RE: Thriller Sex Kahani - कांटा
“आ...आगे क्या बोलू?"
"तेरा नाम तो काफी बढ़िया था, फिर बदल क्यों डाला। साबिर बाबा से सहगल बाबा क्यों बन गया?"
"वो मैं...मैं..."
“मिमिया मत साबिर बाबा। मिमियाने वाले लोग मेरे को पसंद नहीं। मिमियाये बिना बता।"
“वह दरअसल सब तुम्हारे गिरफ्तार होने की वजह से हुआ। तुम्हारे बाद हम सबको भी अपनी गिरफ्तारी का खौफ सताने लगा था, इसीलिए...।"
“इसीलिए तूने अपना नाम बदल दिया साबिर बाबा से सहगल बाबा बन गया। ठीक?”
“ह...हमें अपनी-अपनी राह तो लगना ही था। और फिर अकेले मैंने ही तो ऐसा नहीं किया था। गैंग के दूसरे तमाम आदमी भी गिरफ्तारी के खौफ से अंडरग्राउंड हो गए थे और अपनी पुरानी पहचान के साथ वे इस शहर में बने नहीं रह सकते थे। सबको अपनी पहचान बदलनी जरूरी थी।"
“इसी वास्ते तू अपनी पहचान बदलकर सहगल बाबा बन गया।” गोपाल खून के धूंट पीता हुआ बोला “मेरे दूसरे पंटरों ने भी ऐसा ही किया। बराबर?"
"ह...हां।” सहगल ने पहलू बदला।
“और फिर उसके बाद तू सीधा उस जानकी की कंपनी का एकाउंटेंट बन गया? नहीं?"
"नहीं।"
"क्या नहीं?"
"तुम्हारा गैंग छोड़ने के बाद कितने ही सालों तक मैं पुलिस के खौफ से अंडरग्राउंड बना रहा। उसके बाद....।"
“मगर तेरे को पुलिस का इतना खौफ क्यों था? मेरे बाकी के पंटर को पुलिस का खौफ क्यों था? गैंग का मुखिया तो मैं था
जो गिरफ्तार हुआ था। तुम लोग कहां गिरफ्तार हुए थे?"
“नहीं हुए थे। लेकिन सब कुछ तुम्हारी जुबान के ऊपर था। अगर पुलिस तुम्हारी जुबान खुलवाने में कामयाब हो जाती तो...।" उसने जानबूझकर अपना वाक्य अधूरा छोड़ दिया।"
"तो तुम सारे के सारे पंटर भी गिरफ्तार हो जाने वाले थे।" गोपाल ने उसका वाक्य पूरा किया “यह कहना चाहता है तू?"
"ह...हां।” उसने कठिनता से सहमति में सिर हिलाया।
"मैंने लिया तुम हरामखोरों में से किसी का नाम? पुलिस मेरी जुबान खुलवा पाई ?"
“न...नहीं। मगर..."
“खैर जाने दे।” वह पुनः बातों का छोर पकड़ता हुआ बोला “आगे बता। अंडरग्राउंड होने के बाद फिर तूने क्या किया?
जानकी लाल सेठ की नौकरी कर लिया?"
"नहीं। वह बहुत बड़ी कंस्ट्रक्शन कंपनी थी, जहां इतनी जल्दी मुझे एकाउटेंट की नौकरी नहीं मिलने वाली थी।"
"क्यों नहीं मिलने वाली थी? तेरे पास एकाउंटेंट की डिग्री तो बराबर थी वह भी एक दम असली। चौबीस कैरेट सोने जैसी खरी।"
"ह...हां थी।” मगर उस कम्पनी के लिहाज से मैं प्रैशर था।
“कहां फ्रैशर था। मेरे साथ कितने साल तूने काम किया था?" "लेकिन... म..मैं वहां उसका हवाला नहीं दे सकता था। कहीं भी तुम्हारी नौकरी का जिक्र नहीं कर सकता था।"
“इसीलिए तूने दूसरी छोटी-मोटी कंपनियों में नौकरी करके पहले अनुभव बटोरा। ठीक?"
"ह..हां।"
“लेकिन साले, हरामी, हलकट, तुझे छोटी-मोटी नौकरी करने की जरूरत ही क्या थी? मेरा इतना सारा रोकड़ा था तो तेरे पास, जो तू हथियाकर भाग निकला था।"
“व...व..वो..."
“अरे भाई, मैं ठहरा स्साला हिस्ट्रीशीटर। रोकड़ा तो मैं खूब कमा सकता था लेकिन उसको कहीं इन्वेस्ट नहीं कर सकता था, जबकि तेरे साथ ऐसा नहीं था। तेरा तो कोई पुलिस रिकार्ड तक नहीं था, इसीलिए मैंने वह सारा पैसा तेरे नाम पर इन्वेस्ट किया था, और उस पर सरकार को बाकायदा टैक्स भी चुकाता था।" वह रुका, उसने फिर प्रश्नसूचक नेत्रों से सहगल को देखा “मेरा सब मिलाकर टोटल कितना नावां बनता होगा? बीस करोड़ से कम तो क्या बनता होगा?"
सहगल जवाब देने के बजाय थूक निगलने लगा।
“वह सारा का सारा रोकड़ा तेरे ही हाथ में तो था वीर मेरे। मेरी सारी चल-अचल सम्पत्ति बेचकर तू उसे डकार गया था
और वह हर घड़ी तेरे पास था। इतने रोकड़े पर तो सारी जिंदगी ऐश किया जा सकता था, फिर भी तू पचास हजार की
एकाउंटेंट की नौकरी पर मरता रहा? क्यों बाबा?"
सहगल इस बार भी कोई जवाब न दे सका। वह व्यग्र भाव से पहलू बदलने लगा।
"अरे बोल बाबा। गूंगा हो गया क्या? और कुछ नहीं तो यही बोल दे कि जमा पूंजी में इजाफा न हो और केवल खर्च ही होता रहे तो एक दिन कुबेर का खजाना भी खाली हो जाता है. या फिर दसरी वजह भी बता दे कि दनिया को शक हो जाता। लाजिमी भी है, आदमी कुछ कमाए धमाए न, केवल दोनों हाथों से खर्च करे तो शक होना लाजिमी होता है। अरे बोल मेरे शेर, तू गूंगा क्यों हो गया?"
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