मेले के रंग सास, बहु, और ननद के संग
10-08-2018, 01:19 PM,
#91
RE: मेले के रंग सास, बहु, और ननद के संग
मै कमर उठा उठाकर रामु से चुदवा रही थी. रामु मेरे ऊपर लेटकर मेरे नर्म होठों को पी रहा था. उसके मुंह से बीड़ी और शराब की महक आ रही थी, पर मुझे उस समय एक नौकर से चुदने मे बहुत मज़ा आ रहा था.

मैने अपने चारों तरफ़ नज़र डालकर देखा.

गुलाबी को अब होश आ गया था. वह नंगी बैठकर शराब पी रही थी और अपने पति से मेरी चुदाई देख रही थी.

भाभी अभी भी पस्त होकर पड़ी थी, पर मामाजी उस पर चढ़कर उसे चोद रहे थे. वह बस लेटे लेटे लन्ड ले रही थी.

किशन बैठकर शराब पी रहा था.

बलराम भैया लेटे हुए थे. उनका लन्ड तन का खड़ा हो चुका था जिस पर मामीजी चढ़ी हुई थी. वह अपने बेटे का लन्ड अपनी चूत मे ले रही थी और मस्ती मे कराह रही थी.

विश्वनाथजी का लन्ड अब सुस्त हो चुका था, पर तब भी 7-8 इंच का लग रहा था.

और अमोल सबकी वीडिओ बना रहा था.

तभी विश्वनाथजी उठकर आये और मेरे मुंह के पास बैठकर बोले, "वीणा, ज़रा मेरा लन्ड चूसकर खड़ा कर दे, बेटी."

ऐस प्रस्ताव मैं छोड़ने वाली नही थी. उनके लन्ड को पकड़कर मैने अपने मुंह मे ले लिया और मज़े लेकर चूसने लगी. मेरा मुंह उनके लौड़े से भर गया. लन्ड पर भाभी और गुलाबी के चूतों का रस लगा हुआ था और विश्वनाथजी का वीर्य भी. चूसने मे बहुत स्वाद आ रहा था.

नीचे रामु मेरे पैर पकड़कर मुझे चोदे जा रहा था. जल्दी ही विश्वनाथजी का लन्ड तनकर लोहे की तरह सख्त हो गया. 10 इंच का वह हथौड़ा मेरे मुंह मे आधा भी नही समा रहा था.

रामु हुमच हुमचकर मुझे और 10-15 मिनट पेलता रहा. मैं विश्वनाथजी का लन्ड चूसते हुए बीच मे एक बार झड़ भी गयी.

तभी अचानक मुझे जोर जोर से ठोकते हुए रामु झड़ने लगा. मेरी चूत मे उसका वीर्य गिरने लगा. "आह!! आह!! आह!! आह!!" करके वह लंबे लंबे धक्के लगाने लगा और अपना पानी छोड़ने लगा.

रामु झड़ गया तो मेरे ऊपर से हटकर बैठ गया.

मैने अपने मुंह से विश्वनाथजी का लन्ड निकाला और कहा, "विश्वनाथजी, अब मेरी बारी है आपके हबशी लन्ड को लेने की."
"हाँ, वीणा. मैं भी तुझे चोदना चाहता हूँ. बहुत दिन हो गये हैं, तेरी चूत को मारे हुए." विश्वनाथजी बोले.

विश्वनाथजी मेरे पैरों के बीच आये. मेरी चूत से रामु का वीर्य बह रहा था. मेरी गांड के नीचे गद्दा तो गीला हो चुका था क्योंकि मेरी चूत से बलराम भैया और किशन का वीर्य भी निकला था.

विश्वनाथजी ने अपना टमाटर जैसा सुपाड़ा मेरी चूत पर रखा और मेरी चूत मे दबाने लगे. रामु की चुदाई से मेरी चूत चौड़ी हो चुकी थी, पर विश्वनाथजी के मूसल के लिये तैयार नही थी.

"विश्वनाथजी, ज़रा धीरे घुसाइये!" मैने विनती की, "मै आज बहुत दिनो बाद चुद रही हूँ."

विश्वनाथजी मुस्कुराये और कमर के धक्के से मेरी चूत मे अपना गधे जैसे लन्ड घुसाने लगे. मेरी चूत का भोसड़ा बनने मे कोई कमी थी तो वह उस दिन पूरी हो गयी. उनका लौड़ा मेरी चूत को पूरी तरह चौड़ी करके अन्दर समाने लगा. मैं सांस रोक कर पड़ी रही, पर लन्ड जैसे खतम ही नही हो रहा था. जब लन्ड पेलड़ तक घुस गया तो मुझे लगा जैसे मैं अन्दर से बुरी तरह भर गयी हूँ. हालांकि सोनपुर मे मैं विश्वनाथजी से बहुत चुदवाई थी, इतने दिनो बाद उनका लन्ड लेने मे एक नयापन था.

जब मेरी सांसें काबू मे आयी तो मैने कहा, "विश्वनाथजी, अब चोदिये मुझे जी भर के!"

विश्वनाथजी अब मुझे चोदने लगे. अपने लन्ड को मेरी चूत से खींचकर निकालते, फिर पूरा अन्दर पेल देते. हर धक्के मे इतना सुख मिल रहा था कि मेरी जान ही निकली जा रही थी. मेरी आंखें पलट जा रही थी. सांसें बेकाबु हो रही थी. पूरा शरीर मस्ती मे कांप रहा था. मैं जोर जोर से "आह!! आह!! आह!!" करने लगी और विश्वनाथजी के धक्कों का मज़ा लेने लगी.

मेरे बगल मे मामाजी अपनी बहु को चोदते हुए झड़ने लगे. पर भाभी विश्वनाथजी से चुदकर इतनी थक गयी थी कि अपने ससुर के नीचे पुतले की तरह पड़ी रही.

उधर मामीजी बलराम भैया पर चढ़कर चुदे जा रही थी.

अमोल विश्वनाथजी के लौड़े से मेरी चूत के सत्यानाश का वीडिओ बना रहा था.

मैने उसे कहा, "अमोल, शादी के बाद...मै विश्वनाथजी को...घर पर बुलाऊंगी...आह!! और उनसे...ऐसे ही...उम्म!! ...चुदवाऊंगी...आह!! तुम कुछ नही कहना!! मैं उनके लौड़े के बिना...जी नही सकती!!"

अमोल एक हाथ से अपना लन्ड सहला रहा था और दूसरे हाथ मे कैमेरा पकड़कर मेरी वीडिओ बना रहा था.

विश्वनाथजी एक मन से मुझे पेलते जा रहे थे.

और 4-5 मिनट की चुदाई के बाद मैं अपना आपा पूरी तरह खो बैठी. मुझे चूत मे इतना सुख मिल रहा था कि मैं विश्वनाथजी को जकड़कर, उनकी पीठ मे अपने नाखुन गाढ़कर झड़ने लगी. मेरी आंखे पलट गयी और मैं चरम आनंद मे बेहोश हो गयी. चुदाई का ऐसा सुख मुझे सोनपुर मे भी नही मिला था.

जब मुझे होश आया तो देखा विश्वनाथजी मामीजी पर चढ़कर उन्हे चोद रहे थे. बलराम भैया अपनी माँ की चुदाई देख रहे थे और शराब पी रहे थे. भाभी उठ गयी थी और अपने देवर के बाहों मे नंगी बैठी अपनी सास की चुदाई देख रही थी और शराब पी रही थी.

गुलाबी शराब की एक बोतल लेकर बैठी थी और उसमे मुंह लगाकर सीधे बोतल से पी रही थी. वह अब तक नशे मे धुत्त हो चुकी थी. इतनी छोटी सी लड़की न जाने कैसे इतनी बड़ी शराबी बन गयी थी.

मामाजी ने मुझे उठाया और मेरे हाथ मे शराब की एक गिलास देकर बोले, "ले बेटी, थोड़ी पीकर गला तर कर. बहुत बुरी तरह झड़ी है आज तु!"
"नही, मामाजी!" मैने एक घूंट लेकर कहा, "मेरी चुदास अभी मिटी नही है!"
"नही आज के लिये बस कर. चार-चार लन्ड ले चुकी है तु."
"नही, मामाजी!" मैं उनके नंगे बदन से लिपटकर बोली, "अभी तो मुझे अपने अमोल से भी चुदवाना है!"

पर अमोल मामी की चुदाई की वीडिओ बना रहा था. विश्वनाथजी के मोटे लन्ड के जादू से मामीजी भी झड़ने लगी. विश्वनाथजी भी मामीजी को चोदते हुए झड़ने लगे.


सब लोग झड़ कर शांत हो गये तो सब ने शराब की एक एक और गिलास पी. सब नंग-धड़ंग बैठे थे. औरतों की चूतों से मर्दों का वीर्य बह रहा था. सबके शरीर को झड़कर आराम मिल गया था.

मामीजी, जो कि काफ़ी नशे मे थी, बोली, "चलो सब खाना खा लेते हैं. बहुत रात हो चुकी है. गुलाबी, जा रसोई मे और खाने की मेज पर खाना लगा."
"जाते हैं, म-मालकिन!" गुलाबी लड़खड़ाती आवाज़ मे बोली. वह शराब की बोतल लेकर उठने लगी तो उसके पैरों ने जवाब दे दिये. वह फिर बैठ गयी और फिर बोतल को मुंह मे लगाकर शराब पीने लगी.

"माँ, गुलाबी को छोड़िये." भाभी बोली, "यह बेवड़ी तो पूरी टुन्न हो गयी है. मैं जाती हूँ."
"मै भी आती हूँ, भाभी!" मैने कहा.

भाभी और मैं नंगे ही डगमगाते हुए रसोई मे चले गये.

"रामु, अपनी जोरु को समझा," मामीजी बैठक मे बोल रही थी, "यह तो पूरी शराबी बन गयी है. दिन रात शराब पीती रहती है. घर का काम भी शराब पीकर करती है."
"हम का करें, मालकिन!" रामु कह रहा था, "ई अब हमरी कोई बात ही नही सुनती है. जिससे मर्जी चुदवाती है. जब चाहे सराब पीती है."
"चुदवाती है तो चुदवाने दे." मामीजी बोली, "आखिर उस पर घर के मर्दों का भी हक है. पर तु अपने कमरे मे शराब रखनी बंद कर. जब कोई दावत हो तो तेरे मालिक विलायती शराब ला देंगे. तब उसे जितनी पीनी हो पी लेगी."
"ठीक है मालकिन." रामु बोला.

मैने भाभी से पूछा, "भाभी, गुलाबी की उम्र क्या है?"
"18-19 साल की ही है." भाभी हंसकर बोली, "पहले बहुत भोली थी. न शराब पीती थी, न लन्ड चूसती थी, न किसी पराये मर्द से चुदवाती थी. पर सब ने उसे चोद चोदकर पूरी रंडी बना दिया है. अब तो वह हर रोज़ पी पीकर सबसे चुदवाती है."
"यानी उसके बचने की कोई उम्मीद नही है..."
"ननद रानी, तुम तो अच्छी तरह जानती हो - लन्ड और दारु की लत छूटे नही छूटती" भाभी हंसकर बोली.

भाभी और मैने मेज पर खाना लगाया. एक तो नशे मे सब की हालत खराब थी. दूसरे हमे नंगे रहने मे बहुत मज़ा आ रहा था. सब लोग नंगे ही खाने बैठ गये. गुलाबी ने उस रात खाना नही खाया. वहीं गद्दे पर नशे मे धुत्त होकर नंगी सो गयी.

सब लोग खाना खा चुके तो अपने अपने कमरों मे जाने लगे.

मामा और मामीजी अपने कमरे मे चले गये. किशन अपने कमरे मे चला गया. बलराम भैया अकेले ही अपने कमरे मे चले गये. अमोल भी अपने कमरे मे चला गया. 

रामु घर की सारी बत्तियां बुझा रहा था. विश्वनाथजी भाभी का हाथ पकड़कर अपने कमरे मे ले जा रहे थे. दोनो पूरी तरह नंगे थे और एक दूसरे का सहारा लेकर डगमगाते हुए चल रहे थे. शायद विश्वनाथजी का भाभी को एक और बार चोदने का इरादा था.
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10-08-2018, 01:19 PM,
#92
RE: मेले के रंग सास, बहु, और ननद के संग
भाभी नशे मे झूमती हुई मुझे बोली, "ननद रानीजी! तुम अमोल के कमरे मे जाओ. मेरा भाई अपनी होने वाली पत्नी का इंतज़ार कर रहा है."
"जाती हूँ, भाभी!" मैं खुश होकर बोली.
"अब से तुम अमोल के कमरे मे ही सोना. बिलकुल पति-पत्नी की तरह." भाभी बोली, "और उससे जितना मन हो चुदवाना."
"ठीक है भाभी." मैने कहा.

विश्वनाथजी भाभी का हाथ पकड़कर खींचते हुए बोले, "अरी चल ना! वीणा को कुछ सिखाने की ज़रुरत नही है. तु चल मेरे साथ."
"आपका लन्ड और खड़ा होगा आज?" भाभी ने उनके मुरझाये लन्ड को पकड़कर हिलाया और पूछा.
"खड़ा हुआ तो तेरी गांड मे डालूंगा." विश्वनाथजी बोले, "और नही हुआ तो तेरी नाज़ुक जवानी को बाहों मे लेकर सोऊंगा."
"बाप रे! फिर तो लन्ड खड़ा ना हो यही अच्छा है!" भाभी बोली.

फिर वह विश्वनाथजी से लिपटकर डगमगाते हुए उनके कमरे मे सोने चली गयी.


अमोल अपने कमरे मे नंगा लेटा था. उसका लन्ड तनकर खड़ा था. कमरे मे एक नीली बल्ब जल रही थी. मैं कमरे मे नंगी घुसी और पलंग पर चढ़कर उससे लिपट गयी.
"मेरे जान!" मैं उसे चूमकर बोली.
"अब तो सब से चुदवा चुकी हो. अब ज़रा अपने होने वाले पति का भी हक अदा करो." वह बोला और मेरी चूचियों को मसलने लगा.

मैं शाम से चार-चार मर्दों से चुदवा चुकी थी, पर अमोल की बाहों मे आकर मुझे फिर चुदास चढ़ने लगी. क्योंकि पूरा माहौल ही इतना रोमानी था.

अमोल से अभी मेरी शादी नही हुई थी. पर हम अबसे रोज़ रात को पति-पत्नी की तरह सोने वाले थे और जी भरके चुदाई करने वाले थे. अमोल के या मेरे घरवाले हमे इसकी इजाज़त बिलकुल नही देते, पर मेरे मामाजी के घर पर हमे पूरी इज़ाजत थी.

अमोल और मैं एक दूसरे के नंगे जिस्मों से लिपटकर संभोग मे डूब गये. होठों से हमारे होंठ जुड़ गये थे. हमारे हाथ एक दूसरे के शरीर पर फिर रहे थे. हमारे यौनांग एक दूसरे के यौनांग से रगड़ रहे थे. मेरे नर्म चूचियां उसके कठोर सीने से चिपकी हुई थी. शराब और प्यार का नशा हम दोनो पर चढ़ा हुआ था.

यूं ही प्यार करते करते जाने कब अमोल मेरे ऊपर चढ़ गया और मेरी बुरी तरह चुदी हुई चूत मे अपना लन्ड घुसाकर पेलने लगा. मैं भी कमर उठा उठाकर उसके धक्कों का जवाब देने लगी. हमारी सांसें तेज हो गयी. हम पसीने-पसीने होने लगे. जिस्म से जिस्म और चूत मे लन्ड रगड़ खा रहे थे.

अपने साजन की बाहों मे ऐसी मस्ती पाकर मैं झड़ने लगी. और मर्दों का लन्ड चाहे जितना भी बड़ा और मोटा हो, अपने आदमी से चुदवाकर एक अलग ही मज़ा आता है.

अमोल भी मेरी चूत की गहरायी मे लन्ड डाले झड़ने लगा और मुझ पर लेट गया. अपने चूत मे अमोल के लन्ड को लिये मैं उसके नीचे सो गयी. मुझे याद नही वह मेरे ऊपर से कब उतारा.

दावत के बाद के कुछ हफ़्ते जैसे एक सपने की तरह गुज़रे. घर मे हम सब तरह की अश्लीलता करते थे. कभी अध-नंगे होकर मर्दों को रिझाते थे तो कभी नंगे होकर चुदवाते थे. कभी बैठक मे, कभी कमरों मे, कभी आंगन मे, तो कभी खेत मे, हम अलग अलग साथी के साथ चुदाई करते थे. किसी किसी दिन दावत होती थी तो हम सब शराब पीकर सामुहिक चुदाई करते थे.

हमारी चुदाई की वीडिओ बनायी जाती थी, जिसे हम बाद मे मज़े लेकर देखते थे. खुद को टीवी पर चुदवाते हुए देखकर बहुत ही चुदास चढ़ती थी. मैं दिन मे विश्वनाथजी, मामाजी, बलराम भैया, किशन, या रामु से चुदवाती थी. पर रात को अमोल के साथ उसकी पत्नी की तरह सोती थी. हमे एक दूसरे से बेइंतेहा प्यार हो गया था.

इधर मेरा, भाभी, गुलाबी, और मामीजी का पेट भी काफ़ी बड़ा हो गया था. देखकर साफ़ लगता था कि हम सब गर्भवती हैं. भाभी, गुलाबी, और मामीजी पर तो कोई उंगली नही उठा सकता था क्योंकि वह तीनो शादी-शुदा हैं. पर मैं गाँव मे किसी से नही मिलती थी वर्ना सब सोचते कि मेरा पेट कैसे ठहर गया.

वैसे आजकल मर्दों को हमे चोदकर बहुत मज़ा आ रहा था. हमारे गर्भ मे ना जाने किसका बच्चा था. यही सोचकर उन सबको बहुत उत्तेजना होती थी. वह हमारे मोटे बुर मे लन्ड घुसाकर, हमारे भारी पेट पर चढ़कर हमारी चुदाई करते थे. इस हालत मे हमारी वीडिओ भी बनायी जाती थी जो देखकर बहुत ही अश्लील लगती थी.

अब मेरी शादी को तीन ही हफ़्ते बचे थे. विश्वनाथजी एक दिन हम सब से विदा लेकर सोनपुर लौट गये. उसी दिन मामाजी के पास मेरे पिताजी की चिट्ठी आयी. उन्होने लिखा कि वीणा को अब घर वापस भेज दो. उसे शादी के लिये तैयार होना है.

सुनकर मैं उदास हो गयी. घर जाकर तो मुझे एक भी लन्ड नही मिलेगा. मैं अपने चुदाई की लत को कैसे पूरी करुंगी? मोटे मोटे लन्ड लिये बिना तो मेरे लिये एक दिन भी जीना मुश्किल था.

भाभी बोली, "ननद रानी, तुम चुदाई की छोड़ो! यह सोचो कि इतना बड़ा पेट लेकर तुम अपने घर कैसे जाओगी? तुम्हारे माँ-बाप क्या कहेंगे? पूछेंगे नही कि तुम्हारे पेट मे किसका बच्चा है?"
"कह दूंगी अमोल का है." मैने कहा.
"इससे तुम्हारे मामाजी की बहुत बदनामी होगी." भाभी बोली, "तुम्हारे माँ-बाप कहेंगे तुम्हारे मामा ने अपने घर पर उनकी अनब्याही बेटी को चुदवाने का मौका दिया."

"ऐसा कुछ नही होगा, भाभी!" मैने कहा, "अमोल मेरा गर्भ गिराने ले जायेगा."
"कहाँ?"
"वह हाज़िपुर मे एक डाक्टर को जानता है." मैने कहा.

"हाय राम!" भाभी अपने माथे पर हाथ रखकर बोली, "पागल हो तुम? हाज़िपुर मे सब तुम्हारे मामाजी को जानते हैं. तुम वहाँ गर्भपात करवाने जाओगी तो उनकी इतनी बदनामी होगी कि पूछो मत! हम सबको गाँव छोड़ना पड़ेगा!"
"मामाजी को ही जानते हैं ना. मुझे तो नही!" मैने कहा, "और कोई अमोल को भी नही जानता है. हम कह देंगे हम दूसरे किसी गाँव से आये हैं."

"हूं." भाभी सोचकर बोली, "पर गुलाबी, मै, या मामीजी तो वहाँ नही जा सकते. हाज़िपुर के सब डाक्टर हमे जानते हैं. ऊपर से सवाल उठेगा हम शादी-शुदा होकर पेट क्यों गिराना चाहते हैं."
"तो तुम लोग क्या करोगी?" मैने पूछा.
"बच्चा देना ही पड़ेगा, चाहे बच्चा किसी का भी हो." भाभी बोली, "तुम्हारे भैया, रामु, या ससुरजी को तो कोई आपत्ती नही कि हम हराम के बच्चे को जनम देंगे."
"पर तुम आगे क्या करोगी?" मैने कहा, "सबसे चुदवाकर बार-बार पेट तो नही बना सकती हो?"
"तब की तब देखी जायेगी!" भाभी मुस्कुराकर बोली.

उस रात चुदवाते हुए मैने अमोल से ज़िद की कि वह अगले ही दिन मेरा गर्भ गिराने ले जाये. हालांकि उसे मेरे गर्भवती अवस्था मे चोदने और चुदाने मे बहुत मज़ा आता था वह राज़ी हो गया.


अगले दिन नाश्ते के बाद अपनी साड़ी को ढीली करके पहनकर मैं अमोल के साथ हाज़िपुर के लिये निकली. अमोल तांगे को हाज़िपुर स्टेशन के पीछे एक गली मे ले गया. गली मे एक डाक्टर मिश्रा के दवाखाने की बोर्ड लगी थी.

मैने अमोल का हाथ पीछे खींचकर कहा, "अमोल, मुझे यह कहाँ ले आये हो? मैं यहाँ बचपन मे मामाजी के साथ कई बार आयी हूँ!"
"मै तो बस इसी डाक्टर को जानता हूँ." अमोल ने कहा.
"यह डाक्टर मुझे पहचान लेगा!" मैने कहा, "फिर सोचो मामाजी की इज़्ज़त का क्या होगा!"
"नही पहचान सकेगा तुम्हे." अमोल मुझे खींचकर अन्दर ले जाते हुए बोला, "तुम तब बच्ची थी. अब तुम एक औरत बन गयी हो. ऊपर से तुम्हारा पेट बड़ा हो गया है."

मुझे अमोल दवाखने के अन्दर ले गया.

डाक्टर के कमरे के बाहर कुर्सी पर एक बुड्ढी औरत बैठी खांस रही थी. मुझे देखकर बोली, "बेटी, तबियत खराब है?"
"जी." मैने जवाब दिया.
"और पेट से भी हो?"
"न-नही तो!" मैने झट से कहा और अमोल की तरफ़ देखने लगी.
"अपने पति से शरमा रही हो?" बुढ़िया बोली, "अरे बच्चे तो भगवान की देन होते हैं!"

मैं बुढ़िया को कोसते हुए मन ही मन बोली, यह बच्चा भगवान की देन नही है. यह तो विश्वनाथजी और उनके चार बदमाश दोस्तों की देन है.

बुढ़िया डाक्टर दिखाकर चली गयी तो अमोल मुझे लेकर डाक्टर के कमरे मे गया.


डाक्टर मिश्रा एक अधेड़ उम्र के मोटे ताजे हंसमुख व्यक्ति थे. सर के बाल कुछ उड़ चुके थे और बाकी पक चुके थे. चेहरे पर आधी पकी हुई घनी मूंछे थी.

चश्मे के ऊपर से मुझे देखकर डाक्टर साहब बोले, "इधर बैठो, बेटी. क्या तकलीफ़ है?"

मेरे जवाब देने से पहले ही अमोल बोला, "डाक्टर साहब, वो बात यह है कि..."

डाक्टर साहब अमोल को गौर से देखकर बोले, "तुमको तो मैं पहले भी एक दो बार यहाँ देख चुका हूँ, है ना?"
"जी." अमोल ने जवाब दिया.
"कुछ महीनों पहले तुम एक स्कूल की लड़की को लेकर आये थे. एक मुसलमान लड़की थी. साथ मे उसकी माँ भी थी." डाक्टर साहब याद करके बोले, "और उससे पहले एक कामवाली को लेकर आये थे."
"जी उसी बारे मे..." अमोल बोलने लगा.
"क्यों करते हो यह सब गंदा काम?" डाक्टर साहब थोड़े रोश मे बोले, "अब न जाने किस बेचारी को बर्बाद करके यहाँ लाये हो. तुम बड़े बाप के ऐयाश बेटों को तो जेल होनी चाहिये."

सुनकर मुझे हंसी भी आ रही थी और शरम भी. बेचारा अमोल! मेरा गर्भ किसी और ने बनाया था और डांट उसे सुननी पड़ रही थी. वैसे यह स्कूल की मुसलमान लड़की कौन है? और वह अपनी माँ के साथ गर्भपात करवाने क्यों आयी थी? मुझे भाभी से पूछना पड़ेगा, मैने मन ही मन तय किया.

"जी आप मेरी बात सुनिये तो..." अमोल ने कहा.
"बोलो."
"डाक्टर साहब, इसका भी गर्भ गिराना है." अमोल ने कहा.
"वह तो मैं समझ ही गया हूँ. तुम जैसे लोग मेरे पास अपने पापों को धोने ही आते हो." डाक्टर साहब बोले, "पर तुम मेरी फ़ीस तो जानते ही हो."
"जी मैं रुपये लेकर ही आया हूँ." अमोल ने कहा.
"तुम तो जानते हो ऐसे मामलों मे मैं सिर्फ़ रुपये ही नही लेता हूँ." डाक्टर साहब बोले.
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10-08-2018, 01:20 PM,
#93
RE: मेले के रंग सास, बहु, और ननद के संग
मुझे उनकी बात कुछ समझ नही आयी.

"यह वैसी लड़की नही है, डाक्टर साहब! इसलिये मैं पूरे रुपये लेकर आया हूँ." अमोल बोला, "पिछली बार मेरे पास पूरे रुपये नही थे इसलिये मुझे...दूसरी तरह से...भुगतान करना पड़ा था..."

"बात सिर्फ़ रुपयो की नही है, बेटे." डाक्टर साहब ने अमोल को टोक कर कहा, "जो औरतें शादी से पहले या फिर शादी के बाहर अपना मुंह काला करके गर्भवती हो जाती हैं, वह अच्छे चरित्र की तो होती नही है. है कि नही?"
"जी."
"जब वह तुम्हारी हवस मिटा सकती हैं तो किसी और की भी हवस मिटाने मे उन्हे कोई आपत्ती नही होनी चाहिये. क्यों?" डाक्टर बोले, "इसलिये मैं अपनी फ़ीस सिर्फ़ रुपयों मे नही लेता."

मुझे समझ मे नही आ रहा था वह कहना क्या चाहते हैं. मैने अमोल के कान मे पूछा, "डाक्टर साहब पूरे पैसे क्यों नही ले रहे हैं?"
अमोल फुसफुसाया, "साला ठरकी गर्भ गिराने के बदले लड़कियों की इज़्ज़त भी लूटता है. पहले मैं जिन तीन औरतों को यहाँ लाया था इसने उनके साथ भी मुंह काला किया था."

अब मुझे बात समझ मे आयी. मैने अमोल के कान मे कहा, "तो कर ले ना मेरे साथ मुंह काला. मैं कौन सी दूध की धुली हूँ? जब इतने लन्ड ले लिये तो एक और सही!"

अमोल ने कुछ देर सोचा फिर कहा, "ठीक है, डाक्टर साहब. जैसी आपकी मर्ज़ी."
"यह हुई न बात!" डाक्टर खुश होकर हाथ मलते हुए बोले, "डरो मत, मैं अपनी फ़ीस के रुपये भी कम कर दूंगा. जितना ज़्यादा मज़ा देगी मैं उतनी कम फ़ीस लूंगा."

फिर मेरी तरफ़ देखकर बोले, "क्यों बेटी? तुम्हे तो कोई आपत्ती नही है?"
"आपत्ती हो तो भी मेरे पास चारा ही क्या है?" मैने लाचारी से जवाब दिया, हालांकि उस अधेड़ डाक्टर से चुदवाने की सोच से मेरी चूत गीली होने लगी थी. मैने पूछा, "मुझे क्या करना होगा?"
"करुंगा तो मै. तुम बस मेरे साथ उधर चलो." डाक्टर साहब ने पर्दे के पीछे छोटे से लोहे की खाट की तरफ़ इशारा किया जिस पर वह रोगियों का निरीक्षण किया करते थे.

मै कुर्सी से उठकर पर्दे के पीछे चली गयी.

डाक्टर साहब बोले, "अपने सारे कपड़े उतार दो और वहाँ लेट जाओ. मैं अभी आता हूँ."

डाक्टर साहब बाहर गये और बाहर का दरवाज़ा बंद करके अन्दर वापस आये. तब तक मैने अपनी साड़ी उतार दी थी और अपनी ब्लाउज़ के हुक खोल रही थी. अमोल खड़े-खड़े मुझे देख रहा था.

डाक्टर साहब मेरे पास आये और मुझे बाहों मे लेकर बोले, "बहुत सुन्दर हो तुम. किसी अच्छे घर की लगती हो. ऐसे कमीने लड़के के चक्कर मे कैसे पड़ गयी? अब देखो तुम्हे मुझसे भी चुदवाना पड़ेगा."

मैने चुपचाप अपनी ब्लाउज़ उतारी और पास रखे कुर्सी पर रख दी. मैं अपने पेटीकोट का नाड़ा खोल रही थी कि डाक्टर साहब ने मेरी ब्रा उतार दी. मेरा पेटीकोट ज़मीन पर गिर गया और मैं डाक्टर के सामने पूरी तरह नंगी हो गयी.

डाक्टर साहब ने मेरे फूले हुए पेट को हाथ से सहलाया और पूछा, "कितने महीने हुए हैं?"
"जी, ढाई-तीन महीने."
"फिर तो ज़्यादा दिन नही हुए हैं." वह बोले, "मैं दवाई दे दूंगा. सब ठीक हो जायेगा. जाओ खाट पर बैठ जाओ."

मैं नीचे रखी एक तिपाई पर पाँव रखकर खाट पर बैठ गयी.

डाक्टर साहब ने कुछ देर मुझे ऊपर से नीचे तक गौर से देख. मैं शर्म से लाल होने लगी.

मेरे चेहरे पर कुछ देर नज़र डालकर वह अचानक बोले, "तुम गिरिधर चौधरी की भांजी हो ना?"

मेरे चेहरे पर कुछ देर नज़र डालकर डाक्टर साहब अचानक बोले, "तुम गिरिधर चौधरी की भांजी हो ना?"

सुनकर मेरा तो कलेजा मुंह मे आ गया! अमोल का भी यही हाल हो गया.

"न-नही तो!" मैं हड़बड़ा के बोली पड़ी.
"तुम जब छोटी थी तब गिरिधर के साथ मेरे पास कई बार आयी हो!" डाक्टर साहब बोले.

मुझे तब काटो तो खून नही!

"गिरिधर जैसे भले आदमी की भांजी मुंह काला करके मेरे पास गर्भपात कराने आयी है!" डाक्टर साहब बोले, "हे भगवान! गिरिधर की भांजी एक कुलटा निकलेगी कौन सोच सकता था?"

"डाक्टर साहब, आप गलत समझ रहे है!" अमोल जल्दी से बोला.
"तुम चुप रहो!" डाक्टर साहब बोले, "देखो तुमने बेचारी की क्या हालत कर दी है. अब यह पेट गिराने के लिये मुझसे भी चुदवाने को तैयार हो गयी है. मुझे गिरिधर को बताना पड़ेगा उसकी भांजी कैसे लड़के के चक्कर मे फंस गयी है."

"डाक्टर साहब, मेरे मामाजी को कुछ मत बताईये!" मैं गिड़गिड़ाकर बोली.
"क्यों?"
"बात यह है डाक्टर साहब, यह मेरा मंगेतर है. इससे मेरी इसी महीने शादी होने वाली है." मैने कहा.

"ओह तो यह बात है! तुम्हे शादी का भी इंतज़ार नही हुआ. पहले ही चुदवाकर पेट बना ली?"
"जी." मैने धीरे से जवाब दिया. चलो बला टली!

"तो फिर पेट गिराना क्यों चाहती हो?" डाक्टर साहब ने पूछा.
"जी?"
"अगर इस लड़के से तुम्हारी इसी महीने शादी होने वाली है तो तुम अपना गर्भ गिराना क्यों चाहती हो?"

घबराहट मे मुझे कुछ सूझा नही तो मैं बोल बैठी, "क्योंकि यह बच्चा इसका नही है!"
"क्या! फिर किसका है?"
"पता नही." मैने जवाब दिया.

अमोल ने अपना माथा पीट लिया.

डाक्टर ने मुझे ऊपर से नीचे तक देखा, फिर अमोल को कहा, "भाई, तुम कैसी कैसी लड़कियों को मेरे पास लाते हो? उस मुसलमान लड़की और उसकी माँ दोनो का एक साथ गर्भ गिराने लाये थे. अब गिरिधर की भांजी को लाये हो पर बच्चा तुम्हारा नही है. बल्कि बच्चे का बाप कौन है इसे भी नही पता!"

अमोल बोला, "डाक्टर साहब, आपको इससे क्या? आपको जो चाहिये ले लीजिये और हमारा काम कर दीजिये!"
"वह तो मैं लूंगा ही! पर मुझे बहुत उत्सुकता हो रही है, बेटे!" डाक्टर साहब बोले, "मुझे पूरी बात बताओ तभी मैं इसका गर्भ गिराऊंगा. नही तो तुम इसी से शादी करो और एक अवैध बच्चे के बाप बनो!"

कोइ चारा न देखकर मैं कहा, "डाक्टर साहब, बात यह है कि सोनेपुर मे कुछ लोगों ने मेरे साथ जबरदस्ती की थी. मतलब मेरा सामुहिक बलात्कार किया था. उसी से मेरा पेट ठहर गया है."

"तुम इस लड़के को कबसे जानती हो?" डाक्टर ने पूछा.
"जी एक महीना हुआ है." मैने जवाब दिया.
"मतलब, जब तुम इससे मिली, तब तुम्हारा गर्भ ठहर चुका था."
"जी?"
"तुमने इसे बताया था कि तुम पहले से गर्भवती हो?"
"जी नही...म-मतलब हाँ! मैने ब-बताया था." मैने हकलाकर जवाब दिया.
"और यह फिर भी तुमसे शादी करने को राज़ी हो गया?"
"जी. अमोल मुझसे बहुत प्यार करता है." मैने जवाब दिया.

डाक्टर साहब बोले, "देखो बेटी, मैने भी दुनिया देखी है. मैं खूब जानता हूँ कि कोई आदमी किसी पहले से गर्भवती लड़की से शादी नही करता है. या तो तुम दोनो झूठ बोल रहे हो. या फिर दाल मे कुछ काला है."
"नही डाक्टर साहब, मैं सच बोल रही हूँ! हमारी शादी होने वाली है." मैने कहा, "आप चाहे तो मेरे मामाजी से पूछ सकते हैं."
"तुम दोनो अभी कहाँ ठहरे हुए हो?" डाक्टर साहब ने पूछा.
"मेरे मामाजी के पास." मैने जवाब दिया.

सुनकर डाक्टर साहब कुछ देर मुझे देखते रहे. मैने खाट पर पड़े एक तौलिये से अपनी नंगी चूचियों को ढक लिया.

कुछ देर बाद डाक्टर बोले, "तुम कहना चाहती हो कि तुम्हारा गर्भ तीन महीने पहले एक सामुहिक बलात्कार के बाद ठहर गया था. फिर एक महीने पहले इस आवारा बदचलन लड़के से तुम मिली. इसे बताया कि तुम गर्भवती हो. यह फिर भी तुमसे शादी करने को राज़ी हो गया. अब तुम इस गर्भवती अवस्था मे, शादी से पहले, अपने मामा के घर पर ठहरी हुई हो?"

मै बड़ी बड़ी आंखों से उन्हे हैरान होकर देखने लगी.

वह बोले, "मुझे लगता है तुम झूठ तो नही बोल रही हो. पर दाल भी बहुत काली मालूम पड़ रही है."

अमोल बोला, "डाक्टर साहब, आप कृपा करके वीणा का गर्भ गिरा दीजिये ना! हम आपकी पूरी फ़ीस देने को तैयार है."
"हाँ हाँ क्यों नही?" डाक्टर साहब बोले, "फ़ीस तो मैं पूरी लूंगा. चाहे यह गिरिधर की भांजी हो या बहु. लेट जा लड़की खाट पर!"

मै खाट पर नंगी लेट गयी.

डाक्टर साहब मेरे पास आये और अपने पैंट की बेल्ट खोलते हुए अमोल को बोले, "बेटे, तुम्हे बाहर बैठना है या मेरे हाथों अपनी मंगेतर की चुदाई देखनी है?"
अमोल बोला, "मै यही ठीक हूँ, डाक्टर साहब."
"मुझे भी यही लगा रहा था." डाक्टर साहब अपनी पैंट उतारते हुए बोले, "पिछली बार भी जब मैने उसे मुसलमान लड़की, उसकी माँ, और उस कामवाली को चोदा था, तुम खड़े-खड़े मज़ा ले रहे थे."

डाक्टर ने अपनी कमीज़ उतारकर रख दी. अब वह सिर्फ़ एक बनियान और चड्डी मे था. उम्र के साथ उसकी तोंद बाहर आ गयी थी. उसने अपनी चड्डी उतार दी और अपनी बनियान अपने सीने पर चढ़ा ली.

देखने मे उसका ढीला शरीर बिलकुल भी आकर्शक नही था और उसका लन्ड खड़ा भी नही हुआ था. पर मुझे उसे देखकर एक वीभत्स्य किस्म की कामुकता होने लगी.

डाक्टर मेरे मुंह के पास आकर अपना शिथिल लन्ड परोसकर बोला, "बेटी, ज़रा चूस दे मेरा लन्ड. अब वह उम्र नही कि लन्ड अपने आप खड़ा हो जाये. एक ज़माना था जब तेरे जैसी छिनालों को देखकर मेरा लन्ड पैंट फाड़कर बाहर आने को होता था."

मैने उनके ढीले लन्ड को मुंह मे ले किया और चूसने लगी. पहले तो लगा उसमे कोई जान ही नही बची है, पर मेरे चूसने से थोड़ी ही देर मे उसमे जान आने लगी.

"बहुत अच्छा लन्ड चूसती है तु," डाक्टर मेरी तारीफ़ करके बोले, "ऐसी कला एक लन्ड चूसकर तो आती नही है. ज़ाहिर है तु बहुतों का लन्ड चूस चुकी है. सामुहिक बलात्कार! यह बोल अपनी मर्ज़ी से उन सबसे चुदवाई थी."

मै चुपचाप उनका लन्ड चूसती रही. उनका लन्ड अब काफ़ी सख्त हो चुका था. मुझे लग रहा था करीब 6 इंच का लन्ड था और मोटापा साधारण था. मैं उनके ढीले पेलड़ को उंगलियों से सहलाती हुई उनका लन्ड चूसती रही.

जब उनका लन्ड पूरा तनकर खड़ा हो गया वह मेरे मुंह से हट गये और अपने लन्ड को हाथ मे लेकर मेरे पैरों के पास जाकर खड़े हो गये.
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10-08-2018, 01:20 PM,
#94
RE: मेले के रंग सास, बहु, और ननद के संग
फिर मेरे टांगों को पकड़कर उन्होने जोर से अपनी तरफ़ खींचा जिससे मेरी गांड सरक कर खाट के किनारे आ गयी. खाट की ऊंचाई बस इतनी थी कि मेरी चूत डाक्टर के लन्ड के एकदम सामने थी.

डाक्टर साहब ने अपने लन्ड का सुपाड़ा मेरी बुर के फांक मे रखा और ऊपर-नीचे रगड़ने लगे. मुझे लन्ड चूसकर काफ़ी चुदास चढ़ गयी थी. मैं आंखें बंद करके चूत पर लन्ड की रगड़ाई का मज़ा लेने लगी.

डाक्टर साहब ने अमोल को कहा, "इधर आओ और अपनी रखैल को कुछ खाने को दो."
"जी, डाक्टर साहब?"
"अपना लन्ड निकालो, बेटे, और उसे चुसाओ." डाक्टर साहब स्पष्ट करके बोले, "लड़की बहुत चुदासी हो गयी है."

अमोल ने अपनी पैंट और चड्डी उतार दी और मेरे मुंह के सामने अपना खड़ा लन्ड रख दिया. मैने पकड़कर उसे चूसना शुरु कर दिया.

डाक्टर साहब अभी भी मेरी चूत पर अपना सुपाड़ा घिसे जा रहे थे. मुझसे और बर्दाश्त नही हो रहा था. मैने अमोल का लन्ड अपने मुंह से निकाला और विनती करके बोली, "डाक्टर साहब! और मत सताइये! घुसा दीजिये अन्दर!"
"यह हुई ना बात!" डाक्टर साहब खुश होकर बोले, "अब बता सोनपुर मे तेरा सामुहिक बलात्कार हुआ था या सामुहिक चुदाई?"
"आप कृपा करके मुझे चोदिये!" मैं बोली.
"पहले मेरे सवाल का जवाब दे."
"पहले बलात्कार हुआ था....फिर मैं सबसे खुद ही चुदाई भी थी." मैने मजबूर होकर कहा.

डाक्टर साहब ने कमर के धक्के से अपना लन्ड मेरी चूत मे घुसा दिया और दो तीन बार पेलकर बोले, "बहुत चुदी हुई है तेरी चूत. सोनपुर के बाद और भी चुदी है क्या?"
"नहीं, डाक्टर साहब!"
"झूठ मत बोल." डाक्टर साहब ने कहा और उन्होने अपना लन्ड मेरी चूत से निकाल लिया.

"हाय, अन्दर डालिये अपने लन्ड को!" मैं चिल्लायी. एक हाथ से मैने अमोल के लन्ड को जोर से पकड़ा हुआ था.
"पहले बता!"
"हाँ हाँ! सोनपुर के बाद भी बहुत चुदाई हूँ!" मैने चिल्लाकर जवाब दिया.
"मै ठीक ही समझा था. तु एक चुदैल है." वह बोले.

डाक्टर साहब ने अपना लन्ड मेरी चूत मे फिर से घुसाया और मुझे कुछ देर तक चुपचाप पेलते रहे. मुझे बहुत आराम मिलने लगा. मैं अमोल के लन्ड को मज़े लेकर चूसने लगी और डाक्टर से चुदवाने लगी.

"कितनो से चुदवाई है?" डाक्टर ने पूछा.
"आह!! पांच-छह लोगों से." मैने कहा.
"उनसे अभी भी चुदवाती है?"
"हूं."
"सबसे अलग अलग चुदवाती है या एक साथ?"
"हाय, कभी अलग अलग...कभी एक साथ! आह!!"
"रोज़ चुदवाती है?"
"हाय, रोज़ चुदवाती हूँ! आह!! डाक्टर साहब! जोर जोर से चोदिये मुझे!" मैं मस्ती मे बोली.
"कभी रंडीगिरी की है?"
"नही....उफ़्फ़ क्या मज़ा आ रहा है!"

डाक्टर ने मुझे कुछ देर और चोदा. मैं तो झड़ने को आ गयी थी. आंखें बंद किये, अमोल के लन्ड को चूसते हुए मैं डाक्टर के लन्ड को चूत मे ले रही थी.

"लड़की, तेरा घर कहाँ है?" डाक्टर ने पूछा.
"उम्म!! रतनपुर मे."
"वहाँ कोई यार है तेरा?"
"ओफ़्फ़!! नही."
"मामा के यहाँ कब से ठहरी हुई है?"
"बस अभी आयी हूँ!"

डाक्टर ने चोदना बंद कर दिया और कड़क के कहा, "ठीक से जवाब दे!"
"हाय चोदना मत बंद कीजिये!! मैं झड़ने वाली हूँ!!" मैने बेबस होकर कहा, "एक-देड़ महीने से यहाँ हूँ! अब चोदिये मुझे!!"

डाक्टर ने और कोई सवाल नही किया. मुझे वह जोर जोर से पेलने लगे. मैं भी मस्ती मे कराह कराह कर अमोल के लन्ड को मुंह मे लेकर चुदवाने लगी.

थोड़ी देर मे मुझसे और रुका नही गया. "हाय मैं गयी!" बोलकर मैं चिल्ला उठी, "आह!! मैं झड़ी!! आह!! ओह!! मेरी माँ! मैं झड़ गयी!!"

मैं झड़ गई पर डाक्टर साहब कुछ देर और मुझे पेलते रहे. फिर मेरे पैरों को कसकर पकड़कर "ऊंघ! ऊंघ! ऊंघ! ऊंघ!" करते हुए मेरी चूत मे झड़ने लगे. उनका वीर्य मेरे चूत की गहराई को भरने लगा.

अमोल भी बहुत जोश मे आ गया था. मेरे मुंह को चोदते हुए वह मेरे मुंह मे झड़ने लगा. उसका गाढ़ा वीर्य मेरे मुंह मे भर गया और मेरे होठों से बाहर चूने लगा.

मैने किसी तरह उसका वीर्य गटक लिया और उसके लन्ड को चाटकर साफ़ किया.

डाक्टर साहब ने मेरी चूत से अपने लन्ड को निकाला, और लन्ड को मेरे ब्लाउज़ से पोछकर उन्होने अपनी पैंट पहन ली. अमोल ने भी अपनी पैंट पहन ली तो उसे लेकर डाक्टर साहब अपने कुर्सी पर जा बैठे.

मैने खाट से उठी और तौलिये से अपने चूत से बह रहे डाक्टर के वीर्य और मुंह से बह रहे अमोल के वीर्य को पोछा. फिर अपने कपड़े पहने लगी.


कपड़े पहनकर मैं भी डाक्टर के सामने जाकर बैठ गयी.

डाक्टर साहब मुझे दो गोलियाँ दी. "यह गोली आज रात को लेनी है." उन्होने कहा, "दो दिन बाद यह दूसरी गोली लेनी है. तीसरे दिन तुम्हारा मासिक शुरु हो जायेगा. बहुत भारी रिसाव हो सकता है. एक दो दिन मे तुम्हारा पेट का फूलना कम हो जायेगा."
"ठीक है, डाक्टर साहब." मैने सर झुकाकर जवाब दिया.

"और सुनो. तुम जैसी चुदक्कड़ लड़कियाँ चुदवाने से बाज तो नही आती है." डाक्टर साहब बोले, "जिससे चुदवाना हो चुदवाओ. पर कोई गर्भ निरोधक प्रयोग किया करो. बार-बार गर्भ गिराना अच्छी बात नही है."
"मुझे कंडोम पसंद नही है, डाक्टर साहब." मैने जवाब दिया.
"चुदैलों को कंडोम पसंद होते भी नही है!" डाक्टर साहब हंसकर बोले, "गर्भ-निरोधक गोलियाँ भी होती है. मैं एक लिखकर देता हूँ. बाज़ार से ले लेना."
"ठीक है डाक्टर साहब." मैने कहा.

"घर मे किसी और को इनकी ज़रूरत हो तो उन्हे भी दे देना." डाक्टर बोले.
"जी?" मैने उनका मतलब समझे बिना बोली.

अमोल ने कुछ हज़ार रुपये निकालकर डाक्टर साहब को दिये. "डाक्टर साहब, आपकी फ़ीस."
"रुपये रहने दो." डाक्टर साहब बोले, "गिरिधर चौधरी की भांजी को चोद लिया यही मेरे लिये बहुत है. अगर फिर से इसका गर्भ ठहर गया तो मेरा पास ले आना. इसको तो कोई जितना भी चोदे कम है."
"ठीक है, डाक्टर साहब." अमोल बोला.

"बेटी, तुम्हारे घर मे किसी और को मेरे सेवा की ज़रूरत पड़े तो बेहिचक ले आना." डाक्टर साहब ने मुझे कहा.
"मै समझी नही, डाक्टर साहब!" मैने कहा.

डाक्टर साहब कुछ देर चुप रहे फिर बोले, "बेटी, मैने घाट घाट का पानी पिया है. चोरी छुपे गर्भपात करने का काम मैं बहुत अर्से से कर रहा हूँ. इसी हाज़िपुर मे मैने कई औरतों का पेट गिरया है - जो अवैध संबंध बनाकर गर्भवती हो गयी थी. वे सारी औरतें बाहरी तौर पर शरीफ़ और अच्छे घरों की हैं. उनके राज़ मेरे पास सुरक्षित हैं. ईश्वर जानता है मैने कभी उस राज़ का फ़ायदा नही उठाया है."
"पर-पर मुझे इससे क्या मतलब?" मैने हकलाकर पूछा.
"बेटी, मुझे नही पता तुम्हारे मामा के घर मे क्या चल रहा है. पर कुछ तो चल ही रहा है." डाक्टर साहब बोले, "नही तो तुम एक महीने से उनके घर मे गर्भवती होकर बैठी हो, और पांच-छह लोगों से एक साथ कैसे चुदवा रही हो?"

सुनकर मैं चुप हो गयी.

"डरो मत. तुम्हारा राज़ मेरे पास ही रहेगा." डाक्टर साहब मेरे गालों को थपथपाकर बोले, "तुम्हारे घर मे किसी को मेरी ज़रूरत हो तो मेरे पास भेज देना. चूत तो मैं लूंगा ही, पर रुपयों मे कमी कर दूंगा. ठीक है?"
"जी." मैने सर झुकाकर जवाब दिया.
"अच्छा तो बच्चों, अब निकलो यहाँ से." डाक्टर साहब प्यार से बोले.

अमोल और मैं जल्दी से डाक्टर के दवाखाने से निकल पड़े.

रास्ते मे एक दुकान से अमोल ने गर्भ-निरोधक गोलियाँ खरीदी. फिर हम एक तांगा लेकर घर लौट आये.

मुझे देखते ही भाभी भागकर आयी और मुझे घर के अन्दर ले गई. मेरे आंचल को हटाकर मेरे पेट को देखकर बोली, "अरे वीणा, तुम्हारा पेट तो वैसे का वैसा ही है!"
"अरे भाभी, अभी गर्भपात हुआ कहाँ है!" मैने कहा, "मुझे दो गोलियाँ लेनी है. उससे अपने आप पेट गिर जायेगा."
"अच्छा? इतना आसन है?" वह हैरान होकर बोली.
"तुम नही जानती इन दो गोलियों के लिये मुझे कितने पापड़ बेलने पड़े!"
"क्यों क्या हुआ?"
"हाज़िपुर मे जो डाक्टर मिश्रा है, अमोल मुझे उसके पास ले गया था." मैने कहा, "हरामी ने पैसे तो नही लिये, पर इन दो गोलियों के बदले साले ने पहले मेरी चूत मारी."
"हाय राम! क्या कहती हो?" भाभी बोली.
"न मानो तो अपने भाई से पूछ लो." मैने हंसकर कहा, "वैसे बुड्ढा चोदता बुरा नही है. मैं तो मज़े से चुदवाई." 
"चलो कोई बात नही. पैसे तो बच गये!" भाभी बोली.

"मै तो कहती हूँ, भाभी, तुम भी अपना गर्भ गिरा दो." मैने कहा, "क्यों किसी अनजान आदमी का बच्चा अपने पति पर थोप रही हो?"
"अरे मैं कैसे जा सकती हूँ डाक्टर मिश्रा के पास?" भाभी बोली, "वह तो हमारे घर के सब को जानते हैं! मैं उनके पास गयी तो हम सब की पोल खुल जायेगी."

"भाभी, गुस्सा मत करना, पर हमारी पोल लगभग खुल ही चुकी है." मैने सकुचा के कहा.
"क्या कह रही हो, वीणा!" भाभी चौंक कर बोली, "तुम ने उन्हे सब कुछ बता दिया क्या?"
"सब तो नही बतायी, पर उसको राज़ी करने के लिये कुछ कुछ बताना पड़ा." मैने कहा, "बाकी उसने खुद ही अंदाज़ा लगा लिया. बहुत शातिर दिमाग है कमीने की."
"हाय वीणा, अब क्या होगा?" भाभी डरकर बोली.
"भाभी, डरो मत. कुछ नही होगा." मैने कहा, "उसके पास बहुत सी औरते जाती हैं गर्भ गिराने और वह सब की चूत मारता है."
"वीणा, ऐसे आदमी पर तुम भरोसा कैसे कर सकती हो?"
"भरोसा करने के अलावा और कर भी क्या सकते हैं, भाभी!" मैने कहा, "खैर, डाक्टर साहब कह रहे थे हमारे घर मे किसी और को उनकी ज़रूरत पड़े तो उनके पास जा सकते हैं. हमारा राज़ वह अपने तक ही रखेंगे. क्या कहती हो, चलोगी उनके पास?"
"नही वीणा. ससुरजी से बात किये बिना मैं कहीं नही जाऊंगी." भाभी बोली.
"कोई बात नही. कोई जल्दी नही है." मैने कहा, "जब मन हो चली जाना. कुछ नही तो एक नया लन्ड मिल जायेगा चखने के लिये!"

डाक्टर साहब के कहे अनुसार मैने वह दो गोलियां ले ली. चौथे दिन तक मेरा पेट बिलकुल ही सपाट हो चुका था. देख के लग ही नही रहा था कि मेरे पेट मे कभी किसी का नाजायज़ बच्चा था.


अगले दिन मामाजी और अमोल मुझे हाज़िपुर स्टेशन छोड़ आये.

ट्रेन मे बैठने से पहले मैने अमोल से लिपटकर कहा, "अब की बार जब तुम मेरे घर आओगे, बारात लेकर आओगे."
"हाँ, मेरी जान." अमोल ने कहा, "तुम वह गर्भ-निरोधक गोलियाँ ले रही हो ना? देखो अब फिर से गर्भ मत बना लेना."
"चिंता मत करो." मैं बोली, "मैं अपना खयाल रखूंगी! और तुम भी किसी का गर्भ मत बना देना. नही तो डाक्टर मिश्रा बहुत जली-कटी सुनायेंगे!"

मामाजी हमे टोक कर बोले, "बच्चों, यह हाज़िपुर है, तुम्हारा शहर नही. यहाँ सरे-आम इतना प्यार जताओगे तो लोग पत्थर मारेंगे."

अमोल और मैं अलग हो गये और मैं ट्रेन मे अपने सीट पर जाकर बैठ गयी.

थोड़ी देर मे ट्रेन चल पड़ी. स्टेशन के छूटते ही मैं हाज़िपुर मे सबके साथ बिताये दिनो की याद मे खो गई.

बीच के एक स्टेशन से दो जाने पहचाने लोग चढ़े. एक काला, दुबला सा लड़का था. एक हट्टा-कट्टा नौजवान.

मुझे देखकर दुबला लड़का बोला, "गुरु, यह तो वही छमिया है!"
गुरु ने मुझे ध्यान से देखा और कहा, "हाँ बे! यह तो वही टॉयलेट वाली है. बहुत मज़ा दी थी साली."

दुबले लड़के ने मुझे कहा, "क्यों छमिया, आज फिर मज़ा लोगी क्या?"

मै तो उन्हे पहचान गयी थी, पर मैने तेवर दिखाकर कहा, "ये! छमिया किसको कहता है? घर पर माँ बहन नही है क्या?"
मेरे पास बैठे एक आदमी ने कहा, "सुअर की औलाद! ट्रेन मे लड़की छेड़ता है? ठहर तेरी माँ-बहन एक करता हूँ!"

गुरु बोला, "चेले, तु तो मरवायेगा आज! यह कोई और लड़की है."
"नही गुरु, यह छमिया ही है!" दुबला लड़का बोला.
"अबे कह रहा हूँ यह कोई और है! उस लड़की का पेट फूला हुआ था!" गुरु ने कहा, "इससे पहले कि जूते पड़ें, भाग ले यहाँ से!"

दोनो दोस्त वहाँ से तुरंत भाग लिये.

मैने फिर से अपनी आंखें बंद कर ली और अपने आने वाली शादी-शुदा ज़िन्दगी के सपनों मे खो गयी.

(समाप्त)
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