06-17-2017, 12:12 PM,
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RE: बाली उमर का चस्का
अब मेरे लिए दुनिया बदल चुकी थी । मर्दों को देखने का नजरिया भी बदल चूका था। पहले कभी कोई अंकल जब मुझे गोद में बिठाता या गाल चूमता तो सामान्य लगता तगा पर अब वोही हरकत जिस्म में काम वासना से भरी सिरहन पैदा कर देती। ओर ऐसा भी नही की सब अंकल लोग मुझे बच्ची की नजर से देखते हों। कुछ ऐसे भी थे जो मुझे आसान शिकार के रूप में देख रहे थे। ऐसे ही एक इन्सान थे रोहित कपूर। वह पापा के दोस्त थे ओर अक्सर उनका हमारे घर आना जाना था। में महसूस करती थी की जब भी वह घर आते तो उनकी आंखें मुझे ही ढूँढ रही होती। वह बाहर लॉबी में बेठ के अक्सर मेरे बारे में पूछते। फिर पापा मुझे आवाज़ लगा के बुलाते और कहते कि रोहित कपूर अंकल आये हैं। ओर जब में उनके सामने जाती तो उनकी आँखों की चमक से शर्मा जाती। फिर वह चॉकलेट निकाल के मुझे पास आने का इशारा करते। में पास जाती तो वह हस के मुझे अपनी गिरफ्त में ले के गाल पे थपकी लगा के गोद में बिठा देते ओर फिर चॉकलेट देते। में महसूस करती की नीचे मेरे नितंबो पे कोई चीज चुभ रही हे और वह चीज अब मेरे दिलो दिमाग पे छाया हुआ मर्दों का औज़ार था जिससे हम लिंग, लंड, लौड़ा इत्यादि के नाम से जानते हैं।
रोहित कपूर अंकल मुझे गोद में बिठाने का कोई मोका नही छोड़ते। में वेसे तो उनके साथ राज जय वाला सम्बन्ध नही सोच रही थी पर फिर भी मेरे दिमाग में ये सवाल अक्सर आता था कि रोहित कपूर अंकल के इरादे क्या हैं। क्या वह बस यूँही गोद में बिठा के खुश रहेंगे या फिर किसी दिन राज-जय की तरह मेरी टांगें फैला कर मुझे रौंद डालेंगे।
मेने अब महसूस करना शुरू कर लिया था कि में जहाँ भी जाती हूँ मर्दों और लड़कों की नज़रे मुझे जरूर घूरती हैं। चाहे स्कूल हो या ट्यूशन, बाजार हो या पार्क, पार्टी फंक्शन हो या सत्संग। यहाँ तक की गुरद्वारे जाते हुए बाहर खड़े लड़के भी मेरे जिस्म को ताड़ रहे होते। धीरे धीरे मेरी समझ में ये बात आने लगी थी कि जगह कोई भी हो, समय कोई भी हो, मर्द मर्द ही रहेंगे। वह किसी भी धर्म जाती के हो, कुच्छ भी उम्र हो उनकी, कुछ भी काम धंधा हो उनका, मर्दों को हम लडकियों की कभी ना बुझने वाली प्यास लगी रहती हे।
एक दिन स्कूल बस में घर आ रही थी। सीट खाली नही थी इसलिए खड़ी थी। साथ बैठे कंडकटर ने मुझे अपने पास जगह बना के बेठने का इशारा किया। में भी थकी हुई थी सो बैठ गयी। बस रस्ते पे दौड़ रही थी और उस कमीने के हाथ की उँगलियाँ मेरी चिकनी गोरी ओर स्कर्ट से बाहर झांक रही सुडोल जाँघो पे। में पहले तो चौंक के ठिठक गयी, फिर आगे पीछे नजरें घुमा के देखी कहीं किसी ने देखा तो नही। कोई नही देख रहा था मुझे ऐसा लगा और फिर मेने उस कमीने की आँखों में ग़ुस्से से देख के उसको डराने की कोशिश की पर उसने आगे से कमीनी मुस्कुराहट से जवाब दिया। मुझे लगा कि में और झेल नही सकूँगी इसलिए सीट से खड़ी हो गयी। उसने हाथ हटा लिया और मेने राहत की सांस ली।
ऐसी ऐसी घटनाएं अब आये दिन मेरे साथ होने लगी थी। कोई दिन ऐसा नही जाता जब मुझे अपने नितम्बों उरोजों जाँघो कमर इत्यादी पे मर्दों के फिसलते हाथ ना महसूस हों। ओर सबसे खतरे वाली बात थी के मुझे इसकी आदत सी होती जा रही थी।
फिर एक दिन जब में घर पे अकेली थी की तभी बेल बजी। मेने दरवाजा खोला तो सामने रोहित कपूर अंकल खड़े थे। सामने रोहित कपूर अंकल को देख मेरी हवाइयां उड़ गयी। वह सीधे अंदर आ गये और पूछा की मम्मी पापा कहाँ हैं जब की उनको पता था की इस वक़्त घर पे कोई नही होता। मेने कहा बाहर हैं बस आते ही होंगे। पर रोहित कपूर जनता था कि कोई नही आने वाला अगले कई घंटो तक। सो वह अंदर आ के लॉबी में बैठ गया।
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RE: बाली उमर का चस्का
अब दस मिनट हो गये थे रोहित कपूर को मेरे उपर चढ़े हुए ओर अब तक मेरी प्रतिरोध करने की क्षमता ख़त्म हो चुकी थी। उलटे अब में भी अंकल का खुल के साथ देने लगी थी। मेरी सिस्कारियां बेडरूम में गूँज रही थी। मेरा तन्ना हुआ जिस्म उनके नीचे मछली की तरह मचल रहा था ओर मेरे हाथ उनके बालों को सहला रहा थे। अंकल को शायद अंदाजा नही होगा की यह कमसिन सी दिखने वाली सरदारनी कितने बड़े कारनामे कर चुकी थी इसलिए जब मेने खुल के उनका साथ देना चालू किया तो वो थोडा हैरान जरुर हुए पर फिर दोगुना जोश के साथ मुझ पे टूट पड़े ओर मेरे योवन रस का स्वाद लूटने लगे। रोहित कपूर मेरे उपर चढ़ के मुझे रगड़ रहे थे। उनके मरदाना स्पर्श से में एकदम मस्त हो गयी थी ओर खुल के उनका साथ दे रही थी। अब वह थोडा सीधे हुए ओर अपनी ज़िप खोल के अपने विशालकाय लंड को बाहर निकाल लिए। राज-जय के लंड ले ले के मुझे चुदने का चस्का लग गया था पर अंकल के आठ इंची मोटे लंड को देख के चुदने की इच्छा गायब हो गयी।
अंकल ने मेरी फ्रॉक उपर उठा दी ओर फिर पेंटी नीचे खीँच के मुझे नंगी कर दिया। मेने कुछ दिनों से सफाई नही की थी इसलिए चुनमूनियाँ पे बाल उग आये थे। अंकल ने मेरी चुनमूनियाँ अपनी हथेली में ले के मस्सल डाली जिस कारण मेरी सिसकी निकल गयी।
रोहित कपूर ने पुछा - तुम सफाई नही करती हो क्या?
मेने कहा - करती हूँ पर पिछले हफ्ते नही कर पायी अब इस एतवार को करूंगी।
यह सुन के रोहित कपूर जोश से भर गये और मेरे होंठों गालों को मुंह में भर के चूसने लगे। में भी मस्ती में उनका साथ दे के अपने योवन रस को लुटवाने लगी। अब उन्होंने मेरी गोरी चुनमूनियाँ को फैलाया और एक ऊँगली अंदर घुसा दी। में इस अचानक हुए हमले के लिए तयार नही थी। मेरी सिसकारी निकल गयी।
में: हायो रब्बा! ओऊह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्! आह्ह्ह्ह्ह! ऊईईईईई!
रोहित कपूर: क्या हुआ, बेबी?
में: अंकल, प्लीज़ बाहर निकालो ना ..... मुझे दर्द हो रहा हे
रोहित कपूर: बेबी, तुम तो पनिया गयी हो! देखो कितने आराम से ऊँगली खा रही हे तुमारी चुनमूनियाँ।
यह बोल के अंकल ने ऊँगली अंदर बाहर करना चालू कर दी। सही में बड़े आराम से अंदर बाहर ही रही थी।
रोहित कपूर: बेबी, तुमारी चुनमूनियाँ अंदर से बड़ी गरम हे।
में: हायो रब्बा ऊई आह ओह ओह उह्ह उह्ह उह्ह
रोहित कपूर: बेबी, मेरा लंड चूसोगी?
में: अंकल, यह भी कोई चूसने की चीज हे?
पर रोहित कपूर पे हवस का भूत सर चढ़ के बोल रहा था, वह मेरी चुनमूनियाँ से ऊँगली निकाल के मेरी छाती पे चढ़ गये और अपने विशाल कड़क लिंग को मेरे मूंह पे मलने लगे।
में: अंकल, आपका बहुत बड़ा हे।
रोहित कपूर (सवालिया आँखों से): नही बेबी, यह तो नार्मल साइज़ का हे।
में: नहीं अंकल, इतना बड़ा मेने कभी नही देखा।
रोहित कपूर (मुस्कुराते हुए): अनु बेबी, तुमने कितने लंड देखे हैं?
में अपनी गलती समझी पर तब तक देर हो गयी थी। मेरा राज़ खुल गया था ओर अब रोहित कपूर अंकल मुझ पे हावी होते चले गये। रोहित कपूर मेरे जिस्म को नोच नोच के निशान डाल रहे थे, ख़ास करके जांघों, चुतडों, चूंचियों ओर टांगों पे। में घबरा रही थी कहीं कोई आ गया तो क्या होगा। मेरे अंदर डर और उतेजना का मिला जुला भाव उफान भर रहा था। फिर तभी रोहित कपूर ने मेरी टांगें ओर चोड़ी करके खोली अपनी एक ओर ऊँगली घप से घुसेड दी, मेरी चीख निकल गयी पर रोहित कपूर ने कोई रहम नही दिखाया ओर अब उनकी दो ऊँगलीयां मेरी टाइट चुनमूनियाँ की गहराई ओर चोडाई नापने में जुट गयी। धीरे धीरे हवस का मज़ा मेरे डर पे हावी होने लगा था, रोहित कपूर भी एक कलाकार की भांति मेरे अंदर की चालू कुड़ी को बाहर निकाल रहा था।
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