Raj sharma stories चूतो का मेला
12-29-2018, 02:49 PM,
RE: Raj sharma stories चूतो का मेला
यहाँ सबसे बड़ा एडवांटेज मेरा ये था की पठान ने कभी सोचा ही नहीं होगा की कोई उसको उसके ही अड्डे में घुस के मार सकता है क्योंकि घर से सुरक्षित कोई जगह नहीं होती और यहाँ ही वो सबसे असावधान होता है बस इसी का फायदा आज मैं लेने वाला था 


पूरा बार म्यूजिक की तेज आवाज में झूम रहा था मैं दबे पाँव ऊपर चढ़ गया ऊपर सुनसान सा ही पड़ा था मैंने उस कमरे का दरवाजा देखा अंदर से बंद था तो मैंने खड़काय पर जवाब नहीं मिला फिर से दस्तक दी कोई जवाब नहीं तीसरी बार पठान ने दरवाजा खोला और गाली बकते हुए बोला क्या गांड में दर्द है 


मैंने देखा वो बिलकुल नंगा था लण्ड ताना हुआ शायद सेक्स के लिए तैयार हो रहा होगा गाली देने के साथ ही वो वापीस दरवाजा बंद कर रहा था की बिजली की रफ़्तार से मेरा पैर चला और एक लात उसके टट्टो पर आ पड़ी पठान की साँस रुक सी गयी और उसको धक्का देते हुए मैं अंदर आ गया और सिटकनी बंद कर ली 


एक घूंसा मारा उसको तो होंठ से खून आने लगा वो तो वैसे ही दर्द से बिलबिला रहा था और मैंने मारना चालू किया उसको म्यूजिक की तेज आवाज में उसकी चीखे किसी को नहीं सुन पा रही थी, वो दोनों लडकिया डर से कांपते हुए एक कोने में खड़ी थी, दे मुक्के दे लात मैंने उसकी तब तक सुताई की जब तक वो बेहोश ना हो गया 

दिल तो मेरा भी तेजी से धड़क रहा था पर अब जो ठान लिया सो ठान लिया बेड की चादर को फाड़ कर उसके हाथ पाँव बांधे चाहता तो उसको व्ही मार सकता था पर मेरा इरादा कुछ और था पर समस्या थी की उसको वहाँ तक ले जाऊ कैसे जबकि टाइम इतना था नहीं 


तो फिर उसके नंगे शारीर को एक दूसरी चादर पे लपेटा और छत की तरफ ले आया किस्मत की ही बात थी की ये सब काम बिना किसी की नजर में आये हो रहा था उन दोनों लड़कियो को कमरे में बाँध आया था क्या पता सबको बता दे तो 

छत से दूसरी छत एक दम सटी हुई थी उस हरामखोर के बेहोश शारीर को उस तरफ धकेला और फिर दूसरी बिल्डिंग से होते हुए उसको निचे ले आया और फिर बार के सामने से ही एक चुराई हुई कार में साले को पटक के ले आया उसी बाजार में जहा उसने धमकी दी थी मेरी लाश लटकाने की 


बाजार एक दम शांत था ,बस हवा का ही शोर मचा हुआ था दो चार लोग जो शायद वहीँ फूटपाथ पे सोते थे मेरी उठापटक से जाग गए थे,मैंने पानी मारा पठान के मुह पर तो दर्द से कराहते हुए उसको होश आया तो उसने खुद को चोराहे पे उल्टा लटका पाया 

मैं- हाँ तो जोगिया पठान, जीसके नाम से पूरा शहर कांपता है देख कैसे लटका हुआ है बेबसी से

वो- तू जानता नहीं है किसके गिरेबां पे हाथ डाला है 

मैं-चुप साले, कैसा डॉन है बे तू देख एक आम आदमी तुझे तेरे अड्डे स ले आया तू कुछ न कर सका ,और शहर वाले बोलते है तेरा राज़ है 

वो- अभी भी वक़्त है भाग जा वर्ना कुत्ते की मौत मरेगा 

मैं-मौत की दहलीज़ पे खड़ा है और धमकी मुझे देख आज तुझे मरना तो है ही एक काम कर चीख़ और बुला तेरे बाप गाज़ी खान को 

वो-बाबा का नाम इज्जत से ले कमीने

मैं-चूतिये ये पूछ की मैं कौन हु क्यों तुझे मारना चाहता हु क्यों 

चल मैं ही बताता हु मैं वो हु जिसने कुछ दिन पहले तुम्हारे आदमियो की रेल बनाई थी और साले क्या बोला तू मुझे लात्कायेगा यहाँ देख आज तू खुद यहाँ लटका है कल सारा शहर देखेगा की कोई तो है जो जुल्म केखिलाफ आवाज उठाएगा 


तेरे बदन से निकली हर एक चीख बिगुल है गाज़ी के खिलाफ देख मैं तुझे कैसे जिबह करता हु ,मैंने छुरी निकाली और उसके लण्ड को काट दिया पठान के गले से चीख निकलने लगी पर उसके हाथ पाँव बंधे थे सो तड़पना ही था उसको 


मैं-दर्द हुआ मुन्ना ,ना ना रो मत इसको तो काटना ही था इसी के दम पे तूने ना जाने कितनी बहन बेटियो की आबरू को नीलाम किया होगा आज शांति मिलेगी उनको 

मैंने अब उसके हाथ की कलाई पर चीरा लगाया बाजार में पठान की चीखे गूँज रही थी जो लोग जाग गए थे वो डर से कांपते हुए नजारा देख रहे थे अब मैंने उसकी पसलियों को फाड़ना शुरू किया पठान के जिस्म से उसका गन्दा खून आजाद होकर बह रहा था मेरे हर ज़ख्म के साथ वो मौत के करीब जा रहा था 

और मुझ पर जैसे एक जुनूनीयत सवार थी मैं बस छुरी से उसके एक एक अंग को काट रहा था दम तो वो कभी का तोड़ चूका था पर मैं उसको काटते ही जा रहा था ये मेरा पहला वार था इस शहर के गॉडफादर के खिलाफ 

अगली सुबह पुरे शहर में एक ख़ौफ़ सा फैला हुआ था गाज़ी खान के बेहद खास आदमी को इतनी बेदर्दी से किसी ने मार डाला था हर तरफ चर्चाये थी कयास थे और अपने को भी फुरसत नहीं थी

अगली सुबह पुरे शहर में एक ख़ौफ़ सा फैला हुआ था गाज़ी खान के बेहद खास आदमी को इतनी बेदर्दी से किसी ने मार डाला था हर तरफ चर्चाये थी कयास थे और अपने को भी फुरसत नहीं थी



पुरे शहर में हलचल सी मच गयी थी शायद ही कोई आदमी होगा जिसकी जुबान पर जोगिया पठान के कत्ल की चर्चा ना हो हर कोई बस यही सोच रहा था की कौन इतनी हिम्मत करेगा जो गाज़ी खान के खास सिपहसलार पर हाथ डालेगा 

अपना काम करके मैंने सेठ को सलाम ठोका और अपने कमरे पे आ गया कमर तो क्या था बस गुजारे लायक था सर्दी में ठण्ड नही रूकती थी बरसात में बारिश कुछ पुरानी तस्वीरों को देख के जी हल्का हो जाया करता था पर जब से उसको देखा था एक बेचैनी सी हो रही थी
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