Bahu Ki Chudai बड़े घर की बहू
01-18-2019, 02:26 PM,
RE: Bahu Ki Chudai बड़े घर की बहू
नहाने धोने के बाद कामया एकदम तरो ताजा सजधज कर तैयार थी बहुत खूबसुरात लग रही थी वो शरीर तनकर उठा हुआ था सभी अंग बिल्कुल तराशे हुए लग रहे थे कपड़ों पर तो अब उसने ध्यान देना बिल्कुल बंद कर दिया था अब वो ध्यान देती थी तो सिर्फ़ अपने अंगो के निखार पर स्नान, मालिश उबटान के चलते आज उसका शरीर एकदम निखार उठा था दिन में दो-दो बार मालिश के साथ उबटान और फिर सबसे बड़े निखार की बात तो थी सेक्स 


हां वो भी एक इंपार्टेंट फक्टर था दिन रात जो सेक्स का खेल नहाने से लेकर सोने तक उसने खेला था हर अंग में एक ऐसी भूख जाग उठी थी कि, , हमेशा किसी ना किसी के साथ सट कर बैठने की या अपने शरीर पर किसी के हाथों के स्पर्श का एहसास उसे रहने लगा था खेर कामया तैयार थी और यही सोच रही थी कि गुरुजी कब याद करेगे पर गुरु जी का जब कोई मेसेज उसे नहीं मिला तो दासी को बुलाकर पूछ ही लिया 

कामया- गुरुजी कहाँ है 

दासी- जी वो कुछ धरम गुरु लोग आए हुए है उनसे चर्चा कर रहे है 

कामया- धरम गुरु … 

दासी- जी 5 लोग है अलग अलग धरम के असल में गुरुजी का समान भी तो पैक हो रहा है ना उनके जाने का वक़्त हो गया है अब तो आप ही इस अश्राम की कामयानी देवी बनकर राज करेंगी 

क्यों रानी साहिबा कुछ काम है आपका संदेश पहुन्चाऊ उन तक 

कामया- नहीं रहने दो जब वो लोग चले जाएँ तो बताना गुरुजी से मिलना है मुझे 

दासी- जी 
कहते हुए दासी चली गई थी कामया अपने कमरे में बैठी गुरुजी के अगले कदम और अपने बारे में सोचने लगी कामया को नहीं मालूम था कि आगे उसके लिए गुरुजी ने क्या सोच रखा है हाँ एक बात और कल या परसो तो शायद गुरुजी देश छोड़ कर चले जाएँगे फिर अरेहाँ… यह तो वो भूल ही गई थी जैसे ही उसके मन में यह बात आई वो थोड़ा सा व्याकुल हो उठी थी अपने घर वाले याद आने लगे थे उसे एक अकेलेपन का एहसास उसके मन में घर कर गया था 

कामया अपने जीवन के कुछ पहलू याद करते-करते कहा खो गई थी उसे पता भी नहीं चला पर कुछ देर में जब एक दासी ने उसे आवाज दी तो 
दासी- रानी साहिबा गुरुजी ने आपको याद किया है 

झट से उठ खड़ी हुई थी कामया जल्दी से बिना अपने आपको देखे हुए कामया लगभग दौड़ती हुई गुरुजी के कमरे में पहुँच गई थी 

गुरुजी ने जैसे ही कामया को देखा 
गुरुजी- आओ सखी आओ कैसी हो 

कामया - जी बस आशीर्वाद है आपका गुरुजी 

गुरुजी- कुछ परेशान लग रही हो सखी कुछ बात है 

कामया- जी वो बस थोड़ा सा अकेलापन सा लग रहा था आप भी जाने वाले है बस इसलिए थोड़ा सा मन विचलित था 
कहते हुआ कामया गुरुजी के आगोश में अपने आप ही जाकर लेट गई थी अपने आपको थोड़ा सा सेफ महसूस करने लगी थी वो गुरुजी ने भी कामया को अपने से सटा कर लिटा लिया था कामया के कपड़ों के अंदर से गुरुजी उसके मांसल अंगो को अपने हाथों से सहलाते हुए बोले 

गुरुजी- यह तो संसार का नियम है सखी इंसान के जीवन में परिवर्तन आते ही रहते है नये लोग जुड़ेंगे पुराने लोग जाएँगे किस किसका ध्यान रखोगी हाँ… मेरा तुम्हारा संबंध कभी नहीं टूटेगा मैं भले ही यहां से चला जाऊँगा पर तुम हमेशा ही मेरे मन में राज करोगी तुम जब चाहो मेरे पास आ सकती हो 

कामया थोड़ा सा और गुरुजी से सट कर लेट गई थी गुरुजी के हाथ उसकी चुचियों को धीरे-धीरे मसल रही थी पर पता नहीं क्यों उसे सेक्स की गर्मी अपने अंदर महसूस नहीं हो रही थी वो वैसे ही सिथिल पड़ी रही गुरुजी उसे हल्के हाथों से सहलाते हुए 

गुरुजी- कल कुछ लोग आएँगे धरम गुरु है इस देश के सारा पॉलिटिक्स उनके इशारे पर चलता है तुमसे मिलना चाहते है मिलॉगी . 

कामया- … चुप रही 

गुरुजी- मिल लो अच्छा रहेगा कल के बाद यही लोग तुम्हारी हर संभव मदद करेंगे इस लोगों के पास सबकुछ है और जो नहीं है वो उन्हें यहां से मिलता है इसलिए तुम्हें उनको अपने साथ रखना है और उन्हें अपने वश में करना जरूरी है 

कामया सट कर गुरुजी के साथ लेटी हुई थी आखें बंद थी और शायद सोने की कोशिश कर रही थी गुरुजी ने भी उसे सहलाते हुए अपनी आग को शांत ना करने की कोशिश की हल्के हाथों से सहलाते भर रहे और कामया कब सो गई पता नहीं 

सुबह जब उठी तो गुरुजी बेड पर नहीं थे पर एक सुखद सा अनुभव वो कर रही थी शरीर एकदम तरोताजा था एक उमंग थी उसके अंदर खुश भी बहुत थी क्यों नहीं मालूम अंगड़ाई लेकर जब वो उठी तो कुछ दासिया उसे नहाने धोने को ले गई सुबह का स्नान लेते ही वो एक बार फिर से उत्तेजित थी इतने हाथों की उसे अब आदत पड़ गई थी शरीर हमेशा ही सनसनाता रहता था नहाने के बाद तो बहुत और ना जाने वो क्या क्या होता था की अंदर जाते ही वो सेक्स के लालायित हो उठ-ती थी एक अजीब सी सनसनाहट उसके शरीर में दौड़ जाती थी रहरहकर अपने अंगो को मड़ोड़ने की इच्छा और अंगड़ाई लेने की इच्छा होती थी हर अंग में नशा सा छा जाता था मदहोशी का आलम यह होता था कि आखें अधखुली सी किसी मर्द को तलाशने लगती थी उस शारीरिक सुख के लिए जिसके बिना यह संसार अधूरा था 

कामया का जीवन सेक्स की भेट चढ़ चुका था जो एक जिग्याशा और अनुभूति उसके अंदर जिंदा थी वो थी बस अपने शरीर का सुख और कुछ नहीं अपने जीवन में आए बहुत से मर्द और फिर उनसे पाए हुए सुख उसके अंदर जिंदा थे और हर कोई उसे उसकी ओर धकेलते थे कामया अपने जीवन के अतीत को अपने आप में समेटे बहुत सी बातें सोच रही थी कल के बाद वो इस अश्राम की मालकिन होगी गुरुजी भी चले जाएँगे यह सबकुछ उसका होगा कोई टोकने वाला नहीं होगा अपने परिवार के साथ वो यहां रहेगी बहुत सी बातें सोचते हुए कामया नहाने धोने के बाद एक बार फिर से तरोताज़ा होकर गुरुजी के पास पहुँचा दी गई थी 

कामया को गुरुजी ने बहुत सी बातें समझाई थी उसके लिए ऊपर का फ्लोर रिजर्व था वहाँ उसके अलावा कुछ दासियों के सिवा किसी को भी आने की इजाजत नहीं थी उसके परिवार को तो बिल्कुल भी नहीं बहुत सी मान्यताए गुरुजी ने उसे बताई थी पैसे कहाँ और कैसे रखे जाते है कौन कौन उसके ख़ास होंगे और कौन कौन क्या-क्या करता है कामया सबकुछ बड़े ध्यान से सुन रही थी एक-एक कर उसे सारे कमरो से परिचित करा दिया गया बहुत सी बातें जो अब तक नहीं जानती थी वो सब भी उसे बताया था गुरुजी ने दोपहर तक कामया थक गई थी गुरुजी ने उसे अग्या दी कि खाना खाकर सो जाए शाम को धरम गुरुओं के साथ एक मीटिंग है उसे भी आना है अच्छे से तैयार होकर आए वो . 

कामया होंठों में मुश्कान लिए अपने कमरे में चली आई थी शाम को नहाने धोने के बाद कामया फिर से तैयार होने में लग गई थी आज की रात के लिए दासिया जब कपड़े लेकर आई तो थोड़ा सा चोकी थी वो यह कपड़े उसके अपने लग रहे थे दासी की ओर देखा तो थोड़ा सा मुस्कुराई थी वो 

दासी- गुरुजी का कहना है कि अब से आप इस तरह के कपड़े पहनेंगी सिले हुए जैसे गुरुजी पहनते है आपकी दीक्षा खतम हुई और कल से आप इस अश्राम की मालकिन है अब आपके लिए कोई नियम नहीं है आप ही नियम है जो कहेंगी वही होगा हिहीही 

हँसती हुई दासी ने कामया के सामने उसकी बहुत से साड़ियाँ और ड्रेस फैला दी थी उस दासी ने रूपसा और मंदिरा भी वही खड़ी थी बड़े ही उत्सुकता से कामया के ड्रेस को अपने हाथों में लिए देख रही थी पूरा अश्राम सजने सँवरने में लगा था बस कमरे के अंदर ही शांति थी और सब जगह हलचल मची हुई थी 

कामया- पर गुरुजी ने हमें तो कुछ नहीं कहा … 

रूपसा- आपको इससे क्या रानी साहिबा आपको तो बस यह सब अब पहनना है अगर मन नही तो नहीं तो आपको वही कपड़े हम पहना देते है 

कामया- नहीं नहीं, यह ही अच्छे है कहो कौन सी साड़ी पहनु 

मंदिरा- यह वाली 

एक ब्लैक और रेड कॉंबिनेशन पर स्टार्स से चकमक करती हुई साड़ी उसके हाथों में थी महीन सी और पारदर्शी साड़ी कामया थोड़ा सा मुस्कुराती हुई मंदिरा के पास पहुँच गई थी उसके सिर पर हाथ फेरते हुए खड़ी हो गई थी 

मंदिरा - आपके पास बहुत अच्छी साड़ियाँ है रानी साहिबा 

कामया- तुम्हें पहननी है … 

मंदिरा- नहीं नहीं बाप रे … 

कामया- क्यों क्या हुआ में हूँ ना तो डर कैसा और कल से तो जो में कहूँगी वोही ना 

रूपसा और मंदिरा की आखें चमक उठी थी एक नई आशा उनकी आखों में जाग उठी थी 

दोनों मिलकर कामया निहारने लगी थी कामया अब जाकर मिरर के सामने बैठ गई थी और अपने रूप को सवारने को तैयार थी एक अजीब सी उत्तेजना उसके अंदर जाग उठी थी शायद अपने कपड़े वापस पाकर एक नशा सा छाने लगा था उसके हर अंग में एक तरंग सा उठ रही थी उसके हर अंग में 
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