RE: Sex Story मैं चीज़ बड़ी हूँ मस्त मस्त
मैं वॉशरूम में गयी और अपना मूह धोया और कपड़ों को ठीक किया और फिर कॅंटीन की तरफ चल पड़ी यहाँ पे महक मेरा वेट कर रही थी. मैने देखा महक और करण एक बेंच पे साथ ही बैठते थे. मुझे देखते ही महक ने पूछा.
महक-कहाँ रह गई थी तुम.
मैने करण को हग किया और फिर महक को जवाब देते हुए कहा.
मे-कुछ नही यार वॉशरूम चली गई थी ज़रा.
महक-कोई इतना टाइम लगता है क्या वॉशरूम में.
मे-मिक्कुन तू अब चुप करेगी मुझे कोई ढंग की बात कर लेने दे करण से.
महक-हां-2 ज़रूर करो मेडम हमारी तो कोई वॅल्यू ही नही आपकी लाइफ में.
मैने मिक्कु के कंधे पे हाथ रखते हुए कहा.
मे-ओये मिक्कुक ऐसी बात दुबारा मत करना समझी.
महक ने हँसते हुए कहा.
महक-मेरी स्वीतू मैं तो मज़ाक कर रही थी.
करण-अरे ज़रा इस नाचीज़ पे भी कोई ध्यान दो बंदा कब्से बैठा है.
मे-सारा ध्यान तो तुम्हारे उपर है और कैसे ध्यान दूं.
करण-मेरा मतलब था तुम दोनो आपस में बात करती जा रही हो ज़रा हमे भी मौका दो.
मे-लो अब हम चुप हो जाते है आप अपनी बकवास शुरू कर दीजिए.
करण-ओह तो हमारी बातें बकवास लगती है मेडम को.
मे-नही-2 आप तो जब इन गुलाबी-2 होंठो से मीठे-2 वर्ड बाहर निकालते हो तो ऐसा लगता है कि फूल नीचे गिर रहे हों.
करण-अरे यार पहले बता देती ये बात.
मे-वो क्यूँ.
करण ने एक फूल मुझे देते हुए कहा.
करण-मैं ऐसे ही दुकान से खरीद कर लाया फूल अगर पहले पता होता तो अपने होंठों से निकले फूल उठाकर तुम्हे दे देता.
मिक्कुा बदमाश ने मौके पे चोट लगाई.
महक-अरे जीजू अपने होंठों के फूल तो आप अभी भी दे सकते हो रीत को.
करण ने अंजान बनते हुए कहा.
करण-वो कैसे.
महक-सिंपल अपने होंठों को रीत के होंठों के साथ जोड़कर.
मे-चुप कर कमिनि कहीं की जा जाकर आकाश से ले होंठों के फूल.
महक-अरे हाँ आकाश से याद आया पता नही कहाँ है वो आज.
मे-तू जा जाकर ढूंड उसे.
महक-ओके जी आप बैठो लैला मजनू.
महक के जाने के बाद करण और मैं पार्क की तरफ चल पड़े करण ने मुझे कही घूमने जाने को कहा तो मैं फट से तैयार हो गई. हम दोनो उसकी बाइक पे निकल पड़े. करण की बाइक अब शहर से निकल कर गाओं की तरफ चल पड़ी थी.
मैने करण से पूछा.
मे-कहाँ जा रहे हो.
करण-आज तुम्हे अपने गाओं घुमा कर लाता हूँ मैं.
मे-गाओं में भी तुम्हारा घर है क्या.
करण-और नही तो क्या शहर आने से पहले हम वही तो रहते थे. हमारी ज़मीन है वहाँ पे.
मे-ह्म्म्मत कितना टाइम लगेगा.
करण-बस थोड़ी देर में पहुँच जाएँगे.
थोड़ी देर और सफ़र करने के बाद हम करण के गाओं पहुँच गये. गाओं से थोड़ी दूर करण ने बाइक रोकी और अपना मोबाइल निकाला और किसी को कॉल की.
मैं देख रही थी चारो तरफ हरियाली ही हरियाली थी. ठंडी हवा चल रही थी जो शरीर को एकदम तरो ताज़ा करने का दम रखती थी. करण ने मोबाइल पे बात करनी शुरू की.
करण-हां साहिल ब्रो कैसा है तू.
दूसरी और की बात मुझे सुनाई नही दे रही थी.
करण-अच्छा तो अभी कहाँ पे है.
करण-जल्दी कर अपने ट्यूबिवेल पे आ मैं आ रहा हूँ वहाँ पे.
करण-तुझे किसी से मिलवाना है.
करण-समझा कर घर नही ला सकता उसे.
करण-हां तेरी भाभी ही है बस जल्दी आ और तेरी भाभी को खेतों में भी घुमाना है आज.
करण ने मोबाइल जेब में रखा और मुझे बाइक पे बैठने को कहा और उसे बाइक फिरसे दौड़ा दी.
वैसे तो मैं भी गाओं में ही रहती थी लेकिन हमारा गाओं अब सिर्फ़ नाम का ही गाओं था. शहर नज़दीक होने की वजह से वहाँ बहुत डेवेलपमेंट हो चुकी थी और तक़रीबन सारा गाओं अब शहर में ही मिल चुका था.
करण का जो गाओं था वो तो बिल्कुल पंजाब के गाओं जैसा था. एकदम शांत, हरा भरा, खुला दूला. दिल को अजीब सी शांति मिलती थी गाओं में आकर.
मैं ये सब सोच ही रही थी कि हम करण के दोस्त के ट्यूबिवेल पे पहुँच गये.
वहाँ एक लड़का बैठा था शायद वोही था जिसके साथ करण ने बात की थी. करण ने मुझे उस से मिलवाते हुए कहा.
करण-रीत ये है मेरा बचपन का दोस्त साहिल.
मे-हेलो.
करण-न्ड साहिल ब्रो ये है मेरी होने वाली बीवी यानी कि तेरी भाभी रीत.
साहिल-सत श्री अकाल भाभी जी.
मे-सत श्री अकाल जी.
मैने देखा साहिल मुझे घूरता ही जा रहा था उसकी नज़र मेरे उरोजो पे थी और मैं जानती थी कि उसके मूह में मेरे उरोजो को देखकर पानी ज़रूर आ रहा होगा. मैने सोचा क्यूँ ना साहिल को थोड़ा तडपाया जाए उसके घूर्ने के जवाब में मैं भी उसे घूर्ने लगी. जैसे ही हमारी नज़रें मिली तो उसने झट से अपनी नज़रें नीची कर ली. शायद वो शरमा रहा था. मुझे उसकी हालत पे हँसी आ रही थी. मैने अपनी नज़र को चारो ओर दौड़ाते हुए कहा.
मे-करण कितना मन लग रहा है ना यहाँ.
करण-इसीलिए तो तुम्हे यहाँ लेकर आया हूँ चलो तुम्हे खेतों में घुमा कर लाता हूँ.
हम दोनो खेतों की तरफ चल पड़े. मेरे नितंब एक तो पहले से पॅंट में कसे हुए थे दूसरे साहिल को दिखाने के लिए मैने उन्हे चलते वक़्त ज़्यादा ही मटकाना शुरू कर दिया. मैने पीछे मूड कर देखा तो वो वहीं अपनी जगह पे खड़ा होकर एक टक मेरे नितंबों की थिरकन देख रहा था और अपना लिंग मसल रहा था. हम सरसो की फसल के पास घूम रहे थे. अचानक करण ने मुझे धक्का देकर सरसो के बीच गिरा दिया और खुद मेरे उपर गिर गया और अपने होंठ मेरे होंठों से चिपका दिए.
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