RE: Desi Sex Kahani दिल दोस्ती और दारू
जब मुझे यकीन हो गया कि अब मेरा भजिया तलना तय है तो फिर मैने सोचा कि क्यूँ ना तेल को और गरम किया जाए इसलिए मैं हॉस्टिल के लड़को की फाड़ते हुए बोला....
"तुम लोग बेटा ,सब अपना समान बाँध कर जल्दी से घर निकल लो क्यूंकी यहाँ से मुक्ति पाते ही मैं सबसे पहले तुम सबको इस दुनिया से मुक्त करूँगा...मुझे जहाँ दिखोगे वही गोली मारकर तुम लोगो की जीवन-लीला ख़त्म कर दूँगा...सालो मेरे खिलाफ जाते हो..."फिर कलेक्टर के लड़के की तरफ देखते हुए मैं बोला"तू पहले क्या बोल रहा था बे झाटुए कि तू मुझसे नही डरता पर अब तू ये कहने से ही डरेगा कि'तुझे मुझसे डर नही लगता'....."
मेरी पिछले कुच्छ देर की हरक़तो से जहाँ मेरे सारे दोस्त हैरान थे वही एस.पी. के साथ सारे पोलीस वाले भी शॉक्ड थे कि लवडा कही मैं पागल तो नही हो गया.....
हॉस्टिल के लौन्डे कुच्छ देर थाने के परिसर मे खड़े रहे और फिर वहाँ से चल दिए.इसके बाद दो कॉन्स्टेबल ने मेरे दोनो हाथ पीछे करके पकड़ लिया क्यूंकी उन्हे शायद ये डर था कि कही मैं एस.पी. को भी ना चोद दूं....
"लटका बोसे ड्के ,इसको...."एक कॉन्स्टेबल को गाली बकते हुए एस.पी. बोला और कलेक्टर के छोरे को उठाने लगा....
मैने जो पुन्य का काम कुच्छ देर पहले किया था उसकी वजह से उन लोगो ने मेरी बहुत आरती उतारी और इतनी आरती उतारी कि आरती नाम से मुझे नफ़रत हो गयी....सालो ने बॉडी के हर एक पार्ट्स पर निशान दिया और जब गुस्सा शांत हुआ तो मुझे ले जाकर लॉक अप मे फेक दिया......
"ठोक एमसी पर रॅगिंग का केस...साले की ज़िंदगी बर्बाद कर दूँगा मैं..."कॉन्स्टेबल्स पर चिल्लाते हुए एस.पी. बोला और वही चेयर पर बैठ गया.....
"ह्म लवडा, मैं ही एक चूतिया दिख रहा हूँ ना....पर एक बात जान लो कि मैं तुम लोगो की तरह अनपढ़ गँवार नही हूँ और ना ही सारी दुनिया तुम लोगो की तरह चूतिया है जो ये ना समझ पाए कि ये रॅगिंग नही थी और वैसे भी वहाँ एक से एक तुम जैसे गधे डिटॅनर्स ,सीनियर्स थे....और जब कोर्ट मे मेरा .लॉयर ये पुछेगा तब कि 'क्या मैं उन सीनियर्स और डिटॅनर्स की भी रॅगिंग ले रहा था'...तब बोलो लवडा ,क्या जवाब दोगे...."मिड्ल फिंगर उन सबको दिखाते हुए मैं बोला...
"तुझे शायद मालूम नही की मैं क्या चीज़ हूँ ,मैं केस कोर्ट तक पहुचने ही नही दूँगा..."
"बाप का राज़ है क्या...जहाँ 100 स्टूडेंट्स पोस्टर लेकर सड़क पर निकल जाएँगे ,वहिच तू चूस लेगा...तू अभी अधिक से अधिक सिर्फ़ मुझे कुच्छ दिन यहाँ रख सकता है और थोड़ी देर मार सकता ,इससे अधिक तू कुच्छ नही कर सकता...अड्मिट इट. और मैं बहुत अच्छी तरह से जानता हूँ कि तू कौन है, पर शायद तू नही जानता कि मैं कौन हूँ...."
"निकाल कर लटका फिर से साले को और तब तक मारो जब तक मर ना जाए...."
एस.पी. के आदेश का पालन करते हुए दो-तीन कॉन्स्टेबल लॉक अप मे घुस गये लेकिन तभी एस.पी. ने बड़ी धीमी आवाज़ मे उन सबको वापस आने के लिए कहा......
"इसे क्या हुआ ,फट क्यूँ गयी इसकी...बीसी कहीं मीडीया तो नही आ गयी...कितना फेमस हूँ मैं "
"ये तो इसका दोस्त है, जो लॉयर को लेकर आ रहा है...."एस.पी. बोला....
"गुड मॉर्निंग ,मिस्टर. आर.एल.डांगी...आइ आम आड्वोकेट भारत त्रिवेदी...."
"बैठिए...."
इसके बाद मैने लॉक अप से जो सीन देखा वो ये था कि भारत त्रिवेदी ने लंबे-चौड़े कयि काग़ज़ के पन्ने निकालकर टेबल पर फेक दिए,जिसके बाद एस.पी. के चेहरे का रंग उतर गया और फिर उसने अकेले मे भारत त्रिवेदी से कुच्छ देर बात करने की पेशकश की,जिसे उन्होने मान लिया और वहाँ से उठकर थाने के परिसर मे घूमते हुए बहुत देर तक दोनो बातें करते रहे.....
" बीसी कहीं ये दोनो एक-दूसरे को राजशर्मास्टॉरीज की कोई सेक्स स्टोरी तो नही सुनाने लगे...पक्का लवडे बाहर एक-दूसरे का लवडा पकड़ कर 61-62 कर रहे होंगे...वरना इतनी देर तो कोर्ट मे केस नही चलता , जितनी देर ये लोग केस चला रहे है....."
खैर थोड़ी देर बाद दोनो वापस आए और एस.पी. ने कहा कि मुझे छोड़ दिया जाए....उस वक़्त जब वो ये बोल रहा था तो उसके चेहरे का एक्सप्रेशन कुच्छ ऐसा था जैसे दुनिया का सबसे बड़ा दुखी इंसान उस वक़्त वही है....
जैसे तैसे करके मैं खड़ा हुआ और धीरे-धीरे लॉक अप के बाहर आया...अब मेरे चलने की स्पीड ठीक वैसी हो गयी थी, जैसे कुच्छ देर पहले मैने कलेक्टर के लड़की की बताई थी बस फ़र्क इतना सा था कि वो सहारा लेकर चल रहा था और मैं बिना किसी के सहारे के चल रहा था....उस वक़्त मेरी ये हालत करने वाले कॉन्स्टेबल्स के अंदर ना जाने कहा से मेरे लिया ढेर सारा प्यार उमड़ आया ,जो मुझे सहारा देने के लिए आगे बढ़े....
"क्यूँ नौटंकी कर कर रहे हो बे...छुना मत मुझे. सालो तुम्ही ने ये हालत की है मेरी...लवडे दोगले कही के..."
"अरुण....ये ऐसे कैसे बिहेव कर रहा है..."मेरा ऐसा रवैया देखकर आड्वोकेट के माथे पर शिकन उत्पन्न हो गयी और वो अरुण की तरफ देखकर बोले...
जवाब मे अरुण सिर्फ़ मेरी तरफ देखता रह गया और जब मैं कछुए की माफ़िक़ रेंगते-रेंगते थोड़ा और आगे बढ़कर अरुण और आड्वोकेट के पास पहुचा तब अरुण मुझे कंधा देने के लिए मेरी तरफ आया....
"छूना मत मुझे...अपुन को किसी की हेल्प की ज़रूरत नही है."
"व्हाट दा हेल मॅन, अरुण मुझे यहाँ लेकर आया और मेरी वज़ह से तुम यहाँ से बाहर जा रहे हो, इसने तुम्हारी मदद की है , यू शुड थॅंक हिम..."
"ये कौन है यार...ये भाई मैने ना तो तुझे बुलाया था और ना ही इसे कहा था कि तुझे लेकर आए...मैं एक इंजिनियर होने के साथ-साथ एक लॉयर भी हूँ और मैने एलएलबी ,एनएलएसयू,बंगलोर से तब कंप्लीट कर ली थी ,जब तूने एलएलबी की शुरुआत तक नही की थी और ये ,मेरा फॉर्मर फ्रेंड...जो तुझे यहाँ लेकर आया है वो इसलिए नही क्यूंकी इसे मेरी मदद करना था,बल्कि इसलिए क्यूंकी इसे डर था कि कही वापस लौटकर मैं इसका गेम ना बजा दूं....यनना रसकल्ला"
"मिस्टर.डांगी ,मेरे सारे पेपर्स वापस कीजिए और इसे वापस अंदर कीजिए..."
"मुँह मे ले लो अब...उधर रिजिस्टर-वेजिस्टर मे इन लोगो ने कुच्छ-कुच्छ चढ़ा दिया है और यदि अब ये तुझे तेरे पेपर्स वापस करते है तो ये लोग ढंग से चूसेंगे...."
"भारत भैया, आप मेरे साथ आओ, मैं बताता हूँ आपको...."बोलकर अरुण,भारत त्रिवेदी को अपने साथ पोलीस स्टेशन से बाहर ले गया.....
मुझे पोलीस स्टेशन का गेट पार करने मे 5 मिनिट लगे और गेट से निकलते वक़्त मैने पीछे पलट कर एस.पी. और उसके कॉन्स्टेबल्स को एक बार फिर से अपनी मिड्ल फिंगर के दर्शन कराए और फाइनली बाहर निकला....बाहर ,भारत त्रिवेदी ,अरुण के साथ अपनी कार के आगे खड़ा था. कुच्छ देर पहले जहाँ भारत त्रिवेदी का चेहरा रोने सा हो गया था ,वही अब वो एक दम शांत खड़ा था...मुझे बाहर देख कर अरुण बोला....
"चल ,कार मे बैठ अरमान...."
"इस कार मे... "
"नही तो क्या तेरे लिए अब मैं बगाटी या फरारी लाउ..."
"ऐसी कार तो मुझे कोई फ्री मे दे तब भी मैं ना लूँ...मैं पैदल ही हॉस्टिल जाउन्गा...लवडा भूख बहुत लगी है एक काम करता हूँ पहले 20-30 समोसे खा लेता हूँ, फिर हॉस्टिल की तरफ प्रस्थान करूँगा...."
मुझे उस वक़्त पता नही क्या हो गया था जो मैं वैसी अजीब-हरक़ते करने लगा था....मेरे ऐसे बिहेवियर से सब हैरान थे...कुच्छ ने तो पागल ,सटका तक कह डाला था और ये सवाल मैं आज भी खुद से पुछ्ता हूँ कि क्या वाकई मैं उस दिन पोलीस स्टेशन मे सटक गया था या वो सब सिर्फ़ मेरा घमंड , मेरा अकड़ ,मेरा आटिट्यूड था....
पोलीस स्टेशन से निकलकर मैं एक समोसे वाली दुकान पर गया और उस दुकान वाले से भी मेरी बहस हो गयी....
"हरामी साले...कल के समोसे खिलाता है.जा लवडा पैसा नही दूँगा...."मैने प्लेट ज़मीन पर फेक कर कहा....
"छोटू ,लल्लन को बोल एक लड़का नाटक कर रहा है...."
"माँ छोड़ दूँगा लल्लन की और तुम सबकी यदि हाथ लगाया तो....अभी-अभी जैल से छूटा हूँ और मालूम है क्या केस था मुझ पर....एक मर्डर और 7-8 हाफ मर्डर.कल से लवडा यदि बासी समोसा ताज़े समोसे के बीच मे डालकर मिलाया तो तुझे और तेरी दुकान को मिट्टी मे मिला दूँगा...."
जहाँ तक मेरी याददाश्त जाती है और यदि मैं सही हूँ, जो कि मैं हमेशा रहता हूँ तो मैं उसी दिन वापस पोलीस स्टेशन गया और अबकी मेरी पहले से भी ज़्यादा दुर्गति हुई....अबकी बार मेरी दुर्गति का कारण आराधना बनी.पोलीस स्टेशन से हॉस्टिल की दूरी यूँ कुच्छ 5 किलोमीटर के लगभग होगी पर मुझे वहाँ पहुचने मे 2 घंटे लग गये और जब हॉस्टिल के सामने पहुचा तो वहाँ पोलीस जीप खड़ी दिखाई दी......
"ये लोग कहीं मुझसे माफीनामा तो माँगने नही आए...सालो को माफ़ नही करूँगा...मैं भी लटका-लटका कर मारूँगा..."पोलीस जीप की तरफ बढ़ते हुए मैने कहा.....
"चलिए सर ,वापस....पोलीस स्टेशन आपके बिना सूना-सूना है..."हॉस्टिल के गेट के अंदर से निकलते हुए एस.पी. बोला"मैं खुद तुझे अरेस्ट करने आया हूँ ,इसका मतलब तुझमे कुच्छ बात तो है...."
"चाहे जितनी तारीफ कर ले, मैं ऑटोग्राफ नही दूँगा...."
मैं उस समय सोच बिल्कुल भी नही रहा था कि ये लोग मुझे वापस पकड़ कर ले जाने के लिए आए है ,मैने सोचा कि यूँ ही कुच्छ बयान-व्यान लेने आए होंगे....
"ऑटोग्राफ तो अब मैं तुझे दूँगा ,वो भी ज़िंदगी भर के लिए....क्यूंकी तेरे उपर अब हाफ-मर्डर का नही बल्कि मर्डर का केस चलेगा...."
"क्यूँ...कलेक्टर का लौंडा उपर चला गया क्या...."
"वो नही , एक लड़की है-आराधना....वो उपर चली गयी है...आधे घंटे पहले ही थाने मे उसकी वॉर्डन और उसकी सहेलियो ने आकर तेरे खिलाफ रिपोर्ट लिखवा दी है.....अब तू तो गया बेटा....तुझे मुझसे होशियारी नही छोड़नी चाहिए थी उपर से अबकी बार तेरा प्रिन्सिपल ही तेरे खिलाफ है,जो हर बार तुझे बचा कर ले जाता था....."
"आराधना मर गयी...पर उसकी हालत तो उतनी भी खराब नही थी..."
"पर तेरी हालत ज़रूर खराब होगी ,वो भी मेरे हाथो...ऐसा तोड़ूँगा तुझे कि फिर कभी जुड़ नही पाएगा. इसे भरो रे..."कॉन्स्टेबल्स पर गला फाड़ते हुए आर.एल.डांगी ने कहा....
आर.एल. डांगी के हुक़म की तामील करते हुए उसके पन्टरो ने मुझे तुरंत जीप के अंदर घुसेड़ा ,ये कहते हुए कि"हमे मालूम है कि ,तेरा कोई मामा एमएलए वगेरह नही है...एस.पी. साहब ने पूरी छान-बीन कर ली है...अब तो हमारे हाथ तुझे मारने से पहले एक पल के लिए भी नही रुकेंगे....."
उधर मुझे जीप मे बैठाकर ,एस.पी. खुद को मिली सरकारी गाड़ी मे बैठकर निकला और इधर मेरे पास सिवाय आराधना के बारे मे सोचने के आलवा कुच्छ नही बचा था ,क्यूंकी बेशक मैं चाहता था कि आराधना मेरी ज़िंदगी से निकल जाए ,लेकिन वो तो दुनिया से ही निकल गयी...बेशक ही आराधना के स्यूयिसाइड के कयि रीज़न रहे हो जैसे कि उसकी दिमागी हालत खराब होना , कायर होना पर जो बात मुझे कच्चा चबाए जा रही थी वो ये कि मैं खुद उन कयि रीज़न्स मे से एक रीज़न था ,जिसकी वज़ह से आराधना ने स्यूयिसाइड की थी या फिर थोड़ा और डीटेल मे कहूँ तो मैं ही वो था जिसने आराधना को स्यूयिसाइड करने के लिए रीज़न्स दिए...मैं कुच्छ भी बहाना मार सकता था,अपने दिमाग़ का इस्तेमाल करके मैं कोई भी तिकड़म खेल सकता था,जिससे आराधना को बुरा ना लगे या फिर कम बुरा लगे....पर मैने ऐसा नही किया ,बिल्कुल भी नही किया...1 पर्सेंट भी नही और नतीज़ा आराधना की मौत के रूप मे सामने आया था.
उस वक़्त मुझे जो सबसे ज़्यादा परेशान कर रहा था वो ना तो सूपरिंटेंडेंट ऑफ पोलीस था और ना ही आराधना की मौत...उस वक़्त जो मुझे सबसे ज़्यादा परेशान कर रहा था ,वो मैं खुद ही था.मेरा दिमाग़ हर घड़ी दो घड़ी मुझपर चिल्लाकर कहता कि'मैने आराधना को मारा..मेरी वज़ह से उसकी मौत हुई' और फिर जिस हॉस्पिटल मे आराधना अड्मिट थी ,वहाँ उसकी मौत के बाद की एक काल्पनिक तस्वीर मेरे सामने आ रही थी...मैने आराधना के माँ-बाप मे से किसी को नही देखा था ,पर तब भी मेरा दिमाग़ आराधना के माँ-बाप की एक काल्पनिक तस्वीर मुझे दिखाता,जो कि बहुत ही....बहुत ही ज़्यादा दर्दनाक और दयनीय थी...
उस दिन पोलीस वॅन मे बैठे-बैठे मुझे पता चला कि असल मे झटका लगना किसे कहते है और मैं दुआ कर रहा था कि मुझे जल्दी से जल्दी 10-12 अटॅक आए और मैं भी परलोक सिधार लूँ....क्यूंकी पोलीस वॅन मे पड़े-पड़े मेरे दिमाग़ द्वारा मुझे दिखाई गयी हर एक काल्पनिक तस्वीर मुझे ऐसा ज़ख़्म दे रही थी ,जिसका कोई निशान तो नही था ,पर दर्द बहुत ज़्यादा था...इतना ज़्यादा कि मैं उस वक़्त ये चाहने लगा था कि मैं अब बस मर जाउ.
वैसे हर एक नॉर्मल इंसान ,हर कोई जो मुझे पसंद या नापसंद करता था...हर कोई जो मेरे दोस्तो मे था या फिर दुश्मनो मे था ,वो सिर्फ़ यही सोच रहा था अब मुझे बहुत बुरी मार पड़ेगी...कोई तो मुझे 302 धारा के अंतर्गत दोषी भी मान चुका था पर ऐसा बिल्कुल नही था और कमाल की बात तो ये है कि सब कुच्छ बिल्कुल ऐसा ही था...कहने का मतलब मेरी इतनी जोरदार ठुकाई हुई ,जितनी कि ना तो पहले हुई थी और ना ही अब कभी होगी...मुझपर 302 धारा भी चढ़ाई गयी पर ये सब उस वक़्त मेरे लिए कोई मायने नही रखते थे ,क्यूंकी आराधना की मौत ने मेरे दिल और दिमाग़ मे बहुत गहरा ज़ख़्म दिया था और लाख कोशिशो के बावज़ूद मैं इस ज़ख़्म से उबर नही पा रहा था...मैं जितने भी दिन पोलीस स्टेशन मे रहा हर पल मेरे खुद की इमॅजिनेशन मेरी जान निकलती रही...मेरा तेज़ दिमाग़ ही मेरे उन ज़ख़्मो को भरने नही देता ,जो उस वक़्त मेरी आत्मा का गला दबा रहा था...दिन का वक़्त तो फिर भी निकल जाता ,पर रात को हर रोज आराधना मेरे सपनो मे आती ,पहले तो वो मुझे हँसती हुई दिखती...भागते हुए मेरा नाम पुकारती और हर बार मैं इस भ्रम मे पड़ जाता कि वो अब भी ज़िंदा है लेकिन जैसे ही मैं सपनो के इस मायाजाल मे फँसता ,तभी आराधना की हॉस्टिल मे पंखे से लटकी हुई तस्वीर मुझे दिखती और उसकी जीभ जो बाहर निकल आई थी वो बहुत देर तक हिलती रहती थी.....जिसके बाद एक तेज़ दर्द मेरे सर को पकड़ लेता और मेरी आँख खुलते ही मैं अपने सर को पकड़ लेता....
मैं कुल एक हफ्ते थाने के एक लॉकप मे बंद रहा शुरू के दो-तीन दिन तो पोलीस वालो ने मुझे खूब धोया पर जब मेरी तरफ से कोई रेस्पोन्स नही मिला और ना ही मैने कोई तेवर दिखाए तो उन्होने भी मुझे मारना छोड़ दिया...
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