपुर गयी हो यह ऐसे ही खड़ा है!" वह बोले, और मुझे एक पल सांस लेने दिये बगैर उन्होने खींचकर मुझे अपने बलिष्ठ सीने पर लिटा लिया और अपने होंठ मेरे होठों पर चिपकाकर गहरे चुम्बन लेने लगे. वैसे तो मैं लौड़ा लेने के लिये मर रही थी, पर सासुमाँ के हिदायत की मुतबिक नखरा करने लगी.

"ओफ़फ़ो!" मैने कहा, "मुझे थोड़ा सांस तो लेने दीजिये!"
"सांस बाद मे ले लेना, मेरी जान!" मेरे वह बोले और अपने सख्त, मर्दाने हाथों से मेरी चूचियों को मसलने लगे. "पहले प्यासे पति की प्यास बुझाओ! चलो, अपनी ब्लाउज़ उतारो जल्दी से!"

मैने उठकर अपना ब्लाउज़ उतार दिया. ब्लाउज़ उतरा नही कि उन्होने हाथ मेरे पीठ के पीछे ले जाकर मेरी ब्रा का हुक खोल दिया और मेरे ब्रा को उतारकर कमरे के कोने मे फेंक दिया. अब मेरे नंगे नर्म चूचियों को दोनो हाथों से पकड़कर जी भर के मसलने लगे. मुझे तो मज़ा बहुत आ रहा था! पर मैने कोई पहल नही की.

थोड़ी देर बाद वह बोले, "इधर आओ और ज़रा अपने दूध पिलाओ!"

मैं अपनी चूचियां उनके मुंह के पास ले गयी तो दोनो हाथों से पकड़कर बारी बारी मेरी दोनो चूचियों को वह पीने लगे और मेरे निप्पलों पर जीभ चलाने लगे. मैं मज़े मे गनगना उठी. मेरी चूत तो कब से गीली हो चुकी थी. मैं तो क्या, कोई भी औरत होती तो और बर्दाश्त नही कर पाती और उनका लौड़ा अपनी चूत मे लेकर खुद ही चुदने लगती. पर मैने अपनी हवस को मुश्किल से काबू मे किया. बस अपना हाथ उनकी लुंगी मे ले जाकर उनके सख्त लन्ड को हिलाने लगी.

"जान, अब साड़ी उतार दो!" मेरे वह बोले. मैने कुछ ना-नुकुर की तो वह बोले, "मीना, क्या हो गया आज तुमको? रोज तो मेरा लन्ड लेने के लिये खुद ही कपड़े उतारकर तैयार हो जाती हो?"

मैने उठकर अपनी साड़ी उतारकर रख दी और अब सिर्फ़ पेटीकोट मे उनसे लिपट गयी. उनके लुंगी और बनियान को उतारकर उन्हे पूरा नंगा कर दिया.

वीणा, तुम तो जानती हो तुम्हारे बलराम भैया कितने लंबे-चौड़े, बलवान और सुन्दर हैं. पर तुमने उन्हे नंगा नही देखा है. खेत मे काम करने के कारण बहुत कसा हुआ शरीर है उनका. सीने पर हलके बाल हैं. हालांकि वह तुम्हारे ममेरे भाई हैं, तुम उन्हे इस हालत मे देखती तो तुरंत वासना से भर उठती.

मैं उनके गरम लन्ड को धीरे धीरे हिला रही थी. उनके शक्तिशाली हाथ मेरे सारे जिस्म पर फिर रहे थे और मुझे मदहोश बना रहे थे. मैं आंखे बंद किये अपने प्यारे पति देव के प्यार का मज़ा ले रही थी. अचानक मुझे महसूस हुआ कि उन्होने मेरे पेटीकोट का नाड़ा खोल दिया है. मैं उठके बैठ गयी और मैने फिर से नाड़ा लगा लिया.

"मीना! यह क्या कर रही हो तुम!" हैरान होकर मेरे वह बोले. "पेटीकोट उतारो जल्दी से! मैं शाम से तुम्हे चोदने के लिये बेकरार हूँ!"

मैं बिस्तर से उठ खड़ी हुई और बोली, "कैसे चोदेंगे आप, हाँ? खुद उठकर बाथरूम भी नही जा पा रहे हैं, मेरे ऊपर चढ़ेंगे कैसे?"
"तो तुम, मुझ पर चढ़ जाओ ना!" वह बोले.
"नही. आज चुदाई नही होगी." मैने कहा और अपनी साड़ी बिस्तर पर से समेटने लगी.
"मगर क्यों?" वह बोले.
"आपके भले के लिये कह रही हूँ." मैने कहा. "आप बहुत ज़्यादा जोश मे हैं. आज चुदाई करेंगे तो ज़रूर आपके पाँव मे और चोट लग जायेगी. दो चार दिन मे ठीक हो जाइये, फिर जितना चाहे मुझे चोद लेना."
"उफ़्फ़! साली, जी कर रहा है तुझे पकड़ के लाऊं और पटक कर चोदूं!"
मैने हंसकर कहा, "मुझे पकड़ सकते हैं तो पकड़ लीजिये ना! मैं खुशी खुशी चुदवा लुंगी." बोलकर मैने अपनी समेटी हुई साड़ी अपने नंगे सीने पर रखी और दरवाज़े की तरफ़ चल दी.

"मीना! कहाँ चल दी तुम?"
"किसी और कमरे मे सोने! यहाँ न आप खुद सोयेंगे और न मुझे सोने देंगे. और ऊपर से अपने पाँव को चोट पहुंचा बैठेंगे."

बोलकर उन्हे गुस्से मे बिलबिलाता छोड़कर मैं दरवाज़ा खोलकर बाहर आ गई.
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10-08-2018, 01:05 PM,
#17
RE: मेले के रंग सास, बहु, और ननद के संग
मैने सोचा था सब सो चुके होंगे, पर दरवाज़े के बाहर अपने देवर किशन को देखकर मैं चौंक उठी. वह भी मुझे देखकर सकपका गया.

कमरे के बाहर बैठकखाने की बत्ती जल रही थी और मुझे अपने अध-नंगेपन का ऐहसास होने लगा. मैने सिर्फ़ अपनी पेटीकोट पहनी हुई थी और ऊपर से नंगी थी. अपनी समेटी हुई साड़ी से अपने चूचियों को ढकने की कोशिश करते हुए मैं बोली, "देवरजी, तुम यहाँ?"
किशन हकलाने लगा और बोला, "भ-भाभी...वह म-मै तो बस यूं ही...रसोई की तरफ़ जा...जा रहा था...प-पानी पीने."

मैने उसे ऊपर से नीचे देखा तो पाया उसका औज़ार पजामे के अन्दर ठनका हुआ है. उसने अपने हाथों से अपने लौड़े को पजामे मे दबाने की बेकार कोशिश की.

"सच बोल रहे हो तुम, या फिर कुछ और कर रहे थे मेरे दरवाज़े के पास?" मैने पूछा. मुझे तो पूरा अंदाज़ा हो गया था कि किशन दरवाज़े की फांक से अपने भैया भाभी को जवानी का मज़ा लेते देख रहा था.
"नही, भाभी, म-माँ कसम! मैं सच ब-बोल रहा हूँ." किशन बोला.

बल्ब की धीमी रोशनी मे मेरा गोरा अध-नंगा शरीर किशन सामने था और वह मेरी जवानी को आंखों से पीये जा रहा था. मैं अपने पति के साथ चुदाई ना कर पाने की वजह से बहुत चुदासी हुई पड़ी थी. मेरा मन डोल गया. जी हुआ अपने देवर को उसके कमरे मे ले जाकर अपने सारे जलवे दिखाऊं और फिर उससे चुदाई करवाऊं. पर मैने जल्दबाजी करना उचित नही समझा. दिल पर पत्थर रखकर मैने कहा, "देवरजी, इस बारे मे हम कल बात करेंगे. जाओ, पानी पीकर सो जाओ!"

किशन छुटते ही रसोई की तरफ़ भागा. मैं अपने सास-ससुर के कमरे मे गयी. सोचा सासुमाँ के साथ ही सो जाऊंगी.

दरवाज़ा खट्खटाने पर सासुमाँ ने दरवाज़ा खोला. मुझे देखकर बोली, "क्या हुआ, बहु? और तु अध-नंगी क्यों है?"
मैने कहा, "माँ, आपके बेटे बहुत ज़िद कर रहे थे, तो मैने सोचा आपके कमरे मे सो जाऊं."
सासुमाँ हंसी और बोली, "अच्छा किया तु आई. बलराम को तुने बहुत चढ़ा दी है क्या?"
"हाँ. वह खुद चल पाते तो मुझे पटक कर अपनी दस दिनो की हवस मिटा लेते!"

सासुमाँ बिस्तर पर लेट गई. मेरे पास ब्लाउज़ और ब्रा तो था नही, पर मैने साड़ी पहनी शुरु की तो सासुमाँ बोली, "अरे बहु, तु साड़ी क्यों पहने लगी? आज ऐसे ही सो जा. तुझे तो सोनपुर मे मैने पूरा नंगा देखा है."

वैसे तो सासुमाँ और मैने सोनपुर मे एक दूसरे के सामने चुदाई भी की थी, पर मुझे थोड़ी शरम सी लगने लगी. मैने बत्ती बुझा दी और अपनी साड़ी एक कुर्सी पर रखकर उनके बगल मे एक चादर ओढ़कर लेट गई.

कुछ देर बाद सासुमाँ बोली, "बहु, सोनपुर की बहुत याद आ रही है. हम सबने बहुत मज़े लिये थे वहाँ."
मैं बोली, "माँ, विश्वनाथजी कह रहे थे उन्होने आपके साथ ट्रेन मे भी किया था?"
"हाँ रे!" सासुमाँ एक खुशी की सांस छोड़ती हुई बोली. "मेरे मैके जाते समय ट्रेन लगभग खाली ही थी. हम दोनो एक खाली कूपे मे बैठ थे. पहले तो विश्वनाथजी मेरी जांघों को सहलाने लगे, फिर मेरी चूचियों को दबाने लगे. मैने थोड़ा नखरा किया तो वह बोले, ’भाभीजी, आप कल रात चार-चार का लन्ड ली हैं. बस मुझे ही मौका नही मिला. कहो तो आपके पति को सब बता दूँ?’"
"फिर आपने क्या कहा?" मैने पूछा.
"सच बात तो यह थी कि मैं खुद उनसे चुदने को तैयार बैठी थी." सासुमाँ बोली, "मैने उन्हे अपनी चूचियां दबाने दी. कुछ देर बाद, नीचे से मेरी साड़ी मे हाथ डालकर मेरी चूत मे उंगली करने लगे. मेरी चूत तो बहुत ही गीली हो गयी थी. मुझे बोले, ’चलो भाभीजी, तुम्हे टॉलेट मे ले जाकर चोदते हैं.’ मैं तो घबरा गई."
"फिर?"
"फिर क्या, विश्वनाथजी कोई सुनने वाले लोगों मे हैं क्या?" सासुमाँ बोली, "मुझे जबरन टॉलेट के पास ले गये. उधर कोई नही था. एक टॉलेट खोलकर पहले मुझे अन्दर घुसा दिये, फिर खुद घुस गये. दरवाज़ा बंद करके वह मेरे ब्लाउज़ के हुक खोलने लगे. मैने कहा कि ऐसे ही साड़ी उठाके कर लो, पर वह माने नही."
"आपको पूरा नंगा कर दिया?"
"हाँ रे. मेरी साड़ी, ब्लाउज़, पेटीकोट सब उतार दिया. फिर खुद भी पूरे नंगे हो गये. क्या मज़ा आ रहा था चलती ट्रेन मे उनके नंगे बदन से अपने नंगे बदन को चिपकाने मे! डर भी लग रहा था कि कोई आ न जाये, और डर की वजह से मज़ा दुगना हो गया था." सासुमाँ बोली. "और ओह! कैसे खूंटे की तरह खड़ा था उनका विशाल लन्ड! मैं तो नीचे बैठकर कुछ देर उनका लन्ड जी भर के चूसी. फिर उन्होने मुझे आगे की तरफ़ झुकाया और पीछे से मेरी चूत मे अपना मूसल घुसा कर चोदने लगे."
"बहुत मज़ा आया होगा आपको?"
"हाँ, बहु. कभी मौका मिले तो ट्रेन मे किसी से चुदवाके देखना." सासुमाँ बोली, "ट्रेन तेजी से चल रही थी और डिब्बा जोरों से हिल रहा था. ट्रेन की ताल पर विश्वनाथजी मेरे चूचियों को मसलते हुए मुझे पेले जा रहे थे. मैं तो न जाने कितनी बार झड़ी. आते समय मैं खुद ही विश्वनाथजी को बोली कि मुझे ट्रेन के टॉलेट मे ले जाकर चोदें."

हुम कुछ देर अंधेरे मे चुपचाप लेटे रहे. आंखों मे नींद नही थी. मैं अपनी नंगी चूचियों को दोनो हाथों से मसल रही थी.

अचानक, सासुमाँ ने अपना हाथ मेरे एक चूची पर रखा और बोली, "बहु, अपने हाथों से कभी चूची दबाने का मज़ा आता है?" और फिर मेरे हाथ हटाकर मेरे निप्पल को छेड़ने लगी. मैं गनगना उठी.

"बहु, बहुत चुदवाने का मन कर रहा है क्या?" सासुमाँ ने भारी आवाज़ मे पूछा. वह कभी मेरी एक चूची को कभी दूसरी चूची को मसल रही थी.
"हा, माँ." मैने जवाब दिया.
"मै भी बहुत चुदासी हूँ." वह बोली. वह मेरे बहुत करीब आ गयी थी.

अचानक मैने उनकी सांसों को अपने चेहरे पर पाया, और वह मेरे होठों को पीने लगी.

वीणा, औरत के होठों मे वह बात नही जो एक मर्द के होठों मे होता है, पर इस वक्त मेरी जो हालत थी, मुझे सब कुछ मंज़ूर था. मैं भी पूरा साथ देकर सासुमाँ के होंठ पीने लगी. मैने उनके सीने पर हाथ रखा तो देखा कि उन्होने पहले से ही अपनी ब्लाउज़ और ब्रा उतार दी थी. तुम्हारी मामीजी थोड़ी मोटी हो गयी हैं और उनकी चूचियां काफ़ी बड़ी बड़ी हैं. हम दोनो एक दूसरे की चूचियों को मसल कर मज़ा देने लगे.

फिर सासुमाँ ने अपनी बड़ी बड़ी चूचियों को एक एक करके मेरे मुंह मे ठूंसना शुरु किया. उनके मोटे मोटे निप्पलों को चूस चूसकर मैने उन्हे मज़ा दिया. फिर उन्होने मेरी जवान चूचियों को पिया.

"हाय बहु, क्या गोल, नरम चूचियां है तेरी!" सासुमाँ बोली, "तभी तो इन्हे पी पीकर तेरे ससुर का मन नही भरता!"
"माँ, आपकी चूचियां भी बहुत सुन्दर हैं." मैने कहा. "अपनी साड़ी उतारिये ना!"

सासुमाँ ने उठकर अपनी साड़ी उतार दी, फिर पेटीकोट भी उतारकर पूरी नंगी हो गयी. अंधेरे मे कुछ दिखाई नही दे रहा था. वह फिर मेरे ऊपर लेट गयी और मेरे पेटीकोट के नाड़े को खोल दी.

मैने पेटीकोट को पाँव से अलग कर दिया. अब हम दोनो सास-बहु पूरी तरह नंगे होकर एक दूसरे से लिपटे हुए थे. हमारे होंठ एक दूसरे की गहरी चुम्बन ले रहे थे और हमारे हाथ एक दूसरे की चूचियों को मसले जा रहे थे. सासुमाँ मेरे ऊपर लेटकर अपनी चूत से मेरी चूत को रगड़ रही थी. काफ़ी मज़ा आ रहा था और हम दोनो एक दो बार ऐसे ही झड़ गये.

फिर सासुमाँ उठी और मेरी चूत की तरफ़ घूम गई. अपने दोनो पैर मेरे दोनो तरफ़ रखकर उन्होने अपनी मोटी बुर मेरे मुंह पर रख दी और बोली, "बहु, ज़रा चाट दे मेरी चूत को. मैं भी तेरी चूत चाट देती हूँ." फिर झुक कर मेरी गरम, गीली चूत को चाटने लगी. किसी औरत के साथ मैने कभी 69 नही किया था, पर मुझे बहुत मज़ा आया.

मेरी जीभ जैसे सासुमाँ की बुर मे गयी वह कराह उठी. "आह!! ऊम्म!! बहु, बहुत अच्छा चाट रही है. पहले भी चाटी है क्या किसी की चूत?"
"नही माँ." मैने कहा.
"तो सीख ले. काफ़ी मज़ा आता है औरतों के साथ जवानी का खेल खेलने मे भी." सासुमाँ बोली, "मैं तो बचपन से अपनी छोटी बहन से साथ कर रही हूँ. मुझे जवान लड़कियाँ अच्छी लगती हैं चूसने चाटने के लिये. गुलाबी जल्दी से लाईन पर आ जाये तो मैं उसकी चूचियां और चूत चूसकर खाऊंगी. हाय बहु, तेरी चूत कितनी स्वादिष्ट है! आह!! और अच्छे से चाट, बहु!"
"हाय माँ, मुझे भी बहुत मज़ा आ रहा है!" मैने कहा, "उम्म!!"

कुछ देर बाद सासुमाँ बोली, "बहु, पूरा मज़ा नही आ रहा. जा रसोई मे देख, लंबे बैंगन होंगे. दो मझले आकर के बैंगन ले आ."

मैने उठकर बत्ती जलाई और अपनी साड़ी लपेटने लगी, तो सासुमाँ बोली, "अरी, साड़ी क्यों पहन रही है. ऐसे ही नंगी चली जा. सब सो चुके हैं. कोई नही देखेगा."
"हो सकता है देवरजी जगे हों." मैने कहा, "जब मैं और मेरे वह नंगे होकर थोड़ा प्यार कर रहे थे, देवरजी दरवाज़े के फांक से हमे देख रहे थे. मैं जब बाहर निकली तो उन्हे पकड़ लिया."
"हाय, तु अध-नंगी किशन के सामने चली गई?" माँ बोली.
"मुझे क्या पता था वह बाहर खड़े है! आंखे फाड़ फाड़कर मेरे अध-नंगे बदन को देख रहे थे. लौड़ा तो तनकर तम्बू हो गया था." मैने कहा.
"चलो अच्छा हुआ." सासुमाँ हंसकर बोली, "अब तुझे नंगा देखेगा तो कहीं बलात्कार न कर बैठे!"

सासुमाँ के कहने के मुतबिक मैं नंगी ही दरवाज़े के बाहर चली गई. बाहर की सारी बत्तियां बंद थी और अंधेरा था. पर किशन के कमरे मे तब भी रोशनी थी. मुझे इस तरह नंगे बाहर निकलने मे बहुत रोमांच हो रहा था. अगर कोई देख लेता तो मैं क्या जवाब देती? अब मुझे समझ मे आया कि सासुमाँ ने ट्रेन के टॉलेट मे विश्वनाथजी से क्यों चुदवाया था. पकड़े जाने का डर यौन सुख को और बढ़ा देता है.

रसोई मे बत्ती जलाये बिना मैने उस दराज़ को खोला जहाँ सब्जियां रहती हैं. टटोलकर दो मोटे-मोटे लंबे बैंगन उठाये और रसोई से बाहर आ गई. उत्तेजना से मेरा नंगा शरीर कांप रहा था. बैंगन लेकर सासुमाँ के पास जाने ही वाली थी कि मैने सोचा क्यों न देखा जाये किशन इतनी रात को जगकर क्या कर रहा है.

वीणा, हमारे घर मे सारे दरवाज़े पुरानी लकड़ी के हैं. उनमे जगह जगह दरारें और फांक पैदा हो गये है. उन फांकों से अन्दर देखना बहुत आसन है. मैने किशन के कमरे मे झाँका. वह अपने बिस्तर पर पूरी तरह नंगा लेटा हुआ था और एक पतली सी किताब पढ़ रहा था. उसका लन्ड खड़ा था और एक हाथ से वह उसे हिलाये जा रहा था.
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10-08-2018, 01:05 PM,
#18
RE: मेले के रंग सास, बहु, और ननद के संग
मैने कभी किशन को नंगा नही देखा था. देखने मे वह अपने बड़े भाई की तरह बलवान नही है, थोड़ा दुबला है पर काफ़ी आकर्शक है. सीने पर कोई बाल नही है. उसक लौड़ा भी मेरे उनसे एक इंच छोटा है और मोटाई भी ज़रा कम है. अभी 18 का ही हुआ है किशन. शायद आगे चलकर अपने भैया और पिताजी के आकर का होगा उसका लौड़ा.

तय था कि वह कोई गंदी कहानियों की किताब पड़ रहा था और मुठ मार रहा था. मैने उसे कुछ देर देखा फिर एक बैंगन धीरे से अपनी चूत मे घुसा लिया. बैंगन किसी लन्ड से ज़्यादा लंबा और मोटा था. काफ़ी आराम मिला मुझे चूत मे बैंगन डालकर. किशन को मुठ मारते देखते हुए मैं अपनी चूत मे बैंगन पेलने लगी. दरवाज़े के बाहर पूरी तरह नंगे खड़े होकर चूत मे बैंगन करने मे मुझे एक अलग मज़ा आ रहा था.

थोड़ी ही देर बाद, किशन जोर जोर से अपना लन्ड हिलाने लगा. उसने किताब रख दी और दूसरे हाथ से अपने खड़े निप्पलों को छेड़ने लगा.

जल्दी ही वह जोर से कराह उठा, "ऊह!! भाभी! भाभी! यह लो भाभी! यह लो! आह!! ओह!! आह!!" बोलते ही उसके लन्ड से ढेर सारा सफ़ेद वीर्य पिचकारी की तरह हवा मे उठा और फिर उसके नंगे सीने पर जा के गिरने लगा. पांच-छह बार पानी निकला फिर उसका लन्ड ढीला पड़ गया.

अपनी चूत मे बैंगन पेलते हुए मैं यह नज़ारा देख रही थी. जी कर रहा था जाकर उसके पेट के ऊपर गिरे मलाई को चाट चाटकर खाऊं.

मैने थोड़ी देर चूत मे जोर से बैंगन पेला और एक बार झड़ गई. फिर सासुमाँ के कमरे मे चली गई.

सासुमाँ अन्दर नंगी लेट थी और एक हाथ से अपने बुर मे उंगली चला रही थी. मुझे देखकर बोली, "अरे बहु, कितनी देर लगी दी तुने! किसी ने देख लिया था क्या?"
एक बैंगन सासुमाँ को देकर बोली, "नही माँ, पर मैं किसी को देखकर आ रही हूँ."
"किसे?"
"देवरजी को." मैने कहा. "अपने कमरे मे चुदाई की कहानियाँ पड़ रहे थे और मेरा नाम लेकर मुठ मार रहे थे."
सासुमाँ खुश होकर बोली, "हाय, सब कुछ ठीक चल रहा है, बहु!"

फिर सासुमाँ अपने हाथ का बैंगन मेरी चूत मे घुसाकर धीरे धीरे पेलने लगी.
"हाय माँ, कितना मज़ा आ रहा है!" मैं बोली.
"बहु इतने मोटे बैंगन बुर मे मत घुसाया कर. बुर ढीली हो जायेगी और आदमीयों को मज़ा नही आयेगा." सासुमाँ बोली.
"ठीक है माँ, पर आज की रात के लिये काम चला लेते हैं. मुझे तो जी कर रहा है कोई लौकी अपनी चूत मे घुसा लूं!" मैने कहा.

काफ़ी देर तक हम सास-बहु एक दूसरे से लिपटे हुए चूत मे बैंगन पेलते रहे और एक दूसरे की चूची और होंठ पीते रहे. हालांकि लौड़े का काम बैंगन से नही चलता और मर्द का काम औरत से नही चलता, अपनी सासुमाँ के साथ समलैंगिक यौन क्रीड़ा मे मुझे एक अलग मज़ा आ रहा था. मैने भी सोचा, गुलाबी एक बार पट जाये तो उसकी चूची और चूत चखकर देखुंगी.

बैंगन पेलते पेलते कुछ देर मे हम सास-बहु फिर से झड़ने के करीब आ गये. सासुमाँ मुझे कसकर पकड़कर बोली, "बहु, हाय मेरा तो होने वाला है! आह!! ज़रा जोर जोर से पेल!"

मैं उनकी चूत मे जोर जोर से मोटे बैंगन को पेलने लगी. वह मेरे चूचियों को जोर से भींचकर झड़ने लगी. "आह!! ओह!! आह!! हाय क्या मज़ा दे रही है तु! आह!!" सासुमाँ बोलने लगी, "काश यह बैंगन न होकर...विश्वनाथजी का लौड़ा होता! आह!! बहुत याद आ रही है...सोनपुर की चुदाई की...आह!!"

खुद झड़ने के बाद सासुमाँ ने मेरी मस्ती को झाड़ा. मेरी चूत मे बैंगन पेलकर मुझे मज़ा देने लगी. साथ ही मेरी चूचियों को चूस भी रही थी. मुझसे भी और रहा नही गया. अपने सास के नंगे जिस्म को पकड़कर मैं झड़ गयी.

उसके बाद हम सास-बहु थक कर नंगे ही सो गये. सुबह उठकर देखा हम दोनो मादरजात नंगे पड़े हैं और बिस्तर पर दो मोटे बैंगन पड़े है. मैने शरारत से सोचा, आज अपने पति और देवर को इसी बैंगन की सब्जी खिलाऊंगी!

चलो, वीणा, घर पर मेरी पहली रात के बारे मे तुम्हे बहुत कुछ लिख दिया. अब मुझे रसोई मे जाना है. मेरा ख़त पढ़ते ही जवाब देना.

तुम्हारी भाभी

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मीना भाभी की चिट्ठी पढ़कर मैं बहुत गरम हो गई. किसी तरह चूत मे एक बैंगन पेलकर अपनी मस्ती को झाड़ी. फिर जल्दी से उनके चिट्ठी का जवाब लिखा और डाक से भेज दिया.

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प्यारी मीना भाभी,

तुम्हारी चिट्ठी मिली. पढ़कर बहुत आनंद आया. चूत मे बैंगन तो मैं ले ही रही हूँ. अब मुझे एक और काम सीखना है. किसी औरत के साथ समलैंगिक संभोग करना. तुम्हारी चिट्ठी से लगा तुम्हे मामीजी के साथ अपनी हवस मिटाकर काफ़ी मज़ा आया. अगर तुम यहाँ होती तो कसम से तुमको नंगी कर के तुम्हारी मस्त चूचियों को चूस चूसकर खतम कर देती! और तुम्हारी चूत को भी बहुत चाटती.

जल्दी से खबर भेजो घर पर और क्या हो रहा है. तुमने अपने देवर को पटाकर उससे चुदवाया कि नही? अगर वह तुम्हारा नाम लेकर मुठ मारता है तो उसे पटाना बहुत ही आसन होगा.

मामाजी तो अब तक घर पहुंच गये होंगे. तुम उनसे चुदवा रही हो कि नही? उनके हाथों मैने एक चिट्ठी भेजी है. पढ़कर जल्दी जवाब देना!

तुम्हारी वीणा

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अगले दिन भाभी की एक और चिट्ठी आयी. अपने कमरे मे जाकर मैने दरवाज़ा बंद कर दिया ताकि नीतु आकर परेशान न करे. रसोई से एक मोटा बैंगन भी ले आयी थी. अपने कपड़े उतारकर, चूत मे बैंगन को घुसाकर, मैं भाभी की चिट्ठी को चाव से पढ़ने लगी.

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प्यारी ननद वीणा,

आशा है तुम्हे मेरा पहला ख़त मिल गया है. तुम्हारे मामाजी के हाथों भेजा हुआ तुम्हारा ख़त भी मुझे मिल गया है. भई, अपने मामाजी से चुदवाई हो तो ज़रा खोलकर लिखना था कि तुमने उनसे कैसे कैसे मज़े लिये! तुमने तो बस एक पंक्ति लिखकर छोड़ दी है! मुझे तो अपने कारनामों को लिखने मे बहुत मज़ा आ रहा है. उम्मीद है तुम्हे भी पढ़कर मज़ा आ रहा होगा.

सासुमाँ के साथ संभोग करने के अगले दिन की बात बताती हूँ. सुबह तुम्हारे भैया को नाश्ता कराने के बाद गुलाबी सेंक लगाने के लिये गरम पानी लेकर उनके कमरे मे गई. मैं रसोई का काम निपटा रही थी. थोड़ी देर बाद मैं अपने कमरे की तरफ़ गयी तो देखा गुलाबी मेरे उनके पाँव के पास बैठकर एक कपड़े से गरम पानी का सेंक लगा रही थी. मेरे उनका लौड़ा तब भी लुंगी के अन्दर तना हुआ था और उनकी आंखें गुलाबी के कसी कसी चूचियों पर थी. गुलाबी सर झुकाकर सेंक लगा रही थी और कभी कभी चोरी से उनका लौड़े को देख लेती थी.

मैं दरवाज़े पर ही रुक गई.

वीणा, तुमने गुलाबी को तो देखा नही है. उसकी रामु से कुछ महीनों पहले ही शादी हुई है. छोटे कद की, सांवले रंग की लड़की है. उम्र कुछ 18-19 की है. बदन गदराया हुआ है पर चूचियां बहुत कसी कसी हैं. सांवले होने के बावजूद, गोल चेहरे पर बड़ी बड़ी काली आंखों के कारण सुन्दर लगती है. हमेशा घुटने तक घाघरा पहनती है जिसमे उसके जवान नितंभ बहुत आकर्शक लगाते हैं. क्योंकि हम सब उसे बहुत प्यार करते हैं वह घर पर नाज़ से अपने चूतड़ मटका मटका के चलती है.

तुम्हारे भैया गुलाबी को कह रहे थे, "गुलाबी, तुने पिछले दो दिनो से मेरी बहुत सेवा की है रे! मैं ठीक हो जाऊं तो तुझे कोई अच्छा सा इनाम दूंगा."
"नही बड़े भैया, हमे कोई इनाम-सिनाम नही चाहिये. ई तो हमरा काम है." गुलाबी बोली.
"अरे पगली, तेरा काम तो रसोई मे है. ठहर तुझे हाज़िपुर बाज़ार से एक लहंगा ला दूंगा. बहुत सुन्दर लगेगी तु." मेरे वह बोले.
"हमे नही चाहिये लहंगा."
"तो बता क्या चाहिये? तेरे लिये एक जोड़ी पायल ला दूं? कितने सुन्दर हैं तेरे पाँव. बहुत अच्छी लगेगी जब तु घर मे छम-छम चलेगी तो." मेरे वह बोले.
"भाभी के जैसी पायल?" गुलाबी खुश होकर पूछी.
"हाँ, बिलकुल मीना जैसी." मेरे वह बोले, और उन्होने अपने खड़े लन्ड को थोड़ा हाथ से सहलाया, "अच्छा गुलाबी, बहुत सेंक दिये मेरे पाँव तुने. ज़रा इधर आ के बैठ मेरे पास. बहुत बातें करने का मन कर रहा है तेरे साथ."
"नही बड़े भैया. आप वहीं बैठ के बतियाईये ना! भाभी आ जायेगी तो क्या सोचेगी!"
"अरे पगली, उसे तो रसोई मे बहुत समय लगेगा." बोलकर मेरे उन्होने गुलाबी का हाथ पकड़ा और खींचकर अपने पास बिठा लिया.

गुलाबी शरम से सकपकाने लगी. बोली "बड़े भैया, ई का कर रहे हैं आप? हम आपके नौकर की जोरु हैं!"
"नौकर की जोरु है तो क्या तु सुन्दर नही है? और रामु तो अपने गाँव गया हुआ है और पता नही कब लौटेगा." मेरे वह बोले, और घाघरे के ऊपर से गुलाबी के जांघों को सहलाने लगे.

"नही बड़े भैया, आपके साथ हम ई सब नही कर सकते!" बोलकर गुलाबी उठने को हुई पर तुम्हारे भैया ने उसके हाथ को जोर से पकड़े रखा था. उन्होने अपने दूसरे हाथ से गुलाबी का घाघरा ऊपर उठाया और उसकी नंगी जांघों को सहलाने लगे.
गुलाबी सिहर उठी, पर बोली, "बड़े भैया, हमे छोड़ दीजिये! हमरी इज्जत खराब हो जायेगी!"
"कैसे खराब होगी? कोई देखेगा तब न खराब होगी तेरी इज़्ज़त. मेरा कहना मानेगी तो बहुत मज़ा भी पायेगी और किसी को पता भी नही चलेगा. और ऊपर से ईनाम दूंगा सो अलग." कहकर उन्होने अपना हाथ गुलाबी की नंगी चूत पर रख दिया.

वीणा, तुम तो जानती हो गाँव की औरतें चड्डी नही पहनती है. गुलाबी गनगना उठी और उसने अपने दोनो जांघें जोर से दबा ली. मेरे उन्होने झट से अपना हाथ हटा लिया, और मौका देखकर गुलाबी हाथ छुड़ाकर दरवाज़े की तरफ़ भागी. बाहर निकलते ही वह मुझे से टकरा गई.

मैं गुलाबी को खींचकर बाहर बगीचे मे ले गयी और पूछी, "गुलाबी, यह क्या हो रहा था? खोलकर बता क्या बात है!"

गुलाबी कुछ देर अपनी नज़रें नीची किये खड़ी रही, फिर बोली, "भाभी आप बुरा मत मानना. और बड़े भैया से लड़ाई भी नही करना! और मेरे मरद को भी कुछ नही बताना."
"अच्छा नही बताऊंगी. पर बता बात क्या है." मैने दिलासा दिया.
"भाभी, बड़े भैया को न जाने क्या हो गया है! पिछले दस दिनो से हमरी इज्जत से खेलने की कोसिस कर रहे हैं." गुलाबी बोली, "आप सब लोग सोनपुर के मेले मे गये थे तब हम, किसन भैया और बड़े भैया घर पर अकेले थे. मैं सबके लिये खाना बनाती थी और घर का काम करती थी."
"फिर?"
"वैसे तो पहिले भी बड़े भैया हमरे जोबन को देखते रहते थे. पर आप लोगों के जाने के दूसरे दिन ही हम खेत मे उनको खाना देने गये तो ऊ हमरा हाथ पकड़ लिये और बोले, ’गुलाबी, तु कितनी सुन्दर है!’ फिर हमको पियार जताने लगे."
"कैसे कैसे प्यार जताया?" मैने पूछा.
"भाभी, हमे बताते सरम आती है!" गुलाबी बोली.
"अरे शरम कैसी? मैं भी तो एक औरत हूँ! खोलकर बता ना!" मैने सख्ती से कहा.

"भाभी, बड़े भैया हमको पीछे से पकड़कर अपने सीने से लगा लिये. फिर अपने दुई हाथ हमरे जोबन पर ले जाकर उन्हे धीरे धीरे दबाने लगे. बोले, ’कितने कसे कसे हैं तेरे जोबन, गुलाबी! रामु रोज़ मसलता है क्या?’"
"फिर?"
"फिर बड़े भैया अपना हाथ नीचे ले गये और हमे वहाँ सहलाने लगे."
"कहाँ, चूत पे?" मैने ने पूछा.
"हाय भाभी, आप ई कैसी भासा बोल रही हैं!" गुलाबी हैरान होकर बोली.
"अरे लड़की, चूत को चूत नही बोलेंगे तो क्या बोलेंगे?" मैने कहा, "बता फिर क्या हुआ."
"वह एक हाथ से हमरा जोबन दबा रहे थे और एक हाथ से हमरी...चू-चूत को सहला रहे थे. और हमरे गले और कंधों पर चुम्मी भी ले रहे थे!" गुलाबी बोली.

मैने गौर किया कि शरम के साथ साथ एक उत्तेजना भी थी उसकी आवाज़ मे. यानी लड़की को कुछ मज़ा तो आया ही था इस छेड़-छाड़ मे.
"हूं." मैने हामी भरी.
"भाभी आप भैया से नाराज़ तो नही हैं ना?" गुलाबी बोली, "ऊ का है ना, बड़े भैया ठहरे जवान मरद. जोरु साथ न हो तो जोस मे गलती हो जाती है."
"नही, मैं तुम्हारे बड़े भैया से बिलकुल नाराज़ नही हूँ." मैने कहा. बल्कि मैं तो बहुत खुश थी यह सब सुनकर. अगर वह मेरे पीछे गुलाबी की इज़्ज़त लूटने की कोशिश कर रहे थे तो मैने सोनपुर मे जो सब किया था वह भी सब माफ़ था.

"भाभी, आप हमसे नाराज तो नही हैं ना? हम बड़े भैया को और कुछ नही करने दिये." मुझे चुप देखकर गुलाबी पूछी, "ऊ जब हमरी चोली मे हाथ डालकर हमरे जोबन तो दबाने लगे और हमरा घाघरा उठाकर हमरी चू-चूत मे हाथ लगाये तो हम उनसे छूटकर अलग हो गये. और घर भाग आये."
"क्यों, क्यों भाग आयी?" मैने पूछा.
"काहे नही भागेंगे, भाभी!" गुलाबी हैरान होकर पूछी, "हम सादी-सुदा औरत हैं! और बड़े भैया भी तो आपके पति हैं. भला कोई सादी-सुदा औरत किसी पराये मरद का पियार लेती है का?"
"तु बहुत भोली है, गुलाबी" मैने उसके भारे भारे गालों की चुटकी लेते हुए कहा. "पराये मर्द के प्यार मे बहुत मज़ा होता है रे."
"हाय दईया! ई आप का कह रही हैं, भाभी?" गुलाबी हैरान होकर पूछी.

मैने उससे पूछा, "अच्छा बता, जब मेरे उन्होने तेरे चोली मे हाथ डालकर तेरे जोबन तो दबाया था, तुझे थोड़ी गुदगुदी हुई थी कि नही?"

गुलाबी सर झुकाकर चुप खड़ी रही. मैने उसके ठोड़ी को उंगली से ऊपर उठाया और कहा, "शरमा मत, गुलाबी. मैं किसी को नही बताऊंगी. बता, जब तेरे बड़े भैया चोली मे तेरी चूची को मसल रहे थे, तुझे मज़ा आया था कि नही?"
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10-08-2018, 01:06 PM,
#19
RE: मेले के रंग सास, बहु, और ननद के संग
गुलाबी की आंखों मे लाल डोरे तैर रहे थे. शरम से आंखे नीची किये उसने हाँ मे सर हिलाया.

"और जब उन्होने तेरी चूत को सहलाया था तब मज़ा आया था?"
"जी, आया तो था. पर ई गलत बात है." गुलाबी धीरे से बोली.
"ओफ़्फ़ो! फिर तु सही-गलत मे पड़ गयी!" मैने गुस्सा दिखाकर कहा, "जब तुझे मज़ा आया तो इसमे गलत क्या है?"
"पर भाभी, ई गलत तो है ना! हम एक सादी-सुदा औरत हैं." गुलाबी बोली, "आप भी सादी-सुदा औरत हो. आप कभी पराये मरद का पियार ली हो का?"
"हाँ, गुलाबी, मैने पराये मरद का प्यार लिया है." मैने कहा.

गुलाबी मुझे बहुत इज़्ज़त देती है. मेरी बात सुनकर दंग रह गई. "कब? कैसे?" आंखें बड़ी बड़ी करके उसने पूछा.

मैने मुस्कुरकर कहा, "यह सब तु किसी को नही बताना, समझी? सोनपुर के मेले मे बहुत भीड़ थी. भीड़ मे आदमी लोग मेरे चूची, गांड, और चूत को बहुत दबा रहे थे. बहुत मज़ा आया था उनके छेड़-छाड़ मे."
"सच? किसी ने फिर आपको बड़े भैया की तरह जबरदस्ती पियार किया था?" गुलाबी ने पूछा.
"हाँ, गुलाबी. भीड़ मे से चार लोग मुझे पकड़कर एक सुनसान जगह ले गये और उन्होने मेरे जिस्म से बहुत खेला." मैने कहा. पर वीणा, मैने गुलाबी को यह नही बताया कि मेरे साथ तुम्हारा भी बलात्कार हुआ था.

"हाय राम! ई का कह रही हैं, भाभी?" गुलाबी हैरत से पूछी, "चार-चार मरदों ने आपके जोबन को हाथ लगया था?"
"अरी बुद्धू, जब चार-चार मरद किसी औरत को प्यार जताते हैं, वह सिर्फ़ जोबन को हाथ लगाकर छोड़ नही देते. मेरे सारे कपड़े उतारकर उन्होने मेरे साथ कुकर्म किया था."
"हाय! और आप कुछ नही बोली?" गुलाबी ने पूछा. उसकी आवाज़ मे हैरत के साथ उत्तेजना साफ़ सुनाई पड़ रही थी.
"कैसे बोलती? वह चार थे और मैं अकेली थी." मैने कहा, "उन चारों ने बारी-बारी बहुत देर तक मेरी इज़्ज़त लूटी."

"हाय दईया, ई तो बहुत बुरा हुआ! फिर आप थाने मे रपट लिखाने जरूर गयी होंगी!" सुनकर गुलाबी ने कहा.
"पागल है तु?" मैने कहा, "थाने मे बताने जाती तो पूरे घर की बदनामी होती. और दारोगा बाबू पूछते कि मुझे मज़ा आया था कि नही तो मैं क्या जवाब देती?"
"हाय भाभी, आप को का इज्जत लुटाने मे मज़ा आया था?"
"हाँ रे, गुलाबी!" मैने कहा, "बहुत, बहुत, मज़ा आया था!"
"भाभी, पर आप को मजा कैसे आ सकता है? आप तो एक सादी-सुदा औरत हो!"
"तो क्या हुआ?" मैने कहा, "मरद अपना हो या पराया, मरद के प्यार मे बहुत मज़ा होता है. ऊपर से मुझे कुछ दिनो से तेरे बड़े भैया का प्यार नही मिला था और मैं बहुत ठरकी हुई थी. जब उन चारों मे मुझे मिलकर चोदा तो मैं तो मज़े मे पागल हो गयी. मैने कमर उठा उठाकर उन चारों का लौड़ा अपनी चूत मे लिया. सच मान गुलाबी, पराये मर्द से चुदवाने मे अपने मरद से ज़्यादा मज़ा आता है. खासकर जब वह जबरदस्ती चोदते हैं!"

मेरी अश्लील भाषा सुनकर गुलाबी ने अपने गालों पर हाथ रख लिये.

"क्या हुआ गुलाबी?" मैने गुलाबी की एक चूची को धीरे से दबाया और पूछा, "तेरा आदमी तुझे चोदता नही है क्या?"
"हाँ, रोज करता है." गुलाबी बोली. "कभी कभी दिन मे 2-3 बार भी करता है."
"और तुझे रामु से चुदवाने मे मज़ा आता है?"
"जी, आता है. बहुत मजा आता है." गुलाबी बोली. उसकी सांसें फूल रही थी. बहुत जोश आ गया था उसे.
"और जब तेरे बड़े भैया ने तेरे जोबन दबाये थे और चूत सहलाया था तब भी मज़ा आया था ना?"
"जी, भाभी."
"तो सुन, अगर तेरे बड़े भैया उस दिन तुझे खेत मे जबरदस्ती चोद देते, तो तुझे बहुत मज़ा आता." मैने कहा, "अगर तुझे विश्वास नही हो रहा, तो एक बार अपने बड़े भैया को अपने जोबन दे दे दबाने के लिये. बहुत मज़ा पायेगी. चूचियों को मसल मसल के, चूस चूस के बहुत मजा देंगे. मुझे भी देते हैं."

गुलाबी चुप रही पर उसके आंखों के चमक से मैं समझ गयी वह अब पराये मर्द का स्वाद चखने के लिये आतुर थी. आखिर, वह एक भरे यौवन की लड़की है और दस दिनो से उसने अपने आदमी के साथ संभोग नही किया था. पर उसने थोड़ी आपत्ति की, "पर भाभी, मेरे मरद को पता चल गया तो?"
"कैसे पता चलेगा?" मैने कहा, "रामु तो अपने गाँव गया है. और तुझे यहाँ प्यासा छोड़ गया है. तु अपने पसंद के किसी मरद से अपनी प्यास बुझायेगी तो उसे कैसे पता चलेगा?"
"हमे तो डर लग रहा है, भाभी." गुलाबी बोली.
"अरे डर मत, लड़की!" मैने कहा, "सब शादी-शुदा औरतें पराये मर्दों के साथ मज़े करती हैं. किसी को पता नही चलता, इसलिये सब सती-सावित्री लगती हैं. मैने सोनपुर मे उन चारों आदमियों से कितना चुदवाया. मैं तुझे नही बताती तो तुझे पता चलता? तु भी अपने बड़े भैया को प्यार करने दे. बहुत मज़ा पायेगी."
"पर भाभी, हम उनको सिरफ अपने जोबन दबाने देंगे." गुलाबी बोली, "और कुछ नही करने देंगे."
"ठीक है बाबा!" मैने कहा, "तुझे उनसे नही चुदवाना तो मत चुदवा. मैं जोर नही करूंगी. वैसे भी उनके पैर मे चोट लगी है. तुझे चोद भी नही पायेंगे. और चोदना चाहे भी तो बाद के लिये टाल देना, समझी?"
"ठीक है, भाभी." गुलाबी मुस्कुराकर बोली. लगा जैसे मैने उसे बहुत दिनो की छुपी हुई इच्छा पूरी करने की इजाज़त दे दी है.

गुलाबी और मैं रसोई मे आ गये और सासुमाँ के साथ मिलकर दोपहर का खाना बनाने लगे.

दोपहर के खाने के बाद सासुमाँ अपने कमरे मे चली गयी. मेरे वह भी सो गये. किशन ने अपने कमरे मे जाकर दरवाज़ा बंद कर लिया. मौका देखकर मैं किशन के कमरे के पास गई.

दरवाज़े के फांक से देखा वह कल रात वाली किताब पढ़ रहा था और पजामे के ऊपर से अपना लन्ड सहला रहा था. मैने जैसे ही दरवाज़े पर दस्तक दी उसने वह किताब अपने तकिये के नीचे छुपा दी और जल्दी से अपना खड़ा लौड़ा दबाकर पजामे मे छुपाने की कोशिश करने लगा.

"देवरजी! क्या कर रहे हो?" मैने आवाज़ लगाई.
"कुछ नही, भाभी!" बोलकर वह जल्दी से आया और दरवाज़ा खोल दिया. मैने घूंघट नही किया था. आंचल के नीचे मेरी चूचियां बहुत उभरी दिख रही थी. किशन ने अपनी आंखे तुरंत मेरी चूचियों पर जमा दी. मैने गौर किया कि पजामे मे उसका लौड़ा अब भी खड़ा था.

मैं जाकर उसके बिस्तर पर बैठ गयी और वह पास खड़ा रहा. मैने उसे मुस्कुराकर देखा और कहा, "सो रहे थे क्या, देवरजी?"
"नही भाभी." उसने कहा.
"तो कुछ पढ़ रहे थे?"
"नही भाभी. बस यूं ही..."

मैने अचानक उसके तकिये के नीचे हाथ डाला और उसकी छुपाई हुई किताब निकाली.

"तो यह क्या है?" मैने पूछा.

किशन को काटो तो खून नही! खड़े-खड़े कांपने लगा और हकलाकर बोला, "कु-कुछ नही भाभी. ब-बस स्कूल की किताब है." बोलकर मेरे हाथों से किताब छीनने को आया.

मैने किताब अपने पीठ पीछे छुपा ली और कहा, "अरे मैं भी तो देखूं तुम्हारे स्कूल मे क्या पढ़ाते हैं!"

डर के मारे किशन को पसीने आने लगे.

मैं किताब को पढ़ने लगी. किताब का नाम था "हरजाई डाईजेस्ट". खोलकर देखा तो पाया कि उसमे हिंदी मे कुछे कहानियाँ थी.

"यह तो कहानियों की किताब जान पड़ती है." मैने कहा.
"भ-भाभी, मेरी नही है. स्क-स्कूल के एक द-दोस्त ने दी है." वह हकलाकर बोला.
"देखूं तो कैसी कहानियाँ पढ़ता है तुम्हारा यह दोस्त." मैने कहा, "हूं. पहली कहानी है, ’भाभी का प्यार’. क्या कहानी है यह?"
"भ-भाभीयाँ अपने द-देवर को प्यार करती हैं ना. बस वही." किशन ने कहा.
"ओ अच्छा! हूं. यह वाली है ’पापा के साथ जन्नत की सैर’. सैर-सपाटे वाली कहानी लगती है." मैने कहा, "पर यह कैसी कहानी हुई, ’मेरे भईया, मेरे सईयाँ’? और ’मैने अपनी माँ को माँ बनाया’? देवरजी, मुझे तो दाल मे कुछ काला लग रहा है!"

किशन अगर मिट्टी मे समा पता तो उस वक्त खुशी खुशी पताल मे चला जाता. हाथ जोड़कर बोला, "भाभी, आप मत पढ़िये इस किताब को. यह आपके लिये नही है!"
"क्यों नही है मेरे लिये? ऐसा क्या है इस किताब मे?" मैने पूछा और पन्नो को उलट-पुलटकर पढ़ने लगी. जल्दी ही मुझे समझ आ गया कि पहली कहानी एक देवर-भाभी की चुदाई की थी, दूसरी एक बाप-बेटी के चुदाई की कहानी थी, तीसरी एक भाई और छोटी बहन के चुदाई की थी, और चौथी, एक माँ की थी जिसका गर्भ अपने बेटे से चुदवा के ठहर जाता है.

"देवरजी, अब समझी यह कैसी किताब है. कितनी अश्लील भाषा है इसमे. चूत, लन्ड, चूची, गांड, बुर, लौड़ा, चुदाई. छी!" मैने कहा, "तुमको यह सब अच्छा लगता है पढ़ना?"
"नही भाभी." किशन बोला.
"सच बोलो!" मैने डांटकर कहा, "नही तो तुम्हारे भैया को सब बता दूंगी!"
"भगवान के लिये भैया को कुछ मत बताना, भाभी!!" किशन डरकर बोला.
"तो बताओ, तुम्हे ऐसी कहानियाँ पढ़नी अच्छी लगती है? जैसे माँ-बेटे या भाई-बहन या बाप-बेटी के शारीरिक संबंध की कहानियाँ?"
"जी."
"कभी अपनी माँ के बारे मे ऐसी गंदी बातें सोचते हो?" मैने पूछा.
"भाभी, यह तो बस कहानियाँ है...." किशन बोला.
"और मेरे बारे मे?" मैने पूछा.

किशन चुप-चाप खड़ा रहा. उसका लौड़ा कब का ठंडा हो चुका था.

"बोलो, देवरजी, मेरे बारे मे बुरे खयाल मन मे लाते हो?"
"नही भाभी. कभी नही." किशन ने कहा.
"तो यह बताओ, कल रात मेरे दरवाज़े के बाहर क्या कर रहे थे?" मैने पूछा.
"भ-भाभी मैं तो ब-बस प-पानी पीने जा रहा था." किशन बोला.
"सच? रसोई तो उस तरफ़ है. तुम पानी पीने मेरे कमरे के पास क्यों गये थे?" मैने पूछा. "मुझे तो लगता है तुम दरवाज़े के फांक से अन्दर देख रहे थे."
"नही भ-भाभी." किशन बोला.
"झूठ मत बोलो, देवरजी. देख रहे थे तो देख रहे थे. तुम एक नौजवान लड़के हो." मैने कहा, "और मैं देखने मे कुछ बुरी तो नही हूँ. हूँ क्या?"
"नही, भाभी."
"नही क्या?"
"मेरा मतलब, आप बहुत सुन्दर हैं." किशन ने हिचकिचाकर कहा.

सुनकर मैं बहुत खुश हुई. मुस्कुरकर मैने पूछा, "तो क्या देखा तुमने अन्दर."
"जी, आप थीं और भैया थे."
"और हम क्या कर रहे थे अन्दर?" मैने पूछा.

किशन चुप रहा तो मैने कहा, "अरे बोलो ना, भई! लड़कियों की तरह शरमाओ मत. क्या देखा तुमने अन्दर?"
"जी, आप और भैया लिपटे हुए थे..."
"हमने कपड़े पहने हुए थे?"
"भैया नंगे थे और आपने सिर्फ़ पेटीकोट पहन रखी थी."

मुझे लगा किशन को अब मज़ा आने लगा था मुझसे ऐसी बातें करने मे. उसके पजामे मे उसका लौड़ा तनने लगा था.
"और हम क्या कर रहे थे?"
"जी, आप दोनो...प्यार कर रहे थे." किशन ने कहा.
"ओहो, तो उसे प्यार कहते हैं?" मैने मसखरा कर के कहा, "तुम्हारे इस किताब मे तो लिखा है उसे चुदाई कहते हैं!"

मेरे मुंह से यह अश्लील शब्द सुनकर किशन झेंप गया.

"फिर तो तुमने पहले भी देखा होगा अपने भैया-भाभी को चुदाई करते हुए?" मैने पूछा.
"जी, रोज़ देखता हूँ." किशन ने कहा और थोड़ा सा मुस्कुरा दिया.
"अच्छा? मज़ा आता है अपनी भाभी को नंगी देखकर?" मैने पूछा.
"नही, भाभी." किशन ने कहा. उसका लौड़ा अब काफ़ी तन गया था.
"क्यों? मैं बिना कपड़ों के अच्छी नही लगती क्या?" मैने गुस्सा दिखाकर कहा.
"बाहर से ठीक से दिखाई नही देता ना!" किशन ने शरारती मुसकान के साथ जवाब दिया.

"ओहो! तो मेरे प्यारे देवर को शिकायत है कि वह मेरे जलवे ठीक से देख नही पाते हैं!" मैने हंसकर कहा. "अगर देखने का इतना ही मन था, तो कभी कहा क्यों नही? तुम्हारी भाभी ने तुम्हे किसी बात के लिये कभी ना किया है क्या? कल रात तो मैं तुम्हारे सामने सिर्फ़ पेटीकोट मे खड़ी थी. और अपने सीने पर सिर्फ़ अपनी साड़ी दबा रखी थी. चाहते तो हाथ लगाकर भी देख सकते थे! "

किशन का चेहरा तमतमाने लगा. उसक लौड़ा पजामे मे फनफना के खड़ा था और उसके चड्डी के काबू मे नही रह रहा था.
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10-08-2018, 01:06 PM,
#20
RE: मेले के रंग सास, बहु, और ननद के संग
मैने अपना पल्लु गिरा दिया और अपने ब्लाउज़ मे ढके चूचियों को उसके सामने कर दिये. "क्यों देवरजी, देखोगे अपनी भाभी के जलवे?" मैने पूछा.

किशन मेरे चूचियों को देखकर बार बार थूक गटकने लगा.
किशन की आंखों मे देखते हुए मैने अपने ब्लाउज़ के हुक धीरे धीरे खोल दिये और ब्लाउज़ उतार दी. कुछ देर वह मेरी ब्रा मे कसी चूचियों को आंखों से भोगता रहा. मेरी गोरी, गोल चूचियां मेरे छोटे से ब्रा मे समा ही नही रही थी. फिर मैने अपने हाथ पीछे कर के अपनी ब्रा खोल दी. अब मैं कमर के ऊपर पूरी नंगी थी. मेरी नंगी, गोरी, चूचियां उसके सामने थिरक रही थी. मेरे भूरे रंग के निप्पल अकड़कर खड़े थे.

मैने अपने दोनो हाथों से अपनी चूचियों को पकड़ा और अपने निप्पल को चुटकी मे लेकर मीसा. मैं खुद मस्ती मे सिहर उठी और जोर की आह भरी, "आह!!" मेरी चूत बहुत गरम और गीली हो गयी थी. मैने मन मे सोचा, "बस और कुछ देर सब्र कर, मीना! यह लड़का जल्दी ही तेरे ऊपर होगा और इसका लौड़ा तेरी चूत को पेल रहा होगा." सोचकर ही मैं गनगना उठी.

"देवरजी, मेरी चूचियां कैसी लग रही है पास से देखने मे?" मैने अपने निप्पलों को मीसते हुए पूछा, "तुम्हारे भैया इन्हे बहुत बेदर्दी से मसलते हैं. और मेरे निप्पलों को अपने मुंह मे लेकर बहुत चूसते हैं. आओ, थोड़ा हाथ लगाकर देखो!"

किशन मेरे करीब आया और उसने एक कांपता हाथ मेरी एक चूची पर रखा. उफ़्फ़! क्या सनसनी हुई मेरे पूरे जिस्म मे! फिर वह धीरे धीरे मेरी दोनो चूचियों को दोनो हाथों से दबाने लगा.

"ओह!! देवरजी! उम्म!! थोड़ा और जोर से दबाओ." मैने कहा.

किशन ने वैसा ही किया. मैने कुछ देर उसके किशोर हाथों से अपनी चूची मसलवाने का मज़ा लिया.

फिर मैने हाथ बढ़ाकर पजामे मे कैद उसके लौड़े को पकड़ा और पूछा, "देवरजी, कितना बड़ा है तुम्हारा लौड़ा?"
"जी पता नही." उसने दबी हुई आवाज़ मे कहा, "कभी नापे नही." उसने अपनी आंखें बंद कर ली थी.
"तुम्हारे भैया का लन्ड बहुत बड़ा है." मैने उसके लन्ड को सहालते हुए कहा, "मुझे बड़े लन्ड बहुत पसंद हैं, देवरजी!"

किशन का पूरा शरीर अकड़ गया और वह इतना कांपने लगा के मुझे लगा वह पजामे ही पानी छोड़ देगा. मैने अपना हाथ हटाना चाहा, पर बहुत देर हो चुकी थी.

किशन ने एक हाथ से मेरी एक चूची को जोर से भींच दिया और दूसरे हाथ से मेरे हाथ को अपने लन्ड पर दबाकर रगड़ने लगा. "ओह!! ओह!! भाभी!! ओह!! आह!!" वह भारी आवाज़ मे बड़बड़ाने लगा और अपने चड्डी मे ही झड़ने लगा. उसका पजामा और मेरा हाथ उसके वीर्य से चिपचिपे हो गये.

"यह क्या किया तुमने, देवरजी?" मैने खीजकर पूछा.
"भाभी, पता नही कैसे हो गया!" किशन बहुत लज्जित होकर बोला.
"उफ़्फ़! कभी लड़की नही चोदे हो क्या?" मैने गुस्से से पूछा, "गाँव मे इतनी भाभीयाँ हैं. घर पर गुलाबी है. कभी किसी की चूत नही मारे हो?"
"नही भाभी."

"हे इश्वर!" मैने ठंडी आह भरी. लगा मेरी किस्मत मे आज लौड़ा लिखा ही नही था.
"कोई बात नही, देवरजी." मैने दिलासा देकर कहा, "नौजवानो के साथ ऐसा होता है. अभी फिर से खड़ा कर देती हूँ."

पर मुझे कुछ और करने का मौका नही मिला, वीणा! बाहर से तुम्हारे मामाजी के चिल्लाने की आवाज़ आयी, "मीना बहु! किशन! रामु! गुलाबी! कहाँ हो सब लोग? कोई दरवाज़ा तो खोलो!"

"पिताजी आ गये वीणा दीदी को घर छोड़कर." किशन बोला, "भाभी, तुम जाकर दरवाज़ा खोलो ना! मुझे अपना पजामा बदलना है."

मैने हारकर अपनी ब्रा और ब्लाउज़ पहनी और ससुरजी के लिये दरवाज़ा खोलने गई.


तुम्हरे मामाजी ने आते ही दोपहर का भोजन किया और तुरंत खेत मे मज़दूरों को काम समझाने चले गये. रात को लौटे और खाना खाकर सीधे अपने कमरे मे चले गये.

जब मैं रसोई का काम समेट रही थी, सासुमाँ बोली, "बहु, काम खतम हो जाये तो सोने के लिये मेरे कमरे मे आ जाना. बलराम को आज अकेले ही सोने दे."

वीणा, मैने तुम्हारे भैया को जब कहा कि मैं आज फिर मेहमानों के कमरे मे सो रही हूँ, तो उनका गुस्सा देखने लायक था! बहुत दया आयी बेचारे पर. पर क्या करती? सासुमाँ का कहना भी तो मानना था!

मैं सासुमाँ के कमरे मे पहुंची तो देखी वह ससुरजी के साथ पलंग पर बैठे बतिया रही थीं. मैने दरवाज़ा बंद किया और ससुरजी के पास जा बैठी. बैठते ही ससुरजी ने मुझे पकड़कर बिस्तर पर लिटा दिया और खुद मेरे ऊपर चढ़ गये. मेरे नरम होठों पर अपने मर्दाने होंठ रखकर मुझे चूमने लगे. अपनी जीभ उन्होने मेरे मुंह मे डाल दी और मेरे होठों को चूसने लगे.

सासुमाँ हंस के बोली, "क्यों जी, बहु को देखकर तो तुम नये दूल्हे की तरह ठरक गये हो!"
"अपनी मीना बहु, माल ही कुछ ऐसी है!" ससुरजी बोले और अपने हाथों से ब्लाउज़ के ऊपर से मेरी चूचियों को दबाने लगे. "बुड्ढों के भी लन्ड खड़ा कर देती है!"

मैने भी प्यार से ससुरजी के होठों को पिया और पूछा, "वीणा, कैसी है, बाबूजी?"
"वीणा अच्छी है. तेरे लिये एक चिट्ठी भेजी है." ससुरजी बोले, "कल रात आयी थी मेरे कमरे मे. एक बार अच्छे से चोद दिया उसे. मेरे छोटी भांजी नीतु भी काफ़ी खिल गयी है. हो न हो चुदवा रही है किसी से गाँव मे. मन हुआ चोद लूं उसे भी, पर मौका नही मिला."

तुम्हारे मामाजी और मैं चुम्मा-चाटी कर रहे थे, के मैने देखा सासुमाँ ने अपनी साड़ी उतार दी. फिर हमारे प्यार को देखते हुए अपनी ब्लाउज़, ब्रा, पेटीकोट उतारने लगी. हमे बोली, "तुम लोग भी कपड़े उतार लो! फिर आराम से करो जो करना है."

उधर सासुमाँ पूरी नंगी हो गयी और इधर ससुरजी ने भी उठकर अपनी लुंगी और बनियान उतार दी और नंगे हो गये. उनका काला, मोटा लौड़ा तन चुका था. सासुमाँ उनके लन्ड को मुंह मे लेकर चूसने लगी.

मैने भी अपनी साड़ी उतारी और फिर ब्लाउज़ उतारी. अपनी ब्रा उतारने गयी तो, सासुमाँ बोली, "बहु, ब्रा क्यों पहनती है? कपड़े कुछ कम पहना कर."
"माँ ब्रा नही पहनुंगी तो मेरे दूध हमेश छलकते रहेंगे." मैने कहा.
"तो छलके ना!" सासुमाँ बोली, "इतने सुन्दर दूध हैं तेरे, सबको दिखाया कर. और चड्डी तो नही पहनती ना तु?"
"नही, माँ." मैने कहा, "चड्डी पहननी तो मैने शादी के बाद ही छोड़ दी थी. आपके बेटे तो जब भी मौका मिले मेरी साड़ी उठाकर मेरी चूत मे अपना लौड़ा पेल देते हैं."

ससुरजी सासुमाँ को लौड़ा चुसवाते हुए बोले, "मेरा बस चले तो अपनी सुन्दर बहु को मैं एक ब्रा और एक पेटीकोट मे रखूं, ताकि जब जी चाहे उसे पटक के चोद सकूं."
"वह दिन भी आयेगा." सासुमाँ बोली, "थोड़ा इंतज़ार करो."
तब तक मैने भी अपनी पेटीकोट उतार दी थी और सासुमाँ के साथ बैठकर तुम्हारे मामाजी का लौड़ा चूसने लगी. हम सास-बहु बारी बारी उनका लन्ड चूस रहे थे और बीच बीच मे एक दूसरे के होंठ भी पी रहे थे.

"तो कौशल्या, यहाँ का हाल बताओ." ससुरजी मेरे मुंह मे अपना लन्ड पेलते हुए बोले. "किशन के साथ बहु की कोई बात बढ़ी?"

मैं ससुरजी का लन्ड चूस रही थी और सासुमाँ मेरे नंगी चूत को सहला रही थी. वह बोली, "आज बात बनने ही वाली थी कि तुम मेहसाना से लौट आये और कबाब मे हड्डी बन बैठे! और आधा घंटा मिलता तो बहु किशन के नीचे होती. मैं दरवाज़े के बाहर से दोनो को देख रही थी. कितने कामुक लग रहे थे अध-नंगी भाभी और ठरकी देवर!"
मैने सासुमाँ को लौड़ा चूसने दिया और कहा, "पर माँ मैने उसके लौड़े को हाथ लगया था कि उसने अपना पानी छोड़ दिया."

सासुमाँ ने ससुरजी का लौड़ा मेरे मुंह मे दिया और कहा, "बहु, मेरी सुहाग-रात को तुम्हारे ससुरजी मेरी चूत मे लन्ड घुसाने की कोशिश मे दो दो बार झड़ गये थे. तीसरी कोशिश मे जाकर वह मेरी चूत की झिल्ली फाड़ पाये थे! पर अब देखो, घंटे भर पेल सकते हैं. मैं झड़ झड़ के पस्त हो जाती हूँ, पर यह नही थकते. बहु, अगली बार जब किशन के पास जायेगी तो उसका लन्ड चूसकर एक बार उसका पानी निकाल देना. फिर चुदवाना उससे."
"ठीक है माँ." मैने कहा.

अब तुम्हारी मामाजी बिस्तर पर लेट गयी और मुझे उनकी चूत चाटने को कहा. मैने अपनी चूत उनके मुंह पर दी और उनकी मोटी बुर को चाटने लगी. ससुरजी मेरे चूतड़ों के पीछे आये और उन्होने मेरे कमर को पकड़कर अपना लौड़ा मेरी चूत मे ठूंस दिया. मैं सासुमाँ की चूत चाट रही थी और ससुरजी मुझे कुतिया बनाकर पीछे से चोद रहे थे. बहुत मज़ा आने लगा इस तरह चुदने मे.

ससुरजी बोले, "बहु, गुलाबी का क्या कर रही हो? मैं तो बेकरार हूँ उसे चोदने के लिये."
मैं पीछे से ससुरजी के धक्के खाते हुए बोली, "लड़की आ रही है लाईन पर, बाबूजी...पर पूरा पटने मे थोड़ा वक्त लगेगा."
"बेचारी गुलाबी है बहुत शर्मिली." सासुमाँ बोली, "इतनी जल्दी हमारी बहु की तरह रंडी कैसे बन जायेगी?"
"कुछ करो, बहु!" ससुरजी मेरी चूत मारते हुए बोले, "एक दो दिन मे उसे पटाकर मुझसे चुदवा दो."
"मैं कोशिश कर रही हूँ, बाबूजी." मैने कहा.

ससुरजी की ठुकाई से मेरी मस्ती छूटने लगी थी. मैं सासुमाँ के बुर मे अपना मुंह घुसा के चाट रही थी और अपनी चूत मे लन्ड ले रही थी. मैं "ऊंह!! आह!! उम्म!!" की आवाज़ें निकालने लगी.

सासुमाँ भी हाथों से मेरे सर को अपनी चूत पर दबा रही थी और कह रही थी, "चाट, बहु, चाट! हाय क्या रंडी बहु है हमारी! उम्म!! चाट अच्छे से! सुनो जी, जल्दी से बहु को झाड़ो और फिर मेरी चुदाई करो!"

"मैं बस झड़ने वाली हूँ, माँ!" मैने हांफ़ते हुए कहा. "आह!! बाबूजी, थोड़ा जोर से ठोकिये मुझे! अपनी कुतिया को अच्छे से चोदिये. दो दिन से कोई लौड़े नही ली हूँ! आह!! और जोर से, बाबूजी!! हाय मैं झड़ रही हूँ!! ऊह!! आह!! ओह!!"

मैं झड़ कर सासुमाँ के जिस्म पर गिर पड़ी और अपनी गीली चूत उनके मुंह पर रख दी. वह मेरी चूत के चाटने लगी.

अब ससुरजी मेरी सासुमाँ के फैले हुए टांगों के बीच आये और अपना मोटा खड़ा लन्ड सासुमाँ की चूत पर रखा. मैने उनका लन्ड पकड़ा और अपने मुंह मे ले लिये और चूसने लगी. उनका लन्ड मेरी चूत के रस से चिपचिपा हो रहा था, पर मुझे चूसने मे बहुत स्वाद आया.

सासुमाँ बोली, "अरी छिनाल! मेरे मरद का लौड़ा खुद ही चूसती रहेगी या मुझे भी लेने देगी?"
"देती हूँ, माँ!" मैने हंसकर कहा और ससुरजी का लन्ड पकड़कर सासुमाँ के मोटी बुर पर रखा. ससुरजी ने सासुमाँ के पैर पकड़कर एक जोरदार धक्का अपने कमर का लगया और पूरे 8 इंच सासुमाँ की भोसड़ी मे पेल दिया.

"आह!! क्या आराम मिला!" सासुमाँ बोली.

ससुरजी अपना लौड़ा सासुमाँ की चूत मे पेलने लगे. सासुमाँ मुझे जकड़े हुए थीं और मेरी चूत को चाटे जा रही थी. साथ ही अपनी कमर उठा उठाकर ससुरजी का लन्ड ले रही थी. मेरी आंखों के बिलकुल करीब ससुरजी का लन्ड पिस्टन की तरह सासुमाँ की चूत के अन्दर बाहर हो रहा था.

"कौशल्या, तुम्हारा कुछ काम बन रहा है या नही?" ससुरजी पेलते हुए बोले.
"शायद बन रहा है, जी." सासुमाँ ठाप लेती हुई बोली, "10-12 दिनो से...बलराम को कोई चूत नही मिली है....हाय क्या पेल रहो हो!..उसने गुलाबी का बलात्कार करने की कोशिश की थी...उफ़्फ़!! पर लड़की ने घाँस नही डाली....आह!! अब दो दिन से...बहु की चूत भी...उसे नही मिली रही है...बहुत भड़का हुआ है...आह!! चोदने को मिले...तो वह बकरी भी चोद लेगा...ऐसी हालत है उसकी."

"मैं समझ सकता हूँ." ससुरजी हंसकर बोली, "जिस आदमी को चुदाई की लत हो...उसे चूत मिलनी बंद हो जाय तो वह चूत के लिये कुछ भी कर सकता है. रिश्ते-नाते सब भूल सकता है वह."
"मैं उसका यही हाल करना चाहती हूँ." सासुमाँ बोली, "ओह!! थोड़ा और जोर से पेलो जी...हाँ अब ठीक है...ऊह!! रोज़ बलराम को बहु और गुलाबी अपने जलवे दिखाती हैं... वह हाथ लगा सकता है पर...उन्हे चोद नही सकता...आह!!...अब तो जब मैं उसके कमरे मे जाती हूँ...वह मेरे चूचियों को...बहुत हसरत भरी निगाहों से देखता है."
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