RE: Desi Sex Kahani दिल दोस्ती और दारू
महंत के रूम से निकलकर मैं वापस रूम मे आया, एक तो वैसे ही दारू का कुच्छ खास नशा नही था उपर से जो था,वो अरुण के इस चूतियापे ने भगा दिया था और तब मुझे याद आया कि एश मुझसे पट चुकी है और मुझे अब एक फाडू लवर बनना है...लेकिन कैसे ये मुझे नही पता था...बोले तो मैं इस मामले मे बिल्कुल वर्जिन था....वैसे मैने बहुत सुना था कि लवर बॉय क्या-क्या करते है...जैसे की सुबह,दोपहर,शाम,रात को गुड मॉर्निंग, गुड आफ्टरनून, गुड ईव्निंग, गुड नाइट बोलना...दिन भर मोबाइल पर चिपके रहना और जानू-जानू कहकर एक-दूसरे को महा-बोर करना और जब फिर भी दिल ना भरे तो मोबाइल को किस करना....अब ये सब तो मुझसे होने से रहा ,इसलिए मैने गूगल महाराज की हेल्प लेने का सोचा और मोबाइल का ब्राउज़र खोलकर गूगल महाराज के दरबार मे गया और टाइप किया'हाउ टू बी आ गुड लवर
लड़कियों से मेरा कनेक्षन हमेशा से ही वीक रहा था.स्कूल लाइफ मे अपने घमंड के कारण तो कॉलेज लाइफ मे अपनी हरकत के कारण...स्कूल लाइफ मे मुझे जो आख़िरी लड़की याद आती है ,वो एक ऐसी लड़की थी ,जिसने मुझे अपना नंबर तक दे दिया था...हुआ ये था कि 12थ के एग्ज़ॅम के दौरान जिस क्लास मे मेरा रोल नंबर था उसके राइट साइड वाले कॉलम मे मेरे ठीक बगल मे किसी दूसरे स्कूल की लड़की बैठी थी. उसके स्कूल का नाम तो मुझे याद नही लेकिन वो लड़की और उसके ब्लू कलर की ड्रेस याद है...एग्ज़ॅम के पहले दिन जब पेपर दिया गया तो मैने बिना इधर-उधर देखे जब तक पूरे क्वेस्चन के आन्सर कॉपी मे उतार नही दिए,तब तक मेरी आँखे सिर्फ़ दो चीज़ो पर पड़ी, पहली चीज़ थी मेरा क्वेस्चन पेपर और दूसरी चीज़ थी मेरी आन्सर शीट और वैसे भी जिसे पूरे क्वेस्चन के आन्सर पता हो ,उसे अगल-बगल झाँकने की क्या ज़रूरत....ढाई घंटे के बाद ,जब मैने अपना पेपर सॉल्व कर लिया तो अपनी अकड़ चुकी गर्दन को गोल-गोल घुमाया और तब क्वेस्चन पेपर और आन्सर शीट के आलवा जिस तीसरी चीज़ पर मेरी नज़र पड़ी ,वो, वो लड़की थी...उसका नाम पता नही अपना नाम क्या बताया था उसने ,खैर कोई बात नही.....
वो लड़की टीचर से नज़रें चुराकर अपने सामने बैठे लड़के से बार-बार ऑब्जेक्टिव्स के आन्सर पुच्छ रही थी,लेकिन उसके स्कूल का वो लड़का था कि पीछे पलटने का नाम ही नही ले रहा था....
"फर्स्ट ऑब्जेक्टिव का आन्सर सी है क्या..."उस लड़की ने एक और बार उस लड़के से पुछा....लेकिन नतीज़ा पहले के माफ़िक़ ही नेगेटिव रहा...तब मैने घड़ी मे टाइम देखा और सोचा कि इसपर रहम कर देते है...और मैने दबी हुई आवाज़ मे उसको इशारा करके पहले ऑब्जेक्टिव का आन्सर बताया....
"पहले का आन्सर ए है, 15 केएन "
"15 केएन तो हो ही नही सकता..."उसने मेरी तरफ देखते हुए तुरंत कहा...
"तेरी *** की चूत...गान्ड मरा बीसी...लवडा यहाँ मुझे पेज नंबर. तक याद है कि किस पेज का ये क्वेस्चन है और ये मुझे ही चोदना सीखा रही है..."उसे देखकर मैने मन मे कहा....
उसके बाद मैं अपने आन्सर्स रीचेक करने लगा कि कही कोई चूतियापा तो नही कर दिया है कि तभिच उस लड़की ने खीस-पिश करते हुए मुझसे दूसरे ऑब्जेक्टिव का आन्सर इशारा करके पुछा और मैने फटाक से बेंच के नीचे उंगलियो से उसको आन्सर बता दिया...इसके बाद उसको आन्सर बताने का जो सिलसिला मैने चालू किया ,वो पूरे आधे घंटे तक चलता रहा...मैने कयि क्वेस्चन के आन्सर्स अपनी कॉपी खोलकर उस लौंडिया को तपाए...इसलिए नही कि मैं बहुत दयावान था ,या फिर मुझे उस लड़की की चूत चाहिए थी...बल्कि इसलिए कि मेरा पेपर सॉल्व हो चुका था और टीचर अधिक से अधिक मेरी कॉपी छीनकर मुझे बाहर ही भगा सकता था...
उसके बाद जब दूसरा पेपर आया ,तब उस लड़की ने मुझे शुरुआत मे ही स्माइल दी और तभिच मैने बेधड़क,बेझिझक बोला कि जबतक अपुन सारे क्वेस्चन के आन्सर नही लिख लेता ,तब तक अपुन को डिस्टर्ब नही करने का....उसके बाद यदि टाइम बचा तो अपुन खुद ही तेरे को आन्सर बता देगा....
.
इसके बाद उस लड़की से जितना बन सका उसने लिखा और फिर जब तक मैने पूरा नही लिख लिया ,तब तक वो मेरी तरफ ही देखती रही...वो ऐसा हर एग्ज़ॅम मे करती थी और कभी-कभी तो वो दो घंटे मेरी तरफ देखते रहती थी...लेकिन खुदा गवाह है की मैने जब तक 30 क्वेस्चन के आन्सर अपनी कॉपी मे छाप नही दिए तब तक उसकी तरफ देखा तक नही और लास्ट के आधे-एक घंटे मे उसको पेलम पेल आन्सर बताता था....
.
हमारी किस्मत अच्छी थी कि आज तक हमे नकल मारते हुए कोई टीचर नही धर पाया या फिर कहे कि मेरे ट्रिक को टीचर समझ ही नही पाते थे..
जिस दिन हमारा आख़िरी पेपर था ,उस दिन भी मैने उस लड़की को पेल के आन्सर बताए और जब कॉपी सब्मिट करके जाने लगा तो मैने एक बार भी उसकी तरफ नही देखा...जबकि वो एक झक्कास माल थी.उन दिनो मेरे कुच्छ सिद्धांत हुआ करते थे कि अपने नालेज का कभी फ़ायदा नही उठाना चाहिए,लेकिन आज मुझे वो सब कुच्छ महज एक चूतियापा लगता है और मैं खुद को आज भी कोस्ता हूँ कि ,जब बाहर वो लड़की मेरे पास दौड़ते हुए आई और एक कागज पर मुझे अपना नंबर लिखकर दिया तो मैने उस कागज को उसी की आँखो के सामने फाड़ क्यूँ दिया...मुझे वो कागज चुप-चाप अपनी जेब मे रख लेना चाहिए था...लेकिन मैने ऐसा बिल्कुल भी नही किया और उसके नंबर लिखे कागज के टुकड़े-टुकड़े करके वही सड़क के किनारे फेक दिया ये बोलते हुए कि"जाओ,तुम भी क्या याद रखोगी "
उसको कितना बुरा लगा होगा उस टाइम, फली मुझपर मरती थी
.
स्कूल के दिनो मे तो मैं अपने घमंड के कारण लड़कियो से दूर रहा लेकिन कॉलेज मे अपनी हरकतों के कारण....मुझे मालूम था कि रोज सुबह 5-6 बजे के करीब हॉस्टिल की लड़किया शॉर्ट्स वगेरह पहन कर बॅस्केटबॉल की प्रॅक्टीस मे जाती है और यदि मैं भी रोज सुबह उठकर बॅस्केटबॉल कोर्ट मे जाउ तो एक-दो तो ज़रूर मुझपर फ्लॅट होगी...मैने ऐसे करने का सोचा भी था यहाँ तक की 6 बजे का अलार्म तक अपने मोबाइल मे सेट कर दिया था...लेकिन जब दूसरे दिन सुबह 6 बजे अलार्म बजा तो मैने मोबाइल पकड़ा और स्विच ऑफ करके वापस सो गया....
.
मुझे जब भी हेल्प चाहिए था ,फिर चाहे वो ज़मीन से लेकर आसमान तक कोई भी टॉपिक हो, गूगल महाराज ने मेरी हमेशा सहायता की थी, लेकिन मेरे उस एक लाइन 'हाउ टू बी आ गुड लवर' ने गूगल महाराज और मेरे बीच के रिश्तो मे ख़टाश पैदा कर दी...क्यूंकी गूगल महाराज भी मुझे वही सब कुच्छ करने को कह रहे थे ,जो मुझे पता था और मुझे ज़रा सा भी रास नही आता था...यानी कि गुड मॉर्निंग, गुड नाइट विशस से पहले शुरुआत करो, फिर गिफ्ट वगेरह दो और फिर डेट पर ले जाओ....अब बीसी अपनी गुड मॉर्निंग तो कॉलेज के पहले पीरियड मे होती है और गुड नाइट ,तब होती है...जब सबके गुड मॉर्निंग का टाइम होता है...इसलिए गूगल महाराज के विशस वेल अड्वाइज़ को मैने दरकिनार किया और गिफ्ट के बारे मे सोचने लगा......
"नही...ऐसे मे तो मैं दारू नही पी पाउन्गा...अब मैं या तो गिफ्ट मे पैसे बर्बाद करू या फिर दारू मे....गान्ड मरा गिफ्ट-विफ़्ट,मैं तो दारू पियुंगा"इस तरह गूगल महाराज की दूसरी अड्वाइज़ भी मैने उपर से निकाल दी और तीसरी अड्वाइज़ पर आया ,जो कि डेट थी और फिर कॉलेज फ्रेंड्स के साथ कही घूमने जाने की बात थी....
"गूगल बाबा सठिया गये है, जो ये सब बकवास आइडियास दे रहे है...लवडा कोई इंजिनियर वाला आइडिया माँगता अपुन को..."
फिर मैने सोचा कि मेरा सवाल ही ग़लत था ,इसलिए मैने अपने पहले सवाल को एडिट किया और दोबारा टाइप किया"हाउ टू डू लव" लेकिन अबकी बार रिज़ल्ट पहली बार से भी बदतर रहा....क्यूंकी मेरे'हाउ टू डू लोवे" क्वेस्चन के जवाब मे गूगल महाराज ने मेरे सामने चुदाई के कयि स्टेप्स रख दिए थे.....
"फाइनली गूगल महराह ऑल्सो हॅव लिमिट..."मोबाइल दूर फेक कर मैं बोला और घड़ी मे टाइम देखा तो चौथा पहर शुरू हो चुका था और अंत मे तक हारकर मैने डिसाइड किया कि कोई अंदू-गान्डु हरकत नही करनी है एश के सामने बस....
जिस दिन एश ने मुझे आइ लव यू कहा था, उसके बाद कयि दिन तक वो कॉलेज नही आई...वो ना तो मेरे किसी मेस्सेज का जवाब देती थी और ना ही मेरे किसी कॉल का...मैं एश के बारे मे जहाँ से जितना मालूम कर सकता था , सब मालूम किया...लेकिन एश कॉलेज क्यूँ नही आ रही,इसकी जानकारी मुझे कहीं से भी नसीब नही हुई...मैं हर दिन कॉलेज जाते वक़्त पार्किंग मे एश की कार को तलाशता लेकिन उसकी कार उन दिनो पार्किंग मे नही रहती थी,उसके बाद मैं अवधेश को कॉल करता और उससे पुछ्ता कि' एश आज आई है क्या' और वो हर बार यही कहता कि'नही यार, वो तो नही आई...लेकिन दिव्या आई है'
एश पूरे एक हफ्ते कॉलेज से गायब थी और उसका कोई अता-पता नही था...उसके बारे मे सिर्फ़ एक ही ऐसी लड़की थी ,जो मुझे कुच्छ बता सकती थी और वो थी'दिव्या'....लेकिन उससे एश के बारे मे पुच्छना मतलब अपनी गर्दन पर खुद ही छुरि रखने के बराबर था, इसलिए मैने दिव्या से कुच्छ नही पुछा और फिर एक दिन जब मैं कॉलेज की तरफ आ रहा था तो मुझे पार्किंग मे एश अपनी कार से निकलते हुए दिखाई दी....
"एश...."खुशी से मैं अपना एक हाथ हवा मे लहराकार चिल्लाया लेकिन एश ने मुझे फुल तो इग्नोर मारकर मेरे सामने से गेट के अंदर चली गयी...वो तो भला हो कि मैं अकेले था...वरना अरुण ,सौरभ होते तो खम्खा बेज़्ज़ती हो जाती
एश के ऐसे बर्ताव से मुझे गुस्सा तो बहुत आया लेकिन फिर सोचा कि शायद उसका मूड खराब हो...इसलिए मैने खुद्पर काबू किया और कॉलेज के अंदर घुसा...कॉलेज के अंदर घुसते ही मुझे लड़कियो का एक ग्रूप अपनी तरफ आता हुआ दिखा, जो खि-खि करते हुए मेरे सामने से पार हो गयी...
"कोई इज़्ज़त ही नही है यार ,यहाँ तो "जब उस ग्रूप की एक लड़की ने भी मुझे नही देखा तो मैने खुद से कहा और जिस गुस्से को मैने कुच्छ देर पहले काबू मे किया था, वो उफान मारकर बाहर आ गया...जिसका असर ये हुआ कि मैं पीछे मुड़ा और खि-खि करती हुई उन लड़कियो के सामने जाकर खड़ा हो गया.....
"ये क्या खि-खि करते हुए चली जा रही हो तुम सब. कॉलेज मे हो या किसी गार्डन मे घूम रही हो और ये क्या , मैं सामने से निकला तो मुझे 'गुड मॉर्निंग सर' बोलना चाहिए ना..मॅनर्स नही है क्या...चलो सब लाइन मे लगो...अभी बताता हूँ तुम सबको और एक बात, मन मे कोई मुझे गाली नही देगा,जैसा कि ये हरे सलवार-कमीज़ वाली दे रही है....तुम सबको शायद पता नही ,लेकिन मेरे पास कुच्छ अधभूत शक्तिया है,जिससे मैं सामने वाला मन मे क्या सोच रहा है,वो मालूम कर लेता हूँ....दा ग्रेट मेजीशियन अरमान का नाम सुना है ना...वो मैं ही हूँ...अब चुप-चाप,बिना आवाज़ किया सीधे निकल लो ,चलने की आवाज़ तक नही आनी चाहिए..वरना मैं अपने जादू से तुम सबको मुर्गी मे बदल दूँगा और हां अगली बार से यदि मैं कही भी दिखू, यदि मेरी परच्छाई भी दिखे ईवन मेरा फोटो भी दिखे तो हाथ जोड़कर प्रणाम करना....अब चलो,फुट लो इधर से,इसके पहले की महान जादूगर अरमान,अपना जादू दिखाए...हुर्र्रर..."
इसके बाद वो लड़किया वहाँ से ऐसे अपना चेहरा गिराकर गयी,जैसे उनके सेमेस्टर एग्ज़ॅम का रिज़ल्ट आ गया है और सबका ऑल बॅक हो.....
उन लड़कियो को झाड़ने के बाद मेरा मूड कुच्छ ठीक हुआ और मैं अपनी क्लास की तरफ वापस बढ़ा....लेकिन सामने से मुझे यशवंत आता हुआ दिख गया जिससे मेरा गुस्सा वापस उफान मारने लगा.....
यशवंत अपने हाथ मे कोई फॉर्म पकड़े हुए अकेले मेरी तरफ आ रहा था और उसकी नज़र पूरी तरह से उसके फॉर्म मे ही थी....
"सुन बे चुसवान्त..."उसे रोक कर मैं बोला"चल जल्दी से विश कर..."
जवाब मे यशवंत मुझे सिर्फ़ घूरता रहा .
"घूरता क्या है बे,खा जाएगा क्या और ये तेरे हाथ मे क्या है..."उसके हाथ से फॉर्म छीनकर मैं फॉर्म देखने लगा....
यशवंत से मैने जो फॉर्म छीना था वो बॅक एग्ज़ॅम का फॉर्म था और इसी के साथ यशवंत ने मुझे उसकी बेज़्ज़ती करने का मौका दे दिया जिसे भला मैं कैसे हाथ से जाने देता और तो और जब मुझे ये भी मालूम हो कि वो मुझे सिर्फ़ घूर्ने के अलावा कुच्छ नही कर सकता.....
.
"बॅक के फॉर्म भरने जा रहा है..."अपना पेट पकड़कर जबर्जस्ति हँसते हुए मैने कहा"क्या फ़ायदा बे फैल तो तू फिर से ही होगा, फिर क्यूँ माँ-बाप के पैसे बर्बाद कर रहा है और बेटा, कॉलेज के बाहर अपना चूतियापा बंद किया या नही...मुझसे तो बेटा तू बच के रहियो,वरना अपने कॉलेज के मशहूर खूनी ग्राउंड के दर्शन कराउन्गा...अब चल निकल यहाँ से..."बोलते हुए मैने यशवंत का फॉर्म उसके मुँह मे फेक के मारा और क्लास की तरफ प्रस्थान किया.....
.
मशीन-डिज़ाइन के सब्जेक्ट मे एक शब्द आता है 'टिरिंग' ,जिसके कारण कोई भी डिज़ाइन एलिमेंट वहाँ से बहुत जल्दी फैल होता है,जहाँ पर टिरिंग मौज़ूद होती है....एग्ज़ॅंपल के तौर पर एक पेपर एक हाथ मे थामो और दूसरे हाथ मे पेन को धर लो ,फिर उस पेपर को चूत समझकर पेन को उसके अंदर ऐसे घुसाओ,जैसे चूत मे लंड घुसता है और टिरिंग के कारण पेपर का वो पोर्षन कमजोर हो जाता है...ऐसा ही कुच्छ मैं अपने साथ उन दिनो कर रहा था...मैं हर तरफ से हर आंगल से खुद के लिए टिरिंग का निर्माण कर रहा था....उन दिनो मैं खुद को कॉलेज का सुपीरियर समझने लगा था और सोचने लगा था कि मैं जब चाहू,जिसे चाहू चोद सकता हूँ,फिर चाहे वो चुदाई मेरे शब्दो से हो या फिर मेरे हाथ से या फिर मेरे लंड से....
उन दिनो मैं हवा मे उड़ रहा था ,लेकिन शायद मैं भूल गया था कि जो चीज़ उपर जाती है ,वो ग्रॅविटी के कारण नीचे भी आती है.ये मैने फिज़िक्स मे पढ़ा था और कोई भी फिज़िक्स के खिलाफ नही जा सकता.....फिर चाहे वो मैं ही क्यूँ ना हो, यानी कि मुझे एक दिन ज़मीन पर आना ही था.
जिस दिन मैने महंत को ठोका था, उसके अगले दिन हॉस्टिल मे बहुत हंगामा हुआ...महंत मेरे जितना तो फेमस नही था, लेकिन इतना फेमस ज़रूर था कि हॉस्टिल के लड़के उसके लिए मेरे खिलाफ चले जाए...कुच्छ लड़के मेरे खिलाफ खड़े भी हो गये लेकिन सीडार भाई के करीबी होने के कारण मेरे सपोर्ट मे इतने ज़्यादा लड़के खड़े हो गये कि ,महंत,कालिया और उनके दोस्त झान्ट बराबर लगने लगे और मैने उन्हे ऐसे ही इग्नोर कर दिया कि...ये 20-30 लौन्डे मेरा क्या उखाड़ लेंगे.....
.
"दिल नही लग रहा यार क्लास मे ,कुछ टाइम पास करना..."चलती हुई क्लास के बीच मे जब सीसी के फॉर्मुलास हम पर अटॅक कर रहे थे तो अरुण ने मेरी कॉपी मे लिखा"कोई लेटेस्ट जोक सुना ना..."
"मैं फेरवेल मे आंकरिंग करूँगा...."मैने अरुण की कॉपी मे लिखा...
"नोट बॅड...नोट बॅड...और सुना..."
"एश मुझसे पट गयी है..."
"और सुना..."
"उसने खुद मुझे एक हफ्ते पहले प्रपोज़ किया था..."
"ये तो बहुत ही बढ़िया जोक है...जा हॉस्टिल जाकर मेरे पॅंट से चिल्लर पैसे निकाल कर बीड़ी पीने के लिए रख लेना...ऐश कर,तू भी क्या याद रखेगा कि किस दौलतमंद आदमी से पाला पड़ा था...."
|