प्यारी भाभी
05-22-2014, 10:10 AM,
#4
RE: प्यारी भाभी
इस घतना के दो दिन के बाद कि बात अहि। मैन छत पर परहने जा रहा था। भभि के कमरे के समने से गुज़रते समय मैने उनके कमरे मेन झनका। भभि अपने बिसतर पर लैती हुइ कोइ नोवेल परह रहि थि। उसकि निघतिए घुतनोन तक उपर चरहि हुइ थि। निहगतिए इस परकर से उथि हुइ थि कि भभि कि गोरि गोरि तनगेन, मोति मनसल जनघेन और जनघोन के बीच मेन सफ़ेद रनग कि कछि साफ़ नज़र आ रहि थि।मेरे कदम एकदुम रुक गये और इस खूबसूरत नज़रे को देखने के लिये मैन छुप कर खिरकि से झनकेने लगा।येह कछि भि उतनि हि छोति थि और बरि मुशकिल से भभि कि चूत को धक रहि थि। भभि कि घनि कलि झनतेन दोनो तरफ़ से कछि के बहर निकल रहि थि। वोह बेचरि छोति सि कछि भभि कि फूलि हुइ चूत के उभर से बुस किसि तरह चिपकि हुइ थि। चूत कि दोनो फनकोन के बीच मेन दबि हुइ कछि ऐसे लग रहि थि जैसे हनसते वकत भभि के गालोन मेन दिमपले पर जतेन हैन। अचनक भभि कि नज़र मुझ पर परह गयि । उनहोनेन झत से तनगेन नीचे करते हुए पूचा " कया देख रहा है रमु"

चोरि पकरि जाने के करन मैन सकपका गया और " कुछ नहिन भभि" कहता हुअ छत पर भाग गया। अब तो रात दिन भभि कि सफ़ेद कछि मेन चिपि हुइ चूत कि यद सतने लगि।

मेरे दिल मेन विचर अया, कयोन ना भभि को अपने विशल लुनद के दरशन करावँ। भभि रोज़ सवेरे मुझे दूध का गलस्स देने मेरे कमरे मेन आति थि। एक दिन सवेरे मैन अपनि लुनगि को घुतनोन तक उथा कर नेवसपपेर परहने का नतक करते हुए इस परकर बैथ गया कि सामने से आति हुइ भभि को मेरा लतकता हुअ लुनद नज़र आ जये। जैसे हि मुझे भभि के आने कि आहत सुनै दि,मैने नेवसपपेर अपने चेहरे के सामने कर लिया, तनगोन को थोरा और चौरा कर लिया तकि भभि को पूरे लुनद के आसनि से दरशन हो सकेन और नेवसपपेर के बीच के छेद से भभि कि परतिकरिया देखने के लिये रेअदी हो गया। जैसे हि भभि दूध का गलस्स लेकर मेरे कमरे मेन दखिल हुइ, उनकि नज़र लुनगि के नीचे से झनकते मेरे 8 इनच लुमबे मोते हथोरे के मफ़िक लतकते हुए लुनद पे पर गयि। वोह सकपका कर रुक गयि, अनखेन अशचरया से बरि हो गयि और उनहोनेन अपना नीचला होनथ दनतोन से दबा दिया। एक मिनुते बाद उनहोनेन होश समभला और जलदि से गलस्स रख कर भग गयि। करीब 5 मिनुते के बाद फिर भभि के कदमोन कि आहत सुनै दि। मैने झत से पहले वला पोसे धरन कर लिया और सोचने लगा, भभि अब कया करने आ रहि है। नेवसपपेर के छेद मेन से मैने देखा भभि हाथ मेन पोचे का कपरा ले कर उनदेर आयि और मुझसे करीब 5 फ़ूत दूर ज़मीन पर बैथ कर कुछ साफ़ करने का नतक करने लगि। वोह नीचे बैथ कर लुनगि के नीचे लतकता हुअ लुनद थीक से देखना चहति थि। मैने भि अपनि तनगोन को थोरा और चौरा कर दिया जिस्से भभि को मेरे विशल लुनद के साथ मेरि बल्लस के भि दरशन अछि परकर से हो जयेन। भभि कि अनखेन एकतक मेरे लुनद पर लगि हुइ थि, उनहोनेन अपने होनथ दनतोन से इतनि ज़ोर से कात लिये कि उनमे थोरा सा खून निकल आया। माथे पर पसीने कि बुनदेन उभर आयि। भभि कि यह हलत देख कर मेरे लुनद ने फिर से हरकत शुरु कर दि। मैने बिना नेवसपपेर चेहरे से हतय भभि से पूछा

" कया बात है भभि कया कर रहि हो?"

भभि हरबरा कर बोलि " कुछ नहिन, थोरा दूध गिर गया था उसे साफ़ कर रहि हुन।" येह कह कर वोह जलदि से उथ कर चलि गयि। मैन मन हि मन मुसकया। अब तो जैसे मुझे भभि कि चूत के सपने आते हैन वैसे हि भभि को भि मेरे विशल लुनद के सपने ऐनगे। लेकिन अब भभि एक कदम अगे थि। उसने तो मेरे लुनद के दरशन कर लिये थे पर मैने अभि तक उनकि चूत को नहिन देखा था।

मुझे मलूम था कि भभि रोज़ हमरे जाने के बाद घर का सरा काम निपता कर नहने जाति थि। मैने भभि कि चूत देखने का पलन बनया। एक दिन मैन सोल्लेगे जाते समय अपने कमरे कि खुलि छोर गया। उस दिन सोल्लेगे से मैन जलदि वपस आ गया। घर का दरवज़ा उनदेर से बुनद था। मैन चुपके से अपनि खिरकि के रसते अपने कमरे मेन दखिल हो गया। भभि कितचेन मेन काम कर रहि थि। काफ़ि देर इनतज़र करने के बाद आखिर मेरि तपसया रनग लयि। भभि अपने कमरे मेन आइ। वोह मसति मेन कुछ गुनगुना रहि थि। देखते हि देखते उसने अपनि निघतिए उतर दि। अब वोह सिरफ़ असमनि रनग कि बरा और कछि मेन थि। मेरा लुनद हुनकर भरने लगा। कया बला कि सुनदेर थि। गोरा बदन, पतलि कमर,उसके नीचे फैलते हुए भरि नितमब और मोति जनघेन किसि नमरद का भि लुनद खरा कर देन। भभि कि बरि बरि चुचिअन तो बरा मेन समा नहिन पा रहि थि। ओर फिर वहि छोति सि कछि, जिसने मेरि रतोन कि नीनद उरा रखि थि। भभि के भरि चुतर उनकि कछि से बहर गिर रहे थे। दोनो चुत्रोन का एक चौथै से भि कम भग कछि मेन था। बेचरि कछि भभि के चुत्रोन के बीच कि दरर मेन घुसने कि कोशिश कर रहि थि। उनकि जनघोन के बीच मेन कछि से धकि फूलि हुइ चूत का उभर तो मेरे दिल ओ दिमग को पगल बना रहा था। मैन सानस थामे इनतज़र कर रहा था कि कब भभि कछि उतरे और मैन उनकि चूत के दरशन करुन। भभि शीशे के समने खरि हो कर अपने को निहर रहि थि। उनकि पीथ मेरि तरफ़ थि। अचनक भभि ने अपनि बरा और फिर कछि उतर कर वहिन ज़मीन पर फेनक दि। अब तो उनके ननगे चौरे चुतर देख कर मेरा लुनद बिलकुल झरने वला हो गया।

मेरे मन मेन विचर आया कि भैया ज़रूर भभि कि चूत पीचे से भि लेते होनगे ओर कया कभि भैया ने भभि कि गानद मरि होगि। मुझे ऐसि लजबब औरत कि गानद मिल जाये तो मैन सवरग जने से भि इनकर कर दुन। लेकिन मेरि आज कि योजना पर तुब पनि फिर गया जब भभि बिना मेरि तरफ़ घुमे बथरूम मेन नहने चलि गयि। उनकि बरा और कछि वहिन ज़मीन पर परि थि। मैन जलदि से भभि के कमरे मेन गया और उनकि कछि उथा लया। मैने उनकि कछि को सूनघा। भभि कि चूत कि महक इतनि मदक थि कि मेरा लुनद और ना सहन कर सका और झर गया। मैने उस कछि को अपने पास हि रख लिया और भभि के बथरूम से बहर निकलने का इनतज़र करने लगा। सोचा जब भभि नहा कर ननगि बहर निकलेगि तो उनकि चूत के दरशन हो हि जैनगे। लेकिन किसमत ने फिर साथ नहिन दिया। भभि जब नहा के बहर निकलि तो उनहोने काले रनग कि कछि और बरा पहन रखि थि। कमरे मेन अपनि कछि गयब पा कर सोच मेन पर गयि। अचनक उनहोनेन जलदि से निघतिए पहन ली और मेरे कमरे कि तरफ़ आइ। शयद उनहेन शक हो गया कि यह काम मेरे इलवा और कोइ नहिन कर सकता। मैन झत से अपने बिसतेर पर ऐसे लैत गया जैसे नीनद मेन हुन। भभि मुझे कमरे मेन देखकर सकपका गयि। मुझे हिलते हुए बोलि

" रमु उथ। तु उनदेर कैसे आया?"

मैने आनखेन मलते हुए उथने का नतक करते हुए कहा " कया करुन भभि आज सोल्लेगे जलदि बुनद हो गया। घर का दरवज़ा बुनद था बहुत खतखतने पर जब आपने नहिन खोला तो मैन अपनि खिरकि के रासते उनदेर आ गया।"

" तु कितनि देर से उनदेर है?"

" येहि कोइ एक घनते से।"

अब तो भभि को शक हो गया कि शयद मैने उनहेन ननगि देख लिया था। और फिर उनकि कछि भि तो गयब थि। भभि ने शरमते हुए पूचा " कहिन तुने मेरे कमरे से कोइ चीसे तो नहिन उथै?’

" अरे हन भभि! जब मैन आया तो मैने देखा कि कुछ कपरे ज़मीन पर परे हैन। मैने उनहेन उथा लिया।" भभि का चेहरा सुरख हो गया। हिचकिचते हुए बोलि

" वपस कर मेरे कपदे।"

मैन तकिये के नीचे से भभि कि कछि निकलते हुए बोला " भभि ये तो अब मैन वपस नहिन दूनगा।"

"कयोन अब तु औरतोन कि कछि पहनना चहता है?"

" नहिन भभि" मैन कछि को सूनघता हुअ बोला

" इसकि मदक खुशबू ने तो मुझे दिवना बना दिया है।"

" अरे पगला है? येह तो मैने कल से पहनि हुइ थि। धोने तो दे।"

" नहिन भभि धोने से तो इसमे से आपकि महक निकल जयेगि। मैन इसे ऐसे हि रखना चहता हुन।"

" धत पगल! अछा तु कबसे घर मेन है?" भभि शयद जनना चहति थि कि कहिन मैने उसे ननगि तो नहिन देख लिया। मैने कहा

" भभि मैन जनता हुन कि आप कया जनना चहति हैन। मेरि गलति कया है, जब मैन घर अया तो आप बिलकुल ननगि शीशे के सामने खरि थि। लेकिन आपको सामने से नहिन देख सका। सच कहुन भभि आप बिलकुल ननगि हो कर बहुत हि सुनदेर लग रहि थि। पतलि कमर, भरि नितमब और गदरयि हुइ जनघेन देख कर तो बरे से बरे बरहमचरि कि नियत भि खराब हो जये।"

भभि शरम से लाल हो उथि।

" है रम तुझे शरम नहिन आति। कहिन तेरि भि नियत तो नहिन खरब हो गयि है?"

" आपको ननगि देख कर किसकि नियत खराब नहिन होगि?"

" हे भगवन, आज तेरे भैया से तेरि शादि कि बात करनि हि परेगि" इस्से पहले मैन कुस्सह और कहता वोह अपने कमरे मेन भग गयि।
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