Desi Porn Kahani ज़िंदगी भी अजीब होती है
10-07-2019, 12:23 PM,
RE: Desi Porn Kahani ज़िंदगी भी अजीब होती है
सोच लिया था कल का पूरा दिन मिता के साथ ही बिताना था मुझे बस मैं और मेरी प्रेयसी कितने खूबसूरत होंगे वो पल जब मैं उसका हाथ थामुन्गा पता नही क्या क्या सोच लिया था मेरे अधीर मन ने बस इंतज़ार था अगली खूबसूरत सुबह का पर वो कहते है ना कि जब लगन लगी तो इश्क़ की तो फिर क्या दिन क्या रात पर थोड़ी मजबूरी थी तो फिर बस सोना ही था

सर्दी की लंबी रात बेशक थी पर दिन भी होना ही था मैं पोस्टिंग ऑर्डर लेने गया तो पता चला कि अपनी पोस्टिंग रॅस्टरिया रायफ़ल्स मे हुई है और लोकेशन मिली जंबू&कश्मीर जिसे इंडिया का स्वर्ग भी कहा जाता है एक हफ्ते बाद मुझे बटालियन मे जाय्न करना था मेरी इच्छा थी कि देल्ही या अलवर मिल जाए तो घर भी जाता रहूँगा आउटपास से पर हमारी कॉन सुने तो कागज़ी कार्यवाही पूरी की ओर रिलीव हो गये अकॅडमी से इन सब कामो मे दोपहर हो गयी


अपने रूम मे आया सारा सामान पॅक-सॅक किया कल मुझे कह देना था अलविदा इस जगह को ना जाने क्यो गला थोड़ा भारी भारी सा हो गया इतने दिन इस रूम मे निकले थे जी भर कर देख लेना चाहता था मैं इन दीवारो को कुछ देर बाद मैं चल पड़ा पद्मििनी के घर सुबह से कुछ खाया भी नही था तो पेट मे भी चूहे दौड़ रहे थे तो मैं दौड़ गया उधर



मिता बोली मैं कब से इंतज़ार कर रही हू फोन भी नही पिक किया तुमने तो मैने कहा सांस तो लेने दे और थोड़ा पानी पीनेके बाद सोफे पर बैठ गया पद्मििनी भी हमारे पास आकर बैठ गयी तो मैने कहा कि जम्मू कश्मीर मे पोस्टिंग मिली है ये सुनकर मिता थोड़ी परेशान हो गयी वो बोली और कही नही ले सकते थे क्या अब कों समझाए कि अपनी कहाँ चलती है




मैने पद्मि नी को कहा कि भाभी भूख लगी है कुछ खिला दो भाभी बोली मुझे पता था कि तुम यही आओगे तो तुम्हारी पसंद का खाना बनाया है मैने कहा मिता आओ खाना खाते है तो उसने कहा कि वो खा चुकी है पहले ही खाने के बाद मैं मिता को लेकर घूमने चला गया जम के खरीदारी की उसका साथ हमेशा से ही अच्छा लगता था




मैं हमेशा से ही चाहता था कि हर पल मैं बस उसके साथ ही जियुं हर सच-दुख बस उसके साथ ही बाटू फिर हमने बाहर ही डिन्नर किया और रात होते होते वापिस आ गये कॅंपस की सुनसान सड़को पर हम दोनो चल रहे थे मिथ्लेश किसी चिड़िया की तरह चहक रही थी जी मे आया कि इसको अपनी बहो मे भर लू हमेशा के मैने उसका हाथ पकड़ा और उसको अपनी ओर खीच लिया मिता बोली क्या कर रही हो हम रोड पर है




मैने कहा फिर क्या हुआ अपनी वाइफ को छूने मे कैसा डर उसकी गरम साँसे जो मेरे चेहरे से टकराने लगी थी उस सर्दी की ठंड मे जैसे एक गरम झोंका ले आई मैने उसकी कमर मे हाथ डाला और उसको अपने से चिपका लिया उसके हाथो से समान के बॅग्स नीचे गिर पड़े सुनसान सड़क पर दो पागल प्रेमी एक दूसरे की बाहों मे भाए डाले खड़े थे उसकी धड़कन मेरी धड़कन से बाते करने लगी थी



मिता ने अपना सर मेरे सीने मे छुपा लिया मैं अब क्या बताऊ मेरे दोस्त, जो कुछ मैने उस पल महसूस किया जिस्मो से तो मैं खेलता ही रहता था पर ये जो मेरी रूह थी ना वो बस मिथ्लेश की ही दीवानी थी कितना टूट कर मैं चाहता था उसको और आज भी चाहता हू पता नही कितनी देर हम एक दूसरे की बाहों मे लिपटे खड़े रहे ना जाने क्या बात कर रही थी मेरी रूह उसकी रूह से



मैं तो बस उसके इश्क़ मे फन्ना हो जाना चाहता था मैं चाहता था कि बस मेरी ज़िंदगी चाहे हो लंबी हो या एक पल की हो बस मिथ्लेश की बाहों मे ही सिमट जाए और मेरी मुहब्बत अमर हो जाए मेरा दिल मेरा कहाँ रह गया था अब जब कुछ होश आया तो मिथ्लेश मुझसे अलग हुई और अपने हालातों पे काबू पाया और समान उठाने लगी मैने कहा ,,,,,,,,,




मिता ये कब तक चलेगा वो बोली क्या मैने कहा मेरी तड़प को यू नज़र-अंदाज ना कर ज़ालिम आ इश्क़ को मेरे किसी मुकाम पर पहुचा दे मिता बोली आ जा मेरे घर डोली लेके मैं कब मना कर रही हू मैने कहा कि आ इधर ही मंदिर मे शादी कर लेते है तो वो बोली कि इतनी तो शरम अभी बाकी है मुझमे प्यार किया है कोई चोरी नही की अपनी बना ना है तो ले आईओ बारात मेरे घर ठाकुरानी हू वादा किया है तेरी ही चूड़ी पहनुँगी चाहे कुछ भी हो जाए




और भाग कर फिर से मेरी बहो मे समाती चली गयी , उसकी यादो से आँख भर आई तो मिनट रुक के ज़रा आँख पोछ लू फिर लिखता हू तो जब मुझे लगा कि उसके जिस्म की तपिश से कही मैं बहकने ना लगूँ तो मैं उस से दूर हो गया और हम मूर्ति सर के घर की ओर चल पड़े अंदर गये तो भाभी सर को डिन्नर परोस ही रही थी हमे देख कर वो बोली आओ कितनी देर लगा दी तुमने




आओ जल्दी से बैठ जाओ मैं अभी परोसती हू वैसे तो हम बाहर से खाकर ही आए थे पर मिता को फॅमिली रिलेशन्स की बड़ी समझ थी और फिर इस परिवार ने मुझे बड़ा सहारा दिया था तो हम भी बैठ गये फिर काफ़ी देर तक बाते की अब मुझे जाना था तो सबको गुडनाइट बोल के मैं निकल पड़ा अगले दिन मिता को जाना था ये कैसा मिलन था हमारा जहा जुदाई ही जुदाई थी
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