RE: Desi Sex Kahani दिल दोस्ती और दारू
"क्यूँ ? "
"क्यूंकी तब मैं तेरे सारे कॉपी-किताब को बेचकर मस्त पैसे बनाता...तेरे कपड़ो से मैं अपना रूम सॉफ करता...खामख़ाँ ज़िंदा हो गया बे तू "
"चल छोड़ ये सब और ये बता कि बड़े भैया ने ये क्यूँ कहा कि मैं मोम-डॅड से कुच्छ ना कहूँ..."
"क्यूंकी बड़े भैया ने सबको यही बता के रखा है कि तेरा आक्सिडेंट एक ट्रक के साथ हो गया था...."
"क्या यहाँ के डॉक्टर्स इतने काबिल है जो इन्हे मेरा इलाज़ करते वक़्त मालूम नही चला कि मेरा आक्सिडेंट नही बल्कि जोरदार ठुकाई हुई है "
"डॉक्टर्स को सब पता है लेकिन बड़े भैया ने बात दबा ली और तू भी बात दबा लेना....चोदु की तरह सब उगल मत देना...समझा..."
"ओके, बेबी..."
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बड़े भैया ने मेरा काम आसान कर दिया था क्यूंकी अब मुझसे कोई नही पुछने वाला था कि मुझे किसने मारा और क्यूँ मारा....साथ ही साथ इससे मेरी इज़्ज़त भी बच रही थी, क्यूंकी आक्सिडेंट तो आए दिन होते रहते है .इसमे कोई बड़ी बात नही थी....अरुण थोड़ी देर तक और मेरे साथ रहा और फिर वहाँ से चला गया .अरुण के जाने के बाद मेरे मोम-डॅड ने एंट्री मारी और मुझे और भी ज़्यादा एमोशनल कर दिया....उनके बाद मुझसे मिलने के लिए जैसे पूरी इंडिया की पब्लिक ही आ गयी ...एक जाता नही कि दूसरा इसके पहले ही पहुच जाता...मुझसे मिलने-जुलने वालो को मुझसे बात करने के लिए सॉफ मना किया गया था...मुझसे मिलने मेरे लगभग सारे रिलेटिव्स आए थे और उन्होने जब अंदर आकर मेरा हाल चाल पुछ लिया तो फिर मेरे दोस्तो क जमावड़ा लगना शुरू हो गया...वरुण, नवीन,सुलभ,सौरभ,अमर सर ईवन अपना भोपु भू तक मुझसे मिलने आया था, इतने लोगो को एक साथ देखकर सीना जैसे गर्व से चौड़ा हो गया था और ऐसे लगा जैसे कि बस कुच्छ ही देर मे मैं एक दम से ठीक हो जाउन्गा....लेकिन सच तो इससे कोसो दूर था.कुच्छ सच ऐसे थे जिसे मैं पहले से जानता था और कुच्छ सच ऐसे थे जिन्हे जानना बाकी थी...
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सबसे मिलने के बाद मैं थक हार कर अपने 2.2 एक्स 1 एक्स 0.7 मीटर के बेड पर एक हाथ से सर सहलाते हुए एक नर्स को आवाज़ दिया क्यूंकी मेरा सर अब हल्का-हल्का दर्द कर रहा था...मैने नर्स को अपने सर के दर्द के बारे मे बताया जिसके बाद उसने मुझे एक लाल कलर की टॅबलेट दी
"पानी किधर है..."
"इसे मुँह मे रख कर चूसना है.."
"क्या "
"सीधे से मुँह मे रखो और चूस्ते रहो..."
"ओके..."(लवडी ये तेरे निपल्स नही है जो चूस्ता रहूं, ये टॅबलेट है...जो कड़वी होती है..)
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उस लाल कलर की टॅबलेट को मुँह मे रखने के बाद मैने चूसना शुरू ही किया था कि मेरे मुँह का पूरा टेस्ट बदल गया और मैने टॅबलेट निकाल कर हाथ मे पकड़ लिया ताकि मौका देखकर चौका मार सकूँ,,.लेकिन थोड़ी देर बाद मुझे ध्यान आया कि इधर तो कोई मौका ही नही है...ये आइसीयू था ,जहाँ धूल का एक कण भी नही था ऐसे मे टॅबलेट को उधर फेकना मतलब खुद के गले मे फंदा डालना था....फिर मैने सोचा कि क्यूँ ना टॅबलेट को बिस्तर के नीचे छिपा दूं ,लेकिन तभिच मेरे भेजे ने मुझे ऐसा करने से रोक दिया और बोला कि यदि मैने ऐसा करने की कोशिश भी की तो वो भयानक मशीन फिर से अपना राग अलापना शुरू कर देगी...तब मुझे अरुण का ध्यान आया कि अभी टॅबलेट को इधर ही कही छिपा देता हूँ और जब अरुण आएगा तो उसे देकर बाहर फिकवा दूँगा...कितना होशियार हूँ मैं
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उस दिन रात को मेरी आँखो से नींद गायब थी क्यूंकी रह-रह कर मुझे दीपिका और नौशाद के करतूत याद आ रहे थे...नौशाद का तो फिर भी समझ मे आता है लेकिन दीपिका ने मुझे क्यूँ फँसाया ? और गौतम के बाप के साथ उसका क्या रिश्ता है ? ये मेरे समझ से परे था...लेकिन इस समय मेरे अंदर एक चीज़ नौशाद और दीपिका के लिए एकदम सेम और ईक्वल थी और वो थी मेरा गुस्सा ,उन दोनो से मेरे बदला लेने की चाहत. मुझे मालूम था कि इस वक़्त जैसे मैं उनके बारे मे सोच रहा हूँ वैसे वो भी मेरे ही बारे मे सोच रहे होंगे आंड अकॉरडिंग टू माइ सिक्स्त सेन्स ,उन दोनो की गान्ड बुरी तरह से फट चुकी होगी क्यूंकी उन दोनो ने ही ये सोचा था कि मैं ज़िंदा नही बचूँगा...लेकिन हुआ ठीक उल्टा ...
कुच्छ और भी चीज़े मेरी ज़िंदगी मे उल्टी हो चुकी थी जिसका मुझे अंदाज़ा नही था....मैं हॉस्पिटल मे हर दिन सुबह उठता ,कुच्छ ख़ाता-पीता और फिर सो जाता...दोपहर मे मैं फिर उठता ,फिर कुच्छ ख़ाता-पीता और सो जाता...उसके बाद मैं डाइरेक्ट शाम को उठकर दिन की आख़िरी खुराक लेकर फिर से सो जाता था.....हॉस्पिटल मे मेरे दिन ऐसे ही बीत रहे थे कि मुझे एक दिल को चीर देने वाली बात पता चली...
इस समय अरुण मेरे साथ बैठा बक्चोदि कर रहा था कि मैने उससे पुछा....
"अबे आज तारीख क्या है..."
"उम्म...मेरे ख़याल से आज 26 होना चाहिए..." अंदाज़ा लगाते हुए अरुण ने कहा..
"बक्चोद है क्या 25 अक्टोबर को तो ये कांड हुआ था जब मैं घर जा रहा था...मेरे ख़याल से आज 2-3 नवेंबर होगा...क्यूँ ?
"अरुण को देखकर मैने सोचते हुए कहा"साला 28 नवेंबर से एग्ज़ॅम है थर्ड सेमेस्टर के और मैं यहाँ बेड पर लेटा हुआ हूँ"
"अरमान...."
"हां बोल.."
"एग्ज़ॅम ख़तम हो चुके है और आज 26 डिसेंबर है, तू लगभग 2 महीने तक कोमा मे रहा था...."
"ये तो मुझे भी मालूम था कि तू 2 महीने तक कोमा मे था...लेकिन मुझे ये नही मालूम था कि तेरा ट्रक के साथ आक्सिडेंट नही बल्कि गौतम के बाप के कहने पर तेरी ठुकाई हुई थी....इन शॉर्ट मुझे तो तूने एश और गौतम के बारे मे कभी बताया ही नही था...."वरुण बोला...
"विपिन भैया ने सिचुयेशन हॅंडल कर लिया था...वो नही चाहते थे कि मोम-डॅड को मेरी लड़ाई के बारे मे पता चले...."
"बहुत बड़े-बड़े झंडे गाढ़े है भाई तूने तेरी कॉलेज लाइफ मे..."
"एक मिनिट रुक..."मैं वहाँ से उठा और अरुण का मोबाइल माँगा ,ताकि निशा को कॉल करके उसके डॅड का हाल-चाल जान सकूँ....निशा को कॉल करने की एक और वजह ये भी थी कि मुझे अब कुच्छ बेचैनी सी महसूस हो रही थी और ऐसी सिचुयेशन मे एक लड़की जो आपके दिल के करीब हो वो कुच्छ ऐसा कर जाती है कि दिल को सुकून सा मिलता है....
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"अब क्या हालत है..."
"मैं ठीक हूँ,मुझे क्या हुआ है..."
"तेरे बारे मे नही तेरे बाप...सॉरी अंकल जी के बारे मे पुच्छ रहा हूँ..."
"वो भी एक दम ठीक है,शाम तक लीव मिल जाएगी..."
"सेक्स करेगी,बहुत मन हो रहा है..."ऐसा मैने जान बूझकर कहा ताकि निशा मुझे फटकारे जिससे मुझे थोड़ा सुकून मिले....
"एक्सपाइरी मेडिसिन मेरे डॅड ने खाई लेकिन लगता है असर तुम्हारे उपर हो रहा है....ये कोई वक़्त है ये सब बात करने का...तुम्हारे अंदर ज़रा सी भी इंसानियत और समझ नही है क्या जो सेक्स करने को कह रहे हो...इधर मेरे डॅड तुम्हारी वजह से बीमार पड़े है,मेरी माँ उदास है और तुम सेक्स करने को कह रहे हो...बाय्स आर ऑल्वेज़......"
"हेलो...हेलो...निशा,लगता है कि नेटवर्क खराब है...तुम्हारी आवाज़ सुनाई नही दे रही है..मैं बाद मे कॉल करता हूँ..."बोलते हुए मैने कॉल डिसकनेक्ट कर दिया और एक लंबी साँस लेकर वापस बैठ गया.....
"ले बे अरुण ,अपना मोबाइल थाम और बेटा यदि निशा की कॉल आए तो खुद को अरमान बताकर उससे मत भिड़ जाना...समझा"फिर मैने वरुण से कहा"हां बोल ,तू क्या बोल रहा था..."
"अरमान ,मैं ये बोल रहा था कि तूने कॉलेज लाइफ मे बहुत सारे झंडे गाढ़े और गढ़वाए है....मैं भी ऐसी ही कॉलेज लाइफ जीना चाहता था...जिसमे हरदम ट्विस्ट आंड टर्न हो...एश जैसी एक लड़की हो ,जिसे पाने की चाहत हो लेकिन रास्ते मे उसका प्रेमी और उस प्रेमी का गुंडा बाप खड़ा हो...थोड़ा फाइट-साइट हो...लेकिन अपुन अपनी कॉलेज लाइफ मे ऐसा कुच्छ नही कर पाया ,मेरी कॉलेज लाइफ तो एक दम बोरिंग बीती है ,इतनी बोरिंग कि यदि मैं तुम लोगो को सुनाना चालू करू तो तुम दोनो बेहोश होकर कोमा मे चले जाओगे...."
"हम इंजिनीयर्स की बात ही कुच्छ और है.क्यूँ बे अरमान "अरुण गर्व से बोला...
"यस... "
"उसके बाद क्या हुआ...मतलब कि तूने दीपिका और नौशाद से बदला लिया या नही...."
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"एग्ज़ॅम ख़तम हो चुके है और आज 26 डिसेंबर है, तू लगभग 2 महीने तक कोमा मे रहा था...."
ये सुनकर ना तो मेरा मुँह खुला और ना ही मेरी आँखे शॉक्ड होकर बड़ी हुई,जैसा कि मेरे चौकने के दौरान मेरे साथ होता था...मैं दो महीने कोमा मे था,ये जानकार मैं बाहर से नॉर्मल था मतलब कि मैं ठीक उसी तरह 2.2 एक्स 1 एक्स 0.7 एम के बेड पर लेटा हुआ था,जैसे कि पिछले कयि दिनो से था....मैं बाहर से भले ही नॉर्मल दिख रहा था लेकिन मेरे अंदर एक भूचाल सा आ गया था उस वक़्त...मुझे ऐसा लगा जैसे मेरे सर पर फिर से किसी ने रोड दे मारा हो...मेरा सर इस समय ठीक उसी तरह झन्ना रहा था...उस वक़्त मेरी हालत ऐसी थी जैसे की अभी-अभी किसी ने मेरे सर के बाल को ,जो की नही थे, पकड़ कर ज़ोर से खींचा हो और मैं ,मेरे सर के बाल खीचने वाले को चुप-चाप देखने के सिवाय और कुच्छ नही कर सकता...इस बीच मेरे बॉडी से कनेक्टेड मशीन्स अपना राग आलाप रही थी , और उस समय मुझे सिर्फ़ उन मशीन्स की आवाज़ मुझे सुनाई दे रही थी....
"सच मे मैं दो महीने तक कोमा मे था या तू मज़ाक कर रहा है..."दूसरी तरफ देख कर मैने अरुण से पुछा...
"हां यार..."
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जब कुच्छ दिनो पहले मुझे होश आया था तो अपने शरीर के ज़ख़्मो को देखकर मैने ये सोचा था कि मैं कितना स्ट्रॉंग हूँ,जो इतनी पेलाइ के बाद भी मेरे हाथ-पैर लगभग सही सलामत है...मैने ये सोचा था कि उन एमकेएल गुन्डो मे शायद उतना दम नही था कि वो मुझे अपंग बना सके...लेकिन सच ये था कि मैं उस दिन बहुत बुरे तरीके से उनके फंदे मे फँसा था क्यूंकी दो महीने बाद भी मेरे पैर पर कयि ज़ख़्म हरे थे और एक हाथ मे प्लास्टर चढ़ा हुआ था...कमर और पीठ भी किसी चीज़ से बाँध के रखी गयी थी....लेकिन यहाँ समस्या ये नही थी कि उन्होने मुझे इतनी बुरी तरह से मारा बल्कि यहाँ समस्या ये थी कि थर्ड सेमेस्टर के एग्ज़ॅम मैं नही दे पाया मतलब कि इस सेमेस्टर मे मुझे पूरा एक साल का पढ़ना होगा...और तो और मैं एक-दो महीने बाद ही यहाँ से डिसचार्ज होने वाला था तो मेरे पास अब कुल मिलकर 4-5 महीने ही बाकी थे,जिनमे मुझे एक साल का पूरा पढ़ना था....मैं बहुत देर तक शांत रहा और फिर अरुण से बिना कुच्छ बोले सो गया...सोते वक़्त मुझे कयि सपने भी आए और वो सारे सपने एग्ज़ॅम हॉल के थे...मैने सपने मे देखा कि मैं एग्ज़ॅम हॉल मे गुम्सुम सा अपनी सीट पर बैठा कुच्छ सोच रहा हूँ...वक़्त निकलते जा रहा है,लेकिन मैं हूँ कि बिना कुच्छ लिखे ना जाने किन ख़यालो मे खोया हुआ हूँ....और फिर अचानक किसी ने मेरे कान मे ज़ोर से चिल्लाया कि "तू फैल हो गया है...तू मरने वाला है..."
उस आवाज़ ने मुझे बुरी तरह डरा दिया और मैने जब उस आवाज़ की तरफ अपना रुख़ किया तो अपने उसी दोस्त को वहाँ खड़े हुए पाया,जिसकी मौत का सपना मैने अपने स्कूल मे देखा था....
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"अरमान..."किसी ने मुझे पकड़ कर ज़ोर से हिलाया...
"भैया...."हान्फते हुए मैने आँखे खोली और विपिन भैया को सामने देखकर राहत की साँस ली...
"क्या हुआ...तबीयत तो सही है..."
"हां...सब सही है...बस गर्मी कुच्छ ज़्यादा लग रही थी..."अपने माथे के पसीने को सॉफ करते हुए मैं बोला"अभी टाइम क्या हुआ है..."
"रात के 9 बज रहे है, खाना लाया हूँ तेरे लिए....ले खा ले..."बोलते हुए भैया ने टिफिन खोला...
"मम्मी,पापा कहाँ है..."
"कुच्छ दिन के लिए घर गये है...दो तीन दिन मे वापस आ जाएँगे..."
"आइ आम रियली सॉरी ,भैया..."जब मैने खाना खा लिया तो बोला...
लेकिन विपिन भैया ने कुच्छ नही कहा ,वो कुच्छ देर तक मुझे देखते रहे और फिर वहाँ से चले गये....
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दोपहर की लंबी नींद के बाद अब नींद मेरी आँखो से कोसो दूर थी, उस सपने को तो मैं भूल चुका था...लेकिन लाख कोशिशो के बावजूद ये बात मेरे जेहन से नही उतर रही थी कि मैने थर्ड सें का एग्ज़ॅम मिस कर दिया है...मुझे नौशाद और दीपिका मॅम पर एक बार फिर से गुस्सा आया और दिल किया कि वेमपाइर बनकर उन दोनो को काट डालु,क्यूंकी वो दोनो ही मुझे इस हालत मे पहुचने के ज़िम्मेदार थे....
"साला कितनी अच्छी लाइफ चल रही थी लेकिन अरुण के एक किस ने सब कुच्छ ख़तम कर दिया, यदि मैं उस दिन गौतम को नही मरता तो ये नौबत ही नही आती..."
"नींद नही आ रही है क्या...."मेरे सिरहाने के पास खड़े होकर उस नर्स ने मुझसे पुछा ,जिसने मुझे कल सुई लगाई थी...
"मैं ठीक कितने दिन मे हो जाउन्गा..."
"दिन नही ,महीने बोलो...कुच्छ महीने लगेंगे ठीक होने मे..."
"अंदाज़न बता सकती हो कि कितने महीने लगेंगे..."
"आप अभी सो जाओ , कल सुबह डॉक्टर से पुच्छ लेना...."बोलकर वो आगे बढ़ गयी....
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मुझसे अब भी हर दिन बहुत से लोग मिलने आते रहते , कुच्छ मेरी फिक्र की वजह से आते थे तो कुच्छ बस फॉरमॅलिटी निभाने के लिए...अभी तक मेरा इस तरफ ध्यान नही गया था लेकिन अचानक ही मेरा ध्यान एमटीएल भाई की तरफ गया तो मैं थोड़ा हैरान हो गया क्यूंकी जहाँ तक मुझे याद है एमटीएल भाई मुझे देखने,मेरा हाल-चाल पुछने के लिए एक बार भी हॉस्पिटल नही आए थे...जो अपने आप मे ही एक चौकाने वाली बात थी...मैं अपने 1400 ग्राम के दिमाग़ को फ्लश बॅक मे ले गया ये कन्फर्म करने के लिए की क्या सच मे सीडार मुझसे मिलने नही आया या फिर वो मुझसे मिलने आया था,लेकिन अब मुझे याद नही है....
"पांडे अंकल,वर्मा जी,शर्मा जी,मॅतमॅटिक्स वाले सक्सेना सर, दीक्षित सर,वरुण,भू,नवीन, सुलभ,सौरभ,अमर सर, क्लास के सभी लड़के-लड़किया...विपिन भैया के कयि दोस्त....जब ये सब मुझे याद है तो फिर सीडार क्यूँ याद नही है...नाउ आइ आम स्योर कि एमटीएल भाई अभी तक मुझसे मिलने नही आए है....शायद घर मे होंगे ,"मैने ऐसा अंदाज़ा लगाया...लेकिन अपने सामने बैठे अरुण से पुच्छ ही बैठा कि सीडार अभी तक आया क्यूँ नही....
"क..क्या बोला तूने..."
"हकला क्यूँ रहा है..मैने पुछा कि सीडार अभी तक आया नही..."
"आया था ना, तुझे याद नही होगा..."
"सच ...क्या मुझे सच मे ये याद नही है कि एमटीएल भाई मुझसे मिलने आए भी थे या नही..."
"आए थे ना..."अपने सूखे होंठो को दांतो से दबाते हुए अरुण ने कहा....
ऐसा बोलते वक़्त वो कभी उपर देखता तो कभी नीचे,कभी दाए देखता तो कभी बाए...उसने बात को टालने के लिए मुझसे मेरे घाव के बारे मे पुच्छना शुरू कर दिया...लेकिन उसकी इस हरकत से मुझे ये हवा लग गयी थी ,लौंडा झूठ बोल रहा है....
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"अरुण, तू तो मेरे साथ हमेशा रहता है तो क्या तुझे ये नही मालूम कि मुझे हमे रिक्षन के बारे मे थोड़ी-बहुत जानकारी है...तेरे हाव-भाव से सॉफ मालूम चल रहा है कि तू झूठ बोल रहा है....खैर कोई बात नही ,आइसीयू से जाने के बाद एमटीएल भाई को कॉल करके बोल देना कि अरमान उन्हे पुच्छ रहा था...."
"ठीक है...ठीक है...मैं बोल दूँगा, मैं बोल दूँगा...."
"तेरे स्पीकर से एक ही लाइन दो-दो बार क्यूँ निकल रही है...मैने कहा ना कोई बात नही..."
"अरमान...आक्च्युयली बात ये है कि...."अपने होंठ को अपने दाँत से चबाते हुए अरुण ने मेरी आँखो मे देखा और कुच्छ बोलकर अपनी आँखे बंद कर ली....
अरुण ने जो कुच्छ भी कहा था वो मेरे कान को गरम लोहे की रोड की तरह भेदता हुआ मेरे कानो से पार हो गया....दिल के धड़कनो की रफ़्तार हद से ज़्यादा तेज़ हो गयी जिसकी वजह से मेरे बॉडी से कनेक्टेड मशीनो ने एक बार फिर अपना राग अलापना शुरू कर दिया था...आइसीयू के उस एर कंडीशनर रूम मे भी मेरा पूरा शरीर एक पल मे बहुत ज़्यादा गरम हो गया और मेरा दिमाग़ फिर से झन्ना उठा और मैने एक बार फिर से अरुण के कहे शब्दो को महसूस किया....
"सीडार भाई ,अब ज़िंदा नही है...दो दिन पहले उनकी एक आक्सिडेंट मे मौत हो चुकी है..."
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