मस्तराम की मस्त कहानी का संग्रह
07-22-2021, 12:50 PM,
RE: मस्तराम की मस्त कहानी का संग्रह
देववर्मन और चित्रांगदा को जैसे सांप सूंघ गया हो. पहली बार विजयवर्मन और अवंतिका ने अपनी नज़रें उठाकर पुरोहित जी को देखा. महाराजा और महारानी चुप रहें.

" ये आप क्या कह रहें हैं पुरोहित जी ??? ". चित्रांगदा के मुँह से धीरे से निकला, जैसे की वो पुरोहित जी से नहीं, खुद अपने आप से ही ये प्रश्न पूछ रही हो.

" यही वो अदभुत और विचित्र बात है जिसके बारे में आप सबों की राय जानने हेतु आपलोगों को यहाँ बुलाया गया है, ना की अवंतिका के दोष वाली बात के लिए ! ". महाराजा नंदवर्मन ने स्पष्ट किया.

" तनिक ठहरिये पुरोहित जी... ". देववर्मन ने कहा. " तो अगर कन्या अपने ही भाई से विवाह कर ले तो फिर इस दोष का मतलब क्या रहा ??? ".

" मैंने कहा प्रथम विवाह !!! ". पुरोहित जी समझाते हुए बोलें. " यानि की दोष काटने के लिए किये जाने वाला विवाह, ना की संसार बसाने के लिए किये जाने वाला ! भाई बहन इस विवाह के बंधन में केवल मात्र सत्ताईस दिनों के लिए बंधे रहेंगे. अट्ठाईसवे दिन एक छोटी सी पूजा होगी, जिसके उपरांत उन दोनों का सम्बन्ध विच्छेद हो जायेगा, और फिर कन्या को पहले की भांति कुंवारी होने की मान्यता मिल जाएगी. उसका दोष सत प्रतिशत नष्ट हो जायेगा. फिर कन्या अपने मन चाहे वर या अपने माता पिता द्वारा तय किये गये पुरुष से विवाह कर सकती है !!! ".

पुरोहित जी की बात पूरी होते ही सभाकक्ष में चुप्पी छा गई. फिर कुछ देर बाद चित्रांगदा ने पूछा.

" और जिस कन्या का कोई भाई ही ना हो ??? ".

" अच्छा प्रश्न है बहुरानी... ". पुरोहित जी ने मुस्कुरा कर कहा. " फिर तो वो अभागन कन्या आजीवन कुंवारी ही रह जाएगी. कम से कम उसके दोष के बारे में जान कर तो कोई उससे विवाह करने को प्रस्तुत नहीं होगा. ".

" लेकिन अपना भाई ही क्यूँ पुरोहित जी ??? ". इस बार महाराजा नंदवर्मन ने पूछा.

" भाई बहन का रिश्ता पवित्र होता है महाराज. अगर उनमें किसी कारणवश विवाह हो भी जाये तो सामजिक तौर पर वो कभी भी मान्य नहीं हो सकता. कन्या का भाई भला उसका पति कैसे हो सकता है ? इस दोष वाली कन्या के प्रथम पति की मृत्यु तय है. परन्तु जब प्रथम पति उसका अपना भाई ही हो, तो वो सम्बन्ध तो वैसे भी अमान्य ही है, फिर किसकी और कैसी मृत्यु ??? "

" मैं आपका क्षमाप्रार्थी हूँ पुरोहित जी, मैंने आपके ज्ञान पर संदेह किया ! ". देववर्मन ने हाथ जोड़ कर मुस्कुराते हुए कहा, फिर विजयवर्मन की ओर देखा, और फिर अवंतिका की ओर, और ऊँचे स्वर में कहा. " अवंतिका की भलाई हेतु मैं उनसे विवाह करने को तैयार हूँ !!! ".

चित्रांगदा ने चौंकते हुए अपने पति को देखा, राजकुमार देववर्मन का चेहरा वासना और हवस से चमक रहा था.

" यानि आप सबों को ये प्रस्ताव मंजूर है ? ". पुरोहित जी ने पूछा.

" जी पुरोहित जी... ". महाराजा नंदवर्मन बोलें.

" हमने तो पहले ही इसकी स्वीकृति दे दी थी, बस बाकि सबों का मत जानना था ! ". महारानी वैदेही ने कहा.

" क्षमा कीजिये माते... परन्तु मुझे लगता है की ये जिसके भविष्य की बात है, उसकी इस बारे में राय सबसे ज़्यादा महत्वपूर्ण है ! ". पहली बार विजयवर्मन ने अपना मुँह खोला, तो अवंतिका उनको देखने लगी.

" अवश्य ही राजकुमार... ". महाराजा नंदवर्मन ने कहा, फिर अवंतिका से पूछा. " बेटी अवंतिका, आप निःसंकोच होकर अपने मन की बात कह सकती हैं ! "

" दोष तो मेरा ही है ना पिताश्री... ". अवंतिका ने बिना नज़रें उठाये ही कहा. " मुझे आप बड़े जनों का कहा मानने में कोई आपत्ति नहीं ! ".

देववर्मन की ख़ुशी का ठिकाना ना रहा, उन्होंने हँसते हुए चित्रांगदा की ओर देखा, तो उसने अपना मुँह फेर लिया.

" और हाँ राजकुमार देववर्मन... ". पुरोहित जी ने देववर्मन से कहा. " आप अवंतिका से विवाह नहीं कर सकतें !!! ".

अचानक से देववर्मन के चेहरे का रंग उड़ गया, उन्होंने मूर्ख की तरह सभाकक्ष में बैठे सभी लोगों को देखा, और फिर धीरे से पूछा.

" मतलब पुरोहित जी ??? ".

" आप पहले से ही विवाहित हैं राजकुमार... ".

" हाँ तो ??? अवंतिका के होने वाले पति मरूराज्य नरेश हर्षपाल की भी तो 23 पत्नियां हैं... फिर भी वो हमारी बहन से विवाह कर रहें हैं ! ". देववर्मन ने कहा. " और वैसे भी मैं ज्येष्ठ पुत्र हूँ... इस नाते हमारी बहन की सहायता करने का अधिकार केवल मात्र मेरा ही तो हुआ ना पुरोहित जी ? ".

" ज्येष्ठ पुत्र होने के नाते आपका अनेक चीज़ो पर अधिकार हो सकता है राजकुमार...परन्तु इस सन्दर्भ में नहीं !!! विधि अनुसार कन्या का विवाह उसके कुंवारे भाई से होना होगा. " पुरोहित जी ने कहा, फिर विजयवर्मन की ओर दिखाकर बोलें. " राजकुमारी अवंतिका का प्रथम विवाह राजकुमार विजयवर्मन से होगा !!! ".

चित्रांगदा के चेहरे पर एक हल्की सी मुस्कान दौड़ गई. देववर्मन का चेहरा क्रोध से तमतमा उठा, गुस्से में उनके मुँह से शब्द नहीं निकले, फिर वो एकाएक खड़े हो गएँ, और अत्यंत ऊँचे स्वर में कहा.

" आप सबों की मति भ्रष्ट हो गई है ! अपने सगे भाई से विवाह ??? ये क्या मूर्खता है ? मैं इस घृणित प्रस्ताव का विरोध करता हूँ !!! ".

किसी ने भी देववर्मन की बात का कोई जवाब नहीं दिया.

" आप सभी इस पाप के भागी बनेंगे ! ". देववर्मन ने जब देखा की उनकी बात का किसी पर कोई असर नहीं पड़ा है, तो वो चिल्लाकर बोलें, और गुस्से से कांपते हुए सभाकक्ष से बाहर चले गएँ.

अपने पति के बाहर जाते ही चित्रांगदा ने राहत की एक ठंडी साँस ली और अवंतिका के कंधे को दबा कर उसे आस्वस्त किया.

कक्ष में कुछ देर की शांति के बाद महाराजा नंदवर्मन ने कहा.

" कल रात ही हमने ये समाचार मरूराज्य नरेश हर्षपाल को भिजवा दिया था. उन्होंने जवाब देने में काफ़ी शीघ्रता दिखाई. आज सुबह ही हमारा दूत वापस सन्देश लेकर आया है की उन्हें इस विधि से कोई आपत्ति नहीं. विधि के पूरा होते ही वो अवंतिका से विवाह करके उसे अपनी पत्नि के रूप में स्वीकार कर लेंगे !!! ".

" ये तो बहुत अच्छी बात है... ". चित्रांगदा ने नीचे झुककर अवंतिका की आँखों में आँखे डालकर कहा. मगर अवंतिका कुछ ना बोली.

" अवंतिका और विजयवर्मन के विवाह की तैयारी कीजिये महाराज. मैं स्वयं सारी प्रक्रिया पूरी करुंगा... चिंता ना करें ! ". पुरोहित जी ने महाराजा और महारानी की ओर देखते हुए कहा.

" धन्यवाद पुरोहित जी... ". महाराजा नंदवर्मन और महारानी वैदेही ने एक साथ हाथ जोड़कर कहा.

" अब तो खुश हो ना राजकुमारी अवंतिका ??? ". चित्रांगदा ने बहुत ही धीमे स्वर में अवंतिका की पीठ पर चिकोटी काटते हुए उसके कान में फुसफुसा कर कहा. अवंतिका मन ही मन मुस्कुरा उठी, पर अपनी भाभी को कोई जवाब नहीं दिया.

पुरोहित जी ने अब विजयवर्मन और अवंतिका को सम्बोधित करते हुए कहा.

" याद रखियेगा राजकुमार विजयवर्मन और राजकुमारी अवंतिका... ये विवाह केवल अवंतिका के मरणमान्यवर दोष को काटने का हथियार मात्र है. आप दोनों विवाह के उपरांत सत्ताईस दिनों तक पति पत्नि के रूप में एक साथ एक ही कक्ष में रहेंगे, परन्तु वैवाहिक सुख का उपभोग नहीं करेंगे. अगर आपने ऐसी कोई भी गलती की तो राजकुमार विजयवर्मन के प्राण भी जा सकते हैं, अगर आप सत्ताईस दिन से एक दिन भी ज़्यादा एक दूसरे के साथ पति पत्नि की तरह रहें, तो भी राजकुमार विजयवर्मन के प्राण जा सकतें हैं !!! इस बात का ध्यान रहे... ".

विजयवर्मन और अवंतिका ने विनम्रता से सिर हिला कर पुरोहित जी की बात को मानने और समझने की हामी भरी, और फिर एक साथ पुरोहित जी और महाराजा तथा महारानी के चरण स्पर्श करके उनका आशीर्वाद लिया.

सभा भंग हुई.

जाते जाते विजयवर्मन और अवंतिका की नज़रें एक दूसरे से मिली, विजयवर्मन के चेहरे पर तो एक मुस्कान थी, परन्तु अवंतिका के सुंदर मुखड़े पर किसी कारणवश चिंता की काली छाया मंडरा रही थी !!!

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RE: मस्तराम की मस्त कहानी का संग्रह - by desiaks - 07-22-2021, 12:50 PM

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