RE: प्यारी भाभी
उस रात जब वोह मुझे परहने आई तो मैने देखा कि उनहोनेन एक सेक्सी सि निघतिए पहन रखि थि। निघतिए थोदि सि परदरशि थि। भभि जब कुछ उथने के लिये नीचे झुकि तो मुझे साफ़ नज़र आ रहा था कि भभि ने निघतिए के नीचे वोहि गुलबि रनग कि कछि पहन रखि थि। झुकने कि वजह से कछि कि रूप रेखा साफ़ नज़र आ रहि थि।मेरा अनदज़ा सहि था। कछि इतनि छोति थि कि भभि के भरि नितमबोन के बीच कि दरर मेन घुसि जा रहि थि। मेरे लुनद ने हरकत करनि शुरु कर दि। मुझसे ना रहा गया और मैन बोल हि परा,
"भभि अपने तो बतया नहिन लेकिन मुझे पता चल गया कि वो छोति सि कछि किसकि थि।"
" तुझे कैसे पता चल गया?" भभि ने शरमते हुए पूचा।
" कयोनकि वोह कछि आपने इस वकत निघतिए के नीचे पहन रखि है।"
" हुत बदमश! तु ये सुब देखता रहता है?"
" भभि एक बात पूछुन? इतनि छोति सि कछि मेन आप फ़ित कैसे होति हैन?" मैने हिम्मत जुता कर पूछ हि लिया।
" कयोन मैन कया तुझे मोति लगति हुन?"
" नहिन भभि, आप तो बहुत हि सुनदेर हैन। लेकिन आपका बदन इतना सुदोल और गथा हुअ है, आपके नितमब इतने भरि और फैले हुए हैन कि इस छोति सि कछि मेन समा हि नहिन सकते। आप इसे कयोन पहनति हैन? यह तो आपकि जयदाद को छुपा हि नहिन सकति और फिर यह तो परदरशि है , इसमे से तो आपका सुब कुछ दिखता होगा।"
" चुप नलयक, तु कुछ ज़यदा हि समझदर हो गया है। जब तेरि शादि होगि ना तो सुब अपने आप पता लग जयेगा। लगता है तेरि शादि जलदि हि करनि होगि, शैतन होता जा रहा है।"
" जिसकि इतनि सुनदेर भभि हो वोह किसि दूसरि लदकि के बारे मेन कयोन सोचने लगा?"
" ओह हो! अब तुझे कैसे समझावँ? देख रमु, जिन बातोन के बारे मेन तुझे अपनि बिवि से पता लग सकता है और जो चीसे तेरि बिवि तुझे दे सकति है वोह भभि तो नहिन दे सकति ना? इसि लिये कह रहि हुन शादि कर ले।"
" भभि ऐसि कया चीसे है जो सिरफ़ बिवि दे सकति है और आप नहिन दे सकति" मैने बहुत अनजान बनते हुए पूचा। अब तो मेरा लुनद फनफनने लगा था।
" मैन सुब समझति हुन चलाक कहिन का! तुझे सुब मलूम है फिर भि अनजान बनता है" भभि लजते हुए बोलि। " लगता है तुझे परहना लिखना नहिन है, मैन सोने जा रहि हुन।"
" लेकिन भैया ने तो आपको नहिन बुलया" मैने शररत भरे सवर मेन पूचा। भभि जबब मेन सिरफ़ मुसकुरते हुए अपने कमरे कि ओर चल दि। उनकि मसतनि चाल, मतकते हुए भरि नितमब और दोनो चुत्रोन के बीच मेन पिस रहि बेचरि कछि को देख कर मेरे लुनद का बुरा हाल था।
अगले दिन भिया के ओफ़्फ़िसे जने के बाद भभि और मैन वरनदह मेन बैथे चाय पी रहे थे। इतने मेन समने सरक पर एक गुय गुज़रि। उसके पीचे पीचे एक भरि भरकुम सानद हुनहर भरता हुअ आ रहा था। सानद का लुमबा मोता लुनद नीचे झूल रहा था। सानद के लुनद को देख कर भभि के माथे पर पसीना छलक अया। वोह उसके लुमबे तगरे लुनद से नज़रेन ना हता सकि। इतने मेन सानद ने जोर से हुनकर भरि और गुय पर चरह कर उसकि योनि मेन पूरा का पूरा लुनद उतर दिया। यह देख कर भभि के मुनह से सिसकरि निकले गयि। वोह सानद कि रास लीला और ना देख सकि और शरम के मारे उनदेर भाग गयि। मैन भि पीचे पीचे उनदेर गया। भभि कितचेन मेन थि। मैने बहुत हि भोले सवर मेन पूचा
" भभि वोह सानद कया कर रहा था?"
" तुझे नहिन मलूम?" भभि ने झूता गुस्सा दिखते हुए कहा।
" तुमहरि कसम भभि मुझे कैसे मलूम होगा ? बतैये ना।" हलनकि कि भभि को अछि तरह पता था कि मैन जान कर अनजान बुन रहा हुन लेकिन अब उसे भि मेरे साथ ऐसि बातेन करने मेन मज़ा आने लगा था। वोह मुझे समझते हुए बोलि
" देख रमु, सानद वोहि काम कर रहा था जो एक मरद अपनि बिवि के साथ शादि के बाद करता है।"
" आपका मतलब है कि मरद भि अपनि बिवि पर ऐसे हि चरहता है?"
" है रम! कैसे कैसे सवल पूचता है। हान और कया ऐसे हि चरहता है।"
" ओह! अब समझा, भैया आपको रात मेन कयोन बुलते हैन।"
" चुप नलयक, ऐसा तो सभि शादिशुदा लोग करते हैन।"
" जिनकि शादि नहिन हुइ वोह नहिन कर सकते?"
" कयोन नहिन कर सकते? वोह भि कर सकते हैन, लेकिन…।।" मैन तपक से बीच मेन हि बोल परा
" वाह भभि तुब तो मैन भि आप पर छरह……।।" भभि एकदुम मेरे मुनह पर हाथ रख कर बोलि " चुप, जा येहन से और मुझे काम करने दे।" और यह कह कर उनहोनेन मुझे कितचेन से बहर धकेल दिया।
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