Raj sharma stories चूतो का मेला
12-29-2018, 02:29 PM,
#18
RE: Raj sharma stories चूतो का मेला
पिस्ता हाई अहि उफ़ उफ़ करते हुए फिर से चुदाई का पूरा आनंद उठाने लगी थी उसकी चूत के पानी से भीगा मेरा लंड फच फच करते हुए अन्दर बाहर हो रहा था जोश जोश में मैंने कुछ ज्यादा तेज धक्का लगा दिया तो उसका घुटना दिवार से टकरा गया तो वो कराहते हुए बोली कमीने आराम से और मुझ से अलग हो गयी मेरा लंड बाहर आते ही लहराने लगा पिस्ता वाही खिड़की में बैठ गयी और अपने चेहरे को थोडा सा झुका कर मेरे लंड को अपने मुह में भर लिया और चूस ने लगी मैंने कहा चूस कामिनी देख तेरी चूत के रस से सना है जरा चख कर तो बता चूत कर पानी कैसा लगा तुझे 




पिस्ता लंड चूसते हुए- मेरी चूत का पानी है तो मस्त तो होगा ही दुनिया लाइन में लगी है इस चूत के रस को चूसने के लिए तुझे मिल गया तो बात आ गयी और लगी लंड चूस ने को कसम से इस लड़की ने बस कुछ ही दिनों में मुझे पागल ही कर दिया था दो चार मिनट बाद उसने लंड को अपने मुह से बाहर निकला और बेड पर आ गयी इस बार उसने मुझे नीचे पटका और करने लगी मेरी सवारी अब वो घायल शेरनी कहा किसी की बंदिशों को मानती थी मस्तमौला मदमस्त लड़की मैंने अपनी आँखों को मूँद लिया और उसके कुलहो को सहलाते हुए कर दिया उसको खुद के हवाले कर ले तेरी जो भी मनमानी है 





वो अब पूरी तरह से मुझ पर चा गयी और फिर से मेरे होंठो को चूमने लगी उसकी कसी हुई चूत में फस मेरा लंड बहुत मजा आ रहा था कसम से हर एक बार जब वो ऊपर से नीचे आती मेरी नसों में भरा खून बहुत तेजी से दोद रहा था पिस्ता के बदन से फूटती गर्मी अब शोलो में बदल गयी थी बहुत देर तक मेरे ऊपर चढ़ी रही मैंने भी कोई जल्दी नहीं की ये अब खेल न होकर एक युद्ध ही हो गया था हमारे लिए मैं सोच ही रहा था उसको अपने नीचे लेने को की तभी पिस्ता एक दम से ढीली पड़ गयी और धम्म से मेरे ऊपर पड़ गयी छुट गयी थी वो 




उसकी चूचिया बहुत तेजी से हिल रही थी पसीना बह रहा था पुरे चेहरे से दरअसल कब बिजली चली गयी पता ही नहीं चला था हमे, पर ऐसे एक दम से चूत से लंड जो बाहर निकल आया था तो ठीक नहीं लगा मैंने तुरंत उसकी जांघो को फैलाया और फिर से अपने मुसल को उतार दिया उसकी चिकनी चूत में और लगा उसको चोदने मेरे नीचे पड़ी वो अब बुरी तरह से हाई हाई करने लगी थी उसका काम तमाम होते ही अब वोचाह रही थी की मैं बस उतर जाऊ उसके ऊपर से पर मेरा छुटे तब हटू मैं भी पिस्ता मेरे बालो को नोचने लगी , अपने नाखून मेरे कंधो पर रगड़ने लगी पर मैं लगा रहा वो बोली कमीने साँस तो लेने दे पर मैं अब रुक नहीं सकता था जोर आजमाइश उफान पर थी झीना झपटी में उसका नाखून मेरे चेहरे पर लग गया और लगा भी काफी जोर से एक लाइन सी बन गयी थी पर मैंने तब भी उसको नहीं छोड़ा पिस्ता की शकल ऐसी हो गयी थी जैसे की बस अब रोई अब रोई मेरी मंजिल भी बस थोड़ी ही दूर थी 





पिस्ता मेरी छाती पर मुक्के मरते हुए बोली छोड़ दे न पेशाब आ रहा है दो मिनट की बात है छोड़ दे न मैंने हांफते हुए कहा बस थोड़ी देर रुक पर उसका मूत रुकना मुश्किल था आखिर उसने मुझे हटा ही दिया और हटाया भी बिलकुल गलत टाइम पर मैं बस झड ही रहा था लंड ने बाहर आते ही वीर्य की पिचकारी छोड़ दी जो बिस्तर पर यहाँ वहा गिरने लगी पिस्ता तुरंत बेड से उतरी और फर्श पर बैठ कर मूतने लगी कमरे में सुर्र्र्रर्र्र्र सुर्र्र्र की आवाज फ़ैल गयी पेशाब की एक मोटी धार फैलने लगी पेहली बार मैंने किसी लड़की को मूत ते हुए देखा था बड़ा अच्छा लग रहा था पिस्ता काफ़ी देर तक मूत टी रही पर मुझे ठीक से झड न पाने का दुःख था पर अब क्या किया जा सकता था

थोडा सा थक गया था तो मैं बिस्तर पर पड़ गया पिस्ता भी मूत कर मेरे पास ही लत गयी और आँख बंद कर के पड़ गयी आँख कब लग गयी पता ही नहीं चला जब आँख खुली तो शाम ढल गयी थी टाइम 7 से ऊपर हो रहा था मैं फटाफट से उठा वो बेसुध सी सोयी पड़ी थी उसको भी जगाया बिना कुछ कहे मैं भगा वहा से सीधा अपने घर की और आज तो गया मैं काम से लेट हो गया था घर पर डांट खानी पक्की थी पिताजी भी आ चुके होंगे दफ्तर से डर भी लग रहा था पर घर भी जाना तो था ही तो डरते डरते कदम रखा घर की देहलीज पर पर इस जनम में चैन था ही कहा मुझे 


घर में घुसते ही प्यारी चाची जी के दर्शन हुए ना जाने मुझसे इतना किलस्ती क्यों थी वो 

चाची- हां, तो साहब जी को घर की याद आ गयी अभी भी आने की क्या जरुरत थी और आवारागर्दी कर लेते आजकल मैं देख रही हूँ कुछ ज्यादा ही तुम्हारे पाँव निकल गए हैं पहले तो पढाई से आते ही बस घर रहते थे पर आजकल जनाब के तेवर बदल गए है बात क्या है जरा हमे भी तो बताओ 


मैं हकलाते हुए- कुछ नहीं चाची जी, वो दरअसल आज क्रिकेट का मैच था तो आने में देर हो गयी 


चाची- झूठ थोडा कम बोला करो तुम, कोई मैच नहीं था तुम्हारा खेलने का सामान तो घर पर ही रखा है 
मेरी समझ में आ ही नहीं रहा था की अब क्या बोलू कुछ सूझा नहीं तो बस नजरे नीचे करके खड़ा हो गया अब करता भी तो क्या 


चाची बोली- बीटा हम लोग तुम्हारे दुश्मन नहीं है, कभी कभी कुछ बोलते हैं तो तुम्हारे भले के लिए ही देखो अब तुम बड़े हो गए हो, पर दुनिया दारी बहुत बड़ी है आजकल जमाना ख़राब है फिर तुम घर के इकलोते वारिस हो हमे फिकर हैं तुम्हारी , जब कही तुम्हे जरा सी भी देर हो जाती है तो सब लोग थोडा घबरा जाते हैं आज माफ़ करती हूँ, कल से सांझ से पहले घर आ जाना 


मैंने हां में गर्दन झुलाई और अपने कमरे की तरफ चल पड़ा चाची ने पीछे से कहा तुम्हारी पसंद के चावल बनाये है खा लेना और आज रात खेत पर जाना होगा तुम्हे, तुम्हारे चाचा कुछ काम से बाहर गए है


आज तो मेहरबानी हो गयी मुझ पर पसंद का खाना और खेत में भी जाना पिस्ता से मिलने का चांस मिला मेरी ख़ुशी छुपाये नहीं चुप रही थी, होंठो पर एक मुस्कान सी आ गयी थी जिसे मैं चाह कर भी रोक नहीं पा रहा था , दूध पीते पीते मुझे मुस्कुराते देख कर पिताजी ने पूछ ही लिया हैं की भाई क्या बात हैं आज कुछ ज्यादा ही मुस्कुरा ही रहे हो क्या हुआ जरा हमे भी तो बताओ 

मैंने कहा – जी, कुछ नहीं ऐसे ही कुछ याद आ गया था तो बस .... 

पिताजी- बेटे इस उम्र में अक्सर इश्क- मुश्क का जिनपर असर हुआ वो ही बिना बात के मुस्कुराया करते है 
पिताजी की बात सुनते ही मुझे खांसी आ गयी गिलास से थोडा दूध छलक गया पिताजी मेरी पीठ थपथपाते हुए बोले – आराम से बेटे, मैं तो बस तुम्हे ऐसे ही छेड़ रहा था आराम से दूध पीओ 



मैं खेत पर हूँ ये बात पिस्ता को बताना चाहता था पर घर से फ़ोन कर नहीं सकता था तो अब करू क्या फिर सोचा की अड्डे पर जो एसटीडी है उधर से ही फ़ोन करता हूँ जेब में हाथ दिया तो वो खाली थी अब घरवालो से पैसे मांगू कैसे पर पिस्ता को भी बताना जरुरी था तो हिम्मत करके पिताजी से दस रूपये मांगे उन्होंने बेहिचक दे दिए कसम से बड़ी ख़ुशी मिली 


पैसे मिलते ही साइकिल उठाई और पहूँच गया एसटीडी पर वो दुकान बंद करने ही वाला था मिन्नतें करके एक फ़ोन का जुगाड़ किया और पिस्ता को बताया की आज कुए पर ही सोना है मुझे तो उसने कहा की दस बजे बाद उसके खेत पर मिलु मैं तो तय हो गया की आज की रात दिलरुबा के नाम 5 रूपये दिए दुकान वाले को और पांच की खरीदी बलुश्याही और साइकिल को धूम स्टाइल में उड़ाते हुए पहूँच गया खेत पर 



मोसम में थोड़ी गर्मी सी थी तो उतारे कपडे और कच्छे-बनियान में ही घूमने लगा सब्जियों में पानी दिया तो ठन्डे पानी को देख कर मन बहक गया सोचा नाहा ही लेता हूँ और पाइप से खद क भिगोने लगा बड़ा मजा सा आने लगा गाँव की मिटटी की भी बात ही निराली होती हैं दुनिया में कही भी घूम आओ पर जो सुकून यहाँ पर मिटा है वो कहीं नहीं हैं वाही खेत के कीचड में लेट गया मैं तो मिटटी की वो अपनी सी खुसबू तन बदन में बसती चली गयी 



बहुत देर तक पानी के पाइप को सीने से लगाये पड़ा रहा मैं, लगा रूह को थोडा सा चैन मिल गया मुझे तभी किसी ने आवाज दी तो देखा मैंने पिस्ता पानी के होद के पास कड़ी थी कीचड से सने मुझ को देखते हुए बोली वो – गजब हो यार तुम तुम्हारे हर रोज काफ़ी रंग देखती हूँ मैं मैं वैसी ही हालत में उसके पास गया और बोला – कुछ दिन गुजार लो साथ सब समझ जाओगी , एक काम करो अन्दर से चारपाई निकाल लो बैठो मैं नाहा लेता हूँ फिर बात करते है पर वो बोली- ना, ,ना आज इधर नहीं मेरे खेत पर चलेंगे वाही बैठे,गे, बाते करेंगे 



मैं – ठीक हैं पर तुम दो मिनट ठहरो बस अभी नाहा लेता हूँ फिर साथ चलते है वो मुस्कुराई मैंने जल्दी से नहाया और कपडे पहन कर उसके साथ चल कर खेत में पहूँच गया मेरे खेत से अगला तो था ही उसका , खेत पर बने कमरे से थोड़ी दूर एक नीम का पेड़ था थोडा बड़ा सा उसके पास ही उसने खाट लगायी हुई थी उसने कहा तुम बैठो जरा मैं अभी आती हूँ, मैंने कहा कहा जा रही हो , ना जाओ वो बोली बस १ मिनट में आई
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RE: Raj sharma stories चूतो का मेला - by sexstories - 12-29-2018, 02:29 PM

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