Mastram Kahani काले जादू की दुनिया
08-19-2018, 03:05 PM,
#13
RE: Mastram Kahani काले जादू की दुनिया
10
“और यह महाशय कोन है....” आचार्य करण की तरफ इशारा करते हुए बोले.

“आप इनको नही जानते होंगे....यह कभी आश्रम मे नही आए...” अर्जुन ने आचार्य को बीच मे ही रोकते हुए बोला.

“प्रणाम आचार्य मैं इन दोनो का दोस्त हू....” झूट बोलते हुए करण ने भी आचार्य के पैर छू कर आशीर्वाद लिया. वो नही चाहता था कि आचार्य को पता चले कि वो उसकी माँ की नाजायज़ औलाद है.

अब आगे................................

“वैसे अर्जुन बेटा....इतनी रात को और वो भी इतनी तेज़ बारिश मे यहाँ आने को कोई खास वजह ?....देखो तुम लोग भीग भी चुके हो...” आचार्य बोले.

“वजह है आचार्य...और इसी लिए तो हम सब आपकी मदद लेने यहाँ आए है...”

“ठीक है बेटा पर तुम मुझे पहले पूरी बात बताओ...”

“आचार्य पिच्छले कुछ दो महीनो से मुझे माँ का एक ही सपना रोज़ रात मे आता है जिसमे माँ एक अंधेरी काली गुफा मे फसि है और मुझे मदद के लिए पुकार रही है...पर समझ मे नही आता क़ी मा की मौत के 12 साल बाद यह सब का क्या मतलब हो सकता है...कही माँ जिंदा तो नही है ???”

“बेटा होने को तो कुछ भी हो सकता है...हम सब उपर वाले के हाथ की कट्पुतली है...वो जब चाहे तब हमे अपने इशारो पर नचाता है...उसके मर्ज़ी के बिना धरती का एक भी पत्ता नही हिलता...”

“आचार्य वो सब तो ठीक है...पर मुझे यह नही समझ आ रहा कि हम वो गुफा ढूंढ़ेंगे कैसे...उस गुफा को ढूँढने मे हमे आपकी मदद चाहिए...अगर आपने हमारी मदद कर दी तो हम आपका यह एहसान कभी नही भूलेंगे क्यूकी इस बार दाव पर हमारी माँ की जान लगी है...”

“अर्जुन बेटा अगर ऐसी बात है तो मैं हर संभव तुम्हारी मदद करने को तय्यार हू...तुम्हारी माँ रत्ना मेरी भी शिष्या रह चुकी है...पर सबसे पहले तुम सब आज रात को यही आराम कर लो...कल सुबह बात करेंगे क्यूकी अभी बहुत रात हो गयी है...” आचार्य ने घड़ी देखा तो आधी रात से भी ज़्यादा का वक़्त हो रहा था.

आचार्य सत्या प्रकाश के कहे अनुसार उनकी पत्नी और उनकी बेटी ने करण अर्जुन और काजल को उनका कमरा दिखा दिया. वो तीनो वही अपना डेरा डाल के लेट गये.
खिड़की से बाहर घने बादलो के बीच चाँद को देखते हुए करण बोला, “मुझे तो लगता है हम यहाँ अपना समय बर्बाद कर रहे है...इस से अच्छा होता अगर हम पोलीस की मदद लेते...”

अर्जुन तो वैसे ही करण को नापसंद करता था सो उसकी इस बात पर वो भड़क गया, “देखो करण, हम तुम्हे यहाँ ज़बरदस्ती नही लाए है....अगर तुम्हे यहाँ नही रहना तो दफ़ा हो जाओ यहाँ से...मैं अकेले ही अपनी माँ को ढूँढ लूँगा...”
बात बिगड़ता देख काजल बीच बचाव करने लगी, “अर्जुन भैया प्लीज़...अब यहाँ पे कोई तमाशा मत खड़ा करो...”

“वाह! तमाशा मैं खड़ा कर रहा हू ???....तमाशा तो यह करण खड़ा कर रहा है....अगर यह पैदा ही नही हुआ होता तो आज हमे इस मुसीबत का सामना नही करना पड़ता...मनहूस कही का...हुहह.” अर्जुन दाँत पीसता हुआ बोला.

काजल ने अपना सर पीट लिया, “अब भी वही रट लगा रखे हो...बोला ना पुरानी यादो को भूल जाओ...अभी माँ को हम सब की ज़रूरत है...देखते है आख़िर आचार्य जी कल हम से क्या कहते है...तब तक के लिए प्लीज़ सो जाओ...” और फिर करण को बोलते हुए, “सॉरी कारण भैया...मैं अर्जुन भैया की तरफ से आपसे माफी मांगती हू...”

करण ने कुछ ना कहा और सब सो गये लेकिन अर्जुन की कड़वी बातो से करण की आँखो मे आए आँसू कोई नही देख सका.

अगली सुबह जब तीनो उठे तो आचार्य किसी हवन या यज्ञ का बंदोबस्त कर रहे थे. मौसम सॉफ और सुहाना था.

“आओ बेटा...मैं तुम लोगो के उठने का ही इंतेज़ार कर रहा था...”

“यह यज्ञ किस लिए है आचार्य...?” अर्जुन ने आचार्य को प्रणाम करते हुए कहा.

“इसी यज्ञ के बाद ही हम तुम्हारी माँ के बारे मे कुछ जान सकते है...” कहते हुए आचार्य सत्या प्रकाश हवन सामग्री लेकर अपने स्थान पर बैठ गये और तीनो को भी वही बैठने को बोला.

सूरज की पहली किरण के साथ ही आचार्य का यज्ञ शुरू हुआ. तीनो कारण अर्जुन और काजल बस आचार्य को देखे जा रहे थे. करण को तो इन सब बातो पे विश्वास नही था पर यह उसकी माँ के तलाश की बात थी इसीलिए वो हर वो कदम उठाने को तय्यार था जो उसे उसकी माँ तक पहुचा दे.

करीब तीन घंटे की लंबी पूजा के बाद आचार्य बोले, “अर्जुन बेटा इस पवित्र अग्नि को अपना रक्त भेट करो...ताकि मैं तुम्हारे रक्त से तुम्हारी माँ रत्ना की ताकत को आपस मे अपने मस्तिष्क मे जोड़ सकु...”

बिना एक पल गवाए अर्जुन पास मे रखे चाकू से अपनी दाए कलाई की नस काटकर उसमे से दो चार बूँद खून की उस अग्नि कुंड मे डाल दिया. काजल को अर्जुन की फ़िक्र हो रही थी मगर अर्जुन ने उसे शांत करवा दिया.

जैसे ही कुछ पल की साधना के बाद आचार्य का यज्ञ पूरा हुआ उनकी आँखे क्रोध और गुस्से से तिलमिला गयी. इसे देख के तीनो घबरा गये. अर्जुन ने पूछा, “क...क्या...हुआ आचार्य...???”

आचार्य अपने स्थान से उठ खड़े हुए और बोले, “तुम्हारी माँ रत्ना सच मुच मे जिंदा है...हम ने थोड़ा बहुत उस से मानसिक संपर्क बनाने की कोशिश की थी..”

यह बात सुनकर तीनो बच्चो के चेहरे पर मुस्कान आ गयी. पर वो मुस्कान ज़्यादा देर तक नही टिकी जब आचार्य ने आगे बोलना शुरू किया, “तुम्हारी माँ जिंदा तो है पर वो बहुत बड़े संकट मे है..."

“संकट कैसा संकट...???” चिंता की लकीरे ना सिर्फ़ अर्जुन पर बल्कि काजल और करण दोनो के माथे पर भी दिख रही थी.

आचार्य गंभीर स्वर मे बोले, “तुम्हारी माँ नदी मे कूद कर मरी नही थी...बल्कि उसका अपहरण हुआ था...”
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