RE: Bahu ki Chudai बहुरानी की प्रेम कहानी
पर आज उनका बंजारिन वाला रूप तो कहर ढा रहा था … उनकी अल्हड़, बेपरवाह जवानी देख के मुझे अपनी जवानी के दिन स्मरण हो रहे थे जब मैं उस जमाने की फिल्म्स की हेरोइनों को बंजारिन के वेश में देख कर मुठ मारा करता था … नीतू सिंह, आशा पारेख, वहीदा रहमान, रेखा, वैजयन्ती माला मुमताज, राखी, योगिता बाली, सायरा बानो … न जाने कितनी और को मैंने अपने ख्यालों में ला ला के अपने लंड से सताया था और आज बंजारिन का वही साकार रूप लिए मेरी एकलौती बहूरानी मुझसे चुदने की खातिर मेरे आगे आगे चल रही थी; घुटनों तक के घाघरे में से उनकी गोरी गुलाबी पिंडलियां बहुत सुन्दर लग रहीं थीं.‘अभी इन्हें कंधों पर रख कर …’ मैंने सोचा.
बहूरानी ने सामान वाले कमरे का ताला खोला और हम दोनों झट से कमरे में घुस गये और दरवाजा भीतर से लॉक कर लिया. सबसे पहले मैंने बहूरानी को पीछे से अपने बाहुपाश में जकड़ लिया और उनके दोनों मम्में पकड़ के उनकी गर्दन और कान के नीचे चूमने लगा.“आह…पापा जी, थोड़ा सब्र तो करिये. फिर कर लेना जो जो करना हो. पहले ज्यादा जरूरी काम तो निपटा लें!” बहूरानी कसमसाती हुई बोली.“बेटा, तू इस घाघरे चोली में एकदम हॉट लग रही है; तुझ बंजारिन को चोदने को कब से मचल रहा हूं; पहले यही काम निपटा लें न!” मैंने उनकी चोली में हाथ घुसा के उसके अंगूर मसलते हुए कहा.
“नहीं पापा जी, पहले शादी का सामान देख लेते हैं. आप तो बहुत देर तक पेलोगे मुझे अगर चाचा जी आ गये तो सब गड़बड़ हो जायेगी.” अदिति मुझसे छूटती हुई बोली.
बहूरानी की बात भी ठीक थी तो मैंने उसे जाने दिया. फिर कमरे का जायजा लिया. पूरा कमरा शादी के सामान से भरा पड़ा था. होने वाली बहू के चढ़ावे के कपड़े जेवर एक अलग बॉक्स में रखे थे. कमरे में एक डबल बेड बिछा था जिस पर गिफ्ट में देने के कपड़े, पैंट शर्ट के पीस, साडियां, मिठाई के डिब्बे रखे थे. पलंग पर बैठने लायक भी जगह नहीं थी और सारा कमरा मिठाइयों की महक से महक रहा था.
बहूरानी ने सबसे पहले गहनों वाले बॉक्स का ताला खोल कर चेक किया. होने वाली बहू के सारे जेवर बहुत ही सुन्दर सुन्दर डिजाईन के थे और चढ़ावे के कपड़े, शादी का जोड़ा सब कुछ फर्स्ट क्लास लगा. बस हमें पायल पसंद नहीं आयी, तो अदिति ने अपने चाचाजी को फोन करके बता दिया- चाची जी, मैं भाभी का सामान देख रही हूँ, इसमें जो पायल है, वो बहुत हल्की है, पतली है, थोड़ी भारी वाली अच्छी लगेगी.
इतना करने के बाद मैंने पलंग पर पड़े कपड़े, मिठाई के डिब्बे एक के ऊपर एक रख के ढेर लगा दिया और अदिति के लेटने लायक जगह बनाई और उसे पलंग पर गिरा कर मैं उसके ऊपर सवार हो गया.बहूरानी भी बेकरार थी तो उसने भी अपनी बांहें मुझे पहना कर अपने ऊपर झुका लिया. मैं चुपचाप सा उनके भुजबंधन में बंधा हुआ उनके दिल की धकधक महसूस करता रहा. उसके जिस्म की तपन और वो नेह का आलिंगन मुझे आत्मिक सुख प्रदान कर रहा था.
बहूरानी के साथ मैंने बीसों बार संभोग किया था और हर बार हमें एक आत्मिक संतुष्टि और चरम सुख की अनुभूति ही हुई; कभी भी आत्मग्लानि या अपराधबोध से मन ग्रस्त नहीं हुआ. उनके नर्म गुदगुदे स्तन चोली में से उभरी हुई चोटियों की तरह मुझे आमंत्रित से कर रहे थे. मैंने उनके बीच अपना मुंह छुपा दिया और क्लीवेज को चूम चूम कर चाटने लगा.
बहूरानी के मुंह एक मादक आह निकल गई और उनका चेहरा ऊपर को उठ गया. मैंने चोली में नीचे से हाथ घुसा कर चोली को ऊपर खिसका दिया, ब्रा तो उसने पहनी ही नहीं थी, उसके नग्न उरोज बाहर निकल आये; मैंने दोनों मम्मों को दबोच लिया और हौले हौले उन्हें गूंथने लगा और उसकी गर्दन चूम कर कान की लौ को जीभ से छेड़ने लगा.
बस इतने से ही उसके निप्पल कड़क हो गये; जो किशमिश के जैसे थे फूल कर अंगूर से हो गये. मैं दायें वाले अंगूर को अपने मुंह में भर के चूसने लगा और बाएं वाले को चुटकी में भर के प्यार से धीरे धीरे निचोड़ने लगा जैसे नींबू निचोड़ते हैं.
“पापाऽऽ स्सस्सस्सस…आः ह…” बहूरानी के मुंह से धीमी सी कराह निकली और उसने मेरा चेहरा पकड़ कर अपने होंठ मेरे होंठों से जोड़ दिए और पूरी तन्मयता के साथ चूसने लगी. इधर मेरे बदन में खून की रफ़्तार तेज हो गयी मेरी कनपटियां तपने लगीं और लंड धीरे धीरे अकड़ने लगा. बहूरानी का निचला होंठ संतरे की छोटी फांक की तरह मोटाई लिए रसीला है जिसे चूसने में गजब का मज़ा आता है. तो मैं उसके दोनों मम्में पकड़ के होंठ चूसने लगा और बीच बीच में उनके गाल भी काटने लगा.अदिति बहू के गाल काटने में भी मस्त मज़ा आता है.
इसी बीच बहूरानी ने अपनी जीभ मेरे मुंह में घुसा दी और मैं उसे चूसने लगा; फिर मैंने अपनी जीभ बहू के मुंह में घुसा दी और वो भी मेरी जीभ अच्छे से चूसने लगी. हमारे होंठ और जीभ यूं ही काफी देर तक आपस में लड़ते रहे फिर बहूरानी नीचे हाथ लेजाकर जैसे कुछ टटोल के ढूँढने लगी.“पापा जी, कहां गया आपका वो?” वो अपना हाथ नीचे लेजाकर टटोलते हुए पूछने लगी.“वो क्या बेटा जी?” मैंने समझते हुए भी नासमझी का दिखावा किया और अपनी कमर ऊपर उठा दी ताकि वो उसकी पकड़ में न आये.“वो आपका छोटू!” वो धीमे से बोली.“छोटू?”“हां छोटू … लम्बू कह लो चाहे मोटू कह लो … वही!” बोल के बहूरानी ने मुझे चिकोटी काटी.
“पता नहीं मुझे … मेरे पास तो ऐसी कोई चीज नहीं!” मैंने कहा और उसके पेट को चूमते हुए नाभि में जीभ घुसा के गोल गोल घुमाने लगा. उसके दोनों मम्में अभी भी मेरे हाथों की गिरफ्त में थे.
“उफ्फ्फ़ पापा जी … आप भी न अब झूठ भी बोलने लग गये मुझसे. देखो ये तो रहा!” बहूरानी बोली और अपना पैर उठा कर मेरे लंड को छेड़ा, हिलाया.“अरे, तो ये कोई छोटू मोटू थोड़े ही है …ये तो मेरा लंड है लंड!” मैंने कहा और लंड को उसकी जांघों पर टकराने लगा.
“हां हां वही पापा … नाम कोई भी ले लो इसका. अब जल्दी से मिलवा दो इसे मेरी पिंकी से … टाइम कम है!”“अदिति मेरी जान, लंड को लंड ही कहो न और तुम्हारी पिंकी नहीं चूत कहते हैं इसे!”“धत्त, मैं नहीं कहती ऐसे गंदे शब्द!” बहू ने नखरे दिखाए.“प्लीज मान जा न मेरी गुड़िया रानी!” मैंने बहू के होंठ चूमते हुए कहा.“ऊं हूं” वो मुस्कुराते हुए गुनगुनाई.
“अच्छा ठीक है मत बोलो. मैं भी देखता हूं कैसी नहीं बोलती. अब तुम्हें ये लंड तभी मिलेगा जब तुम लंड लंड चिल्लाओगी और कहोगी कि पापा जी मेरी चूत मारो अपने लंड से!” मैंने बहू को चैलेन्ज दिया.“हां हां ठीक है देख लेंगे हम भी. मैं तो कभी न बोलूं ऐसी बात!” बहू भी पूरे आत्मविश्वास से बोली.
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