Chuto ka Samundar - चूतो का समुंदर
06-08-2017, 11:17 AM,
RE: चूतो का समुंदर
अकरम- अब बोलिए....क्या कहती है....

सादिया(सम्भल कर)- क्या मतलब...क्या है ये सब....

अकरम- मतलब ...वो तो आप ही बताएँगी...

सादिया- मैं...मैं क्या बोलू...मुझे तो कुछ समझ ही नही आ रहा....

अकरम- ह्म्म...समझ कैसे आएगा....आप तो बस कहानी सुना लेती हो...वेल नाइस स्टोरी ..हाँ...

सादिया- कहानी...कैसी कहानी...

अकरम- अरे...ये कहानी नही तो क्या है...आपने एक ऐसे करेक्टर के बारे मे बताया जिसका कोई बाजूद ही नही..तो इसे क्या कहेगे...ये तो एक कहानी ही हो सकती है....

सादिया- मतलब...मैने क्या बोला...तुम किसकी बात कर रहे हो....

अकरम- वही..मेरी खाला ..जिसे आप गुल की मोम बता रही है....असल मे उसका तो कोई बाजूद ही नही है...

सादिया- ये क्या बकवास है....तुम ये कहना चाहते हो कि गुल की मोम है ही नही...तो क्या वो आसमान से टपकी...

अकरम- नही...गुल वैसे ही टपकी है जैसे हर इंसान टपकता है...मैं तो बस ये बोल रहा हूँ कि आप जिसे गुल की मोम बता रही है उस औरत का कोई बाजूद ही नही है....

सादिया(झल्ला कर)- आख़िर कहना क्या चाहते हो तुम...

सादिया ने ज़ोर से बात की तो अकरम को भी गुस्सा आ गया और वो गुस्से मे चिल्लाते हुए बोला......

अकरम- सच...और सच ये है कि मेरी कोई दूसरी खाला नही ...तुम्हारे अलावा....दूसरा सच ये कि गुल आपकी बेटी है...समझी..आपकी बेटी...

सादिया(सकपका कर)- क्क़..क्या...नही..ये सब...

अकरम(बीच मे)- दूसरा सच...आपके पति कही नही गये...ना दुबई और ना कही और...और ना ही वो आपसे अलग हुए है...असल मे वो अब इस दुनिया मे ही नही है...मर चुके है...

सादिया(घबरा गई)- आ...अकरम..तुम ये....

अकरम(बीच मे)- और सबसे बड़ा सच ये कि गुल आपकी बेटी है पर आपके पति की नही...असल मे वो आपके नाजायज़ रिश्ते की निशानी है....

सादिया(गुस्से मे)- अकरम...


अकरम- हाँ..गुल आपके नाजायज़ रिस्ते का नतीजा है और उसका बाप कोई और नही....वसीम ख़ान है...या ये कहूँ कि सरफ़राज़ ख़ान....हाँ...

अकरम की आख़िरी लाइन सुनकर तो सादिया सन्न रह गई और धम्म से बेड पर बैठ गई....उसका सिर झुका हुआ था और वो पर्ची को हाथो मे लिए सुबकने लगी....और अकरम गुस्से से भरी अपनी लाल आँखो से उसे घूरता हुआ खड़ा रहा....

सादिया, अकरम की बातें सुन कर रोने लगी थी...और अकरम उसे रोता हुआ देख रहा था...पर अकरम से ये ज़्यादा देर तक देखा नही गया....

अकरम ने आगे बढ़ कर उसे चुप कराने की कोसिस की...और सादिया रोती हुई अकरम के गले लग गई....

अकरम- आंटी...आंटी प्ल्ज़...मैं आपको रुलाना नही चाहता था...मैं बस सच जानना चाहता था...पर आपने जब झूठ पर झूठ बोला तो मुझे गुस्सा आ गया और मैं ये सब बोल गया....प्ल्ज़ आंटी...रोइए मत...प्ल्ज़....

सादिया कुछ नही बोली बस सुबक्ती रही...पर अकरम की बात सुन कर उसने अकरम को और ज़्यादा कस कर गले लगा लिया....

दोनो बेड पर आजू-बाजू मे बैठे थे...और इस समय सादिया , अकरम से ऐसे चिपकी थी कि जैसे चंदन के पेड़ से साँप....

अकरम अभी भी सादिया की पीठ सहलाते हुए उसे चुप करा रशा था....और सादिया उसे बाहों मे भरे दुबक रही थी...दोनो के दिल मे कोई ग़लत ख्याल नही था...

पर जैसे ही अकरम को अपने सीने पर सादिया के बड़े बूब्स का अहसाह होता गया...वैसे -वैसे अकरम गरम होता गया और उसका हाथ सादिया की पीठ पर तेज़ी से घूमने लगा....

अकरम ने अपने हाथ का दबाब बढ़ा कर सादिया को सहलाना जारी रखा और साथ मे वो खुद सादिया से कस कर चिपक गया .....और अपनी गर्म साँसे सादिया के गले के पास छोड़ने लगा...

सादिया भी एक खेली हुई औरत थी....वो अकरम के हाथ का दबाब पा कर अच्छा महसूस करने लगी...और इसी लिए वो भी चुपचाप उसी पोज़ीशन मे बैठी रही....

जब अकरम को लगा कि सादिया चुप हो गई है तो उसने बात करना ठीक समझा ...पर वो सादिया से अलग नही हुआ...उस्र अब मज़ा आ रहा था....इसलिए उसने वैसे ही सादिया को सहलाते हुए बात करनी सुरू कर दी......

अकरम- आंटी...अब बताइए...क्या ये सब सच है...

सादिया- हुह...तुम जानते थे...फिर क्यो पूछा....

अकरम- क्योकि मैं श्योर नही था...मुझे लगा कि शायद मुझे ग़लत न्यूज़ मिली है...

सादिया- पर तुम्हे बोला किसने...और ये पर्ची...कहाँ से मिली ये......

अकरम- आप ये छोड़ो...और मुझे सब सच बताओ...आख़िर ये सब हुआ कैसे...सुरू से बताओ...सब सच...ओके...

सादिया- ह्म्म्मह....बताती हूँ....पर पहले मुझे चेंज कर लेने दो...तुम बैठो ...मैं आई....

अकरम- ओके...आप फ्रेश हो जाओ...मैं आपके लिए कॉफी बना कर लाता हूँ...ओके...

फिर सादिया अकरम से अलग हुई और बाथरूम मे चली गई......और अकरम कॉफी बनाने चला गया.......

----------------------------------------------------------------------

अंकित के ऑफीस मे.............

सुजाता- लो...इन पेपर्स पर साइन करो....

सुजाता ने स्टम पेपर्स टेबल पर पटकते हुए बोला.....( इस समय मैं और सुजाता मेरे कॅबिन मे आमने-सामने बैठे हुए थे...)

मैं- ये सब क्या है आंटी....

सुजाता- क्या...बोला था ना कि सवाल नही...बस वही करो जो मैं कहती हूँ...साइन कर....

मैं- नही...मैं नही करूगा...

सुजाता(गुस्से मे)- नही करेगा...तो रुक..मैं अभी तेरे बाप को तेरी करतूत बताती हूँ...फिर देखना....

मैं- ठीक है...बता दो...ज़्यादा से ज़्यादा क्या होगा...वो मुझसे गुस्सा होंगे...मारेंगे....पर ये साइन कर के मैं उनको नुकसान नही पहुचाउन्गा....

मेरी बात सुनकर सुजाता की प्लानिंग फैल होने लगी....वो सोच रही थी कि वो आसानी से मुझे डरा कर साइन ले लेगी...पर यहाँ तो बाजी उल्टी पड़ रही है...

सुजाता(संभालते हुए)- नुकसान...नुकसान कैसा बेटा...

मैं- नुकसान ही तो है...ये हमारे ऑफीस के पेपर्स है...मेरे साइन करने पर ये तुम्हारे नाम हो जाएँगे....तो नुकसान तो डॅड का ही हुआ ना....

सुजाता(मुस्कुरा कर)- अरे नही...ये सब तुम्हारे डॅड के नाम होगा...मतलब फिलहाल सारे अधिकार जो तुम्हारे हाथ मे है...वो तुम्हारे डॅड के पास पहुँच जाएँगे...तुमने पढ़ा ही नही...एक बार पढ़ लो फिर बोलना....


मैने सुजाता की बात सुनकर पेपर्स को पढ़ना सुरू किया और पढ़ने के बाद सुजाता को घूर्ने लगा......

सुजाता- क्या हुआ...घूर क्यो रहा है....

मैं- आख़िर इस सब की ज़रूरत क्या है....वैसे भी यहाँ डॅड का ही ऑर्डर चलता है....

सुजाता- हाँ ...पर मैं चाहती हूँ कि मैं और तुम्हारे डॅड पार्ट्नर्स बन जाए...और इसके लिए सब कुछ तुम्हारे डॅड के नाम होना ज़रूरी है....समझे ना...

मैं- ह्म्म...वो तो है...पर इससे हमे कोई नुकसान...

सुजाता(बीच मे)- बिल्कुल नही...उल्टा फ़ायदा होगा....और बिज़्नेस भी फैलेगा ही...कम नही होगा....

मैं- ओके...पर इसमे आपका क्या फ़ायदा....

सुजाता- मेरा फ़ायदा...कुछ नही...बस मैं ये पार्ट्नरशिप चाहती हूँ...जिसके लिए तुम्हारा साइन करना ज़रूरी है...बस..और कोई बात नही....

मैं- पक्का ना...

सुजाता- पक्का...और तुम ये साइन कर दो तो तुम्हे भी फ़ायदा होगा....समझे...

सुजाता ने अपनी आँख दबा कर मुस्कुरा दिया और मैने भी मुस्कुरा कर साइन कर दिए....

सुजाता(मन मे)- बस बेटा...अब तू देख...कैसे ये सब मेरे पास आता है...उसके बाद यहाँ तू मरेगा और वहाँ तेरा बाप...हहहे....

मैं(मन मे)- अब देखता हूँ कि कब तक ये नाटक करेगी....जल्दी से अपनी औकात पर तो आए...फिर बताता हूँ कि अंकित से टकराना कितना महगा पड़ सकता है....

मैने साइन किए और पेपर्स सुजाता को दे दिए....सुजाता की आँखे खुशी से चमक उठी और वो पेपर्स ले कर उठी और मुझे गाल पर किस कर के गान्ड मटकाती हुई कॅबिन से निकल गई....

सुजाता के जाने के बाद मैं उसके बारे मे कुछ सोच ही रहा था कि डॅड मेरे पास आ गये....
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RE: चूतो का समुंदर - by sexstories - 06-08-2017, 11:17 AM

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