मेले के रंग सास, बहु, और ननद के संग
10-08-2018, 01:03 PM,
#1
Rainbow  मेले के रंग सास, बहु, और ननद के संग
मेले के रंग सास, बहु, और ननद के संग

फ्रेंड्स मुझे एक और अच्छी कहानी मिली है फ्रेंड्स पहले ये कहानी बिक्स ने लिखी थी और अब इस को तृष्णा ने आगे बढ़ाया है तो फ्रेंड्स मैं इस कहानी को आपके लिए इस फोरम पर अपडेट कर रही हूँ इस कहानी का पहला हिस्सा राज शर्मा जी पहले ही इस फोरम पर पोस्ट कर चुके हैं क्योंकि काफ़ी सारे रीडर नये हैं इसलिए मैं सारी कहानी नये सिरे से पोस्ट कर रही हूँ जिससे रीडर्स को आधी कहानी के लिए भटकना नही पड़ेगा . 
प्रिय पाठकों, मेरा नाम वीणा है, उम्र 22 साल, फ़िगर 34/27/35, रंग बहुत गोरा. मैं अपना एक नया अनुभव पेश कर रही हूँ जो मेरे साथ तब हुआ जब मैं अपने मामा, मामी और कज़िन भाभी के साथ मेला देखने गई थी.


बात यूँ थी कि हमारे मामा का घर हाज़िपुर ज़िले मे था. ज़िला सोनपुर मे हर साल, माना हुआ मेला लगता है. हर साल की भांती इस साल भी मेला लगने वाला था. मामा का ख़त आया कि दीदी, वीणा बिटिया और नीतु बिटिया को भेज दो. हम लोग मेला देखने जायेंगे. यह लोग भी हमारे साथ मेला देख आयेंगे. पर पापा ने कहा कि तुम्हारी दीदी (यानी कि मेरी मम्मी) का आना तो मुश्किल है और नीतु (यानी कि मेरी छोटी बहन) को तो बहुत बुखार है. पर वीणा को तुम आकर ले जाओ, उसकी मेला घूमने की इच्छा भी है.

तो फिर मामा आये और मुझे अपने साथ ले गये. दो दिन हम मामा के घर रहे और फिर वहाँ से मै यानी कि वीणा, मेरे मामीजी, मामा और भाभी मीना (ममेरे भाई की पत्नी) और नौकर रामु, इत्यादि लोग मेले के लिये चल पड़े.

रविवार को हम सब मेला देखने निकल पड़े. हमारा कार्यक्रम 8 दिनों का था. सोनपुर मेले मे पहुँच कर देखा कि वहाँ रहने की जगह नही मिल रही थी. बहुत अधिक भीड़ थी.

मामा को याद आया कि उनके ही गाँव के रहने वाले एक दोस्त ने यहाँ पर घर बना लिया है. सो सोचा कि चलो उनके यहाँ चल कर देखा जाये. हम मामा के दोस्त यानी कि विश्वनाथजी के यहाँ चले गये. उन्होने तुरन्त हमारे रहने की व्यवस्था अपने घर के उपर के एक कमरे मे कर दी. इस समय विश्वनाथजी के अलावा घर पर कोई नही था. सब लोग गाँव मे अपने घर गये हुए थे. उन्होने अपना किचन भी खोल दिया, जिसमे खाने-पीने के बर्तनों की सुविधा थी.

वहाँ पहुँच कर सब लोगों ने खाना बनाया और विश्वनाथजी को भी बुला कर खिलाया. खाना खाने के बाद हम लोग आराम करने गये.

जब हम सब बैठे बातें कर रहे थे तो मैने देखा कि विश्वनाथजी की निगाहें बार-बार भाभी पर जा टिकती थी. और जब भी भाभी कि नज़र विश्वनाथजी कि नज़र से टकराती तो भाभी शर्मा जाती थी और अपनी नज़रें नीची कर लेती थी. दोपहर करीब 2 बज़े हम लोग मेला देखने निकले. जब हम लोग मेले मे पहुँचे तो देख कि काफ़ी भीड़ थी और बहुत धक्का-मुक्की हो रही थी.

मामा बोले कि आपस मे एक दूसरे का हाथ पकड़ कर चलो वर्ना कोई इधर-उधर हो गया तो बड़ी मुश्किल होगी. मैने भाभी का हाथ पकड़ा, मामा-मामी और रामु साथ थे. 

मेला देख रहे थे कि अचानक किसी ने पीछे से गांड मे उंगली कर दी. मैं एकदम बिदक पड़ी, कि उसी वक्त सामने से किसी ने मेरी चूचि दबा दी. कुछ आगे बढ़ने पर कोई मेरी चूत मे उंगली कर निकल भागा.

मेरा बदन सनसना रहा था. तभी कोई मेरी दोनो चूचियां पकड़ कर कान मे फुसफुसाया - "हाय मेरी जान!" कह कर वह आगे बढ़ गया. हम कुछ आगे बढ़े तो वही आदमी फिर आकर मेरी जांघों मे हाथ डाल मेरी चूत को अपने हाथ के पूरे पंजे से दबा कर मसल दिया. मुझे लड़की होने की गुदगुदी का अहसास होने लगा था. भीड़ मे वह मेरे पीछे-पीछे साथ-साथ चल रहा था, और कभी-कभी मेरी गांड मे उंगली घुसाने की कोशिश कर रहा था, और मेरे चूतड़ों को तो उसने जैसे बाप का माल समझ कर दबोच रखा था.

अबकी धक्का-मुक्की मे भाभी का हाथ छूट गया और भाभी आगे और मै पीछे रह गयी. भीड़ काफ़ी थी और मै भाभी की तरफ़ गौर करके देखने लगी. वह पीछे वाला आदमी भाभी की टांगों मे हाथ डाल कर भाभी की चूत सहला रहा था. भाभी मज़े से चूत सहलवाती आगे बढ़ रही थी. भीड़ मे किसे फ़ुर्सत थी कि नीचे देखे कि कौन क्या कर रहा है. मुझे लगा कि भाभी भी मस्ती मे आ रही है. क्योकि वह अपने पीछे वाले आदमी से कुछ भी नही कह रही थी.

जब मै उनके बराबर मे आयी और उनका हाथ पकड़ कर चलने लगी तो उनके मुंह से "हाय!" की सी आवाज़ निकल कर मेरे कानों मे गूंजी. मै कोई बच्ची तो थी नही, सब समझ रही थी. मेरा तन भी छेड़-छाड़ पाने से गुदगुदा रहा था. 

तभी किसी ने मेरी गांड मे उंगली कर दी. ज़रा कुछ आगे बढ़े तो मेरी दोनो बगलों मे हाथ डाल कर मेरी चूचियों को कस कर पकड़ कर अपनी तरफ़ खींच लिया. इस तरह मेरी चूचियों को पकड़ कर खींचा कि देखने वाला समझे कि मुझे भीड़-भाड़ से बचाया है.

शाम का वक्त हो रहा था और भीड़ बढ़ती ही जा रही थी. इतनी देर मे वह पीछे से एक रेला सा आया जिसमे मामा मामी और रामु पीछे रह गये और हम लोग आगे बढ़ते चले गये. कुछ देर बाद जब पीछे मुड़ कर देखा तो मामा मामी और रामु का कहीं पता ही नही था. अब हम लोग घबरा गये कि मामा मामी कहाँ गये.

हम लोग उन्हे ढूँढ रहे थे कि वह लोग कहाँ रह गये और आपस मे बात कर रहे थे कि तभी दो आदमी जो काफ़ी देर से हमे घूर रहे थे और हमारी बातें सुन रहे थे वह हमारे पास आये और बोले, "तुम दोनो यहाँ खड़ी हो और तुम्हारे सास ससुर तुम्हें वहाँ खोज रहे हैं."

भाभी ने पूछा, "कहाँ है वह?" तो उन्होने कहा कि चलो हमारे साथ हम तुम्हे उनसे मिलवा देते है. (भाभी का थोड़ा घूंघट था. उसी घूंघट के अन्दाज़े पर उन्होने कहा था जो कि सच बैठा.)

हम उन दोनो के आगे चलने लगे. साथ चलते-चलते उन्होने भी हमे छोड़ा नही बल्कि भीड़ होने का फ़ायदा उठा कर कभी कोई मेरी गांड पर हाथ फिरा देता तो कभी दूसरा भाभी की कमर सहलाते हुए हाथ उपर तक ले जाकर उसकी चूचियों को छू लेता था. एक दो बार जब उस दूसरे वाले आदमी ने भाभी कि चूचियों को जोर से भींच दिया तो ना चाहते हुए भी भाभी के मुंह से आह सी निकल गयी और फिर तुरन्त ही सम्भालकर मेरी तरफ़ देखते हुए बोली कि "इस मेले मे तो जान की आफ़त हो गयी है! भीड़ इतनी ज़्यादा हो गयी है कि चलना भी मुश्किल हो गया है."

मुझे सब समझ मे आ रहा था कि साली को मज़ा तो बहुत आ रहा है पर मुझे दिखाने के लिये सती सवित्री बन रही है.

पर अपने को क्या ग़म? मै भी तो मज़े ले ही रही थी और यह बात शायद भाभी ने भी ग़ौर कर ली थी. तभी तो वह ज़रा ज़्यादा बेफ़िकर हो कर मज़े लूट रही थी. वह कहते है ना कि हमाम मे सभी नंगे होते हैं. मैने भी नाटक से एक बड़ी ही बेबसी भरी मुसकान भाभी तरफ़ उछाल दी.

इस तरह हम कब मेला छोड़ कर आगे निकल गये पता ही नही चला.

काफ़ी आगे जाने के बाद भाभी बोली, "वीणा हम कहाँ आ गये? मेला तो काफ़ी पीछे रह गया. यह सुनसान सी जगह आती जा रही है. तुम्हारे मामा मामी कहाँ है?"
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10-08-2018, 01:03 PM,
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RE: मेले के रंग सास, बहु, और ननद के संग
तभी वह आदमी बोला, "वह लोग हमारे घर है. तुम्हारा नाम वीणा है न, और वह तो तुम्हारे मामा मामी है. वह हमे कह रहे थे कि वीणा और वह कहाँ रह गये. हमने कहा कि तुम लोग घर पर बैठो हम उन्हे ढूँढ कर लाते हैं. तुम हमको नही जानती हो पर हम तुम्हे जानते हैं."

यह बात करते हुए हम लोग और आगे बढ़ गये थे. वहाँ पर एक कार खड़ी थी. वह लोग बोले कि, "चलो इसमे बैठ जाओ, हम तुम्हे तुम्हारे मामा मामी के पास ले चलते हैं."

हमने देखा कि कार मे दो आदमी और भी बैठे हुए थे. (और मुझे बाद मे यह बात याद आयी के वह दोनो आदमी वही थे जो भीड़ मे मेरी और भाभी कि गांड मे उंगली कर रहे थे और हमारी चूचियां दबा रहे थे).

जब हमने जाने से इन्कार किया तो उन्होने कहा कि, "घबराओ नही. देखो हम तुम्हे तुम्हारे मामा-मामी के पास ही ले चल रहे है और देखो उन्होने ने ही हमे सब कुछ बता कर तुम्हारी खबर लेने के लिये हमे भेजा है. अब घबराओ मत और कार मे बैठ जाओ तो जल्दी से तुम्हारे मामा- मामी से तुम्हें मिला दें."

कोई चारा ना देख हम लोग गाड़ी मे बैठ गये. उन लोगों ने गाड़ी मे भाभी को आगे कि सीट पर दो आदमीयों के बीच बैठाया और मुझे भी पीछे कि सीट पर बीच मे बिठा कर वह दोनों मुश्टन्डे मेरी अगल-बगल मे बैठ गये.

कार थोड़ी दूर चली कि उनमे से एक आदमी का हाथ मेरी चूचि को पकड़ कर दबाने लगा, और दूसरा मेरी चूचि को ब्लाऊज़ के उपर से ही चूमने लगा.

मैने उन्हे हटाने की कोशिश करते हुए कहा, "हटो यह क्या बद्तमीज़ी है!" तो एक ने कहा "यह बद्तमीज़ी नही है मेरी जान! तुम्हे तुम्हारे मामा से मिलाने ले जा रहे हैं तो पहले हमारे मामाओं से मिलो फिर अपने मामा से."

जब मैने आगे कि तरफ़ देखा तो पाया कि भाभी की ब्लाऊज़ और ब्रा खुली है और एक आदमी भाभी की दोनो चूचियां पकड़े है और दूसरा भाभी की दोनो टांगें फ़ैला कर साड़ी और पेटीकोट कमर तक उठा कर उनकी चूत मे उंगली डाल कर अन्दर बाहर कर रहा है. भाभी इन दोनो की पकड़ से निकलने की कोशिश कर रही है पर निकल नही पा रही है.

उनके लीडर ने कहा, "देखो मेरी जान, हम तुम्हे चोदने के लिये लाये हैं और चोदे बिना छोड़ंगे नही. तुम दोनो राज़ी-खुशी से चुदाओगी तो तुम्हे भी मज़ा आयेगा और हमे भी. फिर तुम्हे तुम्हारे घर पहुँचा देंगे. अगर तुम नखरा करोगी तो तुम्हे जबरदस्ती चोदकर जान से मारकर कहीं डाल देंगे."

और मेरी भाभी से कहा कि "तुम तो चुदाई का मज़ा लेती ही रही हो. इतना मज़ा किसी और चीज़ मै नही है. इसलिये चुपचाप खुद भी मज़ा करो और हमे भी करने दो."

इतना सुन कर, और जान के भय से भाभी और मैं दोनो ही शांत पड़ गये. भाभी को शांत होते देख कर वह जो भाभी की टांग पकड़े बैठा था वह भाभी कि चूत चाटने लगा, और दूसरा कस-कस कर भाभी की चूचियां मसल रहा था. भाभी सी-सी करने लगी. भाभी को शांत होते देख मैं भी शांत हो गयी और चुपचाप उन्हे मज़ा देने लग गयी. मेरी भी चूत और चूचि दोनो पर ही एक साथ आक्रमण हो रहा था. मैं भी सिसिया रही थी. तभी मुझे जोरों का दर्द हुआ और मैंने कहा, "हाय यह तुम क्या कर रहे हो?"

"क्यों मज़ा नही आ रहा है क्या मेरी जान?" ऐसा कहते हुए उसने मेरी चूचियों की घुंडी (निप्पल) को छोड़ मेरी पूरी चूचि को भोंपू की तरह दबाने लग गया. मैं एकदम से गनगना कर हाथ पावँ सिकोड़ ली.

दूसरा वाला अब मेरे नितंभो (चूतड़) को सहलाते हुए मेरी गांड की छेद पर उंगली फिरा रहा था.

"चीज़ तो बड़ी उमदा है यार", टांग पकड़ कर मौज करने वाले ने कहा.
"एकदम पूरी देहाती माल है" दूसरे ने कहा

मैं थोड़ा हिली तो दूसरा वाला मेरी चूचियों को कस कर दबाते हुए मेरे मुंह से हाथ हटा कर जबरदस्ती मेरे होठों पर अपने होंठ रख कर जोर से चुम्बन लिया कि मैं कसमसा उठी. फिर मेरे गालों को मुंह मे भर कर इतनी जोर से दांतों से काटा कि मैं बुरी तरह से छटपटा उठी. ऐसा लग रहा थी कि मेरी मस्त जवानी पा कर दोनो बुरी तरह से पगला गये थे. मैं बुरी तरह छटपटा रही थी.

तभी दूसरे वाले ने मेरी चूत मे उंगली करते हुए कहा, "बड़ी ज़ालिम जवानी है. खूब मज़ा आयेगा. कहो मेरी बुलबुल क्या नाम है तुम्हारा?"

तभी दूसरे वाले ने कहा, "अरे बुद्धू, इसका नाम वीणा है."

उन दोनो मे से एक मेरे नितम्भों मे उंगली करते बैठा था, और दूसरा मेरी चूचियों और गालों का सत्यानाश कर रहा था और मैं डरी-सहमी से हिरनी की भांति उन दोनो की हरकतों को सहन कर रही थी.

वैसे झूठ नही बोलुंगी क्योंकि मज़ा तो मुझे भी आ रहा था. पर उस वक्त डर भी ज़्यादा लग रहा था. मैं दोहरे दबाव मे अधमरी थी. एक तरफ़ शरारत की सनसनी और दूसरी तरफ़ इनके चंगुल मे फंसने का भय.

वह मस्त आंखों से मेरे चहरे को निहार रहे थे और एक साथ मेरी दोनो गदराई चूचियों को दबाते कहा, "चुपचाप हम लोगों को मज़ा नही दोगी तो हम तुम दोनो को जान से मार देंगे. तेरी जवानी तो मस्त है. बोल अपनी मर्ज़ी से मज़ा देगी कि नही?"

कुछ भी हो मैं सयानी तो थी ही, उनकी इन रंगीन हर्कतों का असर तो मुझ पर भी हो रहा था.

फिर मैने भाभी कि तरफ़ देखा. आगे वाले दोनो आदमीयों मे से एक मेरी भाभी के गाल पर चमी-बत्के भर रहा था और जो ड्राईवर था वह उनकी चूत मे उंगली कर रहा था. उन दोनो ने मेरी भाभी की एक एक जांघ अपनी जांघ के नीचे दबा रखी थी और साड़ी और पेटीकोट कमर तक उठाया हुआ था. और भाभी दोनो हाथों मे एक-एक लंड पकड़ कर सहला रही थी.

उन दोनो के खड़े मोटे-मोटे लंडो को देख कर मैं डर गयी कि अब क्या होगा.

तभी उनमे से एक ने भाभी से पूछा "कहो रानी मज़ा आ रहा है ना?"

और मैने देखा कि भाभी मज़ा करते हुए नखरे के साथ बोली "ऊंहूं"

तब उसने कहा "पहले तो नखरा कर रही थी, पर अब तो मज़ा आ रहा है ना? जैसा हम कहेंगे वैसा करोगी तो कसम भगवान की पूरा मज़ा लेकर तुम्हे तुम्हारे घर पहुँचा देंगे. तुम्हारे घर किसी को पता भी नही लगेगा कि तुम कहाँ से आ रही हो. और नखरा करोगी तो वक्त भी खराब होगा और तुम्हारी हालत भी और घर भी नही पहूँच पाओगी. जो मज़ा राज़ी-खुशी मे है वह जबरदस्ती मे नही."

भाभी - "ठीक है हमको जल्दी से कर के हमें घर भिजवा दो."

भाभी की ऐसी बात सुन कर मैं भी ढीली पड़ गयी. मैने भी कहा कि हमे जल्दी से करो और छोड़ दो.

इतने मे ही कार एक सुनसान जगह पर पहुँच गयी और उन लोगों ने हमे कार से उतारा और कार से एक बड़ा सा कम्बल निकाल कर थोड़ी समतल सी जगह पर बिछया और मुझे और भाभी को उस पर लिटा दिया.
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10-08-2018, 01:03 PM,
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RE: मेले के रंग सास, बहु, और ननद के संग
अब एक आदमी मेरे करीब आया और उसने पहले मेरी ब्लाऊज़ और फिर ब्रा और फिर बाकी के सभी कपड़े उतार कर मुझे पूरी तरह से नंगा किया और मेरी चूचियों को दबाने लगा. मैं गनगना गयी क्योंकि जीवन मे पहली बार किसी पुरुष का हाथ मेरी चूचियों पर लगा था. मैं सिसिया रही थी. मेरी चूत मे कीड़े चलने लगे थे.

मेरे साथ वाला आदमी भी जोश मे भर गया था, और पगलों के समान मेरे शरीर को चूम चाट रहा था. मेरी चूत भी मस्ती मे भर रही थी. वह काफ़ी देर तक मेरी चूत को निहार रहा था.

मेरी चूत के उपर भूरी-भूरी झांटें उग आयी थी. उसने मेरी पाव-रोटी जैसी फ़ूली हुई चूत पर हाथ फेरा तो मस्ती मे भर उठा और झूक कर मेरी चूत को चूमने लगा, और चूमते-चूमते मेरी चूत के टीट (clitoris) को चाटने लगा. अब मेरी बर्दाश्त के बाहर हो रहा था और मैं जोर से सित्कार रही थी. मुझे ऐसी मस्ती आ रही थी कि मैं कभी कल्पना भी नही की थी.

वह जितना ही अपनी जीभ मेरी कुंवारी चूत पर चला रहा था उतना ही उसका जोश और मेरा मज़ा बढ़ता जा रहा था. मेरी चूत मे जीभ घुसेड़ कर वह उसे चकरघिन्नी की मानिंद घुमा रहा था, और मैं भी अपने चूतड़ उपर उचकाने लगी थी. मुझे बहुत मज़ा आ रहा था. इस आनंद की मैने कभी सपने मैं भी नही कल्पना की थी. एक अजीब तरह की गुदगुदी हो रही थी.

फिर वह कपड़े खोल कर नंगा हो गया. उसका लंड भी खूब लम्बा और मोटा था. लंड एकदम सख्त होकर सांप की भांति फ़ुंफ़्कार रहा था. और मेरी चूत उसका लंड खाने को बेकरार हो उठी.

फिर उसने मेरे चूतड़ों को थोड़ा सा उठा कर अपने लंड को मेरी बिलबिलती चूत मे कुछ इस तरह से चांपा कि मैं तड़प उठी, चीख उठी और चिल्ला उठी, "हाय!! मेरी चूत फटी!! हाय!! मैं मरी!! आह्ह्ह!! हाय बहुत दर्द हो रहा है ज़ालिम!! कुछ तो मेरी चूत का खयाल करो. अरे निकालो अपने इस ज़ालिम लंड को मेरी चूत मे से. हाय!! मै तो मरी आज!!" और मै दर्द के मारे हाथ-पैर पटक रही थी पर उसकी पकड़ इतनी मज़बूत थी कि मै उसकी पकड़ से छूट न सकि. मेरी कुंवारी चूत को ककड़ी की तरह से चीरता हुआ उसका लंड नश्तर की तरह चुभता गया.

आधे से ज़्यादा लंड मेरी चूत मे घुस गया था. मै पीड़ा से कराह रही थी तभी उसने इतनी जोर से ठाप मारा कि मेरी चूत का दरवाज़ा ध्वस्त होकर गिर गया और उसका पूरा लंड मेरी चूत मे घुस गया. मै दर्द से बिलबिला रही थी और चूत से खून निकल कर बह कर मेरी गांड तक पहुँच गया.

वह मेरे नंगे बदन पर लेट गया और मेरी एक चूचि को मुंह मे लेकर चूसने लगा. मै अपने चूतड़ो को उपर उछालने लगी, तभी वह मेरी चूचियों को छोड़ दोनो हाथ जमीन पर टेक कर लंड को चुत से टोपा तक खींच कर इतनी जोर से ठाप मारा कि पूरा लंड जड़ तक हमारी चूत मे समा गया और मेरा कलेजा थर्थरा उठा. यह क्रिया वह तब तक चलाता रहा जब तक मेरी चूत का स्प्रिंग ढीला नही पड़ गया.

मुझे बाहों मे भर कर वह जोर-जोर से ठाप लगा रहा था. मै दर्द के मारे ओफ़्फ़्फ़ उफ़्फ़्फ़ कर रही थी. कुछ देर बाद मुझे भी जवानी का मज़ा आने लगा और मै भी अपने चूतड़ उछाल-उछाल कर गपागप लंड अन्दर करवाने लगी. और कह रही थी, "और जोर से राजा! और जोर से पूरा पेलो! और डालो अपना लंड!"

वह आदमी मेरी चूत पर घमासन धक्के मारे जा रहा था. वह जब उठ कर मेरी चूत से अपना लंड बाहर खींचता था तो मै अपने चूतड़ उचका कर उसके लंड को पूरी तरह से अपनी चूत मे लेने की कोशिश करती. और जब उसका लंड मेरी बच्चेदानी से टकराता तो मुझे लगाता मानो मै स्वर्ग मै उड़ रही हूँ.

अब वह आदमी जमीन से दोनो हाथ उठा कर मेरी दोनो चूचियों को पकड़ कर हमें घपाघप पेल रहा था. यह मेरे बर्दाश्त के बाहर था और मै खुद ही अपना मुंह उठा कर उसके मुंह के करीब किया कि उसने मेरे मुंह से अपना मुंह भिड़ा कर अपनी जीभ मेरे मुंह मे डाल कर अन्दर बाहर करने लगा. इधर जीभ अन्दर बाहर हो रही और नीचे चूत मे लंड अन्दर बाहर हो रहा था. इस दोहरे मज़े के कारण मै तुरन्त ही स्खलित हो गयी और लगभग उसी समय उसके लंड ने इतनी फ़ोर्स से वीर्यपात किया कि मै उसकी छाती से चिपक उठी. उसने भी पुर्ण ताकत के साथ मुझे अपनी छाती से चिपका लिया.

तूफ़ान शांत हो गया. उसने मेरी कमर से हाथ खींच कर बंधन ढीला किया और मुझे कुछ राहत मिली. लेकिन मै मदहोशी मे पड़ी रही.

वह उठ बैठा और अपने साथी के पास गया और बोला, "यार ऐसा गज़ब का माल है प्यारे, मज़ा आ जायेगा. ऐसा माल बड़ी मुश्किल से मिलता है."

मैने मुड़ कर भाभी की तरफ़ देखा. भाभी के उपर भी पहले वाला आदमी चढ़ा हुआ था और उनकी चूत मार रहा था. भाभी भी सी-सी करते हुए बोल रही थी "हाय राजा! ज़रा जोर से चोदो और जोर से हाय!! चूचियां ज़रा कस कर दबाओ ना! हाय मै बस झड़ने वाली हूँ!!" और अपने चूतड़ों को धड़ाधड़ उपर नीचे पटक रही थी.

"हाय मै गयी राजा!" कह कर उन्होने दोनो हाथ फैला दिये.
तभी वह आदमी भी भाभी कि चूचियां पकड़ कर गाल काटते हुए बोला, "मज़ा आ गया मेरी जान!" और उसने भी अपना पानी छोड़ दिया.

कुछ देर बाद वह भी उठा और अपने कपड़े पहन कर बगल मे हट गया. भाभी उस आदमी के हटने के बाद भी आंखें बंद किये लेटी थी और मैने देखा कि भाभी की चूत से उन दोनो का वीर्य और रज बह कर गांड तक आ पहुँचा था.

अब उनका दूसरा साथी मेरे करीब बैठ कर मेरी चूचियों पर हाथ फिराने लगा और बचा हुआ चौथा आदमी अब मेरी भाभी पर अपना नम्बर लगा कर बैठ गया.

उसके बाद हम भाभी ननद की उन दो आदमीयों ने भी चुदाई की. अबकी बार जो आदमी मेरी भाभी पर चढ़ा था उसका लंड बहुत ही ज़्यादा मोटा और लम्बा, करीब 11" का था. पर मेरी भाभी ने उसका लंड भी खा लिया.

चुदाई का दूसरा दौर पूरा होने पर जब हम उठ कर अपने कपड़े पहनने लगे तो उन्होने कहा कि, "पहले तुम दोनो ननद भाभी अपनी नंगी चूचियों को आपस मे चिपका के दिखाओ."

इस पर जब हम शर्माने लगी तो कहा कि, "जितना शर्माओगी उतनी ही देर होगी तुम लोगों को."

तब मेरी भाभी ने उठ कर मुझे अपनी कोली मै भर और मेरी चूचियों पर अपनी चूचियां रगड़ी और निप्पलों से निप्पल मिला कर उन्हे आपस मे दबाया. वह चारों आदमी इस द्रिश्य को देख कर अपने लंडों पर हाथ फिरा रहे थे. मुझे कुछ अटपटा भी लग रह था और कुछ रोमांच भी हो रहा था.

उसके बाद हमने कपड़े पहने और वह लोग हमे अपनी कार मे वापस मेले के मैदान तक ले आये. उन्होने रास्ते मे फिर से हमे धमकाया कि यदि हमने उनकी इस हरकत के बारे मे किसी से कुछ कहा तो वह लोग हमे जान से मार देंगे. इस पर हमने भी उनसे वादा किया कि हम किसी को कुछ नही बतायेंगे. 

जब हम लोग मेले के मैदान पर पहुँचे तो सुना कि वहाँ पर हमारा नाम announce कराया जा रहा था और हमारे मामा-मामी मंडप मे हमारा इंतज़ार कर रहे थे. वह चारों आदमी हमे लेकर मंडप तक पहुँचे. हमारे मामा हमे देख कर बिफ़र पड़े कि, "कहाँ थे तुम लोग अब तक? हम 4 घंटे से तुम्हे खोज़ रहे थे."

इस पर हमारे कुछ बोलने से पहले ही उन चार मे से एक ने कहा, "आप लोग बेकार ही नाराज़ हो रहें हैं. यह दोनो तो आप लोगों को ही खोज रही थी और आपके ना मिलने पर एक जगह बैठी रो रही थी. तभी इन्होने हमे अपना नाम बताया तो मैने इन्हे बताया कि तुम्हारे नाम का announcement हो रहा है और तुम्हारे मामा मामी मंडप मे खड़े है. और इन्हे लेकर यहाँ आया हूँ."

तब हमारे मामा बहुत खुश हुए ऐसे शरीफ़(?) लोगों पर और उन्होने उन अजनबीयों का शुक्रिया अदा किया. इस पर उन चारों ने हमे अपनी गाड़ी पर हमारे घर तक छोड़ने कि पेश्कश कि जो हमारे मामा-मामी ने तुरन्त ही कबूल कर ली.

हम लोग कार मे बैठे और घर को चल दिये.
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10-08-2018, 01:03 PM,
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RE: मेले के रंग सास, बहु, और ननद के संग
जैसे ही हम घर पहुँचे कि विश्वनाथजी बाहर आये हमसे मिलने के लिये.

संयोग कि बात यह थी कि यह लोग विश्वनाथजी की पहचान वाले थे. इसलिये जैसे ही उन्होने विश्वनाथजी को देखा तो तुरंत ही पूछा, "अरे विश्वनाथजी आप यहां? क्या यह आपका परिवार है?"



तो विश्वनाथजी ने कहा, "अरे नही भाई, परिवार तो नही पर हमारे परम मित्र और एक ही गाँव के दोस्त और उनका परिवार है यह."



फिर विश्वनाथजी ने उन लोगों को चाय पीने के लिये बुलाया और वह सब लोग हमारे साथ ही अन्दर आ गये.



वह चारों बैठ गये और विश्वनाथजी चाय बनाने के लिये किचन पहुँचे. तभी मेरे मामाजी ने कहा "बहू! ज़रा मेहमानों के लिये चाय बना दे."



और मेरी भाभी उठ कर किचन मे चाय बनाने के लिये गयी. भाभी ने सबके लिये चाय चढ़ा दी और चाय बनाने के बाद वह उन्हे चाय देने गयी. तब तक मेरे मामा और मामी उपर के कमरे मे चले गये थे और नीचे के उस कमरे मे उस वक्त वह चारों दोस्त और विश्वनाथजी ही थे.



कमरे मे वह पाँचों लोग बात कर रहे थे जिन्हे मै दरवाज़े के पीछे खड़ी सुन रही थी. मैने देखा कि जब भाभी ने उन लोगों को चाय थमायी तो एक ने धीरे से विश्वनाथजी की नज़र बचा कर भाभी की एक चूचि दबा दी. भाभी "सी" कर के रह गयी और खाली ट्रे लेकर वापस आ गयी.



वह लोग चाय की चुसकी लगा रहे थे और बातें कर रहे थे.



विश्वनाथजी- "आज तो आप लोग बहुत दिनों के बाद मिले हैं. क्यों भाई कहाँ चले गये थे आप लोग? क्यों भाई रमेश! तुम्हारे क्या हाल चाल है?"

रमेश- "हाल चाल तो ठीक है, पर आप तो हम लोगों से मिलने ही नही आये. शायद आप सोचते होगे कि हमसे मिलने आयेंगे तो आपका खर्चा होगा."

विश्वनाथजी- "अरे खर्चे की क्या बात है. अरे यार कोई माल हो तो दिलाओ. खर्चे की परवाह मत करो. वैसे भी फ़ैमिली बाहर गयी है और बहुत दिन हो गये है किसी माल को मिले. अरे सुरेश तुम बोलो ना कब ला रहे कोई नया माल?"

सुरेश- "इस मामले मे तो दिनेश से बात करो. माल तो यही साला रखता है."

दिनेश- "इस समय मेरे पास माल कहाँ? इस वक्त तो महेश के पास माल है."

महेश- "माल तो था यार पर कल साली अपने मैके चली गयी है. पर अगर तुम खर्च करो तो कुछ सोचें."

विश्वनाथजी- "खर्चे की हमने कहाँ मनाई की है. चाहे जितना खर्चा हो जाये, लेकिन अकेले मन नही लग रहा है यार. कुछ जुगाड़ बनवाओ."



मै वहीं खड़े-खड़े सब सुन रही थी. तभी मेरे पीछे भाभी भी आकर खड़ी हो गयी और वह भी उन लोगों की बातें सुनने लगी.



सुरेश- "अकेले-अकेले कैसे, तुम्हारे यहां तो सब लोग है."

विश्वनाथजी- "अरे नही भाई यह हमारे बच्चे थोड़ी ही हैं. हमारे बच्चे तो गाँव गये है. यह लोग हमारे गाँव से ही मेला देखने आये है."

महेश- "फिर क्या बात है. बगल मे हसीना और नगर ढिंढोरा! अगर तुम हमारी दावत करो तो इनमे से किसी को भी तुमसे चुदवा देंगे."

विश्वनाथजी- "कैसे?"

महेश- "यार यह मत पूछो कि कैसे, बस पहले दावत करो."

विश्वनाथजी- "लेकिन यार कहीं बात उलटी ना पड़ जाये. गाँव का मामला है. बहुत फ़जीता हो जायेगा."

सुरेश- "यार तुम इसकी क्यों फ़िक्र करते हो? सब कुछ हमारे उपर छोड़ दो."

रमेश- "यार एक बात है, बहु की जो सास (मेरी मामी) है उस पर भी बड़ा जोबन है. यार मै तो उसे किसी भी तरह चोदुंगा."

विश्वनाथजी- "अरे यार तुम लोग अपनी बात कर रहे या मेरे लिये बात कर रहे हो?"

महेश- "तुम कल दोपहर को दावत रखना और फिर जिसको चोदना चाहोगे उसी को चुदवा देंगे, चाहे सास चाहे बहु या फिर उसकी ननद."

विश्वनाथजी- "ठीक है फिर तुम चारों कल दोपहर को आ जाना."



मैने सोचा कि अब हमारी खैर नही. पीछे मुड़कर देखा तो भाभी खड़े-खड़े अपनी चूत खुजला रही है.



मैने कहा, "क्यों भाभी, चूत चुदवाने को खुजला रही हो?"

भाभी- "हाँ ननद रानी, अब आपसे क्या छुपाना! मेरी चूत बड़ी खुजला रही है. मन कर रहा के कोई मुझे पटक कर चोद दे."

मैने कहा, "पहले कहती तो किसी को रोक लेती जो तुम्हे पूरी रात चोदता रहता. खैर कोई बात नही कल शाम तक रुको. तुम्हारी चूत का भोसड़ा बन जायेगा. उन पाँचों के इरादे है हमे चोदने के और वह साला रमेश तो मामीजी को भी चोदना चहता है. अब देखेंगे मामी को किस तरह से चोदते हैं यह लोग."



अगली सुबह जब मैं सो कर उठी तो देखा कि सभी लोग सोये हुये थे. सिर्फ़ भाभी ही उठी हुई थी और विश्वनाथजी का लंड जो कि नींद मे भी तना हुआ था और भाभी गौर से उनके लंड को ही देख रही थी. उनका लंड धोती के अन्दर तन कर खड़ा था, करीब 10" लम्बा और 3" मोटा, एकदम रौड की तरह.



भाभी ने इधर-उधर देख कर अपने हाथ से उनकी धोती को लंड पर से हटा दिया और उनके नंगे लंड को देख कर अपने होठों पर जीभ फिराने लगी. मै भी बेशर्मों की तरह जाकर भाभी के पास खड़ी हो गयी और धीरे से कहा, "उई माँ"!"



भाभी मुझे देख कर शर्मा गयी और घूम कर चली गयी. मै भी भाभी के पीछे चली और उनसे कहा, "देखो कैसे बेहोश सो रहे हैं."

भाभी- "चुप रहो!"

मै- "क्यों भाभी, ज़्यादा अच्छा लग रहा है."

भाभी- "चुप भी रहो ना!"

मै- "इसमे चुप रहने की कौन सी बात है? जाओ और देखो और पकड़ कर मुंह मे भी ले लो उनका खड़ा लंड, बड़ा मज़ा आयेगा."

भाभी- "कुछ तो शर्म करो यूं ही बके जा रही हो."

मे- "तुम्हारी मर्ज़ी, वैसे उपर से धोती तो तुमने ही हटायी है."

भाभी- "अब चुप भी हो जाओ, कोई सुन लेग तो क्या सोचेगा."



फिर हम लोग रोज़ की तरह काम मे लग गये.



करीब दस बज़े विश्वनाथजी कुछ सामान लेकर आये और हमारे मामा के हाथ मे सामान थमा कर नाश्ते के लिये कहा. और कहा, "आज हमारे चार दोस्त आयेंगे और उनकी दावत करनी है यार. इसलिये यह सामान लाया हुँ भाईया. मुझे तो आता नही है कुछ बनाना. इसलिये तुम्ही लोगों को बनाना पड़ेग. और हाँ यार तुम पीते तो हो ना?" विश्वनाथजी ने मामाजी से पूछा.



मामा- "नही मै तो नही पीता हूँ यार."

विश्वनाथजी- "अरे यार कभी-कभी तो लेते होगे?"

मामा- "हाँ कभी-कभार की तो कोई बात नही."

विश्वनाथजी- "फिर ठीक है हमारे साथ तो लेना ही होगा."

मामा- "ठीक है देखा जायेगा."



हम लोगों ने सामान वगैरह बना कर तैयार कर लिया. 2 बज़े वह लोग आ गये. मै तो उस फिराक मे लग गयी कि यह लोग क्या बातें करते है.



मामा मामी और भाभी उपर के कमरे मे बैठे थे. मै उन चारों की आवाज़ सुन कर नीचे उतर आयी. वह पाँचो लोग बाहर की तरफ़ बने कमरे मे बैठे थे. मै बराबर वाले कमरे की किवाड़ों के सहारे खड़ी हो गयी और उनकी बातें सुनने लगी.



विश्वनाथजी- "दावत तो तुम लोगों की कर रहा हूँ. अब आगे क्या प्रोग्राम है?"

पहला- "यार ये तुम्हारा दोस्त दारू-वारू पीयेगा कि नही?"

विश्वनाथजी- "वह तो मना कर रहा था पर मैने उसे पीने के लिये मना लिया है."
दूसरा- "फिर क्या बात है! समझो काम बन गया. तुम लोग ऐसा करना कि पहले सब लोग साथ बैठ कर पीयेंगे. फिर उसके गिलास मे कुछ ज़्यादा डाल देंगे. जब वह नशे मे आ जायेगा तब किसी तरह पटा कर उसकी बीवी को भी पिला देंगे और फिर नशे मे लाकर उन सालीयों को पटक-पटक कर चोदेंगे."
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10-08-2018, 01:03 PM,
#5
RE: मेले के रंग सास, बहु, और ननद के संग
प्लान के मुताबिक उन्होने हमारे मामा को आवाज़ लगायी.

हमारे मामा नीचे उतर आये और बोले "राम-राम भाईया!"

मामा भी उसी पंचायत मे बैठ गये अब उन लोगों की गपशप होने लगी.
थोड़ी देर बाद आवाज़ आयी कि, "मीना बहू, गिलास और पानी देना!"

जब भाभी पानी और गिलास लेकर वहाँ गयी तो मैने देखा कि विश्वनाथजी की आंखें भाभी की चूचियों पर ही लगी हुई थी. उन्होने सभी गिलासों मे दारू और पानी डाला पर मैने देखा कि मामाजी के गिलास मे पानी कम और दारू ज़्यादा थी. उन्होने पानी और मंगाया तो भाभी ने लोटा मुझे देते हुए पानी लाने को कहा.

जब मै पानी लेने किचन मे गयी तो महेश तुरन्त ही मेरे पीछे-पीछे किचन मे आया और मेरी दोनो मम्मों को कस कर दबाते हुए बोल- "इतनी देर मे पानी लायी है, चूतमरानी? ज़रा जल्दी-जल्दी लाओ."

मेरी सिसकारी निकल गयी.

विश्वनाथजी ने मामाजी से पूछा, "वह तुम्हारा नौकर कहाँ गया?"
मामा- "वह नौकर को यहाँ उसके गाँव वाले मिल गये थे. सो उन्ही के साथ गया है. जब तक हम वापस जायेंगे तब तक मे वह आ जायेगा."

फिर जब तक हम लोगों ने खाना लगाया तब तक मे उन्होने दो बोतल खाली कर दी थी. मैने देखा कि मामा कुछ ज़्यादा नशे मे है. मैं समझ गयी कि उन्होने जान बूझ कर मामा को ज़्यादा शराब पिलायी है.

हम लोग खाना लगा ही चुके थे. मामीजी सबज़ी लेकर वहाँ गयी. मै भी पीछे-पीछे नमकीन लेकर पहुँची तो देखा कि रमेश ने मामीजी का हाथ थाम कर उन्हे दारू का गिलास पकड़ाना चाहा.

मामीजी ने दारू पीने से मन कर दिया. मै यह देख कर दरवाज़े पर ही रुक गयी. जब मामीजी ने दारू पीने से मना किया तो रमेश मामाजी से बोला- "अरे यार कहो ना अपनी घरवाली से! वह तो हमारी बेइज़्ज़ती कर रही है."
मामा ने मामी से कहा "राजो, पी लो ना क्यों बेइज़्ज़ती कर रही हो?"
मामीजी- "मै नही पीती."
रमेश- "भईया यह तो नही पी रही है, अगर आप कहें तो मै पिला दूं?"
मामा- "अगर नही पी रही है तो साली को पकड़ कर पिला दो!"

मामाजी का इतना कहना था कि रमेश ने वहीं मामीजी की बगल मे हाथ डाल कर दूसरे हाथ से दारू भरे गिलास को मामीजी के मुंह से लगा दिया और मामीजी को जबरदस्ती दारू पीनी पड़ी.

मैने देखा कि उसका जो हाथ बगल मे था उसी से वह मामीजी की चूचियां भी दबा रहा था. और जब वह इतनी बेफ़िक्री से मामीजी के बोबे दबा रहा था तो बाकी सभी की नज़रें (सिवाय मामाजी के) उसके हाथ से दबते हुए मामीजी के बोबों पर ही थी. यहाँ तक कि उनमे से एक ने तो गंदे इशारे करते हुए वहीं पर अपना लंड पैंट के उपर से ही मसलना शुरु कर दिया था.

मामीजी के मुंह से गिलास खाली करके मामीजी को छोड़ दिया. फिर जब मामीजी किचन मे आयी तो मैने जान बुझ कर मेरे हाथ मे जो सामान था वह मामीजी को पकड़ा दिया.

मामीजी ने वह सामान टेबल पर लगा दिया. फिर रमेश मामीजी के मना करने पर भी दूसरा गिलास मामीजी को पिला दिया. मामीजी मना करती ही रह गयी पर रमेश दारू पिला कर ही माना. और इस बार भी वही कहानी दोहरायी गयी. यानी कि एक हाथ दारू पिला रहा था और दूसरा हाथ मम्मे दबा रहा था और सब लोग इस नज़ारे को देख कर गरम हो रहे थे.

मामाजी की शायद किसी को परवाह ही नही थी क्योंकि वह तो वैसे भी एकदम नशे मे टुन्न हो चुके थे.

अब गिलास रख कर रमेश ने मामीजी के चूतड़ों पर हाथ फिराया और दूसरे हाथ से उनकी चूत को पकड़ कर दबा दिया. मामीजी सिसकी लेकर रह गयी.

मामीजी को सिसकारी लेते देख कर मेरी भी चुत मे सुरसुरी होने लगी.

हम लोग उपर चले गये. फिर नीचे से पानी की आवाज़ आयी. मामीजी पानी लेकर नीचे गयी. तब तक रमेश किचन मे आ पहुँचा था. मामीजी जो पानी देकर लौटी तो रमेश ने मामीजी का हाथ पकड़ कर पास के दूसरे कमरे मे ले जाने लगा.

मामीजी ने कहा, "अरे ये क्या कर रहे हो?" तो वह बोला, "चलो मेरी रानी, उस कमरे चल कर मज़ा उठाते हैं."

मामीजी खुद नशे मे थीं इसलिये कमज़ोर पड़ गयी और ना-ना करती ही रह गयी. पर रमेश उन्हे खींच कर उस कमरे मे ले गया. 

मेरी नज़र तो उन दोनो पर ही थी इसलिये जैसे ही वह कमरे मे घुसे मैं तुरन्त दौड़ते हुए उनके पीछे जाकर उस कमरे के बाहर छुप कर देखने लगी कि आगे क्या होता है.

रमेश ने मामीजी को पकड़ कर पलंक पर डाल दिया और उनके पेटीकोट मे हाथ डाल कर उनकी चूत मे उंगली करने लगा.

मामीजी- "हाय, यह क्या कर रहे हो. छोड़ो मुझे नही तो मै चिल्लाऊंगी!"
रमेश- "मेरा क्या जायेगा, चिल्लाओ जोर से! बदनामी तो तुम्हारी ही होगी. नही तो चुपचाप जो मैं करता हूँ वह करवाती रहो!"
मामीजी- "पर तुम करना क्या चाहते हो?"
रमेश- "चुप रहो! तुम्हे क्या मालूम नही है कि मै क्या करने जा रहा हूँ? साली अभी तुझे चोदूंगा. चिल्लायी तो तेरे सभी रिश्तेदार यहाँ आके तुझे नंगी देखेंगे और सोचेंगे कि तू ही हमे यहाँ अपनी चूत मरवाने बुलायी है".

डर के मारे मामीजी चुपचाप पड़ी रहीं और रमेश ने अपने सारे कपड़े उतार कर अपने खड़े लंड का ऐसा जोर का ठाप मारा कि उसका आधा लंड मामीजी की चुत मे घुस गया.

मामीजी- "उइइइ माँ मै मरी!"

मामीजी नशे मे होते हुए भी सिसकीयाँ ले रही थी. तभी रमेश ने दूसरा ठाप भी मारा कि उसका पूरा लंड अन्दर घुस गया.

मामीजी "उईई माँ!! अरे ज़ालिम क्या कर कर रहा है? थोड़ा धीरे से कर" कहती ही रह गयी और वह इंजन के पिस्टन की तरह मामीजी की चूत (जो कि पहले ही भोसड़ा बनी हुई थी) उसके चीथड़े उड़ाने लगा.

इतने मे मैने विश्वनाथजी को उपर की तरफ़ जाते देखा. मै भी उनके पीछे उपर गयी और बाहर से देखा कि भाभी जो कि अपना पेटीकोट उठा कर अपनी चूत मे उंगली कर रही थी, उसका हाथ पकड़ कर विश्वनाथजी ने कहा, "हाय मेरी जान! हम काहे के लिये हैं? क्यों अपनी उंगली से काम चला रही है? क्या हमारे लंड को मौक नही दोगी?"

अपनी चोरी पकड़े जाने पर भाभी की नज़रें झुक गयी थी और वह चुपचाप खड़ी रह गयी.
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10-08-2018, 01:04 PM,
#6
RE: मेले के रंग सास, बहु, और ननद के संग
विश्वनाथजी ने भाभी को अपने सीने से लगा कर उनके होठों को चूसना शुरु कर दिया. साथ ही साथ वह उनकी चूचियों को भी दबा रहे थे. भाभी भी अब उनके वश मे हो चुकी थी. उन्होने अपनी धोती हटा कर अपना लंड भाभी के हाथों मे पकड़ा दिया. भाभी उनके लंड को, जो कि बांस की तरह खड़ा हो चुका था, सहलाने लगी. उन्होने भाभी की चूचियां छोड़ कर उनके सारे कपड़े उतार दिये और भाभी को वहीं पर लिटा दिया और उनके चूतड़ के नीचे तकिया लगा कर अपना लंड उनकी चूत के मुहाने पर रख कर एक जोरदार धक्का मारा.

पर कुछ विश्वनाथजी का लंड बहुत बड़ा था और कुछ भाभी की चुत बहुत सिकुड़ी थी. इसलिये उनका लंड अन्दर जाने के बज़ाय वहीं अटक कर रह गया. इस पर विश्वनाथजी बोले, "लगाता है कि तेरे आदमी का लंड साला बच्चों की लुल्ली जितना है. तभी तो तेरी चुत इतनी टाईट है कि लगाता है जैसे बिनचुदी चुत मे घुसाया है लंड."

और फिर इधर उधर देख कर वहीं कोने मे रखी घी की कटोरी देख कर खुश हो गये और बोले, "लगता है साली चूतमरानी ने पूरी तयारी कर रखी थी और इसलिये यहाँ पर घी की कटोरी भी रखी हुई है जिससे कि चुदवाने मे कोई तक्लीफ़ ना हो!"

इतना कह कर उन्होने तुरन्त ही पास रखी घी की कटोरी से कुछ घी निकाला और अपने लंड पर घी चुपड़ कर तुरन्त फिर से लंड को चूत पर रख कर धक्का मारा. इस बार लंड तो अन्दर घुस गया पर भाभी के मुंह से जोरो कि चीख निकल पड़ी, "आह्ह्ह मै मरी!! हाय ज़ालिम तेरा लंड है या बांस का खुंटा!"

इसके बाद विश्वनाथजी फ़ौर्म मे आ गये और तबाड़-तोड़ धक्के मारने लगे.

भाभी "है राजा मर गयी! उइइइइ माँ! थोड़ा धीमे करो ना!" करती ही रह गयी और वह धक्के पे धक्के मारे जा रहे थे. रूम मे हचपच हचपच की ऐसी आवाज़ आ रही थी मानो 110 की.मी. की रफ़तार से गाड़ी चल रही हो.

कुछ देर के बाद भाभी को भी मज़ा आने लगा और वह कहने लगी, "हाय राजा और जोर से मारो मेरी चुत! हाय बड़ा मज़ा आ रहा है! आह्ह्ह बस ऐसे ही करते रहो आह्ह्ह!! आउच!! और जोर से पेलो मेरे राजा!! फाड़ दो मेरी बुर को आह्ह्ह्ह!! पर यह क्या मेरी चूचियों से क्या दुशमनी है? इन्हे उखाड़ देने का इरादा है क्या? हाय! ज़रा प्यार से दबाओ मेरी चूचियों को!"

मैने देखा कि विश्वनाथजी मेरी भाभी की चूचियों को बड़ी ही बेदर्दी से किसी होर्न की तरह दबाते हुए घचाघच पेले जा रहे थे.

तब पीछे से सुरेश ने आकर मेरे बगल मे हाथ डाल कर मेरी चूचियां दबाते हुए बोला, "अरी छिनाल, तुम यहाँ इनकी चुदाई देख कर मज़े ले रही और मै अपना लंड हाथ मे लिये तुम्हे सारे घर मे ढूँढ रहा था!"

इधर मेरी भी चूत भाभी और मामीजी की चुदाई देख कर पनिया रही थी. मुझे सुरेश बगल वाले कमरे मे उठा ले गया और मेरे सारे कपड़े खींच कर मुझे एकदम नंगा कर दिया, और खुद भी नंगा हो गया. फिर मुझे बेड पर लेटा कर मेरी दोनों चूचियां सहलाने लगा, और कभी मेरे निप्पल को मुंह मे लेकर चूसने लगाता. इन सबसे मेरी चूत मे चींटीयाँ सी रेंगने लगी, और बुर की पुटिया (clitoris) फड़्फाड़ने लगी.

उसने मेरा हाथ पकड़ कर अपने खड़े लंड पर रखा और मै उसके लंड को सहलाने लगी. मैं जैसे-जैसे उसके लंड को सहला रही थी वैसे ही वह एक लोहे के रौड की तरह कड़क होता जा रहा था. मुझसे बर्दाश्त नही हो रहा था और मै उसके लंड को पकड़ कर अपनी चूत से भिड़ा रही थी कि किसी तरह से ये ज़ालिम मुझे चोदे, और वह था कि मेरी चुत को उंगली से ही कुरेद रहा था.

शरम छोड़ कर मै बोली, "हाय राजा! अब बर्दाश्त नही हो रहा है! जल्दी से करो ना!"

मेरे मुंह से सिसकारी निकल रही थी. अंत मे मै खुद ही उसका हाथ अपनी बुर से हटा कर उसके लंड पर अपनी चुत भिड़ा कर उसके उपर चढ़ गयी और अपनी चुत के घस्से उसके लंड पर देने लगी. उसके दोनो हाथ मेरे मम्मों को कस कर दबा रहे थे और साथ मे निप्पल भी छेड़ रहे थे. अब मै उसके उपर थी और वह मेरे नीचे. वह नीचे उचक-उचक कर मेरी बुर मे अपने लंड का धक्का दे रहा था और मै उपर से दबा-दबा कर उसका लंड सटक रही थी.

कभी कभी तो मेरी चूचियों को पकड़ कर इतनी जोर से खींचता कि मेरा मुंह उसके मुंह तक पहुँच जाता और वह मेरे होंठ को अपने मुंह मे लेकर चूसने लगाता. मैं जन्नत मे नाच रही थी और मेरी चुत मे खुजलाहट बढ़ती ही जा रही थी. मैं दबा दबा कर चुदा रही थी और बोल रही थी, "हाय मेरे चोदू सईयाँ! और जोरो से चोदो मेरी फुद्दी! भर दो अपने मदन रस से मेरी फुद्दी! आह्ह्ह!! बड़ा मज़ा आ रहा है! बस इसी तरह से लगे रहो! हाय! कितना अच्छा चोद रहे हो, बस थोड़ा सा और! मै बस झड़ने ही वाली हूँ! और थोडा धक्का मारो मेरे सरताज़!! आह!! लो मै गयी! मेरा पानी निकला..."

और इस तरह मेरी चूत ने पानी छोड़ दिया. मुझे इतनी जल्दी झड़ते देख, सुरेश खुब भड़क गया और बोला, "साली चूतमरानी, मुझसे पहले ही पानी छोड़ दिया, अब मेरा पानी कहाँ जायेगा?"

सुरेश - "अब तेरी पिलपिलि चुत मे क्या रखा है. क्या मज़ा अयेगा भरी चुत मे पानी निकलने का? अब तो तेरी गांड मे पेलुंगा."

और उसने तुरन्त अपने लंड को मेरी बुर से बाहर खींच और मुझे नीच गिरा कर कुत्ती बनाया और मेरे उपर चढ़ कर मेरी गांड चिदोर कर अपना लंड गांड के छेद पर रख कर जोर का ठाप मारा. बुर के रस मे भीगे होने के कारण उसके लंड का टोपा फट से मेरी गांड मे घुस गया और मै एकदम से चीख पड़ी. "उउउउइइइइइ माँ! मर गयी, हाय निकालो अपना लंड मेरी गांड फट रही है!!"

तब उसने दूसरी ठाप मेरी गांड पर मारी और उसका आधे से ज़्यादा लंड मेरी गांड मे घुस गया. और मै चिल्ला उठी "अरे राम!! थोड़ा तो रहम खाओ, मेरी गांड फटी जा रही है रे ज़ालिम! थोड़ा धीरे से, अरे बदमाश अपना लंड निकाल ले मेरी गांड से नही तो मैं मर जाऊंगी आज ही!"

सुरेश- "अरी चुप्प! साली छिनाल, नखरा मत कर नही तो यहीन पर चाकु से तेरी चुत फाड़ दूंगा, फिर ज़िन्दगी भर गांड ही मरवाते रहना! थोड़ी देर बाद खुद ही कहेगी कि हाय मज़ा आ रहा है, और मारो मेरी गांड."

और कहते के साथ ही उसने तीसरा ठाप मारा कि उसका लंड पूरा का पूरा समा गया मेरी गांड मे. मेरी आंखों से आंसू निकल रहे थे और मै दर्द को सह नही पा रही थी. मैं दर्द के मारे बिलबिला रही थी. मै अपनी गांड को इधर-उधर झटका मार रही थी किसी तरह उसका हल्लबी लंड मेरी गांड से निकल जाये. लेकिन उसने मुझे इतना कस के दबा रखा था कि लाख कोशिशों के बावज़ूद भी उसका लंड मेरी गांड से निकल नही पाया.
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10-08-2018, 01:04 PM,
#7
RE: मेले के रंग सास, बहु, और ननद के संग
अब उसने अपना लंड अन्दर-बाहर करना शुरू किया. वह बहुत धीरे-धीरे धका मार रहा था, और कुछ ही मिनटों मे मेरी गांड भी उसका लंड करने लगी. धीरे-धीरे उसकी स्पीड बढ़ती ही जा रही थी, और अब वह ठापाठप किसी पिस्टन की तरह मेरी गांड मे अपना लंड पेल रहा था. मुझे भी सुख मिल रहा था, और अब मै भी बोलने लगी, "हाय मज़ा आ रहा है! और जोर से मारो, और मारो और बना दो मेरी गांड का भुर्ता! और दबाओ मेरे मम्में, और जोर दिखाओ अपने लंड का और फाड़ दो मेरी गांड. अब दिखाओ अपने लंड की ताकत!"

सुरेश- "हाय जानी, अब गया, अब और नही रुक सकता! ले साली रण्डी, गांडमरानी, ले मेरे लंड का पानी अपनी गांड मे ले!" कहते हुए उसके लंड ने मेरी गांड मे अपने वीर्य की उलटी कर दी. वह चूचियां दाबे मेरी कमर से इस तरह चिपक गया था मानो मीलों दौड़ कर आया हो.

थोड़ी देर बाद उसका मुर्झाया हुआ लंड मेरी गांड मे से निकल गया और वह मेरी चूचियां दबाते हुए उठ खड़ा हुआ, और मुझे सीधा करके अपने सीने से सटा कर मेरे होठों की पप्पी लेने लगा.

तभी महेश आकर बोला, "अबे किसी और का नम्बर आयेगा या नही? या सारा समय तू ही इसे चोदता रहेगा?"
सुरेश- "नही यार तू ही इसे सम्भाल अब मै चला."

यह कह कर सुरेश ने मुझे महेश की तरफ़ धकेला और बाहर चला गया.

महेश ने तुरन्त मुझे अपनी बाहों मे समा लिया और मेरे गाल चुमने लगा. और एक गाल मुंह मे भर कर दांत गाड़ने लगा जिससे मुझे दर्द होने लगा और मै सिसिया उठी.

वह मेरी दोनो चूचियों को कस कर भोंपु की तरह दबाने लगा. कहा "मेरी जान मज़ा आ रहा है कि नही?" और मुझे खींच कर पलंक पर लेटा दिया और अपने सारे कपड़े उतार कर मेरे पास आया, और वहीं जमीन पर पड़ा हुआ मेरी पेटीकोट उठा कर मेरी बुर पोंछते हुए कभी मेरे गालों पर काटने लगा और मेरी चूचियां जोरो से दबा देता.

जैसे-जैसे वह मेरे मम्मों की पम्पिंग कर रहा था, वैसे ही उसका लंड खड़ा हो रहा था मानो कोई उसमे हवा भर रहा हो.

उसने मेरा हाथ पकड़ कर अपने लंड पर रखा और मुझे अपना लंड सहलाने का इशरा किया. मैने अपना हाथ उसके लंड से हटा लिया तो उसने पूछा, "मेरी जान अच्छा नही लगा रहा है क्या?"

मै छिनारा करते हुए बोली, "नही यह बात नही है पर हमको शर्म आ रही है!"
वह बोला, "चूतमरानी, भोसड़ीवाली, दो दिनों से चूत मरवा रही है, और अब कहती है कि शर्म आ रही है!मादरचोद, चल अच्छे से लंड सहला नही तो तेरी बुर मे चाकू घोंप कर मार डालुंगा!"

मैं डर कर उसके लंड को सहलाने लगी. जैसे-जैसे लंड सहला रही थी मुझे आभास होने लगा कि महेश का लंड सुरेश के लंड से करीब आधा इन्च मोटा और 2 इन्च लम्बा है. मैने भी सोच जो होगा देखा जायेगा. उसका लंड एक लोहे के रौड की तरह कड़ा हो गया था.

अब वह खड़ा होकर पास पड़ा तकिया उठा कर मेरे चूतड़ों के नीचे लगाया और फिर ढेर सारा थूक मेरी बुर के मुहाने पर लगा कर अपना लंड मेरी चूत के मुंह पर रख कर जोर का धक्का मारा. उसका आधे से ज़्यादा लंड मेरी बुर मे घुस गया.

मै सिसिया उठी. जबकी मै कुछ ही देर पहले सुरेश से चूत और गांड दोनों मरवा चुकि थी फिर भी मेरी बुर बिलबिला उठी. उसका लंड मेरी बुर मे बड़ा कसा-कसा जा रहा था. फिर दुबारा ठाप मारा तो पूरा लंड मेरी बुर मे समा गया.

मैं जोरो से चिल्ला उठी, "हाय मै दर्द से मरी.............दर्द हो रहा है!! प्लीज थोड़ा धीरे डालो! मेरी बुर फटी जा रही है!!"

महेश- "अरे चुप साली, तबियत से चुदवा नही रही है और हल्ला कर रही है, मेरी फटी जा रही है, जैसे कि पहली बार चुदवा रही है. अभी-अभी चुदवा चुकी है चूतमरानी और हल्ला कर रही है जैसे कोई सील बन्द कुंवारी लड़की हो."

अब वह मुझे पकड़ कर धीरे-धीरे अपना लंड मेरी चूत के अन्दर बाहर करने लगा. मेरी बुर भी पानी छोड़ने लगी. बुर भीगी होने के कारण लंड बुर मे आराम से अन्दर बाहर जाने लगा, और मुझे भी मज़ा आने लगा.

महेश ने मुझे पलटी देकर अपने उपर किया और नीचे से मुझे चोदने लगा. जब वह नीचे से उपर उचक कर अपने लंड को मेरी बुर मे ठांसता था तो मेरी दोनो चूचियां पकड़ कर मुझे नीचे की ओर खींचता था जिससे लंड पूरा चुत के अन्दर तक जा रहा था. इस तरह से वह चोदने लगा और साथ-साथ मेरे मम्मे भी पम्पिंग कर रहा था, और कभी मेरे गालों पर बटका भर लेता था तो कभी मेरे निप्पल अपने दांतों से काट खाता था. पर जब वह मेरे होठों को चूसता तो मै बेहाल हो जाती थी और मुझे भी खूब मज़ा आता था.

मैं मज़े मे बड़बड़ा रही थी - "हाय मेरे राजा!! मज़ा आ रहा है, और जोर से चोदो और बना दो मेरी चुत का भोसड़ा!!"

और साथ ही मैने भी अपनी तरफ़ से धक्के मारना शुरू कर दिया, और जब उसका लंड पुर मेरी बुर के अन्दर होता था तो मै बुर को और कस लेती थी. जब लंड बाहर आता था तो बुर को ढीला छोड़ देती थी. वह कुछ रुक-रुक कर मुझे चोद रहा था.

मे बोली "हाय राजा ज़रा जल्दी-जल्दी करो ना, और मज़ा आयेगा, इतना धीरे क्यों मार रहे हो मेरी चुत?"

जब मुझसे रहा नही गया तो मे खुद ही उपर से अपनी कमर के धक्के उसके लंड पर मारने लगी.

इतनी देर मे देखा कि दूसरे रूम से विश्वनाथजी नंगे ही मेरी प्यारी भाभी की चुत, जिसे भोसड़ा कहना ज्यादा ठीक होगा, चोद कर हमारे रूम मे घुसे और मुझे चुदता हुआ देखा कर बोले "यहाँ चुत मरा रही, साली ननद रानी, इसकी भाभी को तो पेल कर आ रहा हूँ. चलो इससे भी लंड चुसवा लूँ! क्या याद रखेगी कि एक साथ दो-दो लंड मिले थे इसे."

और इतना कह कर तुरन्त मेरे पास आकर खड़े हुए और अपना लंड, जो कि तब पूरी तरह से खड़ा नही था, मेरे मुंह मे घुसा दिया.

मैने भी पूरा मुंह खोल कर उनके लंड को अन्दर किया और फिर धक्को की ताल पर ही उसे चूसने लगे. विश्वनाथजी साथ-साथ मे मेरी चूचियां भी मसल रहे थे. कुछ ही देर मे उनका लंड भी पुर खड़ा हो गया और मुझे अपने हलक मे फंसता हुआ सा मेहसूस होने लगा. पर मैने उनका लंड छोड़ा नही और बराबर चूसती ही रही. यह पहली बार था कि मेरी बुर और मुंह मे एक साथ दो-दो लंड थे और मै इसका पूरा मज़ा लेना चाहती थी, और मुझे मज़ा भी बहुत आ रहा था इस दोहरी चुदाई और चुसाई मे.

कुछ ही देर मे महेश के लंड ने पानी छोड़ दिया और उसके कुछ ही पलों बाद विश्वनाथजी के लंड ने भी मेरे मुंह मे पानी की धार छोड़ दी. जब मैने उनके लंड को मुंह से निकालना चाहा तो उन्होने कस कर मेरे चहरे को अपने लंड पर दाबे रखा और जब तक मै पूरा वीर्य पी नही गयी उन्होने मुझे छोड़ा नही. इसके बाद वह भी निढाल से वहीं पर पड़ गये.

चुदाई और चुसाई का यह प्रोग्राम रात भर इसी तरह चलता रहा और ना जाने मै और भाभी और मामीजी कितनी बार चुदे होंगे उस रात.

अंत मे थक हार कर हम सभी यूँ ही नंगे ही सो गये.

सुबह मेरी आंख खुली तो देखा कि मै नंगी ही पड़ी हुई हूँ. मैं जल्दी से उठी और कपड़े पहन कर बाहर किचन की तरफ़ गयी तो देखा कि भाभी भी नंगी ही पड़ी हुई हैं. मुझे मस्ती सुझी और मे करीब ही पड़ा बेलन उठा कर उस पर थोड़ा सा तेल लगा कर उनकी बुर मे घोंप दिया. बेलन का उनकी चुत मे घुसना था कि वह आह!! करते हुए उठ बैठी, और बोली "यह क्या कर रही हो?"

मैं बोली "मैं क्या कर रही हूँ, तुम चुत खोले पड़ी थी मै सोची तुम चुदासी हो, और चोदने वाले तो कब के चले गये, इसलिये तुम्हारी बुर मे बेलन लगा दिया."

भाभी- "तुम्हे तो बस यही सूझता रहता है".

मैने उनकी बुर से बेलन खींच कर कहा "चलो जल्दी उठो, वर्ना मामा मामी आ जायेंगे तो क्या कहेंगे. रात तो खुब मज़ा लिया, कुछ मुझे भी तो बताओ क्या किया?"

भाभी- "बाद मे बताऊंगी कि क्या किया" कह कर कपड़े पहनने लगी तो मै मामीजी को उठाने चली गयी.

मामी भी मस्त चुत खोले पड़ी थी. मैने उनकी चूचियों पर हाथ रख कर उन्हे हिलाया और उठाया और कहा, "मामी यह तुम कैसे पड़ी हो! कोई देखेगा तो क्या सोचेगा?"

वह जल्दी से उठी और कपड़े पहनने लगी. फिर मेरे साथ ही बाहर निकल गयी.
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10-08-2018, 01:04 PM,
#8
RE: मेले के रंग सास, बहु, और ननद के संग
मामा उलटे मुंह किये सो रहे थे और उधर विश्वनाथजी भी मामा के पास ही पड़े हुए थे. ऐसा मालूम होता था मानो रात को कुछ हुआ ही नही था. सब लोग उठ कर फारिग हुए और खाना बनाया और खाना खाया. खाना खाते हुए विश्वनाथजी कभी मुझे और कभी भाभी को घूर कर देख रहे थे.

मै बोली, "भाभी विश्वनाथजी ऐसे देख रहे हैं कि मानो अभी फिर से तुम्हे चोद देंगे."
भाभी- "मुझे भी ऐसा ही लग रहा है. बताओ अब क्या किया जाये."
मै बोली- "किया क्या जाये, चुप रहो, चुदवाओ और मज़ा लो."
भाभी- "तुम्हे तो हर वक्त चुदाई के सिवाये और कुछ सूझता ही नही है."
मै बोली- "अच्छा! बन तो ऐसी शरीफ़जादी रही ही हो जैसे कभी चुदावाया हि नही हो! चार दिनों से लौड़ों का पीछा ही नही छोड़ रही और यहाँ अपनी शराफ़त की माँ चुदा रही हो."
भाभी- "अब बस भी करो! मैने गलती की जो तुम्हारे सामने मुंह खोला. चुप करो नही तो कोई सुन लेगा."

और इस तरह हमारी नोंक-झोंक खत्म हुई.


अगले दिन हमारी मामीजी ने कहा कि उनके पीहर के यहाँ से बुलावा आया है और वह दो दिन के लिये वहाँ जाना चाहती हैं. इस पर मामाजी बोले, "भाई मैं तो काफ़ी थका हुआ हूँ और वहाँ जाने की मेरी कोई इच्छा नही है."

विश्वनाथजी तो जैसे मौका ही तलाश कर रहे थे मामीजी के साथ जाने का, (या फिर मामी को चोदने का चांस पाने का क्योंकि कल के दिन विश्वनाथजी मामी को चोद नही पाये थे.) तुरन्त ही बोले, "कोई बात नही भाईसाहब, मैं हूँ ना! मैं ले जाऊंगा भाभीजी को उनके मैके और दो दिन बिता कर हम वहाँ से वापस यहाँ पर आ जायेंगे."

विश्वनाथजी की यह बेताबी देख कर भाभी और मैं मुंह दबा कर हंस रहे थे. जानते थे कि विश्वनाथजी मौका पाते ही मामीजी की चुदाई जरूर करेंगे. और सच पूछो तो मामीजी भी जरूर उनसे चुदवाना चाह रही होंगी इसलिये एक बार भी ना-नुकुर किये बिना तुरन्त ही मान गयी."

अब हमारी मामी और विश्वनाथजी के जाने के बाद हमारे लिये रास्ता एक दम साफ़ था.

शाम के वक्त हम तीनो याने मै, मेरी भाभी और हमारे मामाजी घूमने निकले. याने कि मेला देखने (और मेला देखने के बहाने अपनी चूचि गांड और चूत मसलवाने) निकले.

भाभी मुझे फिर से भीड़-भाड़ मे ले गयी. मामाजी पीछे पीछे चल रहे थे और कहते ही रह गये कि हम ज्यादा भीड़ मे न जायें नही तो पिछली बार की तरह फिर खो जायेंगे. जल्दी ही मामाजी भीड़ मे काफ़ी पीछे रह गये.

मैं तो भाभी के इरादे समझ रही थी. पिछली रात की जबर्दस्त चुदाई के बाद हम दोनो की प्यास कम होने के बजाय बढ़ गयी थी. शायद वह इस उम्मीद मे थी कि पिछली बार की तरह चूची, चूत, और गांड मसलवाने के साथ हो सके तो सामुहिक बलात्कार का भी मज़ा मिल जाये.

मैने भाभी से पूछा, "क्या भाभी, उस दिन के बलात्कार की याद आ रही है, जो फिर से भीड़ मे जा रही हो?"
भाभी मुझे चूंटी काटकर बोली, "चुप भी करो! बाबूजी पीछे पीछे आ रहे हैं. सुनेंगे तो क्या सोचेंगे?"
मैने भी भाभी को चूंटी काटा और कहा, "यही सोचेंगे कि कितनी छिनाल है उनकी बहु, और हो सकता है वह भी तुम पर हाथ साफ़ करने की कोशिश करें."
भाभी ने मुँह बनाया और कहा, "उफ़्फ़! तुमको तो कुछ कहना ही बेकार है! मेरे साथ साथ चलती रहो और मुँह बन्द करके मज़े लेती रहो."

मैने भाभी की सलाह मान ली. जल्दी ही भीड़ मे कुछ आदमी हमारे पीछे पड़ गये और भीड़ का फ़ायदा उठाकर कभी हमारे गांड तो कभी हमारी चूची दबा देते थे. एक आदमी मेरे बगल बगल मे चल रहा था और एक हाथ से मेरी एक चूची दबा रहा था और दूसरे हाथ से मेरी गांड दबा रहा था. इससे मुझे जवानी की मस्ती चढ़ने लगी. मामाजी मुझे मज़ा लेते हुए देख न लें इसलिये मैं भीड़ मे उनसे और भाभी से थोड़ा अलग हो गयी.

अब मैं आराम से अपनी चूची और गांड दबवा रही थी और भाभी को आगे देख रही थी. मैने देखा कि दो आदमी भाभी को दो तरफ़ से घेरे थे और भाभी उनसे अपनी दोनो चूचियां मसलवा रही थी. हम इस तरह मज़े ले ले कर अलग अलग दुकानों मे घूमने लगे.

अचानक मैने देखा कि मामाजी भीड़ मे हमे ढूंढते ढूंढते भाभी के करीब पहुंच गये हैं और पीछे खड़े होकर उन दो आदमीयों को छेड़-छाड़ करते देख रहे हैं. मैं जल्दी से जाकर भाभी को होशियार करना चाहती थी, पर जो आदमी मेरे चूची पर लगा हुआ था उसने मुझे हिलने ही नही दिया.

भाभी मज़े से एक दुकान के सामने खड़े हो कर उन दोनो आदमीयों से अपनी चूची मसलवाये जा रही थी. मामाजी को यह जल्दी समझ मे आ गया कि भाभी को छेड़-छाड़ मे मज़ा आ रहा है.

मैं डर गयी कि अब क्या होगा. पर मैने देखा कि थोड़ी देर भाभी को देखने के बाद मामाजी ने अपना हाथ बढ़ाकर भाभी की गांड को छू लिया. भाभी अपनी चूचियों को मसलवाने मे इतनी मश्गुल थी कि उनको ध्यान नही आया कि उनके ससुर पीछे खड़े हैं. जब भाभी ने कोई प्रतिक्रिया नही की, तो मामाजी ने अपनी बहु की गांड को जोर से दबाना शुरू किया. अनजाने मे भाभी खड़े खड़े ससुर से गांड दबवाने का मज़ा लेने लगी. साथ मे उन दो आदमीयों के खड़े लण्डों को पैंट के उपर से दबाने लगी.

अब मुझे मामला समझ मे आने लगा. मामाजी को समझ मे आ गया था कि उनकी बहु बदचलन है, और वह भी उसकी जवानी का मज़ा लेना चाहते थे.

मैं भीड़ मे धीरे धीरे सरकते हुए भाभी के पास पहुंची और उसे पुकारा. भाभी पीछे मुड़ी तो उसने अपने ससुर को पीछे खड़ा पाया. उसके तो चेहरे के रंग उड़ गये. मामाजी ने भी झट से अपना हाथ हटा लिया.

मैने मामला संभालते हुए कहा, "उफ़्फ़ कितनी भीड़ है ना, भाभी! थोड़ा हिलना भी मुश्किल है!"
मामाजी बोले, "हाँ बिटिया! मैं तो कहता हूँ हम घर चलते हैं. काफ़ी घूम लिये भीड़ मे."

मैं और भाभी उदास हो गये क्योंकि हमको भीड़ मे जवानी का मज़ा मिल रहा था.
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10-08-2018, 01:04 PM,
#9
RE: मेले के रंग सास, बहु, और ननद के संग
रास्ते भर तांगे मे बैठे मामाजी कनखियों से भाभी की थिरकती हुई चूचियों को देखते रहे.

घर पहुंचकर मामाजी बोले, "मीना बहु, थोड़ा चाय-नाश्ता बना दे! बहुत भूख लगी है." मैने मन मे सोचा, "मामाजी, आपको तो अब भाभी की जवानी की भूख है! नाश्ते से क्या होगा?"

मैं भाभी के पीछे किचन मे गयी. भाभी ने चुल्हे पर चाय का पानी चढ़ा दिया. वह बहुत गुस्से मे लग रही थी.

मैने पूछा, "भाभी, इतनी गुस्से मे क्यों हो?"
भाभी- "बाबूजी की वजह से सारा मज़ा किरकिरा हो गया और तुम बोलती हो गुस्से मे क्यों हूँ!"
मैने भोली बनते हुए पूछा, "कौन सा मज़ा, भाभी?"
भाभी - "बहुत भोली बनती हो मेरी रांड ननद रानी! जैसे खुद मेले मे चूची, चूत, और गांड टिपवा के मज़ा नही ले रही थी! और थोड़ा वक्त मिलता तो वह दोनो आदमी मुझे मेले के बाहर कहीं सुनसान मे ले जाकर पटक के चोदते. पता है, कल की चुदाई के बाद से मैं लौड़ा लेने के लिये मरी जा रही हूँ!"
मैं- "भाभी, मेरी भी यही हालत है! पर कोई बात नही. फिर कभी मौका मिल जायेगा."
भाभी - "अब कहाँ मौका मिलेगा, वीणा! सासुमाँ के लौटते ही बाबूजी हमको हाज़ीपुर वापस ले जायेंगे. वहाँ सब की निग्रानी मे कहाँ इतना जवानी का मज़ा मिलेगा!"

मैने मन मे सोचा, "तू तो साली लण्ड ढूँढ ही लेगी. एक तो तेरा पति है तेरी प्यास बुझाने के लिये. ऊपर से तेरी सास कल चुदवा के रांड बन गयी है. दूजे तेरा ससुर भी तेरी जवानी पे आशिक हो गया है. तेरा तो पेट भी ठहर गया तो किसी को कुछ पता नही चलेगा. पर मेरा क्या होगा? घर जाने के बाद तो मैं लण्ड के लिये तरस जाऊंगी!"

भाभी ने चाय बनाकर कप मे डाली तो मैने कहा, "भाभी तुम मामाजी को चाय देकर आओ. मैं कुछ जुगत लगाती हूँ."

भाभी मामाजी को चाय देने गयी तो मैं किवाड़ पर खड़े होकर दोनो को देखने लगी. भाभी का थोड़ा घूंघट था, पर जब चाय देने के लिये झुकी तो ब्लाऊज़ के ऊपर से उसके चूचियों की झलक मामाजी को दिख गयी. मामाजी अपनी बहु की मस्त चूचियों को आँखें गाड़े घूरते रहे जब तक कि ना भाभी ने आंचल से अपनी चूचियों को ढक लिया.

भाभी किचन मे वापस आई तो मैने कहा, "क्यों भाभी, कुछ आया समझ मे?"
भाभी का चेहरा शरम से लाल हो रहा था और वह मंद मंद मुसकुरा रही थी. बिना जवाब दिये वह कढ़ाई मे मामाजी के लिये पकोड़े तलने लगी.

मैने कहा, "भाभी, तुम्हारा काम तो समझो बन गया."
भाभी- "क्या मतलब?"
मैं- "मतलब ससुराल मे तुम्हारी चुदाई की व्यवस्था हो गयी."
भाभी- "वह व्यवस्था तो मेरी पहले से ही है. मेरा आदमी है न वहाँ."
मैं- "अरे वह चुदाई भी कोई चुदाई है! सोनपुर की सामुहिक रगड़ाई के बाद अपने पति की चुदाई तुमको बिलकुल फिकी लगेगी, भाभी!"
भाभी- "यह तो तुम ठीक कह रही हो, वीणा. चुदाई का जितना मज़ा यहाँ आकर मिला, घर पर नही मिल सकता. पर मैं करूं तो क्या करूं?"
मैं- "भाभी, यह बताओ, बलराम भईया (भाभी के पतिदेव) घर पर कितने रहते हैं?"
भाभी- "वह तो सारा दिन खेत मे काम पर ही रहते हैं. रात को ही घर आते हैं."
मैं- "बस और क्या चाहिये? रात को तुम भईया का लण्ड लेना. और दिन मे जो लण्ड घर पर मिल जाये वह ले लेना!"
भाभी- "ननद रानीजी, यह भी तो बताओ घर पर और कौन सा लण्ड है?"
मैं- "क्यों, तुम्हारे देवर किशन का नही है क्या?"
भाभी- "वह तो बच्चा है, यार! अभी 18 का ही हुआ है."
मैं- "तो चुदाई सिखा दो ना उसको! और मामाजी का लण्ड भी तो है ना!"

भाभी ने मुझे बनावटी गुस्से से देखा और कहा, "चुप कर मुँहफट! कुछ भी बोल देती हो. वह मेरे ससुर हैं!"
मैं- "तो यह बताओ भाभी, जब तुम चाय देने गयी थी, ससुरजी अपनी प्यारी बहु की गोल-गोल जवान चूचियां क्यों आँखों से भोग रहे थे?"

भाभी कुछ न बोली. थोड़ा मुसकुराते हुये पकोड़े तलने लगी.

मैने कहा, "और यह भी बताओ भाभी, जब तुम आज मेले मे उन दो आदमीयों से अपनी चूचियां मिसवा रही थी, तब तुम्हारी गांड कौन दबा रहा था?"
भाभी- "कौन?"
मैं- "मामाजी."
भाभी- "झूठ बोल रही हो तुम!"
मैं- "मेरा यकीन ना मानो तो अपने ससुर को थोड़ा मौका दे कर देखो. सब समझ मे आ जायेगा. मामाजी तुम्हारी जवानी को पीने के लिये बेचैन हैं."
"चुप झूठी!" बोल कर भाभी प्लेट मे पकोड़े लेकर मामाजी को देने गयी. मैं पीछे पीछे दरवाज़े तक गयी.
भाभी ने पकोड़ों की प्लेट टेबल पर रखी तो मामाजी बोले, "बहु, बहुत थक गयी है क्या, काम कर कर के?"
भाभी बोली "नही, बाबूजी."
मामाजी भाभी का हाथ पकड़ कर बोले, "अरे बैठ ना इधर, बहु! कितना काम करती है! थोड़ा आराम भी कर लिया कर."

मामाजी ने भाभी को खींच कर खुद से बिलकुल सटाकर सोफ़े पर बिठाया और बोले, "ले मेरे साथ थोड़े पकोड़े तू भी खा."

भाभी ने एक पकोड़ा उठाया और खाने लगी. मामाजी से सटकर बैठने के कारण उसे बहुत शरम आ रही थी.

"कितनी गरमी है ना, बहु?" मामाजी अपने शरीर को भाभी के जवान शरीर से चिपकाकर मज़ा लेते हुये बोले. "तू हमेशा घूंघट क्यो किये रहती है?"
भाभी- "मुझे शरम आती है, बाबूजी. आप बड़े हैं ना!"
मामाजी- "अरे मुझसे कैसी शरम! मै तो तेरे अपनों जैसा हूँ. घूंघट करना है तो अपनी सासुमाँ के सामने करना. चल घूंघट उतार कर थोड़ा आराम से बैठ. बहुत गरमी हो रही है."

भाभी ने थोड़ी ना-नुकुर की फिर घूंघट सर से गिरा दिया. भाभी के ब्लाऊज़ के ऊपर से उसकी मस्त कसी-कसी चूचियां दिखाई दे रही थी. अब मामाजी आराम से बहु की चूचियों का नज़ारा करते हुये पकोड़े खाने लगे. फिर उन्होने अपने एक हाथ से भाभी की कमर को घेर लिया और उनके पेट को हल्के से सहलाते हुए कहा, "कितनी अच्छी है मेरी बहु! मेरा बेटा कितना किस्मत वाला है कि उसको इतनी जवान, सुन्दर बीवी मिली है."

भाभी को ना चाहते हुए भी अपने ससुर से सट कर बैठे रहना पड़ा.

मामाजी ने एक पकोड़ा भाभी के मुँह मे डाला और कहा, "मेरा बेटा तेरी सारी ज़रूरतों का खयाल रखता है के नही?"
भाभी- "जी बाबूजी, रखतें हैं वह."
मामाजी- "अगर नही रखता है तो मुझे बताना. मैं बलराम को समझा दूँगा. जब औरत की ज़रूरतें अपने पति से पूरी नही होती है तो वह इधर उधर मुँह मारती है."

मामाजी की बात सुनकर भाभी शर्म (और डर) से लाल हो गयी. आखिर पिछले 2-3 दिनो से वह भी भरपूर मुँह मार रही थी - यानी सब से चुदवा कर अपनी प्यास बुझा रही थी.
मामाजी- "अरे शरमा मत बहु! यह तो दुनिया की सच्चाई है. अगर औरत का पति उसको पूरा मज़ा नही देता है तो वह किसी और से मज़ा लेने लगती है. और यह गलत भी तो नही है!"
भाभी- "जी, बाबूजी."
मामाजी- "पर यह सब समाज से छुपा कर करनी चाहिये, नही तो बड़ी बदनामी होगी. तू समझ रही है न मै क्या कह रहा हूँ?"

भाभी अब समझ गयी कि उनके ससुर का इशारा किस तरफ़ है. उठते हुए बोली, "बाबूजी, मैने रसोई मे पानी चढ़ा रखा है. आती हूँ थोड़ी देर मे."

भाभी उठकर आयी तो मामाजी उसकी मटकते चूतड़ों को भूखी नज़रों से देखते रहे.
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10-08-2018, 01:04 PM,
#10
RE: मेले के रंग सास, बहु, और ननद के संग
किचन मे आते ही मैने कहा, "भाभी, अब तो तुम मानती हो ना मै झूठ नही बोल रही थी? मामाजी तुम पर चढ़ने के लिये बेकरार हैं."
भाभी- "हाँ बाबा, मानती हूँ! पर मुझे उनसे क्या फ़ायदा? मुझे तो कोई जवान लण्ड चाहिये."
मैं- "तो मामाजी मे क्या बुराई है? उम्र से कुछ नही होता. देखा ना विश्वनाथजी का कितना बड़ा लौड़ा है और कितना मस्त चोदते हैं."
भाभी- "हूँ! सो तो है."
मैं- "और तुम्हे इससे फ़ायदा भी बहुत है. एक बार मामाजी को अपनी जवानी के जाल मे फांस लो, फिर तुम घर पर खुले आम अपने देवर से जवानी का मज़ा ले सकती हो."
भाभी- "पर मेरी सासुमाँ तो रहेंगी ना घर पर! वह मुझे यह सब नही करने देगी."
मैं- "भाभी, मामीजी किस मुँह से कुछ बोलेगी? कल तो वह रंडी की तरह चुदी है. और अगले २ दिनो मे विश्वनाथजी उन्हे चोद चोद कर उनकी रही सही शरम भी दूर कर देंगे. बस तुम अपने ससुर से चुदवा लो, फिर तुम्हारे तो वारे-न्यारे हो जायेंगे!"
भाभी- "पर यह सब होगा कैसे, मेरी जान?"
मैं- "तुम बस वही करो जो मामाजी कहते हैं. मुझे पूर यकीन है कल सुबह से पहले तुम अपने ससुर से चुद चुकी होगी."

भाभी की आंखें हवस मे लाल हो रही थी. मैने कहा, "भाभी, मुझे मत भूल जाना! मामाजी से चुदवा लो तो किसी बहाने मुझे भी उनसे चुदवा देना. मेरा भी मन बहुत लण्ड खाने को कर रहा है!"

उस रात को खाने के बाद मामाजी भाभी से बोले, "बहु, सोने से पहले मेरे कमरे मे एक गिलास दूध लेते आना." बोलकर मामाजी अपने कमरे मे चले गये.

भाभी दूध लेकर जब मामाजी के कमरे मे जाने लगी तो मैने कहा, "जाओ जाओ बहुरानी! आज तो ससुर के साथ बहुत रंगरेलियाँ मनेंगी!"
भाभी बोली, "तुम इतनी मत जलो! मेरा काम बनते ही तुमको अन्दर बुला लूंगी. फिर जितना चाहे अपने प्यारे मामाजी से चुदवा लेना."

भाभी मामाजी के कमरे के अन्दर गयी तो मैं किवाड़ के पास छिपकर अन्दर का नज़ारा देखने लगी.

भाभी ने घूंघट नही किया था. उसने एक छोटा सा टाईट ब्लाऊज़ पहना हुआ था. मामाजी की आँखें उसके नंगे पेट और गोलाईयों पर गढ़ी हुई थी. वह बोले, "आओ बहु. यहाँ रख दो दूध."

मामाजी ने एक लुंगी और एक बनियान पहन रखा था और बेड के सिरहाने का सहारा लेकर बैठे थे.

भाभी ने बेड के बगल के छोटे टेबल पर दूध रखा तो मामाजी ने उसका हाथ पकड़ कर अपने पास बिस्तर पर बिठा लिया. दूध पीकर मामाजी बोले, "बहु, बहुत पाँव दुख रहे हैं. ज़रा दबा दे तो."

भाभी जी मामाजी के पाँव के पास बैठकर उनके पैर दबाने लगी. वह झुक रही थी तो उसके गोल भरी भरी चूचियां हिल रही थी. मैं देखा कि भाभी की चूचियों को देखते देखते मामाजी का लौड़ा खड़ा हो गया और लुंगी मे से साफ़ दिखाई पड़ने लगा. भाभी की नज़रें भी बार बार वहाँ जा रही थी.

"बहु ज़रा ऊपर की तरफ़ भी दबा देना." मामाजी बोले.

भाभी मामाजी की जांघों को दबाने लगी तो मामाजी का लण्ड बिल्कुल तम्बू बनाकर लुंगी मे खड़ा हो गया. देख के लग रहा था कुछ कम मोटा या लंबा नही था. देखकर भाभी के हाथ कांपने लगे.

मामाजी भाभी की झिझक देख कर बोले, "क्या हुआ बहु? तेरे हाथ क्यों कांप रहे हैं?"
भाभी बोली, "बाबूजी, वोह...."
"ओह अच्छा! इसे देख कर?" मामाजी अपने खड़े लण्ड की तरफ़ इशारा कर के बोले, "क्या करूं, तेरे कोमल हाथों के छूने से हो गया है. तू बुरा मत मान. तू तो बलराम का देखती रहती होगी."

भाभी ललचाई नज़रों से लुंगी मे छुपे मामाजी के खड़े लण्ड को देखती रही. कुछ बोली नही.

मामाजी बोले, "बहु, तू शरमा रही है क्या? इधर आ, पास आ के बैठ." मामाजी ने भाभी को खींच कर अपने बगल मे बिठाया और बोले, "कितना बड़ा है रे बलराम का?" भाभी चुप रही तो मामाजी बोले, "मेरा बेटा है, मुझ पर ही गया होगा."

भाभी की नज़र बार बार मामाजी के लौड़े पर जा रही थी. देखकर मामाजी बोले, "बहु, देखने का मन कर रहा है क्या?"

भाभी झेंप के लाल हो गयी और नही मे सर हिलाया.

मामाजी बोले, "अरे मन कर रहा है तो बोल ना! यहाँ हमे कौन देखने वाला है? जब से तू यहाँ आयी है तूने भी तो बलराम का नही लिया है. मन तो कर ही सकता है. रुक मैं दिखा देता हूँ."

बोलकर मामाजी ने अपनी लुंगी खींचकर उतार दी. अब वह बनियान के नीच पूरी तरह नंगे थे. उनका लण्ड काला और मोटा था लंबाई 8-9 इन्च की रही होगी. लण्ड खड़ा हो के फ़नफ़ना रहा था.

भाभी अपनी लाल, हवस से भरी आँखों से लण्ड को देखने लगी, पर बनावटी सदमा दिखाने के लिये मुँह पर अपना हाथ रख ली.

मामाजी मुसकुराये और एक हाथ से भाभी की एक चूची को दबाकर बोले, "बहु, यह बता, बलराम का बड़ा है या मेरा?"
चूची पर मामाजी का हाथ लगते ही भाभी मस्ती की आह भर कर बोली, "पता नही, बाबूजी."

मामाजी धीरे धीरे भाभी की चूची दबाते हुए बोले, "तो हाथ लगा कर देख ले ना, मेरा बड़ा है या बलराम का!"

भाभी बोली, "नही बाबूजी, मुझे शरम आ रही है."

मामाजी ने भाभी की चूची को जोर से भींचा और डाँट कर कहा, "चूतमरानी, बहुत शरम का नाटक कर लिया तूने. मेले मे तू दो दो आदमीयों से अपनी चूचियां दबवा रही थी और एक एक हाथ से पैंट के ऊपर से उन दोनो का लौड़ा सहला रही थी. तू क्या समझी मैने कुछ देखा नही?"

भाभी ने शर्म से सर झुका लिया और अपने दोनो हाथों मे अपना मुँह छुपा लिया.

मामाजी बोले, "मुझे आज मेले मे समझ आया कि मेरी भोली भाली बहु कितनी बड़ी छिनाल है. ज़रूर तू इससे पहले भी बाहर बहुत मुँह काला करवाई है. मै तुझे घर ले के नही आता तो वह दोनो तुझे किसी खेत ले जाकर किसी रंडी की तरह चोदते."

भाभी सर झुकाये बैठी रही तो मामाजी ने प्यार से उनके गालों को सहलाया और कहा, "बहु, तू बुरा मान गयी क्या? मैं तो तेरे भले के लिये कह रहा हूँ! पति के बिरह मे अक्सर जवान औरतों के पाँव फिसल जाते हैं और वह बाहर किसी से चुदवा लेती हैं. पकड़े जाने पर पुरे घर की बदनामी होती है. तुझे मै मज़े लेने से कब मना कर रहा हूँ? मै तो कह रहा हूँ जो करना है घर पर ही कर ताकि घर की बात घर मे ही रहे."
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