RE: Desi Sex Kahani दिल दोस्ती और दारू
असलियत मे मैं और मेरी टीम ऐसा कुच्छ भी नही करने वाली थी ,ये तो सिर्फ़ हमारा मॅच जीतने का प्लान था,जो मैने अभी-अभी बनाया था...जिससे सामने वाली टीम के लौन्डे हमारी तरफ डर के मारे ना आ सके....लेकिन मॅच के शुरुआती हालत देखकर मुझे अंदाज़ा हो चला था कि आज तो यहाँ वर्ल्ड वॉर ३र्ड होने वाला है.
कल्लू को डरा हुआ पाकर अरुण ने उससे अपनी पोज़िशन चेंज की और खेल फिर से शुरू हुआ....
मैं फुटबॉल लेकर आगे बढ़ा तो डिफेन्स करने के लिए कल्लू मेरे सामने आ गया और मैने फुटबॉल को मारने के बहाने उसके पैर मे एक किक जड़ दी जिसके बाद वो लन्गडाते हुए सामने से हट गया....अरुण मेरे पीछे था ,इसलिए मैं तूफान की तरह सामने वाली टीम की धज्जिया उड़ाते हुए आगे बढ़ता गया लेकिन मेरे आख़िरी शॉट को उनके गोलकीपर ने रोक लिया....
.
"तुझे बोला था ना बे कालिए कि बीच मे मत आना, लेकिन तू माना नही...अब चूस..."पीछे अपनी टीम की तरफ जाते हुए मैने कल्लू से कहा,जो अपने पैर सहला रहा था....
अरुण की टीम से अरुण ही फुटबॉल को इधर-उधर नचाते हुए हमारी तरफ ला रहा था . अरुण को पेलने का मेरा कोई प्लान नही था लेकिन दिक्कत ये भी थी कि मुझे ढंग से फुटबॉल खेलना भी नही आता था कि मैं उसे बिना चोट पहुचाए उससे फुटबॉल छीन लूँ, इसलिए अरुण को पेलने के बहाने से मैं आगे बढ़ा और सीधे जाकर उसे अपने दोनो हाथो से पकड़ लिया...
"सौराअभ ,फुटबॉल छीन कर आगे बढ़ और यदि कल्लू बीच मे आया तो जूता उतारकर सीधे मुँह मे मारना लवडे के..."चीखते हुए मैने सौरभ को आवाज़ दी....
"ये तो गद्दारी है बे, छोड़ मुझे...ये तो नियम के खिलाफ है"आँखे दिखाते हुए अरुण बोला...
"अच्छा बेटा, आज ये नियम के खिलाफ हो गया...कल तू जब मेरी टीम मे था,तब तो तू ही ऐसे फ़ॉर्मूला यूज़ कर रहा था...."
"कल की बात कुच्छ और थी...आज ये सब नही चलेगा..."
"ऐसे-कैसे नही चलेगा...पापा जी का राज़ है क्या...चल खिसक इधर से..."जब सौरभ ने गोल कर दिया तो अरुण को छोड़ते हुए मैने कहा...
"अब देख बेटा,अरमान अपुन क्या कहर ढाता है..."
कहर ढाने की धमकी देकर अरुण अपनी टीम के पास गया और उनसे कुच्छ बाते करने लगा.हम लोग 1-0 से लीड कर रहे थे,जिसे देखकर अरुण की गान्ड फटने लगी और उसने कल्लू से जाकर कहा कि यदि तुझे कोई मारे तो तू भी उसे मारना....
अरुण की टीम ने लगभग 5 मिनिट तक अपनी प्लॅनिंग बनाई ,जिसके बाद कल्लू एक बार फिर मेरे पास आकर खड़ा हो गया और तो और उनका गोलकीपर भी किक मारने के बाद हमारी तरफ बढ़ा....अरुण की टीम का ये कदम एक तरह से हैरतअंगेज़ कारनामा था और जब तक मैं कुच्छ समझता उसके पहले ही कल्लू ने मुझे ज़ोर से पकड़ कर दीवार से सटा दिया और उधर अरुण ने पीछे से सौरभ की गर्दन पकड़ ली ,जिससे सौरभ अपनी जगह से हिल तक नही पाया....हमारे बाकी दो प्लेयर्स को भी ऐसे ही पकड़ कर गिरा दिया गया और अरुण के टीम के गोलकीपर ने अपने गोल पोस्ट से फुटबॉल लाकर हमारे गोल पोस्ट मे डाल दी
.
"इसकी माँ का...ये तो फुटबॉल के नियम की धज्जिया उड़ा दी बे तुमने...तुम्हारा गोलकीपर कैसे इतना अंदर आ सकता है..."हैरान-परेशन सा कुच्छ सेकेंड्स के लिए मैं जैसे कोमा मे चला गया था...
"अब बोल लवडे अरमान,क्या बोलता है...तुझे लगता है कि सिर्फ़ तू ही एकलौता ऐसा है...जो प्लान बना सकता है...अब तो तू गया काम से..."
अरुण के इन भयंकर वाक़्यो को सुनकर मेरा खून खौल उठा और मैने अपनी टीम के चारो मेंबर को अपने पास बुलाया और उन्हे समझाया कि हमे क्या करना है...हमारे 5 मिनिट के ब्रेक के बाद हमारे प्लान के मुताबिक़ पांडे जी ने फुटबॉल को पैर से किक करने की बजाय हाथ मे पकड़ा और तेज़ी से सामने वाले पाले की तरफ भागा...अब हमारा ये फुटबॉल मॅच फुटबॉल मॅच ना होकर रग्बी मॅच बन गया था, जिसमे बॉल को हाथ मे लेकर भागना होता है...पांडे जी की इस हरक़त से अरुण और उसकी पूरी टीम के होश उड़ गये और वो पांडे जी को रोकने के लिए तुरंत दौड़ पड़े...लेकिन तभिच पांडे जी ने बॉल मेरी तरफ फेका,जिसे मैने बिना देर किया लपक लिया और अरुण की टीम के गोलकेपर को हाथो से घसीट कर फुटबॉल के साथ गोल कर दिया.....
.
"अरुण लंड, अब बोल...कैसा लगा मेरा प्लान...अब तू गया बेटा..."
"अब देख मैं क्या करता हूँ..."बोलकर अरुण ने फिर से अपनी टीम को अपने पास बुलाया और 5 मिनिट तक उनसे डिसकस करता रहा....
.
डिस्कशन के बाद जब गेम शुरू हुआ तो अब फुटबॉल का गेम हॅंडबॉल का गेम बन गया. अरुण और उसके टीम वाले पांडे जी के रग्बी गेम की तरह फुटबॉल को लेकर दौड़े नही बल्कि उन्होने दूर-दूर मे खड़े अपने टीम के लौन्डो को फुटबॉल फेक कर फुटबॉल पास किया और हमारे निकम्मे गोलकीपर सर राजश्री पांडे जी की बदौलत हमने भी दूसरा गोल खा लिया.....जिसके बाद अरुण ने फिर मुझे हेकड़ी दिखाई....
.
मेरे और अरुण की टीम के बीच खेला गया वो फुटबॉल मॅच ,एक फुटबॉल मॅच ना होकर यूनिवर्सल मॅच हो गया था, जिसमे कभी कोई फुटबॉल खेलता ,तो कोई रग्बी खेलता और जिसका दिल करता वो हमारे उस फुटबॉल मॅच को हॅंडबॉल का गेम भी बना देता था. बोले तो ~लंगर~ फुटबॉल मॅच...जिसमे कोई रूल्स नही ,बस फुटबॉल गोल होनी चाहिए ,जिसके लिए चाहे कोई सा भी साम दाम दंड भेद अपनाना पड़े...
.
"अबकी बार गोल होने के बाद जिसके अधिक पॉइंट रहेंगे,वो मॅच जीतेगा...क्या बोलता है..."हान्फते हुए अरुण ने मुझसे कहा...
"ठीक है...ये लास्ट गोल..अब तक का स्कोर बराबर है, इसलिए जो इस बार गोल दागेगा मॅच और 100 उसके..."मैने भी हान्फते हुए कहा..."लेकिन उसके पहले 5 मिनिट का ब्रेक लेते है...क्या बोलता है "
"मैं भी यही सोच रहा था..."
हमारा वो लंगर फुटबॉल मॅच तक़रीबन एक घंटे तक चला ,जिसमे दोनो टीम ने हाथ-पैर से 10-10 गोल दागे थे....इसलिए 5 मिनिट के ब्रेक के बाद जो भी टीम गोल करती वो एक पॉइंट की लीड लेकर विन्नर रहती.
अपने रूम मे आकर मैने पानी का बॉटल खोला और पूरा बॉटल खाली कर दिया....लेकिन तब भी आधी प्यास बाकी थी...मेरे जैसा हाल वहाँ बैठे अरुण, सौरभ ,पांडे जी और उन सभी का था जो मॅच खेल रहे थे....पांडे जी इतने थक गये कि ज़ोर-ज़ोर से हान्फते हुए ज़मीन पर औधे लेट गये और बोले की 'अरमान भाई...अब मेरे मे हिम्मत नही बची है...आप संभाल लो...'
'एक तो गया काम से...सौरभ तेरे मे कुच्छ दम बाकी है या तू भी तेल लेने जाएगा..."
"मैं खेलूँगा...."
"चल फिर बाहर आ, प्लान बनाते है..."
पांडे जी को वही ज़मीन मे छोड़ कर मैं, सौरभ और बाकी दो के साथ बाहर आया और प्लान बनाने लगा....
आख़िरी गोल हमारी तरफ हुआ था, इसलिए फुटबॉल लेकर हमलोग मॅच स्टार्ट करने वाले थे...जब अरुण की टीम सामने तैनात हो गयी तो मैने सौरभ को उनके बीच भेजा और अपने टीम के एक लौन्डे के हाथ मे फुटबॉल देकर रग्बी वाले गेम की तरह भागने के लिए कहा....उस लौन्डे ने ठीक वैसा ही किया लेकिन हाफ पिच पर अरुण ने मेरी टीम के उस लौन्डे को पकड़ लिया जिसके तुरंत बाद प्लान के मुताबिक़ सौरभ, जो पीछे खड़ा था...उसने अरुण की गर्दन को ठीक वैसे ही दबोच लिया ,जैसे की अरुण ने पहले सौरभ की गर्दन को दबोचा था....
अरुण की टीम का गोलकीपर अबकी बार अपनी ही जगह पर खड़ा रहा लेकिन अरुण को सौरभ के चंगुल से छुड़ाने के लिए कालिया आगे आया और तभिच मैने अपना बदला पूरा करने के उद्देश्य से घुमा कर एक लात कालिए को दे मारी और कालिया सीधे दीवार से जा भिड़ा ,जिसके बाद दीवार ने सर आइज़ॅक न्यूटन के थर्ड लॉ का पालन करते हुए कालिए को नीचे ज़मीन पर गिरा दिया....
"मुझसे भिड़ता है बोसे ड्के..अब जा के इलाज़ करवा लेना..."कालिए के शरीर को जगह-जगह से तोड़ने के बाद मैने उससे कहा....
अरुण को सौरभ ने फँसा रखा था और कालिया नीचे ज़मीन पर लेटा कराह रहा था. अब अरुण की टीम मे सिर्फ़ दो लोग बचे थे और वो दोनो गोल पोस्ट मे जाकर अपना हाथ फैला कर खड़े हो गये....
"तुम दोनो को मालूम नही क्या कि मैं बॅस्केटबॉल मे माहिर हूँ...बेटा जब मैं उस छोटे से छेद मे(रिंग) बॅस्केटबॉल घुसा देता हूँ तो फिर यहाँ मुझे गोल करने से कैसे रोकोगे बे..."
मेरा इतना कॉन्फिडेन्स देखकर उन लड़को का डर और भी बढ़ गया और वो दोनो अपने दोनो हाथ फैला कर एक-दूसरे के बगल मे खड़े हो गये....
|