Sex Story मैं चीज़ बड़ी हूँ मस्त मस्त
07-03-2018, 12:05 PM,
#21
RE: Sex Story मैं चीज़ बड़ी हूँ मस्त मस्त
मॅम ने गुस्से होते हुए कहा.
मॅम-शरम नही आती तुम्हे. इन दोनो का तो माना मगर तुम से मुझे ये उम्मीद नही थी. तुम एक ब्रिलियेंट स्टूडेंट हो और ऐसे लड़को के साथ और वो भी 2-2 लड़को के साथ छि-छि.
मे-प्लीज़ मॅम मुझसे ग़लती हो गई मुझे माफ़ करदो.
मॅम ने मेरी बात को अनसुना करते हुए आकाश और तुषार को भी अपने पास बुलाया और कहा.
मेम-रीत सच बताओ तुम यहाँ मर्ज़ी से आई थी या इन्होने ज़बरदस्ती की तुम्हारे साथ.
मेरे पास अब कोई जवाब नही था. मैं बस रोती जा रही थी.
मॅम-ये रोना धोना बंद करो और मेरी बात का जवाब दो.
मे-वो मॅम.....मैं अपनी मर्ज़ी से आई थी मगर तुषार के साथ. मुझे माफ़ करदो मॅम.
मॅम-तो आकाश कब आया.
मे-पता नही मॅम इसने मुझे पीछे से पकड़ लिया आकर.
मॅम-मैने तो देखा है तुम इसके साथ भी मज़े कर रही थी.
मे-वो मॅम मैं बहक गई थी. प्लीज़ मैं आगे से कभी ऐसी ग़लती नही करूँगी.
मॅम-देख रीत बच्ची तेरी उमर अभी इन सब चीज़ों की नही है. तुम एक अच्छी स्टूडेंट हो इसलिए तुम्हारी पहली और आख़िरी ग़लती समझ कर माफ़ कर रही हूँ. मैं नही चाहती हमारे स्कूल की रिपोटेशन खराब हो इस लिए ये बात मैं किसी को नही बताउन्गी मगर रीत संभाल जाओ बच्ची और अगर तुम नही रुकी तो एक दिन बहुज पछताओगी. चल अब अपने कपड़े पहन ले.
मैं पीछे हट कर अपने कपड़े पहन ने लगी. मॅम ने तुषार और आकाश से कहा.
मॅम-तुम दोनो कभी अच्छा काम भी करोगे लाइफ में या नही.
तुषार ने कुछ कहने के लिए मूह खोला ही था कि माँ का जोरदार थप्पड़ पहले उसके और फिर आकाश के गाल पे पड़ा.
मॅम ने उन्दोनो को मुर्गा बना दिया. और अपना पिछवाड़ा उपर उठाने को कहा.
मॅम ने वहाँ पड़ी एक स्टिक उठाई और फिर उसके साथ उन्दोनो के पिछवाड़े के उपर ताबड-तोड़ बरसात कर दी. वो दोनो रोते हुए बोल रहे थे.
'मॅम प्लीज़ हमे माफ़ करदो हमसे ग़लती हो गई प्लीज़ मॅम'
काफ़ी पिटाई करने के बाद मॅम मेरी तरफ मूडी और मुझे कहा.
मॅम-चलो रीत तुम जाकर एग्ज़ॅम दो अपना.
मैं फटाफट वहाँ से निकली और सीधा वॉशरूम में चली गई और जाकर मूह धोया और फिर अपने एग्ज़ॅमिनेशन रूम में चली गई. महक और मेरा रोल नंबर. साथ में ही था. जब मैं अपनी सीट पे बैठी तो महक ने पूछा.
महक-कैसा रहा तुषार के साथ मिलन.
मे-अच्छा था.
अब उस बेचारी को क्या बताती.
महक-तुषार और आकाश कहाँ हैं.
मे-बस आते ही होंगे.
कुछ देर बाद वो दोनो भी आ गये और अपनी सीट पे जाकर बैठ गये. एग्ज़ॅम शुरू हुआ मैं सब कुछ भूल कर एग्ज़ॅम देने लगी. मैने और महक ने एक दूसरे की काफ़ी हेल्प की. हमारा एग्ज़ॅम काफ़ी अच्छा गया और हम पेपर-शीट रूम इंचार्ज को पकड़ा कर बाहर आ गई. आकाश और तुषार भी बाहर आ गये. मगर अब उनकी हिम्मत हमारे पास आने की नही हो रही थी. मैं और महक ने दूर से ही उन्हे बाइ किया और ऑटो पकड़ कर घर की तरफ चल पड़े. मेरा स्टॉप आया मैने महक को गले लगाया क्योंकि अब काफ़ी दिन तक हम मिलने वाले नही थे. मैने महक को कहा.
मे-मिक्कुे जल्दी ही आउन्गी तेरे घर भैया की शादी का इन्विटेशन कार्ड लेकर.
महक-ओके रीतू मैं वेट करूँगी.
फिर मैने उसे स्माइल पास की और मैं अपने घर की तरफ चल पड़ी. आकाश भी तभी किसी लड़के की बाइक के उपर से वहाँ उतरा और मेरे आगे-2 अपने घर की ओर चल पड़ा. मैने देखा आकाश बड़ी मुश्क़िल से चल रहा था. ये सब मॅम की स्टिक का कमाल था. हालाँकि मेरे साथ भी मॅम ने कुछ कम नही किया था मगर आकाश को ऐसे चलते देख मुझे बहुत हसी आ रही थी.
आकाश अपने घर में चला गया मगर आज उसने मेरी तरफ देखा तक नही. मैं भी अपने घर गई और सीधा जाकर मम्मी से खाना लिया और खाने लगी. खाना खाने के बाद मैं अपने रूम में चली गई और आज हुई घटना के बारे में सोचने लगी. मुझे अपने आप पर बहुत गुस्सा आ रहा था कि आख़िर क्यूँ मैं ऐसे बहक जाती हूँ उनके साथ. सोचते-2 मेरी आँखें बंद हो गई और मैं सो गई.

अब घर में चारो तरफ चहल-पहल शुरू हो गई थी. क्योंकि भैया की शादी का दिन नज़दीक आता जा रहा था. सारा दिन बस इधर-उधर घूमते ही गुज़र जाता था. आप तो जानते ही है कि शादी में कितने काम होते हैं. बाकी तो छोड़ो हम लड़कियों की तो शॉपिंग ही पूरी नही होती. मैं और गुलनाज़ दीदी रोज़ ही शॉपिंग के लिए निकल जाती थी. इतनी शॉपिंग तो जिसकी शादी थी उसने नही की थी जितनी हम दोनो ने कर ली थी. जैसे-2 शादी का दिन नज़दीक आ रहा था काम बढ़ता ही जा रहा था. रोज़ सुबह से निकलकर शाम को घर लौट ते थे हम लोग. इस बीच बड़ी मुश्क़िल से टाइम निकाल कर मैं एक दिन मिक्कुर के घर भी गई थी और उसे इन्विटेशन कार्ड देकर आई थी. आख़िर सभी तैयारियाँ हो चुकी थी और वो दिन भी आ गया जिसका हम सबको बेसब्री से इंतेज़ार था.
.................
आज शादी का पहला दिन था. पूरा घर खुशियों से भरा पड़ा था. बहुत से मेहमान आए हुए थे. बीच में बहुत से ऐसे भी थे जिन्हे मैं तो जानती ही नही थी. मैने आज वाइट चुरिदार पहना हुया था और घर में भागती हुई काम करती फिर रही थी. शादी में जितने भी लड़के आए थे जिनमे ज़्यादा तर भैया के कॉलेज फ्रेंड्स थे सब की नज़र मेरे उपर ही थी. कोई मेरे थिरकते नितंबों पे नज़र गढ़ाए बैठा था तो कोई मेरे गोरे गुदाज़ उरोजो का रस अपनी नज़रों से चूस रहा था. मैं भी सब की नज़रों की चुभन का मज़ा अपने जिस्म के उपर ले रही थी. चलते वक़्त जान बुझ कर अपने कूल्हे मतकाती हुई फिर रही थी जिसे देखकर सब लड़के आहें भर रहे थे. बैठते वक़्त भी मैं अपनी एक टाँग को उठाकर दूसरी टाँग के उपर रख लेती थी ताकि मेरी वाइट चुरिदार में क़ैद मेरी मांसल जंघें उन सब को दिख सके और तो और मेरा चुरिदार इतना पतला था कि उसमे से आसानी से मेरी रेड पैंटी को देखा जा सकता था. आकाश भी हॅरी भैया के साथ घर में था और छोटे मोटे काम करवा रहा था. उसकी नज़र भी बार-2 मेरे उपर आकर ही अटक जाती थी.
मैं बैठी कुछ काम कर रही थी तभी भैया ने मुझे बुलाया और कहा.
हॅरी-रीतू मिठाइयाँ रखने के लिए कुछ कपड़े चाहिए. अंदर रूम से निकाल दो. आकाश तुम इसके साथ जाओ कपड़े पकड़ कर लाना.
मे-जी भैया.
आकाश की तो जैसे मन की मुराद पूरी हो गई. मैं अंदर रूम की तरफ जाने लगी और आकाश मेरे पीछे-2 आने लगा. मैं मम्मी के रूम में जाकर बेड में से चद्दर निकालने लगी. जैसे ही चद्दर निकाल कर मैं पीछे घूमी तो मैं आकाश की छाती के साथ टकरा गई. वो बिल्कुल मेरे पीछे आकर खड़ा हो गया था. हम दोनो की छातियों के बीच मेरे हाथ में पकड़ी हुई चद्दर थी. मैने मुस्कुराते हुए आकाश से कहा.
मे-पकडो और जाओ बाहर.
आकाश ने चद्दर पकड़ी और उसे साइड पे रख दिया और अपने दोनो हाथ मेरी पीठ पे लेज़ा कर मुझे एक ही झटके के साथ खीचते हुए अपने साथ सटा लिया. मैं सीधा उसकी विशाल छाती के साथ जाकर चिपक गई. मेरे दोनो हाथ उसकी छाती के उपर थे और मेरे उरोज भी उसकी छाती से दब रहे थे. मैं उसकी बाहों में कसमसा रही थी. मैने उसकी तरफ देखते हुए कहा.
मे-आकाश प्लीज़ कोई आ जाएगा. छोड़ो मुझे.
आकाश ने अपने हाथ मेरी पाजामी में क़ैद मेरे नितंबों को मसल्ते हुए कहा.
आकाश-ऐसे कैसे छोड़ दूं डार्लिंग. सुबह से मेरी आँखों के सामने अपनी गान्ड मटका मटका कर चल रही हो और जान बुझ कर अपनी लाल पैंटी दिखा रही हो. मेरा पप्पू तो सुबह से तुम्हे देखकर खड़ा है. अब तो ये शांत होकर रहेगा.
मे-प्लीज़ आकाश समझने की कोशिश करो...
इसके आगे मैं कुछ नही कह पाई क्योंकि आकाश के होंठों ने मेरे गुलाबी होंठों अपनी गिरफ़्त में ले लिया. वो किसी मझे हुए खिलाड़ी की तरह मेरे होंठों का रस्पान करने लगा. मैं उसके चुंबन में खोती चली गई. उसके एक हाथ मेरे नितंबों को ज़ोर ज़ोर से मसल्ने लगा तो दूसरा मेरे उरोजो की कमीज़ के उपर से जाँच करने लगा. आकाश के होंठों ने जब मेरे होंठों को आज़ाद किया तो मुझे अपनी सतिति का आभास हुया. मैने फिरसे उसकी मिन्नत करते हुए कहा.
मे-आकाश प्लीज़ जाने दो मुझे.
मगर आकाश ने उल्टा मुझे धक्का देकर बेड के उपर गिरा दिया और खुद मेरे उपर चढ़ गया. उसकी विशाल बॉडी के नीचे मैं दबने लगी थी. मैं मिन्नत भरे स्वर में उसे कह रही थी.
मे-आकाश मेरे उपर से उतरो प्लीज़.
मगर आकाश के उपर इसका कोई असर नही था उसने मेरे कमीज़ को उपर उठा दिया था और जैसे ही मेरा गोरा चिकना पेट उसकी आँखों के सामने आया तो वो बुरी तरह से अपने होंठ मेरे नंगे पेट पे फिराने लगा था. अब सब कुछ बर्दाश्त से बाहर होता जा रहा था. मैने उसका सर पकड़ कर उसे रोका और कहा.
मे-आकाश प्लीज़ मेरी बात ध्यान से सुनो.
उसने अपना चेहरा उठाया और मेरी बात का इंतेज़ार करने लगा है.
मे-प्लीज़ आकाश यहाँ पे ख़तरा है तुम ये कपड़ा भैया को पकड़ा कर छत पे बने स्टोर रूम में आ जाओ. वहाँ कोई नही आएगा.
मेरी बात सुनकर वो खुश होता हुआ बोला.
मे-ये हुई ना बात मुझे पता था तुम मुझसे चुदने के लिए मरी जा रही हो. है ना.
मे-मुझे नही पता.
आकाश-प्लीज़ बताओ ना.
मे-हां बाबा मैं मरी जा रही हूँ बस. अब उतरो मेरे उपर से.
उसने मेरे होंठों पे किस की और मुझे छत पे आने को बोल कर बाहर चला गया.
मैने अपने कपड़े ठीक किए और मन में कहा 'कमीना कहीं का छत पे आएगी मेरी जुत्ति'
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