Hindi Antarvasna - कलंकिनी /राजहंस
09-17-2020, 12:51 PM,
#31
RE: Hindi Antarvasna - कलंकिनी /राजहंस
उधर विशाल की मां यह खबर सुनकर सन्न रह गईं। उनके हाथ-पैर फूल गये। दिमाग ने काम करना बंद कर दिया। उनकी ऐसी हालत देख नौकर ने पूछा- क्या बात है माताजी?"

"एक गिलास पानी।" वह बड़ी मुश्किल से बोलीं और पास पड़े सोफे पर ही बैठ गईं।

नौकर पानी लेकर बापस आया तो वह रो रही थीं। नौकर ने पानी का गिलास विशाल की मां के हाथ में दे दिया। वह एक-एक बूंट पानी बड़ी आहिस्ता-आहिस्ता पी रही थीं। विशाल की मां की ऐसी स्थिति देखकर नौकर से न रहा गया। वह फिर पूछ बैठा—“प्लीज माताजी—कुछ तो बताइये! आप क्यों रो रही हैं?"

विशाल की मां ने गिलास में से दो-तीन चूंट पानी पीकर गिलास नौकर को वापस पकड़ा दिया।
और फिर बड़ी मुश्किल से सिर्फ इतना ही बोल सकीं कि—“तुम जल्दी से गा....ड़ी निकालो और विशाल के पिता को फोन करके कहो वे तुरन्त चौरासिया अस्पताल में एमरजेन्सी वार्ड में आ जायें।"

नौकर ने कारण पूछना उचित न समझा और—“जी....मा.... ता....जी।" कहकर वहां से चला गया। विशाल के एक्सीडेन्ट के विषय में सुनकर बे इतनी परेशान हो गई कि अनीता के घर भी सूचना न दे सकीं। नौकर ने विशाल के पिता को फोन किया और जल्दी ही गाड़ी बाहर निकाल ली। करीब आधा घन्टा बाद वह चौरासिया अस्पताल के एमरजेन्सी में थीं। कमरे में प्रवेश करते ही विशाल की मां की आंखें फटी-की-फटी रह गईं। विशाल का पूरा शरीर पट्टियों से बंधा था।

"हे ईश्वर! मेरे बच्चे को क्या....हो गया?" विशाल की मां ने अपने दोनों हाथों में विशाल का चेहरा ले लिया।

हाथों के स्पर्श से विशाल ने अपनी आंखें खोलीं। आंखें खोलते ही दर्द में डूबा स्वर निकला-"मां!"

"ये सब कैसे हो गया बेटा?" विशाल की मां का स्वर रुआँसा हो गया।

"पता नहीं मां....।” वह लम्बी सांस खींचकर बोला। उसकी दृष्टि कुछ खोज रही थी....वह थी अनीता। बे दोनों बातें करने में ये भी भूल गये कि प्रेम की मां वहां पर बैठी हैं। तभी विशाल की मां ने पूछा-“मगर बेटा, तुमको यहां पर लाया कौन?"

"भगवान का दूत...." वह उलझे स्वर में बोला।

"दूत कौन?" विशाल की मां ने हैरानी से पूछा।
प्रेम की मां की ओर दृष्टि घुमाकर-"इनका बेटा प्रेम! अगर वह समय पर न आता तो आपका बेटा तो....।"

विशाल की मां ने उसके मुंह पर हाथ रख दिया।
“नहीं बेटा! शुभ-शुभ बोलो, तुम्हें कुछ नहीं होगा। मेरा आशीर्वाद तुम्हारे साथ है।"

प्रेम की मां उन दोनों मां-बेटे को बातें करते देख रही थीं। उन्हें ऐसा प्रतीत हो रहा था....जैसे वह और प्रेम बातें कर रहे हों। प्रेम की मां ने उन्हें बीच में डिस्टर्ब करना उचित न समझा और चुप बैठी रहीं, जब तक वे दोनों चुप न हो गये। कुछ पल के लिये अस्पताल के कमरे में मौन रहा।

"मां, यह प्रेम की मां हैं। जो मुझे यहां पर भर्ती कराकर गया है। अभी आता होगा।" विशाल के स्वर ने चुप्पी तोड़ी।
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RE: Hindi Antarvasna - कलंकिनी /राजहंस - by desiaks - 09-17-2020, 12:51 PM

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