non veg kahani एक नया संसार
11-24-2019, 01:20 PM,
RE: non veg kahani एक नया संसार
ऐसे ही कुछ दिन और गुज़र गए। नीलम तो अब लगभग पूरी तरह ठीक ही हो गई थी। उसकी पीठ का ज़ख्म भी अब ठीक हो चला था। मैं नीलम को अक्सर छेंड़ता रहता था, जिसके जवाब में वो बस मुस्कुरा कर रह जाती थी। मैं उसकी इस प्रतिक्रया से हैरान भी होता और मायूस भी। हैरान इस लिए क्योंकि वो मेरे छेंड़ने पर जवाब में खुद भी मुझे छेंड़ने का कोई उपक्रम नहीं करती थी बल्कि सिर्फ मुस्कुरा कर रह जाती थी। जबकि मायूस इस लिए क्योंकि मैं उससे यही उम्मींद करता था कि वो भी मुझें छेंड़े अथवा मुझसे लड़े झगड़े। मगर जब वो ऐसा न करती तो मैं बस मायूस ही हो जाता था। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि नीलम ऐसा क्यों कर रही थी। मैं महसूस कर रहा था कि नीलम कुछ दिनों से बड़ी अजीब अजीब सी बातें करती थी। उसकी बातों में सबसे ज्यादा इसी बात पर ज़ोर होता था कि मैं रितू दीदी का हमेशा ख़याल रखूॅ और उन्हें कभी दुखी न होने दूॅ।

एक दिन सुबह के लगभग आठ बजे सोनम दीदी व नीलम अपने अपने हाॅथों में छोटा सा बैग लिए तथा तैयार होकर हम सबके बीच आईं और माॅ(गौरी) से कहा कि वो मुम्बई जा रही हैं। कारण ये था कि उनके काॅलेज की पढ़ाई का नुकसान हो रहा था। बात पढ़ाई की थी इस लिए किसी ने उन दोनो को जाने से मना नहीं किया। जाते वक्त नीलम मेरे गले लग मुझसे मिली और एक पुनः उसने रितू दीदी का तथा सबका ख़याल रखने का कहा और फिर मेरी तरफ अजीब भाव से देखने के बाद वह पलट कर सोनम दीदी के साथ हवेली से बाहर निकल गई।

नीलम के जाने से मुझे ऐसा लगा जैसे मेरा कुछ छूटा जा रहा है। नीलम की ऑखों में ऑसू के क़तरे थे। जिन्हें उसने बड़ी सफाई से पोंछ लिया था। दूसरे दिन रुक्मिणी चाची ने हम सबसे अपने घर जाने को कहा। माॅ ने उनसे कहा भी मगर वो नहीं मानी। अतः उन्हें उनके सामान के साथ उनके घर भेज दिया गया। माॅ ने उनसे कहा था कि उनका जब भी दिल करे वो यहाॅ आती रहें।

हम सब अब फिर से एक साथ हो गए थे। इस बात से गाॅव के लोग भी काफी खुश थे। दिन भर किसी न किसी का आना जाना लगा ही रहता था हवेली पर। अभय चाचा व मैं उन सबसे मिलते और दुनियाॅ जहान की बातें होतीं। बड़ी माॅ का रवैया वही था यानी वो अपने कमरे से बाहर नहीं निकलती थीं। पवन लोगों के जाने के बाद मुझे लगा कि अब गुड़िया से बात करने का मौका मिलेगा मगर मेरी उम्मीदों पर पानी फिर गया। क्योंकि आशा दीदी के जाने के बाद गुड़िया का सारा समय उनके घर पर ही गुज़रता था और रात में भी वो उनके घर पर ही सो जाती थी। हवेली में अगर वो आती भी तो दिव्या व रितू दीदी के पास ही रहती। कहने का मतलब ये कि वो खुद को अकेली रखती ही नहीं थी। कदाचित उसे अंदेशा था कि मैं उससे मिलने की तथा उससे बात करने की कोशिश करूॅगा। गुड़िया के इस रवैये से मेरा दिल बहुत दुखी होने लगा था। एक नये संसार का ये रूप देख कर मैं ज़रा भी खुश नहीं था।
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RE: non veg kahani एक नया संसार - by sexstories - 11-24-2019, 01:20 PM

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