RE: Sex Story मैं चीज़ बड़ी हूँ मस्त मस्त
रॅक्स के पीछे हम किसी को दिखाई नही दे रहे थे वैसे भी इस टाइम लाइब्ररी में कोई नही था. मैने डरते डरते तुषार से कहा.
मे-तुषार क्या हुआ यहाँ क्यूँ लाए मुझे.
तुषार-यार कल का दिन बड़ी मुश्क़िल से गुज़रा सारा दिन मुझे तुम्हारे गुलाबी होंठों की याद आती रही.
मे-मैने भी तुम्हे मिस किया तुषार.
तुषार-तो जल्दी से पास आयो ना डार्लिंग.
कहते हुए तुषार ने मुझे खीच कर अपनी छाती से लगा लिया. मैं भी आसानी से उसकी बाहों में चली गई. तुषार ने मोबाइल मेरे हाथ से लिया और अपनी पॉकेट में डाल दिया. मैने अपने हाथ उसके गले में डाल दिए और तुषार ने ज़रा भी टाइम ना गँवाते हुए अपने होंठ मेरे होंठों के उपर रख दिए और अपने दोनो हाथ मेरी कमर के दोनो और टिका दिए. वो अपने होंठों से मेरे नीचे वाले होंठ को कस कर चूसने लगा. मैं भी चुंबन में उसका पूरा साथ देने लगी. कभी-2 वो मेरे होंठ को छोड़कर अपनी जीभ मेरे मूह में डाल देता और मैं प्यार से उसे चूसने लगती तो कभी मैं अपनी जीभ निकालती और तुषार उसे अपने होंठों में क़ैद कर लेता. हम पूरी शिद्दत से एक दूसरे को चूमने में लगे थे ना तुषार पीछे रहना चाहता था और ना ही मैं. तुषार के हाथ अब धीरे-2 मेरी कमर से फिसलते हुए मेरे नितंबों की ओर जाने लगे थे. उसने मुझे खुद से सटा रखा था जिसकी वजह से मेरे उरोज उसकी छाती में धँस रहे थे. उसके हाथ मेरे नितंबों के उपर पहुँच चुके थे और धीरे-2 वो मेरे नितंबों को मसल्ने लगे थे.
बस में उस लड़के के द्वारा ज़ोर ज़ोर से नितंब मसले जाने के कारण मेरे नितंब थोड़े दर्द कर रहे थे. लेकिन अब तुषार के द्वारा धीरे धीरे मसल्ने की वजह से मुझे बहुत आराम मिल रहा था. हमारे होंठों का आपस में उलझना अभी भी जारी था और तुषार के हाथ भी अब मेरे नितंबों पे तेज़ तेज़ घूमने लगे थे. मेरा पूरा शरीर तुषार के हाथो की कठ पुतली बनकर रह गया था. वो अपने दोनो हाथों को पूरा खोल कर मेरे नितंबों के उपर रखता और फिर आटे की तरह उन्हे गूँथ देता. इतनी बुरी तरह से वो मेरे नितंब मसल रहा था कि जब वो उन्हे हाथों में भरता तो मेरे पैर ज़मीन से उपर उठ जाते. उसकी हरकतों से मेरी पैंटी गीली हो चुकी थी और मेरी योनि से निकला रस मेरी पैंटी को गीला करते हुए मेरी जांघों पे भी बहने लगा था. मैने अपनी जंघें आपस में भींच रखी थी. करीब 10 मिनट तक एक दूसरे से उलझने के बाद हमारे होंठ एक दूसरे से अलग हो गये थे. हम दोनो की साँसें बहुत तेज़ तेज़ चल रही थी.
तुषार ने अपना एक हाथ आगे लाते हुए मेरी सलवार के नाडे को पकड़ कर झटके से खोल दिया था. सलवार के ढीली होते ही मैं जैसे नींद से जाग उठी थी मैं झट से तुषार की गिरफ़्त से बाहर होकर पीछे को हट गई और अपनी सलवार को पकड़ कर नीचे गिरने से रोक लिया.
मे-नही तुषार सलवार नही उतारूँगी मैं.
तुषार-प्लीज़ रीत सिर्फ़ एक बार मुझे तुम्हारी चूत देखनी है.
मे-नो नो तुषार प्लीज़ छोड़ो ना.
तुषार मेरे हाथों को सलवार के उपर से हटा रहा था जिनके ज़रिए मैने सलवार को पकड़ रखा था लेकिन मैं पीछे को हट ती हुई उसे मना कर रही थी.
आख़िरकार मैने उसे मना ही लिया और उसने मेरी सलवार छोड़ दी. मैने सलवार का नाडा बाँधा और तुषार की तरफ देखा वो मुझे ही घूर रहा था. मैने आगे बढ़कर उसके सीने में अपना चेहरा छुपा लिया और कहा.
मे-ऐसे मत देखो मुझे शरम आ रही है.
तुषार-देखो अब शरमाना छोड़ो मैने तुम्हारी बात मानी है अब तुम्हे भी मेरी बात मान नी पड़ेगी.
मे-कोन्सि बात.
वो अपना हाथ अपनी ज़िप के उपर ले गया और अपना पेनिस बाहर निकाल लिया. मैने अभी भी अपना चेहरा उसके सीने में छुपा रखा था. उसने मुझे कंधो से पकड़कर पीछे किया और नीचे देखने को कहा. जैसे ही मैने नीचे देखा तो तुषार का 6.5'' का ब्राउन कलर का पेनिस पूरा तन कर मेरी आँखों के सामने खड़ा था. पेनिस को देखने के बाद मैने फिरसे शरमा कर अपना चेहरा उसकी सीने में छुपा लिया.
तुषार-रीत अब शरमाओ मत प्लीज़ इसे मूह में लो ना.
मैने उसकी छाती पे मुक्के मारते हुए कहा.
मे-मैं तुम्हारी जान ले लूँगी. प्लीज़ इसे अंदर करो.
तुषार-प्लीज़ रीत अब नखरा छोड़ो मैने भी तो तुम्हारी बात मानी थी.
मे-मैं मूह में नही लूँगी.
तुषार-प्लीज़ रीत देखो बेचारा कैसे तुम्हारे होंठो का इंतेज़ार कर रहा है.
मे-मैने बोला ना मैं मूह में नही लूँगी.
तुषार-अच्छा चलो मूह में मत लो हाथ में पकड़ कर तो हिला दो प्लीज़.
मुझे उसके उपर थोड़ा तरस आया और
मैने अपना चेहरा उसकी छाती से हटाया और मुस्कुराती हुई उसके पेनिस को देखने लगी. पहली दफ़ा मैने किसी मर्द का पेनिस देखा था. और आज पहली बार ही उसे हाथ लगाने जा रही थी.
मैने डरते-2 तुषार पेनिस को हाथ में पकड़ लिया और धीरे-2 हिलाने लगी. वो बहुत ही हार्ड था तुषार के हाथ मेरे नितंबों से खेल रहे थे और मैं उसका पेनिस हाथ में लेकर हिला रही थी और इधर उधर भी देख रही थी. काफ़ी देर तक मैं उसे हिलाती रही. मेरे हाथ खुद ही उसके उपर तेज़-2 चलने लगे. मेरे हाथ अब दुखने लगे थे मगर उसका पेनिस था कि झड़ने का नाम नही ले रहा था. आख़िरकार काफ़ी मेहनत करने के बाद मुझे जीत मिल गई और उसके पेनिस से कम निकलकर नीचे फर्श पे गिरने लगा. थोड़ा सा कम मेरे हाथ पे भी लग गया मैं जल्दी-2 वहाँ से निकली और सीधा वॉशरूम में चली गई.
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