एक बार ऊपर आ जाईए न भैया
06-24-2017, 11:01 AM,
#11
RE: एक बार ऊपर आ जाईए न भैया
अब चैन से मैंने खुब प्यार से चुमते-चाटते गुड्डी को चोदा और वो भी खुद मन से आवाज निकाल निकाल कर चूदी। फ़िर जब मेरा निकलने वाला हुआ तो मैं बोला, "मुँह खोले, सुबह-सुबह मेरा माल से दिन की शुरुआत करो। वो भी खुब मन से मेरा अपने मुँह में गिरवा कर निगल गई और बोली अब मैं जा रही हूँ बाथरूम... तुम अब स्वीटी को जगाओ, बोलो कपड़ा-वपड़ा पहने, रूम साफ़ करने वाली बाई ७ बजे आ जाएगी।" उसको जाते देख मैं फ़ुर्ती से उसके आगे जा कर बाथरू में घुस गया, "मुझे बहुत जोर से पेशाब लगा हुआ है, वो तो तुमको चोदने के चक्कर में मैं रुका हुआ था। वो मेरे साथ हीं आई पर कमोड पर बैठने के लिए इंतजार की कि मै पहले पेशाब करके चला जाऊँ। फ़िर उसने दरवाजा बन्द कर लिया घड़ी में सवा छः बजे थे और मैं बिस्तर पर जा कर बाएँ करवट स्वीटी की पीठ से चिपक कर उसके बदन पर अपना दाहिना हाथ और पैर चढ़ा कर प्यार से पुकारा, "स्वीटी...स्वीटी, अब कितना सोना है, सुबह हो गई है।" वो कुनमुनाई और मेरे तरफ़ घुम गई और फ़िर मेरे सीने में अपना सर घुसा कर आँख बन्द कर ली। मैंने उसके पीठ को सहलाना शुरु किया और वो मेरे से और ज्यादा चिपक गई। अब मैंने उसके चेहरे को अपने हाथ से थोड़ा उपर उठाया और फ़िर उसके होठों को हल्के से चुमने लगा। वो भी अब सहयोग करने लगी तो मैंनें अपने दाहिने हाथ को उसकी जाँघों के बीच में पहुँचा दिया और फ़िर उसको बोला, "थोड़ा जाँघ खोलो ना रानी....तुम्हारी बूर को भी तो जगाना है"। वो अब आँख खोल कर देखी और फ़िर धीरे से मेरे कान में बोली, "बहिन-चोद..., रंडीबाज..." और मुस्कुराई। मैंने उसकी बात का बुरा नहीं माना और आराम से उसकी बूर को सहलाने लगा। जल्दी हीं उसकी बूर पानी छोड़ने लगी, तो मैं उसके उपर चढ़ गया। स्वीटी ने अब अपने हाथ से मेरा लन्ड पकड़ा और फ़िर उसको अपने बूर में घुसा लिया और फ़िर बोली, "चोदो मेरे राजा....अपनी रानी को आज चोद कर उसके पेट से राजकुमारी पैदा कर लो.... बहिन-चोद"।

उसकी ऐसी बातें सुनकर मेरा खून उबलने लगा और फ़िर मैंने जोर-जोर से उसकी बूर में धक्के लगाने शुरु कर दिए। वो अब बीच-बीच में मुझे गाली बक रही थी, और साथ हीं साथ जैसे रात में मस्त हो कार हल्ला कर करके गुड्डी चुदी थी वैसी हीं चीख-चिल्ला कर खुब मस्त हो कर मेरी बहन चुदवा रही थी। मैंने भी उसको कहा, "ले साली खाओ धक्का... आज तुम्हारी बूर फ़ाड़ देंगे, साली हमको गाली दे रही हैं मादरचोद की औलाद...." मेरी गाली उसकी गाली से ज्यादा जबर्दस्त थी। वो अब कुछ समय तक शान्त रहीं सभ्य की तरह चुदी और फ़िर बोली, "रूक साले हरामी... बहिन-चोद, रुक अब थोड़ा। हमको पलटने दो, फ़िर कुतिया के जैसे चोदना हमको हरामजादे।" मैंने लन्ड बाहर खींच कर उसको पलटने का मौका दिया, और उसी समय गुड्डी आ गई और बोली, "वाह यहाँ तो भाई-बहन में गाली की अंताक्षरी हो रही हैं मजा आ गया यह सब सुन कर...."। स्वीटी अब मुस्कुराते हुए बोली, "हाँ ये हरामी आज हमको चोद के मेरे पेट से अपना बच्चा पैदा करेगा साला... सोचें हो कि तुम उसका मामा लगोगे कि बाप लगोगे।" गुड्डी बड़ी आराम से बोली, "तुम इसके लिए एक बेटी पैदा कर देना... ये जनाब उसको चोद के बेटा पैदा करेंगे तो फ़िर सब ठीक हो जाएगा, दोनों रिश्ते से नानाजी कहलाएँगे", इस बात पर दोनों रंडियाँ हँस पड़ी और मैं खीज गया और अपनी सारी खीज अपनी बहन की बूर पर निकाला। मेरे धक्कों से अब वो कराह रही थी और मैं था कि उसके पेट के नीचे से अपना हाथ निकाल कर उसको अपने जक्ड़ में ले कर उसको लगातार गालियाँ देता हुआ चोदे जा रहा था, "साली रंडी ले चुद मादर-चोद, साली कुतिया ले चुद मादर-चोद, कमीनी कुत्ती...ले चुद मादर-चोद..."। तभी वो खलास हो गई और फ़िर थोड़ा शान्त हो कर बोली, "जब निकालना होगा तब बाहर कर लीजिएगा भैया..."। मैं अभी भी जोश में था सो बोला, "अब भैया याद आ रहें हैं और अभी जब गाली दे रही थी तब..
अब देखो साली कैसे तुम्हारे बूर में अपना माल गिरा कर तुमको बिन-ब्याही माँ बनाता है तुम्हारा भैया..."। मेरी इस बात पर तो उसके होश उड़ गए। मैंने उसको कहा भी यह बात एक दम गंभीर अंदाज में, सो वो डर गई थी। वो अब गिड़गिड़ाने लगी। मैं उसको अपनी गिरफ़्त में लेकर चोदे जा रहा था। जब मेरा निकलने वाला हुआ तो मैंने कहा, "एक शर्त पर तुमको माँ नहीं बनाऊँगा... तू अपने मुँह में डलवा और सब निगल जा।" वो तुरन्त मान गई, "लो मैं अभी से मुँह खोल दी, जब चाहो घुसा देना झड़ने से पहले...", मैं अब अपना लन्ड उसकी बूर से निकाल कर जल्दी से उसके सामने आ गया और फ़िर स्वीटी के मुँह डाल दिया। अपने हाथ से ५-७ बार हिला कर मैंने अपना सारा माल अपनी बहन स्वीटी के मुँह में गिरा दिया और न चाहते हुए थोड़ा मुँह बनाते हुए उसको वो सब निगलना पड़ा।

इसके बाद मैं और स्वीटी नहा लिए और गुड्डी बोली कि वो गाँड मराने के बाद में नहाएगी। उसने अपने लिए दो दवा का नाम लिख कर दिया और कहा कि मैं अपने लिए एक वियाग्रा लेता आउँ क्योंकि लन्ड का खुब टाईट होना जरुरी है गाँड़ में घुसने के लिए।। जब दवा ले कर करीब १० बजे मैं लौटा तो देखा कि पास के कमरे में टिका हुआ बंगाली परिवार की दोनों बेटियाँ मेरे कमरे में बैठ कर मेरी बहन और गुड्डी से बातें कर रही हैं। ऐसा लग रहा था जैसे उन सब की पुरानी पहचान हो। मेरे लिए तो उन दोनों का वहाँ होना KLPD था, पर उन दोनों को जब मैंने मुझे देख कर मुस्कुराते देखा तो मैं झेंप रहा था। स्वीटी मुझे अब बोली, "विक्रम (मेरा असली नाम), ये दोनों अभी करीब दो घन्टे अकेली हीं हैं यहाँ। इनके मम्मी-पापा कुछ काम से गए हैं करीब २ बजे तक लौटेंगे सो अकेले रुम में बोर होने से अच्छा है कि हम सब से बातें करें, यहीं सोच कर ये दोनों यहाँ आ गई हैं।" मैं टेंशन में था कि अब गाँड़ मराई के प्रोग्राम का क्या होगा कि तभी उन में से बड़ी बहन ने कहा, "आप परेशान मत होईए... हम १०-१५ मिनट में अपने रुम में चले जाएँगे, फ़िर आप-लोग फ़्री होंगे तब हम आ जाएँगें। असल में रुम में टीवी भी नहीं है न सो हम इधर चले आए।" मैंने अब अचकचा कर उन दोनों को और फ़िर स्वीटी को देखा, तो गुड्डी बोली, "कल के आपके जोश से बाहर तक सब आवाज गया था जब ये दोनों खाने के बाद ऐसे हीं बाहर तहल रहीं थीं। उसी के बारे में अभी हम सब बात कर रहे थे। इन लोगों को सब मालूम है, वो तो गनिमत है कि इनके मम्मी-पापा यह सब नहीं जानते, नहीं तो इन दोनों का कोर्ट-मार्शल कर देते हम लोग से बात करने पर। इन दोनों को अभी का हमारा प्रोग्राम पता है।" मैं अब थोड़ा रेलैक्स करके बोला, "अरे नहीं ऐसी जल्दी भी नहीं है तुम दोनों बैठो और थोड़ा गप-शप कर लो। हम लोग को आधा घन्टा काफ़ी है। असल में मेरे लिए यह पहला अनुभव होगा, सो मैं थोड़ा तनाव में था।" मैं अब गौर से उन दोनों बहनों को देखा। बड़ी वाली थोड़ी मोटी थी, कुछ ज्यादा हीं सांवली, करीब ५’ लम्बी ३६-२८-३६ की फ़ीगर होगी। १९-२० के करीब उमर लग रहा था, उसका नाम था ताशी, बी०ए० फ़ाईनल में थी। उसकी छोटी बहन भी सांवली हीं थी पर खुब दुबली-पतली, लम्बी थी ५’५"। चुच्ची तो जैसे उसको था हीं नहीं, ३०-२१-३२ की फ़ीगर होनी चाहिए। उसका नाम आशी था और वो १२वी० में थी। 
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स्वीटी उन दोनों से बोली, "असल में मैं भी यह आज देखना चाहती हूँ। पीछे वाले हिस्से को ऐसे होते हुए सिर्फ़ सुनी हूँ आज तक, सो आज जब गुड्डी तैयार हो गई विक्रम से पीछे करवाने के लिए तो मैं भी सोची कि अब यह मौका नहीं खोया जाए। वैसे तुम लोग सेक्स करती हो?" मेरी बहन ने यह सवाल बड़ा सही पूछा था। ताशी ने हीं जवाब दिया, "ज्यादा नहीं, ५ बार की हूँ लड़के के साथ, वैसे हम दोनों बहन आपस में मजा करते रहते हैं। आशी अभी तक किसी लड़के के साथ नहीं की है।" फ़िर वो गुड्डी की तरफ़ देखते हुए बोली, "अगर आधा-एक घन्टा का बात है तो क्या हम भी यह देख लें... अगर बुरा लगे म्री बात तो मना कर देना प्लीज।" उसकी बात सुन कर मेरा लन्ड एक झटका खा गया। गुड्डी अब मुझसे बोली, "क्या कहते हो गाँडू पार्टनर....?" मेरे मुँह से बिना सोचे निकला, "जैसा तुम समझो, इस मामले में तो तुम्हारे सामने मैं अनाड़ी हूँ।" उसने हँसते हुए कहा, "हूँह्ह्ह्ह.... अनाड़ी...., चलो आज तुमको गाँड़ू बना ही देती हूँ। लाओ दवाई दो... आधा घन्टा तो तैयारी में लगेगा।" और मैंने जेब से दोनों दवा निकाल कर उसको दे दिया। गुड्डी वहीं खड़ी हो गई और फ़िर एक तो मोम-जैसा कैप्सुल था जिसको उसने अपनी गाँड की छेद में घुसाने से गाँड़ का सारा मल/पैखाना निकल जाता और दुसरा दवा, एक मलहम था तेज दर्द-निवारक। उसने उन दवाओं के बारे में बताया। मैं दंग था कि साली को क्या सब पता है.... लगा कि क्या स्वीटी को उसके साथ रख कर मैं कहीं गलती तो नहीं कर रहा। पर फ़िर लगा कि अब जब स्वीटी चुदाने लगी है तो गुड्डी जैसी जानकार का साथ उसके हक में ही है, सो मैं अब अपनी बहन की सेक्स-सुरक्षा के प्रति आश्वस्त हो गया। गुड्डी ने वहीं सब के सामने उस मोम जैसे कैप्सुल को एक-एक करके तीन, अपनी गाँड़ की छेद में घुसा ली और फ़िर अपना नाईटी नीचे करके वहीं बैठ कर बातें करने लगी और मुझे बोली कि मैं अब वियाग्रा खा लूँ, उसका असर होने में करीब एक घन्टा लगेगा। 

अभी १०:३० हो रहा था और उसने कहा कि वो करीब १२ बजे अपने गाँड़ में डलवाएगी। मैं बोला कि फ़िर अभी से १२ बजे तक मैं क्या करुँगा? गुड्डी खिलखिला कर हँसी और बोली, "इतनी सारी लौन्डिया है और तुम को कुछ समझ नहीं आ रहा, भोंदूँ कहीं के....", तभी आशी बोली, "दीदी, क्या एक बार आगे वाले में भी घुसाएँगे भैया क्या?" गुड्डी बोली, "मैं तो अब सिर्फ़ गाँड़ मरवाउँगी....अब यह तो यही जाने या फ़िर तुम लोग में से कोई चुदा लो। वियाग्रा का असर तो करीब ११:३० से शुरु होगा और तब करीब एक घन्टे तो लन्ड टन्टनाया रहेगा मेरे लिए।" मैंने स्वीटी की तरफ़ देख कर इशारा किया और तब स्वीटी भी मेरा मन भांप कर बोली, "आशी अगर तुमको इतना मन है तो अपना चुदा लो आज एक बार....।" आशी यह सुन कर घबड़ा गई, "नहीं...नहीं..., पहले कभी की नहीं हूँ, कहीं मम्मी जान गई तो...।" मैं देख रहा था कि ताशी सब चुप-चाप सुन रही है। मैंने अब उसको ही कहा, "ताशी, तुम तो पहले की हो यह सब, तो आज एक बार जल्दी से मेरे साथ सेक्स कर लो, देखो यह बच्ची बेचारी भी देख लेगी सब और समझ भी लेगी।" मेरी बात सुन कर ताशी तो ना... ना... करने लगी पर बाकी तीनों लड़कियों ने मेरा साथ दिया और ताशी के ना... ना... करते हुए भी मैं अपनी जगह से उठा और फ़िर ताशी के चेहरे को अपने हाथों में ले कर उसके होठ चुमते हुए उसके ना... ना... का राग हीं बन्द कर दिया। ५ सेकेण्ड में हीं ताशी भी मुझे होठ चुमने में सहयोग करने लगी। मैंने अब उसके बगल में बैठते हुए उसको अपनी गोदी में खींच लिया। ताशी एक बार मुझसे छुटने की कोशिश की, "कभी ऐसे किसी के सामने नहीं की हूँ.... मुझे शर्म आ रही है, मैं नहीं करुँगी अभी।" मैंने और फ़िर बाकी सब ने उसको समझाना शुरु किया। मैं उसके बदन पर हाथ घुमा रहा था और इधर-उधर चेहरे पर चुमता जा रहा था। उसका बदन गर्म होने लगा था। 

मैं उसके सामने खड़ा हो गया और फ़िर स्वीटी, जो ताशी के ठीक बगल में बैठी थी, से बोला "स्वीटी अब तुम जरा ताशी के हाथ में मेरा लन्ड पकड़ाओ न" और मैं अपने शर्ट का बटन खोलने लगा। स्वीटी आगे बढ़ी और मेरे जीन्स-पैन्ट की जिप खोल कर मेरे आधा फ़नफ़नाए हुए लन्ड को बाहर खींच ली। इतनी देर में मैं अपने कपड़े उतार चुका था सो जीन्स-पैन्ट के बटन को खोलते हुए उसको नीचे करके अपने बदन से निकाल कर पूरा नंगा खड़ा हो गया। मेरा लन्ड अभी आधा ही ठनका था और लाल सुपाड़े की झलक मिलने लगी थी। छोटी बहन आशी के मुँह से निकला, "माय गौड...", मैं पूछा - "कभी देखी हो आशी मर्दाना लन्ड....।" उसके चेहरे पर आश्चर्य था। मैंने उसको कहा, "आओ पकड़ कर देखो इसको..." और मैं अब उसकी तरफ़ बढ़ कर उसका हाथ पकड़ कर अपने लन्ड पर रख दिया और फ़िर जब वो लन्ड को अपनी मुट्ठी में लपेट ली तब मैंने उसके मुट्ठी के उपर अपने हाथ से मुट्ठी बना कर उसके हाथ को अपने लन्ड पर हल्के-हल्के चलाया। मेरे लन्ड के सामने की चमड़ी अब पीछे खिसक गई और मेरा लाल सुपाड़ा चमक उठा। धीरे-धीरे लन्ड खड़ा होने लगा था, वो अब करीब ७" हो गया था। ताशी सब देख रही थी। मैंने अब आशी को कहा, "मुँह में लोगी? देखो एक बार मुँह में ले कर".... और मैंने अपना लन्ड उसके चेहरे की तरफ़ कर दिया। वो न में सर हिलाने लगी तो मैंने भी उसको बच्ची जान जिद नहीं किया और फ़िर एक बार अपना ध्यान उसकी बड़ी बहन ताशी की तरफ़ किया। अब मैंने ताशी को पकड़ कर खड़ा कर लिया और फ़िर उसको बाहों में भींच कर जोर-जोर से चुमने लगा। मेरा खड़ा लन्ड उसकी पेट में चुभ रहा था। ताशी एक भूरे रंग के प्रिन्टेड सूती सेमी-पटियाला सलवार-सूट पहने थी। उसको भी शायद मन होने लगा था चुदाने का। वो अब मेरा साथ दे रही थी। मैंने अब पहली बार उसकी चूचियों को पकड़ा और फ़िर उसके चेहरे से अपना ध्यान हटा कर उसकी चुचियों पर लगा दिया। उसके हाथ को मैंने अपने हाथ से पकड़ कर अपने लन्ड पर रख दिया और वो भी मेरा इशारा समझ कर अब लन्ड सहलाने लगी थी। मैंने उसके पीठ की तरफ़ हाथ ले जा कर उसके कुर्ते की जिप खोल दी और फ़िर उसका कुर्ता उतार दिया। सफ़ेद ब्रा में उसके भरी हुई छाती मेरे सामने इतरा रही थी। दोनों बड़ी-बड़ी चूची सामने में एक दुसरे से चिपकी हुई थीं और उसका ब्रा जो शायद थोड़ा पहले का था, बड़ी मुश्किल से उसकी ३६ साईज की चुचियों को सम्भाले हुए था। मैंने उसकी सलवार की डोरी खींची और फ़िर उसका सलवार भी निकाल दिया। नीले रंग के पैन्टी में उसकी बूर की कल्पना से मैं अब पूरी तरह से गर्मा गया था। मैंने बिना देर किए उसकी पैन्टी भी नीचे सरारी और उसकी बिना झाँटों वाली चिकनी बूर मेरे सामने थी। करीब एक सप्ताह पहले झाँट साफ़ की होगी सो अब हल्का सा आभास हो रहा था झाँट का। उसकी बूर की चमड़ी काली थी।
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06-24-2017, 11:01 AM,
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ताशी के चेहरे से शर्म झलक रही थी। इस तरह सब के सामने नंगे होने का यह पहला अनुभव था। मेरा लन्ड टन्टनाया हुआ था सो मैंने ताशी को अपनी तरफ़ खींचा और इसी बीच में उसकी बूर का अपने हाथों से मुआयना किया कि उसकी बूर पनिआई है कि नहीं। शर्म और आने वाले समय की सोच ने उसकी बूर से पानी निकालना शुरु कर दिया था। मेरा काम आसान हो गया था। उसको लिटाते हुए मैंने लगातार उसकी चूचियों को चुसते चुमते हुए उसको और गरम करता रहा था और फ़िर अपने हाथों में थुक लगा कर उसकी बूर की चमड़ी और छेद दोनों को गिला कर दिया था। उसके मुँह से चुदास से भरी हुई सिसकी निकलनी शुरु हो गयी थी। मैंने अब उसको बिस्तर पे ठीक से लिटा दिया और ताशी अपना चेहरा उस तरफ़ घुमा ली थी जिस तरफ़ उसकी छोटी बहन नहीं बैठी थी। उसको इस तरह से नंगी लेट कर अपनी छोटी बहन से नजर मिलाने में शर्म लग रही थी। मैंने आराम से एक बार आशी को देखा जो बड़े चाव से सब देख रही थी और अपने जाँघों को भींच रही थी... मैं उसके जाँघों को ऐसे कसते हुए देख कर सब समझ गया... पर क्या कर सकता था अभी....बेचारी आशी। मेरी बहन स्वीटी ने मुझे देख कर आँख मारी। गुड्डी अभी टट्टी करके अपने गाँड़ को पूरी तरह से खाली करने गई हुई थी। मैं अब ताशी की जाँघो को खोल कर उसके खुली बूर पर अपना लन्ड सटा कर अपने घुटने के बल उसकी खुली जांघों के बीच में बैठ गया था। फ़िर ताशी के ऊपर झुकते हुए मैंने उसके कंधों को अपने चौड़े सीने से दबा कर एक तरह से उसको बिस्तर पर दबा दिया और फ़िर उसकी पतली कमर को दोनों हाथों से पकड़ कर अपने लन्ड को उसकी पनिआई हुई बूर में दबाने लगा। ताशी के मुँह सिसकी और कराह की मिलीजुली आवाज निकल रही थी और उसकी आँखे मस्ती से बन्द थी। मैंने लगातार प्रयास करके जल्दी ही अपना पूरा लन्ड ताशी की ठ्स्स बूर में घुसा दिया और फ़िर एक बार गहरी साँस खींची और फ़िर ताशी के कान में कहा, "भीतर घुस गया है ताशी पूरा लन... अब चुदने को तैयार हो जाओ..."। ताशी एक बार आँख खोली और मुझे देखी, फ़िर उसके अपने बाहों से मुझे कस कर भींच लिया और मैंने उसके बूर की चुदाई शुरु कर दी। गच्च...गच्च...खच्च...खच्च... फ़च्च... फ़च्च... उसकी पनिआई हुई बूर से एक मस्त गाना बजने लगा था। और तब मैंने आशी की तरफ़ देखा। वह पूरे मन से अपनी बहन की चुद रही बूर पर नजर गड़ाए हुए मेरे लन्ड का बहन की बूर में भीतर-बाहर होना देख रही थी।

मैंने उसको पुकारा, "देखी, कैसे बूर को चोदा जाता है.... तुम भी ऐसे ही चुदोगी लड़कों से।" मेरे आवाज से आशी का ध्यान टुटा। उसकी नजर मेरी नजर से मिली और उसका गाल शर्म से लाल हो गया था। तभी गुड्डी बाथरूम से बाहर आई, पूरी तरह से नंग-धड़ग और फ़िर मुस्कुराते हुए बिस्तर पर बैठ कर ताशी की चुचियों से खेलने लगी। जल्दी हीं वो ताशी के होठ को चुम रही थी और तब मैंने अपना बदन सीधा किया और फ़िर अपने पंजों पर बैठ कर ताशी के पेट को अपने हाथों से जकड़ कर जबर्दस्त तेजी से उसकी चुदाई शुरु कर दी। ताशी मस्ती से भर कर चीखना चाहती थी पर गुड्डी ने उसके मुँह को अपने मुँह से बन्द कर दिया था और ताशी की आवाज गूँअँअँ...गुँअँ... करके निकली। करीब पाँच मिनट के बाद, मैंने अपना लन्ड पूरा बाहर खींच लिया और तभी गुड्डी भी अपना चेहरा अलग की। ताशी ने एक कराह के साथ अपनी आँख खोली और हम सब की तरफ़ देखा। उसकी बूर से गिलापन बह चला था और वो मस्त हो चुकी थी। मैंने उसको पलटने का इशारा किया और तब गुड्डी ने उसको उलट कर पेट के बल कर दिया मैंने अपना लन्ड उसकी गाँड़ की छेद से लगाया तो वो बिदक गई और फ़िर से सीधा होने लगी और तब मैंने उसको दिलासा दिया, "डरो मत...., इसके लिए तो आज गुड्डी है, अभी तो बस मैं चेक कर रहा था कि कैसा लगेगा गाँड पर लन्ड..., तुम थोड़ा सा ऊपर उठाओ न कमर... तुमको कुतिया पोज में चोदना है।" वो समझ गई और फ़िर चौपाया की तरह झुक कर खड़ी हो गई और मैंने किसे कुत्ते की तरह उसके कंधों को जकड़ कर पीछे से उसकी बूर में लन्ड घुसा दिया और फ़िर आशी ती तरफ़ दे खा जो अब थोड़ा आगे खिसक आई थी और मैंने ताशी की धक्कम-पेल चुदाई शुरु कर दी। उसकी बूर से पूच्च्च...पूच्च्च... की आवाज निकलती तो कभी उसकी चुतड़ थप्प...थप्प..थप्प.. थप्प.. करती। वो एक बार फ़िर थड़थड़ाई और मुझे लग गया कि बेचारी झड़ गई है। वो अब थक कर निढ़ाल हो गई थी और अपना बदन मेरे से चुदने के लिए बिल्कुल ढीला थोड़ दी थी। मैं भी अब झड़ने वाला था, कि तभी ताशी से पूछा, "मेरा माल मुँह में लोगी ताशी?"। उसने नहीं में सिर हिलाया तब, गुड्डी तुरंत मेरे सामने मुँह खोल कर लेट गई।

मैं समझ गया और फ़िर १०-१२ धक्के के बाद, मैंने अपना लन्ड ताशी की बूर से निकाल कर गुड्डी मी मुंह में घुसा दिया और ५ सेकेन्ड के भीतर मेरा माल छुट गया और गुड्डी मेरे लन्ड को चूस कर सब अपने मुँह में भर ली। करीब एक चम्मच तो जरुर निकला था सफ़ेद-सफ़ेद लिस्लिसा माल। ताशी अब तक सीधा चित लेट गई थी और अपना बदन बिल्कुल ढीला छोड़ी हुई थी। गुड्डी अपना मुँह बन्द की और मेरे माल को मुँह में लिए हुए ही उठी और फ़िर मेरी बहन स्वीटी के पास जा कर उसके मुँह में मेरा थोड़ा सा माल टपका दी। स्वीटी मुस्कुराते हुए उसे निगल ली, और तब गुड्डी ने उसके बगल में बैठी ही आशी के तरफ़ चेहरा घुमाया। मेरा लन्ड एक ठनका मारा, साली गुड्डी.... हराम जादी, उस बच्ची को भी नहीं छोड़ेगी। आशी के चेहरे को पकड़ कर उसको इशारा से मुँह खोलने को कहा। आशी भी यह सब देख कर गरम थी सो मुँह खोल दी और गुड्डी उसके होठ से होठ सटा कर उसके मुँह में मेरा सफ़ेदा गिरा दी और फ़िर आशी को बोली, "निगल जाओ इस चीज को।" आशी बिना कुछ समझे उसे निगल गई। ताशी सब देखी और बोली, "छीः... " हम सब हँसने लगे।
गुड्डी बोली, "तुम तो ताशी मेरा गाँड़ मराई देखने का कीमत अपना बूर चुदा कर चुकाई, और क्या आशी फ़ोकट में मेरा गाँड़ मराई देखती... उसको भी तो इसका कीमत चुकाना चाहिए... तो वह इसका कीमत लन्ड का माल खा कर चुकाई।" आशी सिटपिटा कर चुप ही रही... पर मैं हँस पड़ा।

मेरा लन्ड अब शायद वियाग्रा के असर में था, टन्टनाया हुआ... और तैयार। मेरे लन्ड को हल्के से एक चपत लगाई गुड्डी और मैं आह्ह... कर बैठा तो वो बोली, "मेरी गाँड़ फ़ाड़ोगे और मेरा एक थप्पड़ नहीं खाओगे... ऐसा कैसे होगा।" इसके बाद को थोड़ा और जोर से जल्दी-जल्दी ५ थप्पड़ गुड्डी ने मेरे फ़नफ़नाए हुए लन्ड को लगा दिए और मैं अब दर्द महसूस करके चिहुँक कर पीछे हटा। गुड्डी मुझे परेशानी में देख कर खिल्खिलाई और बोली, "आ जाओ अब... फ़ाड़ो मेरी गांड़"। मुझे गुस्सा आया और फ़िर अपने गुस्से पर काबू करते हुए मैने गुड्डी को बिस्तर पर खींचा, "साली... मादरचोद... रन्डी..."। गुड्डी अब स्वीटी से बोली, "जरा वो कन्डोंम ला दो", फ़िर मुझसे बोली, "कन्डोम पहन कर गाँड़ मारना डीयर"। मैंने जब कंडोम अपनी बहन के हाथ से लिया तो वो बोली, "लाईए मैं पहना देती हूँ", और फ़िर वो बडे प्यार से कंडोम को पैकेट से निकाल कर मेरे लन्ड पर पहनाने लगी। उसने कंडोम को पहले ही खोल दिया था, अनुभव हीन थी मेरी बहन। मैंने उसको बताया कि सही तरीके से लन्ड के ऊपर कंडोम कैसे चढ़ाते हैं और फ़िर गुड्डी को पास में खींचा। गुड्डी क्रीम को अपने गाँड़ की गुलाबी छेद पे मल रही थी और फ़िर धीरे-धीरे अपनी ऊँगली से अपने गाँड़ की छेद को गुदगुदा भी रही थी। मैं भी अब उसकी देखा-देखी उसकी गाँड़ को अपने ऊँगली से खोदने लगा। वो खिब सहयोग कर रही थी। जल्दी हीं उसका गाँड़ का छेद अब खुल गया और भीतर का हल्का गुलाबी हिस्सा झलकने लगा था, तब वो बिस्तर पकड़ कर निहुर कर सही पोज में आ गई और फ़िर मुझे बोली, "आ जाओ और धी-धीरे घुसाना... एक बार में नहीं होगा तो धीरे-धीरे दो-चार बार कोशिश करना, चला जाएगा भीतर..."। मैं अब पहली बार गाँड़ मारने के लिए तैयार हुआ और फ़िर उसकी गाँड़ की छेद पर लगा दिया और फ़िर भीतर दबाने लगा।

तीन बार के बाद मेरा सुपाड़ा भीतर घुस गया। गुड्डी लगातार पूछ रही थी कि कितना गया भीतर। उसे दर्द हो रहा था पर वो सब बर्दास्त कर रही थी। जब मैंने सुपाड़ा भीतर जाने की बात बताई तो बोली, ठीक है अब बिना बाहर खींचे लगातार भीतर दबाओ गाँड़ में...मुझे जोर से पकड़ना और छोड़ना मत अब। बाकी तीनों लड़कियाँ वहीं पास में बैठ कर सब देख रही थी पर सारा ध्यान अभी गुड्डी की गाँड़ पर था। मैंने गुड्डी मे बताए अनुसार ही ताकत लगा कर अपना लन्ड भीतर घुसाने लगा और गुड्डी दर्द से बिलबिला गई थी। अपनी कमर हिलाई जैसे वो आजाद होना चाहती हो। पर मैंने तो उसको जोर से पकड़ लिया था, जैसा उसने कहा था और बिना गुड्डी की परवाह किए पूरी ताकत से अपना लन्ड उसकी टाईट गाँड़ में पेल दिया। जब आधा से ज्यादा भीतर चला गया तब गुड्डी बोली, "अब रुक जाओ... बाप रे... बहुत फ़ैल गया है दर्द हो रहा है अब... प्लीज अब और नहीं मेरी गाँड़ फ़ट जाएगी।" मैंने उसको बताया कि करीब ६" भीतर चला गया है और अब करीब २" हीं बाहर है तो वो अपना हाथ पीछे करके मेरे लन्ड को छु कर देखी कि कितना भीतर गया है और फ़िर बोली, "अब ऐसे ही आगे-पीछे करके मेरी गाँड़ मारो... बाकी अपने भीतर चला जाएगा"। मैं अब जैसा उसने कहा था, गुड्डी की गाँड़ मारने लगा... और फ़िर देखते देखते मुझे लगा कि उसका गाँड़ थोड़ा खुल गया हो और फ़िर धीरे-धीरे उसकी गाँड़ मेरा सारा लन्ड खा गई। करीब ५ मिनट गाँड़ मराने के बाद वो मुझे लन्ड बाहर निकालने को बोली, और फ़िर आराम से गुड्डी उठी और मुझे बिठा कर मेरी गोद में बैठ गई... गाँड़ में इस बार उसने खुद भी मेरा लन्ड घुसा लिया था। मुसकी गाँड़ अब खुल गई थी। मेरे सीने से उसकी पीठ लगी हुई थी और सामने से अपनी बूर खोल कर वो मेरे घुटनो पर अपने पैर टिकाए बैठ कर बोली, "कोई आ कर मेरी बूर में ऊँगली करो न हरामजादियों... सब सामने बैठ कर देख रही हो।" ताशी और आशी दोनों बहने अब गुड्डी की बदन को सहलाने लगे थी और तभी वो उन सब को हटा कर ऊपर से मुझे चोदने लगी, बल्कि ऐसे कहिए कि मेरे लन्ड से अपना गाँड़ मराने लगी। यह सब सोच अब मुझे दिमाग से गरम करने लगा और जल्द हीं मेरा पानी छूटा.... मेरे कन्डोम ने उस पानी को कैन कर लिया और गुड्डी भी सब समझ कर उठी और मेरा कन्डोम एक झटके से खींच कर एक तरफ़ फ़ेंक दिया और फ़िर बिस्तर पर फ़ैल कर अपने हाथ से अपना गाँड़ खोल कर बोली, "आओ हरामी, एक बार और मार लो मेरी गाँड़ बिना कन्डोम के..."। मैं भी तुरन्त उसके ऊपर चढ़ कर उसकी गाँड़ में लन्ड घुसा दिया। अब उसका गाँड़ पूरी तरह से खुल गया था.... खुब मन से इस बार मैंने उसकी गाँड़ मारी करीब १० मिनट तक और फ़िर उसकी गाँड़ में हीं झड़ गया। अब तक मैं बहुत थक गया था, बल्कि हम दोनों तक गये थे सो हम एक तरफ़ हो निढ़ाल पड़े रहे और लम्बी-लम्बी साँसे लेते हुए अपनी थकान मिटाने का प्रयास करने लगे।

करीब ५ मिनट बाद हम दोनों उठे, गुड्डी अब नहाने के लिए बाथरूम में चली गयी और हम सब लोग अपने कपड़े वगैरह ठीक करने लगे। ताशी और आशी दोनों की साँस भी अब ठीक हो गई थी। घड़ी में अब करीब १ बज गया था और मेरे ट्रेन के लिए अब निकलने का समय भी नजदीक हो गया था। मैंने ताशी, आशी से उनका पता और नम्बर लिया और फ़िर उन दोनों को उनके होठों पर चुम्मी ले कर विदा किया। उन दोनों के मम्मी-पापा आ गए थे। गुड्डी जब नहा धो कर बाहर आई तो मैं तैयार होने चला गया। फ़िर हम सब एक साथ ताशी के कमरे में गए और फ़िर उस पूरे परिवार से विदा लिया। ताशी के मम्मी-पापा ने मुझे कहा भी कि कभी अगर आना हुआ तो उनके घर भी मैं जरुर आउँ... और मैंने उन दोनों बहनों की तरफ़ देखते हुए कहा, "जरुर..." और फ़िर उन्हें नमस्ते कह कर बाहर आ गया। फ़िर मैं स्वीटी और गुड्डी के साथ होटल छोड़ कर बाहर आ गया और फ़िर साथ हीं स्टेशन के लिए चल दिए। दोनों लड़कियाँ मुझे ट्रेन में बिठा कर वापस अपने कौलेज लौट गईं। मैंने उन दोनों को गले से लगा कर विदा किया, और तब स्वीटी मेरे कान में बोली, "अब आपको पता चलेगा.... बहुत मस्ती किए हैं यहाँ.... वैसे वहाँ भी विभा दी तो हैं हीं, पर वो मेरे जैसे नहीं है... बहुर शर्मिली है, कुछ गड़बड़ मत कर लीजिएगा..."। मैंने हल्के से उसके गाल पर थपकी दी और फ़िर उन दोनों को विदा कर दिया।
ट्रेन समय से खुल गई, और अब मैं अपनी सीट पर लेटा पिचले कुछ दिनों के घटनाओं के बारे में सोचने लगा। सब कुछ एक सपना जैसा लग रहा था। 
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