RE: Desi Sex Kahani दिल दोस्ती और दारू
मैं जानता था कि गौतम एक सॉलिड प्लेयर है लेकिन उसकी बात का जवाब देना ही था...बॅस्केटबॉल कोर्ट के अंदर ना सही बातो मे ही ठोक दो,मैने आगे कहा......
"तुझ जैसे को तो मैं बेंच प्लेयर के रूप मे भी सेलेक्ट नही करता..."
"तैयार हो जा अब तू..."गुस्से से तिलमिलाते हुए उसने कहा और अपने साथी प्लेयर्स के पास जाकर डिस्कशन करने लगा...
इधर हमारे मॅच मे ब्रेक हुआ था तो वही कॉलेज की भी छुट्टी हो चुकी थी और लगभग सभी स्टूडेंट्स बॅस्केटबॉल ग्राउंड मे आकर अपनी-अपनी पसंदीदा टीम को सपोर्ट कर रहे थे...और उसी दौरान ग्राउंड से थोड़ी दूर मे मुझे अरुण और नवीन आते हुए दिखे...
"क्या स्कोर है बे अरमान..."
"26-46"
"क्या हम लोग ट्वेंटी पायंट्स से लीड कर रहे है "
"आजा अब तू भी बचा कूचा भेजा खा ले...लवडे उनके 46 पायंट्स है और हमारे 26 "
"लेकिन तू तो खुद को नॅशनल प्लेयर बता रहा था..."
"कॉलेज के बेकार अट्मॉस्फियर की वजह से मुझे जंग लग चुका है..."
"तो जा...हिला के आ ,एक दम रिलॅक्स होकर मॅच खेलने का...और जब अपुन किसी टेन्षन मे रह ले होता है तो यहिच करता है..."बोलते हुए अरुण ने नवीन का हाथ पकड़ लिया"किधर काट रे ले हो अंकिल..."
"ये जो सिटी वाले सीनियर्स है ना वो अक्सर मेरे काम आते रहते है इसलिए मैं उनकी तरफ जा रहा हूँ..."
"मतलब तू हमारी टीम को सपोर्ट ना करके गौतम की टीम को सपोर्ट करेगा..."
"उम्म...हां"
"मैं तो भूल गया था कि तू उनका चेला है..."नवीन का हाथ छोड़ कर धमकी देते हुए अरुण बोला"चल कट ले इधर से और यदि ग़लती से भी इधर दोबारा दिखा तो मर्डर हो जाएगा..."
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मॅच फिर से शुरू हुआ....एक बहुत पुरानी थियरी है कि एवेरितिंग ईज़ फेर इन लव आंड वॉर....वॉर तो गौतम से थी और साथ मे एश से लव भी था,इसीलिए मैने बॅस्केटबॉल कोर्ट के बाहर गौतम की बेज़्जती की थी,जिससे वो गेम के दौरान सिर्फ़ मुझ तक ही सिमट कर रह जाए ,मतलब कि वो सिर्फ़ मुझे ध्यान मे रख कर खेले....
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ये सामने वाली टीम को हराने का बेहतरीन फ़ॉर्मूला है एसजीएफआइ तक के मेरे सफ़र मे कयि बार मैने इस फ़ॉर्मूला को एक दम फिट बैठते देखा है, सिंप्ली यदि कहे तो मैं गौतम को इस कदर भड़काना चाहता था कि वो मेरी पूरी टीम से नज़र हटा कर सिर्फ़ मुझे रोकने की कोशिश करे...लेकिन इसकी कोई गॅरेंटी नही थू कि ऐसा ही होगा....क्या पता वो भड़क कर और तेज़ी के साथ खेलकर हमारा खेल ही बिगाड़ दे...
अब सिर्फ़ 20 मिनिट्स ही बचे थे,जब मेरी सोच मुझ पर ही भारी पड़ गयी,गौतम एक दम गुस्से के साथ खेलते हुए 2 बार बास्केट कर चुका था....
"तुम चारो मे से एमवीपी प्लेयर कौन है..."मैने अपने साथी खिलाड़ियो से पुछा...
"एमवीपी मतलब..."
"एमवीपी मतलब मोस्ट वेलूवाल प्लेयर..."
"आइ थिंक मैं इन चारो मे सबसे अच्छा खेलता हूँ..."एक सीनियर ने अपना हाथ खड़ा किया,जिसका नाम अमर था...
"उनकी टीम से सेंटर पर एक चूतिया खड़ा है,आप वहाँ जाकर उसको कवर करना,गौतम को मैं संभाल लूँगा..."
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मैने बॅस्केटबॉल हाथ मे ली और ड्रिब्ब्ल करते हुए आगे बढ़ा और जैसा कि मुझे उम्मीद थी,गौतम मेरा वे ब्लॉक करने आया और मैने तुरंत बॉल सेंटर पर खड़े अमर को पास की और उन्होने तुरंत बॉल झपट कर बॅकबोर्ड की तरफ फेका और एक शानदार बॅंक शॉट !!!
इस शॉट ने हमे जोश मे ला दिया था, क्यूंकी मेरे इस प्लान के कामयाब होने का मतलब था कि मैं अपने डीडीजी फ़ॉर्मूला को आगे यूज़ कर सकता था....इसके बाद दो और बॅंक शॉट अमर सर ने मारा...मतलब कि बॉल बॅकबोर्ड्स से टकरा कर रिंग के अंदर चली गयी और स्कोर 32-50 पर जाकर अटक गया....
"अब तुम सब मिलकर एक काम करना...तुम लोग बस बॅस्केटबॉल मुझे पास कर देना...."लंबी-लंबी साँस भरते हुए मैने कहा...
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मैं अपनी हर सोच मे कामयाब नही हो सकता था और अपने साथी खिलाड़ियो पर पूरा भरोसा भी नही कर सकता था और बिना पूरे भरोसे की मैं डीडीजी रूल भी अप्लाइ नही कर सकता था...लेकिन मुझे ये मॅच जीतना था...हमारे इस तरह से अचानक फॉर्म मे लौटने के कारण हॉस्टिल वालो मे उम्मीद की किरण जागी और वो कलेजा फाड़ कर चिल्लाने लगे...और अरुण अपने साथी लौन्डो के साथ मिलकर मेरा नाम चिल्ला रहा था बोले तो...ग्राउंड मे इस वक़्त अरमान..नाम गूँज रहा था.....
कॉलेज की लगभग सभी माल सिटी वालो की तरफ थी और अभी शुरू हुए हॉस्टिल के लौन्डो की हुड-दन्गि से वो सब चुप हो गयी थी और गाल फूला कर कभी मेरी तरफ देखती तो कभी हॉस्टिल के लौन्डो की तरफ.....
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क्यूंकी मुझे ये मॅच जीतना था इसलिए मैने हाफ-कोर्ट से ही बास्केट करने का सोचा लेकिन मैं डर भी रहा था क्यूंकी हाफ-कोर्ट से बास्केट करने की मेरी प्रॅक्टीस छूट चुकी थी और इसी उलझन मे एक ने मेरे कहे अनुसार बॉल मुझे पास की और मैने हाफ-कोर्ट से बास्केट करने का अपना मूड चेंज किया और आगे बढ़ते हुए एक जंप-शॉट मारा जिससे बॉल डाइरेक्ट रिंग के आर-पार हो गयी....
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गेम अब पलट रहा था ,इस बीच गौतम की टीम ने भी बास्केट किया और वो वक़्त आया जब डीडीजी रूल मुझे लगाना ही पड़ा, रेफरी ने इशारे से बताया कि अब सिर्फ़ 5 मिनिट्स ही बचे है और स्कोर उस समय 40-52 था....
"मुझे बोनस पॉइंट लेना ही होगा,लेकिन इतने दिन के गॅप के बाद आइ आम नोट श्योर कि मैं लोंग डिस्टेन्स से बॅस्केटबॉल को रिंग के आर-पार कर दूँगा,...खैर कोई रास्ता भी तो नही है, नाउ टाइम टू यूज़ डीडीजी अप्लिकेशन..."
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कोर्ट के वीक साइड मे जिधर बॅस्केटबॉल नही जाती उधर मैने अमर सिर को लगाया जैसे कुछ देर पहले उन्हे सेंटर पर लगाया था और अपने टीम के शूटर को हिदायत दी थी कि उसका काम फुर्ती से सामने वाली टीम के बॅकबोर्ड के पास पहुचना है,क्यूंकी यदि अमर सर से बास्केट करने मे कोई चूक हो जाती है तो शूटर बॅस्केटबॉल झपट कर रिंग मे डाल दे...
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मेरे हाथ मे ग्रिप बनने लगी थी और जिसका नतीजा ये हुआ कि गौतम और उसकी पूरी टीम मेरे सामने नौसीखिया लगने लगी थी...मैने बॉल वीक साइड मे खड़े सीनियर को पास की क्यूंकी द्दग फ़ॉर्मूला का फर्स्ट स्टेप लागू हो चुका था...मैने जैसे ही वीक साइड मे खड़े अमर सर को बॉल पास की उन्होने डाइरेक्ट बास्केट करके 2 पायंट्स हमे दिला दिए....
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इस बार 2 पायंट्स मिलने के बाद तो हॉस्टिल के कुच्छ लौन्डे खुशी से नाचने लगे और कुच्छ लड़कियो को चिढ़ाने लगे...तो कुछ एक दो लड़की को गाली भी देने लगे गौतम का गुस्से से बुरा हाल था क्यूंकी उसकी ड्रिब्बलिंग को मैं बड़ी आसानी से तोड़ देता था...इसी बीच मैने एश को देखकर आँख भी मारी
गुस्से से तमतमाया हुआ गौतम बॅस्केटबॉल को लेकर हमारी साइड बढ़ा लेकिन इस बार भी मैने उसके हाथ से बॉल को लेकर बॅस्केटबॉल कोर्ट के वीक साइड मे खड़े अमर सर को बॉल पास और उन्होने बॉल को रिंग की तरफ उछाला लेकिन बॉल बॅकबोर्ड से टकरा कर नीचे गिरने वाली थी कि हमारे टीम के शूटर ने जिसे मैने वहाँ पहुचने के लिए कहा था उसने जंप मारकर एक जंप शॉट ठोक दिया
इसके बाद तो हॉस्टिल के लड़को ने तबाही मचा दी,ग्राउंड के पास रखी हुई चेयर्स को ज़मीन मे औधा लिटा दिया ,कुच्छ ने अपनी खुशी व्यक्त करने के लिए ग्राउंड के बॅस लगे पौधो को तोड़ डाला....साले जानवर कही के
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डीडीजी का फर्स्ट स्टेप कामयाब रहा था और साथ मे गौतम की टीम भी समझ गयी थी कि हम क्या कर रहे है और यदि मेरे हिसाब से देखा जाए तो मैं यही चाहता था कि वो हमारा खेल जान जाए...क्यूंकी जब तक फर्स्ट स्टेप फैल नही होता ,डीडीजी फ़ॉर्मूला का सेकेंड स्टेप यूज़ नही कर सकते...
गौतम और उसकी टीम ने सोचा कि मैं एक बार फिर से बॅस्केटबॉल अमर सर को पास करूँगा लेकिन वो ग़लत थे...मैं तो गौतम को बस अपने रास्ते से हटाना चाहता था और जब गौतम वीक साइड मे खड़े अमर सर को कवर कर रहा था तो मैं ड्रिब्बलिंग करते हुए बॉल को सीधे रिंग मे डाल दिया और एक और बेहतरीन बॅंक शॉट और रिज़ल्ट 2 पायंट्स हमारे खाते मे
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अबकी बार गौतम वीक साइड से हटकर मेरे सामने आ गया था और अमर को कवर करने के लिए उसने दो मुस्टांडो को लगा दिया था, टाइम बहुत कम था और उनके पायंट्स हमसे ज़्यादा थे..इसलिए उनकी टीम अब डिफेन्सिव गेम खेल रही थी और अब वक़्त डीडीजी फ़ॉर्मूला का थर्ड स्टेप अप्लाइ करने का था...मेरे इस डीडीजी फ़ॉर्मूला(डी-धड़ा, डी-धड़, जी-गोल )बोले तो धड़ा-धड़-गोल नियम के फर्स्ट टू स्टेप कामयाब हुए थे और थर्ड स्टेप मैं अब यूज़ करने वाला था...
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गौतम के हाथ से बॅस्केटबॉल अपने हाथ मे लेना अब मेरे लिए कोई बड़ी बात नही थी और अबकी बार मैने जैसे ही बॅस्केटबॉल गौतम के हाथ से छीनी तो वीक साइड पर खड़े उनके दोनो प्लेयर आक्टिव हो गये और गौतम मेरे सामने आ गया...उन पाँचो चूतियो को ये नही मालूम था कि थर्ड स्टेप मे बोनस पॉइंट लिया जाता है यानी की बॉल मेरे हाथ मे आने के बाद मैं एक कदम ना तो आगे बढ़ाता और ना ही पीछे..बस जहाँ था वही से रिंग मे बॉल घुसानी थी...और मैने ऐसा किया भी, मैने हाफ कोर्ट से रिंग को निशाना बनाया और बॉल बास्केट कर दी...और इसी बास्केट के साथ हमे 3 पायंट्स मिले अब स्कोर आकर 49-52 पर पहुच चुका था....
"नाउ टाइम टू यूज़ फोर्त स्टेप ऑफ धड़ा-धड़-गोल फ़ॉर्मूला..."मैने खुद से कहा,लेकिन उसी समय...ठीक उसी समय रेफरी ने गेम ओवर कर दिया बोले तो टाइम ख़त्म.......
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और इसी के साथ मैं अपना सर पकड़ कर वही बैठ गया, मुझे बस कुछ और सेकेंड्स चाहिए थे...लेकिन टाइम ख़त्म हो चुका था....इस वक़्त दोनो टीम्स के सपोर्टर्स शांत थे...गौतम की टीम भले ही जीत गयी हो लेकिन उनकी हालत ऐसी नही थी कि वो जीत का जश्न मना सके और हम जीता-जिताया मॅच हार गये...उस वक़्त मुझे बहुत बुरा लगा ,क्यूंकी ये मेरे साथ लगातार दूसरी बार हुआ था ,मेरा डीडीजी फ़ॉर्मूला लगातार टाइम की कमी की वजह से फैल हुआ था , यानी कि एसजीएफआइ मे भी हम ऐसे ही हारे थे और आज का मॅच हारने के बाद मैं ठीक उसी तरह सर पकड़ कर ग्राउंड मे बैठा था जैसे की एसजीएफआइ मे मॅच हारने के बाद बैठा था....
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थोड़ी देर तक मैं ऐसे ही बैठा रहा, गौतम के टीम के प्लेयर्स वहाँ से जा चुके थे लेकिन मेरे टीम के प्लेयर्स मुझे घेर कर बैठे थे...एक बुरी याद का ताज़ा होना सीधे लेफ्ट साइड मे असर करता है....लेकिन जब आपके पास अरुण जैसा खास दोस्त हो तो वक़्त को बदलने मे देर नही लगती....
"शेर लोग रोया नही करते..."
"मैं रो नही रहा...बस कुच्छ बुरी याद ताज़ा हो गयी..."
"आजा मूठ मार के आते है..."
जवाब मे मैने अरुण को गुस्से से घूरा तो उसने मुझे सिगरेट की दो पॅकेट्स फ्री मे देने का इशारा किया...
"साथ मे एक बोतल दारू भी चाहिए "खड़ा होते हुए मैने कहा...
"दारू तो मेरी तरफ से..."अमर सर बीच मे बोले"वो भी भरपेट..."
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कॉलेज के माहौल ने कभी मुझे मेरी सोच पर मज़बूती से खड़े रहने नही दिया...ठीक एक दिन पहले मैने जहाँ धुआँधार पढ़ाई करने के बारे मे सोचा था वही अब मैं सीनियर हॉस्टिल मे बैठकर दारू चढ़ा रहा था....दारू पीने के बाद जब गप्पे शुरू हुई तो अमर सर ने मुझसे पुछा की मैने ये सब कैसे किया...उन्होने मेरे प्लान की ट्रिक जाननी चाही...और मैने झूठ बोलते हुए कह दिया कि बस तुक्का फिट बैठ गया...जबकि ये सही ये नही था...असलियत ये थी कि मेरे नॅशनल टीम का हिस्सा रहे मेरे साथी चार खिलाड़ी,जो कि मेरे ही स्कूल के थे...हमने एक दूसरे से वादा किया था कि धड़ा-धड़-गोल का फ़ॉर्मूला कभी भी किसी को नही बताएँगे,यहाँ तक कि अपने कोच तक को हमने डीडीजी फ़ॉर्मूला नही बताया...ये डीडीजी फ़ॉर्मूला हम पाँचो ने मिलकर बनाया था ,इसलिए हम इसे अपने तक ही सीमित रखना चाहते थे....मैं जानता था कि ये ग़लत है,लेकिन मैने फिर भी ऐसा किया...क्यूंकी जब हमारी टीम एसजीएफआइ से बाहर हुई तो हम अंदर से टूट चुके थे...हमारी कयि सालो की मेहनत रेफरी के गले मे अटकी स्टॉप . के कारण बेकार हो चुकी थी और उसके बाद जो बॅस्केटबॉल छोड़ा तो आज जाकर पकड़ा था...
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"अरमान...10 दिन बाद पेपर है बे..."अरुण मेरे कंधे का सहारा लेते हुए बोला...
हम दोनो सीनियर हॉस्टिल से दारू के नशे मे अपने हॉस्टिल आ रहे थे...आज अरुण ओवरलोड हो गया था और मैने सिर्फ़ 2 पेग मारे थे....लेकिन फिर भी मैं नशे मे था.
"होने दे,साला मैं तो यूँ चुटकी बजाते हुए सब याद कर लूँगा...."और उसके बाद मैने चीखना चाहा लेकिन आवाज़ ही नही निकली...
"आगे बोल अपुन सुनिंग..."
"ये साली आवाज़ ही नही निकल रही..."
"अबे दो पेग मे ये हाल हो गया साले तुम फिर देश की सेवा कैसे करोगे..."खीस निपोर्ते हुए अरुण बोला...
"तो इसमे कौन सी बड़ी बात है,दारू पीने के बाद देश की सेवा करेंगे..."
उसके बाद हम दोनो एक दम चुप हो गये और आगे बढ़े...
"अरमान...देख दारू पिया हूँ,झूठ नही बोलूँगा...तू लौंडिया सेट कर सकता है और आज के मॅच के बाद तो लौंडिया तुझ पर फिदा हो गयी होंगी...और क्या नाम है तेरी उस पांटर का..."
"किसकी बात कर रहा है..."हवा मे एक लात मारते हुए मैने पुछा...
"वही जिसे किसी और ने सेट कर रखा है...जो तेरे को भाव भी नही देती लेकिन तू उसके पीछे घूमता रहता है..."
"एश.."
"हां साली वही...एक नंबर की चालू लड़की है बाप...अपुन को तो शुरू दिन से ऐसा लग रेला है कि...जो वो बाहर से इतनी भोली दिखती है वो अंदर से वैसे है नही...वो तो एक दम किसी डायन के माफिक...बोले तो पागल लगती है"
"ये क्या लड़कियो का टॉपिक लेकर बैठा है तू भी...क्यूँ उतार रहा है..."
हम दोनो फिर रुके और अरुण बोला"बीसी, हॉस्टिल तो बहुत पीछे चला गया..."
"म्सी..किसने ये शरारत की हमारे साथ, बुला बोसे ड्के को अभिच साले को एस्केप वेलोसिटी से फेक्ता हूँ...साला कभी अर्त पर वापस नही आ पाएगा...."
"कमाल है...वाहह..."तालिया मारते हुए अरुण बोला"वैसे अभी मुझे एक कन्फ्यूषन है..."
"कन्फ्यूषन..."हमने डाइरेक्षन चेंज की और हॉस्टिल की तरफ चलने लगे...
"यही कि तूने अमर सर से ये क्यूँ बोला की बॅस्केटबॉल के ग्राउंड मे जो हुआ वो तो बस तेरा तुक्का था..."
"तो इसमे भेजा घुमाने वाली कौन सी बात है..सही तो कहा था मैने..."
"लवडे मुझे चोदु मत बना...दारू पीने के बाद अपुन के पास सूपर पॉवर आ जाती है...."
"तुक्का ही था बे..."
"नही,अपुन को मालूम कि वो तुक्का नही तेरी काबिलियत का नज़ारा था...."
"देख हॉस्टिल अब आ चुका है...अब चल भोपु की गान्ड मारते है..."
"हट साले गे...अपना गे-यापा बंद कर...और दूर चल मुझसे..."
"किधर जा रहा है हॉस्टिल का दरवाजा उधर नही,इधर है...और यही तो प्यार है पगले "
"आजा फिर प्यार करते है..."
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हम दोनो ने हॉस्टिल के बाहर भले ही सोचा था कि अंदर जाकर पूरे हॉस्टिल के लड़को को परेशान करेंगे लेकिन एक बार रूम मे घुसने के बाद ,हमे कुच्छ याद नही रहा....सुबह नींद खुलते ही मुझे एक जोरदार झटका लगा..क्यूंकी मैं इस वक़्त अपने हॉस्टिल की छत पर लेता हुआ था,जहाँ से यदि मैं हल्का सा भी राइट टर्न लेता तो सीधे नीचे आ गिरता......
"शुक्र है कि रात को मैने ग़लती से भी राइट टर्न नही लिया वरना आँख यहाँ नही हॉस्पिटल मे खुलती..."बड़बड़ाते हुए मैं हॉस्टिल की छत से अपने रूम पर पहुचा..."ये साला हो क्या रहा है...ये सारे कपड़े किसने ज़मीन पर फेके...बीसी कॉलेज क्या चड्डी मे जाउन्गा..."
मैने पूरे रूम पर नज़र दौड़ाई, विपेन्द्र भैया के आने के कारण जहाँ रूम कल शाम तक चमक रहा था वही आज वही चमकता रूम जर्जर हो चुका था...मेरी आलमरी खुली हुई थी और कपड़े नीचे ज़मीन पर पड़े थे...और मेरी बेड शीट को ज़मीन मे बिच्छा कर अरुण उस पर पसरा हुआ था....
"अबे उठ बोसे ड्के के...उठ नही तो मूत दूँगा..."
मेरी इस धमकी का अरुण पर कोई असर नही हुआ तो मैने उसे दो-तीन लात भी मारी और फिर एक बाल्टी पानी उसपर डाला....
"दिव्याआआ....."
"चुप साले..."
"तू है "
"ये बता इधर क्या हुआ था कल रात..."
"कल रात"पूरे रूम का जायज़ा लेने के बाद अरुण बोला"तुझे सिगरेट पीना था तो तूने अपनी आलमरी खोली और सारे कपड़े ज़मीन पर फेक दिए और फिर मुझे लात मारकर यहाँ पर गिरा दिया ,उसके बाद मुझे भी याद नही..."
"चल जल्दी कॉलेज, फर्स्ट पीरियड तो अटेंड करने से रहे...डाइरेक्ट दूसरे पीरियड मे एंट्री मारेंगे..."
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