Kamvasna धन्नो द हाट गर्ल
08-05-2019, 01:30 PM,
RE: Kamvasna धन्नो द हाट गर्ल
ठाकुर धन्नो को सारा दिन काम करता देखकर उससे कहते थे- “बेटी तुम इतना काम क्यों करती हो? यह नौकर
जो हैं..."

मगर धन्नो कहती थी- “मैं सारा दिन बैठे हुए बोर हो जाती हैं इसलिए मुझे काम करने से कुछ सुकून मिल जाता है...”

प्रवीण अपने सपने के बारे में पूछने के लिए अपने गुरु के आश्रम में आ चुका था। प्रवीण ने अंदर दाखिल होते ही गुरु के पैर छूकर उनसे आशीर्वाद लिया और उनके चरणों में बैठ गया।

गुरुजी- “क्या हुआ प्रवीण बेटे, तुम बहुत दुखी लग रहे हो?” गुरु ने प्रवीण के चहरे को देखते हुए कहा।


प्रवीण ने गुरु की बात सुनकर उनके चरणों को पकड़कर अपनी सारी बात बता दी।

गुरुजी- “बेटे यह तो भगवान की लीला है। तुम्हारी पत्नी की मौत और तुम्हें वो सपने आना एक ही बात की। तरफ इशारा करते हैं की जो लड़की तुम्हें सपने में आती है, वो तुम्हारे पिछले जन्म की प्रेमिका है। तुम आज रात यहीं रुक जाओ मैं तुम्हारे लिए एक खास पूजा करूंगा, जिससे पता चल सके की उस लड़की का और । तुम्हारा क्या रिश्ता है?” गुरु ने प्रवीण की बात सुनकर उसे तसल्ली देते हुए कहा।

प्रवीण अपने गुरु की बात सुनकर वहीं ठहर गया और रात का इंतेजार करने लगा। रात को गुरुजी ने एक खास पूजा की और प्रवीण की तरफ देखते हुए मुश्कुरा दिया।

प्रवीण- “क्या हुआ गुरुजी, आप मुझे कुछ बताइए ना?” प्रवीण ने परेशान होते हुए कहा।

गुरुजी- “हाँ बेटा बताता हूँ, बताता हूँ...” गुरु ने प्रवीण को उतावला देखकर कहा- “बेटे वो लड़की और तुम पिछले जनम में एक दूसरे से प्यार करते थे। उस लड़की का नाम परवीन था और तुम्हारा अकबर। तुम दोनों एक दूसरे से दिल-ओ-जान से चाहते थे। मगर तुम्हारे बाप एक दूसरे के जानी दुश्मन थे। इसलिए तुम दोनों ने भागकर शादी का फैसला किया। लेकिन इस बात की खबर तुम दोनों के बापों को पड़ गई और जब तुम शादी करने वाले थे तो वो दोनों भी वहीं पहुँच गये। तुम दोनों एक दूसरे से अलग नहीं होना चाहते थे इसलिए तुम दोनों ने जहर खाकर खुदकाशी कर ली...” गुरु ने प्रवीण को सारी बात बताते हुए कहा।

प्रवीण- “गुरु क्या हम अगले जनम में मुसलमान थे?” प्रवीण ने हैरान होते हुए कहा।

गुरुजी- “जी बेटा, तुम दोनों मुसलमान थे। इस जनम में हिंदू हो। हो सकता है आगे जनम में किसी और मजहब से हो...” गुरु ने हँसते हुए कहा।

प्रवीण- “गुरुजी क्या हम इस जनम में एक हो सकते हैं?” प्रवीण ने उतेजित होते हुए पूछा।‘

गुरुजी- “बेटा यह तो भगवान ही बेहतर जाने की तुम दोनों का साथ इस जनम में भी है या नहीं?” गुरु ने प्रवीण की बात सुनकर आहह भरते हुए कहा।

प्रवीण- “ठीक है गुरुजी। मैं अपने प्यार को पाने के लिए किसी भी हद तक जा सकता हूँ। बस एक बार मुझे उसका पता मिल जाए...” प्रवीण ने गुरु की बात सुनकर कहा।

प्रवीण उस रात गुरु के आश्रम में रहने के बाद दूसरे दिन वापस शहर आ गया। प्रवीण ने सोचा ऐसे ढूँढ़ना तो बहुत मुश्किल होगा, इसलिए वो एक तस्वीर बनाने वाले के पास चला गया, और उससे झूठ बोलकर कहा की वो अपनी पत्नी की तस्वीर बनाना चाहता है जो मर चुकी है। उस शख्स ने प्रवीण के कहने पर तस्वीर बनानी शुरू कर दी। कुछ ही देर की कोशिश में धन्नो की तसवीर बन गई, जिसे लेकर प्रवीण खुश होता हुआ वहाँ से उठकर धन्नो की तलाश करने लगा। प्रवीण लगातार 7 दिन तक उस तस्वीर को लेकर धन्नो की तलाश करता रहा


लेकिन उसे किसी भी किस्म की कामयाबी नहीं मिली। आखीरकार वो थक हारकर मायूस होते हुए ट्रेन की एक टिकेट लेकर अपने घर वापस जाने का फैसला कर लिया।

प्रवीण ट्रेन में चढ़कर बैठ गया। प्रवीण को कुछ ही देर में नींद आ गई और जब वो उठा तो ट्रेन आगे जा चुकी
थी। ट्रेन जब स्टेशन पर रुकी तो प्रवीण को पता चला की वो तो नींद में आगे निकल आया है। प्रवीण ट्रेन से । उतरकर एक तरफ जाने लगा की अचानक उसे खयाल आया की क्यों न वो धन्नो की तलाश यहाँ भी करे? और वो यह सोचते हुये तस्वीर निकालकर लोगों से पूछने लगा। लेकिन यहाँ भी उसे मायूसी ही मिली। प्रवीण थक हारकर एक रिक्शा के पास फुटपाथ पर बैठ गया।

रिक्शावाला- “क्या हुआ भाई बहुत परेशान लग रहे हो...” अचानक प्रवीण को एक आवाज सुनाई दी। प्रवीण ने
जैसे ही ऊपर की तरफ देखा तो रिक्शावाला था, जिसने प्रवीण को यूँ परेशान बैठा हुआ देखकर सवाल किया था।

प्रवीण- “क्या बताऊँ भाई मुझे इस लड़की की तलाश है। लेकिन लगातार 7 दिन तक इसे ढूँढ़ने के बाद भी मुझे इसका पता नहीं चला...” प्रवीण ने मायूसी से उस तस्वीर को रिक्शेवाले को दिखाते हुए कहा।

रिक्शावाला- “अरे भाई यह तो हमारे गाँव के ठाकुर की बहू है। लेकिन तुम इसे क्यों ढूंढ रहे हो?” रिक्शेवाले ने हैरान होते हुए कहा।

प्रवीण- “क्या? सच बताओ तुम इसे जानते हो?” प्रवीण ने खुश होते हुए कहा।

रिक्शावाला दुखी होते हुए- “हाँ भाई बेचारी की जिस दिन शादी हुई उसी दिन उसका पति मर गया...”

प्रवीण- “क्या तुम मुझे अपने गाँव तक छोड़ दोगे?” प्रवीण ने रिक्शेवाले की बात सुनकर खुश होते हुए कहा।

रिक्शावाला- “हाँ भाई क्यों नहीं? मगर यह तो बताओ तुम उसे कैसे जानते हो?” रिक्शेवाले ने अपने रिक्शा को
स्टार्ट करते हुए कहा।

प्रवीण- “क्या बताऊँ भाई किश्मत का खेल है...” प्रवीण ठंडी आह भरते हुए रिक्शा में बैठ गया और रास्ते में। शुरू से आखीर तक सारी बात उस रिक्शेवाले को बता दी।
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