Hindi Sex Stories By raj sharma
07-19-2017, 10:31 AM,
RE: Hindi Sex Stories By raj sharma
हिंदी सेक्सी कहानियाँ

मासूम--1
दोस्तो मैं यानी आपका दोस्त राज शर्मा एक और नई कहानी मासूम लेकर हाजिर हूँ
वो सर पर अपना पल्लू डाले घर से निकली. बाहर गर्मी बहुत ज़्यादा थी और
धूप काफ़ी तेज़ जबकि ये सिर्फ़ एप्रिल का महीना था. उसने टी.वी पर भी
सुना था के ये साल पिच्छले 50 सालों में सबसे गरम होगा.
दोपहर के वक़्त गाओं की सड़कें अक्सर सुनसान ही रहती थी. 1 बजने तक लोग
अपने अपने घर में घुस जाते
थे और शाम 4 या 5 बजे से पहले नही निकलते थे.
खाली सड़कों पर तेज़ कदम बढ़ाती वो गाओं से थोड़ा बाहर बने चर्च की तरफ बढ़ी.
पीछे से एक कार के आने की आवाज़ सुनकर वो सड़क के किनारे हो गयी. वो
जानती थी के कार किसकी है. रोज़ाना ये कार इसी वक़्त यहाँ से गुज़रती थी.
पर आज पीछे से आती कार तेज़ी के साथ गुज़री नही बल्कि उसके पास पहुँच कर
धीमी हो गयी.

"कैसी हो सिरिशा?" मेरसेडीज का शीशा नीचे हुआ

उसने रुक कर कार की तरफ देखा और दिल की धड़कन जैसे अपने आप तेज़ होने लगी.
विट्ठल पर गाओं की हर लड़की फिदा थी, उसकी अपनी दोनो बड़ी बहने भी. वो
देखने में था ही ऐसा. लंबा, चौड़ा ...... वो क्या कहते हैं अँग्रेज़ी में
.... हां, टॉल डार्क आंड हॅंडसम. वो हमेशा महेंगे कपड़े पेहेन्ता था,
महेंगी गाड़ियाँ चलाता था. उसने तो ये भी सुना था के विट्ठल के पापा का
इंडिया के हर
बड़े शहर में एक घर था.

"आपको मेरा नाम कैसे पता विट्ठल साहिब" वो खिड़की के थोड़ा करीब होते हुए बोली
"तुम्हें मेरा नाम कैसे पता?" विट्ठल ने मुस्कुराते हुए सवाल के बदले सवाल किया
"कैसी बात करते हैं. आपको तो हर कोई जानता है" वो थोड़ा शरमाते हुए बोली
"ह्म्‍म्म्मम" विट्ठल मुस्कुराया "कहाँ जा रही हो?"
"चर्च तक"
"चर्च? सिरिशा पर तुम तो एक ब्रामिन हो........"
"मुझे वहाँ जाके अकेले बैठना अच्छा लगता है, इसलिए इस वक़्त जाती हूँ.
कोई नही होता चर्च में,
एकदम शांति, आराम से बैठ के भगवान को याद किया जा सकता है" सिरिशा एक
साँस में बोल गयी
"आअराम से, शांति से मंदिर में भी बैठा जा सकता है. या मंदिर के पुजारी
तुम्हें पसंद नही आते उस
गोरे फादर के सामने?"

फादर पीटर का नाम इस तरह सुनकर सिरिशा और भी शर्मा उठी. वो बाहर किसी देश
के थे, कौन सा पता नही पर यहाँ इंडिया में वो क्रिस्चियन धरम फेलाने के
लिए आए थे. वो अपने आपको एक मिशनरी कहते थे. जब वो चर्च में खड़े होकर
बोलते थे तो सिरिशा के दिल को एक अजीब सा सुकून मिलता था. कितना ठहराव था
उनकी बातों में, उनकी आवाज़ में.
जो भी बात कभी सिरिशा को परेशान करती, वो अक्सर कन्फेशन बॉक्स में बैठ कर
फादर पीटर से कह देती थी. यूँ चर्च में उनके सामने सब कुच्छ कन्फेस कर
लेना उसे बहुत पसंद था.

"तुम्हें पता है ये लोग यहाँ ग़रीब लोगों को पैसा देकर क्रिस्चियन बनाते
हैं?" वो अभी अपनी सोच में ही गुम थी के विट्ठल बोला

उसकी बात सुनकर एक अजीब तरह का गुस्सा सिरिशा के दिल में भर गया. उसने
विट्ठल की बात का जवाब देना ज़रूरी नही समझा और कार से हटकर आगे की तरफ
चल पड़ी.
"अर्रे इतनी गर्मी में कहाँ जा रही हो? आओ मैं छ्चोड़ देता हूँ" पीछे से
विट्ठल चिल्लाया उसकी बात सुनकर सिरिशा एक पल के लिए सोचने पर मजबूर हो
गयी.
चर्च अभी थोड़ा दूर था और आज
गर्मी कुच्छ ज़्यादा ही थी. वो चर्च तक पहुँचते पहुँचते पसीना पसीना हो
जाएगी और इस हालत में
चर्च जाना उसे अच्छा नही लगता था.

"गाड़ी में ए.सी. चल रहा है. मैं छ्चोड़ दूँगा तुम्हें" कहते हुए विट्ठल
ने गाड़ी का दरवाज़ा खोला.
सिरिशा ने पल्लू अपने सर से हटाया और गाड़ी में पिछे की सीट पर जाकर बैठ
गयी. पर उस वक़्त चर्च जाने का उस वक़्त विट्ठल का शायद कोई इरादा नही
था.

"कहाँ जा रहे हैं हम?" गाड़ी जब एक चर्च जाने के बजाय एक दूसरे ही रास्ते
पर मूडी तो सिरिशा ने पुछा
"कहीं नही. चिंता मत करो तुम्हें चर्च छ्चोड़ दूँगा मैं" विट्ठल पिछे देख
कर मुस्कुराया.
उसके बाद जो हुआ वो सिरिशा के लिए एक सपने जैसा ही था, एक ऐसा बुरा सपना
जिसे सोचकर ही उसके दिल घबरा जाता था और गुस्सा से वो लाल हो जाती थी.
विट्ठल ने गाड़ी रोकी और उसके साथ बॅक्सीट पर आ गया था.

"छ्चोड़ दो मुझे, जाने दो" वो ज़बरदस्ती करने लगा तो सिरिशा रोते हुए बोली.
"बस एक बार .... कुच्छ नही होगा .... मज़ा आएगा तुझे भी" विट्ठल ने उसकी
सारी कमर तक उठा दी थी
"ये पाप है, तुम ऐसा नही कर सकते मेरे साथ"
"अर्रे कोई पाप वाप नही है" उसने अपनी पेंट की ज़िप खोली और नीचे को खिसकाई.

उसके बाद सिरिशा जैसे एक ज़िंदा लाश बन गयी थी. वो कार की पिच्छली सीट पर
पड़ी बाहर चिड़ियों के चहचाहने की आवाज़ें सुनती रही. उसको मालूम था के
जहाँ वो लोग रुके हुए हैं, वहाँ इस वक़्त दूर दूर तक कोई नही होता इसलिए
रोने चिल्लाने का कोई फ़ायदा नही था.

"जितनी मस्त तू उपेर से दिखती है, उससे कहीं ज़्यादा मस्त तू अंदर से है"
विट्ठल ने एक पल के लिए अपना सर उपेर उठाकर बोला और फिर से झुक कर उसकी
चूचियाँ चूसने लगा.

सिरिशा का ब्लाउस खुला था और ब्रा को विट्ठल ने खींच कर उपेर कर दिया था
ताकि उसकी दोनो चूचियो के साथ खेल सके. नीचे से उसने सारी को सिरिशा की
कमर तक चढ़ा दिया था और अपनी नंगी टाँगो के बीच विट्ठल को महसूस कर रही
थी.

"ये टाँग थोड़ी उपेर कर ना प्ल्स" विट्ठल अंदर दाखिल होने की कोशिश कर
रहा था पर अंदर जा नही पा रहा था.

सिरिशा ने बिना कुच्छ कहे उसकी बात मानती हुए अपनी एक टाँग को थोड़ा सा
हवा में उठा दिया. विट्ठल ने एक बार फिर उसके शरीर में दाखिल होने की
कोशिश की. सिरिशा पूरी तरह से बंद थी और ज़रा भी गीली नही हुई थी इसलिए
अंदर जाने की ये कोशिश विट्ठल के लिए काफ़ी तकलीफ़ से भरी महसूस हुई.

"एक काम कर ... थोड़ी देर मुँह में लेके चूस दे ना ... गीला हो जाएगा"
विट्ठल ने कहा तो सिरिशा ने गुस्से में उसकी तरफ देखा और बिना कुच्छ कहे
अपना मुँह दूसरी तरफ घुमा लिया.
"अर्रे नाराज़ क्यूँ होती है, मैं तो बस पुच्छ ही रहा था" विट्ठल ने नीचे
को झुक कर उसका गाल चूमा और फिर अपने हाथ पर थोड़ा सा थूक लिया और लगा कर
फिर से कोशिश की.
थोड़ी तकलीफ़ हुई पर इस बार लंड बिना रुके सिरिशा के अंदर तक दाखिल हो गया.
"आआअहह .... कितनी टाइट है तू .... आज तक चुदी नही क्या कभी?"
इस बार भी सिरिशा ने जवाब देना ज़रूरी नही समझा. दर्द के मारे उसकी चीख
निकलते निकलते रह गयी थी और आँखों में आँसू भर आए.
"मज़ा आ गया .... ओह्ह मेरी जान .... बहुत गरम है तू ... बहुत टाइट"

और भी जाने क्या क्या बकता हुआ विट्ठल अकेला ही मंज़िल की तरफ बढ़ चला.
सिरिशा की दोनो चूचियाँ उसके हाथों में थी और उसके गले को चूमता हुआ वो
धक्के पर धक्के लगा रहा था. उसके नीचे दबी सिरिशा बड़ी मुश्किल से अपने
आपको कार की सीट पर रोक पा रही थी. एक तो इतनी छ्होटी सी जगह और उसपर
विट्ठल के धीरे धीरे तेज़ होते धक्के, हर पल उसको लगता था के वो खिसक कर
नीचे गिर जाएगी.

"आआआहह" अचानक विट्ठल ने उसकी एक चूची पर अपने दाँत गढ़ाए तो उसकी चीख निकल गयी.
"सॉरी" वो दाँत दिखाता हुआ बोला "कंट्रोल नही, तेरी हैं ही ऐसी, इतनी
बड़ी और इतनी सॉफ्ट"
सिरिशा का दिल किया के मुक्का मार कर उसके दोनो दाँत तोड़ दे.
"जल्दी करो" वो पहली बार बोली
"जल्दी क्या है ... अच्छी तरह से मज़ा तो लेने दो" विट्ठल फिर धक्के लगाने लगा
"तुझे मज़ा नही आ रहा?"
सिरिशा कुच्छ नही बोली
"अर्रे बोल ना ... मज़ा नही आ रहा. कैसा लग रहा है मेरा तेरे अंदर?"
वो फिर भी कुच्छ नही बोली
"पूरी गीली हो चुकी है तू और कहती है के मज़ा नही आ रहा?"

विट्ठल ने कहा तो सिरिशा का ध्यान पहली बार इस तरफ गया. उसकी टाँगो के
बीच की जगह पूरी तरह से गीली हो चुकी थी और अब विट्ठल बड़ी आसानी के साथ
उसके अंदर बाहर हो रहा था.
"मेरी कार की सीट तक गीली कर दी है तूने"
वो सही कह रहा था. खुद अपनी कमर और कूल्हो के नीचे सिरिशा को कार की गीली
सीट महसूस हो रही थी. खुद उसका अपना शरीर उसे छ्चोड़ कर विट्ठल के साथ हो
चला था और उसे पता भी नही चला था.

वो पूरी तरह से खुल चुकी थी और उसका शरीर जैसे विट्ठल के हर धक्के का
स्वागत कर रहा था.
"निकलने वाला है मेरा" विट्ठल ने कहा और किसी पागल कुत्ते की तरह हांफता
हुआ धक्के लगाने लगा.

थोड़ी देर बाद उसको चर्च के सामने छ्चोड़ कर विट्ठल चलता बना. सिरिशा ने
एक पल के लिए सामने चर्च के दरवाज़े पर नज़र डाली और फिर अंदर जाने के
बजाय पलट कर वापिस घर की तरफ चल पड़ी.
वो इस हालत में चर्च कैसे जा सकती थी?
क्रमशः.........................
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