पंजाब दियां रंगीन जट्टीयां - पार्ट - 3
07-02-2020, 12:58 AM,
#1
पंजाब दियां रंगीन जट्टीयां - पार्ट - 3
हेलो दोस्तो मे गौरव कुमार फिर से हाज़िर हूँ कहानी का अगला पार्ट लेकर। दुसरे पार्ट मे आपने पढ़ा के केसे रितु लाला के साथ सरबी को उसके बिस्तर पर लाने का वादा करती है। तो चलिये कहानी को आगे बढ़ातेहै।<br/><br/>शाम होते सरबी घर पहुंच चुकी थी ओर सुखा भी उस्के इन्तज़ार मे बेठा था। जेसे ही सुखे ने सरबी को आते देखा एक दमसे सवाल पूछनेलगा "क्या हुआ, क्या कहा लाला जी ने, हिसाब सही था क्या"। सरबी चारपाई पर बेठ गयी, "हा हिसाब तो सही है लाला जी का"। सुखा सरबी का जवाब सुनकर निराश हो गया, "तो फिर अब हम क्या करे, जीतोड मेहनत करते है लेकिन कर्ज वेसा का वेसा ही खडा है"। सरबी सुखे को देखती हुई बोली'"सुनो ना सेठ जी ने आज हमसे काम के बारे मे बात की थी"। "कोन्सा काम " सुखे ने सरबी को देख्ते हुए कहा।<br/>"सेठ जी कह रहे थे के तुम उन्के यहा काम पर लग जाओ, 8हज़ार महिना देगे और कहे मुजे भी वहा कोई काम दिलवा देगे, फिर हम वेतन मे से हर महिने थोड़े थोड़े रुपए लौटाते रहेगे"। सरबी ने सुखे को देखते हुए कहा। सुखा सरबी की बात सुनकर बोला, "लेकिन फिर खेतो का क्या होगा वहा फसल कों देखेगा"।<br/>"खेतो को हम आगे किसी को ठेके पर दे देगे, और फिर महिने की जो कमाई होगी उस से घर का खर्चा भी निकल लेगे"। सरबी ने जवाब दिया। "वो तो ठीक है लेकिन शहर आने जाने पर भी खर्च होगा रोज का, उसका क्या"। सुखे ने सरबी को देख बोला।<br/>"ओहो तुम तो बिल्कुल बुद्धू हो, हम सेठ जी को बोलके कोई सस्ता मकान किरये पे ले लेगे और इस मकान यहा किसी को किराये पर दे देगे, सम्झे के नही कुछ"। सरबी ने कहा। "अब मेरा तो हिसाब तुम जानती हो, तुम कह रही हो तो सही ही होगा"। सुखे ने भी हामी भर दी। "ठीक है फिर मे सेठ जी को बोल दुगी, तुम मा बाबू जी को शहर जाने के लिये मनाओ"। सरबी ने सुखे से कहा। सुखा भी सरबी की बात मान कर अप्ने मा बाबू जी के साथ बात करने चला गया ओर उनसे बात की। सरबी के सास ससुर ने सरबी से भी बात की तो सरबी ने उन्हे अच्छेसे समझाया तो वो शहर जाने के लिये राजी हो ग्ये।<br/>सरबी ने शहर सेठ जी के पास जाने की बजाये उन्हे फोन लगाया। "ट्रिंग ट्रिंग" "हेल्लो हा जी कोन" सेठ बनवारी लाल ने फोन उठातेहुए पुछा। "हा सेठ जी मे सरबी बोल रही हूं"। सरबी ने आगे से जवाब दिया।<br/>नाम सुन्ते ही सेठ उछल पडा "अरे सरबी, बोलो केसे याद किया"। सेठ ने पुछा। "सेठ जी आप उस दिन बोले थे ना के सुखे को अपने पास काम पे रखोगे और मजे ब कोई काम दिलवा दोगे"। सरबी ने सेठ को जवाब दिया। "हा बई बोला तो था, तो क्या राय बनायी फिर तुमने"। सेठ ने उत्सुकता से पुछा। "जी हम तैयार है काम करने के लिये, और सेठ जी एक सस्ता मकान भी किराये पर दिलवा दीजियेगा, आने जाने का खर्चा नही होगा फिर"। सरबी ने सेठ को बोला।<br/>सेठ सरबी का जवाब सुनकर उछल पड़ा, "अरे हा बई क्यो नही, काम मेने ढूंड रखा है और मकान भी एक आध दिन मे देख लगा, तुम बताओ कब आ रहे हो तुम लोग"। सेठ ने पुछा। "बस सेठ जी जमीन ठेके पर दे दी है, और मकान भी हम्ने किराये के लिये बात करली है तो हफ्ते भर मे आ जायेगे हम"। "हा तो कोई बात नही फिर तब तक मे य्हा तुम लोगो के लिये मकान देख लेता हू"। सेठ ने जवाब दिया। "ठीक है सेठ जी"। सरबी ने फोने काट दिया।<br/>सरबी से उसके आने की खबर सुन सेठ खुशी से पागल हो रहा था, उस्ने उसी वक़्त रितु को फोन लगाया,।<br/>"हेलो राम राम सेठ जी" रितु ने फ़ोन उठाते हुए कहा। "राम राम मेरि जान, क्या कर रही थी"। सेठ ने पुछा। "किच नही सेठ जी बस घर का निपटा रही थी"। रितु ने जवाब दिया।<br/>बनवारी लाल -"सुन जान, तेरी सहेली आ रही है शहर ओर उसे मकान चाहिये किराये पर"।<br/>रितु -"कौन सेठ जी, किसकी बात कर रहे हो आप"।<br/>बनवारी लाल -"अरे साली, वो सरबी है ना, वो आ रही है, मेने उसे और उसके घरवाले को यहा काम करने के लिया कहा था"।<br/>रितु -"अच्छा सेठ जी, कब आ रहे है वो यहा"।<br/>बनवारी लाल -"एक हफ्ते मे आने का बोल रही थी, एसा कर तेरे बगल मे वो मकान है हरिया का"।<br/>रितु-"हा सेठ जी लेकिन हरिया तो मकान बेच रहा है"।<br/>बनवारी लाल -"उसे बोल मुझे वो मकान चाहिये 2लाख दूंगा, मेरे पास भेज देना हरिया को"।<br/>रितु -"ठीक है सेठ जी मे हरिया को आअप्के पास भेज दूंगी"।<br/>बनवारी लाल -"और तू कब आयेगी जान, अकेली मत आना एस बार"।<br/>रितु -"हा सेठ जी समझ रही हू आप क्या बोल रहे हो"। रितु ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया और फ़ोन काट दिया। बनवारी लाल ने हरिया से मकान खरीदा और उसकी मरम्मत करवा दी।<br/>सोमवार के दिन सरबी और सुखा सेठ बनवारी लालके पाआ आये, "राम राम सेठ जी"। सुखे ने बनवारी लाल की नमस्कार की।<br/>सेठ ने उपर सुखे और सरबी को देखा, "अरे आओ सुखे आ जाओ अन्दर"। सुखा और सरबी अन्दर जाकर चटाई प्र बेठ ग्ये। "सेठ जी वो आपने सरबी को कामके लिये कहा था ना"। सुखा बोला।<br/>"हा मुझे याद है सुखे, देख तू मेरे यहा काम करले, महिने का 8हज़ार दे दूगा लेकिन काम म्ज्दूरो वाला है",। बनवारी लाल ने कहा।<br/>"कोई बात नही सेठ जी खेतो मे भी तो काम करते ही है, य्हा आपके पास भी कर लेगे"। सुखे ने जवाब दिया। "और सरबी के लिये कोई काम है क्या सेठ जी"।<br/>"अरे है ना बई, सरबी मेरा एक हस्पताल है, जिसमे मजे सफाई करने और चाय पानी के लिये लेडी चाहिये, 10हज़ार म्हीने का दूंगा अगर तमे मंजूर हो तो"। बनवारी लाल सरबी को देख्ते हुए बोला। "ठीक है सेठ जी मे कर लुंगी, आप अस्पताल का पता बता दीजियेगा मुझे"। सरबी ने जवाब दिया।<br/>"अरे बई पता क्या बताना, वो साम्ने रहा अस्पताल "। सेठ ने इशारा कर्ते हुए कहा। दरअसल सेठ सरबी को अपनी आंखो के सामने ही रख्ना चाह्ता था इसलिये उस्ने सरबी को अपने अस्पताल मे ही काम पर रख लिया। "और सेठ जी वो मेने आपसे किराये के लिये मकानं का भी बोला था तो कोई बन्दोबसत हुआ"। सरबी ने पुछा। "हा मकान भी है रितु को जानती हो ना तुम, उसके घर के बगल मे मेरा मकान खाली पड़ा है, तुम उसमे रह लेना और जो किराया बनेगा देते रहना"। सेठ ने बोला।<br/>"रितु, हा सेठ जी उसे तो मे अच्छे से जानती हू, अप उसे बुला दो, हम आज मकान देख लेते है और कल तक अप्ना समान ले आएगे"। सरबी ने जवाब दिया, वो खुश थी के उसे उसकी सहेली के साथ मे ही मकान मिल गया। "हा मे बुलाता हू उसे" सेठ ने कहा और रितु को फोन मिलाकर उसे आने के लिये बोला। 5मिंट तक रितु वहा आ गयी "सेठ जी बुलाया अपने"।<br/>"हा रितु ये सरबी को अपने साथ ले जाओ ओर मकान दिखा दो"। सेठ बोला।<br/>सरबी को देख रितु खुश होते हुए थोडा अनजान बन्ते हुए बोली, "अरे सरबी तुम कब आयी फ़ोन करके बताया भी नही, और मकान क्यो चाहिये"।<br/>"वो सेठ जी ने हमे यहा काम दिला दिया है तो अब हम यही रहेगे"। सरबी ने जवाब दिया।<br/>"अरे ये तो और भी अच्छा किया, गांव मे रखा ही क्या है, चलो मे तुमे मकान दिखा देती हू"। रितु बोली।<br/>सरबी और सुखा सेठ बनवारी लाल को रामराम बुला रितु के साथ चल दिये। रितु ने उन्हे आपने साथ वाले मकान दिखाया जो सेठ ने हरिया से खरीदा था।<br/>"ले सरबी ये है तुमरा मकान, केसा लगा तुमे"। समान रख्ते हुए रितु बोली।<br/>सरबी मकान को देखकर बोली, "अच्छा है रितु मकान तो सेठ जी का है ना"।<br/>"हा उन्ही का है सरबी बडे दिलवाले है सेठ जी, अपनापन देखे है हर किसी मे"। रितु बोली। "और ये साथ मे मेरा घर है, कोई जरुरत हो तो बताना"।<br/>"हा जरुर रितु, मे तो तुमे ही जानती हू इस शहर मे तो तुमे ही बुलओगी"। सर्बी बोली।<br/>हा क्यो नही सरबी जब भी जरुरत हो तो अवाज लगा देना, अच्छा अब मे चलती हू"। रितु बोली और घर चली गयी।<br/>सुखा और सरबी मकान देखने ल्गे और अपना समान रखने लगे। दुसरे दिन गांव जाकर वो मा बाबू जी को भी ले आये ओर शहर मे रहने लगे।
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