Antarvasna kahani नजर का खोट
04-27-2019, 12:50 PM,
#76
RE: Antarvasna kahani नजर का खोट
मेरे सामने अकूत दौलत थी इतना सोना चांदी आभूषण और पता नहीं क्या क्या था पर वो नजारा कुछ सेकंड ही रहा और फिर सब पहले जैसा हो गया मैं हैरत से कभी बावड़ी को देखु कभी भाभी को

भाभी- आओ माता के दर्शन करले फिर घर चलते है 

मैं- कैसे किया आपने 

वो- मैं मालकिन हु इस खजाने की 

मैं- कैसे 

भाभी-जैसे तुम हो 

कहाँ मैं पूजा को रहस्यमयी कहता था और भाभी ने जो आज किया था मेरा सर चकरा गया था खैर हमने माता के दर्शन किये पर मेरे चेहरे पर हवाइयां उडी हुई थी मैंने भाभी का हाथ पकड़ लिया

मैं- कही मुझसे ऐसा कुछ तो नहीं हुआ न की मुझे उसका अफ़सोस हो 

भाभी- अभी तक तो नहीं आगे का पता नहीं

मैं- मुझे पार लगा दो भाभी 

भाभी- ज़िन्दगी की जंग सबको खुद लड़नी पड़ती है कुंदन 

मैं- सहारा बनो आप मेरी मदद नहीं करोगी तो कौन करेगा 

भाभी- और मेरी मदद कौन करेगा क्या तुम करोगे 

मैं- आपके एक इशारे पे प्राणों को त्याग दू आप कहिये तो सही 

भाभी- तो वचन दो की जब जीवन में ऐसा समय आएगा की तुम्हारे मन में द्वन्द हो, जब आसमान में ढलते सूर्य की लाली होगी और चंद्र किरने बाहे फैलाये स्वागत करेंगी,जब आँखों में आंसू होंगे और दिल में दर्द जब तुम्हारे हाथ कांपेंगे और इरादे कमजोर तब तुम सत्य का चुनाव नहीं बल्कि अपनी अंतरात्मा का कहा मानोगे

जब जीवन में अपने पराये का भेद मिट जाएगा जब रक्त रक्त की प्यास बुझायेगा जब ना प्रेम होगा न अहंकार जब ना कोई आस होगी ना कोई विश्वास जब हर बंधन टूटेगा तो तुम अपने मन की आवाज सुनोगे वचन दो।

मैं- वचन दिया भाभी आपको माँ दुर्गा सामान साक्षी मान कर वचन दिया
भाभी- मैं जानती हूं तुम इस वचन के साथ ही साथ मेरा मान भी रखोगे 

मैं- भाभी, पर आपने ये कैसे किया मेरा मतलब खजाना कैसे पहचानता है आपको 

भाभी- कुंदन ये एक बहुत जटिल व्यवस्था है जो सिर्फ इसलिए की गयी थी ताकि खजाना खाली उसके असली हक़दार को ही मिले और ये जो तुमने अभी देखा ये। सुरक्षा का प्रथम चरण है खून की पहचान 

मैं- पर आपका खून कैसे , आप अर्जुनगढ़ से कैसे जुडी है 

भाभी- नहीं मैं अर्जुनगढ़ से बिलकुल नहीं जुडी हु

मैं- तो फिर कैसे 

भाभी- जवाब तुम्हारे पास ही है झाँक कर देखो अपने मन में, खैर , मैं बस तुम्हे परख रही थी और उम्मीद करती हूं कि इस खजाने का लालच तुम न करो क्योंकि असल में इसका कोई वारिस है ही नहीं कमसे कम फ़िलहाल जो लोग इसके बारे में जानते है

" क्योंकि जहाँ तक मैं जानती हूं पद्मिनी ने नाहरवीरो को परास्त करके इसे अपने पति और राणाजी के लिए उठाया था , और फिर पद्मिनी ने ही उन दोनों से इसे बचाने के लिए एक ऐसी व्यवस्था तैयार की ,जिसमे दोनों ठाकुर ही चाह कर भी इसे कभी हासिल न कर सके"

" परन्तु तंत्र के कुछ अकाट्य नियम होते है जिनके अनुसार जो किसी विद्या या धन का संचरण करले तो वो उसका हो जाता है जैसे इस मामले में सब कुछ पद्मिनी का हो गया और उसके जरिये दोनों ठाकुरो का और यही बात अटक गयी है"

मैं- कैसे

भाभी- तंत्र की एक जटिल शाखा जिसके अनुसार खजाना स्वतन्त्र है अपना वारिस चुनने को मतलब पद्मिनी ने ऐसी व्यवस्था की है जिसके अनुसार जो भी असली वारिस है वो एक कीमत चूका कर ही इसको प्राप्त कर पायेगा 

मैं- और ये कीमत क्या होगी

भाभी- ये राज़ बस राणाजी ही जानते है 

मैं- परन्तु इन सब में आप कहाँ फिट होती है मतलब आपका अर्जुनगढ़ से कोई संबंध नहीं और देवगढ़ की बहू है आप तो आपको कैसे पहचानता है ये खजाना

भाभी- मैं खजाने की प्रथम प्रहरी हु राणाजी समझ गए थे इस बात को इसलिए ही मेरा विवाह इंद्र के साथ हुआ

मैं- पर आप कैसे ये बताइये

वो- मुझ पर कुछ अहसान थे पद्मिनी के शायद इसलिए

मैं- तो आप जानती है उन्हें 

वो- हां ,पर वो कोई खास वजह नहीं थी 

मैं- तो आप ये भी जानती होंगी की अब भी खारी बावड़ी में उनकी मौजूदगी है 

भाभी- ऐसा नहीं हो सकता है 

मैं- क्यों 

वो- वो मुक्त हो गयी थी 

मैं- तो फिर ।।।।।।

भाभी- जानते हो कुंदन दुनिया की सबसे बड़ी शक्ति क्या होती है मैं तुम्हे बताती हु, वो शक्ति है प्रेम हर चीज़ का आदि से अंत तक बस प्रेम है हम लाख बुरे हो अच्छे वो पर प्रेम कही ना कही किसी न किसी रूप में मौजूद अवश्य रहता है अगर ये बात समझ लो तो बाकी जीवन बेहतर तरीके से कट जाता है

मैं- आप राणाजी का षोषण क्यों सहती है 

भाभी- सही समय पर ये भी जान जाओगे तुम 

मैं- अगर आप चाहे तो मेरे साथ आ सकती है कुंदन इस काबिल है कि अपनी भाभी को मान सम्मान से रख सके

भाभी- जानते है 

मैं- तो फिर क्यों हो राणाजी के साथ 

वो- जान जाओगे जल्दी ही जान जाओगे खैर शाम ढल रही है हमे घर के लिए निकलना चाहिए 

मैं- नहीं मुझे कुछ और देर रुकना है 

मैं उठा और चलते चलते उस संगमरमर के पत्थर के पास पहुच गया 

मैं- भाभी किसी ने बताया था कि आपको तलवार बाजी बहुत बढ़िया आती है 

भाभी- बरसो से मैंने तलवार को छुआ भी नहीं है 

मैं- आओ जरा 

भाभी- रहने दो 

मैं- आओ न 

भाभी- कुंदन मेरे हाथ में तलवार आते ही खून मांगती है रहने दो चोट लग जाएगी 

मैं- कुंदन को इतना कम भी मत आंकिये सरकार 

भाभी- चलो अगर तुम्हारी ये ही आरज़ू है तो ये ही सही 

भाभी ने उन दोनो तलवारो में से एक खींच ली मैंने भी उठा ली 

भाभी- चोट लग गयी तो मुझे दोष तो नहीं दोगे न 

मैं- छू कर तो दिखाइये पहले

भाभी- जैसा तुम चाहो देवर जी
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RE: Antarvasna kahani नजर का खोट - by sexstories - 04-27-2019, 12:50 PM

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