Thriller विक्षिप्त हत्यारा
यूथ क्लब में तीन-चार लोग अभी भी हॉल में बैठे बतिया रहे थे । रमाकांत ऊपर अपने कमरे में जा चुका था । वह सीढियां चढकर पहली मंजिल पर स्थित रमाकांत के कमरे के सामने पहुंचा ।
कमरे का द्वार बन्द था । उसने द्वार खटखटाया ।
"कौन है ?" - भीतर से रमाकांत का रूखा स्वर सुनाई दिया ।
"सुनील ।" - सुनील बोला ।
"अगले साल आना ।"
"दरवाजा तो खोलो ।"
"कहा न बाबा, अगले साल आना और अगर तुम मुकुल नाम के उस हिप्पी के बारे में कुछ पूछने आये हो तो अभी उसके बारे में कुछ भी नहीं मालूम हुआ है । जब कुछ मालूम होगा तो मैं तुम्हें टेलीफोन कर दूंगा । मेरे पास कोई अलादीन का चिराग नहीं है जो मैं..."
"अरे ओ वड्डे भापा जी !" - सुनील चिल्लाकर बोला - "अब बके ही जाओगे या दरवाजा भी खोलोगे !"
"अच्छा, अगले साल नहीं तो कल सुबह आ जाना ।"
सुनील ने पूरी शक्ति से अपने कन्धे का प्रहार दरवाजे पर किया । दरवाजे की चूलें हिल गई ।
तत्काल द्वार खुला । द्वार पर उसे ड्रेसिंग गाउन में लिपटा हुआ रमाकांत दिखाई दिया ।
"यह क्या बदतमीजी है ?" - वह क्रोधित स्वर में बोला ।
"क्या कहने !" - सुनील कमरे में प्रविष्ट होता हुआ बोला - "उल्टा चोर कोतवाल को डांटे ।"
"क्या आफत आ गई है ?"
"तुम इतना उखड़ क्यों रहे हो ?" - सुनील ने एक कुर्सी पर बैठते हुए पूछा ।
"आज मैं रम्मी में तीन सौ रुपये हार गया हूं ।" - रमाकांत झुंझलाये स्वर में बोला ।
"बस ! इतनी-सी बात ? मरे क्यों जा रहे हो ? आज हारे तो कल जीत जाओगे ।"
"कोई गारन्टी है ?"
"गारन्टी नहीं है लेकिन सिर्फ तीन सौ रुपये हारने से तुम्हारा हार्ट फेल क्यों हो रहा है ? इतना कमाते हो । आफत क्या आ गई ?"
रमाकांत ने गहरी सांस ली और देवदास जैसी मुद्रा बनाकर गम्भीर स्वर में बोला - "यहां बेजार बैठे हैं, तुझे अठखेलियां सूझी हैं ।"
"लो, सिगरेट पियो ।" - सुनील जेब से लक्की स्ट्राइक का पैकेट निकालता हुआ बोला ।
"मैं यह घोड़े की लीद की सिगरेट नहीं पीता ।" - रमाकांत बोला - "मैं अपना ब्रांड पियूंगा ।"
और उसने ड्रैसर से अपनी चार मीनार का पैकेट उठा लिया ।
सुनील ने पहले अपना और फिर रमाकांत का सिगरेट सुलगा दिया ।
"कैसे दर्शन दिये ?" - रमाकांत ने पूछा ।
सुनील ने एक कागज पर आर जे एस 2128 लिखा और कागज रमाकांत की ओर बढा दिया ।
"यह एक काली एम्बैसेडर कार का नम्बर है । इसके मालिक का पता लगाना है ।"
रमाकांत ने कागज लेकर लापरवाही से ड्रैसर पर फेंक दिया ।
"यह काम फौरन होना है, प्यारेलाल ।"
रमाकांत ने कागज की ड्रैसर से उठाकर अपने गाउन की जेब में रख लिया और फिर बोला - "और ?"
"और सुनो ।" - सुनील ने पहले मोटे का हुलिया बयान किया और फिर बोला - "यह आदमी भगत सिंह रोड की शांति सदन नाम की साठ नम्बर इमारत में रहता है । यह लगभग निश्चित ही है कि उसका नाम सोहन लाल है और शान्ति सदन की दूसरी मंजिल के सामने भाग का दायीं और वाला फ्लैट उसका है । मैजेस्टिक सर्कल पर लिबर्टी बिल्डिंग नाम की इमारत है । उस इमारत की पांचवीं मंजिल पर फोर स्टार नाइट क्लब नाम की एक नाइट क्लब है और बेसमेंट में मैड हाउस नाम का एक डिस्कोथेक है ।"
"मुझे मालूम है । तुम जल्दी-जल्दी चलाओ और फिर यहां से दफा होने का प्रोग्राम बनाओ ।"
"ओके । तुमने यह पता लगाना है कि क्या सोहन लाल फोर स्टार नाइट क्लब से या मैड हाउस से किसी रूप में सन्बन्धित है ? और यह कि उसका मुकुल से या मुकुल का उस से क्या सम्बन्ध है !"
"अच्छी बात है । और ?"
"और मुझे एक रिवाल्वर दिलाओ ।"
"क्या ?" - रमाकांत आंखें निकालकर बोला ।
"मैंने कहा है, मुझे एक रिवाल्वर दिलाओ ।"
"क्यों ? क्या करोगे उसका ? किसी का खून करना है क्या ?"
"किसी का खून नहीं करना है, मेरे बाप । मुझे रिवाल्वर अपनी सुरक्षा के लिए चाहिये ।"
"क्यों ? एकाएक तुम्हें अपनी सुरक्षा की क्यों जरूरत महसूस होने लगी है ?"
"मैं अभी पिटकर आ रहा हूं ।"
"पिटकर आ रहे हो ?"
"हां । बुरी तरह से ।"
"कब ?"
"अभी थोड़ी ही देर पहले । जिस सोहन लाल का मैंने तुम से जिक्र किया है, वह अपने बदमाशों के साथ जबरदस्ती मेरे फ्लैट में घुस आया था और मेरी ऐसी मरम्मत करके गया है कि मुझे यूं लगता है जैसे मेरे ऊपर से स्टीम रोलकर गुजर गया हो ।"
"फिर भी तुम इतने ढीठ हो कि घर बैठकर आराम करने के स्थान पर आधी रात गये सड़कों पर कूदते फिर रहे हो !"
"हां ।" - सुनील बड़ी शराफत से बोला ।
"क्या हां ?"
"मैं इतना ढीठ हूं पिटकर आराम करने के स्थान पर आधी रात गये सड़कों पर कूदता फिरता हूं ।"
"इसका मतलब यह हुआ कि सिर्फ तुम ढीठ ही नहीं, अहमक भी हो ।"
"हूं ! अब तुम फटाफट रिवाल्वर दिलाओ ।"
"ओह माई गॉड !" - रमाकांत अपना माथा ठोक कर बोला - "सेम ओल्ड गेलेन्ट मिस्टर सुनील । सेम ओल्ड स्टोरी ऑफ ए डैमसेल इन डिस्ट्रैस ! मैं पूछता हूं तुम्हें जब अक्ल आयेगी ?"
"ओह, शटअप ।"
"कहीं तुम रायबहादुर भवानी प्रसाद जायसवाल की खूबसूरत और कड़क जवान विधवा से इश्क तो नहीं लड़ा रहे हो ?"
"अब तुम बकवास करनी बन्द करते हो या मैं तुम्हारे एक-दो दांत तुम्हारे हलक में धकेल दूं ।"
"पिटकर आने के बाद भी तुम्हारे में इतना दम है ?"
"है ।" - सुनील नथुने फुलाकर बोला ।
"फिर मैं चुप कर जाता हूं ।"
"अब रिवाल्वर निकालो ।"
"मैं तुम्हें रिवाल्वर नहीं दे सकता ।"
"क्यों ?"
"मैं नहीं चाहता कि कोई घपला हो ।"
"क्या घपला हो सकता है ?"
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