RE: Desi Porn Kahani कहीं वो सब सपना तो नही
तभी भुआ और माँ मेरे पीछे आ गयी,,,,,हाँ सन्नी अब हम सबको नये रिश्ते की नयी ज़िंदगी की नयी
शुरुआत करनी है,,,भूल जाना है वो सब कुछ जो भी हुआ हम लोगो के बीच,,,तुम भी भूल जाओ
और नयी शुरुआत करो,,,,हम लोगो ने कविता के भैया भाभी से भी बात करली है अब जब तक तेरी
शादी नही हो जाती कविता हम लोगो के साथ इसी घर मे रहेगी,,,,,और तू सोनिया के साथ भी नये
रिश्ते की शुरुआत कर सकता है,,,,
वो बेचारी हम लोगो की मर्ज़ी के बिना तेरे करीब नही आना चाहती थी,,लेकिन हम लोगो को पता था
कि वो तेरे से दूर नही रह पाएगी जैसे तू उस से दूर नही रह सकता,,,इसलिए हम लोगो ने ये
नया घर ले लिया और सोनिया को भी इजाज़त दे दी कि वो तेरे करीब आ सकती है तुझे खुलकर प्यार
कर सकती है लेकिन जब तक हम लोग नये घर मे नही जाते नये शहर मे नही जाते तब तक हमने
उसको तेरे से दूर रहने को बोला था लेकिन वो बेचारी इतनी तड़प रही थी तेरे करीब आने को कि
1-2 दिन का इंतजार भी नही कर सकी और खुल कर करीब आ गयी तेरे,,,,,
अब मैं समझा कि सोनिया ने उस रात बारिश मे इतनी आसानी से मुझे उसके करीब कैसे आने दिया,,अब
समझा कि उसको घर वालो की मंज़ूरी मिल गयी थी और घर वालो की मंज़ूरी मिलते ही उसने भी मुझे
अपनी रज़ामंदी बता दी थी,,,और इसलिए भुआ और माँ 1-2 दिन रुकने को बोल रही थी ताकि हम लोग नये
घर मे आ जाए,,,लेकिन सोनिया की तड़प उसको 1-2 दिन भी मेरे से दूर नही रख सकी और बारिश मे
वो मेरे करीब आने से खुद को रोक नही पाई,,,,
मैने सबकी बात सुन ली थी और अब मेरी नज़रे सोनिया और कविता को तलाश रही थी,,तभी भुआ बोली
,,जिसको तू तलाश रहा है वो दोनो उपर है अपने रूम मे और तेरा इंतजार कर रही है,,,,,
मैं जल्दी से भाग कर उपर के रूम मे गया,,,,,जैसे ही मैं उपर गया तो देखा कि ये घर बिल्कुल
वैसा था जैसा हम लोगो का पुराना घर था लेकिन जहाँ पुराने घर मे उपर 2 बेडरूम थे वहीं
यहाँ पर सिर्फ़ एक रूम था,,,,,
मैं उस रूम मे गया तो सोनिया बेड पर लेटी हुई थी और कविता उसके पास बैठी हुई थी,,,,मुझे
रूम मे आते देख सोनिया धीरे से अपने बेड से उठी और खड़ी हो गयी ,,उसके साथ ही कविता भी खड़ी
हो गयी,,,,
मैं चलके उन दोनो के पास गया और उन दोनो ने मुझे गले लगा लिया,,,हम तीनो काफ़ी देर तक ऐसे
ही एक दूसरे के गले मिलके खड़े रहे ,,,,फिर वो दोनो पीछे हटी और मैने उनके चेहरे देखे तो
दोनो की आँखें नम थी,,,,,,वैसे मेरी आँखें भी नम थी,,,,,
अरे अरे अब रो क्यूँ रही हो तुम दोनो,,,,अब तो हम लोगो को खुश होना चाहिए,,,आख़िरकार हम सब
करीब आ गये है और अब तो घर वालो की मंज़ूरी भी मिल गयी है,,,,अब तो हम लोगो को मिलकर एक
नयी शुरुआत करनी है,,,,और ज़िंदगी की ये नयी शुरुआत रो कर नही हंस कर करनी है,,,,अब हम
लोगो को मिलकर खुशियाँ भरनी है अपनी ज़िंदगी मे,,,,,
भाई ये खुशी के आँसू है,,,,तड़प गयी थी तेरे पास आने के लिए,,,तड़प गयी थी तुझे हाँसिल करने
के लिए,,तड़प गयी थी तेरे साथ प्यार करने के लिए और अब जब तुझे हाँसिल कर लिया है तो खुशी
के मारे आँखें नम हो गयी मेरी,,,,
तभी कविता बोली,,,,बस बस अब रोना धोना बंद,,,अब तो खुशियों से नयी शुरुआत होगी ,,अब
कोई नही रोएगा,,अब तो सब कुछ ठीक हो गया है,,,,और अब तो मैं भी यही रहने वाली हूँ ,,अब
तो हम सब को मिलकर खुशी ने नयी ज़िंदगी का वेलकम करना है,,,
सही कहा कविता,,,,अब हम सब को मिलकर नयी ज़िंदगी का वेलकम करना है,,,अब कोई नही आएगा हम
लोगो के बीच मे,,,,,
तभी सोनिया बोली,,,,हाँ सन्नी कोई नही आएगा हम तीनो के बीच मे,,,और अगर कोई आया तो मैं उसकी
जान ले लूँगी,,,,,,सोनिया ने फिर से अपने हिट्लर वाले अंदाज़ मे बोला तो मैं और कविता हँसने लगे
और साथ मे सोनिया भी,,,,,रूम मे हम लोगो की हँसी गूँज उठी थी,,,,
नये शहर मे आके सब रिश्ते बदल गये थे,,,अब तक अशोक मेरा बाप था और सरिता मेरी माँ जबकि
नये शहर मे अशोक मेरा बाप और गीता मेरी माँ बन गयी थी,,,,,,,
सुरेंदर मेरा मामा था और सरिता मेरी माँ,,जबकि नये शहर मे आके सुरेंदर मेरा चाचा बन गया था
और सरिता मेरी चाची,,,,,,
लेकिन ये सब रिश्ते लोगो की नज़र मे थे,,,,,घर मे अशोक मेरा बाप था सरिता मेरी माँ ,,,
सुरेंदर को मैं अभी भी मामा बोलता था और गीता को भुआ,,,,,कहने को हम लोगो का जो भी रिश्ता
था अब उस रिश्ते के मायने बदल गये थे,,,,,रिश्ता जैसा भी था अब ये मेरा परिवार था जो
अपनी मर्ज़ी से अपनी ज़िंदगी जीने वाला था,,,,अब इस परिवार को अपनी मर्ज़ी से ज़िंदगी जीने के लिए
समाज और दुनिया का भी डर नही था,,
घर मे नीचे 2 बेडरूम थे,,,,,एक मे अशोक और गीता सोने लगे थे और दूसरे मे सुरेंदर और सरिता
नये शहर मे आके गीता ने यहाँ भी बुटीक खोल लिया था और सरिता भी उसके साथ बुटीक का
काम संभालने लगी थी,,,,,नया बुटीक पुराने बूटीक से बहुत बड़ा और खूबसूरत तैयार किया
था दोनो ने मिलकर क्यूकी सरिता के पास बहुत पैसा था,,,,,अब गीता को भी सरिता के पैसे से
कोई परेशानी नही थी,,,,,दोनो मिलकर बुटीक का काम करने लगी थी,,,
इधर अशोक और सुरेंदर ने गाँव जाना शुरू कर दिया था और गाँव मे सरिता की ज़मीन पर खेती बाड़ी
का सारा काम संभाल लिया था,,,,,गाँव यहाँ से कोई 2-3 अवर्स की ड्राइव पर था ,,अशोक और सुरेंदर
हफ्ते मे 2-3 दिन गाँव जाते थे और सारा काम काज देखते थे,,,
उपर वाले रूम मे मैं कविता और सोनिया के साथ सोता था,,,,फाइनल एअर के बाद मेरी कविता और सोनिया
की शादी हो गयी थी और शादी के बाद मुझे कविता से एक बेटी हुई जिसका नाम हमने शोभा रखा था
और सोनिया से मुझे एक बेटा हुआ था जिसका नाम हमने विशाल रखा था,,,,
इन सालो मे बहुत कुछ बदल गया था,,,,,
विशाल बाहर देश मे ही रहने लगा था,,,,वो कभी वापिस नही आया,,,,फोन पर बात ज़रूरी कर
लेता था लेकिन वापिस आने को उसका दिल नही करता था,,,,उसने वहाँ शादी भी करली थी लेकिन फिर
भी वो वापिस आने को तैयार नही था,,,,
शोभा अपने पति के साथ सिंगापुर मे सेट थी,,,शादी के बाद उसको भी एक बेटा हुआ था,,,,और उसने
उसका नाम सन्नी रखा था,,,,
इधर अमित और उसके दोस्तो को जैल हो गयी थी लेकिन उनके लिए जैल की सज़ा ही काफ़ी नही थी,,जैल
मे कुछ बड़े गुंडे थे जो ख़ान भाई के कहने पर अमित और उसके दोस्तो को तंग करने लगे थे,,
उन लोगो ने अमित और उसके दोस्तो की गान्ड मारनी शुरू करदी थी जैल मे,,,,अमित और उसका एक दोस्त ऐसी
ज़िल्लत की ज़िंदगी बर्दाश्त नही कर सके और जैल मे ख़ुदकुशी करली थी उन्होने,,लेकिन अमित के कुछ
दोस्त गान्डु बनके रह गये थे जैल मे,,,,जैसे उन लड़को ने ज़बरदस्ती की थी लड़कियों से वैसे ही
जैल मे ज़बरदस्ती उनकी गान्ड मारी जाती थी,,,और अब तो उनको जैसे तैसे यही जिंदगी बितानी थी
या ज़िल्लत की ज़िंदगी से तंग होके ख़ुदकुशी करनी थी,,,,
अमित के बाप मिस्टर सेठी को वैसे तो कुछ साल की ही सज़ा हुई थी लेकिन बदनामी की वजह से उसकी
कुर्सी और पॉवर दोनो ही चली गयी थी,,,,और पॉवर जाते ही सीबीआइ ने बाकी के केस पर भी काम करना
शुरू कर दिया था,,,,अब तो मिस्टर सेठी मरके ही जैल से आज़ाद होने वाला था,,,
सुरेश का बाप सरकारी गवाह बन गया था उसको कम सज़ा ही हुई थी इसलिए जल्दी ही रिहा हो गया था
वो जैल से,,,और बाहर आके उसने भी नयी शुरुआत की और नये सिरे से नयी ज़िंदगी जीने लगा,,,अब वो
वापिस पॉलिटिक्स मे नही गया और जितना भी पैसा था उसने ज़्यादातर पैसा अनाथ आश्रम और विधवा आश्रम
जैसी जगह पर दान करना शुरू कर दिया था,,,,
गाँव मे पुष्पा देवी की मौत हो गयी थी और घर के सभी लोग गये थे ,,,,अशोक को अग्नि जो देनी थी
अपनी माँ की चिता को,,,,,,लेकिन किसी ने भी किशन लाल से कोई बात नही की थी,,,फिर पुष्पा
देवी के मरने के बाद 2-3 महीने मे किशन लाल भी मर गया,,,वो तो पहले से बीमार रहता था
लेकिन उसकी मौत पर कोई नही गया गाँव,,,,
करण भी अपने बाप के पास जाके वहीं रहने लगा था,,,उसको बहुत खुशी हुई थी मेरे घर के बारे
मे सुनकर ,,,वो मेरी सोनिया और कविता की शादी से भी बहुत खुश था,,,,करण ने रितिका को सब कुछ
बता दिया था लेकिन रितिका को ये सब मंजूर नही था,,,,,इसलिए रितिका के प्यार की खातिर करण
अलका और शिखा से दूर हो गया था,,,,अलका और शिखा भी करण के बाप को शामिल करने से डर रही
थी उसको सच बताने से डर रही थी,,,इसलिए उनके परिवार मे भी वो सब नंगा नाच बंद हो गया था
जो अब तक होता था,,,,अलका जानती थी कि शिखा अकेली कैसे अपनी प्यास बुजा सकती है इसलिए अच्छा
लड़का देखकर उसकी भी शादी करदी थी अलका ने,,,,,
और यहाँ मेरा भी यही हाल था,,,,,,जहाँ कविता ने मेरे करीब आके मुझे कामिनी भाभी से दूर
कर दिया था वहीं सोनिया ने मेरे करीब आके मुझे मेरी बाकी की फॅमिली शोभा ,,,सरिता और गीता
से दूर कर दिया था,,,,,,
जहाँ सोनिया की वजह से मेरी इन्सेस्ट सेक्स लाइफ हमेशा के लिए सुनसान और वीरान हो गयी थी वहीं
सोनिया की वजह से मैं नयी इन्सेस्ट लाइफ का मज़ा लेने लगा था ,, सुनसान और वीरान हो चुकी इन्सेस्ट
सेक्स लाइफ मे फिर से बहार ले आया था,,,,कहने को सोनिया मेरी बीवी थी लेकिन सच तो ये था कि वो
मेरी बहन थी और मैं उसको बहुत प्यार करता था,,उसी के साथ मेरी इन्सेस्ट सेक्स लाइफ आगे बढ़ने वाली
थी,,,,
दोस्तो ये कहानी अब यहीं समाप्त होती है आप सब का साथ देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद
समाप्त....................
दा एंड
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