प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ
07-04-2017, 12:44 PM,
#91
RE: प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ
आंटी गुलबदन और सेक्स (प्रेम) के सात सबक-2



3. उरोजों को मसलना और चूसना

शाम के कोई चार बजे होंगे। आज मैंने सफ़ेद पेंट और पूरी बाजू वाली टी-शर्ट पहनी थी। आंटी ने भी काली जीन पेंट और खुला टॉप पहना था। आज तीसरा सबक था। आज तो बस अमृत कलशों का मज़ा लूटना था। ओह… जैसे दो कंधारी अनार किसी ने टॉप के अन्दर छुपा दिए हों आगे से एक दम नुकीले। मैं तो दौड़ कर आंटी को बाहों में ही भरने लगा था कि आंटी बोली,”ओह .. चंदू…. जल्दबाजी नहीं ! ध्यान रखो ये प्रेमी-प्रेमिका का मिलन है ना कि पति पत्नी का। इतनी बेसब्री (आतुरता) ठीक नहीं। पहले ये देखो कोई और तो नहीं है आस पास ?”

“ओह … सॉरी…. गलती हो गई” मेरा उत्साह कुछ ठंडा पड़ गया। मैं तो रात भर ठीक से सो भी नहीं पाया था। सारी रात आंटी के खयालों में ही बीत गई थी कि कैसे कल… उसे बाहों में भर कर प्यार करूंगा और उसके अमृत कलशों को चूसूंगा।

“चलो बेडरूम में चलते हैं !”

हम बेडरूम में आ गए। अब आंटी ने मुझे बाहों में भर लिया और एक चुम्बन मेरे होंठों पर ले लिया। मैं भी कहाँ चूकने वाला था मैंने भी कस कर उनके होंठ चूम लिए।

“ओह्हो … एक दिन की ट्रेनिंग में ही तुम तो चुम्बन लेना सीख गए हो !” आंटी हंस पड़ी। जैसे कोई जलतरंग छिड़ी हो या वीणा के तार झनझनाएं हों। हंसते हुए उनके दांत तो चंद्रावल का धोखा ही दे रहे थे। उनके गालों पर पड़ने वाले गड्ढे तो जैसे किसी को कत्ल ही कर दें।

हम दोनों पलंग पर बैठ गए। आंटी ने कहा “तुम्हें बता दूं- कुंवारी लड़कियों के उरोज होते हैं और जब बच्चा होने के बाद इनमें दूध भर जाता है तो ये अमृत-कलश (बूब्स या स्तन) बन जाते हैं। दोनों को चूसने का अपना ही अंदाज़ और मज़ा होता है। सम्भोग से पहले लड़की के स्तनों को अवश्य चूसना चाहिए। स्तनों को चूसने से उनके कैंसर की संभावना नष्ट हो जाती है। आज का सबक है उरोजों या चुन्चियों को कैसे चूसा जाता है !”

कुदरत ने स्तनधारी प्राणियों के लिए एक माँ को कितना अनमोल तोहफा इन अमृत-कलशों के रूप में दिया है। तुम शायद नहीं जानते कि किसी खूबसूरत स्त्री या युवती की सबसे बड़ी दौलत उसके उन्नत और उभरे उरोज ही होते हैं।

काम प्रेरित पुरुष की सबसे पहली नज़र इन्हीं पर पड़ती है और वो इन्हें दबाना और चूसना चाहता है। यह सब कुदरती होता है क्योंकि इस धरती पर आने के बाद उसने सबसे पहला भोजन इन्हीं अमृत कलसों से पाया था। अवचेतन मन में यही बात दबी रहती है इसीलिए वो इनकी ओर ललचाता है।

“सुन्दर, सुडौल और पूर्ण विकसित स्तनों के सौन्दर्याकर्षण में महत्वपूर्ण योगदान है। इस सुखद आभास के पीछे अपने प्रियतम के मन में प्रेम की ज्योति जलाए रखने तथा सदैव उसकी प्रेयसी बनी रहने की कोमल कामना भी छिपी रहती है। हालांकि मांसल, उन्नत और पुष्ट उरोज उत्तम स्वास्थ्य व यौवन पूर्ण सौन्दर्य के प्रतीक हैं और सब का मन ललचाते हैं पर जहां तक उनकी संवेदनशीलता का प्रश्न है स्तन चाहे छोटे हों या बड़े कोई फर्क नहीं होता। अलबत्ता छोटे स्तन ज्यादा संवेदनशील होते हैं।

कुछ महिलायें अपनी देहयष्टि के प्रति ज्यादा फिक्रमंद (जागरुक) होती हैं और छोटे स्तनों को बड़ा करवाने के लिए प्लास्टिक सर्जरी करवा लेती हैं बाद में उन्हें कई बीमारियों और दुष्प्रभावों से गुजरना पड़ सकता है। उरोजों को सुन्दर और सुडौल बनाने के लिए ऊंटनी के दूध और नारियल के तेल का लेप करना चाहिए।

इरानी और अफगानी औरतें तो अपनी त्वचा को खूबसूरत बनाने के लिए ऊंटनी या गधी के दूध से नहाया करती थी। पता नहीं कहाँ तक सच है कुछ स्त्रियाँ तो संतरे के छिलके, गुलाब और चमेली के फूल सुखा कर पीस लेती हैं और फिर उस में अपने पति के वीर्य या शहद मिला कर चहरे पर लगाती हैं जिस से उनका रंग निखरता है और कील, झाइयां और मुहांसे ठीक हो जाते हैं !”

आंटी ने आगे बताया,”सबसे पहले धीरे धीरे अपनी प्रेमिका का ब्लाउज या टॉप उतरा जाता है फिर ब्रा। कोई जल्दबाजी नहीं आराम से। उनको प्यार से पहले निहारो फिर होले से छुओ। पहले उनकी घुंडियों को फिर एरोला को, फिर पूरे उरोज को अपने हाथों में पकड़ कर धीरे धीरे सहलाओ और मसलो मगर प्यार से। कुछ लड़कियों का बायाँ उरोज दायें उरोज से थोड़ा बड़ा हो सकता है। इसमें घबराने वाली कोई बात नहीं होती। दरअसल बाईं तरफ हमारा दिल होता है इसलिए इस उरोज की ओर रक्तसंचार ज्यादा होता है।

यही हाल लड़कों का भी होता है। कई लड़कों का एक अन्डकोश बड़ा और दूसरा छोटा होता है। गुप्तांगों के आस पास और उरोजों की त्वचा बहुत नाजुक होती है जरा सी गलती से उनमें दर्द और गाँठ पड़ सकती है इसलिए इन्हें जोर से नहीं दबाना चाहिए। प्यार से उन पर पहले अपनी जीभ फिराओ, चुचुक को होले से मुंह में लेकर जीभ से सहलाओ और फिर चूसो।”

मैंने धड़कते दिल से उनका टॉप उतार दिया। उन्होंने ब्रा तो पहनी ही नहीं थी। दो परिंदे जैसे आजाद हो कर बाहर निकल आये। टॉप उतारते समय मैंने देखा था उनकी कांख में छोटे छोटे रेशम से बाल हैं। उसमें से आती मीठी नमकीन और तीखी गंध से मैं तो मस्त ही हो गया।

मेरा मिट्ठू तो हिलोरे ही लेने लगा। मुझे लगा तनाव के कारण जैसे मेरा सुपाड़ा फट ही जाएगा। मैं तो सोच रहा था कि एक बार चोद ही डालूं ये प्रेम के सबक तो बाद में पढ़ लूँगा पर आंटी की मर्जी के बिना यह कहाँ संभव था।

आंटी पलंग पर चित्त लेट गई और मैं घुटनों के बल उनके पास बैठ गया। अब मैंने धीरे से उनके एक उरोज को छुआ। वो सिहर उठी और उनकी साँसें तेज होने लगी। होंठ कांपने लगे। मेरा भी बुरा हाल था। मैं तो रोमांच से लबालब भरा था। मैंने देखा एरोला कोई एक इंच से बड़ा तो नहीं था। गहरे गुलाबी रंग का। निप्पल तो चने के दाने जितने जैसे कोई छोटा सा लाल मूंगफली का दाना हो। हलकी नीली नसें गुलाबी रंग के उरोजों पर ऐसे लग रही थी जैसे कोई नीले रंग के बाल हों। मैं अपने आप को कैसे रोक पता। मैंने होले से उसके दाने को चुटकी में लेकर धीरे से मसला और फिर अपने थरथराते होंठ उन पर रख दिए। आंटी के शरीर ने एक झटका सा खाया। मैंने तो गप्प से उनका पूरा उरोज ही मुंह में ले लिया और चूसने लगा। आह… क्या रस भरे उरोज थे। आंटी की तो सिस्कारियां ही कमरे में गूंजने लगी।

“अह्ह्ह चंदू और जोर से चूसो और जोर से …. आह… सारा दूध पी जाओ मेरे प्रेम दीवाने …. आह आज दो साल के बाद किसी ने …. आह… ओईई …माआअ ……” पता नहीं आंटी क्या क्या बोले जा रही थी। मैं तो मस्त हुआ जोर जोर से उनके अमृत कलसों को चूसे ही जा रहा था। मैं अपनी जीभ को उनकी निप्पल और एरोला के ऊपर गोल गोल घुमाते हुए परिक्रमा करने लगा। बीच बीच में उनके निप्पल को भी दांतों से दबा देता तो आंटी की सीत्कार और तेज हो जाती। उन्होंने मेरे सिर के बालों को कस कर पकड़ लिया और अपनी छाती की ओर दबा दिया। उनकी आह… उन्ह … चालू थी। मैंने अब दूसरे उरोज को मुंह में भर लिया। आंटी की आँखें बंद थी।

मैंने दूसरे हाथ से उनका पहले वाला उरोज अपनी मुट्ठी में ले लिया और उसे मसलने लगा। मुझे लगा कि जैसे वो बिल्कुल सख्त हो गया है। उसके चुचूक तो चमन के अंगूर (पतला और लम्बा) बन गए हैं एक दम तीखे, जैसे अभी उन में से दूध ही निकल पड़ेगा। मेरे थूक से उनकी दोनों चूचियां गीली हो गई थी। मेरा लंड तो प्री-कम छोड़ छोड़ कर पागल ही हुआ जा रहा था। मेरा अंदाजा है कि आंटी की चूत ने भी अब तो पानी छोड़ छोड़ कर नहर ही बना दी होगी पर उसे छूने या देखने का अभी समय नहीं आया था। आंटी ने अपने जांघें कस कर बंद कर रखी थी। जीन पेंट में फसी चूत वाली जगह फूली सी लग रही थी और कुछ गीली भी। जैसे ही मैंने उनके चुचूक को दांतों से दबाया तो उन्होंने एक किलकारी मारी और एक ओर लुढ़क गई। मुझे लगा की वो झड़ (स्खलित) गई है।

4. आत्मरति (हस्तमैथुन-मुट्ठ मारना)

किसी ने सच ही कहा है “सेक्स एक ब्रिज गेम की तरह है ; अगर आपके पास एक अच्छा साथी नहीं है तो कम से कम आपका हाथ तो बेहतर होना चाहिए !”

सेक्स के जानकार बताते हैं कि 95 % स्वस्थ पुरुष और 50 % औरतें मुट्ठ जरूर मारते हैं। जब कोई साथी नहीं मिलता तो उसको कल्पना में रख कर ! बस यही तो एक उपाय या साधन है अपनी आत्मरति और काम क्षुधा (भूख) को मिटाने का। और मैं और आंटी भी तो इसी जगत के प्राणी थे, मुट्ठ मारने की ट्रेनिंग तो सबसे ज्यादा जरूरी थी। आंटी ने बताया था कि जो लोग किशोर अवस्था में ही हस्तमैथुन शुरू कर देते हैं वे बड़ी आयु तक सम्भोग कार्य में सक्षम बने रहते हैं। उन्हें बुढ़ापा भी देरी से आता है और चेहरे पर झुर्रियाँ भी कम पड़ती हैं।
कई बार लड़के आपस में मिलकर मुट्ठ मारते हैं वैसे ही लड़कियां भी आपस में एक दूसरे की योनि को सहला देती हैं और कई बार तो उसमें अंगुली भी करती हैं। मुझे बड़ी हैरानी हुई। उन्होंने यह भी बताया कि कई बार तो प्रेमी-प्रेमिका (पति-पत्नी भी) आपस में एक दूसरे की मुट्ठ मारते हैं। मेरे पाठकों और पाठिकाओं को तो जरूर अनुभव रहा होगा ? एक दूसरे की मुट्ठ मारने का अपना ही आनंद और सुख होता है। कई बार तो ऐसा मजबूरी में किया जाता है। कई बार जब नव विवाहिता पत्नी की माहवारी चल रही हो और वो गांड मरवाने से परहेज करे तो बस यही एक तरीका रह जाता है अपने आप को संतुष्ट करने का।

खैर ! अब चौथे सबक की तैयारी थी। आंटी ने बताया था कि अगर अकेले में मुट्ठ मारनी हो तो हमेंशा शीशे के सामने खड़े होकर मारनी चाहिए और अगर कोई साथी के साथ करना हो तो पलंग पर करना अच्छा रहता है। अब आंटी ने मेरी पेंट उतार दी। आंटी के सामने मुझे नंगा होने में शर्म आ रही थी। मेरा 6 इंच लम्बा लंड तो 120 डिग्री पर पेट से चिपकाने को तैयार था। उसे देखते ही आंटी बोली,”वाह…. तुम्हारा मिट्ठू तो बहुत बड़ा हो गया है ?”

“पर मुझे तो लगता है मेरा छोटा है। मैंने तो सुना है कि यह 8-9 इंच का होता है ?”

“अरे नहीं बुद्धू आमतौर पर हमारे देश में इसकी लम्बाई 5-6 इंच ही होती है। फालतू किताबें पढ़ कर तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है। एक बात तुम्हें सच बता रही हूँ- यह केवल भ्रम ही होता है कि बहुत बड़े लिंग से औरत को ज्यादा मज़ा आएगा। योनि के अन्दर केवल 3 इंच तक ही संवेदनशील जगह होती है जिसमें औरत उत्तेजना महसूस करती है। औरत की संतुष्टि के लिए लिंग की लम्बाई और मोटाई कोई ज्यादा मायने नहीं रखती। सोचो जिस योनि में से एक बच्चा निकल सकता है उसे किसी मोटे या पतले लिंग से क्या फर्क पड़ेगा। लिंग कितना भी मोटा क्यों ना हो योनि उसके हिसाब से अपने आप को फैलाकर लिंग को समायोजित कर लेती है। तुमने देखा होगा गधे का लंड कितना बड़ा होता है लेकिन गधी उसे भी बिना किसी रुकावट के ले पूरा अन्दर ले लेती है।”

“फिर भी एक बात बताओ- अगर मुझे अपना लिंग और बड़ा और मोटा करना हो तो मैं क्या करूं ? मैंने कहीं पढ़ा था कि अपने लिंग पर रात को शहद लगा कर रखा जाए तो वो कुछ दिनों में लम्बा और सीधा भी हो जाता है। मेरा लिंग थोड़ा सा टेढ़ा भी तो है ?”

“देखो कुदरत ने सारे अंग एक सही अनुपात में बनाए हैं। जैसे हर आदमी का कद (लम्बाई) अपनी एक बाजू की कुल लम्बाई से ढाई गुना बड़ा होता है। हमारे नाक की लम्बाई हमारे हाथ के अंगूठे जितनी बड़ी होती है। आदमी और लिंग की लम्बाई वैसे तो वंशानुगत होती है पर लम्बाई बढ़ाने के लिए रस्सी कूदना और हाथों के सहारे लटकाना मदद कर सकता है। लिंग की लम्बाई बढाने के लिए तुम एक काम कर सकते हो- नारियल के तेल में चुकंदर का रस मिलकर मालिश करने से लिंग पुष्ट हो जाता है। और यह शहद वाली बात तो मिथक है। यह टेढ़े लिंग वाली बात तुम जैसे किशोरों की ही नहीं, हर आयु वर्ग में पाई जाने वाली भ्रान्ति है। लिंग टेढ़ा होना कोई बीमारी नहीं है। कुदरती तौर पर लिंग थोड़े से टेढ़े हो सकते हैं और उसका झुकाव ऊपर नीचे दाईं या बाईं ओर भी हो सकता है। सम्भोग में इन बातों का कोई फर्क नहीं पड़ता। ओह… तुम भी किन फजूल बातों में फंस गए ?”

और फिर आंटी ने भी अपनी जीन उतार दी। अब तो वो नीले रंग की एक झीनी सी पैंटी में थी। ओह … डबल रोटी की तरह एक दम फूली हुई आगे से बिलकुल गीली थी। पतली सी पैंटी के दोनों ओर काली काली झांट भी नज़र आ रही थी। गोरी गोरी मोटी पुष्ट जांघें केले के पेड़ की तरह। जैसे खजुराहो के मंदिरों में बनी मूर्ति हो कोई। मैं तो हक्का बक्का उस हुस्न की मल्लिका को देखता ही रह गया। मेरा तो मन करने लगा था कि एक चुम्बन पैंटी के ऊपर से ही ले लूं पर आंटी ने कह रखा था कि हर सबक सिलसिलेवार (क्रमबद्ध) होने चाहियें कोई जल्दबाजी नहीं, अपने आप पर संयम रखना सीखो। मैं मरता क्या करता अपने होंठों पर जीभ फेरता ही रह गया।

आंटी ने बड़ी अदा से अपने दोनों हाथ अपनी कमर पर रखे और अपनी पैंटी को नीचे खिसकाने लगी।

गहरी नाभि के नीचे का भाग कुछ उभरा हुआ था। पहले काले काले झांट नजर आये और फिर स्वर्ग के उस द्वार का वो पहला नजारा। मुझे तो लगा जैसे मेरा दिल हलक के रास्ते बाहर ही आ जाएगा। मैं तो उनकी चूत को देखता ही रह गया। काले घुंघराले झांटों के झुरमुट के बीच मोटे मोटे बाहरी होंठों वाली चूत रोशन हो गई। उन फांकों का रंग गुलाबी तो नहीं कहा जा सकता पर काला भी नहीं था। कत्थई रंग जैसे गहरे रंग की मेहंदी लगा रखी हो। चूत के अन्दर वाले होंठ तो ऐसे लग रहे थे जैसे किसी चिड़िया की चोंच हो। जैसे किसी ने गुलाब की मोटी मोटी पंखुड़ियों को आपस में जोड़ दिया हो। दोनों फांकों में सोने की छोटी छोटी बालियाँ। चूत का चीरा कोई 4 इंच का तो जरूर होगा। मुझे आंटी की चूत की दरार में ढेर सारा चिपचिपा रस दिखाई दे रहा था जो नीचे वाले छेद तक रिस रहा था। उन्होंने पैंटी निकाल कर मेरी ओर बढ़ा दी। पहले तो मैं कुछ समझा नहीं फिर मैंने हंसते हुए उनकी पैंटी को अपनी नाक के पास ले जा कर सूंघा। मेरे नथुनों में एक जानी पहचानी मादक महक भर गई। जवान औरत की चूत से बड़ी मादक खुशबू निकलती है। मैंने कहीं पढ़ा था कि माहवारी आने से कुछ दिन पहले और माहवारी के कुछ दिनों बाद तक औरत के पूरे बदन से बहुत ही मादक महक आती है जो पुरुष को अपनी ओर आकर्षित करती है। हालांकि यह चूत कुंवारी नहीं थी पर अभी भी उसकी खुशबू किसी अनचुदी लौंडिया या कुंवारी चूत से कतई कम नहीं थी।

हम दोनों पलंग पर बैठ गए। अब आंटी ने मेरे लंड की ओर हाथ बढ़ाया। मेरे शेर ने उन्हें सलामी दी। आंटी तो उसे देख कर मस्त ही हो गई। मेरा लंड अभी काला नहीं पड़ा था। आप तो जानते हैं कि लंड और चूत का रंग लगातार चुदाई के बाद ही काला पड़ता है। उन्होंने पलंग के पास रखे स्टूल पर पड़ी एक शीशी उठाई और उसे खोल कर उस में से एक लोशन सा निकाला और मेरे लंड पर लगा दिया। मुझे ठंडा सा अहसास हुआ। आंटी ने बताया कि कभी भी मुट्ठ मारते समय क्रीम नहीं लगानी चाहिए। थूक या तेल ही लगाना चाहिए या फिर कोई पतला लोशन। मेरे कुछ समझ में नहीं आया पर आंटी तो पूरी गुरु थी और मेरी ट्रेनिंग चल रही थी मुझे तो उनका कहना मानना ही था। उन्होंने कुछ लोशन अपनी चूत की फांकों पर भी लगाया और अंगुली भर कर अन्दर भी लगा लिया। एक हाथ की दोनों अँगुलियों से उन्होंने अपनी चूत की फांकों को चौड़ा किया। तितली के पंखों की तरह दोनों पंखुड़ियां खुल गई। अन्दर से एक दम लाल काम रस से सराबोर चूत ऐसे लग रही थी जैसे कोई छोटी सी बया (एक चिड़िया) ने अपने नन्हे पंख खोल दिए हों। मटर के दाने जितनी लाल रंग की मदनमणि के एक इंच नीचे मूत्र छिद्र टूथपिक जितना बड़ा। उसके ठीक नीचे स्वर्ग का द्वार तो ऐसे लग रहा था जैसे कस कर बंद कर दिया हो काम रस में भीगा हुआ। जब उन्होंने अपनी जांघें थोड़ी सी फैलाई तो उनकी गांड का बादामी रंग का छेद भी नज़र आने लगा वह तो कोई चव्वनी के सिक्के से ज्यादा बड़ा कत्तई नहीं था। वह छेद भी खुल और बंद हो रहा था। उन्होंने कुछ लोशन अपनी गांड के छेद पर भी लगाया। जब उन्होंने थोड़ा सा लोशन मेरी भी गांड पर लगाया तो मैं तो उछल ही पड़ा।

आंटी ने बाद में समझाया था कि मुट्ठ मारते समय गांड की अहम् भूमिका होती है जो बहुत से लोगों को पता ही नहीं होती। अब मेरे हैरान होने की बारी थी। उन्होंने बताया कि चूत में अंगुल करते समय और लंड की मुट्ठ मारते समय अगर एक अंगुली पर क्रीम या तेल लगा कर गांड में भी डाली जाए तो मुट्ठ मारने का मज़ा दुगना हो जाता है। मैंने तो ये पहली बार सुना था।

पहले मेरी बारी थी। उन्होंने मुझे चित्त लेटा दिया और अपना एक पैर ऊपर की ओर मोड़ने को कहा। फिर उन्होंने मेरे लंड को अपने नाजुक हाथों में ले लिया। मेरा जी कर रहा था कि आंटी उसे एक बार मुंह में ले ले तो मैं धन्य हो जाऊं। पर आंटी तो इस समय अपनी ही धुन में थी। उन्होंने मेरे लंड के सुपाड़े की टोपी नीचे की और प्यार से नंगे सुपाड़े को सहलाया। उन्होंने बे-काबू होते लंड की गर्दन पकड़ी और ऊपर नीचे करना शुरू कर दिया। वो मेरे पैरो के बीच अपने घुटने मोड़ कर बैठी थी। दूसरे हाथ की तर्जनी अंगुली पर थोड़ा सा लोशन लगाकर धीरे से मेरी गांड के छेद पर लगा दी। पहले अपनी अंगुली उस छेद पर घुमाई फिर दो तीन बार थोड़ा सा अन्दर की ओर पुश किया। मैंने गांड सिकोड़ ली। आंटी ने बताया कि गांड को बिलकुल ढीला छोड़ दो तुम्हें बिलकुल दर्द नहीं होगा। और फिर तो जैसे कमाल ही हो गया। 3-4 हलके पुश के बाद तो जैसे मेरी गांड रवां हो गई। उनकी पूरी की पूरी अंगुली मेरी गांड के अन्दर बिना किसी रुकावट और दर्द के चली गई। मैं तो अनोखे रोमांच से जैसे भर उठा। दूसरे हाथ की नाज़ुक अँगुलियों से मेरे लंड की चमड़ी को ऊपर नीचे करती जा रही थी। मैं तो बस आँखें बंद किये किसी स्वर्ग जैसे आनंद में सराबोर हुआ सीत्कार पर सीत्कार किये जा रहा था। सच पूछो तो मुझे लंड की बजाय गांड में ज्यादा मज़ा आ रहा था। इस अनूठे आनंद से मैं अब तक अपरिचित था। आंटी ने अपना हाथ रोक लिया।

“ओह … आंटी अब रुको मत जोर जोर से करो … जल्दी …हईई।… ओह …”

“क्यों … मज़ा आया ?” आंटी ने पूछा। उनकी आँखों में भी अनोखी चमक थी।

“हाँ … बहुत मज़ा आ रहा है प्लीज रुको मत !”

आंटी फिर शुरू हो गई। कोई 5-6 मिनट तो जरूर लगे होंगे पर समय की किसे परवाह थी। मुझे लगा कि अब मेरा पानी निकलने वाला है। आंटी ने एक हाथ से मेरे दोनों अंडकोष जोर से पकड़ लिए। मुझे तो लगा जैसे किसी ने पानी की धार एक दम से रोक ही दी है। ओह … कमाल ही था। मेरा स्खलन फिर 2-3 मिनट के लिए जैसे रुक गया। आंटी का हाथ तेज तेज चलने लगा और जैसे ही उन्होंने मेरे अंडकोष छोड़े मेरे लंड ने पिचकारी छोड़ दी। पहली पिचकारी इतनी जोर से निकली थी कि सीढ़ी आंटी में मुंह पर पड़ी। उन्होंने अपनी जीभ से उसे चाट लिया। और फिर दन-दन करता मेरा तो जैसे लावा ही बह निकला। मेरे पेट और जाँघों को तर करता चला गया। इस आनंद का वर्णन शब्दों में नहीं किया जा सकता केवल महसूस ही किया जा सकता है।

और अब आंटी की मुट्ठ मारने की बारी थी। आंटी ने बताया कि चूत की मुट्ठ मारते समय हाथों के नाखून कटे होने चाहियें और हाथ साबुन और डिटोल पानी से धुले। मैंने बाथरूम में जाकर अच्छे से सफाई की। नाखून तो कल ही काटे थे। जब मैं वापस आया तो आंटी पलंग पर उकडू बैठी थी। मुझे बड़ी हैरानी हुई। मेरा तो अंदाज़ा था कि वो चित लेटी हुई अपनी चूत में अंगुली डाले मेरा इंतज़ार कर रही होगी।

मुझे देख कर आंटी बोली,”अपने एक हाथ में थोड़ा सा लोशन लगा कर मेरी मुनिया को प्यार से सहलाओ !”

मैंने एक हाथ की अंगुलियों पर ढेर सारा लोशन लगा लिया और उकडू बैठी आंटी की चूत पर प्यार से फिराने लगा। जैसे कोई शहद की कटोरी में मेरी अंगुलियाँ धंस गई हों। चूत एक दम पनियाई हुई थी। रेशमी, मुलायम, घुंघराले, घने झांटों से आच्छादित चूत ऐसे लग रही थी जैसे कोई ताज़ा खिला गुलाब का फूल दूब के लान के बीच पड़ा हो। मैंने ऊपर से नीचे और फिर नीचे से ऊपर अंगुली फिराई। किसी चूत को छूने का मेरा ये पहला अवसर था। सच पूछो तो मैंने अपने जीवन में आज पहली बार के इतनी नज़दीक से किसी नंगी चूत का दर्शन और स्पर्श किया था। मुझे हैरानी हो रही थी कि आंटी ने अपनी झांटे क्यों नहीं काटी ? हो सकता है इसका भी कोई कारण रहा होगा।

मेरा दिल जोर जोर से धड़क रहा था। मेरा लंड फिर कुनमुनाने लगा था। मेरा जी किया एक चुम्बन इस प्यारी सी चूत पर ले ही लूं। मैं जैसे ही नीचे झुका आंटी बोली “खबरदार अभी चुम्मा नहीं !”

मुझे बड़ी हैरानी हुई। मैंने सेक्सी कहानियों में पढ़ा था कि औरतें अपनी चूत का चुम्मा देकर तो निहाल ही हो जाती है पर आंटी तो इसके उलट जा रही है। खैर कोई बात नहीं जैसा आंटी चाहेंगी वैसा ही करने की मजबूरी है। मैंने उसकी मदनमणि (भगनासा) को जब छुआ तो आंटी को एक झटका सा लगा और उनके मुंह से सीत्कार सी निकल गई। मुझे कुछ अटपटा सा लग रहा था। मैं पूरी तरह उनकी चूत को नहीं देख पा रहा था। आंटी अब चित लेट गई और उन्होंने एक घुटना थोड़ा मोड़ कर ऊपर उठा लिया। मैं उनकी दोनों जाँघों के बीच आ गया और उनका एक पैर अपने कन्धों पर रख लिया। उन्होंने एक तकिया अपने नितम्बों के नीचे लगा लिया था। हाँ अब ठीक था।

मैंने पहले उनकी चूत को ऊपर से सहलाया और फिर धीरे धीरे उनकी पंखुड़ियों के चौड़ा किया। काम रस से सराबोर रक्तिम फांके फूल कर मोटी मोटी हो गई थी। मैंने धीरे से एक अंगुली उनकी चूत के छेद में डाल दी। आंटी थोड़ा सा चिहुंकी। अंगुली पर लोशन लगा होने और चूत गीली होने के कारण अन्दर चली गई। आंटी की एक मीठी सीत्कार निकल गई और मैं रोमांच से भर उठा।

मैंने धीरे धीरे अंगुली अन्दर बाहर करनी शुरू कर दी। आंटी ओईइ … या।… हाय।.. ईई … करने लगी। उनकी चूत से चिकनाई सी निकल कर गांड के भूरे छेद को भी तर करती जा रही थी। मुझे लगा आंटी को जरूर गांड पर यह मिश्रण लगने से गुदगुदी हो रही होगी। मैंने धीरे से अपनी अंगुली चूत से बाहर निकाली और जैसे ही उनकी गांड के छेद पर फिराई तो आंटी ने अपना पैर मेरे कंधे से नीचे कर लिया और जोर से चीखी,”ओह … चंदू ! ये अंगुली वहाँ नहीं ! रुको, मुझे पूछे बिना कोई हरकत मत करो !” बड़ी हैरानी की बात थी कि आंटी ने तो खुद बताया था कि मुट्ठ मारते समय एक अंगुली गांड में भी डालनी चाहिए अब मना क्यों कर रही हैं ?

“अपना दूसरा हाथ इस्तेमाल करो और देखो उस अंगुली में लोशन नहीं अपना थूक लगाओ। थूक लगाने से अपनापन और प्रेम बढ़ता है।”

अब मेरे समझ में आ गया। मैंने अपने दूसरे हाथ की तर्जनी अंगुली पर ढेर सारा थूक लगाया। उनकी गांड पर तो पहले से ही लोशन लगा था। हलके हलके 3-4 पुश किये तो मेरी अंगुली आंटी की नरम गांड में चली गई। वह क्या खुरदरी सिलवटें थी। मेरी अंगुली जाते ही फ़ैल कर नरम मुलायम हो गई बिलकुल रवां। धीरे धीरे अपनी अंगुली उनकी गांड में अन्दर बाहर करने लगा। एक अनोखा आनंद मिल रहा था मुझे भी और आंटी को भी। वो तो अब किलकारियाँ ही मारने लगी थी। इस चक्कर में मैं तो उनकी चूत को भूल ही गया था। आंटी ने जब याद दिलाया तब मुझे ध्यान आया। अब तो मेरी हाथों की दोनों अंगुलियाँ आराम से उनके दोनों छेदों में अन्दर बाहर हो रही थी। बीच बीच में मैं उनकी मदनमणि के दाने को भी अपनी चिमटी में पकड़ कर भींच और मसल रहा था। आंटी का शरीर एक बार थोड़ा सा अकड़ा और उन्होंने एक किलकारी मारी। मुझे लगा कि उनकी चूत और ज्यादा गीली हो गई है। अब मैंने दो अंगुलियाँ उनकी चूत में डाल दी। मेरी दोनों अंगुलियाँ गीली हो गई थी। मेरा जी तो कर रहा था कि मैं अपनी अंगुली चाट कर देखूं कि उसका स्वाद कैसा है पर मजबूरी थी। बिना आंटी की इजाजत के यह नहीं हो सकता था। आंटी की आँखें बंद थी। मैंने चुपके से एक अंगुली अपने मुंह में डाल ली। ओह … खट्टा मीठा और नमकीन सा स्वाद तो तकरीबन वैसा ही था जो मैंने 2-3 दिन पहले उनकी पैंटी से चखा था।

मैंने अक्सर सेक्स कहानियों में पढ़ा था कि औरतों की चूत से भी काफी पानी निकलता है। पर आंटी की चूत तो बस गीली सी हो गई थी कोई पानी-वानी नहीं निकला था। आंटी ने मुझे बाद में समझाया था कि औरत जब उत्तेजित होती हैं तो योनि मार्ग में थोड़ी चिकनाहट सी आ जाती है। और जब चरमोत्कर्ष पर पहुँचती हैं तो उन्हें केवल पूर्ण तृप्ति की अनुभूति होती है। पुरुषों की तरह ना तो गुप्तांग में कोई संकुचन होता है और ना कोई वीर्य जैसा पदार्थ निकलता है।

आंटी ने मुझे बाद में बताया कि कई बार करवट के बल लेट कर (69 पोजीशन) में भी एक दूसरे की मुट्ठ मारी जा सकती है। इसमें दोनों को ही बड़ा आनंद मिलता है।

चौथा सबक पूरा हो गया था। मैंने और आंटी ने अपने अंग डिटोल और साबुन से धोकर कपड़े पहन लिए। हाँ हम दोनों ने ही एक दूसरे के अंगों को साफ़ किया था। आंटी ने मुझे शहद मिला गर्म दूध पिलाया और खुद भी पीया। उन्होंने बताया था कि ऐसा करने से खोई ताकत आधे घंटे में वापस मिल जाती है। अगला सबक दूसरे दिन था। शाम के 7 बज रहे थे मैं घर आ गया।
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07-04-2017, 12:44 PM,
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आंटी गुलबदन और सेक्स (प्रेम) के सात सबक-3

5. प्रेम अंगों को चूमना और चूसना

आंटी ने पहले ही बता दिया था कि प्रेम (सेक्स) में कुछ भी गन्दा नहीं होता। मानव शरीर के सारे अंग जब परमात्मा ने ही बनाए हैं तो इनमें कोई गन्दा कैसे हो सकता है। मेरे प्यारे पाठको और पाठिकाओं, अब मुनिया और मिट्ठू (लंड और चूत) की चुसाई का सबक सीखना था। मेरी बहुत सी पाठिकाएं तो शायद नाक-भोंह सिकोड़ रही होंगी। छी … छी … गंदे बच्चे…. पर मेरा दावा है कि इस सबक को मेरे साथ पढ़ लेने के बाद आप जरूर इसे आजमाना चाहेंगी।

हर बच्चे की एक जन्मजात आदत होती है जो चीज उसे अच्छी और प्यारी लगती है उसे मुंह में ले लेता है। फिर इन काम अंगों को मुंह में लेना कौन सी बड़ी बात है। यह तो नैसर्गिक क्रिया है। आंटी ने तो बताया था कि वीर्य पीने से आँखों की ज्योति बढ़ती है। इसका एक प्रत्यक्ष प्रमाण तो यही है कि अपने किसी वैश्या (गणिका) को चश्मा लगाये नहीं देखा होगा। शास्त्रों में तो इसे अमृत तुल्य कहा गया है। वैज्ञानिक दृष्टि से भी देखा जाए तो वीर्य और कामरस में कई धातुएं और विटामिन्स होते हैं तो फिर ऐसी चीज को भला व्यर्थ क्यों जाने दें। अगर शुरू शुरू में लंड चूसने में थोड़ी ग्लानि सी महसूस हो या अच्छा ना लगे तो लंड और चूत पर पर शहद या आइसक्रीम लगा कर चूसना चाहिए। ऐसा करने से इनका रंग भी काला नहीं पड़ता। उरोजों पर शहद लगा कर चूसने से उनका आकार सुडौल बनता है। यह ऐसा ही है जैसे गांड मरवाने से नितम्ब चौड़े और सुडौल बनते हैं।

ज्यादातर महिलायें मुख मैथुन पसंद करती हैं। इन में गुप्तांग भी शामिल हैं पर स्त्री सुलभ लज्जा के कारण वो पहल नहीं करती। वो इस कृत्य को बहुत ही अन्तरंग और आत्मीय नज़रिए से देखती हैं। इसलिए पूर्ण प्रेम के दौरान इसका बहुत महत्व है। प्रेमी को यह जानने की कोशिश करते रहना चाहिए कि उसकी प्रेमिका को कौन सा अंग चुसवाने में अधिक आनंद मिलता है।

आंटी ने बताया था कि गुप्तांगों की चुसाई करते समय इनकी सफाई और स्वछता का ध्यान रखना बहुत जरुरी है। झांट अच्छी तरह कटे हों और डिटोल और साबुन से इन्हें अच्छी तरह धो लिया गया हो। मेरे तो खैर रोयें ही थे मैंने पहली बार अपने झांट तरीके से काटे थे। आज हमें नाईट शिफ्ट में काम करना था। घर पर बता दिया था कि मैं 3-4 दिन रात में आंटी के पास ही पढ़ाई करूंगा। परीक्षा सिर पर है और सबक (पाठ) बहुत मुश्किल हैं। घरवाले बेचारे मेरी इस पढ़ाई के बारे में क्या जानते थे ?

रात के कोई 10 बजे होंगे। मैं और आंटी दोनों नंग धडंग पलंग पर लेटे थे। हमने अपने गुप्तांगो को अच्छे से धो लिया था। और हलका सा सरसों का तेल भी लगा लिया था। मेरे सुपाड़े पर आंटी ने शहद लगा दिया था और अपनी चूत पर थोड़ी सी आइसक्रीम। वैसे मुझे आइसक्रीम की कोई जरुरत नहीं थी। आप समझ ही रहे होंगे। आंटी की चूत का जलवा तो आज देखने लायक था। बिलकुल क्लीन शेव। जो चूत कल तक काली सी लग रही थी आज तो चार चाँद लग रही थी। बिलकुल गोरी चिट्टी गुलाबी। ऐसे लग रहा था जैसे किसी ने मोटे अक्षरों में अंग्रेजी का डब्लू (w) लिख दिया हो। उसके होंठ जरूर थोड़े श्यामल रंग के लग रहे थे पर इस जन्नत के दरवाजे के रंग से मुझे क्या लेना देना था। स्वाद तो एक जैसा ही मिलेगा फिर रंग काला हो या गोरा क्या फर्क पड़ता है।

आंटी ने बताया लिंग या योनि को चूसने के कई आसन और तरीके होते हैं पर अगर लिंग और योनि दोनों की एक साथ चुसाई करनी हो तो 69 की पोजिशन ही ठीक रहती है। यह 69 पोजिशन भी दो तरह की होती है। एक तो आमने सामने करवट के बल लेट कर और दूसरी प्रेमी नीचे और प्रेमिका उसके मुंह पर अपनी योनि लगा कर अपना मुंह उसके पैरों की ओर लिंग के ठीक सामने कर लेती है। इस आसन में दोनों को दुगना मज़ा आता है। अरे भाई प्रेमिका की महारानी (गांड) भी तो ठीक उसकी आँखों के सामने होती है ना ? उसके खुलते बंद होते छेद का दृश्य तो जानमारू होता ही है कभी कभार उसमें भी अगर अंगुली कर दी जाए तो मज़ा दुगना क्या तिगुना हो जाता है।

आइये अब चूत का प्रथम चुम्बन लेते हैं। आंटी ने मुझे चित्त लेट जाने को कहा। आंटी ने बड़ी अदा से अपने दोनों घुटने मेरे सिर के दोनों ओर कर दिए और अपना मुंह मेरे लंड के ठीक ऊपर कर लिया। मैंने उनकी मोटी मोटी संगेमरमर जैसी कसी हुई जाँघों को कस कर पकड़ लिया। चूत कोई 2″ ही तो दूर रह गई थी मेरे होंठों से। आंटी ने बताया था कि कोई जल्दी नहीं। मैंने होले से अपनी जीभ की टिप उसकी फांकों पर रख दी। आंटी की तो एक सीत्कार क्या हलकी चीख ही निकल गई। किसी मर्द की जीभ का दो साल के बाद उनकी चूत पर यह पहला स्पर्श था। मैंने नीचे से ऊपर अपनी जीभ फिराई गांड के सुनहरे छेद तक और फिर ऊपर से नीचे तक।

मेरा मिट्ठू तो किसी चाबी वाले खिलौने की तरह उछल रहा था। उसने तो प्री-कम के टुपके छोड़ने शुरू कर दिए थे। आंटी ने पहले मेरे लंड को अपने हाथ से पकड़ा और फिर अदा से अपने सिर के बालों को एक झटका दिया। बाल एक ओर हो गए तो उन्होंने सुपाड़े पर आये प्री-कम पर अपनी जीभ टिकाई। शहद और कम दोनों को उन्होंने चाट लिया। फिर अपनी जीभ सुपाड़े पर फिराई। ठीक मेरे वाले अंदाज़ में लंड के ऊपर से नीचे तक। फिर जब उन्होंने मेरे अन्डकोषों को चाटा तो मैंने भी उनकी गांड के सुनहरे छेद पर अपनी जीभ की नोक लगा दी। गांड का छेद तो कभी खुल रहा था कभी बंद हो रहा था। वो तो जैसे मुझे ललचा ही रहा था। मैंने थूक से उसे तर कर दिया था। मैंने अपनी एक अंगुली उसमें डालने की कोशिश की पर वो मुझे असुविधाजनक लगा तो मैंने अपने अंगूठे पर थूक लगा कर गच्च से आंटी की गांड के छेद में डाल दिया।

ऊईइ माँ….. कहते हुए आंटी ने मेरे दोनों अन्डकोशों को अपने मुंह में भर लिया। थे भी कितने बड़े जैसे दो लिच्चियाँ हों। आईला….. इस परम आनंद को तो मैं मरते दम तक नहीं भूल पाऊंगा। फिर उन्होंने उन गोलियों को मुंह के अन्दर ही गोल गोल घुमाना शुरू कर दिया। मेरे लंड का बुरा हाल था। बेचारा मुर्गे की गर्दन की तरह आंटी के बिल्ली जैसे पंजों में दबा था। अब आंटी ने उसका सुपाड़ा अपने होंठों में लेकर दबाया। एक बार दांत गड़ाए जैसे मुझे इशारा कर रही हो कि तुम भी ऐसा ही करो।

मैं भला क्यों चूकता। मैंने उनकी दोनों फांकों को (छोटी छोटी सोने की बालियों समेत) गप्प से अपने मुंह में भर कर एक जोर की चुस्की लगाई। आंटी तो ऐसे जोर लगा रही थी जैसे पूरी चूत ही मेरे मुंह में घुसा देना चाहती हो। आंटी का सारा शरीर ही रोमांच से कांपने लगा था। मैंने होले से जब अपने दांत उनकी फांकों में गड़ाए तो उनकी एक किलकारी ही निकल गई और उसके साथ ही उनकी चूत से नमकीन और लिजलिजा सा रस मेरे मुंह में भर गया। आइसक्रीम में मिला उनका खट्टा, मीठा और कसैला सा कामरस मैं तो चाटता ही चला गया। आह.. क्या मादक गंध और स्वाद था मैं तो निहाल ही हो गया।

आंटी ने मेरे लंड को मुंह में भर लिया और लोलीपोप की तरह चूसने लगी। मैंने अपनी जीभ से उनकी चूत की फांकों को चौड़ा किया और उनकी मदनमणि को टटोला। जैसे कोई मोटा सा अनार या किशमिश का फूला हुआ सा दाना हो। मैंने उस पर पहले तो जीभ फिराई बाद में उसे दांतों से दबा दिया। आंटी की हालत तो पहले से ही ख़राब थी। उन्होंने कहा “ओह चंदू…. जोर से चूसो… ओह… मैं तो गई। ऊईई… माँ ……………”

और उसके साथ ही उनकी चूत फिर गीली हो गई। मेरी तो जैसे लाटरी ही लग गई। उस अमृत को भला मैं व्यर्थ कैसे जाने देता। मैं तो चटखारे लेता हुआ उसे चाटता ही चला गया। आंटी धम्म से एक ओर लुढ़क गई। उनकी आँखें बंद थी और साँसें जोर जोर से चल रही थी। मैं हक्का बक्का उन्हें देखता ही रह गया। पता नहीं ये क्या हो गया।

कोई 3-4 मिनट के बाद आंटी ने आँखें खोली और मुझे से लिपट गई। मेरे होंठों पर तड़ातड़ 4-5 चुम्बन ले लिये “ओह मेरे चंदू ! मेरे प्रेम ! मेरे राजा ! तुमने तो कमाल ही कर दिया। आज मैं तो तृप्त ही हो गई। उन्ह… पुच …” एक और चुम्मा लेकर वो फिर मेरे मुंह के ऊपर अपनी चूत लगा कर बैठ गई। उन्होंने अपनी चूत की दोनों फांकों पर लगी सोने की बालियों को दोनों हाथों से चौड़ा किया और अपनी चूत मेरे होंठों पर रख दी। मैं तो इस नए अनूठे अनुभव से जैसे निहाल ही हो गया। चूत के अन्दर से आती पसीने, पेशाब और जवानी की खुशबू से मैं तो सराबोर ही हो गया। मैंने अपनी जीभ को नुकीला किया और गच्च से उनकी चूत के छेद में डाल दिया और अन्दर बाहर करने लगा। आंटी तो सीत्कार पर सीत्कार किये जा रही थी और अपने नितम्ब उछाल उछाल कर जोर जोर से बड़बड़ा रही थी,”हाई … जानू ऐसे ही चूसो … या…. ओह …. और जोर से और जोर से …”

कोई 4-5 मिनट तक मैं तो मजे ले ले कर उनकी चूत को चूसता ही रहा। बीच बीच में उनके नितम्बों को सहलाता कभी उनकी गांड के छेद पर अंगुली फिराता। अब आंटी कितना ठहरती। एक बार फिर उनको चरमोत्कर्ष हुआ और फिर वो एक ओर लुढ़क गई।

थोड़ी देर वो आँखें बंद किये लेटी रही और फिर मेरे पैरो के बीच में आ गई। पहले तो मैं कुछ समझा नहीं बाद में मुझे होश आया कि अब आंटी नई अदा से मेरा लंड चूसेगी। मैं चित्त लेटा था। आंटी के खुले बाल मेरे पेट और जाँघों पर गुदगुदी कर रहे थे। पर आंटी इन सब बातों से बे परवाह मेरे लंड को गप्प से पूरा अन्दर लेकर चूसने लगी। मैंने सुना था कि ज्यादातर औरतें लंड को पूरा अपने मुंह में नहीं लेती पर आंटी तो उसे जड़ तक अन्दर ले रही थी। पता नहीं उसने कहाँ से इसका अभ्यास किया था। कभी वो मेरे लंड को पूरा बाहर निकाल देती और उस पर जीभ फिराती कभी पूरा मुंह में ले लेती। कभी वो सुपाड़े को दांतों से दबाती और फिर उसे चूसने लगती। कभी मेरे लंड को अपने मुंह से बाहर निकाल कर मेरे अन्डकोशों को अपने मुंह में ले लेती और उन्हें चूम लेती और फिर दोनों अण्डों को पूरा मुंह में लेकर चूसने लगती। साथ में मेरे लंड पर हाथ ऊपर नीचे फिराती। मेरे आनंद का पारावार ही नहीं था।

पता नहीं इस चूसा चुसाई में कितना समय बीत गया। हाल में लगी घड़ी ने जब 11 बार टन्न टन्न किया तब हमें ध्यान आया कि हमें पूरा एक घंटा हो गया है। मैं भला कितनी देर ठहरता। मैंने आंटी को कहा कि मैं अब जाने वाला हूँ तो वो एक ओर हट गई। मैं कुछ समझा नहीं। मुझे लगा वो मेरा जूस नहीं पीना चाहती। पर मेरा अंदाज़ा गलत था। वो झट से चित लेट गई और मेरे लंड को अपने मुंह की ओर खींचने लगी। मैं उकडू होकर उनके मुंह के ऊपर आ गया। मेरे नितम्ब अब उनकी छाती पर थे और उनके नाजुक उरोजों को दबा रहे थे। मैंने आंटी के बालों को पकड़ लिया और और उसके सिर को दबाते हुए अपना लंड उसके मुंह में ठेलने की कोशिश करने लगा। मेरा लंड उसके गले तक जा पंहुचा था। आंटी को शायद सांस लेने में तकलीफ हो रही थी मगर फिर भी उसने मेरे लंड को अपने मुंह में समायोजित कर कर लिया और खूब जोर जोर से मेरे आधे से अधिक लंड को अपने मुंह में भर कर मेरे अन्डकोशों की गोलियों के साथ खेलते हुए चूसने लगी। वो कभी उन्हें सहलाती और कभी जोर से भींच देती। मेरी सीत्कार निकलने लगी थी। “ऊईइ … मेरी जा… आ… न… मेरी चान्दनी…. ईईइ…. और जोर से चूसो और जोर से ओईइ …… या आ …… ” और उसे साथ ही मेरे मिट्ठू ने भी पिछले एक घंटे से उबलते लावे को आंटी के मुंह में डालना शुरू कर दिया। आंटी ने मेरे अण्डों को छोड़ कर मेरे नितम्ब ऐसे भींच लिए कि अगर मैं जरा सा भी इधर उधर हिला तो कहीं एक दो बूँद नीचे ना गिर जाएँ। आंटी तो पूरी गुरु थी। पूरा का पूरा जूस गटागट पी गई।

फिर लाईट बंद करके एक दूसरे को बाहों में जकड़ कर हम दोनों सो गए। पता नहीं चला कब नींद के आगोश में चले गए।
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07-04-2017, 12:45 PM,
#93
RE: प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ
आंटी गुलबदन और सेक्स (प्रेम) के सात सबक-4


6. सम्भोग (प्रेम मिलन)

काम विज्ञान के अनुसार सम्भोग का अर्थ होता है समान रूप से भोग अर्थात स्त्री और पुरुष दोनों सक्रिय होकर सामान रूप से एक दूसरे का भोग करें। नियमित रूप से सुखद सम्भोग करने से बुढ़ापा जल्दी नहीं आता और स्त्रियों में रजोनिवृति देरी से होती है और हड्डियों बीमारियाँ भी नहीं होती। दाम्पत्य जीवन में मधुर मिलन की पहली रात को सुहागरात कहते हैं। इस रात के मिलन की अनेक रंगीन व मधुर कल्पनाएँ दोनों के मन में होती है। और आज तो जैसे हमारा मधुर मिलन ही था। आंटी ने बताया था कि आज की रात हमारे ख़्वाबों की रात होगी जैसे तुम किसी परी कथा के राज कुमार होगे और मैं तुम्हारे ख़्वाबों की शहजादी। मैं चाहती हूँ कि तुम मुझे आज की रात दीवानों की तरह प्रेम करो। मैं तुम्हारे आगोश में आकर सब कुछ भूल जाना चाहती हूँ मेरे प्रियतम। ये चांदनी तो तुम्हारे प्रेम के बिना मर ही जायेगी। आंटी ने बताया था कि इस संगम को हम चुदाई जैसे गंदे नाम से कदापि नहीं बोलेंगे हम इसे अपना मधुर मिलन ही कहेंगे। अब मैं यह सोच रहा था कि इसे सुहागरात कहो या प्रेम मिलन होनी तो चूत की चुदाई ही है, क्या फर्क पड़ता है।

आज तो घूँघट उठाना था। अरे बाबा सिर का नहीं चूत का। मैं तो चाहता था कि बस जाते ही उन्हें दबोच कर अपना मिट्ठू उनकी मुनिया में डाल ही दूं। पर आंटी ने बताया था कि सम्भोग मात्र शरीर व्यापार नहीं है। स्त्री पुरुष के सच्चे यौन संबंधों का अर्थ मात्र दो शरीरों का मिलन ही नहीं दो आत्माओं का भावनात्मक प्रेम और लगाव भी अति आवश्यक होता है।

मैंने आज सिल्क का कामदार कुरता और चूड़ीदार पाजामा पहना था। आंटी तो पूरी दुल्हन ही बनी पलंग पर बैठी थी। सुर्ख लाल जोड़े में वो किसी नवविवाहिता से कम नहीं लग रही थी। कलाइयों में 9-9 चूड़ियाँ , होंठों पर लिपस्टिक, हाथों में मेहंदी, बालों में गज़रा। पूरे कमरे में गुलाब के इत्र की भीनी भीनी महक और मध्यम संगीत। पलंग के पास रखी स्टूल पर थर्मोस में गर्म दूध, दो ग्लास , प्लेट में मिठाई और पान की गिलोरियां रखे थे। पलंग पर गुलाब और चमेली के फूलों की पत्तियाँ बिखरी थी। 3-4 तकिये और उनके पास 2 धुले हुए तौलिये। क्रीम और तेल की शीशी आदि। मुझे तो लगा जैसे सचमुच मेरी शादी ही हो गई है और मेरी दुल्हन सुहाग-सेज पर मेरा इन्तजार कर रही है। उन्होंने बताया था कि सुहागरात में चुदाई पूरी तसल्ली के साथ करनी चाहिए। कोई जल्दबाजी नहीं। यह मधुर मिलन है इसे ऐसे मनाओ जैसे कि जैसे ये नए जीवन की पहली और अंतिम रात है। हर पल को अनमोल समझ कर जीओ। जैसे इस प्रेम मिलन के बाद कोई और हसरत या ख़्वाहिश ही बाकी ना रहे।

कुछ मूर्ख तो सुहागरात में इसी फिक्र में मरे जाते हैं कि पत्नी की योनि से खून निकला या नहीं। यदि रक्तस्त्राव नहीं हुआ तो यही सोचते हैं कि लड़की कुंवारी नहीं है जरूर पहले से चुदी होगी। जबकि लड़की के कौमार्य का यह कोई पैमाना नहीं है। लड़की का योनिपटल एक पतली झिल्ली की तरह होता है जो योनि को बेक्टीरिया और हानिकारक रोगाणुओं से बचाता है। कई बार खेल के दौरान, साइकिल चलाने, घुड़सवारी या तैराकी आदि से यह टूट जाता है इसका अर्थ यह नहीं है कि लड़की ने अपना कौमार्य खो दिया है।

मैं उनके पास आकर बैठ गया। उन्होंने चुनरी का पल्लू थोड़ा सा नीचे कर रखा था। मैंने आज की रात आंटी को देने के लिए एक हल्का सा सोने का लोकेट खरीदा था। मैंने यह लोकेट अपने साल भर के बचा कर रखे जेब खर्च से खरीदा था। मैंने अपने कुरते की जेब से उसे निकाला और आंटी के गले में पहनाने के लिए अपने हाथ बढ़ाते हुए कहा,”मेरी चांदनी के लिए !”

आंटी ने अपनी झुकी पलकें ऊपर उठाई। उफ … क्या दमकता रूप था। आज तो आंटी किसी गुलबदन और अप्सरा से कम नहीं लग रही थी। नाक में नथ, कानों में सोने की छोटी छोटी बालियाँ, आँखों में काजल, थरथराते लाल गुलाबी होंठ। उन्होंने अपना सिर थोड़ा सा ऊपर उठाया और अपनी बंद पलकें खोली। मैंने देखा उनकी आँखें सुर्ख हो रही हैं जैसे नशे में पुरख़ुमार हों। लगता है वो कल रात जैसे सोई ही नहीं थी। मुझे बड़ी हैरानी हो रही थी कि वो आज चुप क्यों हैं। उनकी आँखें तो जैसे डबडबा रही थी। होंठ कांप रहे थे वो तो जैसे बोल ही नहीं पा रही थी। उसने अपनी आँखें फिर बंद कर ली।

मैंने उसके गले में वो लोकेट पहना दिया तब उन्होंने थरथराती सी आवाज में कहा,”धन्यवाद ! मेरे प्रेम ! मेरे काम देव !”

उसकी आँखों से आंसू निकल कर उसके गालों पर लुढ़क आये। मैंने उसे अपनी बाहों में भर लिया और उसने अपना सिर मेरे सीने से लगा दिया। मैं उसके सिर और पीठ पर पर हाथ फिराता रहा। फिर मैंने उसके आंसू पोंछते हुए पूछा,” क्या हुआ ?”

“कुछ नहीं यह तो प्रेम और ख़ुशी के आंसू हैं।”

शायद उन्हें अपनी पहली सुहागरात याद हो आई थी। ओह… मैं तो आज क्या क्या रंगीन सपने लेकर आया था। यहाँ तो सारा मामला ही उलटा हो रहा था। पर इससे पहले कि मैं कुछ करूँ आंटी ने अपने सिर को एक झटका सा दिया और मेरा सिर अपने हाथों में पकड़ कर अपने कांपते होंठ मेरे जलते होंठों पर रख कर चूमने लगी। वो साथ साथ बड़बड़ाती भी जा रही थी,” ओह… मेरे प्रेम ! मेरे कामदेव ! मेरे चंदू मुझे आज इतना प्रेम करो कि मैं तुम्हारे प्रेम के अलावा सब कुछ भूल जाऊं !” और तड़ातड़ा कई चुम्बन उसने मेरे गालों और होंठों पर ले लिए।

“हाँ हाँ मेरी चांदनी… आज की रात तो हमारे प्रेम मिलन की रात है मेरी प्रियतमा !” मैंने कस कर उसे अपनी बाहों में भर लिया। पता नहीं कितनी देर हम इसी तरह एक दूसरे को चूमते रहे। मैं पलंग पर टेक सी लगा कर बैठ गया और आंटी मेरी गोद में सिर रख कर लेट गई। उसकी आँखें बंद थीं और मैं उसके चेहरे पर अपने हाथ फिरा रहा था, कभी गालों पर, कभी होंठों पर कभी माथे पर।

“चांदनी आज तो हमारा प्रेम मिलन है और आज तुम रो रही हो ?”

“हाँ चंदू ! आज मुझे अपना पहला प्रेम याद आ गया था। मैं कल सारी रात उसे याद करके रोती रही थी। तुम नहीं जानते मैंने अपने दूसरे पति को भी कितना चाहा था पर उसे तो पता नहीं उस दो टके की छोकरी में ऐसा क्या नज़र आया था कि उसके अलावा वो सब कुछ ही भूल गया।”

उसने आगे बताया था कि उनकी पहली शादी चार साल के लम्बे प्रेम के बाद 25 साल की उम्र में हुई थी। एक साल कब बीत गया पता ही नहीं चला। पर होनी को कौन टाल सकता है। एक सड़क दुर्घटना में उनके पहले पति की मौत हो गई। घर वालों के जोर देने पर दूसरी शादी कर ली। उस समय उसकी उम्र कोई 28-29 साल रही होगी। नीरज भी लगभग 32-33 का रहा होगा पर मैंने कभी पूछा ना कभी इस मसले पर बात हुई थी। पर बाद में मुझे लगा कि कहीं ना कहीं उसके मन में एक हीन भावना पनप गई थी कि उन्हें एक पहले से चुदी हुई पत्नी मिली है। उसने कहीं पढ़ा था कि अगर कोई बड़ी उम्र का आदमी किसी कमसिन और कुंवारी लड़की के साथ और कोई बड़ी उम्र की औरत किसी किशोर लड़के के साथ सम्भोग करे तो उसके सेक्स की क्षमता दुगनी हो जाती है। ये तो निरा पागलपन और बकवास है। वैसे ये जो मर्दजात है सभी एक जैसी होती है। मुझे बाद में पता लगा उनका अपनी सेक्रेट्री के साथ भी सम्बन्ध था जो उम्र में लगभग उनसे आधी थी। पता नहीं इन छोटी और अनुभवहीन लौंडियों के पीछे ये सारे मर्द क्यों मरे जाते हैं। जो मज़ा और आनंद एक जानकार और अनुभवी स्त्री से मिल सकता है भला उन अदना सी लड़कियों में कहाँ ? पर इन मर्दों को कौन समझाए ? ओह….. चंदू… छोडो इन फजूल बातों को। आज हमारी सुहागरात है इस का मज़ा लो। आंटी ने अपने आंसू पोंछ लिए।

“चांदनी… मेरी चंदा ! मेरी प्रियतमा ! अब छोड़ो उन बातों को। क्यों ना हम फिर से नया जीवन शुरू करें ?”

“क्या मतलब ?”

“क्यों ना हम शादी कर लें ?”

“ओह… नहीं मेरे प्रेम यह नहीं हो सकता ? मैं नहीं चाहती कि तुम भी थोड़े सालों के बाद ऐसा ही करो। बस इन संबंधों को एक ट्रेनिंग ही समझो और बाकी बातें भूल जाओ !”

“क्यों ? ऐसा क्यों नहीं हो सकता ?”

“तुम अभी बहुत छोटे हो इन बातों को नहीं समझोगे। हम इस मसले पर बाद में बात करेंगे। आज तो बस तुम मुझे प्रेम करो ! बस” और उसने अपनी बाहें ऊपर कर मेरे गले में डाल दीं।

मैंने उसे फिर से अपनी बाहों में जकड़ लिया और फिर उसके होंठों को चूमने लगा। उसने अपनी जीभ मेरे मुंह डाल दी। किसी रस भरी कुल्फी की तरह मैंने उसे चूसने लगा। मेरा मिट्ठू तो लोहे की रॉड ही बना था जैसे। उसका तनाव तो इतना ज्यादा था कि मुझे लगने लगा था कि अगर जल्दी ही कुछ नहीं किया तो इसका सुपाड़ा तो आज फट ही जाएगा। चुम्बन के साथ साथ मैं अब उसके उरोजों को दबाने लगा। उसकी साँसें तेज होने लगी तो उसने मुझे कपड़े उतारने का इशारा किया। मैं जल्दी से अपने कपड़े उतारने लगा तो वो हँसते हुए बोली,” अरे बुद्धू अपने नहीं एक एक करके पहले मेरे उतारो !”

मेरे तो हंसी ही निकल गई। मैं तो उनका पूरा आज्ञाकारी बना था। मैंने पहले उसकी चुनरी फिर ब्लाउज और फिर धीरे से उनका घाघरा उतार दिया। अब वो केवल ब्रा और पैंटी में थी। संगेमरमर सा तराशा सफ्फाक बदन अब ठीक मेरे सामने था। ऐसे ही बदन वाली औरतों को गुलबदन कहा जाता है आज मैंने पहली बार महसूस किया था। अब मैंने भी अपने कपड़े उतार दिए। केवल एक चड्डी के सिवा मेरे शरीर पर कुछ भी नहीं था। और फिर उछल कर उन्हें अपनी बाहों में भर लिया। वो एक ओर लुढ़क गई। मैं ठीक उसके ऊपर था। मैंने उसे कस कर अपनी बाहों में भर लिया। आंटी ने भी मुझे चूमना शुरू कर दिया। अब मैं एक हाथ से उसके उरोजों को ब्रा के ऊपर से ही मसलना चालू कर दिया और दूसरे हाथ से उसकी मुनिया को पैंटी के ऊपर से ही अपने हाथ में पकड़ लिया। मेरा शेर तो जैसे दहाड़ें ही मारने लगा था।

आंटी एक झटके से उठ बैठी और उसने मेरी चड्डी निकाल फेंकी। मैं चित्त लेटा था। अब तो मिट्ठू महाराज उसे सलाम ही बजाने लगे। आंटी ने अपनी नाज़ुक अँगुलियों के बीच उसे दबा लिया। उसके ऊपर प्री-कम की बूँद चमक रही थी। उसने एक चुम्बन उस पर ले लिया। प्री-कम उसके होंठों पर फ़ैल गया। मैं तो सोच रहा था की वो उसे गच्च से अपने मुंह में भर लेगी। पर उसने कोई जदबाजी नहीं दिखाई। मिट्ठू तो झटके पर झटके खा रहा था। उसने साइड में पड़ी स्टूल पर रखी तेल की शीशी उठाई और मेरे मिट्ठू को जैसे नहला ही दिया। अब एक हाथ से मेरे अंडकोष पकड़ लिए और दूसरे हाथ से मिट्ठू को नाच नचाने लगी। मैं तो आ … उन्ह … ओईईइ … करता मीठी सित्कारें मारने लगा। आंटी तेजी से हाथ चलाने लगी। मुझे लगा इस तरह तो मैं झड़ ही जाऊँगा। मैंने उसे रोकना चाहा पर उसने मुझे इशारे से मन कर दिया और मेरे अंडकोष जल्दी जल्दी हाथ से मसलते हुए लंड को ऊपर नीचे करने लगी। मैं जोर से उछला और उसके साथ ही मेरी पिचकारी फूट गई। सारा वीर्य उसके हाथों और जाँघों और मेरे पेट पर फ़ैल गया।

मुझे अपने आप पर बड़ी शर्म सी आई। इतनी जल्दी तो मैं पहले कभी नहीं झड़ा था। आज पता नहीं क्या हुआ था कि मैं तो 2 मिनट में ही खलास हो गया। मुझे मायूस देख कर वो बोली,” चिंता करने की कोई बात नहीं है। मैं जानती थी तुम पहली बार में जल्दी झड़ जाओगे। इस लिए यह करना जरुरी था। अब देखना, तुम बड़ी देर तक अपने आप को रोक पाओगे। मैं नहीं चाहती थी कि हमारे प्रथम मिलन में तुम जल्दी झड़ जाओ और ठीक से मज़ा ना ले पाओ !”

“पर मैंने तो सुना है कि लोग आधे घंटे तक चुदाई करते रहते हैं और वो नहीं झड़ते ?”

“पता नहीं तुमने कहाँ कहाँ से यह सब गलत बातें सुन रखी हैं। सच्चाई तो यह है कि योनि में लिंग प्रवेश करने के बाद बिना रुके सेक्स करने पर स्खलन का औसत समय 3 से 10 मिनट का ही होता है। यह अलग बात है कि लोग कई बार सेक्स के दौरान अपने घर्षण और धक्कों को विराम दे कर स्खलन का समय बढ़ा लेते हैं !”

“वैसे कुछ लोग दूसरे टोटके भी आजमाते हैं ;

मूली के बीजों को या कबूतर की बीट को तेल में पका कर उस तेल से अपने लिंग पर मालिश की जाए तो इस से स्तम्भन शक्ति बढ़ती है। अगर सम्भोग करते समय निरोध लगा लिया जाए या अपने लिंग पर रबर का छल्ला पहन लिया जाए तो भी वीर्य देरी से स्खलित होता है। प्याज (ओनियन) का रस और शहद मिलाकर रोज़ खाने से पुरुष शक्ति बढती है। काले चने खाने और उरद की दाल खाने से घोड़े जैसी ताकत मिलती है और वीर्य गाढ़ा होता है। महुवे, सतावर, अश्वगंधा और चमेली के फूलों का सेवेन करने से वीर्य में वृद्धि होती है।”

मैंने बाथरूम में जाकर अपने मिट्ठू, पेट, जाँघों और हाथों को अच्छी तरह धोये और जब बाहर आया तो आंटी दूध भरा गिलास लिए मेरा इंतज़ार ही कर रही थी। जब तक मैंने केशर बादाम मिला गर्म दूध पीया वो बाथरूम से अपने हाथ साफ़ करके बाहर आ गई। बड़ी अदा से अपने कुल्हे और नितम्ब मटकाती वो पलंग के पास आकर खड़ी हो गई। उसका गदराया बदन देख कर तो मेरा शेर फिर से कुनमुनाने लगा था।

मैंने उठ खड़ा हुआ और उसे अपनी बाहों में भर कर चूम लिया। वो तो जैसे कब की तरस रही थी। उसने अपने होंठ मेरे होंठों पर रख दिए। मैंने उसे पलंग पर चित्त लेटा दिया और उसके ऊपर आ गया। मैंने उसके गालों, होंठों, पलकों, गले और उरोजों की घाटियों पर चुम्बनों की झड़ी ही लगा दी। वो भी मुझे चूमे ही जा रही थी। मैंने उसकी पीठ सहलानी चालू कर दी अचानक मेरा हाथ उसकी ब्रा की डोरी से टकराया। मैंने उसे खींच दिया। दोनों कबूतर जैसे आजाद हो गए। आह… मोटे मोटे गोल कंधारी अनार हों जैसे। एरोला लाल रंग का और चूचक तो बस मूंगफली के दाने जितने गुलाबी रंग के। मैंने झट से एक अमृत कलश को अपने मुंह में भर लिया। आंटी ने मेरा सिर पकड़ लिया और एक मीठी सीत्कार लेकर बोली “चंदू इसे धीरे धीरे चूसो। चूचक को कभी कभी दांतों से दबाते रहो पर काटना नहीं …आह …”

“देखो सम्भोग से पहले पूर्व काम क्रीड़ा का बहुत महत्व होता है। प्रेम को स्थिर रखने के लिए सदैव सम्भोग से पहले पूर्व रति क्रीड़ा बहुत जरुरी होती है। पुरुष की उत्तेजना दूध के उफान या ज्वालामुखी की तरह होती है जो एक दम से भड़कती है और फिर ठंडी पड़ जाती है। परंतू स्त्री की उत्तेजना धीरे धीरे बढती है जैसे चाँद धीरे धीरे अपनी पूर्णता की ओर बढ़ता है लेकिन उनकी उत्तेजना का आवेग और समय ज्यादा होता है और फिर वो उत्तेजना धीरे धीरे ही कम होती है। इसके अलावा महिलाओं में उत्तेजना को प्राप्त करनेवाले अंग पुरुषों कि अपेक्षा ज्यादा होते हैं। शरीर विज्ञान के अनुसार महिलाओं की मदनमणि (भागनासा) में जितनी ज्यादा संख्या संवेदन शील ग्रंथियों की होती है उतनी पुरुषों के लिंग के सुपाड़े में होती हैं। इसी लिए पुरुष जल्दी चरमोत्कर्ष पर पहुँच जाते हैं। तुम्हें शायद पता नहीं होगा कि पूर्णिमा के दिन समुद्र का ज्वार सब से ज्यादा ऊंचा होता है। यही स्थिति स्त्री की होती है। चंद्रमा के घटने बढ़ने के साथ साथ ही स्त्री का काम ज्वर घटता बढ़ता रहता है उसके ऋतुचक्र में कुछ दिन ऐसे आते हैं जब उसके मन में सम्भोग की तीव्र इच्छा होती है। माहवारी के कुछ दिन पहले और माहवारी ख़तम होने के 3-4 दिन बाद स्त्री का कामवेग अपने उठान पर होता है। बाद में तो यह चन्द्र कला की तरह घटता बढ़ता रहता है। इसलिए हर स्त्री को अलग अलग दिन अलग अलग अंगों को छूना दबाना और चूमना अच्छा लगता है।”

एक और बात सुनो,” सम्भोग करने से पहले अपनी प्रेयसी को गर्म किया जाता है। उसके सारे अंगों को सहलाया और चूमा चाटा जाता है कोई जल्दबाजी नहीं, आराम से धीरे धीरे। पहले सम्भोग में पुरुष उत्तेजना के कारण जल्दी झड़ जाता है और सम्भोग का पूरा आनंद नहीं ले पाता इसलिए अगर सुहागरात को पहले दिन में एक बार मुट्ठ मार ली जाए तो अच्छा रहता है। मैंने इसी लिए तुम्हारा पानी एक बार पहले निकाल दिया था। एक और बात यदि सम्भोग करते समय लिंग पर निरोध (कंडोम) लगा लिया जाए तो वीर्य जल्दी नहीं स्खलित होता और अनचाहे गर्भ से भी बचा जा सकता है।”

अब मैंने उसे अपनी बाहों में जोर से भर कर उन अमृत कलशों को जोर जोर से चूसना चालू कर दिया। आंटी की तो सीत्कार पर सीत्कार निकल रही थी। बारी बारी दोनों उरोजों को चूस कर अब मैंने उनकी घाटियाँ और पेट को भी चूमना चालू कर दिया। अब मैंने उसकी नाभि और पेट को खूब अच्छी तरह से चाटा। नाभि के गोलाकार 1 इंच छेद में अपनी जीभ को डाल कर घुमाते हुए मैंने उसकी पैंटी के ऊपर से ही हाथ फिराना शुरू कर दिया और अपने हाथों को उसकी जाँघों के बीच ले जा कर उसकी चूत को अपनी मुट्ठी में भर कर मसलने लगा। उसकी चूत एक दम गीली हो गई थी इसका अहसास मुझे पैंटी के ऊपर से भी हो रहा था। मैंने उसकी मक्खन सी मुलायम जाँघों को भी खूब चाटा और चूमा। जब मैं हाथ बढ़ा कर उनकी पैंटी हटाने लगा तो आंटी ने अपनी पैंटी की डोरी खुद ही खोल दी।

हालांकि आंटी की मुनिया मैं पहले देख चुका था पर आज तो इसका रंग रूप और नज़ारा देखने लायक था। गुलाबी रंग के फांकें तो जैसे सूज कर मोटी मोटी हो गई थी। चूत की फांकें और बीच की लकीर कामरस से सराबोर हो रही थी। मदनमणि तो किसी किसमिस के फूले दाने जितनी बड़ी लग रही थी। मैंने एक चुम्बन उस पर ले लिया। आंटी की तो एक किलकारी ही निकल गई। फिर वो बोली,”ओह … चंदू जल्दबाजी नहीं, ठहरो !”

उन्होंने अपनी दोनों टाँगे चौड़ी कर के फैला कर अपना खज़ाना ही जैसे खोल दिया। मैं उसकी टांगो के बीच में आ गया। उसने अपनी चूत की फांकों पर लगी सोने की बालियों को दोनों हाथों से पकड़ कर चौड़ा किया और मुझे बोली,” हाँ, अब इसे प्यार करो !”

मैं इस प्यार का मतलब अच्छी तरह जानता था। उसकी मोटी केले के तने जैसी मांसल और गोरी जाँघों के बीच गुलाबी चूत चाँद के जैसे झाँक रही थी। उसकी चूत के गुलाबी होंठ गीले थे और ट्यूब लाईट की दुधिया रौशनी में चमक रहे थे। उसकी जाँघों को हलके से दांत से काटते हुए मैं जीभ से चाटने लगा। मैं चूत के चाटते हुए अपनी जीभ को घुमा भी रहा था। उसका नमकीन और कसैला स्वाद मुझे पागल बना रहा था। मैं तो धड़कते दिल से उस शहद की कटोरी को चूसे ही चला गया। मेरा शेर फिर दहाड़ें मारने लगा था। आंटी की सीत्कार पूरे कमरे में गूंजने लगी थी “उईईइ।.. बहुत अच्छे, बहुत खूब, ऐसे ही, ओह…. सीईईईईईइ….. ओह मैं तुम्हें पूरा गुरु बना दूंगी आज। ओह … ऐसे ही चूसते रहो…. ओईईइ ….”

मैंने अब उसके मदनमणि के दाने को अपनी जीभ से टटोला। मैंने उसे जीभ से सहलाया और फिर एक दो बार दांतों के बीच लेकर दबा दिया। आंटी तो अपने पैर ही पटकने लगी। उसने अपनी जांघें मेरी गर्दन के गिर्द लपेट ली और मेरा सिर पकड़ कर अपनी जाँघों की ओर दबा सा दिया। मैं तो मस्त हुआ उसे चाटता और चूसते ही चला गया। थोड़ी देर बाद उसने अपने पैर नीचे कर लिए और अपनी जाँघों की जकड़न थोड़ी सी ढीली कर दी। अब मैंने भी अपनी जीभ से उसकी चूत को ऊपर से नीचे और नीचे से ऊपर फिराया। उसकी सोने की बालियाँ मुंह में लेकर होले से चूसा। फिर उन बालियों को दोनों हाथों से पकड़ कर चौड़ा किया और अपनी जीभ को नुकीला करके उसके गुलाबी छेद पर लगा कर होले होले अन्दर बाहर करने लगा। उसने एक जोर की सीत्कार की और मुझे कुछ नमकीन सा पानी जीभ पर फिर महसूस हुआ। शायद उसकी मुनिया ने कामरस फिर छोड़ दिया था।

जब मैंने अपना सिर ऊपर उठाया और फिर से उसके उरोजों की ओर आने लगा तो उसने मेरा सिर पकड़ लिया और मेरे होंठों को चूम लिया। मेरे होंठों पर लगे उसका कामरस का स्वाद उसे भी मिल ही गया होगा। अब उसने अपना हाथ बढ़ा कर मेरे मिट्ठू को पकड़ लिया। मिट्ठू तो बेचारा कब का इंतज़ार कर रहा था। उसने उसकी गर्दन पकड़ ली और उसे मसलना चालू कर दिया। उसने पास पड़ी क्रीम मेरे मिट्ठू पर लगा दी। मैंने भी उनकी चूत पर अपना थूक लगा दिया। और फिर एक अंगुली से उनकी चूत का छेद टटोला। ओह कितना मस्त कसा हुआ छेद था। अब देरी की कहाँ गुन्जाइस थी। मैंने अपने मिट्ठू को उनकी चूत के नरम नाजुक छेद पर लगा दिया। मैं उसके ऊपर ही तो था। मैंने अपना एक हाथ उसकी गर्दन के नीचे लगा लिया और दूसरा हाथ उसकी कमर के नीचे। उसने अपनी जांघें चौड़ी कर ली। और फिर मैं एक धक्का जोर से लगा दिया। मेरा मिट्ठू तो एक ही धक्के में अन्दर चला गया। आह… क्या नर्म और गुदाज अहसास था। मिट्ठू तो मस्त ही हो गया। मैंने दो तीन धक्के तेजी से लगा दिए। आंटी तो बस उईई।… मा… करती ही रह गई।

मुझे लगा जैसे मुझे कुछ जलन सी हो रही है। मैंने सोच शायद पहली बार किसी को चोद रहा हूँ इस लिए ऐसा हो रहा है पर यह तो मुझे बाद में पता चला था कि मेरे लिंग के नीचे का धागा टूट गया है और मेरे लंड का कुंवारापन जाता रहा है।

मैंने धक्के चालू रखे। उसे चूमना और उरोजों को मसलना भी जारी रखा। अब चूत पूरी रवां हो चुकी थी। आंटी बोली “नहीं चंदू ऐसे जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए। चलो मेरी मुनिया ने तो पता नहीं कितनी बार अन्दर लिया होगा और तुम्हारा भी ले लिया पर अगर कोई कुंवारी लड़की हो तो इतनी जोर से धक्का लगाने से उसकी तो हालत ही ख़राब हो जायेगी। कभी भी पहला धक्का जोर का नहीं, बिल्कुल धीरे धीरे प्यार से लगाना चाहिए।”

मैंने अपनी मुंडी हिला दी। अब मैंने उनके होंठ चूमने शुरू कर दिए। उनके उरोज मेरी छाती से लग कर दब रहे थे उनके कड़े हो चले चुचूकों का आभास तो मुझे तरंगित ही कर रहा था। मैं कभी उनके होंठ चूमता कभी कपोलों को। अब आंटी ने अपने पैर ऊपर उठा दिए। आह… अब तो मज़ा ही ओर था। मुझे लगा जैसे किसी ने अन्दर से मेरा लंड कस लिया है और जैसे कोई दूध दुह रहा है। अनुभवी औरतें जब अपनी चूत को अन्दर से इस तरह सिकोड़ती हैं तो ऐसा कसाव अनुभव होता है जैसे कोई 16 साल की कमसिन चूत हो। मैंने अपने धक्के चालू रखे। उसने अपने पैरों की कैंची बना कर मेरी कमर के गिर्द लगा ली। अब धक्के के साथ ही उसके नितम्ब भी ऊपर नीचे होने लगे। मैंने धक्के लगाने बंद कर दिए। आंटी ने एक तकिया अपने नितम्बों के नीचे लगा लिया और पैर नीचे कर दिए। ओह … अब तो जैसे मुझे आजादी ही मिल गई। मैंने अपने धक्कों की गति बढ़ा दी।

अपने जीवन में किसी चूत में अपना लंड डालने का यह मेरा पहला मौका था। यह ख़याल आते ही मेरे लंड की मोटाई शायद बढ़ गई थी और मैं अपने आप को बहुत जयादा उत्तेजित महसूस कर रहा था। लंड को उसके चूत की तह तक पेलते हुए मैं अपने पेडू से उनकी मदनमणि को भी रगड़ रहा था। मेरे तीखे नुकीले छोटे छोटे झांट उसे चुभ रहे थे और इस मीठी चुभन से उसे और भी रोमांच हो रहा था। उसकी तो सीत्कार पर सीत्कार निकल रही थी।

कोई 10 मिनट की धमाकेदार चुदाई के बाद मैं हांफने लगा। उसने मुझे कस कर पकड़ लिया। उनका शरीर कुछ अकड़ा और फिर उसने एक जोर की किलकारी मारी। शायद वो झड़ गई थी। मैं रुक गया। उनकी साँसें जोर जोर से चल रही थी। कुछ देर ऐसे ही पड़ी रहने के बाद वो बोली,”चंदू क्या मैं ऊपर आ जाऊं ?”

मुझे क्या ऐतराज़ हो सकता था। अब हमने एक पलटी मारी और आंटी ठीक मेरे ऊपर थी। अब सारी कमान जैसे उसी के हाथों में थी। उसका अपनी चूत को अन्दर से सिकोड़ना और मेरे लंड को अन्दर चूसना तो मुझे मस्त ही किये जा रहा था। यह तो उसने पहले ही मेरा पानी एक बार निकाल दिया था नहीं तो इतनी गर्मी और उत्तेजना के मारे मैं कब का झड़ जाता।

उसने अपने नितम्ब घुमाते हुए धक्के लगाने चालू कर दिए। वो थोड़ी झुक कर अपनी कोहनियों के बल बैठी धक्के लगने लगी। मैंने हाथ बढ़ा कर उसके उरोजों को पकड़ लिया और चूसने लगा। एक हाथ से उसके नितम्ब सहला रहा था और कभी कभी उसकी पीठ या कमर भी सहला रहा था। मैं तो मदहोश ही हुआ जा रहा था। जैसे ही उसके नितम्ब नीचे आते तो गच्च की आवाज आती जिसे सुनकर हम दोनों ही मस्त हो जाते। उसने बताया,”जब तुम्हें लगे की अब निकलने वाला है तो इस घड़ी की टिकटिक पर ध्यान लगा लेना, फिर तुम 5-6 मिनट तक नहीं झड़ोगे। जब झड़ने लगो तो मुझे बता देना !”

हम दोनों अब पूरी तरह से मदहोश होकर मजे की दुनिया में उतर चुके थे। अब मैं भी कितनी देर रुकता। मैंने जोर जोर से धक्के लगाने चालू कर दिए। अभी मैंने 4-5 धक्के ही लगाये थे कि मुझे लगा उसकी चूत ने संकोचन करना चालू कर दिया है। ऐसा महसूस होते ही मेरी पिचकारी और आंटी की सीत्कार दोनों एक साथ निकल गई। उसकी चूत मेरे गाढ़े गर्म वीर्य से लबालब भर गई। आंटी ने मुझे अपनी बाहों में इतनी जोर से जकड़ा कि उसके हाथों की 4-5 चूड़ियाँ ही चटक गई। पता नहीं कब तक हम इसी तरह एक दूसरे की बाहों में लिपटे पड़े रहे। आंटी ने बताया था कि स्खलन के बाद लिंग को तुरंत योनि से बाहर नहीं निकलना चाहिए कुछ देर ऐसे ही अन्दर पड़े रहने देना चाहिए इससे पौरुष शक्ति फिर से मिल जाती है।

रात भी बहुत हो चुकी थी और इतनी जबरदस्त चुदाई के बाद हम दोनों में से किसी को होश नहीं था, मैं आंटी के ऊपर से लुढ़क कर उसके बगल में लेट गया। वह भी अपनी आँखें बंद किये अपनी सांसो को सँभालने में लग गई। एक दूसरे की बाहों में लिपटे हमें कब नींद ने अपने आगोश में भर लिया पता ही नहीं चला।

सुबह कोई 8 बजे हम दोनों की नींद खुली। मैं एक बार उस परम सुख को फिर से भोग लेना चाहता था। जब आंटी बाथरूम से बाहर आई तो मैंने अपनी बाहें उसकी ओर फैलाई तो बोली,” नहीं चंदू ….. अब कुछ नहीं… गड़बड़ हो गई है ?”

“क … क.. क्या हुआ ?”

“लाल बाई आ गई है !”

“ये लाल बाई कौन है ?” मैंने हैरानी से पूछा।

“अरे बुद्धू महीने में एक बार हर जवान स्त्री रजस्वला होती है। और 3-4 दिन योनि में रक्त स्त्राव होता रहता है ताकि फिर से गर्भ धारण के लिए अंडा बना सके ?”

“ओह …” मेरा तो सारा उत्साह ही ठंडा पड़ गया।

“हालांकि इन दिनों में भी हम सम्भोग कर सकते हैं पर मुझे इन तीन दिनों में यह सब करना अच्छा नहीं लगता। कुछ विशेष परिस्थितियों में (जैसे नई शादी हुई हो या पति पत्नी कई दिनों बाद मिले हों) माहवारी के दौरान भी सम्भोग किया जा सकता है पर साफ़ सफाई का विशेष ध्यान रखना चाहिए नहीं तो योनि में संक्रमण हो सकता है। कुछ दंपत्ति तो माहवारी के दौरान इसलिए सेक्स करना पसंद करते हैं कि वो समझते हैं कि इस दौरान सेक्स करने से गर्भ नहीं ठहरेगा। जबकि कई बार माहवारी के दिनों में सेक्स करने से भी गर्भ ठहर सकता है। मेरे साथ ऐसी कोई समस्या नहीं है, तुम घबराओ मत अब तो बस एक सबक ही और बचा है वो 3 दिनों के बाद तुम्हें सिखाउंगी !” आंटी ने समझाया।

मैं अपने कपड़े पहनते हुए यह सोच रहा था कि चुदाई के बाद अब और कौन सा सबक बाकी रह गया है।
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07-04-2017, 12:45 PM,
#94
RE: प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ
आंटी गुलबदन और सेक्स (प्रेम) के सात सबक-5

7. गुदा-मैथुन (गांडबाज़ी)

मैंने अपने साथ पढ़ने वाले लड़कों से सुना भी था और मस्तराम की कहानियों में भी गांडबाजी के बारे में पढ़ा था। पर मुझे विश्वास ही नहीं होता था कि ऐसा सचमुच में होता होगा। आंटी ने जब सातवें सबक के बारे में बताया कि यह गुदा-मैथुन के बारे में होगा तो मुझे बड़ी हैरानी हुई लेकिन बाद में तो मैं इस ख़याल से रोमांचित ही हो उठा कि मुझे वो इसका मज़ा भी देंगी।

आंटी ने बताया कि ज्यादातर औरतें इस क्रिया बड़ी अनैतिक, कष्टकारक और गन्दा समझती हैं। लेकिन अगर सही तरीके से गुदा-मैथुन किया जाए तो यह बहुत ही आनंददायक होता है। एक सर्वे के अनुसार पाश्चात्य देशों में 70 % और हमारे यहाँ 15 % लोगों ने कभी ना कभी गुदा-मैथुन का आनंद जरुर लिया है। पुरुष और महिला के बीच गुदा-मैथुन द्वारा आनंद की प्राप्ति सामान्य घटना है। इंग्लैंड जैसे कई देशों में तो इसे कानूनी मान्यता भी है। पर अभी हमारे देश में इसके प्रति नजरिया उतना खुला नहीं है। लोग अभी भी इसे गन्दा समझते हैं। पर आजकल के युवा कामुक फिल्मों में यह सब देख कर इसके प्रति आकर्षित हो रहे हैं।

योनि के आस पास बहुत सी संवेदनशील नसें होती है और कुछ गुदा के अन्दर भी होती हैं। इस लिए गुदा-मैथुन में पुरुषों के साथ साथ स्त्रियों को भी मज़ा आता है। और यही कारण है कि दुनिया में इतने लोग समलिंगी होते हैं और ख़ुशी ख़ुशी गांड मरवाते हैं। महिलाओं को भी इसमें बड़ा मज़ा आता है। कुछ शौक के लिए मरवाती हैं और कुछ अनुभव के लिए। आजकल की आधुनिक औरतें कुछ नया करना चाहती हैं इसलिए उन में लंड चूसने और गांड मरवाने की ललक कुछ ज्यादा होती है। अगर वो बहुत आधुनिक और चुलबुली है तो निश्चित ही उसे इसमें बड़ा मज़ा आएगा। वैसे समय के साथ योनि में ढीलापन आ जाता है और लंड के घर्षण से ज्यादा मज़ा नहीं आता। पर गांड महारानी को तो कितना भी बजा लिया जाए वह काफी समय तक कसी हुई रहती है और उसकी लज्जत बरकरार रहती है क्योंकि उसमें लचीलापन नहीं होता। इसलिए गुदा-मैथुन में अधिक आनंद की अनुभूति होती है।

एक और कारण है। एक ही तरह का सेक्स करते हुए पति पत्नी दोनों ही उकता जाते हैं और कोई नई क्रिया करना चाहते हैं। गुदा-मैथुन से ज्यादा रोमांचित करने वाली कोई दूसरी क्रिया हो ही नहीं सकती। पर इसे नियमित तौर पर ना करके किसी विशेष अवसर के लिए रखना चाहिए जैसे कि होली, दिवाली, नववर्ष, जन्मदिन, विवाह की सालगिरह या वो दिन जब आप दोनों सबसे पहले मिले थे। अपने पति को वश में रखने का सबसे अच्छा साधन यही है। कई बार पत्नियां अपने पति को गुदा-मैथुन के लिए मना कर देती हैं तो वो उसे दूसरी जगह तलाशने लग जाता है। अपने पति को भटकने से बचाने के लिए और उसका पूर्ण प्रेम पाने के लिए कभी कभी गांड मरवा लेने में कोई बुराई नहीं होती।

प्रेम आश्रम वाले गुरुजी कहते हैं कि औरत को भगवान् ने तीन छेद दिए हैं और तीनों का ही आनंद लेना चाहिए। इस धरती पर केवल मानव ही ऐसा प्राणी है जो गुदा-मैथुन कर सकता है। जीवन में अधिक नहीं तो एक दो बार तो इसका अनुभव करना ही चाहिए। सुखी दाम्पत्य का आधार ही सेक्स होता है पर अपने प्रेम को स्थिर रखने के लिए गुदा-मैथुन भी कभी कभार कर लेना चाहिए। इस से पुरुष को लगता है कि उसने अपनी प्रियतमा को पूर्ण रूप से पा लिया है और स्त्री को लगता है कि उसने अपने प्रियतम को सम्पूर्ण समर्पण कर दिया है।

खैर मैं 4 दिनों के सूखे के बाद आज रात को ठीक 9.00 बजे आंटी के घर पहुँच गया। मुझे उस दिन वाली बात याद थी इसलिए आज मैंने सुबह एक मार मुट्ठ मार ली थी। मैंने पैंट और शर्ट डाल रखी थी पर अन्दर चड्डी जानकर ही नहीं पहनी थी। आंटी ने पतला पजामा और टॉप पहन रखा था। उसके नितम्बों पर कसा पजामा उसकी चूत और नितम्बों का भूगोल साफ़ नज़र आ रहा था लगता था उसने भी ब्रा और पैंटी नहीं पहनी है।

मैंने दौड़ कर उसे बाहों में भर लिया और उसे चूमने लगा तो आंटी बोली,”ओह … चंदू फिर जल्दबाजी ?”

“मेरी चांदनी मैंने ये 4 दिन कैसे बिताये हैं मैं ही जानता हूँ !” मैंने उसके नितम्बों पर अपने हाथ सहलाते हुए जोर से दबा दिए।

“ओह्हो ?” उसने मेरी नाक पकड़ते हुए कहा।

एक दूसरे की बाहों में जकड़े हम दोनों बेडरूम में आ गए। पलंग पर आज सफ़ेद चादर बिछी थी। साइड टेबल पर वैसलीन, बोरोप्लस क्रीम, नारियल और सरसों के तेल की 2-3 शीशियाँ, एक कोहेनूर निरोध (कंडोम) का पैकेट, धुले हुए 3-4 रुमाल और बादाम-केशर मिला गर्म दूध का थर्मोस रखा था। मुझे इस बात की बड़ी हैरानी थी कि एक रबर की लंड जैसी चीज भी टेबल पर पड़ी है। पता नहीं आंटी ने इसे क्यों रखा था। इससे पहले कि मैं कुछ पूछता, आंटी बोली,”हाँ तो आज का सबक शुरू करते हैं। आज का सबक है गधापचीसी। इसे बैक-डोर एंट्री भी कहते हैं और जन्नत का दूसरा दरवाज़ा भी। तुम्हें हैरानी हो रही होगी ना ?”

मैं जानता तो था पर मैंने ना तो हाँ कहा और ना ही ना कहा। बस उसे देखता ही रह गया। मैं तो बस किसी तरह यह चाह रहा था कि आंटी को उल्टा कर के बस अपने लंड को उनकी कसी हुई गुलाबी गांड में डाल दूं।

“देखो चंदू सामान्यतया लडकियां पहली बार गांड मरवाने से बहुत डरती और बिदकती हैं। पता नहीं क्यों ? पर यह तो बड़ा ही फायदेमंद होता है। इसमें ना तो कोई गर्भ धारण का खतरा होता है और ना ही शादी से पहले अपने कौमार्य को खोने का डर। शादीशुदा औरतों के लिए परिवार नियोजन का अति उत्तम तरीका है। कुंवारी लड़कियों के लिए यह गर्भ से बचने का एक विश्वसनीय और आनंद दायक तरीका है। माहवारी के दौरान अपने प्रेमी को संतुष्ट करने का इस से बेहतर तरीका तो कुछ हो ही नहीं सकता। सोचो अपने प्रेमी को कितना अच्छा लगता है जब वो पहली बार अपनी प्रेमिका की अनचुदी और कोरी गांड में अपना लंड डालता है।”

मेरा प्यारे लाल तो यह सुनते ही 120 डिग्री पर खड़ा हो गया था और पैंट में उधम मचाने लगा था। मैं पलंग की टेक लगा कर बैठा था और आंटी मेरी गोद में लेटी सी थी। मैं एक हाथ से उसके उरोजों को सहला रहा था और दूसरे हाथ से उसकी चूत के ऊपर हाथ फिरा रहा था ताकी वो जल्दी से गर्म हो जाए और मैं जन्नत के उस दूसरे दरवाज़े का मज़ा लूट सकूं।

आंटी ने कहना जारी रखा,”कहने में बहुत आसान लगता है पर वास्तव में गांड मारना और मरवाना इतना आसान नहीं होता। कई बार ब्लू फिल्मों में दिखाया जाता है कि 8-9 इंच लम्बा और 2-3 इंच मोटा लंड एक ही झटके में लड़की की गांड में प्रवेश कर जाता है और दोनों को ही बहुत मज़ा लेते दिखाई या जाता है। पर वास्तव में इनके पीछे कैमरे की तकनीक और फिल्मांकन होता है। असल जिन्दगी में गांड मारना इतना आसान नहीं होता इसके लिए पूरी तैयारी करनी पड़ती है और बहुत सी बातों का ध्यान रखना पड़ता है।”

मुझे बड़ी हैरानी हो रही थी भला गांड मारने में क्या ध्यान रखना है। घोड़ी बनाओ और पीछे से ठोक दो ? पर मैंने पूछा “किन बातों का ?”

“सबसे जरुरी बात होती है लड़की को इस के लिए राज़ी करना ?”

“ओह …”

“हाँ सबसे मुश्किल काम यही होता है। इस लिए सबसे पहले उसे इसके लिए मानसिक रूप से तैयार करना जरुरी होता है। भगवान् या कुदरत ने गांड को सम्भोग के लिए नहीं बनाया है। इसकी बनावट चूत से अलग होती है। इसमें आदमी का लंड उसकी मर्ज़ी के बिना प्रवेश नहीं कर सकता। इसके अन्दर बनी मांसपेशियाँ और छल्ला वो अपनी मर्ज़ी से ढीला और कस सकती हैं। ज्यादातर लडकियां और औरतें इसे गन्दा और कष्टकारक समझती हैं। इसलिए उन्हें विश्वास दिलाना जरुरी होता है कि प्रेम में कुछ भी गन्दा और बुरा नहीं होता। उसका मूड बनाने के लिए कोई ब्लू फिल्म भी देखी जा सकती है। उसे गुदा-मैथुन को लेकर अपनी कल्पनाओं के बारे में भी बताओ। उसे बताओ कि उसके सारे अंग बहुत खूबसूरत हैं और नितम्ब तो बस क़यामत ही हैं। उसकी मटकती गांड के तो तुम दीवाना ही हो। अगर एक बार वो उसका मज़ा ले लेने देगी तो तुम जिंदगी भर उसके गुलाम बन जाओगे। उसे भी गांड मरवाने में बड़ा मज़ा आएगा और यह दर्द रहित, रोमांचकारी, उत्तेजक और कल्पना से परिपूर्ण तीव्रता की अनुभूति देगा। और अगर जरा भी कष्ट हुआ और अच्छा नहीं लगा तो तुम उससे आगे कुछ नहीं करोगे।

एक बात ख़ासतौर पर याद रखनी चाहिए कि इसके लिए कभी भी जोर जबरदस्ती नहीं करनी चाइये। कम से कम अपनी नव विवाहिता पत्नी से तो कभी नहीं। कम से कम एक साल बाद ही इसके लिए कहना चाहिए।”

“हूँ ….”

“उसके मानसिक रूप से तैयार होने के बाद भी कोई जल्दबाज़ी नहीं। उसे शारीरिक रूप से भी तो तैयार करना होता है ना। अच्छा तो यह रहता है कि उसे इतना प्यार करो कि वो खुद ही तुम्हारा लंड पकड़ कर अपनी गांड में डालने को आतुर हो जाए। गुदा-मैथुन से पूर्व एक बार योनि सम्भोग कर लिया जाए अच्छा रहता है। इस से वो पूर्ण रूप से उत्तेजित हो जाती है। ज्यादातर महिलायें तब उत्तेजना महसूस करती हैं जब पुरुष का लिंग उनकी योनि में घर्षण कर रहा होता है। इस दौरान अगर उसकी गांड के छेद को प्यार से सहलाया जाए तो उसकी गांड की नसें भी ढीली होने लगेंगी और छल्ला भी खुलने बंद होने लगेगा। साथ साथ उसके दूसरे काम अंगों को भी सहलाओ, चूमो और चाटो !”

“और जब लड़की इसके लिए तैयार हो जाए तो सबसे पहले अपने सारे अंगों की ठीक से सफाई कर लेनी चाहिए। पुरुष को अपना लंड साबुन और डिटोल से धो लेना चाहए और थोड़ी सी सुगन्धित क्रीम लगा लेनी चाहिए। मुंह और दांतों की सफाई भी जरुरी है। नाखून और जनन अंगों के बाल कटे हों। लड़कियों को भी अपनी योनि, गुदा नितम्ब, उरोजों और अपने मुंह को साफ़ कर लेना चाहिए। गुदा की सफाई विशेष रूप से करनी चाहिए क्यों कि इसके अन्दर बहुत से बेक्टीरिया होते हैं जो कई बीमारियाँ फैला सकते हैं। दैनिक क्रिया से निपट कर एक अंगुली में सरसों का तेल लगा कर अन्दर डाल कर साफ़ कर लेनी चाहिए। गुदा-मैथुन रात को ही करना चाहिए। और जिस रात गुदा-मैथुन करना हो दिन में 3-4 बार गुदा के अन्दर कोई एंटीसेफ्टिक क्रीम लगा लेनी चाहिए। कोई सुगन्धित तेल या क्रीम अपने गुप्तांगों और शरीर पर लगा लेनी चाहिए। पास में सुगन्धित तेल, क्रीम, छोटे तौलिये और कृत्रिम लिंग (रबर का) रख लेना चाहिए।”

“ओह …” मेरे मुंह से तो बस इतना ही निकला।

“चलो अब शुरू करें ?”

“ओह… हाँ…”

मैंने नीचे होकर उसके होंठ चूम लिए। उसने भी मुझे बाहों में कस कर पकड़ लिया। और बिस्तर पर लुढ़क गए। आंटी चित्त लेट गई। मेरा एक पैर उसकी जाँघों के बीच था लगभग आधा शरीर उसके ऊपर था। उसकी बाहों के घेरे ने मुझे जकड़ रखा था। मैंने उसके गालों पर होंठों पर गले और माथे पर चुम्बनों की झड़ी लगा दी। साथ साथ कभी उसके उरोज मसलता कभी अपना हाथ पजामे के ऊपर से ही उसकी मुनिया को सहला और दबा देता। उसकी मुनिया तो पहले से ही गीली हो रही थी।

अब हमने अपने कपड़े उतार दिए और फिर एक दूसरे को बाहों में भर लिया। मैं उसके ऊपर लेटा था। पहले मैंने उसके उरोजों को चूसा और फिर उसके पेट नाभि, पेडू को चूमते चाटते हुए नीचे तक आ गया। एक मीठी और मादक सुगंध मेरे नथुनों में भर गई। मैंने गप्प से उसकी मुनिया को मुंह में भर लिया। आंटी ने अपने पैर चौड़े कर दिया। मोटी मोटी फांकें तो आज फूल कर गुलाबी सी हो रही थी। मदनमणि तो किसमिस के फूले दाने जैसी हो रही थी। मैं अपनी जीभ से उसे चुभलाने लगा। उसकी तो सीत्कार ही निकल गई। कभी उसकी तितली जैसी पतली पतली अंदरुनी फांकें चूसता कभी उस दाने को दांतों से दबाता। साथ साथ उसके उरोजों को भी दबा और सहला देता।

आंटी ने अपने घुटने मोड़ कर ऊपर उठा लिए। मैंने एक तकिया उसके नितम्बों के नीचे लगा दिया। आंटी ने अपनी जांघें थोड़ी सी चौड़ी कर दी। अब तो उसकी चूत और गांड दोनों के छेद मेरी आँखों के सामने थे। गांड का बादामी रंग का छोटा सा छेद तो कभी खुलता कभी बंद होता ऐसे लग रहा था जैसे मुंबई की मरीन ड्राइव पर कोई नियोन साइन रात की रोशनी में चमक रहा हो। मैंने एक चुम्बन उस पर ले लिया और जैसे ही उस पर अपनी जीभ फिराई तो आंटी की तो किलकारी ही निकल गई। उसकी चूत तो पहले से ही गीली हुई थी। फिर मैंने स्टूल पर पड़ी वैसलीन की डब्बी उठाई और अपनी अंगुली पर क्रीम लगाई और अंगुली के पोर पर थोड़ी सी क्रीम लगा कर उसके खुलते बंद होते गांड के छेद पर लगा दी। दो तीन बार हल्का सा दबाव बनाया तो मुझे लगा आंटी ने बाहर की ओर जोर लगाया है। उसकी गांड का छेद तो ऐसे खुलने लगा जैसे कोई कमसिन कच्ची कलि खिल रही हो। मेरा एक पोर उसकी गांड के छेद में चला गया। आह… कितना कसाव था। इतना कसाव महसूस कर के मैं तो रोमांच से भर उठा। बाद में मुझे लगा कि जब अंगुली में ही इतना कसाव महसूस हो रहा है तो फिर भला मेरा इतना मोटा लंड इस छोटे से छेद में कैसे जा पायेगा ?

मैंने आंटी से पूछा “चांदनी, एक बात पूछूं ?”

“आह … हूँ । ?”

“क्या तुमने पहले भी कभी गांड मरवाई है ?”

“तुम क्यों पूछ रहे हो ?”

“वैसे ही ?”

“मैं जानती हूँ तुम शायद यह सोच रहे होगे कि इतना मोटा लंड इस छोटे से छेद में कैसे जाएगा ?”

“हूँ …?”

“तुम गांड रानी की महिमा नहीं जानते। हालांकि इस में चूत की तरह कोई चिकनाई नहीं होती पर अगर इसे ढीला छोड़ दिया जाए और अन्दर ठीक से क्रीम लगा कर तर कर लिया जाए तो इसे मोटा लंड अन्दर लेने में भी कोई दिक्कत नहीं होगी। पर तुम जल्दबाज़ी करोगे तो सब गुड़ गोबर हो जाएगा !”

“क्या मतलब?”

मेरे पति ने एक दो बार मेरी गांड मारने की कोशिश की थी पर वो अनाड़ी था। ना तो मुझे तैयार किया और ना अपने आप को। जैसे ही उसने अपना लंड मेरे नितम्बों के बीच डाला अति उत्तेजना में उसकी पिचकारी फूट गई और वो कुछ नहीं कर पाया ? पर तुम चिंता मत करो मैं जैसे समझाऊँ वैसे करते जाओ। सब से पहले इसे क्रीम लगा कर पहले रवां करो “

“ओके …”

अब मैंने बोरोप्लस की ट्यूब का ढक्कन खोल कर उसकी टिप को गांड के छेद पर लगा दिया। ट्यूब का मुंह थोड़ा सा गांड के छेद में चला गया। अब मैंने उसे जोर से पिचका दिया। लगभग ट्यूब की आधी क्रीम उसकी गांड के अन्दर चली गई। आंटी थोड़ा सा कसमसाई। लगता था उसे गुदगुदी और थोड़ी सी ठंडी महसूस हुई होगी। मैंने अपनी अंगुली धीरे धीरे अन्दर खिसका दी। अब तो मेरी अंगुली पूरी की पूरी अन्दर बाहर होने लगी। आह… मेरी अंगुली के साथ उसका छल्ला भी अन्दर बाहर होने लगा। अब मुझे लगने लगा था की छेद कुछ नर्म पड़ गया है और छल्ला भी ढीला हो गया है। मैंने फिर से उसकी चूत को चूसना चालू कर दिया। आंटी के कहे अनुसार मैंने यह ध्यान जरूर रखा था कि गांड वाली अंगुली गलती से उसकी चूत के छेद में ना डालूं।

आंटी की मीठी सीत्कार निकलने लगी थी। आंटी ने अब कहा “उस प्यारे लाल को भी उठाओ ना ?”

“हाँ वो तो कब का तैयार है जी !” मैंने अपने लंड को हाथ में लेकर हिला दिया।

“अरे बुद्धू मैं टेबल पर पड़े प्यारे लाल की बात कर रही हूँ !”

“ओह …”

अब मुझे इस प्यारे लाल की उपयोगिता समझ आई थी। मैंने उसे जल्दी से उठाया और उस पर वैसलीन और क्रीम लगा कर धीरे से उसके छेद पर लगाया। धीरे धीरे उसे अन्दर सरकाया। आंटी ने बताया था कि धक्का नहीं लगाना बस थोड़ा सा दबाव बनाना है। थोड़ी देर बाद वो अपने आप अन्दर सरकना शुरू हो जाएगा।

धीरे धीरे उसकी गांड का छेद चौड़ा होने लगा और प्यारे लाल जी अन्दर जाने लगे। गांड का छेद तो खुलता ही चला गया और प्यारे लाल 3 इंच तक अन्दर चला गया। आंटी ने बताया था कि अगर एक बार सुपाड़ा अन्दर चला गया तो बस फिर समझो किला फतह हो गया है। मैं 2-3 मिनट रुक गया। आंटी आँखें बंद किये बिना कोई हरकत किये चुप लेटी रही। अब मैंने धीरे से प्यारे लाल को पहले तो थोड़ा सा बाहर निकला और फिर अन्दर कर दिया। अब तो वह आराम से अन्दर बाहर होने लगा था। मैंने उसे थोड़ा सा और अन्दर डाला। इस बार वो 5-6 इंच अन्दर चला गया। मेरा लंड भी तो लगभग इतना ही बड़ा था। अब तो प्यारे लाल जी महाराज आराम से अन्दर बाहर होने लगे थे।

3-4 मिनट ऐसा करने के बाद मुझे लगा कि अब तो उसका छेद बिलकुल रवां हो गया है। मेरा लंड तो प्री-कम छोड़ छोड़ कर पागल ही हो रहा था। वो तो झटके पर झटके मार रहा था। मैंने एक बार फिर से उसकी मुनिया को चूम लिया। थोड़ी देर उसकी मुनिया और मदनमणि हो चूसा और दबाया। उसकी मुनिया तो कामरस से लबालब भरी थी जैसे। आंटी ने अपने पैर अब नीचे कर के फैला दिए और मुझे ऊपर खींच लिया। मैंने उसके होंठों को चूम लिया।

“ओह … मेरे चंदू … आज तो तुमने मुझे मस्त ही कर दिया !” आंटी उठ खड़ी हुई। “क्या अब तुम इस आनंद को भोगने के लिए तैयार हो ?”

“मैं तो कब से इंतज़ार कर रहा हूँ ?”

“ओह्हो … क्या बात है ? हाईई।.. मैं मर जावां बिस्कुट खा के ?” आंटी कभी कभी पंजाबी भी बोल लेती थी।

“देखो चंदू साधारण सम्भोग तो किसी भी आसन में किया जा सकता है पर गुदा-मैथुन 3-4 आसनों में ही किया जाता है। मैं तुम्हें समझाती हूँ। वैसे तुम्हें कौन सा आसन पसंद है ?”

“वो… वो… मुझे तो डॉगी वाला या घोड़ी वाला ही पता है या फिर पेट के बल लेटा कर …?”

“अरे नहीं… चलो मैं समझाती हूँ !” बताना शुरू किया।

पहली बार में कभी भी घोड़ी या डॉगी वाली मुद्रा में गुदा-मैथुन नहीं करना चाहिए। पहली बार सही आसन का चुनाव बहुत मायने रखता है। थोड़ी सी असावधानी या गलती से सारा मज़ा किरकिरा हो सकता है और दोनों को ही मज़े के स्थान पर कष्ट होता है।

देखो सब से उत्तम तो एक आसन तो है जिस में लड़की पेट के बल लेट जाती है और पेट के नीचे दो तकिये लगा कर अपने नितम्ब ऊपर उठा देती है। पुरुष उसकी जाँघों के बीच एक तकिये पर अपने नितम्ब रख कर बैठ जाता है और अपना लिंग उसकी गुदा में डालता है। इस में लड़की अपने दोनों हाथों से अपने नितम्ब चौड़े कर लेती है जिस से उसके पुरुष साथी को सहायता मिल जाती है और वो एक हाथ से उसकी कमर या नितम्ब पकड़ कर दूसरे हाथ से अपना लिंग उसकी गुदा में आराम से डाल सकता है। लड़की पर उसका भार भी नहीं पड़ता।

एक और आसन है जिसमें लड़की पेट के बल अधलेटी सी रहती है। एक घुटना और जांघ मोड़ कर ऊपर कर लेती है। पुरुष उसकी एक जांघ पर बैठ कर अपना लिंग उसकी गुदा में डाल सकता है। इस आसन का एक लाभ यह है कि इसमें दोनों ही जल्दी नहीं थकते और धक्के लगाने में भी आसानी होती है। जब लिंग गुदा में अच्छी तरह समायोजित हो जाए तो अपनी मर्ज़ी से लिंग को अन्दर बाहर किया जा सकता है। गांड के अन्दर प्रवेश करते लंड को देखना और उस छल्ले का लाल और गुलाबी रंग देख कर तो आदमी मस्त ही हो जाता है। वह उसके स्तन भी दबा सकता है और नितम्बों पर हाथ भी फिरा सकता है। सबसे बड़ी बात है उसकी चूत में भी साथ साथ अंगुली की जा सकती है। इसका सबसे बड़ा फायदा तो यह है कि धक्का मारते या दबाव बनाते समय लड़की आगे नहीं सरक सकती इसलिए लंड डालने में आसानी होती है।

एक और आसन है जिसे आमतौर पर सभी लड़कियां पसंद करती है। वह है पुरुष साथी नीचे पीठ के बल लेट जाता है और लड़की अपने दोनों पैर उसके कूल्हों के दोनों ओर करके उकडू बैठ जाती है। उसका लिंग पकड़ कर अपनी गुदा के छल्ले पर लगा कर धीरे धीरे नीचे होती है। लड़की अपना मुंह पैरों की ओर भी कर सकती है। इस आसन का सबसे बड़ा फायदा यह है कि सारी कमांड लड़की के हाथ में होती है। वो जब चाहे जितना चाहे अन्दर ले सकती है। कुछ महिलाओं को यह आसन बहुत पसंद आता है। यह आसन पुरुषों को भी अच्छा लगता है क्योंकि इस दौरान वे अपने लिंग को गुदा के अन्दर जाते देख सकते हैं। पर कुछ महिलायें शर्म के मारे इसे नहीं करना चाहती।

इसके अलावा और भी आसन हैं जैसे गोद में बैठ कर या सोफे या पलंग पर पैर नीचे लटका कर लड़की को अपनी गोद में बैठा कर गुदा-मैथुन किया जा सकता है। पसंद और सहूलियत के हिसाब से किसी भी आसन का प्रयोग किया जा सकता है।

“ओह… तो हम कौन सा आसन करेंगे ?”

“मैं तुम्हें सभी आसनों की ट्रेनिंग दूँगी पर फिलहाल तो करवट वाला ही ठीक रहेगा ”

“ठीक है।” मैंने कहा।

मुझे अब ध्यान आया मेरा प्यारे लाल तो सुस्त पड़ रहा है। ओह … बड़ी मुश्किल थी। आंटी के भाषण के चक्कर में तो सारी गड़बड़ ही हो गई। आंटी धीमे धीमे मुस्कुरा रही थी। उसने कहा,” मैं जानती हूँ सभी के साथ ऐसा ही होता है। पर तुम चिंता क्यों करते हो ? मेरे पास इसका ईलाज है।”

अब वो थोड़ी सी उठी और मेरे अलसाए से लंड को हाथ में पकड़ लिया वो बोलीं,”इसे ठीक से साफ़ किया है ना ?”

“जी हाँ”

अब उसने मेरा लंड गप्प से अपने मुंह में भर लिया और चूसने लगी। मुंह की गर्मी और लज्जत से वो फिर से अकड़ने लगा। कोई 2-3 मिनट में ही वो तो फिर से लोहे की रोड ही बन गया था।

उसने पास रखे तौलिए से उसे पोंछा और फिर पास रखे निरोध की ओर इशारा किया। मुझे हैरानी हो रही थी। आंटी ने बताया कि गुदा-मैथुन करते समय हमेशा निरोध (कंडोम) का प्रयोग करना चाहिए। इससे संक्रमण नहीं होता और एड्स जैसी बीमारियों से भी बचा जा सकता है।

अब मैंने अपने लंड पर निरोध चढ़ा लिया और उस पर नारियल का तेल लगा लिया। आंटी करवट के बल हो गई और अपना बायाँ घुटना मोड़ कर नीचे एक तकिया रख लिया। अब उसके मोटे मोटे गुदाज नितम्बों के बीच उसकी गांड और चूत दोनों मेरी आँखें के सामने थी। मैंने अपना सिर नीचे झुका कर एक गहरा चुम्बन पहले तो चूत पर लिया और फिर उसकी गांड के छेद पर। अब मैंने फिर से बोरोप्लस के क्रीम की ट्यूब में बाकी बची क्रीम उसकी गांड में डाल दी। आंटी ने अपने बाएं हाथ से अपने एक नितम्ब को पकड़ कर ऊपर की ओर कर लिया। अब तो गांड का छेद पूरा का पूरा दिखने लगा। उसके छल्ले का रंग सुर्ख लाल सा हो गया था। अब एक बार प्यारे लाल की मदद की जरुरत थी। मैंने उस पर भी नारियल का तेल लगाया और फिर से उसकी गांड में डाल कर 5-6 बार अन्दर बाहर किया। इस बार तो आंटी को जरा भी दर्द नहीं हुआ। वो तो बस अपने उरोजों को मसल रही थी। मैं उसकी दाईं जाँघ पर बैठ गया और अपने लंड के आगे थोड़ी सी क्रीम लगा कर उसे आंटी की गांड के छेद पर टिका दिया।

मेरा दिल उत्तेजना और रोमांच के मारे धड़क रहा था। लंड महाराज तो झटके ही खाने लगे थे। उसे तो जैसे सब्र ही नहीं हो रहा था। मैंने अपने लंड को उसके छेद पर 4-5 बार घिसा और रगड़ा, फिर उसकी कमर पकड़ी और अपने लंड पर दबाव बनाया। आंटी थोड़ा सा आगे होने की कोशिश करने लगी पर मैं उसकी जाँघ पर बैठा था इसलिए वो आगे नहीं सरक सकती थी। मैंने दबाव बनाया तो मेरा लंड थोड़ा सा धनुष की तरह मुड़ने लगा। मुझे लगा यह अन्दर नहीं जा पायेगा जरूर फिसल जाएगा। इतने में मुझे लगा आंटी ने बाहर की ओर जोर लगाया है। फिर तो जैसे कमाल ही हो गया। पूरा सुपाड़ा अन्दर हो गया। मैं रुक गया। आंटी का शरीर थोड़ा सा अकड़ गया। शायद उसे दर्द महसूस हो रहा था। मैंने उसके नितम्ब सहलाने शुरू कर दिए। प्यार से उन्हें थपथपाने लगा। गांड का छल्ला तो इतना बड़ा हो गया था जैसे किसी छोटी बच्ची की कलाई में पहनी हुई कोई लाल रंग की चूड़ी हो। उसकी चूत भी काम रस से गीली थी। मैंने अपने बाएं हाथ की अँगुलियों से उसकी फांकों को सहलाना शुरू कर दिया।

2-3 मिनट ऐसे ही रहने के बाद मैंने थोड़ा सा दबाव और बनाया तो लंड धीरे धीरे आगे सरकाना शुरू हो गया। अब तो किला फ़तेह हो ही चुका था और अब तो बस आनंद ही आनंद था। मैंने अपना लंड थोड़ा सा बाहर निकाला और फिर अन्दर सरका दिया। आंटी तो बस कसमसाती सी रह गई। मेरे लिए तो यह किसी स्वर्ग के आनंद से कम नहीं था। एक नितांत कोरी और कसी हुई गांड में मेरा लंड पूरा का पूरा अन्दर घुसा हुआ था। मैंने एक थपकी उसके नितम्बों पर लगाईं तो आंटी की एक मीठी सीत्कार निकल गई।

“चंदू अब धीरे धीरे अन्दर बाहर करो !” आंटी ने आँखें बंद किये हुए ही कहा। अब तक लंड अच्छी तरह गांड के अन्दर समायोजित हो चुका था। बे रोक टोक अन्दर बाहर होने लगा था। छल्ले का कसाव तो ऐसा था जैसे किसी ने मेरा लंड पतली सी नली में फंसा दिया हो।

“चांदनी तुम्हें दर्द तो नहीं हो रहा ?”

“अरे बावले, तुम्हारे प्रेम के आगे ये दर्द भला क्या मायने रखता है। मेरी ओर से ये तो नज़राना ही तुम्हें। तुम बताओ तुम्हें कैसा लग रहा है ?”

“मैं तो इस समय स्वर्ग में ही हूँ जैसे। तुमने मुझे अनमोल भेंट दी है। बहुत मज़ा आ रहा है।” और मैंने जोर से एक धक्का लगा दिया।

“ऊईई … माआअ … थोड़ा धीरे …”

“चांदनी मैंने कहानियों में पढ़ा है कि कई औरतें गांड मरवाते समय कहती हैं कि और तेजी से करो … फाड़ दो मेरी गांड… आह… बड़ा मज़ा आ रहा है ?”

“सब बकवास है… आम और पर औरतें कभी भी कठोरता और अभद्रता पसंद नहीं करती। वो तो यही चाहती हैं कि उनका प्रेमी उन्हें कोमलता और सभ्य ढंग से स्पर्श करे और शारीरिक सम्बन्ध बनाए। यह तो उन मूर्ख लेखकों की निरी कल्पना मात्र होती है जिन्होंने ना तो कभी गांड मारी होती है और ना ही मरवाई होती है। असल में ऐसा कुछ नहीं होता। जब सुपाड़ा अन्दर जाता है तो ऐसे लगता है जैसे सैंकड़ों चींटियों ने एक साथ काट लिया हो। उसके बाद तो बस छल्ले का कसाव और थोड़ा सा मीठा दर्द ही अनुभव होता है। अपने प्रेमी की संतुष्टि के आगे कई बार प्रेमिका बस आँखें बंद किये अपने दर्द को कम करने के लिए मीठी सीत्कार करने लगती है। उसे इस बात का गर्व होता है कि वो अपने प्रेमी को स्वर्ग का आनंद दे रही है और उसे उपकृत कर रही है !”

आंटी की इस साफगोई पर मैं तो फ़िदा ही हो गया। मैं तो उसे चूम ही लेना चाहता था पर इस आसन में चूमा चाटी तो संभव नहीं थी। मैंने उसकी चूत की फांकों और दाने को जोर जोर से मसलना चालू कर दिया। आंटी की चूत और गांड दोनों संकोचन करने लगी थी। मुझे लगा कि उसने मेरा लंड अन्दर से भींच लिया है। आह… इस आनंद को शब्दों में तो बयान किया ही नहीं जा सकता।

लंड अन्दर डाले मुझे कोई 10-12 मिनट तो जरूर हो गए थे। आमतौर पर इतनी देर में स्खलन हो जाता है पर मैंने आज दिन में मुट्ठ मार ली थी इसलिए मैं अभी नहीं झड़ा था। लंड अब आराम से अन्दर बाहर होने लगा था।

आंटी भी आराम से थी। वो बोली,” मैं अपना पैर सीधा कर रही हूँ तुम मेरे ऊपर हो जाना पर ध्यान रखना कि तुम्हारा प्यारे लाल बाहर नहीं निकले। एक बार अगर यह बाहर निकल गया तो दुबारा अन्दर डालने में दिक्कत आएगी और हो सकता है दूसरे प्रयाश में अन्दर डालने से पहले ही झड़ जाओ ?”

“ओके।..”

अब आंटी ने अपना पैर नीचे कर लिया और अपने नितम्ब ऊपर उठा दिए। तकिया उसके पेट के नीचे आ गया था। मैं ठीक उसके ऊपर आ गया और मैंने अपने हाथ नीचे करके उसके उरोज पकड़ लिए। उसने अपनी मुंडी मोड़ कर मेरी ओर घुमा दी तो मैंने उसे कस कर चूम लिया। मैंने अपनी जांघें उसके चौड़े नितम्बों के दोनों ओर कस लीं। जैसे ही आंटी अपने नितम्बों को थोड़ा सा ऊपर उठाया तो मैं एक धक्का लगा दिया।

आंटी की मीठी सीत्कार सुनकर मुझे लग रहा था कि अब उसे मज़ा भले नहीं आ रहा हो पर दर्द तो बिलकुल नहीं हो रहा होगा। मुझे लगा जैसे मेरा लंड और भी जोर से आंटी की गांड ने कस लिया है। मैं तो चाहता था कि इसी तरह मैं अपना लंड सारी रात उसकी गांड में डाले बस उसके गुदाज बदन पर लेटा ही रहूँ। पर आखिर शरीर की भी कुछ सीमाएं होती हैं। मुझे लग रहा था कि मेरा लंड थोड़ा सा फूलने और पिचकने लगा है और किसी भी समय पिचकारी निकल सकती है। आंटी ने अपने नितम्ब ऊपर उठा दिए। मैंने एक हाथ से उसकी चूत को टटोला और अपने बाएं हाथ की अंगुली चूत में उतार दी। आंटी की तो रोमांच और उत्तेजना में चींख ही निकल गई। और उसके साथ ही मेरी भी पिचकारी निकलने लगी।

“आह।.. य़ाआआ……” हम दोनों के मुंह से एक साथ निकला। दो जिस्म एकाकार हो गए। इस आनंद के आगे दूसरा कोई भी सुख या मज़ा तो कल्पनातीत ही हो सकता है। पता नहीं कितनी देर हम इसी तरह लिपटे पड़े रहे।

मेरा प्यारे लाल पास होकर बाहर निकल आया था। हम दोनों ही उठ खड़े हुए और मैंने आंटी को गोद में उठा लिया और बाथरूम में सफाई कर के वापस आ गए। मैंने आंटी को बाहों में भर कर चूम लिया और उसका धन्यवाद किया। उसके चहरे की रंगत और ख़ुशी तो जैसे बता रही थी कि मुझे अपना सर्वस्व सोंप कर मुझे पूर्ण रूप से संतुष्ट कर कितना गर्वित महसूस कर रही है। मुझे पक्का प्रेम गुरु बनाने का संतोष उसकी आँखों में साफ़ झलक रहा था।

उस रात हमने एक बार फिर प्यार से चुदाई का आनंद लिया और सोते सोते एक बार गधापचीसी का फिर से मज़ा लिया। और यह सिलसिला तो फिर अगले 8-10 दिनों तक चला। रात को पढ़ाई करने के बाद हम दोनों साथ साथ सोते कभी मैं आंटी के ऊपर और कभी आंटी मेरे ऊपर ………

मेरी प्यारी पाठिकाओं ! आप जरूर सोच रही होंगी वाह।.. प्रेम चन्द्र माथुर प्रेम गुरु बन कर तुम्हारे तो फिर मज़े ही मज़े रहे होंगे ?

नहीं मेरी प्यारी पाठिकाओं ! जिस दिन मेरी परीक्षा ख़त्म हुई उसी दिन मुझे आंटी ने बताया कि वो वापस पटियाला जा रही है। उसने जानबूझ कर मुझे पहले नहीं बताया था ताकि मेरी पढ़ाई में किसी तरह का खलल (विघ्न) ना पड़े। मेरे तो जैसे पैरों के नीचे से जमीन ही निकल गई। मैंने तो सोच था कि अब छुट्टियों में आंटी से पूरे 84 आसन सीखूंगा पर मेरे सपनों का महल तो जैसे किसी ने पूरा होने से पहले तोड़ दिया था।

जिस दिन वो जाने वाली थी मैंने उन्हें बहुत रोका। मैं तो अपनी पढ़ाई ख़त्म होने के उपरान्त उससे शादी भी करने को तैयार था। पर आंटी ने मना कर दिया था पता नहीं क्यों। उन्होंने मुझे बाहों में भर कर पता नहीं कितनी देर चूमा था। और कांपती आवाज में कहा था,”प्रेम, मेरे जाने के बाद मेरी याद में रोना नहीं… अच्छे बच्चे रोते नहीं हैं। मैं तो बस बुझती शमा हूँ। तुम्हारे सामने तो पूरा जीवन पड़ा है। तुम अपनी पढ़ाई अच्छी तरह करना। जिस दिन तुम पढ़ लिख कर किसी काबिल बन जाओगे हो सकता है मैं देखने के लिए ना रहूँ पर मेरे मन को तो इस बात का सकून रहेगा ही कि मेरा एक शिष्य अपने जीवन के हर क्षेत्र में कामयाब है !”

मैंने छलकती आँखों से उन्हें विदा कर दिया। मैंने बाद में उन्हें ढूंढ़ने की बहुत कोशिश की पर उनसे फिर कभी मुलाकात नहीं हो सकी। आज उनकी उम्र जरूर 45-46 की हो गई होगी पर मैं तो आज भी अपना सब कुछ छोड़ कर उनकी बाहों में समा जाने को तैयार हूँ। आंटी तुम कहाँ हो अपने इस चंदू के पास आ जाओ ना। मैं दिल तो आज 14 वर्षों के बाद भी तुम्हारे नाम से ही धड़कता है और उन हसीं लम्हों के जादुई स्पर्श और रोमांच को याद करके पहरों आँखें बंद किये मैं गुनगुनाता रहता हूँ :

तुम मुझे भूल भी जाओ तो ये हक है तुमको

मेरी बात ओर है, मैंने तो मोहब्बत की है।


आपका प्रेम गुरु
Reply
07-04-2017, 12:45 PM,
#95
RE: प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ
काली टोपी लाल रुमाल-1

मेरे प्रिय पाठको और पाठिकाओ,

आप सभी ने मेरी पिछली सभी कहानियों को बहुत पसंद किया है उसके लिए मैं आप सभी का आभारी हूँ। मैंने सदैव अपनी कहानियों के माध्यम से अपने पाठकों को अच्छे मनोरंजन के साथ साथ उपयोगी जानकारी भी देने की कोशिश की है। मेरी बहुत सी पाठिकाएं मुझे अक्सर पूछती रहती हैं कि मैं इतनी दुखांत, ग़मगीन और भावुक कहानियां क्यों लिखता हूँ। विशेषरूप से सभी ने मिक्की (तीन चुम्बन) के बारे में अवश्य पूछा है कि क्या यह सत्यकथा है? मैं आज उसका जवाब दे रहा हूँ। मैं आज पहली बार आपको अपनी प्रियतमा सिमरन (मिक्की) के बारे में बताने जा रहा हूँ जिसके बारे में मैंने आज तक किसी को नहीं बताया। यह कहानी मेरी प्रेयसी को एक श्रद्धांजलि है जिसकी याद में मैंने आज तक इतनी कहानियां लिखी हैं। आपको यह कहानी कैसी लगी मुझे अवश्य अवगत करवाएं।

काश यह जिन्दगी किसी फिल्म की रील होती तो मैं फिर से उसे उल्टा घुमा कर आज से 14 वर्ष पूर्व के दिनों में ले जाता। आप सोच रहे होंगे 14 साल पहले ऐसा क्या हुआ था कि आज बैठे बिठाए उसकी याद आ गई? हाँ मेरी पाठिकाओ बात ही ऐसी है:

आप तो जानते हैं कोई भी अपने पहले प्रेम और कॉलेज या हाई स्कूल के दिनों को नहीं भूल पाता, मैं भला अपनी सिमरन, अपनी निक्कुड़ी और खुल जा सिमसिम को कैसे भूल सकता हूँ। आप खुल जा सिमसिम और निक्कुड़ी नाम सुन कर जरूर चौंक गए होंगे। आपको यह नाम अजीब सा लगा ना ? हाँ मेरी पाठिकाओं आज मैं अपनी खुल जा सिमसिम के बारे में ही बताने जा रहा हूँ जिसे स्कूल के सभी लड़के और प्रोफ़ेसर केटी और घरवाले सुम्मी या निक्की कह कर बुलाते थे पर मेरी बाहों में तो वो सदा सिमसिम या निक्कुड़ी ही बन कर समाई रही थी।

स्कूल या कॉलेज में अक्सर कई लड़के लड़कियों और मास्टरों के अजीब से उपनाम रख दिए जाते हैं जैसे हमने उस केमेस्ट्री के प्रोफ़ेसर का नाम “चिड़ीमार” रख दिया था। उसका असली नाम तो शीतला प्रसाद बिन्दियार था पर हम सभी पीठ पीछे उसे चिड़ीमार ही कहते थे। था भी तो साढ़े चार फुटा ही ना। सैंट पॉल स्कूल में रसायन शास्त्र (केमेस्ट्री) पढ़ाता था। मुझे उस दिन मीथेन का सूत्र याद नहीं आया और मैंने गलती से CH4 की जगह CH2 बता दिया ? बस इतनी सी बात पर उसने पूरी क्लास के सामने मुझे मरुस्थल का ऊँट (मकाऊ-केमल) कह दिया। भला यह भी कोई बात हुई। गलती तो किसी से भी हो सकती है। इसमें किसी को यह कहना कि तुम्हारी अक्ल घास चरने चली गई है सरासर नाइंसाफी है ना ? अब मैं भुनभुनाऊँ नहीं तो और क्या करूँ ?

बात उन दिनों की है जब मैं +2 में पढता था। मुझे केमेस्ट्री के सूत्र याद नहीं रहते थे। सच पूछो तो यह विषय ही मुझे बड़ा नीरस लगता था। पर बापू कहता था कि बिना साइंस पढ़े इन्जीनियर कैसे बनोगे। इसलिए मुझे अप्रैल में नया सत्र शुरू होते ही केमेस्ट्री की ट्यूशन इसी प्रोफ़ेसर चिड़ीमार के पास रखनी पड़ी थी और स्कूल के बाद इसके घर पर ही ट्यूशन पढ़ने जाता था। इसे ज्यादा कुछ आता जाता तो नहीं पर सुना था कि यह Ph.D किया हुआ है। साले ने जरूर कहीं से कोई फर्जी डिग्री मार ली होगी या फिर हमारे मोहल्ले वाले घासीराम हलवाई की तरह ही इसने भी Ph.D की होगी (पास्ड हाई स्कूल विद डिफिकल्टी)।

दरअसल मेरे ट्यूशन रखने का एक और कारण भी था। सच कहता हूँ साले इस चिड़ीमार की बीवी बड़ी खूबसूरत थी। किस्मत का धनी था जो ऐसी पटाखा चीज मिली थी इस चूतिये को। यह तो उसके सामने चिड़ीमार ही लगता था। वो तो पूरी क़यामत लगती थी जैसे करीना कपूर ही हो। कभी कभी घर पर उसके दर्शन हो जाते थे। जब वो अपने नितम्ब लचका कर चलती तो मैं तो बस देखता ही रह जाता। जब कभी उस चिड़ीमार के लिए चाय-पानी लेकर आती और नीचे होकर मेज पर कोई चीज रखती तो उसकी चुंचियां देख कर तो मैं निहाल ही हो जाता था। क्या मस्त स्तन थे साली के- मोटे मोटे रस भरे। जी तो करता था कि किसी दिन पकड़ कर दबा ही दूं। पर डरता था मास्टर मुझे स्कूल से ही निकलवा देगा। पर उसके नाम की मुट्ठ लगाने से मुझे कोई भला कैसे रोक सकता था। मैं कभी कभी उसके नाम की मुट्ठ लगा ही लिया करता था।

मेरी किस्मत अच्छी थी 5-7 दिनों से एक और लड़की ट्यूशन पर आने लगी थी। वैसे तो हमने 10वीं और +1 भी साथ साथ ही की थी पर मेरी ज्यादा जान पहचान नहीं थी। वो भी मेरी तरह ही इस विषय में कमजोर थी। नाम था सिमरन पटेल पर घरवाले उसे निक्की या निक्कुड़ी ही बुलाते थे। वो सिर पर काली टोपी और हाथ में लाल रंग का रुमाल रखती थी सो साथ पढ़नेवाले सभी उसे केटी (काली टोपी) ही कहते थे। केटी हो या निक्कुड़ी क्या फर्क पड़ता है लौंडिया पूरी क़यामत लगती थी। नाम से तो गुजराती लगती थी पर बाद में पता चला कि उसका बाप गुजराती था पर माँ पंजाबी थी। दोनों ने प्रेम विवाह किया था और आप तो जानते ही हैं कि प्रेम की औलाद वैसे भी बड़ी खूबसूरत और नटखट होती है तो भला सिमरन क्यों ना होती।

लगता था भगवान् ने उसे फुर्सत में ही तराश कर यहाँ भेजा होगा। चुलबुली, नटखट, उछलती और फुदकती तो जैसे सोनचिड़ी ही लगती थी। तीखे नैन-नक्श, मोटी मोटी बिल्लोरी आँखें, गोरा रंग, लम्बा कद, छछहरा बदन और सिर के बाल कन्धों तक कटे हुए। बालों की एक आवारा लट उसके कपोलों को हमेंशा चूमती रहती थी। कभी कभी जब वो धूप से बचने आँखों पर काला चश्मा लगा लेती थी तो उसकी खूबसूरती देख कर लड़के तो अपने होश-ओ-हवास ही खो बैठते थे। मेरा दावा है कि अगर कोई रिंद(नशेड़ी) इन आँखों को देख ले तो मयखाने का रास्ता ही भूल जाए। स्पोर्ट्स शूज पहने, कानों में सोने की छोटी छोटी बालियाँ पहने पूरी सानिया मिर्ज़ा ही लगती थी। सबसे कमाल की चीज तो उसके नितम्ब थे मोटे मोटे कसे हुए गोल मटोल। आमतौर पर गुजराती लड़कियों के नितम्ब और बूब्स इतने मोटे और खूबसूरत नहीं होते पर इसने तो कुछ गुण तो अपनी पंजाबी माँ से भी तो लिए होंगे ना। उसकी जांघें तो बस केले के पेड़ की तरह चिकनी, मखमली, रोमविहीन और भरी हुई आपस में रगड़ खाती कहर बरपाने वाली ही लगती थी। अगर किसी का लंड इनके बीच में आ जाए तो बस पिस ही जाए। आप सोच रहे होंगे कि मुझे उसकी जाँघों के बारे में इतना कैसे पता ?

मैं समझाता हूँ। ट्यूशन के समय वो मेरे साथ ही तो बैठती थी। कई बार अनजाने में उसकी स्कर्ट ऊपर हो जाती तो सफ़ेद रंग की पैंटी साफ़ नज़र आ जाती है। और उसकी कहर ढाती गोरी गोरी रोमविहीन कोमल जांघें और पिंडलियाँ तो बिजलियाँ ही गिरा देती थी। पैंटी में मुश्किल से ढकी उसकी छोटी सी बुर तो बेचारी कसमसाती सी नज़र आती थी। उसकी फांकों का भूगोल तो उस छोटी सी पैंटी में साफ़ दिखाई देता था। कभी कभी जब वो एक पैर ऊपर उठा कर अपने जूतों के फीते बांधती थी तो उसकी बुर का कटाव देख कर तो मैं बेहोश होते होते बचता था। मैं तो बस इसी ताक में रहता था कि कब वो अपनी टांग को थोड़ा सा ऊपर करे और मैं उस जन्नत के नज़ारे को देख लूं। प्रसिद्द गीतकार एन. वी. कृष्णन ने एक पुरानी फिल्म चिराग में आशा पारेख की आँखों के लिए एक गीत लिखा था। मेरा दावा है अगर वो सिमरन की इन पुष्ट, कमसिन और रोमविहीन जाँघों को देख लेता तो यह शेर लिखने को मजबूर हो जाता :

तेरी जाँघों के सिवा

दुनिया में रखा क्या है

आप सोच रहे होंगे यार क्या बकवास कर रहे हो- 18 साल की छोकरी केवल पैंटी ही क्यों पहनेगी भला ? क्या ऊपर पैंट या पजामा नहीं डालती ?

ओह ! मैं बताना भूल गया ? सिमरन मेरी तरह लॉन टेनिस की बहुत अच्छी खिलाड़ी थी। ट्यूशन के बाद वो सीधे टेनिस खेलने जाती थी इस वजह से वो पैंट नहीं पहनती थी, स्कर्ट के नीचे केवल छोटी सी पैंटी ही पहनती थी जैसे सानिया मिर्ज़ा पहनती है। शुरू शुरू में तो उसने मुझे कोई भाव नहीं दिया। वो भी मुझे कई बार मज़ाक में मकाऊ (मरुस्थल का ऊँट) कह दिया करती थी। और कई बार तो जब कोई सूत्र याद नहीं आता था तो इस चिड़ीमार की देखा देखी वो भी अपनी तर्जनी अंगुली अपनी कनपटी पर रख कर घुमाती जिसका मतलब होता कि मेरी अक्ल घास चरने चली गई है। मैं भी उसे सोनचिड़ी या खुल जा सिमसिम कह कर बुला लिया करता था वो बुरा नहीं मानती थी।

मैं भी टेनिस बड़ा अच्छा खेल लेता हूँ। आप सोच रहे होंगे यार प्रेम क्यों फेंक रहे हो ? ओह … मैं सच बोल रहा हूँ 2-3 साल पहले हमारे घर के पास एक सरकारी अधिकारी रहने आया था। उसे टेनिस का बड़ा शौक था। वो मुझे कई बार टेनिस खेलने ले जाया करता था। धीरे धीरे मैं भी इस खेल में उस्ताद बन गया। सिमरन तो कमाल का खेलती ही थी।

ट्यूशन के बाद अक्सर हम दोनों सहेलियों की बाड़ी के पास बने कलावती खेल प्रांगण में बने टेनिस कोर्ट में खेलने चले जाया करते थे। जब भी वो कोई ऊंचा शॉट लगाती तो उसकी पुष्ट जांघें ऊपर तक नुमाया हो जाती। और उसके स्तन तो जैसे शर्ट से बाहर निकलने को बेताब ही रहते थे। वो तो उस शॉट के साथ ऐसे उछलते थे जैसे कि बैट पर लगने के बाद बाल उछलती है। गोल गोल भारी भारी उठान और उभार से भरपूर सीधे तने हुए ऐसे लगते थे जैसे दबाने के लिए निमंत्रण ही दे रहे हों।

गेम पूरा हो जाने के बाद हम दोनों ही पसीने से तर हो जाया करते थे। उसकी बगल तो नीम गीली ही हो जाती थी और उसकी पैंटी का हाल तो बस पूछो ही मत। मैं तो बस किसी तरह उसकी छोटी सी पैंटी के बीच में फंसी उसकी मुलायम सी बुर (अरे नहीं यार पिक्की) को देखने के लिए जैसे बेताब ही रहता था। हालांकि मैं टेनिस का बहुत अच्छा खिलाड़ी था पर कई बार मैं उसकी पुष्ट और मखमली जाँघों को देखने के चक्कर में हार जाया करता था। और जब मैं हार जाता था तो वो ख़ुशी के मारे जब उछलती हुई किलकारियाँ मारती थी तो मुझे लगता था कि मैं हार कर भी जीत गया।

3-4 गेम खेलने के बाद हम दोनों घर आ जाया करते थे। मेरे पास बाइक थी। वो पीछे बैठ जाया करती थी और मैं उसे घर तक छोड़ दिया करता था। पहले पहले तो वो मेरे पीछे जरा हट कर बैठती थी पर अब तो वो मुझसे इस कदर चिपक कर बैठने लगी थी कि मैं उसके पसीने से भीगे बदन की मादक महक और रेशमी छुअन से मदहोश ही हो जाता था। कई बार तो वो जब मेरी कमर में हाथ डाल कर बैठती थी तो मेरा प्यारेलाल तो (लंड) आसमान ही छूने लग जाता था और मुझे लगता कि मैं एक्सिडेंट ही कर बैठूँगा। आप तो जानते ही हैं कि जवान औरत या लड़की के बदन से निकले पसीने की खुशबू कितनी मादक और मदहोश कर देने वाली होती है और फिर यह तो जैसे हुस्न की मल्लिका ही थी। जब वो मोटर साइकिल से उतर कर घर जाती तो अपनी कमर और नितम्ब इस कदर मटका कर चलती थी जैसे कोई बल खाती हसीना रैम्प पर चल रही हो। उसके जाने के बाद मैं मोटर साइकिल की सीट पर उस जगह को गौर से देखता जहां ठीक उसके नितम्ब लगते थे या उसकी पिक्की होती थी। उस जगह का गीलापन तो जैसे मेरे प्यारेलाल को आवारालाल ही कर देता था। कई बार तो मैंने उस गीली जगह पर अपनी जीभ भी लगा कर देखी थी। आह… क्या मादक महक आती है साली की बुर के रस से ……

कई बार तो वो जब ज्यादा खुश होती थी तो रास्ते में इतनी चुलबुली हो जाती थी कि पीछे बैठी मेरे कानों को मुंह में लेकर काट लेती थी और जानबूझ कर अपनी नुकीली चुंचियां मेरी पीठ पर रगड़ देती थी। और फिर तो घर आ कर मुझे उसके नाम की मुट्ठ मारनी पड़ती थी। पहले मैं उस चिड़ीमार की बीवी के नाम की मुट्ठ मारता था अब एक नाम सोनचिड़ी (सिमरन) का भी शामिल हो गया था।

मुझे लगता था कि वो भी कुछ कुछ मुझे चाहने लगी थी। हे भगवान ! अगर यह सोनचिड़ी किसी तरह फंस जाए तो मैं तो बस सीधे बैकुंठ ही पहुँच जाऊं। ओह कुछ समझ ही नहीं आ रहा ? समय पर मेरी बुद्धि काम ही नहीं करती ? कई बार तो मुझे शक होता है कि मैं वाकई ऊँट ही हूँ। ओह हाँ याद आया लिंग महादेव बिलकुल सही रहेगा। थोड़ा दूर तो है पर चलो कोई बात नहीं इस सोनचिड़ी के लिए दूरी क्या मायने रखती है। चलो हे लिंग महादेव ! अगर यह सोनचिड़ी किसी तरह मेरे जाल में फस जाए तो मैं आने वाले सावन में देसी गुड़ का सवा किलो चूरमा तुम्हें जरूर चढाऊंगा। (माफ़ करना महादेवजी यार चीनी बहुत महंगी है आजकल)

ओह मैं भी कैसी फजूल बातें करने लगा। मैं उसकी बुर के रस और मखमली जाँघों की बात कर रहा था। उसकी गुलाबी जाँघों को देख कर यह अंदाजा लगाना कत्तई मुश्किल नहीं था कि बुर की फांकें भी जरूर मोटी मोटी और गुलाबी रंग की ही होंगी। मैंने कई बार उसके ढीले टॉप के अन्दर से उसकी बगलों (कांख) के बाल देखे थे। आह… क्या हलके हलके मुलायम और रेशमी रोयें थे। मैं यह सोच कर तो झड़ते झड़ते बचता था कि अगर बगलों के बाल इतने खूबसूरत हैं तो नीचे का क्या हाल होगा। मेरा प्यारेलाल तो इस ख़याल से ही उछलने लगता था कि उसकी बुर पर उगे बाल कैसे होंगे। मेरा अंदाजा है कि उसने अपनी झांटें बनानी शुरू ही नहीं की होगी और रेशमी, नर्म, मुलायम और घुंघराले झांटों के बीच उसकी बुर तो ऐसे लगती होगी जैसे घास के बीच गुलाब का ताज़ा खिला फूल अपनी खुशबू बिखेर रहा हो।

उस दिन सिमरन कुछ उदास सी नज़र आ रही थी। आज हम दोनों का ही ट्यूशन पर जाने का मूड नहीं था। हम सीधे ही टेनिस कोर्ट पहुँच गए। आज उसने आइसक्रीम की शर्त लगाई थी कि जो भी जीतेगा उसे आइसक्रीम खिलानी होगी। मैं सोच रहा था मेरी जान मैं तो तुम्हें आइसक्रीम क्या और भी बहुत कुछ खिला सकता हूँ तुम एक बार हुक्म करके तो देखो।

और फिर उस दिन हालांकि मैंने अपना पूरा दम ख़म लगाया था पर वो ही जीत गई। उसके चहरे की रंगत और आँखों से छलकती ख़ुशी मैं कैसे नहीं पहचानता। उसने पहले तो अपने सिर से उस काली टोपी को उतारा और दूसरे हाथ में वही लाल रुमाल लेकर दोनों हाथ ऊपर उठाये और नीचे झुकी तो उसके मोटे मोटे संतरे देख कर तो मुझे जैसे मुंह मांगी मुराद ही मिल गई। वाह … क्या गोल गोल रस भरे संतरे जैसे स्तन थे। एरोला तो जरूर एक रुपये के सिक्के जितना ही था लाल सुर्ख। और उसके चुचूक तो जैसे चने के दाने जितनी बिलकुल गुलाबी। बीच की घाटी तो जैसे क़यामत ही ढा रही थी। मुझे तो लगा कि मेरा प्यारेलाल तो यह नज़ारा देख कर ख़ुदकुशी ही कर बैठेगा।

हमनें रास्ते में आइसक्रीम खाई और घर की ओर चल पड़े। आमतौर पर वो सारे रास्ते मेरे कान खाती रहती है एक मिनट भी वो चुप नहीं रह सकती। पर पता नहीं आज क्यों उसने रास्ते में कोई बात नहीं की। मुझे इस बात की बड़ी हैरानी थी कि आज वो मेरे साथ चिपक कर भी नहीं बैठी थी वर्ना तो जिस दिन वो जीत जाती थी उस दिन तो उसका चुलबुलापन देखने लायक होता था। जब वह मोटर साइकिल से उतर कर अपने घर की ओर जाने लगी तो उसने पूछा, “प्रेम एक बात सच सच बताना ?”

क्या ?”

“आज तुम जानबूझ कर हारे थे ना ?”

“न … न … नहीं तो ?”

“मैं जानती हूँ तुम झूठ बोल रहे हो ?”

“ओह … ?”

“बोलो ना ?”

“स … स … सिमरम … मैं आज के दिन तुम्हें हारते हुए क …क … कैसे देख सकता था यार ?” मेरी आवाज़ जैसे काँप रही थी। इस समय तो मैं शाहरुख़ कहाँ का बाप ही लग रहा था।

“क्या मतलब ?”

“मैं जानता हूँ कि आज तुम्हारा जन्मदिन है !”

“ओह … अरे … तुम्हें कैसे पता ?” उसने अपनी आँखें नचाई।

“वो वो… दरअसल स … स … सिम … सिम … मैं ?” मेरा तो गला ही सूख रहा था कुछ बोल ही नहीं पा रहा था।

सिमरन खिलखिला कर हंस पड़ी। हंसते हुए उसके मोती जैसे दांत देख कर तो मैं सोचने लगा कि इस सोनचिड़ी का नाम दयमंती या चंद्रावल ही रख दूं।

“सिमरन तुम्हें जन्मदिन की बहुत बहुत बधाई हो !”

“ओह, आभार तमारो, मारा प्रेम” (ओह… थैंक्स मेरे प्रेम) वो पता नहीं क्या सोच रही थी।

कभी कभी वो जब बहुत खुश होती थी तो मेरे साथ गुजराती में भी बतिया लेती थी। पर आज जिस अंदाज़ में उसने ‘मारा प्रेम’ (मेरे प्रेम) कहा था मैं तो इस जुमले का मतलब कई दिनों तक सोच सोच कर ही रोमांचित होता रहा था।

वो कुछ देर ऐसे ही खड़ी सोचती रही और फिर वो हो गया जिसकि कल्पना तो मैंने सपने में भी नहीं की थी। एक एक वो मेरे पास आई और और इससे पहले कि मैं कुछ समझता उसने मेरा सिर पकड़ कर अपनी ओर करते हुए मेरे होंठों को चूम लिया। मैंने तो कभी ख्वाब-ओ-खयालों में भी इसका गुमान नहीं किया था कि वो ऐसा करेगी। मुझे तो अपनी किस्मत पर यकीन ही नहीं हो रहा था कि इतनी जल्दी यह सब हो जाएगा।

आह … उस एक चुम्बन की लज्जत को तो मैं मरते दम तक नहीं भूलूंगा। क्या खुशबूदार मीठा अहसास था। उसके नर्म नाज़ुक होंठ तो जैसे शहद भरी दो पंखुड़ियां ही थी। आज भी जब मैं उन लम्हों को कभी याद करता हूँ तो बरबस मेरी अंगुलियाँ अपने होंठों पर आ जाती है और मैं घंटों तक उस हसीन फरेब को याद करता रहता हूँ।

सिमरन बिना मेरी ओर देखे अन्दर भाग गई। मैं कितनी देर वहाँ खड़ा रहा मुझे नहीं पता। अचानक मैंने देखा कि सिमरन अपने घर की छत पर खड़ी मेरी ओर ही देख रही है। जब मेरी नज़रें उससे मिली तो उसने उसी पुराने अंदाज़ में अपने दाहिने हाथ की तर्ज़नी अंगुली अपनी कनपटी पर लगा कर घुमाई जिसका मतलब मैं, सिमरन और अब तो आप सब भी जान ही गए हैं। पुरुष अपने आपको कितना भी बड़ा धुरंधर क्यों ना समझे पर नारी जाति के मन की थाह और मन में छिपी भावनाओं को कहाँ समझ पाता है। बरबस मेरे होंठों पर पुरानी फिल्म गुमनाम में मोहम्मद रफ़ी का गया एक गीत निकल पड़ा :

एक लड़की है जिसने जीना मुश्किल कर दिया

वो तुम्हीं हो वो नाजनीन वो तुम्हीं हो वो महज़बीं …

गीत गुनगुनाते हुए जब मैं घर की ओर चला तो मुझे इस बात की बड़ी हैरानी थी कि सिमरन ने मुझे अपने जन्मदिन पर क्यों नहीं बुलाया? खैर जन्मदिन पर बुलाये या ना बुलाये उसके मन में मेरे लिए कोमल भावनाएं और प्रेम का बिरवा तो फूट ही पड़ा है। उस रात मैं ठीक से सो नहीं पाया। सारी रात बस रोमांच और सपनीली दुनिया में गोते ही लगाता रहा। मुझे तो लगा जैसे मेरे दिल की हर धड़कन उसका ही नाम ले रही हैं, मेरी हर सांस में उसी का अहसास गूँज रहा है मेरी आँखों में वो तो रच बस ही गई है। मेरा जी तो कर रहा था कि मैं बस पुकारता ही चला जाऊं….

मेरी सिमरन …. मेरी सिमसिम ……

अगले चार दिन मैं ना तो स्कूल जा पाया और ना ही ट्यूशन पर। मुझे बुखार हो गया था। मुझे अपने आप पर और इस बुखार पर गुस्सा तो बड़ा आ रहा था पर क्या करता ? बड़ी मुश्किल से यह फुलझड़ी मेरे हाथों में आने को हुई है और ऐसे समय पर मैं खुद उस से नहीं मिल पा रहा हूँ। मैं ही जानता हूँ मैंने ये पिछले तीन दिन कैसे बिताये हैं।

काश ! कुछ ऐसा हो कि सिमरन खुद चल कर मेरे पास आ जाए और मेरी बाहों में समा जाए। बस किसी समंदर का किनारा हो या किसी झील के किनारे पर कोई सूनी सी हवेली हो जहां और दूसरा कोई ना हो। बस मैं और मेरी नाज़नीन सिमरन ही हों और एक दूसरे की बाहों में लिपटे गुटर गूं करते रहें क़यामत आने तक। काश ! इस शहर को ही आग लग जाए बस मैं और सिमरन ही बचे रहें। काश कोई जलजला (भूकंप) ही आ जाए। ओह लिंग महादेव ! तू ही कुछ तो कर दे यार मेरी सुम्मी को मुझ से मिला दे ? मैं उसके बिना अब नहीं रह सकता।

उस एक चुम्बन के बाद तो मेरी चाहत जैसे बदल ही गई थी। मैं इतना बेचैन तो कभी नहीं रहा। मैंने सुना था और फिल्मों में भी देखा था कि आशिक अपनी महबूबा के लिए कितना तड़फते हैं। आज मैं इस सच से रूबरू हुआ था। मुझे तो लगने लगने लगा कि मैं सचमुच इस नादान नटखट सोनचिड़ी से प्रेम करने लगा हूँ। पहले तो मैं बस किसी भी तरह उसे चोद लेना चाहता था पर अब मुझे लगता था कि इस शरीर की आवश्यकता के अलावा भी कुछ कुनमुना रहा है मेरे भीतर। क्या इसी को प्रेम कहते हैं ?

चुम्बन प्रेम का प्यारा सहचर है। चुम्बन हृदय स्पंदन का मौन सन्देश है और प्रेम गुंजन का लहराता हुआ कम्पन है। प्रेमाग्नि का ताप और दो हृदयों के मिलन की छाप है। यह तो नव जीवन का प्रारम्भ है। ओह… मेरे प्रेम के प्रथम चुम्बन मैं तुम्हें अपने हृदय में छुपा कर रखूँगा और अपने स्मृति मंदिर में मूर्ति बना कर स्थापित करूंगा। यही एक चुम्बन मेरे जीवन का अवलंबन होगा।

जिस तरीके से सिमरन ने चुम्बन लिया था और शर्मा कर भाग गई थी मैं यकीन के साथ कह सकता हूँ कि उसके मन में भी मेरे लिए कोमल भावनाएं जरूर आ गई हैं जिन्हें चाहत का नाम दिया जा सकता है। उस दिन के बाद तो उसका चुलबुलापन, शौखियाँ, अल्हड़पन और नादानी पता नहीं कहाँ गायब ही हो गई थी। ओह … अब मुझे अपनी अक्ल के घास चरने जाने का कोई गम नहीं था।

शाम के कोई चार बजे रहे थे मैंने दवाई ले ली थी और अब कुछ राहत महसूस कर रहा था। इतने में शांति बाई (हमारी नौकरानी) ने आकर बताया कि कोई लड़की मिलने आई है। मेरा दिल जोर से धड़का। हे लिंग महादेव ! यार मेरे ऊपर तरस खा कर कहीं सिमरन को ही तो नहीं भेज दिया ?

“हल्लो, केम छो, प्रेम ?” (हेल्लो कैसे हो प्रेम?) जैसे अमराई में कोई कोयल कूकी हो, किसी ने जल तरंग छेड़ी हो या फिर वीणा के सारे तार किसी ने एक साथ झनझना दिए हों। एक मीठी सी आवाज ने मेरा ध्यान खींचा। ओह…. यह तो सचमुच मेरी सोनचिड़ी ही तो थी। मुझे तो अपनी किस्मत पर यकीन ही नहीं हो रहा था कि सिमरन मेरे घर आएगी। गुलाबी रंग के पटयालवी सूट में तो आज उसकी ख़ूबसूरती देखते ही बनती थी पूरी पंजाबी मुटियार (अप्सरा) ही लग रही थी। आज सिर पर वो काली टोपी नहीं थी पर हाथ में वही लाल रुमाल और मुंह में चुइंगम।

“म … म … मैं … ठीक हूँ। तुम ओह… प्लीज बैठो … ओह… शांति बाई …ओह…” मैंने खड़ा होने की कोशिश की। मुझे तो उसकी ख़ूबसूरती को देख कर कुछ सूझ ही नहीं रहा था।

“ओह लेटे रहो ? क्या हुआ है ? मुझे तो प्रोफ़ेसर साहब से पता चला कि तुम बीमार हो तो मैंने तुम्हारा पता लेने चली आई।”

वह पास रखी स्टूल पर बैठ गई। उसने अपने रुमाल के बीच में रखा एक ताज़ा गुलाब का फूल निकाला और मेरी ओर बढ़ा दिया “आ तमारा माते” (ये तुम्हारे लिए)

“ओह … थैंक्यू सिमरन !” मैंने अपना बाएं हाथ से वो गुलाब ले लिया और अपना दायाँ हाथ उसकी ओर मिलाने को बढ़ा दिया।

उसने मेरा हाथ थाम लिया और बोली “हवे ताव जेवु लागतु तो नथी ” (अब तो बुखार नहीं लगता)

“हाँ आज ठीक है। कल तो बुरी हालत थी !”

उसने मेरे माथे को भी छू कर देखा। मुझे तो पसीने आ रहे थे। उसने अपने रुमाल से मेरे माथे पर आया पसीना पोंछा और फिर रुमाल वहीं सिरहाने के पास रख दिया। शान्ती बाई चाय बना कर ले आई। चाय पीते हुए सिमरन ने पूछा “कल तो ट्यूशन पर आओगे ना ?”

“हाँ कल तो मैं स्कूल और ट्यूशन दोनों पर जरूर आऊंगा। तुम से मिठाई भी तो खानी है ना ?

“केवी मिठाई ” (कैसी मिठाई)

“अरे तुम्हारे जन्मदिन की और कौन सी ? तुमने मुझे अपने जन्मदिन पर तो बुलाया ही नहीं अब क्या मिठाई भी नहीं खिलाओगी ?” मैंने उलाहना दिया तो वो बोली “ओह…. अरे……ते……..ओह……सारु ………तो …….काले खवदावी देवा” (ओह… अरे… वो… ओह… अच्छा… वो… चलो कल खिला दूंगी)

पता नहीं उसके चहरे पर जन्मदिन की कोई ख़ुशी नहीं नज़र आई। अलबत्ता वो कुछ संजीदा (गंभीर) जरूर हो गई पता नहीं क्या बात थी।

चाय पी कर सिमरन चली गई। मैंने देखा उसका लाल रुमाल तो वहीं रह गया था। पता नहीं आज सिमरन इस रुमाल को कैसे भूल गई वर्ना तो वह इस रुमाल को कभी अपने से जुदा नहीं करती ?

मैंने उस रुमाल को उठा कर अपने होंठों पर लगा लिया। आह… मैं यह सोच कर तो रोमांचित ही हो उठा कि इसी रुमाल से उसने अपने उन नाज़ुक होंठों को भी छुआ होगा। मैंने एक बार फिर उस रुमाल को चूम लिया। उसे चूमते हुए मेरा ध्यान उस पर बने दिल के निशान पर गया। ओह… यह रुमाल तो किसी जमाने में लाहौर के अनारकली बाज़ार में मिला करते थे। ऐसा रुमाल सोहनी ने अपने महिवाल को चिनाब दरिया के किनारे दिया था और महिवाल उसे ताउम्र अपने गले में बांधे रहा था। ऐसी मान्यता है कि ऐसा रुमाल का तोहफा देने से उसका प्रेम सफल हो जाता है। सिमरन ने बाद में मुझे बताया था कि यह रुमाल उसने अपने नानके (ननिहाल) पटियाला से खरीदा था। आजकल ये रुमाल सिर्फ पटियाला में मिलते हैं। पहले तो इन पर दो पक्षियों के चित्र से बने होते थे पर आजकल इन पर दो दिल बने होते हैं। इस रुमाल पर दोनों दिलों के बीच में एस और पी के अक्षर बने थे। मैंने सोचा शायद सिमरन पटेल लिखा होगा। पर बीच में + का निशान क्यों बना था मेरी समझ में नहीं आया।

मैंने एक बार उस गुलाब और इस रुमाल को फिर से चूम लिया। मैंने कहीं पढ़ा था सुगंध और सौन्दर्य का अनुपम समन्वय गुलाब सदियों से प्रेमिकाओं को आकर्षित करता रहा है। लाल गुलाब मासूमियत का प्रतीक होता है। अगर किसी को भेंट किया जाए तो यह सन्देश जाता है कि मैं तुम्हें प्रेम करता हूँ। ओह… अब मैं समझा कि S+P का असली अर्थ तो सिमरन और प्रेम है। मैंने उस रुमाल को एक बार फिर चूम लिया और अपने पास सहेज कर रख लिया। ओह … मेरी सिमरन मैं भी तुम्हें सचमुच बहुत प्रेम करने लगा हूँ ….

अगले दिन मैं थोड़ी जल्दी ट्यूशन पर पहुंचा। सिमरन प्रोफ़ेसर के घर के नीचे पता नहीं कब से मेरा इंतज़ार कर रही थी। जब मैंने उसकी ओर प्रश्नवाचक निगाहों से देखा तो उसने अपना सिर झुका लिया। अब मैं इतना गाउदी (मकाउ) भी नहीं रहा था कि इसका अर्थ न समझूं। मेरा दिल तो जैसे रेल का इंजन ही बना था। मैंने कांपते हाथों से उसकी ठोड़ी को थोड़ा सा ऊपर उठाया। उसकी तेज और गर्म साँसें मैं अच्छी तरह महसूस कर रहा था। उसके होंठ भी जैसे काँप रहे थे। उसकी आखों में भी लाल डोरे से तैर रहे थे। उसे भी कल रात भला नींद कहाँ आई होगी। भले ही हम दोनों ने एक दूसरे से एक शब्द भी नहीं कहा पर मन और प्रेम की भाषा भला शब्दों की मोहताज़ कहाँ होती है। बिन कहे ही जैसे एक दूसरे की आँखों ने सब कुछ तो बयान कर ही दिया था।

ट्यूशन के बाद आज हम दोनों का ही टेनिस खेलने का मूड नहीं था। हम दोनों खेल मैदान में बनी बेंच पर बैठ गए।

मैंने चुप्पी तोड़ी “सिमरन, क्या सोच रही हो ?”

“कुछ नहीं !” उसने सिर झुकाए ही जवाब दिया।

“सुम्मी एक बात सच बताऊँ ?”

“क्या ?”

“सुम्मी वो… वो दरअसल…” मेरी तो जबान ही साथ नहीं दे रही थी। गला जैसे सूख गया था।

“हूँ …”

“मैं तुमसे कुछ कहना चाहता हूँ ?”

” ?” उसने प्रश्न वाचक निगाहों से मुझे ताका।

“मैं … मैं … तुम से प … प … प्रेम करने लगा हूँ सुम्मी ?” पता नहीं मेरे मुंह से ये शब्द कैसे निकल गए।

“हूँ … ?”

“ओह … तुम कुछ बोलोगी नहीं क्या ?”

“नहीं ?”

“क … क … क्यों ?”

“हूँ नथी कहेती के तमारी बुद्धि बेहर मारी जाय छे कोई कोई वार ?” (मैं ना कहती थी कि तुम्हारी अक्ल घास चरने चली जाती है कई बार ?) और वो खिलखिला कर हंस पड़ी। हंसते हुए उसने अपनी तर्जनी अंगुली अपनी कनपटी पर लगा कर घुमा दी।

सच पूछो तो मुझे पहले तो कुछ समझ ही नहीं आया। मैं तो सोच रहा था कहीं सिमरन नाराज़ ही ना हो जाए। पर बाद में तो मेरे दिल की धड़कनों की रफ़्तार ऐसी हो गई जैसे कि मेरा दिल हलक के रास्ते बाहर ही आ जाएगा। अब आप मेरी हालत का अंदाजा लगा सकते हैं कि मैंने अपने आप को कैसे रोका होगा। थोड़ी दूर कुछ लड़के और लड़कियां खेल रहे थे। कोई सुनसान जगह होती तो मैं निश्चित ही उसे अपनी बाहों में भर कर चूम लेता पर उस समय और उस जगह ऐसा करना मुनासिब नहीं था। मैंने सिमरन का हाथ अपने हाथ में ले कर चूम लिया।

प्रेम को बयान करना जितना मुश्किल है महसूस करना उतना ही आसान है। प्यार किस से, कब, कैसे और कहाँ हो जाएगा कोई नहीं जानता। वो पहली नजर में भी हो सकता है और हो सकता है कई मुलाकातों के बाद हो।

“सुम्मी ?”

“हूँ … ?”

“सुम्मी तुमने मुझे अपने जन्मदिन की मिठाई तो खिलाई ही नहीं ?” उसने मेरी ओर इस तरह देखा जैसे मैं निरा शुतुरमुर्ग ही हूँ। उसकी आँखें तो जैसे कह रही थी कि ‘जब पूरी थाली मिठाई की भरी पड़ी है तुम्हारे सामने तुम बस एक टुकड़ा ही मिठाई का खाना चाहते हो ?”

“एक शेर सम्भादावु?” (एक शेर सुनाऊं) सिमरन ने चुप्पी तोड़ी। कितनी हैरानी की बात थी इस मौके पर उसे शेर याद आ रहा था।

“ओह … हाँ … हाँ …?” मैंने उत्सुकता से कहा।

सिमरन ने गला खंखारते हुए कहा “अर्ज़ किया है :

वो मेरे दिल में ऐसे समाये जाते हैं…. ऐसे समाये जाते हैं …

जैसे कि… बाजरे के खेत में कोई सांड घुसा चला आता हो ?”

हंसते हँसते हम दोनों का बुरा हाल हो गया। उस एक शेर ने तो सब कुछ बयान कर दिया था। अब बाकी क्या बचा था।

“आ जाड़ी बुध्धिमां कई समज आवी के नहीं?” (इस मोटी बुद्धि में कुछ समझ आया या नहीं) और फिर उसने एक अंगुली मेरी कनपटी पर लगा कर घुमा दी।

“ओह … थैंक्स सुम्मी … मैं … मैं … बी … बी … ?”

“बस बस हवे, शाहरुख खान अने दिलीप कुमार न जेवी एक्टिंग करवा नी कोई जरुरत नथी मने खबर छे के तमने एक्टिंग करता नथी आवडती” (बस बस अब शाहरुख खान और दिलीप कुमार की तरह एक्टिंग करने की कोई जरुरत नहीं है? मैं जानती हूँ तुम्हें एक्टिंग करनी भी नहीं आती)

“सिम … सिमरन यार बस एक चुम्मा दे दो ना ? मैं कितने दिनों से तड़फ रहा हूँ ? देखो तुमने वादा किया था ?”

“केवूँ वचन ? में कदी एवुं वचन आप्युं नथी” (कौन सा वादा ? मैंने ऐसा कोई वादा नहीं किया)

“तुमने अपने वादे से मुकर रही हो ?”

“ना, फ़क्त मिठाई नी ज वात थई हटी ?” (नहीं बस मिठाई की बात हुई थी)

“ओह … मेरी प्यारी सोनचिड़ी चुम्मा भी तो मिठाई ही है ना ? तुम्हारे कपोल और होंठ क्या किसी मिठाई से कम हैं ?”

“छट गधेड़ा ! कुंवारी छोकरी ने कदी पुच्ची कराती हशे ?” (धत्त…. ऊँट कहीं के… कहीं कुंवारी लड़की का भी चुम्मा लिया जाता है?)

“प्लीज… बस एक बार इन होंठों को चूम लेने दो ! बस एक बार प्लीज !”

“ओह्हो ….एम् छे !!! हवे हूँ समजी के तमारी बुध्धि घास खाईने पाछी आवी गई छे! हवे अहि तमने कोई मिठाई – बिठाई मलवानी नथी? हवे घरे चालो” (ओहहो… अच्छा जी ! मैं अब समझी तुम्हारी बुद्धि घास खा कर वापस लौट आई है जी ? अब यहाँ आपको कोई मिठाई विठाई नहीं मिलेगी ? अब चलो घर) सिमरन मंद मंद मुस्कुरा रही थी।

“क्या घर पर खिलाओगी ?” मैंने किसी छोटे बच्चे की तरह मासूमियत से कहा।

“हट ! गन्दा छोकरा ?” (चुप… गंदे बच्चे)

सिमरन तो मारे शर्म से दोहरी ही हो गई उसके गाल इस कदर लाल हो गए जैसे कोई गुलाब या गुडहल की कलि अभी अभी चटक कर खिली है। और मैं तो जैसे अन्दर तक रोमांच से लबालब भर गया जिसे मैं शब्दों में बयान नहीं कर सकता। क्यों कि मैं शायरों और अदीबों (साहित्यकारों) की प्रणय और श्रृंगाररस की भाषा कहाँ जानता हूँ। मैं तो सीधी सादी ठेठ भाषा में कह सकता हूँ कि अगर इस मस्त मोरनी के लिए कोई मुझे कुतुबमीनार पर चढ़ कर उसकी तेरहवी मंजिल से छलांग लगाने को कह दे तो मैं आँखें बंद करके कूद पडूँ। प्रेम की डगर बड़ी टेढ़ी और अंधी होती है।

घर आकर मैंने दो बार मुट्ठ मारी तब जा कर लंड महाराज ने सोने दिया।
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07-04-2017, 12:45 PM,
#96
RE: प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ
काली टोपी लाल रुमाल-2

[color=#333333][size=large][color=#0000bf]उसके बाद तो हम दोनों ही पहरों आपस में एक दूसरे का हाथ थामें बतियाते रहते। पता नहीं एक दूजे को देखे बिना हमें तो जैसे चैन ही नहीं आता था। धीरे धीरे हमारा प्रेम परवान चढने लगा। अब सिमरन ने अपने बारे में बताना चालू कर दिया। उसके माँ बाप ने प्रेम-विवाह किया था। दोनों ही नौकरी करते हैं। कुछ सालों तक तो सब ठीक रहा पर अब तो दोनों ही आपस में झगड़ते रहते हैं। सिमरन के 19वें जन्मदिन पर भी उन दोनों में सुबह सुबह ही तीखी झड़प हुई थी। और सिमरन का जन्मदिन भी उसी की भेंट चढ़ गया। सिमरन तो बेचारी रोती ही रह गई। उसने बाद में एक बार मुझे कहा थी कि वो तो घर से भाग जाना चाहती है। कई बार तो वो इन दोनों को झगड़ते हुए देख कर जहर खा लेने का सोचने लगती है। उसकी मम्मी उसे निक्की के नाम से बुलाती है और उसके पापा उसे सुम्मी या फिर जब कभी अच्छे मूड में होते हैं तो निक्कुड़ी बुलाते है। गुजरात और राजस्थान में छोटी लड़कियों के इस तरह के नाम (निक्कुड़ी, मिक्कुड़ी, झमकुड़ी और किट्टूड़ी आदि) बड़े प्यार से लिए जाते हैं।

मैंने उसे पूछा था कि मैं उसे किस नाम से बुलाया करूँ तो वो कुछ सोचते हुए बोली “सिम… सुम्मी …? ओह… निकू … चलेगा ?”

“निक्कुड़ी बोलूँ तो ?”

“पता है निक्कुड़ी का एक और भी मतलब होता है ?”

“क्या ?”

“छट ! गंदो दीकरो ! … तू गैहलो छे के ?” (धत्त … तुम पागल तो नहीं हुए हो?) उसने शर्माते हुए कहा।

पता नहीं ‘निक्कुड़ी’ का दूसरा मतलब क्या होता है। जब कुछ समझ नहीं आया तो मैंने कहा “सिमसिम कैसा रहेगा ?”

“ओह… ?”

“अलीबाबा की खुल जा मेरी सिमसिम कि तरह बहुत खूबसूरत रहेगा ना ?”

और हम दोनों ही हंस पड़े थे। मैंने भी उसे अपने बारे में बता दिया। मेरी मॉम का एक साल पहले देहांत हो गया था और बापू सरकारी नौकरी में थे। मुझे होस्टल में भेजना चाहते थे पर मौसी ने कहा कि इसे +2 कर लेने दो फिर मैं अपने साथ ले जाउंगी। मेरा भी सपना था कि कोई मुझे प्रेम करे। दरअसल हम दोनों ही किसी ना किसी तरह प्रेम के प्यासे थे। हम दोनों ने अपने भविष्य के सपने बुनने शुरू कर दिए थे। पढ़ाई के बाद दोनों शादी कर लेंगे। प्रेम का पूरा रंग दोनों पर चढ़ चुका था। और हमने भी किसी प्रेमी जोड़े की तरह एक साथ जीने मरने की कसमें खा ली थी।

दोस्तों ! अब दिल्ली दूर तो नहीं रही थी पर सवाल तो यह था ना कि कब, कहाँ और कैसे ? प्रेम आश्रम वाले गुरुजी कहते हैं कि पानी और लंड अपना रास्ता अपने आप बना लेते हैं।

अगले तीन दिन फिर सिमरन ट्यूशन से गायब रही। आप मेरी हालत का अंदाजा लगा सकते हैं ये तीन दिन और तीन रातें मैंने कैसे बिताई होंगी। मैंने इन तीन दिनों में कम से कम सात-आठ बार तो मुट्ठ जरूर मारी होगी।

आज तो सुबह-सुबह दो बार मारनी पड़ी थी। आप सोच रहे होंगे अजीब पागल है यार ! भला सुबह-सुबह दो बार मुट्ठ मारने की क्या जरुरत पड़ गई। ओह … मैं समझाता हूँ। दरअसल आज नहाते समय मुझे लगा कि मेरे झांट कुछ बढ़ गए हैं। इन्हें साफ़ करना जरुरी है। जैसे ही मैंने उन्हें साफ़ करना शुरू किया तो प्यारेलालजी खड़े होकर सलाम बजाने लगे। उनका जलाल तो आज देखने लायक था। सुपाड़ा तो इतना फूला था जैसे कि मशरूम हो और रंग लाल टमाटर जैसा। अब मैं क्या करता। उसे मार खाने की आदत जो पड़ गई थी। मार खाने और आंसू बहाने के बाद ही उसने मुझे आगे का काम करने दिया। जब मैंने झांट अच्छी तरह काट लिए और अच्छी तरह नहाने के बाद शीशे में अपने आप को नंगा देखा तो ये महाराज फिर सिर उठाने लग गए। मुझे उस पर तरस भी आया और प्यार भी। इतना गोरा चिट्टा और लाल टमाटर जैसा टोपा देख कर तो मेरा जी करने लगा कि इसका एक चुम्मा ही ले लूं। पर यार अब आदमी अपने लंड का चुम्मा खुद तो नहीं ले सकता ना ? मुझे एक बार फिर मुट्ठ मारनी पड़ी।

मुझे ट्यूशन पर पहुँचाने में आज देर हो गई। सिमरन मुझे सामने से आती मिली। उसने बताया कि प्रोफ़ेसर आज कहीं जाने वाला है नहीं पढ़ायेगा। हम वापस घर के लिए निकल पड़े। रास्ते में मैंने सिमरन को उलाहना दिया,”सिमसिम, तुम तीन दिन तक कहाँ गायब रही ?”

“ओह… वो… वो… ओह… हम लड़कियों के परेशानी तुम नहीं समझ सकते ?” उसने मेरी ओर इस तरह देखा जैसे कि मैं कोई शुतुरमुर्ग हूँ। मेरी समझ में सच पूछो तो कुछ नहीं आया था। सिमरन पता नहीं आज क्यों उदास सी लग रही थी। लगता है वो आज जरूर रोई है। उसकी आँखें लाल हो रही थी।

“सिमरन आज तुम कुछ उदास लग रही हो प्लीज बताओ ना ? क्या बात है ?”

“नहीं कोई बात नहीं है” उसने अपनी मुंडी नीचे कर ली। मुझे लगा कि वो अभी रो देगी।

“सिमरन आज टेनिस खेलने का मूड नहीं है यार चलो घर ही चलते हैं ?”

“नहीं मैं उस नरक में नहीं जाउंगी ?”

“अरे क्या बात हो गई ? तुम ठीक तो हो ना ?”

“कोई मुझे प्यार नहीं करता ना मॉम ना पापा। दोनों छोटी छोटी बातों पर झगड़ते रहते हैं !”

“ओह।” मैं क्या बोलता।

“ओके अगर तुम कहो तो मेरे घर पर चलें ? वहीं पर चल कर पढ़ लेते हैं। अगले हफ्ते टेस्ट होने वाले हैं। क्या ख़याल है ?”

मुझे लगा था सिमरन ना कर देगी। पर उसने हाँ में अपनी मुंडी हाँ में हिला दी।

मैंने मोटरसाइकिल चालू करने की कोशिश की। वो तो फुसफुसा कर रह गई। सामने एक कुत्ता और एक कुतिया खड़े थे। अचानक कुत्ते ने कुतिया की पीठ पर अपने पंजे रखे और अपनी कमर हिलाने लगा। सिमरन एक तक उन्हें देखे जा रही थी। अब कुतिया जरा सा हिली और कुत्ते महाराज नीचे फिसल गए और वो आपस में जुड़ गए। मेरे लिए तो यह बड़ी उलझन वाली स्थिति थी। सिमरन ने मेरी ओर देखा। मैंने इस तरह की एक्टिंग की जैसे मैंने तो कुछ देखा ही नहीं। शुक्र है मोटरसाइकिल स्टार्ट हो गया। हम जल्दी से बैठ कर अपने घर ब्रह्मपोल गेट की ओर चल पड़े।

घर पर कोई नहीं था। बापू काम पर गए थे और शांति बाई तो वैसे भी शाम को आती थी। हम दोनों ताला खोल कर अन्दर आ गए। सुम्मी सोफे पर बैठ गई। मैंने उसे पानी पीने का पूछा तो वो बोली

“प्रेम वो कुत्ता कुतिया देखो कैसे जुड़े थे ?”

“ओह… हाँ ?”

मुझे हैरानी हो रही थी सिमरन इस बात को दुबारा उठाएगी।

“पर ऐसा क्यों ?”

“ओह… वो आपस में प्रेम कर रहे थे बुद्धू ?”

“ये भला कौन सा प्रेम हुआ ?”

“ओह… छोड़ो ना इन बातों को ?”

आप मेरी हालत का अंदाज़ा लगा सकते हैं। अकेली और जवान लड़की एक जवान लड़के के साथ इस तरह की बात कर रही थी ? अपने आप पर कैसे संयम रखा जा सकता था। सच पूछ तो पहले तो मैं किसी भी तरह बस इसके खूबसूरत जिस्म को पा लेना चाहता था पर इन 10-15 दिनों में तो मुझे लगने लगा था कि मैं इसे प्रेम करने लगा हूँ। मैं अपनी प्रियतमा को भला इस तरह कैसे बर्बाद कर सकता था। सिमरन अभी बच्ची है, नादान है उसे जमाने के दस्तूर का नहीं पता। वो तो प्रेम और सेक्स को महज एक खेल समझती है। एक कुंवारी लड़की के साथ शादी से पहले यौन सम्बन्ध सरासर गलत हैं। मैं सिमरन से प्रेम करता हूँ भला मैं अपनी प्रियतमा के भविष्य से खिलवाड़ कैसे कर सकता था। हमने तो आपस में प्रेम की कसमें खाई हैं।

मैं अभी सोच ही रहा था कि सिमरन ने चुप्पी तोड़ी “प्रेम ! शु तमने पण आ तीन रात थी ऊँघ नथी आवती?” (प्रेम क्या तुम्हें भी इन तीन रातों में नींद नहीं आई?)

अजीब सवाल था ? यह तो सौ फ़ीसदी सच था पर उसे कैसे पता ?

“तुम कैसे जानती हो ?” मैंने पूछा।

“मारी बुध्धि घास खावा थोड़ी जाय छे?” (मेरी अक्ल घास चरने थोड़े ही जाती है ?) और वो हंसने लगी।

“सिमरन एक बात सच बताऊँ ?”

“हूँ …”

“मुझे भी इन तीन-चार रातों में नींद नहीं आई, बस तुम्हारे बारे में ही सोचता रहा हूँ।”

“क्या सोचते रहे मैं भी तो सुनूँ ?”

“ओहहो … सुम्मी मैं … मैं … ?”

“देखो तुम्हारी अक्ल फिर ?” वो कहते कहते रुक गई। उसकी तेज होती साँसें और आँखों में तैरते लाल डोरे मैं साफ़ देख रहा था।

“वो… वो..?”

“ओहहो … क्या मिमिया रहो हो बोलो ना ?” उसने मेरा हाथ अपने हाथ में ले लिया।

मेरी उत्तेजना के मारे जबान काँप रही थी। गला जैसे सूख रहा था। साँसें तेज होने लगी थी। मैंने आखिर कह ही दिया “सिमरन मैं तुम्हें प्रेम करने लगा हूँ !”

“प्रेम, हूँ पण तमाने प्रेम करवा लागी छूं” (प्रेम मैं भी तुमसे प्रेम करने लगी हूँ)

और वो फिर मेरे गले से लिपट गई। उसने मेरे होंठों और गालों को चूमते हुए कहना चालू रखा “हूँ इच्छूं छूं के तमारा खोलामां ज मारा प्राण निकले” (मैं तो चाहती हूँ कि मेरी अंतिम साँसें भी तुम्हारी गोद में ही निकले)

मैंने उसे बाहों में भर लिया। उसके गुदाज बदन का वो पहला स्पर्श तो मुझे जैसे जन्नत में ही पहुंचा गया। उसने अपने जलते हुए होंठ मेरे होंठों पर रख दिए। आह… उन प्रेम रस में डूबे कांपते होंठों की लज्जत तो किसी फरिस्ते का ईमान भी खराब कर दे। मैंने भी कस कर उसका सिर अपने हाथों में पकड़ कर उन पंखुड़ियों को अपने जलते होंठों में भर लिया। वाह … क्या रसीले होंठ थे। उस लज्जत को तो मैं मरते दम तक नहीं भूल पाऊंगा। मेरे लिए ही क्यों शायद सिमरन के लिए भी किसी जवान लड़के का यह पहला चुम्बन ही था। आह… प्रेम का वो पहला चुम्बन तो जैसे हमारे प्रगाढ़ प्रेम का एक प्रतीक ही था।

पता नहीं कितनी देर हम एक दूसरे को चूमते रहे। मैं कभी अपनी जीभ उसके मुँह में डाल देता और कभी वो अपनी नर्म रसीली जीभ मेरे मुँह में डाल देती। इस अनोखे स्वाद से हम दोनों पहली बार परिचित हुए थे वर्ना तो बस किताबों और कहानियों में ही पढ़ा था। वो मुझ से इस कदर लिपटी थी जैसे कोई बेल किसी पेड़ से लिपटी हो या फिर कोई बल खाती नागिन किसी चन्दन के पेड़ से लिपटी हो। मेरे हाथ कभी उसकी पीठ सहलाते कभी उसके नितम्ब। ओह … उसके खरबूजे जैसे गोल गोल कसे हुए गुदाज नितम्ब तो जैसे कहर ही ढा रहे थे। उसके उरोज तो मेरे सीने से लगे जैसे पिस ही रहे थे। मेरा प्यारेलाल (लंड) तो किसी अड़ियल घोड़े की तरह हिनहिना रहा था। मेरे हाथ अब उसकी पीठ सहला रहे थे। कोई दस मिनट तो हमने ये चूसा चुसाई जरूर की होगी। फिर हम अपने होंठों पर जबान फेरते हुए अलग हुए।

सिमरन मेरी ओर देखे जा रही थी। उसकी साँसें तेज होने लगी थी। शरीर काँप सा रहा था। वो बोली “ओह.. प्रेम परे क्यों हट गए…?”

“नहीं सिमरन हमें ऐसा नहीं करना चाहिए ?”

“क्यों ?”

“ओह… अब … मैं तुम्हें कैसे समझाऊं मेरी प्रियतमा ?”

“इस में समझाने वाली क्या बात है हम दोनों जवान हैं और … और … मेरे प्रेमदेव ! मैं आज तुम्हें किसी बात के लिए मना नहीं करूँगी मेरे प्रियतम !”

“नहीं सिमरन मैं तुम से प्रेम करता हूँ और मैं तो मर कर भी भी तुम्हारे ख़्वाबों को हकीकत में बदलना चाहूँगा मेरी प्रियतमा !”

“पर प्रेम तो तभी पूर्ण होता है जब दो शरीर आपस में मिल जाते हैं ?”

“नहीं मेरी सिमरम ! झूठ और फरेब की बुनियाद पर मुहब्बत की इमारत कभी बुलंद नहीं होती। मैं अपनी प्रियतमा को इस तरह से नहीं पाना चाहता !”

“प्रेम हूँ साचु ज कहेती हटी ने? मने कोई प्रेम नथी करतु” (प्रेम मैं सच कहती थी ना ? मुझे कोई प्रेम नहीं करता ?) और सिमरन फिर रोने लगी।

“देखो सुम्मी मैं किसी भी तरह तुम्हारे अकेलेपन या नादानी का गलत फायदा नहीं उठाना चाहता। मैं तुम से प्रेम करता हूँ। प्रेम तो दो हृदयों का मिलन होता है जरुरी नहीं कि शरीर भी मिलें। प्रेम और वासना में बहुत झीना पर्दा होता है। हाँ यह बात मैं भी जानता हूँ कि हर प्रेम या प्यार का अंत तो बस शारीरिक मिलन ही होता है पर मैं अपने प्रेम को इस तरह नहीं पाना चाहता। तुम मेरी दुल्हन बनोगी और मैं सुहागरात में तुम्हें पूर्ण रूप से अपनी बनाऊंगा। उस समय हम दोनों एक दूसरे में समा कर अपना अलग अस्तित्व मिटा देंगे मेरी प्रियतमा!”

“ओहहो… चलो मैं उन संबंधों की बात नहीं कर रही पर क्या हम आपस में प्रेम भी नहीं कर सकते ? क्या एक दूसरे को चूम भी नहीं सकते केवल आज के लिए ही ?”

मैंने हैरानी से उसकी ओर देखा। आज इस लड़की को क्या हुआ जा रहा है ?

“प्रेम ! हूँ जानू छुन के आ समय फरीथी पाछो आव्वानो नथी। हूँ मारा प्रेम ने फरी मेलवी शकीश नहीं।

मेहरबानी करी मने ताम्र बाजुओ मां एकवार समावी लो ने…?” (प्रेम मैं जानती हूँ ये पल दुबारा मुड़ कर नहीं आयेंगे। मैं अपने प्रेम को फिर नहीं पा सकूंगी। प्लीज मुझे अपनी बाहों में एक बार भर लो …?) उसकी आँखों से आंसू उमड़ रहे थे।

उस दिन उसने एक चुम्बन लेने से ही मुझे मना कर दिया था पर आज तो यह अपना सब कुछ लुटाने को तैयार है।

“प्रेम कल किसने देखा है। मैं नहीं चाहती कि मेरे जाने के बाद तुम मेरी याद में रोते रहो !”

“क्या मतलब ? तुम कहाँ जा रही हो ?” मैंने हैरानी से पूछा।

“ओह… प्रेम मैं अभी कुछ नहीं बता सकती … प्लीज”

मैंने उसे अपनी बाहों में भर लिया। वो तो जैसे कब का इस बात का इंतज़ार ही कर रही थी। वो कभी मेरे होंठ चूमती कभी गालों को चूम लेती। मैंने भी अब उसे अपनी बाहों में भर लिया और उसके रसीले होंठों को चूसने लगा। धीरे धीरे मेरे होंठ अपने आप उसके गले से होते उरोजों की घाटियों तक पहुँच गए। सिमरन ने मेरा सिर अपनी छाती से लगा कर भींच लिया। आह… उस गुदाज रस भरे उरोजों का स्पर्श पा कर मैं तो अपने होश ही जैसे खो बैठा। उसने अपना टॉप उतार फेंका। उसने नीचे ब्रा तो पहनी ही नहीं थी।

आह … टॉप उतारते समय उसकी कांख के बालों को देख कर तो मैं मर ही मिटा। उसके बगल से आती मादक महक से तो जैसे पूरा कमरा ही भर गया था। दो परिंदे जैसे कैद से आज़ाद हुए हो और ऐसे खड़े थे जैसे अभी उड़ जायेंगे। उसने झट से अपने हाथ उन पर रख लिए।

“ओह प्रेम ऐसे नहीं अन्दर चलो ना प्लीज ?”

“ओह हाँ…” मुझे अपनी अक्ल पर तरस आने लगा। ये छोटी छोटी बातें मेरे जेहन में क्यों नहीं आती। हम अभी तक हाल में सोफे पर ही बैठे थे।

मैंने उसे बाहों में भर कर गोद में उठा लिया। उसने भी अपनी नर्म नाज़ुक बाहें मेरे गले में डाल दी। उसकी आँखें तो जैसे किसी अनोखे उन्माद में डूबी जा रही थी। मैंने उसे अपने कमरे में ले आया और उसे पलंग पर लेटा सा दिया पर उसकी और मेरी पूरी कोशिश थी कि एक दूसरे से लिपटे ही रहें। अब तो अमृत कलश मेरे आँखों के ठीक सामने थे। आह… गोल गोल संतरे हों जैसे। एरोला कैरम के गोटी जितना बड़ा लाल सुर्ख। इन घुंडियों को निप्पल्स तो नहीं कहा जा सकता बस चने के दाने के मानिंद एक दम गुलाबी रंगत लिए हुए। मैंने जैसे ही उनको छुआ तो सिमरन की एक हलकी सी सीत्कार निकल गई। मैं अपने आप को भला कैसे रोक पता। मैंने अपने होंठ उन पर लगा दिए। सिमरन ने मेरा सिर अपने हाथों में पकड़ कर अपनी छाती की ओर दबा दिया तो मैंने एक उरोज अपने मुँह में भर लिया… आह रसीले आम की तरह लगभग आधा उरोज मेरे मुँह में समा गया। सिमरन की तो जैसे किलकारी ही निकल गई। मैंने एक उरोज को चूसना और दूसरे उरोज को हाथ से दबाना चालू कर दिया।

“ओह……..प्रेम चूसने हजी वधारे ….जोर थी चूसने.. आःह मारा प्रेम …….ओईईईईइ……मारी …..मां …. ओह……… आईईईई.” (ओह … प्रेम चूसो और ..और जोर से चूसो। आह…. मारा..प्रेम… ओईई … मारी… माँ…. ओह… आईईईई ….)

मेरे लिए तो यह स्वर्ग के आनंद से कम नहीं था। अब मैंने दूसरे उरोज को अपने मुँह में भर लिया। वो कभी मेरी पीठ सहलाती कभी मेरे सिर के बालों को कस कर पकड़ लेती। मैं उसकी बढ़ती उत्तेजना को अच्छी तरह महसूस कर रहा था। थोड़ी देर उरोज चूसने के बाद मैंने फिर उसके होंठों को चूसना शुरू कर दिया। सिमरन ने भी मुझे कस कर अपनी बाहों में जकड़े रखा। वो तो मुझसे ज्यादा उतावली लग रही थी। मैंने उसके होंठ, कपोल, गला, कान, नाक, उरोजों के बीच की घाटी कोई अंग नहीं छोड़ा जिसे ना चूमा हो। वो तो बस सीत्कार पर सीत्कार किये जा रही थी। अब मैंने उसके पेट और नाभि को चूमना शुरू कर दिया। हम दोनों ने ही महसूस किया कि स्कर्ट कुछ अड़चन डाल रही है तो सिमरन ने एक झटके में अपनी स्कर्ट निकाल फेंकी।

आह … अब तो वो मात्र एक पतली और छोटी सी पैंटी में थी। मैंने उसकी पैंटी के सिरे तक अपनी जीभ से उसे चाटा। आह… उसकी नाभि के नीचे थोड़ा सा उभरा हुआ पेडू तो किसी पर जैसे बिजलियाँ ही गिरा दे। और उसके नीचे पैंटी में फंसी उसकी बुर के दोनों पपोटे तो रक्त संचार बढ़ने से फूल से गए थे। उनके बीच की खाई तो दो इंच के व्यास में नीम गीली थी। मैंने उसके पेडू को चूम लिया। एक अनोखे रोमांच से उसका सारा शरीर कांपने लगा था। मेरे दोनों हाथ उसके उरोजों को दबा और सहला रहे थे। उत्तेजना के कारण वो भी कड़क हो गए थे। उसकी घुन्डियाँ तो इतनी सख्त हो चली थी जैसे की कोई मूंगफली का दाना ही हो। उसने मेरा सिर अपनी छाती से लगाकर कस लिया और अपने पैर जोर-जोर से पटकने लगी। कई बार अधिक उत्तेजना में ऐसा ही होता है।

और फिर वो हो गया जिसका मैं पिछले दो महीने से नहीं जैसे सदियों से इंतज़ार कर रहा था। सिमरन ने पहली बार मेरे प्यारेलाल को पैंट के ऊपर से पकड़ लिया और उसे सहलाने लगी। वो तो ऐसे तना था जैसे कि अभी पैंट को ही फाड़ कर बाहर आ जाएगा। अचानक सिमरन बोली “अरे….. तू पण तरी पैंट तो काढ” (ओहहो … तुम भी तो अपनी पैंट उतारो ना ?)

“ओह … हाँ …” और मैंने भी अपनी पैंट शर्ट और बनियान उतार फेंकी। काम का वेग मनुष्य का विवेक हर लेता है। हम दोनों ही अपनी सारी बातें उस उत्तेजना में भुला बैठे थे। अब मेरे शरीर पर भी मात्र एक अंडरवीयर के कुछ नहीं बचा था। मैंने फिर एक बार उसे अपनी बाहों में भर कर चूम लिया। सिमरन बस मेरा लंड छोड़ने का नाम ही नहीं ले रही थी। अंडरवीयर के ऊपर से ही कभी उसे मसलती कभी उसे हिलाती। मैं तो मस्त हुआ उसे चूमता चाटता ही रहा।

मेरी प्यारी पाठिकाओं ! अब उस पैंटी नाम की हलकी सी दीवार का क्या काम बचा था। आह… आगे से तो वो पूरी भीगी हुई थी। पैंटी उसकी फूली हुई फांकों के बीच में धंसी हुई सी थी। दोनों पपोटे तो जैसे फूल कर पकोड़े से हो गए थे। मैंने धीरे से उसकी पैंटी के हुक खोल दिए और उसे नीचे खिसकाना शुरू किया। सिमरन की एक कामुक सीत्कार निकल गई।

अब तो बस दिल्ली ही लुट जाने को तैयार थी। मैंने धीरे धीरे उसकी पैंटी को नीचे खिसकाना शुरू कर दिया। उसने अपनी जांघें कस कर भींच ली। पहले हलके हलके रोयें से नज़र आये। आह… रेशमी मखमली घुंघराले बालों का झुरमुट तो किसी के दिल की धड़कने ही बंद कर दे। मैं तो फटी आँखों से उस नज़ारे को देखता ही रह गया। सच कहूँ तो मैंने जिन्दगी में आज पहली बार किसी कमसिन लड़की की बुर देखी थी। हाँ बचपन में जरूर अपने साथ खेलने वाले लड़कों और लड़कियों की नुन्नी और पिक्की देखी थी। पर वो बचपन की बातें थी उस समय इन सब चीज़ो का मतलब कौन जानता था। बस सू-सू करने वाला खेल ही समझते थे कि हम सभी में से किसके सू-सू की धार ज्यादा दूर तक जाती है।

ओह…. मैं उसकी बुर की बात कर रहा था। हलके रोयों के एक इंच नीचे स्वर्ग का द्वार बना था जिसके लिए नारद और विश्वामित्र जैसे ऋषियों का ईमान डोल गया था वो मंजर मेरी आखों के सामने था। तिकोने आकार की छोटी सी बुर जैसे कोई फूली हुई पाँव रोटी हो। दो गहरे लखारी (सुर्ख लाल) रंग की पतली सी लकीरें और चीरा केवल 3 इंच का। मोटे मोटे पपोटे और उनके दोनों तरफ हल्के-हल्के रोयें।

मेरे मुँह से बरबस निकल पड़ा “वाह … अद्भुत… अद्वितीय…”

मिर्ज़ा गालिब अगर इस कमसिन बुर को देख लेता तो अपनी शायरी भूल जाता और कहता कि अगर इस धरती पर कहीं जन्नत है तो बस यहीं है… यहीं है।

ऐसी स्थिति में तो किसी नामर्द का लौड़ा भी उठ खड़ा हो मेरा तो 120 डिग्री पर तना था। मैंने उसकी बुर की मोटी मोटी फांकों पर अपने जलते होंठ रख दिए। एक मादक सी महक मेरे नथुनों में भर गई। खट्टी मीठी नमकीन सी सोंधी सोंधी खुशबू। मैंने अपने होंठों से उन गीली फांकों को चूम लिया। उसके साथ ही सिमरन की किलकारी पूरे कमरे में गूँज गई :

“आईईईईई ……………………”

उसका पूरा शरीर रोमांच और उत्तेजना से कांपने लगा था। उसने मेरा सिर पकड़ कर अपनी बुर की ओर दबा दिया। जैसे ही मैंने उसकी बुर पर अपनी जीभ फिराई उसने तेजी के साथ अपना एक हाथ नीचे किया और अपनी नाम मात्र की जाँघों में अटकी पैंटी को निकाल फेंका। और अब अपने आप उसकी नर्म नाज़ुक जांघें चौड़ी होती चली गई जैसे अली बाबा के खुल जा सिमसिम कहने पर उस गुफा के कपाट खुल जाया करते थे।

आह… वो रक्तिम चीरा थोड़ा सा खुल गया और उसके अन्दर का गुलाबी रंग झलकने लगा। मैंने अपना सिर थोड़ा सा ऊपर उठाया और दोनों हाथों से उसकी फांकें चौड़ी कर दी। आह….. गुलाबी रंगत लिए उसकी पूरी बुर ही गीली हो रही थी उस में तो जैसे कामरस की बाढ़ ही आ गई थी। एक छोटी सी एक छोटी सी चुकंदर जिसे किसी ने बीच से चीर दिया हो। पतली पतली बाल जितनी बारीक हलके नीले से रंग की रक्त शिराएँ। सबसे ऊपर एक चने के दाने जितनी मदन-मणि (भगनासा) और उसके कोई 1.5 इंच नीचे बुर का छोटा सा सिकुड़ा हुआ छेद। उसी छेद के अन्दर सू-सू वाला छेद। आह सू-सू वाला छेद तो बस इतना छोटा था कि जैसे टुथपिक भी बड़ी बड़ी मुश्किल से अन्दर जा पाए। शायद इसी लिए कुंवारी लड़कियों की बुर से मूत की इतनी पतली धार निकलती है और उसका संगीत इतना मधुर और कर्णप्रिय होता है।

मैंने अपनी जीभ जैसे ही उस पर लगाई सिमरन तो उछल ही पड़ी जैसे। उसने मेरे सिर के बाल इस कदर नोचे कि मुझे लगा बालों का गुच्छा तो जरूर उसके हाथों में ही आ गया होगा। वह क्या मीठा खट्टा नारियल पानी जैसा स्वाद और महक थी उस कामरस में। मैं तो चटखारे ही लगने लगा था। मैंने उसकी बुर को पहले चाटा फिर चूसना चालू कर दिया। जैसे ही मैं अपनी जीभ ऊपर से नीचे और नीचे से ऊपर करता वो तो सीत्कार पर सीत्कार करने लगी। मैंने अब उसके दाने को अपनी जीभ से टटोला। वो तो अब फूल कर मटर के दाने जितना बड़ा हो गया था।

मैंने अपने दांतों के बीच उसे हल्का सा दबा दिया। उसके साथ ही सिमरम की एक किलकारी फिर निकल गई। उसकी बुर ने तो कामरस की जैसे बौछारें ही चालू कर दी। इतनी छोटी उम्र में बुर से इतना कामरस नहीं निकलता पर अधिक उत्तेजना में कई बार ऐसा हो जाता है। यही हाल सिमरन का था। उसने अपने पैर मेरी गरदन के दोनों ओर लपेट लिए और मेरा सिर कस कर पकड़ लिया। अब मैंने उसके नितम्ब भी सहलाने शुरू कर दिए। वाह क्या गोल गोल कसे हुए नितम्ब थे। चूतड़ों की गहराई महसूस करके तो मेरा रोम रोम पुलकित हो गया था। मैंने सुना था कि गांड मरवाने वाली लड़कियों और औरतों के नितम्ब बहुत खूबसूरत हो जाते हैं पर सिमरन के तो शायद टेनिस खेलने की वजह से ही हुए होंगे। जिस लड़की ने कभी ठीक से अपनी अंगुली भी अपनी बुर में नहीं डाली, गांड मरवाने का तो प्रश्न ही पैदा नहीं होता।

मेरी चुस्की चालू थी। मैं तो उस रस का एक एक कतरा पी जाना चाहता था। उसका शरीर थोड़ा सा अकड़ा और उसके मुँह से गुर्र… रररर….. गुं … नन्न … उईईइ….. की आवाजें निकलने लगी। “ओह…प्रेम…मने कई …थई छे….कई कर ने..?” (प्रेम मुझे कुछ हो रहा है… कुछ करो ना) ऊईईईइ…. आऐईईईईइ … मम्म्मीईइ … आह……” और उसके साथ ही उसकी जकड़न कुछ बढ़ने लगी और साँसें तेज होती गई। उसने दो तीन झटके से खाए और फिर मेरा मुँह किसी रसीले खट्टे मीठे रस से भर गया। शायद उसकी बुर ने पानी छोड़ दिया था। आप सोच रहे होंगे यार इस कमसिन बुर को देख और चूस कर अपने आप पर संयम कैसे रख पाए ? ओह … मैंने बताया था ना कि मैंने आज सुबह सुबह दो बार मुट्ठ मारी थी नहीं तो मैं अब तक तो अंडरवीयर में ही घीया हो जाता।

अब पलंग के ऊपर बेजोड़ हुस्न की मल्लिका का अछूता और कमसिन बदन मेरे सामने बिखरा था। वो अपनी आँखें बंद किये चित्त लेटी थी। उसका कुंवारा बदन दिन की हलकी रोशनी में चमक रहा था। मैं तो बस मुँह बाए उसे देखता ही रह गया। उसके गुलाबी होंठ, तनी हुई गोल गोल चुंचियां, सपाट चिकना पेट, पेट के बीच गहरी नाभि, पतली कमर, उभरा हुआ सा पेडू और उसके नीचे दो पुष्ट जंघाओं के बीच फसी पाँव रोटी की तरह फूली छोटी सी बुर जिसके ऊपर छोटे छोटे घुंघराले काले रेशमी रोयें। मैं तो टकटकी लगाये देखता ही रह गया। मैंने उसकी बुर को चाटने के चक्कर में पहले इस हुस्न की मल्लिका के नंगे बदन को ध्यान से देखना ही भूल गया था। अचनाक उसने आँखें खोली तो उसे अपने और मेरे नंगे जिस्म को देखा तो मारे शर्म के उसने अपनी आँखों पर अपने हाथ रख लिए।

माफ़ कीजिये, मैं एक शेर सुनाने से अपने आप को नहीं रोक पा रहा हूँ ……..

क्या यही है शर्म तेरे भोलेपन के मैं निसार

मुँह पे हाथ दोनों हाथ रख लेने से पर्दा हो गया ?

इस्स्सस्स्स्सस्स्स …………… मैं तो उसकी इस अदा पर मर ही मिटा। मैंने भी अपना अंडरवीयर निकाल फेंका और मेरा प्यारेलाल तो किसी बन्दूक की नली की तरह निशाना लगाने को बस घोड़ा दबाने का इंतज़ार ही कर रहा था।

“ओह मेरी सिमसिम तुम बहुत खूबसूरत हो”

“मारा कपडा आपी देव ने ….मने शर्म आवे छे।” (मेरे कपड़े दो ओह … मुझे शर्म आ रही है) और वह अपनी बुर को एक हाथ से ढकने की नाकाम कोशिश करने लगी और एक ओर करवट लेते हुए पेट के बल ओंधी सी हो गई। उसके गोल गोल खरबूजे जैसे नितम्बों के बीच की खाई तो ऐसी थी जैसे किसी सूखी नदी की तलहटी हो। आह……. समंदर की लहरों जैसे बल खाता उसका शफ्फाक बदन किसी जाहिद को भी अपनी तौबा तुड़ाने को मजबूर कर दे। कोई शायर अपनी शायरी भूल कर ग़ज़ल लिखना शुरू कर दे। परिंदे अपनी परवाज़ ही भूल जाएँ मेरी क्या बिसात थी भला।

अब देर करना ठीक नहीं था। मैंने उसे सीधा करके बाहों में भर लिया। और उसने भी शर्म छुपाने के लिए मुझे अपनी बाहों में जकड़ लिया और मेरे होंठ चूमने लगी। वो चित्त लेटी थी और मैं उसके ऊपर लगभग आधा लेटा था। मेरा एक हाथ उसकी गर्दन के नीचे था और दूसरे हाथ से मैं उसके नितम्ब और कमर सहला रहा था। मेरा एक पैर उसकी दोनों जाँघों के बीच में था। इस कारण वो चाह कर भी अपनी जांघें नहीं भींच सकती थी। अब तो खुल जा सिमसिम की तरह उसका सारा खजाना ही मेरे सामने खुला पड़ा था।

मैंने उसके वक्ष, पेट, कमर, नितम्बों और जाँघों पर हाथ फिराना चालू कर दिया। उसकी मीठी सीत्कार फिर चालू हो गई। उसकी कामुक सीत्कारें निकलने लगी थी।

मैंने धीरे से अपने दाहिने हाथ की अँगुलियों से उसकी बुर को टटोला और धीरे से उसके चीरे में ऊपर से नीचे तक अंगुली फिराई। उसकी बुर तो बेतहाशा पानी छोड़ छोड़ कर शहद की कुप्पी ही बनी थी। मैंने उसकी फांकें मसलनी चालू कर दी और फिर अपनी चिमटी में उसकी मदनमणि को पकड़ कर दबा दिया। मेरे ऐसा करने से उसकी किलकारी निकल गई। अब मैंने उसकी बुर के गीले छेद को अपनी अंगुली से टटोला और धीरे से अंगुली को थोड़ा सा अन्दर डाल दिया। मेरी अंगुली ने उसकी बुर के कुंवारेपन को महसूस कर लिया था। उसकी बुर का कसाव इतना था कि मुझे तो ऐसा लगा जैसे किसी बच्चे ने अपने मुँह में मेरी अंगुली ले ली हो और उसे जोर से चूस लिया हो। मैंने 2-3 बार अपनी अंगुली उसकी बुर के छेद में अन्दर बाहर की। मेरी पूरी अंगुली उसके कामरस से भीग गई। मैं उस रस को एक बार फिर चाट लेना चाहता था। जैसे ही मैंने अंगुली बाहर निकाली सिमरन ने एक हाथ से मेरा लंड पकड़ लिया और उसे मसलने लगी। कभी वो उसे दबाती कभी हिलाती और कभी उसे कस कर अपनी बुर की ओर खींचती। मेरा लंड तो ठुमके लगा लगा कर ऐसे बावला हुआ जा रहा था कि अगर अभी अन्दर नहीं किया तो उसकी नसें ही फट जायेगी।

मेरा लंड उसकी बुर को स्पर्श कर रह था उसने उसे पकड़ कर अपनी बुर से रगड़ना चालू कर दिया। बुर से बहते कामरस से मेरे लंड का सुपाड़ा गीला हो गया। मेरा एक हाथ कभी उसके नितम्बों पर और कभी उसकी जाँघों पर फिर रहा था। वो सीत्कार पर सीत्कार किये जा रही थी। लोहा पूरी तरह गर्म हो चुका था अब हथोड़ा मारने का काम बाकी बचा था। मैं थोड़ा डर भी रहा था पर अब मैंने अपना लंड उसकी बुर में डालने का फैसला कर लिया।

उसका शरीर उत्तेजना के मारे अकड़ने लगा था और साँसें तेज होने लगी थी। मेरा दिल भी बुरी तरह धड़क रहा था। उसने अस्फुट शब्दों में कहा “ओह…प्रेम…मने कई …थई छे….कई कर ने..?” (ओह … प्रेम … मुझे कुछ … हो रहा है… कुछ करो ना ?)

“देखो मेरी सिमरन…. मेरी सिमसिम अब हम उस मुकाम पर पहुँच गये हैं जिसे यौन संगम कहते हैं और … और …”

“ओह…हवे शायरोंवाली वातो छोडो आने ए….आह..ओईईइ….आआईई…..” (ओह … अब शायरों वाली बातें छोड़ो और अ … आह… उईई ………. आईई ……) उसने मेरे होंठों को जोर से काट लिया।

मैंने अपने हाथों से उसकी बुर की फांकों को खोला और अपने लंड को उसके गुलाबी और रस भरे छेद पर लगा दिया। अब मैंने उसे अपनी बाहों में भर लिया और हल्का सा एक धक्का लगाया। मेरा सुपाड़ा उसके छेद को चौड़ा करता हुआ अन्दर सरकने लगा उसकी बुर की फांकें ऐसे चौड़ी होती गई जैसे अलीबाबा के खुल जा सिमसिम कहते ही उस बंद गुफा का दरवाजा खुल जाया करता था। वह थोड़ी सी कुनमुनाई। उसे जरूर दर्द अनुभव हो रहा होगा।

अब देर करना ठीक नहीं था मैं एक जोर का धक्का लगा दिया और उसके साथ ही मेरा लंड पांच इंच तक उसकी बुर में एक गच्च की आवाज के साथ समा गया। इसके साथ ही उसके मुँह से एक दर्द भरी चीख सी निकल गई। मुझे लगा कुछ गर्म सा द्रव्य मेरे लंड के चारों ओर लग गया है और कुछ बाहर भी आ रहा है। शायद उसकी कौमार्य झिल्ली फट गई थी और उसके फटने से निकला खून था यह तो।

वो दर्द के मारे छटपटाने लगी थी पर मेरी बाहों में इस कदर फँसी थी जैसे कोई चिड़िया किसी बाज़ के पंजों में फसी फड़फड़ा रही हो। उसकी आँखों में आंसू निकल कर बहने लगे।

“आ ईईईइईई मम्मी … आईईईइ…. मरी गई…ओह……..बहार काढने………..” (आ ईईईइईई मम्मी … आईईईइ…. मर गई… ओह… बाहर निकालो ओ ……….) उसने बेतहा सा मेरी पीठ पर मुक्के लगाने चालू कर दिए और मुझे परे धकेलने की नाकाम कोशिश करने लगी।

“ओह सॉरी मेरी रानी मेरी सुम्मी बस बस … जो होना था हो गया। प्लीज चुप करो प्लीज”

“तू तो एकदम कसाई जेवो छे, आवी रीते तो कोई धक्को लगावतु हसे कई?” (तुम पूरे कसाई हो भला ऐसा भी कोई धक्का लगाता है ?)

“ब … ब … सॉरी … मेरी सिमसिम प्लीज मुझे माफ़ कर दो प्लीज ?” मैंने उसके होंठों को चूमते हुए कहा और फिर उसके गालों पर बहते आंसूओं को अपनी जीभ से चाट लिया। उन आंसुओं और उसकी बुर से निकले काम रस का स्वाद एक जैसा ही तो था बस खुशबू का फर्क था।

सिमरन अब भी सुबक रही थी। पर ना तो वो हिली और ना ही मैंने अपनी बाहों की जकड़न को ढीला किया। लंड उसकी कसी बुर में समाया रहा। वाह … क्या कसाव था। ओह जैसे किसी पतली सी नाली में कोई मोटा सा बांस ठोक दिया हो। कुछ देर मैं ऐसे ही उसके ऊपर पड़ा उसे चूमता रहा। इस से उसे थोड़ी राहत मिली। उसके आंसू अब थम गए थे वह अब सामान्य होने लगी थी।

“प्रेम हवे बाजु पर हटी जा, मने दुखे छे अने बले पण छे………ओह……..? ओईईईईईईईइ…………..?”

(प्रेम अब परे हट जाओ मुझे दर्द हो रहा है और जलन भी हो रही है… ओह … ? ओईईई ……………….)

“देखो सिमरन जो होना था हो गया अब तो बस मज़ा ही बाकी है प्लीज बस दो मिनट रुक जाओ ना आह…”

मैंने अपने लंड को जरा सा बाहर निकला तो मेरे लंड ने ठुमका लगा दिया। इसके साथ ही सिमरन की बुर ने भी संकोचन किया। बुर और लंड के संगम में हमारी किसी स्वीकृति की कहाँ आवश्यकता रह गई थी।

और फिर उसने मुझे इस कदर अपनी बाहों में जकड़ा की मैं तो निहाल ही हो गया। अब मैंने हौले-हौले धक्के लगाने शुरू कर दिए थे। सिमरन भी कभी कभी नीचे से अपने चूतड़ उछालती तो एक फच की आवाज़ निकलती और हम दोनों ही उस मधुर संगीत
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07-04-2017, 12:46 PM,
#97
RE: प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ
हाय मेरी शुकू शू


पिछले हफ्ते मुझे भोपाल से आगरा होते भरतपुर लौटना था। मेरी सीट का नंबर ए-14 था। खिड़की के साथ वाली सीट का नंबर 13 था। यह 13 का आंकड़ा मुझे बड़ा चुभता है। आप तो जानते ही हैं 13 तारीख को मेरी मिक्की हमें छोड़ कर इस दुनिया से चली गई थी। मैं अभी उस नंबर को देख ही रहा था कि इतने में एक 18-19 साल की लड़की भागती हुई सी आई और उस 13 नंबर वाली सीट पर आकर बैठ गई। उसके बदन से आती पसीने और जवानी की मादक महक से मैं तो अन्दर तक सराबोर हो गया। उसे झांसी तक जाना था। उसने कानों में सोने की छोटी छोटी बालियाँ और सर पर काली टोपी पहन रखी थी। मुँह में चुइंगम चबाती हुई तो यह मेरी सिमरन या मिक्की जैसी ही लग रही थी। (आपको “काली टोपी लाल रुमाल” वाली सिमरन और “तीन चुम्बन” वाली मिक्की याद है ना) कद लगभग 5’ 2″ होगा। रंग थोड़ा सांवला था पर गोल मटोल चेहरा अगर थोड़ा गोरा होता या आँखें बिल्लोरी होती तो यह सिमरन ही लगती। जीन-पेंट और टी-शर्ट पहने छोटे छोटे बालों की पीछे लटकती चोटी तो बरबस मुझे उस पर मर मिटने को ही कह रही थी।

उसने शायद जल्दबाजी में गाड़ी पकड़ी थी गर्मी भी थी और दौड़कर आने से उसे पसीने भी आ रहे थे इसलिए उसने अपनी टी शर्ट के बटन खोल दिए और उसे आगे से पकड़ कर रुमाल से हवा सी करने लगी। अन्दर गुलाबी रंग की ब्रा में कसे उसके मोटे मोटे गोल उरोज देख कर तो मुझे लगने लगा मैं बेहोश ही हो जाऊँगा। उसकी तेज साँसों के साथ उसके उठते गिरते मोटे मोटे उरोज तो ऐसे लग रहे थे जैसे बारजे (छज्जे) से सुबह की मीठी गुनगुनी धुप उतर रही हो। सबसे कमाल की बात तो उसके भरे हुए गुदाज़ नितम्ब थे। इस उम्र में इतने कसे और मांसल नितम्ब और वक्ष तो बुंदेलखंड की औरतों के या फिर खजुराहो की मूर्तियों के होते हैं।

झाँसी तक का सफ़र बड़े इत्मीनान से कट गया। रास्ते में उसने मुझसे कोई ज्यादा बातचीत नहीं की वो तो बस अपने लैपटॉप में ही उलझी रही। उसकी पतली पतली लम्बी अंगुलियाँ देख कर तो मेरा मन बरबस करने लगा कि अगर यह अपने हाथों में मेरा लंड पकड़ कर ऐसी ही अपनी अँगुलियों से सहलाए तो मैं निहाल ही हो जाऊं। वह झाँसी स्टेशन पर उतर गई। जाते समय उसके मोटे मोटे नितम्बों को लचकता देख कर मैं तो बस ठंडी आहें भरता ही रह गया।

मैं अपने प्यारे लाल को शांत करने के लिए बाथरूम जाने ही वाला था कि एक 25-26 साल का शख्स उस सीट पर आकर बैठा गया। उसने नमस्ते किया। फिर बातों बातों में उसने बताया कि वह भी झांसी का रहने वाला है और आगरा किसी साक्षात्कार (इंटरव्यू) के लिए जा रहा है। थोड़ी देर में वो खुल गया और उसने बताया कि वो सेक्सी कहानियों का बड़ा शौक़ीन है। उसने भी अपनी 18 साल की साली की चुदाई की है और वो इस किस्से को कहानी के रूप में लिख कर प्रकाशित करवाना चाहता है पर उसे नहीं पता कि कैसे लिखे और कैसे उसे प्रकाशित करवाया जाए।

मैं झांसी और बुन्देलखंड के बारे में थोड़ा जानने को उत्सुक था। कारण आप जानते ही हैं। उस लौंडिया को देखकर मेरी उत्सुकता बढ़ गई थी। उसने बताया कि वैसे तो बुन्देलखंड और झाँसी महारानी लक्ष्मी बाई के लिए प्रसिद्ध है लेकिन बुन्देलखंड यहाँ की एतिहासिक धरोहरों का केंद्र भी है। यहाँ आपको लड़कियों की ज्यादा लम्बाई तो नहीं मिलेगी पर उनके नितम्ब और वक्ष तो आँखों को ठंडक और ताजगी देने वाले होते हैं। रंग तो इतना गोरा नहीं होता, थोड़ा सांवला होता है पर नैन नक्श बहुत कटीले होते हैं। इसलिए तो इन्हें काला जादू कहा जाता है। आपने खजुराहो की मूतियाँ के रूप में इनका नमूना तो जरुर देखा होगा। कहते हैं एशिया में सबसे खूबसूरत औरतें या तो अफगान में होती हैं या फिर बंगाल और बुंदेलखंड की। चुदाई की बड़ी शौक़ीन होती हैं और छोटी उम्र में ही चुदना चालू कर देती हैं।

पहले तो अक्सर लड़कियों की शादी 15-16 साल में हो जाती थी पर आजकल 18 में कर देते हैं। यहाँ के लड़के भी कद-काठी में तो छोटे होते हैं पर होते गठीले और चुस्त हैं। चुदाई ठीक से करते हैं। चूंकि लड़कियों की शादी जल्दी हो जाती है तो 5-7 साल की चुदाई में 3-4 बच्चे पैदा करके वो ढीली पड़ने लगती हैं तो मर्द दूसरी औरतों के पीछे और औरतें मर्दों के पीछे लगी ही रहती हैं। जीजा-साली और देवर-भाभी में अकसर शारीरिक सम्बन्ध बन जाते हैं इसे आमतौर पर इतना बुरा नहीं माना जाता।

हालांकि मैंने अपना असली परिचय नहीं दिया पर उसे यह आश्वासन जरुर दिया कि तुम मुझे अपना किस्सा बता दो मैं उसे कहानी के रूप में लिख कर प्रकाशित करवा दूंगा। उसने जो बताया आप भी सुन लें :

मेरा नाम दीपक राय कुशवाहा है। अपने माँ बाप और इकलौती पत्नी ज्योति के साथ झाँसी में रहता हूँ। झांसी के एक साधारण परिवार का रहने वाला हूँ इसलिए जो भी ही बोलूँगा सच बोलूँगा और लंड चूत और चुदाई के सिवा कुछ नहीं बोलूँगा। उम्र 25 साल है। मेरा क़द 5’ 6″ है, गठीला बदन और लंड 6″ के आस पास है। मैं दूसरे लोगों की तरह 8-10 इंच के लंड की डींग नहीं मारूंगा। मेरी शादी दो साल पहले ज्योति के साथ हुई है। सालियों के मामले में मैं बड़ा भाग्यशाली हूँ। 3 तो असली हैं बाकी 6-7 आस पड़ोस की भी हैं। मेरी पत्नी से छोटी शुकू शू (18) है उस से छोटी पुष्पा (16) और फिर रचना (14) वाह…। क्या सही अनुपात और उचित दूरी पर इतनी खूबसूरत फूलों की क्यारियाँ लगाई हैं। लोग परमात्मा का धन्यवाद करते हैं मैं अपनी सास और ससुर का करता हूँ जिन्होंने इतनी मेहनत करके इतने खूबसूरत फूल बूटे लगाए हैं जिनकी खुशबू से सारा घर और आस पड़ोस महकता है।

खैर अब मुद्दे की बात पर आता हूँ। मैं अपनी 3 सालियों की चर्चा कर रहा था। शुकू शू मेरी पत्नी से 2 साल छोटी है। उसके चूतड़ बहुत मस्त और कटाव भरे हैं। उसकी मांसल जांघें और गोल गोल मुलायम भरे हुए चूतड़ देख कर तो मेरे लिए अपने आप पर संयम रखना बड़ा कठिन हो जाता था। चोली और लहंगे में लिपटा उसका गुदाज़ बदन देख कर तो मेरे तन बदन में आग सी लग जाती थी और मेरा मन करता कि उसे अभी दबोच लूं और उसकी कहर ढाती जवानी के रस की एक एक बूँद पी जाऊं। बोबे तो बस दूध के भरे थन हैं जैसे।

किसी ने सच कहा है बीवी और मोबाइल में एक समानता है कि “थोड़े दिन बाद लगता है कि अगर थोड़ा रुक जाते तो अच्छा मॉडल मिल जाता” खैर मैं इस मामले में थोड़ा भाग्यशाली रहा हूँ। पर शुकू शू की कसी हुई जवानी ने मेरा जीना हराम कर दिया था। मैं किसी तरह उसे चोदना चाहता था। पर मेरी पत्नी इस मामले में बड़ी शक्की है।

आप शुकू शू नाम सुन कर चोंक गए होंगे। उसका नाम तो शकुंतला शाहू है पर मैं उसे प्यार से शुकू शू बुलाता हूँ। मेरी शादी के समय तो वो बिलकुल सूखी मरियल सी लगती थी इसीलिए मैंने उसका नाम शुकू शू रख दिया था। पर इन दो सालों में तो जैसे झांसी की सारी जवानी ही इस पर चढ़ आई है। उसके अंग-अंग में से जवानी छलक रही है। सच ही है जब डाली फ़लों से लद जाती है तो स्वयमेव ही झुकने लग जाती है। मेरा मन करता था कि इन फ़लों का रस चूस लूं। उसके चूतड़ों की गोलाईयां और दरार इतनी मस्त और लचकदार हैं मानो मेरे लण्ड को अन्दर समाने के लिये आमन्त्रित ही करती रहती थी। जब वो अपने कसे हुए वक्ष को तान कर चलती है तो ऐसे लगता है बेतुआ नदी अपने पूरे उफान पर है।

ओह… चलो मैं पूरी बात बताता हूँ :

मेरी पत्नी के पहला बच्चा होने वाला था। वो मुझे अपनी चूत नहीं मारने देती थी। मैं हाथों में लंड लिए मुठ मारने को विवश था। पर मुझे तो जैसे भगवान ने छप्पर फाड़ कर सालियाँ दे दी हैं। बेचारी शुकू शु कहाँ बचती। जी हाँ ! मैं शकुंतला की ही बात कर रहा हूँ। जिसे मैं प्यार से शुकू शु कहा करता हूँ। वो भी मुझे कई बार मज़ाक में दीपक कुशवाहा की जगह कुशू कुशू या दीपक राय की जगह डिब्बे राम या दीपक राग कह कर बुलाती है पर सबके सामने नहीं। अकेले में तो वो इतनी चुलबुली हो जाती है कि जी करता है उसे पकड़ कर उल्टा करूं और अपना लंड एक ही झटके में उसकी मटकती गांड में ठोक दूं।

वो अपनी दीदी की देखभाल के लिए हमारे यहाँ आई हुई थी। वैसे तो दो कमरों का मकान है पर हम तीनों ही एक कमरे में सोते थे। शकुंतला साथ में छोटी चारपाई डाल लेती थी। दिन में तो वह लहंगा चुनरी या कभी कभी साड़ी पहनती थी पर रात को सोते समय झीना सा गाउन पहनकर सोती थी। सोते समय कभी कभी उसका गाउन ऊपर हो जाता तो उसकी मखमली जांघें दिखाई दे जाती थी और फिर मेरा लंड तो आहें भरने लग जाता था। उसने अपनी थोड़ी पर छोटा सा गोदना गुदवा लिया था उसे देख कर पुरानी फिल्म मधुमती वाली वैजयन्ती माला की बरबस याद आ जाती है। उसके सुगठित, उन्नत, गोल-गोल लुभावने उरोजों के बीच की घाटी, मटकते गुदाज़ नितम्ब, रसीले और तराशे हुये होंठ, उसकी कमनीय आँखों में दहकता लावा देख कर कई बार तो मुझे इतनी उतेजना होती कि मुझे बाथरूम में जाकर उसके नाम की मुठ लगानी पड़ती। जी में तो आता कि सोई हुई इस सलोनी कबूतरी को रगड़ दूं पर ऐसा कहाँ संभव था। साथ में ज्योति और माँ बापू भी रहते थे।

सुबह जब ज्योति उठ कर हवा पानी (टॉयलेट) करने चली जाती तो शुकू शू हमारे बिस्तर पर आ जाती और मेरी और अपने चूतड़ करके सो जाया करती। उसके मोटे मोटे नितम्ब देख कर मेरा लौड़ा खड़ा हो जाता और मैं नींद का बहाना करके अपना लंड गाउन के ऊपर से ही उसके चूतड़ों की दरार से लगा देता। वो थोड़ा कसमसाती और फिर मेरी ओर सरक आती। कई बार वो पेट के बल लेट जाती थी तो उसके उभरे हुए गोल गोल चूतड़ों को देखकर मेरा लंड तो आसमान ही छूने लगता था। जी में आता था अभी इसकी मटकती गांड मार लूं। मैं ज्योति की भी गांड मारना चाहता था पर वो पट्ठी तो मुझे उस छेद में अपना लंड क्या अंगुली भी नहीं डालने देती। पता नहीं ये बुंदेलखंड की औरतें भी गांड मरवाने में इतनी कंजूसी क्यों करती हैं।

कई बार तो शुकू अपनी एक टांग मेरी कमर के ऊपर या टांगों के बीच भी डाल दिया करती थी। पहले तो मैंने ध्यान नहीं दिया पर अब मुझे लगने लगा था कि वो ऐसा जानबूझ कर करती है। आज सुबह जब वो सोई थी तो मैंने धीरे से अपना खड़ा लंड उसकी गांड पर लगा दिया तो वो थोड़ा सा मेरी ओर सरक आई। मैंने पहले तो उसकी कमर पर हाथ रखा और फिर धीरे से अपना हाथ उसके मोटे मोटे स्तनों पर रख दिया। वो कुछ नहीं बोली। अब मैंने धीरे से उसके गाउन के ऊपर से ही उसके स्तन दबाना और सहलाना शुरू कर दिया। इतने में ही ज्योति अन्दर आ गई तो शुकू आगे सरक गई और गहरी नींद में सोने का बेहतरीन नाटक करने लगी जैसे कुछ हुआ ही नहीं हो।

अब तो जैसे मेरे हाथों में कारूँ का खज़ाना ही लग गया था। बस मौके की तलाश और इंतज़ार था। और फिर जैसे भगवान् ने मेरी सुन ली। माँ और बापू दोनों गाँव चले गए क्योंकि वहां दादाजी की टांग टूट गई थी। मैंने आज ऑफिस से छुट्टी कर ली थी। ज्योति के लिए कुछ दवाइयां लेनी थी सो मैं जब बाज़ार जाने लगा तो शुकू को साथ ले लिया।

मैंने रास्ते में उसे पूछा “शुकू अब तो घर वाले तुम्हारी भी शादी करने वाले होंगे ?”

“अरे ना बाबा ना… मुझे अभी शादी नहीं करनी ?”

“क्यों ?”

“शादी के नाम से ही मुझे डर लगता है ?”

“कैसा डर ?”

“डरना तो पड़ता ही है। पता नहीं पहली रात…?” कहते कहते वो शरमा गई।

अनजाने में वो बोल तो गई पर बाद में उसे ध्यान आया कि वो क्या बोल गई है। वो तो किसी नाज़ुक कलि की तरह शर्म से लाल ही हो गई और उसने दुपट्टे को मुँह पर लगा लिया।

“हाय … मेरी शुकू शु… प्लीज बताओ ना पहली रात में किस चीज का डर लगता है ?”

“नहीं मुझे शर्म आती है ?”

“चलो पहले से सब सीख लो फिर ना तो शर्म आएगी और ना ही डर लगेगा ?”

“क्या मतलब ?”

“अरे बाबा मैं सिखा दूंगा तुम चिंता क्यों करती हो ? और फिर सिखाने की फीस भी नहीं लूँगा ? यह तो मुफ्त का सौदा है !”

“दीदी आपकी जान ले लेगी ?”

“अरे मेरी भोली शुकू शू तुम्हारी दीदी मेरी जान तो पहले ही ले चुकी है बस तुम अगर हाँ कर दो फिर देखो तुम्हारा डर कैसे दूर भगाता हूँ ?”

“धत… मुझे ऐसी बातों से शर्म आती है… अब घर चलो !”

“आईईलाआआ …”

दोस्तों ! अब तो बस रास्ता साफ़ ही था। हमने रास्ते में प्रोग्राम बनाया कि रात में ज्योति को दूध के साथ नींद की गोली दे देंगे और हम दोनों साथ वाले कमरे में सारी रात धमा चौकड़ी मचाएंगे। किसी को कानों-कान खबर नहीं होगी।

रात को लगभग 10:30 बजे शुकू डार्लिंग ज्योति के लिए दूध लेकर आ गई। जब ज्योति के खर्राटे बजने लगे तो हमने आँखों ही आँखों में इशारा किया और चुपके से दबे पाँव साथ वाले कमरे में आ गए। मैंने कस कर उसे बाहों में भर लिया और जोर जोर से चूमने लगा। मैंने उसके नर्म नाज़ुक होंठों को अपने मुँह में भर लिया और चूसने लगा। उसने भी मुझे कस कर अपनी बाहों में भर लिया। उसकी साँसें तेज़ होने लगी। अब मैंने अपनी जीभ उसके मुँह में डाल दी। वो उसे चूसने लगी। कभी मैं उसके होंठों को चूसता चूमता और कभी उसके गालों को। वो पूरा साथ देने लगी। फिर मैंने उसके स्तन भी दबाने चालू कर दिए। शुकू अब सीत्कार करने लगी और घूम कर अपने चूतड़ मेरी ओर कर दिए। मैंने कस कर उसे भींच लिया और अपने लंड को उसकी गांड से सटा दिया। मैंने पायजामा पहन रखा था सो उस दोनों गुम्बदों के बीच आराम से सेट हो गया। अपना लंड सेट करने के बाद एक हाथ नीचे उसकी चूत की ओर बढ़ाया। जैसे ही मैंने उसकी चूत पर हाथ लगाया तो उसने अपनी जांघें भींच ली और जोर की किलकारी मारी।

मैंने पतले और झीने गाउन के ऊपर से ही अपनी ऊँगली से उसकी चूत की फांकों को टटोला और थोड़ी सी अंगुली अन्दर कर दी। उसके गीलेपन का अहसास होते ही मेरे लंड ने एक जोर का ठुमका लगाया। शुकू तो सीत्कार पर सीत्कार करने लगी। पता नहीं उसे क्या सूझा वो झट से मेरी पकड़ से छुट कर नीचे बैठ गई और एक झटके में मेरे पायजामे को नीचे सरका दिया। मेरा फनफनाता हुआ लंड अब ठीक उसके मुँह के सामने आ गया। उसने झट से उसे मुँह में भर लिया और चूसने लगी। मेरे लिए तो यह स्वर्ग जैसे आनंद के समान था।

ज्योति ने कभी मेरा लंड इतने अच्छी तरह से नहीं चूसा था। वो तो बस ऊपर ऊपर से ही कभी कभी चुम्मा ले लिया करती है या फिर उसके टोपे को जीभ से सहला देती है। आह… इस अनोखे आनन्द का तो कहना ही क्या था। शुकू जब अपनी जीभ को गोल गोल घुमाती और चुस्की लगाती तो मैं उसका सर अपने हाथों में पकड़ कर एक हल्का सा धक्का लगा देता तो मेरा लंड उसके कंठ तक चला जाता। वो तो किसी कुल्फी की तरह उसे चूसे ही जा रही थी। कभी पूरा मुँह में ले लेती और कभी उसे बाहर निकाल कर चाटती। कभी मेरे अण्डों को पकड़ कर मसलती और उनकी गोलियां भी मुँह में भर कर चूस लेती। पता नहीं कहाँ से ट्रेनिंग ली थी उसने।

मैं कामुक सीत्कारें किये जा रहा था। मुझे लगने लगा मैं उसके मुँह में ही झड़ जाऊँगा। वह तो उसे छोड़ने का नाम ही नहीं ले रही थी। अब मैंने भी सोच लिया कि अपने अमृत को पहली बार उसके मुँह में ही निकालूँगा। मैंने उसका सर जोर से पकड़ लिया। और धीरे धीरे लयबद्ध तरीके से धक्के लगाने लगा जैसे वो उसका मुँह न होकर चूत ही हो।

“याआ… हाय… ईईईई … मेरी शुकू शू और जोर से चूसो मेरी ज़ान मज़ा आ रहा है… हाई…।”

मेरी मीठी सीत्कारें सुनकर उसका जोश दुगना हो गया और वो पूरा लंड मुँह में लेकर जोर जोर से चूसने लगी। अब मैं कितनी देर ठहरता। मेरी पिचकारी फूट पड़ी और सारा वीर्य उसके मुँह में ही निकल गया। वो तो उसे गटागट पीती ही चली गई। अंतिम बूँद को चूस और चाट कर वो अपने होंठों पर जीभ फिराती हुई उठ खड़ी हुई। मैंने उसे एक बार फिर अपनी बाहों में भर कर चूम लिए।

“वाह… मेरी शुकू शू आज तो तुमने मुझे उपकृत ही कर दिया मेरी जान !” मैंने उसके होंठों को चूमते हुए कहा।

“मुझे भी बड़ा मज़ा आया … बहुत स्वादिष्ट था। मैंने कई बार अम्मा को बापू का चूसते देखा है। वो भी बड़े मज़े से सारा रस पी जाती है।”

“अरे मेरी रानी मेरी शुकू शू तुम ज्योति को भी तो यह सब सिखाओ ना ?” मैंने कहा।

“अरे बाप रे ! अगर दीदी जग गई तो… हाय राम…” वो बाहर भागने लगी तो मैंने उसे फिर से दबोच लिया। वो कसमसा कर रह गई।

“ओहो मेरी डिब्बे राम जी थोड़ा सब्र करो। पहले दीदी को तो देख आने दो वो कहीं जग तो नहीं गई ?”

“जरा जल्दी करो !”

“अच्छा जी !”

शुकू दबे पाँव अन्दर वाले कमरे में ज्योति को देखने चली गई और मैं बाथरूम में चला गया।

मैंने अपना कुरता और पजामा निकाल फेंका और अपने लंड को ठीक से धोया। कोई 10 मिनट बाद जब मैं नंग धडंग होकर बाहर वाले कमरे में आया तो शुकू मेरा इंतजार ही कर रही थी। मैंने दौड़ कर उसे बाहों में भरना चाहा। इस आपाधापी में वो लुढ़क कर बेड पर गिर पड़ी और मैं उसके ऊपर आ गया। मैंने उसके गालों और होंठों को चूमना चालू कर दिया। मैंने उसका गाउन उतार दिया। उसने ब्रा और पेंटी नहीं पहनी थी। उसके गोल गोल संतरे ठीक मेरी आँखों के सामने थे। मैं तो उन पर टूट ही पड़ा। मैंने एक बोबे के चूचक को अपने मुँह में भर लिया और चूसने लगा। दूसरे हाथ से उसके दूसरे बोबे को मसलना और दबाना चालू कर दिया।

शुकू ने मेरा लंड पकड़ लिया और उसे सहलाने लगी। 2-3 मिनट मसलने और सहलाने से वो दुबारा खड़ा होकर उसे सलामी देने लगा। अब मैंने उसके पेट को चूमा और फिर नीचे सहस्त्र धारा की ओर प्रस्थान किया। छोटे छोटे काले घुंघराले झांटों से लकदक चूत तो कमाल की थी। मोटे मोटे सांवले होंठ और अन्दर थोड़ी बादामी रंग की कलिकाएँ। मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ कि उसकी चूत के अन्दर वाले होंठ थोड़े सांवले क्यों हैं। कुंवारी लड़कियों की चूत के अन्दर के होंठ तो गुलाबी होते है। शुकू ने मुझे बाद में बताया था कि वो रोज़ अपनी चूत में अंगुली करती है और अपनी फांकों और कलिकाओं को भी मसलती और रगड़ती है इसलिए वो थोड़े सांवले हो गए हैं।

चलो कोई बात नहीं मुझे रंग से क्या लेना था। स्वाद और मज़ा दोनों तो आ ही जायेगे। मैंने अपनी लपलपाती जीभ उसकी चूत के होंठो पर लगा दी। शुकू ने मेरा सर अपने हाथों में पकड़ लिया और अपनी चूत की ओर दबा सा दिया। मैंने अपनी जीभ से उसकी कलिकाओं को टटोला तो उसकी हर्ष मिश्रित चीत्कार सी निकल गई।

अब मैंने अपने हाथों से उसकी फांकों को चौड़ा किया। अन्दर से गुलाबी रंगत लिए चूत पूरी गीली थी। मैंने झट से उस पर अपनी जीभ फिराई और फिर दाने को टटोला। वो तो उत्तेजना के मारे अपने पैर ही पटकने लगी। मैंने तो उसकी रसभरी फांकों को मुँह में भर लिया और जोर जोर से चूसने लगा। उसका दाना तो लाल अनारदाने जैसा हो गया था अब। मैंने जीभ की नोक बना कर उसे चुभलाया तो वो कामुक सीत्कार करती हुई बोली “आह … कुशू अब और ना तड़फाओ अब अन्दर डाल दो … उईईई… जिज्जूऊऊऊ…… ?”

“हाई मेरी शुकू शू डालता हूँ।”

“उईई… मोरी … अम्माआआ… ईईईईईईइ”

“शुकू तुम्हारी चूत का रस तो बहुत मजेदार है !”

“ऊईईई… माआआ………”

उसका शरीर जोर से अकड़ा और चूत से काम रस फिर से टपकने लगा। शायद वो झड़ गई थी। उसकी साँसें तेज़ हो गई थी और आँखें बंद। अब मैंने अपने लंड को उसकी चूत की फांकों पर लगा दिया। उसने अपनी जांघें चौड़ी कर ली। मैंने उसके सर के नीचे एक हाथ लगाया और और एक हाथ से अपने लंड को पकड़ कर उसकी चूत के छेद पर सेट करके एक धक्का लगा दिया। मेरा लंड गच्च से 3 इंच तक अन्दर समां गया। उसके मुँह से मीठी सीत्कार निकल गई।

“उईईई… माआआ………”

वह कसमसाने लगी। मुझे लगा इस तरह तो मेरा बाहर निकल जाएगा। मैंने उसे बाहों में भर कर कस लिया और एक धक्का फिर लगा दिया। लंड महाराज पूरे के पूरे अन्दर प्रविष्ट हो गए। मैंने एक काम और किया उसके मुँह पर हाथ रख दिया नहीं तो उसकी चीख ज्योति को सुनाई देती या नहीं देती पड़ोसियों को जरुर सुन जाती। उसकी घुटी घुटी सी चीख निकल ही गई।

“गूं………उंउंउंउंउंउंउं……………………”

वो कसमसाती रही पर मैं नहीं रुका। मैंने उसे बाहों में जकड़े रखा। वो हाथ पैर पटकने लगी और मेरी पकड़ से छूटने का कोशिश करती रही। मैंने उसे समझाया “बस मेरी शुकू अब अन्दर चला गया है। अब चिंता मत करो… अब तुम्हें भी मज़ा आएगा।”

“उईइ मा… मैं तो दर्द के मारे मर जाउंगी ओह… जिज्जू बाहर निकाल लो… मुझे दर्द हो रहा है…।”

“बस मेरी जान ये दर्द तो दो पलों का है फिर देखना तुम खुद कहोगी और जोर से करो !”

उसने आँखें खोल कर मेरी ओर देखा। मैं मुस्कुरा रहा था। शायद उसका दर्द अब कम हो गया था। उसकी चूत ने अब पानी छोड़ दिया था और गीली होने के कारण लंड को अन्दर बाहर होने में कोई समस्या नहीं थी। उसकी चूत ने जब संकोचन करना चालू कर दिया तो मेरे लंड ने भी अन्दर ठुमके लगाने चालू कर दिए। अब तो उसकी चूत से मीठा फिच्च फिच्च का मधुर संगीत बजने लगा था और वो अपने चूतड़ उछाल उछाल कर मेरा साथ देने लगी।

“क्यों मेरी शुकू अब मज़ा आ रहा है या नहीं ?”

“ओह… मेरे कुशू कुशू जिज्जू मैं तो इस समय स्वर्ग में हूँ बस ऐसे ही चोदते रहो… आःह्ह… और जोर से करो… रुको मत… उईईइ…”

“शुकू मैंने कहा था ना बहुत मज़ा आएगा ?”

“ओह… हाँ… अबे डिब्बे राम ! जरा जल्दी जल्दी धक्के लगाओ ना ? अईई…?”

उसकी चूत ने मेरे लंड को जैसे अन्दर भींच ही लिया। उसकी मखमली गीली दीवारों में फसा लंड तो ठुमके लगा लगा कर ऐसे नाच रहा था जैसे सावन में कोई मोर नाच रहा हो। हमें कोई 10-15 मिनट तो हो ही गए थे। मैं उसे अब घोड़ी बना कर एक बार चोदना चाहता था। पिछले 3-4 महीने से ज्योति ने मुझे बहुत तरसाया था। बस किसी तरह पानी निकालने वाली बात होती थी। वह तो बस टाँगें चौड़ी करके पसर जाती थी और मैं 5-10 मिनट धक्के लगा कर पानी निकाल देता था। और अब पिछले 2-3 महीनों से तो उसने चूत चोदने की तो छोड़ो चूत पर हाथ भी नहीं धरने दिया था।

मैंने उसे चौपाया हो जाने को कहा तो झट से डॉगी स्टाइल में हो गई और अपने चूतड़ ऊपर उठा दिए। गोल गोल दो छोटे छोटे तरबूजों जैसे चूतड़ों के बीच की खाई तो कमाल की थी। गांड के छेद का रंग गहरे बादामी सा था। चूत के फांकें सूज कर मोटी मोटी हो गई थी और उस से रस चू रहा था। मैंने उसके चूतड़ों को चौड़ा किया और अपना लंड फिर से उसकी चूत में डाल दिया। लंड गीला होने के कारण एक ही झटके में अन्दर समां गया। मैंने उसकी कमर पकड़ कर अब धक्के लगाने शुरू कर दिए। उसने अपना सर नीचा करके सिरहाने से लगा लिया और सीत्कार पर सीत्कार करने लगी। अब मेरा ध्यान उसकी गांड के छेद पर गया। वो भी थोड़ा गीला सा हो चला था। कभी खुलता कभी बंद होता। वाह… क्या मस्त गांड है साली की। एक बार तो मन में आया कि अपना लंड गांड में डाल दूं पर बाद में मैं रुक गया।

मैं जानता हूँ कोई भी लड़की हो या फिर औरत पहली बार गांड मरवाने में बड़े नखरे करती हैं और कभी भी आसानी से गांड मरवाने के लिए इतनी जल्दी तैयार नहीं होती। और फिर बुंदेलखंड की औरतें तो गांड मरवाने के लिए बड़ी मुश्किल से राज़ी होती हैं। खैर….. मैंने अपनी अंगुली पर थूक लगाया और शुकू की गांड के छेद पर लगा दिया। वह तो उछल ही पड़ी।

“ओह… क्या करते हो जिज्जू ?’

“क्यों क्या हुआ?”

“नहीं… नहीं… इसे अभी मत छेड़ो… ?”

मुझे कुछ आस बंधी कि शायद बाद में मान जायेगी। अब मैंने फिर से उसकी कमर पकड़ ली और दनादन धक्के लगाने चालू कर दिए। हम दोनों को ही इतनी कसरत के बाद पसीने आने लगे थे। कोई 20-25 मिनट तो हो ही गए थे। मैंने उसे जब बताया कि मैं झड़ने वाला हूँ तो वो बोली कोई बात नहीं अन्दर ही निकाल दो मैं “मेरी सहेली” (गर्भ निरोधक गोली) खा लूंगी।

मैं तो धन्य ही हो गया। मैंने उसे कस कर पकड़ लिया और फिर जैसे ही 3-4 आखरी धक्के लगाये मेरा लावा फूट पड़ा। शुकू शू भी उस वीर्य के गर्म फव्वारे से नहा ही उठी। उसकी चूत आज धन्य और तृप्त हो गई। मेरा लौड़ा तो धन्य होना ही था। जब मेरी अंतिम बूँद निकल गई तो मैं उस से अलग हो गया। फिर हम दोनों बाथरूम में चले गए और साफ़ सफाई करने के बाद बाहर आये तो वो बोली “चलो अब गर्म गर्म दूध पी लो एक राउंड और खेलेंगे ?” इतना कहकर उसने मेरी ओर आँख मार दी।

मैंने उसे एक बार फिर अपनी बाहों में जकड़ लिया और जोर से भींच दिया। उसकी तो चीख ही निकल गई। फिर उस रात मैंने उसे दो बार और चोदा। सुबह 4 बजे हम अन्दर वाले कमरे में जाकर अपनी अपनी जगह सो गए। बस दोस्त ! इतनी ही कहानी है उस रात की।

दोस्तों ! दीपक और शुकू शू की चुदाई की यह कथा आपको कैसी लगी मुझे जरुर लिखें। अगर आप दीपक कुशवाहा को भी मेल करेंगे तो उसे भी बहुत ख़ुशी होगी। उसका मेल आई डी है :

दीपक ने मुझे बाद में बताया था कि उसने दूसरे दिन शुकू शू की गांड भी मारी थी। उसने मुझे भी झांसी आने का न्योता दिया है। मैं भी एक बार उस सलोनी हसीना की चूत और गांड का मज़ा लेने को बेकरार हो गया हूँ। चलो जब भी समय मिला मैं जरुर जाऊँगा और आपको भी बताऊंगा कि क्या हुआ। पर आप संपर्क जरुर बनाए रखें।

आपका प्रेम गुरु
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07-04-2017, 12:46 PM,
#98
RE: प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ
मोऽ से छल किये जा … सैंयां बे-ईमान-1

मेरी प्यारी पाठिकाओं और पाठको,

उस दिन रविवार था सुबह के कोई नौ बजे होंगे। मैं ड्राइंग रूम में बैठा अपने लैपटॉप पर इमेल चेक कर रहा था। मधु (मेरी पत्नी मधुर) चाय बना कर ले आई और बोली “प्रेम मेरे भी मेल्स चेक कर दो ना प्लीज !”

“क्यों कोई ख़ास मेल आने वाला है क्या ?” मैंने उसे छेड़ा।

“ओह … तुम भी … प्लीज देखो ना ?” मधु कुनमुनाई।

मधु जब तुनकती है तो उसकी खूबसूरती और भी बढ़ जाती है। आज तो उसके गालों की लाली देखने लायक थी। आँखों में लाल डोरे से तैर रहे थे। मैं जानता हूँ ये कल रात (शनिवार) को जो दो बजे तक हम दोनों ने जो प्रेमयुद्ध किया था उसका खुमार था।

मैंने उसे बाहों में भर लेना चाहा तो वो मुझसे छिटकती हुई बोली,”ओह … तुम्हें तो बस सारे दिन एक ही काम की लगी रहती है… हटो परे !”

“अच्छा भई…” मैंने मन मार कर कहा और मधु का आई डी खोलने का उपक्रम करने लगा। इतने में रसोई में कुछ जलने की गंध सी महसूस हुई। इससे पहले कि मैं लैपटॉप मधु की ओर बढ़ाता, वह रसोई की ओर भागी,”ओह … दूध उफन गया लगता है ?”

मैंने इनबॉक्स देखा। उसमें किसी मैना का एक मेल आया हुआ था। मुझे झटका सा लगा,”ये नई मैना कौन है ?”

मैं अपने आप को उस मेल को पढ़ने से नहीं रोक पाया। ओह … यह तो मीनल का था। आपको “सावन जो आग लगाए” वाली मीनल (मैना) याद है ना ? आप सभी की जानकारी के लिए बता दूं कि मीनल (मैना) मधु की चचेरी बहन भी है। दो साल पहले उसकी शादी मनीष के साथ हो गई है। शादी के बाद मेरा उससे ज्यादा मिलना जुलना नहीं हो पाया। हाँ मधु से वो जरुर पत्र व्यवहार और मोबाइल पर बात करती रहती है।

हाँ तो मैं उस मेल की बात कर रहा था। मीनल ने शुरू में ही किसी उलझन की चर्चा की थी और अपनी दीदी से कोई उपाय सुझाने की बात की थी। मैं हड़बड़ा सा उठा। मधु तो रसोई में थी पर किसी भी समय आ सकती थी। मेल जरा लम्बा था। मैंने उसे झट से अपने आई डी पर फारवर्ड कर दिया और मधु के आई डी से डिलीट कर दिया।

आप जरुर सोच रही होंगी कि यह तो सरासर गलत बात है ? किसी दूसरे का मेल बिना उसकी सहमति के पढ़ना कहाँ का शिष्टाचार है ? ओह … आप सही कह रही हैं पर अभी आप इस बात को नहीं समझेंगी। अगर यह मेल मधु सीधे ही पढ़ लेती तो पता नहीं क्या अंजाम होता ? हे लिंग महादेव… तेरा लाख लाख शुक्र है कि यह मेल मधु के हाथ नहीं पड़ा नहीं तो मैं गरीब तो मुफ्त में ही मारा जाता ?

आप भी सोच रही होंगी कि इस मेल में ऐसा क्या था ? ओह… मैं उस मेल को आप सभी को ज्यों का त्यों पढ़ा देता हूँ। हालांकि मुझे इसे सार्वजनिक नहीं करना चाहिए पर मैं उसकी परेशानी पढ़ कर इतना विचलित हो गया हूँ कि आप सभी के साथ उसे सांझा करने से अपने आप को नहीं रोक पा रहा हूँ। मेरी आप सभी पाठिकाओं से विशेष रूप से विनती है कि आप सभी मैना की परशानी को सुलझाने में उसकी मदद करें और उसे अपने अमूल्य सुझाव अवश्य दें। लो अब आप सभी उस मेल को पढ़ लो :

प्रिय मधुर दीदी,

मैं बड़ी उलझन में पड़ गई हूँ। अब तुम ही मुझे कोई राह दिखाओ मैं क्या करुँ? मैं तो असमंजस में पड़ी हूँ कि इस तन और मन की उलझन से कैसे निपटूं ? तुम शायद सोच रही होगी कि कुछ दिनों पहले तो तुम मिल कर गई ही थी, तो भला इन 4-5 दिनों में ऐसी क्या बात हो गई ? ओह… हाँ तुम सही सोच रही हो। परसों तक तो सब कुछ ठीक ठाक ही था पर कल की रात तो जैसे मेरे इस शांत जीवन में कोई तूफ़ान ही लेकर आई थी। ओह… चलो मैं विस्तार से सारी बात बताती हूँ :

मेरी सुन्दरता के बारे में तुम तो अच्छी तरह जानती ही हो। भगवान् ने कूट कूट कर मेरे अन्दर जवानी और कामुकता भरी है। किसी ने सच ही कहा है कि स्त्री में पुरुष की अपेक्षा 3 गुना अधिक काम का वास होता है पर भगवान् ने उसे नियंत्रित और संतुलित रखने के लिए स्त्री को लज्जा का गहना भी दिया है।

और तुम तो जानती हो मैं बचपन से ही बड़ी शर्मीली रही हूँ। कॉलेज में भी सब सहेलियां मुझे शर्मीलीजान, लाजवंती, बहनजी और पता नहीं किन किन उपनामों से विभूषित किया करती थी। अब मैं अपने शर्मीलेपन और रूप सौन्दर्य का वर्णन अपने मुंह से क्या करूँ। प्रेम भैया तो कहते हैं कि मेरी आँखें बोलती हैं वो तो मुझे मैना रानी और मृगनयनी कहते नहीं थकते। मेरी कमान सी तनी मेरी भोहें तो ऐसे लगती है जैसे अभी कोई कामबाण छोड़ देंगी। कोई शायर मेरी आँखों को देख ले तो ग़ज़ल लिखने पर विवश हो जाए। अब मेरी देहयष्टि का माप तो तुमसे छुपा नहीं है 36-24-36, लम्बाई 5’ 5″ भार फूलों से भी हल्का। तुम तो जानती ही हो मेरे वक्ष (उरोज) कैसे हैं जैसे कोई अमृत कलश हों। मेरे नितम्बों की तो कॉलेज की सहेलियां क़समें खाया करती थी। आज भी मेरे लयबद्ध ढंग से लचकते हुए नितम्ब और उनका कटाव तो मनचलों पर जैसे बिजलियाँ ही गिरा देता है। और उन पर लम्बी केशराशि वाली चोटी तो ऐसे लगती है जैसे कोई नागिन लहरा कर चल रही हो। तुम अगर जयपुर के महारानी कॉलेज का रिकार्ड देखो तो पता चल जाएगा कि मैं 2006 में मिस जयपुर भी रही हूँ।

तुम तो जानती ही हो दो वर्ष पूर्व मेरा विवाह मनीष के साथ हो गया। इसे प्रेम विवाह तो कत्तई नहीं कहा जा सकता। बस एक निरीह गाय को किसी खूंटे से बाँध देने वाली बात थी। मुझे तुमसे और प्रेम भैया से बड़ी शिकायत है कि मेरे विवाह में आप दोनों ही शामिल नहीं हुए। ओह… मैं भी क्या व्यर्थ की बातें ले बैठी।

मैं तुम्हें अपने जीवन का एक कटु सत्य बताना आवश्यक समझती हूँ। कॉलेज के दिनों में मेरे यौन सम्बन्ध अपने एक निकट सम्बन्धी से हो गए थे। ओह… मुझे क्षमा कर देना मैं उनका नाम नहीं बता सकती। बस सावन की बरसात की एक रात थी। पता नहीं मुझे क्या हो गया था कि मैं अपना सब कुछ उसे समर्पित कर बैठी। मैं तो सोचती थी कि अपना कौमार्य मधुर मिलन की वेला में अपने पति को ही समर्पित करूंगी पर जो होना था हो गया। मैं अभी तक उस के लिए अपने आप को क्षमा नहीं कर पाई हूँ। पर मेरा सोचना था कि इसके प्रायश्चित स्वरुप मैं अपने पति को इतना प्रेम करुँगी कि वो मेरे सिवा किसी और की कामना ही नहीं करेगा। मैं चाहती थी कि वो भी मुझे अपनी हृदय साम्राज्ञी समझेगा। पर इतना अच्छा भाग्य सब का कहाँ होता है।

मैं पति पत्नी के अन्तरंग संबंधों के बारे में बहुत अधिक तो नहीं पर काम चलाऊ जानकारी तो रखती ही थी। शमा (मेरी एक प्रिय सहेली) ने एक बार मुझ से कहा था,”अरी मेरी भोली बन्नो ! तू क्या सोचती है तेरा दूल्हा पहली रात में तुझे ऐसे ही छोड़ देगा। अरे तेरे जैसी कातिल हसीना को तो वो एक ही रात में दोनों तरफ से बजा देगा देख लेना। सच कहती हूँ, अगर मैं मर्द होती या मेरे पास लंड होता तो तेरे जैसी बम्ब पटाका को कभी का पकड़ कर आगे और पीछे दोनों तरफ से रगड़ देती !”

ओह ये शमा भी कितना गन्दा बोलती थी। खैर ! मैंने भी सोच लिया था कि अपने मधुर मिलन की वेला में अपने पति को किसी चीज के लिए मना नहीं करूंगी। मैं पूरा प्रयत्न करुँगी कि उन्हें हर प्रकार से खुश कर दूं ताकि वो उस रात को अपने जीवन में कभी ना भूल पायें और वर्षों तक उसी रोमांच में आकंठ डूबे रहें।

उस रात उन्होंने मेरे साथ दो बार यौन संगम किया। ओह… सब कुछ कितनी शीघ्रता से निपट गया कि मैं तो ठीक से कुछ अनुभव ही नहीं कर पाई। ओह… जैसा कि हर लड़की चाहती है मेरे मन में कितने सपने और अरमान थे कि वो मेरा घूँघट उठाएगा, मुझे बाहों में भर कर मेरे रूप सौन्दर्य की प्रसंसा करेगा और एक चुम्बन के लिए कितनी मिन्नतें करेगा। यौन संबंधों के लिए तो वो जैसे गिड़गिड़ाएगा, मेरे सारे कामांगों को चूमेंगा सहलाएगा और चाटेगा- ऊपर से लेकर नीचे तक। और जब मैं अपना सब कुछ उसे समर्पित करुँगी तो वो मेरा मतवाला ही हो जाएगा। पर ऐसा कुछ भी तो नहीं हुआ। मेरे सारे सपने तो जैसे सुहागरात समाप्त होते होते टूट गए। हम लोग अपना मधुमास मनाने शिमला भी गए थे पर वहाँ भी यही सब कुछ रहा। बस रात को एक दो बार किसी प्रकार पैर ऊपर उठाये, उरोजों को बुरी तरह मसला दबाया और गालों को काट लिया… और… और… फिर….

ओह मुझे तो बड़ी लाज आ रही है मैं विस्तार से नहीं बता सकती। जिन पलों की कोई लड़की कामना और प्रतीक्षा करती है वह सब तो जैसे मेरे जीवन में आये ही नहीं। तुम तो मेरी बातें समझ ही गई हो ना?

उसने कभी मेरे मन की थाह लेने का प्रयत्न ही नहीं किया। वो तो कामकला जैसे शब्द जानता ही नहीं है। एक प्रेयसी या पत्नी रात को अपने पति या प्रेमी से क्या चाहती है उस मूढ़ को क्या पता। उसे कहाँ पता कि पहले अपनी प्रियतमा को उत्तेजित किया जाता है उसकी इच्छाओं और चाहनाओं का सम्मान किया जाता है। प्रेम सम्बन्ध केवल दो शरीरों का मिलन ही नहीं होता एक दूजे की भावनाओं का भी आदर सम्मान भी किया जाता है और एक दूसरे की पूर्ण संतुष्टि का ध्यान रखा जाता है। सच्चा प्रेम मिलन तो वही होता है जिसमें दोनों पक्षों को आनंद मिले, नहीं तो यह एक नीरस शारीरिक क्रिया मात्र ही रह जाती है। पर उस नासमझ को क्या दोष दूँ मेरा तो भाग्य ही ऐसा है।

तुम तो जानती ही हो कि समय के साथ साथ सेक्स से दिल ऊब जाता है और फिर प्रतिदिन एक जैसी ही सारी क्रियाएँ हों तो सब रोमांच, कौतुक और इच्छाएं अपने आप मर जाती हैं। वही जब रात में पति को जोश चढ़ा तो ऊपर आये और बाहों में भर कर दनादन 2-4 मिनट में सब कुछ निपटा दिया और फिर पीठ फेर कर सो गए। वह तो पूरी तरह मेरे कपड़े भी नहीं उतारता। उसे रति पूर्व काम क्रीड़ा का तो जैसे पता ही नहीं है। मेरी कितनी इच्छा रहती है यौन संगम से पहले कम से कम एक बार वो मेरे रतिद्वार को ऊपर से ही चूम ले पर उसे तो इतनी जल्दी रहती है जैसे कोई गाड़ी छूट रही हो या फिर दफ्तर की कोई फाइल जल्दी से नहीं निपटाई तो कोई प्रलय आ जायेगी। धत… यह भी कोई जिन्दगी है। जब वो पीठ फेर कर सो जाता है तो मैं अपने आप को कितना अपमानित, उपेक्षित और अतृप्त अनुभव करती हूँ कोई क्या जाने।

शमा तो कहती है कि “गुल हसन तो निकाह के चार साल बाद भी उसका इतना दीवाना है कि सारी सारी रात उसे सोने ही नहीं देता। पता है औरत को चोदने से पहले गर्म करना जरुरी होता है। ऐसा थोड़े ही होता है कि टांगें ऊपर उठाओ और ठोक दो। कसम से गुल तो इस कामकला में इतना माहिर है कि मैं एक ही चुदाई में 3-4 दफा झड़ जाती हूँ। और जब वो अलग अलग तरीकों और आसनों में मेरी चुदाई करता है तो मैं तो इस्स्स्सस….. कर उठती हूँ !” मैं तो शमा की इन बातों को सुन कर जल भुन सी जाती हूँ।

विवाह के पश्चात कुछ दिनों तक संयुक्त परिवार में रहने के बाद अब मैं भी इनके साथ ही आ गई थी। अभी 2-3 महीने पहले इनका तबादला दिल्ली में हो गया है। मनीष एक बहु राष्ट्रीय कंपनी में मैंनेजर है। यहाँ आने के 2-3 दिनों बाद ही अपना परिचय कराने हेतु इन्होने होटल ग्रांड में एक पार्टी रखी थी जिसमें अपने साथ काम करने वाले सभी साथियों को बुलाया था। इनके बॉस का पूरा नाम घनश्याम दास कोठारी है पर सभी उन्हें कोठारी साहेब या श्याम बाबू कह कर बुलाते हैं।

श्याम की पत्नी मनोरमा काले से रंग की मोटी ताज़ी ठिगने कद की आलू की बोरी है। देहयष्टि का क्या नाप और भूगोल 40-38-42 है पर अभी भी जीन पेंट और टॉप पहन कर अपने आप को तितली ही समझती है। मुझे आश्चर्य हो रहा था कि मनीष भी श्याम से अधिक उस मोटी के आगे पीछे लगा था। श्याम 38-40 के लपेटे में जरुर होंगे पर देखने में अभी भी पूरे कामदेव लगते हैं। मोटी मोटी काली आँखें, ऊंचा कद, छछहरा बदन और गोरा रंग। हाँ सिर के बाल जरुर कुछ चुगली खा जाते हैं थोड़ी चाँद सी निकली है। ये गंजे लोग भी सेक्स के मामले में बड़े रंगीन होते हैं। ऑफिस की लड़कियाँ और औरतें तो जैसे उन पर लट्टू ही हो रही थी। मैंने उचटती नज़रों से देखा था कि श्याम की आँखें तो जैसे मेरे अमृत कलशों और नितम्बों को देखने से हट ही नहीं रही थी।

मनीष ने सबका परिचय करवाया था। मेरे रूप लावण्य को देख कर तो सब की आँखें जैसे चौंधिया ही गई थी। श्याम से जब परिचय करवाया तो मैंने उनके पाँव छूने की कोशिश की तो उन्होंने मुझे कन्धों से जैसे पकड़ ही लिया। किसी पराये पुरुष का यह पहला स्पर्श था। एक मीठी सी सिहरन मेरे सारे शरीर में दौड़ गई।

मैंने झट से हाथ जोड़े तो उन्होंने मेरे हाथ पकड़ते हुए कहा,”अरे भाभी यह आप क्या कर रही हो यार। मैं इस समय मनीष का बॉस नहीं मित्र हूँ और मित्रों में कोई ओपचारिकता नहीं होनी चाहिए !” और फिर उन्होंने कस कर मेरा हाथ दबा दिया। मैं तो जैसे सन्न ही रह गई। भगवान् ने स्त्री जाति को यह तो वरदान दिया ही है कि वो एक ही नज़र में आदमी की मंशा भांप लेती है, मैं भला उनकी नीयत और आँखें कैसे ना पहचानती। पर इतने जनों के होते भला मैं क्या कर सकती थी।

“ओह… मनीष तू तो किसी स्वर्गलोक की अप्सरा को व्याह कर ले आया है यार !” श्याम ने मुझे घूरते हुए कहा। मनीष ने तो जैसे अनसुना ही कर दिया। वो तो बस उस मोटी मनोरमा के पीछे ही दुम हिला रहा था।

पार्टी समाप्त होने के बाद जब हम घर वापस आये तब मैंने श्याम की उन बातों की चर्चा की तो मनीष बोला “अरे यार वो मेरा बॉस है उसे और उनकी मैडम को खुश रखना बहुत जरुरी है। देखो मेरे साथ काम करने वाले सभी की पत्नियां कैसे उसके आगे पीछे घूम रही थी। उस अर्जुन हीरानी की पत्नी संगीता को नहीं देखा साली चुड़ैल ने कैसे उनका सरे आम चुम्मा ले लिया था जैसे किसी अंग्रेज की औलाद हो। तीन सालों में दो प्रोमोशन ले चुका है इसी बल बूते पर। इस साल तो मैं किसी भी कीमत पर अपना प्रोमोशन करवा कर ही रहूँगा !”

मनीष की सोच सुनकर तो जैसे मेरे पैरों के नीचे से जमीन ही निकल गई। उस दिन तो बात आई गई हो गई। पर अगले सप्ताह श्याम ने अपने घर पर ही पार्टी रख ली। उनकी मोटी मनोरमा का जन्म दिन था ना। इन अभिजात्य वर्ग के लोगों को तो बस मज़े करने के बहाने चाहिए। ओह… मैं तो जाना ही नहीं चाहती थी पर मनीष तो उस पार्टी के लिए जैसे मरा ही जा रहा था। वो भला अपने बॉस को खुश करने का ऐसा सुनहरा अवसर कैसे छोड़ देता। पूरी पार्टी में सभी जी जान से श्रीमान और श्रीमती कोठारी को खुश करने में ही लगे थे। मैंने और मनीष ने भी उन्हें बधाई दी।

मनोरमा बोली “ओह मनीष ! ऐसे नहीं यार आज तो गले मिलकर बधाई दो ना ?” और फिर वो मनीष के गले से वो जैसे चिपक ही गई…

श्याम पास ही तो खड़े थे, बोले “देखो भाई मनीष ये तो हमारे साथ ज्यादती है यार ? तुम अपनी भाभी के मज़े लो और हम देखते रहें ?”

और आगे बढ़ कर श्याम ने मुझे बाहों में भर कर तड़ से एक चुम्बन मेरे गालों पर ले लिया। सब कुछ इतना अप्रत्याशित और अचानक हुआ था कि मैं तो कुछ समझ ही नहीं पाई। उनकी गर्म साँसें और पैंट का उभार मैं साफ़ देख रही थी। वो दोनों मेरी इस हालत को देख कर ठहाका लगा कर हंस पड़े। मैं तो लाज के मारे जैसे धरती में ही समां जाना चाहती थी। किसी पर पुरुष का यह पहला नहीं तो दूसरा स्पर्श और चुम्बन था मेरे लिए तो।

तुम सोच रही होगी मैं क्या व्यर्थ की बातों में समय गँवा रही हूँ अपनी उलझन क्यों नहीं बता रही हूँ। ओह… मैं वही तो बता रही हूँ। इन छोटी छोटी बातों को मैं इसलिए बता रही हूँ कि मेरे मन में किसी प्रकार का कोई खोट या दुराव नहीं था तो फिर मनीष ने मेरे साथ इतना बड़ा छल क्यों किया ? क्या इस संसार में पैसा और पद ही सब कुछ है ? किसी की भावनाओं और संस्कारों का कोई मोल नहीं ?

नारी जाति को तो सदा ही छला गया है। कभी धर्म के नाम पर कभी समाज की परम्पराओं के नाम पर। नारी तो सदियों से पिसती ही आई है फिर चाहे वो रामायण या महाभारत का काल हो या फिर आज का आधुनिक समाज। ओह… चलो छोड़ो इन बातों को मैं असली मुद्दे की बात करती हूँ।

अब मनीष के बारे में सुनो। कई बार तो मुझे लगता है कि बस उसे मेरी कोई आवश्कता ही नहीं है। उसे तो बस रात को अपना काम निकालने के लिए एक गर्म शरीर चाहिए और अपना काम निकलने के बाद उसकी ना कोई चिंता ना कोई परवाह। मुझे तो कई बार संदेह होता है कि उनका अवश्य दूसरी स्त्रियों के साथ भी सम्बन्ध है। कई बार रात को लड़कियों के फ़ोन आते रहते हैं। सुहागरात में ही उन्होंने अपनी कॉलेज के समय के 3-4 किस्से सुना दिए थे। चलो विवाह पूर्व तो ठीक था पर अब इन सब की क्या आवश्कता है। पर शमा सच कहती है “ये मर्दों की जात ही ऐसी होती है इन्हें किसी एक के पल्ले से बंध कर तो रहना आता ही नहीं। ये तो बस रूप के लोभी उन प्यासे भंवरों की तरह होते हैं जो अलग अलग फूलों का रस चूसना चाहते हैं।”

मैंने श्याम के बारे में बताया था ना। वो तो जैसे मेरे पीछे ही पड़े हैं। कोई ना कोई बहाना चाहिए उनको तो बस मिलने जुलने का हाथ पकड़ने या निकटता का। मैंने कितनी बार मनीष को समझाया कि मुझे यह सब अच्छा नहीं लगता पर वो कहता है कि इसमें क्या बुरा है। तुम्हारे हाथ चूम लेने से तुम्हारा क्या घिस जाएगा। यार वो अगर खुश हो गया तो मेरा प्रोमोशन पक्का है इस बार।

ओह… मैं तो इस गन्दी सोच को सुन कर ही कांप उठती हूँ। स्त्री दो ही कारणों से अपनी लक्ष्मण रेखा लांघती है या तो अपने पति के जीवन के लिए या फिर अगर वो किसी योग्य ना हो। पर मेरे साथ तो ऐसा कुछ भी नहीं है फिर मैं इन ‘पति पत्नी और वो’ के लिजलिज़े सम्बन्ध में क्यों पडूं?

मैंने कहीं पढ़ा था कि पुरुष अधिकतर तभी पराई स्त्रियों की ओर आकर्षित होता है जब उसे अपनी पत्नी से वो सब नहीं मिलता जो वो चाहता है। कई बार उसने मुझे नंगी फ़िल्में दिखा कर वो सब करने को कहा था जो मैंने कभी सोचा भी नहीं था। पर आज मैंने पक्का निश्चय कर लिया था कि मनीष को सही रास्ते पर लाने के लिए अगर यह सब भी करना पड़े तो कोई बात नहीं।
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07-04-2017, 12:46 PM,
#99
RE: प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ
मोऽ से छल किये जा … सैंयां बे-ईमान-2

आज मनीष ने जल्दी घर आने का वादा किया था। कल मेरा जन्म दिन है ना। आज हम दोनों मेरे जन्मदिवस की पूर्व संध्या को कुछ विशेष रूप से मनाना चाहते थे इसीलिए किसी को हमने इस बारे में नहीं बताया था। मैंने आज अपने सारे शरीर से अनचाहे बाल साफ़ किये थे। (तुम तो जानती हो मैं अपने गुप्तांगों के बाल शेव नहीं करती ना कोई बालसफा क्रीम या लोशन आदि लगाती हूँ। मैं तो बस वैक्सिंग करती हूँ तभी तो मेरी मुनिया अभी भी किसी 14-15 साल की कमसिन किशोरी की तरह ही लगती है एकदम गोरी चिट्टी। फिर मैं उबटन लगा कर नहाई थी। अपने आपको किसी नवविवाहिता की तरह सजाया था। लाल रंग की साड़ी पहनी थी। जूड़े और हाथों में मोगरे के गज़रे, हाथों में मेहंदी और कलाइयों में लाल चूड़ियाँ, माथे पर एक बिंदी जैसे पूर्णिमा का चन्द्र आकाश में अपनी मीठी चांदनी बिखेर रहा हो। शयन कक्ष पूरी तरह सजाया था जैसे कि आज हमारी सुहागरात एक बार फिर से मनने वाली है। इत्र की भीनी भीनी सुगंध, गुलाब और चमेली के फूलों की पत्तियों से सजा हुआ पलंग।

सावन का महीना चल रहा है मैं उन पलों को आज एक बार फिर से जी लेना चाहती थी जो आज से 4-5 साल पहले चाहे अनजाने में या किन्ही कमजोर क्षणों में जिए थे। एक बार इस सावन की बारिश में फिर से नहाने की इच्छा बलवती हो उठी थी जैसी। सच पूछो तो मैं उन पलों को स्मरण करके आज भी कई बार रोमांचित हो जाती हूँ पर बाद में उन सुनहरी यादों में खो कर मेरी अविरल अश्रुधारा बह उठती है। काश वो पल एक बार फिर से आज की रात मेरे जीवन में दोबारा आ जाएँ और मैं एक बार फिर से मीनल के स्थान पर मैना बन जाऊं। मैं आज चाहती थी कि मनीष मुझे बाहों में भर कर आज सारी रात नहीं तो कम से कम 12:00 बजे तक प्रेम करता रहे और जब घड़ी की सुईयां जैसे ही 12:00 से आगे सरके वो मेरी मुनिया को चूम कर मुझे जन्मदिन की बधाई दे और फिर मैं भी अपनी सारी लाज शर्म छोड़ कर उनके “उसको” चूम कर बधाई दूं। और फिर सारी रात हम आपस में गुंथे किलोल करते रहें। रात्रि के अंतिम पहर में उनींदी आँखें लिए मैं उनके सीने से लगी रहूँ और वो मेरे सारे अंगों को धीमे धीमे सहलाता और चूमता रहे जब तक हम दोनों ही नींद के बाहुपाश में ना चले जाएँ।

सातों श्रृंगार के साथ सजधज कर मैं मनीष की प्रतीक्षा कर रही थी। लगता था आज बारिश जरुर होगी और इस सावन की यह रिमझिम फुहार मेरे पूरे तन मन को आज एक बार जैसे फिर से शीतल कर जायेगी। दूरदर्शन पर धीमे स्वरों में किसी पुरानी फिल्म का गाना आ रहा था :

झिलमिल सितारों का आँगन होगा

रिमझिम बरसता सावन होगा।

मनीष कोई 8 बजे आया। उनके साथ श्याम भी थे। श्याम को साथ देख कर मुझे बड़ा अटपटा सा लगा। अन्दर आते ही श्याम ने मुझे बधाई दी “भाभी आपको जन्मदिन की पूर्व संध्या पर बहुत बहुत बधाई हो ?”

मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ ? श्याम को मेरे जन्मदिन का कैसे पता चला। ओह… यह सब मनीष की कारगुजारी है। मैंने उनका औपचारिकतावश धन्यवाद किया और बधाई स्वीकार कर ली। उन्होंने मेरे हाथों को चूम लिया जैसा कि उस दिन किया था पर आज पता नहीं क्यों उनका मेरे हाथों को चूमना तनिक भी बुरा नहीं लगा ?

आपको एक बधाई और देनी है !”

“क… क्या मतलब मेरा मतलब है कैसी बधाई ?”

“मनीष आज रात ही एक हफ्ते के लिए ट्रेनिंग पर जा रहा है मुंबई?”

“ट्रेनिंग … ? कैसी ट्रेनिंग ?”

“अरे मनीष ने नहीं बताया ?”

“न… नहीं तो ?”

“ओह मनीष भी अजीब नालायक है यार। ओह सॉरी। वास्तव में उसके प्रमोशन के लिए ये ट्रेनिंग बहुत जरुरी है।”

“ओह… नो ?”

“अरे तुम्हें तो खुश होना चाहिए ? तुम्हें तो मुझे धन्यवाद देना चाहिए कि मैंने ही उसका नाम प्रपोज़ किया है? क्या हमें मिठाई नहीं खिलाओगी मैनाजी ?”

उनके मुंह पर मैना संबोधन सुनकर मुझे बड़ा अटपटा सा लगा। मेरा यह नाम तो केवल प्रेम भैया या कभी कभी मनीष ही लेता है फिर इनको मेरा यह नाम …

मैंने आश्चर्य से श्याम की ओर देखा तो वो बोला,”भई मनीष मुझ से कुछ नहीं छिपाता। हम दोनों का बॉस और सहायक का रिश्ता नहीं है वो मेरा मित्र है यार” श्याम एक ही सांस में कह कर मुस्कुराने लगा। और मेरी ओर उसने हाथ बढ़ाया ही था कि अन्दर से मनीष की आवाज ने हम दोनों को चोंका दिया,”मीनू एक बार अन्दर आना प्लीज मेरी शर्ट नहीं मिल रही है।”

मैं दौड़ कर अन्दर गई। अन्दर जाते ही मैंने कहा “तुमने मुझे बताया ही नहीं कि तुम्हें आज ही ट्रेनिंग पर जाना है ?”

“ओह मेरी मैना तुम्हें तो खुश होना चाहिए। देखो यहाँ आना हमारे लिए कितना लकी है कि आते ही ट्रेनिंग पर जाना पड़ गया और फिर वापस आते ही प्रमोशन पक्का !” उसने मुझे बाहों में भर कर चूम लिया।

“पर क्या आज ही जाना जरुरी है ? तुम कल भी तो जा सकते हो ? देखो कल मेरा जन्मदिन है और …?” मैंने अपने आप को छुड़ाते हुए कहा।

“ओह मीनू डीयर… ऐसा अवसर बार बार नहीं आता तुम्हारा जन्मदिन फिर कभी मना लेंगे !” उसने मेरे गालों पर हलकी सी चपत लगाते हुए कहा।

“ओह … मनीष प्यार-व्यार बाद में कर लेना यार 10:00 बजे की फ्लाइट है अब जल्दी करो।”

पता नहीं यह श्याम कब से दरवाजे के पास खड़ा था। मुझे तो समझ ही नहीं आ रहा था कि मैं रोऊँ या हंसूं ?

अपना सूटकेस पैक करके बिना कुछ खाए पीये मनीष और श्याम दोनों जाने लगे। मैं दौड़ती हुई उनकी कार तक आई। कार के अन्दर सोनिया (श्याम की सेक्रेटरी) बैठी हुई अपने नाखूनों पर नेल पोलिश लगा कर सुखा रही थी। मुझे एक झटका सा लगा। इसका क्या काम है यहाँ ? इस से पहले कि मैं कुछ बोलूँ श्याम बोला,”भाभी आप भी एअरपोर्ट तक चलो ना ? क्या मनीष को सी ऑफ करने नहीं चलोगी ?”

यह बात तो मनीष को कहनी चाहिए थी पर वो तो इस यात्रा और ट्रेनिंग के चक्कर में इतना खोया था कि उसे किसी बात का ध्यान ही नहीं था। लेकिन श्याम की बात सुनकर वो भी बोला, “हाँ.. हाँ मीनू तुम भी चलो आते समय श्याम भाई तुम्हें घर छोड़ देंगे।”

मैं मनीष के साथ अगली सीट पर बैठ गई। रास्ते में मैंने बैक मिरर में देखा था किस तरह वो चुड़ैल सोनिया श्याम की पैंट पर हाथ फिरा रही थी। निर्लज्ज कहीं की।

वापस लौटते समय श्याम ने मुझे बताया,”देखो मनीष को तुम्हारी ज्यादा याद ना आये इसलिए मैंने सोनिया को भी उसके साथ ट्रेनिंग पर भेज दिया है। चलो मज़े करने दो दोनों को !” और वो जोर जोर से हंसने लगा। मेरे तो जैसे पैरों के तले से जमीन ही खिसक गई। यह तो सरे आम नंगाई है। रास्ते में मैं कुछ नहीं बोली। मैं तो चाहती थी कि जल्दी से घर आ जाए और इनसे पीछा छूटे।

कोई पौने 11:00 बजे हम घर पहुंचे। श्याम ने कहा,”क्या हमें एक कप चाय या कॉफ़ी नहीं पिलाओगी मीनूजी ?”

“ओह … हाँ ! आइये !” ना चाहते हुए भी मुझे उसे अन्दर बुलाना पड़ा। मुझे क्रोध भी आ रहा था ! मान ना मान मैं तेरा महमान। अन्दर आकर वो सोफे पर पसर गया। मैंने रसोई में जाने का उपक्रम किया तो वो बोला “अरे भाभी इतनी जल्दी भी क्या है प्लीज बैठो ना ? आराम से बना लेना चाय ? आओ पहले कुछ बातें करते हैं?”

“ओह ?” मैंने आश्चर्य से उनकी ओर देखा “कैसी बातें ?”

“अरे यार बैठो तो सही ?”

उसने मेरी बांह पकड़ कर बैठाने की कोशिश की तो मैं उनसे थोड़ा सा हटकर सोफे पर बैठ गई।

“मीनू उसने मुझे पहले नहीं बताया कि कल तुम्हारा जन्मदिन है नहीं तो उसकी ट्रेनिंग आगे पीछे कर देता यार !”

“कोई बात नहीं … पर यह कैसी ट्रेनिंग है ?”

श्याम हंसने लगा “अरे मनीष ने नहीं बताया ?”

मेरे लिए बड़ी उलझन का समय था। अब मैं ना तो हाँ कह सकती थी और ना ही ना। वो मेरी दुविधा अच्छी तरह जानता था। इसीलिए तो मुस्कुरा रहा था।

“अच्छा एक बात बताओ मीनू तुम दोनों में सब ठीक तो चल रहा है ना ?”

“क… क्या मतलब ?”

“मीनू तुम इतनी उदास क्यों रहती हो ? रात को सब ठीकठाक रहता है ना ?”

मुझे आश्चर्य भी हो रहा था और क्रोध भी आ रहा था किसी पराई स्त्री के साथ इस तरह की अन्तरंग बातें किसी को शोभा देती हैं भला ? पर पति का बॉस था उसे कैसे नाराज़ किया जा सकता था। मैं असमंजस में उसकी ओर देखती ही रह गई। मेरी तो जैसे रुलाई ही फूटने वाली थी। मेरी आँखों में उमड़ते आंसू उसकी नज़रों से भला कैसे छिपते। एक नंबर का लुच्चा है ये तो। देखो कैसे मेरा नाम ले रहा है और ललचाई आँखों से निहार रहा है।

“नहीं ऐसी कोई बात नहीं है … म… मेरा मतलब है सब ठीक है ?” किसी तरह मेरे मुँह से निकला।

“ओह मैं समझा … कल तो तुम्हारा जन्मदिन है ना ? और आज ही मनीष को मुंबई जाना पड़ गया। ओह … आइ ऍम सॉरी। पर भई उसके प्रमोशन के लिए जाना जरुरी था। पर तुम चिंता मत करो तुम्हारा जन्म दिन हम दोनों मिलकर मना लेंगे।”

मैं क्या बोलती। चुपचाप बैठी उसकी घूरती आँखें देखती रही।

कुछ पलों के बाद वो बोला,”देखो मीनू ! मनीष तुम्हारी क़द्र नहीं करता मैं जानता हूँ। तुम बहुत मासूम हो। यह ट्रेनिंग वगेरह तो एक बहाना है यार उसे दरअसल घूमने फिरने और मौज मस्ती करने भेजा है ? समझा करो यार ! घर की दाल खा खा कर आदमी बोर हो जाता है कभी कभी स्वाद बदलने के लिए बाहर का खाना खा लिया जाए तो क्या बुराई है ? तुम क्या कहती हो ?”

मैं उसके कहने का मतलब और नीयत अच्छी तरह जानती थी।

“नहीं यह सब अनैतिक और अमर्यादित है। मैं एक विवाहिता हूँ और उसी दकियानूसी समाज में रहती हूँ जिसकी परंपरा का निर्वाह तो करना ही पड़ता है। मनीष जो चाहे करे मेरे लिए यह कदापि संभव नहीं है। प्लीज आप चले जाएँ।” मैंने दृढ़ता पूर्वक कहा पर कहते कहते मेरी आँखें डबडबा उठी।

मैं जानती थी समाज की परंपरा भूल कर जब एक विवाहिता किसी पर पुरुष के साथ प्रेम की फुहार में जब भीगने लगती है तब कई समस्याएं और विरोध प्रश्न आ खड़े होते हैं।

मैं अपने आप पर नियंत्रण रखने का पूरा प्रयत्न कर रही थी पर मनीष की उपेक्षा और बेवफाई सुनकर आखिर मेरी आँखों से आंसू टपक ही पड़े। मुझे लगा अब मैं अपनी अतृप्त कामेक्षा को और सहन नहीं कर पाउंगी। मेरे मन की उथल पुथल वो अच्छी तरह जानता था। बाहर कहीं आल इंडिया रेडियो पर तामिले इरशाद में किसी पुरानी फिल्म का गाना बज रहा था :

मोऽ से छल कीये जाए… हाय रे हाय…

देखो …… सैंयाँ….. बे-ईमान ……

उसने मेरे एक हाथ पकड़ लिया और मेरी ठोडी पकड़ कर ऊपर उठाते हुए बोला,”देखो मीनू दरअसल तुम बहुत मासूम और परम्परागत लड़की हो। तुम जिस कौमार्य, एक पतिव्रता, नैतिकता, सतीत्व, अस्मिता और मर्यादा की दुहाई दे रही हो वो सब पुरानी और दकियानूसी सोच है। मैं तो कहता हूँ कि निरी बकवास है। सोचो यदि किसी पुरुष को कोई युवा और सुन्दर स्त्री भोगने के लिए मिल जाए तो क्या वो उसे छोड़ देगा ? पुरुषों के कौमार्य और उनकी नैतिकता की तो कोई बात नहीं करता फिर भला स्त्री जाति के लिए ही यह सब वर्जनाएं, छद्म नैतिकता और मर्यादाएं क्यों हैं ? वास्तव में यह सब दोगलापन, ढकोसला और पाखण्ड ही है। पता नहीं किस काल खंड में और किस प्रयोजन से यह सब बनाया गया था। आज इन सब बातों का क्या अर्थ और प्रसांगिकता रह गई है सोचने वाली बात है ? जब सब कुछ बदल रहा है तो फिर हम इन सब लकीरों को कब तक पीटते रहेंगे।”

उसने कहना चालू रखा “शायद तुम मुझे लम्पट, कामांध और यौन विकृत व्यक्ति समझ रही होगी जो किसी भी तरह तुम्हारे जैसी अकेली और बेबस स्त्री की विवशता का अनुचित लाभ उठा कर उसका यौन शोषण कर लेने पर आमादा है ? पर ऐसा नहीं है। देखो मीनू मेरे जैसे उच्च पदासीन और साधन संपन्न व्यक्ति के लिए सुन्दर लड़कियों की क्या कमी है ? तुम इस कोर्पोरेट कल्चर (संस्कृति) को नहीं जानती। आजकल तो 5-6 मित्रों का एक समूह बन जाता है और रात को सभी एक जगह इकट्ठा होकर अपने अपने साथी बदल लेते हैं। मेरे भी ऑफिस की लगभग सारी लड़कियां और साथ काम करने वालों की पत्नियां मेरे एक इशारे पर अपना सब कुछ लुटाने को तैयार बैठी हैं। मेरे लिए किसी भी सुन्दर लड़की को भोग लेना कौन सी बड़ी बात है?”

“दरअसल मुझे मनोरमा के साथ मजबूरन शादी करनी पड़ी थी और मैंने अपनी प्रेमिका को खो दिया था। जिन्दगी में हरेक को सब कुछ नसीब नहीं होता। मैं आज भी उसी प्रेम को पाने के लिए तड़फ रहा हूँ। जब से तुम्हें देखा है मुझे अपना वो 16 वर्ष पुराना प्रेम याद आ जाता है क्योंकि तुम्हारी शक्ल हूँ बहू उस से मिलती है।”

मैं तो जैसे मुंह बाए उन्हें देखती ही रह गई। उन्होंने अपनी बात चालू रखी

“देखो मीनू मैं तुम्हें अपने शब्द जाल में फंसा कर भ्रमित नहीं कर रहा हूँ। दर असल प्रेम और वासना में बहुत झीना पर्दा होता है। एक बात तो तुम भी समझती हो कि हर प्रेम या प्यार का अंत तो बस शारीरिक मिलन ही होता है। तुम जिसे वासना कह रही हो यह तो प्रेम की अंतिम अभिव्यक्ति है जहां शब्द मौन हो जाते हैं और प्रेम की परिभाषा समाप्त हो जाती है। दो प्रेम करने वाले एक दूसरे में समां जाते हैं तब दो शरीर एक हो जाते हैं और उनका अपना कोई पृथक अस्तित्व नहीं रह जाता। एक दूसरे को अपना सब कुछ सौंप कर एकाकार हो जाते हैं। इस नैसर्गिक क्रिया में भला गन्दा और पाप क्या है ? कुछ भ्रमित लोग इसे अनैतिक और अश्लील कहते हैं पर यह तो उन लोगों की गन्दी सोच है।”

“ओह श्याम बाबू मुझे कमजोर मत बनाओ प्लीज … मैं यह सब कदापि नहीं सोच सकती आप मुझे अकेला छोड़ दें और चले जाएँ यहाँ से।”

“मीनू मैं तुम्हें विवश नहीं करता पर एक बार मेरे प्रेम को समझो। ये मेरी और तुम्हारी दोनों की शारीरिक आवश्कता है। मैं जानता हूँ तुम भी मेरी तरह यौन कुंठित और अतृप्त हो। क्यों अपने इस रूप और यौवन को बर्बाद कर रही हो। क्या तुम्हारा मन नहीं करता कि कोई तुम्हें प्रेम करे और तुम्हारी चाहना को समझे ? मुझे एक बात समझ नहीं आती जब हम अच्छे से अच्छा भोजन कर सकते हैं, मन पसंद कपड़े, वाहन, शिक्षा, मनोरंजन का चुनाव कर सकते हैं तो फिर सेक्स के लिए ही ऐसा प्रतिबन्ध क्यों ? हम इसके लिए भी अपनी पसंद का साथी क्यों नहीं चुन सकते ? दरअसल इस परमानंद की प्राकृतिक चीज को कुछ तथाकथित धर्म और समाज के ठेकेदारों ने विकृत बना दिया है वरना इस नैसर्गिक सुख देने वाली क्रिया में कहाँ कुछ गन्दा या अश्लील है जिसके लिए नैतिकता की दुहाई दी जाती है ?”

“वो… वो … ?”

बाहर जोर से बिजली कड़की। मुझे लगा कि जैसे मेरे अन्दर भी एक बिजली कड़क रही है। श्याम की कुछ बातें तो सच ही हैं यह सब वर्जनाएं स्त्री जाति के लिए ही क्यों हैं ? जब मनीष विवाहित होकर खुलेआम यह सब किसी पराई स्त्री के साथ कर सकता है तो … तो मैं क्यों नहीं ??

“क्या सोच रही हो मीनू ? देखो अपने भाग्य को कोसने या दोष देने का कोई अर्थ नहीं है। मैं जानता हूँ मनीष को समझ ही नहीं है स्त्री जाति के मन की। ऐसे लोगों को प्रेम का ककहरा भी नहीं आता इन्हें तो प्रेम की पाठशाला में भेजना जरुरी होता है ? रही तुम्हारी बात तुम्हें कहाँ पता है कि वास्तव में प्रेम क्या होता है ?”

मैंने अपनी आँखें पहली बार उनकी और उठाई। यह तन और मन की लड़ाई थी। मुझे लगने लगा था कि इस तन की ज्वाला के आगे मेरी सोच हार जायेगी। मेरी अवस्था वो भली भाँति जानता था। उसने मेरे कपोलों पर आये आंसू पोंछते हुए कहना चालू रखा,”मीनू जब से मैंने तुम्हें देखा है और मनीष ने अपने और तुम्हारे बारे में बताया है पता नहीं मेरे मन में एक विचित्र सी हलचल होती रहती है। मैं आज स्वीकार करता हूँ कि मेरे सम्बन्ध भी अपनी पत्नी के साथ इतने मधुर नहीं हैं। मैं शारीरिक संबंधों की बात कदापि नहीं कर रहा। मैं जो प्रेम चाहता हूँ वो मुझे नहीं मिलता। मीनू हम दोनों एक ही नाव पर सवार हैं। हम दोनों मिलकर प्रेम के इस दरिया को पार कर सकते हैं। अब यह सब तुम्हारे ऊपर निर्भर करता है कि तुम यूँ ही कुढ़ना चाहती हो या इस अनमोल जीवन का आनंद उठाना चाहती हो ? मीनू इसमें कुछ भी अनैतिक या बुरा नहीं है। यह तो शरीर की एक बुनियादी जरुरत है अगर तुम चाहो तो मैं तुम्हें प्रेम आनंद की उन ऊंचाइयों पर ले जा सकता हूँ जिस से तुम अब तक अनजान हो। मैं तुम्हें उस चरमोत्कर्ष और परमानंद का अनुभव करा सकता हूँ जिससे आज तक तुम वंचित रही हो !”

मैं तो विचित्र दुविधा में उलझ कर रह गई थी। एक ओर मेरे संस्कार और दूसरी ओर मेरे शरीर और मन की आवश्यकताएं ? हे भगवान्… अब मैं किधर जाऊं? क्या करूँ ? सावन की जिस रात में मैंने किन्हीं कमजोर क्षणों में अपना कौमार्य खो दिया था उन पलों को याद कर के आज भी मैं कितना रोमांच से भर जाती हूँ। शायद वैसे पल तो इन दो सालों में मेरे जीवन में कभी लौट कर आये ही नहीं। श्याम जिस प्रकार की बातें कर रहा है मैं इतना तो अनुमान लगा ही सकती हूँ कि वो प्रेम कला में निपुण हैं। किसी स्त्री को कैसे काम प्रेरित किया जाता है उन्हें अच्छी तरह ज्ञात है। जब मनीष को मेरी कोई परवाह नहीं है तो फिर मैं उसके पीछे क्यों अपने यौवन की प्यास में जलती और कुढ़ती रहूँ ?

प्रकृति ने स्त्री को रूप यौवन के रूप में बहुत बड़ा वरदान दिया है जिसके बल पर वो बहुत इतराती है लेकिन उसके साथ एक अन्याय भी किया है कि उसे अपने यौवन की रक्षा के लिए शक्ति प्रदान नहीं की। कमजोर क्षणों में और पुरुष शक्ति के आगे उसके लिए अपना यौवन बचाना कठिन होता है। पर मेरे लिए ना तो कोई विवशता थी ना मैं इतनी कमजोर थी पर मेरा मन विद्रोह पर उतर आया था। जब नारी विद्रोह पर उतर आती है तो फिर उन मर्यादाओं और वर्जनाओं का कोई अर्थ नहीं रह पाता जिसे वो सदियों से ढोती आ रही है।

और फिर मैंने सब कुछ सोच लिया ……
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07-04-2017, 12:46 PM,
RE: प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ
मोऽ से छल किये जा … सैंयां बे-ईमान-3

श्याम जिस प्रकार की बातें कर रहा है मैं इतना तो अनुमान लगा ही सकती हूँ कि वो प्रेम कला में निपुण हैं। किसी स्त्री को कैसे काम प्रेरित किया जाता है उन्हें अच्छी तरह ज्ञात है। जब मनीष को मेरी कोई परवाह नहीं है तो फिर मैं उसके पीछे क्यों अपने यौवन की प्यास में जलती और कुढ़ती रहूँ ?

प्रकृति ने स्त्री को रूप यौवन के रूप में बहुत बड़ा वरदान दिया है जिसके बल पर वो बहुत इतराती है लेकिन उसके साथ एक अन्याय भी किया है कि उसे अपने यौवन की रक्षा के लिए शक्ति प्रदान नहीं की। कमजोर क्षणों में और पुरुष शक्ति के आगे उसके लिए अपना यौवन बचाना कठिन होता है। पर मेरे लिए ना तो कोई विवशता थी ना मैं इतनी कमजोर थी पर मेरा मन विद्रोह पर उतर आया था। जब नारी विद्रोह पर उतर आती है तो फिर उन मर्यादाओं और वर्जनाओं का कोई अर्थ नहीं रह पाता जिसे वो सदियों से ढोती आ रही है।

और फिर मैंने सब कुछ सोच लिया ……

मैंने अपने आंसू पोंछ लिए और श्याम से पूछा, “ठीक है ! आप क्या चाहते हैं ?”

“वही जो एक प्रेमी अपनी प्रेयसी से चाहता है, वही जो एक भंवरा किसी फूल से चाहता है, वही नैसर्गिक आनंद जो एक नर किसी मादा से चाहता है ! सदियों से चले आ रही इस नैसर्गिक क्रिया के अलावा एक पुरुष किसी कमनीय स्त्री से और क्या चाह सकता है ?”

“ठीक है मैं तैयार हूँ ? पर मेरी दो शर्तें होंगी ?”

“मुझे तुम्हारी सभी शर्तें मंजूर हैं … बोलो … ?”

“हमारे बीच जो भी होगा मेरी इच्छा से होगा किसी क्रिया के लिए मुझे बाध्य नहीं करोगे और ना ही इन कामांगों का गन्दा नाम लेकर बोलोगे ? दूसरी बात हमारे बीच जो भी होगा वो बस आज रात के लिए होगा और आज की रात के बाद आप मुझे भूल जायेंगे और किसी दूसरे को इसकी भनक भी नहीं होने देंगे !”

“ओह मेरी मैना रानी तुम्हारे लिए तो मैं अपनी जान भी दे दूं !”

इतनी बड़ी उपलब्धि के बाद उसके चेहरे की मुस्कान देखने लायक थी। उसे भला मेरी इन शर्तों में क्या आपत्ति हो सकती थी। और फिर उसने मुझे अपनी बाहों में भर लेना चाहा।

मैंने उसे वहीं रोक दिया।

“नहीं इतनी जल्दी नहीं ! मैंने बताया था ना कि जो भी होगा मेरी इच्छानुसार होगा !”

“ओह … मीनू अब तुम क्या चाहती हो ?”

“तुम ठहरो मैं अभी आती हूँ !” और मैं अपने शयनकक्ष की ओर चली आई।

मैंने अपनी आलमारी से वही हलके पिस्ता रंग का टॉप और कॉटन का पतला सा पजामा निकला जिसे मैंने पिछले 4 सालों से बड़े जतन से संभाल कर रखा था। मैंने वह सफ़ेद शर्ट और लुंगी भी संभाल कर रखी थी जिसे मैंने उस बारिश में नहाने के बाद पहनी थी। यह वही कपड़े थे जो मेरे पहले प्रेम की निशानी थे। जिसे पहन कर मैं उस सावन की बरसात में अपने उस प्रेमी के साथ नहाई थी। बाहर रिमझिम बारिश हो रही थी। मैं एक बार उन पलों को उसी अंदाज़ में फिर से जी लेना चाहती थी।

बाहर श्याम बड़ी आतुरता से मेरी प्रतीक्षा कर रहा था।

मैंने उसका हाथ पकड़ा और कहा,”आओ मेरे साथ !”

“क… कहाँ जा रही हो ?”

“ओह मैंने कहा था ना कि तुम वही करोगे जो मैं कहूँगी या चाहूंगी ?”

“ओह… पर बताओ तो सही कि तुम मुझे कहाँ ले जा रही हो ?”

“पहले हम छत के ऊपर चल कर इस रिमझिम बारिश में नहायेंगें !” मैंने उसकी आँखों में झांकते हुए कहा। उसकी आँखों में भी अब लाल डोरे तैरने लगे थे। अब उसके समझ में आया कि मैं पहले क्या चाहती हूँ।

हम दोनों छत पर आ गए। बारिश की नर्म फुहार ने हम दोनों का जी खोल कर स्वागत किया। मैंने श्याम को अपनी बाहों में भर लिया। मेरे अधर कांपने लगे थे। श्याम का दिल बुरी तरह धड़क रहा था। उसने अपने लरजते हाथों से मुझे अपने बाहुपाश में बाँध लिया जैसे। उसके मुख से एक मधुर सी सुगंध मेरी सांसों में घुल गई। धीरे धीरे मैं अपने आप को उसको समर्पण करने लगी। हम दोनों एक दूसरे के होंठों का रस चूसने लगे। मैं तो उस से इस तरह लिपटी थी जैसे की बरसों की प्यासी हूँ। वो कभी मेरी पीठ सहलाता कभी भारी भारी पुष्ट नितम्बों को सहलाता कभी भींच देता। मेरे मुँह से मीठी सीत्कार निकालने लगी थी। मेरे उरोज उसके चौड़े सीने से लगे पिस रहे थे। मैंने उसकी शर्ट के ऊपर के दो बटन खोल दिए और अपना सिर उसके सीने से लगा कर आँखें बंद कर ली। एक अनोखे आनंद और रोमांच से मेरा अंग अंग कांप रहा था। उसके धड़कते दिल की आवाज मैं अच्छी तरह सुन रही थी। मुझे तो लग रहा था कि समय चार साल पीछे चला है और जैसे मैंने अपने पहले प्रेम को एक बार फिर से पा लिया है।

अब उसने धीरे से मेरा चेहरा अपनी दोनों हथेलियों में भर लिया। मेरे होंठ काँप रहे थे। उसकी भी यही हालत थी। रोमांच से मेरी आँखें बंद हुई जा रही थी। बालों की कुछ आवारा पानी में भीगी लटें मेरे गालों पर चिपकी थी। उसने अचानक अपने जलते होंठ मेरे होंठों से लगा दिए। इतने में बिजली कड़की। मुझे लगा कि मेरे अन्दर जो बिजली कड़क रही है उसके सामने आसमान वाली बिजली की कोई बिसात ही नहीं है। आह … उस प्रेम के चुम्बन और होंठों की छुवन से तो अन्दर तक झनझना उठी। मैंने उसे कस कर अपनी बाहों में भर लिया और अपनी एक टांग ऊपर उठा ली। फिर उसने एक हाथ से मेरी कमर पकड़ ली और दूसरे हाथ को मेरी जांघ के नीचे लगा दिया। मेरी तो जैसी झुरझुरी सी दौड़ गई। मैंने अपने जीभ उसके मुँह में डाल दी। वो तो उसे किसी रसभरी की तरह चूसने लगा। कोई दस मिनट तक हम दोनों इसी तरह आपस में गुंथे एक दुसरे से लिपटे खड़े बारिस में भीगते रहे।

अब मुझे छींकें आनी शुरू हो गई तो श्याम बोला “ओह मीनू लगता है तुम्हें ठण्ड लग गई है ? चलो अब नीचे चलते हैं ?”

“श्याम थोड़ी देर और… रररर… रु…..को … ना… आ छी….. ईई ………………………”

“ओह तुम ऐसे नहीं मानोगी ?” और फिर उसने मुझे एक ही झटके में अपनी गोद में उठा लिया। मैंने अपनी नर्म नाज़ुक बाहें उसके गले में डाल कर अपना सिर उसके सीने से लगा दिया। मेरी आँखें किसी अनोखे रोमांच और पुरानी स्मृतियों में अपने आप बंद हो गई। वो मुझे अपनी गोद में उठाये ही नीचे आ गया।

बेडरूम में आकर उसने मुझे अपनी गोद से नीचे उतार दिया। मैं गीले कपड़े बदलने के लिए बेडरूम से लगे बाथरूम में चली गई। मैंने अपने गीले कपड़े उतार दिए और शरीर को पोंछ कर अपने बाल हेयर ड्रायर से सुखाये। फिर मैंने अपने आप को वाश बेसिन पर लगे शीशे में एक बार देखा। अरे यह तो वही मीनल थी जो आज से चार वर्ष पूर्व उस सावन की बारिश में नहा कर मैना बन गई थी। मैं अपनी निर्वस्त्र कमनीय काया को शीशे में देख कर लजा गई। फिर मैंने वही शर्ट और लुंगी पहन ली जो मैंने 4 सालों से सहेज कर रखी थी। जब मैं बाथरूम से निकली तो मैंने देखा की श्याम ने अपने गीले कपड़े निकाल दिए थे और शरीर पोंछ कर तौलिया लपेट लिया था। वैसे देखा जाए तो अब तौलिये की भी क्या आवश्यकता रह गई थी।

मैं बड़ी अदा से अपने नितम्ब मटकाती पलंग की ओर आई। मेरे बाल खुले थे जो मेरे आधे चहरे को ढके हुए थे। जैसे कोई बादल चाँद को ढक ले। कोई दिन के समय मेरी इन खुली जुल्फों और गेसुओं को देख ले तो सांझ के धुंधलके का धोखा खा जाए। श्याम तो बस फटी आँखों से मुझे देखता ही रह गया।

मैं ठीक उसके सामने आकर खड़ी हो गई। लगता था उसकी साँसें उखड़ी हुई सी हैं। मैंने अचानक आगे बढ़ कर उसके सिर के पीछे अपनी एक बांह डाल कर अपनी और खींचा। उसे तो जैसे कुछ समझ ही नहीं आया कि इस दौरान मैंने अपने दूसरे हाथ से कब उसकी कमर से लिपटा तौलिया भी खींच दिया था। इतनी चुलबुली तो शमा हुआ करती थी। पता नहीं आज मुझे क्या हो रहा था। मेरी सारी लाज और शर्म पता नहीं कहाँ ग़ुम हो गई थी। लगता था मैं फिर से वही मीनल बन गई हूँ। इसी आपाधापी में वो पीछे हटने और अपने नंगे बदन को छिपाने के प्रयास में पलंग पर गिर पड़ा और मैं उसके ठीक ऊपर गिर पड़ी। मेरे मोटे मोटे गोल उरोज ठीक उसके सीने से लगे थे और मेरा चेहरा उसके चहरे से कोई 2 या 3 इंच दूर ही तो रह गया था। उसका तना हुआ “वो” मेरी नाभि से चुभ रहा था।

अब मुझे जैसे होश आया कि यह मैं क्या कर बैठी हूँ। मैंने मारे शर्म के अपने हाथों से अपना मुँह ढक लिया। श्याम ने कोई जल्दी या हड़बड़ी नहीं दिखाई। उसने धीरे से मेरे सिर को पकड़ा और अपने सीने से लगा लिया। उसके सीने के घुंघराले बाल मेरे कपोलों को छू रहे थे और मेरे खुले बालों से उसका चेहरा ढक सा गया था। उसने मेरी पीठ और नितम्बों को सहलाना शुरू कर दिया तो मैं थोड़ी सी चिहुंक कर आगे सरकी तो मेरे होंठ अनायास ही उसके होंठों को छू गए। उसने एक बार फिर मेरे अधरों को अपने मुँह में भर लिया और चूसने लगा। मेरे उरोज अब उसके सीने से दब और पिस रहे थे। मेरा तो मन कर रहा था कि आज कोई इनको इतनी जोर से दबाये कि इनका सारा रस ही निकल कर बाहर आ जाए। मेरी बगलों (कांख) से निकलती मादक महक ने उसे जैसे मतवाला ही बना दिया था। मैं भी तो उसके चौड़े सीने से लग कर अभिभूत (निहाल) ही हो गई थी। पता नहीं कितनी देर हम लोग इसी अवस्था में पड़े रहे। समय का किसे ध्यान रहता है ऐसी अवस्था में ?

अब मैंने उसको कन्धों से पकड़ कर एक पलटी मारी। अब उसका लगभग आधा शरीर मेरे ऊपर था और उसकी उसकी एक टांग मेरी जाँघों के बीच फंस गई। मेरी लुंगी अपने आप खुल गई थी। ओह… मारे शर्म के मैंने अपनी मुनिया के ऊपर अपना एक हाथ रखने की कोशिश की तो मेरा हाथ उसके 7″ लम्बे और 1.5 इंच मोटे “उस” से छू गया। जैसे ही मेरी अंगुलियाँ उससे टकराई उसने एक ठुमका लगाया और मैंने झट से अपना हाथ वापस खींच लिया। उसने मेरी शर्ट के बटन खोल दिए। मेरे दोनों उरोज तन कर ऐसे खड़े थे जैसे कोई दो परिंदे हों और अभी उड़ जाने को बेचैन हों। वो तो उखड़ी और अटकी साँसों से टकटकी लगाए देखता ही रह गया। मेरी एक मीठी सीत्कार निकल गई। अब उसने धीमे से अपने हाथ मेरे उरोजों पर फिराया। आह … मेरी तो रोमांच से झुरझुरी सी निकल गई। अब उसने मेरे कड़क हो चले चुचूकों पर अपनी जीभ लगा दी। उस एक छुवन से मैं तो जैसे किसी अनोखे आनंद में ही गोते लगाने लगी। मुझे पता नहीं कब मेरे हाथ उसके सिर को पकड़ कर अपने उरोजों की और दबाने लगे थे। मेरी मीठी सीत्कार निकल पड़ी। उसने मेरे स्तनाग्र चूसने चालू कर दिए। मेरी मुनिया तो अभी से चुलबुला कर कामरस छोड़ने लगी थी।

अब उसने एक हाथ से मेरा एक उरोज पकड़ कर मसलना चालू कर दिया और दूसरे उरोज को मुँह में भर कर इस तरह चूसने लगा जैसे कि कोई रसीला आम चूसता है। बारी बारी उसने मेरे दोनों उरोजों को चूसना चालू रखा। मेरे निप्पल तो ऐसे हो रहे थे जैसे कोई चमन के अंगूर का दाना हो और रंग सुर्ख लाल। अब उसने मेरे होंठ, कपोल, गला, पलकें, माथा और कानों की लोब चूमनी चालू कर दी। मैं तो बस आह… उन्ह… करती ही रह गई। अब उसने मेरी बगल में अपना मुँह लगा कर सूंघना चालू कर दिया। आह … एक गुनगुने अहसास से मैं तो उछल ही पड़ी। मेरी बगलों से उठती मादक महक ने उसे कामातुर कर दिया था।

ऐसा करते हुए वो अपने घुटनों के बल सा हो गया और फिर उसने मेरी गहरी नाभि पर अपनी जीभ लगा कर चाटना शुरू कर दिया।

रोमांच के कारण मेरी आँखें स्वतः ही बंद होने लगी थी। मैंने उसके सिर को अपने हाथों में पकड़ लिया। मेरी जांघें इस तरह आपस में कस गई कि अब तो उसमें से हवा भी नहीं निकल सकती थी।

जैसे ही उसने मेरे पेडू पर जीभ फिराई मेरी तो किलकारी ही निकल गई। उसकी गर्म साँसों से मेरा तो रोम रोम उत्तेजना से भर उठा था। मेरी मुनिया तो बस 2-3 इंच दूर ही रह गई थी अब तो। मुझे आश्चर्य हो रहा था कि वो मेरी मुनिया तक जल्दी से क्यों नहीं पहुँच रहा है। मेरे लिए तो इस रोमांच को अब सहन करना कठिन लग रहा था। मुझे तो लगा मेरी मुनिया ने अपना कामरज बिना कुछ किये हो छोड़ दिया है। मैंने अपनी जांघें थोड़ी सी खोल दी। मेरा विश्वास था जब उसकी नज़र मेरी चिकनी रोम विहीन मुनिया पर पड़ेगी तो उसकी आँखें तो फटी की फटी ही रह जायेगी। मेरी मुनिया का रंग तो वैसे भी गोरा है जैसे किसी 14 साल की कमसिन कन्या की हो। गुलाबी रंग की बर्फी के दो तिकोने टुकड़े जैसे किसी ने एक साथ जोड़ दिए हों और बस 3-4 इंच का रक्तिम चीरा। उस कमसिन नाजनीन को देख कर वो अपने आप को भला कैसे रोक पायेगा। गच्च से पूरी की पूरी अपने मुँह में भर लेगा। पर अगले कुछ क्षणों तक न तो उसने कोई गतिविधि की ना ही कुछ कहा।

अचानक मेरे कानों में उसकी रस घोलती आवाज़ पड़ी,”मरहबा … सुभान अल्लाह … मेरी मीनू तुम बहुत खूबसूरत हो !”

और उसके साथ ही उसने एक चुम्बन मेरी मुनिया पर ले लिया और फिर जैसे कहीं कोयल सी कूकी :”कुहू … कुहू …”

हम दोनों ही इन निशांत क्षणों में इस आवाज को सुन कर चौंक पड़े और हड़बड़ा कर उठ बैठे। ओह… दीवाल घड़ी ने 12:00 बजा दिए थे। जब कमरे में अंधरे हो तो यह घड़ी नहीं बोलती पर कमरे में तो ट्यूब लाइट का दूधिया प्रकाश फैला था ना। ओह … हम दोनों की हंसी एक साथ निकल गई।

उसने मेरे अधरों पर एक चुम्बन लेते हुए कहा,”मेरी मीनू को जन्मदिन की लाख लाख बधाई हो- तुम जीओ हज़ारों साल और साल के दिन हों पचास हज़ार !”

मेरा तो तन मन और बरसों की प्रेम की प्यासी आत्मा ही जैसे तृप्त हो गई इन शब्दों को सुनकर। एक ठंडी मिठास ने मुझे जैसे अन्दर तक किसी शीतलता से लबालब भर सा दिया। सावन की उमस भरी रात में जैसे कोई मंद पवन का झोंका मेरे पूरे अस्तित्व को ही शीतल कर गया हो। अब मुझे समझ लगा कि उस परम आनंद को कामुक सम्भोग के बिना भी कैसे पाया जा सकता है। श्याम सच कह रहा था कि ‘मैं तुम्हें प्रेम (सेक्स) की उन बुलंदियों पर ले जाऊँगा जिस से तुम अभी तक अपरिचित हो।‘

श्याम पलंग पर बैठा मेरी और ही देख रहा था। मैंने एक झटके में उसे बाहों में भर लिया और उसे ऐसे चूमने लगी जैसेकि वो 38 वर्षीय एक प्रोढ़ पुरुष न होकर मेरे सामने कामदेव बैठा है। मेरी आँखें प्रेम रस से सराबोर होकर छलक पड़ी। ओह मैं इस से पहले इतनी प्रेम विव्हल तो कभी नहीं हुई थी। सच में एक पराये मर्द का स्पर्श में कितना मधुर आनन्द आता है। यह अनैतिक कार्य मुझे अधिक रोमांचित कर रहा था। उसके अधर मेरे गुलाबी गोरे गालों को चूमने लगे थे।

“ओह… मेरे श्याम … मेरे प्रियतम तुम कहाँ थे इतने दिन … आह… तुमने मुझे पहले क्यों नहीं अपनी बाहों में भर लिया ?”

“तुम्हारी इस हालत को मैं समझता हूँ मेरी प्रियतमा … इसी लिए तो मैंने तुम्हें समझाया था कि सम्भोग मात्र दो शरीरों के मिलन को ही नहीं कहते। उसमें प्रेम रस की भावनाएं होनी जरुरी होती हैं नहीं तो यह मात्र एक नीरस शारीरिक क्रिया ही रह जाती है !”

“ओह मेरे श्याम अब कुछ मत कहो बस मुझे प्रेम करो मेरे प्रेम देव !” मैंने उसे अपनी बाहों में जकड़े चूमती चली गई। मुझे तो ऐसे लग रहा था जैसे मैं कोई जन्म जन्मान्तर की प्यासी अभिशप्ता हूँ और केवल यही कुछ पल मुझे उस प्यास को बुझाने के लिए मिले हैं। मैं चाहती थी कि वो मेरा अंग अंग कुचल और मसल डाले । अब उसके होंठ मेरे पतले पतले अधरों से चिपक गये थे।

श्याम ने मेरे कपोलों पर लुढ़क आये आंसुओं को अपनी जीभ से चाट लिया। मैं प्रेम के इस अनोखे अंदाज़ से रोमांच से भर उठी। अब उसने मेरे अधरों को एक बार फिर से चूमा और फिर मेरे कोपल, नाक, पलकें चूमता चला गया। अब उसने मुझे पलंग पर लेटा दिया। वो टकटकी लगाए मेरे अद्वितीय सौन्दर्य को जैसे देखता ही रह गया। ट्यूब लाइट की दुधिया रोशनी में मेरा निर्वस्त्र शरीर ऐसे बिछा पड़ा था जैसे कोई इठलाती बलखाती नदी अटखेलियाँ करती अपने प्रेमी (सागर) से मिलाने को लिए आतुर हो।

श्याम मेरी बगल में लेट गया और उसने अपनी एक टांग मेरी कोमल और पुष्ट जाँघों के बीच डाल दी। उसका “वो” मेरी जांघ को छू रहा था। मैंने अपने आप को रोकने का बड़ा प्रयत्न किया पर मेरे हाथ अपने आप उस ओर चले गए और मैंने उसे अपनी मुट्ठी में पकड़ लिया। उसने एक जोर का ठुमका लगाया जैसे किसी मुर्गे की गरदन पकड़ने पर वो लगता है। श्याम ने मेरे अधरों को चूमना चालू रखा और एक हाथ से मेरे उरोज मसलने लगा। आह उन हाथों के हलके दबाव से मेरे उरोजों की घुन्डियाँ तो लाल ही हो गई। अब श्याम ने अपना एक हाथ मेरी मुनिया की ओर बढ़ाया।

आह … मेरा तो रोमांच से सारा शरीर ही झनझना उठा। सच कहूं तो मैं तो चाह रहा थी कि श्याम जल्दी से अपना “वो” मेरी मुनिया में डाल दे या फिर कम से कम अपनी एक अंगुली ही डाल दे।

उसने मेरी मुनिया की पतली सी लकीर पर अंगुली फिराई। मेरी तो किलकारी ही निकल गई,”आऐईईइ …… उईई … माआआआ …….” और मैंने उसके होंठों को इतने जोए से अपने मुँह में लेकर काटा कि उनसे तो खून ही झलकने लगा।

श्याम ने अपना काम चालू रखा। उसने मेरी मुनिया की फांकों को धीरे धीरे मसलना चालू कर दिया और मेरे अधरों को अपने मुँह में लेकर चूसने लगा। ऊपर और नीचे के दोनों होंठों में राई जितना भी अंतर नहीं था। अब उसने अपनी अंगुली चीरे के ठीक ऊपर लगा कर मदनमणि को टटोला और उसे अपनी अँगुलियों की चिमटी में लेकर दबा दिया। मेरे शरीर एक बार थोड़ा सा अकड़ा और मेरी मुनिया ने अपना काम रस छोड़ दिया। आह … इस चरमोत्कर्ष तो मैंने आज तक कभी अनुभव ही नहीं किया था। शमा कहती थी कि वो तो सम्भोग पूर्व क्रिया में ही 2-3 बार झड़ जाती है। मुझे आज पता लगा की वो सच कह रही थी।
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