Hindi Kamuk Kahani वो शाम कुछ अजीब थी
07-18-2019, 12:53 PM,
#82
RE: Hindi Kamuk Kahani वो शाम कुछ अजीब थी
सुनील एक बीफरे हुए शेर की तरहा दीवार पे मुक्के बरसा रहा था --- हाथ लहू लुहान हो चुके थे.

सविता तो वहीं पत्थर बन खड़ी रह गयी - पर सुमन की चीख निकल गयी.

'न्न्न्ना आआहहिईीईईईईईईईई' वो भागी सुनील की ओर उसे ज़बरदस्ती अपनी बाहों में समेट लिया.

'ये ये - जान नही... वो तो बेवकूफ़ है.......ये क्या तुमने..... मेरा तो सोचा होता.'

सुनील के चेहरे पे चुंबनो की बरसात कर उसे ठंडा करने की कोशिश करने लगी - आँखों से आँसू टपक रहे थे.

'छोड़ो मुझे .... लीव मी अलोन' सुनील ने छूटने की कोशिश करी सुमन की बाँहों के घेरे से.

'क्यूँ छोड़ूं.... क्या छोड़ने के लिए बंधन बाँधा था .... नही छोड़ूँगी... जिंदगी भर नही छोड़ूँगी - साए की तरहा चिपकी रहूंगी ... क्या हो जाता है तुमको .... क्यूँ इतना गुस्सा आता है.... कूल डाउन डार्लिंग.... देखो तो क्या हाल कर लिया है' सुनील के दोनो हाथ अपने हाथों में थामने की कोशिश करते हुए बोली.

'कुछ नही गंदा खून बहा रहा था .... बहने दो.....' दर्द था सुनील की आवाज़ में जो ना सिर्फ़ सुमन को दुखी कर गया --- थोड़ी दूर खड़ी पत्थर बनी सविता को भी अहसास हो गया --- कितने दर्द में है सुनील इस वक़्त .... टपकने लगे उसके आँसू भी - हिम्मत ही नही हो रही थी कि सुनील के करीब जा उससे माफी माँग सके.


'खड़ी खड़ी क्या टैन्सुये बहा रही है - जल्दी फर्स्ट एड बॉक्स ले के आ' सुमन गरज पड़ी

सविता भागी अंदर.

'सूमी प्लीज़ थोड़ी देर के लिए अकेला छोड़ दो मुझे'

'नही पहले तुम्हारी ड्रेसिंग करूँगी - फिर बात करेंगे....बस अब कुछ और मत कहना ... मेरी कसम'

सविता फर्स्ट एड बॉक्स ले आई और वहीं सुनील के कदमो में बैठ गयी.

सविता को देख फिर सुनील का पारा चढ़ने लगा.

'बस..... मेरी तरफ देखो' सुमन ने सुनील के चेहरे को अपनी तरफ मोड़ा. और उसके हाथों की ड्रेसिंग करने लगी.

सविता की आँसू टप टप सुनील के पैरों पे गिरने लगे - सुनील पे इसका कोई असर ना पड़ा... नफ़रत हो गयी थी उसे सविता से .... बस चलता तो अभी उसे कहीं उठा के फेंक देता.

सुमन ने ड्रेसिंग ख़तम कर ली -----' चलो अंदर चलो'

'मुझे थोड़ी देर अकेला छोड़ दो प्लीज़'

सविता रोती हुई अंदर अपने कमरे में भाग गयी.

सुमन सुनील को लगभग खींचते हुए अपने कमरे में ले गयी. बिस्तर अभी तक वैसे का वैसा था.

सुमन अभी तक बाथरोब में थी.

'तुम आराम से लेटो मैं अभी आई' कह कर वो किचन में चली गयी.

सुनील ने बड़ी मुश्किल से उस कड़वे सच को अपने दिल के किसी कोने में दफ़न कर रखा था - जिसे सविता ने अंजाने में कुरेद कर बाहर निकाल दिया था.

सुमन ने फटाफट 3 कॉफी तयार करी और सुनील के पास पहुँच गयी.

सुनील सामने दीवार को घूर रहा था.

‘तुम शुरू करो – तुम्हारी साली को लेकर आती हूँ… लगा देना डाँट…’

सुनील ने गुस्से से सुमन की तरफ देखा.

‘इस प्यार की डगर पे कुछ काँटे तो मिलेंगे ही हमे जानू – बस चुन चुन के उनको निकाल के फेंकना है – यूँ अपने आप को सज़ा मत दिया करो …. उसकी जगह मैं भी होती तो गुस्से में कुछ भी बोल जाती …. प्लीज़ दिल पे मत लो… माफ़ करदो उसे. – अब भड़कना मत … ले के आ रही हूँ उसे.’ सुमन सविता को बुलाने चली गयी.

सविता आने को तय्यार नही थी पर सुमन उसे खींच के ले आई . सुनील तो सविता को देख हत्थे से उखड़ गया.

'ध्यान से रहना कहीं ये गंदा खून तुम्हें भी गंदा ना कर दे - और बढ़िया यही रहेगा तुम और तुम्हारी बेटी मेरे साए से भी दूर हो जाओ - इंतेज़ाम में कर दूँगा'


सविता और सुमन दोनो चुप - बारूद में आग लग चुकी थी उसे फटना तो था ही.

सुमन ने बोलने की कोशिश करी - पर सुनील के सख़्त चेहरे को देख चुप हो गयी - निकल जाने दो मवाद - यही बेहतर होगा -- उसने मन ही मन सोचा.


' क्या सोचती हो तुम - बहुत आसान था ये सब करना मेरे लिए --- मैने कही डॅड की कोई बात नही टाली --- लेकिन उनका आखरी हुकुम मेरे लिए जान लेवा था --- दूर चला जाना चाहता था मैं - पर रूबी और सोनल को अकेले नही छोड़ सकता था - गीध की तरहा सब नोच डालते उनको. रूबी को भी बचाने का हुकुम तो डॅड ने ही दिया था ..... उसमे मुझे कोई तकलीफ़ नही हुई ---- पर उनकी जगह लेना - मोम की जिंदगी में - मेरे लिए एक तरफ कुआँ और दूसरी तरफ खाई थी.........मेरे संस्कार ... मेरी मर्यादा मेरा गला घोंट रहे थे..... वहाँ सूमी की हालत दिन ब दिन बिगड़ती जा रही थी .... इसने जिंदगी जीना ही छोड़ दिया था.... बार बार सपने आते - डॅड मुझे उनका हुकुम याद दिलाते.... पागल हो चुका था मैं......'

सुनील कुछ पल रूका सांस लेने के लिए.

सुमन तो सब जानती थी ... सब उसकी नज़रों के सामने से गुजरा था ... पर सविता.....वो देखने की कोशिश कर रही थी .... जिससे उसका दिमाग़ मानने को तयार ना था .... पर जो अहसास उसे इस वक़्त हो रहा था वो उस तकलीफ़ को बयांन कर रहा था जिससे सुनील कयि महीनो गुजरा.

'क्या समझा था तुम सब ने - पत्थर का बना हूँ मैं --- वो तुम्हारा हरामज़ादा पति मेरी सुमन को उकसाता है - मुझे सेक्स लेसन्स देने के लिए --- और ये आँखों पे पट्टी बाँध शुरू भी हो गयी ....... क्या भुगता था मैने उस वक़्त समझ सकती हो क्या - जब मेरी अपनी माँ ने मुझे पहली बार चूमा था...... पहली बार किसी औरत के होंठों ने शिद्दत से मेरे होंठों को चूमा था..... क्या करता मैं ..... बढ़ सकता था आगे - नर्क की आग में - लेकिन डॅड के सिखाए उसूलों ने मेरे कदम रोक दिए --- पर ये दिल --- ये नही भुला पाया उस अहसास को --- ना चाहते हुए भी प्यार करने लग गया था मैं सूमी से'
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