Kamvasna आजाद पंछी जम के चूस.
08-27-2019, 01:26 PM,
#24
RE: Kamvasna आजाद पंछी जम के चूस.
और आरती की जिंदगी का यह एहसास जोकि अभी भी चल रहा था एक ऐसा अहसास था जिसे कि वो पूरी तरह से भोगना चाहती थी वो आज इतनी गरम हो चुकी थी कि रामू के दो तीन झटको में ही वो झड चुकी थी पर रामू के लगातार झटको में वो अपने को फिर से जागते हुए पाया और अपनी जाँघो की पकड़ और भी मजबूत करते हुए रामू काका से लिपट गई और हर धक्के के साथ अपने मुँह से एक जोर दार चीत्कार निकलती जा रही थी वो उन झटकों को बिना चीत्कार के झेल भी नहीं पा रही थी पता नहीं कहाँ जाकर टकराते थे रामू काका के लण्ड के वो ऊपर की ओर सरक जाती थी और एक चीख उसके मुख से निकल जाती थी पर हर बार रामू काका उसे अपने होंठों से दबाकर खा जाते थे उसको रामू काका का यह अंदाज बहुत पसंद आया और वो खुलकर उनका साथ दे रही थी शायद ही उसने अपने पति का इस तरह से साथ दिया हो वहां तो शरम और हया का परदा जो रहता है पर यहां तो सेक्स और सिर्फ़ सेक्स का ही रिस्ता था वो खुलकर अपने शरीर की उठने वाली हर तरंग का मज़ा अभी ले रही थी और अपने आपको पूरी तरह से रामू काका के सुपुर्द भी कर दिया था और जम कर सेक्स का मजा भी लूट रही थी उसके पति का तिरस्कार अब उसे नहीं सता रहा था ना उनकी अप्पेक्षा वो तो जिस समुंदर में डुबकी ले रही थी वहां तो बस मज ही मजा था वो रामू काका को अपनी जाँघो से जकड़ते हुए हर धक्के के साथ उठती और हर धक्के के साथ नीचे गिरती थी और रामू तो जैसे, जानवर हो गया था अपने होंठों को आरती के होंठों से जोड़े हुए लगातार गति देते हुए अपनी चरम सीमा की ओर बढ़ता जा रहा था उसे कोई डर नहीं था और नहीं कोई शिकायत थी

वो लगातार अपने नीचे आरती को अपने तरीके से चोद रहा था और धीरे धीरे अपने शिखर पर पहुँच गया हर एक धक्के के साथ वो अपने को खाली करता जा रहा था और हर बार नीचे से मिल रहे साथ का पूरा मजा ले रहा था वो अपने को और नहीं संभाल पाया और धम्म से नीचे पड़े हुए आरती के ऊपर ढेर हो गया नीचे आरती भी झड़ चुकी थी और वो भी निश्चल सी उसके नीचे पड़ी हुई गॉंगों करके सांसें ले रही थी उसकी खासी से भी कभी-कभी कमरा गूँज उठा था पर थोड़ी देर में सबकुछ शांत हो गया था बिल कुल शांत। लेकिन
बाहर कमरे के दरवाजे पे भूकम्प आ गया था, जितनी स्पीड से वो दोनों जड़े थे उतनी तेज़ी से एक शक्स और भी जड़ा।
लेकिन उसकी आँखों मे नफरत थी उनदोनो के लिए। हालांकि उनकी चुदाई देख रुक नही पाया समुंदर पर एक नफरत ने भी अपना जन्म लिया।
एक हल्की सी चीख सोनल को अपने कमरे में सुनाई दी थी अपनी मम्मी की । जिसको सुनकर वो ऊपर आ गयी अपनी मम्मी के कमरे के दरवाजे पर , वहा उसने अकल्पनीय नजारा देखा, उनके घर का बुडडा नॉकर जिसको वो दादा कहती है उसकी मम्मी को चोद रहा है और मम्मी भी उसका भरपूर सहयोग कर रही है, हालांकि वो खुद आज उनको देख कर अपनी चुत रगड़ ली थी लेकिन उनको माफ भी नही कर पाई।
उसके पापा जोकि उसके लिए हीरो थे हालांकि वो अंतर्मुखी थे लेकिन उसको बहुत प्यार करते थे, और उसकी मम्मी उन्ही के साथ धोखा कर रही थी।
उसने एक फैसला किया मन ही मन, लेकिन क्या ये तो आने वाला वक़्त ही बताएगा, उसने अपने को संभाला और दरवाजे को जोर से पटक कर चली गईईईई---
जिसको सुनकर आरति और रामू काका दोनो हड़बड़ा गए। और चोंकते हुए दरवाजे को देखा, लेकिन वहा उन्हें कोई नही दिखा। उन्होंने झटफ्ट अपने अपने कपड़े पहने और पहले रामू कमरे से बाहर निकल गया और नीचे पहुचा, वहा भी कोई नही था हर तरफ सन्नाटा था।
तभी आरति भी नीचे आ गयी और इशारे से पूछा, रामु काका से उन्होंने कंधे उचका के जवाब दिया कि कुछ नही पता चला। आरती सोनल के कमरे की तरफ गयी और हल्का सा दरवाजा सरका कर देखा, डोर खुला था और सोनल बिस्तर पर लेटी हुई थी जैसे गहरी नींद में हो।
आरति मुड़कर उप्पेर चली गयी सोचते हुए आखिर कौन हो सकता है सोनल,जया काकी या फिर मोनिका।
आरति जोकि अभी सदमे में थी , अब शांत थी उस खड़के के बाद थोड़ा सा हिली पर ना जाने क्यों वो वैसे ही पड़ी रही बिस्तर पर और धीरे धीरे नींद के आगोश में चली गई

दोपहर को ठीक 1:45 पर दरवाजे पर फिर खटखटा हुआ तो वो हड़बड़ा कर उठी और
आरती- हाँ…
रामू काका-- जी वो आपको सोनल के साथ बाजार जाना था इसलिए और रवि साहब का फ़ोन आया था कि शाम को आज मनोज जी नहि आएँगे आज।

कामया ने झट से उठ बैठी कि रामू काका ने क्यो जगाया। अरे वो चिंतित थे कि कही वो सोती रह जाती तो सोनल के साथ वो कैसे बाजार जाती उसके चेहरे पर शिकन थी कि मनोज अंकल आज नही आएंगे वो जल्दी से उठी और बाथरूम की ओर भागी ताकि नहा धो कर जल्दी से तैयार हो सके

लगभग 2बजे वो बिल्कुल तैयार थी साड़ी और मचिंग ब्लाउज के साथ सोनल के साथ जाना था इसलिए थोड़ा सलीके की ब्लाउस और साड़ी पहनी थी पर था तो फिर भी बहुत कुछ दिखाने वाला टाइट और बिल्कुल नाप का साड़ी वही कमर के बहुत नीचे और ब्लाउस भी डीप नेस्क आगे और पीछे से


थोड़ी देर में ही बाहर एक गाड़ी आके रुकी तो वो समझ गई थी कि टक्सी आ गई है वो फ़ौरन बाहर की ओर लपकी ताकि सोनल के साथ ही वो नीचे मिल सके सोनल को बुलाना न पड़े नीचे आते ही सोनल ने एक बार आरती को ऊपर से नीचे तक देखा और हल्की सी रहस्यमयी मुस्कान के साथ
सोनल---मम्मीजी,चले
आरती- हां
और बाहर जहां गाड़ी खड़ी थी आके बैठ गये
गाड़ी में आरती ने बड़े ही हिम्मत करके सोनल को कहा
आरति- सोनल बेटा
- हाँ…
कामया- वो आज दोपहर तुम कमरे में आई थी क्या
सोनल- मम्मी क्या हुआ ऐसे क्यो पूछ रही हो आयी भी हु तो ऐसा क्या हुआ।
आरति - वो असल में मुझे ना ऐसा लगा कि जब मैं सो रही थी तो कोई कमरे में आया था।
सोनल अजीब सी नजरो से आरती को देखती है तो आरति घबरा कर टॉपिक चेंज कर देती है
आरति- अरे ंमुझे न वहा कुछ टाइम लगेगा ही और इतनी भीड़ भाड़ में तुम क्या करोगी , बेटा तू एक काम करना वहां पार्क है तू थोड़ा घूम आना में वहां थोड़ी देर शॉपिंग करूंगी और फिर दोनों घर आ जाएँगे ।
सोनल--- ठीक है मम्मी जी।
कार शॉपिंग मॉल के पार्किंग में रुकी और आरति और सोनल दोनो कार से उतरी। कार से उतरते ही सोनल पार्क की तरफ चली गयी बिना कुछ बोले।
आरती की जान में जान आई वो लोगों की तरफ देखती हुई थोड़ा सा मुस्कुराती हुई सिर पर पल्ला लिए हुए धीरे से आगे बढ़ी और बाहर की ओर चलने लगी बहुत सी आखें उसपर थी

पर एक आखों जो कि दूर से उसे देख रही थी आरती की नजर उसपर जम गई थी वो भीड़ में खड़ा दूर से उसे ही निहार रहा था वो घूमकर उसे देखती पर अपने को उस भीड़ से बच कर जब वो बाहर निकली तो वो आखें गायब थी वो शॉपिंग मॉल के बाहर सीढ़ियो पर आ के फिर से इधार उधर नजरें घुमाने लगी थी पर कोई नहीं दिखा उसे



पर वो ढूँढ़ क्या रही थी और किसे शायद वो उस नजर का पीछा कर रही थी जो उसे भीड़ में दिखी थी पर वो था कौन उसे वो नजर कुछ पहचानी हुई सी लगी थी पर एक झटके से उसने अपने सिर को हिलाकर अपने जेहन से उस बात को निकाल दिया की उसे यहां कौन पहचानेगा वो आज से पहले कभी इस शॉपिंग मॉल में आई ही नहीं वो शॉपिंग की सीढ़िया उतर कर अंदर बने हुए छोटे से कॉम्प्लेक्स में आ गई थी और धीरे-धीरे चहल कदमी करते हुए बार-बारइधर-उधर देखती जा रही थी लोग सभी दुकानों की और जाते हुए दिख रहे थे कुछ उसे देखते हुए तो कुछ नजर अंदाज करते हुए पर तभी उसकी नजर एक शॉप के पास खड़े हुए उस इंसान पर पड़ी जिसे देखते ही उसके रोंगटे खड़े हो गये वो बिल्कुल उप्पेर की सीढ़ियों के पास दीवाल से टिका हुआ खड़ा था वो उसे ही देख रहा था पर बहुत दूर था आरती ने जैसे ही उसे देखा तो वो थोड़ी देर के लिए वही ठिटक गई और, फिर से उसे देखने लगी थी

वो दूर था पर उसे पता चल गया था कि आरती की नजर उसे पर पड़ चुकी थी वो धीरे-धीरे शॉप के पीछे कॉर्डियर की ओर जाने लगा था।
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